#36
दोपहर का समय था तो इका दुक्का लोग ही थे और फिर जल्दी ही आइने अपने सपनो की रानी का दीदार किया चेहरे को दुपट्टे में छुपाये वो मेरे पास आई और बोली यहाँ से थोड़ी दूर जंगल की तरफ एक बरगद का पेड़ है वहा मिलिए तो मैंने सर हिला दिया बाबा के आगे सर झुकाके मैं मिश्री खाता हुआ उसके बताये पेड़ के पास आ गया बहुत सही जगह चुनी थी उसने मिलने के लिए
आँखों ने आँखों को अपने अंदाज में सलाम किया और इस्तकबाल किया और हम वही बैठ गए
वो- जानते है जबसे हमे मालूम हुआ हमारा चैन खो गया
मैं- वो क्यों भला
वो- इसी का जवाब तो आपसे लेने आये है
मैं- मेरे पास कहा इसका जवाब
वो- जब चैन आपने चुराया तो जवाब भी आप ही दे
मैं- मैंने सोचा आपने मेरा चैन चुराया
वो- हमारी ऐसी फितरत नहीं हम तो हक़ से ले लेते है ये चुराने में वो बात कहा
और वो हस पड़ी मैं भी हस दिया कितनी बेबाकी कितनी मासूमियत
मैं- और जो मैं बेचैन हु मुझमे जो ये तन्हाई इसका दोष मैं किसको दू
वो- मैं क्या जानू कोई मर्ज़ है तो हकीम साहब को मिले दवा दारू करवाए
मैं- और जब कातिल सामने हो तो कहा जाये
मेरी बात सुनते ही उसके चेहरे का रंग उड़ गया और वो हसने लगी
फिर उसने अपने झोले से एक ताबीज लिया और मुझे देते हुए बोली- आपके लिए दुआ मांगी आज इसे बाँध लीजिये आपकी रक्षा करेगा
मैं- आप ही बाँध दो ना
वो मुस्कुराई और फिर बोली- धागा नहीं है मेरे पास
हाय रे ये मासूमियत
मैं- तो पढाई के अलावा आप क्या करती है
वो- कुछ नहीं घर के काम और कभी कभी गाने सुन लिया करती हु दिल करता है तो यहाँ आ जाती हु यहाँ जो शांति मिलती है तो रूह को अच्छा लगता है
मैं- वो तो है
वो- आप बताइए
मैं- कुछ नहीं पढाई के बाद घर के काम करता हु बापूसा की जमीन संभालता हु और आप ही की तरह गाने सुन लेता हु
वो- जुम्मन काका के लिए आपने पंचायत से बगावत कर ली हमने सुना
मैं- जाने दो ना क्या रखा इन बातो में
वो- आप सच में गरीबो के मसीहा है
मैं- आपको ऐसा लगता बाकि सब तो नालायक बोलते
वो- किसी दुसरे के लिए कौन इतना करता है रब्ब का बंदा और कहा मिलेगा आपके अलावा
मैं- इतनी भी तारीफ ना कीजिये कुछ कालापन भी है मुझमे
वो- हम सभी में कुछ ना कुछ कमी तो होती ना इसीलिए तो इन्सान है
उसकी बातो में जो सादगी थी सीधे दिल में उतरती थी बहुत अच्छा लग रहा था उसके साथ बाते करके जैसे की बस... अब मैं कहू तो क्या कहू
मैं- अब कब मिलोगी
वो- जब आप कहोगे
मैं- तो फिर जाओ ही नहीं
वो- जाना तो होगा ना पर इतना कह सकती हु की जल्दी ही मुलाकात होगी
मैं- कब , अब चैन नहीं मिलेगा
वो- तो आ जाना रास्ता आपको पता मंजिल आपको पता किसने रोका है
मैं- पक्का
वो- हां वैसे परसों शाम आपके खेतो की तरफ जाउंगी तो ........... वो बस मुस्कुरा दी
अब ये छोटी छोटी मुलाकाते ही हो सकती थी तो इसी से सब्र कर लिया कभी उसको जाते हुए देखते कभी उस ताबीज को जो वो हाथ में दे गयी थी उसके जाने के बाद भी पता नहीं कितनी देर बाद मैं वही पर रुका रहा हर चीज़ पता नहीं क्यों बड़ी प्यारी प्यारी लग रही थी
खैर, कब तक रुकते वहा घर आये तो देखा राणाजी की गाड़ी बाहर ही खड़ी थी मैं अन्दर आया घर में अजीब सी शांति थी मैं माँ के कमरे में गया तो एक डॉक्टर भी था
राणाजी- सहर से बड़े डॉक्टर बाबु को बुलवाया है इनका कहना है की तुम्हारी माँ सा को बड़ा सदमा लगा है उनका विशेष ख्याल रखना होगा वर्ना लकवा भी मार सकता है हमने व्यवस्था की है की एक नर्स सदा इनके पास रहे और डॉक्टर साहब से भी अनुरोध किया है की हर तीसरे दिन आकार इन्हें देख ले
मेरा तो दिमाग ही घूम गया ये सुनकर आँखों से दो बूंद पानी निकल कर कब निचे गिर गया पता ही नहीं चला मैं वहा से बाहर आकर बैठ गया और खुद को कोसने लगा ये जो भी हो रहा था इसका जिम्मेदार मैं ही तो था इस मोड़ पर मुझे अपनों का ही तो साथ सबसे जरुरी था और अपने ही इस हाल में थे मेरी वजह से तभी किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा मैंने देखा भाभी थी
वो- नाश्ता लगा दू
मैं- नहीं भाभी
वो- क्या हुआ दुःख हो रहा है पहले कभी सोचा नहीं ना पर कोई बात नहीं जिंदगी में कभी ना कभी तो ये सब सीखना ही था
मैं- ताना मत मारो भाभी
वो- ताना नहीं मार रही सचाई बता रही हु अगर अपनी नजरो से ठाकुर होने के अहंकार का चश्मा हटा कर देखोगे तो तुम्हे एक बुढा बाप एक लाचार माँ जो बिस्तर पर पड़ी है और के आधी विधवा भाभी दिखेगी, ऐसे क्या देख रहे हो फौजी की घरवाली आधी विधवा ही हो होती है और ऊपर से ठाकुरों की बहु
भाभी की वो हंसी- मेरे कलेजे पर चोट कर गयी
वो- कुंदन तुम्हारे भाई जब भी यहाँ से अपनी ड्यूटी पर जाते है हमेशा मुझ से कह कर जाते है की इसका ध्यान रखना भाभी बन कर नहीं इसकी मा बनकर इसे देवर नहीं बेटा समझना मेरा भाई थोडा कम अकाल है नादाँ है पर दिल का साफ है और तुमने भी मुझे हमेशा भाभी नहीं भाभी माँ समझा छोटी से छोटी बात बताई पर कुंदन कभी कभी हमसे कुछ ऐसा हो जाता है की वो सबकी जिंदगी पर असर डालता है
मैं- भाभी आपकी हर बात आपका हर उलाहना सर माथे पर पर मैं मजबूर हु ऐसा नहीं की ये सब मैंने किसी दवाब में चुना है पर शायद यही नियति चाहती थी मैं भी अन्दर ही अंदर घुट रहा हु जब मैंने राणाजी के कांपते हाथो को देखा जब आपके दिल की कांपती धडकनों को सुना पर भाभी अगर मैं ठाकुर कुंदन नहीं होता तो भी मैं ये ही करता
भाभी- मैं जानती हु और अब तू मेरी सुन जिसके लिए तू ये कर रहा है मैं उस से मिलना चाहती हु
मैं- भाभी आप बात को घुमा फिरा कर यही क्यों ले आती है
वो- क्योकी मैं देखना चाहती हु की वो कौन है जिसने तुम्हे इतना बदल दिया है हम भी तो देखे की किसका जादू तुम पर इतना चढ़ गया है