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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Man bekraar tha jaane ke liye ki Anju kya jawab deti hai lekin aisa ho nahi paaya, Mangu galat tha lekin kya apne hi dost ko maarne ka bhaar kabir utha paayega, sawal jaise ke waise hi hai sabkuch saamne hone ke baad bhi chupa hua hai.. na jaane kyu interesting nahi laga hume...

Dekhte hai aage kya honga intzaar rahega...
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Man bekraar tha jaane ke liye ki Anju kya jawab deti hai lekin aisa ho nahi paaya, Mangu galat tha lekin kya apne hi dost ko maarne ka bhaar kabir utha paayega, sawal jaise ke waise hi hai sabkuch saamne hone ke baad bhi chupa hua hai.. na jaane kyu interesting nahi laga hume...

Dekhte hai aage kya honga intzaar rahega...
सहमत, कहानी कुछ अटकी सी लगने लगी है अब।

ऐसा लग रहा है जैसे सब एक गोल चक्कर में घूम रहा है बस
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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हालांकि फौजी भाई चुकीं बिजी है आजकल, शायद इसीलिए छोटे अपडेट आ रहे हैं

उम्मीद है आने वाले 2 से 3 दिन में कहानी खुलेगी अच्छे से।
 

Moon Light

Prime
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इन्तहा हो गई, इंतज़ार की
आई न कुछ खबर, मेरे यार (अपडेट) की

ये हमें है यक़ीं, बेवफ़ा वो नहीं
फिर वजह क्या हुई, इंतज़ार की,

इन्तहा हो...
:peep:
 

Tiger 786

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#145

अंजू ने वो तस्वीरे अपने पास छिपा ली और बोली- कहाँ से मिली तुझे ये

मैं- सवाल मेरा होना चाहिए, और वो सवाल है की जब ये तस्वीरे खिंची गयी क्या तुम खींचने वाले को जानती थी . मेरा मतलब है की जाहिर से बात है तुम जानती हो .

अंजू- मैंने पूछा कहाँ से मिली तस्वीरे तुमको

मैं- कुंवे से क्या ताल्लुक है तुम्हारा.

इस से पहले की अंजू कुछ भी कहती निशा चाय लेकर आ गयी. चाय की चुस्कियो के बीच मैं और अंजू जानते थे की मामला इतना भी सीधा नहीं है .इन्सान के लिए सबसे कमजोर लम्हे होते है जब उसे अपने परिवार की बेहयाई का बोझ उठाना पड़ता है , कहने को हसियत बहुत बड़ी थी पर हकीकत में बाप और चाचा ऐसे न लायक लोग थे जिनका बहिष्कार बरसो पहले हो जाना चाहिए था.

छत पर खड़ा मैं इसी उधेड़बुन में था की निशा पीछे से आकर मुझ से लिपट गयी . ठंडी रात में उसकी गर्माहट ने बड़ा सकूं दिया. उसकी गर्म सांसे मेरे कान तपाने लगी.

निशा- क्या परेशानी है सरकार. किस सोच में गुम हो .

मैं- तुमसे क्या ही छिपा है जाना.

निशा- मैं साथ हूँ न तुम्हारे

मैं- एक तेरा ही तो साथ है मेरी जाना.

निशा- एक रात तनहा और हम बेखबर.

निशा की ये बात सुनकर मैं पलटा ,

निशा- क्या हुआ

मैं- क्या कहा तूने जरा फिर से कह

निशा- क्या कहा मैंने

मैं- वो लाइन जो अभी गुनगुनाई तूने

निशा- एक रात तनहा और हम बेखबर.

ये लाइन मैंने कही तो सुनी थी , कहाँ पर मैं सोचने लगा.

निशा- कुछ ओढा भी नहीं तुमने आओ निचे चलते है .

मैं उसके साथ आ तो गया था पर दिमाग में ये लाइन ही घूम रही थी , कहाँ सुनी थी मैंने ये . कहाँ , कहाँ याद क्यों नहीं आ रही . कभी कभी मुझे खुद से कोफ़्त सी होने लगती थी . खैर मैं भैया को खाने के लिए बुलाने गया तो पाया की वो बोतल खोले बैठे थे .

भैया- लेगा क्या थोड़ी .

मैं- हाँ.

मैंने भैया के हाथ से पेग लिया और निचे कालीन पर ही बैठ गया .

भैया- ये मंगू न जाने कहाँ गायब है, कभी कभी तो मुझे समझ ही नहीं आता इस लड़के का . अभी आएगा न तो दो चार लगा ही दूंगा उसे. काम का तो ध्यान ही नहीं है उसको.

कडवा घूँट मेरी हलक में ही अटक गया. मैं कैसे बताता भैया को की वो अब कभी नहीं आएगा.

भैया- कुछ बोल तो सही

मैं- महावीर के जाने के बाद आपकी और प्रकाश की दोस्ती भी टूट सी ही गयी थी क्या कारण था भाई.

भैया- वो महावीर के कातिल को ढूँढना चाहता था , मैं कातिल को छुपाना चाहता था . कई बार वो कहता था की मुझे फ़िक्र ही नहीं की किसने हमारे दोस्त को मार दिया. और मेरे पास कोई जवाब नहीं होता था .

मैं- अंजू प्रेम करती थी उस से .

भैया- प्रेम बड़ा विचित्र शब्द है कबीर. इसे समझना कहाँ आसान है . हर व्यक्ति के लिए इसके अलग मायने होते है .

मैं- फिर भी आपने भाभी से प्रेम किया ये जानते हुए भी की वो किस बीमारी से जूझ रही है .

भैया- प्रेम का शर्ते नहीं होती छोटे, तू भी जानता है इस बात को .

मैंने गिलास खाली किया और निचे आया देखा की सियार आँगन में बैठा है. जैसे ही उसने मुझे देखा मेरे पास आया थोडा लाड करवाने के बाद वापिस से कम्बल पर जाके बैठ गया . एक जानवर भी प्रेम को समझता था फिर ये इन्सान क्यों इतनी बेगैरत फितरत का था. रात को जब मुझे लगा की निशा गहरी नींद के आगोश में है. मैंने कम्बल ओढा और मैं घर से बाहर निकल गया.



मेरे थके हुए कदम मुझे एक बार फिर जंगल की तरफ ले जा रहे थे . एक बार फिर से मेरे सामने दो रस्ते थे एक कुवे पर जाता था एक उस तरफ जहां मुझे मेरी तक़दीर मिली थी . तालाब के पानी को हथेली में भर कर जो होंठो से लगाया मैंने, ऐसा लगा की बर्फ उतर गयी हो मेरे सीने में . खंडहर हमेशा की तरह ख़ामोशी से खड़ा था .

“बता क्यों नहीं देते तुम क्या दास्ताँ है तुम्हारी ” मैंने उस इमारत से पूछा.

एक बार फिर मैं उन अजीब से निशानों को देख रहा था जिन्होंने मुझे उन दो कमरों को दिखाया था . अंजू ने पहली ही मुलाकात में मुझे वो लाकेट दिया था जिसे वो बरसो से पहनती थी .उसी लाकेट से मैंने वो छिपे हुए कमरे ढूंढे. क्या अंजू भी जानती होगी उन कमरों के बारे में. क्या अंजू की पहले से ही नजर थी मुझ पर. हो सकता है की वो जानती हो मेरी और निशा की गुमनाम मुलाकातों के बारे में. इस जंगल में मैं अकेला भटकता था ये वहम तो मेरा कब का मिट गया था .



मुझे याद आया की कैसे मेरे सीने पर हाथ फिराते हुए उस लाकेट को देख कर निशा चौंक गयी थी . इसका मतलब साफ़ था की अंजू जानती थी मेरे और निशा के बीच बढ़ रही नजदीकियों को . निशा के आलावा अंजू ही वो सख्शियत थी जो खंडहर में आती-जाती थी तो फिर निशा को उसकी आमद क्यों महसूस नहीं हुई. अगर अंजू मुझे वो कमरे दिखाना चाहती थी तो क्या मकसद था उसका.



कभी लगता था की इस खेल की डोर पास ही है मेरे अगले पल लगता था की कोई डोर है ही नहीं. महावीर को तीन लोग सबसे ज्यादा जानते थे, निशा-अंजू -भैया. दो की राय में वो बुरा बन गया था तीसरी उसे आज भी मानती थी . इस चुतियापे में एक चीज पर मैंने बिलकुल ध्यान नहीं दिया था वो था रुडा और राय साहब का रिश्ता. क्या थी सुनैना. दो चौधरियो से उसका इतना नाता तो फिर क्यों उसे सम्मानजनक समाधी नसीब हुई. कच्चे पत्थर ही थे क्या उसका नसीब.




जंगल में चलते हुए मैं सुनैना की समाधी से थोडा ही दूर था की उस तरफ जलती एक लौ ने मुझे इशारा कर दिया की मैं अकेला नहीं हूँ . दबे पाँव मैं जब वहां पहुंचा , पेड़ो की ओट से मैंने देखा की वहां पर उन पत्थरों के पास कोई बैठा है .
Awesome update
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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# 146

आंच की तपत को ना जाने क्यों मैंने उस दुरी से भी महसूस कर लिया. आगे बढ़ते हुए मैं समाधी के पास गया और उस शख्श के पास जाकर बैठ गया .

“ठण्ड कुछ ज्यादा ही है न आज ” मैंने आंच की तरफ अपने हाथ किये.

“इतनी भी नहीं की बर्फ पिघल जाये ” चौधरी रुडा ने कहा.

मैं-कब तक आपके सीने में जमी रहेगी ये बर्फ, माना की जख्म पुराना है पर मरहम की कोशिश तो कर ही सकते है न . ये दर्द ही तो है जो मुझे आपसे जोड़ता है . ये दर्द ही तो है जो उस दिन पुराणी रीत तोड़ते हुए आपने निशा का हाथ मेरे हाथ में दिया.

रुडा- क्योंकि तुम लायक थे उसके. क्योंकि उस दिन मैंने तुमको नहीं पैंतीस साल पहले के रुडा को देखा , जवानी मे मैंने कोशिश की थी रीत बदलने की . समाज कोई बहुत बढ़िया चीज नहीं होती कबीर, समाज बेडियो के सिवा कुछ नहीं, जो हमें कभी आगे नहीं बढ़ने देती.

चौधरी रुडा ने समाधी के पत्थरों पर हाथ फेरा और बोला- इस से बेहतर हक़ था उसका .

मैं- आप बहुत चाहते थे न सुनैना को

रुडा- मैं आज भी चाहता हूँ उसे. मरते दम तक चाहता रहूँगा उसे.

मैंने आंच को अपने सीने में उतरते हुए महसूस किया.

मैं- कैसी थी वो

रुडा- अलबेली, अनोखी. ये जंगल न जाने अपने अन्दर क्या क्या छिपाए हुए है उसी कुछ में कुछ लम्हे हमारे भी है .जब वो हंसती थी जंगल मुस्कुराता था . जब वो गाती थी आसमान तक झूम जाता था . सबसे अलग. सबसे बेगानी. बहुत कहती थी वो मुझसे, रुडा मत चल इस पथ पर , प्रेम का पथ बड़ा मुश्किल

मैं- और आप क्या कहते थे .

रुडा-बस इतना की तु जो नहीं तो फिर कुछ भी नहीं .

मैं- इस जंगल ने दो लोगो की दोस्ती भी देखि है ऐसा सुना मैंने.

रुडा- दोस्ती , क्या बताऊ तुमको कबीर की क्या होती है दोस्ती.

मैं- फिर भी मैं उस दोस्ती की कहानी सुनना चाहता हूँ जो खो सी गयी है इस जंगल में . मैं आपसे त्रिदेव की असली कहानी सुनना चाहता हूँ.

रुडा- तो तुमने मालूम कर लिया

मैं- नहीं, बस अंदाजा लगाया.

रुडा- जैसा की तुम जानते हो मैं और बिशम्भर बचपन के दोस्त थे. एक थाली में खाना, उसके बिना मैं नहीं मेरे बिना वो नहीं. जवानी के जोश से भरपूर दो नो जवान जिन्होंने वो करने का सोचा जिसके बारे में कोई भी नहीं सोच सकता था .पढाई की किसे फ़िक्र थी . दिन रात हम जंगल में भटकते. न जाने क्यों हमें इतना लगाव था इस जंगल से मैं आज भी नहीं जानता. फिर हमें मिली सुनैना , तालाब किनारे पशुओ को पानी पिलाते हुए देखा जो उस को बस देखता ही रह गया. डेरे की लड़की थी वो .

तुमने दोस्ती की बात की , दोस्ती . दोस्ती ही तो थी जो डेरे की लड़की बिना किसी भय के हमारे साथ दिन रात रहती थी . मैं रोज जाता उसे देखने के लिए. वो रोज आती बकरियों को पानी पिलाने के लिए . हथेली में भर कर पानी को होंठो से लगाती, उसे रोज मालुम होता की मैं उसे देखता हूँ , पर ना वो कुछ कहती न मैं कुछ कहता. ऐसी ही दोपहर थी जब मैं उसे देखने में इतना खो गया था की कुछ ख्याल ही नहीं रहा , पर उसकी नजरबराबर थी मुझ पर , घात लगाये तेंदुए के हमले से बचाया उसने मुझे. वो पहली बार था जब हमने उस से बात की. एक बार जो सिलसिला शुरू हुआ फिर रुका ही नहीं .



हम तीनो हमउम्र ही थे,नए नए विचार हमें बहुत आंदोलित करते. बिशम्भर किताबे बहुत पढता था . उसे हमेशा लगता था की प्राचीन जगहों के अपने राज होते है .इतिहास का शोकीन मेरा दोस्त, उसका ये विश्वास की हर जगह की अपनी कोई कहानी होती है उसे बल दिया सुनैना ने डेरे में टोने का काम बहुत होता था . डेरे का मान भी बहुत था .लोगो की बहुत सी बिमारी डेरे की भभूत से ठीक हो जाती. हम मगन थे , अपनी बातो में अपनी हरकतों में पर कब तक रहता ये दिल के किसी कोने से बार बार आवाज आती की सुनैना भाने लगी है. साथ होते हुए भी मैं बेगाना होने लगा था . महकने लगी थी इस जंगल की फिजाए उस अहसास से.



एक शाम हम तीनो ऐसे ही तालाब के पास खंडहर में बैठे थे तो सुनैना ने कहा की उसे मालूम हुआ की जंगल में कुछ छिपा है . कुछ ऐसा जो जिन्दगी बदल सकता है . बिशम्भर ने पूछा तो सुनैना के बताया की पक्के तौर पर तो नहीं पर उसने इतना ही सुना की कुछ छिपा है जंगल में .

रुडा- क्या तुम भी सुनैना , बिशम्भर की बातो को जायदा पक्का ही समझ लिया है तुमने.

सुनैना- नहीं रुडा, डेरे में बड़े लोगो की बाते सुनी मैंने, वो कभी झूठ नहीं बोलते

बिशाभर- क्या हो सकता है वो

सुनैना- तुम यकीन नहीं करोगे

रुडा- ऐसा भला या हो सकता है

सुनैना- सोना

सुनैना ने अपने चुन्नी का कोना खोला और सोने का एक छोटा सा टुकड़ा हमारे सामने रख दिया. खालिस सोने का टुकड़ा. मेरी और बिशम्भर की आँखे बाहर ही आ गिरी थी. पर सवाल ये था की सोना कहाँ पर छिपा है और उसे कैसे बहार निकाला जा सकता है.

सुनैना- मैं लाऊंगी उस सोने को बाहर और अगर हम इसमें कामयाब हुए तो हम उस सोने को इस्तेमाल नहीं करेंगे. बस देखेंगे और वापिस रख देंगे.

हम दोनों ने उसकी हाँ में हां मिलाई वैसे भी हमें कोई कमी तो थी नहीं . और लालच का तो सवाल ही नहीं था . ढाई साल तक हम लोग दिन रात एक कर इस जंगल में भटकते रहे. इस बीच प्रेम का अंकुर फूट पड़ा . मैंने सुनैना से वादा किया की उसे अपनी बना कर ले जाऊंगा. एक रात घनघोर ठण्ड में ओस से भीगे हम लोग बस उसे ही देख रहे थे जो अपने टोने में खो सी गयी थी . और फिर हमने करिश्मा होते देखा. सुनैना ने एक गड्ढा खोदा. गड्ढा सुरंग में बदलता गया और जब वो सुरंग खत्म हुई तो आँखों ने सामने जो देखा , मानने से इनकार कर दिया. सोने का विशाल भंडार हमारी आंखो के ठीक सामने थे .



पर कहते है न की उस चीज का ख्याल नहीं करना चाहिए जो आपकी न हो. इतना सोना देख कर हम तीनो अपनी खाई उस कसम को भूल गए . हमने उस सोने के तीन हिस्से करके उस पर अपना अधिकार करना चाहा और जिन्दगी बदल गयी .................

 

Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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मुझे लगा ही था की चौधरी रूढ़ा ही होगा,
जब उसने आंसुओ के साथ निशा को कबीर के साथ जाने दिया उसी दिन समझ में आ गया था की कहानी में रूढ़ा और सुनैना का चैप्टर जल्द ही शुरू होने वाला है।

लगता तो है की रूढ़ा सच में बहुत प्यार करता था सुनैना से,
शायद कबीर निशा से करता है उस से भी ज्यादा

बस देखना ये है की सुनैना के मरने की वजह सच में विशंभर दयाल है या नही
मुझे तो लगता है की रूढ़ा का शक सही होगा


रूढ़ा क्यों आखिर सुनैना की आखिरी निशानी से नहीं बनती जबकि होना तो ये चाहिए था की उसे अंजू को सबसे ज्यादा खुश रखना चाहिए था

हो सकता है इसमें भी विशंभर दयाल का हांथ हो, हौले हौले भड़काया हो।

वैसे अभी चौधरी रूढ़ा की बाते खत्म नहीं हुई,
हो सकता है अगले अपडेट में कुछ खास पता चल जाए

इस कहानी ने 2 त्रिदेव है एक (महावीर,परकाश, अभिमानु) दूसरा (रूढ़ा,सुनैना, विशंभर दयाल)
पता नही अंजू ने कबीर को कौन से वाले त्रिदेव की कहानी ढूंढने को कहा था

मुझे एक चीज समझ नही आई अगर कोई समझा दे तो अच्छा है

यदि महावीर ने पूरे सोने की खान ही जरनैल सिंह से छीन ली थी तो थोड़ा थोड़ा सोना काली मंदिर में रखने का क्या औचित्य था??
जहा था वही पड़े रहने देता आखिर वो भी तो उसी का था
 
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