• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy ब्रह्माराक्षस

park

Well-Known Member
13,382
16,026
228
अध्याय अड़तीस

जहाँ एक तरफ अस्त्र और असुरों मे जंग का आगाज़ हो गया था तो वही दूसरी तरफ मे अपने ही सपनों की दुनिया में खोया हुआ था मे इस वक्त नग्न अवस्था मे प्रिया की चुचियों को तकिया बना कर सोया हुआ था

की तभी मेरे दिमाग मे जोर जोर से किसी के चीखे सुनाई देने लगी ऐसा लग रहा था कि कोई मुझे मदद के लिए बुला रहा है ऐसी आवाजे तो पहले भी मुझे आती थी लेकिन आज की ये आवाजे कुछ अलग थी

पहले जो आवाजे आती थी वो आवाजे अनजान लोगों की थी लेकिन आज की आवाजे सुन कर ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी जान पहचान वाले की आवाज हो वो आवाजे मुझे भद्रा कहकर ही बुला रहे थे

तो वही जो आवाजे पहले सुनाई देती थी वो मुझे कुमार कहकर बुलाते थे और न जाने क्यों पर मुझे ऐसा लग रहा था की कोई शक्ति है जो उन आवाजों को मुझ तक आने से रोक रही थी वो आवाजे बहुत दबी हुई महसूस हो रही थी

जिन्हे अभी मे ठीक से सुनने का प्रयास कर रहा था कि तभी मुझे मेरे आँखों के सामने एक बहुत भयानक और विचित्र चेहरा दिखा जैसे की की भूत हो जिसे देख के ही मेरे शरीर के रोंगटे खड़े हो गए और साथ ही मेरी नींद भी खुल गई

जब मेरी नींद खुली तो मुझे मेरे शरीर पर वजन महसूस होने लगा और जब मैने देखा तो शांति मेरे उपर चढ़ी हुई थी और सो रही थी जिसे देख कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी और जब मैने समय देखा तो रात हो गयी थी

जिसे देख कर मैने अपना सर पकड़ लिया क्योंकि कुमार ने मुझे रात को ही तालाब के पास बुलाया था शक्तियों पर काबू पाने के लिए फिर मे धीरे से उठ गया जिससे कि प्रिया और शांति की नींद न टूटे और प्रिया को उसके कपड़े पहना दिये और फिर अपने कपड़े पहनकर तालाब के पास चल पड़ा

तो वही दूसरी तरफ चाइना मे इस वक़्त शैलेश और दिलावर दोनों उन असुरों से लढने के बाद सतर्क हो गए थे लेकिन इस से पहले की वो आगे बढ़ते की तभी उनके पैरों के नीचे की जमींन अचानक से कांपने लगी

और इससे पहले की वो दोनों कुछ सोच या समझ पाते उससे पहले ही वहा पर एक धमाकेदार विस्फोट हो गया जिससे वो दोनों दो अलग अलग दिशा मे गिर गए और अभी वो खड़ा होने का प्रयास कर रहे थे की तभी दोनों को उपर दो आग के गोले आकर फट गए

जिससे अब दोनों की ही हालत पतली हो गयी थी पहले ही केशासूर और गजासूर को मारने के लिए उन्होंने अपने अस्त्रों को जागृत किया था जिससे वो पहले ही कमजोर महसूस कर रहे थे और अभी जो उन पर हुए लगातार हमलों से दोनों को बहुत गंभीर चोंटे आई थी

जिससे अभी वो बहुत कमजोर हो गए थे और अभी वो एक दूसरे के पास पहुंचे ही थे की तभी वहा पर आ गया असुर सेनापति मायासुर जिसे देख कर उन दोनों की आँखों मे डर और आश्चर्य के भाव साफ दिख रहे थे

फिर भी मायासुर को देखकर वो दोनों लढाई के लिए तैयार हो गए और अभी दिलावर अपने जल अस्त्र को जगाकर उसके तरफ तेजी से बढ़ रहा था की तभी मायासुर ne अपना बाया हाथ अपने दिल पर रखा और आँखे बंद करके एक लंबी साँस ली और फिर लगभग चीखते हुए वो बोला

मायासुर :- असुर हो असुर देव शक्ति दीजिये

उसके इतने बोलते ही उसके चारों तरफ काले रंग की आग आ गयी जो दिलावर के हर एक जल प्रहार को बाफ बना रहा था जिसे देख कर वो दोनों हैरान हो गए थे ऐसा होते हुए वो अपने पूरी जिंदगी पहली बार देख रहे थे

और अभी वो इस बात को हज़म कर पाते उससे पहले ही उस काले आग से एक लाल रोशनी निकली जो सीधा जाके दिलावर से टकरा गयी और देखते ही देखते दिलावर उस शक्ति मे कैद हो गया

ये देखकर शैलेश को कुछ भी सुझा नही और उसने अपनी आँखे बंद करके कालास्त्र का आव्हान करने लगा तो वही मायासुर के काले आग से ठीक वैसी ही एक और लाल रोशनी निकली जिसके निशाने पर इस बार शैलेश ही था

और जैसे ही वो रोशनी शैलेश तक पहुँचने वाली थी कि तभी शैलेश के चारों तरफ एक सफेद ऊर्जा फैल गयी और जैसे ही वो सफेद रोशनी हटी तो शैलेश अपनी जगह से गायब हो गया था

तो वही अपने शिकार को गायब होता देख मायासुर ने उस लाल रोशनी यानी श्रपित कवच को वापस काले आग मे डाल दिया लेकिन वो एक अस्त्र को अपने हाथ से जाते देख कर वो आग बबूला हो गया और वो दिलावर को ले कर वहा से चला गया

तो वही दूसरी तरफ मे तालाब के पास पहुँच गया था और जैसे ही मे तालाब के पास पहुँचा तो वहा पर पहुँचते ही मेरे दिमाग मे कुमार की आवाज आने लगी

कुमार :- अच्छा हुआ तुम आ गये नही तो मुझे लगा था कि तुम्हारी नींद सुबह से नही खुलेगी

भद्रा:- हा अब ताने मारने की जरूरत नहीं है चलो मुझे ताकतों को काबू करना सिखाओ

कुमार:- ठीक है तुम अपने दिमाग के सारे खयाल निकाल दो और सुबह तुम जिस तरह अपने ऊर्जा स्त्रोत तक पहुंचे थे बिल्कुल अभी भी वैसे ही करो

उसके बाद मे कुमार जैसे जैसे बता रहा था ठीक वैसे ही करते जा रहा था अभी मे फिर से एक बार उसी जगह पहुँच गया था जहाँ पर पृथ्वी अस्त्र था और मेरे उस जगह पहुँचते ही पृथ्वी अस्त्र फिर से मेरे चारों तरफ घेरा बनाने लगा

लेकिन तभी कुमार ने मुझे उस घेरे को फिर से उसी मनी के अंदर भेजने को कहा और जब मैने ये कर दिया तो उसके बाद कुमार ने मुझे एक मंत्र बताया जिसका मे जैसे जैसे जाप करते जा रहा था वैसे वैसे ही वो मोती मेरे पास आते जा रही थी

और फिर धीरे धीरे वो मोती मेरे अंदर समा गयी और उसके मेरे अंदर समाते ही मेरे शरीर मे इतना तेज दर्द होने लगा की मै अपनी ध्यान अवस्था भी स्थिर नही रख पा रहा था लेकिन फिर भी में हार नही मान रहा था


कुमार जैसे जैसे मंत्र बोले जा रहा था मे उसे दोहरा रहा था तो वही कुमार की आवाज सुन कर लग रहा था कि जैसे मुझ से ज्यादा दर्द और पीड़ा उसे हो रही है मे आँखे खोल कर देखना चाहता था

लेकिन कुमार ने हि मुझे कहा था कि कुछ भी हो जाए लेकिन मे अपनी आँखे न खोलू और न ही मंत्रों का जाप रोकू ऐसे ही न जाने कितने घंटों तक दर्द सहने और मंत्रों का जाप करते रहने के बाद आखिर कार मुझे होने वाली पीड़ा रुक गई और धीरे धीरे मेरा सारा पुराना दर्द भी गायब हो गया

और अभी मुझे उस मनी रूपी अस्त्र की ताकत अपने अंदर महसूस हो रही थी मुझे ऐसा लग रहा था की मेरे शरीर की सारी नशे खिचती जा रही हैं और धीरे धीरे मेरे शरीर का भार बढ़ता महसूस हुआ

और अभी कुमार की आवाज भी बंद हो गयी थी जिस वजह से मैने अपनी आँखे खोली तो सामने का नजारा देख कर दंग रह गया था क्योंकि मेरे सामने वही मोती था

लेकिन अब उसका आकार पहले से भी अधिक बढ़ गया था न सिर्फ आकार बल्कि उसका ताप उसका तेज उससे निकलती ऊर्जा सब पहले से भी अधिक हो गया था और जब मेरा ध्यान एक कोने में रखे हुए आसान पर गया

जिसे देख कर मे एक बार फिर से हैरान रह गया क्योंकि वो आसान नहीं बल्कि वो सिंहासन था वही सिंहासन जिसको मैने उ पाचों महासुरों को मारकर हासिल किया था (अध्याय अठरा और उन्नीस मे)

उस सिंहासन को मे अपने ऊर्जा स्त्रोत मे देखकर हैरान था और जब मे उसके पास जाने लगा की तभी फिर से उस जगह पर कुमार की आवाज आने लगी जो मुझे उस सिंहासन के पास जाने से रोक रहा था

कुमार:- अभी तुम्हे उस सिंहासन को छूना भी नहीं है

मै :- क्यों

कुमार:- अगर तुमने उसे छुआ भी तो तुम्हारे अपनों के साथ साथ तुम्हारे शत्रु भी तुम्हारे अस्तित्व के बारे में जान जायेंगे और अभी जितने कम लोग तुम्हारे बारे में जानेंगे उतना तुम्हारे लिए अपने अस्तित्व तक पहुंचना आसान होगा

फिर मैने इस बारे में ज्यादा बात करना ठीक नही समझा और अब मुझे थकान भी महसूस होने लगी थी जिस कारण मैने भी अपना ध्यान तोड़ दिया और

जब मैने आँख खोली तो अभी भी रात ही ही रखी थी मुझे लग रहा था कि जैसे सुबह हो गयी होगी खैर उसके बाद मे तालाब मे ही नहाकर वापस आश्रम की और चल पड़ा मे अभी बहुत ही ज्यादा उत्साहित था अपनी ताकतों का इस्तेमाल करने के लिए

जिसका सुवर्ण मौका भी नियति जल्द ही मुझे देने वाली थी

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Nice and superb update....
 
  • Like
Reactions: VAJRADHIKARI

Rusev

Banned
19,290
6,388
199
अध्याय तीस (भाग 1 का अंत)

अब हालत ऐसे थे की उस पूरे मैदान मे जहाँ कुछ देर पहले उत्सव मनाया जा रहा था सारे दर्शक चीखकर अपने अपने राजाओं और योध्दाओ का मनोबल बढ़ा रहे थे वही अब वो शांत हो गए थे उन्हे देख ऐसा लग रहा था कि जैसे उन्होंने कोई भूत देख लिया हो तो वही वो राजगुरु अभी भी दंग होकर मैदान मै घूरे जा रहा था और उसके चेहरे पर इस वक़्त क्रोध और बैचेनी साफ दिखाई दे रही थी

राजगुरु :- मनुष्य ये तूने सही नही किया तूने शैतानों के सम्राटों को मारा है और अब तु यहाँ से जिंदा वापस लौट कर नही जा पायेगा अब देख तु मे क्या करता हूँ बच सकता हैं तो बच के दिखा

उसके इतना बोलते ही वहा पर सारे बादल काले पड़ गए जैसे कोई बड़ा तूफान आने वाला है और ऐसा होते ही उस राजगुरु ने अपने दोनों हाथों को हवा में उठाया और कुछ बोलने लगा

और जैसे ही उसने आँखे खोली वैसे ही वहा जितने भी दर्शक थे वो सभी उन्ही मायावी योध्दाओं जैसे बन गए और फिर सभी अपनी अपनी जगह छोड़ कर मुझे घेर कर खड़े हो गए

अभी उस मैदान मे मैं अकेला खड़ा था मेरी जीवन ऊर्जा लगभग खतम हो गयी थी मेरी सासे फूलने लगी थी मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई मेरी सारी ऊर्जा सोखे जा रहा है भले ही मुझे दर्द महसूस नही हो रहा था लेकिन जहाँ जहाँ मुझे जखम लगे थे वहा से मेरा रक्त लगातार बह रहा था

जिससे मेरे शरीर में कमजोरी भी आने लगी थी और वही मुझे घेर कर लाखों करोड़ो मायावी योध्दा जिनका मकसद केवल मेरी जान लेना था तो वही उपर बालकनी मै खड़ा राजगुरु जिसने अपने जादू से आसमान में पूरे बादलों का रंग काला कर दिया था

जिससे वहा घंघोर अंधेरा छा गया था और अभी मे कुछ कर पाता की तभी मेरे दिमाग में एक मंत्र चलने लगा जिसे देख कर मेरे होठों पर मुस्कान छा गयी और मैने तुरंत अपनी दोनों तलवारों को पहले की तरह X की तरह रखा और जैसे ही मैने वो मंत्र पढ़ा

वैसे ही आसमान से भयानक बिजली आकर मेरी तलवरों पर गिरी और कोई कुछ समझ पाता उससे पहले ही मैने वो भयानक बिजली उन सभी मायावी योध्दाओं कि तरफ मौड दिया जिससे कुछ ही देर में वहा केवल मायावी योध्दाओं की लाशे पड़ी हुई थी

इतने भयानक हमला करने से वो पुरा मैदान टूट गया था वहा हर तरफ केवल धूल मिट्टी की परत छा गयी थी जिससे अब वहा किसी को कुछ दिखाई नही दे रहा था तो वही अब मुझसे भी खड़ा नही हो पा रहा था मे इतना कमजोर महसूस करने लगा था कि मे वहा जमीन पर गिर गया

तो वही कैदखाने मे ये सब देख रहे त्रिलोकेश्वर और मित्र ने भी हैरान हो गए थे और दोनों ने भी अपनी ध्यान अवस्था से बाहर आ गए तो वही उनके ध्यान में से बाहर आते ही दमयंती त्रिलोकेश्वर से बार बार सवाल पूछ रही थी लेकिन त्रिलोकेश्वर उसे कुछ बता नही रहा था


बस वो अपनी आँखे बंद करके कुछ बोल रहा था और जैसे ही उसने अपनी आँखे खोली तो उसका रूप बदल गया था जिसे देखकर एक बार के लिए दमयंती भी सहम गयी क्योंकि वो रूप त्रिलोकेश्वर का ब्राम्हराक्षस वाला रूप था जिसे देख दमयंती को ये तो समझ गया था कि जरूर कुछ गड़बड़ है

और अभी वो त्रिलोकेश्वर से कुछ पूछ पाती उससे पहले ही त्रिलोकेश्वर कैदखाने की दीवारों पर छत पर घुसे मारकर तोड़ने का प्रयास करने लगा जिसे देख कर दमयंती का दिल बैठने लगा

क्योंकि इतने सालों तक कैद में रहकर इतनी पीड़ा सहकर भी कभी भी उसने आह भी नही की थी वो आज इतना बैचेन होकर दीवारे तोड़ने का प्रयास कर रहा है

और अभी तक वो ये सब सोच सकती की उसे मित्र के कमरे से भी वही आवाजे आने लगी जैसे दीवार पर हथौड़ा मार रहा हो और ये सब देख कर उसे इतना यकीन हो गया था कि उसके पुत्र के साथ जरूर कुछ बहुत बुरा हुआ है

तो वही शैतानी दुनिया मे इस वक़्त मै बेसुध होकर जमीन पर गिरा हुआ था तो वही वहा की धूल मिट्टी से वहा का कुछ भी दिखाई नही दे रहा था और अभी मे अपनी साँसे दुरस्त कर ही रहा था


की तभी वहा तेज हवाएं चलने लगी थी जिससे वहा की सारी धूल मिट्टी की परत हट गई और सामने के नजारा देखकर मेरा शरीर कांप गया मेरे सामने मायावी योध्दाओं की पूरी फौज थी ऐसा लग रहा था कि जितने मैने मारे थे वो सब फिर से जिंदा हो गए

अगर वहा की जमीन पर उन योध्दाओं की लाशे नही होती तो मे खुद भी नही मानता की मैने किसी को मारा है तो वही मुझे सोच मे देखकर वो राजगुरु हसने लगा जो इस वक़्त हवा में उड़ रहा था

राजगुरु:- क्या हुआ मनुष्य अपनी मौत दिख रही है क्या मै जानता हूँ कि तुम क्या सोच रहे हो ये सब कैसे ये सभी मेरे बनाये हुए मायावी योध्दा है और जब तक मे मर नही जाता तब तक ये ऐसे ही आते रहेंगे

इतना बोलकर वो जोरों से हसने लगा और वही मे बस जमीन पर पड़ा हुआ अपने अपनों के बारे में सोच रहा था प्रिया के बारे में शांति के बारे मेरे मित्रों के बारे में मेरे परिवार समान गुरुओं के बारे में मेरे पिता समान महागुरु के बारे में

मै अभी इस सब के बारे में सोच ही रहा था की तभी वहा पर एक अजीब सी रोशनी फैल गई जिसे देख कर उस राजगुरु की हँसी बंद हो गयी और अभी वो कुछ बोलता उससे पहले ही वहा एक आवाज सबको सुनाई दी जिसने इस युद्ध की तस्वीर ही बदल दी

आवाज़:- तुम्हे मारे बिना ये योध्दा नही मरेंगे लेकिन अगर तुम्हे ही मार दिया तो

मैने जब ये आवाज सुनी तो मुझे ये बहुत पहचानी हुई आवाज लगी और जब मैने उस आवाज की दिशा में देखा तो मे दंग रह गया क्योंकि मेरा अंदाजा बिल्कुल सही था वो आवाज महागुरु की थी और उनके साथ सारे अस्त्र धारक प्रिया और वो पांचो बहने भी थे

तो वही जब सबने मेरा हाल देखा तो सब दंग रह गए तो वही महागुरु के आँखों में इतना क्रोध भर गया कि राजगुरु की तो सिर्फ उनकी आँखे देखकर ही फट गयी वो जानता था कि अस्त्र क्या है और उनकी ताकत क्या है

और महागुरु ने बिना कुछ सोचे बिना एक भी पल गवाए अपनी आँखे बंद ki और अपने काल अस्त्र का आव्हान किया और इस बार उनके हाथों में काल अस्त्र एक भाले के रूप में आ गया

जिसे उन्होंने तुरंत ही राजगुरु और उसके सभी मायावी योध्दाओं पर छोड़ दिया और फिर क्या कोई कुछ समझे या करे उससे पहले ही राजगुरु और उसके योध्दा मारे गए

तो वही जब शांति और प्रिया ने मेरा हाल देखा तो उनकी आँखों से अश्रु बहने लगे और वो तुरंत दौड़ते हुए मेरे पास आ गए तो वही जब मैने उन सबको एक साथ देखा तो दिल को थोड़ा सुकून मिला और जब प्रिया और शांति ने मुझे अपने बाहों में भरा तो दिल में जितने भी बुरे खयाल थे वो सभी मिटने लगे

और उसी सुकून मे मेरी आँखे भारी होने लगी और मेरे आँखों के सामने ऐसा घंघोर अंधेरा छाने लगा जिसमे मुझे ना कुछ सुनाई दे रहा था और नाही कुछ समझ रहा था


बस मे इतना जानता था कि अब मेरा अंत आ गया है जिसे कोई रोक नही सकता और मैने भी खुदको उस अंत के बाहों मे सोप दिया था और अब मेरी आँखे बंद हो गयी और मेरा शरीर निर्जीव होकर मेरे परिवार और प्रेमिकाओं के बाहों में रह गया

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Nice update bro
 

Rusev

Banned
19,290
6,388
199
अध्याय इकतीस

बस मे इतना जानता था कि अब मेरा अंत आ गया है जिसे कोई रोक नही सकता और मैने भी खुदको उस अंत के बाहों मे सोप दिया था और अब मेरी आँखे बंद हो गयी और मेरा शरीर निर्जीव होकर मेरे परिवार और प्रेमिकाओं के बाहों में रह गया

जैसे ही महागुरु ने अपने अस्त्र को छोड़ा था तो उसका प्रभाव इतना शक्तिशाली था कि उसने सिर्फ राजगुरु ही नही बल्कि वो पुरा ग्रह वो पूरी शैतानी दुनिया उससे कांप गयी जिससे वहा की सारी बड़ी इमारते महल घर पर्वत एक एक करके डहने लगे

जिसे देख कर सारे अस्त्र धारकों ने तुरंत भद्रा उठाया और जिस द्वार से वो आये थे उसी द्वार से वापस जाने लगे तो वही महागुरु एक ही जगह स्थिर खड़े होकर अपनी आँखे बंद कर के कुछ बोले जा रहे थे और जैसे ही उन्होंने अपना हाथ उपर किया तो एक सुनहरी ऊर्जा उनके तरफ खीची चली आयी

जो की कुछ और नही बल्कि उनका काल अस्त्र था और उसके पीछे पीछे कुछ लोग भी आ रहे थे जो की इस वक़्त बहुत जख्मी थे और बहुत कमजोर भी थे और जैसे ही महागुरु ने उन्हे देखा वैसे ही महागुरु ने तुरंत जो द्वार उन्होंने खोला था उसे और भी बड़ा कर दिया जिससे सभी लोग एक ही बार मे उस द्वार से निकल सके

तो वही जब मित्र ने सप्त ऋषियों को देखा तो वो पूरी तरह दंग रह गया उसे आज तक ये पता नही था कि भद्रा किनके साथ रहता है और ना ही ये बात दमयंती जानती थी ये बात त्रिलोकेश्वर ने केवल खुद तक ही रखी थी

और आज जब उन दोनों को इस बात का पता चला तो दोनों पहले दंग रह गए लेकिन फिर इस बात से वो खुश हो गए की भद्रा को सप्त गुरुओं के मदद से ज्ञान और शक्ति की कभी कमी नहीं होगी

और अगर भविष्य के युद्ध मे सप्त ऋषि उनका साथ दे तो भद्रा को हराना मुश्किल से ना मुमकिन हो जायेगा और इस बात को जानकर जा वो तीनों खुशिया मना रहे थे


तो वही अचानक से उनके उन खुशियों पर रोक लग गयी और ये रोक किसी और ने नही बल्कि खुद मित्र ने लगाई थी हुआ यू की जब मैने खुदको अंत के हवाले किया तो तभी से मित्र को मेरी जीवन ऊर्जा महसूस नही हो रही थी

मित्र :- त्रिलोकेश्वर मुझे भद्रा की जीवन ऊर्जा महसूस नही हो रही हैं

दमयंती :- जीवन ऊर्जा महसूस नही हो रही मतलब क्या है आपका

मित्र :- जब से भद्रा ने मेरी शक्तियों को अपने अंदर समाया था तभी से मुझे अपनी शक्तियों मे भद्रा के ऊर्जा का कुछ अंश महसूस हो रहा था जिससे मे उसके दिमाग मे जा कर उसकी मदद कर रहा था लेकिन अब मे महसूस नही कर पा रहा हूँ और ऐसा तभी हो सकता हैं जब

इतना बोलके वो शांत हो गया तो वही ये सब सुनकर जहाँ दमयंती की दुनिया ही उजड़ चुकी थी शायद जो दर्द जो पीड़ा इतने सालों में असुर उन्हे ना दे सके वो मित्र की इस एक खबर ने दी थी और वही दुःख तो त्रिलोकेश्वर को भी हुआ था

लेकिन उसे पता था कि जिस जगह अभी वो है जिस परिस्थिति मे है वहा अगर कमजोर पड़ गए तो उनकी ही हानि है और जहाँ एक तरफ त्रिलोकेश्वर बड़ी मुश्किल से खुदको संभाल रहा था

तो वही दमयंती इस सब के लिए खुदको जिम्मेदार ठहरा रही थी वही दमयंती की बाते सुनकर त्रिलोकेश्वर को भी लगने लगा था कि ये सब उसी की वजह से हुआ है

तो वही ये खयाल मित्र के मन में भी आ रहा था

जहाँ दमयंती को लग रहा था कि उसकी बदले की चाह ने उसके पुत्र को हमेशा के लिए उससे छिन लिया है उसे लग रहा था कि अगर वो अपना बदला लेने के लिए उसने अपने पुत्र को हमेशा दुर्लक्ष किया है

तो वही त्रिलोकेश्वर को लग रहा था कि अगर उसने भद्रा को सप्त ऋषियों के पास ना भेज कर किसी आम जगह भेजा होता तो आज वो इस सब से कोसो दूर होता और सुरक्षित होता

तो वही मित्र सोच रहा था कि अगर वो त्रिलोकेश्वर की बात सुनकर भद्रा को अकेले युद्ध लड़ने देता तो उसकी ऊर्जा एक साथ इतनी कम नहीं होती और सप्त ऋषि आने तक भद्रा उन्हे आराम से रोक लेता

वो तीनो ही खुद को इस सब का दोषी मानकर स्वयं को बार बार कोसे जा रहे थे और अंदर अंदर ही अपने गम से घूँट रहे थे

तो वही महागुरु सब को लेकर सीधा ही कालविजय आश्रम ले कर आ गए क्योंकि वही एक जगह थी जहा कोई भी शैतानी शक्ति बिना महागुरु के आज्ञा के कदम तक नही रख सकता और जब सभी वहा पहुंचे तो गुरुओं ने तुरंत ही मुझे एक चारपाई पर लिटा दिया और फिर बिना समय गंवाये ही शांति तुरंत मेरा निरीक्षण करने लगी

जैसे जैसे वो मेरे शरीर पर लगे जखम देख रही थी वैसे वैसे ही उसके दिल में दर्द उठ रहा था तो वही जब सोना और उसकी बहनों की नज़र जब उन लोगों पर गयी जिन्हे महागुरु लेके आये थे शैतान लोक से तो उनके आँखों मे आँसू आ गए और वो रोते हुए जा कर उनके गले लग गए वो लोग कोई और नही बल्कि सोना के ही परिवार वाले थे


जिनकी आजादी सोना ने महागुरु से मांगी थी तो वही उन सबके मिलन का ये मनमोहक दृश्य देख कर वहा के चिंतापूर्न वातावरण में भी सबके चेहरों पर मंद मुस्कान आ गयी और अभी सिर्फ उनके चेहरे पे मुस्कान आई ही थी कि तभी शांति की जोर से चीखने की आवाज आयी और जब सब ने उसके तरफ देखा तो पाया कि वो लगातार भद्रा को देखे जा रही थी और उसके आँखों से अब आँसुओं की सुनामी आ गयी थी

जिसे देखकर गुरु सिंह तुरंत भद्रा के शरीर के पास आये और जब उन्होंने उसकी नब्ज और सासे चेक करी तो उनकी आँखों में भी पानी आ गया लेकिन उन्होंने उस पानी को अपनी आँखों में ही रोक दिया और सबको इशारों में बता दिया की भद्रा अब हमारे बीच नही रहा

और जब ये बात सबको पता चली तो जैसे सबके उपर दुखों के पहाड़ ही टूट गिरे थे वहा दुःख और गम की सुनामी आ गयी थी जहाँ एक तरफ शांति और प्रिया दोनों भी एक दूसरे के गले लगकर रोते ही जा रहे थे


तो वही सबकुछ भुलाकर भद्रा के पार्थिव शरीर को गले लगाकर रोने का मन तो वहा मौजूद हर एक अस्त्र धारक का कर रहा था लेकिन हर कोई अपने पद के वजह से अपना दुःख किसी के सामने बयान भी नही कर सकते थे लेकिन उनकी आँखे कह रही थी कि वो सब अपने मन में कितना रोये जा रहे है

तो वही वो पाचों बहने और उनके परिवार जन भी इस गम के समय में गुरुओं को सांत्वना देने के लिए आगे बढे थे

की तभी वहा प्रिया का शरीर धीरे धीरे चमकने लगा जिसे देखकर सभी हैरान हो गए और प्रिया को घूरने लगे तो वही सोना और उसका परिवार ये देखकर हैरान तो दिख रहे थे लेकिन उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था कि उन्हे पता था कि क्या हो रहा है

तो वही धीरे धीरे प्रिया के शरीर के रोशनी ने एक हार का रूप ले लिया और वो हार जाकर भद्रा के शरीर के उपर उड़ने लगा और जैसे वो हार भद्रा के सीने के ठीक उपर आया तो उस मेसे एक तेज और प्रबल ऊर्जा किरण सीधा उसके दिल के उपर गिरने लगी

वो किरण इतनी प्रबल थी कि उसके सीने के आस पास का भाग जलने लगा था और ये देखकर गुरु नंदी उस हार को भद्रा के उपर से हटाने हेतु आगे बढ़ने वाले थे लेकिन महागुरू ने उन्हे रोक दिया और जब उस हार की ऊर्जा भद्रा के शरीर को ज्यादा हानि पहुचाने लगी थी कि तभी उसके हाथ मे पहनी हुई अंगूठी चमकने लगी (जो उसे शांति ने ही दी थी अध्याय ग्यारहवें मे)

और वो अंगूठी चमकते हुए इतनी गरम हो गयी थी कि उस अंगूठी मे जो सोने का भाग था वो अब पिघल ने लगा था और उसमे लगा हुआ वो मोती अपनी जगह से निकल कर उड़ते हुए सीधा उसी जगह आ गई थी और वो उड़ते हुए उस हार से निकलती ऊर्जा के मध्य चली गयी और फिर उस मोती ने उस हार से निकलती सारी ऊर्जा अपने अंदर समा ली

और धीरे धीरे वो मोती भद्रा के शरीर मे समा गयी और जैसे ही वो मोती भद्रा के शरीर में समाई वैसे ही उसके सारे घाव अपने आप भरने लगे जैसे कोई चोट कभी लगी ही ना हो

तो वही प्रिया और उन पांचो लड़कियों को तो कुछ समझ नहीं आ रहा था लेकिन सारे अस्त्र धारक समझ गए थे की ये हो क्या रहा है वही पूरे काल विजय आश्रम के उपर काले बादल छा गये थे तो वही जहाँ कुछ समय पहले भद्रा दिल धड़कना बंद कर चुका था वही अब वो पुन्ह धड़कने लगा और उसके शरीर में हलचल होने लगी


जिसे देखकर शांति तुरंत उसे चेक करने के लिए आगे बढ़ी लेकिन उसका शरीर इतना गरम हो गया था कि शांति के हाथ लगाते ही उसके हाथ जलने लगे भद्रा के शरीर में आये इस बदलाव से सब दंग रह गये थे किसी को समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे की तभी भद्रा के करहाने की आवाज सबको सुनाई देने लगी

जिसे सुनकर प्रिया तुरंत जाकर उसके सर सहलाने लगी जिसे देखकर सभी हैरान रह गए क्योंकि भद्रा के शरीर से निकलती उष्णता का प्रभाव प्रिया पर नही हो रहा था और ना ही उसके हाथ जल रहे थे तो वही प्रिया जैसे जैसे उसका सर सहला रही थी वैसे वैसे भद्रा का शरीर भी अब शीतल हो गया था

और फिर धीरे धीरे भद्रा का करहाना भी बंद हो गया और वो वैसे ही अर्ध बेहोशी की हालत में सो गया जिसे देखकर सभी खुश हो गये सबके उपर से दुखों का पहाड़ जो उतर गया था

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Nice update bro
 

Rusev

Banned
19,290
6,388
199
अध्याय बत्तीस

अभी सब लोग कालविजय आश्रम में ही मौजूद थे इस वक्त सभी महागुरु के सभा में मौजूद थे जहाँ पर भद्रा के सिवा सब मौजूद थे सभी अभी हुए कांड के बारे में बात कर रहे थे चलो हम भी देखते का बा कर रहे है

महागुरु:- तो अब sabse पहले तुम बताओ प्रिया तुम asal मे kon हो वो शक्ति क्या थी तुम्हारे पास कैसे आई

प्रिया:- मै नही जानती अंकल की वो हार मेरे पास कैसे आया उसे तो मैने वही पर फेक दिया था

महागुरु :- कहा फेका था और अगर तुमने फेक दिया था तो आज वो तुम्हारे अंदर से कैसे प्रकट हुआ

प्रिया:- जब मे और भद्रा असुरों के बारे में पता लगाने उस गोदाम मे गए थे तब मे वही पर अपने फोन पर टाइम पास कर रही थी की तभी मुझे लगा की कोई मुझे पुकार रहा है और जब मे उस तरफ गयी तो वहा पर कुछ भी नही था शिवाये इस हार के मे इस हार को जब छुआ तो मुझे कुछ अजीब नही लगा और हार भी नकली ही लग रहा था इसीलिए मैने उसे वही पर फेक दिया था

महागुरु :- अगर ऐसा है तो आज वो तुम्हारे पास कैसे आया

अभी कोई कुछ और बोलता की तभी वहा मौजूद सोना के पिताजी बोलने लगे जिनका नाम निष हैं

निष :- इसका जवाब में देता हूँ महागुरु वो हार हमारे आकाश गंगा से है वो हमारे सम्राज्य के पहली महिला शासक का था ऐसा कहा जाता है की उन्होंने अपने समय काल मे बहुत से युद्ध लढ़े और जीते भी थे लेकिन जब उन्हे उनका जीवन साथी मिला तो उनके मन की क्रूरता कम होने लगी लेकिन उनकी शक्तियां उनका अहंकार उन्हे हर बार प्रेम के रास्ते से भटका कर क्रूरता के रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर रही थी और जब उन्हे इसका अहसास हुआ तब तक देर हो चुकी थी उनके अहंकार और क्रूरता देख कर जिससे वो प्रेम करती थी वही उन्हे छोड़ कर चले गए और तब उन्होंने अपने प्रेम को फिर से पाने के लिए अपनी सभी शक्तियों को इस हर मे कैद कर दिया और तभी उनके शत्रुओं ने उन्हे कमजोर पाकर उनकी जान लेने का प्रयास किया लेकिन तभी उनके प्रेमी ने उन्हे बचाने के लिए अपने प्राण त्याग दिये और उसी पल अपने प्रेमी को खोने के गम में खुदको पंचतत्वों मे विलीन कर दिया लेकिन उस पल के बाद से ही उनकी शक्तियां इस हार मे कैद हो कर कही गुम हो गयी थी जो की abse कुछ समय पहले ही हमारे ग्रह पर एक गुफा के अंदर प्रकट हुआ था और तभी से वो शैतान राजगुरु इसे पाने के लिए हम पर आक्रमण कर रहा था और जब हम हारने वाले थे तब मैने उसके सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारे राजकुमारियों को सोंपी थी और शायद उन शक्तियों ने प्रिया को चुना हो अपने धारक के रूप में

प्रिया :- लेकिन मे ही क्यों

निष :- मे नही जानता लेकिन मे इतना जरूर जानता हूँ कि महारानी जो भी फैसला करती थी वो कभी भी गलत नही होता था और अगर उनकी शक्तियों ने तुम्हे चुना है तो जरूर ये किसी भी प्रकार से गलत फैसला नही होगा

महागुरु :- ठीक है हार कि गुत्थी तो सुलझ गयी लेकिन शांति तुम हमे बताना चाहोगी की जो मोती अभी भद्रा के शरीर में समाई है वो उसके पास कैसे पहुंची और तुमने उसकी महान शक्ति को बिना ध्यान लगाए कैसे इस्तेमाल किया

महागुरु की बात सुनकर शांति हड़बड़ा गयी थी वो क्या बोलती उसे खुद पता नही था कि हो क्या रहा है

शांति :- मैने भद्रा को वो मोती इसीलिए दिया था क्योंकि मे पहले से चाहती थी कि मेरे बाद वो मोती उसका हो और इसीलिए मैने उसे वो दिया और इससे पहले की मे उसे कुछ बताती या भद्रा को उसे जागृत करने की प्रक्रिया बताती उससे पहले ही ये सब हो गया और रही बात इस्तेमाल करने की तो मे भी नही जानती की वो मोती ऐसे कैसे अपने आप ही वो सब कर रही थी

शांती की बात सुन कर सभी इस गुत्थी मे और उलझ गये थे तो वही सारे अस्त्र धारक हैरान हो गये थे यहाँ तक की जब शांति को भी अपने कही हुई बात का अर्थ समझ आया तो वो भी हैरान हो गयी और सभी अस्त्र धारकों के चेहरे पर हैरानी के साथ ही खुशी के भी भाव दिख रहे थे

गुरु सिंह:- (हैरानी और खुशी के मिलेजुले भाव के साथ) इसका अर्थ इस युग मे भद्रा पहला धारक है

प्रिया :- कहना क्या चाहते हो आप

महागुरु :- जिस मोती ने उस हार की ऊर्जा को अपने अंदर समाया वो मोती कुछ और नही बल्कि पृथ्वी अस्त्र है

जैसे ही महागुरु ने ये कहा वहा प्रिया और गुरुओं को छोड़ सब दंग रह गए जहाँ गुरुओं को तो पहले से इस बारे में पता चल गया था और प्रिया बस भद्रा कि सलामती चाहिए थी उसे तो इस बात की चिंता थी कि उसके शक्तियों के बारे मे जान कर भद्रा की क्या प्रतिक्रिया होगी


तो वही महागुरु के दिमाग में कुछ और ही पक रहा था तो वही दूसरी तरफ जब मुझे होश आया तो मे खुद को एक कुटिया मे देख कर दंग रह गया और जब मैने ध्यान से देखा

तो ये मेरी ही कुटिया थी जहाँ मेरा बचपन गुजरा था यानी कालविजय आश्रम मे ये सब सोच रहा था कि तभी मेरे आँखों के सामने शैतानी दुनिया मे जो कुछ हुआ था वो सब आने लगा और ऐसा होते ही मे तुरंत अपने शरीर का निरीक्षण करने लगा और तभी मेरे दिमाग मे एक आवाज आने लगी

आवाज :- तुम अब ठीक हो तुम्हे तुम्हारे प्रेम की शक्ति ने बचा लिया है

मे :- कौन हो तुम मेरे सामने आओ

आवाज :- मुझे भूल गए मे वही हुँ जिससे तुम अब तक भागते आ रहे हो

मे :- मै किसी से भी नही भाग रहा हूँ

आवाज :- तुम भाग रहे हो अपने अंतरमन के आवाज से उस आवाज से जो तुम्हे हर वक़्त सुनाई देती हैं तुम्हे मदद के लिए बुलाते हैं लेकिन तुम उस आवाज अनसुना कर रहे हो

मै :- एक मिनट तुम्हे कैसे पता उस बारे में और क्या वो आवाज सच है मुझे तो लगा था वो सिर्फ मेरा भ्रम है

आवाज :- मुझे पता है क्योंकि मे तुम्हारा अंतरमन ही हूँ तुम्हारा असली चेहरा पूरी ताकत तुम्हारे अपने तुम्हारे शत्रु सबके बारे में मैं जानता हूँ और रही बात उन आवाजों की तो वो भ्रम नही एक माँ की पुकार है एक पिता के सालों की तपस्या है

मै:- मै कुछ समझा नही क्या कह रहे हो तुम

आवाज:- तुम्हारी इंसानी बुद्धि मे ये बात आसानी से समझ नही आयेगी तुम्हे सबसे पहले अपनी शक्तियों को पूरी तरीके से जागृत करना होगा उसके लिए तुम्हे अपने अंदर के शक्ति को अपना गुलाम बनाना होगा ताकि इस कार्य मे वो शक्ति विघ्न न डाल सके

मैं:- मेरे पास कोनसी शक्ति है और वो इस कार्य में विघ्न कैसे डालेगी

आवाज :- समझ जाओगे तुम

इतना बोलकर वो आवाज शांत हो गयी और उसके शांत हो ते ही मेरे सर मे जोरों से दर्द होने लगा ऐसा लगा की किसी ने सर पर हथौड़ा मारा हो मे इस दर्द को काबू करने के लिए ध्यान में बैठा तो दर्द तो कम हो गया

लेकिन जैसे जैसे मे ध्यान में मग्न होते जा रहा था वैसे वैसे मुझे मेरे मन में एक अजीब सा अनुभव होने लगा था जैसे मे किसी बड़ी ऊर्जा के पास हूँ जो मुझपर लगातार जोर डाले जा रही थी जिससे मुझे सांस लेने मे दिक्कत हो रही थी कि तभी मैने अपना ध्यान तोड़ दिया जिससे अब मुझे थोड़ा अच्छा लग रहा था

मै अभी शांति से बैठा था कि तभी मुझे बाहर से कुछ आवाजे सुनाई देने लगी जिसे देखने के लिए मे भी बाहर आ गया

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Wow
 

Rusev

Banned
19,290
6,388
199
अध्याय तेहतिस्

जैसे ही मे आवाजे सुनकर बाहर आया तो बाहर का हाल देखकर मे हैरान हो गया क्योंकि बाहर पुरा आश्रम इकट्ठा हुआ था और साथ मे वहा पर गुरु अग्नि (जो चाइना मे रहते है) के सिवा सारे अस्त्र धारक भी मौजूद थे

और जब सबने मुझे देखा तो मानो पुरा आश्रम खुशी से झूम उठा हो हर तरफ ढोल नगाड़ों की आवाज सुनाई दे रही थी वही ये सब देखकर मे दंग रह गया था मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि हो क्या रहा है कि तभी मुझे मेरे कानों मे महागुरु की आवाज सुनाई देने लगी जिसे सुनकर मे और भी ज्यादा हैरान हो गया

महागुरु :- तो स्वागत करिये पृथ्वी अस्त्र के नये धारक का भद्रा

में ये सुनकर जितना हैरान था उतना ही सभी आश्रम वासियों और गुरुओं मे जोश भरा हुआ था और फिर मे जैसे आगे बढ़ने लगा सभी गुरुओं ने अपनी शक्तियों से मुझ पर पुष्प वर्षा शुरू कर दी

फिर कुछ देर बाद हम सभी मेरे कमरे मे थे जहाँ सबने मेरे बेहोश होने के बाद क्या हुआ वो सब बताया जिसे सुनकर मे हैरान हो गया था की अस्त्र ने मुझे चुना है अपने धारक के रूप में

तो वही प्रिया के शक्तियों के बारे में सुनकर मे उसकी सुरक्षा को लेकर परेशान हो गया था ऐसे ही कुछ देर बात चीत करने के बाद रात हो गयी जिस वजह से सभी अपने अपने कमरों में चले गए

और मे अपनी कुटिया से निकल कर बाहर खुली हवा मे आकर चाँद को निहारते हुए मेरे जीवन में आये इस अचानक बदलाव के बारे में सोच रहा था की तभी मुझे किसी के आने की हलचल सुनाई देने लगी और जब मैने उस दिशा मे देखा तो वहा प्रिया थी जो मेरे तरफ ही आ रही थी

मै :- क्या हुआ प्रिया नींद नही आ रही हैं अरे हाँ तुम्हे AC की आदत होगी न तुम आज की रात निकालो मे कल तुम्हे तुम्हारे घर छोड़ आऊंगा

प्रिया :- मुझसे अपने गम अपनी परेशानी को छुपा रहे हो भद्रा क्या अभी तक तुम मुझ पर भरोसा नही कर पाए

मै :- ऐसी कोई बात नही है मे बस सोच रहा था कि इंसान का जीवन कितना छोटा है आज मे मर ही जाता अगर महागुरु समय रहते न आते

प्रिया :- अच्छा लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता तुम आज बेहोश हुए क्योंकि तुम्हे पता लग गया था कि कुछ भी हो कोई वहा है जो तुम्हे बचाएगा अगर हम वहा न आते तो तुम जरूर उन्हे मार देते वहा पर जो तबाही मची थी वो देखी थी मैने

मै :- लेकिन फिर भी

प्रिया :- बीच में रोकते हुए) वो सब छोड़ो मुझे ये बताओ तुम जो आज हुआ उसके बाद क्या तुम मुझसे पहले जैसे प्यार नही करोगे

मै :- और ये तुमसे किसने कहा

प्रिया :- किसीने नही मैने देखा है

मै :- समझ गया तुम सबसे पहले सास बहू सीरियल्स देखना बंद करो और चाहे कुछ भी हो जाए जब तक मृत्यु न हमे अलग करे तब तक मे तुम्हारे साथ हूँ

प्रिया :- इसके अलावा मुझे कुछ और नही चाहिए

मै :- अब जाओ और जाकर सो जाओ तुमने आज जरूरत से ज्यादा सहन किया है

प्रिया:- तुम भी सो जाओ महागुरु कह रहे थे की कल से शांति हम दोनों को अपने शक्तियों को काबू करना सिखायेंगे

मै :- ठीक है जाओ तुम

मेरे बोलने के बाद में प्रिया वहा से चली गई और उसके जाने के बाद मुझे एक बार फिर से मेरे दिमाग मे आवाज सुनाई देने लगी

आवाज:- तो तुमने क्या सोचा है भद्रा मेरे कही बातों के बारे में हमारे पास समय कम है

मै:- समय कम है लेकिन किसलिए तुम मुझे पूरी बात क्यों नही बताते

आवाज :- जैसे तुम्हें पहले ही मे बता चुका हूँ तुम्हारा इंसानी दिमाग ये सारी बाते समझ नही पायेगा

मै:- ठीक है तो अपना नाम ही बता दो

आवाज:- तुम मुझे कुमार बुला सकते हो

उसके इतना बोलने के बाद मुझे उसकी आवाज आनी बंद हो गयी फिर मे भी अपने कमरे में आकर सो गया और जब सुबह नींद खुली तो शांति और प्रिया दोनों मेरे सामने थी और दोनों ने भी टाइट कपड़े पहने हुए थे

जिसमे दोनों एक दम कमाल लग रही थी जिन्हे देखकर मे अपने होश खो बैठा था और उन दोनों को बस घूरे जा रहा था तो वही मुझे ऐसे घूरते देखकर दोनों शर्मा रहे थे की तभी मेरे कदम अपने आप ही उन दोनों के तरफ बढ़ने लगे

मेरा खुद पर जैसे काबू था ही नहीं और जैसे जैसे मे आगे बढ़ रहा था वैसे ही वो दोनों भी आगे के बारे में सोचकर शर्मा रही थी जिस वजह से उनकी साँसे फूल रही थी और अब मै एकदम उन के सामने पहुँच गया

और फिर मैने दोनों को अपनी बाहों मे समा लिया और दोनों के होठों को बारी बारी चूमने और चूसने लगा जिसमे वो दोनों भी मेरा पुरा साथ दे रही थी और उनकी सम्मति मिलते ही मेरे हाथ अपने आप उनके टाइट कपड़ो में से होते हुए उनके चुतड़ों पर पहुँच गए

जिससे उन दोनों के मुह से एक साथ मादक सिस्कारी निकल पड़ी तो वही मेरे हाथों की मजबूती को अपने कोमल चुतड़ों पर महसूस करते ही शांति और प्रिया दोनों के ही शरीर को झटका लगा


जिसे महसूस करने के बाद वो दोनों भी होश मे आ गयी और दोनों ने मिलकर मुझे खुद से दूर ढकेल दिया

फिर शांति ने मुझे तुरंत ही फ्रेश होकर बाहर आने को कहा और फिर वो दोनों भी वहा से भाग गयी और फिर मे भी फ्रेश होने चला गया

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Fantastic
 

Rusev

Banned
19,290
6,388
199
अध्याय चौतिस

फिर शांति ने मुझे तुरंत ही फ्रेश होकर बाहर आने को कहा और फिर वो दोनों भी वहा से भाग गयी और फिर मे भी फ्रेश होने चला गया

जैसे ही बाथरूम मे गया वैसे ही मुझे आईने में मेरे प्रतिबिंब के अलावा किसी और का प्रतिबिंब दिखने लगा जिसका चेहरा तो मेरे जैसा ही था लेकिन जहा मैने इस वक्त सफेद कपड़े पहने हुए थे तो वही उसने काले कपड़े पहने हुए थे उसके वो काले कपड़े बिल्कुल किसी राजा के जैसे लग रहे थे

मै :- कौन हो तुम और तुम्हारा चेहरा मेरे जैसे क्यों है

वो :- इतने जल्दी भूल गए मुझे कल ही तो बात हुई थी मे कुमार और तुम्हारे अंतरमन का चेहरा अगर तुम्हारे जैसे नही होगा तो किसके जैसे होगा आज से मे तुम्हे अपनी शक्तियों पर काबू करना उन्हे अपना गुलाम बनाना सिखाऊंगा

मै :- और अगर मै तुम्हारा कहना न मानु तो क्या कर लोगे तुम मेरा

मैने अभी इतना बोला ही था की तभी अचानक से मेरे दिल में बहुत दर्द होने लगा ऐसे लग रहा था कि जैसे मेरा दिल अभी फट जायेगा

कुमार :- अगर तुमने मेरा कहा न माना तो मे उसी वक़्त तुम्हारा दिल नष्ट कर दूंगा

उसके बाद कुमार की आवाज और उसका प्रतिबिंब दोनों गायब हो गए और फिर मे भी वहा से फ्रेश हो कर बाहर आ गया जहा प्रिया ध्यान अवस्था मे बैठी थी जो की शायद शांति ने ही कहा होगा और जब मे वहा पहुँचा तो शांति ने मुझे भी ध्यान मे बैठने को कहा

शांति :- भद्रा तुम्हारे अंदर जो अस्त्र है उसमे बहुत सी शक्तियां है जिसके बारे में मुझे भी पूरी जानकारी नही है इसीलिए जैसे मे कहु वैसे ही करो और खुद पर ज्यादा दबाव मत डालना

मै :- ठीक है शांति और (नीचे देखते हुए) वो अभी जो कुछ भी हुआ उसके लिए माफी चाहूंगा

शांति (मुस्कुराते हुए) :- उसमे माफी मांगने की कोई बात नहीं है बल्कि मुझे अच्छा लगता हैं जब तुम मुझे वैसे छूते हो तो मे और प्रिया तुम्हारे ही है इसीलिए तुम्हारा हम पर पुरा अधिकार है इसीलिए अब उस सबके बारे में मत सोचो और अस्त्र को धारण करने पर ध्यान लगाओ

शांति की बात सुनकर मे अपनी आँखे बंद कर के ध्यान लगाने लगा अभी मे ध्यान लगा रहा था की तभी शांति की आवाज सुनाई देने लगी

शांति :- भद्रा तुम्हे अपने ध्यान अवस्था में जाने के बाद अपना सारा ध्यान तुम्हारे जीव ऊर्जा पर लगाना है और जब तुम उसमे सफल होगे तो तुम्हे वहा पर एक पीले रंग की मनी दिखाई देगी जिसकी ऊर्जा अनंत होगी जिसका कोई अंत नही होगा वही पृथ्वी अस्त्र है तुम्हे उस मनी के पास जाना है और उसे छुना है जिसके बाद वो मनी तुम्हे अपनी ऊर्जा मे बांध कर अपने अंदर समा लेगी और याद रखना की उस वक्त तुम्हे पीड़ा भी होगी लेकिन तुम्हे उस पर ध्यान नही देना है जब तक तुम सहन कर सकते हो तब तक तुम्हे ये करना होगा

शांति की बात सुनने के बाद में मैने ठीक वैसे ही किया अपना पुरा ध्यान अपनी जीव ऊर्जा पर लगाने लगा जिसके बाद मुझे ऐसे लग रहा था कि जैसे मे किसी के पास खीचता जा रहा हूँ

और जैसे ही मैने अपनी आँखे खोली तो वहा पर जैसे शांति ने कहा था ठीक वैसे ही एक पीले रंग की मनी दिख रही थी मे जैसे जैसे उसके पास जा रहा था वैसे वैसे मेरे शरीर पर दबाव बढ़ते जा रहा था एक एक कदम की दूरी 1 किलो मीटर के दूरी समान थी

और जैसे ही मैने उस मनी को छुआ वैसे ही उस मनी से तेज किरण निकलके मेरे शरीर के चारों तरफ फैलने लगी और धीरे धीरे मेरे शरीर को चारों तरफ से एक गोले के आकार मे घेरने लगी जैसा कि शांति ने मुझे बताया था

लेकिन अभी ये सब कुछ हो ही रहा था कि तभी मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे मुह पर जोरदार मुक्का मारा हो और जब मैने मेरे सामने देखा तो वहा पर कुमार खड़ा था और उस पृथ्वी अस्त्र ने भी घेरा बनाना रोक दिया था

मे :- ये क्या है अब मारा क्यों

कुमार :- तुम जो कर रहे थे उसे रोकने के लिए ये जरूरी था

मै :- तुम्हीने तो कहा था शक्तियों को काबू करने के लिए वही तो कर रहा था मे

कुमार :- तुम जिस विद्या का इस्तेमाल कर रहे हो woh भले ही आसान है लेकिन जैसे जैसे वक़्त बितते जायेगा तो यही शक्ति तुम्हे अपना गुलाम बना लेगी जिसके बाद तुम्हारा क्रोध अहंकार सब बढ़ जायेगा और तुम्हारे अंदर की कठोरता फैसला लेने की क्षमता सब उस शक्ति पर निर्भर होगी जिसके बाद न तुम खुद से कुछ सोच पाओगे न कर पाओगे

मे :- ऐसा है तो तुम ही बताओ की क्या करू मे कि विद्या से इन शक्तियों को अपने काबू में करू

कुमार :- वो गुप्त विद्या है जो तुम्हे अकेले में करना होगा इसीलिए अभी अपनी ऊर्जा बचाके रखो आज रात को तालाब के पास मे तुम्हे उस विद्या के बारे में बताऊंगा अभी तुम किसी को भी हमारे मुलाकात के बारे में मत बताना

इतना बोलकर कुमार गायब हो गया और वो मनी फिर से मुझे अपने ऊर्जा के घेरे मे घेरने लगा की तभी मेने अपने ऊर्जा मनी की ऊर्जा रोकने के लिए केंद्रित करने लगा और जल्द ही जो ऊर्जा मुझे अपने अंदर समा लेना चाहती थी वो फिर से उसी मनी के अंदर समा गयी

और ऐसा होते ही मे ध्यान अवस्था से बाहर आ गया और जब मैने अपने सामने देखा तो वहा शांति और प्रिया दोनों ही बाते कर रही थी शायद शांति उसे शक्तियों को काबू करने के बारे में कुछ बता रही थी कि तभी वहा आश्रम का एक सदस्य आया और उसने आकर शांति को एक संदेशा दिया

सदस्य :- गुरु माँ महागुरु ने आपको तुरंत ही महागुरु ने बुलाया है

(शांति को सारे आश्रम के सदस्य गुरुमा कह कर ही बुलाते हैं)

शांति:- ठीक है चलो मैं आती हूँ

उसके बाद शांति उस सदस्य के साथ मे चली गई और फिर मे भी अपना ध्यान तोड़ कर खड़ा हो गया तो वही महागुरु के कमरे मे इस वक़्त सभी गुरु मौजूद थे वहा शांति ही ऐसी थी जिसके पास अब अस्त्र नही था

महागुरु :- मेरे साथियों मेरा तुम सबको यहाँ ऐसे अचानक बुलाने के पीछे तीन कारण है

गुरु सिँह (दिग्विजय) :- कोई चिंता की बात तो नही है न

महागुरु :- बड़किश्मती से चिंता नहीं बल्कि डरने वाली बात है

महागुरु की बात सुनकर सभी लोग जो अबतक अपने अपने स्थान ग्रहण कर चुके थे वो सब उठ खड़े हो गए और चिंता के भाव अपने चेहरे पर लिए महागुरु को घूरने लगे

तो वही दूसरी तरफ उस अंधेरी गुफा में एक मातम सा छाया हुआ था वैसे उस गुफा में मातम तो हर पल छाई रहती थी लेकिन आज तक उस मातम के बीच भी सब के पास एक उम्मीद की किरण थी की उनका राजकुमार उनकी एकमात्र आशा उन्हे आके बचाएगा

लेकिन जब से त्रिलोकेश्वर के कमरे से भद्रा के मौत की खबर बाहर फैली थी तब से उनकी उम्मीद वो आशा की किरण भी आज खतम हो गयी थी

आश्रम पर लगे कवच के कारण किसी को भी इस बात का पता नही चला था की उनकी उम्मीद की किरण अब पर सूर्य बन कर उनके शत्रुओं पर मौत की आग बरसाने की राह पर था लेकिन वो राह इतनी भी आसान नहीं थी वहा के हर कदम पर चुनौती थी जिसमे असफल होने की सज़ा केवल मृत्यु थी

तो क्या भद्रा इन चुनौतियों से निपट कर अपने आप को पहचान पायेगा क्या वो अपने माता पिता प्रजा को आज़ाद करवा पायेगा क्या होंगी वो चुनौतिया जिससे भद्रा का सामना होगा इन सब का जवाब आपको भविष्य की गर्भ में मिलेगा इसीलिए जुड़े रहे हमारे साथ

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Wonderful
 

Rusev

Banned
19,290
6,388
199
अध्याय पैंतीस

महागुरु :- मेरे साथियों मेरा तुम सबको यहाँ ऐसे अचानक बुलाने के पीछे तीन कारण है

गुरु सिँह (दिग्विजय) :- कोई चिंता की बात तो नही है न

महागुरु :- बड़किश्मती से चिंता नहीं बल्कि डरने वाली बात है

महागुरु की बात सुनकर सभी लोग जो अबतक अपने अपने स्थान ग्रहण कर चुके थे वो सब उठ खड़े हो गए और चिंता के भाव अपने चेहरे पर लिए महागुरु को घूरने लगे

और घूरे भी क्यों न जिसने पूरी शैतानी दुनिया को एक हमले में ही नष्ट कर दिया था वहआदमी अब किसी घटना से डर रहा है मतलब समझ जाओ खबर कितनी बुरी हो सकती हैं

शांति :- क्या बात है महागुरु आप आज पहली बार इतने भयभीत और चिंतित दिख रहे हो

गुरु नंदी (शैलेश) :- हा महागुरु आज पहली बार आप इतने बैचेन प्रतीत हो रहे हो कही कोई अनर्थ तो घटित हो गया है क्या

महागुरु :- हा हम सभी जब शैतानी दुनिया में थे तब कुछ असुर धरती पर आये थे और उन्होंने चाइना मे स्थित हमारे आश्रम पर हमला कर दिया और उस दौरान असुर सेनापति मायासुर अग्नि अस्त्र धारक गुरु साहिल को अपने कैद में ले लिया

महागुरु की ये बात सुनकर तो जैसे वहा खड़े सभी को सांप सूंघ गया हो सभी हैरानी के मारे shayad साँस लेना ही भूल गए थे

गुरु सिँह:- ये कैसे हो सकता हैं महागुरु किसी भी अस्त्र को कैद करना तो दूर उसके सामने खड़ा होना भी किसी असुर के लिए ना मुमकिन है और साहिल वो तो यूद्ध कला और बचाव कला दोनों मे श्रेष्ठ है तो उन्हे कैद कोई कैसे कर सकता हैं

महागुरु :- वही मुझे भी समझ नही आ रहा है ये होना असंभव है

गुरु जल(दिलावर) :- ये संभव है जब से मुझे जल अस्त्र की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी तब से मे अस्त्र और उनकी ताकते कमजोरी के बारे में जितना हो सके उतना जानने की कोशिश कर रहा था और तब मुझे पता चला श्रापित कवच के बारे में एक ऐसा कवच जिसमे कोई भी किसी भी तरह की पावन और सात्विक ऊर्जा इस्तेमाल नही कर सकता इस कवच के अंदर प्राचीन राक्षस और असुरों को पहरेदारों के रूप में रखा है इसलिए सप्त अस्त्र भी इसके अंदर नाकाम है इसे तोड़ना तभी संभव है जब बाहर से कोई महाशक्ति उस कवच पर हमला करे

गुरु सिँह :- तो अब हम क्या करे महागुरु

महागुरु :- उसीके लिए तुम सबको यहाँ बुलाया है जैसा मेने शुरवात मे बताया था कि इस आकसमत सभा बुलाने के पीछे तीन कारण है पहला तो तुम सब जान ही गए हो दूसरी समस्या है छिपे हुए असुर जब से मायासुर ने अग्नि अस्त्र को कैद किया है तभी से धरती पर छुपे हुए असुर भी सक्रिय हो गए है और अलग अलग जगह वो अलग तरीके से हमला कर रहे है जिससे हर जगह डर का माहौल बन गया है जिससे असुरों को और भी ज्यादा शक्ति मिल रही है और तीसरी और सबसे मुश्किल समस्या है प्रिया और भद्रा उन दोनों को इस सबसे बाहर रखना होगा क्योंकि दोनों की ही ताकते अभी तक पूर्ण रूप से जगी नही है और ऐसे में उन्हे किसी भी युद्ध मै लेके जाना उनकी मृत्यु का कारण बन सकता हैं

गुरु नंदी (शैलेश) :- हम एक बार के लिए प्रिया को अपनी बातों में फसा कर इस सब से दूर रख भी सकते है लेकिन भद्रा अगर उसे इस बारे में पता चलेगा तो वो बिना कुछ सोचे सीधा असुरों से लढने निकल जायेगा और अब तो उसके पास पृथ्वी अस्त्र भी है जिसके बाद उसे रोकना और भी मुश्किल होगा

महागुरु:- इसीलिए अब हमे तीन हिस्सों में काम करना है गुरु नंदी और गुरु जल आप दोनों चाइना के लिए निकलिए और देखिये वहा से कोई सुराग मिलता है क्या अग्नि अस्त्र का

गुरु नंदी और जल :- जो आज्ञा महागुरु

महागुरु :- और गुरु सिँह और वानर आप दोनों शहर में जाइये और देखिये जो असुर हमले कर रहे हैं उनकी छावनी कहा बनायी है और उसे तबाह कर देना लेकिन ध्यान से

गुरु सिँह और वानर :- जी महागुरु

महागुरु :- और यहाँ पर मे और शांति भद्रा और प्रिया को आने वाले महायुद्ध के लिए तैयार करेंगे और एक बात का सब ध्यान रखना जैसे ही कोई गड़बड़ महसूस हो तो कोई वहा एक पल भी नही रुकेगा सीधा काल विजय आश्रम आ जायेंगे

सभी एक साथ :- जो आज्ञा महागुरु

यहाँ पर सब लोग बाते कर रहे थे तो वही दूसरी तरफ मे और प्रिया दोनों ही एक दूसरे मे उलझे हुए थे हम दोनों एक दूसरे को अपने होठों का रस पिला रहे थे और जैसे जैसे ये रस हमारे शरीर में घुल रहा था


वैसे ही हमारे उपर एक दूसरे के प्यार का नशा भी छा रहा था हम दोनों भी अब तक इस प्रेम भरे नशे मे पूरी तरह से डूब गए थे हमारे बीच का ये स्पर्श हम दोनों को अलग दुनिया में लेके जा रहा था

हम दोनों के बीच ऐसा स्पर्श पहले भी हो गया था लेकिन न जाने क्यों आज हम दोनों को भी इस खेल में अलग ही मजा आ रहा था अभी हम इस खेल लुफ्त उठा रहे थे

की तभी प्रिया के शरीर को एक झटका सा लगा और तुरंत ही उसके शरीर से गुलबी रंग की आग उसके शरीर से निकलने लगी और जब मैने उसे छूने का जैसे ही प्रयास किया तो उस आग में मेरा हाथ भी जल गया

जिसे देख कर प्रिया डर गयी और रोने लगी जिसके बाद वो आग अपने आप बुझ गयी और प्रिया शायद कमजोरी के कारण बेहोश हो गयी जिसके बाद मै उसे लेकर तुरंत ही अपने कमरे मै आ गया

और अभी मैने उसे बेड पर लिटाया था कि तभी उसका शरीर झटके खाने लगा और कुछ ही देर मे शांत भी पड़ गया जिसके बाद में उसके मुह पर पानी मारकर उसे होश मे लाने का प्रयास करने लगा

और कुछ ही देर में प्रिया को होश आ गया लेकिन जब वो होश में आयी तो उसकी आँखों में मुझे एक अलग ही प्रिया दिखाई दे रही थी और जब प्रिया ने मुझे देखा तो वो तुरंत मेरे गले लग गयी

(भद्रा को तो नही पता चलो हम लोग देखते हैं कि आखिर प्रिया के साथ हुआ क्या)

जब प्रिया बेहोश हुई तो उसके बाद उसके शरीर मे क्या हुआ वो अब हम देखेंगे

इस वक़्त प्रिया अपने दिमाग में मौजूद थी और उसके सामने वही हार था अभी प्रिया उस हार को छूने वाली थी की तभी वो हार देखते ही देखते एक लड़की मे बदल गया जिसके शरीर पर kapde किसी महारानी के तरह थे आँखों मे अलग ही विश्वास दिख रहा था जिसका चेहरा 80% प्रिया के जैसा ही था जो देख प्रिया हैरान हो गयी

प्रिया:- कौन हो तुम और मै कहा हु और वो हार वो कहा गया

वो:- अरे रुको इतने सारे सवाल एक साथ मे हूँ महारानी वृंदा वो हार मेरा ही था जो अभी मेरे इस आत्मंश का ही हिस्सा है और तुम इस वक़्त अपने ही दिमाग मे हो

प्रिया:- अच्छा तो तुम हो वो अहंकारी रानी

वृंदा:- हा मे ही हु वो और अब मे अहंकारी नही हूँ आखरी समय में मुझे मेरे गलती का एहसास हो गया था इसीलिए मैने अपने अहंकार को उसी वक़्त त्याग दिया था लेकिन इससे पहले मे अपने प्यार को पा सकती उससे पहले ही उन लोगों ने छल से मुझे मार दिया

प्रिया :- तो तुमने मुझे अपनी शक्तियां क्यों दी और अभी जो आग थी वो क्या था

वृंदा :- तुम्हे मेरी शक्तियां तुम्हारे दिल के कारण मिली है तुम्हारा जो सच्चा प्यार है उस वजह से मिली है मैने अपने प्यार को अपनी मूर्खता के कारण गवां दिया लेकिन तुम्हारा अपने प्रेमी प्रति समर्पण देख कर तुम्हे ये शक्तियां मिली है और जो आग तुम्हारे शरीर को लगी थी वो मेरी प्रेमग्नि है जो तुम्हारे दिल से जुड़ गयी है

प्रिया:- लेकिन उस आग से भद्रा का हाथ जल गया

वृंदा:- भद्रा का हाथ जला नही बल्कि जब भी मेरी प्रेमग्नि प्रकट होगी तो वो तुम्हारे प्रेमी के मन में काम वासना भर देगी और फिर जब तुम्हारा मिलन होगा तो वो अग्नि एक कवच का रूप लेकर तुम्हारे प्रेमी को सुरक्षित रखेगी

प्रिया :- अच्छा तो क्या वो आग हमेशा ऐसे ही अचानक मेरे पूरे शरीर पर काबू कर लेगी

वृंदा :- नही इसे तुम काबू कर सकती हो लेकिन उसके लिए तुम्हे पुरी तरह से मुझे और मेरी शक्तियों को अपनाना होगा फिर मे तुम्हे मेरी सारी शक्तियों के बारे मे जानकारी बताऊंगी

प्रिया:- ठीक है मुझे नाजाने लेकिन ऐसा लग रहा है कि कोई बड़ा संकट आने वाला है और मे उस वक़्त भद्रा को अकेला नही छोड़ना चाहती इसीलिए मुझे तुम्हारी शक्तियों की जरूरत होगी इसीलिए मे तैयार हूँ तुम्हे अपनाने के लिए

वृंदा:- सोच लो हमारे एक होते ही तुम्हारा शरीर तुम्हारा दिमाग मन यादे सब पर मेरा भी उतना ही अधिकार होगा जितना तुम्हारा है तभी मेरी शक्तियों को तुम इस्तेमाल कर पाओगी

प्रिया:- ठीक है

प्रिया के इतना बोलते ही प्रिया और महारानी वृंदा दोनों की आत्मा एक हो गयी ये वही समय था जब प्रिया के शरीर को झटके लग रहे थे और जैसे ही वो झटके बंद हुए तो भद्रा ने प्रिया के मुह पर पानी मार कर उसे होश मे लाया

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Fantastic
 

Rusev

Banned
19,290
6,388
199
अध्याय छत्तीस

कुछ ही देर में प्रिया को होश आ गया लेकिन जब वो होश में आयी तो उसकी आँखों में मुझे एक अलग ही प्रिया दिखाई दे रही थी और जब प्रिया ने मुझे देखा तो वो तुरंत मेरे गले लग गयी

लेकिन इस बार मुझे उस स्पर्श का अनुभव नही हो रहा था जो अक्सर मुझे प्रिया के छूने से होता था मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे वो प्रिया न होकर कोई बहरूपिया हो और ये अहसास होते ही मैने उसे खुद से दूर किया

मै:- कौन हो तुम और मेरी प्रिया कहा है

प्रिया:- ये क्या बोल रहे हो तुम भद्रा मे ही तुम्हारी प्रिया हूँ

मै:- नही मुझे तुम मेसे प्रिया का एहसास नही हो रहा है बस तुम्हारा शरीर चेहरा और आवाज पहले जैसा है लेकिन तुम्हारी आत्मा तुम्हारा मन सब बदला बदला लग रहा है

प्रिया:- उसके पीछे का कारण मे बताती हूँ

इसके बाद प्रिया ने मुझे उसके साथ जो भी हुआ वो सब बताया जिस पर मुझे यकीन तो नही हो रहा था लेकिन जब मैने कुमार के बारे में सोचा तो ना चाहते हुए भी मुझे विश्वास करने लगा

क्योंकि मुझे भी तो कुमार के रूप में मेरे शक्तियों का प्रतिरूप मे दिख रहा था और अभी मे इस सब के बारे में सोच रहा था कि तभी प्रिया मेरे उपर कूद पड़ी और मुझे बेड पर लिटा कर मेरे उपर चढ़ गयी और मेरे होठों से अपने होंठ जोड़ दिये

और हमारे बीच फिर से रुका हुआ खेल शुरू हो गया और अभी हम दोनों ही पीछे हटने के मूड मे नही थे हम दोनों भी एक अलग ही दुनिया में चले गए थे और अभी हम उस दुनिया की गहराई में जा रहे थे

की तभी प्रिया के शरीर पर फिर से वो गुलाबी आग लग गयी लेकिन इस बार प्रिया को उससे कोई फरक नहीं पड़ रहा था और न मुझे उल्टा मे जितनी देर उस आग के संपर्क में था उतना ही मेरे अंदर की कामग्नि बढ़ती जा रही थी

और ऐसे ही एक दूसरे के होठों को चूसते हुए हम उसमे इतना डूब गए थे की हमे पता भी नही चला की हमे ऐसे एक दूसरे को किस करते कितना समय हो गया वो तो जब हमारी साँसे फूलने लगी तब हम दोनों ने बेमन से अपनी किस तोड़ दी

और साँसे लेने लगे तो वही जब प्रिया साँसे ले रही थी तो उसके चुचे जो उपर नीचे होते जा रहे थे जिन्हे देख कर ऐसा लग रहा था की जैसे मुझे न्यौता दे रहे हो की आओ और मसलो हमे और इस न्योते को मे ठुकरा नही पाया

और मैने प्रिया को मेरे उपर से हटा कर बेड पर लिटा दिया और फिर मे खुद उसके उपर आ गया और अपने दोनों हाथों में उसके दोनों चुचे पकड़ कर उन्हे कपड़ों के उपर से ही मसलने लगा तो वही इस अचानक से हुए इस हमले से दंग रह गई लेकिन जल्द ही वो आनंद के समुद्र में महसूस करने लगी

प्रिया :- अहहाहा भद्रा ऐसे ही मसलो इन्हे ऐसे ही

और फिर मैने उसका योग सूट भी उतार दिया अभी वो मेरे सामने केवल अपनी ब्रा और पैन्टी मे थी तो वही उसका ये रूप देखकर मेरे अंदर की आग और भड़क उठी और फिर मैने एक ही झटके में अपने भी कपड़े उतार दिये

और अब मे सिर्फ कच्छे मे था तो वही प्रिया भी मेरी बॉडी देख उसे सहलाने लगी जो की पृथ्वी अस्त्र से जुड़ने के बाद और भी मजबूत हो गयी थी तो वही मेरे शरीर को सहलाते हुए प्रिया अपने नाखूनों को मेरे छाती मे चुभाने लगी

जिससे होने वाला हल्का दर्द महसूस करके मेरा खुद पर से काबू हट गया और फिर मैने अपने एक हाथ मे ही प्रिया के दोनों हाथों को पकड़ लिया और उन्हे उसके सर के उपर रख दिया और दूसरे हाथ से उसके चुचियों को मसलने लगा

और अपने होठों को उसके होठों से जोड़ दिया और अपने लंड को कपड़ों के उपर से ही उसके चूत पर घिसने लगा जिससे प्रिया दंग रह गयी और इस तीन तर्फे हमले से उसकी चीख निकलने वाली थी लेकिन मैने पहले ही उसके होठों को अपने होठों मे लॉक कर दिया था

जिससे उसकी चीख उसके मुह मे ही दब गयी और फिर मैने अपने कमर को तेज हिलाना शुरू कर दिया जिससे प्रिया तो मानो पागल हो गयी थी जिसके बाद मैने उसके हाथों को छोड़ कर उसके दोनों चुचियों को एक साथ मसलने लगा

तो वही इस तीन तर्फे हमले को प्रिया सहन नहीं कर पायी और उसका एक हाथ मेरे सर को सहला रहा था तो वही दूसरा हाथ मेरे पीठ पर चल रहा था जिसके बाद मुझे मेरे लंड पर कुछ गर्माहट महसूस हुई और जब मैने प्रिया के तरफ देखा तो वो अपनी आँखे बंद किये बेड पर लैटि हुई थी

और उसने अपने शरीर को भी ढीला छोड़ दिया था जिसके बाद मेने उसके होठों को आज़ाद कर दिया और फिर मैने धीरे धीरे नीचे आ गया और उसकी ब्रा को भी उसके शरीर से अलग कर दिया

और जब मेरी नज़र उसके नंगी चुचियों पर गयी तो उन्हे देख कर मे अपने होश खोने लगा और मैने तुरंत ही उसके एक चुचे को मुह मे भर लिया और चूसने लगा तो वही दूसरे को अपने एक हाथ मे भर के मसलने लगा

तो वही इस बार प्रिया ने अपना एक हाथ मेरे सर के पीछे रख दिया और अपने हाथ से मेरे सर पर दबाव बढ़ाने लगी जिससे मे और भी जोश मे आ गया और फिर मैने दूसरे चुचे को भी अपने मुह मे भर लिया

अब हालत ऐसी थी कि मेरे मुह में प्रिया के दोनों चुचे एक साथ थे और प्रिया धीरे धीरे मेरे सर पे दबाव भी बढ़ाये जा रही थी कि तभी मे उसके चुचे छोड़ कर धीरे धीरे नीचे आने लगा और उसके पेट को और नाभी को चूमने चुटने लगा

और बीच बीच में उसके कमर को काट भी लेता और फिर ऐसे ही नीचे आते आते मे उसके चूत तक पहुँच गया और उसके पैन्टी के उपर से ही उसकी चूत को मुह मे भर लिया और अब तक के इस खेल मे उसकी पैन्टी पूरी भीग गयी थी

और जब मेरा मन भर गया तो मैने उसकी पैन्टी को साइड से अपने दातों मे फँसा कर उसे उतारने लगा जब मे उसे उतार रहा था तो मेरे होंठ और नाक उसके कमर से लेकर तलवों तक घिस रहे थे जिससे प्रिया अलग ही दुनिया में चली गई थी


जिसके बाद मैने उसके दोनों ही टांगों को पकड़ कर फैला दिये और बिना देर किये मैने उसकी चूत को जो की अब पूरी तरह नंगी मेरे सामने थी उसे अपने मुह मे भर लिया और चूसने लगा

और जैसे ही प्रिया को अपनी नंगी चूत पर मेरी गरम और खुरदरी जीभ का एहसास हुआ तो फिर उसके सर पर तो मानो जैसे भूत ही चढ़ गया था वो ऐसे तड़प रही थी वो बार बार अपना सर कभी दाएँ तो कभी बाये मार रही थी तो वही उसकी चूत से इतना पानी निकल रहा था कि उसकी चूत का पुरा हिस्सा गिला हो गया था

और फिर जब उसका होने वाला था तो वो अपने दोनों हाथों से मेरे सर को चूत पर दबाने लगी और जैसे ही उसका निकलने वाला था कि तभी मैने अपना सर उसके चूत से हटा दिया और ऐसे करते ही वो मुझे ऐसे घूरने लगी की अभी मुझे मार ही देगी

लेकिन वो कुछ बोलती या करती उससे पहले ही मैने उसके होंठों को अपने कब्ज़े मे ले लिया और फिर मे अपने दोनों हाथों को नीचे ले जाते हुए मेने अपना कच्छा भी उतार दिया और अब मे भी पुरा नँगा हो गया था

और मैने प्रिया होंठो को मजबूती से अपने होठों मे कैद कर दिया और वो कुछ समझ पाती उससे पहले ही मैने अपना लंड उसकी चूत पर सेट किया और एक तेज धक्का मारा तो वही उसकी चूत का हिस्सा गिला होने से मेरा आधा लंड उसकी चूत की दीवारों को चिरता हुआ अंदर घुस गया

जिससे प्रिया की चीख निकलने वाली थी लेकिन उसके होंठ पहले से ही मेरे होंठों के कैद में थे जिससे उसकी आवाज उसके मुह में ही दब गयी और तभी मेने एक और झटका मारा जिससे अब मेरा पुरा लंड उसके चूत मे चला गया था

लेकिन न इस बार वो चिल्लाई और न ही तड़प रही थी और जब मैने उसके आँखों में देखा तो उसकी आँखे आधी बंद थी जैसे वो अभी इस पल का मजा ले रही हो जो देखकर अब मैने भी धक्के मारना शुरू किया और उसके होंठों को भी छोड़ दिया

और जैसे उस होंठ आज़ाद हुए तो वो जोर जोर से सास लेने के साथ सिसकरिया भी ले रही थी तो वही जब मे उसके चूत मे धक्के मार रहा था तो उसकी चूत की गर्मी इतनी बढ़ गयी थी कि मुझे ऐसा लग रहा था कि आज मेरे लंड का जलना तय है

अभी मे इसके बारे में सोच रहा था कि तभी फिर से एक बार प्रिया के शरीर को उस गुलाबी आग ने घेर लिया लेकिन इस बार उस आग ने न केवल प्रिया को बल्कि मुझे भी अपने चपेट में ले लिया

लेकिन उस आग से मुझे पीड़ा नही हो रही थी बल्कि और भी ज्यादा जोश चढ़ रहा था जिसके वजह से अब मेरे धक्कों की गति भी बढ़ गयी थी और जैसे मेरी गति बढ़ती जा रही थी वैसे ही प्रिया की चीखे और उसकी चूत की गर्मी भी बढ़ती जा रही थी

जिसके सामने मे ज्यादा देर टिक न सका और मेरा सर लावा प्रिया की चूत के अंदर ही निकल गया तो वही मेरा लावा अपने चूत मे महसूस करके प्रिया का भी खुद पर से काबू छुट गया और उसका भी कामरस उसके चूत से निकलने लगा

और प्रिया का कामरस निकलते ही जो आग हम दोनों के शरीर को लगी थी वो हम दोनों के ही शरीर में समा गयी और इस सब के वजह से मे और प्रिया बहुत थक गए थे इसीलिए हम वैसे ही एक दूसरे के बाहों में नंगे ही सो गए

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Fantastic
 

Rusev

Banned
19,290
6,388
199
अध्याय सैंतीस

जहाँ एक तरफ भद्रा और प्रिया अपने कामवासना के खेल में व्यस्त थे तो वही दूसरी तरफ उन दोनों से कोसों दूर कही किसी अंधेरे कमरे में इस वक्त उनके शत्रु उनपर हमला करने के लिए तैयारी कर रहे थे

इस वक्त उस कमरे मे मायासुर, मोहिनी , कामिनी और उनके साथ कुछ और असुर भी थे तो वही उन सबके बीच मे एक छोटा चौकोणी बक्सा था जिस पर कुछ आँखे भी बनी हुई थी ये वही श्रपित कवच है

जिसमे मायासुर ने गुरु अग्नि को कैद कर के रखा है और ठीक ऐसे ही और 6 श्रपित कवच उस मायासुर के पास थे वो अपने श्रपित कवचों को देखकर लगातार हस्ते जा रहा था

मायासुर (हस्ते हुए) :- शब्बास मेरे योध्दाओं शब्बाश आज न जाने कितने लाखों वर्षों के बाद हम असुरों ने अस्त्रों पर विजय प्राप्त की है बस अब बाकी 6 अस्त्र धारकों को भी इसी तरह से कैद करना है हमे फिर हम सबका नाम असुरों के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जायेगा

मायासुर की बात सुनकर वहा मौजूद सारे असुर जोरों से हसने लगे और अभी अपने जीत के सपने देखने लगे की तभी वहा रखे एक कवच मे आग लग गयी और जैसे ही सभी असुरों की नज़र उस पर गयी

वैसे ही वहा एक सन्नाटा सा छा गया सबके चेहरों पर डर भी साफ साफ दिखाई दे रहा था लेकिन जब बहुत समय होने के बाद भी कुछ नही हुआ तो मायासुर के हसने की आवाज उस सन्नाटे को चिरते हुए उस पूरे कमरे मे गूंज उठी

और उसके हंसी की आवाज गूंजते ही उस कवच मे लगी आग भी शांत हो गयी जिसे देखकर मायासुर ने उस कवच को उठा कर बोलने लगा

मायासुर :- अंग्नि अस्त्र धारक क्या हुआ आग शांत पड़ गयी क्या तुम्हारे अंदर की या फिर तुम कही मर तो नही गए अरे अभी मत मरना क्योंकि अभी तुम मर गए तो मे बाकी 6 अस्त्रों तक कैसे पहुँचूँगा वो जब तुम्हे ढूढते हुए सभी लोग यहाँ आयेंगे तब हम उन्हे यहाँ इस महान श्रपित कवच मे कैद कर देंगे तो वही उनके कैद होते ही आश्रम के आसपास मे छुपे हुए सारे असुर तुम्हारे उन तीनों आश्रमों की धजिया उड़ा देंगे और फिर तुम्हारे इस दुनिया पर हमारा राज होगा

इतना बोलकर मायासुर फिर से हसने लगा और उसके साथ उसकी पूरी टोली भी हँसने लगी तो वही दूसरी तरफ चाइना मे गुरु नंदी और गुरु जल पहुँच गए थे वो दोनों ही अपने हेलिकॉप्टर मे बैठके आये थे

क्योंकि अगर वो पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आते तो जरूर ये बात हर तरफ फैल जाती क्योंकि एक मशहूर व्यापारी तो एक मशहूर तैराक है और हो सकता हैं की असुर सावधान हो जाए और फिर उन्हे ढूँढना और भी मुश्किल हो जाए

इसीलिए वो दोनों गुरु अग्नि के आश्रम के पास न उतार के वहा कुछ दूरी पर शैलेश (गुरु नंदी) की प्रोपर्टी थी वहा पर अपना हेलिकॉप्टर उतारा और फिर वहा से दोनों पैदल ही छुपते हुए अग्नि आश्रम के रस्ते चल पड़े


जंगली रास्ता होने के कारण किसी के देखने की शक्यता तो न के बराबर थी लेकिन फिर भी उन्होंने अपने चेहरे को मास्क 😷 के पीछे छुपाया हुआ था और जैसे ही वो अग्नि अस्त्र के नजदीक पहुँचने लगे वैसे ही उन्हे अपने आस पास की तमसिक ऊर्जा महसूस होने लगी थी जिससे वो दोनों तुरंत ही सतर्क हो गए थे

दिलावर:- (गुरु जल) तो शैलेश क्या करना है आगे कुछ सोचा है

शैलेश :- सोचना क्या है असुरों को ढूँढना है उन्हे उनकी नानी याद दिलानी है और गुरु अग्नि को छुड़ा कर वापस ले जाना है

दिलावर :- हा लेकिन कुछ रननीति भी तो बनानी होगी न हमला करने से पहले

शैलेश:- (ठंडी सास छोड़ते हुए) हा बात तो सही कह रहे हो तुम रननीति तो बना लेनी चाहिए थी

ये बोलते ही शैलेश अचानक रुक गया और उसे रुका देख कर दिलावर भी रुक गया

शैलेश:- खैर रनानिति बनानेे का समय गया अब यूद्ध की बारी है

ये बोलते हुए शैलेश ने अपना दाया हात उठाकर अपने कंधे के समांतर करने लगा लेकिन कुछ दूरी पर जाते ही उसका हाथ रुक गया ऐसा लगने लगा जैसे वहा किसी ने कोई अदृश्य कवच लगाया हो


इस बात का एहसास होते ही दिलावर ने भी शैलेश की तरह धीरे अपना हाथ कंधे से समांतर करते हुए उस कवच को महसूस करने लगा और जैसे ही उसने उस कवच को हाथ लगाया वैसे ही उसे कुछ महसूस होने लगा जिसे महसूस करके उसने तुरंत ही अपना हाथ हटा दिया और दो कदम पीछे हट गया

शैलेश :- क्या पता चला कवच के बारे में

दिलावर :- ये सतर्कता कवच है अगर हमने इसके अंदर कदम रखा तो इसे बनाने वाले को तुरंत पता चल जायेगा और फिर वो सतर्क हो जायेगा

शैलेश :- तो इसे हम कैसे तोड़ेंगे

दिलावर:- इसे बनाने वाले को बिना पता चले तोड़ना असंभव है लेकिन अगर ये बाहर के जगह अंदर से तोडा गया तो असुरों को केवल इसके टूटने की खबर होगी पर ये कहाँ से तोडा गया है किसने तोडा है इसकी खबर नही होगी

शैलेश :- और हम इसे अंदर से कैसे तोड़ेंगे

दिलावर:- इसमें जल अस्त्र हमारी मदद करेगा सामने देखो

जब शैलेश ने सामने देखा तो वहा पर एक नदी थी जिसे देखकर शैलेश के आँखों में चमक आ गयी तो वही दिलावर ने अपनी आँखे बंद कर ली और ध्यान लगाने लगा और देखते ही देखते उसके हाथ मे पहनी हुई अंगूठी जो नीले रंग की थी वो चमकने लगी

और उसके चमकते ही वहा नदी के पानी मे हलचल होने लगी और धीरे धीरे उस पानी में लहरे उठने लगी और कुछ ही देर मे एक बहुत बड़ी लहर आ गयी और उस लहर ने एक हाथ का रूप लिया और फिर वो हाथ एक घुसा बनाकर तेजी से कवच के मध्य भाग की तरफ जाने लगा

और जैसे ही वो घुसा कवच से टकराया तो उस कवच के तो टुकड़े हो गए और उसके टुकड़े होते ही वहा मायासुर को भी इस बारे में पता चल गया और उसने तुरंत ही अपने 2 असुरों को भेज दिया इस बात का पता लगाने और खुद भी छुपते छुपाते उन के पीछे जाने लगा

तो वही कवच के टूटते ही दिलावर और शैलेश दोनों आगे बढ़ने लगे और कुछ देर चलने के बाद ही वो दोनों आश्रम के परिसर में पहुँच गए जहाँ का हाल देखकर वो दोनों दंग रह गए क्योंकि पुरा आश्रम खून में सना हुआ था और हर तरफ लाशों के ढेर पड़े हुए थे जिन्हे देखकर दोनों के ही आँखों में क्रोध और डर दोनों के मिश्रित भाव साफ दिखाई दे रहे थे

दिलावर :- इतनी तबाही कैसे मच गयी और वो असुर आश्रम के भीतर घुस कैसे गए

शैलेश:- वो तो साहिल के मिलने के बाद ही पता चलेगा

दिलावर (शैलेश को धक्का देते हुए) :- शैलेश बचो

जब शैलेश और दिलावर बाते कर रहे थे की तभी दिलावर ने एक चट्टान को शैलेश की तरफ आते देखा जिसे देखते ही दिलावर ने शैलेश को धक्का देकर खुद भी बाजू हट गया और वो चट्टान का वार असफल हो गया अभी वो दोनों इस वार को देख कर सतर्क हो गये थे की तभी उनके सामने मायासुर् द्वारा भेजे गए असुर आ गए जिन्हे देखकर वो दोनों दंग रह गए क्योंकि एक की शक्कल घोड़े जैसी थी तो वही दूसरे असुर के सर पर हाथी के दाँतों जैसा कुछ लगा हुआ था जिन्हे देख कर दिलावर हैरान हो गया था

दिलावर:- केशासुर और गजासूर

केशासुर (घोड़े की शक्कल वाला) :- वाह अपनी मौत को पहचान गए तुम क्या बात है

गजासूर:- चलो अच्छी बात है इन्हे पता तो होगा कि इन्हे मारने वाला कोन था

शैलेश :- अरे नही रे हम अपनी मौत को कैसे पेहचानेंगे वो तो अभी तक हमारे सामने आई ही नहीं है लेकिन हा हमने हमारे शिकार को जरूर पहचान लिया है

केशासुर:- अच्छा तो अपने शिकार को पकड़ कर तो दिखा

इतना बोलके वो तुरंत भागता हुआ उन दोनों के पास पहुँच गया और और उन दोनों को एक एक घुसा जड़ के वापस अपने जगह पर आ गया तो वही ये सब इतने तेज हुआ की उन दोनों को घुसे से हुए दर्द के सिवा कुछ और महसूस भी नही हुआ

शैलेश :- ये तो बड़ा तेज है इससे कैसे मुकाबला करेंगे हम

दिलावर:- इसकी गति वानर अस्त्र के समान है और मैने गौरव (वानर अस्त्र धारक) के साथ बहुत बार युद्धाभ्यास किया है जिससे इसके गति का तोड़ मेरे पास है तुम सिर्फ उस गजासूर को संभालो याद रखना उसके पास सहस्त्र असुरों की ताकत है

शैलेश:- तुमने अभी नंदी अस्त्र की ताकत देखी ही कहा है

जब वो दोनों ये सब बोल रहे थे तब तक वो दोनों असुरों ने अपने अपने हाथों में आग के गोलों का निर्माण कर दिया था और उन्हे उन दोनों के उपर छोड़ दिया था

लेकिन तब तक वो दोनों उठ खड़े हो गए थे और अपने तरफ आग के गोलों को आता देख दिलावर ने तुरंत एक पानी की दीवार खड़ी कर दी थी जिससे टकराकर वो दोनों आग के गोले नष्ट हो गए

तो उन गोलों के नष्ट होते ही दिलवार ने पानी के बड़े गोले निर्माण करके उस पानी को बर्फ में परावर्तित कर उन असुरों पर छोड़ दिये और जैसे ही वो गोले उन असुरों के पास पहुंचने वाले थे की वैसे ही गजसुर उन दोनों गोलों के सामने आ गया और उसने अकेले ही दोनों बर्फ के गोलों को एक ही घुसे मे तोड़ दिया जिसे देख कर दिलावर के चेहरे पर मुस्कान आ गयीं

शैलेश :- उस असुर ने तुम्हारा वार नष्ट कर दिया और तुम मुस्कुरा रहे हो

दिलावर :- शक्ति चक्र का ज्ञान है ना तुम्हे उसी का इस्तेमाल हमे यहाँ करना है

(शक्ति चक्र एक ऐसा जिसने शक्तियों को उनके ताकत और कमजोरी के हिसाब से रखा है जैसे बल को हराती है गति गति हराती है बुध्दि बस यही है शक्ति चक्र)

जब शैलेश ने शक्ति चक्र का नाम सुना तो उसे भी समझ आ गया और फिर वो तेजी से दौड़ते हुए गजसुर के पास पहुँच गया और गजासूर गजासूर कुछ समझ पाता उससे पहले ही शैलेश ने अपनी गति का इस्तेमाल करते हुए उसके उपर लगातार घूसों की बारिश कर दी और आखिर मे एक जोरदार घुसा उसके पेट मे जड़ दिया जिससे वो 5 कदम दूर जाकर गिरा

तो वही दूसरी तरफ दिलावर केशासुर के तरफ बढ़ने लगा और जब केशासुर ने ये देखा तो वो फिर से अपनी तेजी के इस्तेमाल करते हुए दिलावर पर हमला करने लगा

लेकिन इस बार दिलावर भी तैयार खड़ा था और जैसे ही केशसुर अपने जगह से गायब हुआ वैसे ही दिलवार ने अपने चारों तरफ पानी फैला दिया जिससे आसपास की सारी सकी मिट्टी खिचड बन गयी और वो खिचड केशासुर के पैरों मे चिपकने लगा

जिससे उसे दौड़ने मे तकलीफ हो रही थी और इस वजह से केशासुर जब अपनी गति बढ़ाकर और तेजी से दौड़ने लगा जो देख कर दिलावर के चेहरे पर मुस्कान आ गयी

दिलावर:- मे जानता था केशासुर तुम भले ही वायु से भी तेज हो लेकिन तुम्हारी बुद्धि कछुए से भी धीमी है

इतना बोलकर दिलावर ने फिर से एक बार बर्फ का गोला बना कर केशासुर के तरफ फेक दिया जिससे बचने के लिए केशासुर जैसे ही दौड़ने लगा की तभी उसका पैर खिचड़ के वजह से फिसल गया और वो नीचे गिर गया

और जब वो फिर से उठने का प्रयास कर ने लगा तो फिर से गिर गया वो अभी उठ ही नहीं सकता था और इसी बात का फायदा उठा कर दिलावर ने बर्फ के गोले बनाकर लगातार केशासुर पर वार करने लगा

और जब वो बेहद कमजोर हो गया तब दिलावर ने एक बड़ा बर्फ का गोला बनाया जिसके हर तरफ नुकीले काटे लगे हुए थे और उसका प्रहार होते ही केशासुर वही पर मर गया

तो वही शैलेश से मार खाने के बाद गजासूर फिर से एक बार उठ खड़ा होने का प्रयास कर रहा था कि तभी शैलेश ने नंदी अस्त्र की शक्तियों को जागृत करके इतने जोर से अपने घुसे से वार किया की उसका घुसा गजासूर की खाल को चिरते हुए
आर पार हो गया और गजासूर का खेल भी वही पर खतम हो गया

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Nice update bro
 
Top