RAJIV SHAW
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Nisha ka pati kon tha kahi mahavir tho nahi#138
मैंने चाची से खाना परोसने के लिए कहा और कमरे में चला गया . कुछ देर बाद चाची मेरे पास गयी .
चाची- जेठ जी को मालूम होगा तो बहुत नाराज होंगे वो. मेरा मन घबरा रहा है .
मैं- बाप चुतिया है , वो कभी नहीं समझेगा चाची.
चाची- मन व्याकुल सा हो गया है. बेटा बहु को लाया है पर हालात ऐसे है की चाह कर भी खुशी नहीं मना सकते, किस मुह से मनाये कुछ रोज पहले के मातम के आंसू तो सूखे भी नहीं है .
मैं- समझता हूँ . वो दुःख तो रहेगा ही
चाची-जेठ जी आयेंगे तब तू अपने भाई की आड़ लेना
मैं- जरुरत नहीं है मैने सुबह ही बता दिया था पिताजी को
चाची- कहीं तेरा ये कदम घर को ना तोड़ दे कबीर
मैं- ये घर, कभी घर था ही नहीं चाची. तू ही बता तू मालकिन है इस घर की पर तुझे कितना सुख मिला इस घर में . तुझसे ज्यादा कौन घुट घुट कर जिया इस घर में . चाचा भोसड़ी का दुनिया भर की रंडियों के मजे लुटता रहा पर खुद की लुगाई के पास नहीं आ पाया. सच कहूँ तो अकेला चाचा ही नहीं हम सब भी तेरे दोषी है . तुझे क्या दे पाए हम , कुछ भी तो नहीं.
चाची- मुझे किस चीज की जरुरत भला, दो बेटे दो बहुए . तुम सब को जब देखती हूँ तो दिल को जो सकूं मिलता और और भला क्या चाहत होगी मेरी फिर. खाना खाकर मैं आया तो देखा की निशा ऊपर चोबारे में थी. मैं उसके पास जाना चाहता था की अंजू ने मुझे पकड़ लिया.
मैं- क्या हुआ
अंजू- रमा का कहीं कुछ पता नहीं चल रहा . कल रात प्रकाश के नए घर में आग लग गई. सब कुछ जल कर ख़ाक हो गया.
मैं- रमा की ही कारस्तानी होगी . पर वो अकेली नहीं है कोई तो है जो छिप कर ये खेल खेल रहा है
अंजू- कौन हो सकता है
मैं- अभी तो नहीं मालूम पर आज नहीं तो कल मालूम हो ही जायेगा.
अंजू- आज रात मैं फिर से ख़ाक छानुंगी जंगल में
मैं- एक बात सच बताना क्या तुम परकाश से सच्चा प्यार करती हो
अंजू- सच-झूठ कुछ नहीं होता कबीर, प्यार बस प्यार होता है तुमसे जायदा कौन जानता है इस बारे में
मैं- तो फिर प्रकाश से सम्बंधित सभी राज जानती होगी तुम
अंजू- क्या कहना चाहते हो तुम
मैं- रमा प्रकाश के लिए भी काम करती थी , वो एक मात्र कड़ी है जो पिताजी, चाचा, महावीर, और प्रकाश से जुडी है . तुमने उस रात देखा तो था ही न की कैसे प्रकाश रमा के साथ कार के बोनट पर क्या कर रहा था .
अंजू-प्रकाश चाहता था की राय साहब उसे उसका हिस्सा दे दे.
मैं- वसीयत का चौथा टुकड़ा
अंजू- हाँ ,
मैं इस से पहले कुछ कहता की बाहर से आते शोर ने मेरा ध्यान भटका दिया.
“बिशम्भर दयाल कहाँ छिप कर बैठा है बाहर निकल ” इस आवाज को सुनते ही मेरा दिल जोर से धडक उठा. मैं जानता था की ये होगा पर इतनी जल्दी होगा ये नहीं जानता था .
पिताजी के कमरे का दरवाजा खुला और पिताजी बाहर आये. सामने चौधरी रुडा खड़ा था . चेहरे पर दुनिया जहाँ का गुस्सा लिए.
“तुम यहाँ ” पिताजी ने बस इतना कहा
रुडा- आना ही पड़ा मुझे बिशम्भर , मैं अपनी अमानत लेने आया हूँ . लौटा दे उसे.
पिताजी ने एक नजर अंजू को देखा और बोले- अंजू जाना चाहती हो तो जाओ
रुडा- अंजू की बात नहीं कर रहा मैं . तेरी इस नालायक औलाद से पूछ क्या पाप किया है इसने
पिताजी ने एक नजर रुडा को देखा , एक नजर मुझे देखा और बोले- कबीर, चौधरी साहब किस बारे में बात कर रहे है .
मैं- निशा से ब्याह कर लिया मैंने
इतना कहते ही पिताजी की तरफ से एक जोर का थप्पड़ मेरे गाल पर आ पड़ा .
“तेरी हिम्मत कैसे हुई ये गुस्ताखी करने की . क्या सोचा तूने कोई खेल चल रहा है. कैसे सोचा की हर बार तेरी मनमर्जी चलेगी. ” पिताजी ने गुस्से से कहा.
पिताजी- हरामजादे, ये जानते हुए भी की निशा..........
“हाँ ये जानते हुए भी की मैं कौन हूँ कबीर ने मेरा हाथ थामा,मुझसे प्रेम किया मुझसे ब्याह किया ” सीढिया उतर कर निचे आते हुए निशा ने कहा .
रुडा ने निशा को देखकर थूकते हुए कहा -तू कैसे भूल गयी की तेरा नाम किस से जुड़ा है . जो पाप तूने किया है उसकी सजा तुझे मिलेगी. अरे कलंकिनी तेरे कदम क्यों नहीं कांपे घर की चोखट पार करते हुए.
निशा- घर , किस घर की बात करते है आप . घर तो वो कभी था ही नहीं . किसको फ़िक्र थी मेरी. मैं हूँ भी या नहीं . कितने ऐसे दिन थे जब आपने मेरे सर पर हाथ रखा. मेरा हाल पूछा आपको तो याद भी नहीं की उस घर में मैं भी रहती थी . किस हक़ से आप घर की बात करते हो.
“जुबान पर लगाम रख बदचलन ” रुडा ने निशा को थप्पड़ मारने के लिए अपना हाथ उठाया .
मैंने आगे बढ़ कर उसका हाथ पकड़ लिया और बोला- सोच कर चौधरी रुडा, अब ये मेरी पत्नी है और मेरी पत्नी से किसी ने बदतमीजी की न तो फिर ठीक नही होगा.
आस पास गाँव वाले इकठ्ठा होने लगे थे . राय साहब बिशम्भर दयाल जो दुनिया के तमाशे सुलझाता था आज उसके खुद के घर में तमाशा हो रहा था .
मैं- निशा मेरी पत्नी है यही एकमात्र सच है . हमने प्रेम किया है हमें अपनी जिन्दगी जीने दो
पिताजी- ये कहने से तेरे कर्म ठीक नहीं हो जायेंगे कबीर. गलती की है तूने समाज का नियम तोडा है तूने.
मैं- किस समाज की बात करते है आप वो समाज जो न जाने कब का मर चूका है , वो समाज जो झूठे नियम-कानून की सड़ांध में जी रहा है .
पिताजी- एक विधवा की मांग में सिंदूर भर कर तुमने पाप किया है
कबीर.
मैं - ये विधवा थी पर अब नहीं है इसका पति आपकी आँखों के सामने खड़ा है.और फिर नियमो की किस किताब में लिखा है की विधवा दुबारा से ब्याह नहीं कर सकती. ये विधवा हुई इसमें इसका क्या दोष था . क्या इसको अपनी जिन्दगी जीने का हक़ नहीं. इसे हक़ है , इसे वो तमाम है हक़ है जो दुनिया की किसी भी औरत को मिलने चाहिए.
रुडा- विशम्भर , आज तुम्हारे सामने चौधरी रुडा नहीं बल्कि एक बाप खड़ा है जो अपने बेटे की अंतिम निशानी, अपनी बहु को वापिस ले जाने आया है जिसे तुम्हारा बेटा ले आया है . सारी दुनिया तुम्हारे दरवाजे पर न्याय के लिए आती है आज मैं भी आया हूँ, करो न्याय. मुझे लौटा दो निशा को .
पिताजी- कबीर, निशा को लौटा दे.
मैं- हरगिज नहीं
पिताजी- कबीर तूने सुना नहीं हमने क्या कहा
मैं- निशा कहीं नहीं जाएगी वो मेरी पत्नी है और इस घर की छोटी बहु वो यही रहेगी
पिताजी- कबीर...........
मैं- देखते है कौन माई का लाल निशा को मुझसे जुदा करता है . खून की होली खेल कर आया हु मलिकपुर में , अगर किसी की भी फाग खेलने की इच्छा है तो आगे आये.....................
Nisha ruda ki bahu hai.ab to khoon ki holi to hogi par kiske bich ruda,Kabir ke bich ya Kabir,rayi sahab ke bich#138
मैंने चाची से खाना परोसने के लिए कहा और कमरे में चला गया . कुछ देर बाद चाची मेरे पास गयी .
चाची- जेठ जी को मालूम होगा तो बहुत नाराज होंगे वो. मेरा मन घबरा रहा है .
मैं- बाप चुतिया है , वो कभी नहीं समझेगा चाची.
चाची- मन व्याकुल सा हो गया है. बेटा बहु को लाया है पर हालात ऐसे है की चाह कर भी खुशी नहीं मना सकते, किस मुह से मनाये कुछ रोज पहले के मातम के आंसू तो सूखे भी नहीं है .
मैं- समझता हूँ . वो दुःख तो रहेगा ही
चाची-जेठ जी आयेंगे तब तू अपने भाई की आड़ लेना
मैं- जरुरत नहीं है मैने सुबह ही बता दिया था पिताजी को
चाची- कहीं तेरा ये कदम घर को ना तोड़ दे कबीर
मैं- ये घर, कभी घर था ही नहीं चाची. तू ही बता तू मालकिन है इस घर की पर तुझे कितना सुख मिला इस घर में . तुझसे ज्यादा कौन घुट घुट कर जिया इस घर में . चाचा भोसड़ी का दुनिया भर की रंडियों के मजे लुटता रहा पर खुद की लुगाई के पास नहीं आ पाया. सच कहूँ तो अकेला चाचा ही नहीं हम सब भी तेरे दोषी है . तुझे क्या दे पाए हम , कुछ भी तो नहीं.
चाची- मुझे किस चीज की जरुरत भला, दो बेटे दो बहुए . तुम सब को जब देखती हूँ तो दिल को जो सकूं मिलता और और भला क्या चाहत होगी मेरी फिर. खाना खाकर मैं आया तो देखा की निशा ऊपर चोबारे में थी. मैं उसके पास जाना चाहता था की अंजू ने मुझे पकड़ लिया.
मैं- क्या हुआ
अंजू- रमा का कहीं कुछ पता नहीं चल रहा . कल रात प्रकाश के नए घर में आग लग गई. सब कुछ जल कर ख़ाक हो गया.
मैं- रमा की ही कारस्तानी होगी . पर वो अकेली नहीं है कोई तो है जो छिप कर ये खेल खेल रहा है
अंजू- कौन हो सकता है
मैं- अभी तो नहीं मालूम पर आज नहीं तो कल मालूम हो ही जायेगा.
अंजू- आज रात मैं फिर से ख़ाक छानुंगी जंगल में
मैं- एक बात सच बताना क्या तुम परकाश से सच्चा प्यार करती हो
अंजू- सच-झूठ कुछ नहीं होता कबीर, प्यार बस प्यार होता है तुमसे जायदा कौन जानता है इस बारे में
मैं- तो फिर प्रकाश से सम्बंधित सभी राज जानती होगी तुम
अंजू- क्या कहना चाहते हो तुम
मैं- रमा प्रकाश के लिए भी काम करती थी , वो एक मात्र कड़ी है जो पिताजी, चाचा, महावीर, और प्रकाश से जुडी है . तुमने उस रात देखा तो था ही न की कैसे प्रकाश रमा के साथ कार के बोनट पर क्या कर रहा था .
अंजू-प्रकाश चाहता था की राय साहब उसे उसका हिस्सा दे दे.
मैं- वसीयत का चौथा टुकड़ा
अंजू- हाँ ,
मैं इस से पहले कुछ कहता की बाहर से आते शोर ने मेरा ध्यान भटका दिया.
“बिशम्भर दयाल कहाँ छिप कर बैठा है बाहर निकल ” इस आवाज को सुनते ही मेरा दिल जोर से धडक उठा. मैं जानता था की ये होगा पर इतनी जल्दी होगा ये नहीं जानता था .
पिताजी के कमरे का दरवाजा खुला और पिताजी बाहर आये. सामने चौधरी रुडा खड़ा था . चेहरे पर दुनिया जहाँ का गुस्सा लिए.
“तुम यहाँ ” पिताजी ने बस इतना कहा
रुडा- आना ही पड़ा मुझे बिशम्भर , मैं अपनी अमानत लेने आया हूँ . लौटा दे उसे.
पिताजी ने एक नजर अंजू को देखा और बोले- अंजू जाना चाहती हो तो जाओ
रुडा- अंजू की बात नहीं कर रहा मैं . तेरी इस नालायक औलाद से पूछ क्या पाप किया है इसने
पिताजी ने एक नजर रुडा को देखा , एक नजर मुझे देखा और बोले- कबीर, चौधरी साहब किस बारे में बात कर रहे है .
मैं- निशा से ब्याह कर लिया मैंने
इतना कहते ही पिताजी की तरफ से एक जोर का थप्पड़ मेरे गाल पर आ पड़ा .
“तेरी हिम्मत कैसे हुई ये गुस्ताखी करने की . क्या सोचा तूने कोई खेल चल रहा है. कैसे सोचा की हर बार तेरी मनमर्जी चलेगी. ” पिताजी ने गुस्से से कहा.
पिताजी- हरामजादे, ये जानते हुए भी की निशा..........
“हाँ ये जानते हुए भी की मैं कौन हूँ कबीर ने मेरा हाथ थामा,मुझसे प्रेम किया मुझसे ब्याह किया ” सीढिया उतर कर निचे आते हुए निशा ने कहा .
रुडा ने निशा को देखकर थूकते हुए कहा -तू कैसे भूल गयी की तेरा नाम किस से जुड़ा है . जो पाप तूने किया है उसकी सजा तुझे मिलेगी. अरे कलंकिनी तेरे कदम क्यों नहीं कांपे घर की चोखट पार करते हुए.
निशा- घर , किस घर की बात करते है आप . घर तो वो कभी था ही नहीं . किसको फ़िक्र थी मेरी. मैं हूँ भी या नहीं . कितने ऐसे दिन थे जब आपने मेरे सर पर हाथ रखा. मेरा हाल पूछा आपको तो याद भी नहीं की उस घर में मैं भी रहती थी . किस हक़ से आप घर की बात करते हो.
“जुबान पर लगाम रख बदचलन ” रुडा ने निशा को थप्पड़ मारने के लिए अपना हाथ उठाया .
मैंने आगे बढ़ कर उसका हाथ पकड़ लिया और बोला- सोच कर चौधरी रुडा, अब ये मेरी पत्नी है और मेरी पत्नी से किसी ने बदतमीजी की न तो फिर ठीक नही होगा.
आस पास गाँव वाले इकठ्ठा होने लगे थे . राय साहब बिशम्भर दयाल जो दुनिया के तमाशे सुलझाता था आज उसके खुद के घर में तमाशा हो रहा था .
मैं- निशा मेरी पत्नी है यही एकमात्र सच है . हमने प्रेम किया है हमें अपनी जिन्दगी जीने दो
पिताजी- ये कहने से तेरे कर्म ठीक नहीं हो जायेंगे कबीर. गलती की है तूने समाज का नियम तोडा है तूने.
मैं- किस समाज की बात करते है आप वो समाज जो न जाने कब का मर चूका है , वो समाज जो झूठे नियम-कानून की सड़ांध में जी रहा है .
पिताजी- एक विधवा की मांग में सिंदूर भर कर तुमने पाप किया है
कबीर.
मैं - ये विधवा थी पर अब नहीं है इसका पति आपकी आँखों के सामने खड़ा है.और फिर नियमो की किस किताब में लिखा है की विधवा दुबारा से ब्याह नहीं कर सकती. ये विधवा हुई इसमें इसका क्या दोष था . क्या इसको अपनी जिन्दगी जीने का हक़ नहीं. इसे हक़ है , इसे वो तमाम है हक़ है जो दुनिया की किसी भी औरत को मिलने चाहिए.
रुडा- विशम्भर , आज तुम्हारे सामने चौधरी रुडा नहीं बल्कि एक बाप खड़ा है जो अपने बेटे की अंतिम निशानी, अपनी बहु को वापिस ले जाने आया है जिसे तुम्हारा बेटा ले आया है . सारी दुनिया तुम्हारे दरवाजे पर न्याय के लिए आती है आज मैं भी आया हूँ, करो न्याय. मुझे लौटा दो निशा को .
पिताजी- कबीर, निशा को लौटा दे.
मैं- हरगिज नहीं
पिताजी- कबीर तूने सुना नहीं हमने क्या कहा
मैं- निशा कहीं नहीं जाएगी वो मेरी पत्नी है और इस घर की छोटी बहु वो यही रहेगी
पिताजी- कबीर...........
मैं- देखते है कौन माई का लाल निशा को मुझसे जुदा करता है . खून की होली खेल कर आया हु मलिकपुर में , अगर किसी की भी फाग खेलने की इच्छा है तो आगे आये.....................
Studxyz bhai jaise ek shilpkar murti banata hai.vaise hi ek lekhak apni kalam se rachna ka srijan karta hai.ab dekhne or padne walo pe hai ki vo unhe achi lagi ya kuch kamiजिस खुनी संग्राम के मुहाने पर कहानी आज खड़ी है उसका दोषी केवल और कबीर व् लेखक है नियति नही क्यों की कहानी की नियति लेखक ही लिखता है और कबीर ने वक़्त रहते कुछ ज़रूरी क़दम उठाए होते तो भी इतना खुन ना बेहता बस घिनोने राये को ठोक देता इस वक़्त रुदा से ज़्यादा राये विल्लिअन लग रहा है
Nisha ruda ki bahu hai.ab to khoon ki holi to hogi par kiske bich ruda,Kabir ke bich ya Kabir,rayi sahab ke bich
ये तो आराम से खत्म हो गया??#139
रुडा बहन के लंड ने राय साहब के गुरुर को निशाना बनाते हुए बड़ी चालाकी से खेल खेल दिया था .उसने ऐसा माहौल बनाया की जैसे वो खुद पीड़ित है और हमारे चुतिया बाप को तो अपनी शान हद से जायदा प्यारी थी . पर हम भी पक्के वाले थे अगर आज हार जाते तो फिर आशिको की लिस्ट में हमारा कभी जिक्र होता ही नहीं.
“सामाजिक वयवस्था को बनाये रखने के लिए बरसो से कुछ कायदे चले आ रहे थे , जिनमे से एक है की विधवा का पुनर्विवाह नहीं हो सकता. इस से ताना बाना टूटेगा. ” पिताजी ने कहा
मैं- क्या गजब चुतियापा है ये . एक विधवा अपनी मर्जी से अपने जीवन को नहीं संवार सकती पर रसूखदार लोग जब चाहे नियमो की बत्ती बना कर अपने हिसाब से इस्तेमाल कर सकते है , तो राय साहब समाज के ठेकेदार मत बनिए और यदि बनना भी है न तो मैं पूछता हूँ ये न्याय का पुजारी तब कहाँ गया था जब आपका छोटा भाई गाँव की बहन बेटियों को अपने बिस्तर में खींच रहा था . क्या उन औरतो की अपनी मर्जी थी उस काम में. न्याय का बीड़ा उठाने का इतना ही शौक है तो चाचा की खाल क्यों नहीं खींची आपने .
मैं जानता था की पिताजी के पास मेरे सवालो का कोई जवाब नहीं था .
मैं- और ये मादरचोद गाँव वाले जब इनकी बहन बेटियों की इज्जत तार तार हो रही थी तब ये साले किस बिल में छुप गए थे , कहाँ गयी थी इनकी मर्दानगी तब. लाली को लटकाने में ये सब लोग बड़े उतावले थे जैसे की इनको बहादुरी का मेडल मिला हो पर अपनी बेटियों-बहुओ पर अत्याचार करने वाले ठाकुर जरनैल सिंह के सामने इनमे से किसी की जुबान तक नहीं खुली . मैं पूछता हूँ क्यों. जो लोग अपने हक़ के लिए खड़े नहीं हो सकते वो मेरी तक़दीर का फैसला करेंगे इस से गया गुजरा मजाक क्या होगा.
पिताजी- मजाक तो तुमने हमारा बना दिया है
.
मैं- मैंने नहीं आपके कर्मो ने. ये रुडा तो आपका बचपन का दोस्त था न ये ही छोड़ गया आपको और कर्मो की बात यदि ना ही हो तो बेहतर रहेगा , मुखोटे जब उतारे जायेंगे तो नंगे लोगो की कतार में सबसे पहले आप खड़े होंगे पिताजी .
“और आप चौधरी साहब, बहु भी बेटी का ही रूप होती है , माना की निशा महावीर की पत्नी थी पर ये कोई इनाम नहीं था जो महावीर जीत कर लाया हो. निशा को पुरे गाजेबाजे के साथ , विधिवत रूप से ही तो लाये होंगे न आप.मैं आपको बता देना चाहता हूँ की औरत कभी किसी की अमानत नहीं होती. वो गुरुर होती है . आपका बेटा गया क्या इसकी वजह निशा थी , आपका बेटा मरा अपने कर्मो की वजह से , खैर, मुझसे ज्यादा आप अपने बेटे को जानते होंगे. अपने दिल पर हाथ रख कर सोचिये क्या होता अगर निशा आपकी बहु की जगह आपकी बेटी होती. कैसा लगता जब आप उसे रोज विधवा के लिबास में देखते, कितने सपने जो आपने बेटी के लिए देखे थे वो रोज टूटते .” मैंने कहा .
मैं- चौधरी साहब, आप प्रेम के अस्तित्व को अपने झूठे अहंकार के आगे नकार रहे है आप. आप जिसने खुद प्रेम किया. यदि आप आज हमारे विरोध में खड़े है तो माफ़ करना सुनैना अगर आज जिन्दा होती तो धिक्कार ही होता उसे आप पर. मैं समझता हूँ आपकी वेदना को. आप अपनी मोहब्बत को नहीं पा सके. पर आप चाहे तो ये निशा अपना आने वाला जीवन सुख से जी सकती है . बहु समझ कर नहीं बेटी समझ कर इसके सर पर हाथ रख दीजिये. माना की राय साहब और आपके दरमियान बर्फ जमी है पर इसमें हमारा क्या दोष है. मैं सच कहता हूँ निशा से पहली बार मिला तब नहीं जानता था की वो क्या है . और अगर जानता भी न तो भी मैं उसका साथ नहीं छोड़ता .
“ये नहीं मान रही थी , इसने मेरे प्रेम निवेदन को स्वीकार नहीं किया था . ये जानती थी की अगर इसने ऐसा किया तो ये दिन जो हम देख रहे है जरुर आएगा. पर मैंने इसे अपनी माना है . मैंने इस से वादा किया की मैं इसके दामन को खुशियों से भर दूंगा. क्योंकि इसको भी जीने का हक़ है , दुनिया की कोई भी ताकत इसे मुस्कुराने से इसलिए नहीं रोक सकती क्योंकि ये विधवा है , इसी समाज ने क्या इसे जलील नहीं किया ताने नहीं मारे डाकन कह के , आज मैं कहता हूँ की ये डाकन नहीं है न थी . आप लोग अपने झूठे अहंकार के लिए हमें मरवा भी देंगे न तो हमारी चिता से उठता धुंआ आपकी नाकामी का ही होगा. क्योंकि आप सब जानते है की मैं सच कह रहा हूँ , चौधरी साहब निशा का हाथ मेरे हाथ में हक़ से दीजिये . उसे अपना आशीर्वाद दीजिये आप केवल महावीर के ही बाप नहीं थे, निशा के भी पिता है . अपने दर्जे को आज इतना ऊँचा कर दीजिये की फिर कभी कोई बहु और बेटी में फर्क ना कर पाए. ” मैंने कहा.
“कबीर सही कह रहा है , ” नंदिनी भाभी ने हमारा समर्थन किया.
भाभी- फूफा, तोड़ दो ये रीत पुराणी , आने वाली पीढ़ी को साँस लेने के लिए खुली हवा दो. आप लोग समाज में मोजिज लोग है आप समाज को नयी दिशा दिखायेंगे तो आपके लोग भी उसी रस्ते पर चलेगे. आपको सुनैना की कसम. आपको उस मोहब्बत की कसम जो आपने कभी की थी , उस समय आप ज़माने की बंदिशों को तोड़ नहीं पाए थे आज वक्त ने आपको फिर से ये मौका दिया है इन बच्चो को नया जीवन देकर आप अपने अतीत को इनमे जिन्दा कर सकते है .
चौधरी रुडा की आँखों से आंसू बह निकले. उसने अपनी पगड़ी उतारी और निशा के सर पर रख दी. ये एक बहुत बड़ा क्रांतिकारी कदम था जो आने वाले समय में बहुत दिनों तक याद रखा जाने वाला था . एक व्यर्थ की रुढ़िवादी परम्परा को तोड़ दिया गया था आज.
रुडा- हम सब से गलतिया होती है पर इन्सान वहीँ होता है जो गलतियों को सुधारने की हिम्मत रखे , आज एक गलती को सुधार दिया गया है आज के बाद किसी भी विधवा को डाकन नहीं कहा जायेगा. उसे अपनी जिन्दगी का पूर्ण अधिकार होगा.दोष हमारे विचारो का है हमारी दकियानूसी सोच का है पर अब ये सोच बदली जायेगी. निशा मेरी बच्ची कभी तुझे बड़े अरमानो से बहु बनाकर लाया था आज उतने ही अरमानो से तुझे बेटी बना कर नए जीवन की शुभकामनाये देता हूँ.इश्वर तेरे दामन को तमाम रौनके दे. तू सदा सलामत रहे खुश रहे.
हम दोनों रुडा के गले लग गए . धीरे धीरे मजमा खत्म हो गया . राय साहब के पास कहने को कुछ नहीं था . मैंने अंजू से चाय के लिए कहा और निशा के साथ चाची के चबूतरे पर बैठ गया . वो बस मुझे ही देखे जा रही थी
मैं- इस तरह मत देख मुझे मेरी जान
निशा- मुझे हक़ है
उसने अपना सर मेरे काँधे पर टिका दिया . हम दोनों ढलती शाम को देखने लगे इस बात से बेखबर की इस शाम के बाद एक रात भी आनी बाकी थी................