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Incest भैया ने ट्रेन में की मेरी चुदाई !

Alka Sharma

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फिर वो बड़ी बेबस निगाहों से मुझे देख रहे थे. फिर मैंने अपने सर और आँखों के इशारे से पूछा कि क्या हुआ? तो वो थोड़े से नीचे झुककर धीरे से फुसफुसाए कि आस पास सवारियाँ मौजूद है गुड्डू, इसलिए में आराम से काम करना चाहता था, मगर इस तरह होगा ही नहीं, थोड़ी ताक़त लगानी पड़ेगी. फिर में उखड़े स्वर में बोली तो लगाओ ना ताक़त भैया, तो भैया बोले कि ताक़त तो में लगा दूँगा, लेकिन तुम्हें दर्द होगा, क्या तुम बर्दाश्त कर लोगी?
फिर मैंने कहा कि आप फ़िक्र ना करें, कितना ही दर्द क्यों ना हो? में एक ऊफ तक नहीं करूँगी, आप अपना लंड डालने में चाहे पूरी शक्ति ही क्यों ना लगा दें? फिर उन्होंने कहा कि ठीक है, में अभी अंदर करता हूँ.
अब भैया को विश्वास हो गया और इस बार उन्होंने दूसरी ही तरकीब से काम लिया. फिर उन्होंने उसी तरह बैठे हुए मुझे अपनी टांगो पर उठाकर बैठाया और हम दोनों को अच्छी तरह से कम्बल से लपेटने के बाद मुझे अपने पेट से चिपकाकर थोड़ा सा ऊपर किया और इस बार बिल्कुल चूत की दिशा में अपने लंड को रखकर और मेरी चूत को टटोलकर उसे अपने सुपाड़े पर मेरी चूत पर टिका दिया तो में उनके लंड पर बैठ गई. अभी मैंने अपना वजन नीचे नहीं गिराया था और मैंने सुविधा के लिए भैया के कंघो पर अपने हाथ रख लिए थे.
फिर भैया ने मेरे कूल्हों को कसकर पकड़ा और मुझसे बोले कि अब एकदम से नीचे बैठ जाओ.
फिर में मुस्कुराई और एक तेज़ झटका अपने बदन को देकर उनके लंड पर छपक से बैठ गई. फिर उधर भैया ने भी मेरे बदन को नीचे की और दबाया तो अचानक से मुझे ऐसा लगा जैसे कोई तेज़ धार खंजर मेरी चूत में घुस गया हो और में तकलीफ़ से बिलबिला गई, क्योंकि मेरी और भैया की मिली जुली ताक़त के कारण उनका विशाल लंड मेरी चूत के छोटे से दरवाज़े को तोड़ता हुआ अंदर समा गया था और में सरकती हुई भैया की गोदी में जाकर रुकी.
फिर मैंने तड़पकर उठना चाहा, लेकिन भैया की गिरफ़्त से में आज़ाद ना हो सकी. अगर ट्रेन में बैठी सवारियों का ख्याल ना होता तो में बुरी तरह चीख पड़ती. फिर में मचलते हुए वापस से भैया के पैरों पर पड़ी तो मेरी चूत में लंड तनने के कारण मुझे और दर्द का सामना करना पड़ा. अब में उनके पैरों पर बारी-बारी बिन पानी मछली की तरह तड़पने लगी थी.
अब भैया मुझे अपने हाथों से दिलासा देते हुए मेरी चूचियों को सहला रहे थे. फिर करीब 10 मिनट के बाद मेरा दर्द कुछ कम हुआ तो भैया अपने कूल्हों को हल्के-हल्के हिलाकर अंदर बाहर करने लगे. फिर मेरा दर्द कम होते-होते बिल्कुल ही समाप्त हो गया और में असीमित सुख के सागर में गोते लगाने लगी. अब भैया धीरे से अपना लंड बाहर खींचकर अंदर डाल देते थे और उनके लंड के अंदर बाहर करने से मेरी चूत से पचक-पचक की अजीब-अजीब सी आवाज़ें पैदा हो रही थी.
अब मैंने अपनी कोहनियों को बर्थ पर टेककर मेरे बदन को ऊपर उठा रखा था और खुद थोड़ा सा आगे सरककर अपनी चूत को वापस से उनके लंड पर धकेल देती थी. इस तरह से आधे घंटे तक धीरे-धीरे से चोदा चोदी का खेल चलता रहा और अंत में मैंने जो सुख पाया उसे में बयान नहीं कर सकती.
फिर भैया ने टावल निकालकर पहले मेरी चूत को पोछा जो खून और हम दोनों के रस से सनी हुई थी. फिर उसके बाद मैंने उनके लंड को पोछा और फिर बारी-बारी से बाथरूम में जाकर फ्रेश हुए और अपने कपड़े पहने. अब मेरे पूरे बदन में मीठा-मीठा सा दर्द हो रहा था और यही से हम दोनों भाई बहन ना होकर प्रेमी प्रेमिका बन गये. अब जब भी भैया घर आते है तो वो मुझे बिना चोदे नहीं मानते है. अब मुझे भी उनका इंतज़ार रहता है, मगर मैंने अभी तक किसी और को अपना बदन नहीं सौंपा है और ना कोई इरादा है और फिर आगे राम जाने.

End.
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