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Incest : पुर्व पवन : (incest, romance, fantasy)

कहानी आपको केसी लग रही है।।


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Strange Love

Member
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मैं समझ सकता हूँ आप लोगों को कहानी बेहद पसंद आ रही है। इसी वजह से आप अपडेट पाने के लिए उतावले हो रहे हैं।
थोड़ा धेर्य रखिए प्लीज।
मैं ने वादा किया था, हफ्ते में एक बड़ा अपडेट दिया करूँगा। जो मैं ने दिया है। अभी दूसरा हफ्ता पूरा होने में तीन चार दिन और बाकी है। अपडेट अपने समय पर आ जाएगा। कोशिश यही करता हूँ। थोड़ा धेर्य बनाये रखें। आप को निराशा नहीं होगी। अपडेट अपने पूरे फॉर्म पे पोस्ट होगा।
Bhai yaha xforum par stories ki bharmar hai...agar ek hafte me ek update doge to logo ka interest kam ho jayega aur tumhari story pe readers ka response aur comment bhi kam aayega. Tumko story tab start karna chahiye tha jab tumhare kafi updates ready ho jate taki unko regularly post kar pate.

Khair ye tumhari story hai baki tumhari marzi...ek ya do baar aur update ki request karenge log phir bhool jayenge jaise xforum par hazaro kahaniyo ko bhool gaye hai.
 

Ritu patel

New Member
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Bhai yaha xforum par stories ki bharmar hai...agar ek hafte me ek update doge to logo ka interest kam ho jayega aur tumhari story pe readers ka response aur comment bhi kam aayega. Tumko story tab start karna chahiye tha jab tumhare kafi updates ready ho jate taki unko regularly post kar pate.

Khair ye tumhari story hai baki tumhari marzi...ek ya do baar aur update ki request karenge log phir bhool jayenge jaise xforum par hazaro kahaniyo ko bhool gaye hai.
U r right
 

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भाग 8/1


असुरलोक अम्रतनगर


पात्र परिचय:

दिगविजय परम्परा- (पुर्व राजा)

हरविजय परम्परा- (राजा का भाई)

चंद्रशेखर परम्परा- (राजा का पुत्र)

श्रुति परम्परा- ( चंद्रशेखर की पत्नी)

पण्डित सुकुमार- (राजगुरु)


तीन पहाड़ी गावँ के पास समान्तर रुप में खडे इस ऊंचे और जंगल से घिरे पहाड़ में दिन में भी रात की तरह काला अंधेरा रहता था। इसी पहाड़ के गर्व में बसा हुया था असुरलोक अम्रतनगर। जहाँ के महाराजा थे दिगविजय परम्परा। उनका एकमात्र पुत्र था चंद्रशेखर परम्परा। और राजकुमार की अर्धांगनी श्रुति परम्परा।


दिग्विजय परम्परा ने अपने राज्य में लगातार तीन सो साल तक राज किया। फिर जब उनको अपनी जगह अपने बेटे को सिंघासन सौंपने की बारि आई, तो उनके छोटे भाई हरविजय ने राज्य में बगावत की आग लगा दी।

राजा के करीबी लोगों का विश्वासघात और पीठ पे खंजर घोंपने की वजा से राजा दिगविजय परम्परा को बन्दी बना लिया गया। लेकिन राजकुमार चंद्रशेखर परम्परा और उनकी पत्नी श्रुति भाग निकलने में कामियाब रही। वह अपने पिता दिगविजय के परम मित्र और राजगुरु पण्डित सुकुमार के यहां छुपने में सफल हुए। लेकिन नये राजा ने सिंघासन में बेठ्ते ही पूरे राज्य में चंद्रशेखर को खोजने की मुहिम शुरु कर दी।


पण्डित सुकुमार: राजकुमार, अब आप के लिए यह जगह सुरक्षित नहीं है। आप कहीं भाग जाईये।"


"लेकिन राजगुरु मेरे भाग जाने से समस्या का समाधान नहीं होगा। मुझे यहीं रहकर इस परिस्थिति का सामना करना होगा।" चंद्रशेखर ने कहा।


"लेकिन राजकुमार हरविजय आप को जान से मार डालेगा। क्यौंकि उसे पता है उसके सिंघासन के आगे सिर्फ आप ही बाधा डाल सकते हैं। उसने आप के पिता को सिर्फ इस लिए जिन्दा रखा ताकी आप पकडे जा सके। मेरी बात माने, आप भाग जायें। यह उचित समय नहीं है। आप कुछ समय रोपोश होकर रहें। फिर जब मामला शान्त होगा तो मैं आप दोनों को बुला लूँगा। राजकुमारी श्रुति क्रप्या आप ही उन्हें समझायें।" पण्डित सुकुमार मायुस होते हुए कहा।


श्रुति: मेरे खयाल से राजगुरु सही कह रहे हैं। अभी हरविजय का सामना करने के लिए यह समय अनुकूल नहीं है। इस लिए हमें राज्य को छोड़ कर कहीं भाग जाना चाहिए।"


"लेकिन राजकुमारी, हम जायें तो कहां जायें? क्या आप असुर जाती की कुशलता के बारे में नहीं जानती? अगर हम राज्य को छोड़ कर जाना चाहे, तो भी हरविजय हमें ढूँढ लेगा। राजा के पास तिल्स्मी शीशा है। एक राजा की वह सबसे बड़ी ताकत होती है। उसे इस राज्य के हर उस असुर के बारे में पता रहता जो राज्य के बाहर रहता है। चाहे वह किसी भी जानवर के रूप में हो। हम चाहे सांप, बिल्ली, शेर या मछली किसी भी जानवर का रूप धारण कर ले, हम पकडे जायेंगे।"

चंद्रशेखर ने अपनी मुठ्ठी मारते हुए कहा।


"राजकुमार क्षमा करे, लेकिन मेरे पास एक उपाय है, क्यों ना आप और राजकुमारी दोनों शरीर त्याग दे दे, और किसी मनुष्य के शरीर में छुप जायें। असुर जाती कभी भी मनुष्य के अन्दर छुपे असुर आत्मा को ढूँढ नहीं सकता।" राजगुरु ने कहा।


"लेकिन राजगुरु यह आप को भी मालुम है एक बार शरीर त्याग देने से फिर दोबारा लौटकर आना काफी मुश्किल होता है। उसके के लिए मनुष्य की मदद के सिवा हम कभी भी वापिस नहीं आ पायेंगे। और किस मनुष्य के शरीर में हम जायेंगे, वह केसा होगा, हमारी मदद करेगा भी या नहीं? क्या इस में जोखिम नहीं है?" राजकुमार के स्वर में उत्तेजना छलक रही थी।


"हाँ राजकुमार, जोखिम तो है। लेकिन फिलहाल के लिए यही सही है। और मेरी नजर में आप इस राज्य के सबसे ज्यादा बुद्धिमान और शक्तिशाली असुर हैं। मुझे पूरा बिश्वास है आप जरुर कोई ना कोई उपाय खोज निकाल कर दोबारा लौट कर आयेंगे। और हमें इस पाखंडी राजा हरविजय से मुक्ति दिलाएंगे। इस लिए क्रप्या करके आप अभी के लिए चले जायें। नहीं तो राज्य के लोगों की बची कुची उम्मीद भी चली जायेगी अगर आप पकडे गए। और रही बात उचित मनुष्य को खोज निकालने की! तो वह मैं कर लूँगा।"


कुछ देर तक राजकुमार ने श्रुति का हाथ पकडे रखा। दोनों ने एक दूसरे को देखा। दोनों की नजरों में एक दूसरे के लिए बेशुमार प्रेम था। असल में वह दोनों सौतेले भाई बहन थे। पिछ्ले पच्चीस सालों से वह दोनो पति पत्नी की तरह रह रहे थे। और दोनों ने सोच रखा था राजकुमार के राजा बनने के बाद श्रुति माँ बनेगी। लेकिन इस अनहोनी ने सब कुछ बदल कर रख दिया।

राजकुमारी श्रुति ने अपनी नजरें नीची करके अपनी सहमती जताई।

"तो ठीक है राजगुरु, आप हमारे शरीर त्याग देने का कार्य शुरु कर दे। हम आज रात को ही यहां से चले जायेंगे।"

"जो आज्ञा राजकुमार।"
Agar jadui sisha raja ke pass hota hai to bagawat hi kyo hui pehle hi kyo nhi kuchal di gai?
 

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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Shuru me updates sahi aa rahe the but phir itna late aane lage ki maza hi kharab ho gya ....

Bhai tum daily update do wo sahi h .....

Par agar hafte me ek hi din 10 update doge na to maza hi nahi aayega kyuki tab tak hum story hi bhul chuke rahte h phir update s pe reply kam aane lagte h
...


Phir dhire dhire story se writer ka bhi man hat jata h aur story adhuri rah jati h ....


Agar time to time aap update dete rahoge to reply bhi milta hi rahega warna story se sara maza khatam ho jayega....
 

1112

Well-Known Member
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भाग 10/3


पवन खुद को एक अजीब परिस्तिथि में महसूस करता है। उसके शरीर में दुसरे दिन से ज्यादा फुर्ती थी। मन हल्का और किसी भी तरह की चिंता से दूर।

राधा पोटली में रोटी लेकर पवन के पास आई।


"क्या भईया, तुम आज बिना कुछ खाए घर से आ गये? यह लो रोटी खालो।" राधा पोटली खोलकर रोटी निकाल देती है।


दोनों भाई बहन एक दुसरे की और मुस्कुराते हुए देखे जा रहे थे। राधा की खुबसूरती देखकर पवन के मन में हलचल होने लगती है। उसे महसूस होता है, उसकी बहन उसके सामने ही कितनी बड़ी हो गई है। उसका शरीर किसी भी पुरुष को आकर्षित करने लायक था। शरीर के हिसाब से राधा के मदमस्त चूचे पवन की नजरों को बुलावा दे रही थी। उसे अचानक कल रात का सपना याद आने लगता है। राधा को देख उसे सपने की वह अनुभूति फिर जागने लगती है।


पवन रोटी खाते खाते अपनी बहन के शरीर को टटोले जा रहा था। राधा अपने भाई की नज़रों का पीछा करती है तो उसे बड़ी शर्म आती है यह जान कर की उसका भाई उसकी जवानी का सुधा पान कर रहा है।


"क्या हुआ भाई, इतने गौर से क्या देखे जा रहो हो?"


"तुझे ही तो देख रहा हूँ। कित्नी बड़ी हो गई है तू। लगता है अब तेरा बियाह करवाना पड़ेगा।" पवन रोटी का एक निवाला मुहं में डालता है।


"क्या भईया, अभी मैं शादी नहीं करूँगी। पहले तुम्हारी शादी होगी फिर सोचना मेरे बारे में।"


"मेरी बात छोड़, मैं पहले अपने बापू को ढूँढके निकालूँगा। पहले मुझे माँ के चेहरे पे खुशी लानी है, फिर अगर कोई अच्छी लड्की मिले, तब सोचूंगा।"


"तुम्हें अच्छी लड्की जरुर मिलेगी भईया! मैं खुद तुम्हारे लिए एक अच्छी और सुन्दर लड्की पसंद करके लाऊँगी। बताओ मुझे तुम्हें केसी लड्की पसंद है?"


"तू तो मेरी शादी के पीछे ही पड गई। चल यह सब छोड़। और बता सुबह जो तूने कहा था अगर माँ को पकडूँ तो तू इनाम देगी, क्या इनाम देगी बता।!" पवन के चेहरे पे एक शरारत थी।


"इनाम? वह तो मैं ने एसे ही कहा था। और वैसे भी तुम्हें इनाम तो मिल ही चुका है।"


"कौनसा इनाम?"


"क्यों भुल गए? माँ को पकड़ा था। वही इनाम था तुम्हारा।" राधा की बात पे पवन शर्म से लाल हो जाता है। लेकिन राधा के चेहरे पे शरारत भरी मुसकान खेल रही थी।


"तू भी ना, क्या से क्या सोचती है। लेकिन तूने कहा तो था इनाम देगी? मैं ने तो इसी लिए पकड़ा था।"


"मैं भला तुम्हें क्या इनाम दे सकती हुँ भईया? मेरे पास तो कुछ भी नहीं है। जो कुछ तुम लाकर देते हो वही है मेरे पास।"


"क्या बात करती है? तू देना नहीं चाहती यह बता! और वैसे भी तेरे पास तो बहुत कुछ है।" पवन की नजरें राधा के गोल मटोल चूचे को ताक रही थी।


"मेरे पास तो कुछ भी नहीं है भईय्या। लेकिन अगर तुम्हें लगता है मेरी कोई चीज़ तुम्हें पसंद है तो मैं जरुर तुम्हें दूँगी। बताओ मुझे।"


"सोच ले, फिर बाद में मुकर मत जाना।" पवन खाना खत्म करके राधा के पास बेठ जाता है।


"पहले बताओ तो सही तुम्हें क्या चाहिए, मैं खुशी खुशी तुम्हें दे दूँगी। अगर तुम्हें नहीं दूँगी तो किसे दूँगी बताओ।"


"ठीक है, बता दूँगा। लेकिन अभी नहीं, यह राखी कब है?"


"राखी? वह तो अगले हफ्ते को है। यह नगर का मेला खत्म होगा उसके बाद। लेकिन उस दिन क्या होगा?"


"उसी दिन बताऊँगा। फिर देखूँगा मेरी बहन मुझे क्या इनाम देती है।"


"तुम्हारी बहन तुम्हें वह सब कुछ देगी भईया जो तुम मांगोगे। लेकिन मैं अपने भईया को अच्छी तरह से जानती हूँ, मुझे पता है तुम्हें क्या चाहिए?"


"अच्छा, फिर बता मुझे क्या चाहिए?" राधा पोटली बांध लेती है और कुटिया से जाने के लिए खडी होती है।


"मेरे भईया को वही चाहिए जिसे वह इतनी देर घूर रहा था।" कहकर राधा शर्माती हूई घर की तरफ भागने लगती है। राधा की बातों से पवन का मन उछलने लगता है। वह अपनी बहन को जाते हुए देखता है।


"राधा, तू पूछ रही थी ना मुझे केसी लड्की पसंद है? मुझे मेरी बहन जेसी लड्की पसंद है। जो तेरी तरह सुन्दर हो।" पवन पीछे से थोडी उंची आवाज में कहता है। राधा मुड्के देखती है और जवाब देती है,

"मुझे भी सिर्फ अपना भाई पसंद है।" कहकर राधा लज्जा से तेज भागने लगती है।
Bhai Rakki ka tyohar jaldi lao. Mast update diya aapne.
 

Babulaskar

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Bhai yaha xforum par stories ki bharmar hai...agar ek hafte me ek update doge to logo ka interest kam ho jayega aur tumhari story pe readers ka response aur comment bhi kam aayega. Tumko story tab start karna chahiye tha jab tumhare kafi updates ready ho jate taki unko regularly post kar pate.

Khair ye tumhari story hai baki tumhari marzi...ek ya do baar aur update ki request karenge log phir bhool jayenge jaise xforum par hazaro kahaniyo ko bhool gaye hai.

Shuru me updates sahi aa rahe the but phir itna late aane lage ki maza hi kharab ho gya ....

Bhai tum daily update do wo sahi h .....

Par agar hafte me ek hi din 10 update doge na to maza hi nahi aayega kyuki tab tak hum story hi bhul chuke rahte h phir update s pe reply kam aane lagte h
...


Phir dhire dhire story se writer ka bhi man hat jata h aur story adhuri rah jati h ....


Agar time to time aap update dete rahoge to reply bhi milta hi rahega warna story se sara maza khatam ho jayega....
आप लोगों के एडवाइस के लिए तहे दिल से शुक्रिया ज्ञापन करता हूँ।
मुझे भी यह नॉलेज है। रोजाना के अपडेट से स्टोरी हमेशा ऊपर की तरफ रहती है। मैं बस अपनी सुविधा के लिए ऐसा कर रहा हुँ। बाकी अपने पाठकों के उम्मीदों पर पूरी तरह खरी ना उतरने पर मैं क्षमा चाहता हूँ।
जिस टाईम मैं ने स्टोरी पे हाथ लगाया वह लॉकडाऊन का समय था। अब मामला पूरा सेट हो चुका है। ऑफिस पे जाना फिर एटेनशन लगाकर स्टोरी लिखना काफी मेहनत का काम है। आप सब मजबूरी और अवस्था समझ सकते हैं। ऊपर से मुझे कुछ दिन के लिए दूसरे स्टेट में जाना पड़ेगा। इसी इस अपडेट को पोस्ट करने में थोड़ा समय ले रहा हुँ, ताकी एक बड़ा अपडेट पोस्ट कर सकूं। और एक एपिसोड तक इसे कुछ दिन के लिए पॉज करके रखूँ। मैं ने इस स्टोरी को 50 अपडेट में इसी लिए लिखना चाहा था, ताकी यह जल्दी से जल्दी समाप्त हो सके। लेकिन मेरी मजबूरियों के आगे मैं खुद भी मजबूर हूँ।
मैं उन रायटरों में से नहीं हुँ जो कहानी लिखने के बाद पाठक को रिप्लाई तक नहीं देते। और बस गायब हो जाते हैं। और साल भर बस पड़ा ही रहता है। मैं अगर कुछ नहीं लिखूँगा तो उस वक्त बता भी दूँगा। फिलहाल मेरी पूरी इच्छा मैं इसे समाप्त करुँ। धन्यवाद।
 

Babulaskar

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Agar jadui sisha raja ke pass hota hai to bagawat hi kyo hui pehle hi kyo nhi kuchal di gai?
जादूई शीशा का क्या काम है वह उसी अपडेट में बताया गया है। राज्य से बाहर जो असुर किसी का रूप धारण करते हैं, उनका हिसाब किताब और चित्र उसमें एक राजा देख सकता है। बाकी अपने राज्य में इस शीशे से वह काम नहीं होता। वरना राजकुमार और राजकुमारी पहले दिन ही पकड़े जाते। उन्हें सिपाहियों से ढूँढने की जरुरत पेश न आती।
उम्मीद है समझ चुके होंगे। कहानी को इस बारीकी से पढ़ने के लिए धन्यवाद।
 
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