भाग 10/3
पवन खुद को एक अजीब परिस्तिथि में महसूस करता है। उसके शरीर में दुसरे दिन से ज्यादा फुर्ती थी। मन हल्का और किसी भी तरह की चिंता से दूर।
राधा पोटली में रोटी लेकर पवन के पास आई।
"क्या भईया, तुम आज बिना कुछ खाए घर से आ गये? यह लो रोटी खालो।" राधा पोटली खोलकर रोटी निकाल देती है।
दोनों भाई बहन एक दुसरे की और मुस्कुराते हुए देखे जा रहे थे। राधा की खुबसूरती देखकर पवन के मन में हलचल होने लगती है। उसे महसूस होता है, उसकी बहन उसके सामने ही कितनी बड़ी हो गई है। उसका शरीर किसी भी पुरुष को आकर्षित करने लायक था। शरीर के हिसाब से राधा के मदमस्त चूचे पवन की नजरों को बुलावा दे रही थी। उसे अचानक कल रात का सपना याद आने लगता है। राधा को देख उसे सपने की वह अनुभूति फिर जागने लगती है।
पवन रोटी खाते खाते अपनी बहन के शरीर को टटोले जा रहा था। राधा अपने भाई की नज़रों का पीछा करती है तो उसे बड़ी शर्म आती है यह जान कर की उसका भाई उसकी जवानी का सुधा पान कर रहा है।
"क्या हुआ भाई, इतने गौर से क्या देखे जा रहो हो?"
"तुझे ही तो देख रहा हूँ। कित्नी बड़ी हो गई है तू। लगता है अब तेरा बियाह करवाना पड़ेगा।" पवन रोटी का एक निवाला मुहं में डालता है।
"क्या भईया, अभी मैं शादी नहीं करूँगी। पहले तुम्हारी शादी होगी फिर सोचना मेरे बारे में।"
"मेरी बात छोड़, मैं पहले अपने बापू को ढूँढके निकालूँगा। पहले मुझे माँ के चेहरे पे खुशी लानी है, फिर अगर कोई अच्छी लड्की मिले, तब सोचूंगा।"
"तुम्हें अच्छी लड्की जरुर मिलेगी भईया! मैं खुद तुम्हारे लिए एक अच्छी और सुन्दर लड्की पसंद करके लाऊँगी। बताओ मुझे तुम्हें केसी लड्की पसंद है?"
"तू तो मेरी शादी के पीछे ही पड गई। चल यह सब छोड़। और बता सुबह जो तूने कहा था अगर माँ को पकडूँ तो तू इनाम देगी, क्या इनाम देगी बता।!" पवन के चेहरे पे एक शरारत थी।
"इनाम? वह तो मैं ने एसे ही कहा था। और वैसे भी तुम्हें इनाम तो मिल ही चुका है।"
"कौनसा इनाम?"
"क्यों भुल गए? माँ को पकड़ा था। वही इनाम था तुम्हारा।" राधा की बात पे पवन शर्म से लाल हो जाता है। लेकिन राधा के चेहरे पे शरारत भरी मुसकान खेल रही थी।
"तू भी ना, क्या से क्या सोचती है। लेकिन तूने कहा तो था इनाम देगी? मैं ने तो इसी लिए पकड़ा था।"
"मैं भला तुम्हें क्या इनाम दे सकती हुँ भईया? मेरे पास तो कुछ भी नहीं है। जो कुछ तुम लाकर देते हो वही है मेरे पास।"
"क्या बात करती है? तू देना नहीं चाहती यह बता! और वैसे भी तेरे पास तो बहुत कुछ है।" पवन की नजरें राधा के गोल मटोल चूचे को ताक रही थी।
"मेरे पास तो कुछ भी नहीं है भईय्या। लेकिन अगर तुम्हें लगता है मेरी कोई चीज़ तुम्हें पसंद है तो मैं जरुर तुम्हें दूँगी। बताओ मुझे।"
"सोच ले, फिर बाद में मुकर मत जाना।" पवन खाना खत्म करके राधा के पास बेठ जाता है।
"पहले बताओ तो सही तुम्हें क्या चाहिए, मैं खुशी खुशी तुम्हें दे दूँगी। अगर तुम्हें नहीं दूँगी तो किसे दूँगी बताओ।"
"ठीक है, बता दूँगा। लेकिन अभी नहीं, यह राखी कब है?"
"राखी? वह तो अगले हफ्ते को है। यह नगर का मेला खत्म होगा उसके बाद। लेकिन उस दिन क्या होगा?"
"उसी दिन बताऊँगा। फिर देखूँगा मेरी बहन मुझे क्या इनाम देती है।"
"तुम्हारी बहन तुम्हें वह सब कुछ देगी भईया जो तुम मांगोगे। लेकिन मैं अपने भईया को अच्छी तरह से जानती हूँ, मुझे पता है तुम्हें क्या चाहिए?"
"अच्छा, फिर बता मुझे क्या चाहिए?" राधा पोटली बांध लेती है और कुटिया से जाने के लिए खडी होती है।
"मेरे भईया को वही चाहिए जिसे वह इतनी देर घूर रहा था।" कहकर राधा शर्माती हूई घर की तरफ भागने लगती है। राधा की बातों से पवन का मन उछलने लगता है। वह अपनी बहन को जाते हुए देखता है।
"राधा, तू पूछ रही थी ना मुझे केसी लड्की पसंद है? मुझे मेरी बहन जेसी लड्की पसंद है। जो तेरी तरह सुन्दर हो।" पवन पीछे से थोडी उंची आवाज में कहता है। राधा मुड्के देखती है और जवाब देती है,
"मुझे भी सिर्फ अपना भाई पसंद है।" कहकर राधा लज्जा से तेज भागने लगती है।