#142
मैं- क्या तू जानती थी की महावीर आदमखोर था .
निशा- क्या बकवास कर रहा है कबीर .
मैं- तू जानती थी या नहीं इस बारे में .
निशा- कैसे हो सकता है महावीर आदमखोर वो तो खुद आदमखोर का शिकार हुआ था .
ये मेरे लिए एक और चौंकाने वाली बात थी
मैं- तेरे जज्बातों को समझता हूँ . अतीत की याद दिला कर तुझे दुख्ही नहीं करना चाहता पर मेरे लिए अतीत को जानना बहुत जरुरी है तूने उसकी लाश तो देखि होगी न
निशा- नहीं देखि . किसी ने देखने ही नहीं दी.
मैं- खंडहर के बारे में तुझे कब बताया उसने.
निशा-ब्याह के कुछ दिनों बाद ही वो मुझे वहां पर ले गया था. कहता था की दुनिया में उस खंडहर से ज्यादा कुछ भी खूबसूरत नहीं , न जाने क्यों उस भुला दी गयी ईमारत से उसे हद से जायदा प्यार था . मैंने महावीर को तो भुला दिया था पर उसकी उस निशानी को नहीं भुला पाई. उस घर में मैं पागल होने लगी थी , जब कुछ और नहीं सूझा तो मैं यहाँ आने लगी. घंटो अकेले बैठी रहती. आठ साल बीत गए कबीर, कोई नहीं आया परिंदे तक ने पैर नहीं मारा यहाँ और फिर एक रात तू आया , और जिन्दगी पलट दी तूने मेरी.
मैं- तूने उसके कातिल को ढूंढने की कोशिश नहीं की .
निशा- उसके बाप भाई ने दिन रात एक कर दिया पर कोई नहीं मिला. उसके घाव कहते है की आदमखोर ने मार दिया उसे. अगर वो खुद आदमखोर होता तो कैसे शिकार होता वो.
मैं- और उसके दोस्त उन्होंने कोशिश नहीं की उसके कातिल को तलाशने की .
निशा- अभिमानु भैया उसके दोस्त थे. जिस दिन से महावीर गया अभिमानु कभी हमारी हवेली नहीं आये.
मैंने निशा के सर पर हाथ फेरा . उसने सर हमेशा की तरफ मेरे काँधे पर टिका दिया.
मैं- एक वादा करेगी मुझसे
निशा- कैसा वादा
मैं- अगर मैं पूर्ण आदमखोर बन कर बेकाबू हो गया तो तू मुझे मार देना
निशा-वो दिन कभी नहीं आयेगा. तू नहीं बनेगा वैसा.
मैं- इतना यकीं कैसे तुझे
निशा- दुबारा डाकन नहीं बनूँगी मैं .
सुबह मैं मंगू के घर गया. एक खालीपन जिसका बोझ सारी उम्र मुझे उठाना था . चंपा मेरे लिए चाय ले आई.
मैं- कैसी है तू
चंपा- ठीक हूँ
मैं- चल कुवे पर चलते है , कब तक इधर बैठी रहेगी थोडा बहार निकलेगी तो मन हल्का होगा.
चंपा- क्या फर्क पड़ता है.
मैं- मुझे फर्क पड़ता है. घर टूट रहा है , सब बिखर रहा है . जो हुआ वो कभी नहीं होना चाहिए था .काश मैं तुझे बता सकता की कितना दिल टुटा है . तू कभी भी खुद को अकेला नहीं समझना कबीर हर पल तेरे साथ खड़ा है . चल कुवे पर चलते है .
मैंने साइकिल उठाई और हम लोग कुवे पर आ गये. चंपा मुंडेर पर बैठ गयी मैंने चारपाई निकाली और उस पर बैठ गया .
मैं- वक्त कितना बीत गया कुछ महीनो पहले हम सब कितने खुश थे, मौज थी मस्ती थी अब देखो हालात
चंपा- समय के साथ साथ सब बदल जाते है.
मैं- मुझे समय को बदलना है चंपा इसके लिए तेरी मदद चाहिए मुझे
चंपा- मैं खुद हालात की मारी हूँ मैं क्या मदद करू तेरी .
मैं- कुछ सवाल है जिनके जवाब तेरे पास है.
चंपा- पूछ ले फिर किसने रोका है तुझे .
मैं- रोका तो किसी ने नहीं . मैं अपनी दोस्त को वापिस पाना चाहता हूँ .
चंपा - कल भी तेरी थी आज भी तेरी हु
मैं- तो फिर वो वजह बता क्यों तुझे पिताजी के साथ सोना पड़ा .
चंपा- नहीं पता की ऐसा क्यों हुआ , बस हो गया एक बार हुआ फिर बार बार होने लगा. फिर ना वो रुके ना मैंने मना किया.
मैं- कभी सोचा नहीं की क्या परिणाम होंगे इसके.
चंपा- कुछ चीजे बस हो जाती है कबीर .
मैं- और परकाश , अब ये मत कहना की उसके साथ भी हो गया .
चंपा- मैंने उसके साथ एक सौदा किया था .
मैं- कैसा सौदा.
चंपा- उसके पास कुछ ऐसा था जो मुझे चाहिए था , उसे चूत चाहिए थी मैंने उसे चूत दी.
मैं- क्या था उसके पास ऐसा.
चंपा- वो चाचा के कातिल को जानता था
मैं ये सुन कर हैरान रह गया . मेरा दिमाग साला भन्ना गया .
मैं- कौन ,,, कौन था चाचा का कातिल
चंपा- तुझे यकीन नहीं आएगा कबीर
मैं- कौन था वो
चम्पा- राय साहब ,
चंपा ने जैसे ही पिताजी का नाम लिया . समझ नहीं आया की साला क्या चक्कर है ये , चाची ने कहा था की उसने अपने पति को मारा है और चंपा कुछ और ही कह रही थी .
मैं - उसने कहा और तूने मान लिया
चंपा- उसके पास सबूत था .
मैं- कैसा सबूत
चम्पा- उसने एक फोटो खिंची थी जिसमे चाचा के पेट में छुरा घोप रहे है राय साहब.
मैं- कहाँ है वो फोटो अब
चंपा- उसने मुझे दिखाई थी पर दी नहीं . कहता था जब सही समय आएगा तब देगा मुझे .
एक आदमी के दो कातिल , बहनचोद दिमाग की नसे फटने को ही बेताब हो चली थी. साला क्या चुतियापा चल रहा था घर में कैसे समझे हम .
मैं- तूने कभी परकाश के पास कोई कैमरा देखा था क्या
चंपा- नहीं उसने बस तस्वीर दिखाई थी .
मैं- और मंगू , उसके साथ क्यों सोना पड़ा तुझे
चंपा- हम दोनों एक ही कमरे में सोते थे , एक रात नशे में वो चढ़ गया मुझ पर . मैं खुद को रोक नहीं पाई .
मैं- बुरा नहीं लगा
चंपा- बुरा लगने से क्या होता है , कहा न कुछ चीजे बस हो जाती है .
मैं- कहाँ मिलता था परकाश तुझसे
चंपा-यही कुवे पर
बहनचोद क्या था इस कुवे पर जिसे देखो यही पर चुदाई करने आता था .कुवा न हुआ साला कोठा हो गया .
मैं- इसी कमरे में
चंपा- हाँ इसी कमरे में
“मैं उसे वहां छिपाती जहाँ वो सबके सामने तो होता पर उसे कोई देख नहीं पाता ” . मेरे मन में अंजू के शब्द गूंजने लगे. और क्या उस रात अंजू मुझे यही पर नहीं मिली थी . तो तुम छिपे हो यहाँ पर तुम.....................