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Adultery थोड़ा फ़साना ज़्यादा ज़िंदगानी

ranjkabeer

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थोड़ा फ़साना ज़्यादा ज़िंदगानी

हेल्लो दोस्तों, मैं अपनी ज़िन्दगी के कुछ अनुभवों को आपसे बाँट रहा हूँ। घटनाएं एकदम सच्ची हैं पर उनमें कल्पनाओं का थोड़ा सा तड़का भी दिया हुआ। बहुत ही थोड़ा सा। कुछ का पात्र मैं खुद हूँ और कुछ अपने आस पास के लोगों के अनुभवों का ब्यौरा है। कहानी पर अपनी राय ज़रूर दीजियेगा।
मैं एक नौकरीशुदा हूँ इसलिए वक़्त थोड़ा काम रहता है। हफ्ते में एक ही दिन अपडेट कर पाऊंगा। इसलिए थोड़ा सब्र रखियेगा।


रमेश आज 22 साल का हो चुका था. शाम बीतने को थी. सिगरेट के अंतिम कश के साथ ही उसने दोस्तों से विदा ली. आज उसे जल्दी घर पहुंचना था. भाभी ने उसके जन्मदिन पे अच्छा-सा खाना जो बनाया हुआ था. उसे अपनी भाभी काफी अच्छी लगती थी. इस उम्र में अपने से ज़्यादा उम्र कि महिलाओं के प्रति एक आकर्षण तो रहता ही है. उसका भी अपनी 35 साल की भाभी के प्रति आकर्षण बना हुआ था. इसकी शुरुआत कब हुई ये नहीं पता पर उसे भरा पूरा बदन देखना अच्छा लगने लगा था. उसकी भाभी भी भरे बदन वाली औरत और ग्रामीण परिवेश में पली बढीं थीं. एक बच्चा हो चुका था और भैया मिलेटरी में थे जो साल में केवल दो महीनों के छुट्टी में आते थे. भैया ने गाँव की ज़मीन बेच कर आगरा शहर में दो कमरे का एक घर बनवा लिया था ताकि बच्चे और रमेश की पढ़ाई ठीक से हो सके. वैसे भी माँ बाप की मृत्यु हो चुकी थी.
रमेश ने आज अपने कमरे से सटे बाथरूम के दरवाज़े में एक झिर्री को थोडा सा बड़ा किया था ताकि अपनी मादक भाभी के जिस्म के दर्शन नहाते हुए भी हो सकें. रास्ते भर भाभी के बारे में सोचता रहा. कल उसने पहली बार भाभी की चुचियों के दर्शन हुए थे. भाभी खाना देते हुए मेज़ पर झुकीं तो भरी-भरी बड़ी चुचियों की झलक पा गया. लग रहा था कि मानो ब्लाउज फाड़ कर बहार आ जायेंगी. भाभी की जांघे और चुतर भी काफी मोटे-मोटे थे. वो बड़े गले का छोटा ब्लाउज पहना करती थीं जिनसे उनकी पीठ का निचला हिस्सा नंगा दीखता था और चलतीं तो दोनों चुतड ऊपर नीचे होते थे जिन्हें देखकर पीछे से लिपटने का मन करने लगता था. भैया के दूर होने के कारण भाभी एक अकेलेपन की शिकार तो थीं हीं साथ ही शायद सेक्स की भरपाई भी नहीं कर पा रहीं थी.

रमेश ने ब्लू फिल्में भी खूब देखना शुरू कर दिया था. आज कल वो अपने ख्यालों में भाभी को याद करके मुट्ठ मारा करता था. उसने तय कर लिया था कि वो अपनी भाभी को बिस्तर पे ज़रूर ले कर आएगा. पर ये होगा कैसे उसे नहीं मालूम था. वो घर पहुंचा तो ८ बज चुके थे. भाभी रोटियाँ सेंक कर हाथ धुल रहीं थी. उनकी नंगी पीठ और चुतड देख कर रमेश का खून गर्म होने लगा. भाभी पलटीं "अरे आज जल्दी कैसे आ गए".? भाभी कि चुचियों को कनखी से देखते हुए रमेश ने जवाब दिया. "अरे भाभी रोज़ ही तो जल्दी आता हूँ और वैसे भी आज मेरा जन्मदिन है..और तुम्हारे हाथ का खाना....जल्दी क्यों न आता"! भाभी ने सभी के लिए खाना निकाला. खाना खा लेने के बाद अपने 8 वर्ष के बेटे को सुलाने के लिए बेडरूम में चली गयी. रमेश बैठा टी.वी. देखता रहा. मुन्ना को सुलाकर थोड़ी देर बाद भाभी भी आकर टी.वी. देखने बैठ गयी. मैं चैनल बदलता रहा. भाभी ने पूछा कैसा रहा आज नौकरी का दिन. "ठीक था". "तुम्हारे भैया इतना कम पैसा भेजते हैं कि महीने का खर्चा चलाना मुश्किल हो जाता है". "हाँ ये तो है....पर अब मैं हूँ न, आप को फिक्र करने की कोई ज़रुरत नहीं है". मैंने आश्वासन दिया, जबकि मैं जानता था कि भैया के भेजे पैसों से घर तो आराम से चल रहा था.
दरअसल भाभी को खरीदारी करने का बहुत शौक है, और वो भी खासकर, अपने लिए. उस खर्च की भरपाई भैया के पैसों से नहीं हो सकती थी. भाभी का रंग थोडा सावलें था, जिसके कारण वो तरह-तरह की क्रीम का इस्तेमाल करती थीं. कुल मिलाकर कहें तो उन्हें अपने रंग को लेकर कॉम्प्लेक्स रहता था. भाभी गाँव की थीं, तो शहरी चमक दमक उन्हें बहुत भाती थीं. शहर की हर चीज़ उनके लिए नयी थी. उनकी दोस्ती बगल में रहने वाली सुनीता भाभी से थी। सुनीता भाभी के पति अरब में रहते थे। सुनीता भाभी उन्हें शहरी तौर तरीके सिखा रही थीं. सुनीता खुद भी बला की खूबसूरत जिस्म की मालकिन थीं. भरे पूरे बदन और चुतड और चूचियां तो कहर ढाती थीं. उनके भी दो बच्चे थे.
मैंने भाभी से बातचीत आगे बढ़ाई. "भाभी अब मैं नौकरी करने लगा हूँ, आपको कोई भी ज़रूरत हो तो मुझसे कहियेगा" कहते हुए कनखियों से उनकी चुचियों को निहारा. "भाभी आपकी पीठ चेहरे और हाथ की से ज्यादा सांवली है. आपको इसके लिए कुछ करना चाहिए". मैं जानता था कि भाभी अपने रंग रूप के लिए कुछ न कुछ ज़रूर करेंगी. वे बोलीं "कल से मैं हल्दी का उपटन लगाया करुँगी, वो शायद फायदा करेगी". मैं उन्हें सेक्स की बातों की ओर ले जाना चाहता था लेकिन समझ में नहीं आ रहा था की ये कैसे करूँ. मैंने उनके अकेलेपन का फायदा उठाने की सोची. "भाभी आप वैसे काफी खूबसूरत हैं.
हूँ.....
भैया की कमी तो बहुत सालती होगी?"
पता नहीं कैसी नौकरी है! साल में कुछ ही दिन साथ रहते हैं....ऐसी नौकरी का क्या फायदा ऊपर से पैसे भी कम!
अरे भाभी मैं हूँ न...आपको कभी भी अकेलापन महसूस नहीं होने दूंगा....आप मेरी अच्छी दोस्त भी तो हैं न! आपको एक बात बताता हूँ! किसी से कहेंगी तो नहीं?
नहीं कहूँगी बताओ.
भाभी..मेरी स्कूल की एक दोस्त काफी दिनों से अपने घर बुला रही है....... मन तो बहुत है पर डर लग रहा है क्यूंकि मुझे कुछ आता जाता नहीं न।
इसमें आने जाने की क्या बात है...मिलो वो तुम्हे सब सिखा देगी. भाभी ने हँस कर कहा.
लेकिन भाभी वो कुछ करेगी तो क्या करूँगा?
अरे बुद्धू- तो तुम भी करना.
लेकिन कैसे मुझे तो आता नहीं. बताईये न कैसे करूँगा. मैंने जाल बिछा दिया था.
अरे वो सिखा देगी..
बताईये न भाभी...आप तो मेरी दोस्त की तरह है न..मेरी इतनी मदद नहीं करेंगी..
अरे तुम्हे सब पता है भोले न बनो...
बताईये न भाभी....
बी अफ नहीं देखते क्या?
मुझे थोडा आश्चर्य हुआ कि भाभी बी.एफ. के बारे में कैसे जानती हैं!
मैंने पूछा: भाभी आपने देखी है बी.एफ.
हाँ
कहाँ पे
अरे वो सुनीता के साथ देखी थी उनके घर पे.
कैसी लगी
छी...एक लड़की अकेले ही तीन-तीन लड़कों के साथ...
क्या कर रहा था..
अरे छोड़ो भी
बताईये न भाभी
तुमने भी तो देखी होगी?
हाँ...लेकिन बताईये न
क्या?
वही..क्या देखा?
भाभी थोडा असहज होने लगीं तो मैंने कहा
अरे भाभी इतना क्यों शर्मा रही हैं मैं आपका दोस्त हूँ की नहीं! मुझ से तो कह ही सकती हैं.
अरे लड़की ने आगे और पीछे ले रखा था और एक का मुंह में..
तो क्या हुआ
ऐसा नहीं हो सकता क्या?
पीछे से दर्द नहीं होता क्या? और फिर पीछे से कौन सा मज़ा आता है?
आपने कभी पीछे से करवाया है भाभी?
भाभी अब थोडा थोडा बातों में रस ले रही थीं. मैं बीच बीच में उनकी चुचियों को निहार ले रहा था.
भाभी ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया था.
मैंने फिर पूछा : बताईये न भाभी..
क्या बताऊँ
आपने कभी पीछे डलवाया है?
तुम्हारे भैया को तो न जाने क्यों पीछे करने में ही मज़ा आता है..मेरी तो जान ही निकल जाती है..भला पीछे से किसी को मज़ा आता है? मुझे तो नहीं आता.
लेकिन तीन लोगों से करवाने में तो मज़ा आता होगा न भाभी?
क्या पता. अच्छा अब बस करो सो जाओ.
क्यों नींद आ रही है क्या? मुझे तो नहीं आ रही है.
अरे तुम्हें कल आफिस भी तो जाना है!
चला जाऊँगा भाभी. अच्छा ये बताईये भैया तो आपको छोड़ते ही नहीं होंगे.
क्यों
अरे आप इतनी सेक्सी जो हैं
कहाँ...
और क्या इतनी सेक्सी हैं कि कोई थोड़ी देर के लिए भी नहीं छोड़ेगा.
लेकिन वो ज्यदातर पीछे से करते हैं तो मुझे मज़ा नहीं आता है.
फिर आपको कैसे करने में मज़ा आता है ?
भाभी को बात करने में मज़ा तो शायद आने लगा था पर मेरे साथ इस तरह की बातचीत कभी पहले नहीं हुई थी इसलिए संकोच और संशय में चुप बैठी रहीं...... मुझसे निगाह मिलाने से कतरा रही थीं।
बताइये न भाभी .... मैंने फिर पूछा
क्या बताऊँ? संकोच और शर्म से लाल हुए चेहरे को नीचे करते हुए वो बोलीं।
यही कि आपको कैसे करवाने में अच्छा लगता है ?
जैसे सब करते हैं वैसे ही। .. थोड़ा शर्म और झिझक से बोली।
मैं उनकी चूचियों को देखते हुए बोला - बताओ न भाभी मुझसे क्यों शर्मा रही हो, मैं तो सब बात कर लेता हूँ आप क्यों दर रही हो। बताओ न
भाभी कुछ देर चुप रही, शायद तय नहीं कर पा रही थी कि बोलें या नहीं।
मैंने दूसरा तरीका आज़माया पर थोड़ा झिझकते हुए क्यूंकि जो बातें करने और जानने की ओर भाभी को बढ़ाना था, उसके लिए थोड़ा गन्दी या मेरे नज़रिये से साफ़ साफ़ भाषा की ज़रूरत थी।
- अच्छा ये बताओ भाभी कभी नीचे का चुसवाया है?
भाभी थोड़ा रुकी और फिर संकोच भरे अंदाज़ में बोलीं, - कहाँ, मुझसे ही करवाते हैं वो कहाँ करते हैं।
मैंने पूछा - आपको अच्छा लगता है ?
- क्या?
- चूसना और चुसवाना ?
- पता नहीं
- बोलो न भाभी
भाभी कुछ नहीं बोलीं तो मैंने फिर कहा - बोलो न भाभी
वो धीमे से बोलीं - हाँ
- सुनीता के साथ तो आप बी एफ भी देख लेती हैं उनसे बात भी कर लेती होंगी तो मुझसे क्यों शर्मा रही हैं। मैं भी तो दोस्त ही हूँ भाभी और, हमारी आप की बात कहीं नहीं जायेगी। इतना क्यों शर्मा रही हैं।
मुझे वो उत्तेजना से भरी हुई नज़र आ रही थीं जो सामाजिक दबाव में खुद को जब्त किये हुए बैठी हुई थीं। भारी साँसों की वजह से चूचियों का गिरना उठना स्पष्ट नज़र आ रहा था। वो असमंजस की स्थिति मैं बैठी रही कुछ देर, फिर बोलीं कि चलो अब सो जाओ सुबह कॉलेज जाना होगा तुम्हे और सोनू को भी जल्दी उठाना है स्कूल के लिए। ये कहते हुए तेज़ी से अपने रूम की ओर बढ़ गयीं।


मेरे लिंग के लिए अब बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हो रहा था इसलिए मैंने बातचीत बंद करते हुए कहा
मैंने अपने कमरे कि लाइट बुझाई और भाभी को सोचते हुए मुट्ठ मारने लगा.

http://pzy.be/v/4/25350_107127119312347_2763492_n.jpg
मेरी भाभी कुछ इस तरह के भरे हुए बदन की हैं.
 
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Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
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शानदार कहानी और शानदार शुरुआत।

बस कोशिश ये करियेगा की seduction ज्यादा हो तभी मज़ा ज्यादा आएगा।

अगले भाग की प्रतीक्षा में।
 
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ranjkabeer

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हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया माही
दरसअल घटनाक्रम भी वैसा ही हुआ था। seduction की लम्बी कोशिशों के बाद ही हम दोनों का जानवर अपना असली रूप ले पाया था। कोशिश रहेगी कि उसी तरतीब से चीज़ों को पेश कर पाऊं।

मेरी भाभी की कद काठी हूबहू इससे मिलती है बस फर्क ये है कि वो तीखे और चटक कलर्स पसंद करती हैं।
 
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कहानी की शुरुआत तो अच्छी हुई है आगे देखते है क्या क्या होता है अगले अपडेट का इंतजार रहेगा । आशा है अपडेट टाइम पर आते रहेंगे
 

ranjkabeer

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देरी के लिए आप सभी से दिल से माफ़ी। लिखना, काफ़ी समय और दिमाग़ी तौर पर थोड़ी फ़ुर्सत की डेमांड करता है। पेट के लिए नौकरी और उसका दबाव दोनों ही चीज़ों को प्रभावित करता रहता है। उम्मीद है आप समझेंगे मेरी परेशानियों को।
पेश है कहानी का दूसरा हिस्सा



जद्दोजहद

मैं रात भर भाभी के मांसल शरीर को महसूस करते हुए सोया। सुबह भाभी ने चाय के साथ जगाया. बच्चे को स्कूल के लिए तैयार कर चुकीं थीं. मैं कल रात की हुई बातचीत के निशाँ भाभी के चेहरे पर पढ़ने की कोशिश कर रहा था। हमेशा की तरह मैं बच्चे को बस तक पहुँचाने गया. वैसे तो मैं हमेशा सोनू को बस पर बैठा कर ही आता था...पर रात की बातचीत ने भाभी को नंगा देखने की चाहत को बढ़ा दिया था. दरअसल जिस दौरान मैं सोनू को बस तक छोड़ने जाता उसी दरमियान भाभी झाड़ू-पोछा करतीं थीं. मैंने सोनू को अन्य बच्चों के साथ खड़ा कर के कह दिया की आज तुम चले जाना.
मैं घर पंहुचा तो भाभी अपने कमरे में पोछा लगा चुकीं थीं. अब वो आगे वाले कमरे में पोछा लगाने ही जा रही थीं. मैं जाकर अपने बिस्तर पे बैठ गया और उनकी मस्त चुचियों को निहारने लगा. उन्होंने थोडा बड़े गले वाली मेक्सी पहन राखी थी जिसमें से सपष्ट नज़र आ रहा था की उन्होंने ब्रा नहीं पहन रखी है. वो वैसे भी सोते हुए ब्रा उतार देती थीं। मेरा खून गरम हो चूका था. भाभी इस बात से अनजान रोज़ की तरह अपना काम किये जा रही थीं.
उन्होंने पूछा रमेश आज कॉलेज से आते हुए मेरे लिए एक क्रीम लेते आओगे?
मैंने कहा हाँ क्यों नहीं. आप आज हल्दी वाला उपटन लगाने वाली थीं न.
हाँ दोपहर में लगाउंगी
अच्छा
मैं नहाने जा रही हूँ
ठीक है
जैसे ही बाथरूम के दरवाज़े के बंद होने कि आवाज़ सुनी मैं तुरंत उस दरवाज़े की कुण्डी वाले छेद से अंदर झाँकने की कोशिश करने लगा। मैंने उस कुण्डी का एक नट बोल्ट पहले ही निकाल दिया था। छेद में से झाँकने की कोशिश की तो कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, बस कभी नंगे बदन का बहुत ही छोटा सा हिस्सा दिख जाता. मुझे बड़ी उलझन महसूस हुई. आकर अपने कमरे में बैठ गया. थोडा कमरे की स्थिति के बारे में बताता हूँ ताकि आपको visulise करने में आसानी हो. हमारे तीन कमरों वाले घर का बाथरूम बीच वाले कमरे के साथ attach था. आगेवाले कमरे की खिड़की बीच वाले कमरे की ओर भी थी जहाँ से भाभी के बेड रूम देखा जा सकता था..बशर्ते कि दरवाज़ा खुला रखा गया हो. मैंने खिड़की को बहुत हल्का सा खोला. कमरे कि दूसरी खिड़की को बंद करके उसपे और दरवाज़े पे पर्दा खिंच दिया ताकि अन्दर कमरे में रौशनी कम से कम रहे.
बाथरूम का दरवाज़ा खुला और मैं खिड़की से चिपक के बैठ गया. भाभी ने अपने पेटीकोट से अपनी मांसल चुचियों को ढक रखा था. वो फुर्ती से अपने कमरे में घुसीं. दरवाज़ा बंद करने की बजाय उन्होंने आँखें घुमा कर ये देखने की कोशिश की कि कहीं मैं देख तो नहीं रहा. मैं नहीं दिखा तो शायद उन्हें लगा कि मैं फिर से सो गया हूँ (मैं लगभग रोज़ ही सोनू को छोड़ने के बाद घर आकर सो जाता था). बेफिक्र होकर उन्होंने अपने पेटीकोट को निचे गिरा दिया. उनका खूबसूरत जिस्म मानो 440 वाट का करंटमार रहा था. उन्होंने आलमारी खोली. अन्दर से पेंटी निकाल के पहन ली. उनकी भरी हुई चूचियां हिचकोले खा रहीं थीं. उनकी भारी जांघें देख कर सनसनाहट बढती जा रही थी. अब उन्होंने मेरी तरफ पीठ करली और अपना पेटीकोट उठाने के लिए नीचे झुकीं. उनके भारी चुतड में पेंटी मानो फ़सी हुई लग रही थी. बीच का कटाव स्पष्ट नज़र आ रहा था. मन कर रहा था कि बस अभी जाके पीछे से डाल दूँ. अब मुझे समझ आया कि क्यों भैया पीछे से लेने में ज्यादा यकीं करते थे. पेटीकोट पहनने के बाद उन्होंने ब्रा उठायी और अपनी बड़ी-बड़ी चुचियों को उसमें कैद कर दिया. काले रंग की ब्रा में से चूचियां मानो निकलने को आतुर हो रही थीं. ब्लाउज का बटन बंद करने में भी उनको काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही थीं. आखिर में साड़ी पहनकर बहार आयीं. मैं तुरंत बाथरूम में गया और एक बार फिर से अपने उफान मारते हुए लिंग को शांत किया.
ऑफिस का वक़्त हो चला था. जल्दी नहा के और कपडे पहन कर तैयार हो गया. भाभी ने नाश्ता लगा दिया.
मैं: भाभी आप भी आ जाओ न साथ खाते हैं.
भाभी कुछ सोचते हुए किचन में गयीं. वो शायद मेरे कल के बदले हुए व्यवहार के बारे में सोच रही थीं.
भाभी भी अपनी प्लेट लेकर सामने के सोफे पे बैठ गयीं. थोड़ी देर बाद मैं कॉलेज के लिए निकल गया रास्ते भर या कहूं कि दिन भर बस भाभी को ही बुनता रहा खुद में। वैसे तो मैं उनके भारी और गदराये हुए जिस्म को बहुत ही admire करता रहा हूँ। पर कल रात की बातचीत ने मानो मेरी ज़िन्दगी ही बदल दी थी। वैसे मैं अपनी एक्स गर्लफ्रेंड की चुदाई कर चुका था। पर बड़ी उम्र और उनका मांसल सौंदर्य और मासूम चेहरा मुझे बहुत लुभाता था। दिन भर उन्हें शीशे में उतारने वाली बातों के बारे में सोचता रहा।




आज मैंने कॉलेज बंक करने का मन बना लिया था. बच्चा स्कूल जा चूका था. भाभी अपनी लो कट मेक्सी में अपनी बड़ी चुचियों के दर्शन कराती हुई पोछा लगा रही थी. थोड़ी देर बाद भाभी किचन से निकाल कर मेरे पास आयीं. उनके हाथ में एक कटोरी थी. उन्होंने कहा रमेश आज कॉलेज नहीं जाओगे? मैंने सर हिलाकर ना में जवाब दिया। ये उबटन मुझ से पीठ पे नहीं लगता तुम लगा दोगे! मुझे तो अपने कानों पे विश्वास ही नहीं हुआ. मैंने कहा हाँ-हाँ अभी लगा देता हूँ. भाभी मुझे पीछे वाले कमरे में ले गयीं और मेरी तरफ पीठ करके बैठ गयीं. फिर धीरे से उन्होंने अपनी मेक्सी ऊपर की. उन्होंने नीचे पेटीकोट पहन रखा था. मेक्सी को पीठ के उपरी हिस्से में लाकर उन्होंने जैसे ही छोड़ा उनकी बड़ी चूचियां पीठ के किनारे से दिखाई देने लगी. मेरा तंबू अब अकड़ने लगा था. मैंने हल्दी का उबटन लिया और धीरे धीरे उनकी पीठ पर लगाने लगा. उनकी भरी भरी पीठ को चुना बेहद रोमांच का अनुभव करा रहा था. मैं धीरे-धीरे हाथ को पीठ के किनारे वाले हिस्से में भी ले जाता. जैसे ही उनकी चुचियों का कुछ हिस्सा छु जाता तो उनके शारीर में एक अजीब जी सिहरन का अनुभव मेरे हाथ को होता. मैंने बातों का सिलसिला शुरू किया.
भाभी आपका शारीर बहुत सुन्दर है.
जवाब थोडा व्यंग में मिला..अच्छा!
सच में भाभी बहुत ही सेक्सी है भगवान् की कसम
अच्छा अच्छा उपटन तो लगाओ
भाभी आपका ये भी बहुत खूबसूरत है....ये कहते हुए मैंने उनकी चुचियों को छु लिया. मेरे स्पर्श से उनके शरीर में जोर से सिहरन हुई. मुझे भी उस सिहरन का एहसास हुआ.
उन्होंने थोडा गुस्सा होते हुए कहा...ये क्या कर रहे हो..
मुझे पता नहीं क्या हो गया था...खुद पर से मेरी पकड़ छुटी जा रही थी. मैंने मिमियाते हुए कहा भाभी प्लीज़ छु लेने दीजिये न. उन्होंने फिर से थोडा कड़क से नहीं कहा. मैं अपनी उसी क़तर आवाज़ में प्लीज़ भाभी एक बार...एक बार से क्या होता है...प्लीज़ भाभी.. वो बोलीं पहले मेरी पीठ तो साफ़ कर दो. मुझे तो मानो पंख निकाल आयें हों. जल्दी-जल्दी उनकी पीठ को हल्दी के उपटन से मुक्त करने लगा. जैसे ही पीठ साफ़ हुई मैंने कुछ भी बोले बगैर पीछे से दोनों हाथों को उनकी बड़ी बड़ी चुचियों पे रख कर दबाने लगा. मैं पागलों कि तरह उन्हें मसलने लगा. उनकी निप्पलों में एक कड़ेपन का एहसास हो रहा था. भाभी भी बहुत ही धीमी आवाज़ में सिसकारियाँ भर रही थीं. अचानक से भाभी जैसे होश में आयीं और मेरे हाथों को झटक के खड़ी हो गयीं। और दरवाज़े की ओर बढ़ीं, मैं भी साथ में खड़ा हुआ और उन्हें पीछे से पकड़ लिया और वापस मैक्सी के ऊपर से उनकी बड़ी बड़ी चूचियों को मसलने लगा। मसलते हुए मेरा नीचे का हिस्सा उनकी बड़ी सी चूतड़ों से थोड़ा चिपका लिया मेरा खड़ा हुआ लंड उनकी गांड की दरारों में चुभने लगा। भाभी वापस से मदहोश होने लगी थी। वो थोड़ी देर यूँ ही खड़ी रहीं और फिर वापस से होश में आयीं और तेज़ी से अपने कमरे में घुस गयी और दरवाज़ा बंद कर दिया। मैं अभी भी मदहोशी की अवस्था में वहीँ खड़ा रहा। कुछ लम्हा यूँ ही खड़े रहने के बाद होश आया तो लगा कि कहीं भाभी अब नाराज़ न हो गयी हों। कहीं भैया को फ़ोन पर कुछ बता न दें। टेंशन को अब सिगरेट की तलब लगने लगी थी। मैं निकल गया बाहर। मन मैं अजीब सी हलचल मची हुई थी। रोमांच और डर दोनों ही एक साथ चल रहे थे। भाभी की चूचियों की छुअन को महसूस करते हुए मानो डर थोड़ी देर के लिए उड़ सा जाता। खुद ही सवाल करता खुद ही उसका जवाब देता। " बुरा न मान गयी हों भाभी ? अगर बुरा मानती तो क्या छूने देतीं वो भी दो दो बार।

भाभी के नज़रिये से - भाभी ने दरवाज़ा बंद किया और पलंग पर आकर बैठ गयीं। दिल धाड़ धाड़ करके बज रहा था। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था की अपने पति के आलावा वो किसी को यूँ छूने देंगी। अजीब सी अपराधबोध में थीं पर ये स्पर्श उनको अच्छा भी लगा था। रमेश की कड़ी हथेलियों का यूँ स्तनों को बेरहमी से मसलना . थोड़ा दर्द हुआ पर उससे कहीं ज़्यादा उसने मदहोश किया। कहीं मैं गलत तो नहीं कर रही। पता नहीं। भाभी का सर भारी हो गया था। कुछ भी सोचने की स्थिति बन नहीं पा रही थी। उनकी अधूरी ख्वाहिशें उन्हें एक नए व्यक्ति में बदलने के लिए आतुर हो चला था।
 
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