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Incest : पुर्व पवन : (incest, romance, fantasy)

कहानी आपको केसी लग रही है।।


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A.A.G.

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भाग 23

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रात का समय था। पवन दिन भर काम की थकान में चारपाई पर पड़ा सुस्ता रहा था।

सुमन देवी ने आज उसके लिए अच्छा पकवान बनाया। पवन ने बड़े प्यार से खाना खाया। और वह चारपाई पर पड़ा सोने की कोशिश करने लगा।

कुसुम उसके बाद शर्म व हया के मारे उसके सामने नहीं आ सकी। पवन ने उसे नजरों से ताडने की काफी कोशिश की। लेकिन कुसुम थोडी देर के लिए उसकी तरफ देखती फिर अपनी नजरें घुमा लेती। कुसुम के मन में जब भी यह ख्याल आता यह लड़का उसका होनेवाला पति है वह और ज्यादा सहम जाती। वह आनेवाले दिनों के सपनों मे खो जाने लगी।


रात का कामकाज निपटाकर सुमन देवी पवन के पास आई। उसके पास बैठकर पहले तो आज पूरे दिन के बारे में इधर-उधर की बातें की। फिर उन्होनें असली मुद्दे पर अपनी बात रख दी।


"देखो बेटा, तुम्हें देखकर पता नहीं क्यों हमें लगता है तुम्हारे साथ हमारा गहरा रिश्ता है। जान पहचान है। मेरी बात का बुरा मत मानना, तुम ने कहा था, तुम ने शादी नहीं की! तुम कुसुम के बारे में पूछ रहे थे, मैं तुम्हें बता देती हूँ, मेरी बेटी शादी के लायक हो गई है। मैं तुम्हें अपना बेटा मानने लगी हूँ। इस लिए कह रही हुँ, मेरी बेटी कुसुम भी तुम्हें पसंद करने लगी है। तो क्या तुम कुसुम से शादी करोगे? देखो मैं तुम्हें किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दूँगी।"

सुमन देवी की अलटप बातों का मतलब पवन समझ चुका था। उसे जिस बात का डर था वही होने जा रहा था। यह लोग उसे ही कुसुम से बियाह करवाने की सोच रहे हैं। लेकिन वह चाह कर भी ऐसा नहीं कर सकता था।


"माजी, मुझे भी आप लोग अच्छे लगते हैं। कुसुम एक बहुत ही अच्छी लड्की है, कोई खुशनसीब ही होगा जो कुसुम से शादी करेगा। लेकिन माजी, मैं कुसुम से शादी नहीं कर सकता। मेरी बात का बुरा ना माने। इसका मतलब यह नहीं है कि मैं कुसुम को पसंद नहीं करता। बल्कि मैं पसंद करता हूँ। लेकिन मेरी कुछ मजबूरियाँ है। इस लिए मैं,,,,"


"कोई बात नहीं बेटा। मैं समझ सकती हूँ। तुम ने जिस तरह से दिल खोलकर अपनी बात कह दी, उससे मुझे अंदाजा हो गया है जरुर तुम्हारी कोई मजबूरी होगी। मेरी बेटी की किस्मत में जो होना है वही होगा। मैं भी पागल हूँ, बेकार में सपने देखने लगी थी। तुम सो जाओ बेटा।" सुमन देवी उठकर जाने लगी।


"माजी आप चिंता न करे। मुझे यकीन है कुसुम का बियाह किसी अच्छे लडके के साथ ही होगा। आप देख लेना।" सुमन देवी पवन की तरफ देखकर एक फीकी मुस्कान देती है और कुसुम के पास सोने चली जाती है।

पवन ने एक दोबार सोचा वह वापिस बर्तमान में चला जाये।

लेकिन यहां पर एक दिन गुजारने के बाद अब उसे अपनी नानी और भविश्य में होनेवाली माँ की चिंता होने लगी। उसके साथ ही पवन ने खेत पर काम शुरु किया था, वह चाहता है उसे कम से कम खेत को खेती के लायक बनाया जाये। जिससे उसकी नानी की परेशानी किसी हद तक कम हो। यही सब कुछ सोचता हुआ पवन नींद की आगोश में चला गया।

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अगली सुबह को फिर से पवन खेत पे चला गया। उसने सुबह-सुबह ही काम शुरु कर दिया। आज उसे पूरे खेत की सफाई करनी है। देखते देखते सूरज सिर के ऊपर आ गया । पवन काम करता रहा। कभी कभी आराम करने के लिए नीम के छाव में बैठ जाता और घर की तरफ देखकर कुसुम का इन्तज़ार करने लगता। कल की तरह कुसुम उसे बुलाने नहीं आई। लेकिन काफी देरी के बाद उसने देखा सुमन देवी अपने हाथ में रोटी लेकर हाजिर हुई।

पवन को और अपनी खेत को देखकर सुमन देवी को इस लडके पर बड़ा तरस आ गया। सुमन देवी ने दिल ही दिल में सोचा, आखिर यह लड़का चाहता क्या है? क्यों यह हमारी मदद कर रहा है?'


"माजी कुसुम नहीं आई?" पवन ने पहले ही पूछ लिया।


"कुछ नहीं बेटा, बस वह आना नहीं चाह रही थी। उसकी तबीयत थोडी खराब है। मैं ने कई बार उससे कहा, तुम्हें रोटी पहूँचाने के लिए। तुम उसकी चिंता न करो। यह रोटी खा लो बेटा। सुबह से काम में लगे हो।"


"माजी, क्या वह मेरी वज़ह से नाराज है?"


"नहीं बेटा, ऐसा मत कहो। तुम्हारी वजह से क्यों होगी? बस अपनी किस्मत से लड़ रही है। छोटी है ना, अभी उसे दुनियादारी की समझ नहीं है। तुम्हें वह पसंद करने लगी थी। लेकिन जब कल मैं ने उसे तुम्हारे बारे में कहा, बेचारी टूट चुकी है। बेटा एक बात पूछो, तुम घर नहीं जाओगे? भला कितने दिन तक यहां रहोगे? मेरा मतलब है तुम्हारी माँ बहन तुम्हारे लिए परेशान तो नहीं हो रही होगी?"


"ऐसी कोई बात नहीं है माजी, मेरी माँ और बहन को पता है मैं हफ्ते हफ्ते तक इस तरह घर से बाहर रहता हूँ। आप उनकी फिक्र ना करे। मुझे एकबार कुसुम से बात करनी है। क्या आप कुसुम को मेरे पास भेज सकती हैं? मैं उसे समझाऊँगा। मैं अपनी मजबूरी उसे खोलकर बताना चाहता हूँ।"

"अब इस से क्या फायदा, लेकिन तुम कह रहे हो तो मैं भेज दूँगी। तुम यह खाना खा लो बेटा। मैं थोडी देर में हवेली चली जाऊँगी। मैं कुसुम से कह देती हूँ वह आ जायेगी तुम्हारे पास। ध्यान रखना उसका।"

"ठीक माजी। आप चिंता न करें।"

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पवन कुछ देर तक चुपचाप बैठा हुआ सोच में डूबा था। इतने में कुसुम आ गई। कुछ दूरी पर खडी होकर बड़े नाज से कहने लगी,

"क्या बात है? मुझे क्यों बुलाया! तुम्हें जो बताना था वह अम्मा को बता तो दिया। अब क्या रह गया है?" पवन समझ चुका था कुसुम उससे क्यों नाराज हो रही है!


"बैठ जाओ कुसुम, मुझे तुम्हें कुछ बताना है।" पवन के इस गम्भीर आवाज में कुसुम पुतले के मानींद बैठ गई।


"देखो कुसुम, मैं जानता हूँ, तुम्हारे दिल में मुझे लेकर कुछ अरमान होंगे। कोई खुश किस्मत होगा जिससे तुम्हारी शादी होगी। मेरी जो मजबूरियाँ हैं मैं चाह कर भी तुम लोगों को नहीं बता सकता। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं तुम्हें पसंद नहीं करता। जिंदगी में यह पहला मौका है जब मुझे कोई लड्की इतनी अच्छी लगी। और वह तुम हो कुसुम। पता नहीं जाने अनजाने में मैं भी तुम से प्यार करने लगा हुँ। लेकिन मैं तुम से शादी नहीं कर सकता।"


"क्यों नहीं कर सकते? बताओ मुझे। क्या तुम्हारी माँ बहन को मैं पसंद नहीं आऊँगी? मैं उनके कदमों में गिर जाऊँगी। मेरा यकीन करो। तुम्हारी तरह मेरा भी यह पहला मौका की कोई लड़का मुझे इतना अच्छा लगा। नहीं तो गावँ में छिछोरे लडकों की कमी नहीं है। मुझे लगता है तुम्हारे साथ ही मेरा भाग्य जुड़ा है। नहीं तो यूं दो दिन में बिना कुछ बोले बिना सुने यह कुसुम किसी अंजान लडके के प्रेम में नहीं गिरती।"

कुसुम आज अपने मन की बात बेझिझ्क बोले जा रही थी। उसे खुद हैरानी होती है उसने इतना कुछ आखिर कैसे कह दिया। वह तो एक शर्मीली सीधी सादी लड्की है। और कहते कहते उसकी आंखों से दो बूँद आंसू टपक पडे।


"मत रोओ! कुसुम। मैं तुम्हारे दिल के हाल से ज्ञात हुँ। तुम्हारी जो दुविधा है वह मेरी परेशानी नहीं है। मेरी माँ अगर तुम्हें देखेगी तो वह तुम्हें जरुर पसंद करेगी। तुम हो ही इत्नी सुन्दर। लेकिन जिंदगी में हर एक की अपनी अपनी किस्मत होती है। शायद मेरी और तुम्हारी किस्मत में एक दुसरे के साथ प्यार करना लिखा है। शादी बियाह नहीं है। पर तुम मेरी बात का विश्वास करो, तुम्हारी शादी एक बहुत ही अच्छे लडके से होगी। शायद मेरे से भी ज्यादा अच्छा। वह तुम्हें जरुर पसंद आयेगा।"


"तुम्हें कैसे पता? मेरे लिए कोई राजकुमार आयेगा क्या? अब उस बुढढे के सिवा मेरी किस्मत में कोई नहीं है।" कुसुम अपनी आंसू पोछती हुई बोली।


"एसा नहीं होगा। कम से कम मेरे होते हुए तो नहीं।"


"देखा जाएगा। मैं चलती हूँ। अम्मा ने मुझे काकी के पास ठहरने को कहा है।"


कुसुम जिस तरह दुखी मन से आई थी उससे ज्यादा दुख लेकर वह घर की तरफ चली गई। पवन उसका दुख देखकर मन में अशांत होने लगा था। उसका दिल कर रहा था, वह कुसुम को सारी बातों से आगाह कर दे। लेकिन इसका कोई फायदा नहीं होगा। क्यौंकि वह लोग पवन का यकीन नहीं करेंगे।

पवन को अब जल्दी से जल्दी खेत की सफाई का काम खत्म करना था। उसने सोच लिया, बस अब नहीं। वह फिलहाल यहां से चला जाएगा। नहीं तो यह लोग उसे लेकर बेकार में सपने सजाने लगेंगे।

पवन दुगनी रफतार और मेहनत से आज समय से पहले ही खेत का बाकी काम खत्म कर लेता है। और ठीक शाम ढलने के थोडी देर बाद,जब सूरज डूबने लगा, वह अपने समययान के गोल बटन को घुमाकर दोबारा उसी जगह आ जाता है जहाँ से वह अतीत में गया था।
nice update..!!
suman ne direct pawan se shaadi ki baat ki lekin ab pawan bhi kya kar sakta hai kyunki real me toh woh kusum ka beta hi hai..lekin pawan bhi young kusum se pyaar karne laga hai lekin kismat aage kiska jor chalta hai..ab pawan wapas toh aagaya lekin usse firse jana padega..!!
 

A.A.G.

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भाग 24

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पवन वर्तमान में आ गया था, लेकिन उसका मन अब अतीत का होके रह गया। पवन अब जब भी माँ की तरफ देखता उसका मन बिचलित होने लगता।


दो दिन बीत गया।


आज राखी का दिन है। सुबह से ही पवन के घर में राखी के तेहवार के लिए तैयारी शुरु हो गई। ज्यादा कुछ नहीं, बस थोड़ा बहुत खाना पकवान, और नए कपड़े पहन कर घूमना फिरना। पूरे गावँ में ही राखी के तेहवार की हलचल दिखने लगी।


आँचल' चंचल के हाथो कुसुम के घर पर मिठाई भेजती है। यह काफी दिनों से चला आ रहा है।


चंचल को आता देखकर कुसुम खुश हो जाती है। मौसी को नए कपड़े में देखकर चंचल भी देखती ही रह गई। उसकी होनेवाली सास आज भी एक क्ंवारी लड्की की तरह दिखती थी।


"क्या बात है रे चंचल, आज तो तू राधा से पहले आ गई? आ जा बैठ।"


"मौसी राधा नहीं दिख रही है। कहीं गई है क्या?" चंचल मिठाई देती है।


"वह तो अपने भाई के साथ निकली है। कह रही थी आज दोनों गावँ घूमेंगे। वैसे आज राखी का दिन है। दोनों भाई बहन एक साथ ही रहेंगे पूरा दिन। गई होगी कहीं। कहीं तुझे भी राखी बांधनी है क्या?" कुसुम चुटकी काटते हुए बोली।


"क्या मौसी तुम भी ना! भला अब मैं कैसे पवन को राखी बांध सकती हूँ?"


"क्यों बचपन में तो राखी के दिन दौड़ी चली आती थी, तू और राधा दोनों हमेशा झगड़ती रहती, तू कहती मुझे पहले बांधनी है राखी। भूल गई वह दिन?"


"नहीं मौसी, सब याद है। लेकिन होनेवाले पति के हाथो भला कोई लड्की राखी बांधती है क्या? लोग क्या कहेंगे?" चंचल शर्माती है।


"अच्छा तुझे लोगों की फिक्र है? कल तक जो भईया था आज वही सैंया? तुझे शर्म नहीं आयेगी उसे पति बनाते हुए? बता।"


"शर्म किस बात की? यह तो मेरा सौभाग्य है मौसी, जो पवन जैसा लड़का मेरा पति बनेगा। आखिर मेरा सपना पूरा होगा। मैं तुम्हारे घर की बहू बनूँगी। और याद रखना मौसी, तुम्हें और राधा को खूब सताउँगी।"


"बड़ी आई सताने वाली! अच्छा यह सब छोड़, यह बता, तू मेरे बेटे को संभाल तो पायेगी ना? मतलब झेल पायेगी ना उसे? मेरा बेटा बहुत ताकतवर है, तेरी नसों और हड्डियों में दर्द कर देगा वह।" कुसुम उसे छेड़ना चाह रही थी।


"उसी बात का तो डर है मौसी। क्या पता मैं झेल पाऊँगी भी या नहीं? लेकिन कोशिश मैं पूरी करूँगी।"


"अच्छा चंचल, एक बात बता, राधा की तरह क्या तू भी नीचे के बाल साफ नहीं करती? तेरे भी बड़े बड़े बाल है?" इस बात पे चंचल के चेहरे पे शर्म की लाली दिखने लगी। वह क्या जवाब देगी सोचने लगी।


"अरे बता ना, मैं तो तेरी होनेवाली सास हूँ। और मुझे तेरी चूत देखने का पूरा अधिकार है। एक काम करते हैं, आज ही देख लेती हूँ तेरी बुर। मुझे भी पता चल जाएगा मेरी होनेवाली बहू की चूत कैसी दिखती है? आ जा कमरे में चल।"


"अरे मौसी रहने दो ना! क्या जरुरत है देखने की? तुम जानना चाहती हो ना, हाँ राधा की तरह मैं भी बुर के बाल साफ नहीं करती। अब खुश?"


"मतलब राधा सच बोल रही थी। लेकिन मुझे तो एक बार देखना ही पड़ेगा। आ तो जा। चल।" कुसुम उसका हाथ पकड़कर कमरे की और ले जाने लगी।


"मौसी क्या बच्चों की तरह जिद करती हो। रहने दो ना। मुझे बड़ी शर्म आ रही है। फिर कभी देख लेना।"


"तू ना ज्यादा बोलती है, ज्यादा जबान मत चला। जो कह रही हूँ वह कर। बाद में तो हमेशा देखती रहूँगी। लेकिन अभी मुझे परखना होगा, मेरी होनेवाली बहू की चूत आखिर कैसी दिखती है।"


कुसुम उसे कमरे में ले जाकर चारपाई पे बिठा देती है। बेचारी चंचल लाज के मारे शर्माएगी की क्या करेगी हैरत में पड गई।


"चल साड़ी ऊपर कर।" चंचल हयरान और लाज के मिश्रण में पड़ी चारपाई पर पसर गई। और ना चाहते हुए भी चोदने के आसन में आ गई। कुसुम ललचाई नजरों से अगले क्षण का इन्तज़ार करने लगी। जब देखा चंचल खुद से कुछ कर नहीं रही, कुसुम खुद आगे बढ कर चंचल के दो पैंरों के पास आ गई। और उसकी साड़ी ऊपर चढा दी।

वाकई चंचल की चूत राधा की हुबहू नकल थी। राधा की जैसी चंचल की बुर पे बालों का जंगल था। जिस के कारन उसकी चूत दिखाई नहीं दे रही थी। कुसुम ललचाई निगाह लेकर उस क्ंवारी चूत के पास आ जाती है।


"हाँ रे चंचल, तेरी चूत तो इस झांट के कारन दिख भी नहीं रही। भला इतने बाल कौन रखता है? तुझे दिक्कत नहीं होती क्या?"


"नहीं मौसी अब आदत हो गई है। शुरु में होती थी। मौसी हाथ मत लगाओ, छि: क्या कर रही मौसी?"


"अरे चुपचाप पड़ी रह, जरा देखने तो दे, मेरे बेटे को कैसी चूत चोदने को मिलेगी। हाए, कित्ना मादक है रे तेरी बुर, इस में से कित्नी बदबू आ रही है।" कुसुम चंचल की बुर के बाल हटाकर चूत के फाँकों को अलग कर देती है। एसे में चंचल की चूत पूरी खिल जाती है। कुसुम को चूत के अन्दुरिनी हिस्से का लालपन दिखने लगा। कुसुम एक खुद तजुर्बेकार औरत थी, वह समझ जाती है, चंचल की चूत पूरी क्ंवारी है। पवन को यह चूत चोदने में बड़ा ही मजा आनेवाला है।


"मौसी यह बदबू नहीं है। यह चूत की खुशबू है। मर्द इस खुशबू से पागल हो जाता है। मैं पेशाब करके पानी नहीं फेरती। मूतने के बाद पेशाब की जो बुंदे बालों में और चूत में रह जाती है, उसी से यह खुशबू फैलती है। कभी तुम भी करके देखना मौसी, कितनी मनमोहक खुशबू आयेगी तुम्हारी चूत से, देख लेना!"


"अब मेरा कौनसा मर्द पड़ा है? जिसे मैं अपनी चूत सुँघाउँगी। तेरी चूत तो मदमस्त है रे, चंचल। पवन तो देखके पागल हो जाएगा।" कुसुम चूत को देखे जा रही थी।


"मौसी अब बस भी करो, तुम तो चूत में घुस ही जाओगी। अब जरा मुझे अपनी सास की बुर भी दिखा दो, मैं भी देखूँगी तुम्हारी चूत। राधा कहती है, तुम हमेशा चूत साफ करके रखती हो। माँ भी अपनी चूत साफ करके रखती है।"


"हाँ राधा सही कहती है। आँचल की तरह मैं भी चूत हमेशा साफ करके रखती हूँ। मुझे चूत पे बाल बिलकुल पसंद नहीं है।"


"दिखा दो मौसी, अब तुम मेरी होनेवाली सास लगती हो। इतना अधिकार तो मुझे दो।"


"अच्छा बाबा देख ले, तुझे पता चल जाएगा, चूत से बच्चा निकलने के बाद बुर की कैसी हालत हो जाती है।" चंचल की जगह अब कुसुम पैर खोलकर लेट जाती है। और खुद ही साड़ी ऊपर कर देती है।


"ले जी भर के देख ले। " चंचल की नजर कुसुम की सपाट और साफ चूत पर पडते ही चहक जाती है। बिलकुल एक बच्ची लड्की की मानींद चूत थी कुसुम की। कुछ देर तक चंचल उसमें खोई रही।


"कैसी लगी? सही है ना?"


" सही? क्या बोलती हो मौसी? यह तो एकदम बिन चुदी चूत लग रही है। मानो अभी भी किसी के लौड़े के लिए तरस रही हो।"


"चल, कुछ भी बोलती है। पवन के पिता ने चोद चोद के मेरी चूत की एसी तैसी कर दी है। और तुझे बिन चुदी चूत लग रही है। बिन चुदी चूत तो तेरी है।"


"नहीं मौसी, मैं सच कह रही हूँ। तुम्हारी चूत पे अभी तक दरारें नहीं पड़ी। और ना ही चूत का मुहं खुला हुआ है। माँ की चूत देखी तुम ने? चूत का मुहं बिलकुल खुला हुआ है। मेरे बाप ने इतने सालों से चोद चोद के चूत के फन्केँ खोल दिए हैं। लेकिन तुम्हारी चूत इतने सालों तक ना चुदाई करके फिर से क्ंवारी बन गई है। मेरी मानो मौसी, किसी मुसल लौड़ेबाज को तलाश करके इसका मुहं खुलवा लो।"


"क्या अनाप श्णाप बक रही है। भला इस उम्र में यह सब काम शोभा देता है क्या? मैं तो हर्गिज नहीं कर सकती।"


"फिर इस नाजुक चूत का क्या करोगी मौसी? क्या पूरी जिंदगी अपने खोये हुए पति का इन्तज़ार करती रहोगी?" चंचल की बात पे कुसुम के चेहरे पे मायुसी छा जाती है। वह कुछ कहती नहीं, बस साड़ी ठीक करके बैठ जाती है।


"मौसी मुझे माफ कर दो, मैं ने मजाक में कह दिया था।"


"कोई बात नहीं चंचल। आखिर यही मेरी किस्मत है। पर तू नहीं जानती, मैं आज भी अपने पति के इन्तज़ार में राह देखती हूँ। मुझे पूरा बिश्वास है तेरा ससुर एक दिन मेरे पास जरुर लौटकर आयेगा। उसने मुझे वचन दिया था। वह कभी वादा नहीं तोड सकता।" कुसुम की आंखें नम हो गई। चंचल ने सहारा देते हुए कुसुम को पकड़ लिया।


"हाँ, मौसी, अगर तुम्हें यकीन है, तो मौसा जरुर एक दिन वापिस आयेंगे। तुम चिंता न करो। तुम्हारा प्यार कभी अधूरा नहीं रहेगा।"


"चल बहुत हूआ, अब घर जा, आँचल तेरी राह देख रही होगी।" कुसुम ने हालत को सहज करते हुए कहा।


"हाँ बाबा, जाती हूँ। अभी भगा रही हो, लेकिन जब मैं इस घर की बहू बनूँगी, तब लाख कहने पर भी नहीं जाऊँगी। देख लेना।"


"तो क्या हमेशा अपने पति के नीचे पड़ी रहेगी? बेशरम कहीं की!"


"क्यों? हमेशा क्यों पड़ी रहूँगी। जब मन करेगा तब रहा करूँगी। लेकिन उसके अलावा भी मुझे तुम्हारी सेवा करनी है, राधा की देखभाल करूँगी। घर की पूरी जिम्मेदारी उठाऊँगी।"


"अच्छा इत्ना कुछ सोचकर रखा है तू ने? भला मेरी क्या सेवा करेगी? कहीं मैं बुड्ढी हो गई हुँ?"


"बुड्ढी हो मेरी दुश्मन, मेरी सास तो मेरे से भी ज्यादा जवान है। उसे हमेशा जवान रखा करूँगी। मैं तुम्हें नहला दिया करूँगी। पीठ के मैल घिस दिया करूँगी। तुम्हारे पैर दबाया करूँगी। और तुम्हारी वह चिकनी चूत के बाल भी साफ कर दिया करूँगी। आखिर तुम्हें तो साफ चूत रखने की आदत है।"


"चल बदमाश, मेरी चूत साफ करने की कोई जरुरत नहीं तुझे। मैं खुद साफ कर लिया करूँगी। खुद तो इतने बड़े बड़े झांट रखती है और मुझे सुना रही है।"


"मौसी कभी तुम भी रखकर देख लो, अगर उसकी खुशबू से आसपास के मर्द तुम्हारे दीवाने ना हुए तो मेरा नाम बदल देना। और वैसे भी, मैं तो भूल रही थी, भला तुम कैसे चूत के बाल बड़ा रख सकती हो? तुम्हारे घर पर तो एक ही मर्द है। पवन, मेरा होनेवाला पति। कहीं चूत की सुगंध से वही पागल ना जाये।" चंचल बोलकर खिलखिलाने लगी।


"बदमाश, रुक जरा, तू। कितना गंदा बोलती है तू।" कुसुम उसे मारने को दौड्ती है।
nice update..!!
rakhi ke din radha aur pawan bahar ghumne gaye hai aur chanchal ghar pe aayi hai..kusum ne toh chanchal ko pura khol ke dekh liya aur chanchal ne bhi..!! kusum ki baaton se pata chalta hai ki kusum abhi bhi apne pati ka intejar kar rahi hai..ab dekhna yeh hoga ki pawan kya karta hai..!!
 

A.A.G.

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173
भाग 25

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नगर की हवेली

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जमींदार सूर्यप्रताप सिंह जी बड़ी परेशानी में राज दरबार में चहल-पहल कर रहे थे। उनके सामने सभासद के दो बड़े मंत्री उपस्थित है। कुछ देर बाद उनकी बहन रानी हेमलता हाजिर होती है।

"क्या बात है भईया, आप ने यूं अचानक से बुलाया!" रानी हेमलता ने चिंतित स्वर में कहा।


"बहन, चिंता की ही बात है, तभी तुम्हें बुलाया है। अब तो लगता है हमें अपनी जमींदारी छोडकर पहाड़ में जाकर सन्यास लेना पड़ेगा।" सूर्यप्रताप सिंह जी की बातों से हेमलता समझ जाती है उनका भाई काफी परेशानी में फंसा हुआ है।


"आप पहले बैठ जायें। और हमें पूरी बात बताईये। क्या हुआ है? हर समस्या का कोई ना कोई समाधान जरुर होता है।" हेमलता उन्हें सिंघासन पर बिठा देती है।


"मन्त्रीजी अब आप ही बता दिजीये! हमारे राज्य की हालत अब क्या बन गई है।" जमींदार जी ने मंत्री की तरफ देखते हुए कहा।


"रानी हेमलता, आप को पता है सरकार बहादुर को लगान चुकाने का दिन करीब आ रहा है। जमींदार जी ने हमें लगान का पैसा एकट्ठा करने के लिए नगर के महाजनों के पास भेजा था। महाजनों से जब उधारी पर पैसा देने की अर्जी की, उन्होने हमारे सामने अजीब शर्ते रख दी, जो हमारे लिए करना ना मुमकिन है।"


"उनकी यह हिम्मत, अगर हमारे जमींदारी में उनका कारोबार ना चलता तो क्या वह लोग इतनी आमदनी कर सकते थे? मैं सब को उचित शिक्षा दूँगा।" सूर्यप्रताप ने गुर्राते हुए कहा।


"आप बताईये, मंत्री जी, फिर क्या हुआ?" रानी हेमलता ने कहा।


"जी, उन्होने शर्ते रखी है, वह लगान का पैसा चुकाने को तैयार होंगे, लेकिन उसके लिए उन्हें इस जमींदारी से जो आमदनी होती है उसका आधा हिस्सा देना होगा, जब तक की लगान का पैसा पूरा चुकता नहीं होता।"


"उनकी एसी हिम्मत, जिस जमींदारी के चलते उनका कारोबार चलता है, उन्ही से दगाबाजी!" अब हेमलता चिल्ला पड़ी।


"उनका इतना साहस कैसा हो सकता है?"


"रानी माँ!! माफ करे, मगर राज्य की आर्थिक स्थिति अब किसी से छुपा हुआ नहीं है। और यही वजह है कि राज्य के महाजन भी इस बात का फायदा उठाना चाहते हैं।"


"हमारे जीते जी एसा कभी नहीं होगा। वैसे भी मेरे भईया के ऊपर दो जमींदारी का बोझ है। पिछ्ले कई सालों से वह अपने पैसों से तीन पहाडी गावँ की जमींदारी का लगान भी चुकाते आये हैं। एसे में यह स्थिति आना तै था। अब क्या करेंगे भईया! क्या आप ने कुछ सोचा?" हेमलता ने पूछा।


"मेरी समझ में कुछ भी आ नहीं रहा। अब तुम ही बताओ, एसी स्थिति में हम क्या कर सकते हैं। रघुवंश ने हमें जो दो महीना का समय दिया था, अब वह समय भी नहीं रहा। सरकार बहादुर ने खुद से यह खत भेजा है ताकी हम जल्दी से लगान भेज दें। नहीं तो वही होगा जो बाकी जमींदारों के साथ होता है। उनकी जमींदारी छीन ली जायेगी।" सूर्यप्रताप सिंह सच में मायुस दिखने लगे।


"हम यह कतई नहीं होने देंगे। हम कुछ करते हैं।" हेमलता सोच में पड गई।


"मंत्री जी! क्या आप बता सकते हैं तीन पहाडी गावँ और उसके आसपास के गावँ से पिछ्ले पांच सालों में हमने कितनी आमदनी की है?" हेमलता ने पूछा।


"जी, रानी माँ, इस में बताने जैसा कुछ नहीं है। जब आप के पतिदेव स्वर्गीय सूर्यप्रकाश सिंह जी वहां के जमींदार थे, तब हमारी जमींदारी से भी ज्यादा उनकी आमदनी होती थी। साल में एक चौथाई पैसा लगान चुकाने के बाद भी तीन हिस्सा रह जाता था, और शायद यही वजह है कि डाकू मंगलचरन ने उसी जमींदारी पे हमला किया था। लेकिन रानी सायबा, अब समय कहाँ रहा। पिछ्ले पांच सालों में हम ने उस जमींदारी से कुछ भी आमदनी नहीं की। और जो लगान हमें चुकाना होगा उसका ज्यादतर पैसा तीन पहाडी जमींदारी पे ही चुकाया जाएगा। अब आप समझ सकती हैं मैं क्या कहना चाहता हूँ।" मंत्री जी बोलकर चुप हो गए।


"हाँ हाँ ठीक है। भईया, मैं आप को यही समझाना चाहती हूँ, हमारी जमींदारी से आमदनी बिल्कुल भी नहीं है, लेकिन खर्चा वही रह गया है। क्यों ना, हम तीन पहाडी गावँ की जमींदारी किसी को पट्टा या इजारे (लीज) पर दे दे। अगर जमींदार होगा, तो हर साल आमदनी भी होगी। उसका कुछ हिस्सा हमारे पास भी आया करेगा। एसे में इस समस्या का समाधान जरुर होगा। और हमारी इस जमींदारी की आर्थिक स्थिति भी धीरे धीरे सुधर जायेगी। और जब समय आयेगा तो हम अपनी जमींदारी वापिस ले लेंगे। आप क्या कहते हैं?" हेमलता ने अपने भाई को समझाते हुए कहा।


"लेकिन, अगर कोई दुश्चरित्र या खराब मानसिकता का आदमी होगा, वह भला कैसे बाद में चलकर हमारी जमींदारी वापिस करेगा? एसे में क्या दो पास पास रहने वाली जमींदारी में दुश्मनी नहीं होगी?" जमींदार ने कहा।


"बिलकुल हो सकती है भईया। लेकिन इस लिए हमें उनको परखना होगा। कोई भी पैसों से भरा पिटारा साथ लाये मुहं उठाकर आ जाएगा तो क्या उसे हम जमींदारी सोंप सकते हैं? हर्गिज नहीं। हमें जमींदारी में सूझ बूझ रखने वाला और अच्छे स्वभाव का आदमी चाहिए। जो ना सिर्फ जमींदार बनने के लायक हो, बल्कि वहां के सात गावँ के रहनेवालों का एक जमींदार की तरह ख्याल रख सके। और उसके साथ हमारी लिखित रूप में कागजी दस्तावेज होगा। जो बाद में चलकर हमारा काम आसान कर देगा।"


"हम्म, तुम्हारा प्रस्ताव उचित है। मुझे यह उपाय मंजूर है। वैसे भी तीन पहाडी जमींदारी से हमें कुछ नहीं मिलता। अगर वहां पर एक जमींदार बनाकर हम कुछ आमदनी कर सकते हैं तो इस में मुझे कोई आपत्ति नहीं है। मंत्री जी आप रानी माँ से बात करके इसकी घोषणा कर दे।" जमींदार ने कहा।


"मंत्री जी आप हमारे पूरे राज्य में हर एक गावँ में जाकर यह एलान कर दे, अगले पच्चीस सालों के लिए तीन पहाडी गावँ की जमींदारी इजारे पर दी जायेगी। जो भी शक्स पांच हजार स्वर्ण मुद्र इस जमींदारी को हासिल करने के लिए देगा उसे यह जमींदारी सौंपी जायेगी। हर साल 100 स्वर्ण मुद्रा जमींदारी से होने वाली आमदनी से देनी पड़ेगी। बाकी आमदनी नए जमींदार की खुद की होगी।" रानी हेमलता ने कहा।


"लेकिन रानी माँ! हमें लगान चुकाने के लिए सिर्फ २५०० ढाई हजार स्वर्ण मुद्रा की जरुरत है। लेकिन आप ने तो,,,,,,,,," रानी हेमलता ने मंत्री की बात रोक दी।


"मंत्री जी, हम कोई मेले का खिलौना नहीं बेच रहे हैं। हम जमींदारी का सौदा कर रहें हैं। इतना पैसा तो देना ही पड़ेगा, अगर किसी को जमींदारी चाहिए। आप चिंता न करें, बस घोषणा कर दे। मुझे बिश्वास है, समय से पहले ही आप के हाथ में लगान का पैसा आ जाएगा।"
nice update..!!
idhar hemlata aur uske bhai ki alag hi tension hai..inko lagan chukana hai lekin paisa nahi hai..ab hemlata apne pati ke gaon ki jamindari leez par dena soch rahi hai..aur usse jo paise milenge usse lagan chukana chahti hai..ab dekhte hai pawan kya karta hai kyunki hemlata ke pati ka gaon matlab pawan bhi ussi gaon me rehta hai..toh dekhna padega pawan jamindari ke liye aage aata hai ya nahi..!!
 

Sanju@

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कहानी से पहले यह पढ़े।।

जैसा की आप ने पढ़ा है यह एक 'इनसेस्ट, रोमांस, फैनटेसी और थ्रिलर' बेस कहानी है।
इस नामकरण पे यह कहानी पुरी तरह से फिट बैठती है। मैं ने जो इतने कैटग्रि में इसे डिवाईड किया है वह सोच समझ के किया है। यहां लिखने वाले रायटर लिखते हैं, पर उनकी कहानीयों में वह सब होता नहीं। लेकिन इस कहानी को पढ्ने के बाद आप का यह नजरिया बदल जाएगा।
इस में आप को टाईम ट्रवल कॉनसेप्ट देखने को मिलेगा। जो इस कहानी को और ज्यादा रोचक बनाता है।
कॅनवरसेशन या वार्तालाप भी मैं ने एसा रखने की कोशिश की है जिस से रीडर्स को बोरिंग फील न हो।
या कहानी चुं की टाईम ट्रवल बेस्ड है और साथ ही समय के साथ साथ कभी आगे कभी पीछे जाता रहता है, इस लिये रीडर्स की आसानी के लिए मैं ने इस में साधारण शब्दों का प्रयोग ज्यादा किया है। ताकी रीडर्स शब्दों के जाल में ना फंस सके और मूल कहानी का मजा ले स
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Sanju@

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भाग 1

साल 1885, फागुन का महीना। दिन मंगलवार, तारीख पता नहीं।

हर दिन की तरह सूरज फिर एकबार 'तीन पहाड़ी' गावँ के पुर्व दिशा से अपनी किरनें को फैलाता हुया प्रकट होता है। सूरज के निकलने के साथ साथ जहाँ पुरा जगत फिर से एक नया दिन शुरु करने में लग जाता है, वहीं तीन पहाड़ी गावँ में रहने वाले किसान भी अपनी अपनी खेतों और निजी कामों में लगता शुरु कर देते हैं।
चुं की इस गावँ के पुर्व दिशा में तीन पहाड़ समान रुप से खडे नजर आते हैं, इस लिए गावँ का नाम तीन पहाड़ी चालू हो गया।

गावँ में रहने वालों की संख्या 100-120 के आस पास थी।
इसी गावँ के बिल्कुल बाहर क्षेत्र में कुसुम अपनी बेटी राधा और बेटा पवन के साथ रहती थी। घर से थोडी दुरी पर उनकी कुछ जमीन थी, जिस पे खेती करके कुसुम का गुजारा चलता था। उसके साथ उन्के पास कुछ गाये-भैंस और एक घोडा था।

सुबह का समय था। पवन अपनी माँ को "माँ मैं जा रहा हूँ। राधा के हाथों मेरी रोटी भेज देना। आज खेतों में बड़ा काम है।" कहकर निकलने लगता है।
"ठीक है बेटा, तुम जाओ। राधा तो गुरुजी के पास जाने वाली है। मैं लेकर आ जाऊँगी।" कुसुम रसोई घर से पवन की तरफ देखती हूई कहती है।

कुसुम जो की अभी सिर्फ 36 वर्ष की है, दो बच्चों की माँ थी, लेकिन शरीर से और मन से वह आज भी एक नई नवेली दुल्हन की तरह शर्माती औरत थी। अपनी बेटी राधा के पास खडी होकर वह राधा की बड़ी बहन मालुम होती थी। लाल-पीली साड़ी में माँग में सिंदूर लगाये वह एक साधारण लेकिन बिल्कुल घरेलू बहु समान लगती थी। (इस बात का राज आप को जल्द पता चल जाएगा।)
अपने बेटे से बात करती हुई भी कुसुम बार बार शर्म से सहम जाती थी।

कुसुम रसोई घर में रोटी सेंक रही थी, राधा पीछे से आकर अपनी माँ को आवाज देती है,
"माँ, मैं चलती हुँ। आज गुरु माँ एक अनोखी चीज सिखाने वाली है हमें" राधा इतराती हूई बोलती है।

"अच्छा! फिर आ के मुझे भी सिखाना।" कुसुम मुस्कुराएं जवाब देती है।
"अच्छा बाबा सीखा दूँगी। वह गधी की बच्ची चंचल अभी तक शायद सो रही होगी। अच्छा मैं चलती हूँ।"
राधा की मनचली बातों से कुसुम मन ही मन मुस्कराने लगती है। यह बच्चे भी देखते ही देखते कितने बड़े हो गए। राधा की सहेली चंचल उसी की हमउम्र थी, जो आँचल की लड्की थी। आँचल कुसुम की बचपन की दोस्त है।
दोनों भाई बहन के जाने के बाद कुसुम अपने रोजमर्रा घर के कामों में जुट गई। उसने खाना बनाया, घरबार की साफ सफाई की, तबेले में गाये-भैंसों और घोड़े को चारा दिया। यही कुसुम का रोज का काम था।

काम निपटाकर कुसुम थोडी सुस्ता रही थी, बाहर से उसे आँचल आती दिखाई दी। साथ में सुधा।

"अरे कुसुम देख किसे पकड़के लाई हूँ?" सुधा को देख कुसुम उछल पडती है।
"इतने दिनों बाद तुझे गावँ की याद आई? रह जाती ना शहर में?"
"अब आ तो गई ना?" तीनों बरामदे में चारपाई पे बेठ जाती हैं।
"और बता तेरा पति केसा है? सब काम काज ठीक तो है ना? तेरे बच्चे सब केसे हैं?" कुसुम पूछती है।
"सब कुशल मंगल से है मेरी बहन। बड़े बेटे की शादी की बात चल रही है। सोच रही हूँ बड़ी बेटी की शादी भी एक साथ कर दूँ।" सुधा ने कहा।
"यह तो अच्छी बात है रे! तेरा बेटा फिर काफी बड़ा हो गया है?"
"हाँ, क्यों भुल गई क्या? हम तीनों एक साथ ही तो पहलीबार पेट से हूई थी। इस की बेटी आँचल और तेरा बेटा,,,,, क्या नाम था उसका,,,,,,,?"
"पवन" आँचल जवाब देती है।
"हाँ पवन, और मेरा बेटा रघुवीर। और हम सब ने एक ही महीने में बच्चों को जनम भी दिया था। याद है ना?" सुधा की बात पे तीनों हंसने लगते हैं।

"हाँ, सब याद है। और यह भी याद है तू पांच साल बाद गावँ में आई है।"
"अब क्या बताऊँ, रघुवीर के पिताजी का काम ही एसा है की कहीं आना जाना नहीं होता। वह तो बस सरकार ने उसके पिताजी को पास के जमींदार के पास कुछ काम देकर भेजा है, इस लिए मैं भी चली आई। वैसे कल चली जाऊँगी। माँ बाप तो है नहीं, सोचा चाचा चाची और तुम दोनों से मिलती चलूँ।"
"बहुत अच्छा किया। मैं भी अक्सर आँचल से तेरी बात करती हुँ, पता नहीं केसी होगी, कहाँ होगी, हाँ वैसे तेरे बच्चे कितने हुए? यह बता?" कुसुम पलके नचाती पूछती है।
"वह हो, देख शर्मा गई। चल तू रहने दे, मैं खुद बता देती हूँ। कुसुम! सुधा अभी पांच बच्चों की माँ बन चुकी है, और अभी यह फिर से माँ बनने जा रही है। बेचारी के पेट में दो महीना का बच्चा पल रहा है।" आँचल खिलखिलाती हूई बोल पड़ी। जिससे सुधा सचमुच शर्मा जाती है।
"मैं भी कितनी भोली हूँ, बातों बातों में पता ही नहीं चला, सुधा तू बेठ मैं खाने को कुछ लाती हुँ।" कुसुम उठने जाती है। सुधा उसका हाथ पकड़के बिठा देती है।
"अरे तू चुपचाप बैठ। मैं खाकर आई हुँ। तुम दोनों से बात कर लूँ यही सोचके आई हुँ। पता नहीं फिर कब आना हो या ना हो। अब इतनी दूर का सफर आना भी मुश्किल होता जा रहा है। तुम दोनों क्यों नहीं आ जाते मेरे पास? कभी आ कर देख के जाना, पुणे में सब कुछ मिलता है। विदेश से कितने अच्छे अच्छे कपड़े आते हैं क्या बताऊँ तुम दोनों को।"
",हाँ सुना तो है, पुणे कितना बड़ा शहर है। बड़े बड़े जहाज चलते हैं वहां।" आँचल बोलती है।
"हाँ बस सुना ही है, कभी देखा नहीं।" कुसुम कहकर हंसने लगती है।
"तू आज भी वैसी है कुसुम। अब तो मान ले तेरा पति अब लौट कर नहीं आनेवाला। आखिर कब तक यूं दिल को दिलासा देती रहेगी? आखिर पवन के पिताजी को आना होता तो अब तक जरुर आ जाता।" सुधा की बातों पे कुसुम थोड़ा मायुस हो जाती है। उसकी आँखें नम होने लगती है। और उन्हीं आंखों से फिर एक कतरा उछलके बाहर उमड पड्ता है।
"मुझे माफ करना कुसुम, मेरा मतलब तुझे ठेस पहुँचाना नहीं है। लेकिन अपने दिल को यूं झूठे तसल्ली से कब तक बान्धके रखेगी?"
"नहीं सुधा, चाहे दुनिया वाले कुछ भी कहे, लेकिन मुझे यकीन है वह एकदिन जरुर वापिस आयेगा। उसने वादा किया था। अपनी माँग की सिंदूर को मैं ने इसी लिये आज भी सजा के रखा है। मुझे पूरा विश्वास है वह जरुर वापिस आयेगा। तुम सब देख लेना।" कुसुम अपनी आंसू पोंछती है। आँचल और सुधा दोनों कुसुम की बातों से भाबुक हो जाती हैं। फिर माहोल थोड़ा हल्का करने के लिए आँचल कहती है,
"पर जो भी हो, भाईसाब बहुत ही अच्छे थे। हम में से किसी को उम्मीद ही नहीं थी तुझे एसा पति मिलेगा। सुमन काकी (कुसुम की माँ) तो कितनी खुश हुई थी। तुम दोनों की जोडी कितनी अच्छी लगती थी। गावँ वाले तो आज भी कहते हैं, कुसुम का पति एक जादुगर था। जो हर साल आता रहता था।"
"हाँ सही कहा तूने आँचल। हम तीनों में से इसका पति सबसे खुबसूरत और जोशीला नौजवान था। पता है तेरे पति को देख के मुझे जलन होने लगी थी? काश की मेरा भी एसा पति होता!"
"इसी लिए तू ने अपना पति बदल लिया, है ना!" कुसुम सुधा को छेड्ती है।
"तुम दोनों तो बचपन से मेरे पीछे पडे हो, कितना कहा तुम दोनों को, मैं और रघुवंश एक दुसरे को पहले से प्रेम करते थे। वह तो घरवालों की वजा से मुझे पहले मेरे जेठ से शादी करनी पड़ी। लेकिन उन्हें क्या पता, मेरे पेट में मोह मिलन से पहले ही रघुवंश का बच्चा आ गया था। और आज भी रघुवीर के पिता मुझ से उतना ही प्रेम करते हैं जीतना शादी से पहले। इसी लिये मुझे आज भी पेट में बच्चा लेना पड रहा है। लेकिन आँचल, अब लड्कीयाँ भी बड़ी हो रही है, उन्के सामने बड़ी शर्म आती है। वैसे भाईसाब अगर होते तो हमारी कुसुम भी अब तक कई बच्चों की माँ बन जाती!"

"हाँ वह तो है। आखिर इसकी जवानी का भरपुर स्वाद लेते रहते वह।" दोनों सहेली हंसने लगती है।
"अरे सुधा एसा नहीं है, हमारी कुसुम आज भी इतनी जवान है वह किसी भी जवान लड्की को मात दे दे। और क्या पता, अगर भाईसाब आ जाये तो हमारी कुसुम फिर से चार पांच बच्चों की माँ बन जाये।" आँचल भी ठहाके मारके हंसती है।

"तुम दोनों भी ना। कभी बाज नहीं आनेवाले। बचपन से लेकर अब तक।"
"तू भी कहाँ बाज आनेवाली है? तूने भी तो अपनी जवानी रोकके रखी है। बचपन से लेकर अब तक।"
बहुत ही सुंदर लाजवाब और रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
 

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भाग 2

पवन अपने खेतों में सिंचाई का काम कर रहा था। तीन पहाड़ी से बहता हुआ झरना उसके घर और खेतों के पास से गुजरता था। जिससे उसके खेतों में पानी की समस्या नहीं थी।
खेतों में धान की फसल खडी थी। छोटी नदी का पानी एक नाली से गुजरता हुआ उसके खेतों में बह रहा था। पवन खेत के पास बने एक कुटिया झोपड़ के पास खडा अपनी फसलों को देख रहा था। सुबह उसने एक रोटी खाई थी, अभी दोपहर का समय हो रहा था, अब तक घर में से किसी को रोटी लेकर आ जाना चाहिए था। शायद राधा अभी लौटी नहीं और माँ अपने कामों में ब्यस्त हैं।' यही सोच कर पवन घर की और चल पड्ता है।

घर के आँगन में घुसते ही पवन ने देखा उसकी माँ, आँचल मौसी और एक दुसरी औरत के साथ बेठी हैं। पवन को देखके सुधा काफी आश्चर्य होती है। पवन को देखकर कुसुम कहने लगती है,
"यह मेरा बेटा पवन है। पवन वह मैं बातों बातों में भुल गई थी खाना ले जाने को। अच्छा हुया तुम आ गये। पवन यह तुम्हारी एक मौसी है, तुम ने इनका नाम तो सूना होगा, सुधा मौसी, जो पुणे शहर में रहती है।"
"नमस्ते मौसी, आप के बारे में बहुत कुछ सुन कर रखा है हम भाई बहन ने। माँ हमेशा हमें बताती रहती है।"
"जीते रहो बेटा। तुम तो बिलकुल अपने,,,,,,"
सुधा की बात काटते हूई आँचल बोलने लगती है, "हाँ यह बिलकुल अपने बाप जेसा दिखता है। हमें पता है। और इसे भी पता है। है ना पवन!"
"हाँ मौसी, पता है। अब जिस का बेटा हुँ उसके जेसा ही तो दिखूँगा।"
"पवन तुम नहाकर आ जाओ, हम एक साथ खाना खा लेंगे। राधा भी आती होगी।"
"मौसी आप सब बातें करो। मैं नहाकर आता हुँ। मैं एकदिन पुणे शहर जरुर घुमने जाऊँगा मौसी।"
"जरुर आना बेटा।" पवन के जाने के बाद सुधा बोल पडती है,
"कुसुम तूने बताया नहीं तेरा बेटा इतना बड़ा हो गया है? मुझे एक पल में लगा जैसे मैं बीस साल पहलेवाले भाईसाब को देख रही हूँ। यह तो पुरी तरह अपने बाप पे गया है। बिलकुल वही शक्ल, वही आवाज वही बोलने का अन्दाज। अगर आज सुमन काकी इसे देख लेती तो उन्हें भी हैरानी होती, वह भी तेरे बेटे को तेरा पति समझ बेठती।"

"सही कहा तूने सुधा। मैं तो हमेशा इसे कहती हूँ अगर भाईसाब नहीं आये तो अपने बेटे को ही अपना पति बना लेना। लेकिन यह कुसुम मेरी बात सुनती ही नहीं।"
"अब तुम दोनों फिर से शुरु हो गए? यह आँचल भी ना, हमेशा मुझे चिढ़ाती रहती है।"
"पर जो भी हो कुसुम तेरे बेटे को देख के मुझे बड़ी खुशी हुई। कितना अच्छा दिखता है।"
"नजर मत लगा मेरे बेटे पर।"
"हाँ हाँ अब तू इसे अपनी आँचल में बांध के रख ले। देख कहीं कोई इसे चुराके ना ले जा पाये।"

कुसुम, सुधा और आँचल की अपनी पुरानी बचपन की दोस्ती फिर से याद आने लगी थी। काफी देर तक उन्होने आपस में सुख दुख की बातें कीं फिर आँचल के साथ सुधा भी चली गई। जाते जाते सुधा कहती गई, "कुसुम, मेरी मझली बेटी अपर्णा के लिये पवन का रिश्ता भेजूंगी मैं। अभी बड़ी बेटी की शादी हो जाने दे, फिर मैं दोबारा आऊँगी तेरे पास। और हाँ, तुम दोनों को मैं शादी का न्योता भेजूंगी, आना जरुर।"

सुधा और आँचल चली जाती है।
"तू भी बड़ी मतलबी है। एकबार मुझ से पूछा भी नहीं? एकदम से पवन का रिश्ता माँगने बेठ गई?" आँचल चिंता जताकर बोलती है।
"तो क्या हूआ, इतना अच्छा लड़का है, मैं तो चाहूँगी ही अपर्णा का बियाह इसी से हो, लेकिन तुझे क्यों बुरा लगा?" सुधा पूछती है।
"मैं इस लिए जल रही हूँ क्यौंकि मैं ने भी चंचल के बियाह के बारे में पवन को सोचा है। लेकिन तुझे तो अपनी पड़ी है। अब तू अमीर है, कुसुम तो तेरे घर में ही रिश्ता करवाईगी।"
"गुस्सा मत कर। ठीक है, तू भी चंचल के लिए पवन का हाथ माँगना। अगर कुसुम राजी हो जाये तो मैं बीच में नहीं आउँगी।"
"ठीक है, मैं समय आने पर कुसुम से इस बारे में बात करूँगी।"
बहुत ही सुंदर लाजवाब और रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
सुधा और आंचल दोनो ही अपनी बेटी के लिए पवन का रिश्ता मांगते है देखते पवन किस को मिलता है
 
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