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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#119



एक ऐसी कड़ी जो इन सबको जोड़ सकती थी मुझसे छूट रही थी . प्रकाश की माँ ने जो खुलासा किया उसने कहानी को अलग ही दिशा दे दी थी . चाचा को मरे एक जमाना हो गया था तो फिर कविता जंगल में किससे मिलने जाती थी अगर ये जवाब मिल जाता तो काफी हद तक मामला सुलझ जाता . राय साहब के बिस्तर से मिली चुडिया और कविता के घर से मिली चुडिया कहीं न कहीं इशारा कर रही थी की हो न हो कविता को राय साहब भी चोदते थे.

चलो मान लिया की राय साहब ने कविता को भी चोदा क्योंकि रमा की चुदाई प्रमाण थी पर यहाँ से एक सवाल और खड़ा हो जाता था की हवस के पुजारी ने फिर नंदिनी भाभी और चाची पर डोरे क्यों नहीं डाले.मामला बेहद संगीन था , चुदाई के साथ साथ रक्त की सड़ांध भी फैली हुई थी इस अतीत में . कल का दिन बहुत खास था व्यस्त रहने वाला था पर ये रात, ये रात , इसकी ख़ामोशी मुझे बेचैन किये हुए थी. ब्याह की सब तैयारिया पूरी हो चुकी थी, कल चंपा की डोली उठ जानी थी . जिसे कभी अपनी माना था वो पराई हो जानी थी.



पराई, अपने आप में बहुत भारी था ये शब्द,. पराई तो चंपा तभी हो गयी थी जब उसने मेरे बाप के साथ उस दलदल में उतरने का सोचा. बाप चुतिया को रंगे हाथ चुदाई करते पकड़ भी लेता तो कुछ हासिल नहीं होना था . मुझे तलाश थी उस वजह की , आखिर क्या थी वो वजह जिसकी वजह से ये सब हो रहा था .चाची ने मेरी कसम खाकर कहा था की राय शाब ने कभी भी उसे गन्दी नजरो से नहीं देखा. पर जिस तरह से चाची ने इतना बड़ा राज छिपाया था , क्या मैं पूर्ण विस्वास कर सकता था उस पर.



दो पेग लगाने के बाद भी मुझे चैन नहीं था , मेरी नजर सरला की गांड पर थी जिसे शाल ओढने के बाद भी वो छिपा नहीं पा रही थी .पर खचाखच भरे घर में मौका मिलना था ही नहीं उसे चोदने का. सुबह बड़ी खूबसूरत थी , वैसे तो मैं रोज जल्दी ही उठता था पर आज सुबह की बात ही कुछ और थी. भोर के उजाले में केसरिया रंगत लिए सूरज को देखना सकून था . सुबह सबसे पहले मैंने चंपा को ही देखा जो चाय देने आई थी मुझे.



खूबसूरत तो पहले भी थी वो पर ब्याह का रंग चढ़ा था उस पर उबटन ने उसे और निखार दिया था .

चंपा- क्या देख रहा है कबीर

मैं- देख लेना चाहता हूँ तुझे आज , कल तो परायी हो जाएगी तू

चंपा- एक न एक दिन तो हर लड़की पराई हो ही जाती है किसी न किसी के लिए.

मैं- वक्त कितना जल्दी बीत जाता है न

चंपा- वक्त तो आज भी वही है , बस हम दोनों थोडा आगे बढ़ गए है .ये गलिया, ये घर , ये चौबारे. कल तक यही जी मैं, यही पर बड़ी हुई, कल यही सब छोड़ कर जाना होगा.

मैं- नियति यही है .लडकिया एक घर छोडती है तो एक घर पाती भी है .

चंपा- डोली को सबसे पहले तू हाथ लगाना , इतना हक़ तो देगा न मुझे.



चंपा की बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. आज की रात भारी पड़ने वाली थी मुझ पर , मैंने पहले ही सोच लिया था की रात होते ही मैं कुवे पर चला जाऊंगा. मैं हरगिज नहीं चाहता था की ब्याह में मेरी वजह से रंग में भंग पड़े.

चंपा- कुछ कह रही हूँ तुझसे

मैं- ये भी कोई कहने की बात है .

मैंने चंपा से कह तो दिया था पर कैसे संभाल पाउँगा खुद को ये नहीं जानता था .

“तू वो नहीं बनेगा, क्योंकि तू वो नहीं है तू बस कबीर है ये याद रखना ” निशा के शब्द मुझे याद आने लगे. दिन ऐसे बीत रहा था की जैसे पंख लग गए हो उसके. भाभी, अंजू, चाची और तमाम औरते ऐसे सजी-धजी थी की जैसे आसमान से अप्सराये उतर आई हो पर मेरा दिल जब काबू से बाहर हो गया जब मैंने अपनी जान को आते देखा, या जान जाते देखा.

मैं जनवासे में चाय पानी की वयवस्था देख कर घर आया ही था की मैंने भाभी के साथ निशा को खड़ी देखा, और देखता ही रह गया. जैसे ही हमारी नजरे मिली काबू नहीं रहा खुद पर . दिल किया की बस आगोश में भर लू उसे और उसके गाल चूम लू.

इठलाते हुए निशा मेरे पास आई और बोली- तैयार नहीं हुए अभी तक तुम .

मैं- आओ मेरे साथ

मैं उसे चाची के घर ले पंहुचा और हम दोनों छत पर आ गए . एकांत मिलते ही मैं उस से लिपट गया

निशा- किस बात की बेसब्री है ये

मैं- बहुत अच्छा किया तुमने जो आ गयी .

निशा- मुझे तो आना ही था .

मैं- दिल बहुत घबरा रहा था, रात का सोच कर

निशा- रात ही तो है बीत जाएगी . सोचना ही नहीं उस बारे में .

मैं- और इस खूबसूरत चेहरे के बारे में सोचु या नहीं

निशा- डायन से इश्क किया है तुमने, इस चेहरे के बारे में नहीं सोचोगे तो फिर किसका ख्याल होगा.

निशा ने मेरा माथा चूमा और बोली- निचे जा रही हूँ मेरे आगे-पीछे मत घूमना. नजरो से देखना मुझे, नजरो से छेड़ना मुझे .

मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा- इश्क किया है तुमसे कोई चोरी नहीं की है.

निशा- इसीलिए तो सारे बंधन तोड़ कर आ गयी. तेरा बंधन बाँध लिया पिया .

मैंने उसे फिर से अपने आगोश में खींच लिया . उसकी सांसे मेरे गालो पर पड़ने लगी.

निशा- जाने दो न

मैं- अब कही नहीं जाना तुमको

निशा-जिस दिन ज़माने की छाती पर पैर रख कर आउंगी फिर एक पल दूर ना जाउंगी तुमसे.

बड़ी नफासत से उसने अपनी छातिया मेरे सीने पर रगड़ी और बाँहों से निकल कर निचे चली गयी. नहा-धोकर नए कपडे पहन कर मैं निचे गया तो भाभी और भैया किसी गहरी चर्चा में डूबे थे . मुझे अपनी तरफ आते देख दोनों चुप हो गए. जिन्दगी में पहली बार मैंने भैया के माथे पर बल पड़े देखे.

भाभी- देवर जी, हमे थोडा समय दो

भाभी ने मुझे वहां से जाने को कहा. मैं और काम देखने लगा पर मन में सवाल था की क्या बात कर रहे थे दोनों. जैसे जैसे अँधेरा घिर रहा था मुझ पर अनजाना डर छाता जा रहा था . कुछ ही देर में सुचना आई की बारात जनवासे में पहुँच चुकी है. हम लोग रस्मो के लिए वहां पहुँच गए. बारात को चाय पानी करवाने के बाद गोरवे की रस्म की और शेखर बाबू घोड़ी पर बैठ गए .बैंड बाजा बजने लगा. बाराती नाचने लगे. मेरी नजर आसमान में चमकते चाँद पर पड़ी और छाती में आग सी लग गयी................................


 

Studxyz

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दिवाली की हार्दिक शुभकामना फौजी भाई जी हम तो जनवरी में अपडेट की उम्मीद लगाए बैठे थे पर आज का अपडेट दिवाली का तोहफा साबित हुआ
 

Studxyz

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निशा सारे बंधन तोड़ के वादे के अनुसार चम्पा के विवाह में आ गयी पर भैया भाभी क्या सोच रहे थे और कबीर को फिर से आदमखोर का दौरा पड़ गया ?

आज की रात कुछ न कुछ लफड़ा होगा ज़रूर शायद आदमखोर ही हमला करे लेकिन किस पर ?
 

Studxyz

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कबीर का चम्पा चमेली से इतना इमोशनल लगाव अच्छा नही जब कि उसने कबीर को दी भी नहीं और महा चोदू राये साहब को उछल उछल के घोड़ी बन के अपनी रसभरी चुत देती रही और तो और मंगू को भी देती रही बस कबीर पर मेहरबां नही हुई :D
 

Aakash.

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Champa ko dekhkar bita hua kal yaad aata hai wo hasti khilkhilati alhad si ladki or aaj use dekhkar aisa laga sab waqt ke sath badal gaya na jaane kyu dil me ek tees uthti lekin kyu khair betiya to hoti hi hai parayi ye riwaaz or ritiya hi kuch aisi hai, yaado ka dera liya ek nayi duniya sazani hai..

Raay sahab ke liye hum itna hi kahege parde hazaar hai par kuch chupa nahi, khushiya hazaar hai dil ye bhara nahi.. bas kuch der or ek baar sabhi kadiya jud jaaye fir hisaab honga...

Nisha bhi aayi hai ye acchi baat hai do pal ke liye hi sahi in sabhi uljhano ko chhod dil ko karaar aaya, ghar me khushiyo ka mahol hai dar lagta hai kabir ko dekhkar kahi wah kaabu na rakh paaya to sabkuch kharab ho jaayega... ummid hai Sab acche se ho jaaye..
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Jaisa kabir ne kaha champa us din hi ho gayi thi parayi lekin wajah jise leker hum Sab uljhe hue hai khud kabir bhi to ye jaana rochak honga, yuhi khilkhilate chehre par aasuo ki dhaar to nahi aati.. or ye Aaasu gawahi dete hai ki jo khuch bhi hua wo khushi se nahi tha khair aage ek naya pdaav hai kuch acchi or kuch buri yaado ko saath lekar aage badna hai. Sach saamne aane ke baad wo honga jo humne socha bhi nahi..
 
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