#33
वो- हट बदमाश चल मैं जाती हु चाय पीने का मन हो तो घर होकर जाना
मैं- थोडा और रुक जा
वो- नहीं अभी पशुओ का भी ध्यान रखना पड़ता है फिर घर पे थोडा बहुत काम करुँगी मिलती हु बाद में
वो थोडा सा आगे गयी थी और फिर उसने अपनी सलवार ऊँची करके अपने पैर मुझे दिखाई उनमे वही पायल थी तो हम दोनों ही मुस्कुरा दिए बस देखते रहे उसको अपने से दूर जाते हुए उसके बाद करीब घंटे भर और काम किया फिर औजारों को उस टूटे कमरे में रखा और फिर कपड़ो को झाड कर साफ़ करके ली अपनी साइकिल और वापसी की तयारी करने लगे
कपडे ज्यादा ही गंदे हो जाते थे तो सोचा की कुछ कपड़े पूजा के घर रख देता हु लाकर हां यही सही रहेगा उसके बाद पहुच गया सीधा उसके घर हाथ मुह धोया और लेट गया खाट पर कुछ देर बाद वो चाय ले आई
मैं- पूजा तू आएगी लाल मंदिर
वो- नहीं मेरा जी घबराता है
मैं- किसलिए
वो- मैं पहले ही नाराज हु तुझे इस मामले में अब और गुस्सा मत दिला
मैं- तू आएगी ना
वो- कहा ना नहीं
मैं- भरोसा नहीं मुझ पर
वो- खुद से ज्यादा भरोसा है पर डर भी लगता है
मैं- डर किसलिए
वो- कही तुझे कुछ हो गया तो
मैं- जब तू मेरे साथ है तो भला क्या हो सकता है मुझे
वो- चाय पि ठंडी हो रही है
उसकी निहारते हुए मैंने अपनी चाय ख़तम की
मैं- और बता
वो- कुछ नहीं बाकि सब तुझे पता ही है
मैं- कहा पता है तू बताती भी नहीं कुछ
वो- समय आएगा जब सब बता दूंगी
मैं- और समय कब आएगा
वो- उसकी मर्ज़ी जब आये तब आये चल अब तू जा मुझे नहाना है
मैं- तो नहाले मैं क्या मना कर रहा हु
वो- तो जा फिर
मैं- ना थोड़ी थकान हो रही है कुछ देर लेट जाता हु
वो- कुंदन तंग क्यों करता है
मैं- मेरा भी नहाने का मन है
वो- जा पहले तू नाहा ले
मैं- साथ नहाएगी
वो- चपल उतारू क्या
मैं- उतार ले
वो- शैतान कही के अब जा भी मुझे नहाना है
मैं उठा और पूजा के पास गया
मैं- मुझसे कैसा पर्दा
वो- कहा है पर्दा
मैं- तो जाने को क्यों कह रही हो कही तुम ये तो नहीं सोच रही की कुंदन तुम्हे नहाती को देख लेगा
वो- देख लेगा तो क्या होगा
मैं- फिर जाने को क्यों बोल रही
वो- बस ऐसे ही
मैं- तो थोडा प्यार से बोल हम तो जिन्दगी से चले जाए
“श्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह फिर ऐसा ना बोलना ” उसने मेरे होंठो पर ऊँगली रखते हुए कहा
मैं- तो फिर क्यों ये पर्दा
वो- मेरा जिस्स्म देखना चाहता है तू
मैं- नहीं तेरी रूह को महसूस करना चाहता हु जिस्म का क्या माटी है एक दिन रख हो जाए
वो और मैं क दुसरे के बेहद नजदीक खड़े थे उसकी सांसे हलकी सी भारी हो चली थी और कुछ ऐसा ही हाल मेरा था
वो- कुंदन क्या चाहता है तू
मैं- यही की तू नहाले कितनी बदबू आ रही है तुझसे
वो- हटबदमाश चल जा अब
हस्ते हुए मैं उसके घर से बाहर आया और उसने किवाड़ बंद किया मैं गाव की तरफ हो लिया शाम होने में थोडा टाइम था गाँव थोड़ी दूर ही रह गया था की रस्ते में मुझे वो ही छजे वाली दिखी अपनी सहेली के साथ उसने भी मुझे दूर से आते हुए देख लिया था तो उसने अपनी सहेली से कुछ कहा वो आगे हो गयी मैं भी साइकिल से उतर लिया
वो तो सीधा ही मुझ पर चढ़ गयी – क्या जरुरत थी आपको ऐसा करने की , फ़िल्मी हीरो हो क्या आप
मैं- क्या हुआ बताओ तो सही
वो- देखिये कितने मासूम बन रहे है जैसे कुछ पता नहीं हो क्या सारे गाँव में आपकी ही बात हो रही है आखिर क्या जरुरत थी , हमारा तो दिल ही बैठ गया जबसे ये मनहूस खबर सुनी
मैं- और दिल क्यों बैठ गया आपका
वो- आपको कुछ हो गया तो या खुदा माफ़ी तौबा तौबा
मैं- जब आपकी दुआए साथ है तो मुझे भला क्या होगा सरकार
वो मुस्कुरा पड़ी पर फिर से गुस्सा होते हुए बोली- आप वापिस आयेंगे ना
मैं- आपको ज्यादा पता इस बारे में
वो- कल पीर साहब की मजार पे आपका इंतजार करुँगी दोपहर को
मैं- पक्का आऊंगा
वो- अभी जल्दी है जाती हु
मैंने अपना सर हिलाया इससे मिलके साला दिल बड़ी तेजी से धड़क जाता था मेरा कही ना कही अब दिल कहता था कुंदन तू अकेला नहीं है तेरे भी अपने है जो थाम लेंगे तुझे जब भी तू गिरेगा घर आया तो सीधा माँ सा के पास गया भाभी और चाची वही थी
माँ- कहा गया था
मैं- जमीन पर
वो- आ बैठ पास मेरे
मैं बैठ गया
वो- मैं नाराज हु तुमसे
मैं सर निचे करके बैठ गया
माँ- जस्सी चंदा तुम रसोई में जाओ मुझे इससे कुछ जरुरी बात करनी है
जल्दी ही कमरे में बस हम दोनों थे
माँ- मैं नहीं जानती और न ही पूछूंगी की तूने ऐसा क्यों किया क्योंकि मैं जानती हु तेरी रगों में भी राणाजी का खून जोर मार रहा है पर इतना जरुर कहूँगी की मुझे मेरा बेटा वापिस चाहिए क्योंकि ये जिन्दगी मैंने जी है नो महीने मैंने तकलीफ उठाई है ताकि तू जी सके और मैं तुझसे अपनी वो ही जिन्दगी वापिस मांग रही हु , चाहे धरती- असमान एक करना पर मुझे मेरी जिंदगी चाहिए
मैं- माँ सा, कुंदन वापिस आएगा लाल मंदिर से
वो- बारह साल पहले तेरे पिता लाल मंदिर गए थे पर वहा से राणाजी वापिस आये हुकुम सिंह जी नहीं कुंदन तू अभी उस चीज़ से दूर है इसलिए नहीं समझता पर हम ने इस घर ने उस दर्द को महसूस किया है जब तेरे बापू सा जीत के आये तो पूरा गाँव खुश था ढोल नगाड़े बज रहे थे पर वो खुश नहीं थे वजह ना मैंने कभी पूछी ना उन्होंने बताई पर उसके बाद वो सिमट गए अपने आप में फिर कभी उन्होंने वो मनहूस चौनोती नहीं होने दी अपर हाय रे तक़दीर आज उनका ही बेटा ...........
मैं- आप आराम करे वर्ना तबियत फिर ख़राब हो जाएगी
वो- ह्हुम्म्म जस्सी को भेज जरा
मैं रसोई में गया और भाभी से कहा की माँ बुला रही है और फिर चाची की तरफ मुखातिब हुआ