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दोहे -रसभरे

komaalrani

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दोहे -रसभरे

कल हिंदी दिवस था तो मैंने सोचा अपने इस फोरम पर भी कुछ शुरू करूँ। शेरो शायरी के तो कई थ्रेड हैं इस फोरम में , एक दो कविता ग़ज़ल के भी, तो मैं एक दुष्चेश्टा करने का निर्णय किया,

हिंदी के रस सिद्ध लेखकों के दोहे , और ये फोरम फ़ोरम श्रृंगार का है तो रस भरे दोहे ही होंगे, हाँ मुझे पूरा विश्वास है, की हो सकता है पदचाप कम ही होंगे और नयन कम ही पड़ेंगे पर कुछ नैन ऐसे हैं फोरम में की अगर वो इधर मुड़ जाएंगे , मैं मान लूंगी की वो हजारों नज़रों की तरह है और चंदन समझ उन्हें माथे से लगा लूंगी,...

तो शुरू करती हूँ ,

और रस की बात हो दोहों की बात हो तो बात सतसैया से ही शुरू होगी, बिहारी लाल जी के चरणों में आदर श्रद्धा सुमन समर्पित करती,...

कुछ वय संधि के दोहों के साथ,
 
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komaalrani

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छुटी न सिसुता की झलक झलक्यौ जोबनु अंग।
दीपति देह दुहूनु मिलि दिपति ताफता रंग॥24॥


सिसुता = शिशुता = बचपन। जोबनु = जवानी। देह-दीपति = देह की दीप्ति, शरीर की चमक। ताफता = धूपछाँह नामक कपड़ा जो सीप की तरह रंग-बिरंग झलकता या मोर की करदन की तरह कभी हल्का और कभी गाढ़ा चमकीला रंग झलकता है। ‘धूप+छाँह’ नाम से ही अर्थ का आभास मिलता है। दिपति = चमकती है।

अभी बचपन की झलक छूटी ही नहीं, और शरीर में जवानी झलकने लगी। यों दोनों (अवस्थाओं) के मिलने से (नायिका के) अंगों की छटा धूपछाँह के समान (दुरंगी) चमकती है।

.....
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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दोहे -रसभरे

कल हिंदी दिवस था तो मैंने सोचा अपने इस फोरम पर भी कुछ शुरू करूँ। शेरो शायरी के तो कई थ्रेड हैं इस फोरम में , एक दो कविता ग़ज़ल के भी, तो मैं एक दुष्चेश्टा करने का निर्णय किया,

हिंदी के दोहे , और ये फोरम फ़ोरम श्रृंगार का है तो रस भरे दोहे ही होंगे, हाँ मुझे पूरा विश्वास है, की हो सकता है पदचाप कम ही होंगे और नयन कम ही पड़ेंगे पर कुछ नैन ऐसे हैं फोरम में की अगर वो इधर मुड़ जाएंगे , मैं मान लूंगी की वो हजारों नज़रों की तरह है और चंदन समझ उन्हें माथे से लगा लूंगी,...

तो शुरू करती हूँ ,

और रस की बात हो दोहों की बात हो तो बात सतसैया से ही शुरू होगी, बिहारी लाल जी के चरणों में आदर श्रद्धा सुमन समर्पित करती,...

कुछ वय संधि के दोहों के साथ,
:claps:
 

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तिय तिथि तरनि किसोर-वय पुन्य काल सम दोनु।
काहूँ पुन्यनु पाइयतु बैस-सन्धि संक्रोनु॥25॥


तरनि = सूर्य। सम = समान राशि में आना, इकट्ठा होना। दोनु = दोनों। संक्रोनु = संक्रान्ति। बैस = वयस, वय, उम्र।

स्त्री (नायिका) तिथि है और किशोरावस्था (लड़कपन और जवानी का संधिकाल) सूर्य है। ये दोनों पुण्य-काल में इकट्ठे हुए हैं। वयःसन्धि (लड़कपन की अन्तिम और जवानी की आरंभिक अवस्था) रूपी संक्रान्ति (पवित्र पर्व) किसी (संचित) पुण्य ही से प्राप्त होती है।
 

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मोबाइल प लगा रहै, दिनभर करै चैबोळ।
काम कदे करता नहीं, सै बेट्टा बंगलोळ।।
 

komaalrani

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लाल अलौकिक लरिकई लखि लखि सखी सिहाति।
आज कान्हि मैं देखियत उर उकसौंहीं भाँति॥26॥


सिहाति = ललचाती है। उकसौंही-भाँति = उभरी हुई-सी, उठी-सी, अंकुरित-सी।

ऐ लाल! इसका विचित्र लड़कपन देख-देखकर सखियाँ ललचती हैं। आज-कल में ही (इसकी) छाती (कुछ) उभरी-सी दीख पड़ने लगी है।
 

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भावुक उभरौंहौं भयो कछुक पर्‌यौ भरुआइ।
सीपहरा के मिस हियौ निसि-दिन देखत जाय॥27॥


भावुक (भाव+एकु) = कुछ-कुछ। उभरौंहौं = विकसित, उभरे हुए। भरु = भार, बोझ। सीपहरा = सीप से निकले मोतियों की माला। मिस = बहाना। हियो = हृदय, छाती।

(उसकी छाती) कुछ-कुछ उभरी-सी हो गई है (क्योंकि उस पर अब) कुछ बोझ भी आ पड़ा है। (इसलिए) मोती की माला के बहाने अपनी छाती देखते रहने में ही (उसके) दिन-रात बीतते हैं।
 

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अपने अँग के जानि कै जोबन नृपति प्रबीन।
स्तन मन नैन नितंब कौ बड़ो इजाफा कीन॥29॥


अपने अँग के = अपना शरीर, सहायक। स्तन = छाती। नितम्ब = चूतड़। इजाफा = तरक्की, बढ़ती।

अपना शरीरी (सहायक) समझकर यौवनरूपी चतुर राजा ने (नायिका के) , स्तन. मन, नयन और नितम्ब को बड़ी तरक्की दी है।
 

komaalrani

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देह दुलहिया की बढ़ै ज्यौं ज्यौं जोबन-जोति।
त्यौं त्यौं लखि सौत्यैं सबै बदन मलिन दुति होति॥30॥


दुलहिया = दुलहिन। जोबन = जवानी। बदन = मुख।

दुलहिन की देह में ज्यों-ज्यों जवानी की ज्योति बढ़ती है, जोबन का उभार बढ़ता है त्यों-त्यों (उसे) देखकर सभी सौतिनों के मुख की द्युति मलिन होती जाती है

....

दो बातें,

पहली बात, दोहों के अंत में जो संख्या दी गयी है वह, बिहारी सतसई में दोहे की संख्या है।

दूसरी बात, साथी लेखक लेखिकाओं के लिए,

सुवरन को खोजत फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर.

हर लेखनी ऐसी उपमाओं को, ऐसे अलकारों को ढूंढती है अपनी रचना को आभूषित करने के लिए, ऐसे शब्दों की तलाश में रहती है जिससे वो जो चित्र उकेरना चाहती है वो पूरे रूप रंग के साथ खींचे जा सकें इसीलिए कहा गया है , कवि या लेखक सुवरन या सुन्दर वर्ण, शब्दों की तलाश करता है, और उन शब्दों, अलंकारों का प्रयोजन होता है, जिस रस की, भाव की उत्त्पति वो पाठकों के मन में करना चाहता है, वो हो,... और एक मूलत इरोटिक फोरम होने के नाते, इस फोरम में शब्दों ( कहानियो ), चित्रों ( पिक्चर थ्रेड्स ) इत्यादि के द्वारा संयोग श्रृंगार के भाव का सृजन करना एक प्रमुख ध्येय है और नारी सौंदर्य ( चाहे वह कैशोर्य की सीढियाँ चढ़ते, यौवन के वातायन का कपाट खोलते किशोरी हो, टीन, बेयरली लीगल वाली कैटगरी की, या नारी हो या प्रौढ़ा ( एम् आई एल एफ वाली कैटगरी की ),कोई भी स्त्री ), और नारी सुख के अनेक रूप, ...

रस का शाब्दिक अर्थ है - आनन्द। काव्य में जो आनन्द आता है, वह ही काव्य का रस है।संस्कृत में कहा गया है कि "रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्" अर्थात् रसयुक्त वाक्य ही काव्य है।

इसलिए मुझे लगा की यह दोहे, रीतिकालीन कवियों के, नारी सौंदर्य के, मिलन के और उससे भी बढ़कर मिलन की उत्कंठा के अनेक आयाम दर्शातें है. तो हम सब जो लिखने की कोशिश करते हैं इन दोहों से कुछ शायद रसास्वाद करने के अलावा सीखने का भी प्रयास कर सकते हैं , बस अब मैं और कविता और पढ़ने वालों के बीच नहीं आउंगी, क्योंकि न मुझे कविता लिखनी आती है न कहानी पर पढ़ने का शौक दोनों का है,

प्रयास कैसा लगा जरूर बताइयेगा।
 
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बिहारी सतसई बिहारी के रचनाओं का प्रमुख संग्रह है । नब्बे प्रतिशत रचनाएं श्रृंगार रस में लिखी हुई है । मुझे नहीं लगता इनसे बेहतरीन कोई श्रृंगार रस की कविताएं लिख सका है । रस और अलंकारों का अद्भुत संगम किया है उन्होंने अपने रचनाओं में ।
आउटस्टैंडिंग कोमल रानी जी । ग्रेट वर्क ।
 
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