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दोहे -रसभरे

komaalrani

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फूले फदकत लै फरी पल कटाच्छ करबार।
करत बचावत बिय नयन पाइक घाइ हजार॥83॥


फूले = उमंग से मरकर। फदकत = पैंतरें बदलते हैं। फरी = ढाल। पल = पलक। करबार = फरबाल = तलवार। बिय = दोनों। पाइक = पैदल सिपाही। घाइ = घाव, धार।

(उसके) दोनों नेत्र-रूपी सिपाही पलक-रूपी ढाल और कटाक्ष-रूपी तलवार लेकर सानन्द पैंतरे बदलते तथा हजारों वार करते और बचाते हैं।

 
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जटित नीलमनि जगभगति सींक सुहाई नाँक।
मनौ अली चंपक-कली बसि रसु-लेतु निसाँक॥85॥


जटित = जड़ी हुई। नीलमनि = नीलम! सींक = स्त्रियों की नाक में पहनने का एक आभूषण विशेष, जिसे लौंग या छुच्छी भी कहते हैं। निसाँक = निःशंक, बेधड़क। रसु लेतु = आनन्द लूट रहा है, रस चूस रहा है।

नीलम से जड़ी लौंग (उसकी) सुन्दर नाक में जगमग करती है, मानो भौंरा चम्पा की कली पर निःशंक बैठकर रस पी रहा हो।

नोट - गोरी की नाक चम्पा की कली है, पीलम-जड़ी लौंग भौंरा है। भौंरा चम्पा के पास नहीं जाता; पर कवि ने असम्भव को सम्भव कर दिया है
 
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बेधक अनियारे नयन बेधत करि न निषेधु।
बरबट बेधत मो हियौ तो नासा कौ बेधु॥86॥


बेधक = बेधनेवाला। अनियारे = नुकीले। निषेध = रुकावट। बेधु = छेद, छिद्र। नासा = नाक। बरबट = अदबदाकर, जबरदस्ती।

चुभीली नुकीली आँखें यदि हृदय को छेदती हैं, तो छेदने दे, उन्हें मना मत कर (वे ठहरीं चुभीली नुकीली, बेधना तो उनका काम ही है); क्योंकि तेरी नाक का बेध-लौंग पहनने की जगह का छेद-मेरे हृदय को बरबस बेध रहा है- जो स्वयं बेध है, वही बेध रहा है, तो फिर बेधक क्यों न बेधे?
 

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इहिं द्वैहीं मोती सुगथ तूँ नथ गरबि निसाँक।
जिहिं पहिरैं जग-दृग ग्रसति लसति हँसति-सी नाँक॥89॥


सुगथ = सुन्दर पूँजी। गरबि = अभिमान कर ले। हँसति-सी लसति = सुघड़ जान पड़ती है। ग्रसति = फँसाती है।

अरे नथ! तू इन दो ही मोतियों की पूँजी पर निःशंक होकर गर्व कर ले; क्योंकि तुझे पहनकर (उस नायिका की) नाक हँसति-सी (सुन्दर शोभासम्पन्न) दीख पड़ती है और संसार की आँखों को फाँसती है।

नोट - एक उर्दू कवि ने कहा है-‘नाक में नथ वास्ते जीनत के नहीं। हुस्न को नाथ के रक्खा है कि जाये न कहीं! जीनत = खूबसूरती। हुस्न = सौन्दर्य।

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वेसरि-मोती धनि तुही को बूझै कुल जाति।
पीवौ करि तिय-अधर को रस निधरक दिन-राति॥90॥


अरे बेसर में गुँथ हुआ मोती! तू ही धन्य है। (भाग्यवान्) कुल और जाति कौन पूछता है? (अलबेली) कामिनियों के (सुमिष्ट) अधरों का रस तू निर्भयता-पूर्वक दिन-रात पिया कर।


नोट- ‘को बूझै कुल जाति’ से यह मतलब है कि मोती तुच्छ सीप कुल से पैदा हुआ है, तो भी उसे ऐसा सुन्दर सौभाग्य प्राप्त है, जिसके लिए कितने कुलीन नवयुवक तरसते रहते हैं!
 
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बेसरि मोती दुति-झलक परी ओठ पर आइ।
चूनौ होइ न चतुर तिय क्यों पट पोंछयो जाइ॥88॥


पट = कपड़ा। बेसरि = नाक की झुलनी, बुलाक।

बेसर में लगे हुए मोती की आभा की (सफेद) परिछाँई तुम्हारे ओठों पर आ पड़ी है। हे सुचतुरे! वह चूना नहीं है (तुमने जो पान खाया है, उसका चूना होठों पर नहीं लगा है), फिर वह कपड़े से कैसे पोंछी जा सकती है?

नोट - नायिका के लाल-लाल होठों पर नकबेसर के मोती की उजली झलक आ पड़ी है, उसे वह भ्रमवश चूने का दाग समझकर बार-बार पोंछ रही है; किन्तु वह मिटे तो कैसे?
 
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इहिं द्वैहीं मोती सुगथ तूँ नथ गरबि निसाँक।
जिहिं पहिरैं जग-दृग ग्रसति लसति हँसति-सी नाँक॥89॥


सुगथ = सुन्दर पूँजी। गरबि = अभिमान कर ले। हँसति-सी लसति = सुघड़ जान पड़ती है। ग्रसति = फँसाती है।

अरे नथ! तू इन दो ही मोतियों की पूँजी पर निःशंक होकर गर्व कर ले; क्योंकि तुझे पहनकर (उस नायिका की) नाक हँसति-सी (सुन्दर शोभासम्पन्न) दीख पड़ती है और संसार की आँखों को फाँसती है।
 
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बरन बास सुकुमारता सब बिधि रही समाइ।
पँखुरी लगी गुलाब की गात न जानी जाइ॥
91॥

(नायिका की) देह पर लगी गुलाब की पँखुरी पहचानी नहीं जाती-विलग नहीं देख पड़ती; क्योंकि उसका रंग और उसकी सुगन्ध तथा कोमलता गाल के रंग, सुगन्ध और कोमलता में एकदम मिल-सी गई है
 
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इसी जमीं पर ख़ुदा ए सुखन मीर का एक शेर पेश है

नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए,
हर एक पंखुड़ी गुलाब की सी है ।

पूरी ग़ज़ल पेश है,

हस्ती अपनी हबाब[1] की सी है ।
ये नुमाइश[2] सराब[3] की सी है ।।

नाज़ुकी उस के लब[4] की क्या कहिए,
हर एक पंखुड़ी गुलाब की सी है ।

चश्म[5]-ए-दिल खोल इस आलम[6] पर,
याँ की औक़ात ख़्वाब की सी है ।

बार-बार उस के दर पे जाता हूँ,
हालत अब इज़्तिराब[7] की सी है ।

नुक़्ता-ए-ख़ाल[8] से तिरा अबरू[9]
बैत[10] इक इंतिख़ाब[11] की-सी है

मैं जो बोला कहा के ये आवाज़,
उसी ख़ाना ख़राब[12] की सी है ।

आतिश[13]-ए-ग़म में दिल भुना शायद
देर से बू कबाब की-सी है ।

देखिए अब्र[14] की तरह अब के
मेरी चश्म-ए-पुर-आब[15] की-सी है ।

‘मीर’ उन नीमबाज़[16] आँखों में,
सारी मस्ती शराब की सी है ।


१. बुलबुला २ दिखावा ३. मरीचिका४ होंठ ५ आँख ६ संसार७ बेचैनी ८ त्वचा के ऊपर बने निशान, सौन्दर्यचिह्न ९ भौंरा, भँवें १० शे’र ११ पसन्दगी १२ बरबाद १३ आग १४ बादल १५ आंसुओं से भीगी आँखें १६ अधखुली
 
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komaalrani

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i am not sure about the purpose of this thread hence i am planning to close it. Being an ignoramus, i am not aware how to do it so i had posted a request in the suggestions forum, and as soon i get advice i will be closing it.

why the thread was moved remains a mystery to me but there must have been some reason. I must have caused some infringements, some infractions,... the thread was started in lounge some time back, September 15 to be precise but not once it was told me that its an appropriate thread in this forum. There are many threads dealing with poetry and shayri, movies including mine in the lounge.

May be pics were the offensive part but let me explain that they were just explanatory. I did not receive any communication except a message that the thread has been moved to some other corner. and i respect it. thanks again, so till i am able to close it, adieu
 
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