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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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मित्रों, मैं आपका बहुत आभारी हूं आपके प्रेम और विश्वास के साथ इस कहानी ने मात्र ढाई महीनों मे ही दस लाख व्यू की संख्या को पार कर लिया है.
साथ साथ आपकी अदभुत शब्द चितेरे होने का उत्कृष्ट प्रमाण भी है, ये प्रेम और विश्वास बस आप के कारण ही है।🙏🏽
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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मित्रों, मैं आपका बहुत आभारी हूं आपके प्रेम और विश्वास के साथ इस कहानी ने मात्र ढाई महीनों मे ही दस लाख व्यू की संख्या को पार कर लिया है.
Congratulations Mitra..
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#91

सर्दियों की खामोश रातो में अक्सर आवाज बड़ी दूर तक गूंजती है . मैं और निशा भागते हुए मोड़ पर पहुंचे तो देखा की परकाश जमीं पर पड़ा था. मैंने उसे हिलाया-दुलाया पर बदन में कोई हरकत नहीं थी. बदन बेशक गर्म था पर साँस की डोर टूट चुकी थी . मैंने और निशा ने उसके बदन का अवलोकन किया .

निशा- चाकू से मारा है इसे.

मैं- पर किसने

निशा- होगा कोई दुश्मन इसका.

मैं- कल ही मैंने इसे अंजू के साथ देखा था , कल ही अंजू ने मुझे इसकी और उसकी प्रेम कहानी के बारे में बताया था और आज ये लाश बन गया.

निशा ने मेरा हाथ पकड़ा और जंगल की तरफ बढ़ गयी. कुछ देर बाद हम खंडहर में मोजूद थे.

मैं- यहाँ क्यों ले आई.

निशा- वहां खतरा था हो सकता था.

कहाँ तो मैं निशा के साथ अपने लम्हे जी रहा था और कहाँ अब ये रात मेरी मोहब्बत के सबब को बर्बाद करने पर तुली थी .

कुछ देर ख़ामोशी रही फिर मैंने ख़ामोशी को तोडा.

मैं- आज के बाद तू इन रातो में नहीं भटकेगी. जब तक मैं मालूम नहीं कर लेता की जंगल में चल क्या रहा है मैं तेरी सुरक्षा से समझौता नहीं करूँगा.

निशा- तू भी बता फिर कहाँ सुरक्षित रहूंगी मैं

मैं- कर लूँगा जुगाड़ .

निशा- इस वक्त मुझे तेरे साथ रहना जरुरी है .

मैं- जानता हूँ ,

मैं जानता था की प्रकाश की मौत का अंजू को जब पता चलेगा तो वो हिंसक हो जाएगी , देखना बस ये था की वो आरोप किस पर लगाएगी.

मैंने निशा का हाथ पकड़ा और बोला- मैं एक बार फिर तुझसे पूछता हूँ की तू इस खंडहर को सब कुछ जानती है

निशा- निशा बार बार क्यों पूछता है

मैं- क्योंकि ऐसा कुछ है जो तुझसे भी छिपा है.

निशा- दिखा फिर मुझे

मैं निशा को सीढियों पर ले आया और गुप्त दरवाजे से अन्दर आ गए. माचिस से मैंने चिमनी को जलाया और हलकी रौशनी हो गयी.

मैं- मैं तुझसे इन कमरों के बारे में जानना चाहता हूँ.

निशा आँखे फाड़े उस कमरे को देख रही थी . मैं उसे दुसरे कमरे में ले गया . जहाँ पर तमाम वो सामान और सोने से भरा बैग रखा था . उसने उस समान को देखा और फिर मुझे देखने लगी.

मैं- इसलिए ही मैं तुझसे कह रहा था की तू अकेली नहीं है मेरी सरकार जो इस जगह को जानती है कोई और भी है जिसने अपना राज छुपाया है यहाँ पर . ये सोना ये अय्याशी का समान ये बिस्तर इतना तो बता रहे है की है कोई जो जिस्मो की प्यास बुझाने आता है यहाँ .जितना मैं ढूंढ सकता था मैंने कोशिश की . मैं जानना चाहता हूँ की इस सोने का मालिक कौन है .

निशा ने एक गहरी साँस ली और उठ कर वापिस बहार वाले कमरे में आ गयी . मैं उसके पीछे आया .

निशा- बहुत सालो से मैं इस पानी में पड़े सोने के वारिस को तलाश रही हूँ. तूने सही कहा कबीर, यहाँ किसी और की आमद भी थी , पर मैं भी कहती हूँ की यहाँ बरसो से किसी ने मेरे सिवा और अब तेरे सिवा कदम नहीं रखा.

निशा की बात इस कहानी के तारो को और उलझा रही थी . आखिर कौन ऐसा चुतिया होगा जो इतने सोने को ऐसे ही छोड़ कर चला जायेगा. पर मुझे सोना नहीं चाहिए था , मैं तो देखना भी नहीं चाहता था इसकी तरफ . मैं अपनी जिन्दगी को देखना चाहता था जो मेरे सामने निशा के रूप में खड़ी थी .

मैं जानता था की प्रकाश की मौत का जब सुबह मालूम होगा तो नयी कहानी बनेगी पर माँ चुदाये प्रकाश साला कल मरते आज मरा . मैं अपनी प्रेयसी की बाँहों में जीना चाहता था . मैंने निशा की कमर पकड़ कर उसे अपने आगोश में लिया और उसके नितम्बो को सहलाते हुए उसके होंठ पीने लगा. उसने भी मेरा साथ दिया.

“मेरी जान एक अहसान तू भी कर अपने दीवाने पर . इस डाकन का सच भी बता दे मुझ को ” मैंने निशा के कान को चुमते हुए कहा.



“तू जानता है , तू जान जायेगा. जब दिन के उजाले में घटा रंग बन कर बिखरेगी , जब आसमान भीगा होगा . मन के इन्द्रधनुष में प्रेम की बरसात के दरमियाँ मैं पहला पग उठा कर आगे बढ़ आउंगी तो तू जान जायेगा. ” उसने मेरे सीने में समाते हुए कहा.

मैंने उसके गाल चूमे और बोला- मैं जानता हु, मेरी सरकार. तुझसे प्रेम किया है , तेरे संग जीना है तेरी बाँहों में मरना है तुझे नहीं जाना तो फिर क्या प्रेम किया मेरी सरकार .

उसने अपने पैर थोड़े ऊँचे किये और मेरे माथे को चुमते हुए बोली- मर तो बहुत पहले गयी थी ,अब और नहीं मरना अब जीना है मुझे .

इसके बाद न उसे कुछ कहने की जरुरत थी न मुझे. बेशक ये कमरा किसी का भी रहा हो. पर आज इस रात में ये हमारा था . रात के तीसरे पहर तक हम दोनों अपनी बाते करते रहे . उसके जाने से पहले मैंने उससे वादा लिया की वो ऐसा कुछ नहीं करेगी की उसको किसी भी किस्म का खतरा महसूस हो.



निशा के जाने के बाद भी मैं बहुत देर तक तालाब की मुंडेर पर बैठे उस सोने के बारे में सोचता रहा जिसके मालिक की दिलचस्पी ही नहीं थी उसमे. कोई प्रकाश भोसड़ी वाले को मार गया था . पर प्रकाश क्या कर रहा था वहां पर . मेरे कुवे के पर एक रात पहले अंजू का होना और अगली रात उसके पास ही प्रकाश की मौत , कुवे पर कुछ तो ऐसा था जिसकी तलाश में ये दोनों थे. मैं जब तक लौटा प्रकाश की लाश वहां से हटाई जा चुकी थी , मैंने देखा की पिताजी और भैया दोनों ही कुवे पर मोजूद थे.

“तू कल रात कहाँ था ” पिताजी ने सवाल किया मुझसे

मैं- यही पर था ,

पिताजी- हम लोग आये तब तो नहीं था तू

मैं- हर समय मोजूद रहना जरुरी तो नहीं, सुबह उठते ही मैं दौड़ने जाता हूँ, आप तो जानते ही है

पिताजी- कल रात प्रकाश की मौत हो गयी . किसी ने उसे यही थोड़ी दूर मार डाला

मैं- बढ़िया हुआ

पिताजी- कही इसमें तेरा तो हाथ नहीं .

मैं- काश होता पिताजी, उसे तो मरना ही था उसके कर्म ही ऐसे थे मैं नहीं तो कोई और सही , धरती से एक बोझ कम हो गया .

पिताजी- उसका बचपन हमारे सामने ही बीता था , हमारा विस्वसनीय भी था वो . अगर हमें मालूम हुआ की उसकी मौत में तुमहरा हाथ है तो फिर रहम की गुंजाईश मत करना

मैं- कोशिश कर लीजिये राय साहब. उसकी किस्मत इतनी भी मेहरबान नहीं थी की मेरे हाथो मौत होती उसकी.

पिताजी कुछ कहना चाहते थे पर उनकी नजर भैया पर पड़ी तो उन्होंने कुछ नहीं कहा. पिताजी के साथ भैया भी चले गए. ये जिन्दगी में पहली बार था जब भैया मेरे साथ हो और मुझसे बात नहीं की हो. मैं ये सोचने लगा की कुवे पर क्या हो सकता है ऐसा सोचते सोचते दोपहर हो गयी मैं तब तक सोचता रहा की जब तक मैंने चाची को अपनी तरफ आते हुए नहीं देखा.










 

Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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क्या उस कमरे में अभिमानु या राय साहब में से कोई आता था
क्योंकि सुनैना और रूढ़ा का आना possible नही है जो फोटो मिले है उस रूम में वो इतने पुराने भी नहीं होंगे

चाचा
अगर आता होगा तो बस कविता के साथ आता होगा लेकिन कविता ने इस बारे में मंगू को नही बताया होगा क्योंकि मंगू भी नही जानता की वो इतनी रात जंगल क्या करने गई थी (at least मंगू ने तो कबीर को यही बताया था और ये भी बस अंदाजा है की कविता काली मंदिर ही गई थी खजाने के लिए, शायद ऐसा ना भी हो)

वैसे एक प्रश्न जो मेरे मन में बहुत समय से है की निशा जब कबीर के साथ और काली मंदिर में नही रहती तब वो कहां जाती है कहा रहती है ??

अंजू की अगर गलत मंशा है तो वो पक्का बहुत ही ज्यादा शातिर होगी तभी आज तक उसके गलत इरादों पर अभिमानु और राय साहब को शक नही हुआ

और इतनी खतरनाक महिला परकाश तुरंत मार देगी इसकी संभावना कम लगती है, इतना तो वो भी सोचेगी ही की कबीर का शक सीधा उसी पर जायेगा

खैर ये भी हो सकता है की वो चाहती हो की कबीर उस पर शक करे

वैसे परकाश इतनी रात को कबीर के परिवार में से ही किसी को मिलने आया होगा


लेकिन फिलहाल तो पता नहीं क्यों लग रहा को, रूढ़ा या अभिमानु में से किसी ने हत्या करवाई है (अच्छा ही हुआ मर गया, लेकिन वैसे नही जैसे मैं चाहता था, अब बस अंजू के साथ के एक मस्त सीन डाल दो मजा आ जाए)


निशा ने बोला की वो इस खजाने के वारिश को ढूंढ रही है
जितना कुछ कहानी में अभी तक हुआ है उस हिसाब से तो कबीर से ज्यादा गुंजाइश और किसी की नही है वारिश होने की

लेकिन फिर सवाल आता है अगर कबीर होगा तो कबीर ही क्यों
अगर खानदान वाला system होगा तब तो अभिमानु भी तो वारिश हो सकता था,

अभी तो बस इस बात के लिए prepare रहो की कबीर राय साहब का सगा बेटा न निकले(possibilities)


कहानी अभी ऐसे मोड़ पर है कुछ भी हो सकता है, सच हमारे सोच से भी परे हो सकता है, एक एक, छोटी छोटी चीज भी प्रायः जिसे हम नजरंदाज कर देते है वो भी कहानी को नया मोड़ दे सकती है

फौजी भाई कल और परसो Saturday और sunday है, कोशिश करना की दोनो में से किसी एक दिन mega update या किसी एक दिन 2–3 अपडेट मिल जाए
 
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Studxyz

Well-Known Member
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प्रकाश का बढ़िया अंत हुआ लेकिन ये कैसे बाप और भाई है जो अपने कबीर पर ही शक कर रहे हैं और अंत में चाची भी आ गयी अपनी सच्ची झूठी बाते बनाने

बड़े भाई अभिमन्यु ने पहले सूरजभान के कारण कबीर के थप्पड़ मारे जबकि कबीर दुम हिलाता उसकी मालिशें करता है पीठ पर खरोच के निशान देख कर उसकी जासूसी नहीं करता बल्कि जंगलों में सबूत ढूंढ़ता है
 
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Pankaj Tripathi_PT

Love is a sweet poison
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#91

सर्दियों की खामोश रातो में अक्सर आवाज बड़ी दूर तक गूंजती है . मैं और निशा भागते हुए मोड़ पर पहुंचे तो देखा की परकाश जमीं पर पड़ा था. मैंने उसे हिलाया-दुलाया पर बदन में कोई हरकत नहीं थी. बदन बेशक गर्म था पर साँस की डोर टूट चुकी थी . मैंने और निशा ने उसके बदन का अवलोकन किया .

निशा- चाकू से मारा है इसे.

मैं- पर किसने

निशा- होगा कोई दुश्मन इसका.

मैं- कल ही मैंने इसे अंजू के साथ देखा था , कल ही अंजू ने मुझे इसकी और उसकी प्रेम कहानी के बारे में बताया था और आज ये लाश बन गया.

निशा ने मेरा हाथ पकड़ा और जंगल की तरफ बढ़ गयी. कुछ देर बाद हम खंडहर में मोजूद थे.

मैं- यहाँ क्यों ले आई.

निशा- वहां खतरा था हो सकता था.

कहाँ तो मैं निशा के साथ अपने लम्हे जी रहा था और कहाँ अब ये रात मेरी मोहब्बत के सबब को बर्बाद करने पर तुली थी .

कुछ देर ख़ामोशी रही फिर मैंने ख़ामोशी को तोडा.

मैं- आज के बाद तू इन रातो में नहीं भटकेगी. जब तक मैं मालूम नहीं कर लेता की जंगल में चल क्या रहा है मैं तेरी सुरक्षा से समझौता नहीं करूँगा.

निशा- तू भी बता फिर कहाँ सुरक्षित रहूंगी मैं

मैं- कर लूँगा जुगाड़ .

निशा- इस वक्त मुझे तेरे साथ रहना जरुरी है .

मैं- जानता हूँ ,

मैं जानता था की प्रकाश की मौत का अंजू को जब पता चलेगा तो वो हिंसक हो जाएगी , देखना बस ये था की वो आरोप किस पर लगाएगी.

मैंने निशा का हाथ पकड़ा और बोला- मैं एक बार फिर तुझसे पूछता हूँ की तू इस खंडहर को सब कुछ जानती है

निशा- निशा बार बार क्यों पूछता है

मैं- क्योंकि ऐसा कुछ है जो तुझसे भी छिपा है.

निशा- दिखा फिर मुझे

मैं निशा को सीढियों पर ले आया और गुप्त दरवाजे से अन्दर आ गए. माचिस से मैंने चिमनी को जलाया और हलकी रौशनी हो गयी.

मैं- मैं तुझसे इन कमरों के बारे में जानना चाहता हूँ.

निशा आँखे फाड़े उस कमरे को देख रही थी . मैं उसे दुसरे कमरे में ले गया . जहाँ पर तमाम वो सामान और सोने से भरा बैग रखा था . उसने उस समान को देखा और फिर मुझे देखने लगी.

मैं- इसलिए ही मैं तुझसे कह रहा था की तू अकेली नहीं है मेरी सरकार जो इस जगह को जानती है कोई और भी है जिसने अपना राज छुपाया है यहाँ पर . ये सोना ये अय्याशी का समान ये बिस्तर इतना तो बता रहे है की है कोई जो जिस्मो की प्यास बुझाने आता है यहाँ .जितना मैं ढूंढ सकता था मैंने कोशिश की . मैं जानना चाहता हूँ की इस सोने का मालिक कौन है .

निशा ने एक गहरी साँस ली और उठ कर वापिस बहार वाले कमरे में आ गयी . मैं उसके पीछे आया .

निशा- बहुत सालो से मैं इस पानी में पड़े सोने के वारिस को तलाश रही हूँ. तूने सही कहा कबीर, यहाँ किसी और की आमद भी थी , पर मैं भी कहती हूँ की यहाँ बरसो से किसी ने मेरे सिवा और अब तेरे सिवा कदम नहीं रखा.

निशा की बात इस कहानी के तारो को और उलझा रही थी . आखिर कौन ऐसा चुतिया होगा जो इतने सोने को ऐसे ही छोड़ कर चला जायेगा. पर मुझे सोना नहीं चाहिए था , मैं तो देखना भी नहीं चाहता था इसकी तरफ . मैं अपनी जिन्दगी को देखना चाहता था जो मेरे सामने निशा के रूप में खड़ी थी .

मैं जानता था की प्रकाश की मौत का जब सुबह मालूम होगा तो नयी कहानी बनेगी पर माँ चुदाये प्रकाश साला कल मरते आज मरा . मैं अपनी प्रेयसी की बाँहों में जीना चाहता था . मैंने निशा की कमर पकड़ कर उसे अपने आगोश में लिया और उसके नितम्बो को सहलाते हुए उसके होंठ पीने लगा. उसने भी मेरा साथ दिया.

“मेरी जान एक अहसान तू भी कर अपने दीवाने पर . इस डाकन का सच भी बता दे मुझ को ” मैंने निशा के कान को चुमते हुए कहा.



“तू जानता है , तू जान जायेगा. जब दिन के उजाले में घटा रंग बन कर बिखरेगी , जब आसमान भीगा होगा . मन के इन्द्रधनुष में प्रेम की बरसात के दरमियाँ मैं पहला पग उठा कर आगे बढ़ आउंगी तो तू जान जायेगा. ” उसने मेरे सीने में समाते हुए कहा.

मैंने उसके गाल चूमे और बोला- मैं जानता हु, मेरी सरकार. तुझसे प्रेम किया है , तेरे संग जीना है तेरी बाँहों में मरना है तुझे नहीं जाना तो फिर क्या प्रेम किया मेरी सरकार .

उसने अपने पैर थोड़े ऊँचे किये और मेरे माथे को चुमते हुए बोली- मर तो बहुत पहले गयी थी ,अब और नहीं मरना अब जीना है मुझे .

इसके बाद न उसे कुछ कहने की जरुरत थी न मुझे. बेशक ये कमरा किसी का भी रहा हो. पर आज इस रात में ये हमारा था . रात के तीसरे पहर तक हम दोनों अपनी बाते करते रहे . उसके जाने से पहले मैंने उससे वादा लिया की वो ऐसा कुछ नहीं करेगी की उसको किसी भी किस्म का खतरा महसूस हो.



निशा के जाने के बाद भी मैं बहुत देर तक तालाब की मुंडेर पर बैठे उस सोने के बारे में सोचता रहा जिसके मालिक की दिलचस्पी ही नहीं थी उसमे. कोई प्रकाश भोसड़ी वाले को मार गया था . पर प्रकाश क्या कर रहा था वहां पर . मेरे कुवे के पर एक रात पहले अंजू का होना और अगली रात उसके पास ही प्रकाश की मौत , कुवे पर कुछ तो ऐसा था जिसकी तलाश में ये दोनों थे. मैं जब तक लौटा प्रकाश की लाश वहां से हटाई जा चुकी थी , मैंने देखा की पिताजी और भैया दोनों ही कुवे पर मोजूद थे.

“तू कल रात कहाँ था ” पिताजी ने सवाल किया मुझसे

मैं- यही पर था ,

पिताजी- हम लोग आये तब तो नहीं था तू

मैं- हर समय मोजूद रहना जरुरी तो नहीं, सुबह उठते ही मैं दौड़ने जाता हूँ, आप तो जानते ही है

पिताजी- कल रात प्रकाश की मौत हो गयी . किसी ने उसे यही थोड़ी दूर मार डाला

मैं- बढ़िया हुआ

पिताजी- कही इसमें तेरा तो हाथ नहीं .

मैं- काश होता पिताजी, उसे तो मरना ही था उसके कर्म ही ऐसे थे मैं नहीं तो कोई और सही , धरती से एक बोझ कम हो गया .

पिताजी- उसका बचपन हमारे सामने ही बीता था , हमारा विस्वसनीय भी था वो . अगर हमें मालूम हुआ की उसकी मौत में तुमहरा हाथ है तो फिर रहम की गुंजाईश मत करना

मैं- कोशिश कर लीजिये राय साहब. उसकी किस्मत इतनी भी मेहरबान नहीं थी की मेरे हाथो मौत होती उसकी.

पिताजी कुछ कहना चाहते थे पर उनकी नजर भैया पर पड़ी तो उन्होंने कुछ नहीं कहा. पिताजी के साथ भैया भी चले गए. ये जिन्दगी में पहली बार था जब भैया मेरे साथ हो और मुझसे बात नहीं की हो. मैं ये सोचने लगा की कुवे पर क्या हो सकता है ऐसा सोचते सोचते दोपहर हो गयी मैं तब तक सोचता रहा की जब तक मैंने चाची को अपनी तरफ आते हुए नहीं देखा.
Sala ye toh syllabus bahar ka question Ho gya. Kon pel gya prakash ko? Kya isme anju ka hath Ho skta? Qki anju jesi shatir aurat khud apne hath se nahi maregi... OR agr anju ka hath prakash ke maut me hai toh Kya jungle me chudaai kr rhi thi prakash ke sath to Kya woh ek chhalawa tha kabir ke ankhon me dhul jhonkne ke liye qki agle hi pal kunwe wale ghar me milna kabir ko ye darshana ke woh aise hi aai thi jab ki usne jaanbujh kr chhodi dikhaya tha kabir ko ki woh hi prakash ke sath thi.. ... Dusra shq mujhe bhabhi pr jaa rha hai qki kabir ne anju or prakash ke bare me baat kri thi shayad bhabhi ka bhi hath Ho skta hai.... Nisha ji ke haaw bhaaw se nhi lgta ke tehkhane ke khufiya kamre ke bare usko pta hoga. Usko bhi khazane ke vaarish ki talaash hai toh zrur kabir hi hoga.. Wese ek baat toh hai pyar me sawal jawaab nhi hota wahan sirf visvas hota hai jo kabir kr rha hai... Bhai ji ek sawaal hai kabir ke lund pe jo kidaa kata tha uska bhi iss kahaani me koi role hai... OR mere demand ka Kya hua Bhai ji kabir or anju ke bich ilu ilu kab tk dikha rhe Ho.
अब कोई इशारा नहीं मित्र अब बस जवाब होंगे निशा होगी कबीर होगा उमर ये ज़माना देखेगा नियम टूटते हुए
Ab wqt agya hai ek gaal pr thappad khane ke bajaye samne wale ke dono gaal sujaa dene ka
 
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कहानी लेखन के दौरान अलंकारों का प्रयोग... अद्भुत शब्दावली का प्रयोग..... कहानी का तानाबाना बुनने में..... सस्पेंस बरकरार रखने में.... प्रेम का भाव प्रस्तुत करने में । फौजी भाई , आपका जवाब नहीं ।
जब तक सांस चले तब तक ऐसे ही अपनी लेखनी से प्रेम बांटते रहिए । करीब नब्बे वर्ष की अवधि में भी मेरे प्रिय लेखक सुरेंद्र मोहन पाठक जी तो कर ही रहे हैं ।


रूडा जी एक अच्छे प्रेमी रहे थे । अपने हैसियत से बहुत कम एक बंजारन से प्रेम किया था । जिस्मानी संबंध भी बनाया था उन्होंने । अगर उनके पिताजी बीच में नहीं आते तो वो दोनों पति पत्नी होते ।
अपनी प्रेमिका की अकस्मात मौत पर उन्होंने बचपन के दोस्त ठाकुर साहब से सम्बन्ध तोड़ लिया जो अभी तक जारी है ।
एक ऐसा इंसान जिसने प्रेम के लिए इतना कुछ कर दिया वो कैसे अपनी पुत्री और उसके प्रेमी के बीच में दीवार बनकर खड़ा हो सकता है !
या तो अंजू झूठ बोल रही है या वो किसी के झांसे में आ गई है ।
प्रकाश के साथ उसका सम्बंध निजी मामला है । हम देख ही रहे हैं कि इस गांव के प्रायः मर्द और औरत कैरेक्टर के कितने पाक शरीफ हैं । यही सब देखकर तो ठाकुर साहब को अनगिनत तोपों की सलामी देना चाहता था मैं ।

कबीर ने भले ही अब तक आदमखोर का सुराग नहीं खोज पाया पर गांव के प्रायः घरों के चारदीवारी का राज तो ढुंढ ही लिया ।
निशा से अब तक उसकी पहचान न निकलवा सका । लगता है निशा की पहचान हमें नंदिनी भाभी के श्रीमुख से ही सुनने को मिलेगा ।
बहुत पुरानी जान पहचान है नंदिनी और निशा की ।
यह एक बार फिर से निशा की बातें ने सिद्ध किया ।

बेहतरीन कहानी और बेहतरीन अपडेट्स फौजी भाई ।
सभी लेख जगमग जगमग थे ।
 
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Avinashraj

Well-Known Member
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सर्दियों की खामोश रातो में अक्सर आवाज बड़ी दूर तक गूंजती है . मैं और निशा भागते हुए मोड़ पर पहुंचे तो देखा की परकाश जमीं पर पड़ा था. मैंने उसे हिलाया-दुलाया पर बदन में कोई हरकत नहीं थी. बदन बेशक गर्म था पर साँस की डोर टूट चुकी थी . मैंने और निशा ने उसके बदन का अवलोकन किया .

निशा- चाकू से मारा है इसे.

मैं- पर किसने

निशा- होगा कोई दुश्मन इसका.

मैं- कल ही मैंने इसे अंजू के साथ देखा था , कल ही अंजू ने मुझे इसकी और उसकी प्रेम कहानी के बारे में बताया था और आज ये लाश बन गया.

निशा ने मेरा हाथ पकड़ा और जंगल की तरफ बढ़ गयी. कुछ देर बाद हम खंडहर में मोजूद थे.

मैं- यहाँ क्यों ले आई.

निशा- वहां खतरा था हो सकता था.

कहाँ तो मैं निशा के साथ अपने लम्हे जी रहा था और कहाँ अब ये रात मेरी मोहब्बत के सबब को बर्बाद करने पर तुली थी .

कुछ देर ख़ामोशी रही फिर मैंने ख़ामोशी को तोडा.

मैं- आज के बाद तू इन रातो में नहीं भटकेगी. जब तक मैं मालूम नहीं कर लेता की जंगल में चल क्या रहा है मैं तेरी सुरक्षा से समझौता नहीं करूँगा.

निशा- तू भी बता फिर कहाँ सुरक्षित रहूंगी मैं

मैं- कर लूँगा जुगाड़ .

निशा- इस वक्त मुझे तेरे साथ रहना जरुरी है .

मैं- जानता हूँ ,

मैं जानता था की प्रकाश की मौत का अंजू को जब पता चलेगा तो वो हिंसक हो जाएगी , देखना बस ये था की वो आरोप किस पर लगाएगी.

मैंने निशा का हाथ पकड़ा और बोला- मैं एक बार फिर तुझसे पूछता हूँ की तू इस खंडहर को सब कुछ जानती है

निशा- निशा बार बार क्यों पूछता है

मैं- क्योंकि ऐसा कुछ है जो तुझसे भी छिपा है.

निशा- दिखा फिर मुझे

मैं निशा को सीढियों पर ले आया और गुप्त दरवाजे से अन्दर आ गए. माचिस से मैंने चिमनी को जलाया और हलकी रौशनी हो गयी.

मैं- मैं तुझसे इन कमरों के बारे में जानना चाहता हूँ.

निशा आँखे फाड़े उस कमरे को देख रही थी . मैं उसे दुसरे कमरे में ले गया . जहाँ पर तमाम वो सामान और सोने से भरा बैग रखा था . उसने उस समान को देखा और फिर मुझे देखने लगी.

मैं- इसलिए ही मैं तुझसे कह रहा था की तू अकेली नहीं है मेरी सरकार जो इस जगह को जानती है कोई और भी है जिसने अपना राज छुपाया है यहाँ पर . ये सोना ये अय्याशी का समान ये बिस्तर इतना तो बता रहे है की है कोई जो जिस्मो की प्यास बुझाने आता है यहाँ .जितना मैं ढूंढ सकता था मैंने कोशिश की . मैं जानना चाहता हूँ की इस सोने का मालिक कौन है .

निशा ने एक गहरी साँस ली और उठ कर वापिस बहार वाले कमरे में आ गयी . मैं उसके पीछे आया .

निशा- बहुत सालो से मैं इस पानी में पड़े सोने के वारिस को तलाश रही हूँ. तूने सही कहा कबीर, यहाँ किसी और की आमद भी थी , पर मैं भी कहती हूँ की यहाँ बरसो से किसी ने मेरे सिवा और अब तेरे सिवा कदम नहीं रखा.

निशा की बात इस कहानी के तारो को और उलझा रही थी . आखिर कौन ऐसा चुतिया होगा जो इतने सोने को ऐसे ही छोड़ कर चला जायेगा. पर मुझे सोना नहीं चाहिए था , मैं तो देखना भी नहीं चाहता था इसकी तरफ . मैं अपनी जिन्दगी को देखना चाहता था जो मेरे सामने निशा के रूप में खड़ी थी .

मैं जानता था की प्रकाश की मौत का जब सुबह मालूम होगा तो नयी कहानी बनेगी पर माँ चुदाये प्रकाश साला कल मरते आज मरा . मैं अपनी प्रेयसी की बाँहों में जीना चाहता था . मैंने निशा की कमर पकड़ कर उसे अपने आगोश में लिया और उसके नितम्बो को सहलाते हुए उसके होंठ पीने लगा. उसने भी मेरा साथ दिया.

“मेरी जान एक अहसान तू भी कर अपने दीवाने पर . इस डाकन का सच भी बता दे मुझ को ” मैंने निशा के कान को चुमते हुए कहा.



“तू जानता है , तू जान जायेगा. जब दिन के उजाले में घटा रंग बन कर बिखरेगी , जब आसमान भीगा होगा . मन के इन्द्रधनुष में प्रेम की बरसात के दरमियाँ मैं पहला पग उठा कर आगे बढ़ आउंगी तो तू जान जायेगा. ” उसने मेरे सीने में समाते हुए कहा.

मैंने उसके गाल चूमे और बोला- मैं जानता हु, मेरी सरकार. तुझसे प्रेम किया है , तेरे संग जीना है तेरी बाँहों में मरना है तुझे नहीं जाना तो फिर क्या प्रेम किया मेरी सरकार .

उसने अपने पैर थोड़े ऊँचे किये और मेरे माथे को चुमते हुए बोली- मर तो बहुत पहले गयी थी ,अब और नहीं मरना अब जीना है मुझे .

इसके बाद न उसे कुछ कहने की जरुरत थी न मुझे. बेशक ये कमरा किसी का भी रहा हो. पर आज इस रात में ये हमारा था . रात के तीसरे पहर तक हम दोनों अपनी बाते करते रहे . उसके जाने से पहले मैंने उससे वादा लिया की वो ऐसा कुछ नहीं करेगी की उसको किसी भी किस्म का खतरा महसूस हो.



निशा के जाने के बाद भी मैं बहुत देर तक तालाब की मुंडेर पर बैठे उस सोने के बारे में सोचता रहा जिसके मालिक की दिलचस्पी ही नहीं थी उसमे. कोई प्रकाश भोसड़ी वाले को मार गया था . पर प्रकाश क्या कर रहा था वहां पर . मेरे कुवे के पर एक रात पहले अंजू का होना और अगली रात उसके पास ही प्रकाश की मौत , कुवे पर कुछ तो ऐसा था जिसकी तलाश में ये दोनों थे. मैं जब तक लौटा प्रकाश की लाश वहां से हटाई जा चुकी थी , मैंने देखा की पिताजी और भैया दोनों ही कुवे पर मोजूद थे.

“तू कल रात कहाँ था ” पिताजी ने सवाल किया मुझसे

मैं- यही पर था ,

पिताजी- हम लोग आये तब तो नहीं था तू

मैं- हर समय मोजूद रहना जरुरी तो नहीं, सुबह उठते ही मैं दौड़ने जाता हूँ, आप तो जानते ही है

पिताजी- कल रात प्रकाश की मौत हो गयी . किसी ने उसे यही थोड़ी दूर मार डाला

मैं- बढ़िया हुआ

पिताजी- कही इसमें तेरा तो हाथ नहीं .

मैं- काश होता पिताजी, उसे तो मरना ही था उसके कर्म ही ऐसे थे मैं नहीं तो कोई और सही , धरती से एक बोझ कम हो गया .

पिताजी- उसका बचपन हमारे सामने ही बीता था , हमारा विस्वसनीय भी था वो . अगर हमें मालूम हुआ की उसकी मौत में तुमहरा हाथ है तो फिर रहम की गुंजाईश मत करना

मैं- कोशिश कर लीजिये राय साहब. उसकी किस्मत इतनी भी मेहरबान नहीं थी की मेरे हाथो मौत होती उसकी.

पिताजी कुछ कहना चाहते थे पर उनकी नजर भैया पर पड़ी तो उन्होंने कुछ नहीं कहा. पिताजी के साथ भैया भी चले गए. ये जिन्दगी में पहली बार था जब भैया मेरे साथ हो और मुझसे बात नहीं की हो. मैं ये सोचने लगा की कुवे पर क्या हो सकता है ऐसा सोचते सोचते दोपहर हो गयी मैं तब तक सोचता रहा की जब तक मैंने चाची को अपनी तरफ आते हुए नहीं देखा.
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