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Incest दिल अपना प्रीत परायी Written By FTK (Completed)

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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304
#36

दोपहर का समय था तो इका दुक्का लोग ही थे और फिर जल्दी ही आइने अपने सपनो की रानी का दीदार किया चेहरे को दुपट्टे में छुपाये वो मेरे पास आई और बोली यहाँ से थोड़ी दूर जंगल की तरफ एक बरगद का पेड़ है वहा मिलिए तो मैंने सर हिला दिया बाबा के आगे सर झुकाके मैं मिश्री खाता हुआ उसके बताये पेड़ के पास आ गया बहुत सही जगह चुनी थी उसने मिलने के लिए

आँखों ने आँखों को अपने अंदाज में सलाम किया और इस्तकबाल किया और हम वही बैठ गए

वो- जानते है जबसे हमे मालूम हुआ हमारा चैन खो गया

मैं- वो क्यों भला

वो- इसी का जवाब तो आपसे लेने आये है

मैं- मेरे पास कहा इसका जवाब

वो- जब चैन आपने चुराया तो जवाब भी आप ही दे

मैं- मैंने सोचा आपने मेरा चैन चुराया

वो- हमारी ऐसी फितरत नहीं हम तो हक़ से ले लेते है ये चुराने में वो बात कहा

और वो हस पड़ी मैं भी हस दिया कितनी बेबाकी कितनी मासूमियत

मैं- और जो मैं बेचैन हु मुझमे जो ये तन्हाई इसका दोष मैं किसको दू

वो- मैं क्या जानू कोई मर्ज़ है तो हकीम साहब को मिले दवा दारू करवाए

मैं- और जब कातिल सामने हो तो कहा जाये

मेरी बात सुनते ही उसके चेहरे का रंग उड़ गया और वो हसने लगी

फिर उसने अपने झोले से एक ताबीज लिया और मुझे देते हुए बोली- आपके लिए दुआ मांगी आज इसे बाँध लीजिये आपकी रक्षा करेगा

मैं- आप ही बाँध दो ना

वो मुस्कुराई और फिर बोली- धागा नहीं है मेरे पास

हाय रे ये मासूमियत

मैं- तो पढाई के अलावा आप क्या करती है

वो- कुछ नहीं घर के काम और कभी कभी गाने सुन लिया करती हु दिल करता है तो यहाँ आ जाती हु यहाँ जो शांति मिलती है तो रूह को अच्छा लगता है


मैं- वो तो है

वो- आप बताइए

मैं- कुछ नहीं पढाई के बाद घर के काम करता हु बापूसा की जमीन संभालता हु और आप ही की तरह गाने सुन लेता हु

वो- जुम्मन काका के लिए आपने पंचायत से बगावत कर ली हमने सुना

मैं- जाने दो ना क्या रखा इन बातो में

वो- आप सच में गरीबो के मसीहा है

मैं- आपको ऐसा लगता बाकि सब तो नालायक बोलते

वो- किसी दुसरे के लिए कौन इतना करता है रब्ब का बंदा और कहा मिलेगा आपके अलावा

मैं- इतनी भी तारीफ ना कीजिये कुछ कालापन भी है मुझमे

वो- हम सभी में कुछ ना कुछ कमी तो होती ना इसीलिए तो इन्सान है

उसकी बातो में जो सादगी थी सीधे दिल में उतरती थी बहुत अच्छा लग रहा था उसके साथ बाते करके जैसे की बस... अब मैं कहू तो क्या कहू

मैं- अब कब मिलोगी

वो- जब आप कहोगे

मैं- तो फिर जाओ ही नहीं

वो- जाना तो होगा ना पर इतना कह सकती हु की जल्दी ही मुलाकात होगी

मैं- कब , अब चैन नहीं मिलेगा

वो- तो आ जाना रास्ता आपको पता मंजिल आपको पता किसने रोका है

मैं- पक्का

वो- हां वैसे परसों शाम आपके खेतो की तरफ जाउंगी तो ........... वो बस मुस्कुरा दी

अब ये छोटी छोटी मुलाकाते ही हो सकती थी तो इसी से सब्र कर लिया कभी उसको जाते हुए देखते कभी उस ताबीज को जो वो हाथ में दे गयी थी उसके जाने के बाद भी पता नहीं कितनी देर बाद मैं वही पर रुका रहा हर चीज़ पता नहीं क्यों बड़ी प्यारी प्यारी लग रही थी

खैर, कब तक रुकते वहा घर आये तो देखा राणाजी की गाड़ी बाहर ही खड़ी थी मैं अन्दर आया घर में अजीब सी शांति थी मैं माँ के कमरे में गया तो एक डॉक्टर भी था

राणाजी- सहर से बड़े डॉक्टर बाबु को बुलवाया है इनका कहना है की तुम्हारी माँ सा को बड़ा सदमा लगा है उनका विशेष ख्याल रखना होगा वर्ना लकवा भी मार सकता है हमने व्यवस्था की है की एक नर्स सदा इनके पास रहे और डॉक्टर साहब से भी अनुरोध किया है की हर तीसरे दिन आकार इन्हें देख ले

मेरा तो दिमाग ही घूम गया ये सुनकर आँखों से दो बूंद पानी निकल कर कब निचे गिर गया पता ही नहीं चला मैं वहा से बाहर आकर बैठ गया और खुद को कोसने लगा ये जो भी हो रहा था इसका जिम्मेदार मैं ही तो था इस मोड़ पर मुझे अपनों का ही तो साथ सबसे जरुरी था और अपने ही इस हाल में थे मेरी वजह से तभी किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा मैंने देखा भाभी थी

वो- नाश्ता लगा दू

मैं- नहीं भाभी

वो- क्या हुआ दुःख हो रहा है पहले कभी सोचा नहीं ना पर कोई बात नहीं जिंदगी में कभी ना कभी तो ये सब सीखना ही था

मैं- ताना मत मारो भाभी

वो- ताना नहीं मार रही सचाई बता रही हु अगर अपनी नजरो से ठाकुर होने के अहंकार का चश्मा हटा कर देखोगे तो तुम्हे एक बुढा बाप एक लाचार माँ जो बिस्तर पर पड़ी है और के आधी विधवा भाभी दिखेगी, ऐसे क्या देख रहे हो फौजी की घरवाली आधी विधवा ही हो होती है और ऊपर से ठाकुरों की बहु

भाभी की वो हंसी- मेरे कलेजे पर चोट कर गयी

वो- कुंदन तुम्हारे भाई जब भी यहाँ से अपनी ड्यूटी पर जाते है हमेशा मुझ से कह कर जाते है की इसका ध्यान रखना भाभी बन कर नहीं इसकी मा बनकर इसे देवर नहीं बेटा समझना मेरा भाई थोडा कम अकाल है नादाँ है पर दिल का साफ है और तुमने भी मुझे हमेशा भाभी नहीं भाभी माँ समझा छोटी से छोटी बात बताई पर कुंदन कभी कभी हमसे कुछ ऐसा हो जाता है की वो सबकी जिंदगी पर असर डालता है

मैं- भाभी आपकी हर बात आपका हर उलाहना सर माथे पर पर मैं मजबूर हु ऐसा नहीं की ये सब मैंने किसी दवाब में चुना है पर शायद यही नियति चाहती थी मैं भी अन्दर ही अंदर घुट रहा हु जब मैंने राणाजी के कांपते हाथो को देखा जब आपके दिल की कांपती धडकनों को सुना पर भाभी अगर मैं ठाकुर कुंदन नहीं होता तो भी मैं ये ही करता

भाभी- मैं जानती हु और अब तू मेरी सुन जिसके लिए तू ये कर रहा है मैं उस से मिलना चाहती हु

मैं- भाभी आप बात को घुमा फिरा कर यही क्यों ले आती है

वो- क्योकी मैं देखना चाहती हु की वो कौन है जिसने तुम्हे इतना बदल दिया है हम भी तो देखे की किसका जादू तुम पर इतना चढ़ गया है
Awesome update.
Best part ♥️♥️
आँखों ने आँखों को अपने अंदाज में सलाम किया और इस्तकबाल किया और हम वही बैठ गए

वो- जानते है जबसे हमे मालूम हुआ हमारा चैन खो गया

मैं- वो क्यों भला

वो- इसी का जवाब तो आपसे लेने आये है

मैं- मेरे पास कहा इसका जवाब

वो- जब चैन आपने चुराया तो जवाब भी आप ही दे

मैं- मैंने सोचा आपने मेरा चैन चुराया

वो- हमारी ऐसी फितरत नहीं हम तो हक़ से ले लेते है ये चुराने में वो बात कहा
 

kamdev99008

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#37

भाभी- आप समझती क्यों नहीं

वो- तुम समझाते भी तो नहीं हो मेरी बात पर गौर करो वर्ना जिस दिन ठकुराईन जसप्रीत का हुकम होगा टाल ना पाओगे ध्यान रखना

भाभी अपनी बात कह कर चल पड़ी और एक बार फिर से मेरी निगाह उसकी गांड पर जम गयी उसके बाद मैं चाची के पास गया

मैं- कुवे पर चलोगी आज

वो- नहीं

मैं- तो यहाँ ही करोगी

वो- कुंदन मेरी बात सुन तुझे एक बहुत बड़ी चुनौती को पार करना है तू अपनी उर्जा इस खेल में मत बर्बाद कर ना मैं कही भागी जा रही हु जिस दिन तू जितके आएगा पूरी रात तेरी मनचाही करुँगी जो वादा मैंने कल किया था खुद को तेरी बाहों में छोड़ दूंगी पर अभी तू बस इसी बात पे ध्यान रख राणाजी से बात कर उनसे सीख की कैसे तू पार पा सके वहा पर

मैं- एक बार तो दे दो

वो- तेरी यही बात बहुत बुरी लगती है तू हर बात को बस मजाक में उडा देता है मैं क्या तेरी दुश्मन हु क्या तू मेरा कुछ नहीं लगता अब तू सुन राणाजी के पास जा और मदद मांग अमावस की रात को समय ही कितना बचा है तयारी कर मेरा इतना तो मान रखेगा गा ना या नहीं रखेगा

मैं- ऐसा क्यों सोच लिया चाची आपकी कही हर बात हुकम है मेरे लिए
कुछ वक़्त चाची के साथ बिताने के बाद मैं वापिस घर आ गया और राणाजी को कहा- हुकुम, चाची ने कहा है की आपसे कुछ मदद लू ताकि मैं वो चुनौती पार कर सकू

राणाजी- बेटे,अपने मन को मजबूत रखना और माता पे छोड़ देना अगर तुम सच्च हो तो वो तुम्हारा साथ देगी तुम्हारा ध्येय पूरा करेगी यदि तुम चाहते हो की मैं तलवारबाजी में तुम्हारी मदद करू तो बारह साल हो गये इन हाथो ने तलवार नहीं उठाई कोशिश करना की तुम्हरे बाद ये चुनौती और कोई कभी न उठा सके यही तुम्हारी असली जीत होगी अगर तुम्हारा सामर्थ्य सच्चा है तो कुछ ऐसा करना की ये परंपरा ही ख़तम हो सके जो काम तुमहरा ये बाप नहीं कर पाया तुम करना यही आशीर्वाद है यही कामना है

“ये कोई आम मुकाबला नहीं ये प्रश्न है जीवन और मृत्यु का तो समा-दम-दंड भेद आमने वाला हर पैंतरा चाहे वो सही हो या गलत हो आजमाएगा यहाँ अगर कुछ है तो अपनी साँसों की डोर को समेटे रखना ”

मैं- परन्तु आपने वहा जीत हासिल की थी

वो- वो मामला अलग था जिसको जानना तुम्हारे लिए आवश्यक नहीं और वैसे भी गड़े मुर्दे नहीं उखाड़ने चाहिए हमने तुम्हरे लिए अलग खुराक का प्रबंध किया है तुम आज से वो ही आहार लेना शुरू करोगे समय कम है परन्तु जितना भी है अभ्यास करो और भरोसा रखो जब वहा जाओगे तो केवल इतना याद रखना की आखिर किस लिए तुमने ये बीड़ा उठाया था क्या है तुम्हारा लक्ष्य, अपने लक्ष्य को आँखों के सामने रखना

बड़ी देर मैं उनके साथ ही रहा फिर आकर अपने कमरे में बैठ गया सोचा डेक चला लू पर फिर जाने दिया चाची आज भी मेरे कमरे में ही थी पर दूसरी खाट पर उसकी बात भी सही थी उसने मुझसे ज्यादा दुनिया देखि थी रात को कब नींद आई कुछ पता नहीं चला आँखे खुली तो हलकी हलकी बारिश हो रही थी सोचा बरसात रुकते ही मैं पूजा से मिलने जाऊंगा

तभी भाभी मेरे कमरे में आ गयी और बोली- तो क्या सोचा तुमने

मैं- किस बारे में भाभी

वो- जाने दो तुमसे बात करना ही बेकार है

मैं- भाभी मुझे अमावस तक का समय उधार दो

वो- वैसे मुझे किसी और विषय में भी तुमसे कुछ सवाल पूछने है पर चलो वो भी मैं अब अमावस के बाद ही करुँगी

मैं- आभार आपका

भाभी ने एक बेहद गहरी नजर मुझ पर डाली और बोली- खाने में क्या बनाऊ तुम्हारे लिए आज

मैं- राणाजी ने कहा है की उन्होंने मरे लिए खाने का अलग से इंतजाम किया है वैसे भाभी आपको पता है की लाल मंदिर में ऐसा क्या हुआ था की जिसके बाद बापूसा ने कभी फिर तलवार नहीं उठाई

वो- कुंदन, वो बारह साल पहले की बाते है भला मुझे कुछ कैसे पता होगा हाँ पर इतना जरुर जानती हु की उसके बाद वो कभी लाल मंदिर नहीं गए अगर तुम्हे इसके बारे में पता करना है तो खुद पूछ क्यों नहीं लेते उनसे

मैं- उन्होंने टाल दिया इस सवाल को

वो- तो बेहतर है की तुम भी टाल दो वैसे उम्मींद है तुम्हारे भैया आज दोपहर या शाम तक आ जायेंगे तो उनसे पूछना वो जरुर बता देंगे

मैं- ओह अब समझा तभी चेहरे पर ये नूर और ये मुस्कान है

वो- थपड लगाऊ क्या

मैं- चाहे पीट लो पर ख़ुशी टपक रही है चेहरे से

वो- तंग मत कर कुंदन वर्ना मैं जाती हु

मैं- अब क्या इतना भी हक़ नहीं

वो- क्या बोला तूने

तब मुझे ध्यान आया मैं वो बाते बोल गया जो अक्सर मैं और पूजा करते थे

मैं- कुछ नहीं भाभी

वो- चल तू बैठ मैं आती हु

मैं भी भाभी के पीछे ही निकल लिया थोड़ी देर माँ के पास बैठा उनकी तबियत पहले से बेहतर लग रही थी फिर चाची ने कहा की कुछ सामान लादे तो मैं बनिए की दुकान तक गया गाँव में हर कोइ बस मेरी ही बात कर रहा था लोग घुर रहे थे तो अजीब सा लगा करीब घंटे भर बाद मैं आया और फिर खाना खाके चल दिया पूजा के घर की और जब तक वहा पहुचा बूंदा बंदी भी रुक चुकी थी
उसके घर पर ताला नहीं लगा था पर वो दिखी नहीं तो मैंने अपना झोला जिसमे मेरे कुछ जोड़ी कपडे थे वहा रखा और इंतजार करने लगा आधा घंटा बीत गया पर वो ना आई तो मैंने सोचा की जमीन पर चलता हु बाद में मिल लूँगा अब उसका क्या पता किस तरफ निकल गयी हो

साइकिल को जोर जोर से पैडल मारते हुए करीब दस मिनट बाद मैं उस जमीन के टुकड़े पर पंहुचा तो देखा की पूजा वही पर थी घूम रही थी चारो और पता नहीं क्या कर रही थी पर जब मैं उसके पास गया तो मुझे जैस यकीन ही नहीं हुआ
 

kamdev99008

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#38

मुझको अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ मैं उसके पास गया और बस उसको अपने गले से लगा लिया और जब तक जी न भरा उसको छोड़ा नहीं

वो- क्या जान ही लोगे अब छोड़ो ना

मैं- पूजा पूजा ये कैसे किया

वो- कहा था न भरोसा रख

पूजा ने ट्रेक्टर से खेत में गोडी लगवा लगवा के उस काफी समतल करवा दिया था सारी पथरीली परत किनारे पर पड़ी थी मेरा दिल तो किया की चूम ही लू उसको जो किसी फ़रिश्ते की तरह मेरे जीवन में आई थी

मैं- पूजा ट्रे बिना ये मुमकिन नहीं हो पाता

वो- मैंने कुछ नहीं किया कुंदन वो कुवे की फिरनी शाम तक लग जाएगी वैसे तू कहा था दो दिन हुए तू आया नहीं

मैं- कुछ कामो में उलझा था पर आज का दिन पूरा तेरे साथ

मैंने कहा आ बैठ साइकिल पे

वो- आगे

मैं- हाँ आगे

वो मुस्कुराती हुए आगे डंडे पर बैठ गयी और मैंने पैडल मारा मेरे पैर उसके चूतडो से टकराने लगे पर वो अपनी मस्ती में मस्त थी कभी घंटी बजाती तो कभी बात करती जल्दी ही हम उसके घर थे आज उसने घाघरा- चोली पहना हुआ था जिसमे बहुत ही मस्त लग रही थी वो

मैं- आज बड़ी सुन्दर लग रही है तू

वो- आज क्या मुझमे हीरे- मोती लगे दिख रहे है तुझको

मैं- वो तो पता नहीं बस दिल को लगा तो बोल दिया

वो- चल छोड़ और सुना नयी ताजा

मैं- अपने तो वो ही किस्से वो ही फ़साने तू ही छेड़ कोई नया तराना

वो- मैं कहू अपना हाल भी बस तेरे जैसा ही है बाकि सब तूझे पता तो है तू रुक मैं नाहा के आती हु फिर बाते करेंगे पूरा बदन मिटटी मिटटी हुआ पड़ा है

मैं- उस दिन नहाना था तो भेज दिया आज नहाना है तो रोक रही है तेरा तू ही जाने

वो- तू नहीं समझेगा मैं आती हु

मैं- ठीक है

वो नहाने चली गयी मैंने घर का मुख्य दरवाजा बंद किया और फिर कमरे में जाके खाट पर लेट गया वैसे भी यहाँ करने को कुछ खास था नहीं तो करीब आधे घंटे बाद वो नाहा कर आई उफ्फ्फ्फ़ क्या लग रही थी किसी क़यामत से कम नहीं उसके गीले बालो और चेहरे से टपकती वो पानी की बुँदे कसम से किसी को भी दीवाना बना दे

मैं- चली जा पूजा वर्ना मैं होश खो बैठूँगा

वो- होश उड़ गए क्या

मैं- उड़ ही गए

वो- हट गन्दी नजर वाले

मैं- यार अब आँखे फोड़ लू क्या तारीफ करो तो मारा ना करू तो मर बता क्या करू

वो- कुछ मत कर तू आती हु

कुछ देर बाद वो आई और मेरे पास ही बैठ गयी

मैं- आज सारी बिजलिया मुझ पर ही गिराने का इरादा है क्या

वो- गिरा दू क्या तू कहे तो

मैं- देख ले फिर ना कहना

वो- क्या देखना क्या सुनना कुंदन जो है वो है

मैं- पूजा दूर हो जा वर्ना मैं खुद पर काबू नहीं रख पाउँगा

वो- दूर जाना भी कहा तुझसे और पास आना भी तो क्या

मैं- पूजा

उसके और मेरे होंठ बिलकुल करीब आ गए थे बस छूने भर की देर थी की वो अलग हो गयी और हस्ते हुए बोली- पागल कही के इतनी जल्दी हाथ नहीं आउंगी

मैं- जानता हु प्यारी

वो- क्या खायेगा

मैं- तुझे

वो- वो तो मुमकिन नहीं

मैं- तो फिर जाने दे और बता कितना खर्चा हुआ जमीन पे

वो- रहने दे तेरा मेरा किसने बांटा

मैं- फिर भी

वो- बोला ना रहने दे

मैं- जैसी तेरी मर्ज़ी थोड़ी ठण्ड लग रही है मैं तो सो रहा हु

वो- मैं भी सोती हु

मैं- आजा मेरे पास सो जा

वो- ना दूसरी खाट पे सो जाउंगी

मैं- बस

वो- क्या

मैं- आ जा ना

वो- तेरे इरादे ठीक नहीं लग रहे मुझे आज

मैं- अपना मानती है तो आजा

वो- आती हु

वो चुपके से मेरे पास आकार लेट गयी और एक चादर ने हम दोनों को ढक लिया मैंने उसके पेट पर हाथ रखा और उसको अपने से चिपका लिया उसके बाद फिर कुछ बात ना हुई और ना कुछ और बस लेटे लेटे ना जाने कब नींद आ गयी उसके बदन से गर्मी से मिली तो सुकून मिला दरअसल इन छोटी छोटी बातो स हम एक दुसरे के करीब आ रहे थे रिश्ता मजबूत होता जा रहा था

जब मेरी आँख खुली तो चारो तरफ घुप्प अँधेरा था मैं बाहर आया तो पूजा खाना बना रही थी

मैं- टाइम क्या हुआ

वो- आठ बजे

मैं- बाप रे देर हो गयी जाना होगा

वो- खाना खाके जा

मैं- अभी नहीं पूजा बल्कि मुझे बहुत पहले घर पहुच जाना चाहिए था अभी जाना होगा

मैंने साइकिल उठाई और तेजी से पैडल मारते हुए घर की तरफ चल दिया आधा घंटा लग गया पहुचते पहुचते घर जाके देखा तो भाई आ गया था मैं सीधा दौड कर भाई के गले लग गया जैसे ज़माने भर की खुशिया आ गयी हो ऐसा लगा मुझे बहुत देर तक उसके गले लगा रहा

फिर बातो का सिलसिला शुरू हो गया आज लग रहा था की हम भी घर में रहते है भाई के साथ ही खाना खाया फिर हम ऊपर आ गए

भाई- ये क्या झमेला पाल दिया कुंदन

मैं- भाई बस हो गया

वो- हो नहीं गया तूने बिना सोचे समझे आ बैल मुझे मार वाली बात कर दी

खैर- मैं आ गया हु मैं तेरी जगह ये बीड़ा उठा लूँगा

मैं- नहीं भाई नहीं ये बात मेरी है ये मेरा कर्म है मैं ही करूँगा

भाई- पर कुंदन

मैं- भाई सा , थारा कुंदन पे विश्वास रखो आप

अब भैया भी समझ गए थे की कुछ कहने सुनने का फायदा नहीं है तो वो भी चुप कर गए पर उनके चेहरे पर जो चिंता थी वो वैसे ही बरक़रार थी हालाँकि मुझे डर नहीं लग रहा था पर फिर भी अजीब सा लग रहा था की कैसे क्या होगा पर मेरे दिल में जो एक आग जल रही थी बस वो ही मेरी प्रेरणा थी और फिर पूजा का विस्वास भी था मेरे पास उसी के सहारे पार करजाना था इस मुश्किल को भी

रात अपने शबाब पर आ रही थी धीरे धीरे सब अपने कमरों में बंद हो गए थे भाई आ गया था तो भाभी उसके साथ अपने कमरे में थी माँ के पास चाची थी और इन सब के बीच मैं बस चक्कर काट रहा था छत पर पता नहीं क्यों मेरी बेचैनी अचानक से बढ़ सी गयी थी जैसे की मुझे भी कोई साथी चाहिए था जिससे मैं जिसके गले लग सकू जिसकी बाहों में सुकून मिल सके मुझे

मेरा दिल तो किया की पूजा के पास चल पडू फिर रात का सोच के रुक गया सर दर्द से फटा पड़ा था तो जैसे तैसे नींद का इंतजार किया पता नहीं कितनी देर सोया था मैं पर जब भैया ने जगाया तो तब भी अधेरा सा था

वो- उठ और जल्दी बाहर आ

मैं- क्या हुआ भाइ सा सों दो ना

वो- बहुत सो लिया चल निचे आ

कोसते हुए मैंने घडी को देखा चार भी नहीं बजे थे सुबह के पर जगा दिया गया था उनके साथ घर से बहर आया कुछ दूर चलने के बाद वो दौड़ने लगे और मुझे भी वैसा ही करने को कहा मैंने सोचा फौजी में क्या आ गया सुबह सुबह पर जब तक पुरे गाँव के तेन चार चक्कर न लगवा दिए उन्हें चैन नहीं आया जबकि मेरे घुटने जवाब दे गए पर वो नहीं रुके मैं बीच में रुक जाता तो डांट लगाते उसके बाद वो मुझे ऐसी जगह ले आये जहा मैं कभी नहीं आया था कभी ये अखाडा होता था पर पता नहीं कब से बंद पड़ा था
उन्होंने उसे खोला अन्दर बुरा हाल था

भैया- आजा दो दो हाथ करते है

मैं- आपके साथ कैसे

वो- अरे आ न मैं भी तो देखू मेरा भाई जवान हुआ या नहीं

मैं- मेरी इतनी हिम्मत नहीं नहीं की आपका सामना करू

वो- हाथो में चुडिया है क्या कुंदन जो घबरा रहा है

मैं- जो समझना समझ लीजिये कुंदन अपने भाई का सामना नहीं करेगा

वो- भाई का नहीं करेगा पर ठाकुर इंद्र का तो करेगा ना

मैं- नहीं करेगा

वो- ये हमारा हुकुम है

मैं- तो फिर उठा कर पटक दीजिये मुझे पर मुझमे इतनी शक्ति नहीं की मैं अपने भाई का सामना कर सकू आपको चाहे मेरी बात का बुरा लगे पर भाई सा मेरे भी कुछ नियम है
 

Iron Man

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मुझको अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ मैं उसके पास गया और बस उसको अपने गले से लगा लिया और जब तक जी न भरा उसको छोड़ा नहीं

वो- क्या जान ही लोगे अब छोड़ो ना

मैं- पूजा पूजा ये कैसे किया

वो- कहा था न भरोसा रख

पूजा ने ट्रेक्टर से खेत में गोडी लगवा लगवा के उस काफी समतल करवा दिया था सारी पथरीली परत किनारे पर पड़ी थी मेरा दिल तो किया की चूम ही लू उसको जो किसी फ़रिश्ते की तरह मेरे जीवन में आई थी

मैं- पूजा ट्रे बिना ये मुमकिन नहीं हो पाता

वो- मैंने कुछ नहीं किया कुंदन वो कुवे की फिरनी शाम तक लग जाएगी वैसे तू कहा था दो दिन हुए तू आया नहीं

मैं- कुछ कामो में उलझा था पर आज का दिन पूरा तेरे साथ

मैंने कहा आ बैठ साइकिल पे

वो- आगे

मैं- हाँ आगे

वो मुस्कुराती हुए आगे डंडे पर बैठ गयी और मैंने पैडल मारा मेरे पैर उसके चूतडो से टकराने लगे पर वो अपनी मस्ती में मस्त थी कभी घंटी बजाती तो कभी बात करती जल्दी ही हम उसके घर थे आज उसने घाघरा- चोली पहना हुआ था जिसमे बहुत ही मस्त लग रही थी वो

मैं- आज बड़ी सुन्दर लग रही है तू

वो- आज क्या मुझमे हीरे- मोती लगे दिख रहे है तुझको

मैं- वो तो पता नहीं बस दिल को लगा तो बोल दिया

वो- चल छोड़ और सुना नयी ताजा

मैं- अपने तो वो ही किस्से वो ही फ़साने तू ही छेड़ कोई नया तराना

वो- मैं कहू अपना हाल भी बस तेरे जैसा ही है बाकि सब तूझे पता तो है तू रुक मैं नाहा के आती हु फिर बाते करेंगे पूरा बदन मिटटी मिटटी हुआ पड़ा है

मैं- उस दिन नहाना था तो भेज दिया आज नहाना है तो रोक रही है तेरा तू ही जाने

वो- तू नहीं समझेगा मैं आती हु

मैं- ठीक है

वो नहाने चली गयी मैंने घर का मुख्य दरवाजा बंद किया और फिर कमरे में जाके खाट पर लेट गया वैसे भी यहाँ करने को कुछ खास था नहीं तो करीब आधे घंटे बाद वो नाहा कर आई उफ्फ्फ्फ़ क्या लग रही थी किसी क़यामत से कम नहीं उसके गीले बालो और चेहरे से टपकती वो पानी की बुँदे कसम से किसी को भी दीवाना बना दे

मैं- चली जा पूजा वर्ना मैं होश खो बैठूँगा

वो- होश उड़ गए क्या

मैं- उड़ ही गए

वो- हट गन्दी नजर वाले

मैं- यार अब आँखे फोड़ लू क्या तारीफ करो तो मारा ना करू तो मर बता क्या करू

वो- कुछ मत कर तू आती हु

कुछ देर बाद वो आई और मेरे पास ही बैठ गयी

मैं- आज सारी बिजलिया मुझ पर ही गिराने का इरादा है क्या

वो- गिरा दू क्या तू कहे तो

मैं- देख ले फिर ना कहना

वो- क्या देखना क्या सुनना कुंदन जो है वो है

मैं- पूजा दूर हो जा वर्ना मैं खुद पर काबू नहीं रख पाउँगा

वो- दूर जाना भी कहा तुझसे और पास आना भी तो क्या

मैं- पूजा

उसके और मेरे होंठ बिलकुल करीब आ गए थे बस छूने भर की देर थी की वो अलग हो गयी और हस्ते हुए बोली- पागल कही के इतनी जल्दी हाथ नहीं आउंगी

मैं- जानता हु प्यारी

वो- क्या खायेगा

मैं- तुझे

वो- वो तो मुमकिन नहीं

मैं- तो फिर जाने दे और बता कितना खर्चा हुआ जमीन पे

वो- रहने दे तेरा मेरा किसने बांटा

मैं- फिर भी

वो- बोला ना रहने दे

मैं- जैसी तेरी मर्ज़ी थोड़ी ठण्ड लग रही है मैं तो सो रहा हु

वो- मैं भी सोती हु

मैं- आजा मेरे पास सो जा

वो- ना दूसरी खाट पे सो जाउंगी

मैं- बस

वो- क्या

मैं- आ जा ना

वो- तेरे इरादे ठीक नहीं लग रहे मुझे आज

मैं- अपना मानती है तो आजा

वो- आती हु

वो चुपके से मेरे पास आकार लेट गयी और एक चादर ने हम दोनों को ढक लिया मैंने उसके पेट पर हाथ रखा और उसको अपने से चिपका लिया उसके बाद फिर कुछ बात ना हुई और ना कुछ और बस लेटे लेटे ना जाने कब नींद आ गयी उसके बदन से गर्मी से मिली तो सुकून मिला दरअसल इन छोटी छोटी बातो स हम एक दुसरे के करीब आ रहे थे रिश्ता मजबूत होता जा रहा था

जब मेरी आँख खुली तो चारो तरफ घुप्प अँधेरा था मैं बाहर आया तो पूजा खाना बना रही थी

मैं- टाइम क्या हुआ

वो- आठ बजे

मैं- बाप रे देर हो गयी जाना होगा

वो- खाना खाके जा

मैं- अभी नहीं पूजा बल्कि मुझे बहुत पहले घर पहुच जाना चाहिए था अभी जाना होगा

मैंने साइकिल उठाई और तेजी से पैडल मारते हुए घर की तरफ चल दिया आधा घंटा लग गया पहुचते पहुचते घर जाके देखा तो भाई आ गया था मैं सीधा दौड कर भाई के गले लग गया जैसे ज़माने भर की खुशिया आ गयी हो ऐसा लगा मुझे बहुत देर तक उसके गले लगा रहा

फिर बातो का सिलसिला शुरू हो गया आज लग रहा था की हम भी घर में रहते है भाई के साथ ही खाना खाया फिर हम ऊपर आ गए

भाई- ये क्या झमेला पाल दिया कुंदन

मैं- भाई बस हो गया

वो- हो नहीं गया तूने बिना सोचे समझे आ बैल मुझे मार वाली बात कर दी

खैर- मैं आ गया हु मैं तेरी जगह ये बीड़ा उठा लूँगा

मैं- नहीं भाई नहीं ये बात मेरी है ये मेरा कर्म है मैं ही करूँगा

भाई- पर कुंदन

मैं- भाई सा , थारा कुंदन पे विश्वास रखो आप

अब भैया भी समझ गए थे की कुछ कहने सुनने का फायदा नहीं है तो वो भी चुप कर गए पर उनके चेहरे पर जो चिंता थी वो वैसे ही बरक़रार थी हालाँकि मुझे डर नहीं लग रहा था पर फिर भी अजीब सा लग रहा था की कैसे क्या होगा पर मेरे दिल में जो एक आग जल रही थी बस वो ही मेरी प्रेरणा थी और फिर पूजा का विस्वास भी था मेरे पास उसी के सहारे पार करजाना था इस मुश्किल को भी

रात अपने शबाब पर आ रही थी धीरे धीरे सब अपने कमरों में बंद हो गए थे भाई आ गया था तो भाभी उसके साथ अपने कमरे में थी माँ के पास चाची थी और इन सब के बीच मैं बस चक्कर काट रहा था छत पर पता नहीं क्यों मेरी बेचैनी अचानक से बढ़ सी गयी थी जैसे की मुझे भी कोई साथी चाहिए था जिससे मैं जिसके गले लग सकू जिसकी बाहों में सुकून मिल सके मुझे

मेरा दिल तो किया की पूजा के पास चल पडू फिर रात का सोच के रुक गया सर दर्द से फटा पड़ा था तो जैसे तैसे नींद का इंतजार किया पता नहीं कितनी देर सोया था मैं पर जब भैया ने जगाया तो तब भी अधेरा सा था

वो- उठ और जल्दी बाहर आ

मैं- क्या हुआ भाइ सा सों दो ना

वो- बहुत सो लिया चल निचे आ

कोसते हुए मैंने घडी को देखा चार भी नहीं बजे थे सुबह के पर जगा दिया गया था उनके साथ घर से बहर आया कुछ दूर चलने के बाद वो दौड़ने लगे और मुझे भी वैसा ही करने को कहा मैंने सोचा फौजी में क्या आ गया सुबह सुबह पर जब तक पुरे गाँव के तेन चार चक्कर न लगवा दिए उन्हें चैन नहीं आया जबकि मेरे घुटने जवाब दे गए पर वो नहीं रुके मैं बीच में रुक जाता तो डांट लगाते उसके बाद वो मुझे ऐसी जगह ले आये जहा मैं कभी नहीं आया था कभी ये अखाडा होता था पर पता नहीं कब से बंद पड़ा था
उन्होंने उसे खोला अन्दर बुरा हाल था

भैया- आजा दो दो हाथ करते है

मैं- आपके साथ कैसे

वो- अरे आ न मैं भी तो देखू मेरा भाई जवान हुआ या नहीं

मैं- मेरी इतनी हिम्मत नहीं नहीं की आपका सामना करू

वो- हाथो में चुडिया है क्या कुंदन जो घबरा रहा है

मैं- जो समझना समझ लीजिये कुंदन अपने भाई का सामना नहीं करेगा

वो- भाई का नहीं करेगा पर ठाकुर इंद्र का तो करेगा ना

मैं- नहीं करेगा

वो- ये हमारा हुकुम है

मैं- तो फिर उठा कर पटक दीजिये मुझे पर मुझमे इतनी शक्ति नहीं की मैं अपने भाई का सामना कर सकू आपको चाहे मेरी बात का बुरा लगे पर भाई सा मेरे भी कुछ नियम है
Awesome update.
Pooja se nazdikiya badh rahi aur badha bhai efhar kundan ko mukable ke liye taiyar karna shuru kar diya.
 

kamdev99008

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#39

भाई मेरे पास आया और बोला- मर्दों के कुछ नियम नहीं होते कुंदन और खासकर हम ठाकुरों के , हम अपने नियम खुद बनाते है हमारी तलवार प्यासी होती है रक्त की जिसकी प्यास बुझाना ही हमारा सबसे बड़ा नियम होता है और तू भी इस सच से भाग नहीं सकता फिर क्यों घबराता है मेरा सामना करने से आज मेरा सामना नहीं कर पा रहा कल चुनोती कैसे उठाएगा

मैं- अभी उसका मैंने सोचा नहीं है जब वो दिन आएगा देखेंगे चाहे वहा मेरी हार हो या जीत हो मेरा नसीब कम से कम मुझे चैन तो रहेगा की जो मैं करना चाहता था वो किया

भाई-नसीब की बात कायर करते है कुंदन कर्मठ वो होता है जो करके दिखाए खैर तुझे करनी तो अपने मन की ही है तो वो ही कर हम भला कौन होते है

मैं- भाई आप नाराज ना हो बस एक बार मेरी तरह से सोच के देखो आप मेरे साथ हो मेरे लिए बहुत है मैं बस आपके साथ रहना चाहता हु चलो इसी बहाने से कम से कम थोडा वक़्त आपके साथ गुजार पाउँगा पर बही मैं सच कहता हु की इस समय मैं इतने टुकडो में बंटा हुआ हु की मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा आपने सही कहा मुझे उस चुनौती की रत्ती भर भी फिकर नहीं है क्योंकि वो मेरे लिए कुछ नहीं मुझे फरक पड़ता है अपने लोगो स काश मेरे मन की बात मैं आपको बता सकता पर मैं भी एक साधारण इन्सान हु बेशक आप ठाकुर कुंदन सिंह को देख रहे है परन्तु मैं बस कुंदन हु जिसके पांवो में मज़बूरी की बेडिया है और सच कहू तो कोई मज़बूरी है नहीं बस नजरिये की बात है

मेरे पास कहने को कुछ था नहीं मैं वहा से सीधा घर आया और फिर तैयार होकर जमीन की तरफ चला गया दिमाग में हजार तरह की बाते चल रही थी मैं घर वालो की बाते भी समझता था पर अब मैं कर भी क्या सकता था तो क्या फायदा बार बार उस बात को सोचके जमीन पर आकर मैंने चारो तरफ नजर दौड़ाई और फिर अपने कपडे उतार पर साइकिल पर रखे , फिर मैंने सोचा की इस पर कुछ और खुदाई करनी चाहिए ताकि जब दुबारा गोडी लगे तो फिर बस ये एक दम तैयार हो जाये

तभी मैंने जुम्मन को अपनी और आते देखा तो दुआ सलाम हुई

मैं- कहो काका कैसे आना हुआ इस और

वो- बेटा खुद को रोक नहीं सका मेरी आत्मा तड़प सी रही थी तो रुका नहीं गया बताओ मैं किस काम आ सकता हु

मैं- जमीन को तो संभाल लूँगा मैं काका पर क्या आप यहाँ एक झोपडी जैसा कुछ बना सकते है जिससे की मान लो बरसात आये या फिर रुकना पड़े तो काम आ जाई

काका- बस इतनी सी बात तुम बस सामान मंगवा दो मैं कर दूंगा ये तो

मैं- जो चाहिए आप खुद ले आओ पैसे जितने लगे मैं देख लूँगा पर थोडा जल्दी करके

वो- बेटा, फिर भी दो- तीन दिन तो लगेंगे ही कम से कम और बीच में बारिश हुई तो ज्यादा समय भी लग सकता है

मैं- जो भी करो जल्दी करो

वो- ठीक है मैं अभी जाता हु और सामान लेकर आता हु

अब मुझे तो मदद की जरुरत थी ही चाहे वो कैसे भी आये कोई भी करे जितनी मदद हो उतनी अच्छी और फिर आगे आगे यहाँ कई कामो से रुकना पड़ता पानी देना , फ़ासल की देखभाल करना तो सर छुपाने के लिए छाया तो चाहिए ही होती मैंने कुवे को देखा फिरनी तो लग गयी थी पर समस्या थी की पानी को हाथो से खीचना पड़ता क्योंकि यहाँ और कोई व्यवस्था थी नहीं

इसका भी कुछ ना कुछ जुगाड़ करना ही था अभी तो मानो बरसात थी तो धरती पी लेगी पर जब गेहू बोऊंगा तब तो दिक्कत होगी खैर कोई ना कोई रास्ता तो निकलेगा ही दोपहर बाद जुम्मन आया अपने साथ कुछ आदमी भी लाया और सामान भी

मैं- काका आ गये

वो- हां कुछ आदमी भी ले आया दुसरे गाँव से अब अपने यहाँ से तो कोई आता नहीं

मैं- सही किया

काका- मैंने सोचा है की निचे पत्थरों की चिनाई करेंगे और फिर ऊपर छप्पर बाँध देंगे

मैं- बढ़िया

वो- इससे मजबूत भी रहेगी और कच्चा काम भी नहीं रहेगा

मैं- जैसा आपको ठीक लगे अभी मैं तो थोडा व्यस्त हु कुछ तैयारियों में तो आप ही थोडा देख लेना इधर

वो- चिंता ना करे आप

कुछ समय और बिताया उनके साथ फिर थोड़ी भूख सी भी लग आई थी तो सोचा पूजा के पास चलू पर उसके घर पर ताला लगा था आज वो जमीन की तरफ भी न आई कहा गयी सोचते सोचते मैं वापिस घर आया तो देखा की राणाजी और भाई कुछ बात कर रहे थे मुझे आता देखा तो चुप हो गए तो मैं समझ गया की मेरे बारे में ही बात हो रही होगी

खैर वो और उसके बाद दो तीन दिन और ऐसे ही गुजर गए इस बीच न मैं पूजा से मिल सका न कुछ और कर सका बस घर पर ही रहा घर में एक अजीब सी चुप्पी छाई हुई थी मरघट सा सन्नाटा फैला हुआ था हर सदस्य के चेहरे पर एक पीलापन सा था माँ सा बस दिन रात बिस्तर पर ही पड़ी रहती थी उनकी सेहत तेजी से गिर रही थी मेरी हिम्मत नहीं होती थी की उनके पास जाऊ

क्योंकि मैं ही ज़िम्मेदार था इन सब चीजों का मेरे भाई भाभी बहुत हिम्मत देते थे मुझे राणाजी ने जैसे खुद को कैद कर लिया था अपने कमरे में उस रात भी मेरा हाल पता नहीं कैसा था दिल पता नहीं क्यों घबरा सा रहा था कुछ भी ठीक नहीं लग रहा था आँखों में नींद ना आये ना दिल को करार आये उस पूरी रात एक पल को भी नींद नहीं आई बस सबके चेहरे आँखों के आगे घूमते रहे

सुबह जब मैंने आईने में देखा तो आँखे कुछ लाल सी थी सूजी सी थी भाभी ने नाश्ता करने को कहा पर भूख नहीं थी तो मना किया और फिर साइकिल उठा कर चल दिया उस तरफ जहा कुछ सकूँ मिलने की उम्मीद थी मुझे
 
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