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Erotica बदनसीब फुलवा; एक बेकसूर रण्डी (Completed)

Fulva's friend Kali sold herself in slavery. Suggest a title

  • Sex Slave

    Votes: 7 38.9%
  • मर्जी से गुलाम

    Votes: 6 33.3%
  • Master and his slaves

    Votes: 5 27.8%
  • None of the above

    Votes: 0 0.0%

  • Total voters
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Lefty69

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ट्रक हिचकोले खाते हुए पंजाब की कच्ची सड़क को पार करता अपने मुकाम की ओर बढ़ रहा था। ट्रक में जमा ‘माल़ ‘ 14 औरतें / लड़कियां थी। कुछ कुंवारियां थी जिन्हें मुंबई या दिल्ली में काम दिलाने का वादा किया गया था पर अब किसी की गुलाम बनने वाली थी। इनमें से लगभग हर एक रो रही थी। एखाद दो पुरानी रंडियां थी जो एक कोठे से बिक कर दूसरे कोठे के लिए नीलाम हो रही थी।


ऐसी ही दो औरतें मिली। एक थी 18 साल की काली, जो बंगाल में खुद को पांच हजार रुपए में बेच कर एक रण्डी की जिंदगी अपनाने को खुद को तयार कर रही थी। दूसरी थी 37 साल की फुलवा, जिसे उसके बाप ने 18 की होते ही कोठे पर बेचा और फिर एक मर्द से दूसरे मर्द को जाती रही।

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काली

काली ने अपने डर को दबाने के लिए फुलवा से उसकी कहानी पूछी। फुलवा को एहसास था की यह उसका आखरी सफर है और कल उसे कोई याद नहीं रखेगा। किसी की यादों में ही सही पर जिंदा रहने की चाहत बड़ी तेज़ होती है।


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फुलवा

भोली काली की सहमी हुई आंखों में देखते हुए बेजान सी आंखों की फुलवा अपनी कहानी बताने लगी।


*All pics used in the story are from internet and credit to original uploader. No pic is related to the story.
 
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Lefty69

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फुलवा पैदाइशी बदनसीब थी। उसकी मां गांव की रण्डी थी। उसका सबसे बड़ा भाई छोड़ बाकी सब उसके पिता के बच्चे नहीं थे। फुलवा के पैदा होने के कुछ साल बाद उसकी मां एक और बार पेट से हो गई। फुलवा की मां ने बच्चा गिराने के लिए जो दावा खाई उस से वह भी मर गई।


फुलवा के बापू ने उसकी मां से शादी के अलावा कोई काम करने का किसी को याद नहीं। जब छोटी की बच्ची घर की औरत बनी तब उसे मदद करने वाला सिर्फ एक था। फुलवा का बड़ा भाई शेखर उस से 6 साल बड़ा था और गांव में चोरी कर अपने भाइयों और बहन को संभालता था। फुलवा के जुड़वा भाई बबलू और बंटी फुलवा से 3 साल बड़े थे। शेखर सबके लिए खाने का इंतजाम करता तो बबलू और बंटी फुलवा को संभालते।


जैसे चारों बढ़ने लगे शेखर मजदूरी करने लगा तो बबलू और बंटी चोरियां करते। फुलवा घर में रहकर सबके लिए खाना बनाती और घर संभालती। फुलवा बड़ी होने लगी तो सबको पता चल गया कि वह अपनी मां जैसी खुबसूरती की मिसाल बनेगी। शेखर ने फुलवा को पराए मर्दों से दूर रहने को कहा और खुद सबकी बेहतर जिंदगी के लिए शहर चला गया। कुछ सालों बाद बबलू और बंटी गांव में गुंडागर्दी करते और फुलवा इन सब की वजह से दुनिया से अनजान अपने घर में बेखबर बची रही।


शेखर हर महीने पैसे भेजता पर बबलू और बंटी अपने बापू से परेशान हो कर अपने भाई की मदद करने 18 के होते ही चले गए। जाते हुए बंटी ने फुलवा को अपने बापू से बच कर रहने को कहा पर भला बापू से क्यों डरना? वह तो अपना है ना? है ना?


जब फुलवा जवानी की कगार पर आ गई तो उसके बापू ने उसकी तारीफ करना शुरू कर दिया। कैसे उसकी खूबसूरती उसकी मां जैसी थी। जिसे अपनी मां याद नहीं उसके लिए इस से ज्यादा खुबसूरती कुछ नही। बापू फुलवा को अक्सर कहता कि वह अपनी राजकुमारी के लिए शहर का राजकुमार लाएगा।


जवानी की कगार पर लड़खड़ाती हसीना के लिए इस से बेहतरीन सपना क्या होगा?


फुलवा के 18वे जन्मदिन पर बापू एक गाड़ी लेकर आया।

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बापू ने फुलवा को बताया की यह गाड़ी उसे और फुलवा को शहर ले जायेगी जहां उसका दोस्त फुलवा के लिए लड़का ढूंढने में उनकी मदद करेगा। फुलवा को बापू पर शक करने की जरूरत नहीं पड़ी और वह अपने कुछ अच्छे कपड़े लेकर बापू के साथ चली गई।


बापू ने गाड़ी दोपहर से रात तक चलाई और देर रात को लखनऊ के बाहर एक सुनसान जगह पर रुक गए।


बापू, “रात बहुत हो चुकी है। इतनी रात किसी के घर पहुंचना ठीक नहीं। हम इस जगह पर आज की रात रुकेंगे और कल सुबह मेरे दोस्त से मिलेंगे।“


फुलवा गांव के बाहर पहली बार आई थी और इस बड़ी हवेली को देख कर अंदर देखने को उत्सुक हो गई। फुलवा का हाथ पकड़ कर बापू उसे अंदर ले गया।


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दरवाजा छूते ही खुल गया और दोनों के अंदर दाखिल होते ही बंद हो गया। फुलवा को इस साफ और सुंदर महल में कुछ अजीब बू आ रही थी। वह गंदी थी पर इंसान को अपनी ओर आकर्षित करती थी। फुलवा को अपने हर कदम के साथ घुंगरू के आवाज सुनाई दे रहे थे पर उसने तो पायल भी नहीं पहनी थी।


फुलवा, “बापू! ये कैसी जगह है? मुझे डर लग रहा है!”


अंधेरे में से बापू की आवाज अजीब सी हो गई।


बापू, “मेरी बच्ची ये “राज नर्तकी की हवेली” है। आओ, दरबार की इस बड़ी कुर्सी पर बैठो। मैं तुम्हें उसकी कहानी बताता हूं!”


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फुलवा सिंहासन पर बैठ गई और उसे ऐसे लगा जैसे किसी जानवर ने उस पर अपनी ठंडी सांस छोड़ी हो। फुलवा सिकुड़ कर बैठ गई और बापू कहानी बताने लगा।
 
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Lefty69

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सदियों पहले जब नवाब पहले लखनऊ आए तो उन्होंने अपना राज बनाते हुए कई जुल्म किए। उन्हीं में से एक दास्तान है राज नर्तकी की। नवाब के 4 बेटे थे। सबसे बड़ा बेटा सबसे बेरहम था तो तीसरा कला प्रेमी था। सबसे बड़े की एक ही कमजोरी थी।

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उसे ना सुनने की आदत नहीं थी।


नवाबजादे को एक दिन एक मंदिर में नाचती नर्तकी दिखी और उसने इस लड़की को अपने कमरे में पेश करने का हुकुम दिया। सिपाही खाली हाथ लौट क्योंकि तीसरे बेटे ने उसे अपनी बीवी बनाने का मंसूबा बनाया था। नवाबजादे का सर घूम गया पर वह अभी नवाब से लड़ने लायक नहीं हुआ था।



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तो नवाबजादे ने लखनऊ के बाहर जंगल में अपना शिकार खेलने का महल बनवाया और वहां पर सबको न्योता दिया। पहले दिन नवाबजादा सिंहासन पर बैठा और उसने कहा की इस महल की सही शुरुवात के लिए इसे किसी का खून पिलाया जाए।


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क्योंकि यहां पर राज नर्तकी के अलावा कोई ऐसा नही था तो उसे पकड़ कर आगे लाया गया। तीसरे बेटे ने नवाबजादे को रोकने की कोशिश की पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया।


राज नर्तकी समझ गई कि आज उसकी मौत होनी है। उसने नवाबजादे को उसे चुनौती देने को कहा।


अगर वह चुनौती हार गई तो उसका गला काट दिया जाए। नवाबजादे ने शर्त मंजूर करते हुए इशारा किया और दीवान ने राज नर्तकी को जबरदस्ती एक घोल पिलाया।


नवाबजादा, “सुन ए नाचनेवाली! तू हमारी खिदमत में पूरे 3 घंटे नाचेगी! अगर तेरे घुंगरू रुके तो तेरा खून बहेगा! और हां, तू मौत के लिए तड़पेगी पर वह भी तुझे नसीब नही होगी! अब नाच!!”


राज नर्तकी अपने मान के लिए, अपनी साधना के लिए, अपनी जान के लिए नाच रही थी। घोल में एक ऐसा द्रव था जो नवाब के हरम में औरत को नवाब के पास भेजने से पहले उसे पिलाया जाता था।


नचाते हुए राजनर्तकी का खून गरम होते गया। उसकी सांसे फूलने लगी। पसीने से लथपथ हो कर भी राज नर्तकी अपनी साधना में लगी रही। एक प्रहर होने को आया और राज नर्तकी अब भी रुकी नहीं थी। नवाबजादे ने अपनी बंदूक में से छर्रे निकाले और फर्श पर बिखेर दिए।


राज नर्तकी का पैर फिसला और वह जमीन पर गिर गई।



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गुस्से से आग बबूला राज नर्तकी ने इस सभा को श्राप दिया, “अगर मेरी साधना सच्ची है और अगर मैं पवित्र हूं तो जब तक यह जगह न्याय नहीं देखती तब तक यह जगह हर रात की खून में कीमत लेगी! मौत इस जगह पर वास करेगी और कर्ज ना चुकाने वालों का सबेरे हिसाब करेगी!”


नवाबजादा हंस कर बोला की रियासत के बोलने से नवाब को कुछ नहीं होता पर अब पूरा दरबार देखेगा की नवाबजादे के बोलने से रियासत का क्या होता है!


नवाबजादे ने इशारा किया और सिपाहियों ने राज नर्तकी के हाथ पकड़ लिए। नवाबजादे ने आगे बढ़कर पूरे दरबार के सामने राज नर्तकी के कपड़े उतार दिए। राज नर्तकी रो रही थी पर घोल अपना असर कर चुका था!


नवाबजादे ने राज नर्तकी के नंगे बदन की पूरे दरबार में नुमाइश करते हुए सबको उसकी सक्त चूचियां और गीली यौन पंखुड़ियां दिखाई। राज नर्तकी अब विरोध भी करने लायक नहीं थी।


नवाबजादे ने फिर राज नर्तकी के हाथ अपने सिंहासन के सर से और राज नर्तकी के पैर सिंहासन के पैरों से बांध कर उसे अपने सिंहासन पर खोल कर बैठा दिया।


यौन उत्तेजना से विवश हो कर राज नर्तकी आहें भरने लगी। नवाबजादे ने फिर राज नर्तकी की खुली पंखुड़ियों को सहलाते हुए उसके यौवन को आग लगाई। राज नर्तकी की आहें निकल गई और योनि में से रस बहने लगा। राज नर्तकी ने अपने यौवन को काबू करने की कोशिश की पर तभी नवाबजाद ने राज नर्तकी की योनि के ऊपर से उभरे हुए मदन मोती को निचोड़ दिया। राज नर्तकी की चीख निकल गई और पूरे दरबार के सामने उसे यौन रसों की बौछार उड़ाने को मजबूर कर दिया गया। अपनी ही कामाग्नि में जलती राज नर्तकी अब अपने शरीर पर से पूरा नियंत्रण खो चुकी थी।


यौन स्खलन से बेसुध पड़ी राज नर्तकी के सामने नवाबजादे ने अपना छिला हुआ 7 इंच लम्बा यौन अंग लाया तो राज नर्तकी उसे रोक नहीं पाई। नवाबजादे ने सबके सामने अपने छोटे भाई की पसंद पर कब्जा कर लिया।


नवाबजादे का पूरा अंग बगावत कुचलते सुलतान की तरह राज नर्तकी की पवित्रता को चीरता एक झटके में जड़ तक समा गया। राज नर्तकी की चीख ने उसके धक्के खाते घुंगरुओं के साथ मिलकर महल में जैसे बुरी इच्छाओं को बुलाया।



नवाबजादा चाहता था कि राज नर्तकी की चीखें पूरा दरबार सुनता रहे। इसी वजह से वह राज नर्तकी की कुंवारी जवानी को लूटते हुए उसके मुंह को खुला रख रहा था। राज नर्तकी लगभग बेसुध होकर अपनी कमर हिला कर अपने लुटेरे का साथ देने लगी।


नवाबजादे ने धक्के खाती राज नर्तकी के भरे हुए स्तनों को निचोड़ते हुए उनपार उभरे हुए लाल शिखरों को अपने दातों में पकड़ कर दबाया। अपनी कोरी योनि में पहली बार होती यौन उत्तेजना के साथ अपने स्तनों में से आती तीव्र वेदना से राज नर्तकी स्खलित होने लगी।


राज नर्तकी की वर्षों की साधना से निखरा हुआ शरीर नवाबजादे को निचोडते हुए कामाग्नी की आहुति बन गया। नवाबजादे ने राज नर्तकी का गला दबा कर गर्जना करते हुए उसकी गरम जख्म में अपना विष भर दिया।


नवाबजादे ने कुछ पल राज नर्तकी के लूटे हुए बदन पर आराम करते हुए अपनी जीत का मज़ा लिया। फिर नवाबजादे ने अपने लौड़े को राज नर्तकी की खून से सनी चूत में से बाहर खींच लिया। नवाबजादे ने फिर राज नर्तकी की फटी हुई जवानी में से अपना वीर्य सबको दिखाते हुए अपनी नवाबी की झलक दिखाई।


राज नर्तकी ने घोल की चपेट में आकर अपनी सुध खो दी थी। नवाबजादा राज नर्तकी को उसपर अपनी जीत उसे दिखाना चाहता था।


नवाबजादे ने राज नर्तकी के पैरों को खोला और खुद अपनी जगह पर बैठ गया। नंगी बेसुध राज नर्तकी अपने बंधे हुए हाथों से नवाबजादे की गोद में बैठी हुई थी जब उसे किसी अनहोनी का अंदेशा हुआ।


राज नर्तकी ने अपनी आंखे खोली तो पूरा दरबार ललचाती नजरों से उसकी खुली जख्मी जवानी को देख रहा था। राज नर्तकी ने कुछ बोलना चाहा पर उसके गले में से चीख निकल गई।



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नवाबजादे ने अपने सुपाड़े को राज नर्तकी के गुदाद्वार पर लगाकर उसे बिठाना शुरू कर दिया था।
 
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“हे मां!!…
रक्षा!!…
आ!!…
आ!!…
आह!!!…”


पूरा दरबार लार टपकाते हुए देख रहा था कि नवाबजादा अपना नवाबी शौक कैसे पूरा कर रहा था। नवाबजादा राज नर्तकी को उठाकर अपने लौड़े की जड़ पर पटक सकता था पर वह चाहता था कि राज नर्तकी और पूरा दरबार देखे की वह कितने संयम से दर्दनाक बदला लेने के काबिल है। हर एक बार राज नर्तकी को उठाकर अपने लौड़े पर आधा इंच ज्यादा धंसाते हुए नवाबजादा राज नर्तकी की कुंवारी गांड़ में से एक और बूंद खून अपने सिंहासन पर टपका देता।


सब की नज़र नवाबजादे के लौड़े पर फटती गांड़ पर थी लेकिन किसी ने नहीं देखा कैसे वह खून सफेद फर्श पर पड़ते ही अंदर चूस लिया जाता। पहली रात का कर्ज राज नर्तकी के कौमार्य से चुकाया जा रहा था।


कुछ देर तक राज नर्तकी को तड़पाने के बाद जब नवाबजादे के लौड़े की जड़ पर राज नर्तकी की गांड़ दब गई तो उसने मुस्कुराते हुए अपने हाथ उठाकर दरबारियों को तालियां बजाने को कहा।


राज नर्तकी अपनी गांड़ में नवाबजादे का मोटा लन्ड लिए बेबसी के आंसू बहा रही थी जब उसके मम्मों को दुबारा निचोड़ा जाने लगा। नवाबजादे ने राज नर्तकी की चुचियों को पकड़ कर खींचते हुए उसे आगे बढ़ाया और फिर अपने घुटने उठाकर राज नर्तकी को वापस अपने लौड़े पर दबाया।


इस धीमी चुधाई से राज नर्तकी की गांड़ को फैलकर नवाबजादे के आकार में ढलने का मौका मिला। नवाबजादे को भी आराम करने का मौका मिला था और उसने अब राज नर्तकी को तेज लूटने की तयारी कर ली।


नवाबजादे ने अपने मोटे पंजों में राज नर्तकी की पतली कमर को पकड़ कर उसके नंगे बदन को अपने लौड़े के छोर तक उठाया। नवाबजादे का सुपाड़ा “पक्क्!!…” की आवाज से राज नर्तकी की कसी हुई जख्मी कुंवारी गांड़ में से निकला।


राज नर्तकी ने आह भरी और नवाबजादे ने उसे दुबारा अपने लौड़े से चीर दिया। राज नर्तकी के पैरों ने दर्द से छटपटाकर कांपते हुए उसके घुंगरूओं को बजाते हुए उसकी चीख का साथ दिया।


इस अमानवी गीता और नृत्य के ताल पर नवाबजादे ने राज नर्तकी के कोमल बदन पर अपना साम्राज्य स्थापित करना शुरू कर दिया। तेज रफ्तार झटकों से पूरे लौड़े पर चूधती राज नर्तकी की चीखें धीरे धीरे आहें बन कर फिर खामोश सिसकियां बन गईं।


घोल का असर राज नर्तकी को दर्द से उत्तेजित कर रहा था। राज नर्तकी अपने यौवन से मजबूर हो कर जलने लगी। राज नर्तकी का शरीर गरमी से लाल हो गया और कामागनी की लाली से उसकी मासूमियत जल गई। राज नर्तकी को अपनी गंद मराई में मजा आने लगा और उसके बदन ने उसकी जख्मी गंद को खोलते हुए नवाबजाद को साथ देना शुरू किया।

राज नर्तकी सिसकते हुए बेबस थी कि उसका बदन अब नवाबजाद को अपनाने लगा था। राज नर्तकी की योनि में से काम रसों का बहाव तेज हो गया। राज नर्तकी के काम रस योनि में से बाहर बहते हुए नवाबजादे के मोटे हथियार को रंगते। अपनी गांड़ मराते हुए राज नर्तकी अनेकों बार झड़ती रही।


राज नर्तकी इस अपमान के कड़वे घूंटों को पीते हुए काम उत्तेजना में तड़प रही थी जब नवाबजादे ने वापस कराहते हुए उसे अपने लौड़े पर दबाया। राज नर्तकी को अपनी आतों में नवाबजादे की गरम ज़हर भरने का एहसास हुआ और वह अपने आप से घृणा करने लगी।


नवाबजादे ने फिर राज नर्तकी के हाथ छोड़े और उसे अपने लौड़े पर से उठाया।


राज नर्तकी की जख्मी गांड़ खुली रह गई थी। नवाबजादे ने पूरे दरबार को अपना वीर्य राज नर्तकी की गांड़ में से बाहर बहता दिखाया और दरबारियों ने उसके फतह पर उसे बधाइयां दी। नवाबजादे ने फिर खुद के लिए काम प्रेरक घोल मंगवाया और उसे पीते हुए राज नर्तकी को अपना लौड़ा चूसने को मजबूर किया।


राज नर्तकी अब टूट गई थी और वह नवाबजादे की बात चुप चाप मान गई। नवाबजादे पर घोल का असर होते ही उसने राज नर्तकी को अपनी बाहों में उठा लिया और दरबार के बीच में आ गया।


नवाबजादे ने फिर राज नर्तकी के पीछे से खड़े होकर अपने लौड़े को राज नर्तकी की गांड़ में पेल दिया। राज नर्तकी बेबस हो कर नवाबजादे के लौड़े पर अपनी कमर हिला कर अपनी गांड़ खुद मरवाते हुए खड़ी रही। नवाबजादे ने फिर राज नर्तकी की गांड़ मारते हुए उसे हर दरबारी के सामने लाया।


किसी ने झड़ती हुई राज नर्तकी के मम्मे चूसे तो किसीने राज नर्तकी की जख्मी लेकिन यौन रस टपकाती चूत में उंगली से चुधाई की। जंग के बाद औरतों को लूटने में माहिर सिपहसालार ने तो राज नर्तकी के मम्मों को चूसते हुए उसकी चूत को अपने खंजर की पकड़ से चोद दिया। अपनी चूत में खुरतरे खंजर की पकड़ को नवाबजादे के लौड़े से गांड़ में भिड़त को राज नर्तकी ने महसूस किया। राज नर्तकी इस अनोखे दर्द से तड़प कर बीच दरबार अपने रसों की बौछार कर दी।


सबेरे तक नवाबजादे पर से घोल का असर उतर गया और उसका लौड़ा पिचक गया। नवाबजादे ने फिर चुध कर बेसुध पड़ी राज नर्तकी को दरबार के बीच में फेंक दिया।


सुबह की पहली किरण ने राज नर्तकी के जख्मी नंगे बदन को बस छू लिया था जब नवाबजादे ने राज नर्तकी को मौत की सजा सुनाई।


नवाबजादा, “इस बेगैरत को सब मिलकर तब तक चोदो जब तक इसकी रूह जहन्नुम में इसके पुश्तों के साथ जलने ना लगे!”


बाहर के जंगल में भी सन्नाटा छा गया इस कदर राज नर्तकी की चीखों से जमीन तक दहल गई। उस दिन का कोई अंत नहीं था!


अगले सबेरे तक नवाबजादा और सारे दरबारी थक कर दरबार के बीचों बीच नंगे पड़े हुए थे जब घुंगरुओं की हल्की आवाज के साथ एक रूह बाहर की ओर निकली। महल की दहलीज पर कदम रखते ही उसे एहसास हुआ की वह खुद अपने श्राप से श्रापित है।


राज नर्तकी इस महल में कैद हो कर मौत बन कर रह गई।


राज नर्तकी ने अपने राज कुमार की बेड़ियों को छू लिया और वह टूट कर बिखर गए। तीसरे बेटे ने राज नर्तकी से बेखबर अपनी तलवार उठाई और नवाबजादे का सर कलम कर दिया। राज नर्तकी नाच उठी। उसकी भूख मिट गई थी। खून का कर्ज चुकाया गया था। लेकिन तीसरा बेटा रुका नहीं। उसने सारे दरबारियों को काट दिया। सुबह की पहली किरण ने दरबार को इंसानी खून से भरा देखा।


राज नर्तकी को उम्मीद थी कि उसका प्रेमी उसके शरीर को ढक कर उसे अग्नि देते हुए इस जगह और उसे श्राप मुक्त करेगा। लेकिन उसके प्रेमी ने उसके टूटे हुए शरीर पर थूंका और वहां से चला गया। दिन भर राज नर्तकी के घुंघरू खून और शवों में चलते रहे पर सूरज की आखरी किरण के साथ महल जिंदा हो गया। महल वहां के सारे शव और खून अपने अंदर समा गया जैसे यह बलि वेदी अगले शिकार के लिए तयार हो गई हो।


अगली शाम नवाबजादे की बेगम तीसरे बेटे के साथ अपने शौहर से मिलने आई। महल में पहुंचते ही तीसरे बेटे ने अपनी भाभी को नोच कर लूट लिया। नवाबजादे का बदला उसने नवाबजादे की बेकसूर बीवी से लिया। बेचारी बेगम सबेरे उठी तो अपनी बर्बादी झेल नहीं पाई। बेगम ने अपने खंजर से अपना दिल काट दिया।


खून फर्श पर गिरा और राज नर्तकी नाच उठी। उसकी भूख मिट गई थी। खून का कर्ज चुकाया गया था।


तीसरा बेटा अपनी भाभी का शव वहीं फर्श पर छोड़ शिकार खेलने चला गया। शाम को महल से एक शरीफ औरत ने एक हम दर्द से रुखसत ली और महल के बाहर कदम रखते ही गायब हो गई।


रात को तीसरा बेटा लौटा पर उसे अपनी भाभी का शव नहीं दिखा। वह बिना सोचे सो गया। नवाब के रक्षक दस्ते ने नवाबजादे की मौत का हिसाब लेने के लिए आधी रात को महल पर हमला किया और सोते हुए तीसरे बेटे का गला काट कर चले गए। खून फर्श पर गिर गया और सोख लिया गया। राज नर्तकी नाच उठी।


सदियां बीत गई हैं पर यह महल आज भी वैसा ही है जैसा तब था जब राज नर्तकी ने इसके अंदर अपना कदम रखा था। यहां कई डाकुओं ने अपना खजाना छुपाया पर उसे वापस ले नही पाए। कइयों ने यहां कुंवारियों की नर बलि चढ़ाई उस खजाने के लिए पर कुछ हासिल नहीं हुआ।


आज भी यहां रात गुजारने वालों से राज नर्तकी खून का हिसाब लेती है। कहते हैं कि बेकसूर को उसके घुंघरू सुनाई देते हैं।
*******************************

फुलवा रो पड़ी।


फुलवा, “बापू! आप ऐसी जगह पर मुझे क्यों लाए? भाग चलो बापू! अब भी सवेरा नही हुआ!”


गुस्से में राज नर्तकी के घुंघरू बज उठे और फुलवा सहम गई।


बापू मुस्कुराकर, “राज नर्तकी को खून देना पड़ता है, जान नही। तुम्हारे पास कोई चाकू या ब्लेड है क्या?”


फुलवा ने अपना सर हिलाकर मना किया।


बापू, “ओह! ये बहुत बुरी बात है! अब तो खून निकालने का एक ही तरीका है!”


अंधेरे में बापू की आंखें भेड़िए की तरह चमक उठी और फुलवा सहम कर सिंहासन पर बैठ गई।
 
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