Sweet Bachelor
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अभी जिंदा हूं मैं भाईAaj update aayege bhai ji
भाई आपसे ही ये महफिल जिन्दा है.....अभी जिंदा हूं मैं भाई
Soch lo faujibhai.....अभी जिंदा हूं मैं भाई
Nice update...#107
उसकी गर्म सांस मेरे होंठो से टकराने लगी. दो पल वो मुझे घूरती रही .
अंजू- समझता क्या है तू खुद को . कुछ नहीं है तू राय साहब का नाम न हो तेरे साथ तो दुनिया तुझे झांट बराबर न समझे.
मैं- डार्लिंग, हम राय साहब को झांट बराबर नहीं समझते और तुमने चौधरी रुडा की बेटी होकर क्या उखाड़ लिया इस ज़माने में . अपने आशिक के कातिल को न तलाश पाई तुम क्या घंटा प्यार करती थी तुम उस चूतिये से, हमको जरा भी परवाह नहीं है अपने नाम की , किस खानदान के है हम क्या ही फर्क पड़ता है , हम किसान है, यही हमारी पहचान है , धरती का सीना चीर कर फसल उगा देता हूँ मैं और तुम पूछती हो की किस बात का घमंड है .
मैंने पलट कर अंजू को दिवार के सहारे लगा दिया और उसके नाजुक गुलाबी होंठो पर अपने होंठ रख दिए. वो कसमसाने लगी पर हम भी अपनी मर्जी के मालिक थे , जब तक सांस फेफड़ो से जुदा होने को नहीं आ गए उसके लबो का रस चखता ही रहा जब उसे छोड़ा तो होंठो पर खून की बूंदे लरज रही थी .
अंजू- तेरी ये गुस्ताखी बहुत महंगी पड़ेगी तुझे
मैं- हम को देखो, हमारी गुस्ताखिया देखो. बड़ा नशा है इन होंठो में इस गुस्ताखी की जो भी सजा होगी मंजूर है हमें.
मैंने उसे कमरे में धकेला और अन्दर आ गया. गुस्से से वो मुझे देखती रही . मैंने रजाई ओढ़ी और आँखे बंद कर ली. सुबह जब निचे आया तो मौसम बड़ा प्यारा हो रहा था होली बस कुछ दिन दूर थी और उतना ही दूर था मैं अपनी जान से . देखा की भाभी ने पुजारी को बुलवाया हुआ था और गहन चर्चा में डूबी थी . मैं भी उनके पास गया
भाभी- तुम्हारे लिए ही बुलाया है कुंवर पुजारी जो को . मुहूर्त देख रहे है
मैं- अब क्या जरुरत है भाभी , फाग के दिन का कहा तो था आपने
भाभी- मैंने कहा था उसे ले आना, फेरे तो लेने ही होंगे न
पुजारी- छोटी ठकुराइन , मैं फिर कहता हूँ आपको एक बार फिर सोच लेना चाहिए
भाभी- हम क्या सोचे, जिसे सोचना था उसने ही नहीं सोचा आप देखिये कब शादी हो सकती है और हमें सुचना दे दीजियेगा.
मैं गली में आया तो देखा की अंजू दातुन कर रही थी .
मैं- इतना मत घिसो टूट जायेंगे ये
अंजू- कमीने बदबू नहीं गयी है अभी तक
मैं- बाहर से ही तो चूमा था मैंने
अंजू- मैं अभिमानु से कहूँगी ये बात
मैं- भैया से ही क्या सारी दुनिया से कह दे . पर मंगू को उठा ले .
अंजू- तू क्यों नहीं करता ये काम
मैं- बचपन का साथी है वो मेरा चाहे वो गिर गया हो मेरी आँखों में शर्म बाकि है
अंजू- देखि तेरी शर्म मैंने .
मैं- रमा से मिलने जाऊंगा मैं चलेगी क्या साथ
अंजू- मैं क्या करुँगी
मैं- रमा इस खेल का वो मोहरा है जिसकी काट किसी के पास नहीं
अंजू- नहीं आना मुझे
मैं- इक बात बता तुझे अगर कुछ छिपाना होता तो तू जंगल में कहाँ छिपाती
अंजू- ऐसी जगह जो बेहद आम होती , जो सबके सामने तो होती पर उसे कोई देख नहीं पाता
मैं- और ऐसी जगह कहाँ पर होगी
अंजू- वो मैं निर्धारित करती
“प्रकाश भोसड़ी का ऐसा क्या जानता था चाचा के बारे में , क्या चाहता था वो चाचा से ” मैंने खुद से सवाल किया
चाय नाश्ते के बाद मैं एक बार फिर कुवे पर पहुँच गया . ये चाबी किस ताले की हो सकती थी , कुवे पर एक ही ताला था जो कभी लगाते थे कभी नहीं ऐसी कोई तो जगह होगी जहाँ पर चाचा अपनी अय्याशिया कर पाता होगा और उसकी गाडी , इतनी बड़ी चीज को छुपाना आसान तो नहीं वो भी जब गाडी राय साहब के भाई की हो
खेतो पर खड़े मैं जंगल को घूर रहा था , न जाने क्यों मेरा मन कह रहा था की गाडी इसी जंगल में कहीं छिपी है . अगर निशा वाला खंडहर गुप्त हो सकता था तो इस जंगल में ऐसा कोई और ठिकाना भी हो सकता था . पर इतने बड़े और गहरे जंगल में कहाँ तलाशा जाये .
“ ऐसी जगह जो बेहद आम होती , जो सबके सामने तो होती पर उसे कोई देख नहीं पाता “ अंजू की कही बात के महत्त्व को समझ रहा था मैं. अँधेरा होने तक जितना मैं तलाश सकता था मैंने उतना कोशिश किया पर हाथ खाली रहे. घर आते ही मैं नहाने चला गया हलवाई की बनाई आलू-पूरी की खुसबू से घर महक रहा था .
नए सूट सलवार में चंपा क्या खूब सज रही थी . उसका गोरा रंग गुलाबी हो गया था ब्याह की हल्दी का निखार चढ़ने लगा था उस पर. मैंने चाची को इशारा किया की आज तो कर दे मेहरबानी पर उसने आँखे चढाते हुए मना किया. मैंने देखा अंजू मेहमानों को खाना परोस रही थी . मैंने उसे आवाज दी पर उसने अनदेखा किया मैं रसोई में गया . छिपे हुए कमरे पर ताला लटक रहा था.
मैने ताले को तोड़ दिया और कमरे में घुस गया . दरवाजा बंद किया और एक बार फिर मैं अभिमानु भैया के अतीत में था. कमरा वैसा ही था जैसा पहले था . ढेरो किताबे, पुराने कपडे. मेरी नजर एक पुराने लकड़ी के छोटे संदूक पर पड़ी जो शायद मेरी नजरो से छिपा रह गया था . मैंने उसे खोला , धुल से सनी कुछ चीजे पड़ी थी . एक पुराणी घडी.एक एल्बम था जिसमे भैया के बचपन की तस्वीरे थे और कुछ जवानी के शुरूआती दिनों की रही होंगी . हालत बुरी थी दीमक खा चुकी थी . ज्यादातर तस्वीरे जंगल की थी , पेड़ो के इर्द-गिर्द कच्चे रस्ते के पास तस्वीरों में कुछ खास नहीं था , मैंने खास जहमत नहीं उठाई अल्बम को मैंने फेंक ही दिया था . किताबो के ढेर में सर खपाते हुए मैं सोच में डूबा था , कुछ तो खटक रहा था मुझे, तभी मैंने अलबम वापिस उठाया . एक तस्वीर में भैया चाचा के साथ खड़े थे . ये कहाँ थे , सर खुजाते हुए मैं सोचने लगा. मैंने वो तस्वीर निकाली और जेब में रख ली.
“तेरे हिस्से का सच तेरी दहलीज में ही छिपा है ” निशा की कहीं बात अचानक ही मुझे याद आ गयी.
#107
उसकी गर्म सांस मेरे होंठो से टकराने लगी. दो पल वो मुझे घूरती रही .
अंजू- समझता क्या है तू खुद को . कुछ नहीं है तू राय साहब का नाम न हो तेरे साथ तो दुनिया तुझे झांट बराबर न समझे.
मैं- डार्लिंग, हम राय साहब को झांट बराबर नहीं समझते और तुमने चौधरी रुडा की बेटी होकर क्या उखाड़ लिया इस ज़माने में . अपने आशिक के कातिल को न तलाश पाई तुम क्या घंटा प्यार करती थी तुम उस चूतिये से, हमको जरा भी परवाह नहीं है अपने नाम की , किस खानदान के है हम क्या ही फर्क पड़ता है , हम किसान है, यही हमारी पहचान है , धरती का सीना चीर कर फसल उगा देता हूँ मैं और तुम पूछती हो की किस बात का घमंड है .
मैंने पलट कर अंजू को दिवार के सहारे लगा दिया और उसके नाजुक गुलाबी होंठो पर अपने होंठ रख दिए. वो कसमसाने लगी पर हम भी अपनी मर्जी के मालिक थे , जब तक सांस फेफड़ो से जुदा होने को नहीं आ गए उसके लबो का रस चखता ही रहा जब उसे छोड़ा तो होंठो पर खून की बूंदे लरज रही थी .
अंजू- तेरी ये गुस्ताखी बहुत महंगी पड़ेगी तुझे
मैं- हम को देखो, हमारी गुस्ताखिया देखो. बड़ा नशा है इन होंठो में इस गुस्ताखी की जो भी सजा होगी मंजूर है हमें.
मैंने उसे कमरे में धकेला और अन्दर आ गया. गुस्से से वो मुझे देखती रही . मैंने रजाई ओढ़ी और आँखे बंद कर ली. सुबह जब निचे आया तो मौसम बड़ा प्यारा हो रहा था होली बस कुछ दिन दूर थी और उतना ही दूर था मैं अपनी जान से . देखा की भाभी ने पुजारी को बुलवाया हुआ था और गहन चर्चा में डूबी थी . मैं भी उनके पास गया
भाभी- तुम्हारे लिए ही बुलाया है कुंवर पुजारी जो को . मुहूर्त देख रहे है
मैं- अब क्या जरुरत है भाभी , फाग के दिन का कहा तो था आपने
भाभी- मैंने कहा था उसे ले आना, फेरे तो लेने ही होंगे न
पुजारी- छोटी ठकुराइन , मैं फिर कहता हूँ आपको एक बार फिर सोच लेना चाहिए
भाभी- हम क्या सोचे, जिसे सोचना था उसने ही नहीं सोचा आप देखिये कब शादी हो सकती है और हमें सुचना दे दीजियेगा.
मैं गली में आया तो देखा की अंजू दातुन कर रही थी .
मैं- इतना मत घिसो टूट जायेंगे ये
अंजू- कमीने बदबू नहीं गयी है अभी तक
मैं- बाहर से ही तो चूमा था मैंने
अंजू- मैं अभिमानु से कहूँगी ये बात
मैं- भैया से ही क्या सारी दुनिया से कह दे . पर मंगू को उठा ले .
अंजू- तू क्यों नहीं करता ये काम
मैं- बचपन का साथी है वो मेरा चाहे वो गिर गया हो मेरी आँखों में शर्म बाकि है
अंजू- देखि तेरी शर्म मैंने .
मैं- रमा से मिलने जाऊंगा मैं चलेगी क्या साथ
अंजू- मैं क्या करुँगी
मैं- रमा इस खेल का वो मोहरा है जिसकी काट किसी के पास नहीं
अंजू- नहीं आना मुझे
मैं- इक बात बता तुझे अगर कुछ छिपाना होता तो तू जंगल में कहाँ छिपाती
अंजू- ऐसी जगह जो बेहद आम होती , जो सबके सामने तो होती पर उसे कोई देख नहीं पाता
मैं- और ऐसी जगह कहाँ पर होगी
अंजू- वो मैं निर्धारित करती
“प्रकाश भोसड़ी का ऐसा क्या जानता था चाचा के बारे में , क्या चाहता था वो चाचा से ” मैंने खुद से सवाल किया
चाय नाश्ते के बाद मैं एक बार फिर कुवे पर पहुँच गया . ये चाबी किस ताले की हो सकती थी , कुवे पर एक ही ताला था जो कभी लगाते थे कभी नहीं ऐसी कोई तो जगह होगी जहाँ पर चाचा अपनी अय्याशिया कर पाता होगा और उसकी गाडी , इतनी बड़ी चीज को छुपाना आसान तो नहीं वो भी जब गाडी राय साहब के भाई की हो
खेतो पर खड़े मैं जंगल को घूर रहा था , न जाने क्यों मेरा मन कह रहा था की गाडी इसी जंगल में कहीं छिपी है . अगर निशा वाला खंडहर गुप्त हो सकता था तो इस जंगल में ऐसा कोई और ठिकाना भी हो सकता था . पर इतने बड़े और गहरे जंगल में कहाँ तलाशा जाये .
“ ऐसी जगह जो बेहद आम होती , जो सबके सामने तो होती पर उसे कोई देख नहीं पाता “ अंजू की कही बात के महत्त्व को समझ रहा था मैं. अँधेरा होने तक जितना मैं तलाश सकता था मैंने उतना कोशिश किया पर हाथ खाली रहे. घर आते ही मैं नहाने चला गया हलवाई की बनाई आलू-पूरी की खुसबू से घर महक रहा था .
नए सूट सलवार में चंपा क्या खूब सज रही थी . उसका गोरा रंग गुलाबी हो गया था ब्याह की हल्दी का निखार चढ़ने लगा था उस पर. मैंने चाची को इशारा किया की आज तो कर दे मेहरबानी पर उसने आँखे चढाते हुए मना किया. मैंने देखा अंजू मेहमानों को खाना परोस रही थी . मैंने उसे आवाज दी पर उसने अनदेखा किया मैं रसोई में गया . छिपे हुए कमरे पर ताला लटक रहा था.
मैने ताले को तोड़ दिया और कमरे में घुस गया . दरवाजा बंद किया और एक बार फिर मैं अभिमानु भैया के अतीत में था. कमरा वैसा ही था जैसा पहले था . ढेरो किताबे, पुराने कपडे. मेरी नजर एक पुराने लकड़ी के छोटे संदूक पर पड़ी जो शायद मेरी नजरो से छिपा रह गया था . मैंने उसे खोला , धुल से सनी कुछ चीजे पड़ी थी . एक पुराणी घडी.एक एल्बम था जिसमे भैया के बचपन की तस्वीरे थे और कुछ जवानी के शुरूआती दिनों की रही होंगी . हालत बुरी थी दीमक खा चुकी थी . ज्यादातर तस्वीरे जंगल की थी , पेड़ो के इर्द-गिर्द कच्चे रस्ते के पास तस्वीरों में कुछ खास नहीं था , मैंने खास जहमत नहीं उठाई अल्बम को मैंने फेंक ही दिया था . किताबो के ढेर में सर खपाते हुए मैं सोच में डूबा था , कुछ तो खटक रहा था मुझे, तभी मैंने अलबम वापिस उठाया . एक तस्वीर में भैया चाचा के साथ खड़े थे . ये कहाँ थे , सर खुजाते हुए मैं सोचने लगा. मैंने वो तस्वीर निकाली और जेब में रख ली.
“तेरे हिस्से का सच तेरी दहलीज में ही छिपा है ” निशा की कहीं बात अचानक ही मुझे याद आ ग
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