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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Naik

Well-Known Member
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#112

मैंने निशा को साथ लिया और हम लोग उस जगह पर आ गए जहाँ पर पिताजी मुझे लेकर आये थे. समाधी अभी भी वैसी ही थी जैसा मैं उसे छोड़ कर गया था .

मैं- अगर वो सुनैना की समाधी थी तो ये किसकी समाधी है

निशा- मैं क्या जानू , पर इतना जानती हूँ की सुनैना की समाधी वहां है जहां मैं तुझे लेकर गयी थी चाहे तो तस्दीक कर ले.

मैं- मानता हु तेरी बात तो फिर राय साहब ने झूठ क्यों कहा. क्या छिपा रहे थे वो.

निशा- अब आये है तो ये भी तलाश लेते है , जंगल बड़ा रहस्यमई है , इसकी ख़ामोशी में चीखे है लोगो की . देखते है यहाँ की क्या कहानी है. उम्मीद है ये रात दिलचस्प होगी.

मैंने मुस्कुरा कर देखा उसे. अपनी जुल्फों को चेहरे से हटाते हुए वो भी मुस्कुराई और टूटी समाधी को देखने लगी.

निशा- यहाँ भी धन पड़ा है

मैं- यही तो समझ नही आ रहा की ऐसा कौन हो गया जो खुले आम अपने धन को फेंक गया. अजीब होगा वो सक्श जिसे दुनिया की सबसे मूल्यवान धातु का मोह नहीं.

पता नहीं निशा ने मेरी बात सुनी या नहीं सुनी वो उन दो कमरों की तरफ बढ़ गयी थी . पत्थर उठा कर बिना किसी फ़िक्र के उसने बड़े आराम से दोनों कमरों के ताले तोड़ दिए. उसके पीछे पीछे मैं भी अन्दर आया. कमरे बस कमरे थे , कुछ खास नहीं था वहां . एक कमरा बिलकुल खाली था , दुसरे में एक पलंग था जिसकी चादर बहुत समय से बदली नहीं गयी थी . मैंने निशा को देखा जो गहरी सोच में डूब गयी थी .

मैं- क्या सोच रही है

निशा- इस जगह को समझने की कोशिश कर रही हूँ. इन कमरों का तो नहीं पता पर जहाँ तक मैं समझी हूँ तेरे कुवे और मेरे खंडहर से लगभग समान दुरी है यहाँ की . इस सोने को देखती हूँ , तालाब में पड़े सोने को देखती हूँ तो सोचती हूँ की कोई तो ऐसा होगा जो इन तीनो जगह को बराबर समझता होगा. पर यहाँ लोग आते है खंडहर पर कोई आता नहीं



निशा कुछ कह रही थी मेरे दिमाग में कुछ और चल रहा था .इस जगह से बड़ी आसानी से कुवे पर और निशा के खंडहर पहुंचा जा सकता था तो इस जगह का इस्तेमाल चुदाई के लिए भी सकता था . खंडहर का कमरे में चुदाई हो सकती थी तो यहाँ भी हो सकती थी, और अगर मामला चुदाई का था तो चाचा वो आदमी हो सकता था जो दोनों जगह के बारे में जानता होगा

मैं- ठाकुर जरनैल सिंह वो आदमी हो सकता है निशा जिसका सम्बन्ध तीनो जगह कुवे, यहाँ और खंडहर से हो सकता है. वसीयत का चौथा पन्ना हो न हो चाचा के बारे में ही है. और अगर चाचा तीनो जगह इस्तेमाल करता था तो पिताजी भी करते होंगे क्योंकि आजकल वो भी चाचा की राह पर ही चल दिए है , दोनों भाइयो के बीच झगडा किसी औरत के लिए ही हुआ होगा.

निशा- क्या लगता है तुझे रमा हो सकती है वो औरत .

मैं- चाचा के जीवन म तीन प्रेयसी थी , कविता, सरला और रमा. सबसे जायदा सम्भावना रमा की है . कविता हो न हो उस रात चाचा से मिलने ही आई होगी , पर बदकिस्मती से उसकी हत्या हो गयी.



निशा- पर ठाकुर जरनैल कहाँ है और छिपा है तो क्यों , किसलिए



मैं- कहीं चाचा तो आदमखोर नहीं . जब कविता उस से मिली उस समय शायद उसका रूप बदला हो और उसने कविता को मार दिया हो. सम्भावना बहुत ज्यादा है इस शक की क्योंकि कई बार मैंने भी महसूस किया है की आदमखोर से कोई तो ताल्लुक है मेरा. इसी बीमारी के कारन चाचा को छिप कर रहना पड़ रहा हो .

निशा- ऐसा है तो विचित्र है ये .

मैं- जंगल ने जब इतने राज छिपाए हुए है तो ये राज भी सही . राय साहब ने चौथा पन्ना इसलिए ही रखा होगा की चाचा का राज कभी कोई समझ नहीं पाये. जब जब राय साहब काम का बहाना करके गाँव से गायब होते है तो जरूर वो अपने भाई की देख रेख ही करते होंगे. राय साहब अक्सर चांदनी रातो में ही गायब होते है .



निशा- पुष्टि करने के लिए हमें इस जगह की निगरानी करनी होगी.



मैं- मैं करूँगा ये काम. चाचा से मिलने को सबसे बेताब मैं हूँ . बहुत सवाल है मेरे उनसे. पर एक चीज खटक रही है अभी भी मुझे की गाड़ी कहाँ छिपाई गयी चाचा की .

निशा- ठाकुर साहब इधर है तो गाडी भी यही कहीं होनी चाहिए. देखते है



हम लोग बहुत बारीकी से निरक्षण करने लगे. ऐसा कुछ भी नहीं था जो असामान्य हो .

“मैं उसे वहां छिपाती जहाँ वो सबकी नजरो में तो हो पर उस पर किसी का ध्यान नहीं जाए ” अंजू के शब्द मेरे जेहन में गूंजने लगे.

“क्या है वो जो आम होकर भी खास है . ” मैंने खुद से कहा.

मेरे ध्यान में आया की कैसे खंडहर में मुझे वो कमरे मिले थे . मैंने वैसे ही कुछ तलाशने का सोचा . एक बार फिर मैं उस कमरे में आया जहाँ कुछ भी नहीं था . अगर इस कमरे में कुछ भी नहीं था तो इसे बनाया क्यों गया . कुछ तो बात जरुर थी . सब कुछ देखने के बाद भी निराशा मुझ पर हावी होने लगी थी .

“मैं सोच रही हूँ की जब सुनैना यहाँ नहीं तो फिर उसकी समाधी यहाँ क्यों बनाई ” निशा ने कहा

मैं- समाधी, निशा, समाधी. ये कोई समाधी नहीं है निशा ये एक छलावा है . जिसमे मैं फंस गया . दिखाने वाले ने जो दिखाया मैं उसे ही सच मान बैठा. दिखाने वाले ने मुझे सोना दिखाया मैं उसमे ही रह गया. जो छिपाया उसे सोने की परत ने देखने ही नहीं दिया.

निशा- क्या .

मैं- आ मेरे साथ .

एक बार फिर हम लोग समाधी के टूटे टुकडो पर थे.

मैं- मैंने इसे गलत हिस्से में खोदा. बनाने वाले या यूँ कहूँ की छिपाने वाले ने बहुत शातिर खेल रचा निशा. जो भी देखता पहले हिस्से को ही देखता , पहले हिस्से में उसे सोना मिलता, धन का लालच निशा, फिर उसे और कुछ सूझता ही नहीं . जबकि खेल यहाँ पर हैं .

मैंने समाधी के पिछले हिस्से को देखा तो ऊपर की नकली परत हटते ही कुछ सीढिया मिली.

निशा- सुरंग

मैं- हाँ सुरंग, अब देखना है की ये खुलती कहाँ है .


निशा ने कमरे में रखी चिमनी उठा ली और हम सीढियों से उतरते गए. अन्दर जाते ही निशा ने चिमनी जला की और मैंने परत वपिस लगा दी. मैं नहीं चाहता था की किसी को मालूम हो हम लोग यहाँ है . एक एक करके निशा सुरंग की मशालो को जलाती गयी और चलते हुए हम लोग ऐसी जगह पहुँच गए जहाँ की हमने तो क्या किसी ने भी कल्पना की ही नहीं होगी.
Kabir ka dimag aaj bahot tez kaam ker raha h shayad Nisha ki sangat ka aser ho baherhal dekhte kaha pahoch gaye do o surang k raste jiski ineh ummeed nahi thi
Bahot badhiya shaandaar lajawab update bhai
 

Naik

Well-Known Member
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#113

आँखे जो देख रही थी , समझ नही आ रहा था की आँखे झूठ कह रही या दिल नहीं मान रहा था . जंगल ने जो छिपाया हुआ था कोई सोच भी नहीं सकता था. हमारी आँखे मशाल की रौशनी में उस पीली धातु को देख रही थी जिसके पीछे इन्सान पागल हो जाये. धरती ने अपनी कोख में इतना सोना छिपाया हुआ था जो इस जन्म में तो क्या कई जन्म तक गिना नहीं जा सके. हम धरती के निचे सोने की खान में थे.

“तो ये है जंगल का वो सच जो सबसे छिपाया गया है. जो भी हो रहा है इसके लिए ही हो रहा है. प्रकाश इस सच को जान गया होगा जिसकी कीमत उसने जान देकर चुकाई. अंजू इस जगह की तलाश में है ” मैंने कहा

निशा- सोना रक्त से शापित है. कोई ताज्जुब नहीं इसे पाने की कोशिश करने वाले को जान देनी पड़ी.

मैं- ये सोना राय साहब का भी नहीं हो सकता , कब्ज़ा है उनका बस .

निशा- अब क्या

मैं- दूसरा मुहाना देखते है कहाँ खुलेगा.

खान में चलते चलते हम आगे बढ़ने लगे. कुछ देर बाद ऊपर जाने को वैसी ही सीढिया थी जैसी की हम समाधी से होकर आये थे. निशा ने ऊपर की परत को सरकाने की कोशिश की तो हमारे लिए एक आश्चर्य और था.

मैं क्या हुआ

निशा- ताला लगा है इस पर कुछ दे मुझे तोड़ने के लिए

तभी मुझे कुछ ध्यान आया . मैंने जेब से चाबी निकाली और निशा को देते हुए बोला- ये चाबी लगा जरा.

और किस्मत देखो. चाबी घूम गयी . और साथ में मेरी आँखे भी . तो ठाकुर जरनैल सिंह का ताला था ये . ताला खोलते ही निशा आगे उस जगह में घुस गयी. मशाल की रौशनी में देखा की वो एक बड़ा कमरा था . कमरा ही कहना उचित था उसे. खान के किसी हिस्से को काट कर बनाया गया . जिसमे दो पलंग पड़े थे. छोटा मोटा जरुरत का समान था जिस पर मिटटी ने कब्ज़ा कर लिया था. पलंग खस्ताहाल थे. साफ़ मालूम होता था की बरसों से यहाँ किसी ने दस्तक नहीं दी .

निशा ने आस-पास तलाशी लेनी शुरू की , उसे वो ही नंगी तस्वीरों वाली किताबे मिली जिनके कागज वक्त की मार के आगे पीले पड़ चुके थे. पर उसका ध्यान किताबो से जायदा उस छोटे बक्से पर था जो गहनों से भरा था .

मैंने उसके हाथ से बक्सा लिया और गौर से देखने लगा. मेरा दिल इतनी जोर से धडक रहा था की पसलियों में दर्द होने लगा. मैं बहुत कुछ समझ रहा था . ये गहने , अगर मैं सही समझा था तो ये वो गहने होने चाहिए थे जो चाचा ने मलिकपुर के सुनार से बनवाये थे. इन गहनों का यूँ लावारिस पड़े होना बहुत कुछ ब्यान करता था .

चाचा और राय साहब के बिच जिस झगडे की बात मुझे सरला ने बताई थी वो झगडा कभी भी चूत के लिए नहीं हुआ था . वो झगड़ा हुआ था इस सोने के लिए.

“कबीर इधर आ ” निशा की आवाज ने मेरा ध्यान तोडा मैं उसके पास गया. दो पल में ही हम लोग ऐसी जगह खड़े थे जहाँ से मेरा कुवा थोड़ी ही देर थे. हम लोग खेतो पर थे. खेतो पर एक तरफ घने पेड़ो के पास. ये एक गुप्त रास्ता था . आज मुझे समझ आया की क्यों पिताजी ने मेरे बार बार कहने पर भी इन पेड़ो को कटवाया क्यों नहीं था .

प्रकाश , अंजू को इस गुप्त रस्ते की तलाश थी . इस गुप्त रस्ते को वो लोग कभी खोज ही नहीं पाये थे .

निशा- ठाकुर जरनैल सिंह ही वो आदमी है जो तीनो जगह से जुड़ा है. कमरे में मिले समान पुष्टि करते है इस बात की .

मैं- नहीं , चाचा कुवे और समाधी से तो जुड़ा है पर खंडहर से नहीं .

निशा- क्यों

मैं- समझ , चाचा के पास जब यहाँ इतना सोना पड़ा था तो वो सोना पानी में और उस कमरे में क्यों छिपाएगा . दूसरी बात रमा और सरला ने कभी नहीं कहा की चाचा उनको खंडहर में ले जाता था . हमेशा ये ही कहा की चाचा हमेशा उनको कुवे पर ही लाता था , और चाचा इतना तो समझदार रहा ही होगा की वो इस राज को अपने सीने में ही दबाये रखता. इतने बड़े खजाने का जिक्र करना मुश्किल होता किसी के लिए भी .

निशा- तो फिर खंडहर पर सोना कैसे पहुंचा.

मैं- चोरी मेरी जान, किसी ने यहाँ से चोरी की . सोने को खंडहर में ले गया. और खास बात ये की ये काम एक बार में नहीं किया गया. बार बार किया गया.

निशा- हो सकता है पर गौर करने वाली बात ये भी है की अय्याशी का समान इधर भी उधर भी है . ठाकुर साहब रसिया थे हो सकता है की वो ही अपने भाई की पीठ में छुरा घोंप रहे हो.

मैं- हो सकता है पर फिर चाचा की रांडो को खंडहर की जगह क्यों नहीं मालूम

निशा- सम्भावना कबीर, हो सकता है की झगडे के बाद चाचा ने अपनी राह अलग चुन ली हो . उन्होंने अपना ठिकाना खंडहर में बनाया हो पर इस से पहले की वो अपनी दोस्तों को वहां ले जा पाते बदकिस्मती से वो गायब हो गए.

मैं- मुझे लगता है की राय साहब का हाथ है चाचा के गायब होने में

निशा- हालात देखते हुए शक कर सकते है

मैं- बस चाचा की गाडी मिल जाये तो बात बन जाये

निशा- सुन एक काम कर. कल तू बैंक जा , वहां मालूम कर चाचा ने अपने खाते से कब कब लेन देन कियाहै . आदमी को पैसे की जरूरत तो पड़ेगी ही . अगर इतने दिन से वो सोना लेने नहीं आया तो इसका मतलब है की उसने पहले ही अपना जुगाड़ कर लिया होगा.

मैं- कल देखता हूँ .

निशा- किसी को भी भनक नहीं होनि चाहिए की हम जानते है इस राज को . हम यहाँ आने वाले को रंगे हाथ पकड़ेंगे. तभी कोई बात बनेगी.

मैं- सही कहा तूने .

निशा ने आसमान की तरफ देखा और बोली- मेरे जाने का समय हो गया है

मैं- मत जा

निशा- कुछ दिनों की बात है फिर तो तेरे साथ ही रहना है न .


उसके जाने के बाद मैंने कुवे पर बने कमरे का दरवाजा खोला और बिस्तर में घुस गया. सुबह होने में थोड़ी ही देर थी. पर मैं आने वाले तूफान को समझ नहीं पा रहा था .
Sone ki poori khaan thi waha sahi koyi sapne bhi soch sakta kuch longo ko chhod ker ki iss gaon k ek jungle m itna saara sona bhara pada h or jisne paane ki koshish ki mara hi gaya itna kuch pata laga lia h kabir or nisha n ab dekhte or kia pata chalta h
Bahot khoob shaandaar
Lajawab update bhai
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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आँख खुली तो दोपहर हो रही थी ,अलसाया बदन लिए मैं मुश्किल से उठा. हाथ मुह धोये . गाँव पहुँच कर सबसे पहले मैं मंगू से ही मिला उसे साइड में लेकर गया.

मैं- कुछ जरुरी बात करनी है तुझसे

मंगू- हाँ भाई .

मैं- तूने प्रकाश को क्यों मारा.

मेरी बात सुनकर मंगू के चेहरे का रंग उड़ गया पर मैं हरगिज नहीं चाहता था की वो नजरे चुराए.

मैं- मंगू , तू मेरा दोस्त है और मैं उम्मीद करता हूँ की तू मुझे सच बताये.

मंगू-वो राय साहब पर दबाव बना रहा था

मैं- किस चीज का दबाव

मंगू- यही की राय साहब उसे वसीयत का एक टुकड़ा दे दे और साथ में चंपा को भी उसके पास भेजे.

मैंने एक गहरी साँस ली.

मैं- क्या था उस वसीयत में

मंगू- नहीं जानता. राय साहब ने इतना ही कहा की उनका पाला हुआ सपोला उनको डसना चाहता है , उसका फन कुचल दिया जाए.

मैं- ऐसा क्या था प्रकाश के पास की वो राय साहब को ब्लेकमेल करने की जुर्रत कर पाया.

मंगू- नहीं जानता, राय साहब ने कहा उसे मार दे मैंने मार दिया .

मैं- कल को राय साहब कहेगा की कबीर को मार दे तू मुझे भी मार देगा.

मंगू- कैसी बाते कर रहे हो भाई

मैं- तूने गलत राह चुनी है मेरे दोस्त. इस राह पर तुझे कुछ नहीं मिलेगा . मेरा बाप तुझे इस्तेमाल कर रहा है जब उसका मन भरेगा तुझे लात मार देगा. बाकि तेरी मर्जी है.

मंगू- मैं कविता के कातिल की तलाश के लिए कर रहा हूँ ये सब.

मैं- काविता तुझे कभी नहीं चाहती थी , वो बस तेरा इस्तेमाल कर रही थी. इस बात को जितना जल्दी समझ लेगा तेरी जिन्दगी उतनी ही आसान होगी.

मंगू- झूठ कह रहे हो तुम

मैं- तेरी दोस्ती की कसम मैंने तुझसे कभी झूठ नहीं बोला.

मंगू के जाने के बाद मैंने सोचा की बाप चुटिया के मन में आखिर चल क्या रहा है. कैसे मालूम हो की वो क्या करना चाहता है क्या कर रहा है. थोड़ी देर बाद मैंने अंजू को देखा , उसके पास गया .

मैं- कैसी हो अब

अंजू- बेहतर तुम बताओ

मैं-तुम्हे ठीक लगे तो क्या तुम मेरे साथ सुनैना की समाधी पर चल सकती हो

अंजू- अभी

मैं- अभी

अंजू - ठीक है मेरी गाड़ी की चाबी ले आओ ऊपर से

हम दोनों जंगल की तरफ चल पड़े और ठीक उसी जगह पहुँच गए जहाँ निशा मुझे ले गयी थी .पत्थरों के टुकड़े अभी भी वैसे ही पड़े थे .

अंजू- देख लो जो देखना है

मैं- बुरा मत मानना पर मैं वो सोना देखना चाहता हूँ

अंजू ने कंधे उचकाए और समाधी के कुछ पत्थर हटा कर एक हांडी जो की बेहद पुराणी थी काली पड़ चुकी थी बाहर निकाल ली. हांडी का ढक्कन हटाते ही मैंने देखा की वो सोने से लबालब भरी थी .

अंजू ने सही कहा था मुझे.

मैं- रख दो इसे वापिस

अंजू- तुमको चाहिए क्या सोना

मैं- नहीं

अंजू- फिर क्यों देखना चाहते थे तुम इसे.

अंजू की आवाज में उतावलापन लगा मुझे.

मैं- मुझे लगा था की सुनैना ने सोना निकाला था ये एक अफवाह है .

अंजू- सच तुम्हारे सामने है .

मैं- आओ चलते है

वापसी में मुझे ध्यान आया की बैंक जाना था . अंजू को छोड़ने के बाद मैं सीधा मेनेजर के पास गया और चाचा के खाते की जानकारी मांगी. मनेजेर ने मुझे ऊपर से निचे तक देखा और बोला- कुंवर, अगर ठाकुर लोग अपना धन बैंक में रखने लगे तो उनका रसूख क्या ही रह जायेगा. बैंक ठाकुरों के दरवाजे पर जाते है ठाकुर बैंक नहीं आते. ठाकुर जरनैल सिंह का कोई खाता नहीं यहाँ.



मामला अब और उलझ गया था . मैं मलिकपुर गया उन गहनों को लेकर सुनार ने पुष्टि कर दी की वो गहने उसने ही चाची के लिए बनाये थे. रात को मैं थोड़ी देर भाभी के पास बैठा इधर उधर की बाते की . अंजू साथ थी तो खुलकर मैं कुछ कह नहीं पा रहा था . सबके सोने के बाद मैं चाची को छत पर ले गया और सीढियों का किवाड़ बंद करते ही अपने आगोश में भर लिया.

चाची- कबीर, थोड़े दिन सब्र कर ले फिर खूब बिस्तर गर्म करुँगी तेरा.

मैं- ज्यादा देर नहीं लगाऊंगा.

मैंने चाची को घुटनों के बल झुकाया और उसके लहंगे को कमर तक उंचा कर दिया. चाची के मादक नितम्बो को चूमते हुए मैंने उनको चौड़ा किया और चाची की झांटो से भरी चूत पर अपने होंठ रख दिए.

“सीईईईईई कबीर ” चाची चाह कर भी अपने पैरो को कांपने से नहीं रोक पाई. जीभ का नुकीला कोना चाची की चूत के दाने पर रगड पैदा कर रहा था जिस से वो भी उत्तेजित होने लगी थी . मैं जानता था की समय कम है. मैंने लंड पर थूक लगाया और चाची की चूची मसलते हुए उसे चोदने लगा.

चाची के गाल चूमते हुए , ठंडी रात में छत पर चुदाई का अपना ही सूख था . चाची थोडा और झुक गयी मैंने अपने हाथ उसके कन्धो पर रखे और पूरी रफ्तार से चूत मारने लगा. चुदाई का दौर जब रुका तो हम दोनों पसीने से लथपथ थे.

चाची- कर ली अपनी मनचाही, अब ब्याह तक कुछ न कहना मुझसे.

मैं - दो मिनट रुक फिर जाना निचे.

चाची- अब क्या है .

मैंने वो गहनों का डिब्बा चाची के हाथ में दे दिया. और बोला- ये गहने कभी चाचा ने तेरे लिए बनवाए थे, आज गहने लाया हूँ किसी दिन चाचा को भी ले आऊंगा. बहुत दुःख झेल लिए तूने तेरे हिस्से का सुख अब ज्यादा दिन दूर नहीं है तुझसे.

चाची ने उन गहनों को देखा , फिर मुझे देखा और बिना कुछ कहे वो वहां से चली गयी. निचे आने के बाद मैं कुछ खाने के लिए रसोई में गया . मैंने देखा की कमरे के दरवाजे पर अब ताला नहीं लगा है . खाना खाने के बाद मैं भैया के पुराने कमरे में चला गया हजारो किताबो ने अपने अन्दर न जाने क्या छिपाया हुआ था .

मैंने लैंप मेज पर रखा और एक किताब ऐसे ही उठा ली. दो चार पन्ने पलटे ही थे की बेख्याली में मेरा हाथ लैंप के शीशे पर लग गया . लैंप मेज पर गिर गया और उसकी नीली लौ मेज की लकड़ी पर फ़ैल गयी. उस नीली रौशनी में मुझे मेज पर कुछ उकेरा गया दिखा. और जब मैंने उसे समझा तो एक बार फिर से मेरे पास कहने को कुछ नही था.
 

Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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सबसे पहले विजय दशमी की आप सब को बधाई
फौजी भाई ने कल update नही दिया था बार बार मेरे दिमाग में जग सुना सुना लागे गाना चल रहा था
but family को time देना भी जरूरी है तो इतना चलता है

जब कबीर ने मंगू से इतना पूछा ही था तो ये भी पूछ लेता की ऐसा राय साहब के इतने तलवे चाटने की क्या जरूरत थी की अपनी बहन के साथ सो गया, कविता इतनी important भी तो नही थी

खैर अच्छा ही हुआ परकाश मर गया लेकिन अफसोस रहेगा की काफी आसान मौत मारा गया, लेकिन कबीर को ये भी confirm करना चाहिए था की वैध को भी मंगू ने ही मारा है??

कुछ सवाल रह गए जिनके जवाब कबीर चाहता तो मंगू से मिल जाता लेकिन ठीक है मैं उम्मीद करता हूं फौजी भाई एक दिन कबीर अपनी दोस्ती भूल कर मंगू को और खून का रिश्ता भूल राय साहब को उनके किए कर्मो कर्मो की सजा देगा

तो अंजू orignal वाले समाधि की बात कर रही थी, इसके नीचे सोने को सुनैना ने ढूंढा था, हो सकता है सुनैना ही तीनों जगह के सोने से जुड़ी हो और काली मंदिर वाला सोना चोरी करके नहीं किसी खास वजह से वहा रखा गया था
यदि चोरी करके कोई धीरे धीरे वहा जमा करता तो डाकन को कुछ तो पता चल ही जाता


कबीर भाई थोड़ा बुद्धि लगाओ यदि चाचा का बैंक account होता भी तो क्या चाचा खुद पैसे निकालने जाता?? जवाब है बिलकुल नहीं
अच्छा होगा कबीर अभिमानु या राय साहब के accounts का पता लगाए

जरनैल सिंह दुनिया जहान में मुंह मारा लेकिन घर में इतनी कौरी लौंडी छोड़ दिया, कबीर जिस तरह चाची की जवानी देख पागल हो जाता है उसे से लगता है की चाची एकदम कंटा माल है, क्या राय साहब ने कभी कोशिश नही की ??

फिर से जरनैल सिंह या सुनैना से जुड़ा कुछ मिला है, या जो खजाना छुपाया गया था उसका नक्सा भी हो सकता

फौजी भाई को धन्यावाद कीमती समय निकाल कर अपडेट देने के लिए 🙏
 
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आँख खुली तो दोपहर हो रही थी ,अलसाया बदन लिए मैं मुश्किल से उठा. हाथ मुह धोये . गाँव पहुँच कर सबसे पहले मैं मंगू से ही मिला उसे साइड में लेकर गया.

मैं- कुछ जरुरी बात करनी है तुझसे

मंगू- हाँ भाई .

मैं- तूने प्रकाश को क्यों मारा.

मेरी बात सुनकर मंगू के चेहरे का रंग उड़ गया पर मैं हरगिज नहीं चाहता था की वो नजरे चुराए.

मैं- मंगू , तू मेरा दोस्त है और मैं उम्मीद करता हूँ की तू मुझे सच बताये.

मंगू-वो राय साहब पर दबाव बना रहा था

मैं- किस चीज का दबाव

मंगू- यही की राय साहब उसे वसीयत का एक टुकड़ा दे दे और साथ में चंपा को भी उसके पास भेजे.

मैंने एक गहरी साँस ली.

मैं- क्या था उस वसीयत में

मंगू- नहीं जानता. राय साहब ने इतना ही कहा की उनका पाला हुआ सपोला उनको डसना चाहता है , उसका फन कुचल दिया जाए.

मैं- ऐसा क्या था प्रकाश के पास की वो राय साहब को ब्लेकमेल करने की जुर्रत कर पाया.

मंगू- नहीं जानता, राय साहब ने कहा उसे मार दे मैंने मार दिया .

मैं- कल को राय साहब कहेगा की कबीर को मार दे तू मुझे भी मार देगा.

मंगू- कैसी बाते कर रहे हो भाई

मैं- तूने गलत राह चुनी है मेरे दोस्त. इस राह पर तुझे कुछ नहीं मिलेगा . मेरा बाप तुझे इस्तेमाल कर रहा है जब उसका मन भरेगा तुझे लात मार देगा. बाकि तेरी मर्जी है.

मंगू- मैं कविता के कातिल की तलाश के लिए कर रहा हूँ ये सब.

मैं- काविता तुझे कभी नहीं चाहती थी , वो बस तेरा इस्तेमाल कर रही थी. इस बात को जितना जल्दी समझ लेगा तेरी जिन्दगी उतनी ही आसान होगी.

मंगू- झूठ कह रहे हो तुम

मैं- तेरी दोस्ती की कसम मैंने तुझसे कभी झूठ नहीं बोला.

मंगू के जाने के बाद मैंने सोचा की बाप चुटिया के मन में आखिर चल क्या रहा है. कैसे मालूम हो की वो क्या करना चाहता है क्या कर रहा है. थोड़ी देर बाद मैंने अंजू को देखा , उसके पास गया .

मैं- कैसी हो अब

अंजू- बेहतर तुम बताओ

मैं-तुम्हे ठीक लगे तो क्या तुम मेरे साथ सुनैना की समाधी पर चल सकती हो

अंजू- अभी

मैं- अभी

अंजू - ठीक है मेरी गाड़ी की चाबी ले आओ ऊपर से

हम दोनों जंगल की तरफ चल पड़े और ठीक उसी जगह पहुँच गए जहाँ निशा मुझे ले गयी थी .पत्थरों के टुकड़े अभी भी वैसे ही पड़े थे .

अंजू- देख लो जो देखना है

मैं- बुरा मत मानना पर मैं वो सोना देखना चाहता हूँ

अंजू ने कंधे उचकाए और समाधी के कुछ पत्थर हटा कर एक हांडी जो की बेहद पुराणी थी काली पड़ चुकी थी बाहर निकाल ली. हांडी का ढक्कन हटाते ही मैंने देखा की वो सोने से लबालब भरी थी .

अंजू ने सही कहा था मुझे.

मैं- रख दो इसे वापिस

अंजू- तुमको चाहिए क्या सोना

मैं- नहीं

अंजू- फिर क्यों देखना चाहते थे तुम इसे.

अंजू की आवाज में उतावलापन लगा मुझे.

मैं- मुझे लगा था की सुनैना ने सोना निकाला था ये एक अफवाह है .

अंजू- सच तुम्हारे सामने है .

मैं- आओ चलते है

वापसी में मुझे ध्यान आया की बैंक जाना था . अंजू को छोड़ने के बाद मैं सीधा मेनेजर के पास गया और चाचा के खाते की जानकारी मांगी. मनेजेर ने मुझे ऊपर से निचे तक देखा और बोला- कुंवर, अगर ठाकुर लोग अपना धन बैंक में रखने लगे तो उनका रसूख क्या ही रह जायेगा. बैंक ठाकुरों के दरवाजे पर जाते है ठाकुर बैंक नहीं आते. ठाकुर जरनैल सिंह का कोई खाता नहीं यहाँ.



मामला अब और उलझ गया था . मैं मलिकपुर गया उन गहनों को लेकर सुनार ने पुष्टि कर दी की वो गहने उसने ही चाची के लिए बनाये थे. रात को मैं थोड़ी देर भाभी के पास बैठा इधर उधर की बाते की . अंजू साथ थी तो खुलकर मैं कुछ कह नहीं पा रहा था . सबके सोने के बाद मैं चाची को छत पर ले गया और सीढियों का किवाड़ बंद करते ही अपने आगोश में भर लिया.

चाची- कबीर, थोड़े दिन सब्र कर ले फिर खूब बिस्तर गर्म करुँगी तेरा.

मैं- ज्यादा देर नहीं लगाऊंगा.

मैंने चाची को घुटनों के बल झुकाया और उसके लहंगे को कमर तक उंचा कर दिया. चाची के मादक नितम्बो को चूमते हुए मैंने उनको चौड़ा किया और चाची की झांटो से भरी चूत पर अपने होंठ रख दिए.

“सीईईईईई कबीर ” चाची चाह कर भी अपने पैरो को कांपने से नहीं रोक पाई. जीभ का नुकीला कोना चाची की चूत के दाने पर रगड पैदा कर रहा था जिस से वो भी उत्तेजित होने लगी थी . मैं जानता था की समय कम है. मैंने लंड पर थूक लगाया और चाची की चूची मसलते हुए उसे चोदने लगा.

चाची के गाल चूमते हुए , ठंडी रात में छत पर चुदाई का अपना ही सूख था . चाची थोडा और झुक गयी मैंने अपने हाथ उसके कन्धो पर रखे और पूरी रफ्तार से चूत मारने लगा. चुदाई का दौर जब रुका तो हम दोनों पसीने से लथपथ थे.

चाची- कर ली अपनी मनचाही, अब ब्याह तक कुछ न कहना मुझसे.

मैं - दो मिनट रुक फिर जाना निचे.

चाची- अब क्या है .

मैंने वो गहनों का डिब्बा चाची के हाथ में दे दिया. और बोला- ये गहने कभी चाचा ने तेरे लिए बनवाए थे, आज गहने लाया हूँ किसी दिन चाचा को भी ले आऊंगा. बहुत दुःख झेल लिए तूने तेरे हिस्से का सुख अब ज्यादा दिन दूर नहीं है तुझसे.

चाची ने उन गहनों को देखा , फिर मुझे देखा और बिना कुछ कहे वो वहां से चली गयी. निचे आने के बाद मैं कुछ खाने के लिए रसोई में गया . मैंने देखा की कमरे के दरवाजे पर अब ताला नहीं लगा है . खाना खाने के बाद मैं भैया के पुराने कमरे में चला गया हजारो किताबो ने अपने अन्दर न जाने क्या छिपाया हुआ था .


मैंने लैंप मेज पर रखा और एक किताब ऐसे ही उठा ली. दो चार पन्ने पलटे ही थे की बेख्याली में मेरा हाथ लैंप के शीशे पर लग गया . लैंप मेज पर गिर गया और उसकी नीली लौ मेज की लकड़ी पर फ़ैल गयी. उस नीली रौशनी में मुझे मेज पर कुछ उकेरा गया दिखा. और जब मैंने उसे समझा तो एक बार फिर से मेरे पास कहने को कुछ नही था.
Shandar update....👍
 

Studxyz

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कबीर की राह भी मुश्किलों भरी है एक सबुत से दुसरे और फिर तीसरे में भटकता फिर रहा है चलो कम से कम चाची ने तरस खाके चुत तो दी
 
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Pankaj Tripathi_PT

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बड़ी देर कर दी मेहरबां आते आते। :)

सोने के खान से सोने का चोरी होना ये सच भी हो सकता है। चाचा भागने से पहले अपना इनकम का इंतजाम कर गया होगा। नहीं तो इतने दिन गुजारा कैसे करता होगा।

जैसा कि कबीर को कविता और रमा के घर खोजबीन के दौरान सोने के गहने जेवरात मिले। उससे तो यही लगता है या तो चाचा सोना यहाँ से ले जाकर उनके लिए गहने बनवाता होगा या कविता और रमा खुद चोरी करके ले जाती होंगी। शायद यही कारण रहा होगा कविता के मौत के पीछे।

उम्मीद के उलट देखने को मिला। मुझे लगा था मंगू भी कबीर को प्रकाश के तरह उसकी औकात दिखाएगा। और शायद दोनों में हाथापाई देखने को मिलेगा। लेकिन यहाँ तो मंगू एक रट्टू तोते के तरह सब बक दिया। मुझे संदेह हो रहा है मंगू पर उसकी बातो पर, इतनी आसानी से कैसे सब बक गया।

अंजू और कबीर में नजदीकियां बढ़ रही है अंजू क्या गेम खेल रही है। उसका उतावलापन देख कर शायद कबीर कुछ कुछ समझ गया है।

आखिरकार कबीर का सूखा खत्म हुआ। चाची के साथ खाट कबड्डी खेल गया। खुले आसमान के नीचे छत पर।

अब भैया के पुराने कमरे में मेज में ऐसा क्या दिख गया। लैंप के रोशनी में। देखते हैं अब कौन सा नया सुराग मिल गया कबीर को।
 

Pankaj Tripathi_PT

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जितने भी कहानी में खलनायक व खलनायिकाएं है उन सब की एक खिचड़ी से पक गयी है

अगर चोदू राये साब को छोड़ दे तो भी पता नहीं चल पा रहा की कौन चुत के पीछे है कौन लंड के पीछे और कौन सोने के पीछे ये पाठकों के लिए बड़ी विडंबना बनी हुई है
इसी का तो रंडी रोना है मेरे भाई। रमा और चंपा जैसी लंडखोर औरत के सामने सोना चाँदी नोटों की गड्डियाँ पड़ी रहती है लेकिन वो उनमें जरा सा भी इंट्रेस्ट नहीं दिखाती जैसे ये धन दौलत उनके लिए को मायने ही नहीं रखते, वो मोह माया से परे है। वहीं दूसरी तरफ अंजू , सूरजभान और शायद नंदिनी भाभी भी इस सोने के खजाना के लिए पागल हुए पड़े हैं। और इसी लालच के चक्कर में प्रकाश मारा गया। फौजी भाई जी ने हमें इस कदर कनफ्यूज किया हुआ कि हमारा अनुमान धरे के धरे रह जाता है। बादाम खाकर हमनें जीतना दिमागी ऊर्जा बचाया हुआ था वो सब अब ऊर्जालेस हो गया है। एक तरफ हमें ये दिखाया जाता है चूत सबसे पहले वहीं दूसरी हमें ये देखने को मिल रहा है सोने के खाजाने को पाने की एक रेस लगी हुई है।
 

Tiger 786

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#

आँख खुली तो दोपहर हो रही थी ,अलसाया बदन लिए मैं मुश्किल से उठा. हाथ मुह धोये . गाँव पहुँच कर सबसे पहले मैं मंगू से ही मिला उसे साइड में लेकर गया.

मैं- कुछ जरुरी बात करनी है तुझसे

मंगू- हाँ भाई .

मैं- तूने प्रकाश को क्यों मारा.

मेरी बात सुनकर मंगू के चेहरे का रंग उड़ गया पर मैं हरगिज नहीं चाहता था की वो नजरे चुराए.

मैं- मंगू , तू मेरा दोस्त है और मैं उम्मीद करता हूँ की तू मुझे सच बताये.

मंगू-वो राय साहब पर दबाव बना रहा था

मैं- किस चीज का दबाव

मंगू- यही की राय साहब उसे वसीयत का एक टुकड़ा दे दे और साथ में चंपा को भी उसके पास भेजे.

मैंने एक गहरी साँस ली.

मैं- क्या था उस वसीयत में

मंगू- नहीं जानता. राय साहब ने इतना ही कहा की उनका पाला हुआ सपोला उनको डसना चाहता है , उसका फन कुचल दिया जाए.

मैं- ऐसा क्या था प्रकाश के पास की वो राय साहब को ब्लेकमेल करने की जुर्रत कर पाया.

मंगू- नहीं जानता, राय साहब ने कहा उसे मार दे मैंने मार दिया .

मैं- कल को राय साहब कहेगा की कबीर को मार दे तू मुझे भी मार देगा.

मंगू- कैसी बाते कर रहे हो भाई

मैं- तूने गलत राह चुनी है मेरे दोस्त. इस राह पर तुझे कुछ नहीं मिलेगा . मेरा बाप तुझे इस्तेमाल कर रहा है जब उसका मन भरेगा तुझे लात मार देगा. बाकि तेरी मर्जी है.

मंगू- मैं कविता के कातिल की तलाश के लिए कर रहा हूँ ये सब.

मैं- काविता तुझे कभी नहीं चाहती थी , वो बस तेरा इस्तेमाल कर रही थी. इस बात को जितना जल्दी समझ लेगा तेरी जिन्दगी उतनी ही आसान होगी.

मंगू- झूठ कह रहे हो तुम

मैं- तेरी दोस्ती की कसम मैंने तुझसे कभी झूठ नहीं बोला.

मंगू के जाने के बाद मैंने सोचा की बाप चुटिया के मन में आखिर चल क्या रहा है. कैसे मालूम हो की वो क्या करना चाहता है क्या कर रहा है. थोड़ी देर बाद मैंने अंजू को देखा , उसके पास गया .

मैं- कैसी हो अब

अंजू- बेहतर तुम बताओ

मैं-तुम्हे ठीक लगे तो क्या तुम मेरे साथ सुनैना की समाधी पर चल सकती हो

अंजू- अभी

मैं- अभी

अंजू - ठीक है मेरी गाड़ी की चाबी ले आओ ऊपर से

हम दोनों जंगल की तरफ चल पड़े और ठीक उसी जगह पहुँच गए जहाँ निशा मुझे ले गयी थी .पत्थरों के टुकड़े अभी भी वैसे ही पड़े थे .

अंजू- देख लो जो देखना है

मैं- बुरा मत मानना पर मैं वो सोना देखना चाहता हूँ

अंजू ने कंधे उचकाए और समाधी के कुछ पत्थर हटा कर एक हांडी जो की बेहद पुराणी थी काली पड़ चुकी थी बाहर निकाल ली. हांडी का ढक्कन हटाते ही मैंने देखा की वो सोने से लबालब भरी थी .

अंजू ने सही कहा था मुझे.

मैं- रख दो इसे वापिस

अंजू- तुमको चाहिए क्या सोना

मैं- नहीं

अंजू- फिर क्यों देखना चाहते थे तुम इसे.

अंजू की आवाज में उतावलापन लगा मुझे.

मैं- मुझे लगा था की सुनैना ने सोना निकाला था ये एक अफवाह है .

अंजू- सच तुम्हारे सामने है .

मैं- आओ चलते है

वापसी में मुझे ध्यान आया की बैंक जाना था . अंजू को छोड़ने के बाद मैं सीधा मेनेजर के पास गया और चाचा के खाते की जानकारी मांगी. मनेजेर ने मुझे ऊपर से निचे तक देखा और बोला- कुंवर, अगर ठाकुर लोग अपना धन बैंक में रखने लगे तो उनका रसूख क्या ही रह जायेगा. बैंक ठाकुरों के दरवाजे पर जाते है ठाकुर बैंक नहीं आते. ठाकुर जरनैल सिंह का कोई खाता नहीं यहाँ.



मामला अब और उलझ गया था . मैं मलिकपुर गया उन गहनों को लेकर सुनार ने पुष्टि कर दी की वो गहने उसने ही चाची के लिए बनाये थे. रात को मैं थोड़ी देर भाभी के पास बैठा इधर उधर की बाते की . अंजू साथ थी तो खुलकर मैं कुछ कह नहीं पा रहा था . सबके सोने के बाद मैं चाची को छत पर ले गया और सीढियों का किवाड़ बंद करते ही अपने आगोश में भर लिया.

चाची- कबीर, थोड़े दिन सब्र कर ले फिर खूब बिस्तर गर्म करुँगी तेरा.

मैं- ज्यादा देर नहीं लगाऊंगा.

मैंने चाची को घुटनों के बल झुकाया और उसके लहंगे को कमर तक उंचा कर दिया. चाची के मादक नितम्बो को चूमते हुए मैंने उनको चौड़ा किया और चाची की झांटो से भरी चूत पर अपने होंठ रख दिए.

“सीईईईईई कबीर ” चाची चाह कर भी अपने पैरो को कांपने से नहीं रोक पाई. जीभ का नुकीला कोना चाची की चूत के दाने पर रगड पैदा कर रहा था जिस से वो भी उत्तेजित होने लगी थी . मैं जानता था की समय कम है. मैंने लंड पर थूक लगाया और चाची की चूची मसलते हुए उसे चोदने लगा.

चाची के गाल चूमते हुए , ठंडी रात में छत पर चुदाई का अपना ही सूख था . चाची थोडा और झुक गयी मैंने अपने हाथ उसके कन्धो पर रखे और पूरी रफ्तार से चूत मारने लगा. चुदाई का दौर जब रुका तो हम दोनों पसीने से लथपथ थे.

चाची- कर ली अपनी मनचाही, अब ब्याह तक कुछ न कहना मुझसे.

मैं - दो मिनट रुक फिर जाना निचे.

चाची- अब क्या है .

मैंने वो गहनों का डिब्बा चाची के हाथ में दे दिया. और बोला- ये गहने कभी चाचा ने तेरे लिए बनवाए थे, आज गहने लाया हूँ किसी दिन चाचा को भी ले आऊंगा. बहुत दुःख झेल लिए तूने तेरे हिस्से का सुख अब ज्यादा दिन दूर नहीं है तुझसे.

चाची ने उन गहनों को देखा , फिर मुझे देखा और बिना कुछ कहे वो वहां से चली गयी. निचे आने के बाद मैं कुछ खाने के लिए रसोई में गया . मैंने देखा की कमरे के दरवाजे पर अब ताला नहीं लगा है . खाना खाने के बाद मैं भैया के पुराने कमरे में चला गया हजारो किताबो ने अपने अन्दर न जाने क्या छिपाया हुआ था .


मैंने लैंप मेज पर रखा और एक किताब ऐसे ही उठा ली. दो चार पन्ने पलटे ही थे की बेख्याली में मेरा हाथ लैंप के शीशे पर लग गया . लैंप मेज पर गिर गया और उसकी नीली लौ मेज की लकड़ी पर फ़ैल गयी. उस नीली रौशनी में मुझे मेज पर कुछ उकेरा गया दिखा. और जब मैंने उसे समझा तो एक बार फिर से मेरे पास कहने को कुछ नही था.
Behtreen Lazwaab update
 
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