• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest बेटा है या.....घोड़(ALL IN ONE)

फीर मचायेगें है की नही?

  • हां

    Votes: 9 81.8%
  • जरुर मचायेगें

    Votes: 8 72.7%
  • स्टोरी कैसी लगी

    Votes: 0 0.0%

  • Total voters
    11
  • Poll closed .

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
52,928
173
कजरी वो कजरी.....अपनी बकरीया सम्भाल देख मेरी सारी सब्जीया खा रही है......

ये आवाज सुनकर कजरी भागते हुए घर से बाहर नीकलती है, और अपनी बकरीयों को पकड़ कर बांधती है।

अगर तू अपनी बकरीयां सम्भाल नही पाती तो बकरीया पालती क्यूं है?

कजरी-- क्या करु दीदी.....घर में कोई कमाने वाला है नही, घर का सारा खर्चा इन बकरीयों की वजह से ही चलता है।


अरे तो एक सांड जैसा बेटा पैदा कीया है...उसे क्यूं नही बोलती की कुछ काम धंधा करे। देख एक मेरा लड़का है ठाकुर साहब के यहां काम करता है....उसे भी क्यूं नही लगा देती ठाकुर साहब के यहां काम पर।

कजरी-- बात तो ठीक है रज्जो दीदी, लेकीन मेरा लड़का तो दीन रात बस गांव में मटरगस्ती करता रहता है......क्या बोलू मैं उसे?


कहानी के पात्र--

कजरी (40)
कजरी एक बहुत ही खुबसुरत औरत है....इतनी खुबसुरत है की पुरा गांव उसके फीराक में लगा रहता है। उसकी गरीबी उसकी सबसे बड़ी दुश्मन है...जीसका फायदा गांव के लाला.....ठाकुर और दुकानदार उठाने के फीराक में लगे रहते है। लेकीन कजरी आज तक अपने आप को पवीत्र रखी थी.....गांव भर में उसके खुबसुरती के चर्चे चलते रहते है और पता नही कीतने मर्द उसके नाम से मुठ मार मार कर कमजोर दीलवाले बन गये है।



रीतेश(22)
कजरी के जीने का सहारा यहीं जनाब है.....लेकीन इन जनाब को अपनी मां की परेशानीयो के बारे में कोइ फिक्र नही.....ये तो बस अपने आवारा दोस्तो के साथ दीनभर घुमते फीरते रहते है.....अगर बाप होता तो थोड़ा बहुत डर लगा रहता लेकीन बाप तो ना जाने 3 साल पहले घर छोड़ कर पता नही कहां नीकल गये थे।



रज्जो(40)
रज्जो कजरी की पड़ोसन है.....ये मुहतरमां की एक ही परेशानी है, और वो है कजरी......इनको कजरी के खुबसुरती से बहुत जलन होती है। हमेशा सज संवर के रहने के बाद भी कजरी की खुबसुरती के आगे पानी कम चाय वाला हाल हो जाता है।

पप्पू(22)

पप्पू रज्जो का लाडला....इनका सीर्फ नाम पप्पू नही बल्की ये खुद पप्पू है। क्यूकीं पप्पू का चप्पू 2 मीनट ही चलता है.....क्यूकीं इन्होने बचपन से अपना चप्पू अपने हाथों की मदद से कुछ ज्यादा ही चला दीया था।

सलोनी(24)
रज्जो की छिनाल बेटी......इनकी बुर में इतने चप्पू चले हैं की पुछों मत लेकीन इस बात की भनक अभी तक रज्जो को भी नही चला है।


संगीता(42)
कजरी की सबसे अच्छी सहेली....अगर कजरी को खुबसुरती में कोई अजू बाजू पहुंच सकता है तो यही मुतरमा है।


आंचल(20)
संगीता की लाडली और रितेश के दील की धड़कन......इनको सचने संवरने का बहुत शौक है.....अगर ये गांव में नीकल दे
तो बेचारे लड़को के लंड और धड़कन की रफ्तार तेज हो जाती है......


ठाकुर परम सींह(48)
ईनका काम दो नबंर का धंधा करना , और कीसी तरह कजरी की जवानी का रस पी सके


कहानी में और भी कीरेदार जीसका जीक्र हम आगे करते चलेंगे.......हम और आप मीलकर


तो चलीये कहानी शुरु करते है......और मज़े लेते है......लेकीन पहले आप भाईयो का क्या राय है वो तो जान लूं.......फीर मचांयेगे....
khubsurat.
 

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
52,928
173
  1. बेटा है या घोड़ा
अपडेट--1



रोज रोज ये सुखी रोटी.....और बकरी का दुध खाकर थक चुका हूं मैं॥

कजरी-- अरे बेटा...यही सुखी रोटी और बकरी का दुध खाकर पहलवान बन गया है....देख जरा खुद को पुरे गांव भर में कीसी का भी शरीर तेरे जैसा नही है।

रितेश.(गुस्से में)-- तो इसका मतलब मैं यही सुखी रोटी खाउं?


कजरी-- गुस्सा मत हो मेरे लाल....आज खा ले कल कुछ इंतजाम करुगीं, और तुझे तो अपनी हालत पता ही है बेटा।

रीतेश(गुस्से में)-- जब हालात ठीक नही थे तो पैदा क्यूं कीया .....ये सुखी रोटी खीलाने के लीये....नही खाना है मुझे ये तू ही खा।

' इतना कह कर रितेश खाने की थाली गुस्से में अपनी मां की तरफ करता है और घर से बाहर की ओर जाने लगता है।

कजरी-- अरे.....बेटा सुना तो...रुक जा थोड़ा ही खा ले। लेकीन तब तक रितेश घर से बाहर जा चुका था।
कजरी वहीं बैठी रितेश को बाहर जाते देखती रहती है.....उसकी आंखो में आंशु आ चुके थे.....वो अपनी कीस्मत को कोस रही थी.....लेकीन कीसी ने सच कहा है ना जो तकदीर में लीखा है भला उसे कौन मीटा पाये फीर कीस्मत को कोस कर क्या फायदा।

कजरी वो....कजरी....कहां है तू।
कजरी के कानो में जैसे ही ये आवाज़ पहुचीं वो रसोई घर से बाहर आती है।

कजरी-- अरे संगीता तू आ बैठ।
संगीता-- तू तो मेरी ख़बर लेने से रही तो सोचा मैं ही तेरी खबर ले आती हूं॥

कजरी-- अरे संगीता अब क्या बताऊ तूझे तो सब पता ही है.....घर का काम और सब चीजे करते करते समय का पता ही नही चलता.....

संगीता-- अच्छा अब रहने दे....चल जल्दी तैयार हो जा।
कजरी-- क्यूं कहां जाना है?

संगीता-- अरे आज ठाकुर साहब का प्रधानी का प्रचार है....और उसमे शामील होने वालो को एक हजार रुपये मील रहे है.....तो गांव की औरते जा रही थी तो सोचा मैं और तुम भी चलते है अपना भी काम हो जायेगा।

कजरी-- बात तो तू ठीक कह रही है.....लेकीन मेरा बेटा?
संगीता-- तेरा बेटा क्या?

कजरी-- अगर कहीं मेरे बेटे ने गांव में घुमते हुए देख लीया तो मेरी खैर नही।

संगीता-- अरे क्या खैर नही लगा रखी है.....एक तो तू इधर उधर से ला के तू उसको खीलाती है.....खुद तो कुछ करता नही और तेरे उपर रौब जमाता है।

कजरी-- ऐसा मत बोल संगीता वो जीदंगी है मेरी....उसके लीये तो सब कुछ कुर्बान।

संगीता-- हां तो वो बच्चा थोड़ी है उसे भी तो सोचना चाहीये....तू चल मै देखती हूं की क्या बोलेगा वो तूझे फीर मैं उसे जवाब दूंगी।

कजरी-- ठीक है रुक चलती हूं॥

कजरी घर के अंदर जाती है और एक लाल साड़ी अपने बक्से में नीकालती है......।

कजरी अपनी पहनी हुई साड़ी अपने बदन पर से नीकाल देती है .....वो अब सीर्फ ब्लाउज और पेटीकोट मे थी....उसका कसा हुआ दुधीया गोरा बदन और ब्लाउज में कसी हुई गोल गोल बड़ी चुचीयां जो शायद ब्लाउज फाड़ कर बाहर आने को उतावली हो रही थी.....कजरी की पतली गोरी कमर तो सुराही दार एक बार कोई देख ले तो उसके कमर को हाथो से रगड़ने को जी मचल जाये......और गांड तो उफ.....क्या बनावट थी उपर वाले की .....एकदम कसी हुई बाहर की तरफ नीकली हुई कयामत ढ़ा रही थी.....ये सब नज़ारा देख कर संगीता की नज़रे ही नही हट रही थी।

कजरी-- ऐसे क्या देख रही है तू?
संगीता-- देख रही हूं की भगवान ने तूझे सच में फुरसत से बनाया है.....कीतनी खुबसुरत है तू कजरी।

कजरी-- अरे अब क्या करुगीं ये खुबसुरती ले के पती तो रहे नही तो फीर इस खुबसुरती का क्या मतलब?

संगीता-- सही कहां तूने....हम दोनो की कीस्मत तो फूटी है.....अच्छा तेरा मन नही करता कजरी की तेरे ये खुबसुरत जीस्म को कोई मसल मसल कर रख दे.....।

कजरी-- अच्छा अब बस कर तू अब चल....मैं तैयार हो गयी हूं॥

संगीता-- हां चल गांव के तेरे सारे आशीक तो आज मर ही जायेगें...।
कह कर दोनो हंसने लगती है.....और घर से बाहर नीकल पड़ते है।


ठाकुर परम सींह के घर के सामने भारी संख्या में भीड़ लगी थी.....ठाकुर के गाड़ीयो में पोस्टर लगे हुए थे.....उनका चुनाव चीन्ह था खाट, कुछ लोगो के हाथों मे झंडे भी थे...।


गांव की कयी सारी औरते एक तरफ खड़ी थी.....उन औरतो में रज्जो एकदम सज धज कर खड़ी थी और कुछ औरतो से बात कर रही थी.....की तभी उनमे से एक औरत बोली.......हाय राम देखो कजरी आ रही है कीतनी सुंदर लग रही है।
ये सुनते ही सारी औरतों की नज़र कजरी पर पड़ती है।
हां....सच में कीतनी सुदंर है कजरी देखो ना सारे मर्दो की नज़र सीर्फ कजरी पर ही है.....काश भगवान ने मुझे इतना सुँदर बनाया होता तो जींदगी के मजे खुब लुटती ॥
उस औरत की बात सुनकर रज्जो बोली॥
रज्जो-- हां लेकीन ये महारानी तो अपने आप को पता नही क्या समझती है....कीसी को घास ही नही डालती।

रज्जो अंदर ही अँदर खुब जल रही थी....॥

संगीता-- देख कजरी सब हरामजादे मर्दो की नज़र तुझ पर ही है....कैसे खा जाने वाली नज़रो से देख रहे है तूझे।

कजरी-- छोड़ जाने दे तू .....चल सीधा प्रचार करेगें और घर चलेंगे....॥
और फीर दोनो ठाकुर के द्वार पर आ जाते है।

ठाकुर अपने दोस्तो के साथ हवेली के अंदर बैठा था.....तभी उसे कीसी ने आवाज़ दी।

ठाकुर साहब......ठाकुर साहब.....। ठाकुर ने पीछे मुड़ कर देखा....

ठाकुर-- अरे दीवान क्यू चील्ला रहा है.....।
दिवान-- वो....वो कजरी आयी है।
इतना सुनना था की 48 साल का ठाकुर कीसी 20 साल के जवान लौडें की तरह बाहर भागते हुए नीकला....।

वहां बैठे ठाकुर के दोस्त सब हैरान रह गये की आखीर ये कजरी कौन है जीसके बारे में सुनते ही ठाकुर कीसी कुत्ते की तरह भागते हुए गया.....यही उत्सुकता ठाकुर के दोस्तो को भी बाहर ले के चला।

ठाकुर-- अरे कजरी.....तुम , आज मेरे घर का रास्ता कैसे याद आ गया?

कजरी तो एकदम से डर गयी थी....क्यूकीं ठाकुर उससे सीधा जो बात करने लगा था.....और गांव के सभी लोग की नज़र उन पर ही थी.....वो सोचने लगी की गांव वाले कही कुछ उल्टा सीधा ना सोच ले.....और कुछ गलत बात गांव में फैल गयी तो मेरा बेटा क्या सोचेगा.....

ठाकुर-- क्या हुआ कजरी क्या सोचने लगी?
कजरी जैसे नीदं से जागी॥

कजरी-- क.....कुछ नही ठाकुर साहब। वो....वो मैने सोचा की मैं भी प्रचार में हीस्सा लूं तो चली आयी।

ठाकुर के खुशी का ठीकाना ना था....वो यकीन नही कर रहा था की कजरी खुद चल कर उसके घर आयी है......

ठाकुर-- बहुत अच्छा कीया.....कजरी।

दिवान-- ठाकुर साहब रैली नीकालने का वक्त हो गया है.....चलीये आप गाड़ी मे बैठ जाईये....।

ठाकुर-- हां....हां चलो कजरी तुम भी गाड़ी में ही मेरे साथ बैठ जाओ।

कजरी-- अरे.....नही ठाकुर साहब.....गांव की औरतो के साथ ही प्रचार कर लूगीं.....और वैसे भी मुझे बहुत अजीब लगेगा अगर मैं अकेली आपके साथ गाड़ी में बैठुगीं तो।

ठाकुर-- हां.....तो संगीता को भी बीठा लो गाड़ी में क्यू संगीता तुम भी बैठ जाओ।

संगीता-- ठीक है ठाकुर साहब....जैसा आप कहे।

कजरी-- लेकीन संगीता?
ठाकुर-- लेकीन वेकीन कुछ नही.....मेरा प्रचार करने आयी हो तो मेरे साथ ही करना होगा।

कजरी और संगीता को अच्छा तो नही लग रहा था लेकीन फीर भी कुछ बोल नही पाई और जीप में बैठ गयी......।

दिवान ने ठाकुर को इशारा करके एक कोने में बुलाया.....ठाकुर दीवान के तरफ चल दीया।

ठाकुर-- अब क्या हुआ दीवान.....?
दिवान-- ठाकुर साहब......राजकरन की रैली नीकल पड़ी है.....आपने जैसा कहा था मैने सब गांव वालो को पैसा देकर बुला लीया है.....मुझे लगता है की उसके चुनाव प्रचार में सीर्फ राजकरन का परीवार ही होगा।

ठाकुर(हंसते हुए)-- हा......हा......हा, अब इस राजकरन को अपनी औकात का पता चलेगा.....ये दलीत नीचे जाती वाला साला ठाकुर परम सींह से टक्कर ले रहा है मादरचोद। देखते है क्या करेगा ?



यार रितेश लगता है चुनाव में पापा खड़े होकर गलती कर गये.....

रितेश-- तू ऐसा क्यू बोल रहा है अजय?
अजय(रितेश का दोस्त)-- अरे देख ना सारे गांव वाले उस ठाकुर के तरफ़ चल दीये एक तू ही है जो गांव से आया है।

रितेश-- अरे भोसड़ी के ये चुनावी दावपेच है दीखाने को कुछ और करने को कुछ वाली हाल है....ये तो सिर्फ रैली है गांव के सारे वोट तो तेरे पापा को ही मीलेंगे।

अजय-- तू बोलता है तो ठीक ही होगा.....चल अब अपनी भी रैली नीकालते है।

रितेश अजय के साथ.....चल देता है राजकरन के रैली में कुछ बीस से पच्चीस आदमी ही होगें वो भी घर वाले और यार दोस्त।

दोनो तरफ से रैली चली आ रही थी ठाकुर जीप में खड़ा हाथ जोड़े और उसके साथ दीवान, कजरी और संगीता थे और पिछे भारी भीड़ जो नारा लगा रहे थे ' वोट हमारा खाट पे, ठाकुर साहब राज पे।

ये नारा ठाकुर के तरफ से लग रहे थे.....राजकरन का चुनाव चिन्ह था इट , लेकीन उनका नारा तो सीधा साधा था.....हमारा प्रधान कैसा हो, राजकरन जी जैसा हो।

इन नारो में जोश था....रितेश अजय के साथ बाकी दोस्त भी जोर जोर से चिल्ला रहे थे।

दोनो की रैली गांव भर से गुजर रही थी.....और फीर आमने सामने भी पहुचं गयी।

अजय-- अरे....यार रितेश तेरी मां तो ठाकुर के तरफ से प्रचार कर रही है लगता है।
ये सुनते ही रितेश चक्का बक्का हो गया.....और नज़र उठा कर देखा तो सच में उसकी मां ही थी जो ठाकुर के जीप में बैठी नारा लगा रही थी......।
रितेश को बहुत गुस्सा आ रहा था......आखीर कार दोनो की रैली आमने सामने पहुचं गयी।

कजरी ने जैसे ही रितेश को देखा तो उसके होश ही उड़ गये कजरी का बदन थर थर कापंने लगा और उसे पसीने आने लगा।

रितेश के गुस्से का ठीकाना न था....लेकीन फीर भी वो अपनी मां को नज़र अदांज कर के चुनाव प्रचार में लग गया......।


पुरे दीन प्रचार हुआ.....शाम को कजरी और संगीता बीना ठाकुर से मीले घर चली आती है.....

संगीता-- अरे कजरी तू इतना घबरा क्यूं रही है...रितेश पुछेगा तो बोल देना सिर्फ प्रचार करने ही तो गयी थी।

कजरी-- पता नही क्यूं मेरा दील घबरा सा रहा है तू रुक जा ना रितेश के आने तक।

संगीता-- अच्छा तू घबरा मत मैं रुकती हू....।

शाम से रात हो गयी करीब 9 बज गये लेकीन रितेश अभी तक घर नही आया था...।

कजरी की तो धड़कन बढ़ने लगी.....वो परेशान होने लगी। अब संगीता भी परेशान होने लगी।

संगीता-- अरे कजरी , होगा वो अपने दोस्तो के साथ आ जायेगा बच्चा थोड़ी है वो....


और इधर रितेश अजय के साथ गांव के पुलीया पर बैठ कर पहली बार शराब पी रहे थे......

अजय-- यार रितेश ये दारु भी कमाल की चिज है....एक बेकार आदमी भी पीने के बाद अपने आप को बादशाह समझने लगता है।


रितेश-- सही कहा यार......मज़ा आ गया।

अजय-- भाई रितेश आज तो बुर चोदने का मन कर रहा है।
रितेश अपनी खाली हो चुकी ग्लास में दारु डालते हुए....

रितेश-- अरे भोसड़ी के मन तो मेरा भी कर रहा है .....लेकीन बुर कोई ऐसी वैसी चीज थोड़ी है जो मील जायेगी....।

अजय-- एक जुगाड़ है.....बोल तो बताऊं॥
रितेश-- अरे बोल तू जल्दी.....।
अजय-- पप्पू की बहन है.....बड़ी चुदक्कड़ है मादरचोद और तेरे घर के बगल में ही रहती है.....पटा ले साली को फीर मजे लूट खूब।

रितेश-- सही कह रहा है.....वैसे भी जब भी वो साली मुझे देखती है तो मचलने लगती है।
अजय-- तो चोद दे साली को......।
रितेश-- हां यार और वैसे भी लंड खड़ा हो कर के झुल जाता है.....ईसको भी अब बुर की जरुरत है...।

अजय-- हां यार सही कहा.....चल अब घर चलते है बहुत देर हो गयी है.....10 बज गया है मेरी मां तो आज चपेट लगायेगी जरुर मुझे।

फीर दोनो उठते है और अपने अपने घर की तरफ नीकल पड़ते है......

अजय अपने घर की तरफ बढ़ा जा रहा था.....रात काफी ज्यादा हो गया था अंधेरा था....रास्ते भी ठीक से नही दीख रहा था।

वो गांव के पुराने स्कूल से जैसे ही गुजर रहा था उसे कुछ खुसुर फुसुर की आवाज सुनाई दीया.....वो थोड़ा हैरान हो गया की ये आवाज़ कहा से आ रही है।
वो वहीं रुक गया और ध्यान से सुनने लगा तो आवाज़ उसे स्कूल के एक कमरे से आती हुई सुनाई दी......

उसने आवाज़ का पीछा कीया और स्कूल के उस कमरे की तरफ बढ़ा.....अजय धीरे धिरे कमरे की तरफ बढ़ रहा था.....वो जैसे ही कमरे के नज़दीक पहुचां तो उसने अंदर झांका उसे एक औरत की सीसकने की आवाज़ आई........आ......ई.......आ.......ह।

आवाज़ इतनी धीमी थी की अजय पता ना लगा सका की ये गांव की कौन औरत है.....लेकीन उसे इतना तो पता चल गया था की इस कमरे में चुदाई हो रही है,॥

अजय ने पहले सोचा की रुक कर पता करता हू की कौन है ये लोग.....लेकीन फीर बाद में सोचा की इस गांव में तो बहुत सी छिनाल औरते है....इन लोग के उपर समय बरबाद करके क्या मतलब....और फीर वो पीछे मुड़ा और घर की तरफ नीकल गया।

रितेश जैसे ही घर पहुचां तो कजरी और संगीता दोनो बैठ कर रितेश का इतंजार कर रहे थे.....रितेश के पैर डगमगा रहे थे।
कजरी और संगीता को समझने में देर नही लगी की रितेश दारु पी के आया है.....।

रितेश की हालत देख कर कजरी को बहुत गुस्सा आया की उसने दारु पीया है।

कजरी(गुस्से में)-- तू दारु पी कर आया है घर पर।

रितेश की आंखे अधखुली थी.....उसने इतना पीया था की ठीक से चलना तो दुर ठीक से खड़ा भी नही हो पा रहा था.....रितेश ने अपने लड़खड़ाते हुए जबान से बोला।

रितेश-- हां.....पी है मैने....तो क्या हुआ तेरी तरह बेशरमो की तरह गांव के ठाकुर के साथ थोड़ी घुम रहा था।

ये सुनते ही कजरी का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुंच गया......कजरी ने खीच कर रितेश को 3 , 4 थप्पड़ जम दीया।

कजरी-- नालायक अपनी मां को बारे में ऐसा बोलते हुए शरम नही आयी तूझे।

रितेश-- ओ.....हो मुझे बोलने में शरम आनी चाहीए और तूझे शरम नही आ रही थी ठाकुर के साथ घुमने में और वो भी ठाकुर के जीप पर......॥

कजरी-- मैं अपने मन से नही बैठी थी....ठाकुर साहब ने जबरजस्ती बैठने पर मजबुर कीया तो बैठी।

रितेश-- सही है....यार, तू मुझे ये बता गांव में बहुत सारी औरते है ठाकुर ने तूझे ही बैठने के लीये क्यूं बोला?

रितेश की बात सुनकर कजरी घबरा गयी और समझ नही पा रही थी की क्या जवाब दे और यही हाल संगीता का भी था....क्यूकीं वो दोनो अच्छी तरह से जानती थी की ठाकुर की नीयत उस पर खराब है लेकीन ये बात रितेश को बोलना मतलब खुद के पैर पर कुल्हाड़ी चलाने जैसा था।

इतने में वहां खड़ी संगीता ने बोला.....

संगीता-- तू पागल हो गया है क्या रितेश क्या अनाब शनाब बक रहा है....तूझे पता है हम वहां क्यूं गये थे.....पैसो के लीये गये थे। तूझे सुखी रोटी अच्छी नही लगती ना....तो तेरी मां और मै ठाकुर के चुनाव प्रचार में गये थे हज़ार रुपये मील रहे थे....वो अपने लीये नही गयी थी तेरे लीये गयी थी ताकी तूझे कुछ अच्छा खीला सके.....और एक तू है की अपनी देवी जैसी मां पर ही शक कर रहा है थू।

संगीता की बात सुनकर कजरी रोने लगती है। संगीता कजरी को संभालने लगती है.....और उसे गले से लगा कर बोली।

संगीता-- तू क्यूं रो रही है.....तूने तो अपने मां होने का फर्ज बखुबी नीभाई है....लेकीन ये अपने बेटे होने का फर्ज आज तक नही नीभाया......पुरा गांव इसे नालायक बोलता है......और तूझे एक बात बताती हूं कजरी जो मैने तूझे नही बताया था।

कजरी-- कैसी बात?
संगीता-- ये सच में नालायक है.....मेरी बेटी स्कूल से आती है तो....ये अपने आवारा दोस्तो के साथ उसे छेड़ता है....कल मेरी बेटी आकर मुझे बताने लगी और रोने भी लगी.......।

कजरी को फीर से गुस्सा आया और वो रितेश को मारने के लीए जैसे ही उठी संगीता ने उसे फीर से पकड़ लीया.....

कजरी-- ये इकदम हरामी हो गया है.....अब लड़कीया भी छेड़ने लगा नालायक।

बहुत देर से सुन रहा रितेश ने गुस्से में बोला।

रितेश-- छेड़ता नही उसको पसंद है वो मुझे प्यार करता हू मैं उससे।

संगीता-- ओ.....हो बड़ा प्यार करता है। खीलायेगा क्या उसको काम धंधा तो कुछ करता नही तूझे तो खुद तेरी मां पाल रही है.....अरे तुझ जैसे नालायक को तो कोइ अपनी लगंड़ी लड़की भी ना दे....... मैं मेरी बेटी भला क्यूं दूगीं?

रितेश को अब इतना गुस्सा आया की॥

रितेश-- हां तो ठीक है तू जा और अपनी बेटी की शादी उस ठाकुर के छोकरो से कर दे।

संगीता-- हां तो कर दूंगी वो खुश तो रहेगी वहां यहां करुगीं तो तील तील कर मर जायेगी।

रितेश खड़ा ये सब बाते सुन कर उसे अपनी बेइज्जती महेसुस होने लगी तो वो घर से बाहर लड़खड़ाते हुए नीकलने लगा तो उसे उसकी मां कजरी और संगीता दोनो ने पकड़ लीया।

कजरी-- कहां जा रहा है तू?
रितेश(अपने आप को छुड़ाते हुए)-- कहीं भी जाऊं तूझे उससे क्या ? मैं यहा अपनी बेइज्जती कराने आया हूं क्या.....और तूझसे नही बोला गया तो इसे लेकर आयी है मेरी बेइज्जती करने।

रितेश की आंखो में आशुं आ गये थे.....जिसे देख कजरी और संगीता दोनो घबरा गये उन्होने ने तो ये बात सीर्फ उसे सुधरने के लिये बोला था.....लेकीन ये बात रितेश को लग सी गयी।

रितेश ने अपना हाथ झटका और वो नाजुक सी दोनो औरते इधर उधर गीर गयी......और रितेश अपना आंशु पोछता लड़खड़ाते हुए तेजी से बाहर नीकल गया......और कजरी , संगीता उसे देखती रहती है।



कहानी शुरु कर दी है दोस्तो अपनी राय जरुर बतायें की कहानी में और क्या नया हो सकता है.......आगे आने वाले अपडेट आप सब के लम्बू का चप्पू देर तक जरुर चलायेगा ये वादा रहा......

धन्यवाद
bemishaal update dost.
 

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
52,928
173
रात को रितेश गांव के बाहर पुलीया पर बैठा था। आंखो में आशुं लीये यही सोच रहा था की.....यार मैने गलत कर दीया अपनी ही मां के बारे मैं बुरा भला कह दीया......जाकर माफी मांग लूगां॥

और यही सोचते सोचते वह उस पुलीया पर लेट गया.......और उसे पता नही कब नींद आ गयी पता ही नही चला॥

घर में संगीता और कजरी दोनो फीर से परेशान होने लगीं क्यूकीं बहुत ज्यादा रात हो चुकी थी......

कजरी -- सब मेरी गलती थी......गलती मैने की और थप्पड़ भी मार दीया। अगर नही जाती ठाकुर के चुनाव प्रचार में तो कुछ नही होता....ना जाने कहां होगा?

संगीता-- अरे होगा कहीं अपने दोस्त के घर आ जायेगा सुबह चल तू सो जा..।

कजरी-- नही संगीता मुझे नींद नही आ रही है...तू सो जा। और वैसे भी ओ सुबह से कुछ खाया पीया नही है.....।

कजरी और संगीता दोनो कुछ रात तक ऐसै ही बात करते रहे फीर उन लोग को भी नीदं आ गयी और नींद की आगोश में चले गये।

सुबह के करीब 5 बजे थे जब रितेश की नीदं खुली.....

रितेश-- अरे यार.....मैं यहां कैसे सो गया....अच्छा हुआ कीसी ने देखा नही ॥ चल बेटा जल्दी घर नीकल ले
और रितेश फीर घर की तरफ नीकल पड़ा....

घर पहुचां तो देखा उसकी मां बकरीयों को चारा डाल रही थी....संगीता अपने घर नीकल चुकी थी।

कजरी ने जैसे ही रितेश को देखा दौड़ कर उसे गले लगा लीया....। और रोने लगती है.....

कजरी-- मेरी बातो का इतना बुरा मान गया की रात भर घर से बाहर चला गया.....मेरा थोड़ा भी खयाल नही आया।

कजरी के इस तरह रोने और बात करने से रितेश के भी आंखो में आशुं आ गया....

कजरी-- हां मुझे पता है....की मैं तुझे तेरे पंसद का खाना नही खीला पाती, लेकीन क्या करुं औरत हूं ना...

कजरी अभी बोल ही रही थी की...रितेश ने कजरी को और कस के अपनी बांहो में समेट लीया......कजरी को भी अपने बेटे पर ईतना प्यार आया की वो भी रितेश से कसकर चीपक गयी।

मां बेटे का ये प्यार करीब पांच से दस मीनट तक एक दुसरे को चीपकाये रखा....उसके बाद रितेश ने अपनी मां को अलग कीया और बोला....

रितेश-- मां अब तूझे परेशान होने की जरुरत नही हैं॥ अब से सारी जीम्मेदारी मेरी।

कजरी ये सुनते ही उसके चेहरे पर लालीमा बीखर गयी......

कजरी-- कल से कुछ खाया नही है तू.....कुछ खा ले।

रितेश-- खाइ तो तू भी नही है....खाना ला दोनो साथ में खाते है।

कजरी-- नही बेटा तू खा ले.....मैं बकरीयो को चारा डालने के बाद खा लूगीं॥

रितेश-- अरे....मां मेरे होते अब तूझे काम करने की जरुरत नही है.....मैं डाल देता हू चारा।

आज कजरी को ऐसा लग रहा था......जैसे उसकी कमजोर बांहो को मजबुत कंधे का सहारा मील गया हो.....।



ठाकुर परम सींह अपने बैठक में अपने दोस्त के साथ बैठा था......तभी उसके घर की नौकरानी चम्पा हाथ में चाय ले कर आयी।

चम्पा गांव की ही औरत थी जो करीब करीब दो दीन पहले ही ठाकुर के घर में काम पर लगी थी.....उसका पती दीना जो की ठाकुर के खेतो में और घर के बाहर के काम काज को सम्भालता था.....उसी ने उसे ठाकुर के घर में काम पर रखा था....।

चम्पां मांसल बदन की सांवली औरत थी.....उसके बड़े बड़े गांड उसका सबसे बड़ा आकर्षक केद्रं था.....।

चम्पा चाय की थाली में से चाय का कप नीकाल कर ठाकुर और उसको दोस्तो को पकड़ा दीया...... और फीर अपनी बड़ी बड़ी गांड मटकाती वहां से चली गयी।

ठाकुर और उसके दोस्तो की नज़र चम्पा की गांड पर बराबर गड़ी थी.....।

अरे ठाकुर साहब .......अपके गांव की औरते तो कसम से कहर ठा रही है.....ये आपकी नौकरानी तो जबरजस्त माल है।

ठाकुर-- अरे सेठ जी......लगता है आपको पसंद आ गयी ये साली।

सेठ जी-- पसंद तो आ गयी.....ठाकुर साहब , लेकीन सीर्फ पसंद आने से ही क्या होता है वो चीज भी तो मीलनी चाहीए।

ठाकुर-- चीज तो आपको मील जायेगी सेठ जी.....लेकीन मुझे क्या मीलेगा?

सेठ जी-- वाह ठाकुर साहब कमजोरी का फायदा उठाना तो कोई आप से सीखे......बोलीए क्या चाहीए आपको।

ठाकुर-- इस बार मेरे गांजे से लदा हुआ ट्रक वीरहान पुर जा रहा है......लेकीन अपके छेत्र में पुलीस का कड़ा प्रशाशन होने की वजह से.......मेरा माल वहां तक पहुचं नही पा रहा है....तो अगर आप इसमें मेरी कुछ मदद कर सके तो।

सेठ-- ठाकुर साहब......इतने बड़े रीस्की काम का इनाम ये सीर्फ आपकी नौकरानी सौदा कुछ ठीक नही।

ठाकुर-- तो फीर सेठ जी आपकी कैसी सेवा कर सकता हूं॥

सेठ-- अगर आप को ये रीस्की काम को करवाना है तो.....आप अपने बेटे की शादी मेरे बेटी से कर दो......इस से हम रिश्तेदार भी बन जायेगे।

ठाकुर-- वाह सेठ जी....क्या बात कहा है आपने.....ये तो सच में खरा सौदा है।

सेठ-- हां लेकीन आपकी नौकरानी के जवानी का रस ?

ठाकुर-- सेठ जी वो तो मैं आपको आज चखा दूगां आप उसके बारे में चीतां मत करो।

ठाकुर और सेठ की बाते चम्पा छुप कर सुन रही थी.....ये बात सुन कर की सेठ उसे चोदने की फीराक में है चम्पा के चेहरे पर कातीलाना मुस्कान फैल जाती है......

ठाकुर वहां से उठ कर सीधा......चम्पा के पास ही आता है।

चम्पा जैसे ही ठाकुर को देखती है की वो उसके पास ही आ रहा है तो....वो दबे पावं पीछे की ओर चल देती है......और रसोई घर में चली जाती है।

चम्पा को रसोई घर में जाते ठाकुर ने देख लीया ......तो वो भी चम्पा के पीछे सीधा रसोई घर में आ जाता हो।

रसोई घर में चम्पा खड़ी थी......उसके करीब आ कर ठाकुर बोला-

ठाकुर-- तूने तो सब कुछ सुन ही लीया होगा चम्पा......अब मैं तेरी राय जानना चाहता हू। देख मना मत करना .....इसके बदले तू जो कहेगी मैं वो तूझे दूगां॥

चम्पा की तो मारे खुशी का ठीकाना न था.....चम्पा ने सोचा , यही सही मौका है.....पैसे ऐठने का...।

चम्पा-- ठाकुर साहब......ये गलत है। अगर कीसी को पता चला गया तो मै तो बदनाम हो जाउगीं और मेरा मरद तो जान से मार देगा.....।

ठाकुर-- अरे चम्पा कीसी को कुछ पता नही चलेगा....ये मै वादा करता हूं और रही बात तेरे मरद की तो वो मादरचोद को तो मैँ आज पुरी रात खेत के काम पर ही लगा रखुगां......बात ये है की तू मान जा बस।

चम्पा-- आपने तो सेठ जी से सौदा कर लीया....पर मुझे क्या मीलेगा?

चम्पा की ये बात सुनकर ठाकुर को यकीन हो गया की ये पैसे की बात कर रही है।

ठाकुर-- अरे चम्पा रानी....एक बार सेठ को खुश कर दे तू जो बोलेगी तूझे वो मीलेगा।

चम्पा-- आप उसकी चींता मत करो ठाकुर साहब सेठ जी की तो मै वो सेवा करुगीं की वो पागल हो जायेगें।

चम्पा की बात सुनकर ठाकुर खुश हो गया....उसने चम्पा को खीचकर अपनी बांहो में कस लीया.....।

ठाकुर-- अह.......चम्पा रानी सीर्फ सेठ को ही खुश करेगी ......मुझे नही।

चम्पा ने अपनी बाहें ठाकुर के गले में डाल दीया.....

चम्पा-- कहो तो अभी खुश कर दूं॥
चम्पा की बात सुनकर ठाकुर को जोश आ गया उसने चम्पा की बड़ी बड़ी चुचीयां मसलने लगा।

ठाकुर-- तेरा भोसड़ा तो मैं बाद में भी फाड़ दूगां लेकीन पहले तू सेठ से फड़वा ले।

चम्पा-- आह.....ठाकुर साहब थोड़ा धीरे मसलो.....दर्द होता है.....मेरा भोसड़ा तो....आ...ह सेठ जी पता नही फाड़ अ....ह....पायेगें की नही।

ठाकुर चम्पा की चुचीयों को और जोर से मसलने लगा....।

ठाकुर-- क्यूं क्या सेठ में दम नही दीख रहा तूझे।

चम्पा-- आह.....वो तो आज रात को पता चल ही जायेगा...इ...इ.....आह।

ठाकुर ने चम्पा की चुचींयो को छोड़ दीया....।

ठाकुर-- ठीक है चम्पा रानी आज रात को तैयार रहना.....और एक बार कस कर चम्पा की चुचीं को दबा देता है और फीर बाहर चला जाता है........।

sorry frnds update thoda chhota

diya .....but next time se update regular dunga.....thanks for you support and comments.
dhanshu update dost.
 

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
52,928
173
अपडेट--3




कजरी.......और रीतेश आज सुबह सुबह ही खाना खा लिये थ........हालाकीँ कजरी नही खा रही थी....लकीन रितेश ने जबरदस्ती खाना खीला दीया।

कजरी-- बेटा सुबह सुबह ही तूने खाना खीला दीया.....अभी तक तो मैं नहायी भी नही थी...।

रितेश-- तो क्या हुआ मा.....कल से कुछ खायी भी तो नही थी......॥

कजरी-- अच्छा जी....मेरे बेटे को कब से मेरी फीक्र होने लगी?

रितेश-- बस यूं ही।

कजरी और रितेश दोनो बाते कर ही रहे थे की ......उसकी पड़ोसन रज्जो आ गयी....।

रज्जो-- क्या बातें हो रही है मां बेटे में?
रज्जो की बात सुनकर , दोनो ने अपनी नज़र उठायी तो देखा , पास में रज्जो खड़ी थी.....॥

कजरी-- अरे , रज्जो कुछ नही बस ऐसे ही...। बैठ तू .....।

वैसे तो रज्जो हमेशा सज संवर कर ही रहती है.....लेकीन आज उसने एक हरे रंग की साड़ी पहन रखी थी.....जो उसकी भारी भरकम शरीर से चीपकी हुई थी.....जीसमे उसकी मोटी गांड का उभार साफ दीख रहा था.......ब्लाउज तो इतने कसे हुए थे की.....उसकी आधी से ज्यादा चुचींया ब्लाउज के बाहर ही उछल कूद कर रही थी..।

रज्जो के बैठते ही....रितेश की नज़र सीधा रज्जो की बाहर नीकली हुई चुचीयों पर पड़ी।

रज्जो-- आज नही चलेगी.....कजरी ठाकुर के प्रचार में?

कजरी-- नही रज्जो.....अब तो मैं कीसी प्रचार व्रचार में नही जाउगीं॥

रज्जो-- अच्छा.....तो रितेश बेटा तू क्यू नही चलता?
रितेश के उपर रज्जो के बात का कोई असर ही नही पड़ा.....उसकी नज़र तो....रज्जो की अधखुली चुचींयो पर थी....वो एकटक रज्जो की चुचीयों को नीहारे जा रहा था।

रज्जो के एक बार बुलाने पर जब रितेश को कोई फरक नही पड़ा तो....रज्जो और कजरी दोनो की नज़रे रितेश के नज़रो का पीछा कीया तो.....पाया की रितेश की नज़र तो रज्जो की चुचीयों पर टीकी थी।

ये देख रज्जो ने....रितेश को छिंछोड़ाते हुए बोली-

रज्जो-- कहां ध्यान है तेरा बेटा.....मै तूझसे बात कर रही हूं॥
इतना सुनते ही रितेश .....जैसे होश में आया।

रितेश-- क....क.....कहीं नही काकी। वो मैं कुछ सोच रहा था।

रज्जो ये सुनकर मुस्कुरा देती है......और अपनी चुचींयो पर से साड़ी का पल्लू थोड़ा और हटाते हुए बोली-

रज्जो-- अरे बेटा.....अभी तू बच्चा है....ज्यादा सोचा मत कीया कर.....है की नही कजरी?

कजरी-- हां.....सही कहा रज्जो ने।
कजरी(मन में)- - छीनाल.....एक तो अपनी चुचींया दीखा कर मेरे बेटे को भड़का रही है.....और उपर से कह रही है की ज्यादा सोचा मत कीया कर , छिनाल कही की इससे तो अपने बेटे को दूर रखना पड़ेगा नही तो ये छिनाल मेरे बेटे को बिगाड़ कर रख देगी......यही सोचते हुए.....

कजरी-- अरे.....बेटा, तूझे आज अजय के साथ प्रचार में नही जाना है क्या?

रितेश-- हां ......मां बस जा रहा हूं॥
और रितेश उठ कर खड़ा हो जाता है....।

रज्जो-- अरे बेटा रितेश मैं भी ठाकुर के यहां जा रही हूं तो तेरे साथ ही कुछ दूर तक चली चलती हूं॥

इतना सुनते ही.....रितेश की बाछें खील गयी.....उसने सोचा क्या बात है साली की चुचींया देखने का थोड़ा और मौका मील जायेगा।

रितेश-- हां.....काकी चलो ना।

और फीर रज्जो रितेश के साथ चल देती है॥

कजरी बैठे बैठे उन दोनो को जाते हुए देखती रहती है.....और रज्जो के उपर उसका गुस्सा चढ़ा चला जाता हे...।

कजरी(मन में)-- ये छिनाल कहीं मेरे बेटे को बिगाड़ ना दे....क्या करू कुछ समझ में नही आ रहा है.....कैसे दुर रखु अपने बेटे को इस छिनाल से......यही सोचते हुए कजरी उठ कर घर के अँदर चली जाती है।


रास्ते में रितेश रज्जो की चुचींयो को कनखी से ताड़े जा रहा था....जीसका पता रज्जो को था।

रज्जो(मन में)-- अरे रज्जो......इससे अच्छा मौका नही मीलेगा .....रितेश के मोटे और लम्बे लंड से अपने बुर की खुजली मीटवाने का......इस बेचारे को तो इतना भी नही पता है की इसने अपने पास कीतना दमदार हथीयार छुपा रखा है.......आह.....क्या बताउं जब से इसे घर के पिछवाड़े मुतते समय इसका लंड देखा है.....मेरी बुर तो फड़क रही है.....साले का क्या लंड है.....मेरी बुर का भी कचुम्बर बना दे....ऐसा लंड है इसका।

रितेश लगातार रज्जो की चुचीयों पर अपनी नज़र जमाये था.....ये देख रज्जो ने बोला-

रज्जो-- बेटा रितश क्या देख रहा है?
ये सुनकर रितेश थोड़ा घबरा गया....और हकलाते हुए बोला।

रितेश-- क.....कुछ नही काकी।

रज्जो-- देख झूठ मत बोल.....मैं जानती हू तू कब से क्या देख रहा है.....लेकीन तू सच सच बता की क्या देख रहा था?

रज्जो की इस बात से तो रितेश की गांड ही फट गयी.....उसने सोचा की कही साली ने मुझे इसकी चुचींया देखते हुए तो नही देख ली।

रज्जो-- क्या सोचने लगा......बता ना की क्या देख रहा था?

रितेश(हकलाते हुए)-- सच कह रहा हूं काकी....कुछ नही देख रहा था।

रज्जो-- अच्छा.....चल ठीक है....लेकीन तूझे एक बात बता दू....की कुछ चीजें देखने के लीये नही होती।

रितेश-- मैं कुछ समझा......नही काकी।
रज्जो-- धिरे.....धिरे सब समझ जायेगा बेटा....की कुछ चीजे देखने के लीये नही होती(कहकर रज्जो ने अपनी एक चुचीं खो हल्के से दबा देती है)

रज्जो के ऐसा करते देख.....रितेश की हालत खराब हो जाती है.....उसके लंड में खुन का प्रवाह होने लगता है......और फीर धीरे धिरे उसका लंड खड़ा होने लगता हे।

रज्जो की नज़र अचानक ही रितेश क पैटं पर पड़ा जो अब तक उभार ले चुका था.....जीसै देख रज्जो ये समझ गयी थी की ये रितेश का घोड़े जैसा लंड ही है.....रज्जो के कल्पना मात्र से ही उसके बुर में झनझनाहट होने लगती है.....।

गांव के कच्चे सड़क पर चल रहे रज्जो और रितेश दोनो ही अपने अपने हथीयार को समझा कर चल रहे थे......की तभी कुछ दुर आगे......एक कुत्ता एक कुतीया के उपर चढ़ कर चुदाई कर रहा था.....जिस पर उन दोनो की नज़र पड़ जाती है।

उन दोनो की गरमी बढ़ाने के लीये......ये नज़ारा कीसी आग में पड़ रहे घी की तरह था.....।

कुतीया......मुह फाड़ कर चील्ला रही थी.....और कुत्ता जोर जोर से.....उस कुतीया को चोदे जा रहा था.....।

वो दोनो जैसे ही पास में पहुंचते हे.....कुत्ता और कुतीया भाग खड़े होते है....।

रितेश तो चुप था......लेकीन रज्जो से रहा नही जा रहा था....।

रज्जो-- ये आज कल कुत्ते भी ना.....कही भी चालू हो जाते है।

रितश-- हां काकी.....थोड़ा भी दीमाग नही है इन कुत्तो को.....॥

रज्जो-- हां ......अब देख ना की कुतीया मुह फाड़ फाड़ कर चील्ला रही थी लेकीन.....कुत्ता साला जबरजस्ती कीये जा रहा था....।

रज्जो के मुहं से ऐसी बाते सुनकर रितेश का.....लंड उफान पर पहुच गया.....उसका पैट तो मानो जैसे फट जायेगा उसके लंड के तनाव से......रज्जो ने देखा की रितेश का लंड झटके मार रहा है.....तो छिनाल रज्जो ने अपना चाल चलते हुए कहा-

रज्जो-- अरे......बेटा रितेश क्या हुआ तूझे?
रितेश-- कहां क्या हुआ काकी?

रज्जो-- इशारा करते हुए .....ये तेरे नुन्नी को क्या हुआ.....पैटं में झटके मार रहा है।

रितेश की तो सिट्टी पिट्टी गुल हो.....गयी क्यूकीं उसे थोड़ा भी अदांजा नही था की, रज्जो काकी ऐसी बाते कह देगी.....रितेश तो इकदम शरमा गया.....वो समझ नही पा रहा था की क्या बोले।

रज्जो-- अरे क्या हुआ बेटा.....शरमा क्यूं रहा है.....पेशाब लगी है क्या? जो ये तेरा नुन्नी झटके मार रहा है।

रितेश-- ह......हां काकी.....मुझे पेशाब ही लगी है।

रज्जो-- तो कर ले ना, इसमे शरमाने वाली कौन सी बात है....।

रितेश(मन में)-- अरे.....रंडी साली तेरे मुह में पेशाब करने का मन कर रहा है....।

रज्जो-- अरे अब क्या सोचने लगा.....जगह पसंद नही आयी क्या? की अपनी काकी के मुह में मुतेगा।

रितेश तो ये सुनकर दंग रह गया.....ये तो वो बात हो गयी की जैसे उसके मन की बात रज्जो ने सुन ली हो......रितेश ने सोचा की ये साली तो पुरी चुदासी है.....और इतना खुल कर बात कर रही है......तो मैं क्यूं शरमा रहा हूं॥

रितेश-- काकी मन तो मेरा भी है.....की मैं तेरे मुह में ही मुतु ......लेकीन तू थोड़ी ही मेरा मुत पीयेगी......।

ये.......बात सुनकर तो रज्जो पहले तो दंग रह गयी लेकीन फीर उसके दुसर छंड़ ही उसके चेहरे पर एक कातीलाना मुस्कान भी फैली...।

रज्जो-- हे.....भगवान तू.....मेरे मुह में मुतेगा। कीतना गंदा है रे तू......ऐसा सोचता है तू मेरे बारे मे......चल आज तो मैं तेरे मां से मीलुगीं॥

रितेश की सीट्टी पिट्टी गुल......रज्जो की बात उसके होश उड़ा दीये थे.....।

रितेश-- नही.....काकी गलती से.....नीकल गया.....तूने मुह में मुतने की बात की तो मेरे भी मुहं से नीकल गया......माफ़ कर दे काकी मां से कुछ मत कहना(रितेश एक हद तक गीड़गीड़ा कर बोला)

रितेश की हवा टाइट होते देख.....रज्जो की तो बांछे खील गयी.....उसने थोड़ा बनावटी गुस्से में बोली।

रज्जो-- तो क्या....अगर मैं बोलूगीं की मुझे चोद तो तू मुझे चोद देगा....आं.....बोल।

अब तो रितेश और ज्यादा घबरा गया.....उसके पास कोई जवाब ही न था....तो चुपचाप खड़ा रहा।

रज्जो-- खड़ा.....क्यूं हैं बोल.....चोदेगा मुझे तू......अगर मैं बोलूगीं तो.....हा.....बोलता क्यूं नही.....तू अपना मुसल घोड़े जैसा लंड मेरी बुर में डालकर चोदेगा.....बोल।

रितेश तो हक्का बक्का रह गया.....रज्जो के मुह से ऐसी बाते सुनकर।

रितेश-- नही काकी.....गलती हो गयी माफ़ कर दे.....।

रज्जो-- नही....कुछ गलती नही....अब तो तूझे सज़ा मीलेगी ही.....अगर तू चाहता है...की ये बात तेरी मां तक ना पहुचें तो आज.....रात को चुपके से मेरे घर में आ जाना। तूझे तेरी सज़ा वही सुनाउगीं......समझा।

रितेश बेचारा मरता क्या ना करता.....उसे रज्जो की बात माननी पड़ी.....और हां में सर हीला कर.....अजय के घर की तरफ़ चल दीया......और रज्जो ठाकुर की तरफ।



कहानी जारी रहेगा दोस्तो.......अपना सुझाव और कहानी को पसंद करने के लीये.....थैक्सं दोस्तो......कल मीलते है अगले अपडेट के साथ
sunder update hai dost.
 

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
52,928
173
अपडेट---4






रितेश अजय के घर पहुचता है......जंहा अजय पहले से ही चुनाव प्रचार की तैयारी में था।

अजय-- अरे भाई इतनी देरी से आ रहा है.....।

रितेश-- अरे.....हाँ यार खल थोड़ा देर से सोया था तो नीद नही खुली...॥

अजय-- चल कोइ बात नही......वैसे आज तुझे चुनाव प्रचार करने में बहुत मज़ा आयेगा!

रितेश-- वो क्यूं बे?
अजय-- अरे भाई क्यूकीं आज तेरी जान आई है....मेरी बहन के साथ चुनाव प्रचार करने में॥

ये सुनकर एक समय के लीये रितेश के चेहरे पर चमक आ जाती है....जो साफ साफ अजय देख सकता था....लेकीन कुछ पल बाद ही उसका चेहरा उतर जाता है.....।

अजय-- क्या हुआ बे....तेरा चेहरा उतर क्यूं गया? तूझे खुशी नही हुइ क्या?

रितेश-- अरे काहे की खुशी बे......वो मुझे पसंद ही नही करती......मेरी शिकायत अपने मां से करती है की मै उसे छेड़ता हूं।

अजय-- चल ठीक है.....यारा छोड़ जाने दे। ऐसी लड़कीयां प्यार को नही समझती.....सुना है.....आंचल के पीछे ठाकुर का छोटा बेटा लगा है.....स्कूल में दोनो की बहुत पटती है....।

रितेश-- तू सही कह रहा है.....मेरे जीवन का कालचक्र ये ठाकुर का ही परीवार है......एक तो ये ठाकुर मेरी मां के पीछे लगा है.....और ये दुसरा उसका बेटा मेरी जान के पीछे......कुछ समझ ही नही आता की क्या करुं?

अजय -- यार सही कह रहा है तू.....जब कोई अपनी मां को गदीं नीगाह से देखता है ना तो खून खौल जाता है.....।

रितेश-- हां सही कहा तूने.....और हद तो तब हो जाती है जब वही मां हंस हंस कर उन लोगो से बात करने लगती है.....।

अजय-- एक बात बोलू भाई?
रितेश-- हां बोल ना।
अजय-- ये जो मां है ना......भाई ये भी औरत ही है.....भगवान ने इनको भी भोसड़ा दीया है.....तो लंड तो चाहीए ही ना।

रितेश-- तो इसका मतलब कीसी का भी लंड ले लेंगी ये लोग।

अजय-- सही कहा यारा......कभी कभी तो मन करता है की मै ही चोद दू और जीतना लंड चाहीए उतना अंदर डाल कर इनका भोसड़ा फाड़ दूं।

ये सुनकर रितेश हंसने लगता है और बोला--

रितेश-- अरे तो तू अपनी मां चोदेगा?
अजय-- हां तो क्या करुं ? दुसरे से चुदवायेगीं तो इससे अच्छा हमसे ही चुदवाले ना....। साला घर की बात घर में.
....और मज़ा अलग से...।

रितेश-- अरे भोसड़ी के 5 इचं का लंड लेकर तू अपनी मां के भोसड़े में क्या गदर मचायेगा?

अजय-- तो भोसड़ी के तू चोद ना.....तेरे पास तो घोड़े का है ना......कसम से तेरे जैसा लंड मेरे पास होता ना तो अपनी मां कब का चोद देता।

रितेश.......ये सुनकर सोच में पड़ गया की यार अजय के बात में तो दम है......साला ठाकुर पिछे पड़ा है......कही साले ने कुछ इधर उधर की पट्टी पढ़ा कर मां को फंसा लीया तो गड़बड़ हो जायेगा.....कहीं मुह दीखाने लायक नही रहूंगा......लेकीन क्या मां के साथ ये सब करना......मां क्या सोचेगी......वो तो जान से मार देगी मुझे।

रितेश यही सब सोच रहा था की तभी अजय ने उसे झींझोड़ा....।

अजय-- क्या सोचने लग गया बे?
रितेश-- क......कुछ तो नही। चल......प्रचार करते है।

और रितेश जाने ही वाला था की अजय ने कहा--

अजय-- भाई तू जो सोच रहा था ना एक बार कर के देख.....कसम से उससे ज्यादा मज़ा जींदगी में और कुछ नही।

ये सुनकर रितेश थोड़ा मुस्कुराया और बोला@

रितेश-- भाई अगर कही गड़बड़ हो गया तो उससे बड़ा तकलीफ भी जींदगी में कही नही...।

ये सुनकर अजय भी हंस पड़ा......दोनो हंस ही रहे थे की तभी अजय के घर के अँदर से उसकी बहन निलम के साथ आंचल बाहर नीकली.....

दोनो को हंसता देख आंचल ने नीलम से कहा-

आंचल-- नीलम तूझे एक बात बता दूं की तू अपने भाई को इस लोफड़ से दूर रखा कर नही तो वो भी बर्बाद हो जायेगा।

नीलम-- मुझे तू एक बात बता ? आखीर तू रितेश से इतना जलती क्यूं है?

आंचल-- तो इसमें पसंद करने जैसा है ही क्या? दीन भर आवारा गरदी करता है.....बेचारी काकी इधर उधर से हाथं पैर मार के पैसा लाती है तो इसको खीलाती है....ईसको जब अपनी मां की नही पड़ी है तो मेरा क्या खयाल रखेगा?

आंचल की बात सुनकर नीलम हंसने लगी....नीलम को हंसता देख आंचल न कहा-

आंचल-- तू हंस क्यू रही है?
निलम-- हंस इसलीये रही हूँ की तेरे ख्याल रखने वाली तो मैने की नही.....तू ही बोल रही है की....वो मेरा खयाल क्या रखेगा? इसका मतलब वो तूझे पंसद है सीर्फ वो कुछ काम धाम नही करता इसलीये तू उसपे गुस्सा होती है.....!

निलम की बात सुनकर आंचल शरम से लाल हो जाती है....जो नीलम अच्छी तरह से देख सकती थी।

निलम-- ओ....हो शरमा क्यूं रही हो.....प्यार करती है की नही....अगर नही करती तो बोल दे मैं अपना जुगाड़ लगा लूं........।

आंचल-- मुंह तोड़ दूंगी तेरे....जो उसकी तरफ देखा भी तो।

निलम-- ओ हो....बड़ा प्यार आ रहा है....।
हां तो आ रहा है तो तूझे क्या चल चुनाव प्रचार करने.....।

और फीर सब लोग.....चुनाव प्रचार मेँ चल देते है॥


दोपहर का समय था......कजरी घर पर थी....पेड़ के छांव में अपनी बकरीया बांध कर उसे चारा डाल रही थी.....की तभी उसके घर पर एक गाड़ी आकर रुकती है....कजरी गाड़ी को देख कर बकरीयो को चारा डाल छोड़ खड़ी हो जाती है....।

गाड़ी में से ठाकुर बाहर नीकलता है.....जीसे देख कजरी हील जाती है.....उसने सोचा की ठाकुर क्यूं आया है उसके घर?

ठाकुर मुनीम के साथ सीधा कजरी के पास आता है.....।

ठाकुर-- अरे......कजरी कैसी हो तूम?
कजरी-- ठ.....ठीक हूं ठाकुर साहब.....बोलीये कैसे आना हुआ?

ठाकुर-- अगर कुछ काम होगा तो ही आ सकता हूं क्या?

कजरी-- न....नही ठाकुर साहब मेरे कहने का मतलब ये नही था....।

ठाकुर-- अच्छा ठीक है.....मैं तो ये पुछने आया था.....की आज तुम चुनाव प्रचार में क्यूं नही आयी?

कजरी-- वो.....वो ठाकुर साहब.....घर पर इतना काम है की.....मैं आ नही पाती...।

ठाकुर-- अरे......घर का काम तो रोज ही रहता है.....लेकीन मेरा चुनाव प्रचार तो कुछ ही दीनो का है.....मुझे तो लगता है की तुम जानबुछ कर नही आती....।

कजरी-- नही.....ठाकुर साहब ऐसी कोई बात नही है......दरशल बात ये है की....मेरे बेटे को अच्छा नही लगता की मैं गांव में घुमु। तो इसीलीये मैं नही आती....।

ठाकुर-- ये तो बिल्कुल सही बात है कजरी....की कीसी का भी बेटा ऐसा नही चाहता की उसकी मां पुरे गांव में घुमे.....खास कर वो बेटा जीसका बाप ना हो...। कोई बात नही कजरी अगर तुम्हारे बेटे को अच्छा नही लगता तो मुझे तुम्हारे उपर जोर जबरदस्ती करके कुछ मतलब नही है.....ठीक है तो फीर मैं चलता हूं.....।

ठाकुर जाने के लीये जैसे ही मुड़ा.....की अचानक रुक कर बोला-

ठाकुर-- अच्छा.....तुम्हारा वोट तो मीलेगा ना.....की वोट भी बेटे के मन से डालोगी?

कजरी-- वो...वो.....मै.....तो।
ठाकुर-- कोई बात नही जंहा मन हो वहीं डालना.....लेकीन फीर भी एक बार हाथ जोड़ कर विनती करुगां की वोट खाट के चुनाव चिन्ह पर डालना.....और बोलकर ठाकुर मुनीम के साथ गाड़ी में बैठकर चल देता है......।

कजरी वही खड़ी ठाकुर को देखती रहती है......उसे समझ में नही आ रहा था.....क्यूकीं जीस तरीके से ठाकुर ने आज बात की थी....कही ना कही कजरी को ठाकुर के बारे में सोचने पर मजबुर कर दीया था.....।

कजरी(मन में)-- आज ठाकुर साहब कीतने अच्छे से बात कर रहे थे......क्या सच में ठाकुर साहब ऐसे ही है.....या फीर कुछ और.....।


और इधर ठाकुर के साथ गाड़ी में मुनीम बैठा था.....और गाड़ी हवेली की तरफ बढ़ रही थी....।

ठाकुर-- मुनीम.....क्या लगता है तूझे.....तेरा तरकीब काम करेगा?

मुनीम-- 100 प्रतिशत ठाकुर साहब.....बस मैं जैसा कह रहा हूं बस आप वैसा करते जाइये.......याद है आपको जब कजरी के...।

ठाकुर-- खामोश मुनीम! वो बात अगर कभी दुबारा तेरी जुबां पर आया तो.....हलक से जुबान खींच लूगा....मुझे तेरी तरकीब पर भरोसा है....।

मुनीम-- गलती माफ हो ठाकुर साहब......लेकीन कजरी के जवानी का रस आपको लूटना है.....तो उसके बेटे का कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा...।

ठाकुर-- अब तू ही कोई तरकीब लगा मुनीम की उसका क्या करना है....।

और फीर गाड़ी तेज रफ्तार के साथ हवेली में दाखील हो जाती है........


दीन भर चुनाव प्रचार करके आंचल अपने घर आ चुकी थी.....वो आज थोड़ा परेशान लग रही थी.....वो सीधा चुपचाप अपने कमरे में चली गयी.....यहां तक की बाहर उसकी मां संगीता बैठी थी....उसे भी बीना कुछ बोले वो अंदर चली गयी..।

ये देख संगीता भी हैरान रह गयी की इसको क्या हो गया बीना कुछ बोले ही अंदर चली गयी...।
तो संगीता भी उठ कर आंचल के कमरे में चली आती है.....।

आंचल खाट पर लेटी .....अपना चेहरा तकीये में घुसा कर रो रही थी....।

संगीता-- आंचल.....क्या हुआ बेटी क्यूं रो रही है...।
आंचल वैसे ही पड़ी रो रही थी......और बोली-

आंचल-- कुछ नही मां तू जा...।

संगीता आंचल के सिरहाने बैठ जाती है और प्यार से उसकै सर पर हाथ फीराती हुई बोली-

संगीता-- रितेश ने फीर छेड़ां क्या तूझे.....तू बोल मैं उसकी खबर लेती हूं.....छेंड़ा क्या उसने तूझ?

आंचल रोते हुए खाट पर उठकर बैठते हुए बोली-

आंचल-- नही छेंड़ा मां ......इसी लीये तो रो रही हूं।

'आंचल की बात सुनकर संगीता दंग रही है.....उसने सोचा की ये लड़की क्या बोल रही हो।

संगीता-- तू क्या बोल रही है....मुझे कुछ समझ नही आ रहा है....।

आंचल(अपने आंशु पोछते)-- अ...आज मै.....नीलम के यहां चुनाव प्रचार में गयी थी.....पुरा दीन मेरे आजू बाजू ही था.....लेकीन एक बार भी मेरी तरफ नही देखा.....उसने....वो क्या सोचता है मां......की मै उसको नीचा दीखाती हूं तो क्या मैं उससे प्यार नही करती....।

आंचल की बातो ने तो संगीता के बदन में चीटीया दौड़ा दी.....वो सोचने लगी की ये कैसी लड़की है.....जीस लड़के की बुराईया करते थकती नही थी......आज उसी के लीये ये रो रही है वो भी इसलीये की उसने आज एक बार भी इसे देखा नही..।

संगीता-- तो तू रितेश को पंसद करती है?
आंचल-- पसंद.......मेरी तो दीन उसके खयालो से और रात उसके हसीं सपनो से कटती है.....मै उस पर चिल्लाती थी की ताकी वो अपनी जीम्मेदारीयो को समझे और घर परीवार के बारे में सोचे.....।

कसम से संगीता के लीये ये सब एक सपना सा लग रहा था.....क्यूकीं उसने आज तक आंचल के जुबान पर रितेश के लिये कड़वे शब्द छोड़ कुछ नही सुनी थी...।

वह यह जानती थी की रितेश ने आंचल को क्यूं नही देखा एक बार भी! क्यूकीं उस दीन उसने रितेश को इतना सुना जो दीया था.....।

संगीता ने ठहरे हुए लफ्जो में कहा-- कुछ नही मेरी बीटीया रानी अगर तुझे रितेश पंसद है तो तेरी शादी मैं उससे करा कर ही रहूंगी।

ये सुनते ही आंचल खुश हो जाती है....और अपनी माँ के सीने से लग जाती है.....॥

कुछ समय बाद संगीता.......कजरी के घर की तरफ नीकल देती है......कजरी घर पर बैठी थी.....और रितेश का इतंजार कर रही थी.....की तभी वहां संगीता पहुचं जाती है....।

संगीता(पहुचंते ही)-- क्या हो रहा है....कजरी मुझे तो कुछ समझ में ही नही आ रहा है।

कजरी-- मुझे भी कुछ समझ में नही आ रहा है....।

ये सुन संगीता बोली-- तेरे साथ क्या हुआ जो तुझे समझ में नही आ रहा है.....।

फीर कजरी ने आज की बात संगीता से बताई और संगीता ने आंचल की बात कजरी को बताई....॥

दोनो हैरान परेशान थे.....की तभी संगीता बोली-

संगीता-- देख कजरी कभी कभी सच्चाई वो नही जो हमे दीखता है.... मुझे तो लगता है.....ठाकुर साहब भी भले इंसान है......वो तो गांव वालो ने उनके बारे मे खीचड़ी कर रखी है...। हां ठाकुर की नज़र तेरे उपर है.....लेकीन वैसे देखा जाये तो खुबसुरत औरतो पर नज़र तो हर कीसी पर होती है.....तो इसका मतलब ये तो नही की वो इंसान ही बुरा है.....।

संगीता की बात सुनकर कजरी सोच मे पड़ गयी फीर बोली-

कजरी-- मुझे तो कुछ समझ में नही आ रहा है की खौन बुरा है और कौन भला!

संगीता-- तो ठीक है.....ये सारी चीजें हालात पर छोड़ दे....क्यूकीं हालात सबकी सच्चाई बाहर लाती है....।


इधर रितेश अजय के घर से सिधा अपने घर चला आ रहा था........और आज उसके भी मन में बहुत सारे खयाल उठ रहे थे......एक तो आज सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात ये थी की सुबह ही अजय ने उसके लंड मे जो आग लगाई थी की अपनी ही मां पटा के चोदो.....घर की बात घर मे और मज़े भी।
दुसरी ये की आज रात रज्जो पता नही उसके साथ क्या गुल खीलाने वाली है......और तीसरी ये की ठाकुर भी उसके मां के पिछे पड़ा है......और उसका बेटा उसके प्यार के।

इतने सारे सवालों से झुझता......रितेश के कदम उसके घर की तरफ बढ़ रहे थे......


सबसे पहले तो sorrrrrrry dosto ki itne dino se update nahi de paya.....thoda busy tha!

Dusra ye ki update dene ke chakkar me update chhota hi rah gaya.....aur tisra ye ki ritesh ke sare sawal ke jawab isi kahani me milenge.......to padhte rahiye......update kabhi kabhi late ho sakte hai....aur kabhi kabhi chhota hamesha nahi!

Thanks frnds.
fantastic update.
 

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
52,928
173
अपडेट--5





सवालो में उलझा रितेश के कदम घर की तरफ बढ़े चले आ रहे थे।

जल्द ही वो घर पहुंच गया......घर पर उसकी मां कजरी के साथ बैठी बाते कर रही थी......।

वो भी उन लोग के पास ही आकर खाट पर बैठ गया....।

कजरी-- अरे बेटा तू आ गया....बैठ तू मैं तेरे लिये पानी लाती हूं.....मुह हाथ धो ले फीर खाना खा ले....।

रितेश खाट पर बैठा अपनी मां को एक टक नीहारे जा रहा था.....आज वो अपनी मां को बहुत गौर से नीहार रहा था...... कजरी का खुबसुरत गोरा चेहरा जीस पर लालीमा बीखरी हुई थी......उसे ना जाने क्यूं आज बहुत मोहीत कर रहा था.....रितेश की नज़रे जब अपनी मां के होठो पर पड़ी तो न जाने क्यूं उसके दील की धड़कने तेज होने लगी....गुलाबी होठ कीसी रस से भरी हुई थी.....दोनो गाल कीसी फूल की पखुंड़ी की तरह खली थी.....रितेश के बड़ते हुए धड़कन ने उसे थोड़ा और नीचे देखने को उकसाया तो रितेश की नज़रे कज़री के सुराहीदार लम्बी गर्दनो पर आ कर टीकी.....रितेश तो जैसे अपनी मां की खुबसुरती में खो सा गया.....उसका मन कर रहा था की......अभी अपनी मां को बांहो में भर ले और उसे चुमता जाये.....लेकीन मन ही तो है कुछ भी करने लगता है....।
रितेश का दील थोड़ा और नीचे देखने को बेसब्र था.....लेकीन हीम्मत ही नही पड़ा।

रितेश को ईस तरह अपने आप को देखते हुए कजरी हैरान सी हो गयी और पास में बैठी संगीता का भी यही हाल था....।

क्यूकीं अब तक कजरी ने रितेश को दो चार बार आवाज़ लगा चुकी थी....। लेकीन रितेश तो जैसे कजरी की खुबसुरती में डुब सा गया था......उसे कुछ सुनाई नही दे रहा था।

'कजरी ने रितेश को झींझोड़ते हुए बोला'

कजरी-- बेटा.....बेटा.....क्या हुआ? कहा खो गया?
रितेश को जैसे होश आया और सपनो की दुनीया से बाहर आते ही-

रितेश-- ह.....हा.....मां।
कजरी-- क्या हुआ बेटा.....कहां खो गया?

रितेश अपने हाव भाव को ठीक करते हुए'
रितेश-- क.....कहीं नही मां.....बस चुनाव के बारे में सोच रहा था....।

कजरी-- चुनाव के बारे में......क्या?
रितेश-- बस यही की.....अजय का पापा चुनाव ठाकुर के विपच्छ खड़े हैं.....और ठाकुर के साथ गांव के कुछ ज्यादा ही लोग खड़े है.....।

कजरी-- बेटा......ठाकुर साहब बड़े आदमी है.....अगर जीतते भी है तो गांव की भलाई के बारे में ही सोचेगें.....।

रितेश-- तो तुम्हारे हीसाब से.....अगर अजय के पापा जीतेगें तो गांव के बारे में नही सोचेगें?

कजरी-- नही.....मेरे कहने का वो मतलब नही था.....अब तू ही बोल रहा है की गांव के ज्यादा तर लोग ठाकुर साहब के साथ है....तो , बात वही आती है की ठाकुर साहब ही जीतेगें......।

रितेश-- कुछ भी हो मां.....ठाकुर को तो मैं जीतने नही दूगां॥

कजरी-- भला वो कैसे?
रितेश-- इसके लिए मैने तरकीब बना ली है...।

कजरी-- कैसी तरकीब बेटा?
रितेश-- है एक तरकीब मां......जीसको मैं और अजय मीलकर अंजाम देगें॥

ये सुनकर कजरी थोड़ा घबरा जाती है.।
कजरी-- बेटा कोइ खतरे वाला काम मत करना की तू मुश्कील में पड़ जाये।

रितेश-- कोई खतरा वतरा नही है मां....तू चिंता मत कर।

कजरी-- अच्छा ठीक है.....मेरा राजा बेटा॥ अब चुनाव के दावपेंच छोड़ और मैं खाना लाती हूं तू खा ले...।

रितेश-- अरे....मां तू भी ना....शाम के 6 बज रहे है। अब सीधा रात को खाउगां.....।

तभी वहां बैठी संगीता बोली-
संगीता-- अरे.....बेटा खा ले। सुबह से कुछ खाया नही होगा भूख लगी होगी...।

रितेश संगीता की बात सुनता तो है लेकीन कुछ बोले बीना ही वंहा से उठ कर चला जाता है...।

संगीता बेचारी बहुत दुखी होती है....और रितेश को जाते हुए देखती रहती है।

रात का समय था.....कजरी रसोई में बैठी खाना बना रही थी.....और रितेश घर के बाहर खाट लगा कर उसपर लेटा था.....।

ठंढी हवायें चल रही थी.....रितेश के दील और दीमाग पर बस उसकी मां ही बैठी थी....वो अभी भी सीर्फ अपनी मां के बारे में ही सोच रहा था....और वो ये भी भूल गया था की आज रात उसे रज्जो ने बुलाया हो...।

रितेश(मन में)-- मां तूने तो मुझे उस चक्रब्यूह में डाल दीया है की मैं उससे बाहर ही नीकल पा रहा हूं.....तू इतनी खूबसुरत क्यूं है मां.....देख ना मैं कीतना बेचैन हो गया हूं......तू कहती है ना की मैं तेरे दील का टुकड़ा हू.....आज यही टुकड़ा तेरे दील से जुड़ने को बेकरार है....मां
*जीन होठो,और गालो को चुम कर मैं बड़ा हुआ मां.......आज उन्ही होठो को चुमने के लीये बेचैन हूं।
मैं कैसे बताउं की कीतना बेचैन हूं मां॥
तेरे ममता के आंचल में बंध चुर हू मां॥

अपने आप से ही बाते करता रहा.....लेकीन जब उसे अपनी खुबसुरत मां को देखने का मन कीया तो वो सीधा उठ कर अपनी मां के पास रसोई घर में जाकर खड़ा हो गया...।

कजरी-- अरे......बेटा, तू यहां क्या कर रहा है..इतनी गर्मी में?
रितश-- कुछ नही मां बस ना जाने क्यूं तूझे देखने का मन कीया तो चला आया।

रितेश की बात सुनकर कजरी , जो इस वक्त रोटीया बना रही थीं.....उसके हाथ रुक गये और नज़रे सीधा अपने बेटे पर डाली......रितेश की आंखो में बहुत सारा प्यार था......जो कजरी पहचान चुकी थी....लेकीन उसने ये नही पहचाना की

"कैसे बताऊं की कीतना बेचैन हूं मा, तेरे ममता के आंचल मे बंध चुर हूं मां"

कजरी को भी रितेश पे प्यार आया....।

कजरी-- आ.....इधर आ....मेरे पास बैठ।

ऐसा पहले कभी नही हुआ था......ना जाने कीतनी दफ़ा रितेश अपने मां के सीरहाने बैठा था.....लेकीन आज अपनी मां के बगल बैठ कर उसे ऐसा लग रहा था की वक्त यूं ही थम जायें......रितेश के दील की धड़कन तब तेज हो जाती है.....जब कजरी रितेश का सर पकड़ कर अपने सीने से लगा लेती है......।

रितेश की हालत तो ऐसी थी की क्या बताएं......गला सुखने लगा.....दील जोरों से धड़कने लगा.....।
क्यूकीं वो अपनी मां की बड़ी बड़ी और कसी चुचीयों पर अपना सर रखा था......और कजरी ने भी उसका सर इतनी जोर से अपने सीने से चीपकाया था की......उसकी चुचीया थोड़ी दब गयी थी.....और उसके लम्बे नुकीले नीप्पल रितेश के गालो पर एक आनंद की अनुभुती के साथ साथ सासों की गती भी बढ़ा रही थी........कजरी ने तो रितेश को ममता वश अपने सीने से लगा रखी थी.....लेकीन रितेश कहीं ना कहीं ममता की दीवार लांघ आनंदमयी दुनीया के सोच में प्रवेश कर चुका था।

कजरी-- क्या हुआ मेरे राजा बेटे को.....आज अपनी मां पर इतना प्यार....की मुझे देखने का मन कर दीया......मेरा तो जीवन धन्य हो गया।

रितेश अपनी तेज चल रही सासों को काबु करते हुए बोला--

रितेश-- क्यूं मां क्या एक बेटे को अपनी मां को देखने का दील नही करता क्या?

कजरी एक हाथ से रोटीया बनाती हुई और दुसरे हाथ से अपने बेटे को सीने से चीपकाये उसके बालो में अपनी उगलींया फीराती हुई बोली--

कजरी-- क्यूं नही होता बेटा.....अपनी मां को देखने का दील तो सबका करता है.....लेकीन जो अपनी मां से दूर होते है....उनका करता हैं......पर तू तो मेरे पास ही है....।

रितेश-- हां.....मां मै तो तेरे पास ही हूं.....सच कहूं तो आज से पहले ऐसा कभी नही हुआ.....पहले तो ऐसा लगता था की तू मेरे पास ही है......लेकीन आज पता नही क्यूं ऐसा लग रहा है की.....तू पास होते हुए भी मुझसे बहुत दूर है....ऐसा क्यूं हो रहा है मां.......।

एक पल के लीये तो कजरी का भी दीमाग झन्ना गया......की रितेश को क्या हो गया लेकीन फीर उसने कहा-

कजरी-- बेटा.......जरुर तूझे बचपन की याद आ गयी होगी.....जब तू छोटा था ना तब मैं कभी कभी तेरे नानी के घर जाती थी तूझे तेरे पापा के पास छोड़ कर......और जब मैं वापस आती थी तो तू मुझसे लीपट कर बहुत रोता था....।और मुझे एक पल के लीये भी नही छोड़ता था.....।

रितेश मन मे सोचा की हालत तो वही है.....मां , लेकीन तुझसे जिदंगी भर लीपट के रहु ऐसा दील कह रहा है...।

रितेश यही सोचते हुए गुमसुम अपनी मां के सीने से चीपका था.।

कजरी-- अच्छा..... चल अब खाना खा ले.....और हां एक बात बता देती हूं......की मैं तेरा साथ जीदंगी भर नही छोड़ने वाली.....और कहकर रितेश से लीपट जाती है....।
रितेश भी अपनी मां से लीपट जाता है...मन में ये कहते हुए की, हां मा लेकीन मेरा साथ अब तू मां बनकर नही बल्की मेरी पत्नी बनकर जींदगी गुजार.....।

रितेश के दील और दीमाग दोनो ये फैसला कर लीया था की......अब चाहे कुछ भी हो जाये.......इतनी खुबसुरत औरत को अपनी पत्नी बनाकर ही रहूगां.........।

रितेश फीर से सपनो की दुनीया में खो जाता है......की कीतना अजीब और अनोखा अहेसास होगा.....जब मां मेरी पत्नी बनेगी.....क्या मरी मां भी मेरी वैसी ही इज्जत करेगी....जैसी पत्नीया अपने पती की इज्जत करती है?....क्या मेरी मां भी सुहाग सेज पर मेरा उतनी ही बेसब्री से इतंजार करेगी जैसे पत्नीया अपने पती का इतंजार करती है?......और क्या मेरी मां भी मेरे बच्चे की मां बनेगी जैसे पत्नीया अपने पती के बच्चे की मां बनती है?
इन सवालो ने रितेश के लंड की लम्बाई सामान्य दीनो से ज्यादा आज बड़ा कर दी थी......लंड के नस नस फट रही थी.....पैटं में तंबू बन गया था......लेकीन चुस्त पैटं पहनने की वजह से तंबू खड़ा नही हो पाया..।

रितेश ने कीसी तरह अपने आप को समझाया और सपनो की दुनीया से बाहर नीकल कर असल जीदंगी मे आया......और सबसे पहले तो अपने लंड महाराज को शांत कीया....।

अब तक कजरी भी रितेश को अपनी आगोश से अलग कर के बोली-

कजरी-- चल.....मेरे राजा बेटा खाना खा ले.....सुबह से कुछ नही खाया है।

ना जाने क्यूं रितेश के चेहरे पर एक मुस्कान सी फैल गयी......जीसे कजरी ने देख लीया....।

कजरी-- अरे......क्या बात है मेरा राजा बेटा इतना मुस्कुरा क्यूं रहा है?

रितेश-- बस ऐसे ही मां.......अगर कोई नामुमकीन चीज मुमकीन हो जाये तो कैसा लगता है।

कजरी-- अगर .....नामुमकीन काम हो जाये तो वैसी खुशी बंया करना मुस्कील है...।

रितेश(मन में)-- तो वही बात है ना मा.....अगर तू मेरी पत्नी बन जायेगी तो .....खाना खाने के बुलाने का अंदाज तेरा कुछ इस तरह होगा (चलीये जी...खाना खा लीजीये....सुबह से आपने कुछ खाया नही है)...........आह.......कीतना अच्छा लगेगा....हे भगवान, मैं पागल ना हो जाऊं॥

कजरी-- अरे......बेटा क्या मन में सोच कर मुस्कुराये जा रहा है......मुझे भी बता की वो नामुमकीन काम है.....कौन सा?

रितेश-- आ.....ह, मां बस इतना समझ ले की तेरे बीना वो काम होगा नही।

कजरी-- म.......मेरे बीना।
रितेश-- हां.....मतलब की तेरे आशीर्वाद के बीना.....।

कजरी ये सुनकर हंसने लगती है ......हे भगवान ये लड़के की बात तो मेरे समझ से परे है......चल अच्छा खाना खा ले....।


फीर कजरी खाना नीकालती है.......खाना दोनो साथ में खाते है......और फीर दोनो अपने अपने बिस्तर पर चले जाते है.....।

रितेश की आंखो में निदं नही था......वो तो बस अपने मां के हसीन खयालो में खो चुका था......और ये भूल चुका था की.....उसका कोई इँतजार भी कर रहा है........।



हवेली के सबसे उपर के कमरे में बिजली जल रही थी......उस कमरे में ठाकुर का दोस्त सेठ जी......एक गद्देदार बीस्तर पर एक चड्ढी पहने बैठा था.....हाथ की उगंलीयो के बीच सीगरेट फंसी हुई थी....और सेठ मुह से धुवां उड़ा रहा था...।

सेठ-- अरे.....आ जा चम्पा रानी......अब क्या जान लेगी मादरचोद....।


जैसा की आप सब लोग जानते ही है......की चम्पा ठाकुर के घर की नौकरानी है......और ठाकुर ने अपने दो नम्बर का काम कराने के लीये चम्पा को सेठ से चुदने को तैयार कीया है.......।




first i would like to thanks to all my frnds for suporting. you likes and your comments. ........but

hamare kuchh dost hai jo bol rahe hai ki kahani.....incest hi rahe ki kajri thakur ke hath na lage......to kuchh frnds bol rahe hai ki kahani thoda audltary honi chahiye!

sach batau to aap sab log yaha tak ki mai sab log ki pasand hoti hai.....to kahani ko mai uss tarike se banane ki koshish karunga ki mere kisi bhi reader ko aisa nahi lagega ki yaar kahani to incest hi rah gai....ya kahani to adultary ban gai......jo bhi hoga......aap sab log ko may be bahut jyada pasand aayega.....itna mai koshish karunga!

apni ray zarur dete rahiyega aur kahani kaisi lag rahi hai zarur reply kare.......thanks to everyone.....take care
behtreen update dost.
 

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
52,928
173
aअपडेट----6




ठाकुर........मुनीम के साथ......बैठा दारु पीने में मस्त था......उसके बगल वाले कमरे में ही सेठ चम्पा का बेसब्री से इतंजार कर रहा था.....।

सेठ सीगरेट का कश लगाते हुए बीस्तर पर से उठा और कमरे की खीड़की खोल देता है.....चांद की रौशनी कमरे के अंदर प्रवेश करती है.....और साथ ही साथ चम्पा भी कमरे के अँदर प्रवेश करती है.....।

चम्पा तो आज इकदम सज धज के आयी थी.....लाल रंग की साड़ी पहने हुए चम्पा गजब ढ़ा रही थी......
सेठ की नज़रे चम्पा के बदन की नुमाईस करने लगी।
सेठ की नजरे चम्पा की मस्तानी गांड पर आ कर टीक जाती है......चम्पा की मदमस्त गांड साड़ी के अँदर ही गजब का उभार लीये तनी थी.....ये देख सेठ के सब्र का बांध टुट पड़ता है.....।

वो करीब करीब लपक कर चम्पा के करीब पहुंचता है.....और चम्पा को अपनी बांहो में भर लेता है......और साड़ी के उपर ही चम्पा की गांड को हथेलीयो में कस जोर जोर से दबाने लगता है......।

चम्पा-- आह.......सेठ जी.....धिरे दबाईये ना....।

सेठ-- चंपा की गांड और तेज दबाने लगता है......अरे जानेमन क्या बताऊं कसम से एकदम कसी गांड है तेरी.....।

चंपा-- हाय......राम......तभी तो कह रही.....हूं......आह धीरे दबाईय आ....ह कही दबाने पर ही सील ना टुट जाये....।

सेठ के लंड ने ये बात सुनकर कुछ ज्यादा ही उत्पाद माचाने लगा.

सेठ-- अरे मेरी चम्पा रानी . . . .इसका...मतलब की अभी तक तेरी गांड का सुराख नही खुला है.....।

चंपा-- हां सेठ जी.....आ....ह नही खुला है....और खुलवांउगीं भी नही....।

सेठ-- आह.....चंपा रानी......अपनी गांड का छेंद मुझे सौप दे....रानी .....कसम से मजा आ जायेगा...।

चंपा-- नही......सेठ जी.....मैं आप मर्दो को अच्छी तरह जानती हूं.....कोरी गांड अगर मर्द पा जाते है.....तो इतनी बुरी तरह मारते है.....की बेचारी औरतो की जान नीकल जाती है.....न.....बाबा.....ना, मैने अपनी गांड आज तक अपने मरद से भी नही मरवायी तो पराये मर्दो को भला गांड दे कर क्या फायदा?

चंपा की बात सुनकर.....सेठ को लगा की सच में ये अपनी गांड नही देगी लगता है....तो सेठ ने कहा-

सेठ-- देख चंपा......अपनी गांड तू मेरे हवाले करेगी तो.....तू जो बोलेगी मैं तूझे वो दूगां...।

सेठ की बात सुनकर चंपा के चेहरे पर एक अलग सी चमक आ गयी....लेकीन फीर भी नाटक करती हुई बोली-

चंपा-- हटो.....सेठ जी....सब यही बोलते है....लेकीन काम खत्म होने पर। सब मुकर जाते है.....मैं जानती हूं मर्द जात को...।

सेठ-- देख.....चंपा मैं झूठ नही बोल रहा हू.....मेरे पास बहुत पैसा है....रानी एक बार ये तेरी कोरी गांड दे दे तो मजा आ जायेगा....और कहते हुए सेठ चंपा का ब्लाउज हाथ से पकड़ फ़ाड़ देता है.....जीससे चंपा की चुचींया आजाद होते ही बाहर लटकने लगती है....।

चंपा-- हाय.....रे सेठ जी ईतने उतावले मत हो जाइये......मै कही भागी थोड़ी जा रही हूं॥

सेठ ने चंपा की चुचींयो को हथेली में लेकर मसलने लगता है......जीससे चंपा को मजा आने लगता है....।

चंपा-- आ.....ह.....सेठ जी.....इतनी उमर में भी आपका जवाब नही.....हाय.....बहुत मस्त मसल रहे हो.....आह मजा आ....र.....हा है।

सेठ चंपा की एक चुचीं को अपने मुह में भर लेता है.....और चुसने लगता है.....और एक हाथ से चंपा की चुचींया मसलने लगता है...।

सेठ-- उ.....म्ह.....म.....क्या मस्त चुचींया है तेरी चंपा......दबाने में बहुत मजा.....आ....रहा है....।

चंपा-- आ....ह सेठ.....जी, चुसते रही.....ये....मेरी.....चुचीया......आपके....लीये.....आ.......ही....है...।

सेठ ने चंपा की चुचीया.....चुस.....चुस कर लाल कर दीया.....चंपा भी अपनी मस्ती में मस्त अपनी चुचींया पकड़ कर कभी ये चुचीं तो कभी दुसरी सेठ के मुह में ठुंस देती.....और सेठ उसकी चुचींयो को मजे ले ले कर चुसता...।

सेठ ने उसकी चुचींया चुसने के बाद.....जा कर बीस्तरे पर लेट जाता है....।

मदमस्त हो चुकी चंपा......जीसकी ढ़गं से चुदाई आज तक उसका मरद भी नही कर पाया था.....या ये कहीए की चंपा आज तक चुदाई का पूरा सुख नही ले पाई थी.....आज उसे सेठ के लंड से बहुत उम्मीदे थी.....

'चंपा झट से अपनी साड़ी नीकाल फेकती है......सेठ की हालत तो अब और खराब हो जाती है......चंपा की मस्त बड़ी गांड जीसपर लाल रंग की चड्ढ़ी चढ़ी थी....जो देखने में काफी आकर्षक लग रही थी....।

चंपा की गांड देखते ही.....सेठ ने अपनी भी चड्ढ़ी नीकाल फैकीं॥
सेठ का लंड देखकर चंपा की मन की सारी इच्छाओ पर पानी फीर जाता है.....सेठ का लंड करीब करीब 4.5 इंच का पतला सुखी हुई कीसी पेड़ की टहनी की तरह ही खड़ा था....।

चंपा एकटक सेठ के लंड को देख कर अपनी कीस्मत को कोसती हुई मन मे बोली-

चंपा(मन में)-- ये भंडवा.....सुखे हुए लंड से चंपा की गांड मारेगा.....साला.....चल मुझे क्या चोदे चाहे चाटे.....मुझे तो पैसे से मतलब.....लेकीन काश इसका लंड मोटा तगड़ा होता तो मजा आ जाता....।

सेठ-- क्या हुआ.....चंपा रानी.....लंड देखकर कीस सोच में पड़ गयी.....कही गांड फड़वाने में डर तो नही लग रहा है....।

सेठ की बात पर चंपा अंदर ही अँदर हंस पड़ी और मन मे बोली-- अरे.....भड़वे.....तेरा सुखा लंड कही टुट ना जाये मेरी गांड की सुराख खोलने मे....।

चंपा-- ह.....हां सेठ जी......अपका लंड देखकर तो मुझे सच में डर लगने लग गया है.....की मेरी गांड का ना जाने क्या हालत करेगाः?

सेठ-- अरे.....चंपा रानी.....तेरी गांड तो मैं आराम......आराम से फाड़ुगां॥
चल आ......जा थोड़ा गीला तो कर दे....अपने मुंह में लेकर...।

चंपा.......बेचारी कीस्मत की मारी.....बीस्तरे पे आकर सेठ का लंड मुह में डालकर चुसने लगती है.....।

चंपा के लंड चुसने के अँदाज से सेठ.....इक दम मस्त हो जाता है......चंपा अपनी हाथ की दो तीन उंगलीयो से सेठ का लंड पकड़ कर जोर जोर से चुसने लगती.....है।

सेठ-- हाय.....रे चंपा रानी.....बहुत मस्त चुसती है रे......मज़ा आ......रहा है.....बोल ,तूझे क्या चाहीए?

चंपा-- उ.....म्ह.....हं.......आ.....सेठ जी.....मुझे जो भी चाहीए मैं आपसे बाद में मांग लूंगी.....अभी तो आप लंड चुसाई के मजे लो.....और चंपा एकबार फीर सेठ का लंड मुह घप्प करके भर लेती है....और जोर जोर से चुसने लगती है.....।

लंड चुस के अभी 1 मीनट भी नही हुआ होगा....।

सेठ-- आ.....ह चंपा....भोसड़ी.....छिनाल......लंड मत नीकालना......आ.....ह......चु.....स........मै.....गया......रे.......रं.....डीं तेरे.......मुह.......मे....।

और सेठ.......की सांसे.......तेज.......तेज चलने लगती.......है........उसका बदन पुरा अकड़ जाता......है.....उसने अपने......बदन को करीब करीब उपर उठाया और धड़ाम से नीचे गीर गया.......।

चंपा......अपने मुह में सेठ का पानी लीये.....अपनी मुंडी उपर उठाती है.....तो देखती है की सेठ नीढ़ाल हो कर बिस्तर पर गीरा था......उसने सेठ के लंड से नीकला पानी एक बार में ही गटक लेती है......और हांफते हुई बोली--

चंपा-- क्यूं सेठ......जी कैसा लगा....चंपा की लंड चुसाई.......।

लेकीन सेठ की तरफ से कोई भी प्रतीक्रीया......नही आती......।

चंपा-- अरे......सेठ जी......लगता है.....मेरी चुसाई से कुछ ज्यादा ही पानी छोड़ दीये हो आप......जो अभी तक......सुस्त पड़े हो......अगर इतनी जल्दी सुस्त हो जाओगे तो मेरी......गांड का क्या होगा?

चंपा के इतना बोलने पर भी जब सेठ के मुह से एक भी शब्द नही नीकला तो....चंपा ने सेठ को झींझोड़ना शुरु कीया......लेकीन सेठ वैसा का वैसा ही पड़ा रहा.....।

चंपा इकदम से डर गयी......उसे कुछ भी समझ में नही आ.....रहा था.....उसने फटाफट अपनी साड़ी पहनी.....और फटा हुआ ब्लाउज से अपनी कुछ चुचीयों को ढक कर कमरे से बाहर भागते हुए.........सिढ़ीयों पर से.....होते हुए.....ठाकुर के कमरे तक पहुचीं और ठाकुर के कमरे का दरवाजा धड़ाम से जोर देते हुए खोलती है.......।

दरवाजा शायद अँदर से बंद था.....लेकीन चंपा ने इतनी जोर से दरवाजे को ठेला था की दरवाजे की सीटकीनी टुट गयी......और अँदर का नजारा देख कर चंपा की तो हालत को सांप सुंघ गया.....।

उसने देखा की.......मुनीम बीस्तर पर नंगा लेटा था.....और मुनीम की औरत सन्नो मुनीम के मुह पर अपनी बुर रखी थी.....और मुनीम अपनी औरत के बुर को जीभ नीकाल कर कीसी कुत्ते की तरह चाट रहा था.......और ठाकुर पीछे से मुनीम की औरत के गांड मे अपना लंड घुसा कर जोर जोर से उसकी गांड मार रहा था.....।


चंपा को देख.....ठाकुर के साथ....साथ.....मुनीम और उसकी औरत सब बिस्तर पर से उठ खड़े होते है......सन्नो तो अपने कपड़े समेटती है.....और नंगी ही बाहर चली जाती है......।

ठाकुर अपना लंड खड़ा कीये हुए......खड़ा चंपा की हालत देख कर सकपका गया.....चंपा बहुत तेज हाफ रही थी.....उसके फट चुके ब्लाउज में से उसकी चुचींया उपर नीचे हो रही थी....।

ठाकुर और मुनीम को अपने हालत का अँदाजा भी न था की....वो दोनो नंगे खड़े है चंपा के सामने

ठाकुर-- क्या......हुआ चंपा तू इतनी घबरायी हुई क्यू है....? तू तो सेठ जी के साथ थी ना......?

चंपा की हालत तो एकदम खराब थी......उसके मुह से आवाज़ तक नही नीकल रही थी......

चंपा-- वो......वो....सेठ......जी...।
ठाकुर-- हां.....क्या हुआ......सेठ जी को?
चंपा-- पता.....नही....क्या हुआ....क....कुछ बोल नही रहे है।

चंपा की बात सुनकर ठाकुर......और मुनीम दोनो घबरा गये.....और फटाफट अपने कपड़े पहनते हुए......सेठ के कमरे की तरफ भागते है.....॥

ठाकुर जैसे ही सेठ के कमरे में पहुचता है.....सेठ एकदम नंगा बिस्तर पर पड़ा था.....सेठ के नाक से खून बहा था.....ये देख ठाकुर की हालत को लकवा मार गया...।

ठाकुर के साथ.....मुनीम.....और चंपा भी खड़े थे...।

ठाकुर(घबरा कर)-- ये.....ये क्या कीया चंपा?

चंपा-- म.....मैने क.....कुछ नही कीया ठाकुर....साहब.....ये तो अपने आप ही....।

ठाकुर-- चंपा देख सच सच बता की तूने क्या कीया?

चंपा-- मै सच कह रही हूं मालीक की मैने कुछ नही कीया....भला ईन्हे मार कर मुझे क्या मीलने वाला?

ठाकुर भी सोचा की सही है....भला ये क्यूं मारेगी....।

ठाकुर और मुनीम ने सेठ को कपड़ा पहनाया और फीर ठाकुर मुनीम से बोला-

ठाकुर-- मुनीम.....दरोगा को फ़ोन लगा....वो सब संभाल लेगा।

मुनीम-- जी.....मालीक!
और फीर मुनीम....दरोगा को फ़ोन लगा के ईस दुर्घटना के बारे में बताता है...।

मुनीम-- ठाकुर साहब दरोगा नही था...कोई हवलदार था...वो दरोगा को लेकर आता ही होगा.....।

ठाकुर-- अच्छा ठीक है.....सेठ को उठा और नीचे लेकर चल....।

उसके बाद मुनीम.....और ठाकुर सेठ को उठा कर नीचे बाहर ले कर आते है....।

हवेली के सदस्य भी भनक लगते ही नीचे आ गये....॥ठाकुर की पत्नी रेनुका....जो की ज्यादातर शांत ही रहती है....। उसने ठाकुर से पूछा की क्या ....हुआ तो......ठाकुर ने रेनुका को सारी बात बता दीया....।

चांद की रौशनी में सब बाहर बैठ कर.....पुलीस का इतंजार कर रहे थे...।

मुनीम-- ठाकुर.....साहब हमे पुलीस को नही बताना....चाहीए था.....क्यूकीं चुनाव का माहौल है...।

ठाकुर-- चींता की कोई बात नही है.....मुनीम.....दरोगा सब संभाल लेगा..।

तभी पुलीस की दो जीप ठाकुर के घर पर आकर रुकी.....।

जीप मे से.....दरोगा और दो चार हवलदार नीचे उतरते है.....दरोगा को देखकर ठाकुर बोला-

ठाकुर-- चल दरोगा.....जल्दी से अपना काम कर...।

लेकीन दरोगा के बोलने तक.....दुसरे जीप मे से एक और दरोगा नीकला और बोला--

अरे.....ठाकुर साहब हम तो अपना काम करने ही आये है।

ठाकुर और मुनीम तो एकदम भौचक्के हो जाते है......ईस नये दरोगा को देखकर।

ठाकुर-- अ.....आप का परीचय...।
दरोगा-- मेरे.....परीचय के लीये मेरे नाम की जरुरत नही है......ठाकुर साहब.....मेरे बदन की वर्दी ही मेरा परीचय है....लेकीन फीर भी आपको अपना परीचय देने में मुझे खुशी होगी.....मेरा नाम है......सतीश सींह और मै आपके ईलाके का नया दरोगा....।

ठाकुर और मुनीम की हालत तो देखने लायक थी.......वो लोग दरोगा को ही देख रहे थे...।

दरोगा-- हवलदार.....लाश को बरामद करो.....और चलो.....और हां ठाकुर साहब कल मैं फीर आउगां.....कही जाना मत.....कत्ल के बारे में.....जांच पड़ताल करनी है।

ठाकुर-- ल.....लेकीन दरोगा साहब.....कल तो मुझे चुनाव प्रचार करने जाना है....।

दरोगा-- उसकी.....जरुरत नही पड़ेगी.....ठाकुर साहब, क्यूकीं जीसके घर में कत्ल हुआ हो......वो कोई भी चुनाव नही लड़ सकता.....जब तक की कातील पकड़ा ना जाये.....।

ठाकुर की उम्मीदो पर पानी फीरता हुआ लग रहा था.....क्यूकीं ठाकुर प्रधानी का चुनाव जीतकर कलेक्टर का चुनाव लड़ना चाहता था.....ताकी वो अपना दो नम्बर का धंधा आसानी से.....बीना पुलीस के नोक झोक से चला सके....।

ठाकुर-- लेकीन दरोगा.....जी ये खुन मैने नही कीया है.....।
दरोगा-- उसका......फैसला तो जांच पड़ताल होने के बाद ही पता चलेगा.....है की नही ठाकुर साहब! अच्छा तो हम चलते है...कल मुलाकात होगी......और हां....आपके चुनाव प्रधान का पर्चा वो नीरस्त कर दीया जायेगा.....।

ठाकुर और मुनीम एक दुसरे का मुहं ही देखते रह जाते है......और इधर दरोगा अपने जीप में बैठ कर थाने की तरफ नीकल देता है..........।



dost kahani.........incest hi rahegi.....lekin kahani jab aap padhoge to aap log ko lagega shayad.....ye adultary hai.....but aisa nahi hoga......padhte rahiye.....raat ko ek update aur post ho jayega.....thanks
parsanshniye update dost.
 

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
52,928
173
अपडेट----7






सुबह.......सुबह ही रितेश उठ गया था.....और वो बकरीयो को......घर से बाहर नीकाल कर.....उन्हे चारा डाल रहा था.....बकरीयों की आवाज़ से कजरी का भी नीदं खुल गया......
कजरी उठ कर खाट पर बैठती है.....तो देखती है.....की रितेश उठ चुका है......और बकरीयों को चारा डाल रहा है.....तो कजरी भी उठ कर रितेश के पास जाती है....।

कजरी-- अरे.....वाह.....आज मेरा राजा बेटा....सुबह सुबह उठ कर काम में जुट गया....कीस बात की खुशी है?

कजरी की......आवाज़ सुनते ही रितेश ने अपनी नज़र कजरी की तरफ दौड़ाई.....

रितेश-- हां......मां खुश तो हूं......पर उतना नही.....पूरी खुशी पाने के लीये अभी समय है....।

कजरी-- अच्छा......भला मैं भी तो जानू की मेरे बेटे की खुशी कीस चीज में है...।

रितेश-- वो बताना थोड़ा.....मुश्कील है मां॥

कजरी-- अरे.....अपनी मां से भला क्या छुपाना?

रितेश-- अच्छा.....सच में बता दूं की मेरी सबसे बड़ी खुशी कीसमे है...।

कजरी-- हां...बता ना.।
रितेश-- वक्त आने पे बता दूंगा मां॥
कजरी-- हे भगवान, ये लड़के को समझ पाना मुश्कील है......।

अरे....सही कहां तूने कजरी ....ये लड़के को समझ पाना बड़ी मुश्कील है...॥

इस आवाज़ से......कजरी और रितेश दोनो अपनी नज़र उसके तरफ करते है.....तो पाया की रज्जो खड़ी थी.....।

रज्जो का चेहरा देखते ही......रितेश घबरा गया.....क्यूकीं उसने कल रात को रज्जो के घर आने के लीये रज्जो से बोला था.....जो बात वो भूल गया था......और रज्जो के घर नही जा पाया था।

'रितेश की हालत खराब होने लगी थी....क्यूकीं वो डर रहा था की....कही रज्जो उस दीन वाली बात उसके मां से ना कह दे.....।

कजरी-- अरे......रज्जो आज इतनी सुबह....सुबह मेरे घर पर?

रज्जो-- क्यूं री कजरी.....नही आ सकती मैं?
कजरी-- अरे.....नही रज्जो ऐसी बात नही है.....वो तू पहली बार इतनी सुबह घर आयी ना.....इसलीये.....पूंछ लीया....।

रज्जो-- अरे.....नही , कजरी वो थोड़ा काम था......।
कजरी-- अच्छा......क्या काम था?

रज्जो-- अरे.....कजरी.....घर में आटा खतम हो गया है.....तो गेहूं को पीसाने के लीये. ...सोचा गेंहू धो लेती है.....लेकीन गेंहू घर के टांण पर रखा है.....और पप्पू सुबह....सुबह नीकल गया ठाकुर के घर....तो सोचा रितेश बेटा अगर गेंहू नीकाल दे तो...।

रज्जो की बात सुनकर कजरी सोच में पड़ गयी......क्यूकीं कजरी जानती थी.....की रज्जो एक छिनाल औरत है.....और इस वजह से की कहीं वो रितेश के साथ भी....कुछ ऐसी वैसी हरकत ना कर दे....वो सोचने लगी की कैसे मना करू?

रज्जो-- क्या हुआ.....कजरी कीस सोच में पड़ गयी?
कजरी-- क.....कुछ नही.....हां ठीक है.....रितेश बेटा नीकाल देगा गेंहू।

रज्जो-- चल.....रितेश बेटा....नीकाल दे जरा।

रितेश रज्जो के साथ जैसे ही जाने के लीये मुड़ा-
कजरी-- बेटा.....जल्दी आना.....तूझे अजय के साथ चुनाव प्रचार में भी जाना है।

रज्जो-- अरे......कजरी, चुनाव प्रचार तो 10 बजे से शुरु होता है.....और अभी तो.....6 बजे है।

कजरी.....ने तो जानबुझ कर कहा था.....की ताकी रज्जो उसके साथ कुछ गलत हरकत ना करे.....।

कजरी-- अ.....रे वो.....कल रितेश ने ही कहा था की.....आज जल्दी जाना है....तो मैं उसको यही याद दीला रही थी....।

कजरी की बात सुनकर.....रितेश भी थोडा चकमका गया.....और सोचने लगा की मैने कब मां से कहा था की.....आज जल्दी जाउगां....।

रज्जो-- आरे.....हां कजरी आ जायेगा जल्दी.....चल रितेश बेटा।
रितेश रज्जो के पिछे.....पिछे.....उसके घर में.....घुसा...वो थोड़ा सहमा हुआ था....ये सोच कर की.....रज्जो उसके साथ क्या करेगी...।

जैसे ही......रज्जो रितेश को गेंहू वाले कमरे में ले कर गयी......रज्जो ने रितेश को अपनी बाहों में कस लीया.....रितेश तो एकदम से हड़बड़ा गया.....लेकीन कुछ बोला नही।

रज्जो(रितेश को बांहो में जकड़े)-- क्या हुआ.....मेरे राजा.....कल रात को आया क्यूं नही...।

रितेश रज्जो के बाहों में पड़ा.....एकटक रज्जो के गुलाबी होठो को देखे जा....रहा था.....रज्जो की चुचीया तो रितेश के सीने से चीपकी हुई थी...।

रितेश-- वो.....वो काकी.....कल थक गया था , तो कब सो गया पता ही नही चला।

रज्जो रितेश को अपनी बांहो में कस कर .....उससे बाते कर ....रही थी...। उसने देखा की रितेश की नज़रे उसकी होठो को देख रही है.....तो रज्जो के बदन में कपकपी मच गयी।

रज्जो-- क्या देख. .....रहा है.....बेटा....।
रितेश-- काकी.....तुम क्या कर रही हो मुझे कुछ समझ में नही आ.....रहा है.(हालाकी रितेश को भी बहुत मज़ा आ रहा....था, रज्जो जैसी भरी बदन वाली औरत के बांहो में, लेकीन फीर भी रितेश नादन बनते हुए बोला)

रज्जो-- अरे.....क्या समझ में नही आ.....रहा है रितेश बेटा......आज मै पूरी की पूरी तेरी हूं......मेरी प्यास बुझा दे....बेटा।

रितेश-- काकी......मैं .....तेरी प्यास कैसे बुझा सकता हूं.....।

रज्जो रितेश को अपनी बांहो में भरे हुए.....उसके लंड को उपर से ही पकड़ कर बोली--

रज्जो-- इससे......बुझा......बेटा ॥
रज्जो का हाथ.....रितेश के लंड पड़ते ही , उसके बदन में करंट सा लग गया.....उसका लंड तो पूरे उफान पर खड़ा हो गया..... रितेश की सांसे तेज हो गयी थी और यही हाल रज्जो का भी था....।

रितेश-- प.....पर क.....काकी मैं तेरी प्यास अपने लंड से कैसे?

रज्जो को इस पर गुस्सा आया और सोचने लगी की कीस अनाड़ी से पाला पड़ गया.....ये कुछ कर लेगा भी या नही...।
रज्जो ने अपना ब्लाउज झट से.....उतार फेका.....बल्उज के उतरते ही......रितेश की आंखो में चमकर आ गयी.....रज्जौ की बड़ी चुचीयां.....रितेश के आखो के सामने पड़ी थी......रितेश से रहा नही जा रहा था.....उसने रज्जो की एक चुचीं को अपन हथेली में भर लीया...।

रितेश-- हाय.....रे काकी....कीतनी मस्त और बड़ी बड़ी है तेरी.....चुचींया?

रज्जो-- आ....च्छा......तूझे अच्छी लगी मेरी चुचींया?

रितेश-- पुछ.....मत काकी.....बहुत मस्त लग रही है....देख ना ऐसा लग रहा है , जैसे इसमे लिटर भर दुध भरा हो।

रज्जो को बहुत मजा.....आने लगा था.....रितेश की गरम बाते उसे और गरम कर रही थी......।

रज्जो-- आ.....ह, रितेश बेटा.....ये दुध तेरे लीये ही है......नीचोड़ नीचोड़ कर पी जा...।

रितेश ने.....जैसे ही रज्जो की बात सुनी....उसने रज्जो की चुचींयो को अपने मुह में ढ़ुसां और दोनो हाथ से उसकी चुचींयो को पकड़ कर दबाने लगा और जोर जोर से......चुसने लगा...।

रज्जो तो.....अपनी आखें बंद कर के....मज़े लेने लगी.....क्यूकीं आज तक कीसी ने भी उसकी चुचींयो को इतनी बुरी तरह मसल मसल कर नही चुसा था......रज्जो की जान नीकल जाती.....जब रीतेश उसके नीप्पल को दांतो से--

रज्जो(चिखते)-- आ........आ.......इ.......आह.....रिते......श.....नीप्प......ल.......को आह माई....रे.....मेरी नीप्पल मत.....का......ट......बेरहम.....द......र्द होता है...।

रज्जो......अपने मुह पर दोनो हाथं रख के दबा लेती है.....ताकी उसकी चीखेँ......बाहर ना सुनाई दे......हालाकी रितेश उसे दर्द बहुत दे रहा था.....लेकीन फीर भी रज्जो उसके दर्द को सह लेती।

रज्जो-- हाय.......राम.....ये मे.....री.....आ....आ......आ.....चुचींया है....कोई आम नही जो इतना दबा दबा के चुस रहा है.....ई।

रितेश-- अरे......काकी......बहुत मज़ा.....आ रहा है....तेरी चुचींया चुसने मे....।

रज्जो-- अरे.....आह.....मा....एक को चुस चुस कर उसका भरता......बना देगा क्या? दुसरी का भी हाल.....बेहाल कर दे बेटा.।

रज्जो की बात सुनते ही.....रितेश ने रज्जो की दुसरी चुचीं को अपने मुहं में घुसाया....और उसे भी बीना रहम के मसल मसल कर चुसने लगा..।

रज्जो की हालत तो खराब हो गयी थी.....अपनी चुचींया ईस तरह मसले जाने और चुसने से.....उसका नीप्पल कीसी झुआरे की तरह फुल गये थे....उसकी सांसे तेज हो गयी थी.....बुर की फांके खुलने और बंद होने लगी थी.....।

करीब....10 मीनट तक रितेश रज्जो की चुचींयो के साथ मनमानी की.....कभी जोर जोर से मसलता......तो कभी उसके नीप्पल को अपने दांतो से दबा कर.......पूरा बाहर की तरफ खीचता...तब तक जब तक की रज्जो छटपटाने नही लगती....।

रितेश पहली बार जवानी का आँनद ले रहा था......जो उसे पागल कर रहा था.....और यही पागल पन एक रज्जो जैसी औरत को भी पागल कर रही थी.....।

रज्जो-- आ.....ह....बेटा......अब नही .....रहा जाता.....डाल दे अपना मुसल मेरी बुर में।

रितेश को जैसे होश आया.....रज्जो की चुचींया चुसने में वो ये तो भुल ही गया था की.....नीचे उसकी बुर भी हे....।

रितेश ने ......रज्जो की साड़ी उपर कर दी.....।

रितश-- आह......काकी.....तूने तो आज जीदंगी मे, पहली बार बुर के दर्शन करा दीये..।

रज्जो हांफ रही थी.....लेकीन रितेश की बात पर वो हंस दी.।

रज्जो-- हां.....बेटा, दर्शन तो करा दी....मैने.....लेकीन तेरा जोश देख कर लग रहा है....की तू मेरी बुर देखने लायक नही छोड़ेगा.....।

रितेश......रज्जो की बुर की फांको को अलग करने लगा......झांटो में छीपी बुर को उसने .....अपनी उंगलीयो से......चौड़ी करने लगा......और रज्जो की हालत खराब होने लगी....रज्जो के होठ सुखने लगे.....थे।

रज्जो-- आ.....ह.....रे......जाली.....म.। मज़े....दे दे कर.....मार डालेगा.....क्या?

रितेश ने जैसे ही......रज्जो के बुर का पींक कलर का छेदं देखा तो वो तो पागल हो गया....।
रितेश तो इतने जोश में आ गया की....कब उसने अपना पैट खोला....और अपना मोटा.....लंबा लंड नीकाल कर हाथ में ले लीया......ईसकी भनक रज्जो को भी नही लगी।
और इसकी भनक उसे तब होती हैं.....जब उसे एहसास होता है की.....कोई मोटा चीज.....जबरन उसके बुर में घुसाने की कोशीश हो रही है.......रज्जो ने झट से अपनी नज़रे नीचे की ओर की तो देखा.....

रज्जो-(चौकते हुए)-- हाय.......राम.....इतना मोटा.....है ये....तो.....बाप.....रे......क्या कर रहा था तू.....नही घुस रहा था....तो जबरन पेल रहा था.....अपना मुसल मेरी बुर मे.....फाड़ने का इरादा है क्या?

रितेश-- वो....काकी.....तेरे बुर की छेंद इतनी छोटी है.....की अंदर डालने के लीये जोर लगाने लगा था.।

रज्जो-- अच्छा.......तो ऐसे डालेगा.....कही थोड़ा....भी रास्ता मीला होता तो.....तू एक बार में ही फाड़ कर भोसड़ा बना देता....।

रितेश-- काकी......मेरे लंड में दर्द हो रहा है....इसे जल्दी से अपने बुर मे ले ले....नही तो मेरा लंड फट जायेगा।

रज्जो-- ओ.....हो.....बड़ा आया.....तेरे लंड को आराम तो मील जायेगा मेरे बुर के अँदर......पर मेरी बुर का क्या फट जायेगी...।

रितेश से अब रहा नही जा रहा था.....रज्जो की बुर एकदम गीली हो कर अपनी फांके खोल चुकी थी ......जो रितेश के खून की गरमी को बढ़ा रही थी.....।

रितेश-- देख.....काकी। फटती है तो फटने दे......लेकीन मेरा लंड ले ले...।

रितेश को इस तरह तड़पता देख रज्जो को और मज़ा आने लगा था.....वो रितेश को और तड़पाना चाहती थी....लेकीन समय कम था.....।

रज्जो झट से पास मे रखी......गेंहूं के बोरी पर दीवाल का ओट लगाकर बैठ गयी....और टांगे उठाती हुइ बोली-

रज्जो-- अब खड़ा क्यूं है? जल जल्दी मेरी टांगे अपनो कंधो पर रख.....और फीर अपना लंड मेरी बुर मे.....धीरे.....धीरे घुसा.....और हां.....जब तख पूरा लंड ना घुस जाये....तब तक धक्का मत मारना...।

रितश ने जल्दी से.....रज्जो की दोनो टांगे अपने कंधो पर रखा.....और फीर अपने लंड का सुपाड़ा रज्जो के बुर पे सटा कर......हल्का सा अँदर ठेला।

रज्जो-- अ.....आ......नीकाल.....नीकाल.....तेरा लंड का सुपाड़ा.....बहुत मोटा है.....आ.....ई....मां।

लेकीन रितेश के लंड को जैसे आराम मीला हो....वो अपने लंड को नीकालने के मुड़ में नही था......उसने जोर का दमदार झटका मारा......रज्जो की एक जोरदार चीख....नीकली......लंड आधे से ज्यादा रज्जो की बुर में घुस गया था.....रज्जो भले ही चुदी चादी......औरत थी.....लेकीन रितश के लंड की मोटाइ ने उसके बुर की दीवारो को चीर दीया थां.....जंहा से खून आना लाज़मी था..।।

रज्जो की जोरदार चीख.....और छटपटाहट देख सुनकर.....और साथ ही साथ उसके बुर से नीकला खून देख कर घबरा जाता है।
'रितेश की नज़रे उपर उठती है....उसने रज्जो की तरफ़ देखा , रज्जो की आखें बंद थी और हील डुल नही रही थी.....वो डर गया और रज्जो दो तीन बार झींझोड़ा...।

रितेश-- काकी....काकी.....ओ काकी।
लेकीन रज्जो की तरफ से कोइ प्रक्रीया नही हुई.....तो रितेश एकदम से डर जाता है.....रितेश ने झट से अपना लंड रज्जो के बुर से बाहर नीकाला.....उसने पास में पड़े रज्जो के ब्लाउज से अपने लंड पे लगे खून को पोछंता है.....और भागते हुए अपने घर के पिछवाड़े पहुचं कर रुक जाता है...।

उसकी सांसे बहुत तेज चल रही थी.....चेहर पर पसीने आ गये थे.....और बहुत घबरा गया था.....रितेश तो इतना भी नही समझ पाया था की रज्जो दर्द के वजह से बेहोश हो गयी थी.....

*रितेश......धिरे....धिरे कदमो से अपने घर पर पहुचा.....कजरी रसोई घर में खाना बना रही थी......उसने रितेश को देखा....रितेश चुपचाप खाट पर बैठा था

कजरी-- गेंहू की बोरी नीकालने मे.....इतना वक्त लगा दीया....
लेकीन रितेश शायद इस समय डरा हुआ था.....और वो रज्जो के बारे में सोच रहा था तो उसे कजरी की बाते सुनाई नही दी......



update thoda late diya uske liye.....sorry frnds!
kahani ko like aur comments ke liye thanks frnds.....
super lovely update dost.
 

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
52,928
173
next update---


कजरी अब तक रितेश को दो चार बार आवाज लगा चुकी थी....लेकीन रितेश अभी तक रज्जो के बारे में ही सोंच रहा था..उसके माथे पर से पसीने की बुंद टपक रही थी.....

बेटा.....क्या हुआ? कजरी के झींझोड़ने से जैसे रितेश को होश आया.।

रितेश-- क....कुछ नही मां॥
कजरी-- क्या हुआ बेटा? तू इतना परेशान क्यूं है...और ये तुझे पसीने क्यूं हो रहे है।

रितेश ने अपना हाथ अपने माथे पर लगाया तो उसे सच में पसीने हुए थे।

रितेश-- अ....अरे वो....वो....मां...मु....मुझे।

कजरी-- सच...सच बता ....क्या कीया रज्जो ने तेरे साथ?

रितेश झट से खाट पर से उठ जाता है...और थोड़ा आगे जाकर

रितेश-- क....काकी ने क..कुछ नही कीया।

कजरी उठ कर रितेश का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ घुमाते हुए...

कजरी-- अच्छा...तो तुझे पसीने क्यूं हो रहे है....और तू हकला कर क्यू बोल रहा है....बात क्या है बता?

रितेश अब और ज्यादा डर गया....उसने सोचा की मां को अब सारी बात बताने में ही भलायी है....अगर मैं नही बताउगां तो रज्जो काकी ज़रुर बतायेगी।

रितेश-- मां बात ये है की.....
बात ये है की....रितेश बेटा चुहे से डर कर भाग आया...।

ये आवाज़ सुनते ही...कजरी और रितेश दोनो मुड़कर देखते है....तो रज्जो खड़ी थी।

रज्जो-- अरे....हां कजरी, ये गेहुं की बोरी नीकाल रहा था....तभी इसने चुहा देख लीया और समझा सांप हे....तो डर गया है ना रितेश।

रितेश-- ह.....हां.....मां, स.....सापं समझ कर डर गया था.....अच्छा मां मै अजय के घर जा रहा हूं।

ये कहकर रितेश घर से बाहर नीकल जाता है.......कजरी और रज्जो रितेश को बाहर जाते हुए देखती रहती है...

कजरी-- रज्जो साफ साफ बता, की तूने मेरे बेटे के साथ क्या कीया?

रज्जो-- अरे. ....कजरी तू पागल हो गयी है, क्या भला मैं क्या करुगीं?

कजरी-- देख रज्जो, बन मत तू, मुझे पता है तू कैसी औरत है.....अगर तू मेरे बेटे के साथ कुछ ऐसा वैसा कीया तो...

रज्जो-- तो.....तो क्या? ऐसा वैसा करुगीं नही...कर ली मैने, हाय क्या लड़का है।

रज्जो के मुहं से ऐसी बात सुनकर कजरी के पैरो तले ज़मीन खीसक गयी.

कजरी(गुस्से में) -- रज्जो............

रज्जो(शरारती) - अ....हां गुस्सा नही करते कजरी....तेरा बेटा अब जवान हो गया है...जवान नही पूरा सांड हो गया है...और उसका वो तो घोड़े जैसा है...

कजरी-- छी....

रज्जो(शरारती) -- छि...नही कजरी, वाह बोल वाह, क्या लड़का पैदा कीया है...एक छटके में सीर्फ एक छटके में कजरी उसने मेरी चुदी चादी बुर को फाड़ कर रख दीया...तु.....तुझे यकीन नही होता ना...ये देख मेरा ब्लाउज देख इस पर जो खून लगा है ना, तेरा बेटा मेरा बुर फाड़ कर अपने लंड पर लगा खून इसी से साफ कर के भाग आया....

कजरी चुप चाप खड़ी रज्जो की बाते सुन रही थी और रज्जो कीसी शातीर खीलाड़ी की तरह कजरी के चारो तरफ घुम घुम कर सुना रही थी..।

कजरी(चिल्लाते) -- चुप कर रंडी....तुझे शरम ना आयी अपने बेटे के जैसे लड़के के साथ ये सब करते हुए।

रज्जो(शातीराना) -- अरे...हां, शरम तो बहुत आयी की कैसे मै रितेश को अपनी बुर दीखाउगीं....रज्जो बोल ही रही थी की।

कजरी अपने कानो पर दोनो हाथ रखते हुए चील्ला कर बोली-- चुप हो जा छिनाल, भगवान के लीये चुप हो जा...

रज्जो-- अच्छा ठीक है...तू बोलती है तो चुप हो जाती हूं...

कजरी(गुस्से मेँ) - नीकल जा यहां से रंडी और दुबारा मेरे बेटे के उपर नज़र मत डालना।

रज्जो(शातीराना) - ठीक है...लेकीन तेरा बेटा अगर नही माना तो।

कजरी-- वो तेरी तरह नही है छिनाल, वो मेरी बात कभी नही टालेगा...और मैं उसे तेरे आस पास भी नही भटकने दुगीं।

रज्जो-- अच्छा...तो इतना भरोसा है तुझे खुद पर।

कजरी-- और नही तो क्या मैं उसकी मां हू, वो मेरी बात जरुर मानेगा।

रज्जो-- अच्छा....ये बुर की लत है कजरी, जो मैं दे सकती हूं वो मां नही दे सकती।
ये कहकर रज्जो अपने घर की तरफ़ चल देती है.....उसकी चाल भी बदली थी थोड़ा भचक भचक कर चल रही थी....जीसे कजरी देख रही थी....।


कुछ पल के लीये कजरी....एकदम शांत वही खड़ी रही फीर वो अपने सर पर हाथ रखकर खाट पर बैठ जाती है।
कजरी को आज कुछ समझ में नही आ रहा था....उसने जो बाते रज्जो के मुंह से सुनी थी....वो सच है या गलत इसका फैसला करने के लीये वो ऐसी बाते वो अपने बेटे से भी नही कर सकती थी....लेकीन रितेश की परेशानी कही ना कही रज्जो की बात को सच कर रहा था....बहुत सारे सवाले के ठेर में फंसी कजरी ये सब सोचं ही रही थी की...

कजरी....वो कजरी.....

कजरी-- अरे संगीता तू क्या हुआ? इतनी घबरायी हुई क्यूं हैं?

संगीता-- अरे कजरी.....वो ठाकुर साहब के दोस्त का ख़ून हो गया है।

ये सुनकर कजरी भी चौंक गयी..।

कजरी-- क्या...कैसे?
कजरी बोलते बोलते उठ गयी....और संगीता के साथ घर से करीब भागते भागते नीकल कर ठाकुर के घर की तरफ चल दी.

संगीता-- वो तो पता नही लेकीन...सुना है की ठाकुर साहब चुनाव ना लड़ सके इसलीये कीसी ने शाजीश कर के ये काम को अंजाम दीया है...

यही सब बाते करते हुए कजरी और संगीता ठाकुर के घर पर पहुचं गये....जंहा बड़ी तादात में भीड़ इकट्ठा हुई थी।

ठाकुर के घर पर दरोगा....शतीस सींह के साथ चार हवलदार खड़े थे....

दरोगा-- तो ठाकुर साहब.....आप एक कष्ट कीजीए की आप अपने घर के सभी सदस्य को बुलाईये और थोड़ा हमे भी परीचय कराइये।
और कहकर दरोगा ने जेब से एक लंवाग नीकाल कर मुंह में डाल कर उसे अपने दांत के नीचे दबा लीया।

ठाकुर-- जी दरोगा साहब!

कुछ ही पल में ठाकुर के घर के सभी सदस्य नीचे जमा हुए-



i m so so sory................frnds ki itne dino se update nahi de paya.....kuchh durghtna hone ki vajah se!
kuchh readers to hamare itne gusse ho gaye ki kah rahe hai ki story hi close ho gaya....par aisa nahi hai
i am back.....lets rock!
subah tak ek update aur-
khubsurat update hai mitr.
 
Top