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#117
दो बातो ने मुझे उलझा रखा था की क्या रमा जानती थी चाचा ने ही उसकी बेटी को मारा था . दूसरा वैध को किसने मारा. वैध एक ऐसा इन्सान था जो कविता को भी पेल रहा था , रमा को भी . वैध जरुर जानता था की कविता उस रात जंगल में क्या करने गयी थी . मैं उसी वक्त कविता के घर पर गया और तलाशी लेने लगा पर इस बार कमरा कविता का नहीं बल्कि वैध का था .
बात केवल चुदाई की नहीं थी नशा उस सोने का भी था जिसका साला कोई दावेदार नहीं था . जर, जोरू और जमीन दुनिया में इस से बड़ा कोई नशा नहीं हुआ . ये तीन ही चीज था जो क्या से क्या करवा सकती थी . वैध के कमरे में मुझे बहुत कुछ मिला जो सोच से परे था. वैध ने अपनी बहु से ही चुदाई के सम्बन्ध बनाये थे, मतलब साफ़ था वो शौक़ीन बुढा था . बेटा उसका शहर में था घर पर जवान बहु दोनों को रोकने वाला कोई नहीं था .
चीजो को खंगालते हुए मैं सोच रहा था . और जो चीज मुझे खटकी वो थी उस झोले से निकला एक पहचान पत्र जिस पर वैध के बेटे रोहताश का फोटो था और जहाँ वो चोकिदारी करता था वहां का पता लिखा था , रोहताश शहर में था तो उसका ये परिचय पत्र यहाँ क्या कर रहा था . ये तो उसके पास होना चाहिए था न, मैंने गौर किया वो काफी समय से यहाँ गाँव में नहीं आया था , न कविता की मौत पर न बाप की मौत पर . क्या इतना जरुरी था उसका काम. चाचा के बारे में जो मैंने पिछली रात जाना था मुझे शंका होने लगी की कहीं रोहताश भी बस नाम का जिन्दा न हो. किसी ने बहुत पहले उसे भी रस्ते से हटा दिया हो.
पर किसने, शायद उसी न जिसने रमा के पति को मरवाया हो. ये दोनों लोग रमा और कविता के साथ खुली चुदाई में रोड़े थे , माना की रोहताश तो शहर में था पर रमा का आदमी यही रहता था तो मुमकिन था की दोनों को एक ही कातिल ने पेल दिया हो. मैंने वो परिचय पत्र जेब में डाला उन चुदाई की किताबो को झोले में वापिस रखा और तुंरत अंजू के पास गया .
अंजू- क्या हुआ साँस क्यों उखड़ रही है तुम्हारी
मैं- मदद चाहिए
अंजू- मुझसे कैसी मदद
मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और बोला- मेरी बहन अगर मेरी मदद नहीं करेगी तो कौन करेगी
अंजू- बता क्या चाहिए
मैं- गाडी की चाबी और रमा को धर लो जहाँ भी मिले , चाहे उसकी खाल उतारनी क्यों ना पड़े. उस से पूछो वैध को किसने मारा.
अंजू- धर तो लुंगी पर फिर कहना मत की क्या कर दिया
मैं- जो चाहे करो
उसने मुझे चाबी दी और मैंने गाडी शहर की तरफ दौड़ा दी. मैं सीधा वहां गया जहाँ का पता परिचय पत्र पर था और वहां एक छिपा सच मेरा इंतज़ार कर रहा था . मालूम हुआ की एक बार रोहताश छुट्टी गया था फिर कभी लौटा ही नहीं . इसका अंदेशा तो था मुझे पर पुष्टि जरुरी थी . मैंने गाडी वापिस मोड़ दी. अब रमा ही वो चाबी थी जो कुछ बातो के ताले खोलने वाली थी . वापसी में मैं मलिकपुर होते हुए आया. रमा के कमरे पर ताला लगा था . मैंने ताले को तोड़ दिया और तलाशी लेने लगा पर यहाँ कुछ भी नहीं था . रमा अपना अतीत साथ लेकर नहीं आई थी यहाँ .
चौधरी रुडा से मिलने की एक और कोशिश नाकाम रही , आज भी नहीं मिला वो मुझे बता नहीं सकता कितनी हताशा थी मुझे उस वक्त. पर हालात पर भला किसका जोर चला है जो मेरा चलेगा. दिमाग में बहुत कुछ था , हो सकता था की राय साहब के कहने पर ही मंगू ने वैध को भी मारा हो . हो सकता था की इस शतरंज के असली खिलाड़ी राय साहब ही रहे हो जंगल में सबने अपनी अपनी जिन्दगिया जी थी . सबको एक साथ लाना बहुत टेढ़ा काम था .
रोहताश मर चूका था उसकी लाश यही कहीं इसी जंगल में गाड दी गयी होगी. चंपा का राय साहब से सिर्फ इसलिए चुदना की वो अहसान उतार रही थी मामला जम सा नहीं रहा था . घर वापिस आने के बाद मैं सीधा चाची के पास गया .
मैं- मुझे हर हाल में मालूम करना है की चंपा क्यों चुदी राय साहब से . चाची तुम्हारे बहुत करीब है वो ये बात पता करके दो
चाची- इस बारे में हमने बात की थी न, और फिर ब्याह के बाद वो चली ही जाएगी छोड़ो इस बात को
मैं- नहीं छोड़ सकता . मालूम करके बताओ
चाची- कोशिश करती हूँ
मैंने हाँ में सर हिलाया और दरवाजे से बाहर निकला ही था की भाभी से टकरा गया .
भाभी- देख कर चला करो , सर फूट ही गया क्या मेरा
मैं- रोहताश मर चूका है. एक बार छुट्टी आया तो फिर वो वापिस नहीं गया काम पर . प्रकाश को राय शाब ने मरवाया मंगू के हाथो कहीं ऐसा तो नहीं की मंगू ने ही वैध, रोहताश, को मारा हो .
भाभी- राय साहब के कमरे की तलाशी लेने की कोशिश करो . क्या पता कुछ सुराग मिले. वैसे अभिमानु के पास कमरे की एक चाबी हमेशा रहती है .
मैं- बात चाबी की नहीं है मैं ताला भी तोड़ दू. पर बाप इधर ही है , उसे किसी काम में उलझा दिया जाये की वो कमरे में न आ पाए तो भी मेरा काम हो जायेगा.
भाभी- कोशिश करती हूँ .
तभी मैंने देखा की अभिमानु भैया पैदल ही घर से बाहर जा रहे थे . मैंने देखा की बाप हमारा हलवाइयो से बात कर रहा था मैंने सही समझा और उसके कमरे में घुस गया . एक बार फिर से मैं कुछ तलाशना चाहता था . दराज में पड़े कागजो पर जो हाथ डाला, तो किस्मत ने मेरा ऐसा साथ दिया की अगर किस्मत सामने होती तो उसके लब चूम लिए होते मैंने.
दो बातो ने मुझे उलझा रखा था की क्या रमा जानती थी चाचा ने ही उसकी बेटी को मारा था . दूसरा वैध को किसने मारा. वैध एक ऐसा इन्सान था जो कविता को भी पेल रहा था , रमा को भी . वैध जरुर जानता था की कविता उस रात जंगल में क्या करने गयी थी . मैं उसी वक्त कविता के घर पर गया और तलाशी लेने लगा पर इस बार कमरा कविता का नहीं बल्कि वैध का था .
बात केवल चुदाई की नहीं थी नशा उस सोने का भी था जिसका साला कोई दावेदार नहीं था . जर, जोरू और जमीन दुनिया में इस से बड़ा कोई नशा नहीं हुआ . ये तीन ही चीज था जो क्या से क्या करवा सकती थी . वैध के कमरे में मुझे बहुत कुछ मिला जो सोच से परे था. वैध ने अपनी बहु से ही चुदाई के सम्बन्ध बनाये थे, मतलब साफ़ था वो शौक़ीन बुढा था . बेटा उसका शहर में था घर पर जवान बहु दोनों को रोकने वाला कोई नहीं था .
चीजो को खंगालते हुए मैं सोच रहा था . और जो चीज मुझे खटकी वो थी उस झोले से निकला एक पहचान पत्र जिस पर वैध के बेटे रोहताश का फोटो था और जहाँ वो चोकिदारी करता था वहां का पता लिखा था , रोहताश शहर में था तो उसका ये परिचय पत्र यहाँ क्या कर रहा था . ये तो उसके पास होना चाहिए था न, मैंने गौर किया वो काफी समय से यहाँ गाँव में नहीं आया था , न कविता की मौत पर न बाप की मौत पर . क्या इतना जरुरी था उसका काम. चाचा के बारे में जो मैंने पिछली रात जाना था मुझे शंका होने लगी की कहीं रोहताश भी बस नाम का जिन्दा न हो. किसी ने बहुत पहले उसे भी रस्ते से हटा दिया हो.
पर किसने, शायद उसी न जिसने रमा के पति को मरवाया हो. ये दोनों लोग रमा और कविता के साथ खुली चुदाई में रोड़े थे , माना की रोहताश तो शहर में था पर रमा का आदमी यही रहता था तो मुमकिन था की दोनों को एक ही कातिल ने पेल दिया हो. मैंने वो परिचय पत्र जेब में डाला उन चुदाई की किताबो को झोले में वापिस रखा और तुंरत अंजू के पास गया .
अंजू- क्या हुआ साँस क्यों उखड़ रही है तुम्हारी
मैं- मदद चाहिए
अंजू- मुझसे कैसी मदद
मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और बोला- मेरी बहन अगर मेरी मदद नहीं करेगी तो कौन करेगी
अंजू- बता क्या चाहिए
मैं- गाडी की चाबी और रमा को धर लो जहाँ भी मिले , चाहे उसकी खाल उतारनी क्यों ना पड़े. उस से पूछो वैध को किसने मारा.
अंजू- धर तो लुंगी पर फिर कहना मत की क्या कर दिया
मैं- जो चाहे करो
उसने मुझे चाबी दी और मैंने गाडी शहर की तरफ दौड़ा दी. मैं सीधा वहां गया जहाँ का पता परिचय पत्र पर था और वहां एक छिपा सच मेरा इंतज़ार कर रहा था . मालूम हुआ की एक बार रोहताश छुट्टी गया था फिर कभी लौटा ही नहीं . इसका अंदेशा तो था मुझे पर पुष्टि जरुरी थी . मैंने गाडी वापिस मोड़ दी. अब रमा ही वो चाबी थी जो कुछ बातो के ताले खोलने वाली थी . वापसी में मैं मलिकपुर होते हुए आया. रमा के कमरे पर ताला लगा था . मैंने ताले को तोड़ दिया और तलाशी लेने लगा पर यहाँ कुछ भी नहीं था . रमा अपना अतीत साथ लेकर नहीं आई थी यहाँ .
चौधरी रुडा से मिलने की एक और कोशिश नाकाम रही , आज भी नहीं मिला वो मुझे बता नहीं सकता कितनी हताशा थी मुझे उस वक्त. पर हालात पर भला किसका जोर चला है जो मेरा चलेगा. दिमाग में बहुत कुछ था , हो सकता था की राय साहब के कहने पर ही मंगू ने वैध को भी मारा हो . हो सकता था की इस शतरंज के असली खिलाड़ी राय साहब ही रहे हो जंगल में सबने अपनी अपनी जिन्दगिया जी थी . सबको एक साथ लाना बहुत टेढ़ा काम था .
रोहताश मर चूका था उसकी लाश यही कहीं इसी जंगल में गाड दी गयी होगी. चंपा का राय साहब से सिर्फ इसलिए चुदना की वो अहसान उतार रही थी मामला जम सा नहीं रहा था . घर वापिस आने के बाद मैं सीधा चाची के पास गया .
मैं- मुझे हर हाल में मालूम करना है की चंपा क्यों चुदी राय साहब से . चाची तुम्हारे बहुत करीब है वो ये बात पता करके दो
चाची- इस बारे में हमने बात की थी न, और फिर ब्याह के बाद वो चली ही जाएगी छोड़ो इस बात को
मैं- नहीं छोड़ सकता . मालूम करके बताओ
चाची- कोशिश करती हूँ
मैंने हाँ में सर हिलाया और दरवाजे से बाहर निकला ही था की भाभी से टकरा गया .
भाभी- देख कर चला करो , सर फूट ही गया क्या मेरा
मैं- रोहताश मर चूका है. एक बार छुट्टी आया तो फिर वो वापिस नहीं गया काम पर . प्रकाश को राय शाब ने मरवाया मंगू के हाथो कहीं ऐसा तो नहीं की मंगू ने ही वैध, रोहताश, को मारा हो .
भाभी- राय साहब के कमरे की तलाशी लेने की कोशिश करो . क्या पता कुछ सुराग मिले. वैसे अभिमानु के पास कमरे की एक चाबी हमेशा रहती है .
मैं- बात चाबी की नहीं है मैं ताला भी तोड़ दू. पर बाप इधर ही है , उसे किसी काम में उलझा दिया जाये की वो कमरे में न आ पाए तो भी मेरा काम हो जायेगा.
भाभी- कोशिश करती हूँ .
तभी मैंने देखा की अभिमानु भैया पैदल ही घर से बाहर जा रहे थे . मैंने देखा की बाप हमारा हलवाइयो से बात कर रहा था मैंने सही समझा और उसके कमरे में घुस गया . एक बार फिर से मैं कुछ तलाशना चाहता था . दराज में पड़े कागजो पर जो हाथ डाला, तो किस्मत ने मेरा ऐसा साथ दिया की अगर किस्मत सामने होती तो उसके लब चूम लिए होते मैंने.