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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Premkumar65

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Update- 83

नरेन्द्र अपनी बेटी कंचन की दोनों फूलकर तनी हुई चूचीयों को पिये जा रहा था, नीचे बूर में लंड जड़ तक समाया हुआ था, कंचन पर तो सनसनाहट की अब दोहरी मार हो रही थी, एक तो उसकी कमसिन सी गोरी बूर में उसके बाबू का काला लौड़ा जड़ तक घुसा हुआ उसे जन्नत का अहसाह करा रहा था ऊपर से उसके बाबू का लगातार उसकी छलकती चूचीयों को सहला सहला कर पीना उसे बेसुध कर रहा था, इतनी उत्तेजना उसे जीवन में कभी नही हुई थी, अत्यधिक उत्तेजना में वो कभी तेज तो कभी धीमे धीमे सिसकती कराहती जा रही थी।

बड़े प्यार से बीच बीच में सर नीचे कर कभी अपने सगे बाबू को अपनी चूचीयाँ किसी बच्चे की तरह पीते देख कर उनके सर को चूम लेती और कभी खुद ही अपनी मोटी चूची को पकड़ के गुलाबी कड़क निप्पल को बड़ी मादकता से उनके मुँह में भरती तो नरेन्द्र और उत्तेजित होकर चूचीयों पर और टूट पड़ता, "हाय.....बाबू.......ऊई अम्मा.....ईईईईईईईईईशशशशश.......कैसे पी रहे हैं आप मेरी चूची..........आआआआआ आहहहहहहह.........मेरे बच्चे.......मेरे बाबू

मेरे बच्चे बोलने पर नरेन्द्र ने सर उठा के नीलम को देखा तो वो मुस्कुराते हुए बहुत ही प्यार से उन्हें देख रही थी, नरेन्द्र को कंचन के बच्चा बोलने पर उन्हें इतना प्यार आया कि उन्होंने थोड़ा ऊपर उठकर उसके मुस्कुराते होंठों को अपने होंठों में भरकर चूम लिया और बोला- हाँ मैं अपनी बेटी का बच्चा हूँ।

कंचन ने वासना में फिर बोला- मेरा बच्चा......और पियो न बाबू मेरी चूची..... मेरा बच्चा बनकर

कंचन के मुंह से "चूची" सुनकर नरेन्द्र को अदभुत उत्तेजना होने लगी, वो समझ गया कि उत्तेजना अब कंचन के सर चढ़कर बोल रही है, उसकी आँखों में देखने लगा तो कंचन भी अपने बाबू को देखकर मुस्कुराने लगी, नरेन्द्र बोला- क्या पियूँ अपनी बिटिया की.....उसका बच्चा बनकर

कंचन ने उनकी आंखों में देखते हुए बोला- "चूची"

और इस बार वो शरमा कर अपने बाबू के सीने से लग गयी, मोटी मोटी तनी हुई चूचीयाँ एक बार फिर नरेन्द्र के बालों से भरे सीने से किसी सपंज की तरफ दब गई। नरेन्द्र ने कंचन के चेहरे को ऊपर किया तो उसकी आंखें बंद थी, बेटी के होंठों पर नरेन्द्र ने अपने होंठ रख दिये और बड़ी तन्मयता से कुछ देर चूसा, कंचन उनके सर को सहलाते हुए पूरा साथ देने लगी। कुछ देर होंठ चूसने के बाद वो गालों पर चुम्बन करता हुआ नीचे झुका और एक बार फिर मोटी मोटी तनी हुई चूचीयों को मुंह मे भर लिया तो कंचन सिसक उठी, नरेन्द्र फिर लगा अपनी बेटी की चूचीयों को मसल मसल कर पीने तो कंचन उत्तेजना में फिर कराह उठी, कुछ ही देर में कंचन की दोनों चूचीयाँ अत्यधिक उत्तेजना में तनकर और कस कस के मीजे जाने की वजह से लाल हो गयी, उसे अब इतना मजा आ रहा था कि उससे रहा नही जा रहा था, वो छटपटाने लगी, नीचे से हल्का हल्का जब खुद ही उसकी चौड़ी गाँड़ तीन चार बार ऊपर को उछली तो नरेन्द्र ने कंचन की आंखों में देखा और कंचन शरमाकर अपने बाबू से लिपट गयी, उसे विश्वास ही नही हुआ कि अचानक उसने कैसे बेशर्मी से खुद ही अपनी गाँड़ नीचे से उछालकर अपने बाबू को अब बूर चोदने का इशारा कर डाला, और एक बार और हल्का सा शर्माते हुए दुबारा अपनी गाँड़ नीचे से उठाकर अपने बाबू के कान में "बाबू अब चोदिये न" बोलते हुए उनसे फिर लिपट गयी, नरेन्द्र ने उसके चेहरे को सामने किया तो उसकी आँखें शर्म से बंद थी, होंठ थरथरा रहे थे, चहरे पर वासना की भरपूर खुमारी थी, उन्होंने कंचन के होंठों को कस के एक बार चूमा और होठ को बिना उठाए गाल पर से सरकाते हुए बाएं कान के पास ले जाकर बोला- क्या चोदू?

कंचन और शरमा गयी, नरेन्द्र ने उसके गाल को चूम लिया और बोला- बोल न

कंचन ने बोला- गंदे हो आप

नरेन्द्र - गंदेपन का अपना अलग ही मजा है.....बोलकर देख

कंचन शर्माते हुए बोली- "बूर" "बूर चोदिये न".......... आह बाबू

कंचन को बोलकर बहुत सिरहन हुई।

नरेन्द्र- किसकी बूर?.......किसकी बूर चोदू?

कंचन सिरहते हुए- "अपनी बिटिया की........अपनी बिटिया की बूर चोदिये"

कंचन के ये कहते ही नरेन्द्र उससे बुरी तरह लिपट गया और कंचन ने अपने बाबू को कराहते हुए अपने आगोश में भरकर नीचे से फिर एक दो बार अपनी गाँड़ को हिलाया, नरेन्द्र ने कंचन के कान में फिर बोला - बूर

कंचन फिर सिरह उठी, बदन उसका गनगना गया, उसके बाबू ने फिर उसके कान में धीरे से बोला- बूबूबूबूबूरररररर

कंचन फिर गनगना गयी और "अह.... बाबू" कहकर मचल उठी।

एक बार फिर नरेन्द्र ने कंचन के कान में दुबारा बोला- "बूबूबूबूबूबूबूररररररररर.................बुरिया"

कंचन फिर एक बार सनसना गयी और इस बार अनजाने में उसके मुंह से भी धीरे से निकला- "लंड............पेल्हर"

और कहते हुए वो अपने बाबू को उनकी पीठ पर चिकोटी काटते हुए उन्हें चूमने लगी।

(पेल्हर अक्सर गांव में बोले जाने वाला शब्द है, जिसका अर्थ होता है बूर को पेलने वाला दमदार लंड)

नरेंद को इतना जोश चढ़ा की उन्होंने कस के अपने लन्ड को अपनी बेटी की बूर में गाड़ ही दिया, कंचन चिहुँक कर हल्का सा कराह उठी।

नरेन्द्र ने फिर बोला- "बूबूबूबूबूबूबूररररररररर...........माखन जैसी तोर बुरिया"

इस बार कंचन ने गनगनाते हुए तुरंत उनके कान में बोला- "लंड.............लोढ़ा जइसन हमरे बाबू क पेल्हर"

(लोढ़ा- सिलबट्टा, जिससे सिल पर मसाला पीसा जाता है)

कंचन को अपने सगे बाबू के मुंह से और नरेन्द्र को अपनी सगी बेटी के मुंह से ये शब्द सुनकर बहुत उत्तेजना हो रही थी, और एक अलग ही प्रकार के रोमांच और वासना से बदन सनसना जा रहा था। दोनों इसी तरह थोड़ी देर तक कामुक उत्तेजक बोल बोल कर गनगनाते रहे फिर नरेन्द्र ने अपना समूचा लंड कंचन की बूर से बाहर निकाला और एक ही झटके में दुबारा जड़ तक पेल दिया, कंचन मारे जोश के थरथरा गयी, नरेन्द्र ने शुरू में आठ दस बार ऐसे ही किया और हर बार दोनों के मुंह से तेज सिसकी और कराह निकल जाती। अब तक नरेन्द्र के मोटे लंड ने अच्छे से बेटी की बूर में जगह बना ली थी बूर काफी देर से पहले ही रिस रही थी इसलिए कंचन को भी कम दर्द हो रहा था, ज्यादा से ज्यादा मीठे मीठे दर्द के अहसास से वो मस्ती में कराह जा रही थी, ऐसा लग रहा था कि उसकी बूर की बरसों की खुजली मिट रही है, अपने ही सगे बाबू का लंड कैसे उसकी बूर की खुजली को मिटा रहा था और कितना अच्छा लग रहा था कि वो इसकी बयां नही कर सकती थी, कैसे उसके बाबू के लंड का मोटा चिकना सुपाड़ा उसकी बूर की प्यासी दीवारों से रगड़ता हुआ बच्चेदानी पर ठोकर मारता और फिर वापस जाता, वो आंखे बंद कर कराहते हुए जन्नत में थी।

अपनी सगी बेटी की मखमली बूर की लज़्ज़त पाकर नरेन्द्र पर भी अब वहशीपन छा रहा था, एक लेवल के बाद बूर को तेज तेज चोदने की इच्छा होने ही लगती है फिर चाहे बूर कितनी ही नाजुक क्यों न हो, और बूर भी एक लेवल के बाद यही चाहती है कि उसको बक्शा न जाय।

नरेन्द्र से रहा नही गया तो उसने झट से अपनी बिटिया की चौड़ी गाँड़ को अपने हांथों से उठाया और गचा गच बेरहमी से बूर को चोदने लगा, कंचन बिन पानी की मछली की तरह तड़पने लगी, कभी वो जोर जोर से सिसकते हुए अपने पैर अपने बाबू के कमर से कस देती, कभी पैर हवा में उठाकर फैला लेती तो कभी कराहते हुए दोनों पैर फैलाकर खटोले के पाटों पर रख लेती, तेज तेज धक्कों के साथ लंड कभी बूर में बिल्कुल सीधा गप्प से जाता और बच्चेदानी से टकराता तो उसके मुंह से "आह बाबू" की तेज सिसकी निकल जाती और कभी सरसरा कर थोड़ा टेढ़ा होकर दीवारों से रगड़ता हुआ जाता तो वो तेजी से कराह कर मस्ती में "ऊऊऊऊऊईईईईईईईईई अम्मा" कहते हुए थोड़ा उछल सी जाती। अपने बाबू का उसकी कमसिन बूर को इस तरह कुचल कुचल कर चोदना उसे अपने बाबू का और दीवाना बना रहा था।

नरेन्द्र काफी तेज तेज धक्के अपनी बेटी की बूर में मार रहा था, कंचन इतनी उत्तेजित हो चुकी थी कि वो भी नीचे से तेज तेज कूल्हे उछालकर अब अपने बाबू का साथ दे रही थी मानो अपनी निगोड़ी बूर जिसने उसे इतने दिन तड़प तड़प के परेशान किया हो उसको पिटवाने में अपने बाबू का साथ दे रही हो "कि हाँ बाबू इसको और चोदो ये मुझे बहुत तड़पाती है, अब छोड़ना मत इसको" अब लाज और शर्म छूमंतर हो चुकी थी दोनों एक दूसरे को इस कदर तेज तेज चोद रहे थे कि पूरा खटोला चर्रर्रर्रर चर्रर्रर्रर करते हुए हिलने लगा, तेज तेज चुदायी की सिसकियां झोपड़ी में गूंजने लगी।

तभी अचानक तेज धक्कों से खटोले के सिरहाने का बायां पाया टूट गया, खटोला पुराना था, उसका पाया टूटा तो खटोला बायीं तरफ से चराचर कर जमीन को छू गया, दोनों का वजन और तेज धक्कों की मार बूर तो झेल रही थी पर खटोला नही झेल पाया, एक साइड से नीचे पूरा झुकने की वजह से तकिया सरककर नीचे रखी टॉर्च से जा टकराया और टॉर्च गोल गोल घूमती हुई लुढ़ककर कुएं में जा गिरी, पर उसका जलना बंद नही हुआ, कुएं में नीचे मिट्टी थोड़ी गीली गीली थी और इत्तेफ़ाक़ देखो टॉर्च गिरी तो उसका पीछे का हिस्सा सीधे जमीन में धंस गया और मुँह ऊपर को था, टॉर्च से रोशनी अब कुएं के अंदर से सीधी झोपड़ी के छप्पर पर टकरा रही थी और झोपड़ी में रोशनी और हल्की हो गयी।

पर फर्क किसे पड़ने वाला था, दोनों बाप बेटी तो एक दूसरे में समाय बस एक दूसरे को भोगे जा रहे थे, जैसे ही खटोला टूटा एक पल के लिए नरेन्द्र रुका पर कंचन से नीचे से गाँड़ उचका के चोदते रहने का इशारा किया और इस रोमांच से नरेन्द्र और कस कस के धक्के अपनी बिटिया की बूर में मारने लगा, खटोला टूटने से कंचन का बदन कुछ टेढ़ा जरूर हो चुका था उसका सर नीचे और कमर से नीचे का हिस्सा ऊपर हो चुका था, नरेन्द्र उसपर चढ़ा ही हुआ था, अब बदन की पोजीशन इस तरह होने से नरेन्द्र का लंड कंचन की बूर में और गहराई में उतरने लगा, जिसने कंचन को दूसरी ही दुनियां में पंहुचा दिया, कुछ ही और तेज धक्कों के बाद दोनों का बदन तेजी से सनसना कर अकड़ने लगा और दोनों मदहोश होकर सीत्कारते हुए एक साथ झड़ने लगे, कंचन कस के अपने बाबू से लिपट गयी, "ओओओओओ ओहहहहहह.......मेरे बाबू.......मैं गयी.........आआआआआहहहहह दैय्या.......बस बाबू.....बस.......बस मेरे बाबू........आपका पेल्हर......कितना मजा देता है.......आआआआआहहहहह....मेरी बूर

कंचन ऐसे ही कराहते हुए काफी देर तक झड़ती रही।

नरेन्द्र ने तो आतिउत्तेजना में अपना समूचा लंड मानो अपनी बेटी की बूर में गाड़ ही दिया था,
"आआआआआहहहहह.......मेरी बेटी......कितनी सुखद है तेरी बूबूबूबूबूबूबूबूबूबूररररररररररररर.........तेरी बुरिया........ये सुख सबको कहाँ मिलता है.........हाय मेरी बिटिया कहते हुए नरेन्द्र अपनी बेटी से कस के लिपटता चला गया।

कंचन झड़ते हुए परम चर्मोत्कर्ष की अनुभूति से सराबोर हो गयी। इतने प्यार और दुलार से अपने बाबू को चूमने लगी जैसे कोई मां अपने बेटे के विजयी होने पर उसे गले लगा कर प्यार करती है, दोनों काफी देर तक हाँफते हुए टूटे खटोले पर लेटे रहे।
Bahut hi mast chudai ho rahi hai kanchan ki.
Update- 94

कुछ देर बाद उदय को ध्यान आया तो उसने रजनी की ओर बड़े आश्चर्य से मुस्कुराते हुए देखा

लंड अभी भी रजनी की बूर में घुसा हुआ था पर थोड़ा सुस्त पड़ गया था, दोनो का कामरस रिस रिस कर तकिये पर गिर रहा था, रजनी ने अपने बाबू को बड़े प्यार से अपनी ओर देखते हुए देखा तो बोली- क्या हुआ मेरे सैयां?

उदय - अम्मा की याद आ रही थी क्या मेरी बेटी को?

रजनी ने उदय को चूमते हुए पूछा- कब बाबू? (वैसे रजनी समझ गयी थी)

उदय ने रजनी के कान में धीरे से कहा- आपने बाबू से चुदवाते वक्त?

रजनी और उदय दोनो सिसक उठे, उदय के लन्ड ने बूर के अंदर एक हल्की सी ठुनकी ली जिसको रजनी ने बखूबी महसूस किया, ऐसा बोलते वक्त उदय थोड़ा ऊपर को सरका जिससे उसका लंड रजनी की बूर में थोड़ा अंदर सरक गया और किनारे किनारे से गाढ़ा सफेद सफेद वीर्य निकलकर रजनी की जांघों से होता हुआ तकिये पर गिरने लगा।

रजनी एक बार शर्मा गयी फिर बोली- अच्छा वो?

उदय- हाँ वो मेरी राँड़...क्या हो गया था मेरी बेटी को जो उसके मुँह से उत्तेजना में निकला "अम्मा देखो पापा चोद रहे हैं मुझे"

रजनी फिर शर्मा गयी- पता नही क्या हो गया था बाबू, कुछ भी बड़बड़ाये जा रही थी, पर न जाने क्यों मुझे बहुत गुदगुदी हुई वो बोलते हुए....बहुत उत्तेजना भी हुई, एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे अम्मा मुझे थोड़ी दूर खड़े होकर देख रही है और मैं आपसे चुदवा रही हूं, न मुझे डर लगा की अम्मा क्या सोचेंगी, न घबराहट हुई, न लाज लगी, बल्कि उल्टा बहुत अजीब सा मजा आया, और एक बात बताऊं?

उदय - हम्म

रजनी- अम्मा भी मुस्कुरा रही थी।

"आआआह" उदय के लंड ने धीरे धीरे सख्ती पकड़नी शुरू कर दी, रजनी ने भी मस्ती में आँखे बंद कर ली, उदय का धीरे धीरे सख्त होता लंड उसे बूर के अंदर अच्छे से महसूस हो रहा था।

उदय- तुझे ऐसा बोलते हुए मजा आया?

रजनी उदय को सहलाते हुए- हाँ बाबू बहुत...अब भी मन कर रहा है

उदय - क्या...क्या मन कर रहा है मेरी बिटिया का?

रजनी फुसफुसाते हुए- वही महसूस करने का।

उदय- तो किसने रोका है मेरी रानी...कर न महसूस।

रजनी धीरे धीरे उदय को सहलाने लगी फिर धीरे से उदय के कान में फुसफुसाई- आआआह.....मेरे बेटे...तू मुझे चोदेगा?....

उदय आश्चर्य से रजनी की आंखों में देखने लगा, उसे विश्वास नही हुआ कि रजनी ये बोलेगी, उसका लंड रजनी की बूर में सख्त एकदम लोहा बन गया, रजनी समझ गयी कि उसके बाबू को बहुत मजा आया है।
दोनो एक दूसरे को देखने लगे, रजनी की आंखें वासना से भरी हुई थी और वह कामुक मुस्कान लिए अपने बाबू की आंखों में एक आग्रह से देख रही थी। उदय अब समझा कि रजनी के मन में क्या है, वह क्या चाहती है? रजनी के मन की प्यास को वह अच्छे से जान गया, उसने रजनी को बड़े प्यार से गालों पर चूमा और बोला- माँ...मेरी अम्मा।

दोनो का बदन गनगना गया, रजनी ने "आह मेरा बेटा...मेरा बच्चा" बोलते हुए अपने बाबू को कस के आगोश में भर लिया।

उदय ने फिर धीरे से रजनी के कान में फुसफुसा कर बोला- अम्मा...मुझे बूर देगी....अपनी बूर चाटने देगी....?

रजनी मस्ती में सनसना गयी "हां मेरे लाल...मेरे राजा बेटा....बूर दूंगी मैं अपने राजा बेटा को?

उदय- तेरी बूर चोदने का बहुत मन करता है माँ... बहुत तरसता हूँ मैं तेरी रसभरी बूर के लिए।

रजनी की मस्ती में तेज सिसकारी निकल जाती है, उदय कस के अपना लंड रजनी की बूर में गाड़ देता है जिससे रजनी और मस्ती में सिसकते हुए उसके पीठ पर हल्का सा चिकोटी काट लेती है।

रजनी- ऊऊईईईईई मां.... हाँ मेरे बेटे...मैं भी तेरे लंड के लिए बहुत प्यासी हूँ.... तेरे से चुदवाना चाहती हूँ.... पर शर्म से कह नही पा रही थी....तेरी माँ बहुत तरस रही है तेरे लंड के लिए.....चोद अपनी माँ को....चोद दे मुझे बेटे.....आआआह..

एक बार फिर दोनों का बदन एक नई उत्तेजना के अहसास से जलने लगा, दोनो एक दूसरे को चूमने लगे, उदय ने एक बार लंड बूर से पूरा निकाला और कस के एक ही बार में रजनी की बूर में जड़ तक घुसेड़ दिया

"आआआह...मेरे लाल...धीरे धीरे...धीरे धीरे डाल अपनी माँ की बूर में"

"हाय अम्मा क्या बूर है तेरी...कितनी रसीली है..."

उदय से रहा नही गया और वह एक बार फिर कस कस के ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा, रजनी भी बदहवास सी "हाय मेरे बेटे...आह मेरे लाल...चोद अपनी माँ को...आह ऐसे ही.." बोलते हुए सिसकारी लेते हुए अपने बाबू से चुदवाने लगी।

उदय ने सोचा भी नही था कि उसकी बेटी आज उसे जन्नत का अनोखा मजा देगी, उसकी सगी बेटी उसे माँ को चोदने का मजा इतनी लज्जत भरे तरीके से दिलाएगी, उसे विस्वास नही हो रहा था, और यही बात उसकी उत्तेजना को चरम पर ला रहा था, एक बार चुदाई कर चुके होने के बाद भी दुबारा उससे ज्यादा उत्तेजना का अहसाह इस बदलते हुए रिश्ते को सोचकर करने में दोनो बाप बेटी को आ रहा था।

रजनी कराहते हुए - आआआ आ आ आ आ आ आ ह ह ह ह...ऊऊईईईईई मईया..... आआआह मेरे बेटे.....धीरे धीरे....चोद.... तेरी अम्मा की बूर बस तेरी है.....तेरे बाबू को भी मैं नही दूँगी अब.....मेरी बूर बस मेरे बेटे के लिए है.....आआआह मेरे लाल....धीरे धीरे पेल अपनी माँ को....मां को पेलने का मजा ले ले मेरा लाल....देख कैसे...कितनी गहराई तक जा रहा है तेरा मूसल मेरी बूर में....ऊऊईईईईई मां

उदय ने एक बार फिर रजनी की गांड को दोनो हांथों से उठाया और उसे कस कस के हुमच हुमच कर चोदने लगा।

उदय- अम्मा...

रजनी- हाँ मेरे राजा बेटा.... आआआह

उदय- मजा आ रहा है मेरी अम्मा को

रजनी - बहुत मेरे राजा बेटा.... बहुत

तेज तेज धक्कों से रजनी की इधर उधर उछलती दोनो चूचीयों को उदय ने लप्प से मुंह में भरा और चोदते हुए पीने लगा, रजनी का बदन मस्ती में कांप गया, वो हाय हाय करने लगी, उदय के सर, पीठ और कमर को सहलाते हुए वह नीचे से अपनी गांड उछाल उछाल कर अपने बाबू को बेटे के रूप में महसूस कर मस्ती में चुदवाने लगी, इस तरह का आनंद आज पहली बार दोनो महसूस कर बेसुध हो गए थे।

इस बार उदय के लंड का सुपाड़ा बेटे के लंड के रूप में बार बार अपनी बच्चेदानी के मुहाने पर टकराता हुआ महसूस कर रजनी की बूर का बुरा हाल हो चुका था वह इतना पानी छोड़ रही थी कि खुद उसे भी यकीन नही हो रहा था कि माँ-बेटे के बीच की चुदाई इतनी वासनामय और आनददायक होती है की सबकुछ भुला दे।

अपनी सगी बेटी में अपनी माँ को पाकर उदय का लंड मारे उत्तेजना के किसी गर्म लोहे की तरह हो गया था।

रजनी ने कराहते हुए अपने दोनों हाँथ अपने बाबू के नितम्बों पर रखे और तेज तेज ताल से ताल मिलाते हुए नीचे से अपनी गांड उछाल उछाल कर अपने बेटे से चुदवाने लगी, उत्तेजना इतनी थी कि कुछ ही देर में दोनो फिर एक साथ सीत्कारते हुआ, मस्ती में कराहते हुए झड़ने लगे

"आआआह ह ह ह ह ह ह....मेरे लाल...मैं गयी....हाएएए.....ऊऊईईईईई अम्मा...कितना मजा है इसमें.....इस पाप में.....हाय मेरे राजा बेटा.... कितना प्यारा है तेरा लंड...

उदय भी कराहते हुए अपनी माँ के गर्भ में अपना गरम गरम वीर्य उड़ेलता हुआ उसपर ढेर हो गया।

रजनी कस के उदय को फिर अपनी आगोश में भरकर चूमने लगी, कुछ देर तक फिर दोनों झड़ते रहे, पूरा तकिया दोनो के वीर्य से पूरी तरह भीग गया। उदय और रजनी दोनो अपनी सांसों को काबू करते हुए एक दूसरे को बड़े प्यार से सहलाने लगे। रात के 3:30 हो चुके थे

ऊपर बैठी डायन बाप बेटी का ये नया खेल देखकर मस्ती में हँसे जा रही थी, वह आँगन के अंदर नही उतर सकती थी, क्योंकि उदय का घर मन्त्र से बांधा हुआ था, सुरक्षित था, इसलिए वह बस मुंडेर पर बैठी थी वरना वह नीचे उतरकर बूर का अर्क लेने के लिए कब से ललचा रही थी क्योंकि अंदर का दृश्य ही इतना कामुक और उत्तेजना भरा था कि वह डायन अपनी आंखों से सामने महापाप होते हुए देखकर सुध बुध खो बैठी थी, वह कुछ पल के लिए यह भूल गयी कि उसे सुलोचना ने बांध रखा है वह चाहकर भी इधर उधर कुछ उल्टा सीधा नही कर सकती थी। उदय और रजनी थककर एक दूसरे की बाहों में ऊँघने लगे।
Mast mast fantasy realised.
 

Premkumar65

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Update- 93

उदय रजनी को बाहों में उठाये खटिया तक आया और बड़े प्यार से उसे खटिया पर लिटा दिया, लेटते ही रजनी की नज़र अपने बाबू के काले फंफनाते हुए लंड पर गयी, रजनी ने लेटे लेटे सिसकते हुए दोनो बाहें अपने बाबू की ओर फैला दी, उदय अपनी बेटी पर चढ़ गया।

रजनी- ओओओहहहह.....मेरे बाबू....आआ आहहहह..अम्मममा

रजनी के ऊपर लेटते ही उदय का खड़ा लन्ड
उसकी बूर की फांकों से जा टकराया। रजनी ने अपने पिता को अपने आगोश में भर लिया।

अपनी सगी बेटी के नंगे बदन को बाहों में भरने पर मिलने वाले मजे से उदय मदहोश हो गया, जैसे ही उसका लंड रजनी की बूर की दरार के ऊपर वाले हिस्से पर छुआ उदय ने रजनी को चूमते हुए उसके कान के पास धीरे से बोला

"हाय... मेरी बिटिया....तेरी.... बूररररर"

रजनी बूररररर शब्द सुनकर वासना से भर गई, अपनी कसी कसी चूचीयों को अपने पिता की नग्न छाती पर स्वयं ही दबाते हुए उनसे लिपट गयी।

उदय अपनी बेटी के गुदाज मखमली बदन पर ऐसे छा गया मानो किसी शेर ने हिरण को दबोच लिया हो। पिता का काला लंड बेटी की चिकनी मोटी मोटी जांघों पर, बूर पर, नाभि पर इधर उधर रगड़ खाने लगा, रजनी ने अपनी जांघे उठायी और अपने बाबू की कमर पर लपेट दी, ऐसा करते ही बूर की फांकें फैल गयी और लंड का मोटा सुपाड़ा बेटी की बूर की फांकों में अच्छे से दस्तक देने लगा, रजनी अपने बाबू के मोटे सुपाड़े को हल्का हल्का अपनी रसीली बूर की फांकों में डुबकी लगाते हुए महसूस कर एक बार फिर लजा गयी, उदय ने मस्ती में रजनी के कानों की लौ को चूम लिया, रजनी ने सिसकते हुए अपने होंठ आगे किये तो उदय अपनी बेटी के रसीले होंठों को अपने होंठों में भरकर चूमने लगा।

रजनी मचलते हुए अपने बाबू के सर को पकड़ कर उन्हें और अपने होंठों पर दबाने लगी फिर धीरे से मुंह खोल दिया उदय ने एक बार रजनी की आंखों में देखा तो वह मुस्कुराकर लजा गयी।

उदय- हाय... मेरी बेटी...लजा गयी....खोल न मुँह... रस पिला दे अपनी जीभ का।

दिये कि हल्की रोशनी में रजनी का गोरा गोरा अति उत्तेजित चेहरा दमक रहा था, शर्म और वासना की लाली उसके चेहरे को और भी आकर्षित और कामुक बना रही थी।

रजनी ने अपने बाबू की आंखों में वासना भरी अदा से देखते हुए अपने होंठ खोल दिये और अपनी जीभ को हल्का सा बाहर निकाल दिया।

उदय अपनी बिटिया की इस अदा पर कायल हो गया और मारे उत्तेजना के एक झटका अपने लंड से उनकी बूर की दरार के ऊपरी हिस्से पर मारते हुए (बूर की फांक जहां से शुरू होती है) उसकी जीभ को अपने मुंह में भर लिया, रजनी अपने बाबू के मुंह में ही "ऊऊऊऊ ईईईईईई ईई...अममम्म्ममा" कहते हुए चिहुंक उठी।

उदय रजनी की जीभ को कुल्फी की तरह धीरे धीरे नीचे से ऊपर की ओर अपने मुंह में भर भर कर चूसने लगा, साथ कि साथ वह अपने लंड से बिटिया की बूर जो अब बहुत पनिया गयी थी कि ऊपरी दरार में हल्का हल्का डुबो डुबो कर रगड़ने लगा, रजनी का बदन अपने बाबू के इस खेल की दोहरी मार से अति उत्तेजना में रह रहकर कंपकपा जा रहा था जिसको उदय बखूबी महसूस कर रहा था, रजनी अपने बाबू के सर को पकड़कर खुद मुंह खोले अपनी जीभ उनके मुंह में जितना अंदर हो सके डालने लगी, उदय जी भरकर अपनी बेटी की रसीली जीभ को कुल्फी की तरह पूरा मुंह में भर भरकर नीचे से ऊपर की ओर चूसता रहा, नीचे बूर का बुरा हाल होता जा रहा था और लंड लगातार हल्के हल्के कभी भग्नासे पर तो कभी बूर की फांकों के जोड़ पर ठोकर मार रहा था, उदय में बहुत संयम था, वह जानता था कि स्त्री को कैसे तैयार किया जाता है।

जीभ चूसते चूसते काफी देर हो गयी, दोनो बाप बेटी सारी दुनियां भूल कर एक दूसरे में डूबे हुए थे, रजनी ने हाँफते हुए अपने बाबू के मुँह से अपनी जीभ निकाली और अच्छे से सांस भरने के लिए अपने चेहरे को कभी दाएं तो कभी बाएं करने लगी, दिए कि रोशनी में उदय उसे देखने लगा, चेहरा दायें बायें घुमाने से कान की झुमकी इधर उधर हिलने से उससे रहा नही गया, वह रजनी की कान की झुमकी और उसके कान के आस पास चूमने लगा, रजनी का बदन फिर सनसना गया, उसकी साँसे धौकनी की भांति चलने लगी।

उत्तेजना भरी आवाज में वह धीरे से बोली- बाबू...चूची को भी खोलिये न....उसे भी दबाइये न बाबू..

इतना कहकर रजनी लजाकर एक बार फिर अपने बाबू से कस के लिपट गयी।

अपनी सगी बेटी के इस तरह अपने बाबू से चूची खोलकर उसको दबाने के आग्रह से उदय वासना में कराह उठा और रजनी की आंखों में देखकर बोला - रहा नही जा रहा अब...मेरी बिटिया से?

रजनी- नही बाबू....बिल्कुल भी नही, खोलिये न इसको भी। (रजनी ने फिर लजाते हुए कहा)

उदय- किसको मेरी बेटी?

रजनी ने आंखों से ब्रा में कैद भारी सुडौल फूली हुई दोनो चूचियों की तरफ इशारा करते हुए कहा- इसको बाबू?

उदय ने छेड़ते हुए कहा- इसको किसको मेरी रानी बेटी? किसको?

रजनी (सिसकते हुए) - अपनी बेटी की चूची को.....अपनी बेटी की चूची को खोलिये बाबू....खोलकर देखिए...आह ह ह ह...इनसे भी खेलिये.....इनको भी दबाइये न बाबू....ये भी तरस रहे हैं.....निप्पल को देखिए न बाबू कैसे तन गए हैं...आपके लिए

(रजनी सिसकते हुए एक बार में बोल गई)

उदय- आह ह ह ह....हाय मेरी रां.....

रजनी- हाँ बाबू बोलिये न...जो बोल रहे थे....मैं हूँ आपकी वही....वही बोलिये न जो अभी बोलने जा रहे थे...बोलिये बाबू।

दोनो एक दूसरे को देखने लगे, रजनी की आंखों में गंदी बातें सुनने का आग्रह झलक रहा था।

उदय- मेरी बेटी...मेरी जान

रजनी ने उदय के सर को सहलाते हुए धीरे से फिर बोला- वही बोलिये न बाबू जो बोलने जा रहे थे...मैं वही हूँ आपकी?

उदय- मेरी रांड... मेरी रंडी बेटी...

रजनी- आआआआ हहहहहह....बाबू बू बू बू.... हाँ मैं आपकी राँड़ हूँ....मैं अपने बाबू की रांड हूँ.... मैं अपने बाबू की रंडी हूं.... चूची खोलिये न बाबू...अपनी रांड की चूची पीजिये न।

(रजनी आज पहली बार वासना में बहक चुकी थी)

उदय उसे चूमे जा रहा था और वह बड़बड़ाये जा रही थी

उदय हल्का सा उठा और हाँथ पीछे ले जाकर ब्रा का हुक खोल दिया, रजनी ने अपनी छाती को ऊपर उठा कर अपने बाबू को ब्रा का हुक खोलने में मदद की, जैसे ही उदय ने ब्रा को खोलकर खटिया के नीचे गिराया, रजनी ने सिसकते हुए बड़ी अदा से हल्की सी अंगड़ाई लेकर अपने बदन को धनुषाकार में ऊपर को उठाते हुए अपनी दोनों चूचियों को और भी ऊपर की ओर तान दिया, मोटी-मोटी गोरी-गोरी 36 की साइज की दोनो चूचीयाँ गोल गोल फुले हुए गुब्बारे की तरह तनकर ऊपर की ओर उठ गयीं। उत्तेजना में दोनों चूचीयाँ फूलकर और भी बड़ी हो गयी थी, दोनो रसीले गुलाबी निप्पल तनकर कब से खड़े थे और अब खुली हवा में आजाद हो गए थे, दिये की हल्की रोशनी में अपनी सगी बेटी की 36 साइज की मोटी मोटी छलकती दोनो चूचियों को देखकर उदय मंत्रमुग्ध सा हो गया, ऐसा नहीं था कि पहली बार देख रहा था पर हर बार रजनी की मदमस्त चूचीयाँ उसका मन मोह लेती थी, बिना एक पल गवाएं वो अपनी बेटी की गुदाज चूचीयों पर टूट पड़ा, रजनी जोर से सिसक उठी-

"आह बाबू....पीजिये न....दबाइये.... हाँ ऐसे ही मेरे बाबू...ऐसे ही....ऊ ऊ ऊ ईईई...हाय दैय्या..... ऊऊईईईईई माँ..... धीरे बाबू....थोड़ा धीरे धीरे मसलिये.....ऊऊफ़्फ़फ़फ़फ़....आह बाबू (उदय ने नीचे मारे उत्तेजना के लंड बेटी की बूर में कस के रगड़ दिया) ...ऊऊफ़्फ़फ़फ़फ़ बाबू...धीरे धीरे ठोकर मारिये बाबू....आआआह हहहह...मेरे बाबू....अब इसको पीजिये (रजनी ने बायीं चूची को आने बाबू के मुंह में भरते हुए कहा)...अअअआआआआआहहहहहहहहह....बाबू, अपने पिता की गरम गरम जीभ अपने निप्पल पर महसूस कर रजनी पागल होती जा रही थी, उसका बदन वासनामय गुदगुदी और उत्तेजना से रह रहकर थिरक सा जा रहा था, पूरे बदन में सनसनाहट और कंपन दौड़ रही थी, हर बार एक नया अहसाह रजनी को कायल कर दे रहा था।

उदय बेसुध होकर अपनी बेटी की चूचीयों को दबा दबा कर पिये जा रहा था, कभी रुककर सहलाने लगता, कभी निप्पल को चूसने लगता, कभी मुँह में भरकर तेज तेज पीने लगता, कभी निप्पल को दोनो होंठों के बीच दबा कर चूसता, कभी जीभ से पूरी चूची को चाटने लगता, अपने बाबू के थूक से रजनी की गोरी गोरी चूचीयाँ दिये कि रोशनी में और भी चमकने लगी। उदय के सख्त हाँथ रजनी की कोमल नरम गुदाज चूचियों को रगड़ रगड़ कर मसल रहे थे, जब उदय कस के रजनी की चूची को दबाता तो गुलाबी निप्पल से सफेद सफेद दूध निकल आता जिसे उदय जीभ से चाट लेता, अपनी सगी बेटी का मीठा मीठा अमृत जैसा दूध उसे और उत्तेजित कर रहा था, रजनी अपने बाबू की मस्ती देख वासना में कराह उठती।

एक बेटी अपने सगे पिता से अपनी चूचीयाँ मसलवा रही थी। रजनी सनसना कर कभी आंखें बंद कर लेती, कभी उदय को चूची पीते हुए देखने लगती, लगातार उसके नरम नरम हाँथ अपने बाबू के सिर को प्यार से सहला रहे थे, रह रह कर वो अपने बाबू का सर अपनी दोनो चूचियों के बीच दबा भी देती, कस के खुद ही अपनी चूचियों को अपने बाबू के मुंह में भरकर कराह उठती "बाबू.….कितना अच्छा लगता है न ये सब करना....छुप छुप कर अपने बाबू के साथ पाप करना....आह...

कराहते हुए रजनी ने अपना दाहिना हाँथ नीचे ले जाकर अपने बाबू का दहकता काला लंड जो पनियानी बूर की फांकों में रगड़ रगड़ कर हलचल मचा रहा था, पकड़ लिया, और अपने नितम्बों को हल्का सा पीछे कर अपनी बूर को अपने बाबू के लंड से थोड़ा सा दूर किया, नही तो मारे उत्तेजना के वो बस झड़ने ही वाली थी क्योंकि उदय का लंड लगातार बूर की दरार में फांकों के बीच रसीली घाटी में रगड़ रहा था।

अपनी बेटी की बूर की रसीली चाशनी में उदय के लंड का सुपाड़ा सना हुआ था, लगातार रगड़ने से चमड़ी पूरी तो नही पर सुपाड़े से थोड़ी उतर गई थी, आधा सुपाड़ा चमड़ी से बाहर आ गया था और रजनी की बूर की चाशनी में सना हुआ था।

अपने बाबू के काले सख्त लंड को पकड़कर रजनी के चेहरे पर फिर शर्म की लालिमा तैर गयी, ऐसा जान पड़ रहा था कि लंड पहले से और विकराल रूप ले चुका है, काफी देर से उत्तेजना में होने की वजह से मोटी मोटी नशें खून के वेग से उभरकर खुरदरा अहसाह कर रही थी, लंड को हाँथ में लेते ही रजनी की आह भरी सिसकी निकल गयी, अपनी बेटी के नरम नरम हाँथ का अहसाह अपने लंड पर पाकर उदयराज की आंखें मस्ती में बंद हो गयी, रजनी ने पूरे लंड पर बड़े प्यार से हाँथ फेरा, एक एक हिस्से को हल्का दबा दबा कर सहलाया, अपने बाबू के दोनों मोठे मोठे अण्डकोष जिनपर काले काले बाल भी थे उन्हें अपनी हथेली में लेकर कुछ देर तक बड़े प्यार से सहलाया, उदय का लंड अपनी बेटी के नरम नरम हाथों की छुवन पाकर बार बार उछलने लगा। उदय मस्ती में चूची पीना छोड़कर रजनी की आंखों में बड़े प्यार से देखने लगा, रजनी भी आंखों में शर्म की लाली लिए मदहोशी में अपने बाबू की आंखों में बड़े प्यार से लंड की लंबाई मोटाई को नापते हुए, सहलाते हुए देखने लगी, मानो कह रही हो "बाबू ऐसे ही सहलाऊँ आपके लन्ड को...ऐसे ही छुऊँ अपने बाबू के लंड को.....बहुत प्यासा है मेरे बाबू का लंड अपनी बिटिया का प्यार पाने के लिए...... तरस रहा है आपका लन्ड मेरे बाबू" और मानो उदय भी बड़ी आग्रह से अपनी बिटिया की आंखों में देखकर बोल रहा हो "हाँ मेरी सलोनी बिटिया...मेरी रानी ऐसे ही सहला मेरा लंड, ऐसे ही टटोल टटोल कर लंड के हर हिस्से को छू मेरी बेटी....ऐसे ही मेरे लंड से खेल....इसको सहला...इसको दबा...इसकी लंबाई को सहला सहला कर नाप ले...ऐसे ही प्यार कर इसको....तेरे नरम नरम हांथों के लिए ये बरसों से तरसा है मेरी बेटी"।

रजनी धीरे धीरे लंड को सहलाती रही और दोनो के होंठ मस्ती में मिल गए, उदय ने अपनी गांड को थोड़ा और ऊपर को उठा लिया ताकि रजनी को हाँथ चलाने में दिक्कत न हो और वो लंड को अच्छे से महसूस कर सहला सके। रजनी चार इंच चौड़े लंड को कभी हथेली में भरती, कभी उसकी पूरी लंबाई पर हाँथ फेरती, कभी लंड के जोड़ पर घने घुंघराले बालों में उंगलियाँ चलती, कभी हाँथ नीचे की तरफ कर मोठे मोठे अंडकोषों को सहलाती, मारे उत्तेजना के लंड सख्त होकर लोहा बन गया था, बार बार मस्ती में ठुनक रहा था, उछल रहा था, रजनी ने मचलते हुए अब अपने बाबू के सुपाड़े की चमड़ी को पकड़कर पीछे की तरफ खींचकर खोला और सुपाड़े पर से चमड़ी उतरकर पीछे की ओर सिमटती गयी, छोटे गेंद की भांति फूला हुआ चिकना सुपाड़ा बाहर आ गया, लंड और तेज तेज ठुनकने लगा, उदय ने रजनी के होंठों और गालों को चूमना जारी रखा, ऊपर रजनी कभी अपने गाल तो कभी अपने होंठ अपने बाबू को परोसती रही और नीचे अपने बाबू के लंड से खेलती जा रही थी, दोनो की सिसकी से आँगन गूंज रहा था।

लंड का सुपाड़ा खोलकर रजनी उसे अपनी मुट्ठी में भरकर चिकने भाग को सहलाने लगी और उदय उत्तेजना में गनगना जा रहा था, रजनी कुछ देर तक अपने बाबू के सुपाड़े को कभी अंगूठे से तो कभी उँगलियों से सहलाती रही और दूसरे हाँथ से वो अण्डकोषों को बड़े प्यार से दुलारती रही, दोनो में अब उत्तेजना अपने चरम पर थी। ऊपर बैठी डायन बाप बेटी का महापाप देख मंत्रमुग्ध थी, बाहर काकी और रजनी की बेटी बेसुध होकर सो रहे थे और आँगन में बाप बेटी पाप के आनंद में डूबे हुए थे।

रजनी से अब रहा नही जा रहा था वही हाल उदय का भी हो रहा था, अब बर्दाश्त करना मुश्किल था, रजनी ने मादक आवाज में धीरे से अपने बाबू से आग्रह किया- "बाबू अब बर्दाश्त नही हो रहा है.."

उदय- मेरी बेटी से अब बर्दाश्त नही हो रहा है?

रजनी- आआआह बाबू....हाँ आपकी रंडी से अब बरदाश्त नही हो रहा....अब आइये न...ऊपर चढ़िए मेरे।

उदय- रहा तो मुझसे भी नही जा रहा मेरी बेटी।

रजनी उदय के लंड को सहलाये जा रही थी और उदय ने भी एक हाथ नीचे ले जाकर अपनी बेटी की दहकती बूर को हथेली में भर लिया, रजनी सिसक उठी "आआआह हाय... बाबू...अब पेल दीजिये न अपनी बिटिया को...और मत तड़पाइये.... बाबू...आआआह...चोदिये न मुझे....अच्छे से...चोद दीजिये बाबू मुझे...अब बर्दाश्त नही होता मुझसे...मजा लीजिये न अपनी बेटी की बूर का....

उदय से रजनी का आग्रह बर्दाश्त नही हुआ और वो उठ बैठा, तकिये को उठा कर उसने रजनी के नितम्बों के नीचे लगाया, रजनी ने अपनी मदमस्त गांड उठा कर तकिया नीचे लगाने में अपने बाबू की मदद की और थोड़ा नीचे सरक गयी ताकि उसका सर खटिये की पाटी से न लगे।

पास में रखा दिया उदय ने हाँथ में ले लिया और अपनी सगी बेटी की दहकती बूर को अच्छे से देखने के लिए जांघों के पास ले आया, रजनी अपने बाबू की मंशा जान गयी और शर्म से लजा गयी, पर दूसरे ही पल उसने खुद अपनी जांघों को अच्छे से खोलते हुए अपनी मदमस्त गोरी गोरी प्यारी सी मखमली बूर अपने बाबू के सामने परोस दी और बड़ी मादकता से शर्माते हुए लजाते हुए अपनी तर्जनी और मध्यमा दो उंगली से अपनी बूर की फांकों को खोलकर उसका गुलाबी छेद जो चाशनी से भरा था बाबू को दिखाने लगी, मदहोश कर देने वाली काम रस और पेशाब की महक उदय को पागल कर गयी, ऐसा नही था कि वो रजनी की बूर पहली बार देख रहा था पर सगी बेटी की बूर जितनी बार भी देखो हर बार वही पहले वाला अहसास कराती है, दिए कि रोशनी में अपनी सगी बेटी की महकती बूर देखकर उदय का लंड इतना सख्त हो गया कि मानो अभी फट जाएगा, रजनी ने और भी अदा दिखाते हुए अपने बाबू को ललचाते हुए धीरे धीरे अपनी बूर से खेलने लगी, उदय मदहोश होकर बूर को देखे जा रहा था, रजनी कभी फांकों को अच्छे से चीरकर गुलाबी छेद को अच्छे से अपने बाबू को दिखाती, कभी बीच वाली उंगली से भग्नासे को धीरे धीरे सहला कर थपथपाती, कभी गुलाबी छेद के मुहाने पर बीच वाली उंगली गोल गोल घुमाती, कभी तर्जनी उँगली को बूर की पूरी दरार में अच्छे से ऊपर नीचे तक रगड़ती, ऐसा करते हुए वो खुद भी बर्दाश्त से बाहर हो रही थी पर आज उसे अपने बाबू को अपनी बूर खुलकर दिखाने में न जाने कैसे आनंद का अनुभव हो रहा था, उसका बदन रह रहकर गनगना जा रहा था।

उदय से अब रहा नही गया और वह दिया अपनी जगह पर रखकर अपनी बेटी की बूर पर टूट पड़ा, लप्प से उसने रजनी की पनियानी बूर को मुँह में भर लिया और लगा चूसने, रजनी अब हाय हाय करने लगी "आआआआआआआ हहहहहहहह बाबू .....हाय मेरी बूर..धीरे धीरे बाबू....नही तो मैं झड़ जाउंगी बाबू......आआआह माँ...... दांत मत लगाइये बाबू.....प्यार से खाइये बिटिया की बूर......आआआह मेरे प्यारे बाबू.....सारा रस चाट लीजिये मेरे राजा....आआआह.....ऊऊईईईईई..... ओ ओ ओ ओ ओ हहहहहह अम्मा....धीरे धीरे मेरे बाबू .....हाय मेरी बूर (दोनों हाथों से रजनी अपने बाबू के सर को पागलों की तरह सहलाये जा रही थी और मस्ती में सिसकते हुए बड़बड़ाये जा रही थी), आआआह बाबू आपकी गरम गरम जीभ....आह बस बाबू मैं झड़ जाउंगी....आह बस....मुझे आपके लंड से झड़ना है बाबू...ऊऊईईईईई अम्मा.....बाबू

रजनी ने उदय के सर को पकड़ कर ऊपर चढ़ने के इशारा किया तो उदय ने अपनी बिटिया की बात मानी और उसके ऊपर आ गया, दोनो के होंठ आपस मे मिल गए

रजनी- अब डालिये न बाबू...चोदिये मुझे

(रजनी ने बडी मादकता से कहा)

उदय पूरी तरह बेकाबू हो गया था पर फिर भी खुद को संभालता हुआ बोला- हाय मेरी राँड़...मेरी बेटी...कैसे डालूं...धीरे धीरे या एक ही बार मे?

(ऐसा कहते हुए उसने रजनी को चूम लिया, रजनी ने बड़े प्यार से उदय से कहा)

"एक ही बार मे बाबू...एक ही बार में"

उदय- एक ही बार मे सीधे बच्चेदानी तक

रजनी कराहते हुए- हाँ मेरे बाबू...हाँ

उदय ने अपनी बेटी को फिर चूमा और बोला-

"तो लंड को पकड़ कर सीध में लगा और एक हाथ से अपनी बूर की फांक को खोल कर रख"

ऐसा कहते हुए दोनो ने पोजीशन की और उदय अपनी बेटी पर झुक गया, कमर को जरूरत भर के हिसाब से उठा लिया।

रजनी ने मारे उत्तेजना के अपने बाबू को ताबड़तोड़ कई बार चूम लिया और जल्दी से दोनो जांघों को अच्छे से फैलाकर कराहते हुए अपने हाँथ नीचे ले जाकर एक हाँथ से अपने बाबू के दहकते लंड को पकड़कर एक बार फिर अच्छे से सहलाया, चमड़ी को और अच्छे से खोलकर पीछे कर लिया और जल्दी से अपना हाँथ दुबारा अपने मुंह तक लायी और ढेर सारा थूक लेकर गरम गरम थूक काले फंफनाते लंड पर लगा दिया, रजनी ने लंड को ठीक बूर के छेद पर लगाया और दूसरे हाथ से अपनी बूर की फांकों को चीरकर खोल दिया।

उदय से रहा नही गया और उसने अपनी बिटिया के होंठों को चूमते हुए पहले तो पांच छः बार लंड को बूर की दरार में रगड़ा, फिर चिकने सुपाड़े को बूर के गुलाबी छेद के मुहाने पर कई बार छुआया जिससे हल्की "पुच्च पुच्च" की आवाज होने लगी और दोनो मस्त हो गए, क्योंकि बूर बहुत पनिया गयी थी इसलिए जैसे ही चिकना सुपाड़ा बूर के छेद पर छूता और उदय अपनी गांड को उठा लेता तो हल्की "पुच्च" की आवाज आती, बूर के रसीले गुलाबी छेद से निकल रहे लेसदार रस में चिकना सुपाड़ा बार बार डूबता और हटाने पर पुच्च की आवाज होती और एक दो हल्के तार भी बन जाते। रजनी लंड को सीधा पकड़े हुए उत्तेजना में कराह रही थी उससे अब बर्दाश्त नही हो रहा था, बस सिसकती जा रही थी, एकाएक उदय ने तेज धक्का मारा और लंड बूर की फांकों को फैलाता हुआ संकरी रसीले छेद को चीरता हुआ बूर की गहराई में उतर गया


"आआआ आआआआआ हहहहहह.. बाबू"

रजनी मस्ती में कराह उठी, लंड सीधा उसकी बच्चेदानी से जा टकराया, उसने दोनो हाथों से अपने बाबू के कंधों को थाम लिया और हल्के दर्द में सीत्कार उठी, पूरा आँगन रजनी की कामुक सीत्कार से गूंज उठा, दर्द बहुत तीखा तो नही था पर हल्का हल्का हो रहा था, क्योंकि बूर बहुत चिकनी हो गयी थी तो दर्द से कहीं ज्यादा मीठेपन का अहसाह था, मीठे दर्द से रजनी का बदन एक बार फिर धनुष की भांति ऐंठ गया, अपने बाबू का चार इंच मोटा लंड अपने बच्चेदानी तक महसूस कर रजनी कँपकँपा गयी, लंड के ऊपर की मोटी मोटी उभरी नशें उसे अपनी बूर की अंदरूनी दीवार की मांसपेशियों पर बखूबी महसूस हो रही थी।

वो धीरे धीरे कराह रही थी और कस के अपने बाबू से लिपटी हुई थी, उदय अपनी बेटी की नरम नरम बूर में अपना मूसल जैसा लन्ड जड़ तक घुसा कर उसकी नरमी, नमी, चिकनाहट और गर्माहट को अच्छे से महसूस करने लगा, रजनी ने कराहते हुए अपने पैर अपने बाबू की कमर पर कैंची की तरह आपस मे लपेट कर कस लिए और उन्हें चूमते हुए सहलाने लगी मानो शाबाशी दे रही हो। बूर में रह रहकर संकुचन हो रहा था वह लंड को अपने अंदर जितना हो सके आत्मसात कर रही थी, उदय का लंड रजनी की बूर की गहराइयों में घुसकर उसकी अंदरूनी दीवारों की गर्माहट को महसूस कर, बूर के अंदर ही बार बार ठुनक कर हल्का हल्का उछल रहा था जिसे रजनी बखूबी महसूस कर उत्तेजना से सनसना जा रही थी।

बूर अंदर से बहुत गर्म हो चुकी थी जिससे उदय के लंड की अच्छे से सिकाई भी हो रही थी, उदय ने दोनो हाँथ नीचे ले जाकर रजनी की गुदाज मोटी मोटी गांड को हथेली में भरा और हल्का सा ऊपर की ओर उठाते हुए एक बार फिर कस के लंड को और भी ज्यादा बूर में ठूंस दिया, रजनी मस्ती में फिर कराह उठी "बस बाबू.....आआआआ हहहह.. अम्मा....बस कितना अंदर डालोगे बाबू..अब जगह नही है...पूरा बच्चेदानी तक चला गया है मेरे बाबू....ऊऊईईईईई माँ..... हाय मेरी बूर....कितना मोटा है बाबू आपका.....कितना लम्बा है.....आआआह....बस करो....ऊऊईईईईई (उदय ने गच्च से एक बार फिर लंड हल्का सा बाहर निकाल कर रसीली बूर में जड़ तक पेल दिया)

उदय- आआआह मेरी बेटी....मेरी राँड़...मेरी रानी... क्या बूर है तेरी.....कितनी गहरी है.....बहुत मजा आ गया....आआआह

रजनी तेजी से सिसकते हुए- मजा आया मेरे बाबू को...अपनी बिटिया की बूर में लंड डालकर।

उदय- आआआह हाँ मेरी बिटिया...बहुत

रजनी- बाबू एक बार फिर निकाल कर गच्छ से डालिये न, मैं निशाना लगाती हूँ

(रजनी ने कराहते हुए मस्ती में कहा)

उदय ने झट से पक की आवाज के साथ बूर में घुसा हुआ लंड बाहर निकाल लिया और अपनी गांड को ऊपर की तरफ उठा कर पोजीशन ली, रजनी हल्का सा चिहुंक गयी, लंड पूरा बूर की रशीली चाशनी से सना हुआ था, रजनी ने मदहोशी से एक बार फिर अपने बाबू के दहकते हुए लंड को थामा, लंड अबकी बार ज्यादा गर्म था, जैसे ही रजनी ने एक हाँथ से लंड को पकड़ा और दूसरे हाँथ से अपनी बूर की फांकों को खोलकर रसीले गुलाबी छेद को खोला उदय ने एक बार फिर कस के एक ही बार मे पूरा लंड बूर की गहराई में उतार दिया, रजनी मीठे मीठे रसीले दर्द के अहसाह से फिर सीत्कार उठी, एक बार फिर उसका बदन मस्ती में ऐंठ गया, उदय ने एक ही बार में अपनी बेटी की बूर में अपना लंड जड़ तक घुसेड़ दिया और तुरंत ही हल्का हल्का तीन चार बार थोड़ा थोड़ा बाहर निकाल कर गच्च गच्च धक्का मारा, रजनी मदहोश हो गयी और तेजी से सिसकते हुए अपने बाबू से उत्तेजना में बोली- "आआआह बाबू....अब रुकिए मत....हुमच हुमच कर अपनी सगी बिटिया को चोदिये....चोदिये न बाबू।

उदय ने रजनी की गांड को एक बार फिर दोनों हांथों से हल्का सा उठाया और उसके गालों और होंठों को चूमते हुए हुमच हुमच कर पूरा पूरा लंड बूर में जड़ तक घुसेड़ घुसेड़ कर अपनी बेटी को चोदने लगा, अब वो रुकने वाला नही था, रजनी हाय हाय करने लगी, उसके बाबू का लोहे जैसा इतना मोटा, लम्बा काला लंड उसकी बूर की गहराई में बार बार उतरने लगा, उदय ने रजनी को अच्छे से दबोचा और बड़े बड़े लंबे लंबे धक्के तेजी तेजी लगाने लगा, रजनी बदहवास सी तेज तेज सिसकते हुए नीचे से अपनी गांड उछाल उछाल के अपने बाबू की ताल से ताल मिलाने लगी, छोटी सी खटिया ताबड़तोड़ धक्कों से चरमरा गई और चर्र चर्र की आवाज आँगन में मदमस्त सिसकियों के साथ गूँजने लगी।

हर बार की तरह एक बार फिर रजनी अपने बाबू का लंड पाकर जन्नत में थी, उदय भी अपनी सगी बेटी को चोदते हुए सातवें आसमान में था। तेज तेज धक्कों के साथ हुमच हुमच कर चोदते हुए जब कभी उदय का लंड रजनी की बूर में थोड़ा तिरछा होकर बूर की दीवारों से तेजी से रगड़ता हुआ बच्चेदानी से टकराता तो रजनी मस्ती में बडी तेजी से कराह उठती, और ऐसा हर तीसरे चौथे धक्के के बाद हो रहा था कि लन्ड तिरछा होते हुए बूर की दीवारों को रगड़ता हुआ बच्चेदानी से जा टकराता और रजनी मस्ती में चिहुंक उठती। अपने बाबू का मोटा चिकना सुपाड़ा बूर की बच्चेदानी से बार बार टकराने से रजनी के पूरे बदन में एक अजीब से सनसनी होने लगी, मीठी तरंगे पूरे बदन में घुलने लगी, वह लगातार नीचे से गांड उछाल उछाल कर अपने बाबू से चुदवा रही थी। जब कभी उदय बहुत तेजी से लंड बूर में ठूँसकर थोड़ा रुकता तो रजनी का बदन मस्ती में थरथरा जाता, उदय फिर हुमच हुमच कर चोदने लगता और रजनी फिर तेजी से कराहते हुए नीचे से गांड उछाल उछाल कर चुदवाने लगती


"आआआह....हाय.... पापा.... आह मेरे प्यारे पापा....चोदिये मेरे पापा जी...

(रजनी ने ये पापा शब्द अपनी सहेली के मुंह से सुना था, उसी ने रजनी को बताया था कि शहर में बाबू या पिता को पापा कहते हैं, अचानक ही रजनी के मुँह से पापा शब्द निकल गया और उदय ने रजनी के होंठों को कस कर चूम लिया, उदय को बहुत अच्छा लगा ये रजनी जान गई उत्तेजना की आग में पापा शब्द ने घी का काम किया और सनसनी से दोनों के बदन गनगना गए)

आआआह मेरे पापा...मेरे राजा पापा.....चोदिये अपनी लाडली बेटी को, ऊऊईईईईई माँ.... हाय....देखो न अम्मा पापा मुझे चोद रहे हैं......आह पापा..... हाँ हाँ ऐसे ही....पूरा अंदर तक डाल डाल कर पेलिये अपनी बेटी को....आआआह..... मेरे पापा.....पापा जी....आह पापा...अम्मा के सामने मुझे चोदिये पापा.... चोद दीजिये मुझे मेरे प्यारे पापा.... ऊऊईईईईई माँ..... आपका लंड कितना बड़ा है पापा..... देखो न कैसे मेरी छोटी सी चूत में घुसा हुआ है पापा.....आआआह मेरे पापा जी. . आह

उदय पूरी ताकत से रजनी की बूर तेज तेज धक्कों के साथ चोदने लगा, रजनी मस्ती में कराहती हुई, वासना के उन्माद में बड़बड़ाती हुई नीचे से गांड को उछाल उछाल कर अपने बाबू को "पापा" बोलते हुए चुदवाने लगी, वासना के आवेग में कई बार उसको ऐसा लगा कि उसकी अम्मा उसको देख रही है और वो वासना से अपनी अम्मा की तरफ देखते हुए अपनी गांड उछाल उछाल के अपने पापा से चुदवा रही है। यह अहसाह होते ही कि उसकी अम्मा उसे पापा से चुदवाते हुए देख रही है, उसका बदन वासना और पाप के आनंद में और भी गनगना गया। (जबकि उसकी अम्मा इस दुनिया में अब है ही नही)

रजनी की इतनी सारी वासनामय रसभरी कामुक बातें सुनकर अचानक कुछ ही देर में उदय से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो एक तेज धक्का मारते हुए अपनी बेटी की बूर में झड़ने लगा, रजनी तेजी से चिहुंक उठी और उसे भी अपने बदन में तेज सनसनाहट का अहसाह हुआ, कराहते हुए वो भी अपने बाबू के साथ ताल से ताल मिला कर झड़ने लगी, दोनो बाप बेटी एक दूसरे से सिसकते हुए गुथ गए और एक साथ तेजी से कराहते हुए झड़ने लगे।

आआआह....मेरी बेटी..... मेरी राँड़....हाय तेरी बूर....तेरी बूर....तेरी बूर मेरी बेटी....आआआह मैं गया...आह मेरी रानी बिटिया।

आआआह मेरे पापा......आआआह आपका प्यार लंड.... ऊऊईईईईई अम्मा.. .आह पापा मैं झड़ रही हूं पापा.... कितना प्यारा है आपका लन्ड....आआआह मैं झड़ रही हूं पापा..... मेरे प्यारे पापा।

दोनो बुरी तरह एक साथ झड़ने लगे, रजनी की बूर तेज सनसनाहट के साथ संकुचित होकर अपने बाबू के लन्ड को निचोड़ते हुए ऐसे झड़ने लगी जैसे बरसों से अपने पापा के लंड के लिए प्यासी थी।

उदय के लंड से गरम गरम लावा रजनी की बच्चेदानी में भरने लगा, रजनी का बदन कुछ पल के लिए अनगिनत थरथराहट से कांप गया, चरमसुख के असीम सागर में वह खो गयी, बहुत देर तक उसकी बूर थरथराहट के साथ झड़ती रही, उसी तरह उदय का लंड भी रजनी की बूर में बहुत देर तक उछलता रहा और रह रहकर वीर्य की गरम धार बूर में उगलता रहा, दोनो की सांसें रात के अंधेरे में आँगन में गूँजने लगी, प्यार से दोनो एक दूसरे को सहलाते और चूमते रहे, अच्छी तरह झड़ जाने के बाद दोनों एक दूसरे को बड़े प्यार से चूमने लगे फिर उदय रजनी के ऊपर लेट गया और रजनी ने अपने बाबू को चूमते हुए बड़े प्यार से अपने आगोश में भर लिया, "मेरे पापा" बोलते हुए उसने बड़े प्यार से उनके सिर को चूमा और सहलाने लगी।
Fantastic erotica.
 
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