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दोहे -रसभरे

Rajizexy

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बढ़ चुके हैं आगे ज़िन्दगी में जो उन्हें याद कहाँ मैं,पर दिल टूटा था जहाँ मेरा आज भी हूँ वहाँ मैं !

नहीं पता मुझे तेरे भविष्य में कहीं मेरा पता होगा, पर देखना मेरे भविष्य में सिर्फ तेरा ही वर्त्तमान होगा !

उदासी है चेहरे पर फिर भी मुस्कान लेकर बैठे हैं, दिल तोड़ दिया जिन्होंने उन्हें जान बनाकर बैठे हैं !

दिल्लगी में जो मुझे मिला उसका आज भी दिल में दर्द है, ये दर्द कुछ और नहीं यही तो प्यार का मर्ज़ है !

कहते हैं सभी की नफरत है तुमसे, कोई कभी नहीं कहा की मोहब्बत है तुमसे !

Love 💞 you 😘
Soooo nice highjeck69, u r very good poet
 
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Rajizexy

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तेरा हिज़्र गवारा कर लूं क्या?
या खुद से भी किनारा कर लूं क्या?

कुछ इस कदर बेबस हूं मैं अपने दिल से,
तुम्हीं से इश्क दोबारा कर लूं क्या?

लफ़्ज़ों में दर्द रिसता है मेरे,
तेरे इश्क को मरहम कर लूं क्या?

तरसे हैं तेरे अक्स ए रूबरू हम
कहो? ख्वाबों से गुज़रा कर लूं क्या?

ये मेरी प्रीत से सींची नज़्मों में
मैं जिक्र तुम्हारा कर लूं क्या ?

Never never never never never never:angry:
Very well said, I never thought you r so poetic, highjeck69.
 
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komaalrani

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"शेरो शायरी के तो कई थ्रेड हैं इस फोरम में , एक दो कविता ग़ज़ल के भी, तो मैं एक दुष्चेश्टा करने का निर्णय किया,

हिंदी के रस सिद्ध लेखकों के दोहे , और ये फोरम फ़ोरम श्रृंगार का है तो रस भरे दोहे ही होंगे, हाँ मुझे पूरा विश्वास है, की हो सकता है पदचाप कम ही होंगे और नयन कम ही पड़ेंगे पर कुछ नैन ऐसे हैं फोरम में की अगर वो इधर मुड़ जाएंगे , मैं मान लूंगी की वो हजारों नज़रों की तरह है और चंदन समझ उन्हें माथे से लगा लूंगी,...

तो शुरू करती हूँ ,

और रस की बात हो दोहों की बात हो तो बात सतसैया से ही शुरू होगी, बिहारी लाल जी के चरणों में आदर श्रद्धा सुमन समर्पित करती,..."

Focus of this thread has been amply clarified in the first post of this thread, everybody is welcome to read, share and post, however, it would be more apt, if we focus on the focus of the thread,... shers too are welcome if they are on the same background and are helpful in further appreciation or comparison, like if we are reading and discussing dohas about eyes, so some beautiful sher on the beauty of eyes will only enrich this thread.

There is no prohibition and i will again repeat, everybody is welcome to post and share, just wanted to give a genteel reminder

thanks again
 

komaalrani

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तिय कित कमनैती पढ़ी बिनु जिहि भौंह-कमान।
चल चित-बेझैं चुकति नहिं बंक बिलोकनि बान॥76॥


कित = कहाँ। कमनैती = तीर चलाने की कला, बाण-विद्या। जिहि = ज्या = डोरी, प्रत्यंचा। चल = चंचल। बेझै = निशान, लक्ष्य, लक्ष्य। बंक = टेढ़ा। बिलोकनि = चितवन, दृष्टि।

इस स्त्री ने यह बाण-विद्या कहाँ पढ़ी कि बिना डोरी के भौंह रूपी धनुष और तिरछी दृष्टि-रूपी बाण से चंचल चित्त-रूपी निशाने को बेधने से नहीं चूकती?
 
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komaalrani

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दूज्यौ खरै समीप कौ लेत मानि मन मोदु।
होत दुहुन के दृगनु हीं बतरसु हँसी-विनोदु॥77॥


(नायक-नायिका दोनों) दूर-दूर खड़े होने पर भी निकट होने का आनन्द मन में मान लेते हैं-यद्यपि दोनों दूर-दूर खड़े हैं तथापित निकट रहकर सम्भाषण करने का आनन्द अनुभव कर रहे हैं; क्योंकि दोनों की आँखों (इशारों) से ही रसीली बातचीत, दिल्लगी और चुहल हो रही है।
 
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छुटै न लाज न लालचौ प्यौ लखि नैहर-गेह।
सटपटात लोचन खरे भरे सकोच सनेह॥78॥


प्यौ = प्रियतम। खरे = अत्यन्त। नैहर = मायके, पीहर। सटपटात = विक्षिप्त, बेचैन हो रहे हैं।

पति को अपने मायके में देखकर न तो (उन्हें भर नजर देखने के लिए) लाज छूटती है और न (देखने का) लालच ही छोड़ते बनता है। यों संकोच और प्रेम से परिपूर्ण उस नायिका के नेत्र अत्यन्त व्याकुल हो रहे हैं।

नोट - इस दोहे में स्वाभाविकता खूब है।
 
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komaalrani

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नाबक-सर-से लाइकै तिलकु तरुनि इत ताँकि।
पावक-झर-सी झमकिकै गई झरोखा झाँकि॥80॥


तिलकु = टीका। तरुनि = नवयुवती। पावक-झर = आग की लपट। झरोखा = खिड़की। झमकिकै = चंचल चरणों से। नावक-सर = एक प्रकार का छोटा चुटीला तीर, जो बाँस की नली के अंदर से चलाया जाता है, ताकि सीधे जाकर गहरा घाव करे।

चुटीले तीर के समान (ललाट पर) तिलक लगाकर उस नवयुवती ने इस ओर देखा और आग की ज्वाला-सी चंचलता के साथ खिड़की से झाँक गई।
 
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komaalrani

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चमचमात चंचल नयन बिच घूँघट-पट झीन।
मानहु सुरसरिता-विमल-जल उछरत जुग मीन॥82॥


घूँघट-पट = घूँघट का कपड़ा। झीन = बारीक, महीन। सुरसरिता = गंगा। जुग = दो। मीन = मछली। उछरत = उछलती है।

बारीक कपड़े के घूँघट की ओट से (उसकी) चंचल आँखें चमक रही हैं- झलक रही हैं, मानों गंगाजी के स्वच्छ जल में दो मछलियाँ उछल रही हैं
 
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