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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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शाम है, जाम है, और है नशा...

तन भी है, मन भी है
पिघला हुआ....


छाई है...
बेताबियां

फिर भी है....
बाकी और कहानियां।
 

Death Kiñg

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निशा का कहानी में आना वैसा ही है जैसे रात की चांदनी में फूलों पर शबनम का आना। कितनी खूबसूरती से लिखा गया है इस कहानी में निशा का किरदार, पहले भी कहा था, पुनः कहूंगा, मेरी नज़र में इससे सुंदर तरीके से प्रेम को लिखना संभव ही नहीं...
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#102

“कौन है उधर ” भाभी की आवाज आई . निशा ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरे पीछे हो गयी. लालटेन की रौशनी हमारी तरफ आने लगी. मेरा दिल जोरो से धडकने लगा. भाभी यहाँ इस हालत में निशा को देखती तो पक्का गुस्सा करती ही . हम दोनों आँगन के बीचोबीच खड़े थे. लालटेन की रौशनी हमारी तरफ आ ही रही थी

“नंदिनी क्या कर रही हो “

ऊपर से भैया की आवाज आई

“आई, ” भाभी ने कहा और वापिस मुड गयी . हमें राहत सी मिली मैं निशा को लेकर घर से बाहर निकल गया. फिर सीधा हम कुवे पर ही आकर रुके.

निशा- तो छिपना भी जानते हो तुम

मैं- छिप कर मिलने का अपना ही मजा है जान.

निशा मुस्कुराने लगी.

निशा- वैसे मेरे साथ देख लेती नंदिनी तो तुम पर गुस्सा बहुत करती

मैं- घबरा तो तुम भी गयी थी

निशा- तुमसे ही सीखा की छिप कर मिलने का मजा बहुत है .

हम दोनों ही हंस पड़े.

निशा- चंपा को कुछ तोहफे देना चाहती हूँ मैं भिजवा दूंगी कल तुम मेरी तरफ से उसे दे देना.

मैं- तुम खुद मिल कर दोगी तो अच्छा लगेगा उसे और हमें हमारी जान का दीदार हो जायेगा.

निशा- बस बहाने ढूंढते हो तुम

मैं- क्या करे जान, तुम बहाने कहती हो तुमसे मिलने के लिए हम जान दे दे

निशा ने अपनी ऊँगली मेरे होंठो पर रखी और बोली- जान देने के लिए नहीं होती , फिर न कहना ऐसा.

मैं- तो फिर क्या कहूँ मेरी सरकार

निशा- कुछ नहीं रात बहुत हुई .

मैं- अभी तो रात जवान हुई है और अभी से तुम घबराने लगी

निशा- अच्छा जी हमारी बाते हमी को सुनाई जा रही है. खैर, बयाह में अंजू भी आएगी ऐसा मेरा मानना है

मैं- आएगी जानता हूँ

निशा- तुम्हारे पास पूरा मौका रहेगा उसके साथ रहना वो अभिमानु के बहुत करीब है जब वो बाते करे तो कान लगाये रखना उम्मीद है कुछ मिलेगा तुमको.

मैं- मैंने भी यही सोचा है . वैसे प्रकाश इस जमीं के आस पास मरा था , अंजू भी इधर के चक्कर ज्यादा लगा रही है तुमको क्या लगता है

निशा- शायद इधर कुछ हो सकता है उनके मतलब का

मैं- मेरा भी यही विचार है जान, पर खुले खेत और ये कमरा इसके सिवा और क्या ही है यहाँ

निशा- जमीन तो है न , तुम हमेशा से यहाँ खेती कर रहे हो अगर तुम अपनी जमीं को नहीं पहचानते तो फिर क्या ख़ाक किसान हो तुम.

निशा की बात में दम था जमीं से बेहतर क्या हो सकता था कुछ छिपाने के लिए . पर इतनी बड़ी जमीन में उसे तलाशना बहुत मुशकिल था पर कोशिश करनी ही थी.

सुबह आँख खुली तो रजाई में मैं अकेला था . वो जा चुकी थी . रात भर जागने की वजह से आँखे भारी भारी सी हो रही थी जैसे तैसे करके उठा और पूरी जमीन का एक चक्कर लगाया. बारीकी से निरिक्षण किया. जमीन भी तो बहुत बड़ी थी ,जब थक गया तो गाँव की तरफ चल दिया.

जाते ही एक कप चाय ली, देखा बाप के कमरे पर ताला लटका था ये चुतिया न जाने कहा गायब था .

मेरी चाय ख़त्म भी नहीं हुई थी की राय साहब की गाडी आकर रुकी. साथ में मंगू का बाप भी था . मालुम हुआ की आज लग्न देने के लिए घर और गाँव के कुछ लोग शेखर बाबु के घर जायेंगे. दोपहर होते होते सामान , कपडे, भेंटे सब लाद दिया गया और चलने की तयारी होने लगी. भैया मेरे पास आये और बोले- छोटे, हम लग्न देने जा रहे है तू यही रहेगा,पीछे से व्यवस्था में कोई कमी नहीं आये.

मैं- पर मैं भी चल रहा हूँ

भैया- पिताजी ने कहा है की तू यही रहेगा.

मैंने एक गहरी साँस ली बाप चुतिया मुझे क्यों नहीं ले जाना चाहता था .

भाभी- कबीर थोड़ी हल्दी बची है कहे तो तुझे लगा दू, शुभ होता है इसे लगाना

मैं- मेरा आज नहाने का मन नहीं है भाभी

भाभी ने थोड़ी हल्दी मेरे गाल पर लगाई और भैया से बोली- आपके भाई को ब्याह करना है और हल्दी से घबरा रहा है .

भैया- कम न समझना मेरा भाई है ये

भाभी- एक बार आपको कम समझने की भूल की थी ,मन हार बैठी थी

भैया- मन हार कर हमें तो जीत ही गयी थी न .

मैं- आप लोगो का हो गया हो तो मेरी भी सुन लो

भैया- तुम मेरी सुनो छोटे,

उन लोगो के जाने के बाद चाची ने बताया की वो मंदिर जा रही है . रह गए मैं और भाभी . भाभी अपने कमरे में चली गयी मैं भी छोटा मोटा काम करने लगा. कुछ देर ही बीती थी की कुछ लोग आये और काफी सारे कपडे, आभूषण और तोहफे रखने लगे. लग्न तो चला गया फिर ये सामान कैसा, मैंने एक पल सोचा और फिर समझा की राय साहब के ही लोग रहे होंगे. मैंने ध्यान नहीं दिया. पूरी रात निशा के साथ जागा था तो सोचा की थोड़ी देर सो जाता हूँ वैसे भी रात को फिर से जागना ही था. पीठ मोड़ कर कमरे की तरफ चला ही था की.....



“एक बार फिर हम दर पर आये सनम के और एक बार फिर पीठ मोड़ ली तुमने ” पलट कर देखे बिना ही मेरे होंठो पर मुस्कान आ गयी.

“मेहमान है तुम्हारे , ” निशा ने कहा

मैं- मेहमान नहीं मेजबान हो तुम सरकार, ये घर मेरा ही नहीं तुम्हारा भी है .

मैंने आगी बढ़ कर उसे बाँहों में भर लिया और अपने होंठ उसके होंठो पर रख दिए. इश्क का ऐसा नशा था की भूल गया मेरे सिवा घर पर कोई और भी था .

“कौन आया है कबीर ” भाभी ने ऊपर से झाँका , निशा को मेरे साथ देख कर भाभी बस देखती ही रह गयी हमें. मैंने निशा का हाथ कस कर पकड़ लिया .

मैं- निशा आई है भाभी .

भाभी सीढिया उतर कर निचे आई. कुछ देर तक वो बस हमें देखती रही .

मैं- आपने इसे न्योता दिया है भाभी

पर भाभी ने मेरी बात जैसे सुनी ही नहीं .....दो पल वो एक दुसरे को देखती रही और फिर वो हुआ जिसकी कभी उम्मीद नहीं थी भाभी झुकी और निशा के पैरो को हाथ लगा कर अपने माथे पर लगाया. नंदिनी भाभी की आँखों से गिरते आंसू उनके गालो को भिगो गए. मैं हैरान था , परेशान था .

भाभी- कबीर, मेहमान आई है घर पर . मेरे कमरे में लेकर चलो इनको मैं आती हूँ .

मैंने निशा का हाथ पकड़ा और ऊपर सीढिया चढ़ने लगे. भाभी बस हमें देखती रही .........
 

Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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वर्षो बाद ऐसी घड़ी आई है जब एक दिन में 3–3 अपडेट आया है
पता नही अब ऐसा लगन कब आएगा
मैंने एक गहरी साँस ली बाप चुतिया मुझे क्यों नहीं ले जाना चाहता था
गजब लाइन था ये 😅😅

भाभी को व्यवहार से ये तो लगता की है वो निशा से नफरत नहीं करती, बल्कि निशा शायद उनकी बहुत खास है
शायद उनके ब्याह के विरोध के पीछे कुछ और कारण रहा होगा


पैर इस लिए तो नही छुआ होगा की निशा उनसे उमर में बड़ी होगी, शायद रिश्ते में बड़ी हो निशा

लेकिन अगर नंदिनी कबीर का support करती है तो कबीर के लिए निशा से शादी करना कुछ आसान रहेगा
डाकन से शादी करना, हलवा नही है
समाज इसकी इजाजत देता नहीं

रही बात विशम्बर दयाल को तो उसको तो कबीर अब झांट बराबर भी नहीं समझता लेकिन अभिमानु कबीर के लिए बहुत कुछ है
अगर वो मना कर दिया तो फिर कबीर के लिए मुस्किल हो जायेगी इस लिए भाभी का supoort जरूरी है

सुरजभान भी अगर जंगल में कुछ ढूंढ रहा है तो निशा से कभी सामना क्यों नही हुआ

देखते है चाचा का चाबी राज खोलेगा या और प्रश्न बढ़ाएगा


फौजी भाई 100+ अपडेट के लिए बधाई और धन्यवाद
महाकाल को कृपा आप पर बनी रहे और आप ऐसी ही अच्छी अच्छी कहानी लिखते रहे

जय महाकाल
 
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Death Kiñg

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“कौन है उधर ” भाभी की आवाज आई . निशा ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरे पीछे हो गयी. लालटेन की रौशनी हमारी तरफ आने लगी. मेरा दिल जोरो से धडकने लगा. भाभी यहाँ इस हालत में निशा को देखती तो पक्का गुस्सा करती ही . हम दोनों आँगन के बीचोबीच खड़े थे. लालटेन की रौशनी हमारी तरफ आ ही रही थी

“नंदिनी क्या कर रही हो “

ऊपर से भैया की आवाज आई

“आई, ” भाभी ने कहा और वापिस मुड गयी . हमें राहत सी मिली मैं निशा को लेकर घर से बाहर निकल गया. फिर सीधा हम कुवे पर ही आकर रुके.

निशा- तो छिपना भी जानते हो तुम

मैं- छिप कर मिलने का अपना ही मजा है जान.

निशा मुस्कुराने लगी.

निशा- वैसे मेरे साथ देख लेती नंदिनी तो तुम पर गुस्सा बहुत करती

मैं- घबरा तो तुम भी गयी थी

निशा- तुमसे ही सीखा की छिप कर मिलने का मजा बहुत है .

हम दोनों ही हंस पड़े.

निशा- चंपा को कुछ तोहफे देना चाहती हूँ मैं भिजवा दूंगी कल तुम मेरी तरफ से उसे दे देना.

मैं- तुम खुद मिल कर दोगी तो अच्छा लगेगा उसे और हमें हमारी जान का दीदार हो जायेगा.

निशा- बस बहाने ढूंढते हो तुम

मैं- क्या करे जान, तुम बहाने कहती हो तुमसे मिलने के लिए हम जान दे दे

निशा ने अपनी ऊँगली मेरे होंठो पर रखी और बोली- जान देने के लिए नहीं होती , फिर न कहना ऐसा.

मैं- तो फिर क्या कहूँ मेरी सरकार

निशा- कुछ नहीं रात बहुत हुई .

मैं- अभी तो रात जवान हुई है और अभी से तुम घबराने लगी

निशा- अच्छा जी हमारी बाते हमी को सुनाई जा रही है. खैर, बयाह में अंजू भी आएगी ऐसा मेरा मानना है

मैं- आएगी जानता हूँ

निशा- तुम्हारे पास पूरा मौका रहेगा उसके साथ रहना वो अभिमानु के बहुत करीब है जब वो बाते करे तो कान लगाये रखना उम्मीद है कुछ मिलेगा तुमको.

मैं- मैंने भी यही सोचा है . वैसे प्रकाश इस जमीं के आस पास मरा था , अंजू भी इधर के चक्कर ज्यादा लगा रही है तुमको क्या लगता है

निशा- शायद इधर कुछ हो सकता है उनके मतलब का

मैं- मेरा भी यही विचार है जान, पर खुले खेत और ये कमरा इसके सिवा और क्या ही है यहाँ

निशा- जमीन तो है न , तुम हमेशा से यहाँ खेती कर रहे हो अगर तुम अपनी जमीं को नहीं पहचानते तो फिर क्या ख़ाक किसान हो तुम.

निशा की बात में दम था जमीं से बेहतर क्या हो सकता था कुछ छिपाने के लिए . पर इतनी बड़ी जमीन में उसे तलाशना बहुत मुशकिल था पर कोशिश करनी ही थी.

सुबह आँख खुली तो रजाई में मैं अकेला था . वो जा चुकी थी . रात भर जागने की वजह से आँखे भारी भारी सी हो रही थी जैसे तैसे करके उठा और पूरी जमीन का एक चक्कर लगाया. बारीकी से निरिक्षण किया. जमीन भी तो बहुत बड़ी थी ,जब थक गया तो गाँव की तरफ चल दिया.

जाते ही एक कप चाय ली, देखा बाप के कमरे पर ताला लटका था ये चुतिया न जाने कहा गायब था .

मेरी चाय ख़त्म भी नहीं हुई थी की राय साहब की गाडी आकर रुकी. साथ में मंगू का बाप भी था . मालुम हुआ की आज लग्न देने के लिए घर और गाँव के कुछ लोग शेखर बाबु के घर जायेंगे. दोपहर होते होते सामान , कपडे, भेंटे सब लाद दिया गया और चलने की तयारी होने लगी. भैया मेरे पास आये और बोले- छोटे, हम लग्न देने जा रहे है तू यही रहेगा,पीछे से व्यवस्था में कोई कमी नहीं आये.

मैं- पर मैं भी चल रहा हूँ

भैया- पिताजी ने कहा है की तू यही रहेगा.

मैंने एक गहरी साँस ली बाप चुतिया मुझे क्यों नहीं ले जाना चाहता था .

भाभी- कबीर थोड़ी हल्दी बची है कहे तो तुझे लगा दू, शुभ होता है इसे लगाना

मैं- मेरा आज नहाने का मन नहीं है भाभी

भाभी ने थोड़ी हल्दी मेरे गाल पर लगाई और भैया से बोली- आपके भाई को ब्याह करना है और हल्दी से घबरा रहा है .

भैया- कम न समझना मेरा भाई है ये

भाभी- एक बार आपको कम समझने की भूल की थी ,मन हार बैठी थी

भैया- मन हार कर हमें तो जीत ही गयी थी न .

मैं- आप लोगो का हो गया हो तो मेरी भी सुन लो

भैया- तुम मेरी सुनो छोटे,

उन लोगो के जाने के बाद चाची ने बताया की वो मंदिर जा रही है . रह गए मैं और भाभी . भाभी अपने कमरे में चली गयी मैं भी छोटा मोटा काम करने लगा. कुछ देर ही बीती थी की कुछ लोग आये और काफी सारे कपडे, आभूषण और तोहफे रखने लगे. लग्न तो चला गया फिर ये सामान कैसा, मैंने एक पल सोचा और फिर समझा की राय साहब के ही लोग रहे होंगे. मैंने ध्यान नहीं दिया. पूरी रात निशा के साथ जागा था तो सोचा की थोड़ी देर सो जाता हूँ वैसे भी रात को फिर से जागना ही था. पीठ मोड़ कर कमरे की तरफ चला ही था की.....



“एक बार फिर हम दर पर आये सनम के और एक बार फिर पीठ मोड़ ली तुमने ” पलट कर देखे बिना ही मेरे होंठो पर मुस्कान आ गयी.

“मेहमान है तुम्हारे , ” निशा ने कहा

मैं- मेहमान नहीं मेजबान हो तुम सरकार, ये घर मेरा ही नहीं तुम्हारा भी है .

मैंने आगी बढ़ कर उसे बाँहों में भर लिया और अपने होंठ उसके होंठो पर रख दिए. इश्क का ऐसा नशा था की भूल गया मेरे सिवा घर पर कोई और भी था .

“कौन आया है कबीर ” भाभी ने ऊपर से झाँका , निशा को मेरे साथ देख कर भाभी बस देखती ही रह गयी हमें. मैंने निशा का हाथ कस कर पकड़ लिया .

मैं- निशा आई है भाभी .

भाभी सीढिया उतर कर निचे आई. कुछ देर तक वो बस हमें देखती रही .

मैं- आपने इसे न्योता दिया है भाभी

पर भाभी ने मेरी बात जैसे सुनी ही नहीं .....दो पल वो एक दुसरे को देखती रही और फिर वो हुआ जिसकी कभी उम्मीद नहीं थी भाभी झुकी और निशा के पैरो को हाथ लगा कर अपने माथे पर लगाया. नंदिनी भाभी की आँखों से गिरते आंसू उनके गालो को भिगो गए. मैं हैरान था , परेशान था .

भाभी- कबीर, मेहमान आई है घर पर . मेरे कमरे में लेकर चलो इनको मैं आती हूँ .


मैंने निशा का हाथ पकड़ा और ऊपर सीढिया चढ़ने लगे. भाभी बस हमें देखती रही .........
Sunaina ki aatma nahi hai na ye.. :sad:
 

Studxyz

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एक बार फिर से ज़बरदस्त धमाकेदार एंट्री निशा डायन जी की और भाभी ने निशा के पैर छू कर तो हमे चारों खाने चित कर दिया हम तो पेहले ही कहानी के सस्पेंस से धराशायी हुए पड़े थे
 
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