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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

brego4

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भाई फोजी जी एक भोसडी का प्रकाश दूसरा भोसड़ी का मंगु और तीसरी भोसडी वाली च्म्पा चोथी भोसडी की अंजु उनको माफ़ मत करना और अगर कोई अपना धोकेबाज़ निकले तो उसे भी ठोकना कबीर की इतनी शराफत व चुतियापा देख के पाठकों को डिप्रेशन हो गया है :vhappy1:

:lotpot::lotpot:

kabir ki innocence aur uska family se lagaw hi uska sab se bada dushman hai
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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मैंने उसे देखा बस देखता ही रहा .

“कितना देखोगे कुछ बोलो भी अब ” निशा ने हौले से कहा.

मैं- कुछ नहीं कहना धड़कने खुद ही बात कर लेंगी तेरी धडकनों से.

निशा- ऐसी भी क्या दीवानगी

मैं- मुझ से मत पूछो सरकार की क्या हाल है मेरा . तुम्हारी झुकी निगाहे बता चुकी है तुमको .

निशा- अब उठ भी जाओ थक गयी हूँ मैं तुम्हारा इंतज़ार करते करते की अब उठो अब उठो.

मैं- जगाया क्यों नहीं

निशा- यूँ ही .

मैं- कुवे पर चलते है थोड़ी चाय पियूँगा तो थकान कम होगी.

निशा- इस वक्त वहां

मैं- चल न.

निशा ने अपना हाथ मेरे हाथ में दिया और बोली- चल फिर.

पुरे रस्ते मैंने अपनी नजर बनाये रखी की कोई हमारे पीछे तो नहीं है .

निशा- क्या बात है ये बेचैनी सी किसलिए

मैं- कुवे पर चल कर बताता हूँ

जल्दी ही हम वहां पहुँच गए. मैंने बल्ब जलाया और चाय का सामान निशा के हाथ में दिया .

निशा मुझे देखने लगी.

मैं- चाय बना मेरी जान.

मुस्कुराते हुए उसने चूल्हा जलाया , ठण्ड में थोड़ी तपत मिली तो मैं चूल्हे के पास ही बैठ गया .

मैं- बड़ी प्यारी लग रही है तू

निशा- इन बातो का मुझ पर कोई जोर नहीं चलने वाला.

उसने चूल्हे में फूंक दी. केसरिया आंच के ताप में उसका सिंदूरी चेहरा क्या खूब लग रहा था .

निशा- जंगल में बार बार क्या तलाश रही थी तेरी निगाहे

मैं- इस जंगल में हम अकेले नहीं है जो भटक रहे है .

निशा- जानती हूँ

मैं- मुझे तेरी सुरक्षा की फ़िक्र है , उस खंडहर पर सिर्फ तेरा ही हक़ नहीं है , किसी और की आमद महसूस की है मैने. और मैं बिलकुल नहीं चाहता की मेरा कोई दुश्मन तुझे कुछ नुकसान पहुंचाए .

निशा ने उफनती चाय को हिलाया और बोली- समझती हूँ तेरे मन की पर तू फ़िक्र मत कर उस खंडहर के बारे में किसी को भी नहीं मालूम. इस जंगल में सिर्फ वो ही एक जगह है जो अनोखी है.

मैं- कैसे मानु तेरी बात

निशा- क्योंकि पिछले बहुत सालो में तू एकमात्र था जिसके कदम वहां पर पड़े थे.

निशा की बात ने मुझे हैरत में डाल दिया. निशा का कथन मेरी कविता की सोने वाली धारणा को ध्वस्त कर रही थी .

निशा- तेरी चिंता मैं समझती हूँ . जानती हूँ तेरा मन विचलित है पर मैं कह रही हूँ न खंडहर सुरक्षित है

मैं- इतना यकीं कैसे

निशा- क्योंकि किसी और को अगर भान होता तो तालाब में सोना पड़ा नहीं होता. इन्सान की सबसे बड़ी कमी लालच होती है . किसी भी इन्सान को यदि मालूम होता की वहां पर ऐसा कुछ है तो सोने का लालच उसे तालाब तक खींच लाता.

मैं- पर कुछ लोग अगर जंगल में उसी सोने की तलाश कर रहे हो तो .

निशा- उनका नसीब. मिला हुआ सोना, पड़ा हुआ सोना अपने साथ दुर्भाग्य लाता है .

निशा ने सच कहा था इस बारे में.

मैं- पर लालच कहाँ सोचता है इस बात को

निशा- तो तुझे क्यों फ़िक्र है , जो करेगा सो भरेगा .

मैं- मुझे तेरी फ़िक्र है बस .

निशा ने चाय का कप मुझे दिया और बोली- तेरे मन में और क्या सवाल है

मैं- रुडा की बेटी के पास ऐसा क्या है की वो इतना शाही जीवन जी रही है . रुडा से अलग हुए उसे काफी बरस हो गए है कहाँ से पैसा आ रहा है उसके पास.

निशा- पूछ क्यों नहीं लेते उससे वैसे तुम्हे उसके पैसो में क्यों दिलचश्पी

मैं- अंजू मुझे थोड़े दिन पहले जंगल में मिली थी . पहली मुलाकात में उसने मुझे ये लाकेट दिया और फिर कल रात मैंने उसे प्रकाश के साथ देखा , कल रात ही जब मैं कुवे पर आया तो वो यहाँ मोजूद थी . मेरे कुवे पर उसका क्या प्रयोजन हो सकता था .



निशा- जंगल में होना अलग बात है और कुवे पर होना अलग.

मैं- मैंने भाभी से अंजू के बारे में बात की उन्होंने कहा की अंजू घटिया औरत है . और परकाश के साथ उसका होना पुष्टि भी करता है की वो घटिया है .

निशा- नंदिनी तो रुडा के परिवार की ही है , उसने कहा है तो घटिया होगी अंजू.

मैं- पर सवाल यही है की क्यों भटकती है वो जंगल में

निशा- तुम्हे उसका पीछा करना चाहिए , आज नहीं तो कल वजह मालूम कर ही लोगे.

निशा ने कितनी सरलता से कहा था .

मैं- पर मेरी दुश्मनी है परकाश से , बात बिगड़ेगी.

निशा- कबीर, कभी कभी मैं सोचती हूँ की तुम्हारी ये सरलता ही तुम्हारी शत्रु है. बेह्सक सरल होना अच्छा है पर जीवन में कुछ पल आते है जब हमें कठोर होना पड़ता है . आदत डाल लो , वैसे भी जब नंदिनी को मालूम होगा की तुम मुझे ब्याहने वाले हो तो बवाल करेगी वो.

मैं- बवाल तो हो गया सरकार, मैंने भाभी को बता दिया.

निशा- तुम भी ना

मैं- उसने कहा है की तुमसे कहूँ की जब मैं तुम्हे लेने आऊ तो फाग का दिन हो. रातो की रानी को दिन के उजाले में हाथ थामने को कहना .

निशा ने एक पल चूल्हे में पड़े अंगारों को देखा और बोली- ठीक है कबीर, तुम उसी समय आना मुझे लेने के लिए मैं तैयार मिलूंगी. पर जगह मैं चुनुंगी . हमारी अगली मुलाकात में मैं तुम्हे बता दूंगी की कहाँ तुम मेरा हाथ थामना. और नंदिनी से कहना , की इस डायन ने कहा है की उसके सब्र का इम्तिहान न ले. बरसो जली हूँ मैं . बहुत सोच कर मैंने तुमसे ये बंधन बाँधा है . ऐसा ना हो की मेरे सीने में जलती आग जमाने को जला दे. नंदिनी से कहना की डायन ने कहा है की मैंने बस प्रेम किया है तुमसे प्रेम किया है कबीर.

मैंने आगे बढ़ कर निशा को अपनी बाँहों में भर लिया और उसके होंठो को अपने होंठो से जोड़ लिया. चूमते हुए मैंने देखा की सियार कुवे की मुंडेर पर बैठे हुए आसमान को देख रहा था .कुछ देर बाद वो मुझसे अलग हुई.

निशा- तूने अभी तक निर्माण शुरू नहीं करवाया , ब्याह के बाद मुझे रखेगा कहाँ पर.



मैं- अंजू के यहाँ आने के बाद मुझे नहीं लगता की ये जगह सुरक्षित होगी.

निशा- तो कहाँ रखेगा मुझे, क्या तेरे घर में नंदिनी में मुझे आने देगी. और मेरी वजह से वहां पर कोई फसाद हो ये मैं चाहती नहीं. बता

निशा की इस बात का कोई जवाब नहीं था मेरे पास.

मैं- ब्याह से पहले मैं कोई सुरक्षित ठिकाना बना लूँगा.

निशा इस से पहले की कुछ और कहती , एक जोरदार चीख ने हमें चौंका दिया. हमारे आस पास कोई और भी था .मेरा शक बिलकुल सही था की कोई निगरानी तो जरुर कर रहा था मेरी. हम दोनों चीख की दिशा में भागे.


 

Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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Thanks for update
पता नही पर क्यों लगा की निशा अभी भी बहुत कुछ कबीर से छुपा गई,

कबीर भी पता नही क्यों उन गुप्त कमरों के बारे में नहीं पूछा, ऐसी कौन सी चीज है जो उसे हर बार रोक देती है सीधे सवाल करने से

अभी तक मुझे लग रहा था की परकाश अंजू का फायदा उठा रहा होगा पर अब लगता है की वास्तविकता इसके उलट भी हो सकती है

अंजू रूढ़ा या उसके परिवार को अपने मां की मौत का दुश्मन मानती है इसकी संभावना तो कम लगती है

अगर अंजू का अभिप्राय गलत है तो अभिमानु को कुछ तो शक होगा ही, भाभी ने भले ही बोला की अंजू सबसे घटिया लड़की थी तो अभिमानु क्यों उसकी इतना चिंता करता है उसे भाई भी बोलती हैं

खैर अभिमानु अंजू के बारे में बहुत कुछ बता सकता है लेकिन अपने कबीर बाबा क्या बोलूं,भोला बोलूं या चूतिया आज की दुनिया में दोनो का एक ही मतलब है

कबीर अभिमानू से कुछ पता करे क्योंकि अभिमानु पूरी कहानी में अगर किसी से सबसे ज्यादा प्रेम करता है तो वो है कबीर और जो आप से अंधा प्रेम करते है उनसे आप कुछ भी करा सकते है

फौजी भाई कहानी की स्पीड सही है इससे ज्यादा fast मत करना, बेकार ही मजा किरकिरा होगा

कभी कभी सोचता हूं इतने सारे राज है सब निपटाते निपटाते कबीर खुद ना निपट जाए

मुझे पहले ही लगा था की कबीर की जासूसी जरूर कोई कर रहा है

खैर चीख से लग रहा की आदमखोर की वापसी हुई है या ये भी हो सकता है सरला या रमा या मंगू में से किसी की इस कहानी से विदाई हो गई
 
Last edited:

brego4

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wow very romantic loving update, nisha is the best adviser to kabir, nisha ke pass bhabhi ke har weapon ka jawab hai nisha ka pass, future mein ye bahut exciting hone wala hai

end mein kya siyar ne kisi ko maar diya may be shikari khud shikar ho gya ?
 
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Studxyz

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वाह भाई फौजी जी आज तो दिल खुश कर दिया निशा का यूँ कहो की सच्चे प्यार का नशा ही ऐसा है की सब को मंधहोश और आनंदमय कर दे | निशा खुद भी शादी के लिए बहुत व्याकुल हो रही है | जब जब निशा की कहानी में एंट्री हुई है अपडेट बहुत ही ज़ोरदार बनता है

निशा-भाभी का पुराना कोई लफड़ा है ज़रूर जो नंदिनी देवी छुपा रही है और भाभी के हर वॉर का भरपूर जवाब निशा के पास मौजूद है

आखिर में किस के गांड से चीख की आवाज़ आयी है शयद जासूस मारा गया
 

Tiger 786

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मैंने उसे देखा बस देखता ही रहा .

“कितना देखोगे कुछ बोलो भी अब ” निशा ने हौले से कहा.

मैं- कुछ नहीं कहना धड़कने खुद ही बात कर लेंगी तेरी धडकनों से.

निशा- ऐसी भी क्या दीवानगी

मैं- मुझ से मत पूछो सरकार की क्या हाल है मेरा . तुम्हारी झुकी निगाहे बता चुकी है तुमको .

निशा- अब उठ भी जाओ थक गयी हूँ मैं तुम्हारा इंतज़ार करते करते की अब उठो अब उठो.

मैं- जगाया क्यों नहीं

निशा- यूँ ही .

मैं- कुवे पर चलते है थोड़ी चाय पियूँगा तो थकान कम होगी.

निशा- इस वक्त वहां

मैं- चल न.

निशा ने अपना हाथ मेरे हाथ में दिया और बोली- चल फिर.

पुरे रस्ते मैंने अपनी नजर बनाये रखी की कोई हमारे पीछे तो नहीं है .

निशा- क्या बात है ये बेचैनी सी किसलिए

मैं- कुवे पर चल कर बताता हूँ

जल्दी ही हम वहां पहुँच गए. मैंने बल्ब जलाया और चाय का सामान निशा के हाथ में दिया .

निशा मुझे देखने लगी.

मैं- चाय बना मेरी जान.

मुस्कुराते हुए उसने चूल्हा जलाया , ठण्ड में थोड़ी तपत मिली तो मैं चूल्हे के पास ही बैठ गया .

मैं- बड़ी प्यारी लग रही है तू

निशा- इन बातो का मुझ पर कोई जोर नहीं चलने वाला.

उसने चूल्हे में फूंक दी. केसरिया आंच के ताप में उसका सिंदूरी चेहरा क्या खूब लग रहा था .

निशा- जंगल में बार बार क्या तलाश रही थी तेरी निगाहे

मैं- इस जंगल में हम अकेले नहीं है जो भटक रहे है .

निशा- जानती हूँ

मैं- मुझे तेरी सुरक्षा की फ़िक्र है , उस खंडहर पर सिर्फ तेरा ही हक़ नहीं है , किसी और की आमद महसूस की है मैने. और मैं बिलकुल नहीं चाहता की मेरा कोई दुश्मन तुझे कुछ नुकसान पहुंचाए .

निशा ने उफनती चाय को हिलाया और बोली- समझती हूँ तेरे मन की पर तू फ़िक्र मत कर उस खंडहर के बारे में किसी को भी नहीं मालूम. इस जंगल में सिर्फ वो ही एक जगह है जो अनोखी है.

मैं- कैसे मानु तेरी बात

निशा- क्योंकि पिछले बहुत सालो में तू एकमात्र था जिसके कदम वहां पर पड़े थे.

निशा की बात ने मुझे हैरत में डाल दिया. निशा का कथन मेरी कविता की सोने वाली धारणा को ध्वस्त कर रही थी .

निशा- तेरी चिंता मैं समझती हूँ . जानती हूँ तेरा मन विचलित है पर मैं कह रही हूँ न खंडहर सुरक्षित है

मैं- इतना यकीं कैसे

निशा- क्योंकि किसी और को अगर भान होता तो तालाब में सोना पड़ा नहीं होता. इन्सान की सबसे बड़ी कमी लालच होती है . किसी भी इन्सान को यदि मालूम होता की वहां पर ऐसा कुछ है तो सोने का लालच उसे तालाब तक खींच लाता.

मैं- पर कुछ लोग अगर जंगल में उसी सोने की तलाश कर रहे हो तो .

निशा- उनका नसीब. मिला हुआ सोना, पड़ा हुआ सोना अपने साथ दुर्भाग्य लाता है .

निशा ने सच कहा था इस बारे में.

मैं- पर लालच कहाँ सोचता है इस बात को

निशा- तो तुझे क्यों फ़िक्र है , जो करेगा सो भरेगा .

मैं- मुझे तेरी फ़िक्र है बस .

निशा ने चाय का कप मुझे दिया और बोली- तेरे मन में और क्या सवाल है

मैं- रुडा की बेटी के पास ऐसा क्या है की वो इतना शाही जीवन जी रही है . रुडा से अलग हुए उसे काफी बरस हो गए है कहाँ से पैसा आ रहा है उसके पास.

निशा- पूछ क्यों नहीं लेते उससे वैसे तुम्हे उसके पैसो में क्यों दिलचश्पी

मैं- अंजू मुझे थोड़े दिन पहले जंगल में मिली थी . पहली मुलाकात में उसने मुझे ये लाकेट दिया और फिर कल रात मैंने उसे प्रकाश के साथ देखा , कल रात ही जब मैं कुवे पर आया तो वो यहाँ मोजूद थी . मेरे कुवे पर उसका क्या प्रयोजन हो सकता था .



निशा- जंगल में होना अलग बात है और कुवे पर होना अलग.

मैं- मैंने भाभी से अंजू के बारे में बात की उन्होंने कहा की अंजू घटिया औरत है . और परकाश के साथ उसका होना पुष्टि भी करता है की वो घटिया है .

निशा- नंदिनी तो रुडा के परिवार की ही है , उसने कहा है तो घटिया होगी अंजू.

मैं- पर सवाल यही है की क्यों भटकती है वो जंगल में

निशा- तुम्हे उसका पीछा करना चाहिए , आज नहीं तो कल वजह मालूम कर ही लोगे.

निशा ने कितनी सरलता से कहा था .

मैं- पर मेरी दुश्मनी है परकाश से , बात बिगड़ेगी.

निशा- कबीर, कभी कभी मैं सोचती हूँ की तुम्हारी ये सरलता ही तुम्हारी शत्रु है. बेह्सक सरल होना अच्छा है पर जीवन में कुछ पल आते है जब हमें कठोर होना पड़ता है . आदत डाल लो , वैसे भी जब नंदिनी को मालूम होगा की तुम मुझे ब्याहने वाले हो तो बवाल करेगी वो.

मैं- बवाल तो हो गया सरकार, मैंने भाभी को बता दिया.

निशा- तुम भी ना

मैं- उसने कहा है की तुमसे कहूँ की जब मैं तुम्हे लेने आऊ तो फाग का दिन हो. रातो की रानी को दिन के उजाले में हाथ थामने को कहना .

निशा ने एक पल चूल्हे में पड़े अंगारों को देखा और बोली- ठीक है कबीर, तुम उसी समय आना मुझे लेने के लिए मैं तैयार मिलूंगी. पर जगह मैं चुनुंगी . हमारी अगली मुलाकात में मैं तुम्हे बता दूंगी की कहाँ तुम मेरा हाथ थामना. और नंदिनी से कहना , की इस डायन ने कहा है की उसके सब्र का इम्तिहान न ले. बरसो जली हूँ मैं . बहुत सोच कर मैंने तुमसे ये बंधन बाँधा है . ऐसा ना हो की मेरे सीने में जलती आग जमाने को जला दे. नंदिनी से कहना की डायन ने कहा है की मैंने बस प्रेम किया है तुमसे प्रेम किया है कबीर.

मैंने आगे बढ़ कर निशा को अपनी बाँहों में भर लिया और उसके होंठो को अपने होंठो से जोड़ लिया. चूमते हुए मैंने देखा की सियार कुवे की मुंडेर पर बैठे हुए आसमान को देख रहा था .कुछ देर बाद वो मुझसे अलग हुई.

निशा- तूने अभी तक निर्माण शुरू नहीं करवाया , ब्याह के बाद मुझे रखेगा कहाँ पर.



मैं- अंजू के यहाँ आने के बाद मुझे नहीं लगता की ये जगह सुरक्षित होगी.

निशा- तो कहाँ रखेगा मुझे, क्या तेरे घर में नंदिनी में मुझे आने देगी. और मेरी वजह से वहां पर कोई फसाद हो ये मैं चाहती नहीं. बता

निशा की इस बात का कोई जवाब नहीं था मेरे पास.

मैं- ब्याह से पहले मैं कोई सुरक्षित ठिकाना बना लूँगा.

निशा इस से पहले की कुछ और कहती , एक जोरदार चीख ने हमें चौंका दिया. हमारे आस पास कोई और भी था .मेरा शक बिलकुल सही था की कोई निगरानी तो जरुर कर रहा था मेरी. हम दोनों चीख की दिशा में भागे.
Lazwaab behtreen update
 

Golu

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मैंने उसे देखा बस देखता ही रहा .

“कितना देखोगे कुछ बोलो भी अब ” निशा ने हौले से कहा.

मैं- कुछ नहीं कहना धड़कने खुद ही बात कर लेंगी तेरी धडकनों से.

निशा- ऐसी भी क्या दीवानगी

मैं- मुझ से मत पूछो सरकार की क्या हाल है मेरा . तुम्हारी झुकी निगाहे बता चुकी है तुमको .

निशा- अब उठ भी जाओ थक गयी हूँ मैं तुम्हारा इंतज़ार करते करते की अब उठो अब उठो.

मैं- जगाया क्यों नहीं

निशा- यूँ ही .

मैं- कुवे पर चलते है थोड़ी चाय पियूँगा तो थकान कम होगी.

निशा- इस वक्त वहां

मैं- चल न.

निशा ने अपना हाथ मेरे हाथ में दिया और बोली- चल फिर.

पुरे रस्ते मैंने अपनी नजर बनाये रखी की कोई हमारे पीछे तो नहीं है .

निशा- क्या बात है ये बेचैनी सी किसलिए

मैं- कुवे पर चल कर बताता हूँ

जल्दी ही हम वहां पहुँच गए. मैंने बल्ब जलाया और चाय का सामान निशा के हाथ में दिया .

निशा मुझे देखने लगी.

मैं- चाय बना मेरी जान.

मुस्कुराते हुए उसने चूल्हा जलाया , ठण्ड में थोड़ी तपत मिली तो मैं चूल्हे के पास ही बैठ गया .

मैं- बड़ी प्यारी लग रही है तू

निशा- इन बातो का मुझ पर कोई जोर नहीं चलने वाला.

उसने चूल्हे में फूंक दी. केसरिया आंच के ताप में उसका सिंदूरी चेहरा क्या खूब लग रहा था .

निशा- जंगल में बार बार क्या तलाश रही थी तेरी निगाहे

मैं- इस जंगल में हम अकेले नहीं है जो भटक रहे है .

निशा- जानती हूँ

मैं- मुझे तेरी सुरक्षा की फ़िक्र है , उस खंडहर पर सिर्फ तेरा ही हक़ नहीं है , किसी और की आमद महसूस की है मैने. और मैं बिलकुल नहीं चाहता की मेरा कोई दुश्मन तुझे कुछ नुकसान पहुंचाए .

निशा ने उफनती चाय को हिलाया और बोली- समझती हूँ तेरे मन की पर तू फ़िक्र मत कर उस खंडहर के बारे में किसी को भी नहीं मालूम. इस जंगल में सिर्फ वो ही एक जगह है जो अनोखी है.

मैं- कैसे मानु तेरी बात

निशा- क्योंकि पिछले बहुत सालो में तू एकमात्र था जिसके कदम वहां पर पड़े थे.

निशा की बात ने मुझे हैरत में डाल दिया. निशा का कथन मेरी कविता की सोने वाली धारणा को ध्वस्त कर रही थी .

निशा- तेरी चिंता मैं समझती हूँ . जानती हूँ तेरा मन विचलित है पर मैं कह रही हूँ न खंडहर सुरक्षित है

मैं- इतना यकीं कैसे

निशा- क्योंकि किसी और को अगर भान होता तो तालाब में सोना पड़ा नहीं होता. इन्सान की सबसे बड़ी कमी लालच होती है . किसी भी इन्सान को यदि मालूम होता की वहां पर ऐसा कुछ है तो सोने का लालच उसे तालाब तक खींच लाता.

मैं- पर कुछ लोग अगर जंगल में उसी सोने की तलाश कर रहे हो तो .

निशा- उनका नसीब. मिला हुआ सोना, पड़ा हुआ सोना अपने साथ दुर्भाग्य लाता है .

निशा ने सच कहा था इस बारे में.

मैं- पर लालच कहाँ सोचता है इस बात को

निशा- तो तुझे क्यों फ़िक्र है , जो करेगा सो भरेगा .

मैं- मुझे तेरी फ़िक्र है बस .

निशा ने चाय का कप मुझे दिया और बोली- तेरे मन में और क्या सवाल है

मैं- रुडा की बेटी के पास ऐसा क्या है की वो इतना शाही जीवन जी रही है . रुडा से अलग हुए उसे काफी बरस हो गए है कहाँ से पैसा आ रहा है उसके पास.

निशा- पूछ क्यों नहीं लेते उससे वैसे तुम्हे उसके पैसो में क्यों दिलचश्पी

मैं- अंजू मुझे थोड़े दिन पहले जंगल में मिली थी . पहली मुलाकात में उसने मुझे ये लाकेट दिया और फिर कल रात मैंने उसे प्रकाश के साथ देखा , कल रात ही जब मैं कुवे पर आया तो वो यहाँ मोजूद थी . मेरे कुवे पर उसका क्या प्रयोजन हो सकता था .



निशा- जंगल में होना अलग बात है और कुवे पर होना अलग.

मैं- मैंने भाभी से अंजू के बारे में बात की उन्होंने कहा की अंजू घटिया औरत है . और परकाश के साथ उसका होना पुष्टि भी करता है की वो घटिया है .

निशा- नंदिनी तो रुडा के परिवार की ही है , उसने कहा है तो घटिया होगी अंजू.

मैं- पर सवाल यही है की क्यों भटकती है वो जंगल में

निशा- तुम्हे उसका पीछा करना चाहिए , आज नहीं तो कल वजह मालूम कर ही लोगे.

निशा ने कितनी सरलता से कहा था .

मैं- पर मेरी दुश्मनी है परकाश से , बात बिगड़ेगी.

निशा- कबीर, कभी कभी मैं सोचती हूँ की तुम्हारी ये सरलता ही तुम्हारी शत्रु है. बेह्सक सरल होना अच्छा है पर जीवन में कुछ पल आते है जब हमें कठोर होना पड़ता है . आदत डाल लो , वैसे भी जब नंदिनी को मालूम होगा की तुम मुझे ब्याहने वाले हो तो बवाल करेगी वो.

मैं- बवाल तो हो गया सरकार, मैंने भाभी को बता दिया.

निशा- तुम भी ना

मैं- उसने कहा है की तुमसे कहूँ की जब मैं तुम्हे लेने आऊ तो फाग का दिन हो. रातो की रानी को दिन के उजाले में हाथ थामने को कहना .

निशा ने एक पल चूल्हे में पड़े अंगारों को देखा और बोली- ठीक है कबीर, तुम उसी समय आना मुझे लेने के लिए मैं तैयार मिलूंगी. पर जगह मैं चुनुंगी . हमारी अगली मुलाकात में मैं तुम्हे बता दूंगी की कहाँ तुम मेरा हाथ थामना. और नंदिनी से कहना , की इस डायन ने कहा है की उसके सब्र का इम्तिहान न ले. बरसो जली हूँ मैं . बहुत सोच कर मैंने तुमसे ये बंधन बाँधा है . ऐसा ना हो की मेरे सीने में जलती आग जमाने को जला दे. नंदिनी से कहना की डायन ने कहा है की मैंने बस प्रेम किया है तुमसे प्रेम किया है कबीर.

मैंने आगे बढ़ कर निशा को अपनी बाँहों में भर लिया और उसके होंठो को अपने होंठो से जोड़ लिया. चूमते हुए मैंने देखा की सियार कुवे की मुंडेर पर बैठे हुए आसमान को देख रहा था .कुछ देर बाद वो मुझसे अलग हुई.

निशा- तूने अभी तक निर्माण शुरू नहीं करवाया , ब्याह के बाद मुझे रखेगा कहाँ पर.



मैं- अंजू के यहाँ आने के बाद मुझे नहीं लगता की ये जगह सुरक्षित होगी.

निशा- तो कहाँ रखेगा मुझे, क्या तेरे घर में नंदिनी में मुझे आने देगी. और मेरी वजह से वहां पर कोई फसाद हो ये मैं चाहती नहीं. बता

निशा की इस बात का कोई जवाब नहीं था मेरे पास.

मैं- ब्याह से पहले मैं कोई सुरक्षित ठिकाना बना लूँगा.

निशा इस से पहले की कुछ और कहती , एक जोरदार चीख ने हमें चौंका दिया. हमारे आस पास कोई और भी था .मेरा शक बिलकुल सही था की कोई निगरानी तो जरुर कर रहा था मेरी. हम दोनों चीख की दिशा में भागे.
Shandar update bhai Nisha se ek aur roachak aur rsprad mulakat apni shadi ki baate kuch idhar ki kuch idhar ka aur shadi ke baad kaha rakhega Kabir ab Nisha ki ye swal
Aur phir in sab baato ke baad achaanak kisiki chikh ho sakti hai
 
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