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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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भाई फोजी जी अगले अपडेट छपने को प्रेस में चला गया क्या ?
कितना तो बोल रहे है सब के भाई अपनी कहानियां प्रेस में छपवा लो, सुनते ही नही
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#81



जंगल का न जाने ये कौन सा कोना था जहाँ पर पिताजी मुझे लेकर आये थे. जंगल के हिस्से को काट कर के बसावट बनाई गयी थी . देखे तो कुछ भी खास नहीं पर समझे तो बहुत ख़ास. एक छप्पर , छोटा सा आंगन और आँगन में तीन पेड़ एक साथ एक जड में जिनके चारो तरफ एक समाधी जैसा चबूतरा बना हुआ था .

पिताजी- ये है वसीयत का वो चौथा हिस्सा जिसने हमने अपने लिए रखा है , ताकि हम जब ये दुनिया छोड़ कर जाये तो सकून से जाए. हमारी बस यही इच्छा है की जब हम मरे तो हमारी राख को इसी चबूतरे में दफना दिया जाये.

कुछ देर तो मैं समझ ही नही पाया की बाप कह क्या रहा है .

पिताजी- परकाश सही कहता था उसे इस टुकड़े में बारे में कुछ नहीं मालूम ,

मैं- फर्क नहीं पड़ता , मैं जानना चाहता हूँ इस जगह को

पिताजी-ये पेड़ देख रहे हो , इनमे से एक मैं हूँ, एक रुडा है और एक है सुनैना . ये तीन पेड़ हमने अपने बचपन में लगाये थे . कहने को तो ये जगह कुछ भी नहीं है और हम कहे तो सब कुछ है . हमने अपना बचपन , जवानी यही पर जिया . तीन दोस्तों की कहानी , ये तीन पेड़ किसी ज़माने के त्रिदेव कहलाते थे. मैं रुडा और सुनैना , ऐसा कोई दिन नहीं होता जब हम यहाँ नहीं मिलते थे . पर सुख के दिन कभी नहीं रहते बेटे, एक दिन सुनैना चली गयी . रुडा छोड़ गया रह गए हम सिर्फ हम.

मैंने अपना माथा पीट लिया और चबूतरे के पास बैठ गया. त्रिदेव को मैं भैया की तस्वीर में ढूंढ रहा था जबकि त्रिदेव की कहानी मेरे बाप से जुडी थी.

मैं- सुनैना कौन थी .

पिताजी- रुडा की बेटी की माँ

मैं- मतलब रुडा की पत्नी .

पिताजी - हमने ऐसा तो नहीं कहा

मैं- मतलब तो ये ही हुआ न

पिताजी- रिश्तो की डोर बड़ी नाजुक होती है कबीर पर उसकी मजबूती बहुत होती है . मेरा रुडा और सुनैना का रिश्ता भी कुछ ऐसा ही था , हमारी दोस्ती जिन्दगी से कम नहीं थी . अब जब जिक्र हुआ है तो हमें कोई गिला नहीं तुम्हे बताने में. सुनैना बंजारों की बेटी थी . मैं और रुडा बचपन के साथी थे, न जाने कब वो हमारा तीसरा हिस्सा बन गयी. बंजारों की बेटी में कुछ गुण बड़े दुर्लभ थे. उम्र के एक पड़ाव पर रुडा और सुनैना एक दुसरे से इश्क कर बैठे. जाहिर है ये ऐसा मर्ज है जो छिपाए नहीं छिपता . रुडा के पिता को जब मालूम हुआ की बात इतना आगे बढ़ गयी है तो उन्होंने रुडा को किसी काम से बाहर भेज दिया और सुनैना को मरवा दिया. सुनैना उस समय प्रसव के दिनों में थी , मरते मरते उसने एक बेटी को जन्म दिया .

मैं- समझता हूँ पर रुडा और आपके बीच दुश्मनी क्यों हुई.

पिताजी- हमारी कमी के कारन, हम सुनैना को बचा नहीं पाए. जब तक हम पहुंचे सुनैना अपनी अंतिम सांसे गिर रही थी . चूँकि उसी समय प्रसव हो रहा था बड़ी मुश्किल घडी थी वो . हमारी दोस्त मर रही थी पर उसकी कोख से जीवन जन्म ले रहा था . बच्ची को हमारे हाथो में देकर वो रुखसत हो गयी . तभी रुडा आ पहुंचा स्तिथि ऐसी थी की उसने हमें ही कातिल समझ लिया और हमचाह कर भी उसे समझा नही पाए. बच्ची को हमसे छीन कर वो चला गया . ऐसी लकीर खिंची फिर की त्रिदेव बस नाम रह गया.

एक गहरी ख़ामोशी के बीच मैं अपने बाप को समझने की कोशिश कर रहा था .

मैं- तो ये थी आपके और रुडा के बीच दुश्मनी की वजह

पिताजी- दुश्मनी नहीं ग़लतफ़हमी जो कभी दूर नहीं हो सकी

मैं- सब बाते ठीक है पर फिर वो ही लड़की रुडा से नफरत क्यों करती है .

पिताजी- ये सच बड़ा विचित्र होता है , अंजू समझती है की उसके पिता की वजह से उसकी माँ जिन्दा नहीं है , वो रुडा को ऐसे आदमी समझती है जो उसकी माँ का हाथ थामा तो सही पर निभा न सका.

मुझे क मिनट भी नहीं लगा अब समझने में की इस समाधी में कही सुनैना के अवशेष है .

“यही वो जगह थी जिसे हम अपने लिए रखना चाहते थे , यही वो जगह थी जिसे हम छुपाना चाहते थे . यही है वसीयत का वो चौथा टुकड़ा जिसके बारे में बस हम जानते थे और अब तुम जानते हो ” पिताजी ने कहा.

मैं- मैं आपसे सिर्फ दो सवाल और पूछना चाहता हूँ मुझे विश्वास है की पूरी ईमानदारी से जवाब देंगे आप . पहला सवाल आपके कमरे में चूडियो के टुकड़े किसके थे.

पिताजी- तुम्हारी माँ के. तुम्हारी माँ का पुराना सामान आज भी सहेजा हुआ है हमने. कुछ कमजोर लम्हों में हम देख लेते है उनको जो टुकड़े तुमने चुराए वो वही थे .

मैं- जिस घर की बहु सोने की चूड़ी पहनती है उस घर की मालकिन कांच की चुडिया पहनती थी बात हलकी नहीं है पिताजी

पिताजी- तुमने जाना ही कितना था तुम्हारी माँ को. दूसरा सवाल क्या है तुम्हारा .

मैं- चाचा के साथ आपका झगडा क्यों हुआ था .

पिताजी- अगर तुम्हे यहाँ तक की जानकारी है तो चाचा के बारे में काफी कुछ जान गए होंगे. उसकी हरकते परिवार का नाम ख़राब कर रही थी . छोटे भाई की अय्याशियों को हम हमेशा नजरंदाज करते थे. पर पानी सर से ऊपर उठने लगा था. हमारे लाख मना करने के बाद भी उसकी हरकते शर्मिंदा कर रही थी एक दिन गुस्से में हमारे मुह से निकल गया की हमें कभी शक्ल न दिखाना और आज तक हम उस बात के लिए पछताते है . वो ऐसा गया की आज तक नहीं लौटा.

पिताजी को इतना भावुक मैंने कभी नहीं देखा था . कुछ देर वो अकेले खड़े अँधेरे में घूरते रहे और फिर बोले- चलते है वापिस.

दूर कहीं, धुंध ने जंगल को अपने आगोश में कस लिए था . अँधेरे में लहराते हुए सबसे बेखबर डाकन चले जा रही थी उस पगडण्डी पर . कदम जानते थे की मंजिल कहा है उसने कुवे पर बने कमरे के दरवाजे को धकेला और अन्दर देखते ही उसके माथे पर बल पड़ गए.

“हैरान क्यों हो, मुझे तो आना ही था न ” अन्दर बैठे सख्स ने डाकन से कहा.......












 

Studxyz

Well-Known Member
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अपडेट का अंत तो बहुत खतरनाक सा निकला निशा डायन जी को अभिमानु मिला या राय साहब ?

त्रिमूर्ति का निष्कर्ष तो अभिमानु का था ही नही तो फिर उसके कमरे में वो तस्वीर कैसे ?
 
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बहुत बढ़िया ब्रो, तो ये थी त्रिदेव की कहानी, और अब डाकन को कौन मिल गया, कहीं भाभी या फिर अभिमानु तो नहीं... अभिमानु डाकन को पहचानता है क्या..???
 

Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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शायद इसी लिए अभिमानु हर बार सूरजभान को बचा लेता है क्योंकि वह नही चाहता की उसके पिता और रूढ़ा की दुश्मनी बढ़े

अभिमानु अभी तक इस कहानी का सबसे महत्वपूर्ण किरदार बन कर उभरा है,
भले ही इस कहानी का हीरो कबीर हो लेकिन हीरो वाले सारे काम अभिमानु ने किए है, चाहे गांव वालो की मदद करना हो, अपने परिवार की सम्हालना हो या कबीर को गलत करने से रोकना हो अभिमानु हर जगह है

हो ना हो अभिमानु को अच्छे से मालूम होगा की उसका चाचा कहा है और ये भी को आदमखोर कौन है,


निशा उसी बंजारन की टोली से या सुनैना से जरूर संबंध होगा, इस जंगल में रहने का प्रयोजन सिर्फ डाकन होने से कही ज्यादा है।
डाकन तो कही भी रह सकती है


खैर कबीर ने जब इतना कुछ पूछा ही था तो ये भी जरूर पूछ लेना था की जरनैल सिंह और रूढ़ा में क्यों दुश्मनी थी, वो क्यों नही चाहता था की रूढ़ा की भांजी उनकी बहू बने

और ये भी को क्या उनका और चंपा का संबंध है,
अगर नहीं है तो फिर भाभी झूठ क्यों बोली, खुद के पिता के विरुद्ध भड़काने का मकसद क्या है?

और अगर है तो ऐसी कौन सी मजबूरी थी की जिस लड़की को बेटी जैसे माना उसी से संबंध बनाना पड़ा
(हालांकि जिस हिसाब से इज्जत के लिए जरनैल सिंह को निकाला उस से लग तो नही रहा की राय साहब के संबंध है, अगर होगा तो राय साहब बहुत दोगला आदमी होगा)


कुएं पर जरूर उसे चाची/अभिमानु/भाभी में से कोई एक मिला होगा

1.चाची अभी तक इस कहानी में underdog है।
2.अभिमानु तो फिर अभिमानु है वो क्यों नही हो सकता जहां उसके भाई की बात आयेगी

3.हो सकता है भाभीं एक बार फिर निशा से बात करना चाहती हों, इस बार शादी के लिए मान जाए(अभी तक एक भी कारण नही दिखता की भाभी कबीर का बुरा चाहती है)

चाचा शायद ना हो क्योंकि वो बहुत धांसू entry deserve करता है, वो अगर entry लेगा भी तो ऐसे समय में जब बहुत ज्यादा रायता फैल जाएगा
 
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vickyrock

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जंगल का न जाने ये कौन सा कोना था जहाँ पर पिताजी मुझे लेकर आये थे. जंगल के हिस्से को काट कर के बसावट बनाई गयी थी . देखे तो कुछ भी खास नहीं पर समझे तो बहुत ख़ास. एक छप्पर , छोटा सा आंगन और आँगन में तीन पेड़ एक साथ एक जड में जिनके चारो तरफ एक समाधी जैसा चबूतरा बना हुआ था .

पिताजी- ये है वसीयत का वो चौथा हिस्सा जिसने हमने अपने लिए रखा है , ताकि हम जब ये दुनिया छोड़ कर जाये तो सकून से जाए. हमारी बस यही इच्छा है की जब हम मरे तो हमारी राख को इसी चबूतरे में दफना दिया जाये.

कुछ देर तो मैं समझ ही नही पाया की बाप कह क्या रहा है .

पिताजी- परकाश सही कहता था उसे इस टुकड़े में बारे में कुछ नहीं मालूम ,

मैं- फर्क नहीं पड़ता , मैं जानना चाहता हूँ इस जगह को

पिताजी-ये पेड़ देख रहे हो , इनमे से एक मैं हूँ, एक रुडा है और एक है सुनैना . ये तीन पेड़ हमने अपने बचपन में लगाये थे . कहने को तो ये जगह कुछ भी नहीं है और हम कहे तो सब कुछ है . हमने अपना बचपन , जवानी यही पर जिया . तीन दोस्तों की कहानी , ये तीन पेड़ किसी ज़माने के त्रिदेव कहलाते थे. मैं रुडा और सुनैना , ऐसा कोई दिन नहीं होता जब हम यहाँ नहीं मिलते थे . पर सुख के दिन कभी नहीं रहते बेटे, एक दिन सुनैना चली गयी . रुडा छोड़ गया रह गए हम सिर्फ हम.

मैंने अपना माथा पीट लिया और चबूतरे के पास बैठ गया. त्रिदेव को मैं भैया की तस्वीर में ढूंढ रहा था जबकि त्रिदेव की कहानी मेरे बाप से जुडी थी.

मैं- सुनैना कौन थी .

पिताजी- रुडा की बेटी की माँ

मैं- मतलब रुडा की पत्नी .

पिताजी - हमने ऐसा तो नहीं कहा

मैं- मतलब तो ये ही हुआ न

पिताजी- रिश्तो की डोर बड़ी नाजुक होती है कबीर पर उसकी मजबूती बहुत होती है . मेरा रुडा और सुनैना का रिश्ता भी कुछ ऐसा ही था , हमारी दोस्ती जिन्दगी से कम नहीं थी . अब जब जिक्र हुआ है तो हमें कोई गिला नहीं तुम्हे बताने में. सुनैना बंजारों की बेटी थी . मैं और रुडा बचपन के साथी थे, न जाने कब वो हमारा तीसरा हिस्सा बन गयी. बंजारों की बेटी में कुछ गुण बड़े दुर्लभ थे. उम्र के एक पड़ाव पर रुडा और सुनैना एक दुसरे से इश्क कर बैठे. जाहिर है ये ऐसा मर्ज है जो छिपाए नहीं छिपता . रुडा के पिता को जब मालूम हुआ की बात इतना आगे बढ़ गयी है तो उन्होंने रुडा को किसी काम से बाहर भेज दिया और सुनैना को मरवा दिया. सुनैना उस समय प्रसव के दिनों में थी , मरते मरते उसने एक बेटी को जन्म दिया .

मैं- समझता हूँ पर रुडा और आपके बीच दुश्मनी क्यों हुई.

पिताजी- हमारी कमी के कारन, हम सुनैना को बचा नहीं पाए. जब तक हम पहुंचे सुनैना अपनी अंतिम सांसे गिर रही थी . चूँकि उसी समय प्रसव हो रहा था बड़ी मुश्किल घडी थी वो . हमारी दोस्त मर रही थी पर उसकी कोख से जीवन जन्म ले रहा था . बच्ची को हमारे हाथो में देकर वो रुखसत हो गयी . तभी रुडा आ पहुंचा स्तिथि ऐसी थी की उसने हमें ही कातिल समझ लिया और हमचाह कर भी उसे समझा नही पाए. बच्ची को हमसे छीन कर वो चला गया . ऐसी लकीर खिंची फिर की त्रिदेव बस नाम रह गया.

एक गहरी ख़ामोशी के बीच मैं अपने बाप को समझने की कोशिश कर रहा था .

मैं- तो ये थी आपके और रुडा के बीच दुश्मनी की वजह

पिताजी- दुश्मनी नहीं ग़लतफ़हमी जो कभी दूर नहीं हो सकी

मैं- सब बाते ठीक है पर फिर वो ही लड़की रुडा से नफरत क्यों करती है .

पिताजी- ये सच बड़ा विचित्र होता है , अंजू समझती है की उसके पिता की वजह से उसकी माँ जिन्दा नहीं है , वो रुडा को ऐसे आदमी समझती है जो उसकी माँ का हाथ थामा तो सही पर निभा न सका.

मुझे क मिनट भी नहीं लगा अब समझने में की इस समाधी में कही सुनैना के अवशेष है .

“यही वो जगह थी जिसे हम अपने लिए रखना चाहते थे , यही वो जगह थी जिसे हम छुपाना चाहते थे . यही है वसीयत का वो चौथा टुकड़ा जिसके बारे में बस हम जानते थे और अब तुम जानते हो ” पिताजी ने कहा.

मैं- मैं आपसे सिर्फ दो सवाल और पूछना चाहता हूँ मुझे विश्वास है की पूरी ईमानदारी से जवाब देंगे आप . पहला सवाल आपके कमरे में चूडियो के टुकड़े किसके थे.

पिताजी- तुम्हारी माँ के. तुम्हारी माँ का पुराना सामान आज भी सहेजा हुआ है हमने. कुछ कमजोर लम्हों में हम देख लेते है उनको जो टुकड़े तुमने चुराए वो वही थे .

मैं- जिस घर की बहु सोने की चूड़ी पहनती है उस घर की मालकिन कांच की चुडिया पहनती थी बात हलकी नहीं है पिताजी

पिताजी- तुमने जाना ही कितना था तुम्हारी माँ को. दूसरा सवाल क्या है तुम्हारा .

मैं- चाचा के साथ आपका झगडा क्यों हुआ था .

पिताजी- अगर तुम्हे यहाँ तक की जानकारी है तो चाचा के बारे में काफी कुछ जान गए होंगे. उसकी हरकते परिवार का नाम ख़राब कर रही थी . छोटे भाई की अय्याशियों को हम हमेशा नजरंदाज करते थे. पर पानी सर से ऊपर उठने लगा था. हमारे लाख मना करने के बाद भी उसकी हरकते शर्मिंदा कर रही थी एक दिन गुस्से में हमारे मुह से निकल गया की हमें कभी शक्ल न दिखाना और आज तक हम उस बात के लिए पछताते है . वो ऐसा गया की आज तक नहीं लौटा.

पिताजी को इतना भावुक मैंने कभी नहीं देखा था . कुछ देर वो अकेले खड़े अँधेरे में घूरते रहे और फिर बोले- चलते है वापिस.

दूर कहीं, धुंध ने जंगल को अपने आगोश में कस लिए था . अँधेरे में लहराते हुए सबसे बेखबर डाकन चले जा रही थी उस पगडण्डी पर . कदम जानते थे की मंजिल कहा है उसने कुवे पर बने कमरे के दरवाजे को धकेला और अन्दर देखते ही उसके माथे पर बल पड़ गए.

“हैरान क्यों हो, मुझे तो आना ही था न ” अन्दर बैठे सख्स ने डाकन से कहा.......
रुड़ा की बेटी रुड़ा की नहीं जरूर राय साहब की बेटी है
 
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