• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Thriller फाँसी के बाद By Nadeem21 (Completed)

Hero tera

Active Member
1,079
3,071
144
(9)

“सुनिये कप्तान साहब !” – सीमा ज़रूरत से ज्यादा गंभीर होकर बोली – “वह ड्राइवर साहब मेरे मित्र हैं इसलिये मैं उनके विरुद्ध एक शब्द भी सुनना नहीं चाहती । उनके बारे में अगर आप पता लगाना चाहेंगे तो मैं आपको मना नहीं करूंगी, मगर आप उनके बारे में मुझ से कुछ भी नहीं मालूम कर सकते ।”

“वह तुम्हारे कैसे मित्र हैं कि उन्होंने तुमसे बात करना भी पसंद नहीं किया...” हमीद ने चुभते हुए स्वर में कहा ।

“मैं इस पर किसी प्रकार की समालोचना नहीं कर सकती ।”

इस मध्य बैरा आर्डर की चीजें लाकर रख गया था और सैंडविचेज़ खाने के बाद अब दोनों कोफ़ी की चुस्कियां ले रहे थे ।

“तुम्हारे ड्राइवर को प्रकाश किस हैसियत से जानता है ?” – हमीद ने पूछा ।

“यह तो मैं भी नहीं बता सकती । और सच्ची बात तो यह है कि मैं जानती ही नहीं । आज प्रथम बार मैंने दोनों को एक साथ देखा था ।”

हमीद ने कुछ नहीं कहा ।

कुछ ही क्षण बाद बैरा ने बिल लाकर सामने रख दिया । हमीद ने बिल पेमेंट किया फिर उठना ही चाह रहा था कि सीमा ने कहा ।

“तो रनधा को फांसी हो जायेगी ?”

“हां ।” – हमीद ने कहा ।

“मगर सुना तो यह जा रहा है कि जिस आदमी को फांसी दी जायेगी वह रनधा नहीं है । रनधा फरार हो चुका है ।”

“यह असंभव है ।”

“रनधा के आदमी अभी जीवित हैं । क्या वह रनधा को बचाने का यत्न नहीं करेंगे ?”

“जो भी हो, मगर मैं इतना जानता हूं कि रनधा को कल सवेरे का सूरज देखना नसीब नहीं होगा ।” – हमीद ने कहा और एक झटके के साथ उठ खड़ा हुआ । फिर सीमा की आंखों में देखता हुआ बोला – “मगर अब मेरे लिये रनधा से कहीं अधिक महत्वपूर्ण तुम्हारे ड्राइवर साहब, तुम्हारी वीना और तुम ख़ुद हो ।”

“मैं !” – सीमा ने उठते हुए कहा – “भला मैं क्यों ?”

“इसलिये कि तुम बहुत सारी बातें छिपाये हुए हो । जो पूछता हूं उसका गोलमोल उत्तर देती हो – टाल भी जाती और इस प्रकार मुझे सच्चाई तक नहीं पहुंचने दे रही हो ।”

“कैप्टन ! मैं केवल इतना ही कहूंगी कि तुम मेरे प्रति भ्रम में हो ।”

हमीद ने कुछ नहीं कहा । खामोशी से दरवाजे की ओर बढ़ने लगा । सीमा भी उसके पीछे थी ।

कम्पाउंड में पहुंचकर सीमा ने पूछा ।

“कल रात का प्रोग्राम ?”

“कल दोपहर मैं तय होगा ।” – हमीद ने कहा और उस ओर मुड़ गया जिधर उसने अपनी मोटर साइकल खड़ी की थी ।

सीमा भी हमीद का उत्तर सुनने के बाद अपनी कार की ओर बढ़ गई थी ।

हमीद अब सीधा घर की ओर जा रहा था । विनोद की अनुपस्थिति के कारण वह मानसिक थकावट का शिकार हो गया था । घर पहुंचते पहुंचते उसे ऐसा लगने लगा था जैसे वह सालों से मोटर साइकल पर बैठा सफ़र कर रहा हो ।

मोटर साइकल गैराज में खड़ी करके वह अपने कमरे में पहुंचा और बिना कपड़े उतारे ही बिस्तर पर ढेर हो गया ।

दूसरे ही क्षण वह गहरी नींद सो रहा था ।

आंख खुली तो कमरे में गहरा अंधेरा था । उसने अपनी रेडियम डायल वाली रिस्ट वोच देखी । सात बज रहे थे । उसने उठकर सबसे पहले स्विच आन किया मगर अंधेरा दूर नहीं हुआ । वह चौंककर घूमना ही चाहता था कि गर्दन के पिछले भाग पर कोई ठंडी सी वस्तु आ लगी और फिर उसे किसी की मंद सी फुफकार सुनाई दी ।

“चुपचाप बाहर की ओर चलो ।”

हमीद को जीवन में प्रथम बार इस प्रकार की दुर्घटना से दोचार होना पड़ा था । आज तक ऐसा नहीं हुआ था कि विनोद की कोठी में दाखिल होकर किसी ने ऐसा दुस्साहस किया हो । यही वह अनुभूति थी जिसने उसे बौखला दिया था और उसके हाथ पाँव फूल गये थे । वह चुपचाप दरवाजे की ओर बढ़ गया । गर्दन से वह ठंडी वस्तु लगी रही ।

बाहर निकलने के बाद भी वह वस्तु उसी प्रकार गर्दन से लगी रही । पूरी कोठी और पूरा कम्पाउंड अंधकार में डूबा था । इतना गहरा सन्नाटा छाया हुआ था कि हमीद का दम घुटने लगा था । रखवाली करने वाले कुत्ते तो खैर रात में बारह बजे खुलते थे मगर नौकरों की आवाजें भी नहीं आ रही थीं । यद्यपि अभी सात ही बजे थे मगर जाड़े का मौसम होने के कारण अच्छी खासी रात मालूम हो रही थी ।

गेट पर अंदर की ओर एक कार खड़ी थी और उसके पास ही दो आदमी इस प्रकार खड़े थे कि सड़क पर से देखे नहीं जा सकते थे । कार की अगली और पिछली दोनों सीटों के दरवाजे खुले हुए थे ।

हमीद जैसे ही कार के निकट पहुंचा उन दोनों आदमियों ने उसे जकड़ लिया और फिर हमीद को जकड़े हुए ही पिछली सीट पर बैठ गये । और उस आदमी ने द्वार बंद कर दिया जो हमीद को रिवोल्वर के जोर पर यहां तक लाया था । फिर उसने ड्राइविंग सीट पर बैठकर अपनी ओर का दरवाजा बंद किया और कार स्टार्ट कर दी ।

कार जब गेट से बाहर निकली तो हमीद ने रीढ़ की हड्डी तोड़ देने वाली खौफनाक आवाज सुनी ।

“कैप्टन हमीद ! आज तुम को केवल वार्निंग दी गई है । मगर कल तुमको मौत का संदेश मिलेगा ।”

“इसका मतलब यह हुआ कि कल तक मैं ज़िन्दा रहूंगा ।” - हमीद ने निर्भय होने का प्रमाण देने के लिये चहककर कहा ।

“उन तमाम लोगों को जिन्होंने रनधा की गिरफ़्तारी में भाग लिया है जैसे तुम, रमेश, इन्स्पेक्टर आसिफ़ और सीमा इत्यादि और उन समस्त लोगों को जिन्होंने रनधा के विरुद्ध गवाही दी हैं – कल से सजा दी जायेगी ।”

“तो फिर कल क्यों ? आ ही जो सजा देनी हो वो दे दो ।”

“नहीं । आज नहीं । आज तो तुम्हें, आसिफ़ को, रमेश को और सीमा को बस वार्निंग दी जा रही है । सवेरे नौ बजे तुम लोग फिर अपने घरों पर होंगे – और यदि फांसी का ड्रामा खेला गया तो फिर कल के बाद रनधा अपने हाथों से तुम लोगों को मौत के घाट उतार देगा ।”

“तो तुम लोग यह समझ रहे हो कि रनधा को फांसी नहीं होगी ?”

“हां । इसकी संभावना है ।”

“और अगर हो गई तो ?”

“तो फिर रनधा तुम लोगों को दंड देगा ।”

“फांसी पाने के बाद रनधा दंड देगा ! हा...हा...हा...हा...!” – हमीद ने अट्टहास लगाते हुए कहा – “तुम बड़े दिलचस्प आदमी मालूम होते हो दोस्त !”

“अधिक बहादुरी दिखाने की आवश्यकता नहीं है कप्तान साहब ।” – ड्राइविंग सीट से आवाज आई – “इसी में अनुमान लगा लो कि तुम्हें तुम्हारी कोठी से इस प्रकार ले जाया जा रहा है । तुम लोग हमारे सामने चूहों के समान तुच्छ हो । बस मुझे एक बात का दुख है ।”

“वह भी बता दो ।” – हमीद ने कहा ।

“कर्नल विनोद होता तो उसे भी इसी प्रकार बांधकर ले जाता और उसे अजायब खाने में रखता ।”

“तुम कौन हो ?” – हमीद ने पूछा ।

“क्या तुमने रनधा की आवाज़ कभी नहीं सुनी ?”

“केवल एक बार सुनी थी ।”

“तब भी तुम्हें पहचान लेना चाहिये था ।”

“तुम झूठे हो ।” – हमीद ने तीव्र स्वर में कहा – “रनधा जेल में है । तुम रनधा नहीं हो सकते ।”

“शोटे !” – ड्राइविंग सीट से गर्जना सुनाई दी – “इसके जबड़े पर एक घूंसा जड़ दो । यह असभ्य है । इसने मुझे झूठा कहा है ।”

और फिर प्रथम इसके कि हमीद अपना बचाव कर सकता, जबड़े पर इतना शानदार घूंसा पड़ा कि न केवल तारें बल्कि आंखों के सामने चाँद सूरज तक नाच गये और फिर कुछ याद नहीं रह गया ।

***

रात का समय था । सर्दी इतनी अधिक बढ़ गई थी कि सरला दांत कटकटाने लगी थी । वह अभी तक जाग रही थी । जागने का कारण यह था कि रमेश ने कहा था कि वह ग्यारह बजे तक अवश्य आ जायेगा, मगर इंतजार करते करते अब बारह बज रहे थे ।

घबड़ाकर वह फ़्लैट से बाहर निकल आई । सड़क की ओर देखा जो अब बिलकुल सुनसान पड़ी थी ।

वह कुछ देर तक सड़क की ओर देखती रही । फिर उसे खयाल आया कि रमेश रमेश की मोटर साइकल तो यहीं है । फिर क्यों न वह न्यू स्टार के आफिस ही पहुंच जाये ।

इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद वह अंदर आई । ओवर कोट पहनकर रिवोल्वर जेब में डाला । दूसरे जेब में सिगरेट का एक पैकेट डाला और गैराज से रमेश की मोटर साइकल निकाली ।

मगर अभी उसे स्टार्ट भी न करने पाई थी कि न जाने किधर से आकर तीन आदमियों ने उसे घेर लिया । उसमें से केवल एक के हाथ में रिवोल्वर था ।

सरला भौंचक्का रह गई ।

“तुम शोर नहीं मचाओगी अच्छी लड़की, वर्ना यह रिवोल्वर भी शोर मचाना नहीं जानता !” – रिवोल्वर वाले ने कहा ।

सरला ने उन्हें ध्यानपूर्वक देखा । तीनों के चेहरों पर नकाब पड़े हुए थे । जिसके हाथ में रिवोल्वर था वह लम्बे कद का स्वस्थ आदमी था । शेष दोनों भी स्वस्थ ही थे मगर नाटे कद के थे ।

“मैं नहीं समझ सकती कि तुम लोग कौन हो और तुम्हारी इस हरकत का क्या अर्थ होता है ।” – सरला ने अपनी समझ में अकड़कर कहा । मगर सच्ची बात तो यह थी कि उसकी आवाज भीख मांग रही थी ।

“सुनो ! हम तुम्हें किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचायेंगे ।” – रिवोल्वर वाले ने कहा । मगर इस बार उसके स्वर में कोमलता थी – “हम तुम्हें केवल यह सुचना देने आये हैं कि आज की रात अत्यंत महत्वपूर्ण है । हमने हमीद को गिरफ्तार कर लिया है, और अभी थोड़ी ही देर पहले तुम्हारे साथी रमेश को भी गिरफ्तार करके एक जगह भेज दिया गया है । इन्स्पेक्टर आसिफ़ भी रमेश के साथ ही था इसलिये उसे गिरफ्तार करने में किसी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा था – और अब हम यहाँ से सीधे सीमा के यहां जायेंगे । इसलिये कि उसे भी गिरफ्तार करना है ।”

“मगर क्यों ?” – सरला ने पूछा ।

“इसलिये कि तुम और उन लोगों ने जिनके नाम अभी मैंने लिये हैं – रनधा की गिरफ्तारी में भाग लिया था । तुम तथा इन लोगों के विचार में आज रनधा की फांसी की रात है । इसलिये तुम सबको आज की रात कैद में रहना है । कल सवेरे तुम सब लोग छोड़ दिये जाओगे । और यदि रनधा को फांसी हो गई तो वह रनधा एक जान के बदले चार जानें लेगा ।”

“तुम्हारी बात मेरी समझ में नहीं आई ।”

“क्यों नहीं समझी ?”

“फांसी तो रनधा ही को होने वाली है ना ?” – सरला ने पूछा ।

“हां ।”

“तो फिर फांसी पा जाने के बाद वह किसी की जान कैसे ले सकता है – वह तो मर चुका होगा ।”

रिवोल्वर वाले ने अट्टहास लगाया और बोला ।

“रनधा कभी नहीं मर सकता ।”

“पता नहीं तुम क्या बकवासकर रहे हो । मैं तो कुछ भी नहीं समझी ?” – सरला ने झल्लाकर कहा ।

“और मेरे पास इतना समय नहीं है कि मैं तुमको समझाऊं । इसलिये अब अपनी चोंच बंद ही रखो । कदाचित तुम कहीं जा रही थी ?”

“हां ।”

“तो अपना इरादा बदल दो, सीट से नीचे उतरो और फ़्लैट के अंदर चलो ।”
 

Hero tera

Active Member
1,079
3,071
144
10)

सरला मोटर साइकल से उतर तो गई मगर फ़्लैट के दरवाजे की ओर नहीं बढ़ी । बस वहीँ खड़ी रही । शायद किसी अवसर की ताक में थी । मगर वह लोग भी कम चालाक नहीं थे । कदाचित उन्होंने उसका इरादा भांप लिया था । इसलिये कि एक ने बढ़कर उसकी मोटर साइकल संभाल ली और दूसरे ने उसके बाल मुट्ठियों में जकड़ लिये ।

सरला के मुख से चीख की आवाज भी न निकल सकी । इसलिये कि चीखी तो थी वह पूरी शक्ति से ही मगर मुंह पर पड़ने वाला हाथ भी उतना ही ज़बरदस्त था ।

“शाटे !” – रिवोल्वर वाले ने कहा – “अधिक दमन की आवश्यकता नहीं है । इसे इसके कमरे में ले चलो और इसकी मोटर साइकल गैराज में खड़ी करके गैराज में ताला बंद कर दो ।”

सरला की केवल आंखें खुली रह सकीं । फिर दूसरे ही क्षण उसने अपने आपको अपने कमरे में पाया । उन लोगों ने उसके दोनों हाथ बांध दिये थे और मुंह में कपड़ा ठूंस दिया था ।

फिर सरला ने अपनी बाई भुजा में चुभन सी महसूस की । उसके बाद उसके हाथ भी खोल दिये गये और मुंह में ठूंसा हुआ कपड़ा भी निकाल दिया था । जब हाथ आजाद हुए तो वह उठकर बैठ गई । उसने ओवरकोट की जेब में हाथ डालकर रिवोल्वर निकालना चाहा मगर पूरे शरीर में थरथरी पड़ गई । न रिवोल्वर ही निकाल सकी और न चीख ही सकी । जेब में हाथ डाले वह मसहरी पर ढेर हो गई ।

उसने एक भयंकर अट्टहास सुना और फिर उसे कुछ याद नहीं रह गया ।

***

सीमा सोने की तैयारी कर रही थी ।

आर्लेक्चनू में हमीद की बातों ने उसे काफ़ी परेशान कर रखा था । हमीद बार बार उसे ड्राइवर के बारे में पूछ रहा था – मगर वह तो खैर हमीद ही था अगर उसका बाप लाल जी भी उससे ड्राइवर के बारे में पूछता तो वह उसे भी न बताती । मगर ड्राइवर से अधिक फिलहाल उसके ज़ेहन पर एक ही प्रश्न छाया हुआ था और वह प्रश्न था कि “सवेरे चार बजे रनधा को फाँसी होगी या नहीं ?”

रनधा को फाँसी होना या न होना ख़ुद उसकी ज़िन्दगी और मौत का सवाल था । यदि रनधा को फाँसी हो गई तब तो वह आजाद है और अगर उसे फाँसी न हुई तो फिर शायद उसे अपना पूरा जीवन रनधा के विलास गृह में व्यतीत करना पड़ेगा ।

सीमा यह जानती थी कि अगर रनधा को फाँसी नहीं हुई तो वह उसे किसी भी मूल्य पर नहीं छोड़ेगा और यह बात तो उसे बहुत पहले से मालूम थी कि रनधा उसका अपहरण करना चाहता है । अपहरण का ध्येय भी उसे मालूम था । रनधा उसे अपने रतिगृह की शोभा बनाना चाहता था – इतना ही नहीं वरन यह भी कि रनधा ख़ुद उसे और उसके पिता लाल जी को ब्लैक मेल करके धन प्राप्त करता रहेगा ।

आज सीमा देर से घर पहुँची थी । आज चेम्बर आफ कामर्स की ओर से क्लब में डिनर दिया गया था जिसमें वह भी सम्मिलित हुई थी । डिनर के बाद शराब का दौरा चलता रहा था और सीमा भी कोको कोला सिप करती रही थी । सिपर से बोतल हिला हिला कर उसमें झाग पैदा करके यह प्रकट करती रही कि उसमें किक पैदा हो रही है ।

और इस प्रकार उन लोगों का साथ देने के बाद जब बिजिनेस की बातें आरम्भ हुई थीं तो पाँच करोड़ के उस प्रोजेक्ट में भाग लेने वालों में मिस्टर नौशेर भी सम्मिलित थे – प्रकाश सुहराब जी और मिस्टर मेहता भी शामिल थे ।

यह तो नहीं कहा जा सकता था कि उनमें से कितने दिलों में हंगामे मचल रहे थे मगर सीमा ने इतना अवश्य महसूस किया था कि उनमें से हर एक कनखियों से सही – ललचाई हुई नजरों से उसे देख लेता था ।

पौने बारह बजे मीटिंग बरखास्त हुई थी और घर पहुँचते पहुँचते बारह बज गये और अब वह विचारों में उलझी हुई कपड़े बदल कर सोने के लिये मसहरी की और बढ़ रही थी कि अचानक कमरे में तीन आदमी दाखिल हुये जिनमें से दो तो नाटे कद के थे और एक लम्बे कद का था । तीनों के चेहरों पर नकाब पड़े हुये थे ।

सीमा के पैरों के नीचे से जमीन निकल गई ।

रनधा की गिरफ़्तारी के बाद से वह यह सोच भी नहीं सकती थी कि कोई दूसरा इस प्रकार निर्भीकता के साथ उसकी कोठी में दाखिल हो सकता है ।

लम्बे आदमी के हाथ में रिवाल्वर थे । उसने फुफकार भरे स्वर में कहा ।

“तुम्हें हमारे साथ चलना है सीमा ।”

“कहाँ....कहाँ......?” – सीमा ने हकला कर पूछा ।

“वहाँ – जहाँ हम तुम्हें ले जाना चाहते है ।” – रिवाल्वर वाले ने कहा “ कैप्टन हमीद – इन्स्पेक्टर आसिफ़ और रमेश हमारी कैद में है । सरला को थोड़ी ही देर पहले बेहोश करके हम उसे उसके कमरे में डाल आये है और अब तुम्हारी बारी है ।”

“मम....मगर....कक....क्यों ?” – सीमा ने भय के साथ हकलाते हुये पूछा ।

“इसलिये कि तुमने भी रनधा की गिरफ़्तारी में भाग लिया थे ।” – रिवाल्वर वाले ने कहा “जिन लोगों ने इसका दुस्साहस किया था वह सब हमारी कैद में आ चुके है और आज की रात उन सब पर भरी होगी । कल सवेरे लगभग नौ बजे तक तुम सब को हमारी कैद में रहना है – उसके बाद तुम्हारी तकदीरों का फैसला किया जायेगा ।”

“तुम हो कौन ?” – सीमा ने पूछा ।

“आश्चर्य है कि तुम भी मुझे नहीं पहचानतीं ।” – रिवालल्वर वाले ने कहा “क्या तुमने रनधा की आवाज़ कभी नहीं सुनी ?”

“सुनीं है मगर तुम रंदा नहीं हो ।”

”काश तुम नहीं जान सकती ।” – रिवाल्वर वाले ने कहा फिर हंसता हुआ बोला “ कोई भी नहीं जानता कि रनधा कौन है – सवेरे चार बजे रनधा को फांसी हो जायेगीं मगर जेल के सारे छोटे बड़े कर्मचारी परेशान है कि जिस आदमी को गिरफ़्तार करके जेल भेजा गया है और जिसे सवेरे चार बजे फांसी दी जायेगी वह रनधा ही है या कोई दूसरा आदमी है ।”

“यह कैसे हो सकता है ?” – सीमा ने अघोरता के साथ पूछा । मगर रिवाल्वर वाला आपनी बात कहता रहा ।

“जेल का कर्मचारी वर्ग कहता है कि रनधा की शक्ल बदल गई है । उन्होंने सारे जतन कर डाले मगर रनधा ने मुख नहीं खोला – अब तुम्हारी समझ में आ गया होगा कि वह क्यों परेशान है ?”

सीमा ने फिर कुछ कहना चाहा मगर रिवाल्वर वाले ने हाथ उठा कर कहा ।

“मेरे पास तुम्हारी बातें सुनने का समय नहीं है । तुमको हमारे साथ चलना है । बस यह बता दो कि सीधी प्रकार चलोगी या आपत्ति उत्पन्न करेगी ?”

और फिर प्रथम इसके कि सीमा कुछ भी कहती रिवाल्वर वाले ने फिर कहना आरंभ कर दिया ।

“अगर तुमने आपत्ति उत्पन्न की तो दो चार तमांचे खाओगी – दो चार घूंसे भी सहन करने पड़ेंगे और तुम्हारे बालों को पकड़ कर झटके भी दिये जायेंगे और ले जाया भी जायेगा – और यदि तुमने आपत्ति नहीं की तो फिर किसीं प्रकार की यातना नहीं दी जायेगी – अब बताओ – क्या कहती हो ?”

“मुझे बेईज्ज़त तो नहीं करोगे ?” – सीमा ने पूछा ।

“नहीं ।”

सीमा ने दोनों हाथ ऊपर उठा लिये ।

“शोटे !” – रिवोल्वर वाले ने दोनों में से एक को सम्बोधित करके कहा – “सीमा को इज्ज़त के साथ कार में बैठा दो और वहां पहुंचा दो जहां हमीद इत्यादि हैं । मैं थोड़ी देर बाद आ रहा हूं ।”

दोनों में से एक ने सीमा को चलने का संकेत किया । सीमा दरवाजे की ओर बढ़ी । कमरे से निकलकर बरामदे में आई, फिर कम्पाउंड में उतर गई । तमाम बत्तियां जल रही थीं मगर प्रतिरोध करने वाला एक आदमी भी नज़र नहीं आ रहा था और इस पर सीमा को आश्चर्य था ।

रिवोल्वर वाला उन तीनों के पीछे आ रहा था ।

कम्पाउंड के बाहर एक कार खड़ी थी । जब कार के निकट सब पहुंच गये तो रिवाल्वर वाले ने ख़ुद पिछली सीट का दरवाजा खोला । सीमा को अंदर बैठाया और कोमल स्वर में बोला ।

“तुम वादे की पक्की मालूम होती हो इसलिये तुम्हारे साथ अच्छा व्यव्हार किया जायेगा ।”

“तुमने केवल हमीद, आसिफ़ और रमेश ही को गिरफ्तार किया है ?” – सीमा ने पूछा ।

“हां । क्यों ?”

“मेरे बाद भी किसी को गिरफ्तार करोगे ?”

“नहीं ।”

“जिन को गिरफ्तार किया है उन सबको क़त्ल कर डालोगे ?”

“नहीं । मगर तुम यह सब क्यों पूछ रही हो ?”

“जब तुम्हें अब कुछ करना ही नहीं है तो फिर मेरे साथ क्यों नहीं चल रहे हो ?”

“इसलिये नहीं जा रहा हूं कि अभी मुझे उन लोगों के पास जाना है जिन्होंने रनधा के खिलाफ़ गवाहियां दी हैं । उन लोगों के पास भी जाना है जिन्होंने रनधा के वकील मिस्टर ए.के. राय को इसलिये रिश्वतें दी हैं कि वह रनधा के केस को बिगाड़ दे – और कुछ पूछना है ?”

“बस एक बात ।” – सीमा ने कहा । फिर पूछा – “क्या तुमने मेरे डैडी को क़त्ल कर डाला है ?”

“नहीं ! वह अपने कमरे में आराम से सो रहे हैं !”

सीमा ने संतोष की सांस ली और रिवाल्वर वाले ने अपने साथियों से कहा ।

“अब जाओ ।”

दोनों में से एक सीमा की बगल में बैठ गया और दूसरे ने ड्राइविंग सीट संभालकर कार स्टार्ट कर दी ।

***
 

Hero tera

Active Member
1,079
3,071
144
11)

वह नगर का बाहरी इलाका था । यहां वह लोग आबाद थे जो मिल और फैक्ट्रियों में काम करते थे और उनके फ्लैट – ऐसा लगता था जैसे कांजी हाउस हो । एक के ऊपर एक । रातों में तो कभी कभी ऐसा भी होता था कि कुछ घरों में लोग जिस करवट सोते थे उसी करवट सवेरा कर देते थे । दूसरी करवट भी नहीं बदल सकते थे – ऐसी बस्ती में सोचा भी नहीं जा सकता था कि कोई आलीशान इमारत भी होगी । इस बस्ती में रहने वाले अपने भाग्य पर संतुष्ट थे । गर्मी के दिनों में फ्लैटों के सामने वाला मैदान रात में आबाद रहता था और जाड़े की रातों में भी यही होता था । एक लिहाफ़ में कई कई आदमी रात व्यतीत करते थे । लिहाफ़ की गर्मी से अधिक मानव शरीर की गर्मी उन्हें सुख पहुंचाती थी मगर बरसात का मौसम उनके लिये बड़ा दुखदायी और कष्टदायक होता था ।

मगर इस इलाके में भी कभी-कभी कारें दिखाई दे जाती थीं । कहा यह जाता था कि फैक्ट्री के कुछ ऐसे अफसर नाइट शिफ्ट में काम करने वाले मजदूरों को कार से पहुँचाने आते हैं और जिनके दिलों में इंसानी हमदर्दी की भावना है । यह कारें सड़क के किनारे रुकती थीं और फिर गायब हो जाती थीं ।

इसलिये यह कौन सोच सकता था कि यहां एक आलीशान इमारत होगी । अगर होती तो नज़र अवश्य आती । मगर यहां एक शानदार इमारत थी ।

बीसवी शताब्दी के इस चमत्कारिक और जादुई युग में यह इमारत अपने समस्त अस्तित्व के साथ तमाम सौन्दर्य को समेटे हुये मौजूद थी । अब यह और बात है कि उसे देखने के लिये नज़र चाहिये थी और नज़र पैदा करने के लिये जेब का भारी होना आवश्यक था – इतना भरी कि एक रात में कम से कम सौ सौ के नोटों की चार पाँच गद्दियाँ खर्च की जा सकें ।

यह आलीशान इमारत ज़मीन के अंदर थी ।

एक फ़्लैट जिसमें केवल एक आदमी अपनी पत्नी और साली के साथ रहता था । उसी फ़्लैट के नीचे यह इमारत थी । उसकी पत्नी और साली दोनों ही जवान और सुंदर थी । देखने में यह आप मजदूर औरतों की तरह नहीं नज़र आती थी बल्कि शहज़ादियां मालूम होती थीं ।

यह फ़्लैट सड़क से लगभग दस पन्द्रह गज के फासिले पर था । पहले यहाँ गोदाम था – फिर जब फ़्लैट बनने लगे तो उसी गोदाम के ऊपर यह फ़्लैट बन गया था । और वह गोदाम फ़्लैट के नीचे चला गया था । बाद में वही गोदाम एक आलीशान इमारत बन गया था जिसमें जाने का रास्ता उसी फ़्लैट के अंदर से था । यह बात कदाचित वहाँ के रहने वालों को मालूम नहीं थी और अगर मालूम भी थी तो उन्हें इतना अवकाश कहाँ था कि वह इत्मीनान से बैठ कर यह सोचते कि गोदाम तो ऊपर था फिर नीचे कैसे चला गया – गोदाम क्यों और कैसे एक आलीशान इमारत में परिवर्तित हो गया । उसमें क्या है – कौन रहता है – इत्यादि इत्यादि ।

इस समय उसी शानदार इमारत में दो नंगी लड़कियाँ नाच रही थी और चार आदमी बैठे और लेटे हुये शराब पी रहे थे । या तो उनकी निगाहों की भूख मर चुकी थी या फिर उनके जेहनो पर इतना बोझ था कि वह अपनी दुनिया के इस द्रश्य से आनंद नहीं उठा पा रहे थे –

आखिर एक ने उकताये हुये स्वर में कहा ।

“बन्द करो यार ।”

फिर उसने दोनों लड़कियों को संकेत किया औरौर वह चले गई ।

“हाँ भाई – अब विजिनेस ।” दूसरा बोला ।

“क्यों न हम लोग मन को शांति प्रदान करने वाली कोई दवा खा कर सो जायें ।” – तीसरे ने कहा ।सो जाना तो क़यामत है ।” – चौथे ने कहा ।

“मैं कहता हूँ कि सो जाने का सवाल कहाँ से पैदा होता है ।” – दुसरे ने कहा “जब शराब से शांति नहीं मिली तो फिर दवा से क्या होगा – इसलिये अच्छा यही है कि विजिनेस की बात की जाये ।”

फिर वह चारों इस प्रकार की बातें करने लगे ।

“सवाल यह है कि आज जो प्रोजेक्ट तैयार हुआ है .....। ”

“ओह....तो क्या तुम प्रोजेक्ट के लिये चिन्तित हो ?”

“तो फिर किस लिये मुझे चिन्तित होना चाहिये ?”

“रनधा के बारे में । हम लोग तो रनधा ही के बारे में सोच रहे है ।”

“क्यों – रनधा क्यों ?”

“मैंने पता लगा लिया है – तीन या चार घन्टे बाद उसे फाँसी हो जाएगी ।”

“तो इसमें परेशानी की क्या बात है । यह बड़ी अच्छी खबर है ।”

“हाँ - है तो मगर बुरी ख़बरें भी है ।”

“वह क्या ?”

“यह कि – रनधा के बारे में यह रिपोर्ट है कि उसका चेहरा बदला हुआ है ।”

“तो फिर ?”

“क्या यह नहीं हो सकता कि गिरफ़्तार तो रनधा ही किया गया हो मगर इस बार उसका स्थान किसी दुसरे ने ले लिया हो ।”

“यह कैसे हो सकता है ।”

“रनधा के प्रति हर बात मुझे सम्भव मालूम होती है । जब वह दो बार जेल से फरार हो सकता है तो फिर उससे मिलता जुलता कोई आदमी उसका स्थान भी ले सकता है ।”

“हो सकता है कि आरम्भ से ही दो रनधा रहें हो ।”

“यह सब हमारा भ्रम है ।”

“पहली बार जब रनधा जेल से फरार नहीं हुआ था और हमें यह सूचना मिली थी कि रनधा जेल से फरार हो जायेगा तब भी यही कहा गया था कि यह हमारा भ्रम पात्र है – मगर नतीजा क्या निकला ?”

“हमारी हजामत बन गई ।”

“और यदि इस बार भी रनधा को फाँसी न हो सकी तो शायद.....।”

वाक्य पूरा न हो सका । सब चौंक पड़े थे और उनके मुंह खुले के खुले रह गये थे । इसलिये कि वह उस दृश्य को देखने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे । जिस दृश्य को अब वह देख रहे थे । उनके स्वप्न में भी यह बात नहीं आ सकती थी कि इस तहखाने में कोई और भी आ सकता है – विशेष रूप से जब आने वाला रनधा हो ।

रनधा के अधरों पर मुस्कान थी । वह दोनों हाथ कमर पर रखे निर्भीक खड़ा उन्हें देख रहा था, फिर उसने अत्यंत कटु स्वर में कहा ।

“छोटे बच्चों को ‘हाऊ’ कहकर डराते हैं लेकिन अगर मैं मुंह आगे बढ़ाकर धीरे से हाऊ कह दूं तो तुम सबके हार्ट फेल हो जायेंगे, क्यों ?”

कोई कुछ नहीं बोला ।

“अच्छा । अब एक क्षण के अंदर अंदर अपने अपने गिलास खाली कर दो ।” – रनधा ने कहा ।

वह डरे हुए चारों आदमी जैसे हिप्नोटाइज हो गये हों । उन्होंने एक ही एक घोंट में अपने अपने गिलास खाली कर दिये ।

“अब अपने अपने खाली गिलास अपने अपने सिरों पर रख दो ।” – रनधा ने दूसरी आज्ञा दी ।

उन चारों ने उसकी आज्ञा का पालन किया ।

रनधा हंसकर बोला ।

“मैं केवल यह देखना चाहता था कि रनधा का आतंक उतना ही है या उसमें कोई कमी हुई है । मगर साबित यह हुआ कि अभी रनधा के नाम उतना ही आतंक है ।”

“तुम्हें तो चार घंटे बाद फांसी होने वाली है ।” – एक ने साहस करके कहा ।

“हां, और अब फांसी पाने के लिये मैं वापस जेल जा रहा हूं ।” – रनधा ने मुस्कुराकर कहा ।

“जेल वापस जा रहे हो !” – उसने आश्चर्य के साथ कहा और अपने साथियों की ओर देखने लगा ।

“हां । और इसलिये वापस जा रहा हूं कि फांसी पा जाने के बाद और अधिक शक्तिशाली हो जाऊँगा ।” – रनधा ने कहा और हंस पड़ा ।

“सवाल यह है कि तुम यहाँ कैसे पहुंचे ?” – दूसरे ने कहा और हंस पड़ा ।

“उसी प्रकार जिस प्रकार तुम्हारी कोठियों तक पहुंच जाता था ! रनधा का मार्ग कोई नहीं रोक सकता !”

“तुम यहां क्यों आये हो ?”

“अपनी एक वस्तु वापस लेने ।” – रनधा ने कहा ।

“कौन सी वस्तु ?” – चारों ने एक साथ कहा – “तुम्हारी तो कोई वस्तु हमारे पास नहीं है – बल्कि हमारे ही धन तुम्हारे पास हैं ।”

“मेरी एक वस्तु मेरी अनुपस्थिति में हथिया ली गई है ।”

“कौन सी वस्तु ?” – चारों ने एक साथ पूछा । वह सब अब चकित दृष्टि से रनधा को देख रहे थे ।

“वीना !” – रनधा ने उत्तर में कहा ।

“हम में से किसी को भी संगीत से कोई शौक नहीं है और न हमें यह मालूम है कि कभी तुम्हारे पास वीना थी । तुम तो रायफल-टामी गन और रिवाल्वर के रसिया हो ।”

“मैं उस वीना की बात नहीं कर रहा हूं जिसे वीना वीणा और बांसुरी कहते हैं ।” – रनधा ने गंभीरता के साथ कहा – “मैं उस वीना की बात कर रहा हूं जो हाड मांस की एक लड़की है और जिसे मैंने हरण किया था ।”

“सेठ दूमीचंद की लड़की वीना ?” – एक ने पूछा ।

“हां । वही वीना जो दूमीचंद की लड़की और प्रकाश की बहन है ।” – रनधा ने कहा – “वह कहां है ?”

“इस बात को हम में से कोई नहीं बता सकता । इसलिये कि हम जानते ही नहीं ।”

“कोई बात नहीं । तुम नहीं जानते या नहीं बताना चाहते तो कोई परवाह नहीं । तुम्हारा कोई भाईबंद उसका पता बता देगा ।” – रनधा ने कहा – “अब तुम लोग उठ जाओ ।”

“वह क्यों ?” – चारोने एक साथ पूछा ।

“तुम लोगों को मेरे साथ चलना होगा ।”

“हमें कहां ले जाओगे ?”

“जहां मेरा दिल चाहेगा ।”

“मगर क्यों ?”

“मैं तुम लोगों को अपनी कैद में रखूंगा ।” – रनधा ने कहा ।

“मगर तुम तो अभी कह रहे थे कि तुम जेल वापस जाओगे ?”

“अवश्य जाऊँगा मगर तुम लोगों को अपनी कैद में डालने के बाद ।” – रनधा ने मुस्कुराकर कहा फिर एक दम से खौफनाक स्वर में कहने लगा – “मुझे इस बात का पता लग चुका है कि किसी ने मेरे वकील मिस्टर राय को इसलिये गहरी रिश्वत दी है कि वह मेरा मुक़दमा बिगाड़ दे और मुझे फांसी हो जाये – और मुझे यह भी मालूम है कि कोई उस धन की तलाश में है जो मैंने तुम लोगों से छीनकर एकत्रित कर रखी है । तुम लोगों को कान खोलकर यह सुन और समझ लेना चाहिये कि मैं अपने शत्रुओं को क्षमा करना नहीं जानता । मिसाल के तौर पर सुन लो कि कैप्टन हमीद, इन्स्पेक्टर आसिफ़, रमेश और सीमा मेरी कैद में हैं और अब में तुम लोगों को भी अपना कैदी बनाने जा रहा हूं । कल सवेरे नौ बजे तक मैं तुम सब लोगों को मुक्त कर दूंगा और फिर परसों शायद तुम सब मार डाले जाओ ।”

“क्या ऐसा नहीं हो सकता कि आज कुछ घंटो के लिये तुम हमें क्षमा कर दो ?” – चारों में से एक ने कहा ।

“नहीं । यह नहीं हो सकता ।”

“और अगर हम जाने से इन्कार कर दें तो ?”

“तो फिर तुम्हें अभी और इसी समय यहां एक दूसरे की तड़पती हुई लाशें देखनी पड़ेंगी और मेरा विचार है कि तुम में से किसी को यह बात पसंद न होगी ।”

फिर किसी ने कुछ नहीं कहा और उठकर सीढ़ियों की ओर बढ़ने लगे । रनधा उनके पीछे चल रहा था । वह चारों मन ही मन इस बात पर अफ़सोस कर रहे थे कि वह निहत्थे क्यों हैं । अगर इस समय उनके पास तरकारी काटने वाला चाकू भी होता तो काम दे जाता । मगर यह केवल उनके सोचने ही की बात थी । तब भी वह कुछ नहीं कर सकते थे । इसलिये कि इस समय रनधा भी निहत्था ही था । अगर वह चारों लिपट पड़ते तो रनधा कठिनाई में पड़ जाता, मगर उनमें इतना साहस ही नहीं था । वह बाहर आ गये । रनधा अब भी उनके पीछे ही पीछे चल रहा था । अगर वह चाहते तो इधरउधर भाग सकते थे – इस प्रकार अगर होता तो बस इतना ही होता कि रनधा दौड़कर किसी एक को पकड़ लेता मगर शेष तीन तो अवश्य ही बच निकलते । वह बाहर निकलने के बाद शोर भी मचा सकते थे । उनकी आवाज़ें सुनकर लोग अवश्य दौड़ पड़ते और इस प्रकार हो सकता था कि रनधा अपने बचाव के लिये उन्हें छोड़कर भाग खड़ा होता – इसलिये कि वह निहत्था था । मगर था तो रनधा ही जिसका केवल नाम सुनकर बड़ों बड़ों को पसीना आ जाता था । फिर जब वह सामने हो तो भला कौन आतंकित नहीं हो सकता था !

सारांश यह कि वह चारों उसके आदेश पर चलते हुए सड़क तक आये जहां एक कार खड़ी थी । रनधा ने अत्यंत कोमल स्वर में कहा ।

“तुम लोगों ने किसी प्रकार की शरारत नहीं की इसके लिये मैं तुम लोगों का शुक्रिया अदा करता हूं । और अब खामोशी के साथ तीन आदमी पिछली सीट पर और एक आदमी अगली सीट पर बैठ जाओ ।”

जब वह चारों बैठ गये तो रनधा ने ख़ुद दरवाजा बंद किया और फिर ख़ुद ड्राइविंग सीट पर बैठकर कार स्टार्ट कर दी ।

***
 

Hero tera

Active Member
1,079
3,071
144
12)

रात के तीन बज रहे थे । ठंड अपने पूरे यौवन पर थी । सड़कें सुनसान थीं । गहरा कुहरा पड़ने के कारण अब ट्रक भी नहीं चल रहे थे । पुलिस के वह सिपाही जो रात में गश्त करते थे उनका भी कहीं पता नहीं था । कदाचित वह भी कहीं दबके पड़े थे – मगर ऐसे में भी एक मोटर साइकल सड़क पर दौड़ रही थी ।

एक आदमी चला रहा था और दो आदमी पीछे बैठे हुए थे । गति काफ़ी सुस्त थी । तेज हो भी नहीं सकती थी इसलिये कि एक तो गहरा कुहरा पड़ रहा था और दूसरे मोटर साइकल की हेड लाइट बुझी हुई थी । पीछे बैठने वाले दोनों आदमियों में से एक के हाथ में टार्च थी जिसे वह कभी कभी जला लेता था और एक क्षण के लिये सड़क पर मंद सा प्रकाश फैल जाता था ।

फिर मोटर साइकल उस सड़क पर मुड़ गई जिस पर जेल की इमारत थी ।

“प्रोग्राम क्या है ?” – पीछे बैठने वाले दोनों में से एक ने पूछा ।

“जेल की चारदीवारी के पास बम रखना है ।” – अगली सीट वाले ने कहा ।

“लाभ ?”

“कुछ न कुछ तो होगा ही ।”

फिर खामोशी छा गई और मोटर साइकल आगे बढ़ती रही ।

जेल की चारदीवारी से थोड़े फांसले पर सड़क ही पर मोटर साइकल रुक गई और तीनों नीचे उतर पड़े । मोटर साइकल चलाने वाले ने अपने दोनों साथियों में से एक को बम थमा दिया ।

“न जाने क्यों आज मुझे डर लग रहा है ।” – बम लेने वाले ने कहा ।

“आश्चर्य की बात है ।” – दूसरे ने कहा – “जब तुमको डर लग रहा है तो फिर हम लोगों की क्या दशा होगी ।”

“मैं तो भागने वालों में से हूं ।” – बम वाले ने फीकी हंसी के साथ कहा ।

“हां – मगर आज दीवार से सौ गज की दूरी पर ज़मीन खोद कर वह बम तुम्हें गाड़ना है फिर उसके बाद भागना है और अगर तुम बम फेंक पर भाग आये तो सब चौपट हो जायेगा । एक आदमी को इस मोटर साइकल की रक्षा करनी है और एक आदमी को ख़ुद तुम्हारी रक्षा करनी है । चौथा कोई नहीं है, फिर तुम्हारे साथ कौन जायेगा ? मगर आखिर तुम हिचकिचा रहे हो ?”

“मैं हिचकिचा तो नहीं रहा हूं ।” उस आदमी ने कहा । फिर धीरे धीरे दीवार की ओर बढ़ने लगा । ऐसा लग रहा था जैसे धरती उसके पैर पकड़ती जा रही हो ।

अन्त में वह उस स्थान तक पहुंच ही गया जहां उसे जमीन खोदकर बम गाड़ना था । वह इस काम में निपुण भी समझा जाता था ।

खुला हुआ स्थान और इसने कड़ाके की सर्दी ! अगर उसने हाथों पर आइन्टमेंट न लगा लिया होता तो शायद हाथ काम नहीं कर सकते थे ।

गढ्ढ़ा खोदकर उसने बम रखा और मिट्टी बराबर कर दी । मगर अभी उसका कार्य समाप्त नहीं हुआ था । अभी उसे उस तार के दूसरे सिरे को दीवार तक पहुँचाना था जिसका एक सिरा बम से अटैच्ड था ।

वह तार को पकड़े हुए धीरे धीरे जेल की दीवार की ओर बढ़ने लगा । मगर उसी समय उसे मोटर साइकल के स्टार्ट होने की आवाज सुनाई दी ।

“अरे ! क्या वह दोनों मुझे छोड़कर जा रहे हैं ?” – वह बडबडाया और फिर तार फेंक पर सड़क की ओर भागना ही चाहता था कि ज़ोरदार धमाका हुआ और उसके शरीर के परखच्चे उड़ गये ।

इतना भयानक धमाका था कि भागती हुई मोटर साइकल एक क्षण के लिये झटका खा गई थी ।

“हमारे इस प्रकार भाग आने से वह बहुत नाराज़ होगा ।” – मोटर साइकल चलाने वाले ने कहा ।

“वह अब हम लोगों में वापस ही नहीं आयेगा तो नाराज क्या होगा ।” – पिछली सीट पर बैठने वाले ने कहा ।

“मैं समझा नहीं ।”

“क्या तुम ऊँघ रहे हो ?”

“जी नहीं तो ?”

“क्या तुमने धमाके की आवाज नहीं सुनी थी ? क्या उस ज़ोरदार धमाके के कारण यह मोटर साइकल एक क्षण के लिये झटका नहीं खा गई थी ?”

“यह सब कुछ हुआ था मगर इससे हमारे उस साथी का क्या संबंध ?”

पिछली सीट वाला हंस पड़ा । फिर बोला ।

“सुनो और समझो ! उसने जमीन खोदकर उसमें बम रखा, फिर वहां की मिट्टी बराबर की । उसके बाद बम से अटैच्ड तार का दूसरा सिरा दीवार तक पहुँचाने के लिये तार हाथ में लेकर दीवार की ओर बढ़ा और फिर जैसे ही तार को झटका लगा वह बम फट गया । अब तुम ही बताओ कि क्या वह ज़िन्दा बचा होगा ?”

“ओह ! तो आपने जान बुझकर...।”

“हां । इस प्रकार मैंने उसे मार डाला ।” – पिछली सीट वाले ने बात काटकर कहा ।

“मगर क्यों ?”

“इसलिये कि मैं उसे ज़िन्दा नहीं रखना चाहता था ।”

“मगर वह तो आपका वफ़ादार साथी था ।” – ड्राइवर ने कहा ।इससे मुझे इन्कार नहीं और उसके मरने का मुझे भी दुख है, मगर विवशता थी ।”

“कैसी विवशता ?”

“वह मेरे लिये फांसी का फंदा बन गया था । सबको उसी की तलाश थी । क्या तुम जानते हो कि विनोद लंदन क्यों गया है ?”

“जी नहीं ।”

“वह इसी को तलाश करने के लिये लंदन गया है । वह लंदन में चार दिन रहने के बाद आज ही तो वापस आया था ।”

एक क्षण के लिये दोनों ही चुप हो गये । पीछे बैठने वाले ने सिगार निकालकर लाइटर से उसे सुलगाया फिर बोला ।

“अब मैं मुतमइन हूं । पहले ख़तरा था ।”

“किस बात का ख़तरा ?”

“इसलिये कि वह जानता था कि सारी दौलत कहां है और वीना कहां है ।” – उसने सिगार का कश लेने के बाद कहा – “और यह बात तो तुम भी जानते होगे कि अधिक जानने वाला खतरनाक हो जाता है । मैंने हमेशा के लिये उस खतरे को अपने सिर से टाल दिया और एक लाभ यह भी हुआ की अब मेरे साथियों में से कोई सिर न उठा सकेगा ।”

ड्राइवर ने हैंडल पर पूरी शक्ति से अपने हाथ जमा दिये । उसे ऐसा लगने लगा था जैसे वह खतरनाक आदमी ठिकाने पर पहुंचने से पहले ही किसी न किसी तरीके से उसे भी मार डालेगा और पिछली सीट वाला अपनी धुन में कहता जा रहा था ।

“कल से हमारे जीवन का नया अध्याय खुलेगा । आज की रात हमने अपने सारे शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ली है ।”

******

कल की रात धमाकों की रात थी ।

यही बात जब इन्स्पेक्टर जगदीश ने अमर सिंह से कही तो अमर सिंह ने कहा ।

“हाँ रिपोर्ट तो यही है कि हर तरफ़ बम फटे । जेल की पिछली दीवार के पास – कर्नल विनोद साहब की कोठी के पिछले भाग की और – लेबर कालोनी में और नगर के तीन बड़े पूँजी पतियों की कोठियों के सामने ।”

“चचा आसिफ़ कहाँ है ?” – जगदीश ने पूछा ।

“मैंने सवेरे ही उन्हें तलाश किया था मगर न वह अपने घर पर मिले और न कुछ उनके बारे में पता चल सका ।”

जगदीश कुछ न कुछ कह कर विचारों में गर्त हो गया फिर एक दम से चौंक कर बोला ।

“क्या कल रात कोई लाश भी मिली थी ?”

“केवल एक – मगर उसे लाश नहीं कहा जा सकता ।”

“क्यों ?” जगदीश उसे घूरने लगा ।

“इसलिये कि घटना स्थल पर लाश नहीं वरन गोश्त के बिखरे हुये लोथड़े और हड्डियों के टूटे हुये टुकड़े पड़े मिले थे ।”

“ज़रा घडी तो देखना ।” – जगदीश ने कहा ।

“आठ बजने वाले है ।” अमर सिंह ने कहा ।

“क्यों न कैप्टन हमीद को फोन किया जाये । इस केस में बड़ी दिलचस्पी ले रहे है ।” – जगदीश ने कहा “और फिर कर्नल साहब की अनुपस्थिति में तो उनसे परामर्श लेना ही चाहिये ।”

उसी क्षण टेलीफोन की घन्टी बजी । जगदीश ने रिसीवर उठाया और बोला ।

“हेलो ।”

दूसरी और से एस. पी. की आवाज सुन कर वह चौकंना नज़र आने लगे ! एस. पी. कह रहा था ।

“रात जो नगर में और इधर उधर धमाके हुये है उनकी सूचना तुम्हें है ?”

“येस सर ।” - जगदीश ने कहा ।

“क्या येस सर ।” एस. पी. के स्वर में व्यंग भरी हुई कठोरता थी “दो तीन ऐसे स्थानों पर भी धमाके हुये है कि उनके सामने वाले मकानों का एक आदमी अवश्य ग़ायब है । यहाँ तक कि कर्नल विनूद की कोठी के पिछले भाग की ओर धमाका हुआ और कैप्टन हमीद घर पर मौजूद नहीं है । क्राईम रिपोर्टर रमेश के फ़्लैट के सामने धमाका हुआ और रमेश भी लापता है । लाल जी के यहाँ से उनकी लड़की सीमा ग़ायब है । इन्स्पेक्टर आसिफ़ का भी कहीं पता नहीं है – सुन रहे हो ?”

“येस सर !” - जगदीश ने कहा “हम लोग अभी यही बात कर रहे थे ।”

“बातें करने से कुछ नहीं हुआ करता – सवाल यह है कि तुमने अब तक क्या किया । नगर के छाए बड़े पूँजी पति ग़ायब है । एक पूँजी पति की लड़की ग़ायब है जिसका नाम सीमा है । आसिफ़ हमीद और रमेश ग़ायब है – इन्हें ज़मीन नहीं निगल गई है बल्कि इन सब का अपहरण हुआ है ।”जगदीश का मुँह खुल गया । आवाज आती रही ।

“और जानते हो – यह सब किसने किया ?”

“जी – नहीं ।” जगदीश ने कहा ।

“रनधा ने ।” आवाज़ आई ।

जगदीश के हाथ से रिसीवर गिरते गिरते बचा । उसने दूसरे हाथ से माथे का पसीना पोंछते हुये कहा



“मम...मगर सर – रनधा तो जेल में था – क्या वह इस बार फिर जेल से फरार हो गया ।”

“नहीं ।”

“तो फिर सर.....।”

“रनधा जेल ही में था और आज चार बजे सवेरे उसे फाँसी भी हो गई ।”

“कुछ समझ में नहीं आ रहा है सर ।” – जगदीश ने बड़बडाने के से भाव फिर ऊँची आवाज में बोला ”यह कैसे मालूम हुआ सर कि यह सारी हरकतें रनधा ही की थी ?”

“लाल जी की कोठी पर फांसी का निशान मिला है । रमेश के फ्लैट पर भी यही निशान मिला है । कर्नल विनोद की कोठी में भी फांसी का निशान मिला है और यह तो तुम जानते ही हो कि फांसी का निशान रनधा का विशिष्ट निशान है ।”

“ही हां ।”

“इतना ही नहीं, अभी कुछ ही क्षण पहले ख़ुद रनधा ने मुझसे फोन पर बात की है ।”

“फांसी के बाद ?”

“हां, फांसी के बाद !” – एस.पी. की आवाज आई – “रनधा कह रहा था कि वह फांसी के बाद और शक्तिशाली हो गया है और अब वह पुलिस से बदला लेगा ।”

“सर ।” – जगदीश ने माथा पोंछते हुए कहा – “मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है । बहरहाल आप जो आज्ञा दें ।”

“ठहरो, मैं आ रहा हूं ।”

अमर सिंह ने जल्दी से जगदीश के हाथ से रिसीवर झपट लिया और माउथपीस में बोला ।

“सर ! मैं अमर सिंह बोल रहा हूं । मैं कुछ कहना चाहता हूं ।”

“हां, कहो ?”

“रनधा की लाश क्या हुई सर ?”

“पोस्टमार्टम के बाद उसके दो रिश्तेदारों के हवाले कर दी गई ।”

“वह रिश्तेदार कौन थे और लाश लेकर कहां गये ?” – अमर सिंह ने पूछा ।
 
  • Like
Reactions: prakash2piyush

Hero tera

Active Member
1,079
3,071
144
13)

“यह भी एक दिलचस्प और रहस्यपूर्ण कहानी है । जब उसके दोनों रिश्तेदार उसकी लाश लेकर चले थे तो हमारे दो आदमी उनके पीछे लग गये थे । देखना यह था कि वास्तव में वह दोनों कौन है और लाश कहां ले जा रहे हैं । मगर देखने में दिहाती लगने वाले वह दोनों हमारे आदमियों को डाज दे गये । हमारे दोनों आदमी अपनी मूर्खता और अयोग्यता का समर्थन कर रहे हैं । उनका बयान है कि देखने में वह दोनों दिहाती मालूम होते थे मगर इतने चालाक फुर्तीले थे कि देखते ही देखते इस प्रकार न जाने किस प्रकार और कहां गायब हो गये कि काफी तलाश करने के बाद भी उनका सुराग न मिल सका ।”

इसके साथ ही संबंध भी कट गया और अमर सिंह रिसीवर रखकर जगदीश की ओर देखने लगा जिसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं । फिर उसने जगदीश से कहा ।

“एक साधारण से अपराधी के सामने हम कितने विवश हैं ।”

“तुम उसे साधारण अपराधी कह रहे हो ?” – जगदीश ने कहा – “वह आदमी नहीं वरन भूत है । पहले जेल से फरार होता था और अब फांसी पा चुकने के बाद भी जीवित है और हमारे लिये मुसीबत बना हुआ है ।”

“ऐसे ही अवसरों पर कर्नल विनोद की याद आती है और उनका महत्त्व मालूम होता है ।” – अमर सिंह ने कहा – “पता नहीं क्यों लंदन चले गये ।”

“उनकी बातें वही जानें ।”

“तो फिर अब का करना है ?”

“झक मारना है !”

अचानक उसी समय मोटर साइकल की घडघडाहट सुनाई दी और फिर सरला नजर आई । वह मोटर साइकल से उतरकर बड़ी तेजी से उन दोनों की ओर बढ़ी । वह दोनों ही उसे भलीभांति जानते पहचानते थे । दोनों ने उसे देखकर यही समझा था कि वह रमेश के बारे में सुचना देने आई होगी, इस लिये वह जैसे ही उनके निकट आई वैसे ही जगदीश ने कहा ।

“मुझे सूचना मिल चुकी है ।”

“और फिर भी आप इतने इत्मीनान से बैठे हुए हैं ?” – सरला ने कहा ।

“तो क्या करूँ ?” जगदीश ने बेबसी के साथ कहा ।

“आंय !” – सरला ने विस्मय भरे स्वर में कहा । फिर पूछा – “आपको क्या सूचना मिली थी ?”

“रमेश के अपहरण की ।”

“वह तो पुरानी खबर है । इस समय वह पार्क अविन्यु के बारह नंबर वाले फ्लैट में है । वही नहीं, बल्कि बहुत सारे लोग हैं ।”

“अरे !” – कहता हुआ जगदीश उठा । फिर अमर सिंह से बोला – “तुम चले जाओ । मुझे तो एस.पी. साहब की प्रतीक्षा करनी है । वह आ ही रहे होंगे ।”

“आपको यह बात कैसे मालूम हुई ?” – अमर सिंह ने सरला से पूछा ।

“समय कम है, जल्दी कीजिये । मैं मार्ग में बता दूँगी । अगर देर हुई तो वह इमारत भी उड़ा दी जायेगी और वहां मौजूद लोगों में से कोई न बच सकेगा ।”

फिर अमर सिंह ने देर नहीं की । कुछ सिपाहियों को साथ लिया और जीप में बैठकर रवाना हो गया । सरला भी साथ थी । उसने अपनी मोटर साइकल कोतवाली ही में छोड़ दी थी ।

“कल बारह बजे रात में रनधा ने हाथों मैं अपने ही फ्लैट के कमरे में बंद कर दी गई थी ।”

सरला ने अमर सिंह को बताना आरंभ किया – “सवेरे छः बजे मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे हाथ-पाँव आजाद है । मैं मसहरी पर उठकर बैठ गई । फिर मेरी नजर उस कार्ड पर पड़ी जो सिरहाने रखा हुआ था । मैंने उसे उठाकर देखा । उस पर केवल इतनी ही इबादत लिखी हुई थी : पार्क अविन्यु, फ्लैट नंबर बारह । मेरी समझ में आ ही नहीं रहा था कि वह कार्ड किसने रखा था और रखने वाले का ध्येय क्या था । कुछ देर तक मैं यह सोचती रही कि मुझे का करना चाहिये । फिर मैंने गैराज से मोटर साइकल निकाली और पार्क अविन्यु पहुंच गई । वहां मैंने कुछ ऐसे लोगों को देखा जो मुझे बहुत खतरनाक किस्म के आदमी मालूम हुए थे । मैं सोचने लगी कि अब मुझे क्या करना चाहिये । क्या मैं बारह नंबर के फ्लैट में दाखिल हो जाऊं ? – कुछ निर्णय ही नहीं कर पा रही थी कि मैंने एक बूढ़े आदमी को अपनी ओर आते हुए देखा । वह मेरे निकट आकर खड़ा हो गया । जब मैंने उससे पूछा कि वह कौन है और मुझसे क्या चाहता है तो वह कहने लगा कि वह यहां का चौकीदार है । उसके बाद बताने लगा कि कल रात उसने थोड़ी थोड़ी देर के बाद एक कार को चार बाद यहां आते, रुकते और जाते हुए देखा था । पहलीबार कार से केवल एक आदमी उतरा । दूसरी बार दो आए थे । तीसरी बार एक लड़की उतरी थी और चौथी बार चार आदमी उतरे थे । इसका यह अर्थ न समझ लेना बीबी जी कि वह ख़ुद से उतरे थे, बल्कि उतारे गए थे । और सब के सब बारह नंबर वाले फ्लैट में ले जाए गये थे । मगर अब तक मैंने उनमें से किसी को भी फ्लैट से बाहर निकलते हुए नहीं देखा । बस फिर मैं सीधे कोतवाली पहुंच ही गई थी ताकि इन्स्पेक्टर जगदीश साहब तक यह सूचना पहुंचा दूं ।”

“सवाल यह है कि उस बूढ़े आदमी ने आपको यह सब क्यों बताया था ?” – अमर सिंह ने पूछा ।

“उस समय तो मुझे होश नहीं था मगर अब उससे अवश्य पूछूंगी कि उसने यह सारी बातें मुझे क्यों बताई थीं ।” – सरला ने व्यंग भरे स्वर में कहा ।अमर सिंह ने फिर कुछ नहीं पूछा । सरला भी मौन ही रही ।

बारह नंबर फ्लैट के सामने पहुंचकर अमर सिंह ने जीप रोकी और अपने आदमियों के साथ धड़धड़ाता हुआ ऊपर पहुंच गया । दरवाजा भिड़ा हुआ था । उसने दरवाजे को धक्का दिया और अंदर दाखिल हो गया । वहां कोई नहीं था । बस कागजात और पुस्तकें बिखरी पड़ी थीं । अमर सिंह सरला की ओर मुड़कर कुछ कहना ही चाह रहा था कि उसे किसी पुरुष के कराहने की आवाज सुनाई पड़ी । आवाज चेम्बर से आई थी । वह दौड़ता हुआ चेम्बर में घुस गया और इस परेशानी की दशा में भी उसके होठों पर मुस्कराहट दौड़ गई । दृश्य ही कुछ ऐसा था ।

इन्स्पेक्टर आसिफ़ सोफे पर पीठ के बल लेटा हुआ था और सिर छोड़ कर उसके पूरे शरीर पर पुस्तकें लदी हुई थीं । वह हिल डोल भी नहीं सकता था ।

***

हमीद की आंख खुली तो सवेरा हो चुका था । उसने नजरें इधर उधर दौड़ाई तो उसे कानून की पुस्तकों से भरी हुई शीशे की अलमारियां दिखाई दीं । इधर उधर भी पुस्तकें बिखरी पड़ी थीं । एक ओर आसिफ़, रमेश और सीमा दिखाई दिये । दूसरी ओर नगर के वह चार पूंजीपति नजर आये जिनके धन के बारे में कहानियां कही जातीं थीं और जो कई बार रनधा के शिकार हो चुके थे । सब आजाद थे मगर सीमा को छोड़कर सब के चेहरों पर भय के लक्षण अंकित थे ।

हमीद उनसे कुछ पूछना ही चाहता था कि दरवाजा खुला और दो नकाबपोश अंदर दाखिल हुए जिनमें एक लम्बे कद का था और दूसरा नाटे कद का था । लम्बे कद वाले के हाथ में टामीगन थी । उसने अत्यंत कोमल स्वर में कहा ।

“आप लोगों को इसका अनुमान हो गया होगा कि आप लोग रनधा के सामने कितने विवश और तुच्छ हैं । बहरहाल अब आप लोगों को रिहा किया जा रहा है । आज का दिन और आज की रात आपकी अपनी है – कदाचित कल सवेरे आप सब लोगों को मौत का निमंत्रणपत्र मिल जायेगा ।”

हमीद कुछ कहने ही जा रहा था कि टामीगन वाले ने अपने साथी से कहा ।

“शोटे ! तुम कैप्टन हमीद और सीमा को यहां से ले जाओ मगर दोनों को एक जगह नहीं बल्कि अलग अलग जगहों पर उतारना । शेष लोग दूसरी गाड़ी से ले जाये जायेंगे ।”

शोटे ने दोनों को संकेत किया और जब वह कमरे से बाहर निकले तो हमीद चौंक पड़ा और उसने सीमा से कहा ।

“अरे ! यह तो पार्क अविन्यु का बारह नंबर वाला फ्लैट है ।”

सीमा ने कुछ नहीं कहा । केवल सिर हिलाकर रह गई ।

“यार शोटे साहब !” – हमीद ने उस नाटे कद वाले से कहा – “तुम क्यों कष्ट उठा रहे हो ? हम लोग चले जायेंगे ।”

“ऐसा न हो कि दूसरों के कंधो पर सवार होकर तुम्हें जाना पड़े ।” – शोटे ने कहा ।

“वह तो एक दिन सबको जाना है । मगर मैं आज ही जाने के लिये तैयार हूं । पर शर्त यह है कि कंधे कोमल और सुंदर हो ।”

कदाचित बातों का क्रम कुछ देर ओर चलता मगर पीछे से टामीगन वाले की गर्जना सुनकर हमीद का साहस छूट गया और वह जल्दी से आगे बढ़ गया ।

नीचे आते ही कार खड़ी नजर आई और शोटे ने सीमा तथा हमीद को कार में बैठने के लिये कहा । टामीगन वाला भी कार तक आया था । हमीद ने उससे पूछा ।

“तुम रनधा ही हो ना ?”

“हां !”

“और आज चार बजे सवेरे तुम्हें फांसी भी हो गई थी – क्यों ?”

“हां ।“

“और अब यह सब फांसी पाने के बाद के तुम्हारे चमत्कार हैं – क्यों ?”

“हां कैप्टन !” – टामीगन वाले ने हंसकर कहा – “तुमने अभी रनधा को देखा कहां है । तुमने यह समझा था कि उसे घेरकर पकड़ लिया है । खुले में उससे मुक़ाबला करते तो आटे दाल का भाव मालूम होता ।”

“क्या बताऊँ दोस्त ! बेचारे रनधा को फांसी हो गई वर्ना मैं तुम्हारी यह इच्छा भी पूरी कर देता ।”

“तो क्या मैं रनधा नहीं हूं ?”

“नहीं कहने पर तो रात तुमने मेरा जबड़ा तोड़ डाला था फिर इस समय कैसे कह सकता हूं कि तुम रनधा नहीं हो ।”

“एक ओर का जबड़ा तो अभी सही सलामत है । कह दो कि मैं रनधा नहीं हूं ।”

“दूसरा जबड़ा भी तुड़वा लेता मगर कुछ मसहलत के कारण विवश हूं ।”

टामीगन वाले ने संकेत किया और शोटे ने बारी बारी दोनों को पिछली सीट पर ढकेल दिया जिस पर रनधा का एक आदमी पहले से बैठा हुआ था । फिर कार चल पड़ी । शोटे भी पिछली ही सीट पर बैठा था ।

“तुम कैसे फंसी ?” – हमीद ने सीमा से पूछा ।

सीमा कुछ कहने ही वाली थी कि शोटे ने रिवाल्वर की नाल उसकी ओर करते हुए कहा ।

“क्या तुम अपना वचन भूल गई ? तुम्हें अपना मुख बंद ही रखना है ।” – फिर उसने हमीद से कहा – “अगर अपमानित न होना चाहो तो तुम भी मौन रहो ।”

हमीद मौन हो गया और कार दौड़ती रही । फिर एक जगह रुक गई और शोटे ने हमीद से उतरने के लिये कहा ।

“और यह ?” – हमीद ने सीमा की ओर संकेत करके पूछा ।

“तुम दुनियाभर के ठेकेदार नहीं हो, उतरो ।” – शोटे ने कहा और पहले ख़ुद नीचे उतरकर हमीद का हाथ पकड़कर नीचे घसीट लिया और फिर ख़ुद कार में बैठ गया । कार चल पड़ी । हमीद ने कार का नंबर देखा और चौंक पड़ा । क्योंकि प्लेट पर वही नंबर पड़ा हुआ था जो उसकी गाड़ी का नंबर था ।

हमीद चलता हुआ उस चौराहे पर आया जहां शहर की ओर जाने के लिये टैक्सी मिल सकती थी । मगर संयोगवश इस समय वहां कोई टेक्सी नहीं थी । वह खड़ा होकर टैक्सी की प्रतीक्षा करने लगा । दिमाग में विनोद की कही हुई वह बात गूंज रही थी कि ‘बेटे हमीद, रनधा की फांसी के बाद भी तुम्हारा काम बाकी रहेगा’ और यही बात आज सच्चाई का रूप धारण करके उसके सामने खड़ी थी । वह सोच रहा था कि आखिर वे सब उस फ्लैट में कैसे और क्यों ले जाये गये थे जो ए.के. राय एडवोकेट का आफिस है – फिर उन्हें छोड़ क्यों दिया गया और मौत के निमंत्रणपत्र की धमकी क्यों दी गई थी ? क्या वह केवल डराने के लिये थी या सचमुच वह सब क़त्ल कर दिये जायेंगे ।
 
  • Like
Reactions: prakash2piyush

Hero tera

Active Member
1,079
3,071
144
14)

इतने में एक खाली टैक्सी आकर रुकी और हमीद उस में बैठ गया । पहले तो ख्याल था कि सीधा घर जायेगा मगर बाद में इरादा बदल दिया और सीधा कोतवाली पहुंचा । उसे वहां एस.पी. नजर आया । उसने हमीद को देखते ही कहा ।

“यह लो ! कैप्टन भी आ गया । क्यों भाई ? तुम पर क्या बीती ? पहले बैठ जाओ ।”

“धन्यवाद !” – कहता हुआ हमीद बैठ गया । फिर एस.पी. से पूछा – “आपकी बात से यह साबित हो रहा है कि कोई ओर आया था ?”

“हां । इन्स्पेक्टर आसिफ़ आया था । वह बहुत डरा हुआ था इसलिये उसे उसके घर भिजवा दिया गया ।”

हमीद ने सारी बातें बताने के बाद कहा ।

“अब सबसे पहले आप उन चारों पूंजीपतियों के घरों पर टेलीफोन कीजिये – यह देखिये कि वे घर पहुंचे या नहीं ।”

जगदीश ने बारी बारी चारों के नंबर रिंग किये । मालूम यह हुआ कि चारों अपने अपने घर पहुंच चुके हैं । अत्यंत भयभीत हैं और पुलिस की सहायता चाहते हैं । उसके बाद हमीद ने सीमा के नंबर डायल किये । दूसरी ओर से सीमा के पिता लाल जी की आवाज़ आई ।

“सीमा देवी घर पर हैं ?” – हमीद ने पूछा ।

“हां, है ।”

“ज़रा उन्हें रिसीवर दे दीजिये ।”

“नहीं ।” – लाल जी की कठोर आवाज़ आई – “वह अब कैद में है । न फोन पर किसी से बात कर सकती है न किसी से मिल सकती है और न कोठी के बाहर जा सकती है ।”

“आप होश में हैं या नहीं ?” – हमीद ने गरजकर कहा – “मैं कैप्टन हमीद बोल रहा हूं । सीमा देवी से पुलिस कुछ मालूमात हासिल करना चाहती है ।”

“मैं बिलकुल होश में हूं, कप्तान साहब !” – लाल जी की आवाज़ आई – “आप समझते क्यों नहीं । मेरे लिये यह कितनी बड़ी बदनामी की बात है । अब तो मैं यह निर्णय कर चुका हूं कि अगर मुझे या उसे या फिर दोनों को मरना ही है तो इस घर की चारदीवारी के अंदर ही मरना है । अगर आप लोगों को सीमा से कुछ मालूम करना है तो फिर थोडा सा कष्ट उठाकर यहां आ जाइये ।”

इसी के साथ संबंध भी कट गया । हमीद ने भी मुंह बनाते हुए रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया और एस.पी. को यह बातें बता दीं जो सीमा के पिता लाल जी ने कही थीं ।

“ठीक है । अभी उसे देखते हैं । अब इधर की सुनो ।” – एस.पी. ने कहा और फिर सरला के आने और उसके साथ अमर सिंह के पार्क अविन्यु जाने तथा आसिफ़ के वहां मिलने की सारी बातें बताने के बाद कहा ।

“और अब अमर सिंह सरला को उसके फ्लैट में पहुंचाकर वापस आता ही होगा ।”

“मिस्टर राय से आपने संबंध स्थापित किया था ?” – हमीद ने पूछा ।

“हां । और जब उसे मैंने सारी बातें बताई तो पहले वह चौंका था फिर कहने लगा कि वह इस संबंध में कुछ नहीं जानता ।”

“इसका अर्थ यह हुआ कि हम पहले जहां थे वहीँ अब भी हैं ।”

“हां । और इसका यह भी अर्थ है कि रनधा का केस पहले से कहीं बहुत अधिक अब उलझ गया है ।” – एस.पी. ने कहा – “और अब तो हमारे लिये यह कहना भी मुश्किल है कि जिसे फांसी दी गई थी वह रनधा ही था या कोई दूसरा आदमी था और अब हम विश्वास के साथ यह भी नहीं कह सकते कि रनधा को फांसी दे दी गई थी ।”

“जेल वाले क्या कहते हैं ?” – हमीद ने पूछा ।

“उनका कहना तो यही है कि जो आदमी उन्हें सोंपा गया था उसी को फांसी दी गई थी ।”

इतने में अमर सिंह वापस आ गया और हमीद के पूछने पर उसने बताया कि आसिफ़ का बुरा हाल है । वह अत्यंत भयभीत है ।

“और रमेश की क्या दशा है ?” – हमीद ने पूछा ।

“देखने से तो उस पर इन घटनाओं का कोई प्रभाव नहीं है । उसने कहा है कि वह तुमसे शीघ्र ही मिलेगा । हां, सरला बहुत भयभीत है ।”

“मिस्टर राय के आफिस की तलाशी ली गई ?” – हमीद ने एस.पी. से पूछा ।

“तलाशी लेने के लिये आदमी गये हुए हैं । उनके साथ फिंगरप्रिंट सेक्शन वाले भी हैं । थोड़ी देर में पूरी रिपोर्ट मिल जायेगी ।”

इतने में फोन की घन्टी बज उठी । एस.पी. ने रिसीवर उठा लिया । दूसरी ओर से प्रकाश की घबड़ाई हुई आवाज़ सुनाई दी । वह कह रहा था ।

“मैं प्रकाश बोल रहा हूं श्रीमान जी । मेरा जीवन खतरे में है ।”

“ओह !” – एस.पी. के मुख से निकला । फिर उसने ढारस दिलाने वाले स्वर में कहा – “घबड़ाओ नहीं, मैं एस.पी. बोल रहा हूं । क्या बात है ?”

“ओह एस.पी. साहब ! यदि आप कष्ट उठाकर आ जाते तो बड़ा अच्छा होता । मैं फोन पर नहीं बता सकता ।”

“मैं आ रहा हूं ।” – एस.पी. ने कहा । फिर रिसीवर रखकर प्रकाश की बात बताने के बाद माथा ठोकता हुआ बोला – “एक कर्नल विनोद के न होने के कारण कितनी बदनामियाँ उठानी पड़ रही हैं और कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है ।”

“तो आप जायेंगे ?” – हमीद ने पूछा और उसे फौरन ही वह ड्राइवर याद आ गया जिसको उसने सीमा के साथ भी देखा था और प्रकाश के साथ भी देखा था । वह एस.पी. को ध्यानपूर्वक देखने लगा ।जाना ही पड़ेगा ।” – एस.पी. ने कहा – “जगदीश और अमर सिंह को यहां इसलिये छोड़े जा रहा हूं कि पता नहीं किस प्रकार की स्थिति उत्पन्न हो । आसिफ़ को साथ ले जाने का प्रश्न इस लिये नहीं उठता कि वह नंबरी गधा है और फिर इतना डर गया है कि उसके होश हवास उसके काबू में नहीं हैं । रह जाते हो तुम – तो तुम इतने थके हुए हो कि मैं तुम्हें और अधिक परेशान करना नहीं चाहता ।”

“जी नहीं । मैं थका हुआ नहीं हूं । मैं आपके साथ अवश्य चलूंगा ।” – हमीद ने कहा ।

एस.पी. ने कुछ नहीं कहा और हमीद को अपनी ही कार में बैठाकर उस इलाके में आया जिसकी एक गली में सेठ दूमीचंद की कोठी थी । फिर जब सड़क से दूमीचंद वाली गली में कार मुड़ने लगी तो हमीद की नज़र चौरासी कमरों वाले होटल की बालकोनी की ओर उठ गई और वह एकदम से चौंक पड़ा, इसलिये कि बालकोनी पर दो आदमी नज़र आये थे जो अपने अपने कद के लिहाज के शोटे और टामीगन वाले मालूम पड़ते थे । हमीद ने जब उन दोनों को देखा था तब उनके चेहरों पर नकाब पड़े हुए थे और इस समय उनके चेहरों पर नकाब नहीं थे इसलिये केवल कद के विचार से उन्हें शोटे और टामीगन वाला मान लेना कोई बुद्धिमानी का कार्य नहीं था क्योंकि उन कदों के आदमी तो हजारों हो सकते थे, मगर हमीद की छटवीं ज्ञान इन्द्रिय यही कह रही थी कि वह दोनों वही शोटे और टामीगन वाले हैं ।

फिर हमीद ने सोचा कि अभी उन्हें चेक करना किसी प्रकार उचित नहीं होगा । उन्हें थोडा सा अवसर देना चाहिये । उसे इसका विश्वास था कि वह दोनों चाहे जो भी हो इसी होटल में ठहरने वालों में से हैं – अगर किसी से मिलने वालों में होते तो फिर उस आदमी के कमरे में होते जिससे मिलने आये हो ।

एस.पी. ने कार रोक दी और नीचे उतरता हुआ हमीद से पूछा ।

“तुम क्या सोचने लगे थे ?”

“जी कुछ नहीं । बस इन्हीं उलझनों के बारे में सोच रहा था ।”

सेठ दूमीचंद की कोठी पर बिलकुल सन्नाटा था । कार रुकने की आवाज़ सुनते ही चार सशस्त्र आदमी गेट पर आ गये थे और उन्होंने एस.पी. तथा हमीद को गेट पर ही रोक लिया था । फिर प्रकाश का चेहरा दिखाई दिया । उसने चारों को संकेत किया । वह सब हट गये और एस.पी. हमीद को लिये हुए सीढ़ियाँ चढ़ने लगा ।

“प्रकाश बहुत भयभीत है ।” – एस.पी. ने हमीद से कहा ।

“इसीलिये तो उसने इतनी जबरदस्त व्यवस्था कर रखी है ।” – हमीद ने कहा ।

प्रकाश सीढ़ियों पर ही मिल गया । वह दोनों को अपने कमरे में लाया और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और फिर बोला ।

“नीचे की व्यवस्था आप लोगों ने देख ली । इस दरवाजे का अब ऐसा सिस्टम कर दिया गया है कि जो भी अनजान आदमी इसे छूने की कोशिश करेगा उसे शोक लगेगा मगर इन व्यवस्थाओं के बाद भी मुझे विश्वास है कि मैं क़त्ल कर दिया जाऊँगा ।”

“हिम्मत रखिये ! और बताइये कि क्या बात है ?” – एस.पी. ने कहा ।

प्रकाश ने मेज की दराज खोलकर एक लिफ़ाफ़ा निकाला जिसके एक कोने पर फांसी का फंदा बना हुआ था । उसने लिफ़ाफे के अंदर से एक कागज निकाला और उसे एस.पी. की ओर बढ़ा दिया । कागज़ पर लिखा था ।

‘जान बचानी है तो देश छोड़ दो वर्ना मरने के लिये तैयार हो जाओ । चौबीस घंटे का समय दिया जा रहा है ।’

कागज पर भी रनधा का विशिष्ट निशान फांसी का फंदा बना हुआ था ।

***

“आपकी मौत से किसको लाभ पहुंच सकता है ?” – एस.पी. ने प्रकाश से पूछा ।

“वीना को ।” – प्रकाश ने उत्तर दिया ।

“और यदि आप देश छोड़कर चले जाएं तो ?”

“विदेश जाने का अर्थ यह होगा कि मैं अपना कारोबार बंद कर दूं ।”

“मैंने लाभ की बात पूछी थी ।” – एस.पी. ने टोका ।

“तो फिर मेरे सहयोगियों अर्थात पार्टनर्स को लाभ पहुंचेगा या वीना को ।”

“आपके पार्टनर्स कौन कौन हैं ?”

“मिस्टर नौशेर, मिस्टर मेहता, सुहराब जी और सीमा ।”

हमीद चौंक पड़ा । फिर प्रकाश से पूछा ।

“सीमा से आपका क्या मतलब है ?”

“हमने पाँच करोड़ का एक प्रोजेक्ट तैयार किया है जिसके हम पांचों बराबर के हिस्सेदार हैं ।”

“रात जिन लोगों को रनधा की कैद में समय व्यतीत करना पड़ा था उनमें सीमा और सुहराब जी भी थे ।” – हमीद ने एस.पी. से कहा । फिर प्रकाश को सम्बोधित करते हुए कहा – “तुम्हारा कारोबार तो वनस्पति घी और तेल का है ना ?”

“जी हां । हम लोग यह नया कारोबार कर रहें हैं ।”

“तुम्हारा छोटा भाई क्या करता है ?” – हमीद ने पूछा ।

“लंदन में पढ़ रहा है और आने ही वाला है ।”

“तुम्हारे कारोबार में उसका हिस्सा भी तो होगा ही ?”

“हां । मगर कानूनी तौर पर नहीं । इसलिये कि अभी उसका नाम नहीं चढ़ा है ।”

“एक आदमी तुम्हारा दोस्त है जिसका नाम मैं नहीं जानता इसलिये मैंने उसका नाम ड्राइवर रख लिया है । उसे मैंने परसों सीमा की कार ड्राइव करते हुए देखा था और उसी को कल तुम्हारी कार ड्राइव करते हुए देखा था । क्या मैं गलत कह रहा हूं ?”

“जी नहीं । आप ने सच कहा है ।”

“और कल ही तुम उसके साथ पार्क अनिव्यु गये थे, मिस्टर राय एडवोकेट के आफिस तक, क्यों ?”

“जज...जी हां, मगर... आप...।”
 
  • Like
Reactions: prakash2piyush

Hero tera

Active Member
1,079
3,071
144
15)

“जब तुम लोग वहां पहुंचे थे तो मैं भी वहां मौजूद था ।” – हमीद ने शुष्क स्वर में कहा – “क्षमा करना प्रकाश ! मेरा स्वर तुम्हें उखड़ा उखड़ा मालूम हो रहा होगा । मैं तुम्हारा मित्र हूं इसलिये तुम्हारी जान की रक्षा करने के लिये मैं सच्ची बात जानना चाहता हूं । अब बता दो कि वह ड्राइवर कौन है ?”

“मैं मिस्टर राय के पास इसलिये गया था ताकि उनसे मालूम कर सकूं कि रनधा को फांसी होगी या नहीं ।”

“बहलाने की कोशिश मत करो दोस्त !” – हमीद मुस्कुराया – “मैंने तुमसे उस ड्राइवर के बारे में पूछा था ।”

“वह आदमी !” – प्रकाश जबान होठों पर फेरकर बोला और भयभीत नज़रों से इस प्रकार चारों और देखने लगा जैसे वह आदमी यहीं कहीं हो और जैसे ही उसने उसका नाम लिया वह उसे मार डालेगा ।

“ठीक है । तुम उसका नाम नहीं बताना चाहते तो न बताओ, मगर इतना तो बता ही दो कि इस समय वह कहां मिल सकेगा ?”

“हो सकता है वह इस समय आप को सामने वाले होटल में मिल जाये ।”

“तुम्हारा नया प्रोजेक्ट कितने का है ?” – हमीद ने पूछा ।

“बताया तो था कि पांच करोड़ का है ।”

“और पांच ही हिस्सेदार भी हैं – तुम, सीमा, नौशेर, मेहता और सुहराब ?”

“जी हां ।”

“और मेरा ख्याल है कि बराबर बराबर का हिस्सा होगा ?”

“जी हां ।”

“क्या तुम सब लोगों के पास एक एक करोड़ रुपये हैं ?”

“जी नहीं । हम लोग कर्ज़ ले रहे हैं ।”

“किस से ?”

“लंदन की एक फर्म से । मशीनों के रूप में ।”

“उस फर्म का पता बताओगे ?”

प्रकाश ने पता बताया । हमीद ने उसे डायरी में नोट किया और बोला ।

“मुझे तुमसे जो कुछ मालूम करना था वह कर चुका । अब रह जाता है तुम्हारे जीवन की रक्षा का प्रबंध । तो इसके लिये दो ही रास्ते हैं । एक तो यह कि तुम्हें जेल में बंद कर लिया जाए या फिर तुम कुछ दिनों के लिये अपनी इसी कोठी में बंद हो जाओ और तुम्हारी कोठी पर फ़ोर्स लगा दी जाए, जो उचित समझना मुझे बता देना ।”

“मैं कैप्टन हमीद से सहमत हूं ।” – एस.पी. बोल उठा – “तुम जो उचित समझो अभी बता दो ताकि वैसी ही व्यवस्था की जाए । जेल में भी तुम्हें कष्ट नहीं होगा ।”

“मैं आपके आदेश का पालन करूँगा । दो दिन इस अपनी कोठी से बाहर नहीं निकलूंगा । आप हमारी रक्षा का प्रबंध कर दीजिये ।”

“हो जायेगा ।” – एस.पी. ने कहा और फिर उठ गया । बाहर आने के बाद हमीद ने एस.पी. से कहा ।

“वह चार आदमी जो रात मेरे साथ थे उनमें से एक का नाम सुहराब जी था । दूसरा बूचा, तीसरा बाटली वाला और चौथे का नाम भूल रहा हूं ।”

“उसका नाम एस.एच. नागर था ।” – एस.पी. ने कहा ।

“आर्लेक्च्नू में डांस का जो प्रोग्राम प्रस्तुत किया जा रहा है उसके आर्गेनाइजर्स में से सुहराब जी भी है ।”

“कहना क्या चाहते हो ?” – एस. पी. ने कहा ।

“हम लोगों ने मादाम ज़ायरे की हत्या को उपेक्षित कर रखा है – बस रनधा ही के चक्कर में पड़े हुये है ।”

“ठीक है – देखो । मेरी तो बुध्धि काम नहीं कर रही है ।” – एस. पी. ने कहा फिर पूछ बैठा “हाँ –वह तुमने लन्दन का पता क्यों नोट किया था”

“मैं आज ही कर्नल साहब को इसकी सूचना देकर उनसे प्रार्थना करूँगा कि वह उस फार्म को चेक करें ।” – हमीद ने कहा फिर अत्यंत गम्भीरता से साथ कहने लगा “इस समय तो यह सारे लोग उत्पीड़ित नजर आ रहे है – मगर इनके काले रुपये – इस ओर शायद आपका ध्यान नहीं गया था । मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि प्रकाश ने जिस लन्दन वाली कम्पनी का पता बताया है उससे केवल कागज़ ही परपर दिखाने के लिये लें देन होगा । वह फर्म रुपये नहीं देगी – यह सब इस चाल से अपना अपना काला धन ही उस प्रोजेक्ट में लगायेंगे ।”

“ओह !” एस. पी. की आँखे विस्मय से फैल गई फिर उसने मुस्कुराते हुये कहा – “आखिर हो तो कर्नल विनोद ही के शिष्य ना । और अब मेरी समझ में यह बात आई है कि कर्नल तुम्हें इतना कुओ मानते है ।”

“और इस पर भी विचार कीजिये ।” – हमीद ने कहा “कि अब तक वही लोग रनधा का शिकार हुये है जिन जिन के पास काला धन था और उन सब ने पुलिस में बस पांच – दस हज़ार की रिपोर्ट दर्ज कराई है जब कि उनके लाखो गये है ।”

“यह बात भी विचारनीय है ।” एस.पी. ने कहा “तुम इसे भी देखो और ज़रा इसका भी पता लगाने की कोशिश करना कि रनधा की लाश ले जाने वाले वह दोनों आदमीं कौन थे ।कहीं न कहीं उनके पते तो अवश्य नोट होंगे ।”

“कोशिश करूँगा ।” – हमीद ने कहा ।

“अच्छा अब गाड़ी में बैठो – चला जाये ।” एस. पी. ने कहा ।

आप जाईये ! मुझे अभी इस होटल को चेक करना है और सुहराब जी से भी मिलना है ।” हमीद ने कहा ।

“मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं मगर इतना उपदेश अवश्य दूँगा कि अपनी रक्षा का पूरा विचार रखना और मुझसे बराबर सम्बन्ध स्थापित रखना ।” एस.पी. ने कहा और कार में बैठ कर कार स्टार्ट कर दी ।हमीद होटल की और बढ़ा और चारों ओर देखने के बाद ऊपर जाने के लिये सीढियां चढ़ने लगा । इस होटल को वह दो कारणों से चेक करना चाहता था । पहला कारण तो यह था कि आते समय उसने बालकोनी पर जिन दो आदमियों को देखा था वह उसके विचारानुसार रनधा और शोटे थे । दूसरा कारण यह था कि प्रकाश ने कहा था कि वह ड्राइवर इसी होटल में मिल सकता है ।

होटल के मैनेज़र के कमरे में पहुँच कर पहले उसने अपना आइडेंटिटी कार्ड मैनेज़र को दिखाया फिर रजिस्टर तलब करके ठहरने वालों के नाम और पते देखने लगा । लगभग आधी संख्या को तो उससे आयु और राष्ट्रीयता के विचार से छांट दिया – फिर नारियों को छांटा उसके बाद उन लोगों को छांटा जो परिवार सहित ठहरे थे । इस छंटाई के बाद कुल बीस आदमी बचे । उसने मैनेज़र को कहा ।

“मै इन बीस आदमियों को चेक करना चाहता हूँ ।”

मैनेजर ने उन बीसों आदमियों के नाम देखे जिनको हमीद एक कागज़ पर नोट करता गया था फिर बोला ।

“इनमे से नौ आदमी इस समय होटल में मौजूद नहीं है । उनके कमरे बंध है मगर उन कमरों को चाभियाँ आपको मिल जायेंगी । शेष ग्यारह आदमी इस समय आपको डाइनिंग हाल में मिल जायेंगे ।”

“क्या मुझे भी खाने को कुछ मिल सकता है ?” – हमीद ने पूछा ।

“वहां केवल उन्हीं लोगों के भोजन या नाश्ते का प्रबंध किया जाता है जो वहां ठहरे होते हैं । बाहरी लोगों के लिये कोई प्रबंध नहीं किया जाता मगर आप को तो मिल ही जायेगा ।”

“शुक्रिया ।” – हमीद ने कहा और उठने ही जा रहा था कि मैनेजर ने उसे रोक लिया और घंटी बजाकर एक बैरा को बुलाया । फिर हमीद की ओर संकेत कर के कहा ।

“आपको डाइनिंग हाल में ले जाओ और जो खाना चाहें खिलाओ ।”

“जी अच्छा ।” – बैरे ने कहा और हमीद से चलने के लिये कहा ।

हमीद ने कमरे से बाहर निकल कर बैरा को वह लिस्ट दिखाई फिर अपने बारे में बताने के बाद कहा ।

“इस लिस्ट में नौ आदमी ऐसे हैं जो इस समय होटल में नहीं हैं । उनके नामों के आगे क्रास बना हुआ है । शेष ग्यारह इस समय डाइनिंग हाल में हैं । तुम्हारा काम यह होगा कि मुझे उन्हें पहचनवा दो ।” – फिर उसने दस की एक नोट बैरा को देते हुए कहा – “इन क्रास लगे नामों के बारे में मुझे भी बता दो ।”

“इनमें से केवल तीन ही के बारे में मैं बता सकता हूं । शेष छः के बारे में डाइनिंग हाल का स्टोवर्ड ही बता सकेगा । मगर इनमें से भी चार ऐसे हैं जो केवल कल से ठहरे हुए हैं इसलिये हो सकता है कि वह उन चारों के बारे में कुछ अधिक न बता सकें ।”

फिर हमीद ने कुछ नहीं कहा । बैरा के साथ डाइनिंग हाल में आकर एक खली मेज पर बैठ गया और बैरा को आर्डर दिया । फिर जब बैरा खाना लाकर मेज पर लगाने लगा तो उसने धीरे धीरे उन ग्यारह आदमियों के बारे में बता दिया कि उनके हुलिये क्या हैं और वह कहां कहां बैठे हुए हैं । बैरा के जाने के बाद हमीद भोजन करने लगा और कनखियों से बारी बारी करके उन ग्यारहों को देख भी लिया । भोजन करके वह स्टोवर्ड से मिला और शेष नै आदमियों के बारे में उससे पूछा । स्टोवर्ड के बताए हुए हुलियों के आधार पर एक आदमी का हुलिया ऐसा था जो ड्राइवर से मिलता जुलता था । उस आदमी के बारे में स्टोवर्ड को आदेश देकर बाहर निकाला और फिर झुक कर कागज़ का वह टुकड़ा उठा लिया जो फर्श पर पड़ा था । कागज़ को देखते ही उसके मुख से हलकी सी सीटी की आवाज़ निकल गई । कागज़ वैसा ही था जैसा अभी थोड़ी देर पहले उसने प्रकाश के यहां देखा था । कागज़ पर फांसी का फंदा बना हुआ था और उस पर लिखा था :

‘कैप्टन हमीद ! मौत तुम्हारा इंतज़ार कर रही है ।’

हमीद ने कागज़ जेब में रखा और बाहर निकलकर गली पार करता हुआ सड़क पर आ गया । फिर टैक्सी करके घर की ओर चल पड़ा । सोच रहा था कि होटल में तो सब ही लोग असंबंधित से नज़र आ रहे थे । किसी ने उसकी ओर देखा तक नहीं था फिर वह कागज़ का टुकड़ा वहां किसने डाला था और डाला भी था तो ऐसी जगह कि उसकी नज़र उस कागज़ पर अवश्य पड़े । इसका अर्थ तो यही हो सकता है कि होटल का कोई कर्मचारी रनधा की टोली से संबंध रखता है । हो सकता है कई हों ।

घर पहुंचकर पहले तो उसने नौकरों को चौकन्ना रहने के लिये कहा फिर अपने कमरे में जा कर सो गया ।

आंख खुली तो टेलीफोन की घंटी बज रही थी । शायद घंटी ही की आवाज़ से आंखें खुली थीं । उसने लेटे ही लेटे हाथ बढ़ाकर रिसीवर उठा लिया और फिर “हलो” कहने के बाद ही उठकर बैठ गया इसलिये कि दूसरी ओर उसके विभाग का डी.आई.जी. था जो कह रहा था ।

“मैं जानता हूं कि मैं जो कुछ कहने जा रहा हूं उसे सुनकर तुम्हें बहुत दुख होगा मगर सच्चाई छिपाई भी तो नहीं जा सकती । खबर यह है कि क्राइम रिपोर्टर रमेश क़त्ल कर दिया गया ।”

“जज...जी !” – हमीद के हाथ से रिसीवर गिरते गिरते बचा ।

“मुझे भी पहले विश्वास नहीं हुआ था । इसलिये मैंने ख़ुद जाकर देखा था । उसकी लाश उसी के फ्लैट में उसके कमरे में पड़ी हुई थी । उसकी साथी सरला मौजूद नहीं थी । वह जब वापस आई तो लाश का पता चला । सरला का रोते रोते बुरा हाल था । तुम्हारे बारे में जब मैंने पता लगवाया था तो मालूम हुआ था कि तुम कहीं तफ्तीश करने गए हो ।”

“यह दुर्घटना कितनी देर पहले हुई श्रीमान जी ?”

“अब से चार घंटा पहले – लगभग तीन बजे ।”

हमीद ने अपनी रिस्टवाच पर नज़र डाली । साढ़े छः बज रहे थे । इसका अर्थ यह हुआ कि उसके होटल से आने के एक घंटा बाद यह दुर्घटना हुई थी । डी.आई.जी. कहता जा रहा था ।
 
  • Like
Reactions: prakash2piyush

Hero tera

Active Member
1,079
3,071
144
16)

“और सुहराब जी, मिस्टर मेहता, मिस्टर नौशेर, लाल जी, उसकी लड़की सीमा, प्रकाश और इन्स्पेक्टर आसिफ़ को मौत की धमकियाँ मिल चुकी हैं ।”

“इसी लिस्ट में मुझे भी शामिल कर लीजिये ।” – हमीद ने कहा ।

“अरे ! कब ?”

“आज ही डेढ़ बजे । जब मैं रेड एरिया के चौरासी कमरों वाले होटल से खाना खाकर बाहर निकल रहा था ।”

“लगभग उसी समय सबको धमकी मिली थी । होम सेक्रेटरी अत्यंत परेशान हैं । मुझसे जवाब तलब किया गया है । बहुत बड़े बड़े लोगों का मामिला है । ऐसा लगता है कि अब इस शहर में किसी की जान माल सुरक्षित नहीं रहे ।”

“मैं केवल एक बात जानना चाहता हूं सर और वह यह कि रनधा को फांसी हुई थी या नहीं ?”

“फांसी तो हो गई ।”

“फिर रनधा कहां से टपक पड़ा ?”

“यही बात तो मेरी समझ में भी नहीं आ रही है ।”

“रमेश की लाश कहां है और सरला ?”

“रमेश की लाश पोस्टमार्टम के बाद सरकारी मुर्दाखाने में रखी हुई है और सरला भी हास्पिटल ही में है – आज ही साढ़े नौ बजे मैं विनोद से संबंध स्थापित करने की कोशिश करूँगा ।”

“अगर आज्ञा हो तो उस समय मैं भी हाजिर हो जाऊं ?”

“आ जाना ।” – आवाज़ आई और फिर संबंध भी कट गया ।

हमीद ने रिसीवर रख दिया । जल्दी से नहा धो कर कपड़े बदले । एक कप गर्म गर्म काफ़ी पी और मोटर सायकिल निकाल कर चल पड़ा । सबसे पहले सीमा के यहाँ पहुँचा । सीमा अपने पिता लाल जीके सामने ही उससे मिली । सबसे पहले हमीद ने सीमा के मुख से कल रात उसकी गिरफ्तारी की रिपोर्ट सुनी फिर उसने सीमा से कहा ।

“मुझे यह बात मालूम हुई है कि आप एक नया प्रोजेक्ट आरंभ करने वाली है जिसके हिस्सेदार आप – सुहराब – नौ शेर – मेहता और प्रकाश है ?”

“जी हाँ ।” – सीमा ने कहा “यह सच है ?”

“मुझे यह भी मालूम हुआ है कि इसके लिये आप लोग कर्ज़ लेंगे ?”

“जी हाँ – यह भी सच है ।”

“कर्ज़ लेने की स्कीम किसने बनाई थी ?” – हमीद ने पूछा ।

“हम सबने मिल कर ।”

“वह तो प्रकट है मगर मैं यह जानना चाहता हूँ कि कर्ज़ लेने की बात आप पांचो में से सबसे पहले किसके दिमाग में आई थी ?” – हमीद ने पूछा ।

“मेरा विचार है कि हम सब के दिमाग में यह बात एक साथ आई थी ।”

“कर्ज़ लेने के संबंध में किसके मुख से लंदन की किसी फर्म का नाम निकला था ?”

“सुहराब जी के मुख से ।” – सीमा ने कहा ।

“पदों का बँटवारा आप लोगों ने किस प्रकार किया था ?”

“सुहराब जी और मिस्टर मेहता डायरेक्टर – मैनेजिंग डायरेक्टर मैं और प्रकाश तथा सेक्रेटरी मिस्टर नौ शेर ।” सीमा ने कहा फिर पूछा “मगर इस समय की परिस्थिति का हमारे प्रोजेक्ट से क्या संबंध है ?”

“बहुत गहरा संबंध है मिस सीमा ।” हमीद ने शुष्क स्वर में कहा “जिसके पास भी रनधा की लूटी हुई दौलत जमा है वह उसे हजम नहीं कर पा रहा है ।उस धन को वह प्रकट भी नहीं कर सकता इसलिये इस प्रोजेक्ट का चक्कर चलाया गया है । लंदन की वह फर्म जो कर्जे पर मशीन देंगी उस फर्म से केवल कागज़ी संधि होगी – रुपये उसी आदमी के होगे जिसके पास रनधा की लूटी हुई दौलत जमा है – समझी आप – और यह भी सुन लीजिये सीमा देवी कि मैं इस समय होश में नहीं हूँ – मेरा दोस्त क्राइम रिपोर्टर रमेश क़त्ल कर दिया गया है ।”

सीमा इतनी जोर से उछली जैसे उसे साँप ने काट लिया हो । लाल जी की आँखे भी भय के कारण बाहर निकल आई थी और हमीद कहता जा रहा था ।

“मेरी और रमेश कीं आपस में कभी नहीं बनीं हम में बराबर नोक झोंक होती रहती थी – चख चलती रहती थी मगर आज जब रमेश दुनिया में नहीं रहा तब मुझे यह एहसास हुआ है कि मै उसे कितना चाहता था । मेरा कलेजा खून हो गया है । प्रतिशोध की भावना मुझे जलाये दे रही है । मुझे रमेश के क़त्ल का बदला लेना है और अब मुझे यह कहने मैं ज़रा भी झिझिक नहीं महसूस हो रही है कि रनधा की लूटी हुई दौलत और वीना आप ही पाँचो आदमियों में से किसी के पास है ।”

“मैं आप की यह बात इसलिये नहीं मान सकता कप्तान साहब कि इन पाँचो में कोई भी ऐसा नहीं है जिसे रनधा ने न लूटा हो ।” – लाल जी ने कहा “और मगर आप की इस बात को सच मान भी लिया जाये तो फिर उस आदमी को तो गुप्त हो जाना चाहिये था । जिसके पास रनधा की लूटी हुई दौलत जमा है ताकि रनधा उसका कुछ न बिगाड़ सके – मगर ऐसा नहीं है – पाँचो आदमी मोजूद है ।”

“रनधा को फाँसी हो चुकी है मिस्टर लाल जी !” – हमीद ने कहा ।

“तो फिर मौत की धमकियां आप भिजवा रहे हैं ?” – लाल जी ने व्यंग भरे स्वर में कहा । फिर गंभीरता के साथ बोला – “आप लोग गलत सोच रहे हैं । यह पांचों आदमी पहले भी रनधा का निशाना थे और आज भी हैं । यह पांचों आदमी सीधे सादे तरीके से एक नया कारोबार करने जा रहे हैं । और आप लोगों का यह सोचना भी गलत है कि रनधा को फांसी हो गई – आप लोग धोखा खा रहे हैं । रनधा को फांसी नहीं हुई ।”

“वह रनधा ही था मिस्टर लाल, जिसे आपकी कोठी में इन्स्पेक्टर आसिफ़ ने हथकड़ियां पहनाई थीं ।”
यह मैं मनाता हूं मगर वह फिर फरार हो गया ।”

“इस विषय पर मैं आप से फिर बातें करूँगा ।” – हमीद ने कहा । फिर सीमा की ओर मुड़कर बोला – “मिस सीमा ! अब तक मैं आपको छुट दिये हुए था मगर अब वार्निंग दे रहा हूं कि अगर आप ने अभी और इसी समय यह नहीं बताया कि वह ड्राइवर कौन है तो मैं इसी समय आपको हिरासत में लेकर पुलिस के हवाले कर दूंगा और वह आपसे सब कुछ उगलवा लेगी ।”

लाल जी का चेहरा क्रोध से लाल हो गया, मगर कुछ बोला नहीं । सीमा ने अपने चेहरे से हाथ हटाया । कुछ क्षणों तक फटी फटी नज़रों से हमीद को देखते रही । फिर उसकी आंखें भर आइन और होंठ कांपने लगे ।

“मैं अपने सवाल का जवाब चाहता हूं ।” – हमीद ने कहा – “वह ड्राइवर कौन है ?”

“मिस्टर रमेश !” – सीमा ने भर्राये हुए स्वर में कहा ।

हमीद ने बड़ी कठिनाई से अपने आपको संभाला । उसे सीमा का उत्तर सच प्रतीत हुआ । उसने अपनी मनोदशा को छिपाने के लिये लापरवाही का प्रदर्शन करते हुए कहा पूछा ।

“क्या उसने वह मेकअप किसी खास कारणवश...।”

“जी हां ।” – सीमा ने बात काटकर कहा – “मिस्टर रमेश ने मुझसे कहा था कि न कर्नल विनोद को बल्कि उनके पूरे विभाग को एक ऐसे आदमी की तलाश है जो किसी प्रकार सामने नहीं आ रहा है । इसलिये मिस्टर रमेश ने उस आदमी का मेकअप किया था । मैंने एक बार उनसे यह भी कहा था कि इस प्रकार तो पुलिस आप ही को धर लेगी । इस पर उन्होंने हंसकर कहा था कि धर लेगी तो सच्ची बात जानने के बाद छोड़ भी देगी मगर वह रहस्यपूर्ण आदमी, जिसे पुलिस तलाश कर रही है, जब अपना सादृश्य देखेगा तो अपने बिल से अवश्य बाहर निकल आयेगा ।”

बिजली के समान कई विचार हमीद के ज़ेहन में आये और उसे ऐसा लगा जैसे वह एक दम से अंधेरे से उजाले में आ गया हो । उसने उठते हुये कहा ।

“अब में जा रहा हूँ । आप लोगों की रक्षा के लिये पुलिस यहाँ तैनात कर दी जाएगी मगर आप लोग तीन दिन तक न इस कोठी से निकलेंगे और न किसी से मिलेंगे और इस बात की कोशिश करेंगे कि फोन पर भी किसी से बात न करें । अगर इनमे से किसी बात की अवग्ना हुई तो फिर नतीजे के ज़िम्मेदार भी अप ही लोग होगे ।”

बहार निकल कर हमीद ने मोटर साइकिल संभाली और सुहराब जी की कोठी की और चल पड़ा । उसने मोटर सायकिल फूल स्पीड पर छोड़ रखी थी – इसलिये कि सुहराब जी से मिलना भी था और ठीक समय पर डी. आई. जी. के यहाँ पहुँचना भी था । मगर जब मोटर सायकिल उस भाग में पहुँची जहाँ लगभग सो गज का रास्ता बिल्कुल सुनसान पड़ता था तो अचानक एक ओर फायर हुआ मगर उसने किसी ओर देखा नहीं और न उसे उसकी चिंता हुई – और फिर सड़क के दोनों ओर से फायर होने लगे मगर या तो उसके दिन पूरे नहीं हुये थे या फिर फुल स्पीड पर मोटर सायकिल दौड़ाने का चमत्कार था कि कोई गोली उस पर नहीं पड़ी और वह साफ़ बचता हुआ निकला चला गया ।

सुहराब जी की कोठी के कम्पाउंड में उसने मोटर सायकिल रोकी मगर अभी सीट से नीचे उतरने भी नहीं पाया था कि कई आदमी रायफलें और बंदूके ताने हुये आ गये और उसे अपने घेरे में ले लिया । हमीद ने जेब से अपना आइडेंटिटी कार्ड निकाला और बोला ।

“कैप्टन हमीद – फ्राम इन्टेलिजेन्स ।”

एक आदमी कोठी के अंदर गया और फौरन ही वापस आकर हमीद को लिये हुये कोठी के अंदर चला गया । एक बड़े से कमरे में सुहराब जी मसहरी पर लेटा हुआ था । उसके चेहरे की लालिमा ग़ायब थी । उसने हमीद को देखते ही पहले बैठने के लिये कहा फिर बोला ।

“मैं जीवन में कभी बीमार नहीं पड़ा कैप्टन ! अक्सर सोचा करता था कि मरूँगा कैसे मगर अब यह सोचता हूँ कि रनधा मुझे मारे या न मारे – इस जबरदस्त मानसिक तनाव के कारण ख़ुद मेरा हार्ट फेल हो जायेगा ।”

“क्या आप आर्लेक्च्नू में हिस्सेदार है ?” – हमीद ने पूछा ।

“हाँ – अभी हाल ही में उसके कुछ हिस्से मैंने ख़रीदे है ।”

“मादाम जायरे के प्रोग्राम से जो आमदनी होती थी वह किसे मिलती थी ?”

“पहले जब आमदनी कम थी तो मादाम जायरे से पाँच प्रतिशत कमीशन लिया जाता था मगर जब आमदनी अधिक होने लगी तो दस प्रतिशत कमीशन माँगा गया मगर मादाम जायरे इस पर तैयार नहीं हुई ।”

“कमीशन में ब्रुध्धि की माँग तो प्रोग्राम के आर्गेनाइज़र्स ने ही की होगी ?”

“जी हाँ ।”

“और मादाम जायरे के इन्कार पर आपस में खिंचाव भी पैदा हुआ होगा ?”

“जी हाँ ।” सुहराब जी ने कहा ।

“प्रोग्राम आर्गेनाइज़र में कौन कौन लोग थे ?” – हमीद ने पूछा ।

“केवल मैं ।”

“मादाम ज़ायरे के चाहने वाले कौन कौन लोग थे ?”

“अरे साहब ! वह एक कलाकार थी – हज़ारों चाहने वाले रहे होंगे भला मैं क्या बता सकता हूं ।”

“कल रात वाली दुर्घटना के बारे में बताइये ।”

“हम चारों एक जगह बैठे ड्रिंक कर रहे थे कि अचानक रनधा वहां पहुंच गया और हम चारों को रायफल के जोर पर ले गया, मगर अब सोचता हूं कि वह अच्छा ही हुआ था वर्ना मैं अब तक मर चुका होता । इसलिये कि हमारी वापसी के समय ही मेरी कोठी के सामने ठीक उस स्थान पर बम फटा था जहां से गुज़रते हुए मुझे कोठी में दाखिल होना था ।”
 
  • Like
Reactions: prakash2piyush

Hero tera

Active Member
1,079
3,071
144
17)

“रात आप रनधा की कैद में थे । अगर वह आपको मार डालना चाहता रहा होता तो रात ही मार डाले होता – इस प्रकार आपको मारने के लिये बम न फेंकता । इससे साबित होता है कि बम फेंकने वाला आपका कोई दूसरा शत्रु था । मैं उस शत्रु का नाम जानना चाहता हूं ।”

“मेरा कोई शत्रु नहीं है । भला कोई क्यों मेरा शत्रु हो सकता है ?”

“इसलिये हो सकता है कि आपने मादाम ज़ायरे को उसके हवाले नहीं किया – इसलिये अच्छा यही है कि आप उसका नाम बता दें वर्ना आज नहीं तो कल आप ज़रुर उसकी गोली का निशाना बन जायेंगे और अगर आप बता देंगे तो यह ख़तरा दूर हो जायेगा ।”

“अब आप से क्या छिपाना कैप्टन !” – सुहराब जी ने होठों पर ज़बान फेरते हुए कहा – “मादाम ज़ायरे का सबसे बड़ा चाहने वाला मैं ख़ुद हूं । मगर अब मुझे इसका एहसास हुआ कि जितनी दौलत मैं उस पर खर्च कर रहा हूं उस अनुपात से उसका झुकाव मेरी ओर नहीं है तो मैंने उसे ताना दिया । इस पर कहने लगी कि एक आदमी ऐसा भी है जो मुझसे अधिक उस पर खर्च करने के लिये तैयार है । जब मैंने उस आदमी का नाम पूछा तो पहले वह इन्कार करती रही फिर कहा कि परसों रात में डांस के बाद बता देगी, मगर परसों रात ही उस पर डांस के मध्य में ही गोली चलाई गई – अब वह अस्पताल में है और कदाचित एक सप्ताह तक मैं अभी उससे न मिल सकूँगा ।”

“आपको किस पर संदेह है ?”

“हर उस आदमी पर जो मेरे ही समान धनवान है ।”

“लेकिन यह भी तो हो सकता है कि मादाम ज़ायरे ने अपना मूल्य बढ़ाने के लिये आप से यह बात झूठ कही हो ?”

“पहले मैंने भी यही समझा था मगर बाद में मालूम हुआ कि वह झूठ नहीं बोलती इसलिये कि बाद में मुझे लंदन से यह सूचना मिली थी कि हाल ही में मादाम ज़ायरे ने एक ऐसी कंपनी के एक लाख पौंड के हिस्से ख़रीदे हैं जो मशीनों पर कर्ज़ देती है ।”

“और उसी कंपनी से आप लोग अपने प्रोजेक्ट के लिये कर्ज़ ले रहे हैं ?”

“जी हां ।”

“तो फिर कर्ज़ मत कहिये बल्कि यह कहिये कि इस प्रकार आप लोग अपना काला धन सफ़ेद कर रहे हैं ।” – हमीद ने मुस्कुराकर कहा फिर पूछा – “आप लोग कहां ड्रिंक कर रहे थे ?”

जब सुहराब जी ने उस तहखाने का पता बता दिया तो हमीद ने पूछा ।

“उस गोदाम नुमा इमारत का मालिक कौन है ?”

“मैं और बाटलीवाला ।”

“तहखाने के ऊपर वाले फ्लैट में जो आदमी अपनी बीवी और साली के साथ रहता है उसका क्या नाम है ?”

“वह बूचा का भाई है । उसे एक बार सजा भी हुई थी ।”

“आप सातों में कितने कुंआरे हैं और कितने अपनी बीवियों को खा चुके हैं ?”

“प्रकाश और नागर कुंआरे हैं और बाटलीवाला दो बीवियां खा चुका है – बाकी हम सब की बीवियां हैं ।”

“फिर भी आप लोग इश्क और ऐयाशी करने से बाज़ नहीं आते और आप लोगों में से हर एक आदमी सीमा से शादी करने का इच्छुक है – क्या मैं गलत कह रहा हूं ?”

“आप ठीक कह रहे हैं ।”

“मगर कठिनाई यह है कि आप में से जिनकी बीवियां जीवित हैं वह सीमा से ब्याह न करके उसे रखैल की सूरत में रखना चाहते हैं जो सीमा को मंजूर नहीं और जिससे सीमा ख़ुद शादी करना चाहती है वह शादी करने पर तैयार नहीं...।”

“आप कहना क्या चाहते हैं ?” – सुहराब जी ने बात काटकर कहा ।

“यही कि वीना का अपहरण इसीलिये किया गया था कि उससे शादी नहीं की जा सकती थी और अब पांच करोड़ वाले प्रोजेक्ट द्वारा सीमा को जाल में फंसाने की कोशिश की जा रही है । मादाम ज़ायरे भी इसी चक्कर का शिकार है – अब देखना यह है कि औरतों के इस चक्कर के पीछे कौन है ।” – हमीद ने कहा और उठ गया ।

***

जिस समय हमीद अपने डी. आई. जी. साहब के बंगले पर पहुँचा उस समय लगभग सभी बड़े आफिसर उसे लाउन्ज में मिले । वह सब डी. आई. जी. के बंगले से निकले थे और सबके मुंह लटके हुये थे । शायद डी. आई. जी. ने उन्हें फटकारा था । हमीद को देखकर उन्हें और जलन सी हो गई । एक ने दुसरे से कहा ।

“मुगले आज़म तो लंदन में तीर मारने गये है – और अब देखना है कि शहजादे सलीम साहब यहाँ कौन सा तीर मारते है ।”

“चचा आसिफ़ नहीं दिखाई दे रहे है ?” – हमीद ने एक से पूछा ।वह बेचारे तो जब से रनधा की कैद से छूटे है तब से अकेले बाथ रूम भी नहीं जाते फिर यहाँ तक कैसे आ सकते थे ।” – उसने उत्तर दिया ।

हमीद ने फिर कुछ नहीं पूछा और मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ गया । फिर जैसे ही डी. आई. जी. के कमरे में पहुँचा उन्होंने पूछा ।

“क्या रहा ?”

हमीद ने पूरी रिपोर्ट देने के बाद कहा ।

“मुझे सुहराब जी – नौ शेर – प्रकाश – मेहता – लाल जी और मादाम जायरे का वारन्ट गिरफ्तारी चाहिये ।”

“रनधा को क्यों भूल गये ?”

“रनधा को फाँसी हो चुकी है सर और मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि कल से आज तक जितनी घटनायें हुई है उनमें इन्हीं छः आदमियों में से किसी का हाथ था ।”

डी. आई. जी. कुछ कहने ही वाला था कि फोन की घंटी बजी और उन्होंने लपक कर रिसीवर उठाया और बोला ।

“हलो ।”

“लाइन पर रहिये श्रीमान जी.......हेलो.......लंदन.....योर पार्टी हियर प्लीज......हेलो...हाँ...डी. आई. जी. फ्राम सेन्ट्रल इंटेलिजेंस.....हेलो....कर्नल विनोद प्लीज.....हाँ बात कीजिये ।”

“हलो...मैं डी. आई. जी. बोल रहा हूँ....हाँ कैप्टन हमीद यहां है....उसे दे रहा हूँ ।”

उन्होंने रिसीवर हमीद को दे दिया और उसे विनोद की आवाज़ सुनाई देने लगी ।

“मुझे परिस्थिति का पता है । मैं कल संध्या तक पहुँच रहा हूँ । तुम बहुत अछे जा रहे हो । अपना पूरा ध्यान सीमा पर लगा दो । उसी द्वारा तुम वास्तविक अपराधी तक पहुंच सकते हो । थोड़ी देर बाद तुम से ब्लैकी मिलेगा उसकी मंत्रणा का विचार रखना ।”

फिर जब हमीद ने उन छः आदमियों को गिरफ़्तार करने वाली बात कही तो विनोद की आवाज आई ।

“नहीं – इसकी आवश्यकता नहीं । जल्द बाजी काम खराब कर देगी । बस तुम सीमा का ध्यान रखो और अब रिसीवर डी. आई. जी. साहब को दे दो ।”

हमीद ने रिसीवर डी. आई. जी. की ओर बढ़ा दिया । वह केवल सिर हिलाते रहे और विनोद की आवाज़े सुनते रहे फिर रिसीवर रख कर हमीद से पूछा ।

“हा – तो तुम सीमा के यहाँ जा रहे हो ?”

“जी हां । कर्नल साहब ने यही आदेश दिया है ।” – हमीद ने कहा और स्लूट करके बाहर निकल आया ।

मगर सीमा के घर जाने के बजाय मादाम जायरे की कोठी की ओर चल पड़ा । यद्यपि सुहराब जी ने उससे कहा था कि मादाम जायरे अस्पताल में है मगर न जाने क्यों उसे विश्वास था कि आज की रात वह घर पर ही होगी ।

मादाम जायरे के निवास स्थान के निकट पहुँच कर उसने मोटर सायकिल एक पेड़ की आड़ में खड़ी कर दी । यह सुनसान इलाका था । कुछ बड़ी बड़ी कोठियाँ थीं मगर इस समय सब अंधकार में डूबी हुई थी । वह गृह बाटिका में दाखिल हो गया गया तभी उसके कान के निकट से एक गोली शांय करती हुई निकल गई और वह जल्दी से ज़मीन पर लेट गया फिर पेट के बल रेंगता हुआ इमारत की ओर बढ़ने लगा । तभी तारों की छाँव में उसने एक दूसरे आदमी को देखा जो उसी के समान रेंगता हुआ दूसरी ओर से इमारत की ओर बढ़ रहा था । वह उस आदमी के बारे में कुछ सोचने भी नहीं पाया था कि फायरिंग होने लगी । जान बचनी मुश्किल हो गई इसलिये वह इस प्रकार चीखा जैसे उसे गोली लग गई । फिर उसने दौड़ते हुये क़दमो की आवाज़े सुनीं जो उसी की ओर आ रही थीं । अब वह अपनी बचत का उपाय सोचने लगा कि अचानक उस आदमी ने फायरिंग आरंभ कर दी जो दूसरी ओर से रेंगता हुआ इमारत की ओर बढ़ रहा था । परिणाम यह हुआ कि दौड़कर आने वाले दूसरी ओर मुड़ गये और फिर सन्नाटा छा गया । हमीद वैसे ही चुपचाप लेटा रहा और दुसरे रेंगने वाले को अपनी ओर आता हुआ देखने लगा । वह समझ गया था कि यह अपनी ही जात बिरादरी का आदमी होगा इसलिये मुतमइन था । वह आदमी निकट पहुँच कर हमीद को मुर्दा समझ कर उठाने के लिये झुका ही था कि हमीद ने कहा ।

“मैं ज़िन्दा हूँ – तुम कों हो दोस्त ?”

“ब्लैकी – मेरे बारे में कर्नल साहब ने आपको बताया होगा – वैसे अपने विश्वास के लिये मेरा कार्ड देख लीजिये ।”

हमीद ने पेन्सिल टार्च के प्रकाश में कार्ड देखा । कार्ड पर तस्वीर भी थी और विनोद का हस्ताक्षर भी ! हमीद ने कार्ड उसे वापस करते हुये कहा ।

“तुम्हें तो सीमा के यहाँ होना चाहिये था – फिर यहाँ कैसे ?”

“मैं सीमा ही के यहाँ जा रहा था । आशा थी कि आप वहीँ मिलेंगे मगर जब यहाँ से गुजरने लगा तो एक दम से अंधेरा हो गया और फिर मैंने कुछ लोगों को इसी कम्पाउंड में दाखिल होते हुये देखा इसलिये रुक गया । फिर मैंने कोठी के पिछले भाग से एक औरत को निकलते हुये देखा । वह लोग उसे कवर किये हुये थे । मैं उनके पीछे लग्न ही चाहता था कि आप आ गये और मुझे रुक जाना पड़ा था ।”वह लोग उस औरत को लेकर किधर गये ?” – हमीद ने पूछा ।

“काले रंग की स्टेशन वैगन पर बैठकर सीधा जाते हुये देखा था ।”

“सीधा रास्ता तो जार्ज रोड की ओर जाता है जहाँ सीमा रहती है ।” – हमीद बड़बड़ाया फिर उसने पूछा “तुम्हारे साथ कोई सवारी है ?”

“जी नहीं – मैं टैक्सी से आया था और टैक्सी से ही जाता ।”

हमीद ने उसे अपनी मोटर सायकिल की पिछली सीट पर बैठाया फिर मोटर सायकिल स्टार्ट करने के बाद जब उससे पूछा कि कर्नल का आदेख उसे कब मिला था तो उसने कहा ।

“आज ही साढ़े आठ बजे – टेलीफोन से ।”

हमीद ने फिर कुछ नहीं पूछा इसलिये कि यह तो वह समझ ही गया था कि वह विनोद की ब्लैक फ़ोर्स का आदमी है और विनोद का आदेश था कि उसकी ब्लैक फ़ोर्स के किसी भी आदमी से कोई जिरह न की जाये ।

जार्ज रोड पर सीमा की कोठी से कुछ इधर हो एक पेड़ की आड़ में हमीद ने मोटर साइकल रोक दी और उतरने ही जा रहा था कि एक गाड़ी की घडबडाहट सुनकर रुक गया । आने वाली गाड़ी उसी पेड़ से लगभग दस क़दम आगे जाकर रुक गई । उसमें से दो आदमी उतरे और आगे बढ़कर सीमा की कोठी में दाखिल हो गये ।

“हम लोग भी चलें ?” – ब्लैकी ने पूछा ।

“नहीं । हम केवल इनका पीछा करेंगे ।” – हमीद ने कहा ।

वह दोनों फौरन ही वापस आ गये । उनमें से एक ने गाड़ी के निकट पहुंचने पर कहा ।

“चारों ओर अंधेरा देखकर पहले ही मेरा माथा ठनका था और आखिर वही हुआ । वह लोग हम से पहले ही लाल जी तथा उसकी लड़की सीमा को ले उड़े ।”

“आओ चलें ।” – दूसरे ने कहा फिर दोनों गाड़ी में बैठ गये और गाड़ी आगे बढ़ गई । हमीद ने गाड़ी का पीछा आरंभ कर दिया । ब्लैकी ने कहा – “पता नहीं वह कौन लोग थे जो बाप-बेटी को उठा ले गये और यह कौन थे ?”
 
  • Like
Reactions: prakash2piyush
Top