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Incest दिल अपना प्रीत परायी Written By FTK (Completed)

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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#34

चाची- कहा था पुरे दिन से

मैं- जमीन पे गया था वो भी तो करना है मुझे

वो- इतने में भी कैसे कर लेता है

मैं- कहो तो आपको प्यार भी कर लू कल मौका दिया नहीं आपने

वो- मेरी तो जान जल रही है और तू मजाक कर रहा है

मैंने चाची के गालो पर एक पप्पी ली और बोला चाची जबसे आपके साथ किया है सुलग रहा हु फिरसे करने को और अप हो के दुरी बनाये हुई हो ये भी क्या बात हुई

वो- और जो तूने परेशान किया

मैं- अब कर लेने दो क्या पता फिर रहे न रहे

चाची- मैं थप्पड़ मारूंगी जो ऐसे फिर बोला पता नहीं क्या मजा आता है तुझे हम सब का जी जलाने में

तभी भाभी आ गयी और बोली- चाची माँ सा ने कहा है की आज राणाजी घर पर नहीं है तो मैं उनके साथ उनके कमरे में सो जाऊ और आप यही कुंदन के साथ रहना क्या पता रात को तबियत बिगड़ गयी तो आप यही के यही संभाल लेंगी और तू भी घर ही रहेगा आज

मैं- जी भाभी

मैं तो खुश हो गया था की चाची पूरी रात मेरे कमरे में दबा के चोदुंगा आज जब चाची भाभी के साथ वापिस जा रही थी मैंने धीरे से उसकी गांड सहला दी पर उसने पलट कर नहीं देखा मैं अपने कमरे में चला शाम कब रात में बदल गयी पता नहीं चला

फिर मुंशी जी आ गए उन्होंने कहा की तार भी कर दिया और टेलीफोन पर भी बात हो गयी जल्दी ही छोटे ठाकुर आ रहे है तो मुझे भी एक तसल्ली हुई और भाभी के चेहरे पर भी मुस्कान थी तो मैंने इशारो से उन्हें छेड दिया तो वो गुस्सा करने लगी पर वो गुस्सा प्यार भरा था खैर धीरे धीरे घर की बत्तिया बुझने लगी मैं चाची के घर ताला लगा ही आया था और फिर चाची मेरे कमरे में आई दरवाजा बंद किया

मैं- सब सो गए

वो- हाँ

मैंने चाची को अपनी बाहों में भर लिया और सीधा उसके होंठो को चूमने लगा


वो- दो मिनट रुक तो सही

मैं- ना अब नहीं रुकुंगा आज पूरी रात आपको बस प्यार करूँगा

और चाची की गांड को सलवार के ऊपर से ही दबाते हुए उसके रस से भरे होंठो को चूमने लगा चाची भी मेरा साथ देने लगी उसके होंठ खुलते गए और हमारी जीभ आपस में टकराने लगी उफफ्फ्फ्फ़ चाची बी तरह से मुझ से लिपट गयी और दीवानो की तरह चूमा-चाटी करने लगे हम बहुत देर तक बस होंठो की प्यास बुझाते रहे फिर मैंने उसके कपडे उतारे और कच्छी ब्रा में ही उसको पलंग पर पटक दिया और खुद भी नंगा हो गया

चाची की निगाह मेरे खड़े लंड पर ही थी मैं चाची के ऊपर लेट गया और उसको फिर से चूमने लगा वो अपना हाथ निचे ले गयी और लंड को मुट्ठी में भर लिया चाची के गरम हाथ को लंड पर महसूस करके मजा आ गया मैंने उसकी ब्रा को उतार दी और एक चूची को भीचते हुए दूसरी को मुह में ले लिया चाची बिस्तर पर तड़पने लगी मस्ती के मारे

जल्दी ही मैंने उसकी दोनों चुचियो को पि पि कर लाल कर दिया और चाची भी मेरे लंड को अपनी चूत पर कच्छी के उपर से ही घिस रही थी कमरे में जैसे तुफान सा आ गया था

मैं अपना मुह चाची के कान के पास ले गया और धीरे से बोला- पूरी रात चोदुंगा तुझे आज

चाची- चोद ले

मैं- कच्छी उतार दे

चाची ने अपनी गांड को थोडा सा ऊपर उठाया और फिर अपने उस आखिरी वस्त्र को भी उतार दिया कुछ देर होंठो को चूमने के बाद मैंने चाची की टांगो को चौड़ी की और अपने होंठो को उसकी चूत पर लगा दिया वो ही मदहोश करने वाली खुशबु मुझे पागल बहुत पागल कर गयी “पुच ” मैंने जैसे ही चूत की खाल को चूमा चाची का बदन हिलने लगा वो धीरे धीरे आह आह करते हुए अपने पैर पटकने लगी

मैंने अपनी दो ऊँगली चूत में घुसा दिया उर अन्दर बाहर करने लगा तो चाची की चूत और ज्यादा रस छोड़ने लगी जिसे मैं धीरे धीरे पीने लगा चाची की चूत का दाना बहुत नमकीन था जब मेरी खुरदरी जीभ उस पर रगड़ देती तो चाची की जैसे जान ही निकल जाती अब मैंने अपनी उंगलिया बाहर निकाल ली और चाची की चूत के अंदरूनी लाल हिस्से में अपनी जीभ को बार बार अन्दर- बाहर करने लगा चाची तो जैसे मस्ती के सातवे आसमान पर पहुच गयी थी

बार बार अपनी गांड को ऊपर निचे करते हुए वो चूत चुसाई का भरपूर मजा ले रही थी और मैं भी ये ही कोशिश कर रहा था की जितना हो सके उसकी चूत से वो मादक रस बाहर निकाल सकू वैसे भी चाची की चूत हद से ज्यादा रसीली थी और बहुत समय से बिना चुदी होने के कारण उसकी खूबसूरती और ज्यादा बढ़ गयी थी और फिर उसने खुद को सजाया संभाला ही कुछ इस तरह से था
अगले कुछ मिनट मैं बस चाची की चूत के रस को चाटता रहा पता नहीं कब वो अपने स्खलन की और बढ़ने लगी थी उसने अपनी टांगो को मेरे सर के आजू- बाजु लपेट लिया और अपना पूरा दवाब बनाते हुए झड़ने लगी चूत से टपकते उस सफ़ेद पानी को मैंने अपने गले में उतार लिया और फिर धम्म से वो बिस्तर पर पड़ गयी

पर हम तो अभी बाकि थे मैंने अपने लंड पर थूक लगाया और चाची की चूत से लगाके उसको धक्का मारा चाची अभी अभी झड़ी थी लंड के लिए तैयार नहीं थी पर अपना रुक पाना और मुशिकल था तो वो कराहती रही और मैंने लंड को जड तक अनदर कर दिया और चाची की टांगो को अपने कंधो पर रख कर उसे चोदने लगा वो धीरे धीरे अपनी झूलती चुचियो को दबाते हुए चुदाई का मजा लेने लगी

मेरा लंड हर धक्के पर चाची की चूत की गहराइयों में जा रहा था जिसे वो महसूस करके मस्ता रही थी कमरे में थप थप की आवाज आ रही थी पर चाची और मैं अपने जिस्म की आग को बुझाने में हद से ज्यादा डूब जाना चाहते थे अब मैंने चाची के पैर अपने कंधो से उतारे और निचे करने चोदने लगा चाची सी सी करते हुए मेरे लंड को ले रही थी

आपस में जिस्मो की रगड़ाई का मजा लेते हुए हम दोनों अपनी अपनी मंजिल की और बढ़ रहे थे वो तो एक बार पहले ही झड़ गयी थी तो उसको बहुत ज्यादा मजा आ रहा था मैंने अपने दांत चाची के गालो पर पर गड़ाने लगा पल पल मैं उसको बस पा लेना चाहता था अपनी आत्मा भरने तक और शायद वो भी ऐसा ही चाहती थी चाची का जिस्म एक बार फिर झटके खाते हुए झड़ने लगा था और अपना भी काम बस होने को ही था तो मैंने अपने लंड को बाहर खीचा और उसके पेट पर आपना वीर्य गिरा दिया


आपस में जिस्मो की रगड़ाई का मजा लेते हुए हम दोनों अपनी अपनी मंजिल की और बढ़ रहे थे वो तो एक बार पहले ही झड़ गयी थी तो उसको बहुत ज्यादा मजा आ रहा था मैंने अपने दांत चाची के गालो पर पर गड़ाने लगा पल पल मैं उसको बस पा लेना चाहता था अपनी आत्मा भरने तक और शायद वो भी ऐसा ही चाहती थी चाची का जिस्म एक बार फिर झटके खाते हुए झड़ने लगा था और अपना भी काम बस होने को ही था तो मैंने अपने लंड को बाहर खीचा और उसके पेट पर आपना वीर्य गिरा दिया
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Iron Man

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#35

चाची ने मेरे वीर्य को साफ़ किया और मैं बगल में लेट गया चाची के पैर पर अपना पैर रख के वो भी मुझसे लिपटने लगी एक जोरदार चुम्बन के बाद हमने चादर ओढ़ ली और बात करने लगे

मैं- कितनी गरम है तू मेरी जान

वो- चाची से सीधे जान

मैंने एक ऊँगली उसकी चूत में दे दी और बोला- जान नहीं है क्या

वो- अब तू कुछ भी कहले

मैं- सच में चाची माल है तू तेरी लेने में बहुत मजा आता है एक आग है तेरे अन्दर

ये कहकर मैंने चूत से ऊँगली निकाली और चाची को बोला- मुह खोल देख चख कर तेरी चूत का पानी कितना मस्त है

वो- छि गंदे

मैंने वो ऊँगली चाची के होंठो पर फेरी थोडा रस उसके होंठो पर लगाया और फिर उसके होंठो पर जीभ फेरने लगा

मैं- देख कितना मस्त पानी है तेरा

चाची का चेहरा लाल होने लगा मेरी ये गन्दी बाते सुनकर उसने धीरे से मेरे लंड को पकड़ लिया

मैं- आज पूरी रात चुदेगी ना

वो कुछ ना बोली

मैं- बता ना

वो- हां

मैं- ऐसे नहीं कह चुदुंगी

वो- चुदुंगी

मैं- ये हुई ना बात चल अब घोड़ी बन और अपनी मस्तानी गांड दिखा मुझे

शर्माती हुई चाची घोड़ी बन गयी और मैं बस उसकी गांड को देखने लगा उफ़ कितने प्यारे चुतड थे उसके जैसे कोई धेरी हो मखमल की मैं आहिसता आहिस्ता से चाची के चूतडो पर हाथ फिराता रहा बीच बीच में मेरी उंगलियों ने चाची की गांड के भूरे छेद को भी छुआ तो चाची की गांड तेजी से हिलने लगी मैंने धीरे से गांड के छेद को चूम लिया और बोला- चाची तेरी गांड बहुत ही सुन्दर और प्यारी है जी करता है इसको भी चूमता रहू

चाची- किसी ने रोका है क्या तुझे ये बाण तेरा है जैसे चाहे प्यार कर मेरे राजा

उसकी ये बात सुनते ही मेरा जोश बढ़ गया मैंने दो उंगलिया चूत में डाल दी और चाची की गांड के छेद पर अपने होंठ रख कर चूमने लगा चाची के दोनों छेदों में हलचल होने से उसके बदन में भी तूफ़ान आने लगा उसके पैर कांपने लगे और गांड बुरी तरह से हिलने लगी मेरी जीभ तेज तेज उस छेद को चूम रही थी जैसे उसमे घुस जाना चाहती थी बहुत देर तक मैं ऐसा ही करता रहा इधर मेरे लंड में तेज ऐंठन होने लगी थी

मैं- चूतडो में डालू आज

वो- अभी नहीं यहाँ नहीं मेरे घर या कुवे प मौका दूंगी तुझे

मैंने अपने सुपाडे को पीछे से चूत पर लगाया और अन्दर धकेलने लगा तो चाची ने आहे भरते हुए अपनी गांड को पीछे कर लिया और एक बार फिर से हमारी चुदाई शुरू हो गयी चूतडो से लेकर उसकी पीठ और कंधो तक को सहलाते हुए मेरा लंड उसकी चूत में आतंक मचाये हुए था और जब मेरे हाथ उसकी चुचियो तक पहुचे तो कसम से मजा ही आ गया उसने अपने अगले हिस्से को थोडा सा उठा लिया जिस से मुझे चूची दबाने में सहूलियत होने लगी

कुछ देर ऐसे ही चोदने के बाद मैंने उसे फर्श पर उतार लिया और खड़े खड़े ही पीछे से उसको चोदना चालू किया मेरे हाथ उसकी चुचियो को कस कस के दबा रहे थे और होंठो उसकी गर्दन गालो पर अपना कमाल दिखा रहे थे हम दोनों धीमे धीमे सिस्कारिया भरते हुए चुदाई का दूसरा दौर खेल रहे थे चाची ने अपने हाथ पास रखी टेबल पर टिका लिए और गांड को पीछे उभार कर चुदाई करवाने लगी

मैं अब तेज तेज धक्के लगाने लगा था और वो भी मेरा पूरा साथ दे रही थी करीब आधे घंटे तक ये दौर चला उसके बाद एक बार फिर मैंने अपना पानी उसकी गांड पर गिरा दिया और बिस्तर पर पड़कर अपनी सांसे दुरुस्त करने लगा चाची ने मेरा वीर्य साफ किया और सलवार पहनने लगी

मैं- क्या हुआ

वो- पेशाब करने जा रही हु और जीजी को भी देख आऊ

उसने कपडे दुरुस्त किये और बाहर चली गयी मैंने भी चादर लपेटी और बाहर आ गया छत के कोने में ही मैने पेशाब किया करीब दस मिनट बाद वो भी आ गयी

मैं- क्या हुआ

वो- सब सही है सो रहे है

मैंने कुण्डी लगाई और तब तक वो कपडे उतार चुकी थी एक बार फिर हमारे नंगे जिस्म चादर में घुस चुके थे

वो- बाहर ठण्ड है

मैं- गर्मी दे दू

वो- गर्मी तो लुंगी ही

मैं- चाची एक बात कहू

वो- बोल

मैं- मैं चाहता हु की तू खुल के चुद मुझसे मतलब तेरी आग दिखा मुझे जला दे तेरी चूत की गर्मी में जैसे मैं तेरे होंठो को चूसता हु वैसे ही तू कर मेरे लंड पर बैठे तो जोश हो तुझमे

चाची- ठीक है तेरी ये इच्छा भी पूरी करुँगी पर आज नहीं अभी सो जा वर्ना सुबह उठ नहीं पाएंगे

मैं- एक बार और तो करने दे

वो- नहीं फिर उठ नहीं पाऊँगी अभी ऐसे ही चिपट जा मुझसे मेरी बाहों में सो जा

मैंने भी ज्यादा जोर नहीं दिया चाची के बदन से छेड़खानी करते हुए पता नहीं कब नींद आ गयी सुबह जाने से पहले चाची ने मुझे कपडे पहनने को कहा और फिर मैं कपडे पहन कर दुबारा सो गया पर नसीब में नींद कहा जल्दी ही भाभी ने झिंझोड़ दिया मैंने डूबती आँखों से देखा वो चाय लिए खड़ी थी तभी मेरा ध्यान मेरे लंड पर गया जो पूरी तरह से मेरे कच्छे में तना हुआ था और चादर में तम्बू सा बनाये हुए थे


भाभी की नजर भी उस पर पड़ी वो बस मुस्कुरा पड़ी और बोली- चाय टेबल पर राखी है पी लेना और बाहर जाने लगी मैं उसकी मटकती गांड को देखने लगा नहाने के बाद दोपहर तक मैं माँ सा के कमरे में ही रहा फिर मुझे याद आया की दोपहर बाद मुझे पीर साहब की मजार पर उस से मिलना है तो मैंने अपनी साइकिल उठाई और हो लिया उस रस्ते पर जो शायद मेरी मंजिल का था
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kamdev99008

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#36

दोपहर का समय था तो इका दुक्का लोग ही थे और फिर जल्दी ही आइने अपने सपनो की रानी का दीदार किया चेहरे को दुपट्टे में छुपाये वो मेरे पास आई और बोली यहाँ से थोड़ी दूर जंगल की तरफ एक बरगद का पेड़ है वहा मिलिए तो मैंने सर हिला दिया बाबा के आगे सर झुकाके मैं मिश्री खाता हुआ उसके बताये पेड़ के पास आ गया बहुत सही जगह चुनी थी उसने मिलने के लिए

आँखों ने आँखों को अपने अंदाज में सलाम किया और इस्तकबाल किया और हम वही बैठ गए

वो- जानते है जबसे हमे मालूम हुआ हमारा चैन खो गया

मैं- वो क्यों भला

वो- इसी का जवाब तो आपसे लेने आये है

मैं- मेरे पास कहा इसका जवाब

वो- जब चैन आपने चुराया तो जवाब भी आप ही दे

मैं- मैंने सोचा आपने मेरा चैन चुराया

वो- हमारी ऐसी फितरत नहीं हम तो हक़ से ले लेते है ये चुराने में वो बात कहा

और वो हस पड़ी मैं भी हस दिया कितनी बेबाकी कितनी मासूमियत

मैं- और जो मैं बेचैन हु मुझमे जो ये तन्हाई इसका दोष मैं किसको दू

वो- मैं क्या जानू कोई मर्ज़ है तो हकीम साहब को मिले दवा दारू करवाए

मैं- और जब कातिल सामने हो तो कहा जाये

मेरी बात सुनते ही उसके चेहरे का रंग उड़ गया और वो हसने लगी

फिर उसने अपने झोले से एक ताबीज लिया और मुझे देते हुए बोली- आपके लिए दुआ मांगी आज इसे बाँध लीजिये आपकी रक्षा करेगा

मैं- आप ही बाँध दो ना

वो मुस्कुराई और फिर बोली- धागा नहीं है मेरे पास

हाय रे ये मासूमियत

मैं- तो पढाई के अलावा आप क्या करती है

वो- कुछ नहीं घर के काम और कभी कभी गाने सुन लिया करती हु दिल करता है तो यहाँ आ जाती हु यहाँ जो शांति मिलती है तो रूह को अच्छा लगता है


मैं- वो तो है

वो- आप बताइए

मैं- कुछ नहीं पढाई के बाद घर के काम करता हु बापूसा की जमीन संभालता हु और आप ही की तरह गाने सुन लेता हु

वो- जुम्मन काका के लिए आपने पंचायत से बगावत कर ली हमने सुना

मैं- जाने दो ना क्या रखा इन बातो में

वो- आप सच में गरीबो के मसीहा है

मैं- आपको ऐसा लगता बाकि सब तो नालायक बोलते

वो- किसी दुसरे के लिए कौन इतना करता है रब्ब का बंदा और कहा मिलेगा आपके अलावा

मैं- इतनी भी तारीफ ना कीजिये कुछ कालापन भी है मुझमे

वो- हम सभी में कुछ ना कुछ कमी तो होती ना इसीलिए तो इन्सान है

उसकी बातो में जो सादगी थी सीधे दिल में उतरती थी बहुत अच्छा लग रहा था उसके साथ बाते करके जैसे की बस... अब मैं कहू तो क्या कहू

मैं- अब कब मिलोगी

वो- जब आप कहोगे

मैं- तो फिर जाओ ही नहीं

वो- जाना तो होगा ना पर इतना कह सकती हु की जल्दी ही मुलाकात होगी

मैं- कब , अब चैन नहीं मिलेगा

वो- तो आ जाना रास्ता आपको पता मंजिल आपको पता किसने रोका है

मैं- पक्का

वो- हां वैसे परसों शाम आपके खेतो की तरफ जाउंगी तो ........... वो बस मुस्कुरा दी

अब ये छोटी छोटी मुलाकाते ही हो सकती थी तो इसी से सब्र कर लिया कभी उसको जाते हुए देखते कभी उस ताबीज को जो वो हाथ में दे गयी थी उसके जाने के बाद भी पता नहीं कितनी देर बाद मैं वही पर रुका रहा हर चीज़ पता नहीं क्यों बड़ी प्यारी प्यारी लग रही थी

खैर, कब तक रुकते वहा घर आये तो देखा राणाजी की गाड़ी बाहर ही खड़ी थी मैं अन्दर आया घर में अजीब सी शांति थी मैं माँ के कमरे में गया तो एक डॉक्टर भी था

राणाजी- सहर से बड़े डॉक्टर बाबु को बुलवाया है इनका कहना है की तुम्हारी माँ सा को बड़ा सदमा लगा है उनका विशेष ख्याल रखना होगा वर्ना लकवा भी मार सकता है हमने व्यवस्था की है की एक नर्स सदा इनके पास रहे और डॉक्टर साहब से भी अनुरोध किया है की हर तीसरे दिन आकार इन्हें देख ले

मेरा तो दिमाग ही घूम गया ये सुनकर आँखों से दो बूंद पानी निकल कर कब निचे गिर गया पता ही नहीं चला मैं वहा से बाहर आकर बैठ गया और खुद को कोसने लगा ये जो भी हो रहा था इसका जिम्मेदार मैं ही तो था इस मोड़ पर मुझे अपनों का ही तो साथ सबसे जरुरी था और अपने ही इस हाल में थे मेरी वजह से तभी किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा मैंने देखा भाभी थी

वो- नाश्ता लगा दू

मैं- नहीं भाभी

वो- क्या हुआ दुःख हो रहा है पहले कभी सोचा नहीं ना पर कोई बात नहीं जिंदगी में कभी ना कभी तो ये सब सीखना ही था

मैं- ताना मत मारो भाभी

वो- ताना नहीं मार रही सचाई बता रही हु अगर अपनी नजरो से ठाकुर होने के अहंकार का चश्मा हटा कर देखोगे तो तुम्हे एक बुढा बाप एक लाचार माँ जो बिस्तर पर पड़ी है और के आधी विधवा भाभी दिखेगी, ऐसे क्या देख रहे हो फौजी की घरवाली आधी विधवा ही हो होती है और ऊपर से ठाकुरों की बहु

भाभी की वो हंसी- मेरे कलेजे पर चोट कर गयी

वो- कुंदन तुम्हारे भाई जब भी यहाँ से अपनी ड्यूटी पर जाते है हमेशा मुझ से कह कर जाते है की इसका ध्यान रखना भाभी बन कर नहीं इसकी मा बनकर इसे देवर नहीं बेटा समझना मेरा भाई थोडा कम अकाल है नादाँ है पर दिल का साफ है और तुमने भी मुझे हमेशा भाभी नहीं भाभी माँ समझा छोटी से छोटी बात बताई पर कुंदन कभी कभी हमसे कुछ ऐसा हो जाता है की वो सबकी जिंदगी पर असर डालता है

मैं- भाभी आपकी हर बात आपका हर उलाहना सर माथे पर पर मैं मजबूर हु ऐसा नहीं की ये सब मैंने किसी दवाब में चुना है पर शायद यही नियति चाहती थी मैं भी अन्दर ही अंदर घुट रहा हु जब मैंने राणाजी के कांपते हाथो को देखा जब आपके दिल की कांपती धडकनों को सुना पर भाभी अगर मैं ठाकुर कुंदन नहीं होता तो भी मैं ये ही करता

भाभी- मैं जानती हु और अब तू मेरी सुन जिसके लिए तू ये कर रहा है मैं उस से मिलना चाहती हु

मैं- भाभी आप बात को घुमा फिरा कर यही क्यों ले आती है

वो- क्योकी मैं देखना चाहती हु की वो कौन है जिसने तुम्हे इतना बदल दिया है हम भी तो देखे की किसका जादू तुम पर इतना चढ़ गया है
 
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