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सन्नी
पिछले 36 घंटों में हम दोनों 20-20 बार झड़ चुके थे और लक्ष्मी आंटी की हालत न पुछे तो ही बेहतर। अब हम सब ऐसी हालत में थे कि हम थक कर चूर चूर हो गए थे।
सुबह 7 बजे जब मैंने आंखें खोली तब बेड पर लक्ष्मी आंटी नहीं थीं। दबे पांव मै नीचे उतरा तो लक्ष्मी आंटी को kitchen के बाहर सब्जियों के बाग में कुर्सी पर शांत बैठ कर पुराना अखबार पढ़ते पाया। लक्ष्मी आंटी की खुली पीठ उसकी जवानी को उजागर कर, मुझे सोचने पर मजबुर कर रही थी।
लक्ष्मी आंटी काम करती हैं पर वह गुलाम नहीं, मजबुर से चोरी की पर गुनहगार नहीं, एक कि पत्नी होते हुए दो प्रेमी है पर बदचलन या वैष्या नहीं। लक्ष्मी आंटी के साथ आज तक जो भी हुआ है उसके लिए कोई और जिम्मेदार है। लक्ष्मी आंटी तो आज भी छोटी छोटी खुशियों से खुश होने वाली एक जवान लड़की है।
मैंने दूसरी कुर्सी लक्ष्मी आंटी के बगल में रख दी।
लक्ष्मी आंटी ने शरमाकर झट से अखबार छुपाया “सन्नी बाबू, आप उठ गए! आवाज दे देते, मैं अभी चाय बनाती हूं।”
“रुक जाओ लक्ष्मी आंटी। जरा बैठो। अगर मैं और विक्की थके हुए हैं तो तुम हमसे दुगना थकी हुई होगी। फिर भी एक बार भी चुं तक नहीं की। अब लक्ष्मी आंटी तुम बोलो। मैं जानता हूं कि लक्ष्मी आंटी कौन है और क्या करती है। मुझे बताओ कि लक्ष्मी कौन है? लक्ष्मी क्या करती है? क्या करना चाहती है? अगर लक्ष्मी को मिले तो लक्ष्मी क्या चाहेगी?”
लक्ष्मी आंटी ने मेरी बात उड़ा देनी चाही लेकिन फिर धीरे से बोल पड़ी “मैंने दसवी कक्षा पूरी की है। मैं पढ़ना चाहती थी पर पैसे और शादी बीच में आ गई। जब पप्पुजी घर में नही होते तब मैं पड़ोसी का टीवी सुनती हूं, कभी कभी गाने बजते हैं तो अकेली नाचती हूं। मैंने घर का हिसाब अच्छे से संभाला है और अगर मैंने रखे हुए पैसे पप्पूजी शराब के लिए नही लेते तो कभी चोरी नही करती। बचपन में सोचती थी कि बड़ी होकर किसी बड़ी कंपनी मे सारा हिसाब मेरे हाथ में होगा। मेरा बच्चा कभी कमी नहीं देखेगा। लड़का हो या लड़की मैं उसे पढ़ा लिखाकर बहोत बड़ा करूंगी।
छोड़ दो ये फिजूल के सपने बाबू। आप मुंह धो लो, मैं अभी चाय बनाती हूं। विक्की बाबू!!! अं… आप कब आए? आप भी मुंह धो लो, चाय अभी बन जाएगी। नाश्ते में क्या लोगे?”
“सुना तूने?”
विक्की “काश मैं न सुनता। काश कि लक्ष्मी आंटी एक सिक्के की तरह होती। एक हमारा नजरिया और एक लक्ष्मी आंटी का। लक्ष्मी आंटी आज किसी हीरे की तरह लगी। जहां से देखो एक अलग रूप, अलग पहचान है। क्या करें?
हम दोनों बातें करते हुए bathroom में गए। बाहर आते आते एक बात तो पक्की हो गई कि लक्ष्मी आंटी को हम जितनी खुशी दे सके वो हम दोनों देंगे। लक्ष्मी आंटी ने हमें चाय के साथ biscuit दिए। हमने लक्ष्मी आंटी को अपने साथ बिठा कर खाने के लिए कहा। लक्ष्मी आंटी का बरताव थोड़ा शर्मिला और हिचिचाहट से भरा हुआ था।
लक्ष्मी आंटी ने हमारे साथ नंगे बदन होने की आदत कर ली थी पर आज उसने गलती से अपने सपने दिखाकर अपने मन को नंगा कर दिया था। विक्की ने लक्ष्मी आंटी से कहा कि हम सब बाहर टहलने जाते हैं तो लक्ष्मी आंटी झट से मान गई। नंगे बदन बगीचे में घूमती लक्ष्मी आंटी कोई अप्सरा लग रही थी।
उगते सूरज की किरणों से धूप सेंकते हमने पेड़ पौधों को पानी डाला। लक्ष्मी आंटी ने अलग अलग पौधोंकी पैदावार बताई, उनसे मिलने वाले नफे नुकसान का हिसाब बताया। सुबह के 8 बजे तक हम सब घूम कर वापस आ गए।
लक्ष्मी आंटी का पसीने की महीन परत से चमकता बदन हम युवाओं के यौवन को ऐसे ललचा गया जैसे आदमखोर बाघ को खून की महक। मुझे रहा नहीं गया और मैं ठंडे पानी से नहाने bathroom में दौड़ा। विक्की भी मेरे पीछे पीछे आ गया। लक्ष्मी आंटी ने हिलाने से मना किया था पर अब सहें कैसे? इस विचार में हम दोनों डूबे हुए थे कि लक्ष्मी आंटी अंदर आ गई।
लक्ष्मी आंटी की आंखे नम थी। लक्ष्मी आंटी धीरे से बोली,
“मुझे क्या कोई गलती हुई है? नहीं तो आप दोनों ने मुझसे ऐसी दूरी क्यों बना ली?”
मुझे और बर्दाश्त नही हुआ। मैंने लक्ष्मी आंटी से कहा कि हमें उस पर गुस्सा करने का कोई हक नही। उलटा हम उसके गुनहगार हैं। हम दोनों ने बेरहमी से न केवल उसकी इज्जत लूटी पर उसके तन बदन को निचोड़ कर हर तरफ से इसतेमाल किया।
लक्ष्मी आंटी के होठों पर मुस्कान आ गई, “तो बोलो, अब मैं आप दोनों को सजा दे सकती हूं? हम्म तो मैं आप दोनों को मुर्गा बनाऊं या आप दोनों के कड़क पिछवाड़े पर एक पतली डंडी से चाबुक के वार करूं?
नहीं… नहीं… ये तो बड़ी आसान सजा होगी।"
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