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“हे मां!!…
रक्षा!!…
आ!!…
आ!!…
आह!!!…”
पूरा दरबार लार टपकाते हुए देख रहा था कि नवाबजादा अपना नवाबी शौक कैसे पूरा कर रहा था। नवाबजादा राज नर्तकी को उठाकर अपने लौड़े की जड़ पर पटक सकता था पर वह चाहता था कि राज नर्तकी और पूरा दरबार देखे की वह कितने संयम से दर्दनाक बदला लेने के काबिल है। हर एक बार राज नर्तकी को उठाकर अपने लौड़े पर आधा इंच ज्यादा धंसाते हुए नवाबजादा राज नर्तकी की कुंवारी गांड़ में से एक और बूंद खून अपने सिंहासन पर टपका देता।
सब की नज़र नवाबजादे के लौड़े पर फटती गांड़ पर थी लेकिन किसी ने नहीं देखा कैसे वह खून सफेद फर्श पर पड़ते ही अंदर चूस लिया जाता। पहली रात का कर्ज राज नर्तकी के कौमार्य से चुकाया जा रहा था।
कुछ देर तक राज नर्तकी को तड़पाने के बाद जब नवाबजादे के लौड़े की जड़ पर राज नर्तकी की गांड़ दब गई तो उसने मुस्कुराते हुए अपने हाथ उठाकर दरबारियों को तालियां बजाने को कहा।
राज नर्तकी अपनी गांड़ में नवाबजादे का मोटा लन्ड लिए बेबसी के आंसू बहा रही थी जब उसके मम्मों को दुबारा निचोड़ा जाने लगा। नवाबजादे ने राज नर्तकी की चुचियों को पकड़ कर खींचते हुए उसे आगे बढ़ाया और फिर अपने घुटने उठाकर राज नर्तकी को वापस अपने लौड़े पर दबाया।
इस धीमी चुधाई से राज नर्तकी की गांड़ को फैलकर नवाबजादे के आकार में ढलने का मौका मिला। नवाबजादे को भी आराम करने का मौका मिला था और उसने अब राज नर्तकी को तेज लूटने की तयारी कर ली।
नवाबजादे ने अपने मोटे पंजों में राज नर्तकी की पतली कमर को पकड़ कर उसके नंगे बदन को अपने लौड़े के छोर तक उठाया। नवाबजादे का सुपाड़ा “पक्क्!!…” की आवाज से राज नर्तकी की कसी हुई जख्मी कुंवारी गांड़ में से निकला।
राज नर्तकी ने आह भरी और नवाबजादे ने उसे दुबारा अपने लौड़े से चीर दिया। राज नर्तकी के पैरों ने दर्द से छटपटाकर कांपते हुए उसके घुंगरूओं को बजाते हुए उसकी चीख का साथ दिया।
इस अमानवी गीता और नृत्य के ताल पर नवाबजादे ने राज नर्तकी के कोमल बदन पर अपना साम्राज्य स्थापित करना शुरू कर दिया। तेज रफ्तार झटकों से पूरे लौड़े पर चूधती राज नर्तकी की चीखें धीरे धीरे आहें बन कर फिर खामोश सिसकियां बन गईं।
घोल का असर राज नर्तकी को दर्द से उत्तेजित कर रहा था। राज नर्तकी अपने यौवन से मजबूर हो कर जलने लगी। राज नर्तकी का शरीर गरमी से लाल हो गया और कामागनी की लाली से उसकी मासूमियत जल गई। राज नर्तकी को अपनी गंद मराई में मजा आने लगा और उसके बदन ने उसकी जख्मी गंद को खोलते हुए नवाबजाद को साथ देना शुरू किया।
राज नर्तकी सिसकते हुए बेबस थी कि उसका बदन अब नवाबजाद को अपनाने लगा था। राज नर्तकी की योनि में से काम रसों का बहाव तेज हो गया। राज नर्तकी के काम रस योनि में से बाहर बहते हुए नवाबजादे के मोटे हथियार को रंगते। अपनी गांड़ मराते हुए राज नर्तकी अनेकों बार झड़ती रही।
राज नर्तकी इस अपमान के कड़वे घूंटों को पीते हुए काम उत्तेजना में तड़प रही थी जब नवाबजादे ने वापस कराहते हुए उसे अपने लौड़े पर दबाया। राज नर्तकी को अपनी आतों में नवाबजादे की गरम ज़हर भरने का एहसास हुआ और वह अपने आप से घृणा करने लगी।
नवाबजादे ने फिर राज नर्तकी के हाथ छोड़े और उसे अपने लौड़े पर से उठाया।
राज नर्तकी की जख्मी गांड़ खुली रह गई थी। नवाबजादे ने पूरे दरबार को अपना वीर्य राज नर्तकी की गांड़ में से बाहर बहता दिखाया और दरबारियों ने उसके फतह पर उसे बधाइयां दी। नवाबजादे ने फिर खुद के लिए काम प्रेरक घोल मंगवाया और उसे पीते हुए राज नर्तकी को अपना लौड़ा चूसने को मजबूर किया।
राज नर्तकी अब टूट गई थी और वह नवाबजादे की बात चुप चाप मान गई। नवाबजादे पर घोल का असर होते ही उसने राज नर्तकी को अपनी बाहों में उठा लिया और दरबार के बीच में आ गया।
नवाबजादे ने फिर राज नर्तकी के पीछे से खड़े होकर अपने लौड़े को राज नर्तकी की गांड़ में पेल दिया। राज नर्तकी बेबस हो कर नवाबजादे के लौड़े पर अपनी कमर हिला कर अपनी गांड़ खुद मरवाते हुए खड़ी रही। नवाबजादे ने फिर राज नर्तकी की गांड़ मारते हुए उसे हर दरबारी के सामने लाया।
किसी ने झड़ती हुई राज नर्तकी के मम्मे चूसे तो किसीने राज नर्तकी की जख्मी लेकिन यौन रस टपकाती चूत में उंगली से चुधाई की। जंग के बाद औरतों को लूटने में माहिर सिपहसालार ने तो राज नर्तकी के मम्मों को चूसते हुए उसकी चूत को अपने खंजर की पकड़ से चोद दिया। अपनी चूत में खुरतरे खंजर की पकड़ को नवाबजादे के लौड़े से गांड़ में भिड़त को राज नर्तकी ने महसूस किया। राज नर्तकी इस अनोखे दर्द से तड़प कर बीच दरबार अपने रसों की बौछार कर दी।
सबेरे तक नवाबजादे पर से घोल का असर उतर गया और उसका लौड़ा पिचक गया। नवाबजादे ने फिर चुध कर बेसुध पड़ी राज नर्तकी को दरबार के बीच में फेंक दिया।
सुबह की पहली किरण ने राज नर्तकी के जख्मी नंगे बदन को बस छू लिया था जब नवाबजादे ने राज नर्तकी को मौत की सजा सुनाई।
नवाबजादा, “इस बेगैरत को सब मिलकर तब तक चोदो जब तक इसकी रूह जहन्नुम में इसके पुश्तों के साथ जलने ना लगे!”
बाहर के जंगल में भी सन्नाटा छा गया इस कदर राज नर्तकी की चीखों से जमीन तक दहल गई। उस दिन का कोई अंत नहीं था!
अगले सबेरे तक नवाबजादा और सारे दरबारी थक कर दरबार के बीचों बीच नंगे पड़े हुए थे जब घुंगरुओं की हल्की आवाज के साथ एक रूह बाहर की ओर निकली। महल की दहलीज पर कदम रखते ही उसे एहसास हुआ की वह खुद अपने श्राप से श्रापित है।
राज नर्तकी इस महल में कैद हो कर मौत बन कर रह गई।
राज नर्तकी ने अपने राज कुमार की बेड़ियों को छू लिया और वह टूट कर बिखर गए। तीसरे बेटे ने राज नर्तकी से बेखबर अपनी तलवार उठाई और नवाबजादे का सर कलम कर दिया। राज नर्तकी नाच उठी। उसकी भूख मिट गई थी। खून का कर्ज चुकाया गया था। लेकिन तीसरा बेटा रुका नहीं। उसने सारे दरबारियों को काट दिया। सुबह की पहली किरण ने दरबार को इंसानी खून से भरा देखा।
राज नर्तकी को उम्मीद थी कि उसका प्रेमी उसके शरीर को ढक कर उसे अग्नि देते हुए इस जगह और उसे श्राप मुक्त करेगा। लेकिन उसके प्रेमी ने उसके टूटे हुए शरीर पर थूंका और वहां से चला गया। दिन भर राज नर्तकी के घुंघरू खून और शवों में चलते रहे पर सूरज की आखरी किरण के साथ महल जिंदा हो गया। महल वहां के सारे शव और खून अपने अंदर समा गया जैसे यह बलि वेदी अगले शिकार के लिए तयार हो गई हो।
अगली शाम नवाबजादे की बेगम तीसरे बेटे के साथ अपने शौहर से मिलने आई। महल में पहुंचते ही तीसरे बेटे ने अपनी भाभी को नोच कर लूट लिया। नवाबजादे का बदला उसने नवाबजादे की बेकसूर बीवी से लिया। बेचारी बेगम सबेरे उठी तो अपनी बर्बादी झेल नहीं पाई। बेगम ने अपने खंजर से अपना दिल काट दिया।
खून फर्श पर गिरा और राज नर्तकी नाच उठी। उसकी भूख मिट गई थी। खून का कर्ज चुकाया गया था।
तीसरा बेटा अपनी भाभी का शव वहीं फर्श पर छोड़ शिकार खेलने चला गया। शाम को महल से एक शरीफ औरत ने एक हम दर्द से रुखसत ली और महल के बाहर कदम रखते ही गायब हो गई।
रात को तीसरा बेटा लौटा पर उसे अपनी भाभी का शव नहीं दिखा। वह बिना सोचे सो गया। नवाब के रक्षक दस्ते ने नवाबजादे की मौत का हिसाब लेने के लिए आधी रात को महल पर हमला किया और सोते हुए तीसरे बेटे का गला काट कर चले गए। खून फर्श पर गिर गया और सोख लिया गया। राज नर्तकी नाच उठी।
सदियां बीत गई हैं पर यह महल आज भी वैसा ही है जैसा तब था जब राज नर्तकी ने इसके अंदर अपना कदम रखा था। यहां कई डाकुओं ने अपना खजाना छुपाया पर उसे वापस ले नही पाए। कइयों ने यहां कुंवारियों की नर बलि चढ़ाई उस खजाने के लिए पर कुछ हासिल नहीं हुआ।
आज भी यहां रात गुजारने वालों से राज नर्तकी खून का हिसाब लेती है। कहते हैं कि बेकसूर को उसके घुंघरू सुनाई देते हैं।
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फुलवा रो पड़ी।
फुलवा, “बापू! आप ऐसी जगह पर मुझे क्यों लाए? भाग चलो बापू! अब भी सवेरा नही हुआ!”
गुस्से में राज नर्तकी के घुंघरू बज उठे और फुलवा सहम गई।
बापू मुस्कुराकर, “राज नर्तकी को खून देना पड़ता है, जान नही। तुम्हारे पास कोई चाकू या ब्लेड है क्या?”
फुलवा ने अपना सर हिलाकर मना किया।
बापू, “ओह! ये बहुत बुरी बात है! अब तो खून निकालने का एक ही तरीका है!”
अंधेरे में बापू की आंखें भेड़िए की तरह चमक उठी और फुलवा सहम कर सिंहासन पर बैठ गई।