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Adultery प्रीत +दिल अपना प्रीत पराई 2

Nevil singh

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#8

“जेठ जी के लाकर में चोरी हुई है ” चाची ने मुझे बताया

मैं- किसकी इतनी मजाल होगी जो ततैये के छत्ते में हाथ डालेगा, और पिताजी ने भला लाकर में क्या रखा होगा .

चाची- वो तो मैं नहीं जानती की क्या रखा होगा पर कुछ महत्वपूर्ण ही रहा होगा क्योंकि जेठ जी थोड़े से विचलित थे.

मैं- ठीक है मैं घर जा रहा हूँ चाचा आयेंगे तो आऊंगा

चाची- रुक न मेरे पास,

मैं- अभी नहीं बाद में आता हूँ .

मैंने एक नजर चाची के ब्लाउज से बाहर झांकती चुचियो पर डाली और वहां से निकल गया . घर आया तो मैंने पाया एक गहरी ख़ामोशी छाई हुई थी जैसे की बरसो से यहाँ पर कोई रहता नहीं हो मैं सीधा भाभी के पास गया .

“कहाँ थे तुम ” भाभी ने कहा

मैं- चाची के पास

भाभी- ओह , मुझे फ़िक्र हो रही थी .

मैं- मैंने सुना किसी ने पिताजी के लाकर में चोरी कर ली

भाभी- तुम्हारे भैया लगे है उसी में जल्दी ही मालूम हो जायेगा.

मैं- क्या फर्क पड़ जायेगा और पिताजी को क्या फर्क पड़ जायेगा अगर कोई उनकी दौलत से थोडा बहुत चुरा ले

भाभी- तुम्हे क्या लगता है पिताजी को पैसो की परवाह है , जबकि पैसे की चोरी हुई ही नहीं

मैं- तो क्या चुराया चोर ने

भाभी- एक मुट्ठी राख

“किस किस्म इ बकवास है ये, राख की चोरी और भला लाकर में कोई राख रखता है क्या . ” मैंने कहा

भाभी- पिताजी से ही क्यों नहीं पूछ लेते तुम फिर .

मैं- मुझे क्या लेना देना फिलहाल मुझे भूख लगी है खाना लगा दो मेरे लिए

भाभी- आज खाना नहीं बना घर में ,

मैं- बढ़िया

मैंने कहा और भाभी के कमरे से बाहर निकलने लगा .

भाभी- अब तुम कहाँ चले

मैं- कभी कभी लगता है ये मेरा घर नहीं है

मैं वहां से बाहर आ गया. शाम और धुंधली हो गयी थी . रात दस्तक देने को चोखट पर खड़ी थी . मैंने अपनी साइकिल उठाई और खेतो की तरफ निकल गया . पर मेरे नसीब में कुछ और ही लिखा था .रस्ते में मेरे दोस्त मिल गए उन्होंने बताया की आज पडोसी गाँव में जीमने का न्योता है किसी शादी में और वो वही जा रहे है , मुझे भी भूख लगी थी मैं उनके साथ हो लिया .

काफी दिनों बाद शादी की दावत में मौज उड़ाई थी तो खाना थोडा ज्यादा हो गया . वही पर दस से ऊपर का समय हो गया था जब हम वापिस चले. पर कुछ दूर चलते ही मेरी साइकिल पंक्चर हो गयी . मैंने दोस्तों को आगे बढ़ने को कहा और पैदल ही साइकिल को खींचते हुए गाँव की तरफ बढ़ने लगा. वो कहते है न की जिंदगी जब मारती है तो जोर से मारती है वहीँ कुछ अपनी हालत भी थी .

तनहा रात , गर्म चलती हवा और बेचैन दिल संभाले मैं बस चले जा रहा था , अपने गाँव की सीम में घुसते ही मैंने घर जाने के बजाय कुवे पर जाने का सोचा . पर जैसा मैंने कहा जिन्दगी .........

मैंने जो कच्चा रास्ता लिया था उसी पर कुछ आगे चलते हुए मुझे प्रोफेसर साहब की गाड़ी खड़ी दिखी. और पिछले कुछ दिनों में ऐसा लगातार हो रहा था जब चाचा और मैं एक दुसरे के आस पास ही थे . मैंने साइकिल एक ओर फेंकी और गाड़ी के पास जाकर देखा तो बस वो गाड़ी ही थी वहां पर .मैंने तुरंत चाचा की तलाश की . आगे बढ़ने पर कुछ झुरमुटो के पार मुझे आंच सी जलती दिखी . मैं दबे पाँव उधर बढ़ा तो देखा की आग के पास दो लोग बैठे थे . चाचा और वो ही आदमी



“क्या कर रहे है ये दोनों ” मैंने अपने आप से कहा क्योंकि वो कुछ कर ही नहीं रहे थे वो बस आग के पास बैठे थे. कभी वो ऊपर आसमान में देखते तो कभी आंच को .बहुत देर तक वो बस ऐसा ही करते रहे हाँ जब भी आग बुझने को होती वो और लकडिया उसमे डाल कर उसे सुलगा देते. बहुत देर तक बस ऐसा ही चलता रहा . फिर चाचा ने नोटों की गद्दी उस आदमी को दी और दोनों ने अपना अपना रास्ता पकड़ लिया. उनके जाने के बाद मैं उस आग के पास गया . मैंने भी आग और आसमान को देखा . दिल में अब बड़ी जिज्ञासा थी की आखिर चाचा कर क्या रहा है .

पर ये रात यु ही बीत जाती तो भला क्या खास होती. जब मैं कुवे पर पहुंचा तो रौशनी जल रही थी मतलब यहाँ कोई और भी था . मैंने देखा पिताजी शराब पी रहे थे , ऐसा बहुत कम होता था जब हम उन्हें शराब के नशे में देखते थे पर आज वो दिन नहीं था . मेरा यहाँ से चलना ही ठीक रहता पर तभी उन्होंने मुझे देख लिया

“इधर आओ ” उन्होंने कुछ तेज आवाज में कहा

मैं उनके पास गया .

“आपको कुछ चाहिए ” मैंने कहा

पिताजी- मुझे , मुझे क्या चाहिए कुछ भी तो नहीं

मैं- मैं बस ऐसे ही आ गया था पर अब घर जा रहा हूँ

पिताजी- तुम्हे क्या लगता है तुम्हारा बाप चुतिया है , ये जगह जिस से तुम्हे इतना लगाव है एक दौर था जब मैं भी बस यही रहता था . ये और बात है की जमाना बदल गया और हम भी . तुम, तुम्हारी बहुत बाते हमें दुखी करती है पर तुम्हारी यही खूबी तुम्हे खास बनाती है की इस जगह से तुम्हे भी लगाव है .

“”क्या ये जगह ख़ास है मैंने पूछा

“तुम सोच भी नहीं सकते उस से ज्यादा खास ” पिताजी ने शराब अपने गले से निचे करते हुए कहा .

“खैर, छोड़ो तुमने क्या फैसला किया ” उन्होंने कहा

मैं- किस बारे में

पिताजी- तुम्हरे बम्बई जाने के बारे में

मैं- मुझे मजबूर न कीजिये, आपकी इच्छा का एक बार मान रखा था आज तक उसका मोल चूका रहा हूँ, मुझे जिंदगी जीने दीजिये .

पिताजी- तुम्हारी जिंदगी के लिए ही तो मैं कह रहा हूँ बेटे यहां से दूर चले जाओ .

मैं- मेरी कोई जिंदगी नहीं है पिताजी और मुझे अब चलना चाहिए


मैं उठा और अंधेरे ने मुझे अपने आगोश में भर लिया.
Yaado ke jharoko se phir vahi panne palatne lagi ye update
 
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Nevil singh

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#9

आँख खुली तो पाया की सूरज सर पर चढ़ आया है , पंखा बंद था यानि की बिजली नहीं थी , उबासी लेते हुए मैंने बिस्तर छोड़ा और छज्जे पर आया . निचे भाभी आंगन में कुछ काम कर रही थी . गोर चेहरे पर सुनहरी धुप जैसे सितम ही ढा रही थी . हमारी नजरे मिली . वो मुस्कुराई और मैं छज्जे से हट गया .

मैं निचे आया और घर से बाहर निकल ही रहा था की उन्होंने आवाज दी .

“देवर जी रुको ”

मैं- मुझे देर हो रही है

भाभी- ऐसा कोई काम नहीं तुम्हे जो देर हो

मैं- फिर भी मुझे जाना है

भाभी- नाश्ता करके जाओ. मुझे मालूम है कल से कुछ नहीं खाया तुमने .

मैं- उसकी जरुरत नहीं फिलहाल मुझे जाना है

भाभी मेरे पास आई

भाभी- कितना दूर भागोगे

मैं- क्या करू इस घर में मेरा जी नहीं लगता . मेरे लिए ये सब बेगाना है ये मेरी मज़बूरी है की बार बार मुझे यहाँ लौट आना होता है

भाभी- जानती हूँ , भला मुझसे ज्यादा कौन समझता है तुम्हे

मैं बस मुस्कुरा दिया.

भाभी ने एक आह भरी और बोली- रोटी से भला कैसा बैर तुम्हे तो पसंद है न मेरे हाथ का बना खाना , तुम हम सब से नफरत कर सकते हो पर खाने से बैर न करो

मैं- नफरत अगर कर पाता तो ये घर , घर नहीं होता . आप कहती है , आप जानती है और मुझसे ही पूछती है . मुझे मेरे हाल पर छोड़ क्यों नहीं देती आप .

भाभी- क्योंकि तुम्हे इस तरह टूटते हुए नहीं देख सकती मैं, जिंदगी बस ये ही नहीं है जो तुम देख रहे हो , जिंदगी वो है जो हम सब जी रहे है .

मैं- फ़िलहाल तो यूँ है की कुछ कर नहीं सकते.

भाभी- तुम्हारे भैया भी कल से भूखे है , तुम जानते हो जब तक उन्हें मालूम न हो की तुमने खाना खा लिया वो भी नहीं खाते

मैं- इसमें मेरा क्या दोष भला

भाभी- दोष तो उनका भी नहीं है , तो उन्हें क्यों सजा दे रहे हो तुम

मैं- मैं बस खुद को सजा दे रहा हूँ भाभी . आप सब अपनी जिन्दगी जिए मुझे मेरे हाल पर छोड़ दे.

मैंने कहा और घर से बाहर निकल गया . मैं चाची के घर गया तो प्रोफेसर साहब वही पर थे .

चाचा- अरे मेरे शेर, कितने दिन हुए मिलते ही नहीं हो तुम

मैं- बस ऐसे ही

चाचा-- तुम्हारी चाची कह रही थी तुम्हे कुछ किताबे चाहिए.

मैं- जी

चाचा- मुझे बताओ मैं निकाल देता हूँ

मैंने दो चार किताबे यु ही बता दी उन्होंने. वो अन्दर चले गए. मैंने देखा की चाची के माथे पर तनाव था .

मैं- चाची क्या हुआ

चाची- कुछ नहीं

मैं- बताओ भी

चाची के बोलने से पहले ही चाचा किताबे लेकर आ गए तो बात अधूरी रह गयी .

चाचा- भाई जी , कह रहे थे की तुम बम्बई जा रहे हो

मैं- नहीं बिलकुल नहीं , पिताजी चाहते है पर मैं नहीं जाने वाला

चाचा- पर इसमें गलत क्या है

मैं- जब अपने शहर में कालेज है तो वहां क्या जाना

चाचा- भाई जी ने कुछ सोच कर ही निर्णय लिया होगा

मैं- बाद में मिलता हूँ अभी जल्दी है मुझे .

मैं वहां से निकला और थोड़ी दूर चलते ही मुझे मीता दिखी. हमारी नजरे मिली, वो हमेशा की तरह मुस्कुराई .

मैं- कैसी हो

वो- बढ़िया, तुम बताओ

मैं- मैं भी ठीक हूँ

वो- शहर जा रही हूँ

मैं- मैं भी उधर ही जा रहा था साथ चले

उसने एक बार कुछ सोचा और बोली- हाँ , बिलकुल

मैं- दो मिनट रुको मैं गाड़ी ले आता हूँ

मीता -तुम्हे परेशानी होगी

मैं- भला मुझे क्या परेशानी हो गी

मैं दौड़कर गया , और गाड़ी ले आया . ये पहली बार था जब ऐसे कोई लड़की मेरे साथ थी . मीता ने शीसा थोडा निचे किया . ठंडी हवा ने गाड़ी में जगह बना ली.

“शुक्रिया ” उसने हौले से कहा

मैं- भला किसलिए

वो- तुम्हे मालूम है

मैं- क्या आप भी . हम दोस्त है और दोस्त एक दुसरे को शुक्रिया नहीं कहते है

मीता- सो तो है , कल मिले नहीं तुम

मैं- उलझा था कुछ काम में .

मीता- ये तो अच्छा है , जीवन में काम होना बहुत जरुरी है .

बाते करते करते हम शहर पहुच गए . उसने एक दूकान के बाहर गाड़ी रोकने को कहा .

“आओ न रुक क्यों गए ”उसने कहा

मैं- भला मेरा क्या काम यहाँ

वो- हो सकता है तुम्हारी नजरे कुछ पसंद कर ले मेरे लिए .

मीता कितनी सरल थी , न जाने कैसे वो जान लेती थी मेरे मन को मुझसे पहले .

मैं उसके साथ अन्दर गया . उसकी पसंद बिलकुल निराली थी कोई फैशन नहीं , प्योर सिम्पल पर उसकी सादगी ही उसका गहना थी . न जाने मुझे क्या सुझा उसे लेकर मैं सुनार के पास गया .

“पायल पसंद करो ” मैंने उसे कहा

वो- किसके लिए

मैं- किस्मत के लिए

उसने न जाने कितनी जोड़ी देखि और फिर एक जोड़ी पायल पसंद की

“ये वाली कैसी है देखो जरा ” उसने कहा .

तीन लडियो से बनी चांदी की पायल ,जिसमे बेहद बारीक घुंघरू जड़े थे.

“हाय रे नसीब ” मेरे होंठो से अपने आप निकल पड़ा .

“कुछ कहा तुमने ” उसने पूछा

मैं- नहीं कुछ नहीं .

“क्या कीमत है इसकी ” उसने सुनार से कहा

“”५ हजार “ सुनार से पहले मेरे होंठो से निकल गया .

मीता ने हैरानी से मेरी तरफ देखा

“बढ़िया पसंद है आपकी , ये पायल बस दो जोड़ी ही बनी थी , कारीगर ने इसके बाद कभी पायल नहीं बनाई ” सुनार ने कहा

मैं- तुम पैसे लो न यार

मैंने पैसे सुनार को दिए और पायल को जेब में रख लिया .

”खाना खाते है ” मैंने कहा और हम एक होटल में आ गए.

“मैं नौकरी करना चाहती हूँ ” मीता ने कहा

मैं- ये तो बढ़िया बात है , किस विभाग में दिलचस्पी है आपकी

मीता- तुम्हे हंसी आयेगी सुनकर , मैं रेडियो की नौकरी करना चाहती हूँ

मैं- रेडिओ मकेनिक

मीता- नहीं , वो जो रेडिओ पर बोलते है न वो .

“हम्म, और ये नौकरी कैसे मिलती है मतलब आवेदन करना पड़ता है इसके लिए ” मैंने पूछा

मीता- एक कोर्स करना पड़ता है , जल्दी ही दाखिला लें लुंगी मैं

मैं- बढ़िया है .

मीता- तुमने क्या सोचा है

मैं- रडियो सुनने का

और हम दोनों ही हंस पड़े. पूरा दिन मैं उसके साथ रहा , ये दिन कब बीत गया क्या ही मालूम चला. उसे छोड़ कर जब मैं गाड़ी खड़ी करने चाची के घर गया तो वो थोडा परेशां लग रही थी .


“मैं तेरा ही इंतज़ार कर रही थी ” चाची ने कहा .
Fantastic update mitr
 
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Nevil singh

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#10



“क्या हुआ चाची ” मैंने कहा

चाची- मेरा कुछ सामान खो गया है

चाची ने नजरे चुराते हुए कहा और मैं समझ गया उस किताब के बारे में में ही जिक्र कर रही है वो .

“क्या चोरी हुआ ” मैंने अनजान बनते हुए कहा .

चाची मेरे पास आई, इतना पास की उसकी गर्म सांसे मेरे चेहरे से टकराने लगी,

“तुम जानते हो वो क्या है ” चाची ने कहा

मैं- जब तुम जानती हो मैं जानता हूँ तो अब क्या कहना क्या सुनना

चाची ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली- कुछ बातो में पर्दा रहना जरुरी है ,हमारा रिश्ता जो है हमें उसकी कद्र तो करनी होगी . हँसना बोलना एक बात है पर एक लाइन है हमारे बीच .

“कोई पर्दा नहीं है हमारे बीच, मेरी चाची हो सदा इसका सम्मान है पर चाची के आलावा आप मेरी दोस्त भी हो , मेरा सुख दुःख आपसे नहीं छिपा, इस घर में मुझे मुझसे ज्यादा कोई जानता है तो वो आप हो . और मैं इस परदे को गिरा देना चाहता हूँ तमाम उन दूरियों को मैं मिटा देना चाहता हूँ जो आपके और मेरे बीच है ” मैं एक सांस में बोल गया .

मुझे लगा यही सही समय है . मैंने चाची की कमर में हाथ डाला और उसे अपनी बाँहों में भर लिया. बिना कुछ सोचे मैंने अपने होंठ चाची के होंठो पर रख दिए. अपनी आँखों को बड़ी करके चाची ने मुझे देखा .पर मैंने उन्हें चूमना जारी रखा. चाची को अपनी बाँहों में लिए उनकी पीठ को सहलाते हुए उस लम्हे में उसे चूमना अपने आप में अद्भुद था . इ बेहद जावेदा चुम्बन के बाद मैंने चाची को छोड़ा.

“आपके जवाब का मुझे इंतज़ार रहेगा ” मैंने कहा और चाची के घर से निकल गया . बिस्तर पर लेटे बहुत देर तक मैं चाची की लिपस्टिक और मक्खन से होंठो के स्वाद को महसूस करता रहा . अँधेरे कमरे में धीमी आवाज में बजते कुमार सानु के गाने . मौसम अचानक से सुहाना लगने लगा था मुझे . जब तक की किसी ने कमरे में रौशनी नहीं की .

“अंधेरो से बड़ा लगाव हो रखा है आजकल देवर जी ” भाभी ने कहा .

मैं- इसका भी अपना मोल है

भाभी- सो तो है , मैंने सोचा आज साथ खाना खाया जाये.

मैं- न जाने क्यों मुझे भूख नहीं है .

भाभी- मैं ये तो नहीं जानती की तुम्हारे मन में क्या चल रहा है पर मुझे लगता है कुछ मामलो में हम क्लियर है , क्यों है न

मैं- कोई शक

भाभी- तो फिर ये ऐसा व्यवहार क्यों . ये रुखी बाते किसलिए . तुम तो कह कर चले जाते हो . तुम्हे क्या परवाह दुसरो पर क्या गुजरती है . इस घर की रौनके तुम से है पर तुम्हे क्या मालूम हम किस वीराने को महसूस करते है . तुम्हारा ये आवारापन , ये बंजारापन . जिदंगी को एक बार इस घर के नजरिये से देखो तो सही . हम सब से तो भाग लोगे पर खुद से कैसे भाग पाओगे.

मैं- कौन कमबख्त भागता है भाभी

भाभी- तो फिर वादा करो मुझसे आज के बाद कभी खाने के लिए मना नहीं करोगे और कम से कम एक टाइम का खाना मेरे साथ ही खाओगे .

मैं- वादे टूट जाते है , मैंने देखे है कसमो को बिखरते हुए

भाभी- तो कोशिश करना . आओ खाना खाते है मुझे भूख लगी है .

अब मैं क्या कहता , मैंने बस खाना खाया और सोने की कोशिश करने लगा . पर नींद भी जैसे दुश्मन हुई पड़ी थी . मेरी यादे, चाची की बाते उअर मीता के साथ बिताया एक खुबसूरत दिन . कभी इस करवट तो कभी उस करवट चैन जब भी नहीं मिला तो मैं घर से बाहर आया. सब कुछ खामोश था . गाँव सोया हुआ था. पैदल चलते हुए मैं गाँव से बाहर की तरफ हो लिया.



कुछ दूर चला था की कानो में लहर सी घुलने लगी . इतनी रात को किसको चुल हुई होगी . एक पल मैंने सोचा की किसी ये यहाँ ब्याह होगा तो बज रहा होगा. पर ये वैसा तराना नहीं था . एक शांत धुन जो क्या मालूम किसी सारंगी की थी या किसी बांसुरी की . पर जो भी थी कमाल थी . आवाज के सहारे मैं न जाने क्यों उस तरफ चल दिया.

काफी आगे जाने के बाद मैंने देखा की आग जल रही थी और उसके पास कोई बैठी थी .उसकी पीठ मेरी तरफ थी . दबे पाँव मैं उसकी तरफ गया .

“इन रातो को चोरी छिपे न घूमना चाहिए ” उसने बिना मुझे देखे ही कहा .

मैं उसके सामने गया . आंच की लौ में मैंने देखा वो कोई तीस पैंतीस साल की औरत थी . काले स्याह कपडे पहने , गोरा रंग .ठोड़ी पर तीन काले तीन . गहरी काली आँखे . दो पल में मैंने उसका हुलिया नाप लिया .

“माफी चाहूँगा, मैं अपने खेत में जा रहा था , ये तान सुनी तो इधर आ गया ” मैंने कहा .

“आ बैठ जरा. एक से भले दो .” उसने कहा तो मैं पास में रेत पर बैठ गया .

“खेत तो तेरे दो कोस दूर है यहाँ से , पर कोई न अब आया है तो बैठ दो बात कर , वैसे भी नींद तो तेरी है न साथ आज ” उसने कहा

मैं थोडा हैरान हो गया .

“आपको कैसे पता ” मैंने पूछा

“एक बंजारन मैं एक बंजारा तेरे अन्दर . सबके मन की जाने वो मस्त कलंदर ” ऐसा कहकर उसने आसमान की तरफ ध्यान दिया .

मैं- आप कोई भविष्य देखने वाली है क्या .

वो- ना रे , मुझे भी नींद नहीं आ रही थी तो इधर चली आई. सबके अपने अपने दुःख है , तू तेरे से दुखी मैं मेरे से .

उसने आग थोड़ी और सुलगाई . मैं बस उसे देखता रहा .

मैं- कुछ दिन पहले मैंने दो लोगो को ऐसे ही बैठे देखा था आग जलाए वो आसमान में कुछ देख रहे थे .

वो- तुझे क्या दीखता है ऊपर आसमान में

मैं- मुझे मेरी तन्हाई दिखती है

वो- आग में हाथ डाल जरा

मैं- जलेगा

वो- डाल तो सही


मैंने वैसा ही किया. आग की पीली बैंगनी लपटें लपकी मेरे हाथ की तरफ पर वो आग ठंडी लगी मुझे बर्फ सी ठंडी . उसने मेरा हाथ अपने हाथ में पकड़ा और फिर झटके से छोड़ दिया.
Baijaan jindgi ki jhalak dikhla gai yeh raat naam aaya ki mast kalandar jaane
Khud me khud ko talashna ek janun ban gaya bhai ka
Bahad umda update mitr
 
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Nevil singh

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#11

“क्या हुआ ” मैंने पूछा

वो- खाली है तेरा मन ये ठीक नहीं

मैं- तो क्या करे

वो- तू क्या करेगा नसीब करेगा. जिन गलियों को छोड़ आया है वो तुझे पुकारेंगी .

मैं- ऐसा नहीं होगा . वो दौर कोई और था ये दौर दूसरा है

वो- मैं मिलूंगी तुझसे फिर पूछूंगी

मैं- ठीक है मिलते है फिर

मैंने उस से कहा और उस से विदा ले ली. वो एक बार फिर अपनी सारंगी बजाने लगी.

सुबह घर गया . चाची कही दिखी नहीं मुझे . मैं आँगन में बैठा अख़बार पढ़ रहा था की माँ मेरे पास आई.

“बहुरानी कुछ दिन के लिए मायके जाएगी. तू छोड़ आना ” माँ ने कहा

मैं- ये मेरा काम नहीं है माँ. वहां से कोई आ जाये लेने या भाई छोड़ आये .

माँ- वैसे तो कहता है की माँ तेरा हर कहा मानता हु और जब कोई करने को कहूँ तो तेरे बहाने

मैं- ठीक है माँ आपका हुक्म सर माथे पर भाभी से कहना जल्दी से तैयार हो ले . पर मैं रुकुंगा नहीं वहां .

माँ- हाँ ठीक है मत रुकना .

अब क्या कहता मैं माँ से कुछ भी तो नहीं . घंटे भर बाद जब भाभी ऊपर से नीचे उतरी तो मैं बस उसे देखता ही रह गया. मेरी नजरो ने जो उस चेहरे का दीदार किया चाहते हुए भी मैं खुद को रोक न सका. एक सिम्पल सी गुलाबी साडी माथे पर एक टीका , कानो में बड़े बड़े झुमके . होंठो पर गुलाबी ही लिपस्टिक . खैर मैं भाभी को लेकर उनके मायके की तरफ चल पड़ा .

बहुत देर तक गाड़ी में हम दोनों के बीच ख़ामोशी सी रही .

“क्या बात है कुछ बोलते क्यों नहीं ” भाभी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा.

मैं- आप जानती थी न की मैं नहीं आना चाहता था .

भाभी- मैं चाहती थी की तुम आओ .

मैं- मेरा होना न होना क्या ही फर्क पड़ता है

भाभी- ये तुम कहते हो . तुम ये सोचते हो ?

मैं- कोई और बात करते है

भाभी- सारी बाते बस ये ही तो है .

मैं- कल किसी ने बताया मुझे की मेरा मन खाली है .

भाभी- बेवकूफ था वो जिसने ऐसा बताया .

मैं- मुझे भी ऐसा ही लगा.

भाभी ने अपना हाथ मेरे हाथ पर रखा और बोली- देवर जी , ये जो जीवन है न इसे जीना बड़ा दुश्वार होता है . हर चाह पूरी हो जाये ये सबके नसीब में तो नहीं होता न, किसी के बेहिसाब सुख मिल जाता है किसी को दुःख ये संसार का नियम है . पर इन्सान को निरंतर आगे बढ़ते रहना होता है . यही रीत है .

मैं- रीत के बाते सब करते है

भाभी- तुम किस की बात करते हो

मैं- क्या मालूम

भाभी-- एक दौर आये गा , जब जिंदगी गुलजार होगी आज रीत है पर तब प्रीत होगी . कोई ऐसी आयेगी जो हर कदम तुम्हे थाम कर चलेगी.

मैंने गाड़ी रोक दी . भाभी के गाँव की सीम आ गयी थी .

भाभी- क्या हुआ

मैं- सीम आ गयी है

भाभी- गाँव भी आएगा.

मैं- आप गाड़ी ले जाओ मैं यही से मुड जाता हूँ.

भाभी- मैं पैदल ही चली जाती हूँ कौन सा दूर है . कदमो ने खूब नापा है इन रास्तो को .

मैं- क्यों कर रही है आप ऐसा .

भाभी- मैंने सोचा था की दो दिन तुम मेरे साथ रहोगे यही . मेरे लिए रुक जाओ न , मेरे साथ रहो . तुमने कहा था मुझे

मैं- ठीक है आपकी यही चाह है तो ये ही सही ये भी ठीक है .

मैंने गाड़ी गेर में डाली और आगे बढ़ गए. गाँव शुरू होने से पहले वो बावड़ी आई . वो सरकंडे . वो टूटी सीढिया . दिल तो बहुत किया पर मैंने गाड़ी नहीं रोकी. गाँव का वो बाजार आज भी गुलजार था . वो चूडियो की दूकान वो हरी चुडिया आज भी वैसे ही टंगी थी . थोडा आगे वो बनारसी बर्फी वाले की दूकान . गलियों को पार करते हुए हम भाभी के घर की तरफ बढ़ रहे थे . दो मोड़ और पार किये और फिर हम हमारी मंजिल के सामने थे .गाड़ी से उतरे . भाभी ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली- आओ

मैं- आप चलो , मैं सामान लेकर आता हूँ .

भाभी- कोई और ले जायेगा .

हम अन्दर आये. सबने अच्छे से स्वागत किया हमारा. चाय नाश्ता हुआ. भाभी अन्दर चली गयी मैं मेहमान खाने में ही रुक गया . मेरे दिल में न जाने क्या था मैं क्या बताऊ .

“मैं थोडा बाहर होकर आता हूँ ” मैंने कहा और मैं वहा से दूर आ गया . मैं पैदल ही निकल पड़ा. मेरे कदम जहाँ मुझे ले जा रहे थे मैं जाना नहीं चाहता पर कुछ चीजों पर आपका बस नहीं होता . मैं एक बार फिर उसी बाजार में था . अर्जुनगढ़ के बाजार में .

“बाबु ये चुडिया देखो, जय पर्दा ने यही चुडिया पहनी थी ” चूड़ी वाली ने कहा .

मुझे हंसी आ गयी .

“सबको ऐसा ही कहती हो. अब तो कुछ नया बोलो. ” मैंने कहा

वो- तुम तो ऐसा कह रहे हो जैसे पहले मेरी दुकान से चूड़ी खरीदी है .

मैं- क्या नाम है आपका गुडिया

वो- जूही .

मैं- तो जूही , आपके पास सबसे अच्छी चुडिया कौन सी है .

“अरे तुझे बोला था न घर रहना तू फिर यहाँ आ गयी , नाक में दम करके रखा है तूने तो ”

जूही- अरे बाप रे माँ आ गयी , बाबू मुझे वो डांटेंगे दर्जन भर चूड़ी ले लो न .

मैं इस से पहले जवाब देता उसकी माँ हमारे पास आ गयी . हमारी नजरे मिली और वो मुझे पहचान गयी .

”आप, आप यहाँ इतने दिनों बाद ” इसके आगे वो कुछ बोलती मैंने इशारे से उसे चुप रहने को कहा .

“बड़ी प्यारी गुडिया है जूही . ” मैंने कहा और जेब से गड्डी निकाल कर जूही के सर पर वार कर उसकी माँ को दे दी. और जाने को मुड गया .

जूही- बाबु, पैसे दिए चूड़ी लेना भूल गए.

मैं- एक दिन आऊंगा


ऐसा लगता था की जैसे बस कल की ही बात हो . आँखों के सामने जैसे सब दौड़ने लगा था . मैंने मेरी साँसों को फूलते हुए महसूस किया. मुझे शायद चक्कर सा आ गया था . मैं वहां से चला ही था मेरे कानो में शंखनाद गूँज उठा.
Phir vahi kahani dohra rahi hai yeh zindgi
Reet ki preet aakhir le hi aayi in hasheen lamho me
Khubsurat update dost
 
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Nevil singh

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#12

मेरे गाँव से अर्जुनगढ़ की दुरी कोई ज्यादा नहीं थी मुश्किल से दस किलोमीटर होगी, पर कच्चे रस्ते से थोडा और कम हो जाती थी .ये शंखनाद जो मेरे कानो में गूँज रहा था. ये संकेत होता था की दोपहर का प्रसाद तैयार है . अर्जुनगढ़ का प्रसिद्ध मंदिर जहा पर हर दोपहर आलू की सब्जी और पूरी मिलती थी खाने को . ये नाद जैसे मुझसे कह रहा था की बहुत देर हुई अब और नहीं , किस का है इंतज़ार तुझे उठा कदम और आ पास मेरे .

पर मैंने उस दिशा से मुह मोड़ लिया . तबियत ठीक नहीं लग रही थी , चक्कर आ रहे थे तो मैं वापिस भाभी के घर आया और सो गया . आँख खुली तो मैंने देखा कमरे में बल्ब जल रहा था . मेरी नजर सामने दिवार घड़ी पर गयी रात का डेढ़ बज रहा था . पास सोफे पर भाभी बैठी थी जिनकी निगाहे मेरे ऊपर ही थी .

“आप अभी तक जाग रही है ” मैंने कहा

भाभी- तुम ऐसे ही सो गए थे . मैंने इंतजार करने का सोचा तुम्हारे जागने का क्योंकि जागते ही तुम्हे भूख लगती है

मैं- माफ़ी चाहूँगा, यु ऐसे आपको शर्मिंदा नहीं करना चाहता था जब आप अपने घर पर है , मुझे चक्कर आ रहे थे अवसाद में आँख लग गयी .

भाभी- तुम्हारी वजह से मैं कभी शर्मिंदा नहीं हो सकती . ऐसा सोचना भी गलत है . नींद का क्या है वैसे भी मैं बस थोड़ी देर पहले ही यहाँ आई वर्ना घरवालो से गप्पे ही लड़ा रही थी .

जग से गिलास भर का मैंने थोडा पानी पिया जो सीधा कलेजे को लगा.

“आप जाओ भाभी , सुबह मिलते है ” मैंने कहा और वापिस बिस्तर पर लेट गया .भाभी जाते जाते दरवाजे पर रुकी जिस तरह से उन्होंने पलट कर मुझे देखा , एक पल वो नजर मुझे दिल में उतरती दिखी .

अगली सुबह बड़ी खुशगवार और सुहानी थी . मैं सुबह सुबह ही बाहर निकल गया , अर्जुनगढ़ में ये दूसरा दिन था मेरा. घूमते घूमते मैं एक बार फिर बाजार की तरफ आ गया था . मैं बनारसी की दुकान पर जाना चाहता था पर मेरे कदम रस्ते से ही रुक गए . मैंने ठीक उसी तरह की तान सुनी जैसा वो औरत उस रात बियाबान में इकतारा बजा रही थी . मैं उस आवाज को साफ़ साफ़ महसूस कर पा रहा था .

और चलते चलते मैं ठीक उन सीढियों के पास आकर रुक गया जो ऊपर पहाड़ की तरफ जा रही थी . बहुत दूर वो शान से लहराता केसरिया झंडा हवा में गर्व से लहरा रहा था . सीढिया चढ़ कर मैं ऊपर पहुंचा. काली चट्टान के फर्श पर पानी बिखरा हुआ था और उसी फर्श पर बड़ी शान से बैठे वो इकतारा बजा रही थी .

हमारी नजरे मिली वो मुस्काई मैं मुस्कुराया.

“क्या ये इतेफाक है जो हम यहाँ यूँ मिले ” मैंने उसके पास जाकर कहा

वो- नियति भी हो सकती है . शायद इनकी मर्जी हो इस मुलाकात के पीछे

उसने सामने उस बड़ी सी मूर्ति की तरफ इशारा किया.

वो मूर्ति अपने आप में निराली ही थी . मिटटी की बनी हुई मूर्ति . जिस पर सिंदूर चढाया हुआ था .

“दर्शन कर आओ ” उसने कहा

मैं मूर्ति के पास गया शीश नवाया. दो पल मैं उस मूर्ति के पास बैठा.

“सकून मिलता है न यहाँ ” उसने मेरे पास बैठ्ते हुए कहा .

मैं- कुछ तो बात है

वो- क्या मालूम क्या होता है सकून, कुछ परछाई है सामने , एक धुंधलापन हमेशा साथ होता है .कुछ याद है कुछ नहीं . अपने आप से झुझता रहता हूँ.

वो- समझती हूँ इस बंजारेपन को

मैं- आपने उस रात जब मेरा हाथ पकड़ा था क्या देखा था

वो- कुछ नहीं

मैं- कम से कम इसके सामने तो झूठ न बोलो

मैंने मूर्ति की तरफ इशारा करते हुए कहा .

“”मैंने ज़माने भर का दुःख देखा था . वो दुःख जो तू हर घडी देखता है , वो दुःख जो तुझे जीने नहीं देगा और मर तू पायेगा नहीं .

“क्या कह रही है आप , बकवास है ये ” मैंने कहा

“फिर मुलाकात हुई तो बात करेंगे इस बारे में ” उसने कहा और उठ खड़ी हुई .

मैं- कहाँ जा रही है आप

वो- जहाँ नसीब ले जाए .

उसके जाने के बाद मैं भी उठ खड़ा हुआ . मैंने एक नजल कलाई पर बंधी घड़ी पर डाली और भाभी के घर की तरफ चल पड़ा. मैं बाजार पहुंचा ही था की आँखों में लश्कारे की चमक आन पड़ी . मैंने देखा तो थोड़ी दूर मीता थी . हाँ ये मीता ही दुपट्टे खरीदते हुए .

“ये क्या कर रही है यहाँ ” मैंने उस की तरफ जाते हुए सोचा .

“हलके केसरी रंग में दिखाओ न कुछ ” वो दूकान वाले से जिरह कर रही थी .

“गहरा नीला अच्छा लगेगा आप पर ” मैंने कहा .

वो मेरी तरह घूमी. हमारी नजरे मिली .

वो- तुम यहाँ

मैं- आप भी तो हैं यहाँ

वो- सो तो है , ठीक है भैया, गहरा नीला दुपट्टा ही दो मुझे .

उसने पैसे चुकाए .

“तो कैसे यहाँ ” उसने कहा

मैं- अपने आस पास के गाँवो में बड़ा बाजार यही है तो बस ऐसे ही चला आया.

मीता- न जाने क्यों आजकल हम दोनों के बहाने एक से ही होते है

मैं- शायद किसी किस्म का इशारा है ये .

हम बाते कर ही रहे थे की मैंने जूही को उसकी माँ के संग आते हुए देखा .

जूही- बाबु, आज आओगे न चूड़ी लेने .

“जूही , कितनी बार कहा है तुझे ” उसकी माँ ने उसे कहा .

मैं- बिलकुल आयेंगे, आप मेमसाहब से पूछो उनको कौन से रंग की पसंद है

मीता- क्या

जूही- दीदी आओ हमारी दूकान पर पास में ही है

जूही ने मीता का हाथ पकड़ा तो मैंने नजरो से उसे हाँ कहा .

हम जूही की दूकान पर आ गए .

जूही- दीदी ये देखो , ये वाली आप को अच्छी लगेगी . नहीं आप ये वाली देखो

मीता- तुम पसंद करो मेरे लिए

उसने मुझ से कहा .

मैं- मुझे तो बस हरी कांच की चुडिया पसंद है , लखोरी कांच की चूडियो की बात ही अलग है .

मीता- तो जूही मुझे वही दिखाओ .

“माँ ये कौन सी चुडिया है ” जूही ने माँ से पूछा

“नसीबो की चूडिया है वो बेटा. मैं निकालती हूँ ” जूही की माँ ने कहा और अन्दर से वो बक्सा ले आई. गहरे हरे कांच में जड़े सितारे धुप में चमकने लगे. उसने वो चुडिया मीता के हाथ में रखी और बोली-जोड़ी बनी रहे .


मीता एक पल हैरान हुई और मुस्कुरा पड़ी. मीता को कुछ सामान और खरीदना था वो एक दूकान में रुकी थी , तभी मेरी नजर सामने किसी पर पड़ी और ............. ...........
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Takdeer phir ushi moud per le aayi
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#13

मैंने देखा जो आदमी चाचा के साथ रहता था वो दूर खड़ा मुझे घूर रहा था , उसकी बिल्ली जैसी आँखे मुझे ही देख रही थी . और जैसे ही हमारे आँखे आपस में मिली, हडबडाते हुए वो आगे बढ़ने लगा. सब छोड़ कर मैं उसकी दिशा में भागा . बाजार में इतनी भीड़ नहीं थी पर न जाने वो कहाँ ओझल हो गया था . मुश्किल से वो तीस मीटर दूर होगा .

“इतनी जल्दी कहाँ गया वो ” मैंने अपने आप से कहा .

उसे तलाश ही रहा था की मीता मेरी तरफ आते दिखी . मैंने खुद को सामान्य करने की कोशिश की .

“क्या हुआ ऐसे अचानक भागे क्यों तुम ” उसने कहा

मैं- कुछ नहीं बस यूँ ही

वो- चलो फिर चलते है

मैं- नहीं,आप जाओ . मैं यही रुकुंगा

मीता ने एक नजर मुझे देखा बोली- ठीक है , वैसे तुमने दाखिले का फॉर्म भर दिया क्या .

मैं- नहीं अभी नहीं

मीता- जल्दी ही भर देना. डेट जाने ही वाली है

मैं- ठीक है



उसके जाने के बाद मैं उस दाढ़ी वाले आदमी के बारे में सोचते सोचते भाभी के घर आया . वो मेरा ही इन्तजार कर रही थी .

भाभी- कहाँ थे तुम मुझे चिंता हो रही थी .

मैं- बस यही था , थोडा पानी दो मुझे

भाभी पानी का जग ले आई .

भाभी- कहीं जाना था तो मुझे बता देते हम साथ ही चल पड़ते

मैं- बस बाजार ही गया था मैं . आप सब ऐसा सोचते है की मैं छोटा बच्चा हूँ

भाभी- ऐसा नहीं है देवर जी , बस फ़िक्र है आपकी

मैं- मेरे मन में कुछ बाते है , कुछ सवाल है

भाभी- मन की बातो को छोडिये जनाब पहले आप खाना खाइए, नाश्ते से इंतज़ार करते करते दोपहर के खाने का समय हो गया , तुम्हारी पसंदीदा खैर-संगर की सब्जी बनवाई है .

मैं भाभी के साथ खाने की टेबल तक आया जैसे ही खाना परोसा गया , मेरी आँखों के सामने अँधेरा सा छा गया . चक्कर सा आने लगा. मैंने फिर से कुछ परछाई देखि. सरसों के खेत , पगडण्डी पर बैठा मैं . पायल की आवाज . पोटली में रखी रोटिया

“खैर- संगर की सब्जी , तुम्हे पसंद है न ” मैंने कानो में स्पस्ट सुनी ये आवाज पर वो चेहरा नहीं देख पाया मैं मेरी आँखे झटके से खुल गयी .

“ये क्या हो रहा है भाभी ” मैंने खुद को अस्त व्यस्त देख पूछा

भाभी---- तबियत ठीक नहीं है तुम्हारी हम अभी के अभी वापिस वापिस चल रहे है .

मैं- पर आपको तो रुकना हैं, मैं , मेरी वजह से आपको ये परेशानी नहीं होगी .

भाभी- मैंने कहा न हम अभी के अभी वापिस घर चल रहे है

भाभी का पूरा चेहरा लाल था . आँखे दहक सी रही थी . भाभी ने कुछ ही मिनटों में अपना सामान लिया और हम वहां से चल पड़े. आधे रस्ते तक गाड़ी में गहरी ख़ामोशी छाई रही .

“गाडी रोको ” भाभी ने कहा

मैंने गाड़ी रोकी. वो गाड़ी से उतर कर कच्चे रस्ते पर पैदल चल पड़ी .मैं उनके पीछे गया थोडा आगे जाने पर मैंने देखा ये पानी की बहुत पुराणी खेली थी . पर उसमे पानी था . भाभी ने अपने हाथ खेली में डाली और चेहरे पर पानी के छपके मारने लगी. शायद उनका जी घबरा रहा था गर्मी की वजह से . बहुत देर तक वो वही खेली से टेक लगाये बैठी रही .

एक तल्खी जो बेचैनी बन कर हम दोनों के बीच खड़ी थी . वापसी में पूरे रस्ते हम खामोश रहे .

चोबारे में आते ही मैंने धीमी आवाज में गाने चलाये और बिस्तर पर लेट गया . मेरी आँखों के सामने बार बार वो परछाई आ रही थी . वो आवाज मुझे जानी पहचानी लग रही थी . और इसे मैं वहम तो हरगिज नहीं कह सकता था . शाम को जब मैं निचे आ रहा था तो सीढियों पर मैं भाई से टकरा गया .

भाई- मैं तुम्हारे पास ही आ रहा था . तुमसे बात करनी थी

मैं- इस घर में और भी है आपकी बाते सुनने के लिए

भाई- तो तुम नहीं सुनोगे, तुम जानते हो तुम ये गलत कर रहे हो

मैं- सही गलत का फासला अरसे पहले मिट चूका है .

भाई- ये तुम्हारे लिए बहुत जरुरी है

मैंने कोई जवाब नहीं दिया और सीढिया उतर कर आँगन में आ गया . भाभी मुझे घुर कर देख रही थी . मैंने साइकिल उठाई और खेतो की तरफ चल पड़ा. चोपाल पर पहुँच कर मैंने देखा की भीड़ जमा है पीपल पर बने चबूतरे पर पिताजी और गाँव के कुछ मोजिज लोग बैठे थे . मैंने देखा की एक औरत को पेड़ से बाँधा हाथ . मैंने साइकिल रोकी और मामले को देखने लगा .

“गाँव वालो, ये बिमला ने गाँव का , समाज का , और अपने घरवाले का नाम बदनाम किया है .कुछ दिन पहले ये घर से अपने प्रेमी संग भाग गयी थी . अब गाँव समाज इसका फैसला करेगा. ” एक पंच ने कहा .

मैं लगातार बस बिमला को देख रहा था जिसकी हालत पतली थी , शायद उसे खूब मारा पीटा गया था . कपडे फटे थे, मिटटी में सने थे .

“मैं तो इस बदचलन को अब नहीं रखूँगा , इसने कुल पर कलंक लगाया है ” बिमला के पति ने कहा .

गाँव वाले खुसर पुसर करने लगे. पिताजी खड़े हुए और बोले- पंचायत ने फैसला किया है की बिमला को सो कोड़े मारे जाये और सर गंजा करके पुरे गाँव में घुमाया जाये , ताकि इसका हाल देखकर कोई और परम्परा, प्रतिष्ठा को तोड़ने की सोचे भी न . उसके बाद इसे गाँव निकाला जायेगा और गाँव का कोई भी इस से कोई सम्बन्ध नही रखेगा. कोई दुकानदार इसे राशन नहीं देगा. किसी के नल या कुवे से ये पानी नहीं भरेगी और जो इसकी मदद करेगा उसे भी भाई---चारे से बाहर कर दिया जायेगा. “



गाँव वाले पिताजी का जयकारा करने लगे. मुझे गुस्सा आने लगा. मैं आगे बढ़ा और चबूतरे के पास गया .

“पंचायत का फैसला गलत है , किसी भी निर्णय से पहले बिमला का पक्ष सुना जाना चाहिए ” मैंने कहा

पिताजी ने अजीब नजरो से मुझे देखा और बोले- तुम्हे घर जाना चाहिए .

“पंचो को परमेश्वर कहा जाता है , पंचायत एक तरफ़ा फैसला नहीं कर सकती , हो सकता है इसकी कोई मज़बूरी रही हो , इसके क्या हालत थे वो भी गौर किये जाये ” मैंने द्रढ़ता से अपनी बात कही .

“लड़के, ये तुम्हारा मामला नहीं है ” एक पंच ने मेरी तरफ ऊँगली करते हुए कहा

मैं- फ़िलहाल तो ये गाँव का मामला है , घर का होता तो पंचायत नहीं हो रही होती .

“तुम अभी के अभी घर जाओ , और बिमला को कोड़े मारने की कार्यवाही शुरू की जाये ” पिताजी ने गरजते हुए कहा .

एक आदमी कोड़ा लेकर उसकी तरफ बढ़ा.

“अपने कदमो को थाम ले , जब तक इसका पक्ष नहीं सुना जायेगा बिमला की तरफ किसी ने आँख भी उठाई तो ठीक नहीं होगा . ” मैंने चेतावनी देते हुए कहा .

“आपका लड़का पंचायत का अपमान कर रहा है प्रधान जी ” पंचों में से एक ने कहा .


पिताजी कुर्सी से उठे और मेरे पास आये........ .और ....... ..
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#14

पिताजी ने खींच कर एक थप्पड़ मुझे मारा, सारा गाँव स्तब्ध सा रह गया .

“गुस्ताख तेरी हिम्मत कैसे हुई पंचों के फैसले को चुनोती देने की ” पिताजी ने एक थपड और मारा.

अक्सर मैं टाल देता था, मेरा स्वभाव ऐसा नहीं था कोई दो बात कह भी देता तो मैं इग्नोर कर देता था पर आज बात मेरी नहीं थी बात थी एक बेबस , मजलूम औरत की . हो सकता था की वो गलत हो पर मेरे वजूद ने उस एकतरफा फैसले को मानने से इंकार कर दिया था .

“आपकी बहुत इज्जत करता हूँ पिताजी, आपके कहे शब्द मेरे लिए इश्वर का हुक्म है पर ये पंचायत न्याय का मंदिर है और ये तो अन्याय है . आप चाहे तो मुझे मार लीजिये , उस से आपका अहंकार तो शांत हो जायेगा पर आप भी जानते है की ये पंचायत खोखली हो चुकी है अन्दर से . ” मैंने अपनी बात कही .

“कुंवर, आप मत कहो , आप ख़राब न हो , ये निर्दयी समाज किसी को दुखी तो देख सकता है पर कभी उसकी मदद नहीं करेगा. मैं अपनी मर्जी से घर छोड़ कर गयी थी , क्योंकि वो बस नाम का ही घर था , दो रोटी के लिए भी मैं तरसती थी , मेरा घर से भागना तो इस ऊँची नाक वाले समाज को दीखता है पर ये नहीं दीखता की मेरा नालायक पति जो दारू पीकर रोज मुझे मारता था , खुद कमाता नहीं था मेरी मजदूरी के पैसे भी छीन लेता था . मैं अपना क्या दुखड़ा रोऊ इस समाज के आगे. मैं तो घर छोड़ कर इस आस में गयी थी की अगला कुछ और नहीं तो कमसेकम दो समय की रोटी तो टाइम पर देगा. कब तक इसकी मार सहती मैं ,मुझे भी जीने का अधिकार है . मेरा औरत होना कोई गुनाह तो नहीं ” बिमला चीखते हुए पंचायत से पूछ रही थी .

मैं आगे बढ़ा और उस रस्सी को खोल दी जिससे बिमला पेड़ से बंधी थी .उसने मेरे आगे हाथ जोड़ दिए.

“आपको हाथ जोड़ने की जरुरत नहीं है , जरुरत है तो इस समाज को अपनी सोच बदलने की और कोई पंचायत आपको इस गाँव से बाहर नहीं निकाल सकती , ये गाँव आज भी आपका है और आगे भी रहेगा. बेशक आपका पति आपको नहीं रखेगा आप अपने प्रेमी संग जा सकती है कोई नहीं रोकेगा आपको ” मैंने उसे दिलासा दिया.

“उसे, उसे मार दिया इन लोगो ने ” बिमला फुट फुट कर रोने लगी .

मार दिया, एक इन्सान को मार दिया गया . हो सकता था की वो गलत हो . पर किसी को मार देना किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता . मुझे गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर उस ऊँचे चबूतरे पर ऊँची कुर्सी पर मेरा बाप बैठा था . जिसकी चश्मे से झांकती आँखे मुझे ही घूर रही थी . मेरा दिल तो कर रहा था की उखाड़ कर फेंक दू इस पंचायत को , पर उस लम्हे में मैंने किसी तरह रोक लिया खुद को .

“आप यही रहेंगी ,अ आपके रहने की खाने की और तमाम जरूरते जो आपको होंगी वो मैं पूरा करूँगा. और ख़बरदार जो इस गाँव में किसी ने भी इस औरत को तंग किया परेशां किया. गाँव कान खोल कर सुन ले ये मैं कह रहा हूँ , ये मेरी शराफत है जो बस कह रहा हूँ और उम्मीद रहेगी की ये शराफत बनी रहे मेरी . ”

मैं जानता था की मैंने कुछ लोगो के गुरुर, झूठी इज्जत, मूंछो की शान को ललकार दिया था . और इसकी क्या कीमत मुझे चुकानी पड़ेगी मुझे परवाह नहीं थी . बिमला के रहने की व्यवस्था करने के बाद मैं बहुत देर तक अकेले बैठा रहा . मेरे अन्दर कुछ उबाल मार रहा था . जब दिल और कही नहीं लगा तो मैं घर की तरफ चल दिया ये जानते हुए की हर कदम बड़ा भारी था मेरा.

और घर पहुँचते ही एक अलग ही तमाशा खड़ा था मेरे लिए.

“आ गए बरखुरदार, हमारी इज्जत में चार चाँद लगा कर , हम जानते तो थे की तुम नालायक हो पर आज तो हद ही कर दी , भरे गाँव में पिताजी की इज्जत के झंडे गाड आये नवाब साहब ” भाई ने मेरी तरफ व्यंग करते हुए कहा .

“आपका इस से कुछ लेना देना नहीं है ये मेरा मामला है मैं देख लूँगा . ” मैंने जवाब दिया .

“तू देख लेगा, तू जानता है न की गाँव में किसी की औकत नहीं जो पिताजी की जुती की तरफ भी नजर उठा सके और तूने भरी पंचायत में जुबान लड़ाई उन से ” भाई गुस्से से बोला

मैं- पिताजी कोई खुदा तो नहीं जो गलत नहीं हो सकते .

“तेरी ये मजाल ” भाई ने एक घूँसा मारा मेर मुह पर . मैं गिर पड़ा . भाई ने अपनी बेल्ट निकाल ली और मेरी पीठ पर मारने लगा.

“पिताजी की कही हर बात खुदा का फरमान ही है हमारे लिये ” भाई मुझे मारते हुए बोला . ऐसा नहीं था की मैं उसका हाथ नहीं पकड सकता था , पर अगर मैं ऐसा कर लेता तो ये उस रिश्ते की डोर को तोड़ देता जो भाई और मेरे बीच था .

“”चाहे जितना मार लो पर सच तो यही रहेगा “

मैंने कहा और अगले ही पल बेल्ट का कुंडा मैंने पसली की खाल को खींचते हुए महसूस किया .

“छोड़ दीजिये , आपके छोटे भाई है वो ” भाभी चीखते हुए हमारे बीच आइ

भाई- तुम दूर हो जाओ, ये नालायक ऐसे नहीं सुधरेगा ये काम मुझे बहुत पहले कर देना चाहिए

भाभी- मैं कहती हूँ छोड़ दीजिये देवर जी को . ये अनर्थ न कीजिये , मैं जानती हु बाद में आपको बड़ा पछतावा होगा. अप खुद ही मलहम लगायेंगे , मेरी विनती है छोड़ दीजिये, बस कीजिये देखिये कितना खून बह रहा रहा है .

भाभी ने बेल्ट पकड़ ली भाई की.

“इसे कहदो मेरी नजरो से दूर हो जाये. ” भाई ने बेल्ट फेंकी और अपने कमरे में चले गए .

“मलहम लाओ कोई ”
भाभी चीखी और मुझे अपने आगोश में भर लिया .
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#15

“क्यों नहीं समझते तुम, ये जमाना कभी तुम्हारा नहीं हो सकता , क्यों बार बार उस नींव को हिलाने की कोशिश करते हो जिसकी चोखट तुमहरा सर फोडती है . ” भाभी ने मुझे अपने आगोश में लिए कहा .



“क्या ही फरक पड़ता है भाभी , जमाना मुझसे है मैं इस ज़माने से नहीं , सच और झूठ की जंग तो सदा चलती आई है . आज मैंने आवाज उठाई है कल कोई और उठाएगा ” मैंने कहा

भाभी- बस तुम्हारी ये बाते ही सब फसाद की जड़ है

भाभी ने मुझे सहारा दिया और सीढियों के पास ले आई ऊपर चोबारे में ले जाने को .

“अभी के लिए यहाँ चैन नहीं मिलेगा , थोडा पानी पिला दीजिये ” मैंने कहा

भाभी- कहाँ जाओगे , और कब तक भागोगे यूँ इस तरह

मैं- कौन कमबख्त भाग रहा है भाभी, फिलहाल तो यूँ है की इन ज़ख्मो का मजा लेने दीजिये मुझे.

भाभी- मुझे मलहम लगाने दो फिर चाहे मर्जी चले जाना

मैं- इस दर्द के मजे से रुसवा करना चाहती है आप मुझे

भाभी- इतना तो हक़ है मेरा तुम पर , इतना तो कर्म करने दो मुझे .

मैंने हाथ से पानी के मटके की तरफ इशारा किया भाभी पानी लेने दौड़ पड़ी. मैं सीढियों पर ही बैठ गया . पीठ दिवार से जो टिकी बड़ा तेज दर्द हुआ और उसी दर्द की परछाई में एक पल के लिए आँख बंद सी हो गयी .

“इतना तो करम करने दो मुझे, इतना तो हक़ है मेरा ” ये फुसफुसाहट सी हुई, हवा जैसे इन शब्दों को घोल गयी थी मेरे कानो में .

“पानी ” भाभी की आवाज ने ध्यान तोडा मेरा.

कुछ तो ऐसा हो रहा था मेरे साथ जो समझ नहीं आ रहा था . हडबडाहट में मैं उठा और घर से बाहर निकल गया भाभी आवाज देते रह गयी . रात अपने परवान चढ़ रही थी . कुछ घर जागे थे कुछ सोये थे . पैदल ही मैं खेतो की तरफ जा रहा था . गाँव की पक्की सड़क छोड़ मैं कच्चे रस्ते से अपने कुवे का रस्ता पकड़ ही रहा था की मैंने मीता को एक खेत के डोले पर बैठे देखा .

“आप यहाँ ” मैंने पूछा उस से

वो- तुम भी तो हो यहाँ

मैं- अंधेरो से लगाव सा होने लगा है

वो- ये अँधेरे अक्सर लोगो को निगल जाते है . ये अँधेरे अपने अन्दर न जाने क्या क्या दबाये बैठे है .

मैं- जरा सहारा दो मुझे, बैठने दो . सांस कुछ भारी सी है

उसने अपना हाथ दिया मुझे. मैं डोले पर बैठा तो मेरी आह निकल गयी .

“क्या हुआ , सब ठीक तो हैं न ” उसने पूछा

मैं- हाँ सब ठीक ही है

मैंने कहा

“तुम भी न ” उसने मेरी पीठ पर धौल जमाई और उसका हाथ सन गया लहू में

मीता- ये क्या है गीला गीला , एक मिनट तुम्हे तो चोट लगी है , देखने दो जरा

मैं- कुछ नहीं है आप बैठो साथ मेरे

मीता- क्या कुछ नहीं है , क्या हुआ सच सच बताओ मुझे .

न चाहते हुए भी मीता को मुझे पूरी बात बतानी पड़ी

मीता ने अपना हाथ मेरे हाथ पर रखा , उसकी आँख से निकला गर्म आंसू मैंने हथेली पर महसूस किया





वो- फिलहाल तो तुम मेरे साथ चलो . मैं मरहम पट्टी कर देती हूँ .

मैं-नहीं, आपको क्यों परेशां करना मेरी वजह

वो- तुम्हारी वजह से मुझे परेशानी होगी , ये तो नयी सी बात हुई . आओ मेरे साथ .



मैं- इस हसीं रात में आप मेरे साथ हो , इन ज़ख्मो की क्या परवाह मुझे अब

मीता- ये हसीन राते तो आती जाते रहेंगी फिलहाल तुम मेरे साथ चल रहे हो.

लगभग मुझे खींचते हुए वो बैध के पास ले आई. वैध ने कुछ लेप सा लगाया और पट्टी बाँधी तीन दिन बाद फिर आने को कहा .

मीता और मैं एक बार फिर आधी रात को गाँव के गलियारों में थे .

“आपको थोडा आजीब लगेगा पर मुझे भूख लग आई है ” मैंने कहा

मीता- कोई और समय होता तो खाना खिलाती तुम्हे

मैं- अब भी खिला सकती हो मैं मना नहीं करूँगा

मीता मुस्कुरा पड़ी और बोली- कभी कभी भूखे रहना भी ठीक होता है , भूख हमें बहुत कुछ सिखाती है , खैर रात बहुत हुई हमें घर चलना चाहिए .

मैं- किसके घर मेरे या आपके.

मीता- फिलहाल तो मैं मेरे घर जा रही हूँ , खैर मुझे याद आया तुम्हारा कालेज का फार्म रिजेक्ट हो गया है .

“क्यों भला ” मैंने हैरानी से कहा

मीता- मैंने कारन पूछा पर कालेज वालो ने कुछ नहीं बताया , खैर, कल हम प्रिंसिपल से मिलेंगे . वो ही बताएँगे

मैं ठीक है कल मिलते है फिर.

मीता- घर ही जाना

मैंने सर हिलाया और अपनी दहलीज की तरफ मुड गया , दिमाग में सवाल दौड़ रहा था की दाखिले का फॉर्म क्यों रिजेक्ट हो गया . घर पहुंचा तो देखा बत्तिया बुझी थी . धीमे कदमो से मैं चोबारे की तरफ बढ़ा ही था की भाभी मेरे सामने आ गयी .

“अपने ही घर में चोरो की तरह आ रहे हो ” भाभी ने कहा

मैं- आप जाग रही है अभी तक

भाभी- तुम भी तो नहीं सोये

मैं- क्या फर्क पड़ता है

भाभी- फर्क पड़ता है . कम से कम मुझे फर्क पड़ता है . आओ मेरे साथ

भाभी मुझे रसोई में ले आई . लाइट जलाई .

भाभी- खाना खाओ

मैं- भूख नहीं है

भाभी- ठीक है फिर मैं भी अन्न को तभी हाथ लगाऊंगी जब तुम खाओगे तब तक मेरा भी व्रत है

मैं- ये कैसी जिद है

भाभी- जिद तो तुम्हारी है , याद है जब इस घर में आई थी तो तुमने मुझसे एक वादा किया था

भाभी की आँखे भर सी आई . और मैं बिलकुल उन्हें दुखी नहीं करना चाहता था क्योंकि इस घर में बस वो ही थी जो मुझे समझती थी .

“अब क्यों देर करती हो , भूख बहुत है मुझे खाते है ” मैंने भाभी को मानते हुए कहा .

“तुम ही हो बहु जो इसे काबू में रख पाती हो , वर्ना ये किसी को भला क्या समझता है ” हमने दरवाजे की तरफ देखा चाची रसोई में अन्दर आ रही थी .

मैं- आप भी जागी है

चाची- इस घर में सब जागे है . खैर आओ खाना खाते है . हम तीनो ने मिलकर खाना खाया. रात भर हम बैठे बाते करते रहे पर मेरे दिमाग में बस एक ही सवाल चल रहा था की फॉर्म रद्द कैसे हुआ.


और अगली सुबह ठीक ग्यारह बजे मैं मीता के साथ राजकीय कालेज के बड़े से गेट के ठीक सामने खड़ा था .
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