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Incest : पुर्व पवन : (incest, romance, fantasy)

कहानी आपको केसी लग रही है।।


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Babulaskar

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भाग 28


राधा और पवन शाम ढलने से पहले घर आ गये। दिन भर राधा के साथ बिताया पल पवन के शरीर मन में छा गया था। उसका मन बड़ा प्रफुल्ल था। दिन गुजरने के साथ पवन में जो शक्तियाँ बढ रही थी, उसके लिए उसे हर रोज किसी ना किसी औरत या लड्की से साथ मिलन करना जरुरी होता जा रहा था। और यह कमी कुछ हद तक पूरी होने लगी थी।


शाम से आसमान पे काला बादल छा गया। रात उतरते उतरते बारिश भी शुरु हो गई।


बारिश के इस ठंडे मौसम में और इन्हीं खुशगवार पलों को जीता हुआ पवन अपने आप को सौभाग्यशाली महसूस करता है। रात को अच्छी नींद के साथ पवन ने एक सपना देखा, **जिस में वह अपने आप को फिर से तीन पहाडी गावँ का जमींदार होता हुआ पाया। लेकिन यह जगह कहीं और थी। एक नई हवेली और उसमें रहने वाले नौकर-चाकर।**

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तेज बारिश के चलते पवन अपने खेत पर आ गया। वह छप्पर के पास बैठकर खेत की तरफ देखने लगा। सब्जी के खेत में पानी भर गया है। जब तक बारिश नहीं रुकती कुछ किया नहीं जा सकता।

पवन कल रात के सपने के बारे में सोच में पड गया। आखिर वह बार बार यही सपना क्यों देखने लगा है? आलोक भी कह रहा था, उसके नसीब में जमींदार होना तय है। लेकिन आखिर यह सब होगा कैसे? भला वह रातों रात जमींदार कैसे बन जाएगा?


"राजकुमार, तुम्हें क्या लगता है, क्या मैं सच में जमींदार बन पाऊँगा?" पवन ने अपने अंतर्मन राजकुमार चंद्रशेखर से पूछा।


"मैं भला भविश्य के बारे में कैसे कुछ कह सकता हूँ? लेकिन जैसा कि मैं ने तुम्हें बताया है, तुम्हारा सपना सिर्फ सपना नहीं है, यह भविश्य की झलकियां है। इसका वास्तविक रूप तुम ने कल को देख भी लिया है। इसी लिये मैं कहुँगा तुमने जो कुछ देखा है वह आगे जाकर जरुर होगा। तुम जमींदार जरुर बनोगे।" राजकुमार ने कहा।


"हाँ राजकुमार तुम ने सही कहा। कल को मेरे और राधा के बीच जो कुछ हुआ, उसको मैं ने अपने सपने में पाया था। मतलब मैं जरुर जमींदार भी बनूँगा।" पवन मन ही मन खुश हो गया।


"हाँ पवन, यही निर्णय है।"


"तुम देखना राजकुमार जब मैं इस इलाके का जमींदार बनूँगा, मैं पहले के जमींदारों से भी अच्छा बनकर लोगों के हित में काम करूँगा। गावँ की तरक्की के लिए जी जान लगा दूँगा।" पवन सपने देखने लगा।


"मुझे उम्मीद है तुम जरुर कर पाओगे पवन। क्यौंकि अब तुम एकेले नहीं हो, तुम शरीर से मनुष्य हो, लेकिन अन्दर से असुर और मनुष्य शक्ति का मिश्रण हो। तुम्हारे सामने कुछ अनहोनी होने से पहले ही तुम्हें उसका अंदाजा हो जाएगा।"


"लेकिन राजकुमार, तुम्हें भी मेरी मदद करनी पड़ेगी। मैं इस काम में नया हुँ, लेकिन तुम ने राज्य चलाना सीखा है, तुम्हें पता है, लोगों के हित में कैसे काम किया जाये, मेरा साथ दोगे ना?" पवन ने पूछा।


"बिलकुल पवन, तुम फिक्र मत करो। तुम एक अच्छे जमींदार साबित होगे। तुम्हारा नाम दूर दूर तक फैलेगा।"


"अरे बाप रे, वहां तो पानी भर रहा है। लगता है कोई गडडा होगा। मुझे उसे बंद करना होगा। यह बारिश भी पता नहीं कब रुकेगी!" पवन को खेत के एक कोने में पानी भरता हुआ दिखाई दिया। अगर उस गड्डे को भरा ना गया तो आसपास को लेकर और बड़ा सा गडडा बन जाएगा। पवन उठ खडा हुआ।


तेज बारिश में पवन अपने खेत पे कुदाल चलाने लगा। पवन जब उस गड्डे को भरने की कोशिश की तो पानी भरने की वजह से वह और ज्यादा बड़ा होता गया। माजरा क्या है, देखने के लिए पवन ने उसके अन्दर खोद्ना शुरु किया। और थोड़ा बहुत खुदाई करते ही पूरी मिट्टी वहां से हट गई। और एक बड़ा सा गडडा दिखाई देने लगा।

गडडे की गहराई कमर बराबर थी। पवन ने जब वहां की मिट्टी हटाई, तो उसकी हयरानी का ठिकाना नहीं रहा। उस गड्डे में भर भर के सोने की मुद्राएँ थीं।

बारिश का पानी गड्डे में जाने की वजह से अब वह सिक्के साफ दिखाई देने लगे। पवन खुशी आनन्द और उत्तेजना में क्या करेगा, क्या करना चाहिए भूल गया। तेज बारिश के इस मौसम में सुनसान खेत के बीच ही वह खुशी के मारे आसमान की तरफ चेहरा करके चीख पड़ा।


"हे, भगवान, तेरी लीला अपार है, जो तूने इस गरीब के घर यह दौलत का अम्बार भेजा।"


पवन हाँप्ता हुआ छप्पर के नीचे आ गया। वह क्या करेगा, उसे क्या करना चाहिए वह सोचने लगा।

काफी देर सोच विचार के बाद उसे एहसास हुआ, इस धनराशि का पता किसी को नहीं होनी चाहिए। यह बात फैलते फैलते डाकुओं तक पहुँच सकती है। सोने के यह सिक्के अगर आज तक यहीं पर सुरक्षित रहते आये हैं, तो आगे भी किसी को पता नहीं चलेगा। उसे वहीं रहने दिया जाये जहाँ उसे रहना चाहिए। पवन फिर से उठा और उस गड्डे को दोबारा मिट्टी डालकर भरने लगा।



"पवन जरा रुको, उसे दोबारा क्यों छुपा रहे हो?" राजकुमार ने पूछा।


"पता तो है फिर क्यों पूछ रहे हो?"


"अरे तुम ने गौर नहीं किया क्या! अभी कुछ देर पहले ही तुम यही सोच रहे थे, की तुम जमींदार कैसे बनोगे? अब किस बात का इन्तज़ार है? इस में से पांच हजार मुद्राएँ लेकर तुम गावँ की जमींदारी हासिल कर सकते हो!"


"सही में! मैं तो उत्तेजना में भूल ही गया था। क्या मुझे एसा करना चाहिए?"


"हाँ बिलकुल, शायद यही तुम्हारा नसीब हो। नहीं तो रातों रात तुम जमींदार कैसे बनोगे?"


"लेकिन राजकुमार, मैं अभी भी दुविधा में फंसा हूँ, आखिर इतने सारे सिक्के मेरे खेत पर कैसे आये? किसी ना किसी ने जरुर यहां पर इन्हें छुपाया होगा।"


"वह तो सही है। लेकिन पिछ्ले बीस सालों से तुम खुद इस जमीन के मालिक हो, अगर कोई और इसे यहां पर छुपाता, क्या तुम्हें पता नहीं लग जाता!"


"हम्म, तुम सही कहते हो, मतलब जिस ने भी इन्हें यहां पर गाढ़ के रखा है, वह कम से बीस पच्चीस साल से पहले ही गाढ़ा होगा।"


"अब इन्हें यहां से निकालो"


"नहीं राजकुमार, पूरे सिक्कों को यहीं पर रहने देते हैं। सिर्फ अपनी जरुरत के हिसाब का सिक्का निकाल लेते हैं। बाकी जब मुझे जरुरत होगी दोबारा निकालकर कहीं और छुपा दूँगा।"


इसी अनुसार पवन गड्डे में से सिक्के निकालने लगा। छप्पर में से एक बौरी लाया और उसमें सिक्का भर कर कुटिया में लाकर जमा करता गया। आखिर जब उसे लगा यह काफी है तो उसने दोबारा उसपर मिट्टी डाल दी।

आखिर उसने उन सिक्कों को गिनना शुरु किया। गिन्ने के बाद सोने की वह मुद्राएँ १०००० दस हजार से ऊपर थी।

पवन की खुशीयों का ठिकाना नहीं रहा। मारे आनन्द के उसका मन फूट रहा था। अब वह अपनी बहन और माँ को सोने के गहने बनवाकर दे सकता है। और वह भी भर भर के। लेकिन फिलहाल उसे इन सिक्कों को छिपाके रखना होगा।

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पवन बारिश में पूरा भीग चुका था। उसका कपडा कीचड़ से लथपथ हो गया। थकान के मारे पवन कुटिया के अन्दर वहीं पास में आसमान की तरफ चेहरा करके लेट गया।

काफी देर बारिश में रहने के कारन पवन के कमर में जो समययान पट्टा बंधा हुआ था, उसमें पानी चला गया। और इसी वजह से वह यंत्र खुद ब खुद चालू हो गया। और उस यान ने पवन को ना चाहते हुए भी दोबारा अतीत में खींच कर ले गया।
 

Babulaskar

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भाग 29

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"राधा, तेरा भाई इस बारिश के मौसम में क्या करने गया खेत पर?" कुसुम ने राधा से पूछा।


"माँ, अंजान मत बनो, अगर पानी में खेत डूब गया तो हम खायेंगे क्या?"


"बड़ी आई समझाने वाली, अरे मैं कह रही हुँ, इस मौसम में अगर वह बीमार हो गया तो क्या होगा?"


"कुछ नहीं होगा मेरे भाई को, तुम निश्चिंत रहो माँ, तुम तो एसे पूछ रही हो, जैसे मैं तुम्हारी ननद हुँ, और भईया तुम्हारे पति, अगर इत्नी ही फिक्र है तो जाने क्यों दिया, बान्ध के रखो उसो अपनी पल्लू में।" राधा मुस्कुराती हुई बोल्ने लगी।


"बड़ी जबान चलने लगी है तेरी, एकबार पवन की शादी हो जाने दे, फिर तेरी बारि है। बहुत जल्द तेरा बियाह करवा दूँगी। फिर देखूँगी कैसी तेरी जबान चलती है?'"

"मेरी जबान एसे ही चलती रहेगी, देख लेना। क्यौंकि मैं तुम लोगों को छोड़ के जानेवाली नहीं हुँ! पूरी जिंदगी तुम्हारे गले पडी रहूँगी।"

"हे भगवान, कहीं तू सारी जिंदगी भर क्ंवारी फिरती रहेगी?"

"क्यों, सील तुड़वाने के लिए शादी करवाना जरुरी है क्या?"

"छि: फिर तू इधर उधर मुहं मारती फिरती रहेगी? बदमाश लड्की, ज्यादा ही बिगड़ गई है तू! रुक जरा तेरे भाई को आने दे, इसी से तेरी शिकायत करूँगी।"

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"क्या बात है रे चंचल, आजकल तू बड़ी उछलती फिर रही है? हमेशा मुस्कराये जा रही है?" चंचल की माँ आँचल ने चंचल से पूछा।

"तुम्हें सब कुछ तो पता है माँ। फिर भी पूछ रही हो?"

"ओह, मतलब मेरी बेटी अभी से शादी के सपने देखने लगी है। है ना?"

"हाँ माँ, तुम्हारी बेटी अभी से शादी के सपने देख रही है। मैं सोच सोच के परेशान हो रही हुँ। माँ, तुम्हें क्या लगता है, मैं पवन की अच्छी बीबी बन पाऊँगी ना? उसे खुश तो कर पाऊँगी ना?"

"क्यों नहीं, तू जरुर कर पायेगी। मुझे पूरा यकीन है। आखिर तूने इतना कुछ सीखा है। मर्दों को किस तरह खुश किया जाता है, वह तुझे अच्छी तरह से पता है। और मुझे भी यकीन है, पवन की बीबी बनकर तू इस गावँ की सबसे खुश नसीब लड्की होगी। वह तुझे हर लिहाज से खुश रखेगा।"

"सच्ची माँ, लेकिन तुम्हें कैसे पता?"

"अरे पगली, मैं एक औरत हूँ। और एक माँ भी। एक माँ की निगाह कभी धोका नहीं खाती।"

"भगवान करे, एसा ही हो।"

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बारिश के इस मौसम में आज गुरुजी का आँगन सुनसान पड़ा था। गुरु माँ और गुरुजी दोनों अपनी कक्षा में गावँ के बारे में बातें करने में लगे थे।


"आखिर और कितना दिन हमें इस तरह रहना पड़ेगा। इतने सालों में हमने कुछ भी तो हासिल नहीं किया। अब लगता है हमें यह हवेली भी छोड़नी पड़ेगी।" गुरु माँ बड़ी चिंतित होकर गुरुजी को संबंधित कर रही थी।

"अब हम क्या कर सकते हैं बताओ! हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। अगर हमारा लल्ला रानी मेनका को ढूँढने में कामियाब होता तो शायद हमें इतने सालों तक मेहनत करने की कोई जरुरत नहीं होती। हवेली के उस गुप्त कक्षा के बारे में केवल छोटी रानी मेनका को ही पता था। कयोंकि मुझे पूरा यकीन है, जमींदार सूर्यप्रकाश सिंह किसी पर यकीन नहीं करते थे। अपनी बड़ी बीबी हेमलता पर भी नहीं। उन्हें अपनी छोटी बीबी रानी मेनका से ज्यादा प्रेम था। शायद इसी वजह से उनहोंने रानी मेनका को वह कक्षा दिखाई थी।"


"अब क्या करेंगे हम? रानी हेमलता ने साफ साफ बता दिया है, अगर नया जमींदार आया तो हमारा यहां रहना ना रहना नए जमींदार की मर्जी पर निर्भर करेगा। फिर क्या करेंगे?" गुरु माँ परेशान थी।


"अब तुम बताओ, इस उम्र में कहाँ जायेंगे हम?"


"हम लल्ला के पास चले जायें क्या।"


"पागल हो गई हो क्या? लोगों को पता चलेगा तो हमारा अन्त बहुत बुरा होगा। देखते हैं, क्या होता है। जहाँ तक मुझे लगता है, इस गावँ में हमारा कुछ इन्तज़ाम जरुर हो जाएगा। इश्वर करे कोई अच्छा आदमी ही इस गावँ का जमींदार बने।"

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"माँ, मैं सोच रही हूँ, मैं भी अपने बाल साफ करवा लूँ।" राधा बोलती गई, पर कुसुम किसी दूसरे ख्याल में थी।


"माँ, कहाँ खो गई?"


"अरे कुछ नहीं, तू क्या कह रही थी? बाल साफ करेगी?"


"हाँ, माँ, अब यह बुर के बाल मेरे से नहीं रखा जाएगा। अब तो तुम्हारी तरह बिलकुल साफ करके रखूँगी। बिल्कुल सपाट और चिकनी चूत की तरह। क्या बोलती हो?" राधा उछलती हुई बोली।

"अच्छा हुआ तेरी सुद्बूध हो गई। भला चूत पे बाल रखने का क्या फायदा? अभी तुझे पता नहीं, लेकिन जब तेरी शादी होगी तब मालुम पड़ेगा, बुर पे बाल रखकर तूने कितनी बड़ी भूल की है?"


"एसा क्या? मुझे भी बताओ ना! शादी के बाद साफ चूत होने से क्या अच्छा होगा?" राधा अंजान बने अपनी माँ के मुहं से सुनना चाह रही थी।


"मुझ से क्यों पूछ रही है? तू तो मुझ से ज्यादा जानती है ना, खुद पता कर ले।"


"अब बता भी दो माँ। तुम नहीं बताओगी तो कौन बतायेगा? तुम तो मेरी अच्छी माँ हो, मेरी सबसे अच्छी सहेली और दोस्त।" राधा अपनी माँ कुसुम से लिपट गई।


"छोड़ हराम की! बड़ा परेशान करती है! एसे नखरे करती है जैसे मैं तेरी सचमुच की सहेली हुँ? भूल मत माँ हुँ तेरी?" कुसुम भी मासूम बनती है।


"हाँ बाबा हाँ, माँ हो, समझ गई। अब बताओ।"


"क्या होगा इस लड्की का! एसी बात भी मेरे मुहं से सुनना चाहती है। तो सुन, बुर पे बाल रखने से पति के साथ सम्भोग करते समय बाल बुर में फंस जाता है। जिस से औरत की चूत में जलन होती है। लेकिन अगर तू चूत के बाल साफ रखेगी तो मर्द का लौड़ा सीधा तेरी चूत को चीरता हूआ अन्दर तक पहुँच जाएगा। उस में ना जलन होगी और ना बाल बुर में फंसेगा, इससे चुदाई का मजा ज्यादा आता है पगली। समझी मेरी बात।"

राधा जानती थी। क्यौंकि यह हादसा उसके साथ हो चुका है। और इसी लिए वह चूत साफ रखना चाहती है। क्यौंकि पवन के साथ जो कुछ हूआ अब दोनों एक दूसरे को प्यार किए बिना रह नहीं पायेंगे। और इसी वजह से राधा बुर के बाल काटना चाह रही थी।


"ओह, एसी बात है। फिर तो जरुर साफ करुँगी। अच्छा माँ, क्या तुम भी इसी लिए हमेशा चूत साफ रखा करती हो? की पिताजी जब भी आये तो तुम्हें कोई दिक्कत ना हो।"

राधा के सवाल पे कुसुम चुप हो जाती है।


"अब तुझे अपनी बात कित्नी बार बताऊँ? तेरा बाप तो आने से रहा? अगर उसे आना होता शायद अबतक आ जाता। अब तो मुझे लगता है, मुझे बिधवा का भेस अपना लेना चाहिए। कबतक यूं लोगों से झूट कहती रहूँगी?" कुसुम दूसरे ख्यालों में डूब जाती है। राधा अपनी माँ को गले लगा लेती है।


"अरे, फिर वही! कहीं नहीं तुम बिधवा की तरह रहने लगोगी। अगर तुम्हें यकीन है तो पिताजी जरुर आयेंगे। तुम्हारा प्यार उन्हें खींच लाएगा। मुझे पूरा विश्वास है। मेरी अच्छी माँ!" राधा अपनी माँ को दिलासा देती है।

"काश की तेरी बात सच हो। अच्छा चल छोड़, मेरी वजह से तू भी दुखी होने लगी। पगली! बता क्या पूछ रही थी? आज तेरी सारी जिज्ञासा दूर किए देती हूँ।"


"यह तो बहुत अच्छी बात है माँ, मेरी अच्छी माँ, मैं पूछ रही थी की, तुम हमेशा बुर साफ क्यों रखती हो?"


"देख, मुझे बचपन से ही साफ सफाई में रहने की आदत है। तेरी नानी ने मुझे यह सब कुछ सिखाया था। लेकिन हाँ कुछ और कारणों से भी तेरी यह माँ अपनी चूत हमेशा साफ करके रखती है। तुझे पता है?, तेरी नानी मुझ से हमेशा कहा करती थी, मेरे लिये दूर देश से कोई राजकुमार आयेगा। और वह मेरा दिल जीत लेगा। मेरे साथ भी एसा ही हुआ। वास्तव में तेरा पिता एक राजकुमार की तरह मेरी जिंदगी में आया था। उसका आना भी हमेशा अचानक होता था।

मुझे आज भी याद है, तेरा पिता पहली बार जब आया, तब दो तीन दिन रुका था हमारे घर। फिर वह जैसा आया था वैसे ही चला गया। मैं भी टूट चुकी थी। और बस भगवान से प्रार्थना करती थी, किसी तरह मेरा राजकुमार लौटकर आ जाये और मुझे अपना बना ले। मैं अपना सब कुछ उसके नाम कर चुकी थी।" कुसुम के कहने के बीच राधा बोल पड़ी।


"तो बापू तुम्हें इतने अच्छे लगे? तुम्हें उनसे प्यार हो गया? और बापू को? क्या वह भी तुम से प्यार करने लगे थे?" राधा बड़ी उत्सुक दिख रही थी।


"तेरा पिता था ही इत्ना अनोखा, की देखकर ही प्यार हो जाता। और हाँ, तेरा बापू भी मुझे प्यार करने लगा था। फिर उसके कई दिनों बाद, मोह मिलन मेले के दिन तेरा पिता फिर से आया। मैं तो भगवान से प्रार्थना करने लगी थी, और जब मैं ने उसे देखा मैं खुशी के मारे रोने लगी।

तेरा पिता एक तो जवान था दूसरा आम लड़कों से उसमें काफी शक्तियां थी। वह मुझे पागलों की तरह प्यार करता था। तेरी नानी भी हमें घर में अकेली छोड़ देती ताकी हम दोनों अलग रह सकें।"


"फिर तो बापू ने तुम्हें खा लिया होगा!"


"और नहीं तो क्या? कहा ना, तेरा पिता एक बलशाली युवक था। वह जब मेरे से सम्भोग करता, मुझे पूरा थका देता था। एक एक दिन में कभी पांच बार कभी छ बार सात बार तक उसने मुझ से सम्भोग किया है।"


"क्या बात करती हो माँ? सा-----त बार? और तुम ने बरदास्त कर लिया? तुम्हारे बुर में जलन या सुझन कुछ हुआ नहीं?"


"और नहीं तो क्या? जलन तो बहुत होती थी और चूत भी सूझ जाती थी। लेकिन एक बात बताऊँ तुझे? तेरा बाप एक जादुगर था। उसका इतना बड़ा लण्ड जब मेरी चूत में घुसता, होना तो चाहिए था मुझे दर्द हो, लेकिन तेरा बाप एसा कुछ करता था जिससे मुझे मिलन करते समय बिलकुल भी दर्द नहीं होता। बस मजा और सूख मिलता। लेकिन हाँ, जब वह चुदाई खत्म होती और तेरा बाप झड़ने के बाद उठता तब बड़ी जलन होती थी चूत पे। लेकिन उसी सुझी हुई चूत पे जब तेरा पिता दोबारा लौड़ा डालता फिर से आनन्द और सूख मिलने लगता। वह बड़े यादगार दिन थे मेरे!"


"तो क्या पिताजी तुम्हें हर समय चोदा करते थे?"


"अरे पगली हाँ, कहा ना, तेरा बाप मेरा दीवाना था। उसका बस चलता तो मुझे कभी छोड़ता ही नहीं। वह तो बस मुझे हर समय किस तरह चोदेगा यही सब सोचता रहता। इस घर में एसा कोई कोना नहीं है जहाँ हमने चुदाई ना की हो। एक बात बताऊँ तुझे? बड़ी शर्म की बात है। मैं ने तेरे बाप से एक वचन लिया था। एक औरत कभी भी एसा वचन नहीं देती और ना ही लेती है। लेकिन तेरे पिता के लिए मैं ने यह वचन लिया था!"


"कैसा वचन?"


"जब तेरे बाप के साथ मेरा बियाह हुआ, उस समय तेरा पिता एक सप्ताह तक मेरे पास रुका था। उसके बाद पता नहीं कहां चला गया। मैं हर रोज उसका इन्तज़ार देखती। और फिर मेरे पेट में तेरा भाई आया। मैं गर्भवती हो गई। और देखते देखते मैं ने पवन को जनम दिया। लेकिन इस एक साल के अन्दर तेरा बाप नहीं आया। मैं ने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी। जब तेरा भाई दो महीना का था उस वक्त एक दिन अचानक तेरा बाप फिर से हाजिर हुआ।

एक साल दोनों एक दूसरे से जुदा रहकर पागल से हो गए थे। उस वक्त तेरा बाप दो सप्ताह तक मेरे पास रुका रहा। और हम ने बहुत अच्छा समय बिताया। हम प्यार में बिलकुल खो से गए। तब मैं ने महसूस किया तेरा बाप चाहे मुझे कितना भी प्यार करे, लेकिन उसका प्यार पाने के लिए मैं काफी नहीं हुँ।

एक दिन मैं ने तेरे बाप से कहा, मैं जान चुकी हूँ मैं अकेली तुम्हें शान्त नहीं कर सकती। मैं हार जाती हुँ, लेकिन तुम्हें और चाहिए। मैं सोच रही हूँ क्यों ना तुम एक शादी और कर लो! इस से तुम भी खुश रह पाओगे और मुझे भी थोड़ा आराम मिल जाएगा। नहीं तो सोचो एकबार, जब मेरी माहवारी आयेगी, तब तुम कैसे रहोगे?

मेरी बात सुनकर तेरा पिता तो एकदम चौंक गया। कहा, पागल हो गई हो क्या? जो अपने ही पति की शादी की बात कर रही हो?

मैं ने कहा, अजी, मेरी बात तो ध्यान से समझो, आज तो फिर भी ठीक है, लेकिन कल को जब मैं गर्भ से हो जाऊँगी, तब तुम बिना सम्भोग किए कैसे रह पाओगे?

तेरे पिता ने कहा, वह बाद में देखेंगे। लेकिन मैं तुम्हारे होते हुए किसी और से कैसे शादी कर सकता हुँ?

मैं ने फिर उन्हें समझाया, देखो, एसा मैं अपनी खुशी के लिए करना चाहती हूँ। अगर तुम खुश रहोगे तो मुझे भी खुश रखोगे। और मुझे हमारे लिए कई बच्चे चाहिए। तो क्या जब भी मैं पेट से हो जाऊँगी, तो क्या मेरा पति बिना सम्भोग के तकलीफ में रहेगा? एसा मैं हर्गिज नहीं होने दे सकती। तुम मुझे वचन दो, तुम दूसरी शादी करोगे। वह कोई भी हो, मैं उसे अपनी बहन मान लुंगी। हम दोनों खुशी खुशी तुम्हारे साथ रहेंगे।"


इतनी देर के बाद राधा बोल पड़ी, "तो माँ, यही वह वचन है? मतलब तुम ने पिताजी से कहा था, की उन्हें दूसरी शादी करनी पड़ेगी?"


"हाँ राधा, लेकिन एसा मैं ने इसी लिए किया था, ताकी मैं तेरे बापू को कभी खो ना दूँ। वह हमेशा मेरे पास रहे। मुझे कभी कभी लगता है, शायद तेरे पिता ने अपने गावँ जाकर दूसरा बियाह किया होगा। मैं अपने ही मन में उनसे बातें करती हूँ, अजी तुम बिलकुल फिक्र मत करो। तुम अपनी पत्नी को लेकर ही सही मेरे पास आ जाओ। या मुझे अपने पास लेकर जाओ। मैं कभी शिकायत का मौका नहीं दूँगी। तुम्हारी दो पत्नियाँ सौतन की तरह नहीं बल्कि दो बहन की रहेंगी।"


"माँ, तुम पिताजी से इतना प्यार करते थे? उन्होने तो तुम्हारे ऊपर जादू कर दिया है। भगवान करे, मेरा बाप तुम्हारे पास फिर से आ जाये। और मेरी माँ पहली की तरह हंसी खुशी जिंदगी गुजार सके। कितना अच्छा होगा ना माँ, जब पिताजी आयेंगे। फिर तो मेरी माँ फिर से माँ बनेगी। हमारे दो तीन भाई बहन और पैदा होंगे।"


"क्या पता, मैं दोबारा सुहागन की जिंदगी जी पाऊँ भी या नहीं? लेकिन मुझे भी इच्छा है मैं फिर से तेरे पिताजी से गर्भवती हो जाऊँ, और मेरे तेरे और पवन की तरह दो तीन बच्चे और हो जायें।"


"मेरी अच्छी माँ। तुम्हारा सपना जरुर पूरा होगा। देख लेना मेरी बात।"


"एक और बात है जो मैं ने तुम दोनों से छुपाया है। तेरे पिता की एक निशानी है। तेरे पिता ने मुझे एक सोने का सिक्का दिया था। वह मैं ने आजतक सम्भालकर रखा है।"

"सोने का सिक्का? कहाँ है वह?"

"रुक मैं लाती हुँ।" कुसुम ने जब वह सिक्का दिखाया तो राधा सोना देखकर बड़ी खुश हुई। इस सिक्के पे एक पत्थर का निशान बना हुआ है।


"तेरे पिता ने कहा था, एक दिन वह इस तरह के ढेर सारे सिक्के लाकर मेरी झोली में डाल देगा। मैं ने इसे आजतक संभालकर रखा है।"
 

Babulaskar

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आप की अंग्रेजी का अगर अनुवाद किया जाये तो यूं बैठेग,
आप का अपडेट बेहतरीन है। लेकिन आप हमें काफी इन्तज़ार कराते हैं। क्या आप धारावाहिक रूप से अपडेट दे सकते हैं?

एसा ही है ना!
एक बात हम सब भूल जाते हैं, हम यहां पर कोई "वर्क फ्रॉम होम" नहीं कर रहे हैं? की फोरम में अपडेट देना ही हमारा काम है। भाई, हमारी भी निजी जिंदगी है।
आप हम बस दिन में एक दो बार फोरम ऑपेन करते हैं, कहानी मिली तो पढते हैं, और लेखक को दो चार सलाह देकर दोबारा साईट से निकल जाते हैं। लेकिन एक लेखक इसके अलावा भी दिन में समय निकालकर अपडेट तैयार करता है। आप इसे मजाक समझते हैं?
फोरम की दूसरी स्टोरीज का हाल मुझे पता है। दो बूँद की तरह कभी कभार छींटे पडते हैं। मेरी कहानी का अपडेट अगर मैं रोजाना 1के वर्ड के साथ पोस्ट करुँ, क्या यह सही रहेगा?
मैं जब भी अपडेट पोस्ट करता हूँ, बड़े आकार में देने की कोशिश करता हुँ। एसे में वह अपडेट 10के तक चला जाता है।
और आप जनाब आये हैं मुझे यह समझाने की धारावाहिकता क्या होती है?
धन्य हो आप की विचारधारा का।
 

Kapil Bajaj

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भाग 29

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"राधा, तेरा भाई इस बारिश के मौसम में क्या करने गया खेत पर?" कुसुम ने राधा से पूछा।


"माँ, अंजान मत बनो, अगर पानी में खेत डूब गया तो हम खायेंगे क्या?"


"बड़ी आई समझाने वाली, अरे मैं कह रही हुँ, इस मौसम में अगर वह बीमार हो गया तो क्या होगा?"


"कुछ नहीं होगा मेरे भाई को, तुम निश्चिंत रहो माँ, तुम तो एसे पूछ रही हो, जैसे मैं तुम्हारी ननद हुँ, और भईया तुम्हारे पति, अगर इत्नी ही फिक्र है तो जाने क्यों दिया, बान्ध के रखो उसो अपनी पल्लू में।" राधा मुस्कुराती हुई बोल्ने लगी।


"बड़ी जबान चलने लगी है तेरी, एकबार पवन की शादी हो जाने दे, फिर तेरी बारि है। बहुत जल्द तेरा बियाह करवा दूँगी। फिर देखूँगी कैसी तेरी जबान चलती है?'"

"मेरी जबान एसे ही चलती रहेगी, देख लेना। क्यौंकि मैं तुम लोगों को छोड़ के जानेवाली नहीं हुँ! पूरी जिंदगी तुम्हारे गले पडी रहूँगी।"

"हे भगवान, कहीं तू सारी जिंदगी भर क्ंवारी फिरती रहेगी?"

"क्यों, सील तुड़वाने के लिए शादी करवाना जरुरी है क्या?"

"छि: फिर तू इधर उधर मुहं मारती फिरती रहेगी? बदमाश लड्की, ज्यादा ही बिगड़ गई है तू! रुक जरा तेरे भाई को आने दे, इसी से तेरी शिकायत करूँगी।"

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"क्या बात है रे चंचल, आजकल तू बड़ी उछलती फिर रही है? हमेशा मुस्कराये जा रही है?" चंचल की माँ आँचल ने चंचल से पूछा।

"तुम्हें सब कुछ तो पता है माँ। फिर भी पूछ रही हो?"

"ओह, मतलब मेरी बेटी अभी से शादी के सपने देखने लगी है। है ना?"

"हाँ माँ, तुम्हारी बेटी अभी से शादी के सपने देख रही है। मैं सोच सोच के परेशान हो रही हुँ। माँ, तुम्हें क्या लगता है, मैं पवन की अच्छी बीबी बन पाऊँगी ना? उसे खुश तो कर पाऊँगी ना?"

"क्यों नहीं, तू जरुर कर पायेगी। मुझे पूरा यकीन है। आखिर तूने इतना कुछ सीखा है। मर्दों को किस तरह खुश किया जाता है, वह तुझे अच्छी तरह से पता है। और मुझे भी यकीन है, पवन की बीबी बनकर तू इस गावँ की सबसे खुश नसीब लड्की होगी। वह तुझे हर लिहाज से खुश रखेगा।"

"सच्ची माँ, लेकिन तुम्हें कैसे पता?"

"अरे पगली, मैं एक औरत हूँ। और एक माँ भी। एक माँ की निगाह कभी धोका नहीं खाती।"

"भगवान करे, एसा ही हो।"

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बारिश के इस मौसम में आज गुरुजी का आँगन सुनसान पड़ा था। गुरु माँ और गुरुजी दोनों अपनी कक्षा में गावँ के बारे में बातें करने में लगे थे।


"आखिर और कितना दिन हमें इस तरह रहना पड़ेगा। इतने सालों में हमने कुछ भी तो हासिल नहीं किया। अब लगता है हमें यह हवेली भी छोड़नी पड़ेगी।" गुरु माँ बड़ी चिंतित होकर गुरुजी को संबंधित कर रही थी।

"अब हम क्या कर सकते हैं बताओ! हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। अगर हमारा लल्ला रानी मेनका को ढूँढने में कामियाब होता तो शायद हमें इतने सालों तक मेहनत करने की कोई जरुरत नहीं होती। हवेली के उस गुप्त कक्षा के बारे में केवल छोटी रानी मेनका को ही पता था। कयोंकि मुझे पूरा यकीन है, जमींदार सूर्यप्रकाश सिंह किसी पर यकीन नहीं करते थे। अपनी बड़ी बीबी हेमलता पर भी नहीं। उन्हें अपनी छोटी बीबी रानी मेनका से ज्यादा प्रेम था। शायद इसी वजह से उनहोंने रानी मेनका को वह कक्षा दिखाई थी।"


"अब क्या करेंगे हम? रानी हेमलता ने साफ साफ बता दिया है, अगर नया जमींदार आया तो हमारा यहां रहना ना रहना नए जमींदार की मर्जी पर निर्भर करेगा। फिर क्या करेंगे?" गुरु माँ परेशान थी।


"अब तुम बताओ, इस उम्र में कहाँ जायेंगे हम?"


"हम लल्ला के पास चले जायें क्या।"


"पागल हो गई हो क्या? लोगों को पता चलेगा तो हमारा अन्त बहुत बुरा होगा। देखते हैं, क्या होता है। जहाँ तक मुझे लगता है, इस गावँ में हमारा कुछ इन्तज़ाम जरुर हो जाएगा। इश्वर करे कोई अच्छा आदमी ही इस गावँ का जमींदार बने।"

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"माँ, मैं सोच रही हूँ, मैं भी अपने बाल साफ करवा लूँ।" राधा बोलती गई, पर कुसुम किसी दूसरे ख्याल में थी।


"माँ, कहाँ खो गई?"


"अरे कुछ नहीं, तू क्या कह रही थी? बाल साफ करेगी?"


"हाँ, माँ, अब यह बुर के बाल मेरे से नहीं रखा जाएगा। अब तो तुम्हारी तरह बिलकुल साफ करके रखूँगी। बिल्कुल सपाट और चिकनी चूत की तरह। क्या बोलती हो?" राधा उछलती हुई बोली।

"अच्छा हुआ तेरी सुद्बूध हो गई। भला चूत पे बाल रखने का क्या फायदा? अभी तुझे पता नहीं, लेकिन जब तेरी शादी होगी तब मालुम पड़ेगा, बुर पे बाल रखकर तूने कितनी बड़ी भूल की है?"


"एसा क्या? मुझे भी बताओ ना! शादी के बाद साफ चूत होने से क्या अच्छा होगा?" राधा अंजान बने अपनी माँ के मुहं से सुनना चाह रही थी।


"मुझ से क्यों पूछ रही है? तू तो मुझ से ज्यादा जानती है ना, खुद पता कर ले।"


"अब बता भी दो माँ। तुम नहीं बताओगी तो कौन बतायेगा? तुम तो मेरी अच्छी माँ हो, मेरी सबसे अच्छी सहेली और दोस्त।" राधा अपनी माँ कुसुम से लिपट गई।


"छोड़ हराम की! बड़ा परेशान करती है! एसे नखरे करती है जैसे मैं तेरी सचमुच की सहेली हुँ? भूल मत माँ हुँ तेरी?" कुसुम भी मासूम बनती है।


"हाँ बाबा हाँ, माँ हो, समझ गई। अब बताओ।"


"क्या होगा इस लड्की का! एसी बात भी मेरे मुहं से सुनना चाहती है। तो सुन, बुर पे बाल रखने से पति के साथ सम्भोग करते समय बाल बुर में फंस जाता है। जिस से औरत की चूत में जलन होती है। लेकिन अगर तू चूत के बाल साफ रखेगी तो मर्द का लौड़ा सीधा तेरी चूत को चीरता हूआ अन्दर तक पहुँच जाएगा। उस में ना जलन होगी और ना बाल बुर में फंसेगा, इससे चुदाई का मजा ज्यादा आता है पगली। समझी मेरी बात।"

राधा जानती थी। क्यौंकि यह हादसा उसके साथ हो चुका है। और इसी लिए वह चूत साफ रखना चाहती है। क्यौंकि पवन के साथ जो कुछ हूआ अब दोनों एक दूसरे को प्यार किए बिना रह नहीं पायेंगे। और इसी वजह से राधा बुर के बाल काटना चाह रही थी।


"ओह, एसी बात है। फिर तो जरुर साफ करुँगी। अच्छा माँ, क्या तुम भी इसी लिए हमेशा चूत साफ रखा करती हो? की पिताजी जब भी आये तो तुम्हें कोई दिक्कत ना हो।"

राधा के सवाल पे कुसुम चुप हो जाती है।


"अब तुझे अपनी बात कित्नी बार बताऊँ? तेरा बाप तो आने से रहा? अगर उसे आना होता शायद अबतक आ जाता। अब तो मुझे लगता है, मुझे बिधवा का भेस अपना लेना चाहिए। कबतक यूं लोगों से झूट कहती रहूँगी?" कुसुम दूसरे ख्यालों में डूब जाती है। राधा अपनी माँ को गले लगा लेती है।


"अरे, फिर वही! कहीं नहीं तुम बिधवा की तरह रहने लगोगी। अगर तुम्हें यकीन है तो पिताजी जरुर आयेंगे। तुम्हारा प्यार उन्हें खींच लाएगा। मुझे पूरा विश्वास है। मेरी अच्छी माँ!" राधा अपनी माँ को दिलासा देती है।

"काश की तेरी बात सच हो। अच्छा चल छोड़, मेरी वजह से तू भी दुखी होने लगी। पगली! बता क्या पूछ रही थी? आज तेरी सारी जिज्ञासा दूर किए देती हूँ।"


"यह तो बहुत अच्छी बात है माँ, मेरी अच्छी माँ, मैं पूछ रही थी की, तुम हमेशा बुर साफ क्यों रखती हो?"


"देख, मुझे बचपन से ही साफ सफाई में रहने की आदत है। तेरी नानी ने मुझे यह सब कुछ सिखाया था। लेकिन हाँ कुछ और कारणों से भी तेरी यह माँ अपनी चूत हमेशा साफ करके रखती है। तुझे पता है?, तेरी नानी मुझ से हमेशा कहा करती थी, मेरे लिये दूर देश से कोई राजकुमार आयेगा। और वह मेरा दिल जीत लेगा। मेरे साथ भी एसा ही हुआ। वास्तव में तेरा पिता एक राजकुमार की तरह मेरी जिंदगी में आया था। उसका आना भी हमेशा अचानक होता था।

मुझे आज भी याद है, तेरा पिता पहली बार जब आया, तब दो तीन दिन रुका था हमारे घर। फिर वह जैसा आया था वैसे ही चला गया। मैं भी टूट चुकी थी। और बस भगवान से प्रार्थना करती थी, किसी तरह मेरा राजकुमार लौटकर आ जाये और मुझे अपना बना ले। मैं अपना सब कुछ उसके नाम कर चुकी थी।" कुसुम के कहने के बीच राधा बोल पड़ी।


"तो बापू तुम्हें इतने अच्छे लगे? तुम्हें उनसे प्यार हो गया? और बापू को? क्या वह भी तुम से प्यार करने लगे थे?" राधा बड़ी उत्सुक दिख रही थी।


"तेरा पिता था ही इत्ना अनोखा, की देखकर ही प्यार हो जाता। और हाँ, तेरा बापू भी मुझे प्यार करने लगा था। फिर उसके कई दिनों बाद, मोह मिलन मेले के दिन तेरा पिता फिर से आया। मैं तो भगवान से प्रार्थना करने लगी थी, और जब मैं ने उसे देखा मैं खुशी के मारे रोने लगी।

तेरा पिता एक तो जवान था दूसरा आम लड़कों से उसमें काफी शक्तियां थी। वह मुझे पागलों की तरह प्यार करता था। तेरी नानी भी हमें घर में अकेली छोड़ देती ताकी हम दोनों अलग रह सकें।"


"फिर तो बापू ने तुम्हें खा लिया होगा!"


"और नहीं तो क्या? कहा ना, तेरा पिता एक बलशाली युवक था। वह जब मेरे से सम्भोग करता, मुझे पूरा थका देता था। एक एक दिन में कभी पांच बार कभी छ बार सात बार तक उसने मुझ से सम्भोग किया है।"


"क्या बात करती हो माँ? सा-----त बार? और तुम ने बरदास्त कर लिया? तुम्हारे बुर में जलन या सुझन कुछ हुआ नहीं?"


"और नहीं तो क्या? जलन तो बहुत होती थी और चूत भी सूझ जाती थी। लेकिन एक बात बताऊँ तुझे? तेरा बाप एक जादुगर था। उसका इतना बड़ा लण्ड जब मेरी चूत में घुसता, होना तो चाहिए था मुझे दर्द हो, लेकिन तेरा बाप एसा कुछ करता था जिससे मुझे मिलन करते समय बिलकुल भी दर्द नहीं होता। बस मजा और सूख मिलता। लेकिन हाँ, जब वह चुदाई खत्म होती और तेरा बाप झड़ने के बाद उठता तब बड़ी जलन होती थी चूत पे। लेकिन उसी सुझी हुई चूत पे जब तेरा पिता दोबारा लौड़ा डालता फिर से आनन्द और सूख मिलने लगता। वह बड़े यादगार दिन थे मेरे!"


"तो क्या पिताजी तुम्हें हर समय चोदा करते थे?"


"अरे पगली हाँ, कहा ना, तेरा बाप मेरा दीवाना था। उसका बस चलता तो मुझे कभी छोड़ता ही नहीं। वह तो बस मुझे हर समय किस तरह चोदेगा यही सब सोचता रहता। इस घर में एसा कोई कोना नहीं है जहाँ हमने चुदाई ना की हो। एक बात बताऊँ तुझे? बड़ी शर्म की बात है। मैं ने तेरे बाप से एक वचन लिया था। एक औरत कभी भी एसा वचन नहीं देती और ना ही लेती है। लेकिन तेरे पिता के लिए मैं ने यह वचन लिया था!"


"कैसा वचन?"


"जब तेरे बाप के साथ मेरा बियाह हुआ, उस समय तेरा पिता एक सप्ताह तक मेरे पास रुका था। उसके बाद पता नहीं कहां चला गया। मैं हर रोज उसका इन्तज़ार देखती। और फिर मेरे पेट में तेरा भाई आया। मैं गर्भवती हो गई। और देखते देखते मैं ने पवन को जनम दिया। लेकिन इस एक साल के अन्दर तेरा बाप नहीं आया। मैं ने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी। जब तेरा भाई दो महीना का था उस वक्त एक दिन अचानक तेरा बाप फिर से हाजिर हुआ।

एक साल दोनों एक दूसरे से जुदा रहकर पागल से हो गए थे। उस वक्त तेरा बाप दो सप्ताह तक मेरे पास रुका रहा। और हम ने बहुत अच्छा समय बिताया। हम प्यार में बिलकुल खो से गए। तब मैं ने महसूस किया तेरा बाप चाहे मुझे कितना भी प्यार करे, लेकिन उसका प्यार पाने के लिए मैं काफी नहीं हुँ।

एक दिन मैं ने तेरे बाप से कहा, मैं जान चुकी हूँ मैं अकेली तुम्हें शान्त नहीं कर सकती। मैं हार जाती हुँ, लेकिन तुम्हें और चाहिए। मैं सोच रही हूँ क्यों ना तुम एक शादी और कर लो! इस से तुम भी खुश रह पाओगे और मुझे भी थोड़ा आराम मिल जाएगा। नहीं तो सोचो एकबार, जब मेरी माहवारी आयेगी, तब तुम कैसे रहोगे?

मेरी बात सुनकर तेरा पिता तो एकदम चौंक गया। कहा, पागल हो गई हो क्या? जो अपने ही पति की शादी की बात कर रही हो?

मैं ने कहा, अजी, मेरी बात तो ध्यान से समझो, आज तो फिर भी ठीक है, लेकिन कल को जब मैं गर्भ से हो जाऊँगी, तब तुम बिना सम्भोग किए कैसे रह पाओगे?

तेरे पिता ने कहा, वह बाद में देखेंगे। लेकिन मैं तुम्हारे होते हुए किसी और से कैसे शादी कर सकता हुँ?

मैं ने फिर उन्हें समझाया, देखो, एसा मैं अपनी खुशी के लिए करना चाहती हूँ। अगर तुम खुश रहोगे तो मुझे भी खुश रखोगे। और मुझे हमारे लिए कई बच्चे चाहिए। तो क्या जब भी मैं पेट से हो जाऊँगी, तो क्या मेरा पति बिना सम्भोग के तकलीफ में रहेगा? एसा मैं हर्गिज नहीं होने दे सकती। तुम मुझे वचन दो, तुम दूसरी शादी करोगे। वह कोई भी हो, मैं उसे अपनी बहन मान लुंगी। हम दोनों खुशी खुशी तुम्हारे साथ रहेंगे।"


इतनी देर के बाद राधा बोल पड़ी, "तो माँ, यही वह वचन है? मतलब तुम ने पिताजी से कहा था, की उन्हें दूसरी शादी करनी पड़ेगी?"


"हाँ राधा, लेकिन एसा मैं ने इसी लिए किया था, ताकी मैं तेरे बापू को कभी खो ना दूँ। वह हमेशा मेरे पास रहे। मुझे कभी कभी लगता है, शायद तेरे पिता ने अपने गावँ जाकर दूसरा बियाह किया होगा। मैं अपने ही मन में उनसे बातें करती हूँ, अजी तुम बिलकुल फिक्र मत करो। तुम अपनी पत्नी को लेकर ही सही मेरे पास आ जाओ। या मुझे अपने पास लेकर जाओ। मैं कभी शिकायत का मौका नहीं दूँगी। तुम्हारी दो पत्नियाँ सौतन की तरह नहीं बल्कि दो बहन की रहेंगी।"


"माँ, तुम पिताजी से इतना प्यार करते थे? उन्होने तो तुम्हारे ऊपर जादू कर दिया है। भगवान करे, मेरा बाप तुम्हारे पास फिर से आ जाये। और मेरी माँ पहली की तरह हंसी खुशी जिंदगी गुजार सके। कितना अच्छा होगा ना माँ, जब पिताजी आयेंगे। फिर तो मेरी माँ फिर से माँ बनेगी। हमारे दो तीन भाई बहन और पैदा होंगे।"


"क्या पता, मैं दोबारा सुहागन की जिंदगी जी पाऊँ भी या नहीं? लेकिन मुझे भी इच्छा है मैं फिर से तेरे पिताजी से गर्भवती हो जाऊँ, और मेरे तेरे और पवन की तरह दो तीन बच्चे और हो जायें।"


"मेरी अच्छी माँ। तुम्हारा सपना जरुर पूरा होगा। देख लेना मेरी बात।"


"एक और बात है जो मैं ने तुम दोनों से छुपाया है। तेरे पिता की एक निशानी है। तेरे पिता ने मुझे एक सोने का सिक्का दिया था। वह मैं ने आजतक सम्भालकर रखा है।"

"सोने का सिक्का? कहाँ है वह?"

"रुक मैं लाती हुँ।" कुसुम ने जब वह सिक्का दिखाया तो राधा सोना देखकर बड़ी खुश हुई। इस सिक्के पे एक पत्थर का निशान बना हुआ है।


"तेरे पिता ने कहा था, एक दिन वह इस तरह के ढेर सारे सिक्के लाकर मेरी झोली में डाल देगा। मैं ने इसे आजतक संभालकर रखा है।"
Very very good and nice updated
 
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