• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Batman

Its not who i am underneath
Staff member
Moderator
19,478
14,240
214
#

भैया- जिन रास्तो पर तू चल रहा है न उन पर मैं दौड़ चूका हूँ . तेरे हर किये कराये पर मैं मिटटी डाल दूंगा पर तुझे भी समझना होगा राय साहब के हम दो कंधे है, हमें जिम्मेदारी सिर्फ इस घर की ही नहीं है इस गाँव को इस समाज को साथ लेकर भी चलना है . मैंने तुझे आज तक नहीं रोका आगे भी नहीं रोकूंगा पर बस इतना समझना की अय्याशी चाहे जितनी भी करो ऐसा कुछ भी नहीं होना चाहिए की घर की दहलीज तक उस बात के छींटे पड़े.

मैं- भैया, दारा को मैं जानता भी नहीं उसका जिक्र भी आपसे ही सुना है

भैया- बेहतर होगा आगे जिक्र तुम्हे सुनना नहीं पड़े. मैंने और तुम्हारी भाभी ने फैसला किया है की चंपा के ब्याह के बाद तुम्हारे लिए भी रिश्ते देख लिए जाये कोई ठीक सा लगेगा तो ब्याह कर देंगे तुम्हारा .

मैं- भैया , अभी मैं इसके लिए तैयार नहीं हूँ .

भैया- भाई हूँ तेरा , तुझे तुझसे ज्यादा जानता हूँ ये बात क्यों दोहरानी पड़ती है मुझे. लाली के लिए तेरी आँखों में जो बगावत देखि थी मैंने , वो आज भी देख रहा हूँ मैं . मेरे भाई, मैं जानता हूँ एक दिन आयेगा जब तू मेरे सामने खड़ा होगा और मैं नहीं चाहता की वो दिन कभी भी आये इसलिए कुछ फैसले मुझे लेने ही होंगे.

मैं- जब मुझे ब्याह करना होगा मैं बता दूंगा

भैया ने एक ही साँस में अपना पेग खाली कर दिया और बोले- तेरी मर्ज़ी छोटे

भाई ने जान कर बात अधूरी छोड़ दी पर मैं समझ गया था की नियति मेरे भाग में क्या लिख रही थी . बोतल ख़तम करने के बाद हम गाँव में पहुँच गए. चाची के घर पहुंचा तो देखा की चंपा रसोई में मीट पका रही थी . केसरिया सलवार सूट में बड़ी प्यारी लग रही थी वो . एक पल को मुझे लगा की जैसे निशा ही हो वहां पर . निशा के ख्याल से ही मेरे होंठ अपने आप मुस्कुरा पड़े.

चंपा- क्या बात है आजकल अपने आप में ही खोये रहते हो .

मैं- आज बड़ी कटीली लग रही है .

चंपा- मैं तो हमेशा से ही दिलदार रही हूँ एक तू ही है जो देखता नहीं मेरी तरफ .

मैं- भूख लगी है रोटी परोस

चंपा- बस ये पक जाये, आटा गूंध लिया है चाची आ जाये फिर फटाफट तवा रख दूंगी.

मैं- कहा गयी चाची.

चंपा- भाभी के पास गयी है .

मैं- किसलिए

चंपा- भाभी तेरी सलामती के लिए कल एक पूजा करवा रही है उसकी तयारी के लिए .

मैं- घर से तो निकाल दिया है अब ये किसलिए

चंपा- दिल से नहीं निकाल सकती तुझे वो इसलिए

मैं- वो मुझे कातिल मानती है उन तमाम लोगो का

चंपा- वैसे शक है मुझे भी ,

मैं- की मैंने क़त्ल किया है उनका

चंपा- नहीं मुझे शक है की कविता का तेरे साथ सम्बन्ध था तुझसे चुदने के लिए ही वो जंगल में गयी थी या फिर तूने उसे कुवे पर बुलाया होगा.

मैं- अगर मेरा ऐसा इरादा होता तो उसके घर पर ही नहीं जाता मैं, वैसे भी वैध जी तो तक़रीबन बाहर ही रहते है घर से ऐसे में हम दोनों के पास पूरा मौका नहीं रहता क्या

चंपा-वैध के घर के चक्कर भी कुछ ज्यादा ही लग रहे थे बोल न ,

मैं- वैध के घर जाने का मेरा मकसद कुछ और था .

चंपा जरा हमें भी तो बता ऐसा क्या मकसद था जो कविता पूरा कर रही थी और हम नहीं कर पाये.

मैं- मेरी कुछ समस्या है

चंपा- हाँ तो हमें भी बता देना . क्या मालूम मैं कुछ समाधान कर सकू.

मैं- तुझे हर बात मजाक में ही लेनी है न

चंपा- चल ठीक है तू चाहे तो मुझे बता सकता है

मैं- सुन कर हसेंगी तो नहीं न

चंपा- मैं कोई पागल हूँ क्या जो बिना बात दांत फाडू

मैं- ठीक है फिर बताता हूँ , मैं एक रात खेत में मैं पेशाब कर रहा था तो किसी कीड़े ने मेरे इस पर काट लिया तब से ये सूज गया है . इसकी सुजन कम ही नहीं हो रही .

चंपा- अरे ऐसा भी होता है क्या ,

मैं- ऐसा ही हुआ है

चंपा- मैं नहीं मानती इस बात को

मैं- यही बात है

चंपा- एक काम कर मुझे देखने दे इसे, तभी मैं मानूंगी

मैं- देख लिया न तो घबरा जाएगी , चुदने के तेरे सारे ख्याल गायब हो जायेंगे.

चंपा- ये बात है तो दिखा फिर

मैं- नहीं दिखाने वाला मैं

चंपा- देख तू अब मुकर रहा है बात से

मैंने देगची में चम्मच डाली और थोड़ी तरी और कुछ मांस के टुकड़े कटोरी में डाले और खाने लगा.

मैं- चंपा , तू मंगू की बहन न होती तो मैं पक्का तेरी मुराद पूरी कर देता .

चंपा- कबीर मैं बहुत दिनों से तुझे कुछ बताना चाहती थी , तू हमेशा मंगू की दोस्ती का जिक्र करता है पर आज मैं तुझे मेरी जिन्दगी का एक काला सच बताती हूँ .

चंपा ने जब ऐसा कहा तो मेरा दिल और जोर से धडकने लगा.

चंपा- जिस मंगू की वजह से तू मुझे नहीं देखता वो मंगू , वो मेरा भाई मंगू ले चूका है मेरी.........

चंपा की बात सुन कर मेरे पैरो तले जैसे जमीन ही खिसक गयी .

मैं- जुबान को लगाम दे चंपा. सोच कर बोल तू क्या बोल रही है

चंपा- मुझे मालूम था तू यकीन नहीं करेगा पर तेरा दोस्त वैसा नहीं है जितना सीधा तू उसे समझता है . जानता है मैंने तुझसे क्यों कहा की तेरा कविता से सम्बन्ध हो सकता है क्योंकि मंगू से सेट थी कविता. मैंने सोचा की क्या मालूम मंगू ने तुझे भी दिलवा दी हो कविता की .

मैं- चंपा अगर तू सच कह रही है तो अभी मेरे साथ चल , मुझे तेरी कसम मंगू का वो हाल करूँगा मैं की ये गाँव याद रखेगा. एक पवित्र रिश्ते की मर्यादा तोड़ने की उसकी हिम्मत कैसे हुई.

चंपा- तू ऐसा कुछ नहीं करेगा . तू मेरा साथी है इसलिए मैंने अपने मन की बात तुझे बताई ये किसी और को मालूम हुआ तो मुझे फांसी खानी पड़ेगी कबीर.

मैं- तू क्यों फांसी खाएगी , गलत काम मंगू ने किया है सजा उसे मिलेगी.

चंपा- और उस सजा से तकलीफ भी हमें ही होगी कबीर. मैं तुझे बस बताना चाहती थी की ये दुनिया वैसी नहीं है जैसा तू मानता है . यहाँ पर फरेब है , धोखा है


मैंने चंपा से कुछ नहीं कहा उसे अपने गले से लगा लिया मेरी आँखों से कुछ आंसू बह कर उसके गालो को भिगो गए.
:bow: Sarkaar, fan bana lie aapne to
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
Prime
13,623
28,505
244
भाई इस कहानी में निशा डायन जी को अंत में पूजा व् आयत जैसी बनाना जस्सी जैसी नहीं :vhappy1:
और गीता ताई जैसी निकल आई फिर क्या??
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,050
83,774
259
#135

रात कितनी बीती कितनी बाकी थी नहीं जानता था . चबूतरे पर बैठे मैं उस पेड़ को देख रहा था जिस पर लाली और उसके प्रेमी को लटका दिया गया था . लाली की कही तमाम बाते मेरे कानो में गूँज रही थी . ये कैसा जमाना था कैसा समाज था जिसमे मोहब्बत को मान्यता नहीं थी थी पर चुदाई सब कर रहे थे . चरित्र किसी का नहीं बचा था पर दो दिलो के मिलने के खिलाफ थे. मैंने सोचा किस बेशर्मी से राय साहब ने लाली की मौत के फरमान को समर्थन दिया था . राय साहब कैसे रक्षक थे अगर वो रक्षक थे तो फिर भक्षक कौन था .

न जाने कितनी देर तक ख्यालो में खोया रहता अगर वो सियार उछल कर चबूतरे पर न चढ़ आया.उसे देख कर मेरे होंठो पर मुस्कान आ गयी .

मैं- वो है क्या जंगल में

उसने कुछ नहीं कहा बस चुपचाप आकर मेरी गोदी में अपना सर घुसा दिया. मैंने अपनी बाहें उसके चारो तरफ लपेटी और थोड़ी देर के लिए आँखे बंद कर ली. रात कुछ जायदा ही लम्बी हो गयी थी मैं तहे दिल से चाहता था की बस ये खत्म हो जाये. पर ऐसे खुले में कब तक पड़े रहते. कुछ देर बाद मैंने अपने कदम घर की तरफ बढ़ा दिए सियार मेरे साथ साथ चलने लगा.



हमेशा खुला रहने वाला हमारा दरवाजा आज बंद था. सियार ऊपर चढ़ कर चबूतरे पर पड़े कम्बल में घुस गया . मैंने चाची के दरवाजे को हल्का सा धक्का दिया और अन्दर घुस गया .

“कौन है ” चाची ने पूछा

मैं- कबीर

चाची- कहाँ भटक रहा था तू इतनी रात तक

मैं- आ गया थोड़ी देर सोना चाहता हूँ

मैं चाची के बिस्तर में घुसा और उनसे लिपट कर सो गया . सुबह जब जागा तो राय साहब को आँगन में बैठे पाया. हमेशा के जैसे सुनहरी ऐनक पहने चेहरे पर ज़माने भर की गंभीरता लिए हुए. नलका चला कर मैंने ठंडा पानी मुह पर मारा और बाप के पास गया.

मैं- कुछ बताना था

पिताजी- हम सुन रहे है

मैं- आपके पालतू पिल्लै को कल रात मार दिया मैंने उसकी लाश खान में पड़ी है .

पिताजी ने अपनी ऐनक उतारी उसे साफ़ किया और दुबारा से पहन लिया .

पिताजी- एक न एक दिन ये होना ही था .

मैं- आपको फर्क नहीं पड़ा

पिताजी- रोज कोई न कोई मरता ही है

मैं- मौत का ये खेल क्यों खेला , चंपा को अपने पास रखना था तो वैसे ही रख लेते कौन रोक पाता राय साहब को . हजार बहाने थे उसे अपने साथ रखने का शेखर बाबु का और उन जैसे तमाम बेकसूर लोगो की बलि किसलिए ली गयी . माना की मंगू को नकली आदमखोर बना कर लोगो में डर पैदा करना ठीक था ताकि कोई जंगल में खान को न तलाश ले पर अपने ही आंगन को खून से रंग देना कहा तक उचित था .



पिताजी- हम तुम्हारे सवालो का जवाब देना जरुरी नहीं समझते .

मैं- क्योंकि कोई जवाब है नहीं , अय्याशियों का क्या जवाब होगा. कहे तो वो गा न जिसके पास कुछ होगा कहने को . मुझे शर्म आती है की इस आदमी का खून मेरी रगों में दौड़ रहा है .

पिताजी- इस से पहले की हमारा हाथ उठ जाये, हमारी नजरो से दूर हो जाओ

मैं- कब तक नजरो से दूर करेंगे. वो समय नजदीक है जब हम दोनों एक दुसरे के सामने खड़े होंगे और मैं भूल जाऊंगा की सामने मेरा बाप है .

पिताजी- दुआ करना वो वक्त जल्दी आये.

चहचहाती चिडियों के शोर ने मुझे बताया की दिन चढ़ने लगा है . मैं गली में आया सुबह की ताजगी ने मेरे अन्दर में उर्जा का संचार किया . आज का दिन एक खास दिन था या शायद ख़ास होने वाला था सूरज की लालिमा धीरे धीरे हट रही थी . जैकेट की जेब में दोनों हाथ घुसाए मैं गाँव से बहार की तरफ चल दिया. कुवे पर आकर मुझे चैन मिला. कल रात बहुत कुछ खो दिया था मैंने . क्यों खोया ये नहीं जानता था . बरसो की दोस्ती एक झटके में खत्म हो गयी. इसे अपना भाई समझा था , जिसके साथ न जाने कितने लम्हे जिए थे अपने हाथो से गला दबा दिय था उसका. ये कैसा इम्तिहान लिया गया था मेरा. आँखों से आंसू बह चले थे . वो गलत था उसने क्यों नहीं मानी गलती अपनी. मुझ पर हमला किया मुझे मारना चाहता था वो . पर आज का दिन ख़ास था इसे और खास बना देना चाहता था मैं.



मैंने अपने कदम उस तरफ बढ़ा दिए जहाँ मेरी मंजिल मुझे पुकार रही थी . जंगल आज बदला बदला सा लग रहा था . इतना शांत इसे मैंने कभी नहीं पाया था . होंठ अपने आप गुनगुनाने लगे थे . चलते चलते मैं आखिर वहां तक आ ही गया था . आसमान हरे-नीले-पीले-लाल रंग से रंग था . आदमी-औरत जिसे देखो हाथो में पिचकारी या अबीर की थैलि लिए एक दुसरे संग रंगों के रंग में रंगे थे. हँसते मुस्कुराते चेहरे . आज फाग का दिन था , आज मेरे अरमानो का दिन था . आज मैं अपनी सरकार को हमेशा के लिए अपनी बनाने के लिए आया था . आज कबीर निशा का हाथ थामने आया था .



उड़ते गुलाल को अपने जिस्म पर महसूस करते हुए . पानी के गुब्बारों से बचते हुए मैं चलते हुए ठीक उस जगह पर आ पहुंचा था जहाँ पर वो थी , जहाँ पर निशा थी. जहाँ पर मेरा आने वाला कल था . जहाँ पर मेरा आज , अभी था.

“जी कहिये, क्या काम था किस से मिलना था आपको ” नौकरानी ने मुझसे पूछा

मैं- जाकर कहो मालकिन से की उसे लेने कोई आया है .

उसने अजीब नजरो से मुझे देखा और अन्दर चली गयी मैं हवेली के आँगन में खड़ा रहा . उफ्फ्फ्फ़ ये पल पल बढती उसके दीदार की हसरत . नजरे उस बड़े से दरवाजे पर जम सी गयी थी . और जब दौड़ते हुए वो आकर चोखट पर रुकी . उसका सरकता आंचल बता रहा था की धड़कने हमारी सरकार की भी बढ़ी हुई है . नजरे बस नजरो को देख रही थी. सब कुछ भूल कर मैंने अपनी बाहों को फैला दिया और वो दौड़ कर मेरे सीने में समां गयी.

“कब से राह देख रही थी बड़ा इंतज़ार करवाया ” उसने कहा

मैं- मैं देर करता नहीं देर हो जाती है .

निशा- मुझे ले चल.

मैं- लेने ही तो आया हूँ

मैंने उसका हाथ पकड़ा उसने मेरी तरफ देखा

मैं- मुझे हक़ है .

उसने अपना हाथ मेरे हाथ में दे दिया और हमने हवेली के बाहर कदम बढ़ा दिए. गाँव के बीचो बीच बिखरे रंग-उड़ते गुलाल से खेलते हुए मैं अपनी जान को लेकर चले जा रहा था. गाँव के दुसरे छोर से हम थोड़ी ही दूर थे की एकाएक हमारे सामने जीप आकर रुकी .............................

निशा ने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया ............
 

Studxyz

Well-Known Member
2,925
16,209
158
और गीता ताई जैसी निकल आई फिर क्या??

गीता ताई जैसी चाची निकल सकती है क्यों की फौजी भाई अपडेट ना देकर अपने खुरापाती दिमाग में आइडियाज सोच रहा है की कैसे रीडर्स की फाड़ी जाये और इसिलिये हम जल्दी अपडेट चाहते हैं की सोचने का समय कम मिले
 
Top