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Incest दिल अपना प्रीत परायी Written By FTK (Completed)

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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#30

सब लोगो की नजर बस मुझे ही घुर रही थी मेरा दिल बहुत तेजी से कांप रहा था मेरी माँ की नजरे ऊपर से निचे तक मुझे जैसे तराश रही थी की बेटा इतनी रात को क्या कर आया पर राणाजी एक दम शांत खड़े थे जैसे की किसी नदी के किनारे पर ठहरा हुआ पानी पर ये जो सन्नाटा सा छा गया था ये बहुत जानलेवा था



माँ- चंदा बोल तो सही क्या कर आया ये



चाची- मैं क्या बोलू जीजी अप ही सुन लो इसके मुह से



“कुंदन तुम्हारी चाची सा क्या कह रही है हम सुनना चाहेंगे ” राणाजी ने बहुत शांत स्वर में अपनी बात कही थी पर फिर भी उनका प्रत्येक शब्द विस्फोट से कम नहीं था



मैं- वो ......... वो लाल मंदिर की चुनोती मैं उठाई है



ये सुनते ही माँ सा को जैसे चक्कर सा आ गया वो धम्म से ही आँगन में गिर पड़ी चाची और भाभी दौड़ी उनको सँभालने की मैं भी दुआ पर मेरा हाथ पकड कर रोक लिया मुझे राणाजी ने माँ सा को उनके कमरे में ल जाया गया और आनन फानन में वैध जी को बुलाया गया उन्होंने बताया की घबराने की बात नहीं है पर उनका जी बैठ गया है तो थोडा ध्यान रखे



राणाजी आंगन में ही बैठ गए कुर्सी डाल के मैं पास खड़ा रहा अन्दर माँ का हाल बुरा था बार बार वो बस रोये जा रही थी कलेजा मेरा भी फाटे जा रहा था पर मुह से बोल नहीं निकल रहे थे रात धीरे धीरे कट रही थी पर उसका वो सन्नाटा मुझे और डरा रहा पिताजी ने मुंशी जी को बुलाया और कुछ ही देर में आँखे मलते हुए वो राणाजी के सामने खड़े थे



राणाजी- मुंशी जी आप अभी शहर जाइये और पहले तार से ठाकुर इन्दर सिंह को खबर कीजिये की जितनी जल्दी हो छुट्टी लेकर घर आये और ये भी इत्तिला दीजिये की ठाकुर हुकम सिंह के आदेश की तुरंत पालना हो तार के साथ उसकी बटालियन में फ़ोन भी कीजिये



मुंशी- जी हुकुम



और वो तभी दो आदमियों के साथ सहर के लिए निकल गया



राणाजी- समय क्या हुआ है




मैं- सुबह के तीन बजे है सरकार



राणाजी- कुंदन जीप चालू करो हम आते है



मैंने बाहर आके जीप चालू की दरअसल मैं थोडा सा हैरान सा हो गया था राणाजी के रवैये को लेकर उन्होंने अभी तक मुझे कुछ भी नहीं कहा था बल्कि भैया को बुलाने के लिए मुनीम जी को शहर भेज दिया था खैर करीब पन्द्रह मिनट बाद जब वो हवेली से बाहर आये तो मैंने राणाजी को नहीं बल्कि किसी और को ही देखा हाथो में ना उनकी छड़ी थी ना आँखों पर वो सुनहरी फ्रेम वाली ऐनक ना हमेशा की तरह चमचमाते हुए सफ़ेद कपडे बल्कि एक बेहद पुराना सा कुरता और धोती पांवो में जुतिया जिन्हें शायद बरसो से नहीं पहना गया था



मैं जीप में ड्राईवर सीट पर बैठ ही रहा था की उन्होंने मना किया और खुद बोले- मैं चलाता हु
मैं पास बैठ गया और जीप गाँव की गलियों से होते हुए गाँव के बाहर जाते कच्छे रास्तो पर दौड़ने लगी मेरे जीवन में मैंने पहली बार उन्हें अपनी पसंदीदा फोर्ड गाड़ी के आलावा आज कोई दूसरी गाड़ी चलाते देखा था बार बार मैं सामने सडक और फिर राणाजी के चेहरे की और देखता जीप जिस रस्ते पर जा रही थी उस पर मैं बस एक हद तक ही गया था हम दोनों के बीच बेहद गहरी ख़ामोशी थी जिसे कोई भी अपनी तरफ से तोड़ने की कोशिश नहीं कर रहा था



करीब पौने घंटे या घंटे भर बाद गाड़ी का इंजन बंद हों से मैं अपने ख्यालो से बाहर आया मोसम में थोड़ी ठण्ड से थी मैं कुछ कांपने सा लगा और फिर राणाजी के पीछे पीछे चल पड़ा करीब दस मिनट हम पैदल चले और फिर उस अंधरे में मैंने जो देखा बस देखता ही रह गया मेरे सामने एक मैदान सा था जैसे कोई अखाडा हो जहा थोड़ी थोड़ी दूर मशाले जल रही थी



राणाजी आगे बढ़ने लगे तो मैं भी पीछे चल दिया कुछ बेशक ये मैदान सा था पर अब बहुत झाडिया और कांटे दार पेड़ से थे तो रस्ता बनाते हुए चलना पड़ रहा था जैसे ही हमने वो पार किया सामने एक बावड़ी सी थी जो सुखी पड़ी थी और उसके ठीक सामने से गुजरती वो सीढिया जो ऊपर पहाड़ी पर जा रही थी मैंने देखा ऊपर भी कुछ मशाले जल रही थी उनकी रौशनी जुगनुओ की तरह टिमटिमा रही थी



राणाजी- ये लाल मंदिर है बेटे



“बेटे, ” सुनकर दिल को बेहद सुकून सा पंहुचा वर्ना ऐसा लगता था की मुद्दते ही बीत गयी थी अपने पिता के मुह से य शब्द सुने हुए



मैंने हाथ जोड़ कर उस भूमि को प्रणाम किया और फिर राणाजी के चरणों में धोक दी



वो- कुंदन मैं ये नहीं पूछूँगा की तुमने ये बीड़ा अपने कंधो पर क्यों उठाया क्योकी तुम्हारी रगों म जो खून उबाल मार रहा है मुझे पता नहीं क्यों सूझ गया था की तुम ये दुस्साहसी अवश्य करोगे मैंने जब भी तुम्हारी इन नीली आँखों में देखा हमेशा मुझे वो दिखा जो मैं शायद नहीं देखना चाहता था बेटे


देखो अपने आस पास इस जगह को तुम्हे यहाँ पर गहरा सन्नाटा सुनाई दे रहा होगा पर मुझे यहाँ वो शोर सुनाई दे रहा है वो चीख-पुकार सुनाई दे रही है जो मेरे इन बूढ़े कानो के पर्दों को फाड़ रही है ऐसे ना देखो बेटे यहाँ कोई ठाकुर नहीं कोई सरपंच नहीं तुम्हारे सामने बैठा है तो बस एक बुढा बाप जो अपने कांपते घुटनों और इन निरीह आँखों से अपने अतीत को तुममे देख रहा है



वक़्त पता नहीं कब इतनी जल्दी बीत जाता है पता नहीं चल पता अभी कल की ही तो बात लगती है जब तुम मेरी ऊँगली पकड़ कर चलना सीख रहे थे और आज बेटा इतना बड़ा हो गया वो थोडा सा सरक कर मरे पास आये और बस हौले हौले मेरे बालो पर आना हाथ फेरने लगे आज मैंने पहली बार आने पिता को महसूस किया था आज राणाजी के हाथो में एक नरमी सी थी और आवाज बेहद सर्द जैसे कही दूर इ आ रही हो



कुंदन ये बावड़ी जहा हम बैठे है बल्कि ये पूरी जगह मुझसे बहुत जुडी है मेरा बचपन यहाँ बीता जवानी यहाँ बीती मैं यहाँ पहली बार तुम्हारे दादा जी के साथ आया था और फिर यही का होकर रह गया पता नहीं कितनी यादे जुडी है यहासे उन्होंने कुछ पल साँस लिया और फिर अपनी आँखों को साफ़ सा किया बेटे ये जो बावड़ी है ना इसकी खुदाई हमने अपने हाथो से की थी



शायद तुम्हे हमारी बाते समझ नहीं आ रही पर हमे लगा की एक पिता को उसके बेटे को कुछ बाते अवश्य बतानी चाहिए बल्कि हम तुम्हारे आभारी है की तुम्हारी वजह से हमारे अन्दर का वो पिता आज साँस ले पाया जो शायद झूठी चोधर में कही दब सा गया था



राणाजी की आवाज थोड़ी बाहरी सी होने लगी थी कांप सी रही थी तभी ऊपर किसी ने घंटा बजाय जो इशारा था की सुबह का पहला पहर शुरू हो गया है और राणाजी उठ गए उसी के साथ
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#31

मैं बस उनको खुद से दूर जाते देखते रहा जबतक की वो उस घंटे तक ना पहुच गए जो ऊपर जाती सीढियों के पास उस बड़े से पेड़ के निचे लगा था तन्न्न तन्न्न की आवाज दूर दूर तक गूंजने लगी कुल सात बार उन्होंने उसे बजाया और फिर वापिस मेरे पास आगये मैं समझने की कोशिश कर रहा था की आखिर वो क्या रहा है और वो मुझे लाल मंदिर क्यों लेके आये है उन्होंने मुझे इशारा किया तो मैं दौड़ कर गया

वो- कुंदन ये जो मैदान सा देख रहे हो माथे से लगाओ इसकी मिट्ठी इसमें सच्चे इंसानों का खून है उनकी वीरता की गाथा महसूस होगी तुम्हे

मैंने उस मिटटी को गले से लगाया कुछ गरम सी लगी वो पिताजी की बातो से लग रहा था की लाल मंदिर की चुनौती को हमेशा से ही शौर्य और गर्व वीरता से जोड़ा गया था पर ना मैं योधा था ना मैं वीर और न मुझे शौक था इस परंपरा को आगे बढ़ने का मुझे मतलब था पूजा के सम्मान की जिसे छीन ने की कोशिश अंगार ने की थी जो काम मैं उस दिन पूजा की कसम से ना कर पाया था वो मैं इस चुनौती से कर सकता था ऐया मुझे विश्वाश था

राणाजी – बेटे ज्यादा मेरे पास कहने को है नहीं तुम थोड़े में ही समझना दुनिया के और लोगो की तरह मेरी भी अब एक ही आस है की मुझ बूढ़े की अर्थी उसके बेटो के कंधे पर जाए , मैं नहीं चाहता की मैं अपने बेटे को कंधा दू तो मेरी इतनी लाज रखना तुम
ये कह कर राणाजी ने मेरे आगे अपने हाथ जोड़ दिए सच में ही थोड़े में बहुत कुछ कह गए थे वो मैंने जिंदगी में पहली बार उस दिन उनकी आँखों में नमी देखि जिस इन्सान का हर शब्द क आदेश होता था आज वो मेरे सामने हाथ जोड़े खड़ा था मैं तो शर्म से ही मर गया मैंने बस अपने पिता के पाँव पकड़ लिए

तभी किसी के आने ही आहात हुई तो हमारा ध्यान उस और गया एक पुजारी सा आदमी चला आ रहा था

पुजारी- वीरो के वीर ठाकुर हुकम सिंह जी सात बार घंटा बजते ही मैं समझ गया था की आज सरकार खुद यहाँ आ पहुचे है तो आज माता की याद आ ही गयी

राणाजी- माता को तो पल पल याद किया है पर बस नफरत सी हो गयी थी यहाँ से पुजारी जी

वो- मैं समझता हु राणाजी

राणाजी- बाकि मेरे आने का कारण तो आप समझ ही गए होंगे

पुजारी- निसंदेह, परन्तु मैं चकित हु की ठीक बारह साल बाद आखिर ऐसी क्या वजह हो गयी जबकि आपने स्वयं कहा था की अब कोई चुनौती नहीं होगी न कोई देगा ना कोई स्वीकार करेगा

राणाजी- कदापि हम नहीं आते परन्तु परिस्तिथि इस प्रकार हो गयी की हमारे संज्ञान के बिना चुनोती दी गयी और स्वीकार हुई अब स्वीकार चुनौती को पलट सके इतना साहस हममे नहीं

पुजारी- कौन है वो वीर देवगढ़ की तरफ से

राणाजी- ये हमारा छोटा बेटा ठाकुर कुंदन सिंह

पुजारी ने हैरानी से मेरी तरफ देखा और बोले- राणाजी गलत किया ये तो अनर्थ अहि और फिर अभी इसकी उम्र ही क्या है बाकि माता की मर्जी

राणाजी- पुजारी जी , आप जयसिंह गढ़ वालो के पास मुनादी करवाइए

पुजारी- उसकी आवश्यकता नहीं ठाकुर जगन सिंह कल आ चुके है यहाँ

बातो बातो में पता नहीं चला की भोर का सूरज दस्तक देने लगा था चारो और हल्का हल्का दिन निकलने लगा था रौशनी सी होने लगी थी और तभी मेरी नजर उसी मैदान के बीचो बीच एक स्तम्भ पर पड़ी जो शायद चार- पञ्च फूट ऊँचा होगा कभी सफ़ेद रहा होगा पर अब काई लगी थी और उसके बीच में धंसी थी एक तलवार

मैं- वो क्या है

पुजारी- अपने पिताजी से पूछो

मैंने राणाजी की तरफ नजर की तो वो बोले- ये विजेता की तलवार है हर बार जितने वाला अपनी तलवार यही छोड़ जाता है ताकि उसकी विरासत कोई और संभाले

मैं- पर ये किसकी है

पुजारी कुछ बोलने ही वाला था तो पिताजी बोले- छोड़ो इन बातो को हम जरा माता के चरणों में शीश नवाज के आते है तुम आस पास नजर डाल लो और ज्यादा दूर जाना नहीं

पिताजी के जाते ही मैं उस स्तम्भ के पास गया और उसको देखने लगा खून के कुछ धब्ब आज भी उस पर और उस तलवार पर भी खून सुखा हुआ था तभी मुझे वहा पर कुछ निचे एक तलवार और दिखी

मैं- पुजारी जी दो दो विजेता

वो- नहीं ये निचे वाली तलवार विजेता की है और ऊपर वाली हारने वाले की

मैं- हारने वाले की

वो- कुनदन हां उस हारने वाले की जो हारकर भी अमर है और विजेता भी दरअसल उस दिन विजेता तो बस एक था पर हार हुई थी मित्रता की दो तन एक मन हार गए थे उस दिन सच कहू तो कभी कभी यकीन नहीं होता खैर, सब समय का दोष है

मैं – मैं कुछ समझा नहीं पुजारी जी

वो- समझना ही क्या बस नियति है जैसे तुमने चुना उन्होंने भी चुना था

मैं- ये विजेता की तलवार किसकी है

वो- ठाकुर हुकुम सिंह जी की तुम्हारे पिता की

जैसे ही पुजारी के मुह से वो शब्द निकले मेरे पैरो के नीची से जमीन ही निकल गयी बारह साल पहले मेरे पिता ने चुनौती जीती थी पता नहीं वो मेर लिए गर्व का क्षण था या आश्चर्य का पता नहीं कैसे कैसे जज्बात उमड़ आये मेरे मन में

मैं- और ये दूसरी तलवार किसकी है


“है एक सच्चे इन्सान की जो आज भी मुझमे जिन्दा है ” राणाजी ने हमारी तरफ आते हुए कहा
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Ye talwar 12 sal pahle huye jung ki hai shayad wah pooja ka pita ho jo hara tha
 

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#32

राणाजी- पुजारी जी आवश्यक तैयारिया जल्दी से करवाइए क्योंकि बरसात का महिना है ऊपर से अमावस के भी कुछ दिन है हम कुछ आदमी भेज देते है आपकी सहायता हेतु बाकि आप हमे सूचित करते रहे



फिर उनहोंने मुझे लिया और वापिस चलने लगे



पुजारी- राणाजी पुत्र को माता के दर्शन नहीं करवाए



राणाजी- जीतेगा तो स्वयं कर लेगा



मैंने अपने हाथ पर एक दाब सी महसूस की जैसे मेरे सीने पर किसी ने बहुत बड़ा पत्थर रख दिया हो उसके बाद हम घर आ गए मैं अपने कमरे में आया ही था की तभी दनदनाती हुई भाभी भी आ गयी और खेच कर दो चार थप्पड़ चेप दिए और फिर मुझे पाने सीने से लगा कर रोने लगी



सुबकते हुए बोली- क्यों किया ऐसा तुमने



मैं- पता नहीं



वो- क्या पता नहीं जानते हो तुम्हारी इस हरकत की वजह से घर में कैसी मुर्दानगी सी छा गयी है माँ सा को देखो बस रोये जा रही है देखो मेरा कलेजा कैसे कर रहा है भाभी ने मेरा हाथ अपनी छाती पर रख दिया मैंने हाथ हटा लिया



मैं- भाभी माँ के पास जाओ उनको आपकी जरुरत है



भाभी- और तुम्हे



मैं- क्या फरक पड़ता है



वो- फरक पड़ता है कुंदन फरक पड़ता है और नहीं पड़ता तो मेरी आँखों में देख कर कहो तुम यु नजरे क्यों झुकी है तुम्हारी या फिर सारी दुनिया की तरह भाभी भी परायी हो गयी है तुम्हारे लिए
मैं- ऐसे कड़े शब्द मत बोलो भाभी आपसे बढ़कर कौन है मेरे लिए


भाभी- तो फिर क्या वजह थी जो ये चुनोती उठा ली तुमने



मैं- वजह थी भाभी जायज वजह थी भाभी परन्तु मैं अभी आपके किसी सवाल का जवाब नहीं दे सकता परन्तु सही समय पर मैं आपको उस वजह से मिलवा दूंगा



भाभी- लड़की का मामला है ना मैं समझ तो पहले ही गयी थी की देवर जी के कदम बहक रहे है परन्तु बात यहाँ तक पहुच जायेगी ये नहीं पता था



मैं- भाभी ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा आप सोच रहे हो



भाभी- तुम नहीं समझते हो कुंदन हार-जीत जो भी हो पर तब तक अब हम सब पल पल मरेंगे हर लम्हा डर में जियेंगे हम तुमने बहुत गलत किया है और तुमको अर्जुन गढ़ जाने की जरुरत ही क्या थी जब गाँव का हर इन्सान जानता है की हमारा और उनका आना जाना नहीं है फिर तुम्हे क्या आवश्यकता पड़ गयी कुंदन काश तुम्हारे भैया होते तो कान पकड़कर लताड़ लगाते जब काबू आते तुम
मैं- आ मार लो भाभी आपका मन हलका हो जायेगा



भाभी- बेशरम



मैं- क्या आपको अपने कुंदन पर भरोसा नहीं



वो- भरोसा है पर दिल भी तो घबराता है कमजोर जो है



मैं- भूख लगी है खाना दो



वो- रसोई में जाके ले ले मुझे क्या कहता है



भाभी बहुत ज्यादा गुस्से में थी पर मैं आखिर बताता तो क्या बताता पूजा का जिक्र करते ही हर चीज़ बतानी पड़ती मुझे जो मैं चाहता नहीं था क्योंकि फिर बात और बिगडती रसोई में आकार मैंने जैसे तैसे दो रोटिया खायी और माँ सा के कमरे के पास गया तो देखा वो सो रही थी चंदा चाची और भाभी वही बैठी थी राणाजी घर पर नहीं थे मैंने अपने साइकिल उठाई और गाँव से निकल कर जमीन की और चल दिया



रस्ते में पूजा के घर देखा ताला लगा था तो मैं जमीन पर गया सोचा भूद बाले हिस्से को समतल किया जाये पहले तो मैंने लोहे वाला हल लिया और उसको घसीटते हुए वहा गया पर समस्या थी यहाँ भी मुझे बैल चाहिए थे जो मिल नहीं सकते थे कुछ सोच कर मैंने अपने आप को बैल की जगह लगाया और उस भारी हल को टेक लिया अपने कंधो पर , परन्तु ये बहुत ही मुश्किल काम था पर कोशिश तो करनी ही था माटी तो हमेशा ही पसीने का मोल मांगती ही है



पर दो कदम चलना ही जैसे मुश्किल हो गया पर मुझे हार नहीं माननी थी किसी भी कीमत पर नहीं मैंने और जोर लगाया पैर भारी होने से लगे गले का थूक सूखने लगा पर कुंदन यहाँ हार गया तो अंगार से कैसे भिड़ेगी सोच पल पल अंगार तेरे सामने है मेरी अंतरात्मा ने कहा मुझे मैंने फिर कोशिश की और एक छोर से दुसरे जहा तक भूद थी खीच लाया हल को



होंठो पर मुस्कान आई तो होंसला मिला आधा घंटा भर हुआ ही था की मैंने पूजा को अपनी तरफ आते हुए देखा जैसे ही वो मेरे पास आई हल के दुसरे पाले को उसने अपने कंधे पर लिया और बोली- चल कुंदन



मैं- पूजा रहने दे लग जाएगी



वो- आजा ना कुंदन इतना तो हक़ है ही ना



बस उसकी यही बात मेरे दिल को छू जाती थी वो मुस्कुराई और आगे बढ़ने लगी उसके आने से मेरा बोझ आधा हो गया था और विश्वास दुगना बढ़ गया था जैसे बदन में एक नयी उर्जा का संचार हो गया था बहुत देर हम कोशिश करते रहे पर ये काम ट्रेक्टर से होता उसके बाद हल चलता तो ठीक रहता हार कर हम दोनों कुवे के चबूतरे पर बैठ गए



पूजा ने अपने झोले से पानी की बोतल ली और मुझे देते हुए बोली – पानी पीले



मैंने बोतल अपने होंठो से लगायी और पीने ;लगा और फिर चबूतरे पर ही लेट गया



वो- मुझे विश्वास है कुंदन तेरी फसल यहाँ जरुर लहलहाए गी



मैं- पर पहले जमीन समतल हो पूजा



वो- हो जाएगी कुंदन मैं जितना हो सकेगा तेरी मदद करुँगी तुझे ट्रेक्टर चाहिए ना तू चिंता मत कर मुझे दो दिन का समय इ तुझे या जमीन समतल मिलेगी



मैं – पर पूजा



वो- अर्जुन गढ़ की ठकुरानी हु इतना तो कर ही सकती हु



जिस तरीके से उसने कहा था बस फिर मैं कुछ कह नहीं पाया उसको


वो- रोटी खायेगा लाल मिर्च का आचार है



मैं- खा लूँगा



उसके बाद कुछ देर हमने खाना खाते हुए बात की और फिर थोड़ी मेहनत और की उसने ये भी कहा की वो कुवे को भी साफ करवा के फिरनी लगवा देगी ताकि पानी निकालने में दिक्कत ना हो वो मेरी इतनी मदद कर रही थी मैं दब गया था उसके इस अहसान के निचे आखिर मेरा और उसका ऐसा क्या रिश्ता था जो हम एक दुसरे को इस तरह समझते थे जैसे की पता नहीं कितने बरसो का साथ हो मैंने देखा वो खेत में ही बैठे हुए मुझे देख रही थी



मैं- क्या देख रही है ऐसे



वो- तुझे



मैं- क्यों



वो- एक बात पुछु कुंदन



मैं- बोल



वो- तेरा किसी लड़की से कुछ है क्या


मैं- मतलब



वो- उस दिन तेरे कपड़ो से मुझे पायल मिली थी



मैं- अच्छा वो , वो तो तेरे लिए ली थी मैंने



वो- मेरे लिए भला क्यों



मैं- अरे तू भी ना, उस दिन वो काकी मंदिर के बाहर सामान बेच रही थी वो पीछे पड़ गयी तो लेनी पड़ी



वो- मना भी कर सकता था तू



वो- अब काकी ने बात ही ऐसी बोली की लेनी पड़ी



वो- क्या



मैं- यही की वो जो लड़की अन्दर गयी है उसी के लिए ले ले



वो- अच्छा जी पर आखिर मैं तेरी लगती ही कौन हु तूने उसके ऐसे कहते ही ले ली



मैं उसके पास गया और धीरे से उसके कान में बोला- सबकुछ ................
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#33

वो- हट बदमाश चल मैं जाती हु चाय पीने का मन हो तो घर होकर जाना

मैं- थोडा और रुक जा

वो- नहीं अभी पशुओ का भी ध्यान रखना पड़ता है फिर घर पे थोडा बहुत काम करुँगी मिलती हु बाद में
वो थोडा सा आगे गयी थी और फिर उसने अपनी सलवार ऊँची करके अपने पैर मुझे दिखाई उनमे वही पायल थी तो हम दोनों ही मुस्कुरा दिए बस देखते रहे उसको अपने से दूर जाते हुए उसके बाद करीब घंटे भर और काम किया फिर औजारों को उस टूटे कमरे में रखा और फिर कपड़ो को झाड कर साफ़ करके ली अपनी साइकिल और वापसी की तयारी करने लगे


कपडे ज्यादा ही गंदे हो जाते थे तो सोचा की कुछ कपड़े पूजा के घर रख देता हु लाकर हां यही सही रहेगा उसके बाद पहुच गया सीधा उसके घर हाथ मुह धोया और लेट गया खाट पर कुछ देर बाद वो चाय ले आई

मैं- पूजा तू आएगी लाल मंदिर

वो- नहीं मेरा जी घबराता है

मैं- किसलिए

वो- मैं पहले ही नाराज हु तुझे इस मामले में अब और गुस्सा मत दिला

मैं- तू आएगी ना

वो- कहा ना नहीं

मैं- भरोसा नहीं मुझ पर

वो- खुद से ज्यादा भरोसा है पर डर भी लगता है

मैं- डर किसलिए

वो- कही तुझे कुछ हो गया तो

मैं- जब तू मेरे साथ है तो भला क्या हो सकता है मुझे

वो- चाय पि ठंडी हो रही है

उसकी निहारते हुए मैंने अपनी चाय ख़तम की

मैं- और बता

वो- कुछ नहीं बाकि सब तुझे पता ही है

मैं- कहा पता है तू बताती भी नहीं कुछ

वो- समय आएगा जब सब बता दूंगी

मैं- और समय कब आएगा

वो- उसकी मर्ज़ी जब आये तब आये चल अब तू जा मुझे नहाना है

मैं- तो नहाले मैं क्या मना कर रहा हु

वो- तो जा फिर

मैं- ना थोड़ी थकान हो रही है कुछ देर लेट जाता हु

वो- कुंदन तंग क्यों करता है

मैं- मेरा भी नहाने का मन है

वो- जा पहले तू नाहा ले

मैं- साथ नहाएगी

वो- चपल उतारू क्या

मैं- उतार ले

वो- शैतान कही के अब जा भी मुझे नहाना है

मैं उठा और पूजा के पास गया

मैं- मुझसे कैसा पर्दा

वो- कहा है पर्दा

मैं- तो जाने को क्यों कह रही हो कही तुम ये तो नहीं सोच रही की कुंदन तुम्हे नहाती को देख लेगा

वो- देख लेगा तो क्या होगा

मैं- फिर जाने को क्यों बोल रही

वो- बस ऐसे ही

मैं- तो थोडा प्यार से बोल हम तो जिन्दगी से चले जाए

“श्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह फिर ऐसा ना बोलना ” उसने मेरे होंठो पर ऊँगली रखते हुए कहा

मैं- तो फिर क्यों ये पर्दा

वो- मेरा जिस्स्म देखना चाहता है तू

मैं- नहीं तेरी रूह को महसूस करना चाहता हु जिस्म का क्या माटी है एक दिन रख हो जाए

वो और मैं क दुसरे के बेहद नजदीक खड़े थे उसकी सांसे हलकी सी भारी हो चली थी और कुछ ऐसा ही हाल मेरा था

वो- कुंदन क्या चाहता है तू

मैं- यही की तू नहाले कितनी बदबू आ रही है तुझसे

वो- हटबदमाश चल जा अब

हस्ते हुए मैं उसके घर से बाहर आया और उसने किवाड़ बंद किया मैं गाव की तरफ हो लिया शाम होने में थोडा टाइम था गाँव थोड़ी दूर ही रह गया था की रस्ते में मुझे वो ही छजे वाली दिखी अपनी सहेली के साथ उसने भी मुझे दूर से आते हुए देख लिया था तो उसने अपनी सहेली से कुछ कहा वो आगे हो गयी मैं भी साइकिल से उतर लिया

वो तो सीधा ही मुझ पर चढ़ गयी – क्या जरुरत थी आपको ऐसा करने की , फ़िल्मी हीरो हो क्या आप

मैं- क्या हुआ बताओ तो सही

वो- देखिये कितने मासूम बन रहे है जैसे कुछ पता नहीं हो क्या सारे गाँव में आपकी ही बात हो रही है आखिर क्या जरुरत थी , हमारा तो दिल ही बैठ गया जबसे ये मनहूस खबर सुनी

मैं- और दिल क्यों बैठ गया आपका

वो- आपको कुछ हो गया तो या खुदा माफ़ी तौबा तौबा

मैं- जब आपकी दुआए साथ है तो मुझे भला क्या होगा सरकार

वो मुस्कुरा पड़ी पर फिर से गुस्सा होते हुए बोली- आप वापिस आयेंगे ना

मैं- आपको ज्यादा पता इस बारे में

वो- कल पीर साहब की मजार पे आपका इंतजार करुँगी दोपहर को

मैं- पक्का आऊंगा

वो- अभी जल्दी है जाती हु

मैंने अपना सर हिलाया इससे मिलके साला दिल बड़ी तेजी से धड़क जाता था मेरा कही ना कही अब दिल कहता था कुंदन तू अकेला नहीं है तेरे भी अपने है जो थाम लेंगे तुझे जब भी तू गिरेगा घर आया तो सीधा माँ सा के पास गया भाभी और चाची वही थी

माँ- कहा गया था

मैं- जमीन पर

वो- आ बैठ पास मेरे

मैं बैठ गया

वो- मैं नाराज हु तुमसे

मैं सर निचे करके बैठ गया

माँ- जस्सी चंदा तुम रसोई में जाओ मुझे इससे कुछ जरुरी बात करनी है

जल्दी ही कमरे में बस हम दोनों थे

माँ- मैं नहीं जानती और न ही पूछूंगी की तूने ऐसा क्यों किया क्योंकि मैं जानती हु तेरी रगों में भी राणाजी का खून जोर मार रहा है पर इतना जरुर कहूँगी की मुझे मेरा बेटा वापिस चाहिए क्योंकि ये जिन्दगी मैंने जी है नो महीने मैंने तकलीफ उठाई है ताकि तू जी सके और मैं तुझसे अपनी वो ही जिन्दगी वापिस मांग रही हु , चाहे धरती- असमान एक करना पर मुझे मेरी जिंदगी चाहिए

मैं- माँ सा, कुंदन वापिस आएगा लाल मंदिर से

वो- बारह साल पहले तेरे पिता लाल मंदिर गए थे पर वहा से राणाजी वापिस आये हुकुम सिंह जी नहीं कुंदन तू अभी उस चीज़ से दूर है इसलिए नहीं समझता पर हम ने इस घर ने उस दर्द को महसूस किया है जब तेरे बापू सा जीत के आये तो पूरा गाँव खुश था ढोल नगाड़े बज रहे थे पर वो खुश नहीं थे वजह ना मैंने कभी पूछी ना उन्होंने बताई पर उसके बाद वो सिमट गए अपने आप में फिर कभी उन्होंने वो मनहूस चौनोती नहीं होने दी अपर हाय रे तक़दीर आज उनका ही बेटा ...........

मैं- आप आराम करे वर्ना तबियत फिर ख़राब हो जाएगी

वो- ह्हुम्म्म जस्सी को भेज जरा

मैं रसोई में गया और भाभी से कहा की माँ बुला रही है और फिर चाची की तरफ मुखातिब हुआ
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Aisa kya hua tha 12 sal pahle jo jitkar bhi har gaye hukum
 

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kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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#34

चाची- कहा था पुरे दिन से

मैं- जमीन पे गया था वो भी तो करना है मुझे

वो- इतने में भी कैसे कर लेता है

मैं- कहो तो आपको प्यार भी कर लू कल मौका दिया नहीं आपने

वो- मेरी तो जान जल रही है और तू मजाक कर रहा है

मैंने चाची के गालो पर एक पप्पी ली और बोला चाची जबसे आपके साथ किया है सुलग रहा हु फिरसे करने को और अप हो के दुरी बनाये हुई हो ये भी क्या बात हुई

वो- और जो तूने परेशान किया

मैं- अब कर लेने दो क्या पता फिर रहे न रहे

चाची- मैं थप्पड़ मारूंगी जो ऐसे फिर बोला पता नहीं क्या मजा आता है तुझे हम सब का जी जलाने में

तभी भाभी आ गयी और बोली- चाची माँ सा ने कहा है की आज राणाजी घर पर नहीं है तो मैं उनके साथ उनके कमरे में सो जाऊ और आप यही कुंदन के साथ रहना क्या पता रात को तबियत बिगड़ गयी तो आप यही के यही संभाल लेंगी और तू भी घर ही रहेगा आज

मैं- जी भाभी

मैं तो खुश हो गया था की चाची पूरी रात मेरे कमरे में दबा के चोदुंगा आज जब चाची भाभी के साथ वापिस जा रही थी मैंने धीरे से उसकी गांड सहला दी पर उसने पलट कर नहीं देखा मैं अपने कमरे में चला शाम कब रात में बदल गयी पता नहीं चला

फिर मुंशी जी आ गए उन्होंने कहा की तार भी कर दिया और टेलीफोन पर भी बात हो गयी जल्दी ही छोटे ठाकुर आ रहे है तो मुझे भी एक तसल्ली हुई और भाभी के चेहरे पर भी मुस्कान थी तो मैंने इशारो से उन्हें छेड दिया तो वो गुस्सा करने लगी पर वो गुस्सा प्यार भरा था खैर धीरे धीरे घर की बत्तिया बुझने लगी मैं चाची के घर ताला लगा ही आया था और फिर चाची मेरे कमरे में आई दरवाजा बंद किया

मैं- सब सो गए

वो- हाँ

मैंने चाची को अपनी बाहों में भर लिया और सीधा उसके होंठो को चूमने लगा


वो- दो मिनट रुक तो सही

मैं- ना अब नहीं रुकुंगा आज पूरी रात आपको बस प्यार करूँगा

और चाची की गांड को सलवार के ऊपर से ही दबाते हुए उसके रस से भरे होंठो को चूमने लगा चाची भी मेरा साथ देने लगी उसके होंठ खुलते गए और हमारी जीभ आपस में टकराने लगी उफफ्फ्फ्फ़ चाची बी तरह से मुझ से लिपट गयी और दीवानो की तरह चूमा-चाटी करने लगे हम बहुत देर तक बस होंठो की प्यास बुझाते रहे फिर मैंने उसके कपडे उतारे और कच्छी ब्रा में ही उसको पलंग पर पटक दिया और खुद भी नंगा हो गया

चाची की निगाह मेरे खड़े लंड पर ही थी मैं चाची के ऊपर लेट गया और उसको फिर से चूमने लगा वो अपना हाथ निचे ले गयी और लंड को मुट्ठी में भर लिया चाची के गरम हाथ को लंड पर महसूस करके मजा आ गया मैंने उसकी ब्रा को उतार दी और एक चूची को भीचते हुए दूसरी को मुह में ले लिया चाची बिस्तर पर तड़पने लगी मस्ती के मारे

जल्दी ही मैंने उसकी दोनों चुचियो को पि पि कर लाल कर दिया और चाची भी मेरे लंड को अपनी चूत पर कच्छी के उपर से ही घिस रही थी कमरे में जैसे तुफान सा आ गया था

मैं अपना मुह चाची के कान के पास ले गया और धीरे से बोला- पूरी रात चोदुंगा तुझे आज

चाची- चोद ले

मैं- कच्छी उतार दे

चाची ने अपनी गांड को थोडा सा ऊपर उठाया और फिर अपने उस आखिरी वस्त्र को भी उतार दिया कुछ देर होंठो को चूमने के बाद मैंने चाची की टांगो को चौड़ी की और अपने होंठो को उसकी चूत पर लगा दिया वो ही मदहोश करने वाली खुशबु मुझे पागल बहुत पागल कर गयी “पुच ” मैंने जैसे ही चूत की खाल को चूमा चाची का बदन हिलने लगा वो धीरे धीरे आह आह करते हुए अपने पैर पटकने लगी

मैंने अपनी दो ऊँगली चूत में घुसा दिया उर अन्दर बाहर करने लगा तो चाची की चूत और ज्यादा रस छोड़ने लगी जिसे मैं धीरे धीरे पीने लगा चाची की चूत का दाना बहुत नमकीन था जब मेरी खुरदरी जीभ उस पर रगड़ देती तो चाची की जैसे जान ही निकल जाती अब मैंने अपनी उंगलिया बाहर निकाल ली और चाची की चूत के अंदरूनी लाल हिस्से में अपनी जीभ को बार बार अन्दर- बाहर करने लगा चाची तो जैसे मस्ती के सातवे आसमान पर पहुच गयी थी

बार बार अपनी गांड को ऊपर निचे करते हुए वो चूत चुसाई का भरपूर मजा ले रही थी और मैं भी ये ही कोशिश कर रहा था की जितना हो सके उसकी चूत से वो मादक रस बाहर निकाल सकू वैसे भी चाची की चूत हद से ज्यादा रसीली थी और बहुत समय से बिना चुदी होने के कारण उसकी खूबसूरती और ज्यादा बढ़ गयी थी और फिर उसने खुद को सजाया संभाला ही कुछ इस तरह से था
अगले कुछ मिनट मैं बस चाची की चूत के रस को चाटता रहा पता नहीं कब वो अपने स्खलन की और बढ़ने लगी थी उसने अपनी टांगो को मेरे सर के आजू- बाजु लपेट लिया और अपना पूरा दवाब बनाते हुए झड़ने लगी चूत से टपकते उस सफ़ेद पानी को मैंने अपने गले में उतार लिया और फिर धम्म से वो बिस्तर पर पड़ गयी

पर हम तो अभी बाकि थे मैंने अपने लंड पर थूक लगाया और चाची की चूत से लगाके उसको धक्का मारा चाची अभी अभी झड़ी थी लंड के लिए तैयार नहीं थी पर अपना रुक पाना और मुशिकल था तो वो कराहती रही और मैंने लंड को जड तक अनदर कर दिया और चाची की टांगो को अपने कंधो पर रख कर उसे चोदने लगा वो धीरे धीरे अपनी झूलती चुचियो को दबाते हुए चुदाई का मजा लेने लगी

मेरा लंड हर धक्के पर चाची की चूत की गहराइयों में जा रहा था जिसे वो महसूस करके मस्ता रही थी कमरे में थप थप की आवाज आ रही थी पर चाची और मैं अपने जिस्म की आग को बुझाने में हद से ज्यादा डूब जाना चाहते थे अब मैंने चाची के पैर अपने कंधो से उतारे और निचे करने चोदने लगा चाची सी सी करते हुए मेरे लंड को ले रही थी

आपस में जिस्मो की रगड़ाई का मजा लेते हुए हम दोनों अपनी अपनी मंजिल की और बढ़ रहे थे वो तो एक बार पहले ही झड़ गयी थी तो उसको बहुत ज्यादा मजा आ रहा था मैंने अपने दांत चाची के गालो पर पर गड़ाने लगा पल पल मैं उसको बस पा लेना चाहता था अपनी आत्मा भरने तक और शायद वो भी ऐसा ही चाहती थी चाची का जिस्म एक बार फिर झटके खाते हुए झड़ने लगा था और अपना भी काम बस होने को ही था तो मैंने अपने लंड को बाहर खीचा और उसके पेट पर आपना वीर्य गिरा दिया


आपस में जिस्मो की रगड़ाई का मजा लेते हुए हम दोनों अपनी अपनी मंजिल की और बढ़ रहे थे वो तो एक बार पहले ही झड़ गयी थी तो उसको बहुत ज्यादा मजा आ रहा था मैंने अपने दांत चाची के गालो पर पर गड़ाने लगा पल पल मैं उसको बस पा लेना चाहता था अपनी आत्मा भरने तक और शायद वो भी ऐसा ही चाहती थी चाची का जिस्म एक बार फिर झटके खाते हुए झड़ने लगा था और अपना भी काम बस होने को ही था तो मैंने अपने लंड को बाहर खीचा और उसके पेट पर आपना वीर्य गिरा दिया
 

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चाची ने मेरे वीर्य को साफ़ किया और मैं बगल में लेट गया चाची के पैर पर अपना पैर रख के वो भी मुझसे लिपटने लगी एक जोरदार चुम्बन के बाद हमने चादर ओढ़ ली और बात करने लगे

मैं- कितनी गरम है तू मेरी जान

वो- चाची से सीधे जान

मैंने एक ऊँगली उसकी चूत में दे दी और बोला- जान नहीं है क्या

वो- अब तू कुछ भी कहले

मैं- सच में चाची माल है तू तेरी लेने में बहुत मजा आता है एक आग है तेरे अन्दर

ये कहकर मैंने चूत से ऊँगली निकाली और चाची को बोला- मुह खोल देख चख कर तेरी चूत का पानी कितना मस्त है

वो- छि गंदे

मैंने वो ऊँगली चाची के होंठो पर फेरी थोडा रस उसके होंठो पर लगाया और फिर उसके होंठो पर जीभ फेरने लगा

मैं- देख कितना मस्त पानी है तेरा

चाची का चेहरा लाल होने लगा मेरी ये गन्दी बाते सुनकर उसने धीरे से मेरे लंड को पकड़ लिया

मैं- आज पूरी रात चुदेगी ना

वो कुछ ना बोली

मैं- बता ना

वो- हां

मैं- ऐसे नहीं कह चुदुंगी

वो- चुदुंगी

मैं- ये हुई ना बात चल अब घोड़ी बन और अपनी मस्तानी गांड दिखा मुझे

शर्माती हुई चाची घोड़ी बन गयी और मैं बस उसकी गांड को देखने लगा उफ़ कितने प्यारे चुतड थे उसके जैसे कोई धेरी हो मखमल की मैं आहिसता आहिस्ता से चाची के चूतडो पर हाथ फिराता रहा बीच बीच में मेरी उंगलियों ने चाची की गांड के भूरे छेद को भी छुआ तो चाची की गांड तेजी से हिलने लगी मैंने धीरे से गांड के छेद को चूम लिया और बोला- चाची तेरी गांड बहुत ही सुन्दर और प्यारी है जी करता है इसको भी चूमता रहू

चाची- किसी ने रोका है क्या तुझे ये बाण तेरा है जैसे चाहे प्यार कर मेरे राजा

उसकी ये बात सुनते ही मेरा जोश बढ़ गया मैंने दो उंगलिया चूत में डाल दी और चाची की गांड के छेद पर अपने होंठ रख कर चूमने लगा चाची के दोनों छेदों में हलचल होने से उसके बदन में भी तूफ़ान आने लगा उसके पैर कांपने लगे और गांड बुरी तरह से हिलने लगी मेरी जीभ तेज तेज उस छेद को चूम रही थी जैसे उसमे घुस जाना चाहती थी बहुत देर तक मैं ऐसा ही करता रहा इधर मेरे लंड में तेज ऐंठन होने लगी थी

मैं- चूतडो में डालू आज

वो- अभी नहीं यहाँ नहीं मेरे घर या कुवे प मौका दूंगी तुझे

मैंने अपने सुपाडे को पीछे से चूत पर लगाया और अन्दर धकेलने लगा तो चाची ने आहे भरते हुए अपनी गांड को पीछे कर लिया और एक बार फिर से हमारी चुदाई शुरू हो गयी चूतडो से लेकर उसकी पीठ और कंधो तक को सहलाते हुए मेरा लंड उसकी चूत में आतंक मचाये हुए था और जब मेरे हाथ उसकी चुचियो तक पहुचे तो कसम से मजा ही आ गया उसने अपने अगले हिस्से को थोडा सा उठा लिया जिस से मुझे चूची दबाने में सहूलियत होने लगी

कुछ देर ऐसे ही चोदने के बाद मैंने उसे फर्श पर उतार लिया और खड़े खड़े ही पीछे से उसको चोदना चालू किया मेरे हाथ उसकी चुचियो को कस कस के दबा रहे थे और होंठो उसकी गर्दन गालो पर अपना कमाल दिखा रहे थे हम दोनों धीमे धीमे सिस्कारिया भरते हुए चुदाई का दूसरा दौर खेल रहे थे चाची ने अपने हाथ पास रखी टेबल पर टिका लिए और गांड को पीछे उभार कर चुदाई करवाने लगी

मैं अब तेज तेज धक्के लगाने लगा था और वो भी मेरा पूरा साथ दे रही थी करीब आधे घंटे तक ये दौर चला उसके बाद एक बार फिर मैंने अपना पानी उसकी गांड पर गिरा दिया और बिस्तर पर पड़कर अपनी सांसे दुरुस्त करने लगा चाची ने मेरा वीर्य साफ किया और सलवार पहनने लगी

मैं- क्या हुआ

वो- पेशाब करने जा रही हु और जीजी को भी देख आऊ

उसने कपडे दुरुस्त किये और बाहर चली गयी मैंने भी चादर लपेटी और बाहर आ गया छत के कोने में ही मैने पेशाब किया करीब दस मिनट बाद वो भी आ गयी

मैं- क्या हुआ

वो- सब सही है सो रहे है

मैंने कुण्डी लगाई और तब तक वो कपडे उतार चुकी थी एक बार फिर हमारे नंगे जिस्म चादर में घुस चुके थे

वो- बाहर ठण्ड है

मैं- गर्मी दे दू

वो- गर्मी तो लुंगी ही

मैं- चाची एक बात कहू

वो- बोल

मैं- मैं चाहता हु की तू खुल के चुद मुझसे मतलब तेरी आग दिखा मुझे जला दे तेरी चूत की गर्मी में जैसे मैं तेरे होंठो को चूसता हु वैसे ही तू कर मेरे लंड पर बैठे तो जोश हो तुझमे

चाची- ठीक है तेरी ये इच्छा भी पूरी करुँगी पर आज नहीं अभी सो जा वर्ना सुबह उठ नहीं पाएंगे

मैं- एक बार और तो करने दे

वो- नहीं फिर उठ नहीं पाऊँगी अभी ऐसे ही चिपट जा मुझसे मेरी बाहों में सो जा

मैंने भी ज्यादा जोर नहीं दिया चाची के बदन से छेड़खानी करते हुए पता नहीं कब नींद आ गयी सुबह जाने से पहले चाची ने मुझे कपडे पहनने को कहा और फिर मैं कपडे पहन कर दुबारा सो गया पर नसीब में नींद कहा जल्दी ही भाभी ने झिंझोड़ दिया मैंने डूबती आँखों से देखा वो चाय लिए खड़ी थी तभी मेरा ध्यान मेरे लंड पर गया जो पूरी तरह से मेरे कच्छे में तना हुआ था और चादर में तम्बू सा बनाये हुए थे


भाभी की नजर भी उस पर पड़ी वो बस मुस्कुरा पड़ी और बोली- चाय टेबल पर राखी है पी लेना और बाहर जाने लगी मैं उसकी मटकती गांड को देखने लगा नहाने के बाद दोपहर तक मैं माँ सा के कमरे में ही रहा फिर मुझे याद आया की दोपहर बाद मुझे पीर साहब की मजार पर उस से मिलना है तो मैंने अपनी साइकिल उठाई और हो लिया उस रस्ते पर जो शायद मेरी मंजिल का था
 

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