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भाग 28
राधा और पवन शाम ढलने से पहले घर आ गये। दिन भर राधा के साथ बिताया पल पवन के शरीर मन में छा गया था। उसका मन बड़ा प्रफुल्ल था। दिन गुजरने के साथ पवन में जो शक्तियाँ बढ रही थी, उसके लिए उसे हर रोज किसी ना किसी औरत या लड्की से साथ मिलन करना जरुरी होता जा रहा था। और यह कमी कुछ हद तक पूरी होने लगी थी।
शाम से आसमान पे काला बादल छा गया। रात उतरते उतरते बारिश भी शुरु हो गई।
बारिश के इस ठंडे मौसम में और इन्हीं खुशगवार पलों को जीता हुआ पवन अपने आप को सौभाग्यशाली महसूस करता है। रात को अच्छी नींद के साथ पवन ने एक सपना देखा, **जिस में वह अपने आप को फिर से तीन पहाडी गावँ का जमींदार होता हुआ पाया। लेकिन यह जगह कहीं और थी। एक नई हवेली और उसमें रहने वाले नौकर-चाकर।**
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तेज बारिश के चलते पवन अपने खेत पर आ गया। वह छप्पर के पास बैठकर खेत की तरफ देखने लगा। सब्जी के खेत में पानी भर गया है। जब तक बारिश नहीं रुकती कुछ किया नहीं जा सकता।
पवन कल रात के सपने के बारे में सोच में पड गया। आखिर वह बार बार यही सपना क्यों देखने लगा है? आलोक भी कह रहा था, उसके नसीब में जमींदार होना तय है। लेकिन आखिर यह सब होगा कैसे? भला वह रातों रात जमींदार कैसे बन जाएगा?
"राजकुमार, तुम्हें क्या लगता है, क्या मैं सच में जमींदार बन पाऊँगा?" पवन ने अपने अंतर्मन राजकुमार चंद्रशेखर से पूछा।
"मैं भला भविश्य के बारे में कैसे कुछ कह सकता हूँ? लेकिन जैसा कि मैं ने तुम्हें बताया है, तुम्हारा सपना सिर्फ सपना नहीं है, यह भविश्य की झलकियां है। इसका वास्तविक रूप तुम ने कल को देख भी लिया है। इसी लिये मैं कहुँगा तुमने जो कुछ देखा है वह आगे जाकर जरुर होगा। तुम जमींदार जरुर बनोगे।" राजकुमार ने कहा।
"हाँ राजकुमार तुम ने सही कहा। कल को मेरे और राधा के बीच जो कुछ हुआ, उसको मैं ने अपने सपने में पाया था। मतलब मैं जरुर जमींदार भी बनूँगा।" पवन मन ही मन खुश हो गया।
"हाँ पवन, यही निर्णय है।"
"तुम देखना राजकुमार जब मैं इस इलाके का जमींदार बनूँगा, मैं पहले के जमींदारों से भी अच्छा बनकर लोगों के हित में काम करूँगा। गावँ की तरक्की के लिए जी जान लगा दूँगा।" पवन सपने देखने लगा।
"मुझे उम्मीद है तुम जरुर कर पाओगे पवन। क्यौंकि अब तुम एकेले नहीं हो, तुम शरीर से मनुष्य हो, लेकिन अन्दर से असुर और मनुष्य शक्ति का मिश्रण हो। तुम्हारे सामने कुछ अनहोनी होने से पहले ही तुम्हें उसका अंदाजा हो जाएगा।"
"लेकिन राजकुमार, तुम्हें भी मेरी मदद करनी पड़ेगी। मैं इस काम में नया हुँ, लेकिन तुम ने राज्य चलाना सीखा है, तुम्हें पता है, लोगों के हित में कैसे काम किया जाये, मेरा साथ दोगे ना?" पवन ने पूछा।
"बिलकुल पवन, तुम फिक्र मत करो। तुम एक अच्छे जमींदार साबित होगे। तुम्हारा नाम दूर दूर तक फैलेगा।"
"अरे बाप रे, वहां तो पानी भर रहा है। लगता है कोई गडडा होगा। मुझे उसे बंद करना होगा। यह बारिश भी पता नहीं कब रुकेगी!" पवन को खेत के एक कोने में पानी भरता हुआ दिखाई दिया। अगर उस गड्डे को भरा ना गया तो आसपास को लेकर और बड़ा सा गडडा बन जाएगा। पवन उठ खडा हुआ।
तेज बारिश में पवन अपने खेत पे कुदाल चलाने लगा। पवन जब उस गड्डे को भरने की कोशिश की तो पानी भरने की वजह से वह और ज्यादा बड़ा होता गया। माजरा क्या है, देखने के लिए पवन ने उसके अन्दर खोद्ना शुरु किया। और थोड़ा बहुत खुदाई करते ही पूरी मिट्टी वहां से हट गई। और एक बड़ा सा गडडा दिखाई देने लगा।
गडडे की गहराई कमर बराबर थी। पवन ने जब वहां की मिट्टी हटाई, तो उसकी हयरानी का ठिकाना नहीं रहा। उस गड्डे में भर भर के सोने की मुद्राएँ थीं।
बारिश का पानी गड्डे में जाने की वजह से अब वह सिक्के साफ दिखाई देने लगे। पवन खुशी आनन्द और उत्तेजना में क्या करेगा, क्या करना चाहिए भूल गया। तेज बारिश के इस मौसम में सुनसान खेत के बीच ही वह खुशी के मारे आसमान की तरफ चेहरा करके चीख पड़ा।
"हे, भगवान, तेरी लीला अपार है, जो तूने इस गरीब के घर यह दौलत का अम्बार भेजा।"
पवन हाँप्ता हुआ छप्पर के नीचे आ गया। वह क्या करेगा, उसे क्या करना चाहिए वह सोचने लगा।
काफी देर सोच विचार के बाद उसे एहसास हुआ, इस धनराशि का पता किसी को नहीं होनी चाहिए। यह बात फैलते फैलते डाकुओं तक पहुँच सकती है। सोने के यह सिक्के अगर आज तक यहीं पर सुरक्षित रहते आये हैं, तो आगे भी किसी को पता नहीं चलेगा। उसे वहीं रहने दिया जाये जहाँ उसे रहना चाहिए। पवन फिर से उठा और उस गड्डे को दोबारा मिट्टी डालकर भरने लगा।
"पवन जरा रुको, उसे दोबारा क्यों छुपा रहे हो?" राजकुमार ने पूछा।
"पता तो है फिर क्यों पूछ रहे हो?"
"अरे तुम ने गौर नहीं किया क्या! अभी कुछ देर पहले ही तुम यही सोच रहे थे, की तुम जमींदार कैसे बनोगे? अब किस बात का इन्तज़ार है? इस में से पांच हजार मुद्राएँ लेकर तुम गावँ की जमींदारी हासिल कर सकते हो!"
"सही में! मैं तो उत्तेजना में भूल ही गया था। क्या मुझे एसा करना चाहिए?"
"हाँ बिलकुल, शायद यही तुम्हारा नसीब हो। नहीं तो रातों रात तुम जमींदार कैसे बनोगे?"
"लेकिन राजकुमार, मैं अभी भी दुविधा में फंसा हूँ, आखिर इतने सारे सिक्के मेरे खेत पर कैसे आये? किसी ना किसी ने जरुर यहां पर इन्हें छुपाया होगा।"
"वह तो सही है। लेकिन पिछ्ले बीस सालों से तुम खुद इस जमीन के मालिक हो, अगर कोई और इसे यहां पर छुपाता, क्या तुम्हें पता नहीं लग जाता!"
"हम्म, तुम सही कहते हो, मतलब जिस ने भी इन्हें यहां पर गाढ़ के रखा है, वह कम से बीस पच्चीस साल से पहले ही गाढ़ा होगा।"
"अब इन्हें यहां से निकालो"
"नहीं राजकुमार, पूरे सिक्कों को यहीं पर रहने देते हैं। सिर्फ अपनी जरुरत के हिसाब का सिक्का निकाल लेते हैं। बाकी जब मुझे जरुरत होगी दोबारा निकालकर कहीं और छुपा दूँगा।"
इसी अनुसार पवन गड्डे में से सिक्के निकालने लगा। छप्पर में से एक बौरी लाया और उसमें सिक्का भर कर कुटिया में लाकर जमा करता गया। आखिर जब उसे लगा यह काफी है तो उसने दोबारा उसपर मिट्टी डाल दी।
आखिर उसने उन सिक्कों को गिनना शुरु किया। गिन्ने के बाद सोने की वह मुद्राएँ १०००० दस हजार से ऊपर थी।
पवन की खुशीयों का ठिकाना नहीं रहा। मारे आनन्द के उसका मन फूट रहा था। अब वह अपनी बहन और माँ को सोने के गहने बनवाकर दे सकता है। और वह भी भर भर के। लेकिन फिलहाल उसे इन सिक्कों को छिपाके रखना होगा।
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पवन बारिश में पूरा भीग चुका था। उसका कपडा कीचड़ से लथपथ हो गया। थकान के मारे पवन कुटिया के अन्दर वहीं पास में आसमान की तरफ चेहरा करके लेट गया।
काफी देर बारिश में रहने के कारन पवन के कमर में जो समययान पट्टा बंधा हुआ था, उसमें पानी चला गया। और इसी वजह से वह यंत्र खुद ब खुद चालू हो गया। और उस यान ने पवन को ना चाहते हुए भी दोबारा अतीत में खींच कर ले गया।
राधा और पवन शाम ढलने से पहले घर आ गये। दिन भर राधा के साथ बिताया पल पवन के शरीर मन में छा गया था। उसका मन बड़ा प्रफुल्ल था। दिन गुजरने के साथ पवन में जो शक्तियाँ बढ रही थी, उसके लिए उसे हर रोज किसी ना किसी औरत या लड्की से साथ मिलन करना जरुरी होता जा रहा था। और यह कमी कुछ हद तक पूरी होने लगी थी।
शाम से आसमान पे काला बादल छा गया। रात उतरते उतरते बारिश भी शुरु हो गई।
बारिश के इस ठंडे मौसम में और इन्हीं खुशगवार पलों को जीता हुआ पवन अपने आप को सौभाग्यशाली महसूस करता है। रात को अच्छी नींद के साथ पवन ने एक सपना देखा, **जिस में वह अपने आप को फिर से तीन पहाडी गावँ का जमींदार होता हुआ पाया। लेकिन यह जगह कहीं और थी। एक नई हवेली और उसमें रहने वाले नौकर-चाकर।**
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तेज बारिश के चलते पवन अपने खेत पर आ गया। वह छप्पर के पास बैठकर खेत की तरफ देखने लगा। सब्जी के खेत में पानी भर गया है। जब तक बारिश नहीं रुकती कुछ किया नहीं जा सकता।
पवन कल रात के सपने के बारे में सोच में पड गया। आखिर वह बार बार यही सपना क्यों देखने लगा है? आलोक भी कह रहा था, उसके नसीब में जमींदार होना तय है। लेकिन आखिर यह सब होगा कैसे? भला वह रातों रात जमींदार कैसे बन जाएगा?
"राजकुमार, तुम्हें क्या लगता है, क्या मैं सच में जमींदार बन पाऊँगा?" पवन ने अपने अंतर्मन राजकुमार चंद्रशेखर से पूछा।
"मैं भला भविश्य के बारे में कैसे कुछ कह सकता हूँ? लेकिन जैसा कि मैं ने तुम्हें बताया है, तुम्हारा सपना सिर्फ सपना नहीं है, यह भविश्य की झलकियां है। इसका वास्तविक रूप तुम ने कल को देख भी लिया है। इसी लिये मैं कहुँगा तुमने जो कुछ देखा है वह आगे जाकर जरुर होगा। तुम जमींदार जरुर बनोगे।" राजकुमार ने कहा।
"हाँ राजकुमार तुम ने सही कहा। कल को मेरे और राधा के बीच जो कुछ हुआ, उसको मैं ने अपने सपने में पाया था। मतलब मैं जरुर जमींदार भी बनूँगा।" पवन मन ही मन खुश हो गया।
"हाँ पवन, यही निर्णय है।"
"तुम देखना राजकुमार जब मैं इस इलाके का जमींदार बनूँगा, मैं पहले के जमींदारों से भी अच्छा बनकर लोगों के हित में काम करूँगा। गावँ की तरक्की के लिए जी जान लगा दूँगा।" पवन सपने देखने लगा।
"मुझे उम्मीद है तुम जरुर कर पाओगे पवन। क्यौंकि अब तुम एकेले नहीं हो, तुम शरीर से मनुष्य हो, लेकिन अन्दर से असुर और मनुष्य शक्ति का मिश्रण हो। तुम्हारे सामने कुछ अनहोनी होने से पहले ही तुम्हें उसका अंदाजा हो जाएगा।"
"लेकिन राजकुमार, तुम्हें भी मेरी मदद करनी पड़ेगी। मैं इस काम में नया हुँ, लेकिन तुम ने राज्य चलाना सीखा है, तुम्हें पता है, लोगों के हित में कैसे काम किया जाये, मेरा साथ दोगे ना?" पवन ने पूछा।
"बिलकुल पवन, तुम फिक्र मत करो। तुम एक अच्छे जमींदार साबित होगे। तुम्हारा नाम दूर दूर तक फैलेगा।"
"अरे बाप रे, वहां तो पानी भर रहा है। लगता है कोई गडडा होगा। मुझे उसे बंद करना होगा। यह बारिश भी पता नहीं कब रुकेगी!" पवन को खेत के एक कोने में पानी भरता हुआ दिखाई दिया। अगर उस गड्डे को भरा ना गया तो आसपास को लेकर और बड़ा सा गडडा बन जाएगा। पवन उठ खडा हुआ।
तेज बारिश में पवन अपने खेत पे कुदाल चलाने लगा। पवन जब उस गड्डे को भरने की कोशिश की तो पानी भरने की वजह से वह और ज्यादा बड़ा होता गया। माजरा क्या है, देखने के लिए पवन ने उसके अन्दर खोद्ना शुरु किया। और थोड़ा बहुत खुदाई करते ही पूरी मिट्टी वहां से हट गई। और एक बड़ा सा गडडा दिखाई देने लगा।
गडडे की गहराई कमर बराबर थी। पवन ने जब वहां की मिट्टी हटाई, तो उसकी हयरानी का ठिकाना नहीं रहा। उस गड्डे में भर भर के सोने की मुद्राएँ थीं।
बारिश का पानी गड्डे में जाने की वजह से अब वह सिक्के साफ दिखाई देने लगे। पवन खुशी आनन्द और उत्तेजना में क्या करेगा, क्या करना चाहिए भूल गया। तेज बारिश के इस मौसम में सुनसान खेत के बीच ही वह खुशी के मारे आसमान की तरफ चेहरा करके चीख पड़ा।
"हे, भगवान, तेरी लीला अपार है, जो तूने इस गरीब के घर यह दौलत का अम्बार भेजा।"
पवन हाँप्ता हुआ छप्पर के नीचे आ गया। वह क्या करेगा, उसे क्या करना चाहिए वह सोचने लगा।
काफी देर सोच विचार के बाद उसे एहसास हुआ, इस धनराशि का पता किसी को नहीं होनी चाहिए। यह बात फैलते फैलते डाकुओं तक पहुँच सकती है। सोने के यह सिक्के अगर आज तक यहीं पर सुरक्षित रहते आये हैं, तो आगे भी किसी को पता नहीं चलेगा। उसे वहीं रहने दिया जाये जहाँ उसे रहना चाहिए। पवन फिर से उठा और उस गड्डे को दोबारा मिट्टी डालकर भरने लगा।
"पवन जरा रुको, उसे दोबारा क्यों छुपा रहे हो?" राजकुमार ने पूछा।
"पता तो है फिर क्यों पूछ रहे हो?"
"अरे तुम ने गौर नहीं किया क्या! अभी कुछ देर पहले ही तुम यही सोच रहे थे, की तुम जमींदार कैसे बनोगे? अब किस बात का इन्तज़ार है? इस में से पांच हजार मुद्राएँ लेकर तुम गावँ की जमींदारी हासिल कर सकते हो!"
"सही में! मैं तो उत्तेजना में भूल ही गया था। क्या मुझे एसा करना चाहिए?"
"हाँ बिलकुल, शायद यही तुम्हारा नसीब हो। नहीं तो रातों रात तुम जमींदार कैसे बनोगे?"
"लेकिन राजकुमार, मैं अभी भी दुविधा में फंसा हूँ, आखिर इतने सारे सिक्के मेरे खेत पर कैसे आये? किसी ना किसी ने जरुर यहां पर इन्हें छुपाया होगा।"
"वह तो सही है। लेकिन पिछ्ले बीस सालों से तुम खुद इस जमीन के मालिक हो, अगर कोई और इसे यहां पर छुपाता, क्या तुम्हें पता नहीं लग जाता!"
"हम्म, तुम सही कहते हो, मतलब जिस ने भी इन्हें यहां पर गाढ़ के रखा है, वह कम से बीस पच्चीस साल से पहले ही गाढ़ा होगा।"
"अब इन्हें यहां से निकालो"
"नहीं राजकुमार, पूरे सिक्कों को यहीं पर रहने देते हैं। सिर्फ अपनी जरुरत के हिसाब का सिक्का निकाल लेते हैं। बाकी जब मुझे जरुरत होगी दोबारा निकालकर कहीं और छुपा दूँगा।"
इसी अनुसार पवन गड्डे में से सिक्के निकालने लगा। छप्पर में से एक बौरी लाया और उसमें सिक्का भर कर कुटिया में लाकर जमा करता गया। आखिर जब उसे लगा यह काफी है तो उसने दोबारा उसपर मिट्टी डाल दी।
आखिर उसने उन सिक्कों को गिनना शुरु किया। गिन्ने के बाद सोने की वह मुद्राएँ १०००० दस हजार से ऊपर थी।
पवन की खुशीयों का ठिकाना नहीं रहा। मारे आनन्द के उसका मन फूट रहा था। अब वह अपनी बहन और माँ को सोने के गहने बनवाकर दे सकता है। और वह भी भर भर के। लेकिन फिलहाल उसे इन सिक्कों को छिपाके रखना होगा।
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पवन बारिश में पूरा भीग चुका था। उसका कपडा कीचड़ से लथपथ हो गया। थकान के मारे पवन कुटिया के अन्दर वहीं पास में आसमान की तरफ चेहरा करके लेट गया।
काफी देर बारिश में रहने के कारन पवन के कमर में जो समययान पट्टा बंधा हुआ था, उसमें पानी चला गया। और इसी वजह से वह यंत्र खुद ब खुद चालू हो गया। और उस यान ने पवन को ना चाहते हुए भी दोबारा अतीत में खींच कर ले गया।