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Adultery दूधवाला और मेरी पत्नी

Deeply

सवित्रा
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दोपहर का समय था। बनवारी अपने खेत पर बने झोपड़े में लेटा था। तभी दरवाज़ा खुला और झोपड़े के अंदर उसकी लूगाई हांथ में खाना लीये अंदर आयी।

लल्ली—‟दीन भर खेतो पर ही पड़े रहते हो, खाने की चीतां भी करते हो की नाही?”

ये कहते हुए, लल्ली ने खाने की थाली एक तरफ रखते हुए, बनवारी के बगल में खाट पर बैठ जाती है।

बनवारी का लंड तो सुबह से ही तनतनाया था। उसने अपना पैज़ाम तो पहले से ही नीकाल कर रख दीया था और सीर्फ एक लूंगी पहने हुए था। उसने झट से लल्ली का हांथ पकड़ते हुए खींच कर अपने सीने से चीपका लेता है...

लल्ली—‟आह...कर रहे हो? छोड़ो! सोहन बाहर खेतो में काम कर रहा है देख लीया तो...?”

ये सुनकर बनवारी ने जोर का थप्पड़ लल्ली के गांड पर ज़ड़ देता है। थप्पड़ इतना जोरदार था की...लल्ली के मुह से चींख नीकल पड़ती है। थप्पड़ की आवाज और लल्ली के मुह से चींख दोनो एक साथ बाहर काम कर लल्ली के बेटे सोहन के कानो में पड़ी...

सोहन कुछ समझ नही पाया, उसने सोचा की जाके देखे, कहीं उसकी माँ को कुछ लगा तो नही...?

सोहन धीरे-धीरे अपने कदम झोपड़ी की तरफ़ बढ़ाते हुए, जैसे ही नज़दीक पहुचां, उसके कानो में एक और जोरदार थप्पड़ की आवाज़ और उसके मां की चींख गूजी।

सोहन को कुछ समझ में नही आ रहा था की, आख़िर झोपड़े के अंदर क्या हो रहा है? उसने छुप कर अंदर देखने का सोचा....और झोपड़े के दीवाल में बने मुक्के से अंदर झांक कर देखा तो उसकी हवाईयाँ उड़ गयी।

उसकी माँ लल्ली, उसके बापू के उपर लेटी थी। उसकी माँ की साड़ी को उसका बापू नीचे से कमर तक उठा दीया था, जीससे उसकी माँ की चौंड़ी ३८ इंच की मोटी गांड उसे प्रदर्शीत हो रही थी। उसके माँ की गांड के दोनो पलझे, उसके बापू के हाथ में था जीसे वो मसल रहा था और रह-रह कर थप्पड़ बरसा रहा था।

ऐसा नज़ारा देख कर तो, सोहन के पैरों तले ज़मीन ही खीसक गयी, वो तो बस अपनी मां की मोटी गांड ही देखता रह गया। तभी अचानक! लल्ली की नज़र भी दीवाल के मुक्के की तरफ़ पड़ जाती है। उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसे देख रहा है। वो तुरतं समझ जाती है की, कोई और नही ये सोहन ही है, उसका बेटा!!

लल्ली के चेहरे पर एक मुस्कान फैल जाती है। वो उठते हुए अपनी साड़ी नीकाल कर पूरी नंगी हो जाती है।

सोहन के तो पसीने छूटने लगते है। उसने आज तक कभी कीसी औरत को मादरजात नंगी नही देखा था। अपनी नई-नई लूगाई को भी शरम के मारे अंधेरे में ही चोदता था। और आज अपनी माँ की हथिनी जैसी शरीर को नंगी अवस्था में देखकर, उसके लंड ने झटके पे झटके जड़ना शुरु कर दीया...

लल्ली की बुर ये सोचकर बहुत ज्यादा फुदकने लगी की, उसे उसका बेटा नंगी हालत में देख रहा है। लल्ली ने सोचा की क्यूँ ना सोहन को, वो अपनी पूरी गांड दीखाये खोल कर! इसलीये लल्ली ने अपनी गांड को सोहन की तरफ़ करते हुए, खाट की पाटी पकड़ कर झुक जाती है...

झुकते ही लल्ली के चुतड़ो के पलझे फैलने लगते है। और देखते ही देखते...सोहन के आँखों के सामने उसकी माँ का वीशाल गांड साफ तौर पर प्रदर्शीत होने लगा...! ऐसा नज़ारा देख कर, सोहन से रहा नही गया और झट से अपने छोटे से मुरझाये लंड को हाथ की उंगलीयों में फंसा कर आगे-पीछे करने लगा।

लल्ली अब झुकी थी, उसने एक बार अपना गांड हीलाया और फीर खड़ी हो गयी! और इस बार बनवारी की तरफ़ गांड करके झुक जाती है। बनवारी खाट पर लेटा था। और उसके सामने लल्ली की बड़ी गांड पड़ी थी।

लल्ली का मुह सोहन की तरफ़ था। और लल्ली अभी मुक्के की तरफ़ देख कर मुस्कुराते हुए बोली-

लल्ली—‟हाय रे...दईया! मेरी गांड मत मारना रंजू के बापू। बहुत दुखता है, कीसी जानवर की तरह मारते हो! तुमको याद है...ऐसे ही जब तूम हर रात मेरे घर पर आकर मेरी इज्जत लूटते थे, मेरी गांड मारते थे तो, सोहन का बापू घर के मुक्के में से चोरी छीपे देखता था।

जब तूम मेरी गांड मार-मार कर, अपने लंड का गाढ़ा रस मेरी गांड में छोड़ कर चले जाते थे तो, मैं तुम्हारा रस सोहन के बापू से चटवा कर साफ करवाती थी।

अपनी माँ की बात सुनते ही, सोहन के उपर मानो पहाड़ टूट पड़ा हो। वो ये तो जानता था की, उसका बाप बनवारी नही है, क्यूकीं जब वो ६ साल का था, तब उसकी माँ ने उसके बाप बीरज़ू को छोड़ दीया था। मगर वो ये नही जानता था की, बनवारी उसकी माँ को उसके बाप के सामने उसके ही घर में चोदता था।

एक थप्पड़ की आवाज़ ने, उसे उसकी सोंच की दुनीया से बाहर नीकालता है...

बनवारी ने एक और जोर का थप्पड़ लल्ली की गांड पर ज़ड़ते हुए बोला-

बनवारी—‟वो साला तो नामर्द था। तेरी बुर जब मैने चोदी थी तो, बड़ी कसी थी...

लल्ली—‟हां...क्यूकीं वो नामर्द का लंड नही लूल्ली था। जब तूम मेरे उपर चढ़े! तब एहसास हुआ की...कोई मर्द चढ़ा है। इतना गहरा घुसा कर पेल रहे थे मुझे की। एक बख़त को लगा मेरी जान ही ले लोगे। कीतना रो रही थी मै, कीतना चील्ला रही थी। हांथ भी जोड़ रही थी की छोड़ दो मुझे॥ लेकीन तूम तो ज़ालीम की बन गये थे। कीसी सांड की तरह हुमच-हुमच कर चोद रहे थे। खाट भी टूट गयी थी...मगर फीर भी तूम मुझे रौंदे जा रहे थें। वो तो सुबह मेरे पड़ोस की औरते कहने लगी की, मेरी वज़स से वो लोग सो नही पायी थी। इतना जोर-जोर से चील्ला रही थी मैं। आज फीर से वैसी ही चुदाई करो मेरी...रंजू के बापू! और देखने वाले नामर्दो को दीखा दो की, एक मर्द कैसे चोदता है?”

और ये कहते हुए...लल्ली एक बार फीर मुक्के की तरफ़ देखते हुए मुस्कुरा देती है..
 

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सोहन के लीये पहला अवसर था। जब वो कीसी औरत को इस तरह से मादर-जात संपूर्ण रुप से नंगी देख रहा था। और वो भी अपनी माँ को। उसके ५ इंच के लंड में उत्तेज़ना की लहर दौड़ने लगी। उसकी सासों की गति में वृद्धी होने लगी थी...

और इधर बनवारी के लंड में वृद्धी होने लगी थी। वैसे तो बनवारी हर रोज़ ही अपनी लुगाई को हुमच-हुमच कर चोदता था। लेकिन आज, लल्ली की बातें उसके अंदर कुछ ज्यादा ही चींगारी भड़का रही थी...

जोश में बौलाया...! बनवारी ने अपनी हथेली की मध्य उंगली को, लल्ली की गांड में पूरा पेल दीया...

इस अचानक से घुसे उंगली का अहेसास अपनी गांड के अंदर महसुस कर...., लल्ली मस्ती में मचलने लगी। और मुक्के की दीशा की तरफ़ देखते हुई, वैसे ही झुकी अवस्था में अपनी गांड को आगे-पीछे करते हुए बड़बड़बाने लगी...

लल्ली↠‟आउउउह...मा..आईईई..रे, रंजू के बापूउ.उउउउ...ई उंगली से हमरी गांड की खांई नही भरेगी, आह...इसको तो तूम्हरा मोटा लंड चाहिए,,)

बनवारी ने फाट...फाट करके दो थप्पड़ लल्ली के चूतड़ो पर ज़ड़ते हुए खड़ा हो गया। और बोला....

बनवारी↠‟लंडखोरीनी....बुरचोदी, चल तैयार कर अपने घोड़े को जल्दी।”

लल्ली ने बीना देरी के, बनवारी की तरफ़ घुमते हुए, अपने घुटनो पर बैठ जाती है। वो थोड़ा बगल होकर बैठी थी...ताकी दीवाल में बने मुक्के से देख रहे उसके बेटे को। बनवारी का मोटा-तगड़ा लंड साफ-साफ दीखाई दे। और यही चीज तो वो अपने बेटे को दीखाना चाहती थी।

लल्ली ने एक झटके में ही, लूंगी को पकड़ कर खींचते हुए बनवारी के शरीर से अलग कर दीया,, फनफनाता हुआ बनवारी का वीशाल और भयानकर लंड जैसे दृष्टीगोचर हुआ, सोहन की आँखे हैरत से चौंड़ी हो गयी...और मन में बुदबुदाया...↠बाप रे...बाप↠...

लल्ली के चेहरे पर एक मुस्कान फैल गयी, पास में रखे तेल की शीशी उठाते हुए, अपनी हथेलीयों पर तेल नीकाल कर बनवारी के लंड पर चपोड़ने लगती है। सोहन का लंड बेकाबू होते जा रहा था। वासना पूरे उफ़ान पर था और वो अपना लंड जोर-जोर से हीला रहा था। तभी अचानक से उसके कंधे पर कीसी का हाथ महसूस होते ही, उसके होश ही उड़ गये...
 

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इस बार बनवारी ने एक जोरदार हुमच कर झटका मारा और जोर देते हुए लल्ली की गांड पर बैठ गया।

लल्ली दर्द से चील्लाने लगी....‟नही...आईईउउईउउउउ...नीईईइकालोओओओ...म...र जांउगीईईईई, माईईईईईईरे, बहु...ते गहरा चला गया है...नीकालो मर जाऊगीं...)

मगर बनवारी तो जैसे कोई ख़ुंखार जनवार बन गया था। वो अपना पूरा लंड घुसाये वैसे ही बोला-

बनवारी↠‟भोंसड़ाचोदी...तूझे कीतनी बार बोला हूँ, की उस मादरचोद का बाप मुझे मत कहा कर, मगर तू बाज़ नही आती, कौनो तरीके से उ भोंसड़ी वाला हमरा पूत नही लगता, और तू छीनाल की जनी रंडीख़ोर ये बात जानते हुए भी हमरा मज़ाक बनाती है....

बनवारी का गुस्से में आगबबूला देख, पप्पू और सोहन की तो गांड बैठ कर रह जाती है। लल्ली की छटपटाहट और बादलों की गरज़ जैसी गला फाड़ कर चील्लाहट देख कर उनके जोश को लकवा मारने लगा था...

लल्ली↠‟माई रे माई...आईईईरेऐऐऐऐ माइईई...गलती हो गईईईईई, रंजू के बा...पूउउऊ! सो...सोहन बाहर ही है...देख लेगा। नीकाल लो अपना ई मुसल गांड फ़ाड़..र...हा है हमरी...)

बनवारी↠‟देखने दे मादरचोद को, उसे भी पता चले की, उसकी अम्मा की गांड कौन मार रहा है? बताया नही का की मैने तूझको अपनी लूगाई कैसे बनाया? आ...छीनाल..?बोल...?

और ये कहते हुए...बनवारी एक बार अपनी गांड उठाते हुए, लंड को बाहर गांड के मुहाने तक खींचता है...और एक जोरदार झटका देकर फीर से लल्ली की गांड पर बैठ जाता है। लल्ली का पूरा शरीर झनझना गया, वो छटपटाने लगती है...और इधर बनवारी से भी रहा नही जा रहा था तो। जोर-जोर से लल्ली की गांड में लंड के झटके मारने लगा।

वो तो अच्छा हुआ की लल्ली हर रोज बनवारी का लंड गांड में लेती थी तो, कुछ धक्को में संभल गयी और बनवारी के धक्को का साथ देने लगती है। इधर मुक्के से भयानक गांड चुदाई का नज़ारा देखते हुए पप्पू और सोहन के लंड ने ३ बार पानी छोड़ दीया था। तो वहीं बनवारी अभी तक लल्ली की गांड की सुराख को खुराक खीला रहा था...

आधे घंटे तक जोर-जोर से गांड की ठुकाई करके बनवारी ने अपना अमृत जल लल्ली की गांड की गहराईयो में भर देता है। और हाँफते हुए खाट पर लेट जाता है....

लल्ली अभी भी ज़मीन पर वैसे ही घोंड़ीयों की तरह गांड उठाये पड़ी थी। पप्पू और सोहन की नज़र लल्ली की गांड की सुराख पर पड़ी तो मुह खुले के खुले रह गये...
 

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होश ठीकाने आते ही, सोहन पप्पू का सामना करने मे खुद को असमर्थ पाता है। वो बीना एक लफ़्ज बोले, अपना फावड़ा उठाता है और वहां से चला जाता है...

सोहन के जाते ही, पप्पू ने भी वहाँ रुकना ठीक नही समझा, और वो भी चलता बना।

थोड़ी देर के बाद खाट पर लेटा बनवारी उठते हुए खड़ा होता है...और पैज़ाम पहनते हुए बोला-

बनवारी↠‟अब उठेगी भी, या ऐसे ही गांड उठाये घोड़ी बनी रहेगी? उठ नही तो फीर से पेल दूँगा लंड तोहरी गांड मे।)

लल्ली↠‟नही रे दईया...!अब दुबारा तुम्हरा लंड गांड पेलवाने की ताकत, हमरी गांड में नही बची है।)

और ये कहते हुए लल्ली एक हल्की कराह के साथ उठती हुई अपना पेटीकोट उठा कर पहनने लगती है। बनवारी पैज़ामा पहनते हुए वहां से चला जाता है। लल्ली भी अपनी साड़ी पहन कर जैसे ही झोपड़े से बाहर आती है, तो उसे उसका बेटा सोहन कहीं नही दीखाई पड़ता। ये देखकर वो मुस्कुराते हुए खुद से बोल बैठी....‟लगता है माँ की गांड बेरहमी से चुदते देख शरमा गया हमरा बेटवा)

लल्ली झोपड़े के सामने वाली हरी सब्जीयों की क्यारी में घुस जाती है...और काम करने लगती है। लल्ली अभी बैठी ही थी की....

‟का हाल है लल्ली...कल मेले के बाद से तो दीखी ही नही?)

लल्ली ने नज़र घुमाते हुए...

‟अरे सन्नो तू...आ बैठ, अरे नही रे घर पर ही थी तो खाना लेकर आना था रंजू के बापू के लिए, शाम के बख़त आने वाली थी तुम्हरे घर की तरफ़)

सन्नो...भी हरी-भरी क्यारीया में घुस कर, लल्ली के बगल में बैठते हुए घास को उमाकते हुए लल्ली से बोली-

सन्नो↠‟खाली खाना ही देने आयी थी या कुछो और भी कीया?)

ये बात सुनकर, लल्ली एक गहरी साँस लेते हुए बोली-

लल्ली↠‟अब तूझे तो पता ही है, की जब तक तीनो बख़त हमरा मरद अपना लंड हमरी गांड में नही पेल लेता, तब तक तो उसके लंड को मानो आराम ही नही मीलता!!)

सन्नो↠‟हा...हा...हा! ई तोहरे मरद का लंड भी ना, जैसे-जैसे बुड्ढा हो रहा है, वैसे-वैसे और तनतना रहा है!!)

लल्ली↠‟अरे भोंसड़ाचोदी! तनतनायेगा काहे नाही? हर-रोज दो लीटर दूध जो पीलाती हूँ उस मुंवे को!)

सन्नो↠‟अच्छा...!जब तू दू लीटर दूध अपने मरद को ही दे-देती है, तो अपने बछवा को क्या पीलाती है? कहीं खुद की चूंचीया तो नही उसके मूह में ढ़ूंस देती?)

लल्ली↠‟हा...हा...हा! अरे नाही रे हरज़ाई, उका दू लीटर दूध हज़म नाही होता। बील्कुल अपने उस मादरचोद बाप पर ही गया है, एक-दम कमज़ोर, मुझे तो लगता है! उसका लंड भी उसके बाप जैसा होगा चीमरीखी जैसा!!)

सन्नो↠‟हां...हां मुझे सब पता है तेरे बारे में, तू इतनी बड़ी छीनाल है की, अपने मरद का लंबा भांटा में जान डालने के लीये, तू दू-दू लीटर दूध पीलाती है उसको, तू तो वो औरत है...जहां तेरा फ़ायदा ना हो, वहां तू कीसी को दूध तो का? पानी भी ना दे। फीर चाहे उ तोहरा बेटा ही काहे ना हो!! क्यूँ सही कहा ना मैने?)

लल्ली↠‟चुप कर हरज़ाई! भला मै काहे नाही अपने बीटवा को दूध दूंगी? कहा ना की उसको दूध पचता नही, गैस होने लगता है उसको! इस लीये नही देती।)

सन्नो↠‟हां...हां सब पता है मुझे! अच्छा इ बता की आज भी गांड मरवाई तूने?)

'कम्मो'↠‟अरे पूछ मत! अभी-अभी गांड मरवा कर बैठी ही थी की, तू आ गई! लेकीन आज़ गांड मरवाने में बहुते मज़ा आया!)

सन्नो↠‟काहे...?कौनो अलग बात है का?)

'कम्मो'↠‟अरे...हरज़ाई, अभी कुछ देर पहले जब हमरी गांड की कुटाई हो रही थी, तो सोहन छुपके से उस मुक्के में से देख रहा था। ऐसी मस्ती मुझे पहले कभी नही चढ़ी थी बता रही हूं...सन्नो।)

ये सुनते ही सन्नो का मुह खुला का खुला रह गया! उसे इस बात पर बड़ी हैरत हो रही थी, आश्चर्यजनक ढ़ंग से खुले मुह पर हाथ रखते हुए बोली-

सन्नो↠‟तू बहुत बड़ी छीनाल नीकली रे बुरचोदी! अपनी गांड खोलकर मरवा ली अपने बेटे के ही सामने॥ पूरा खज़ाना दीखा दीया अपने बछवा को?)...
 

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दोनो एक नंबर की छीनाल थी। और लल्ली तो शक्ल से ही जान पड़ती थी। दोनो छीनालपन की बाते मज़े ले-लेकर कर रही थी की, तभी...

सन्नो↞‟अरे लल्ली...! एक बात बताना तो भूल ही गयी मैं!!”

लल्ली↞‟कैसी...बात री?”

सन्नो↞‟अरी...हरज़ाई! आज़ ना मैने, कम्मो की साड़ी के अंदर हांथ पेल कर उसकी खुब बुर सहलायी।”

लल्ली के चेहरे पर चौंकने के भाव प्रकट हो चूके थे। चौंकते हुए अपने खुले मूह पर हाथ रखते हुए बोली-

लल्ली↞‟क...का? का बात कर रही है तू??”

सन्नो↞‟एक-दम सच कह रही हूँ! राम कसम...कौनो भट्टी की तरह गरम थी उसकी बुर! और बुर की फांके तो इतनी गुदाज़ और फुली हुई थी की, मानो अभी-अभी कड़ाही में से कचौड़ी नीकाल कर रखी हो।”

लल्ली के चेहरे की रंगत बता रही थी की, वो अभी भी असमंजस में पड़ी है। हैरत भरे दृष्टी से आश्चर्य से बोल पड़ी-

लल्ली↞‟चूप कर हरमाखोरनी! हमको का उल्लू समझी है? कम्मो भला ऐसा करने देगी तूझे? सपना देख रही है तू...बुरचोदी!”

सन्नो↞‟पहले तो हमका भी यही लगा, की सपना है। लेकिन जब उसकी बुर में अपनी उंगलीया पेल दी, तो उसकी बुर की गरमी से लगा की कहीं उंगलीया ना गल जाये हमरी! ऐसे जल रही थी उसके बुर की दीवारे जैसे आग लगी हो उसमें॥”

सन्न पड़ चूकी थी लल्ली, उसके लीये सन्नो की बात पर भरोसा कर पाना अभी भी गवारा न था। हड़बड़ाते हुए मुह खोल बैठी...

लल्ली↞‟दईया...रे दईया! सच कह रही है? कैसी थी बुर रे, जैसी बोल रही है, वैसी ही है का? खुब कसी थी?”

सन्नो↞‟अरी...सच कह रही हूँ! और बुर की कसावट का तो पूछ ही मत, हमरी एक उंगली को भी उसकी बुर ने जकड़ते हुए अंदर जाने से रोक रही थी। सच कह रही हूँ! कमाल की बुर हैं, मेरी तो बुर-रानी ने भी रस टपका दीया था...उगंली घुसाते ही।”

हैरत से मुह खोले सन्नो की बातो को सुनते हुए, सूख चले भूरे रंग के होंठो पर जीभ फीराते हुए लल्ली उत्तेजीत होकर बोली-

लल्ली↞‟बहुत अच्छा मौका है बुरचोदी, रोज-रोज पहुंच कर पेल दीया कर उंगली! इतनी गरमी बढ़ा दे उसकी बुर-रानी की, की, लंड के लीये तड़प उठे! कब से मेरी मसां है उसे चुदवाते हुए देखने की। उसकी मस्त गठीली तो कहीं लचीली जैसी नंगी बदन को देखने की।”

सन्नो↞‟चींता मत कर तू! अब उसकी नदी सुखने नही दूंगी, उसकी मछली में अब तो कटीया फसां कर ही दम लूंगी...हां!!”

वाक्य खतम कर चूकी, सन्नो, लल्ली के साथ खील-खीला कर हसंने लगती है। और कुछ ही देर मे...घास का गट्ठर बांधते हुए गाँव की तरफ़ रवाना हो जाती है...
 

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शाम हो चूकी थी। कम्मो घर के पीछवाड़े वाले छोटे से खेत पर पहुंची तो देखी...बबलू उसका बेटा, खेत की क्यारीयां सीचने में ब्यस्त था। धीरे-धीरे कदमो के साथ, पायल की मधुर गीत छनकाती वो अपने बेटे बल्लू के करीब पहुंची! बल्लू इस समय सीर्फ एक अंगीया पहने हुए, नीचे छुका क्यारीयों की नाली साफ कर रहा था।

उसका बलीष्ट और गठीला शरीर देखकर, कम्मो के खुबसूरत चेहरे पर एक मुस्कान की लहर बीखर पड़ी। ऐसा लगा मानो डूबती शाम का एक अनोख़ा अहेसास हो उसकी मुस्कान। वाकई खुबसूरती की मूरत थी वो।

बबलू का ध्यान अभी भी काम में ब्यस्त था, कम्मो बीना कुछ बोले, वहीं नीचे खेत की पकडंडी पर बैठ जाती है, और आँखों में प्यार का समंदर लीये, अपनी ठुड्डी को पैर के घुटनो पर रखते हुए, अपने बेटे को नीहारने लगती है।

ढल रही सुहानी शाम के एक हवा के झोंके ने; उसके रेशमी बालों को लहरा दीया...ऐसा लगा! मानो प्रेम की हवा चली हो। कारी-कजरारी, हीरनी जैसी चंचल आँखों से, अपने बेटे को इस तरह नीहार रही थी कम्मो, जैसे प्रेमीका अपनी प्रेमी की दीवानी होकर नीहारती हो...

बबलू का ध्यान काम पर से भटका तो, उसकी नज़र उसकी माँ पर पड़ गयी! खुद की माँ को, इतने प्यार से नीहारते देख, बबलू के चेहरे पर भी प्यार के फूल खील गये। मुस्कुराता हुआ मगर नीरतंर काम में लगा...बोला-

बबलू↞‟क्या बात है माँ? बड़ा प्यार आ रहा है मुझ पर?”

मगर शायद, कम्मो को बबलू की बातों का असर ना हुआ! वो अपलक ही एक-टक दीवानी की तरह बबलू को नीहारे जा रही थी। जवाब में उत्तर ना पा-कर, बबलू ने एक नज़र अपनी माँ की तरफ़ दौड़ायी और फीर एक मुस्कान बीखेरते हुए, पानी के छींटे को अपने हाथो सें मारते हुए, अपनी माँ के उपर बौछार कर देता है।

जैसे कोई प्रेमी, प्रेम का खेल खेलते हुए पानी की छींटे अपनी प्रेमीका पर उड़ाता है। पानी की बूंदे, कम्मो के फूल से खीले कोमल चेहरे पर पड़ते ही उसकी तंद्रा भंग हुई तो खुद को संभालते हुए मुस्कुरा कर बोली...

कम्मो↞‟ये...क्या कर रहा है?”

मगर इस बार, शायद बबलू के उपर कम्मो की बातो का कुछ असर नही हुआ और वो लगातार नाली में बह रहे स्वच्छ पानी को, अपने हाथों से मारते हुए ,छींटे कम्मो पर बरसाने लगा! कम्मो अपना चेहरा बचाते हुए, अपने दोनो हाथों को आगे कीये, पानी के मोटे छल्लो को रोकने का प्रयास करने लगती है...

कम्मो↞‟मत कर...!भीग जाउगीं पगले!!”

इसी तरह कुछ लम्हे तक खेल चलता रहा, कम्मो मुस्कुराते हुए ख़ुद को पानी के छींटो से बचाने का प्रयास करती रही, और वही मस्ती में बबलू लगातार छींटे उसके उपर उड़ाता रहा!

खेल जब शांत हुआ तो...

कम्मो↞‟हाय राम...!मुंए ने पूरा भीगा कर रख दीया! काहे कीया रे?”

ये बोलकर, कम्मो अपनी साड़ी के आँचल को कंधे पर से हटाती हुई, भीगे हुए चेहरे, गले और वीशाल-काय मांसल वक्ष स्थल के गुदाज गोरे उभार पर पानी को पोछने में लग जाती है। बला की कयामत लग रही थी, इस अवस्था मे कम्मो! पहाड़ी के समान सर उठाये; उसके हल्के लाल रंग की ब्लाउज़ में कसे उरोज़ और गज़ब का उभार लीये ब्लाउज़ से झांकते उसके उरोजो का उपरी भाग, गदराया दूधीया गोरा पेट और पेट के मध्य में गहरी नाभी, हांथ में पकड़ी साड़ी का अँचल लीये जैसे ही कुछ कहते हुए...अपने बेटे की तरफ देखी...

बबलू अपना सूद-बूद खो कर, बेसूद अपनी माँ की खूबसूरत और कामुक बदन में खो गया था। ये देख कर, कम्मो शर्म से पानी-पानी हो गयी। ख़ुद के बेटे को अपनी मस्तानी बदन का दीदार करता देख...उसके शरीर के कामुक अंगो में चींटीया रेंग पड़ी। शरमा कर नज़रे झुकाते हुए, कम्मो नें अपने बेपर्दा हुश्न पर, साड़ी के आँचल का पर्दा धीरे से ओढ़ा दीया।

गज़ब के हुश्न पर पर्द पड़ते ही, बबलू की आँखो में पड़ा मस्ती का पर्दा, बेपर्दा हुआ तो...मानो नींद से जागा हो, अपनी माँ को नज़रें झुकायी खड़ी देख, छटपटा कर इधर-उधर देखते हुए, बीना कुछ बोले काम में फीर से जुट जाता है...

कम्मो ने धीरे से अपनी नज़रों को उपर उठाते हुए बबलू को देखा तो, अब वो काम मे जूटा था। राहत की साँस तो मीली...मगर शर्म की चादर ना हट सकी! बबलू से बात करने की हीम्मत ना रही उसमे...और घुमते हुए अपनी दाँतों तले एक उँगली दबाते हुए, शर्म की हसीन मुस्कान लीए घर की तरफ़ चल पड़ती है...

बबलू ने काम करते हुए, चुपके से एक नज़र अपनी माँ की तरफ़ घुमाई तो, टुमक रहे चौड़े कुल्हे देख कर होश खो बैठा...

थोड़ी दूर चलने के बाद, कम्मो ने अचानक ही नज़र एक दफ़ा पीछे की ओर मोड़ दी, और जवाब मे उसे बबलू का अपनी तरफ़ देखना पाकर। एक बार फीर से शर्म की लालीमा चेहरे को रौशन कर गयी...
 

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घर के आँगन में, बेसुद खाट पर लेट गयी। हाथ की दोनो बाँहें दोनो दीशाओं में बेसुध पड़े थे। आँखें बंद थी...ख़यालों में उसका बेटा ही छाया था। खुद के मन से बाते करने लगी...

क्या हो गया है मुझे? क्यूँ सोंच रही हूँ उसके बारे में? ये पहली बार थोड़ी है, जब कोई मुझे इस नज़र से देख रहा था? पहले तो कभी कीसी के बारे में नही सोंचा? तो उसकी नज़रों में ऐसा क्या था? जो मैं उसके ख़यालो में डुबी जा रही हूँ। ये जानते हुए भी की वो...वो मेरा बेटा है और मैं उसकी माँ, फीर भी...?

खुद से बाते करते हुए, हज़ारो सवाल खड़ी कर चूकी थी कम्मो!

‟अरे...माँ, तू भीग कैसे गयी? और भीगे हुए इस तरह काहे पसरी है?”

खुद के ख़यालो से बाहर भी नीकली थी की, इस एक आवाज़ ने उसे ख़यालों की दुनीयां से ज़मीन पर ला पटका!

कम्मो के हाव-भाव कुछ नही बदले...सीर्फ आँखे खोली और शीतलता से बोली-

कम्मो↞‟बबलू ने भीगो दीया!!”

जवाब देने का अंदाज़ ऐसा था, मानो उसे नशा चढ़ा हो, आँखे भी अधखुली थी। ये सुनकर अंगूरी बोली-

अंगूरी↞‟बबलू ने भीगो दीया! मगर क्यू?”

कम्मो↞‟वो तो मुझे भी नही पता! खुद पूछ ले ना!”

जवाब और जवाब देने का अंदाज, दोनो ही अंगूरी को अज़ीब लगें, मगर इस चीज पर ज्यादा जोर ना देते हुए, अंगूरी बोली-

अंगूरी↞‟अच्छा ठीक है! अब उठ जा। और साड़ी बदल ले...भीगी साड़ी पहन कर लेटी है तू भी!”

ऐसा बोलकर...अगूरी वहां से चली जाती है। कम्मो ने एक बार फीर से अपनी आँखें बंद कर ली और ख़यालों की उसी दुनीयाँ में फीर से खो गयी....
 

ashik awara

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घर के आँगन में, बेसुद खाट पर लेट गयी। हाथ की दोनो बाँहें दोनो दीशाओं में बेसुध पड़े थे। आँखें बंद थी...ख़यालों में उसका बेटा ही छाया था। खुद के मन से बाते करने लगी...

क्या हो गया है मुझे? क्यूँ सोंच रही हूँ उसके बारे में? ये पहली बार थोड़ी है, जब कोई मुझे इस नज़र से देख रहा था? पहले तो कभी कीसी के बारे में नही सोंचा? तो उसकी नज़रों में ऐसा क्या था? जो मैं उसके ख़यालो में डुबी जा रही हूँ। ये जानते हुए भी की वो...वो मेरा बेटा है और मैं उसकी माँ, फीर भी...?

खुद से बाते करते हुए, हज़ारो सवाल खड़ी कर चूकी थी कम्मो!

‟अरे...माँ, तू भीग कैसे गयी? और भीगे हुए इस तरह काहे पसरी है?”

खुद के ख़यालो से बाहर भी नीकली थी की, इस एक आवाज़ ने उसे ख़यालों की दुनीयां से ज़मीन पर ला पटका!

कम्मो के हाव-भाव कुछ नही बदले...सीर्फ आँखे खोली और शीतलता से बोली-

कम्मो↞‟बबलू ने भीगो दीया!!”

जवाब देने का अंदाज़ ऐसा था, मानो उसे नशा चढ़ा हो, आँखे भी अधखुली थी। ये सुनकर अंगूरी बोली-

अंगूरी↞‟बबलू ने भीगो दीया! मगर क्यू?”

कम्मो↞‟वो तो मुझे भी नही पता! खुद पूछ ले ना!”

जवाब और जवाब देने का अंदाज, दोनो ही अंगूरी को अज़ीब लगें, मगर इस चीज पर ज्यादा जोर ना देते हुए, अंगूरी बोली-

अंगूरी↞‟अच्छा ठीक है! अब उठ जा। और साड़ी बदल ले...भीगी साड़ी पहन कर लेटी है तू भी!”

ऐसा बोलकर...अगूरी वहां से चली जाती है। कम्मो ने एक बार फीर से अपनी आँखें बंद कर ली और ख़यालों की उसी दुनीयाँ में फीर से खो गयी....
मस्त कहानी जारी रखिये
 
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