• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,050
83,777
259
#145

अंजू ने वो तस्वीरे अपने पास छिपा ली और बोली- कहाँ से मिली तुझे ये

मैं- सवाल मेरा होना चाहिए, और वो सवाल है की जब ये तस्वीरे खिंची गयी क्या तुम खींचने वाले को जानती थी . मेरा मतलब है की जाहिर से बात है तुम जानती हो .

अंजू- मैंने पूछा कहाँ से मिली तस्वीरे तुमको

मैं- कुंवे से क्या ताल्लुक है तुम्हारा.

इस से पहले की अंजू कुछ भी कहती निशा चाय लेकर आ गयी. चाय की चुस्कियो के बीच मैं और अंजू जानते थे की मामला इतना भी सीधा नहीं है .इन्सान के लिए सबसे कमजोर लम्हे होते है जब उसे अपने परिवार की बेहयाई का बोझ उठाना पड़ता है , कहने को हसियत बहुत बड़ी थी पर हकीकत में बाप और चाचा ऐसे न लायक लोग थे जिनका बहिष्कार बरसो पहले हो जाना चाहिए था.

छत पर खड़ा मैं इसी उधेड़बुन में था की निशा पीछे से आकर मुझ से लिपट गयी . ठंडी रात में उसकी गर्माहट ने बड़ा सकूं दिया. उसकी गर्म सांसे मेरे कान तपाने लगी.

निशा- क्या परेशानी है सरकार. किस सोच में गुम हो .

मैं- तुमसे क्या ही छिपा है जाना.

निशा- मैं साथ हूँ न तुम्हारे

मैं- एक तेरा ही तो साथ है मेरी जाना.

निशा- एक रात तनहा और हम बेखबर.

निशा की ये बात सुनकर मैं पलटा ,

निशा- क्या हुआ

मैं- क्या कहा तूने जरा फिर से कह

निशा- क्या कहा मैंने

मैं- वो लाइन जो अभी गुनगुनाई तूने

निशा- एक रात तनहा और हम बेखबर.

ये लाइन मैंने कही तो सुनी थी , कहाँ पर मैं सोचने लगा.

निशा- कुछ ओढा भी नहीं तुमने आओ निचे चलते है .

मैं उसके साथ आ तो गया था पर दिमाग में ये लाइन ही घूम रही थी , कहाँ सुनी थी मैंने ये . कहाँ , कहाँ याद क्यों नहीं आ रही . कभी कभी मुझे खुद से कोफ़्त सी होने लगती थी . खैर मैं भैया को खाने के लिए बुलाने गया तो पाया की वो बोतल खोले बैठे थे .

भैया- लेगा क्या थोड़ी .

मैं- हाँ.

मैंने भैया के हाथ से पेग लिया और निचे कालीन पर ही बैठ गया .

भैया- ये मंगू न जाने कहाँ गायब है, कभी कभी तो मुझे समझ ही नहीं आता इस लड़के का . अभी आएगा न तो दो चार लगा ही दूंगा उसे. काम का तो ध्यान ही नहीं है उसको.

कडवा घूँट मेरी हलक में ही अटक गया. मैं कैसे बताता भैया को की वो अब कभी नहीं आएगा.

भैया- कुछ बोल तो सही

मैं- महावीर के जाने के बाद आपकी और प्रकाश की दोस्ती भी टूट सी ही गयी थी क्या कारण था भाई.

भैया- वो महावीर के कातिल को ढूँढना चाहता था , मैं कातिल को छुपाना चाहता था . कई बार वो कहता था की मुझे फ़िक्र ही नहीं की किसने हमारे दोस्त को मार दिया. और मेरे पास कोई जवाब नहीं होता था .

मैं- अंजू प्रेम करती थी उस से .

भैया- प्रेम बड़ा विचित्र शब्द है कबीर. इसे समझना कहाँ आसान है . हर व्यक्ति के लिए इसके अलग मायने होते है .

मैं- फिर भी आपने भाभी से प्रेम किया ये जानते हुए भी की वो किस बीमारी से जूझ रही है .

भैया- प्रेम का शर्ते नहीं होती छोटे, तू भी जानता है इस बात को .

मैंने गिलास खाली किया और निचे आया देखा की सियार आँगन में बैठा है. जैसे ही उसने मुझे देखा मेरे पास आया थोडा लाड करवाने के बाद वापिस से कम्बल पर जाके बैठ गया . एक जानवर भी प्रेम को समझता था फिर ये इन्सान क्यों इतनी बेगैरत फितरत का था. रात को जब मुझे लगा की निशा गहरी नींद के आगोश में है. मैंने कम्बल ओढा और मैं घर से बाहर निकल गया.



मेरे थके हुए कदम मुझे एक बार फिर जंगल की तरफ ले जा रहे थे . एक बार फिर से मेरे सामने दो रस्ते थे एक कुवे पर जाता था एक उस तरफ जहां मुझे मेरी तक़दीर मिली थी . तालाब के पानी को हथेली में भर कर जो होंठो से लगाया मैंने, ऐसा लगा की बर्फ उतर गयी हो मेरे सीने में . खंडहर हमेशा की तरह ख़ामोशी से खड़ा था .

“बता क्यों नहीं देते तुम क्या दास्ताँ है तुम्हारी ” मैंने उस इमारत से पूछा.

एक बार फिर मैं उन अजीब से निशानों को देख रहा था जिन्होंने मुझे उन दो कमरों को दिखाया था . अंजू ने पहली ही मुलाकात में मुझे वो लाकेट दिया था जिसे वो बरसो से पहनती थी .उसी लाकेट से मैंने वो छिपे हुए कमरे ढूंढे. क्या अंजू भी जानती होगी उन कमरों के बारे में. क्या अंजू की पहले से ही नजर थी मुझ पर. हो सकता है की वो जानती हो मेरी और निशा की गुमनाम मुलाकातों के बारे में. इस जंगल में मैं अकेला भटकता था ये वहम तो मेरा कब का मिट गया था .



मुझे याद आया की कैसे मेरे सीने पर हाथ फिराते हुए उस लाकेट को देख कर निशा चौंक गयी थी . इसका मतलब साफ़ था की अंजू जानती थी मेरे और निशा के बीच बढ़ रही नजदीकियों को . निशा के आलावा अंजू ही वो सख्शियत थी जो खंडहर में आती-जाती थी तो फिर निशा को उसकी आमद क्यों महसूस नहीं हुई. अगर अंजू मुझे वो कमरे दिखाना चाहती थी तो क्या मकसद था उसका.



कभी लगता था की इस खेल की डोर पास ही है मेरे अगले पल लगता था की कोई डोर है ही नहीं. महावीर को तीन लोग सबसे ज्यादा जानते थे, निशा-अंजू -भैया. दो की राय में वो बुरा बन गया था तीसरी उसे आज भी मानती थी . इस चुतियापे में एक चीज पर मैंने बिलकुल ध्यान नहीं दिया था वो था रुडा और राय साहब का रिश्ता. क्या थी सुनैना. दो चौधरियो से उसका इतना नाता तो फिर क्यों उसे सम्मानजनक समाधी नसीब हुई. कच्चे पत्थर ही थे क्या उसका नसीब.



जंगल में चलते हुए मैं सुनैना की समाधी से थोडा ही दूर था की उस तरफ जलती एक लौ ने मुझे इशारा कर दिया की मैं अकेला नहीं हूँ . दबे पाँव मैं जब वहां पहुंचा , पेड़ो की ओट से मैंने देखा की वहां पर उन पत्थरों के पास कोई बैठा है .
 

rvshrm

No religious stuff allowed- XF Staff
23
134
28
#145

अंजू ने वो तस्वीरे अपने पास छिपा ली और बोली- कहाँ से मिली तुझे ये

मैं- सवाल मेरा होना चाहिए, और वो सवाल है की जब ये तस्वीरे खिंची गयी क्या तुम खींचने वाले को जानती थी . मेरा मतलब है की जाहिर से बात है तुम जानती हो .

अंजू- मैंने पूछा कहाँ से मिली तस्वीरे तुमको

मैं- कुंवे से क्या ताल्लुक है तुम्हारा.

इस से पहले की अंजू कुछ भी कहती निशा चाय लेकर आ गयी. चाय की चुस्कियो के बीच मैं और अंजू जानते थे की मामला इतना भी सीधा नहीं है .इन्सान के लिए सबसे कमजोर लम्हे होते है जब उसे अपने परिवार की बेहयाई का बोझ उठाना पड़ता है , कहने को हसियत बहुत बड़ी थी पर हकीकत में बाप और चाचा ऐसे न लायक लोग थे जिनका बहिष्कार बरसो पहले हो जाना चाहिए था.

छत पर खड़ा मैं इसी उधेड़बुन में था की निशा पीछे से आकर मुझ से लिपट गयी . ठंडी रात में उसकी गर्माहट ने बड़ा सकूं दिया. उसकी गर्म सांसे मेरे कान तपाने लगी.

निशा- क्या परेशानी है सरकार. किस सोच में गुम हो .

मैं- तुमसे क्या ही छिपा है जाना.

निशा- मैं साथ हूँ न तुम्हारे

मैं- एक तेरा ही तो साथ है मेरी जाना.

निशा- एक रात तनहा और हम बेखबर.

निशा की ये बात सुनकर मैं पलटा ,

निशा- क्या हुआ

मैं- क्या कहा तूने जरा फिर से कह

निशा- क्या कहा मैंने

मैं- वो लाइन जो अभी गुनगुनाई तूने

निशा- एक रात तनहा और हम बेखबर.

ये लाइन मैंने कही तो सुनी थी , कहाँ पर मैं सोचने लगा.

निशा- कुछ ओढा भी नहीं तुमने आओ निचे चलते है .

मैं उसके साथ आ तो गया था पर दिमाग में ये लाइन ही घूम रही थी , कहाँ सुनी थी मैंने ये . कहाँ , कहाँ याद क्यों नहीं आ रही . कभी कभी मुझे खुद से कोफ़्त सी होने लगती थी . खैर मैं भैया को खाने के लिए बुलाने गया तो पाया की वो बोतल खोले बैठे थे .

भैया- लेगा क्या थोड़ी .

मैं- हाँ.

मैंने भैया के हाथ से पेग लिया और निचे कालीन पर ही बैठ गया .

भैया- ये मंगू न जाने कहाँ गायब है, कभी कभी तो मुझे समझ ही नहीं आता इस लड़के का . अभी आएगा न तो दो चार लगा ही दूंगा उसे. काम का तो ध्यान ही नहीं है उसको.

कडवा घूँट मेरी हलक में ही अटक गया. मैं कैसे बताता भैया को की वो अब कभी नहीं आएगा.

भैया- कुछ बोल तो सही

मैं- महावीर के जाने के बाद आपकी और प्रकाश की दोस्ती भी टूट सी ही गयी थी क्या कारण था भाई.

भैया- वो महावीर के कातिल को ढूँढना चाहता था , मैं कातिल को छुपाना चाहता था . कई बार वो कहता था की मुझे फ़िक्र ही नहीं की किसने हमारे दोस्त को मार दिया. और मेरे पास कोई जवाब नहीं होता था .

मैं- अंजू प्रेम करती थी उस से .

भैया- प्रेम बड़ा विचित्र शब्द है कबीर. इसे समझना कहाँ आसान है . हर व्यक्ति के लिए इसके अलग मायने होते है .

मैं- फिर भी आपने भाभी से प्रेम किया ये जानते हुए भी की वो किस बीमारी से जूझ रही है .

भैया- प्रेम का शर्ते नहीं होती छोटे, तू भी जानता है इस बात को .

मैंने गिलास खाली किया और निचे आया देखा की सियार आँगन में बैठा है. जैसे ही उसने मुझे देखा मेरे पास आया थोडा लाड करवाने के बाद वापिस से कम्बल पर जाके बैठ गया . एक जानवर भी प्रेम को समझता था फिर ये इन्सान क्यों इतनी बेगैरत फितरत का था. रात को जब मुझे लगा की निशा गहरी नींद के आगोश में है. मैंने कम्बल ओढा और मैं घर से बाहर निकल गया.



मेरे थके हुए कदम मुझे एक बार फिर जंगल की तरफ ले जा रहे थे . एक बार फिर से मेरे सामने दो रस्ते थे एक कुवे पर जाता था एक उस तरफ जहां मुझे मेरी तक़दीर मिली थी . तालाब के पानी को हथेली में भर कर जो होंठो से लगाया मैंने, ऐसा लगा की बर्फ उतर गयी हो मेरे सीने में . खंडहर हमेशा की तरह ख़ामोशी से खड़ा था .

“बता क्यों नहीं देते तुम क्या दास्ताँ है तुम्हारी ” मैंने उस इमारत से पूछा.

एक बार फिर मैं उन अजीब से निशानों को देख रहा था जिन्होंने मुझे उन दो कमरों को दिखाया था . अंजू ने पहली ही मुलाकात में मुझे वो लाकेट दिया था जिसे वो बरसो से पहनती थी .उसी लाकेट से मैंने वो छिपे हुए कमरे ढूंढे. क्या अंजू भी जानती होगी उन कमरों के बारे में. क्या अंजू की पहले से ही नजर थी मुझ पर. हो सकता है की वो जानती हो मेरी और निशा की गुमनाम मुलाकातों के बारे में. इस जंगल में मैं अकेला भटकता था ये वहम तो मेरा कब का मिट गया था .



मुझे याद आया की कैसे मेरे सीने पर हाथ फिराते हुए उस लाकेट को देख कर निशा चौंक गयी थी . इसका मतलब साफ़ था की अंजू जानती थी मेरे और निशा के बीच बढ़ रही नजदीकियों को . निशा के आलावा अंजू ही वो सख्शियत थी जो खंडहर में आती-जाती थी तो फिर निशा को उसकी आमद क्यों महसूस नहीं हुई. अगर अंजू मुझे वो कमरे दिखाना चाहती थी तो क्या मकसद था उसका.



कभी लगता था की इस खेल की डोर पास ही है मेरे अगले पल लगता था की कोई डोर है ही नहीं. महावीर को तीन लोग सबसे ज्यादा जानते थे, निशा-अंजू -भैया. दो की राय में वो बुरा बन गया था तीसरी उसे आज भी मानती थी . इस चुतियापे में एक चीज पर मैंने बिलकुल ध्यान नहीं दिया था वो था रुडा और राय साहब का रिश्ता. क्या थी सुनैना. दो चौधरियो से उसका इतना नाता तो फिर क्यों उसे सम्मानजनक समाधी नसीब हुई. कच्चे पत्थर ही थे क्या उसका नसीब.




जंगल में चलते हुए मैं सुनैना की समाधी से थोडा ही दूर था की उस तरफ जलती एक लौ ने मुझे इशारा कर दिया की मैं अकेला नहीं हूँ . दबे पाँव मैं जब वहां पहुंचा , पेड़ो की ओट से मैंने देखा की वहां पर उन पत्थरों के पास कोई बैठा है .
यह सियार फिर आ गया इसका भी बड़ा राज है और पत्थरों के पास शायद अंजू बैठी है
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
8,511
34,402
219
निशा- एक रात तनहा और हम बेखबर.

ये लाइन मैंने कही तो सुनी थी , कहाँ पर मैं सोचने लगा.
हम भी सोच रहे हैं............. क्योंकि फौजी भाई ने कबीर के मन और जानकारी की सभी बातें हमें नहीं बताई......... :D
निशा के आलावा अंजू ही वो सख्शियत थी जो खंडहर में आती-जाती थी तो फिर निशा को उसकी आमद क्यों महसूस नहीं हुई. अगर अंजू मुझे वो कमरे दिखाना चाहती थी तो क्या मकसद था उसका.
एक बार फिर मैं उन अजीब से निशानों को देख रहा था जिन्होंने मुझे उन दो कमरों को दिखाया था . अंजू ने पहली ही मुलाकात में मुझे वो लाकेट दिया था जिसे वो बरसो से पहनती थी .उसी लाकेट से मैंने वो छिपे हुए कमरे ढूंढे
अंजू, अंजू की माँ सुनैना और निशा तीनों ही इन सारे रहस्यों की जड़ में हैं......... क्योंकि इन तीनों का ही सबकुछ सामने होते हुये भी कुछ भी पता नहीं किसी को, सबकुछ छिपा हुआ है, तो इन तीनों का इस जंगल से ही नहीं इस खंडहर से भी गहरा ताल्लुक लगता है..............
अंजु शायद इन रहस्यों को समेटे समेटे थक चुकी है....... या फिर उसे इन रहस्यों को सामने लाने वाला सही व्यक्ति...... कबीर मिल गया है

महावीर को तीन लोग सबसे ज्यादा जानते थे, निशा-अंजू -भैया. दो की राय में वो बुरा बन गया था तीसरी उसे आज भी मानती थी . इस चुतियापे में एक चीज पर मैंने बिलकुल ध्यान नहीं दिया था वो था रुडा और राय साहब का रिश्ता. क्या थी सुनैना. दो चौधरियो से उसका इतना नाता तो फिर क्यों उसे सम्मानजनक समाधी नसीब हुई. कच्चे पत्थर ही थे क्या उसका नसीब.
महावीर भी सुनैना की तरह अंधेरे में है....... स्याह है या उजला ........ सबकी अपनी अपनी राय है
जंगल में चलते हुए मैं सुनैना की समाधी से थोडा ही दूर था की उस तरफ जलती एक लौ ने मुझे इशारा कर दिया की मैं अकेला नहीं हूँ . दबे पाँव मैं जब वहां पहुंचा , पेड़ो की ओट से मैंने देखा की वहां पर उन पत्थरों के पास कोई बैठा है .
रूड़ा, राय साहब या अंजु........... अगर इनके अलावा कोई और है तो कुछ राज खुलने की पूरी उम्मीद है
कहने को हसियत बहुत बड़ी थी पर हकीकत में बाप और चाचा ऐसे न लायक लोग थे जिनका बहिष्कार बरसो पहले हो जाना चाहिए था.
लेकिन हो नहीं पाया अब तक........... जैसे औरों ने नहीं किया ऐसे ही कबीर भी नहीं कर रहा ..................
 

Batman

Its not who i am underneath
Staff member
Moderator
19,478
14,240
214
#145

अंजू ने वो तस्वीरे अपने पास छिपा ली और बोली- कहाँ से मिली तुझे ये

मैं- सवाल मेरा होना चाहिए, और वो सवाल है की जब ये तस्वीरे खिंची गयी क्या तुम खींचने वाले को जानती थी . मेरा मतलब है की जाहिर से बात है तुम जानती हो .

अंजू- मैंने पूछा कहाँ से मिली तस्वीरे तुमको

मैं- कुंवे से क्या ताल्लुक है तुम्हारा.

इस से पहले की अंजू कुछ भी कहती निशा चाय लेकर आ गयी. चाय की चुस्कियो के बीच मैं और अंजू जानते थे की मामला इतना भी सीधा नहीं है .इन्सान के लिए सबसे कमजोर लम्हे होते है जब उसे अपने परिवार की बेहयाई का बोझ उठाना पड़ता है , कहने को हसियत बहुत बड़ी थी पर हकीकत में बाप और चाचा ऐसे न लायक लोग थे जिनका बहिष्कार बरसो पहले हो जाना चाहिए था.

छत पर खड़ा मैं इसी उधेड़बुन में था की निशा पीछे से आकर मुझ से लिपट गयी . ठंडी रात में उसकी गर्माहट ने बड़ा सकूं दिया. उसकी गर्म सांसे मेरे कान तपाने लगी.

निशा- क्या परेशानी है सरकार. किस सोच में गुम हो .

मैं- तुमसे क्या ही छिपा है जाना.

निशा- मैं साथ हूँ न तुम्हारे

मैं- एक तेरा ही तो साथ है मेरी जाना.

निशा- एक रात तनहा और हम बेखबर.

निशा की ये बात सुनकर मैं पलटा ,

निशा- क्या हुआ

मैं- क्या कहा तूने जरा फिर से कह

निशा- क्या कहा मैंने

मैं- वो लाइन जो अभी गुनगुनाई तूने

निशा- एक रात तनहा और हम बेखबर.

ये लाइन मैंने कही तो सुनी थी , कहाँ पर मैं सोचने लगा.

निशा- कुछ ओढा भी नहीं तुमने आओ निचे चलते है .

मैं उसके साथ आ तो गया था पर दिमाग में ये लाइन ही घूम रही थी , कहाँ सुनी थी मैंने ये . कहाँ , कहाँ याद क्यों नहीं आ रही . कभी कभी मुझे खुद से कोफ़्त सी होने लगती थी . खैर मैं भैया को खाने के लिए बुलाने गया तो पाया की वो बोतल खोले बैठे थे .

भैया- लेगा क्या थोड़ी .

मैं- हाँ.

मैंने भैया के हाथ से पेग लिया और निचे कालीन पर ही बैठ गया .

भैया- ये मंगू न जाने कहाँ गायब है, कभी कभी तो मुझे समझ ही नहीं आता इस लड़के का . अभी आएगा न तो दो चार लगा ही दूंगा उसे. काम का तो ध्यान ही नहीं है उसको.

कडवा घूँट मेरी हलक में ही अटक गया. मैं कैसे बताता भैया को की वो अब कभी नहीं आएगा.

भैया- कुछ बोल तो सही

मैं- महावीर के जाने के बाद आपकी और प्रकाश की दोस्ती भी टूट सी ही गयी थी क्या कारण था भाई.

भैया- वो महावीर के कातिल को ढूँढना चाहता था , मैं कातिल को छुपाना चाहता था . कई बार वो कहता था की मुझे फ़िक्र ही नहीं की किसने हमारे दोस्त को मार दिया. और मेरे पास कोई जवाब नहीं होता था .

मैं- अंजू प्रेम करती थी उस से .

भैया- प्रेम बड़ा विचित्र शब्द है कबीर. इसे समझना कहाँ आसान है . हर व्यक्ति के लिए इसके अलग मायने होते है .

मैं- फिर भी आपने भाभी से प्रेम किया ये जानते हुए भी की वो किस बीमारी से जूझ रही है .

भैया- प्रेम का शर्ते नहीं होती छोटे, तू भी जानता है इस बात को .

मैंने गिलास खाली किया और निचे आया देखा की सियार आँगन में बैठा है. जैसे ही उसने मुझे देखा मेरे पास आया थोडा लाड करवाने के बाद वापिस से कम्बल पर जाके बैठ गया . एक जानवर भी प्रेम को समझता था फिर ये इन्सान क्यों इतनी बेगैरत फितरत का था. रात को जब मुझे लगा की निशा गहरी नींद के आगोश में है. मैंने कम्बल ओढा और मैं घर से बाहर निकल गया.



मेरे थके हुए कदम मुझे एक बार फिर जंगल की तरफ ले जा रहे थे . एक बार फिर से मेरे सामने दो रस्ते थे एक कुवे पर जाता था एक उस तरफ जहां मुझे मेरी तक़दीर मिली थी . तालाब के पानी को हथेली में भर कर जो होंठो से लगाया मैंने, ऐसा लगा की बर्फ उतर गयी हो मेरे सीने में . खंडहर हमेशा की तरह ख़ामोशी से खड़ा था .

“बता क्यों नहीं देते तुम क्या दास्ताँ है तुम्हारी ” मैंने उस इमारत से पूछा.

एक बार फिर मैं उन अजीब से निशानों को देख रहा था जिन्होंने मुझे उन दो कमरों को दिखाया था . अंजू ने पहली ही मुलाकात में मुझे वो लाकेट दिया था जिसे वो बरसो से पहनती थी .उसी लाकेट से मैंने वो छिपे हुए कमरे ढूंढे. क्या अंजू भी जानती होगी उन कमरों के बारे में. क्या अंजू की पहले से ही नजर थी मुझ पर. हो सकता है की वो जानती हो मेरी और निशा की गुमनाम मुलाकातों के बारे में. इस जंगल में मैं अकेला भटकता था ये वहम तो मेरा कब का मिट गया था .



मुझे याद आया की कैसे मेरे सीने पर हाथ फिराते हुए उस लाकेट को देख कर निशा चौंक गयी थी . इसका मतलब साफ़ था की अंजू जानती थी मेरे और निशा के बीच बढ़ रही नजदीकियों को . निशा के आलावा अंजू ही वो सख्शियत थी जो खंडहर में आती-जाती थी तो फिर निशा को उसकी आमद क्यों महसूस नहीं हुई. अगर अंजू मुझे वो कमरे दिखाना चाहती थी तो क्या मकसद था उसका.



कभी लगता था की इस खेल की डोर पास ही है मेरे अगले पल लगता था की कोई डोर है ही नहीं. महावीर को तीन लोग सबसे ज्यादा जानते थे, निशा-अंजू -भैया. दो की राय में वो बुरा बन गया था तीसरी उसे आज भी मानती थी . इस चुतियापे में एक चीज पर मैंने बिलकुल ध्यान नहीं दिया था वो था रुडा और राय साहब का रिश्ता. क्या थी सुनैना. दो चौधरियो से उसका इतना नाता तो फिर क्यों उसे सम्मानजनक समाधी नसीब हुई. कच्चे पत्थर ही थे क्या उसका नसीब.




जंगल में चलते हुए मैं सुनैना की समाधी से थोडा ही दूर था की उस तरफ जलती एक लौ ने मुझे इशारा कर दिया की मैं अकेला नहीं हूँ . दबे पाँव मैं जब वहां पहुंचा , पेड़ो की ओट से मैंने देखा की वहां पर उन पत्थरों के पास कोई बैठा है .
:hug: Bahut badiya update tha mere bhai.... intezar ke baad aur maja aaya..mujhe aasha hai aapke udbhar sab kushal mangal hoga, aapki family sahi hogi....


Aasha hai aapka manobal bana rahe aur aapki zindagi me aap aage badhte rahe hai...
Aapki is kahani ko bhi mera salam aur aapke sath aapki kahani ko aur uske baad bhi aaakhri tak sath nibhaaenge...

Aage kahani me dekhte kya hota hai
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
Prime
13,626
28,519
244
#145

अंजू ने वो तस्वीरे अपने पास छिपा ली और बोली- कहाँ से मिली तुझे ये

मैं- सवाल मेरा होना चाहिए, और वो सवाल है की जब ये तस्वीरे खिंची गयी क्या तुम खींचने वाले को जानती थी . मेरा मतलब है की जाहिर से बात है तुम जानती हो .

अंजू- मैंने पूछा कहाँ से मिली तस्वीरे तुमको

मैं- कुंवे से क्या ताल्लुक है तुम्हारा.

इस से पहले की अंजू कुछ भी कहती निशा चाय लेकर आ गयी. चाय की चुस्कियो के बीच मैं और अंजू जानते थे की मामला इतना भी सीधा नहीं है .इन्सान के लिए सबसे कमजोर लम्हे होते है जब उसे अपने परिवार की बेहयाई का बोझ उठाना पड़ता है , कहने को हसियत बहुत बड़ी थी पर हकीकत में बाप और चाचा ऐसे न लायक लोग थे जिनका बहिष्कार बरसो पहले हो जाना चाहिए था.

छत पर खड़ा मैं इसी उधेड़बुन में था की निशा पीछे से आकर मुझ से लिपट गयी . ठंडी रात में उसकी गर्माहट ने बड़ा सकूं दिया. उसकी गर्म सांसे मेरे कान तपाने लगी.

निशा- क्या परेशानी है सरकार. किस सोच में गुम हो .

मैं- तुमसे क्या ही छिपा है जाना.

निशा- मैं साथ हूँ न तुम्हारे

मैं- एक तेरा ही तो साथ है मेरी जाना.

निशा- एक रात तनहा और हम बेखबर.

निशा की ये बात सुनकर मैं पलटा ,

निशा- क्या हुआ

मैं- क्या कहा तूने जरा फिर से कह

निशा- क्या कहा मैंने

मैं- वो लाइन जो अभी गुनगुनाई तूने

निशा- एक रात तनहा और हम बेखबर.

ये लाइन मैंने कही तो सुनी थी , कहाँ पर मैं सोचने लगा.

निशा- कुछ ओढा भी नहीं तुमने आओ निचे चलते है .

मैं उसके साथ आ तो गया था पर दिमाग में ये लाइन ही घूम रही थी , कहाँ सुनी थी मैंने ये . कहाँ , कहाँ याद क्यों नहीं आ रही . कभी कभी मुझे खुद से कोफ़्त सी होने लगती थी . खैर मैं भैया को खाने के लिए बुलाने गया तो पाया की वो बोतल खोले बैठे थे .

भैया- लेगा क्या थोड़ी .

मैं- हाँ.

मैंने भैया के हाथ से पेग लिया और निचे कालीन पर ही बैठ गया .

भैया- ये मंगू न जाने कहाँ गायब है, कभी कभी तो मुझे समझ ही नहीं आता इस लड़के का . अभी आएगा न तो दो चार लगा ही दूंगा उसे. काम का तो ध्यान ही नहीं है उसको.

कडवा घूँट मेरी हलक में ही अटक गया. मैं कैसे बताता भैया को की वो अब कभी नहीं आएगा.

भैया- कुछ बोल तो सही

मैं- महावीर के जाने के बाद आपकी और प्रकाश की दोस्ती भी टूट सी ही गयी थी क्या कारण था भाई.

भैया- वो महावीर के कातिल को ढूँढना चाहता था , मैं कातिल को छुपाना चाहता था . कई बार वो कहता था की मुझे फ़िक्र ही नहीं की किसने हमारे दोस्त को मार दिया. और मेरे पास कोई जवाब नहीं होता था .

मैं- अंजू प्रेम करती थी उस से .

भैया- प्रेम बड़ा विचित्र शब्द है कबीर. इसे समझना कहाँ आसान है . हर व्यक्ति के लिए इसके अलग मायने होते है .

मैं- फिर भी आपने भाभी से प्रेम किया ये जानते हुए भी की वो किस बीमारी से जूझ रही है .

भैया- प्रेम का शर्ते नहीं होती छोटे, तू भी जानता है इस बात को .

मैंने गिलास खाली किया और निचे आया देखा की सियार आँगन में बैठा है. जैसे ही उसने मुझे देखा मेरे पास आया थोडा लाड करवाने के बाद वापिस से कम्बल पर जाके बैठ गया . एक जानवर भी प्रेम को समझता था फिर ये इन्सान क्यों इतनी बेगैरत फितरत का था. रात को जब मुझे लगा की निशा गहरी नींद के आगोश में है. मैंने कम्बल ओढा और मैं घर से बाहर निकल गया.



मेरे थके हुए कदम मुझे एक बार फिर जंगल की तरफ ले जा रहे थे . एक बार फिर से मेरे सामने दो रस्ते थे एक कुवे पर जाता था एक उस तरफ जहां मुझे मेरी तक़दीर मिली थी . तालाब के पानी को हथेली में भर कर जो होंठो से लगाया मैंने, ऐसा लगा की बर्फ उतर गयी हो मेरे सीने में . खंडहर हमेशा की तरह ख़ामोशी से खड़ा था .

“बता क्यों नहीं देते तुम क्या दास्ताँ है तुम्हारी ” मैंने उस इमारत से पूछा.

एक बार फिर मैं उन अजीब से निशानों को देख रहा था जिन्होंने मुझे उन दो कमरों को दिखाया था . अंजू ने पहली ही मुलाकात में मुझे वो लाकेट दिया था जिसे वो बरसो से पहनती थी .उसी लाकेट से मैंने वो छिपे हुए कमरे ढूंढे. क्या अंजू भी जानती होगी उन कमरों के बारे में. क्या अंजू की पहले से ही नजर थी मुझ पर. हो सकता है की वो जानती हो मेरी और निशा की गुमनाम मुलाकातों के बारे में. इस जंगल में मैं अकेला भटकता था ये वहम तो मेरा कब का मिट गया था .



मुझे याद आया की कैसे मेरे सीने पर हाथ फिराते हुए उस लाकेट को देख कर निशा चौंक गयी थी . इसका मतलब साफ़ था की अंजू जानती थी मेरे और निशा के बीच बढ़ रही नजदीकियों को . निशा के आलावा अंजू ही वो सख्शियत थी जो खंडहर में आती-जाती थी तो फिर निशा को उसकी आमद क्यों महसूस नहीं हुई. अगर अंजू मुझे वो कमरे दिखाना चाहती थी तो क्या मकसद था उसका.



कभी लगता था की इस खेल की डोर पास ही है मेरे अगले पल लगता था की कोई डोर है ही नहीं. महावीर को तीन लोग सबसे ज्यादा जानते थे, निशा-अंजू -भैया. दो की राय में वो बुरा बन गया था तीसरी उसे आज भी मानती थी . इस चुतियापे में एक चीज पर मैंने बिलकुल ध्यान नहीं दिया था वो था रुडा और राय साहब का रिश्ता. क्या थी सुनैना. दो चौधरियो से उसका इतना नाता तो फिर क्यों उसे सम्मानजनक समाधी नसीब हुई. कच्चे पत्थर ही थे क्या उसका नसीब.




जंगल में चलते हुए मैं सुनैना की समाधी से थोडा ही दूर था की उस तरफ जलती एक लौ ने मुझे इशारा कर दिया की मैं अकेला नहीं हूँ . दबे पाँव मैं जब वहां पहुंचा , पेड़ो की ओट से मैंने देखा की वहां पर उन पत्थरों के पास कोई बैठा है .
रूड़ा...

और वो पंक्तियां अभिमानु की डायरी में लिखी थी।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
Prime
13,626
28,519
244
ये अंजू, नंदिनी, अभिमाणु और निशा की किरदार आपस में बहुत उलझे हैं, मुझे तो लगता है 6 some होता था इनके बीच।
 
131
728
93
क्या है उन रहस्यमयी तस्वीरों में... और क्या अंजू आज भी प्रकाश से प्यार करती है... जब वो सच जानती है तो क्यों बार बार वहीं आ जाती है... पर मुझे लगता है कि आज भी कबीर सच से अंजान है... सबने उससे झूठ बोला है... भाभी चंपा अभिमान... शायद निशा और चाची भी... कबीर को हर पल एक नया सवाल घेर लेता है...??? HalfbludPrince फ़ौजी भाई कब मिलेंगे इन सब सवालों के जवाब...???
 

vickyrock

Member
492
1,337
139
#145

अंजू ने वो तस्वीरे अपने पास छिपा ली और बोली- कहाँ से मिली तुझे ये

मैं- सवाल मेरा होना चाहिए, और वो सवाल है की जब ये तस्वीरे खिंची गयी क्या तुम खींचने वाले को जानती थी . मेरा मतलब है की जाहिर से बात है तुम जानती हो .

अंजू- मैंने पूछा कहाँ से मिली तस्वीरे तुमको

मैं- कुंवे से क्या ताल्लुक है तुम्हारा.

इस से पहले की अंजू कुछ भी कहती निशा चाय लेकर आ गयी. चाय की चुस्कियो के बीच मैं और अंजू जानते थे की मामला इतना भी सीधा नहीं है .इन्सान के लिए सबसे कमजोर लम्हे होते है जब उसे अपने परिवार की बेहयाई का बोझ उठाना पड़ता है , कहने को हसियत बहुत बड़ी थी पर हकीकत में बाप और चाचा ऐसे न लायक लोग थे जिनका बहिष्कार बरसो पहले हो जाना चाहिए था.

छत पर खड़ा मैं इसी उधेड़बुन में था की निशा पीछे से आकर मुझ से लिपट गयी . ठंडी रात में उसकी गर्माहट ने बड़ा सकूं दिया. उसकी गर्म सांसे मेरे कान तपाने लगी.

निशा- क्या परेशानी है सरकार. किस सोच में गुम हो .

मैं- तुमसे क्या ही छिपा है जाना.

निशा- मैं साथ हूँ न तुम्हारे

मैं- एक तेरा ही तो साथ है मेरी जाना.

निशा- एक रात तनहा और हम बेखबर.

निशा की ये बात सुनकर मैं पलटा ,

निशा- क्या हुआ

मैं- क्या कहा तूने जरा फिर से कह

निशा- क्या कहा मैंने

मैं- वो लाइन जो अभी गुनगुनाई तूने

निशा- एक रात तनहा और हम बेखबर.

ये लाइन मैंने कही तो सुनी थी , कहाँ पर मैं सोचने लगा.

निशा- कुछ ओढा भी नहीं तुमने आओ निचे चलते है .

मैं उसके साथ आ तो गया था पर दिमाग में ये लाइन ही घूम रही थी , कहाँ सुनी थी मैंने ये . कहाँ , कहाँ याद क्यों नहीं आ रही . कभी कभी मुझे खुद से कोफ़्त सी होने लगती थी . खैर मैं भैया को खाने के लिए बुलाने गया तो पाया की वो बोतल खोले बैठे थे .

भैया- लेगा क्या थोड़ी .

मैं- हाँ.

मैंने भैया के हाथ से पेग लिया और निचे कालीन पर ही बैठ गया .

भैया- ये मंगू न जाने कहाँ गायब है, कभी कभी तो मुझे समझ ही नहीं आता इस लड़के का . अभी आएगा न तो दो चार लगा ही दूंगा उसे. काम का तो ध्यान ही नहीं है उसको.

कडवा घूँट मेरी हलक में ही अटक गया. मैं कैसे बताता भैया को की वो अब कभी नहीं आएगा.

भैया- कुछ बोल तो सही

मैं- महावीर के जाने के बाद आपकी और प्रकाश की दोस्ती भी टूट सी ही गयी थी क्या कारण था भाई.

भैया- वो महावीर के कातिल को ढूँढना चाहता था , मैं कातिल को छुपाना चाहता था . कई बार वो कहता था की मुझे फ़िक्र ही नहीं की किसने हमारे दोस्त को मार दिया. और मेरे पास कोई जवाब नहीं होता था .

मैं- अंजू प्रेम करती थी उस से .

भैया- प्रेम बड़ा विचित्र शब्द है कबीर. इसे समझना कहाँ आसान है . हर व्यक्ति के लिए इसके अलग मायने होते है .

मैं- फिर भी आपने भाभी से प्रेम किया ये जानते हुए भी की वो किस बीमारी से जूझ रही है .

भैया- प्रेम का शर्ते नहीं होती छोटे, तू भी जानता है इस बात को .

मैंने गिलास खाली किया और निचे आया देखा की सियार आँगन में बैठा है. जैसे ही उसने मुझे देखा मेरे पास आया थोडा लाड करवाने के बाद वापिस से कम्बल पर जाके बैठ गया . एक जानवर भी प्रेम को समझता था फिर ये इन्सान क्यों इतनी बेगैरत फितरत का था. रात को जब मुझे लगा की निशा गहरी नींद के आगोश में है. मैंने कम्बल ओढा और मैं घर से बाहर निकल गया.



मेरे थके हुए कदम मुझे एक बार फिर जंगल की तरफ ले जा रहे थे . एक बार फिर से मेरे सामने दो रस्ते थे एक कुवे पर जाता था एक उस तरफ जहां मुझे मेरी तक़दीर मिली थी . तालाब के पानी को हथेली में भर कर जो होंठो से लगाया मैंने, ऐसा लगा की बर्फ उतर गयी हो मेरे सीने में . खंडहर हमेशा की तरह ख़ामोशी से खड़ा था .

“बता क्यों नहीं देते तुम क्या दास्ताँ है तुम्हारी ” मैंने उस इमारत से पूछा.

एक बार फिर मैं उन अजीब से निशानों को देख रहा था जिन्होंने मुझे उन दो कमरों को दिखाया था . अंजू ने पहली ही मुलाकात में मुझे वो लाकेट दिया था जिसे वो बरसो से पहनती थी .उसी लाकेट से मैंने वो छिपे हुए कमरे ढूंढे. क्या अंजू भी जानती होगी उन कमरों के बारे में. क्या अंजू की पहले से ही नजर थी मुझ पर. हो सकता है की वो जानती हो मेरी और निशा की गुमनाम मुलाकातों के बारे में. इस जंगल में मैं अकेला भटकता था ये वहम तो मेरा कब का मिट गया था .



मुझे याद आया की कैसे मेरे सीने पर हाथ फिराते हुए उस लाकेट को देख कर निशा चौंक गयी थी . इसका मतलब साफ़ था की अंजू जानती थी मेरे और निशा के बीच बढ़ रही नजदीकियों को . निशा के आलावा अंजू ही वो सख्शियत थी जो खंडहर में आती-जाती थी तो फिर निशा को उसकी आमद क्यों महसूस नहीं हुई. अगर अंजू मुझे वो कमरे दिखाना चाहती थी तो क्या मकसद था उसका.



कभी लगता था की इस खेल की डोर पास ही है मेरे अगले पल लगता था की कोई डोर है ही नहीं. महावीर को तीन लोग सबसे ज्यादा जानते थे, निशा-अंजू -भैया. दो की राय में वो बुरा बन गया था तीसरी उसे आज भी मानती थी . इस चुतियापे में एक चीज पर मैंने बिलकुल ध्यान नहीं दिया था वो था रुडा और राय साहब का रिश्ता. क्या थी सुनैना. दो चौधरियो से उसका इतना नाता तो फिर क्यों उसे सम्मानजनक समाधी नसीब हुई. कच्चे पत्थर ही थे क्या उसका नसीब.




जंगल में चलते हुए मैं सुनैना की समाधी से थोडा ही दूर था की उस तरफ जलती एक लौ ने मुझे इशारा कर दिया की मैं अकेला नहीं हूँ . दबे पाँव मैं जब वहां पहुंचा , पेड़ो की ओट से मैंने देखा की वहां पर उन पत्थरों के पास कोई बैठा है .
कबीर बेचारे का सभी ने अलग - अलग गैंगबैंग कर रखा है सभी उसकी ले रहे हैं साथ मिलकर पर अलग - अलग 😜
 
Top