• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Death Kiñg

Active Member
1,372
6,949
144
रमा और अंजू, दोनों ही अपनी बातों से कबीर को घुमा गईं। पहले तो रमा, जितनी सीधी बनकर उसने कबीर से सारी बातें कहीं, वो उतनी सीधी तो है नहीं। ज़रूर कुछ न कुछ ऐसा है जो वो पाना चाहती है, जिसके कारण उसने विशम्बर दयाल से संबंध बनाए। क्या वो जरनैल का पता लगाना चाहती है, ताकि अपनी बेटी की हत्या का बदला ले सके? क्योंकि वैद के अनुसार जरनैल ही उसकी बेटी का कातिल है, हालांकि, वैद की बात भी सत्य थी या नहीं, कहना कठिन है। परंतु, अंजू ने साफ शब्दों में कहा की उसे रमा पर संदेह है, जरनैल के गायब होने के पीछे और उसने अपना संदेह विशम्बर दयाल के सामने भी ज़ाहिर किया हुआ है।

अब यहां दो संभावनाएं हो सकती हैं, पहली, विशम्बर दयाल को घंटा फर्क नहीं पड़ता की जरनैल ज़िंदा है या नहीं, ज़िंदा है तो कहां है और कहां नहीं! इसीलिए वो मस्त अपनी हवस मिटाने में लगा है। दूसरा पहलू ये हो सकता है की रमा से संबंध बनाकर ही वो जरनैल का पता लगाना चाहता हो। अब ये तो जग–जाहिर है की हवस में बहकर इंसान वो तक बोल जाता है जो वो असलियत में कभी न बोले। हो सकता है की विशम्बर दयाल इसी तरीके से रमा का मुंह खुलवाना चाहता हो, मजे का मजा और रहस्योद्घाटन का रहस्योद्घाटन!

अंजू पर संदेह है कबीर को की वो ही आदमखोर है, चूंकि वो कुछ चुनिंदा दिनों पर गायब रहती है तो ऐसा संदेह बेबुनियाद भी नहीं। अब अंजू असल में आदमखोर है या नहीं, ये तो चम्पा के ब्याह वाले दिन पता चल ही जाएगा, जब वो सबके बीच मौजूद होगी। परंतु,देखने लायक ये होगा, की क्या कबीर शिरकत कर पाएगा चम्पा के ब्याह में या नहीं? निशा ने कहा था की डायन के कदम जहां भी पड़ते हैं, वहां मातम छा जाना निश्चित है, शेखर मरने वाला है क्या अपने ब्याह के दिन ही? देखने लायक होगा क्या कांड होगा चम्पा के ब्याह पर...

अंजू और परकाश कबीर के खेतों में क्या ढूंढ रहे थे, ये भी एक सवाल है! ऐसा क्या है उस ज़मीन में जो अंतहीन सोने से भी ज़्यादा कीमती है? क्या उसी चीज़ के बारे में ज़िक्र कर रहा था सूरजभान जंगल में अंजू से? क्या उसी चीज़ के कारण जरनैल गायब हुआ है और क्या उसी की चाबी मिली है कबीर को सुनार के पास से..? देखना ये भी होगा की क्या सुनार केवल चाबी संभाले हुए था, या कुछ और राज़ भी ऐसे हैं जिन्हें वो दबाए बैठा है। उसके अनुसार जरनैल गहने ले गया था पर वो गहने घर पहुंचे नहीं, क्या चाची ही अपने पति की कातिल है..? वो गहने गए कहां ये भी एक बड़ा प्रश्न है!

चम्पा के ब्याह को रस्म करने शेखर के घर गए थे सभी, परंतु विशम्बर ने कबीर को साथ ले जाने से इंकार कर दिया, खुन्नस ही है, या फिर कुछ और छुपा रहा है वो हवसी? देखना ये भी है की विशम्बर के जाने के बाद जो कीमती सामान घर पर आया वो किसने भेजा था? शायद निशा ने? क्योंकि वो किसी भेंट की चर्चा कर भी रही थी, कबीर से? बहरहाल, मुश्किल होगा आगे चलकर निशा के लिए, समझाना की वो अब तक कबीर से इतनी बातें क्यों छुपाती आई है? आगे चलकर कबीर को सब पता चलने वाला है, ये तो तय ही है, तो इतने समय तक बातें छुपाने का नाटक करने की कोई वजह नहीं हो सकती...

ये कहना बेहद आसान है की वो कबीर के भले के लिए छुपा रही थी, पर जब आगे चलकर भी सच सामने आना ही है, तो इस ढोंग का कोई औचित्य नहीं। बल्कि, कबीर ने तो सामने से पूछा भी था उससे, तब भी वो शब्दों का एक बेहतरीन जाल बुनकर बगल से निकल गई। देखते हैं, कितना कुछ ऐसा है जो निशा कबीर से छुपा रही है। मेरी समझ से, वो इकलौती ऐसी है जो सब कुछ जानती है.. सब कुछ! वो कबीर के बारे में, उसके परिवार के बारे में, आदमखोर के बारे में, अंजू और सूरजभान के बारे में भी, सब जानती है, पर कबीर को जब सब बना ही रहें हैं, तो वो क्यों पीछे रहे..?

देखते हैं की नंदिनी ने निशा के पांव क्यों छुए! यदि सम्मान दे ही रही है, किसी कारण से, तो उस दिन खेत के कमरे पर निशा को अपने बराबर के दर्जे से क्यों पुकार रही थी, वहां भी आप – आप करके बात कर लेती? देखते हैं निशा को नंदिनी के अलावा कौन – कौन जानता है! विशम्बर दयाल, अभिमानु और रूड़ा जानते होंगे शायद... बहरहाल, अगले भाग में कमरे में जाकर कबीर निशा से पूछे की भाभी ने तोहरे पांव क्यों छुए और निशा उसे एक बार फिर शब्दों के जाल में फांस ले, ऐसा होता दिखा रहा है मुझे...:D

सभी भाग बहुत ही खूबसूरत थे भाई, प्रतीक्षा रहेगी अगले अध्याय की...
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,053
83,848
259
#103

“ये मेरा कमरा है ” मैंने निशा को अन्दर लाते हुए कहा

निशा- बढ़िया सजाया है

मैं- क्या तुम भी सब कुछ अस्त व्यस्त तो पड़ा है , वैसे भी आजकल मैं ज्यादातर कुवे पर ही रहता हूँ न

“कोई बात नहीं कबीर ” निशा ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा.

मैं- समझ नहीं आ रहा क्या करू तुम्हारे लिए

निशा- तुमने बहुत कुछ कर दिया है अब और की जरुरत नहीं

“ये कबीर के कमरा किसने खोला ” बाहर से चंपा की आवाज आई तो मैंने उसे अन्दर आने को कहा. चंपा मेरे साथ निशा को देख कर थोडा हैरान हो गयी.

मैं- ऐसे क्या देख रही है , मैंने कहा था न तुझसे की निशा से मिलवा दूंगा तुझे

चंपा- ये तो वो ........

मैं- हाँ वो ही है. आ बैठ पास

निशा ने आगे बढ़ कर चंपा को गले लगाया और उसके माथे को चूमा

“बड़ी प्यारी हो ” निशा ने कहा.

चंपा- मैं कुछ लाती हूँ आपके लिए

निशा- जरुरत नहीं तुम बैठो पास मेरे, तुमसे मिलने ही तो आई हूँ मैं

निशा की सादगी, उसका बड़प्पन उसका स्नेह एक डायन के दिल में इंसानों से ज्यादा दरियादिली थी .

निशा- सब लोग खामोश क्यों हो बोलो भी कुछ

चम्पा- मैं क्या बोलू

निशा- जो तुम्हारा दिल करे वो बोलो. कबीर तो तुम्हारी तारीफ करते हुए नहीं थकता.

तभी भाभी नाश्ता ले आई निचे से. चंपा ने भाभी के हाथ से ट्रे ली और सबको चाय नाश्ता देने लगी.

भाभी- चंपा निशा तेरे लिए कुछ तोहफे लाई है तू निचे जाकर देख और संभाल कर रख दे उनको.

चंपा के जाने के बाद हमारी तरफ मुखातिब हुई.

भाभी- तुमको यहाँ देख कर बड़ी प्रसन्नता हुई ,

निशा- तुम्हारे निमन्त्रण को कैसे मना करती .

मैं- आप दोनों एक दुसरे को कैसे जानती है

भाभी- जंगल में सिर्फ तुम ही नहीं जी रहे हो तुमसे पहले भी कुछ लोग है जो तुमसे ज्यादा जानते है जंगल को.

मैं- भाभी आपसे मैंने कुछ नहीं छिपाया . आज जब निशा भी यहाँ पर है तो मैं आपसे विनती करता हूँ की आप हमारे रिश्ते पर अपनी हाँ की मोहर लगा दे. ये प्रेम दुनिया समझे ना समझे आप जरुर समझेंगी मैंने शुरू से ही ये माना है . मेरा और निशा का रिश्ता किसी स्वार्थ पर नहीं टिका है

भाभी- जानती हु, समझती भी हूँ प्रेम को .पर मैं डरती हूँ कबीर . शुरू में मुझे लगता था की निशा कभी इतना आगे नहीं बढ़ेगी पर जब निशा ने ये निर्णय लिया है तो सोच कर ही लिया होगा.

निशा- नंदिनी, मैं तुम्हारे मन की बात समझती हूँ . जानती हूँ की जिस पथ पर चलने के लिए मैंने कबीर का हाथ थामा है वो राह आसान नहीं है

मैं- हर राह आसान कर लूँगा मैं निशा, मेरा वादा है तेरे दामन में इतनी खुशिया भर दूंगा की तू नाज करेगी मुझ पर

भाभी- वो नाज करती है तुझ पर कबीर. पर ये जमाना, अभिमानु को कैसे समझा पाउंगी मैं

मैं- आप फ़िक्र ना करे, भैया ने मुझसे वादा किया है की वो खुद जायेंगे रिश्ता लेके

भाभी- एक बार मुझसे पूछ तो लेते कबीर,

निशा- नियति का खेल निराला है नंदिनी . खैर, अब मुझे चलना चाहिए . ब्याह की रात नहीं आ सकती थी इसलिए सोचा की आज ही चंपा से मिल लू .

भाभी- अच्छा किया

हम लोग निचे आये. निशा ने थोड़ी बाते चंपा के साथ की और फिर चली गयी. मैं उसके साथ जाना चाहता था पर भाभी ने मुझे रोक लिया.

भाभी- क्या वादा किया है अभिमानु ने तुझसे

मैं- यही की वो खुद मेरे रिशते की बात करने जायेंगे.

भाभी और कुछ कहती की तभी उनकी नजर आँगन में आती चाची पर पड़ी तो वो चुप हो गयी. मैं चंपा के पास गया .

मैं- तोहफे कैसे लगे.

चंपा- अप्रतिम, तेरी दोस्त तो बहुत अमीर है

मैं- अमीर का तो मालूम नहीं पर दिल की बहुत नेक है .और हाँ डाकन कभी बुरी नहीं होती वो मेरे जैसी ही होती है .

मेरी बात सुन कर चंपा के चेहरे पर हवाइया उड़ने लगी. चाची के पीछे पीछे मैं कमरे में गया और उसे अपनी बाँहों में भर लिया. चाची के लाल होंठ चूसने लगा.

चाची- मत कर कोई आ निकलेगा मरवा के मानेगा तू

मैं- कितने दिन हो गए रुका नहीं जा रहा मुझसे

चाची- ठीक है आज रात को कर दूंगी तेरा काम अभी तंग मत कर.

चाची के लहंगे में हाथ डाला और चूत को मसलते हुए बोला- रात को पक्का

एक बार फिर मैंने चाचा की चाबी को देखा और सोचने लगा की क्या चक्कर है इस चाबी का, कहाँ होगा वो ताला जो चाचा की गुत्थी सुलझाएगा. रसोई में मैंने देखा की सरला बर्तन धो रही थी .

मैं- बर्तनों पर ध्यान मत दे थोडा ध्यान मुझ पर भी दे भाभी

सरला- कल मौका ही नहीं मिला पर आज तुम्हारी मनचाही कर दूंगी.

मैं- यहाँ जगह नहीं है , और तेरे घर पर आ नहीं सकता

सरला- एक जगह है , जहाँ मिल सकते है

मैं- कहाँ

सरला- वैध के घर पर . घर बंद पड़ा है किसी को मालूम भी नहीं होगा

मैं- ठीक है पर आज ना नहीं होनी चाहिए

मैं अपने दोनों हाथो में लड्डू रखना चाहता था चाची या सरला दोनों में से एक को तो चोदना ही चोदना था मुझे. तभी मुझे ध्यान आया की चोदने के लिए इस घर में भी तो जगह है . मैंने रसोई में छिपे दरवाजे को खोलना चाहा पर उस पर ताला लगा था . जरुर भाई ने ही किया होगा ये काम.

थोड़ी देर सोना चाहता था पर ब्याह के घर में सब कुछ मिल सकता है बस नींद नहीं. चाची ने कहा की भाभी को बुला ला ऊपर गया तो देखा की भाभी पलंग पर बैठी थी उनकी गोद में लाल जोड़ा था .

मुझे देख कर वो बोली- सोचा था की तेरी दुल्हन को दूंगी ये

मैं- आई तो थी दे देती हमारा भी थोडा मान रह जाता.

भाभी- पर दे नहीं पाई

मैं- आपका मन अब भी नहीं मान रहा क्या

भाभी- मुझे डर लग रहा है कबीर.

मैं- कैसा डर भाभी

भाभी- यही की तुझे खो न दू कहीं.
 

Ashwathama

अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः 🕸
697
4,325
123
#103

“ये मेरा कमरा है ” मैंने निशा को अन्दर लाते हुए कहा

निशा- बढ़िया सजाया है

मैं- क्या तुम भी सब कुछ अस्त व्यस्त तो पड़ा है , वैसे भी आजकल मैं ज्यादातर कुवे पर ही रहता हूँ न

“कोई बात नहीं कबीर ” निशा ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा.

मैं- समझ नहीं आ रहा क्या करू तुम्हारे लिए

निशा- तुमने बहुत कुछ कर दिया है अब और की जरुरत नहीं

“ये कबीर के कमरा किसने खोला ” बाहर से चंपा की आवाज आई तो मैंने उसे अन्दर आने को कहा. चंपा मेरे साथ निशा को देख कर थोडा हैरान हो गयी.

मैं- ऐसे क्या देख रही है , मैंने कहा था न तुझसे की निशा से मिलवा दूंगा तुझे

चंपा- ये तो वो ........

मैं- हाँ वो ही है. आ बैठ पास

निशा ने आगे बढ़ कर चंपा को गले लगाया और उसके माथे को चूमा

“बड़ी प्यारी हो ” निशा ने कहा.

चंपा- मैं कुछ लाती हूँ आपके लिए

निशा- जरुरत नहीं तुम बैठो पास मेरे, तुमसे मिलने ही तो आई हूँ मैं

निशा की सादगी, उसका बड़प्पन उसका स्नेह एक डायन के दिल में इंसानों से ज्यादा दरियादिली थी .

निशा- सब लोग खामोश क्यों हो बोलो भी कुछ

चम्पा- मैं क्या बोलू

निशा- जो तुम्हारा दिल करे वो बोलो. कबीर तो तुम्हारी तारीफ करते हुए नहीं थकता.

तभी भाभी नाश्ता ले आई निचे से. चंपा ने भाभी के हाथ से ट्रे ली और सबको चाय नाश्ता देने लगी.

भाभी- चंपा निशा तेरे लिए कुछ तोहफे लाई है तू निचे जाकर देख और संभाल कर रख दे उनको.

चंपा के जाने के बाद हमारी तरफ मुखातिब हुई.

भाभी- तुमको यहाँ देख कर बड़ी प्रसन्नता हुई ,

निशा- तुम्हारे निमन्त्रण को कैसे मना करती .

मैं- आप दोनों एक दुसरे को कैसे जानती है

भाभी- जंगल में सिर्फ तुम ही नहीं जी रहे हो तुमसे पहले भी कुछ लोग है जो तुमसे ज्यादा जानते है जंगल को.

मैं- भाभी आपसे मैंने कुछ नहीं छिपाया . आज जब निशा भी यहाँ पर है तो मैं आपसे विनती करता हूँ की आप हमारे रिश्ते पर अपनी हाँ की मोहर लगा दे. ये प्रेम दुनिया समझे ना समझे आप जरुर समझेंगी मैंने शुरू से ही ये माना है . मेरा और निशा का रिश्ता किसी स्वार्थ पर नहीं टिका है

भाभी- जानती हु, समझती भी हूँ प्रेम को .पर मैं डरती हूँ कबीर . शुरू में मुझे लगता था की निशा कभी इतना आगे नहीं बढ़ेगी पर जब निशा ने ये निर्णय लिया है तो सोच कर ही लिया होगा.

निशा- नंदिनी, मैं तुम्हारे मन की बात समझती हूँ . जानती हूँ की जिस पथ पर चलने के लिए मैंने कबीर का हाथ थामा है वो राह आसान नहीं है

मैं- हर राह आसान कर लूँगा मैं निशा, मेरा वादा है तेरे दामन में इतनी खुशिया भर दूंगा की तू नाज करेगी मुझ पर

भाभी- वो नाज करती है तुझ पर कबीर. पर ये जमाना, अभिमानु को कैसे समझा पाउंगी मैं

मैं- आप फ़िक्र ना करे, भैया ने मुझसे वादा किया है की वो खुद जायेंगे रिश्ता लेके

भाभी- एक बार मुझसे पूछ तो लेते कबीर,

निशा- नियति का खेल निराला है नंदिनी . खैर, अब मुझे चलना चाहिए . ब्याह की रात नहीं आ सकती थी इसलिए सोचा की आज ही चंपा से मिल लू .

भाभी- अच्छा किया

हम लोग निचे आये. निशा ने थोड़ी बाते चंपा के साथ की और फिर चली गयी. मैं उसके साथ जाना चाहता था पर भाभी ने मुझे रोक लिया.

भाभी- क्या वादा किया है अभिमानु ने तुझसे

मैं- यही की वो खुद मेरे रिशते की बात करने जायेंगे.

भाभी और कुछ कहती की तभी उनकी नजर आँगन में आती चाची पर पड़ी तो वो चुप हो गयी. मैं चंपा के पास गया .

मैं- तोहफे कैसे लगे.

चंपा- अप्रतिम, तेरी दोस्त तो बहुत अमीर है

मैं- अमीर का तो मालूम नहीं पर दिल की बहुत नेक है .और हाँ डाकन कभी बुरी नहीं होती वो मेरे जैसी ही होती है .

मेरी बात सुन कर चंपा के चेहरे पर हवाइया उड़ने लगी. चाची के पीछे पीछे मैं कमरे में गया और उसे अपनी बाँहों में भर लिया. चाची के लाल होंठ चूसने लगा.

चाची- मत कर कोई आ निकलेगा मरवा के मानेगा तू

मैं- कितने दिन हो गए रुका नहीं जा रहा मुझसे

चाची- ठीक है आज रात को कर दूंगी तेरा काम अभी तंग मत कर.

चाची के लहंगे में हाथ डाला और चूत को मसलते हुए बोला- रात को पक्का

एक बार फिर मैंने चाचा की चाबी को देखा और सोचने लगा की क्या चक्कर है इस चाबी का, कहाँ होगा वो ताला जो चाचा की गुत्थी सुलझाएगा. रसोई में मैंने देखा की सरला बर्तन धो रही थी .

मैं- बर्तनों पर ध्यान मत दे थोडा ध्यान मुझ पर भी दे भाभी

सरला- कल मौका ही नहीं मिला पर आज तुम्हारी मनचाही कर दूंगी.

मैं- यहाँ जगह नहीं है , और तेरे घर पर आ नहीं सकता

सरला- एक जगह है , जहाँ मिल सकते है

मैं- कहाँ

सरला- वैध के घर पर . घर बंद पड़ा है किसी को मालूम भी नहीं होगा

मैं- ठीक है पर आज ना नहीं होनी चाहिए

मैं अपने दोनों हाथो में लड्डू रखना चाहता था चाची या सरला दोनों में से एक को तो चोदना ही चोदना था मुझे. तभी मुझे ध्यान आया की चोदने के लिए इस घर में भी तो जगह है . मैंने रसोई में छिपे दरवाजे को खोलना चाहा पर उस पर ताला लगा था . जरुर भाई ने ही किया होगा ये काम.

थोड़ी देर सोना चाहता था पर ब्याह के घर में सब कुछ मिल सकता है बस नींद नहीं. चाची ने कहा की भाभी को बुला ला ऊपर गया तो देखा की भाभी पलंग पर बैठी थी उनकी गोद में लाल जोड़ा था .

मुझे देख कर वो बोली- सोचा था की तेरी दुल्हन को दूंगी ये

मैं- आई तो थी दे देती हमारा भी थोडा मान रह जाता.

भाभी- पर दे नहीं पाई

मैं- आपका मन अब भी नहीं मान रहा क्या

भाभी- मुझे डर लग रहा है कबीर.

मैं- कैसा डर भाभी


भाभी- यही की तुझे खो न दू कहीं.
खुशनसीब हूँ मै, यहाँ आते ही ये नंदनी और निशा का प्यारा संवाद सुनने को मिला ।
चंपा, निशा को देखते ही कुछ कहने को हुई, पर उताबले कबीर ने उसके बात काट दिये । शायद वो भी निशा को जानती हो ।
 

Death Kiñg

Active Member
1,372
6,949
144
जाने कबीर ज़्यादा मूर्ख है या ज़्यादा आलसी? एक बार फिर, भाभी उसके सवाल को घुमा गई और इन महाशय ने इतनी भी जहमत नहीं उठाई की सीधे खींचकर बोले की रिश्ते का नाम बताओ, कविता सुनाने की जगह। खैर, इससे और उम्मीद भी क्या कर सकते हैं? अभी तो ब्याह करने की आग लगी पड़ी है इसे... नंदिनी ने कहा की वो भी कभी जंगल में जताई थी, अब इसे क्या ढूंढना था जंगल में? क्या नंदिनी ही जाती था उस संदेहास्पद कमरे में, जहां संभोग के निशान मिले हैं? या फिर इसे सोने की तलाश थी? जो भी हो, यदि जंगल में ही मुलाकात हुई थी नंदिनी और निशा की, तो भी उसके पांव छूने का कोई औचित्य नहीं!

ऐसा दो ही सूरत में हो सकता है की दोनों पहले से ही किसी रिश्ते में बंधी हों या फिर नंदिनी को जंगल यात्रा के दौरान ही पता चला हो की नंदिनी से उसका क्या रिश्ता है! बेहद रोमांचक होगा जानना की निशा असल में है कौन, पर हैरान करने वाली बात ये है की कबीर को ये जानने की कोई भी जिज्ञासा नहीं। उसे सरला और चाची की मिल रही है, वो उतने में ही खुश है... जाने क्या होगा इसका, उसकी इन्हीं बेवकूफियों के कारण, है आता – जाता किरदार उसे बनाकर चल जाता है, और महाशय को हफ्तों बाद मालूम पड़ है को वो अंधेरे में तीर चला रह था।

पर अब क्या ही कर सकते हैं? जब तक कबीर खुद आगे बढ़कर कोशिश नहीं करेगा, कोई उसे पूरा सच बताने नहीं वाला, और कबीर खुद कोशिश करके पता लगा ले, इसमें उसका आलस्य बाधा बन जाता है। कभी – कभी लगता है की इस रहस्य से ज़्यादा कबीर को संभोग की चिंता है, बाकी बातें जाएं भाड़ में। चम्पा के लिए ही तोहफे लाई थी निशा, पर कहां से, ये सोचने लायक बात है? पैसा कहां से आया उसके पास? अब सवाल ये भी उठ खड़ा हुआ है की निशा कौनसी डायन है? वो डायन योनि में जन्मी है, या समाज द्वारा निष्कासित – घोषित डायन है। कितना हास्यास्पद है की प्रेम का दावा ठोकने वाला कबीर अभी तक ये भी नहीं पता कर पाया...

अब देखते हैं की आगे क्या होने वाला है, निशा क्यों नहीं आएगी चम्पा के ब्याह वाले दिन, ये भी सोचने लायक है। क्या उस दिन वो कबीर के रूपांतर को रोकने के लिए कुछ करने वाली है, या कुछ और बात है? दूसरा, चाची और सरला दोनों से ही बात की है कबीर ने, देखते हैं कौन चूना लगाएगी अब कबीर को... चाबी के बारे में इतनी जल्दी पता करने की बौद्धिक – क्षमता होती कबीर में तो क्या ही बात थी...

प्रतीक्षा अगले भाग की!
 

Lutgaya

Well-Known Member
2,159
6,156
144
#103

“ये मेरा कमरा है ” मैंने निशा को अन्दर लाते हुए कहा

निशा- बढ़िया सजाया है

मैं- क्या तुम भी सब कुछ अस्त व्यस्त तो पड़ा है , वैसे भी आजकल मैं ज्यादातर कुवे पर ही रहता हूँ न

“कोई बात नहीं कबीर ” निशा ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा.

मैं- समझ नहीं आ रहा क्या करू तुम्हारे लिए

निशा- तुमने बहुत कुछ कर दिया है अब और की जरुरत नहीं

“ये कबीर के कमरा किसने खोला ” बाहर से चंपा की आवाज आई तो मैंने उसे अन्दर आने को कहा. चंपा मेरे साथ निशा को देख कर थोडा हैरान हो गयी.

मैं- ऐसे क्या देख रही है , मैंने कहा था न तुझसे की निशा से मिलवा दूंगा तुझे

चंपा- ये तो वो ........

मैं- हाँ वो ही है. आ बैठ पास

निशा ने आगे बढ़ कर चंपा को गले लगाया और उसके माथे को चूमा

“बड़ी प्यारी हो ” निशा ने कहा.

चंपा- मैं कुछ लाती हूँ आपके लिए

निशा- जरुरत नहीं तुम बैठो पास मेरे, तुमसे मिलने ही तो आई हूँ मैं

निशा की सादगी, उसका बड़प्पन उसका स्नेह एक डायन के दिल में इंसानों से ज्यादा दरियादिली थी .

निशा- सब लोग खामोश क्यों हो बोलो भी कुछ

चम्पा- मैं क्या बोलू

निशा- जो तुम्हारा दिल करे वो बोलो. कबीर तो तुम्हारी तारीफ करते हुए नहीं थकता.

तभी भाभी नाश्ता ले आई निचे से. चंपा ने भाभी के हाथ से ट्रे ली और सबको चाय नाश्ता देने लगी.

भाभी- चंपा निशा तेरे लिए कुछ तोहफे लाई है तू निचे जाकर देख और संभाल कर रख दे उनको.

चंपा के जाने के बाद हमारी तरफ मुखातिब हुई.

भाभी- तुमको यहाँ देख कर बड़ी प्रसन्नता हुई ,

निशा- तुम्हारे निमन्त्रण को कैसे मना करती .

मैं- आप दोनों एक दुसरे को कैसे जानती है

भाभी- जंगल में सिर्फ तुम ही नहीं जी रहे हो तुमसे पहले भी कुछ लोग है जो तुमसे ज्यादा जानते है जंगल को.

मैं- भाभी आपसे मैंने कुछ नहीं छिपाया . आज जब निशा भी यहाँ पर है तो मैं आपसे विनती करता हूँ की आप हमारे रिश्ते पर अपनी हाँ की मोहर लगा दे. ये प्रेम दुनिया समझे ना समझे आप जरुर समझेंगी मैंने शुरू से ही ये माना है . मेरा और निशा का रिश्ता किसी स्वार्थ पर नहीं टिका है

भाभी- जानती हु, समझती भी हूँ प्रेम को .पर मैं डरती हूँ कबीर . शुरू में मुझे लगता था की निशा कभी इतना आगे नहीं बढ़ेगी पर जब निशा ने ये निर्णय लिया है तो सोच कर ही लिया होगा.

निशा- नंदिनी, मैं तुम्हारे मन की बात समझती हूँ . जानती हूँ की जिस पथ पर चलने के लिए मैंने कबीर का हाथ थामा है वो राह आसान नहीं है

मैं- हर राह आसान कर लूँगा मैं निशा, मेरा वादा है तेरे दामन में इतनी खुशिया भर दूंगा की तू नाज करेगी मुझ पर

भाभी- वो नाज करती है तुझ पर कबीर. पर ये जमाना, अभिमानु को कैसे समझा पाउंगी मैं

मैं- आप फ़िक्र ना करे, भैया ने मुझसे वादा किया है की वो खुद जायेंगे रिश्ता लेके

भाभी- एक बार मुझसे पूछ तो लेते कबीर,

निशा- नियति का खेल निराला है नंदिनी . खैर, अब मुझे चलना चाहिए . ब्याह की रात नहीं आ सकती थी इसलिए सोचा की आज ही चंपा से मिल लू .

भाभी- अच्छा किया

हम लोग निचे आये. निशा ने थोड़ी बाते चंपा के साथ की और फिर चली गयी. मैं उसके साथ जाना चाहता था पर भाभी ने मुझे रोक लिया.

भाभी- क्या वादा किया है अभिमानु ने तुझसे

मैं- यही की वो खुद मेरे रिशते की बात करने जायेंगे.

भाभी और कुछ कहती की तभी उनकी नजर आँगन में आती चाची पर पड़ी तो वो चुप हो गयी. मैं चंपा के पास गया .

मैं- तोहफे कैसे लगे.

चंपा- अप्रतिम, तेरी दोस्त तो बहुत अमीर है

मैं- अमीर का तो मालूम नहीं पर दिल की बहुत नेक है .और हाँ डाकन कभी बुरी नहीं होती वो मेरे जैसी ही होती है .

मेरी बात सुन कर चंपा के चेहरे पर हवाइया उड़ने लगी. चाची के पीछे पीछे मैं कमरे में गया और उसे अपनी बाँहों में भर लिया. चाची के लाल होंठ चूसने लगा.

चाची- मत कर कोई आ निकलेगा मरवा के मानेगा तू

मैं- कितने दिन हो गए रुका नहीं जा रहा मुझसे

चाची- ठीक है आज रात को कर दूंगी तेरा काम अभी तंग मत कर.

चाची के लहंगे में हाथ डाला और चूत को मसलते हुए बोला- रात को पक्का

एक बार फिर मैंने चाचा की चाबी को देखा और सोचने लगा की क्या चक्कर है इस चाबी का, कहाँ होगा वो ताला जो चाचा की गुत्थी सुलझाएगा. रसोई में मैंने देखा की सरला बर्तन धो रही थी .

मैं- बर्तनों पर ध्यान मत दे थोडा ध्यान मुझ पर भी दे भाभी

सरला- कल मौका ही नहीं मिला पर आज तुम्हारी मनचाही कर दूंगी.

मैं- यहाँ जगह नहीं है , और तेरे घर पर आ नहीं सकता

सरला- एक जगह है , जहाँ मिल सकते है

मैं- कहाँ

सरला- वैध के घर पर . घर बंद पड़ा है किसी को मालूम भी नहीं होगा

मैं- ठीक है पर आज ना नहीं होनी चाहिए

मैं अपने दोनों हाथो में लड्डू रखना चाहता था चाची या सरला दोनों में से एक को तो चोदना ही चोदना था मुझे. तभी मुझे ध्यान आया की चोदने के लिए इस घर में भी तो जगह है . मैंने रसोई में छिपे दरवाजे को खोलना चाहा पर उस पर ताला लगा था . जरुर भाई ने ही किया होगा ये काम.

थोड़ी देर सोना चाहता था पर ब्याह के घर में सब कुछ मिल सकता है बस नींद नहीं. चाची ने कहा की भाभी को बुला ला ऊपर गया तो देखा की भाभी पलंग पर बैठी थी उनकी गोद में लाल जोड़ा था .

मुझे देख कर वो बोली- सोचा था की तेरी दुल्हन को दूंगी ये

मैं- आई तो थी दे देती हमारा भी थोडा मान रह जाता.

भाभी- पर दे नहीं पाई

मैं- आपका मन अब भी नहीं मान रहा क्या

भाभी- मुझे डर लग रहा है कबीर.

मैं- कैसा डर भाभी

भाभी- यही की तुझे खो न दू कहीं.
एक साथ इतनी खुशियां ।
चाची और सरला दोनों चुदेगी।
भाभी लाल जोडा लिए बैठी है।
पर वैद्य के घर मे ही तो चाबी का राज नही हैं कहीं।
जरा संभल के कबीर 😎
 

Tiger 786

Well-Known Member
5,686
20,793
173
#103

“ये मेरा कमरा है ” मैंने निशा को अन्दर लाते हुए कहा

निशा- बढ़िया सजाया है

मैं- क्या तुम भी सब कुछ अस्त व्यस्त तो पड़ा है , वैसे भी आजकल मैं ज्यादातर कुवे पर ही रहता हूँ न

“कोई बात नहीं कबीर ” निशा ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा.

मैं- समझ नहीं आ रहा क्या करू तुम्हारे लिए

निशा- तुमने बहुत कुछ कर दिया है अब और की जरुरत नहीं

“ये कबीर के कमरा किसने खोला ” बाहर से चंपा की आवाज आई तो मैंने उसे अन्दर आने को कहा. चंपा मेरे साथ निशा को देख कर थोडा हैरान हो गयी.

मैं- ऐसे क्या देख रही है , मैंने कहा था न तुझसे की निशा से मिलवा दूंगा तुझे

चंपा- ये तो वो ........

मैं- हाँ वो ही है. आ बैठ पास

निशा ने आगे बढ़ कर चंपा को गले लगाया और उसके माथे को चूमा

“बड़ी प्यारी हो ” निशा ने कहा.

चंपा- मैं कुछ लाती हूँ आपके लिए

निशा- जरुरत नहीं तुम बैठो पास मेरे, तुमसे मिलने ही तो आई हूँ मैं

निशा की सादगी, उसका बड़प्पन उसका स्नेह एक डायन के दिल में इंसानों से ज्यादा दरियादिली थी .

निशा- सब लोग खामोश क्यों हो बोलो भी कुछ

चम्पा- मैं क्या बोलू

निशा- जो तुम्हारा दिल करे वो बोलो. कबीर तो तुम्हारी तारीफ करते हुए नहीं थकता.

तभी भाभी नाश्ता ले आई निचे से. चंपा ने भाभी के हाथ से ट्रे ली और सबको चाय नाश्ता देने लगी.

भाभी- चंपा निशा तेरे लिए कुछ तोहफे लाई है तू निचे जाकर देख और संभाल कर रख दे उनको.

चंपा के जाने के बाद हमारी तरफ मुखातिब हुई.

भाभी- तुमको यहाँ देख कर बड़ी प्रसन्नता हुई ,

निशा- तुम्हारे निमन्त्रण को कैसे मना करती .

मैं- आप दोनों एक दुसरे को कैसे जानती है

भाभी- जंगल में सिर्फ तुम ही नहीं जी रहे हो तुमसे पहले भी कुछ लोग है जो तुमसे ज्यादा जानते है जंगल को.

मैं- भाभी आपसे मैंने कुछ नहीं छिपाया . आज जब निशा भी यहाँ पर है तो मैं आपसे विनती करता हूँ की आप हमारे रिश्ते पर अपनी हाँ की मोहर लगा दे. ये प्रेम दुनिया समझे ना समझे आप जरुर समझेंगी मैंने शुरू से ही ये माना है . मेरा और निशा का रिश्ता किसी स्वार्थ पर नहीं टिका है

भाभी- जानती हु, समझती भी हूँ प्रेम को .पर मैं डरती हूँ कबीर . शुरू में मुझे लगता था की निशा कभी इतना आगे नहीं बढ़ेगी पर जब निशा ने ये निर्णय लिया है तो सोच कर ही लिया होगा.

निशा- नंदिनी, मैं तुम्हारे मन की बात समझती हूँ . जानती हूँ की जिस पथ पर चलने के लिए मैंने कबीर का हाथ थामा है वो राह आसान नहीं है

मैं- हर राह आसान कर लूँगा मैं निशा, मेरा वादा है तेरे दामन में इतनी खुशिया भर दूंगा की तू नाज करेगी मुझ पर

भाभी- वो नाज करती है तुझ पर कबीर. पर ये जमाना, अभिमानु को कैसे समझा पाउंगी मैं

मैं- आप फ़िक्र ना करे, भैया ने मुझसे वादा किया है की वो खुद जायेंगे रिश्ता लेके

भाभी- एक बार मुझसे पूछ तो लेते कबीर,

निशा- नियति का खेल निराला है नंदिनी . खैर, अब मुझे चलना चाहिए . ब्याह की रात नहीं आ सकती थी इसलिए सोचा की आज ही चंपा से मिल लू .

भाभी- अच्छा किया

हम लोग निचे आये. निशा ने थोड़ी बाते चंपा के साथ की और फिर चली गयी. मैं उसके साथ जाना चाहता था पर भाभी ने मुझे रोक लिया.

भाभी- क्या वादा किया है अभिमानु ने तुझसे

मैं- यही की वो खुद मेरे रिशते की बात करने जायेंगे.

भाभी और कुछ कहती की तभी उनकी नजर आँगन में आती चाची पर पड़ी तो वो चुप हो गयी. मैं चंपा के पास गया .

मैं- तोहफे कैसे लगे.

चंपा- अप्रतिम, तेरी दोस्त तो बहुत अमीर है

मैं- अमीर का तो मालूम नहीं पर दिल की बहुत नेक है .और हाँ डाकन कभी बुरी नहीं होती वो मेरे जैसी ही होती है .

मेरी बात सुन कर चंपा के चेहरे पर हवाइया उड़ने लगी. चाची के पीछे पीछे मैं कमरे में गया और उसे अपनी बाँहों में भर लिया. चाची के लाल होंठ चूसने लगा.

चाची- मत कर कोई आ निकलेगा मरवा के मानेगा तू

मैं- कितने दिन हो गए रुका नहीं जा रहा मुझसे

चाची- ठीक है आज रात को कर दूंगी तेरा काम अभी तंग मत कर.

चाची के लहंगे में हाथ डाला और चूत को मसलते हुए बोला- रात को पक्का

एक बार फिर मैंने चाचा की चाबी को देखा और सोचने लगा की क्या चक्कर है इस चाबी का, कहाँ होगा वो ताला जो चाचा की गुत्थी सुलझाएगा. रसोई में मैंने देखा की सरला बर्तन धो रही थी .

मैं- बर्तनों पर ध्यान मत दे थोडा ध्यान मुझ पर भी दे भाभी

सरला- कल मौका ही नहीं मिला पर आज तुम्हारी मनचाही कर दूंगी.

मैं- यहाँ जगह नहीं है , और तेरे घर पर आ नहीं सकता

सरला- एक जगह है , जहाँ मिल सकते है

मैं- कहाँ

सरला- वैध के घर पर . घर बंद पड़ा है किसी को मालूम भी नहीं होगा

मैं- ठीक है पर आज ना नहीं होनी चाहिए

मैं अपने दोनों हाथो में लड्डू रखना चाहता था चाची या सरला दोनों में से एक को तो चोदना ही चोदना था मुझे. तभी मुझे ध्यान आया की चोदने के लिए इस घर में भी तो जगह है . मैंने रसोई में छिपे दरवाजे को खोलना चाहा पर उस पर ताला लगा था . जरुर भाई ने ही किया होगा ये काम.

थोड़ी देर सोना चाहता था पर ब्याह के घर में सब कुछ मिल सकता है बस नींद नहीं. चाची ने कहा की भाभी को बुला ला ऊपर गया तो देखा की भाभी पलंग पर बैठी थी उनकी गोद में लाल जोड़ा था .

मुझे देख कर वो बोली- सोचा था की तेरी दुल्हन को दूंगी ये

मैं- आई तो थी दे देती हमारा भी थोडा मान रह जाता.

भाभी- पर दे नहीं पाई

मैं- आपका मन अब भी नहीं मान रहा क्या

भाभी- मुझे डर लग रहा है कबीर.

मैं- कैसा डर भाभी


भाभी- यही की तुझे खो न दू कहीं.
Bhabhi ka ye bar bar kahna ke dar lagta tuje kho na du kisi badi anhoni ki tarf ishara karta hai jo bhabhi janti hai
Superb update
 
Top