#140
चाची की छत पर मैंने बिस्तर लगाया . कुछ देर बाद निशा भी मेरे पास आ गयी. उसने मेरे सीने पर सर रखा और बाजु में लेट गयी . मैंने रजाई डाल ली ऊपर से .
निशा- ऐसा लगता है की सपना सच हो गया .
मैं- तुझे पाना नेमत से कम नहीं . तेरी बाँहों में ये उम्र कटे बस इतना ही तो ख्वाब था मेरा.
निशा - शाम से देख रही हूँ कुछ परेशान से हो तुम . क्या चिंता है .
मैं- कुछ तो छुट रहा है मुझसे , कुछ ऐसा जिसे समझ नही पाया हूँ . ये घर तुझे और मुझे जोड़ता है . ये घर अपने अन्दर ना जाने क्या छिपाए हुए है . तूने कहा था की तेरे हिस्से का सच तेरे घर की दहलीज में ही छिपा है अब तू आ गयी है , दिखा मुझे वो सच.
निशा- इतना पा लिया है बाकि बचा भी पा ही लेंगे.
मैं सोचने लगा की क्या निशा को मालूम है की नंदिनी भाभी ही आदम खोर है क्या मुझे निशा को बताना चाहिए. मैंने उसे ये बात नहीं बताने का निर्णय लिया और बात को घुमाया.
मैं-महावीर कैसा था निशा मैं जानना चाहता हूँ उसके बारे में
निशा- वो तेरे जैसा था अनोखा , अपनों में बेगाना. दुनिया चाहे जो कुछ भी कहे पर मैं उसे जानती थी उसके साथ जी थी मैं. चाहे कोई बड़ा हो चाहे कोई छोटा हो सबको साथ लेकर चलता था वो . अंधियारी रातो में , उन मुलाकातों में मैंने तुझमे उसकी झलक देखि कबीर. वो खंडहर उसे बहुत प्रिय था कहता था की वहां जो शांति है और कहीं नहीं है . अक्सर वो मुझे वहां लाता था घंटो उन दीवारों को देखता था वो उनसे न जैसा कैसा लगाव था उसे.
मैं- दुनिया कहती है की अय्याशी बहुत करता था वो .
निशा- दुनिया कुछ ना कुछ तो कहेगी न कबीर. पता नहीं क्यों वो जंगल से प्यार करता था . दिन में रातो में घूमता था . क्या था उसके मन में कभी जान नहीं पायी पर इतना जरुर था की परेशान नहीं था वो . उसके मरने वाले दिन तक भी मुझे ऐसा नहीं लगा था की उसकी दुश्मनी होगी किसी से. उस दोपहर हमने साथ खाना खाया था . कह कर गया था की जल्दी ही लौट आएगा पर आया ही नहीं .
निशा की बात ने मेरे मन में और हलचल मचा दी. मैंने निशा की कमर में हाथ डाला और उसे अपने ऊपर ले लिया. उसकी पीठ को सहलाते हुए मैंने उसे देखा , निशा ने अपने होंठो मेरे होंठो से जोड़ दिए. सुबह जब मैं जागा तो बदन थोडा टूट सा रहा था . कपडे पहन कर मैं निचे आया तो देखा की निशा रसोई में थी चाची के साथ .
मैं बाहर चला गया . राय साहब के कमरे पर ताला लगा था . ये बाप आखिर जाता कहाँ था इसका जवाब मुझे हर हाल में तलाशना था .हाथ-मुह धो ही रहा था की मैंने सामने से मंगू की माँ को आते देखा . न जाने क्यों मेरी नजरे झुक सी गयी .
काकी- बेटा, मंगू घर नहीं आया है . तुझे बता कर गया है क्या वो .
अब मैं क्या कहता . पर कुछ तो कहना ही था
मैं- नहीं काकी, वैसे भी कई कई दिन नहीं आता हो तू परेशान मत हो आ जायेगा. आये तो थोडा गुस्सा करना मान जायेगा तेरी बात वो .
काकी चाची की तरफ चली गयी पर मैं जानता था की अब वो कभी भी नहीं आयेगा. इन बूढ़े माँ बाप पर क्या गुजरेगी जब सच उनके सामने आएगा . मेरा मन व्यथित हो गया था . मैंने सीढियों से उतर कर भाभी को आते हुए देखा.
मैं- आपसे बात करनी थी .
भाभी- अब कोई और भी है तेरे पास बाते करने को
मैं- मजे फिर कभी लेना मेरे . मैं क्या निशा जानती है आदमखोर कौन है
भाभी- नहीं , और उसे मालूम भी नहीं होना चाहिए .
मैं- क्या कुछ और भी है जो मुझसे छिपाया है आपने .
भाभी- अब कुछ नहीं
मैं- राय साहब कहाँ जाते है
भाभी- पता नहीं.
मैं- कुछ काम से बाहर जा रहा हूँ निशा का ध्यान रखना
भाभी- ये कोई कहने की बात है
मैं- दूसरी बात अब मुझे एक गाड़ी चाहिए
भाभी-तेरे भैया को आने दे , हम सोच ही रहे थे की तुम्हे कोई तोहफा दिया जाये.
मैं मुस्कुरा दिया. घर से बहार निकला ही था की चबूतरे पर चाय लिए निशा खड़ी थी .मैंने कप उसके हाथ से लिया
निशा- सुबह सुबह कहाँ की तयारी
मैं- खेतो पर जा रहा हूँ . मेरी बात सुन ध्यान से इस घर में तू किसी पर भी भरोसा मत करना. बेशक अब हम पति पत्नी है पर सुरक्षा की दृष्टि से तुझे सावधान रहना होगा.
निशा- समझती हूँ
मैं- ठीक है फिर.
गाँव से बाहर निकल कर मैं खेतो की तरफ चल दिया. अजीब सा विरोधाभास था मेरे अन्दर. जिसे जो समझा था वो वैसा नहीं था. चाचा का अतीत अलग था . पिताजी को देख कर कौन कह सकता था की इतना रसूखदार आदमी अपनी बेटी की उम्र की लड़की संग बिस्तर गर्म कर रहा था .सबसे बड़ी बात ये सब लोग जंगल से जुड़े थे किसी न किसी तरह से .
ये पहली बार था जब मैं दिन की रौशनी में खान में उतरा था . सब कुछ वैसा ही था बस कुछ नहीं था तो मंगू की लाश. शायद राय साहब ने ही उसे हटवा दिया होगा. संघर्ष के निशान मुझे उस रात की याद दिला रहे थे . क्या ऐसा हो सकता था की मंगू ही राय साहब पर दबाव बनाये हुए हो अपनी बहन को परोसना उसकी किसी साजिश का हिस्सा हो . क्या मालूम वसीयत के चौथे पन्ने पर प्रकाश की जगह मंगू अपना नाम लिखवाना चाहता हो.
दूसरी बात जो मुझे खटक रही थी वो थी परकाश के घर में में लगी आग अचानक से तो नहीं लगी हो. वो भी जब उस घर में कोई नहीं रहता हो.क्या कोई ऐसा था जो नहीं चाहता था की निशा का ब्याह मेरे साथ होने से परिस्तिथियों में बदलाव हो. क्या वो सूरजभान हो सकता था वो भी तो अपने भाई के कातिल की तलाश में जंगल में भटक रहा था . क्या वो रमा हो सकती है. क्या चाचा के बारे में मैंने जितना भी सोचा उसका कोई और पहलु भी हो सकता था .
मैंने वो चुदाई की तस्वीरों वाली किताब उठाई और उसे देखने लगा. काफी पुराणी किताब थी वो पन्ने पीले पड़े हुए. चूत का चस्का भी ना साला क्या से क्या करवा देता है मैंने पन्ने पलटते हुए सोचा. दूसरी फिर तीसरी किताब उठा कर मैंने देखि और तीसरी किताब में जो मुझे मिला वो एक मरी हुई उम्मीद थी .