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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#78



पसीने से लथपथ मैं बस दौड़े जा रहा था . सांस ऐसी चढ़ी थी की कलेजा फटा ही फटा. एक जूनून सा चढ़ रहा था बेखुदी में मैंने अपना बदन नोचना शुरू किया. चाँद कुछ देर के लिए बादलो में छिपा और मैं हाँफते हुए खेतो की गीली जमीन पर पसर गया. सीने पर हाथ रखे लम्बी सांसे लेते हुए मैं इस दर्द से राहत पाने की कोशिश कर रहा था . जब दर्द पर काबू नहीं रहा तो मैं चीखने लगा. मेरी चीख सुनसान अंधेरो में गूंजने लगी.

“kabiiiiirrrrrrrrrrr ” मैंने दूर से उस आवाज को सुना .

“निशा ............ ” मैं कराहते हुए बोला

निशा- कबीर आ गयी हूँ मैं.

अधखुली आँखों से मैंने एक साए को पास आकर मुझ पर झुकते हुए देखा.

निशा- आँखे खोल कबीर , मैं आ गयी हूँ आँखे खोल

मैं उसकी आवाज सुन तो पा रहा था पर मेरी हिम्मत टूट गयी थी बदन की जलन हावी हो रही थी मुझ पर.

“निशा , निशा ” मैं बोल नहीं पा रहा था .

निशा- ठीक हो जायेगा बस अभी .

निशा ने मुझे उठाया और अपने साथ कुवे पर बने कमरे में ले आई. मुझे घास पर पटका और देखने लगी . कभी मेरे माथे को सहलाती कभी मेरे सीने को .

“चाँद रात का असर है झेल लेगा तू ” उसने कमजोर लहजे में कहा. मैंने आँख मूँद ली और सब कुछ छोड़ दिया.

“कबीर बोलता क्यों नहीं ” उसने मुझे हिलाते हुए कहा .

मैंने कोई हरकत नहीं की .

उसने फिर से झिंझोड़ा मुझे

निशा- कबीर कुछ तो बोल . देख तू नहीं बोलेगा तो नाराज हो जाउंगी मैं . मेरी खातिर कुछ तो बोल .

मैं बस पड़ा रहा

निशा- तुझे मेरी कसम कुछ तो बोल आँखे खोल अपनी

इस बार रो पड़ी वो . बिना आँखे खोले मैंने उसका हाथ थाम लिया .

“जा रहा हु तुझे छोड़ के ” मैंने मरी सी आवाज में कहा

निशा- ख़बरदार, जो ये बात कही . कहीं नहीं जायेगा तू मुझे छोड़ के. जाने नहीं दूंगी तुझे

मैं- प्यार जो नहीं करती तू मुझे. तेरे बिना क्या जीना मेरा

निशा- तुझसे ही तो प्यार करती हूँ . तुझसे ही तो प्यार किया है

मैंने उसका हाथ छोड़ दिया. बेहोशी मुझ पर चढ़ने लगी. होश आया तो देखा की निशा कुछ पिला रही थी मुझे. कुछ गर्म सा जो गले से निचे जाते ही चेतना लौटने लगी. पैरो के अंगूठो पर उसने कुछ बांधा हुआ था . उसके गालो पर आंसुओ की लकीरे देख कर रहा नहीं गया मुझसे. मैंने बाहे फैला कर उसे अपने पास बुलाया और सीने से लगा लिया.



“मैं तो घबरा ही गयी थी ” उसने हौले से कहा

मैं- मैं भी .

निशा- अब कैसा लग रहा है

मैं- बेहतर

निशा- रात का तीसरा पहर चल रहा है अब आराम रहेगा.

मैं- पर ये कब तक चलेगा

निशा- नहीं जानती पर खत्म हो जायेगा.

मैं- निशा , इस रात मैंने कुछ सोचा है

निशा- क्या

मैं- तुझे कुछ बताना है कुछ कहना है तुझसे

निशा- सुन रही हूँ

मैं- समझ भी मेरी सरकार. मैं बहुत अकेला हूँ टूट कर बिखर रहा हूँ इस से पहले की कुछ न बचे थाम ले मुझे अपनी बाँहों में और मुझे जीने का अहसास दे. अपने आगोश में भर ले . पनाह दे मेरी रूह को निशा मैं तुझे अपनी पत्नी बनाना चाहता हूँ , ब्याह करना चाहता हूँ तुझसे

मेरी बात सुन कर निशा दिवार का सहारा लेकर बैठ गयी . पर वो कुछ नहीं बोली . मैंने इन्तजार किया पर वो खामोश रही .

मैं- जानता हूँ तेरा मेरा मेल नहीं . पर तू भी जानती है. इतना हक़ दे मुझे निशा. तू लाख इंकार कर . पर तेरा दिल चीख कर कहता है तुझसे की आगे बढ़ और थाम ले मेरा हाथ.

निशा- नहीं थाम सकती कबीर, नहीं थाम सकती

मैं- तो फिर ठीक है छोड़ दे मुझे मेरे हाल पर आगे कभी ऐसी रात आई तो तुझे कसम है मत आना . और मैं मर गया तो रोने जरुर आना . कम से कम मरने के बाद ही मुझ पर तेरा हक़ होगा.

निशा- मरने की बात मत कर

मैं- तू साथ जीना भी तो नहीं चाहती

निशा- मर तो बहुत पहले गयी थी जीना तूने ही सिखाया

मैं- तो फिर जीती क्यों नहीं मेरे साथ क्या रोक रहा है तुझे मेरी होने से

निशा- नसीब .मेरा भाग्य रोक रहा है कबीर.

मैं- तेरा भाग मैं हूँ तू एक बार कह तो सही की तू तैयार है ज़माने को तेरे कदमो में झुका दूंगा मैं मेरी जान .

निशा- तू समझता क्यों नहीं

मैं- मेरी पत्नी बन सारी जिन्दगी मुझे समझाती रहना .

निशा- डाकन का हाथ थाम कर जीवन के सफर पर चलना सजा होगा तेरे लिए

मैं- ये सजा भी मंजूर सरकार मुझे .

निशा ने एक बार आसमान में देखा और फिर उठ कर अपने होंठ मेरे होंठो से जोड़ दिए. दिल को ऐसा करार आया की रात की तमाम तकलीफे फिर याद नहीं रही .तभी निशा की नजर मेरे सीने में लटकी चेन पर पड़ी.

निशा- ये क्या है

मैं- रुडा की बेटी ने दी मुझे

निशा ने उसे हलके से छुआ और बोली- कुंवर साहब , हम अपना आशियाना इसी जगह बनायेंगे

मैं- क्या कहा जरा फिर से कहना

निशा- डाकन ने तुम्हारी होना चुन लिया है

सच बताऊ मेरी आँखों में कितनी ख़ुशी थी . मैंने उसे एक बार फिर से बाँहों में भर लिया और चूम लिया.

मैं- जल्दी से जल्दी तुझे अपनी बनाना चाहता हूँ कल से ही यहाँ घर बनाना शुरू होगा. सपनो का घर तेरा मेरा घर .

निशा- ये पथ परीक्षा लेगा कबीर

मैं- तू मेरा हाथ थामे रखना

निशा- मेरी दो बाते है .

मैं- तू चार बता सरकार

निशा- तेरे मेरे ब्याह में कोई रस्मे नहीं होंगी

मैं- मंजूर

निशा- दूसरी बात तू लेने आएगा मुझे . मैं तब थामुंगी तेरा हाथ और एक बार जो मैंने तेरा हाथ थामा फिर छोड़ नहीं पाउंगी .

मैं- तू जब बुलाएगी मैं दौड़ा आऊंगा.

निशा- कर ले तयारी फिर.................

डाकन ने हाँ कर दी थी . सुबह निशा को छोड़ने के बाद मैं सीधा घर गया . घर वाले बस जागे ही थी की मैंने उनकी नींद उड़ा दी.

मैं- भाभी,मैंने कहा था न की उसके हाँ कहते ही ब्याह कर लूँगा . वो दिन आ गया है.

भाभी के हाथ में पानी का जग था जो छूट का फर्श पर गिर गया जोर की आवाज पुरे घर में गूंजने लगी.






 

Rishisudhakar

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कहानी और कबीर दोनों ही हर ओर से उलझे प्रतीत हो रहे हैं। कबीर के जीवन की सबसे विचित्र हकीकत ये है की वो अपने करीबियों में से एक की भी हकीकत नहीं जानता। क्या अभिमानु, क्या भाभी, क्या चम्पा, क्या मंगू, चाचा – चाची हों या फिर सबसे बड़े कारीगर – विशम्बर दयाल साहब! परंतु, जिस बात ने सबसे ज़्यादा आहत किया वो है निशा... निशा ने कबीर से क्या छुपाया और क्या नहीं, ये मायने नहीं रखता, क्योंकि कबीर खुद ही कुछ भी जानने की इच्छा रखता ही नहीं। परंतु, निशा ने आदमखोर को लेकर जो असत्य कबीर से कहा, वो शोचनीय है। खंडहर के तहखाने की दीवारों पर मौजूद वो खरोंचे, केवल एक ही तरफ इशारा कर रहीं हैं, की यदि कबीर ने अपने अलावा किसी भी व्यक्ति – जीवित या मृत पर भरोसा किया, तो वो केवल मृत्यु के ही योग्य है...

फौजी भाई की कहानियों का सार केवल यही है की जब तक लेखक महोदय खुद ना चाहें पाठक, सही अंदाज़ा लगा ही नहीं सकते। विश्वास है की लेखक महोदय कहानी के साथ न्याय अवश्य करेंगे, परंतु कहीं न कहीं कबीर का किरदार उभरकर आने में असमर्थ रहा है भाई। इस कहानी का नायक शुरुआत से ही आपकी बाकी कहानियों के नायकों से भिन्न लगा, तात्पर्य ये है की कबीर को शुरुआत में देखकर लगा था की ये शख्स सही मायने में कहानी का नायक सिद्ध होगा, परंतु उसके विचारों और चुनावों ने उसके किरदार को कहीं न कहीं भटका सा दिया है, शायद ये आपने जानते – बूझते किया हो, आगे की कहानी को नजर में रखकर, परंतु अभी के लिए, कबीर का व्यवहार कहीं से भी समझदारों जैसा नहीं लग रहा है।

अभिमानु का अतीत कई राज़ खोलने की ताकत रखता है। त्रिदेव – केवल यही रहस्य काबिल है कबीर की खोज को एक नया आयाम देने के लिए। क्या वो दोनों शख्स जिनकी तस्वीर थी अभिमानु के साथ, वो जीवित हैं? या मर चुके हैं? अभिमानु ने वो तस्वीर सहेज कर रखी थी और अब कबीर को मालूम चलने पर वो तस्वीर गायब भी कर दी। सर्वप्रथम, अभिमानु, जो कबीर से अताह प्रेम का दावा ठोकता है, ये देखते हुए भी की कबीर कितना परेशान और हैरान है, सब सच क्यों नहीं बता देता उसे? क्या ये बहाना की वो कबीर को इसमें नहीं घसीटना चाहता था, बहुत पुराना नहीं हो गया है? बेशक, अभिमानु जिसे सभी और से एक साधु पुरुष समान ही सम्मान दिया जा रहा है, परदे के पीछे उसके भी कुछ तथ्य और सत्य छुपे हुए हैं।

रूड़ा की लड़की के खुलासे ने बेशक हैरान कर दिया। वो अभिमानु को अपना भाई मानती थी, रूड़ा की भतीजी ने अभिमानु से शादी की, छोटे ठाकुर की रूड़ा से कट्टर दुश्मनी थी, परंतु फिर भी विशम्बर दयाल ने अभिमानु की शादी करवाई रूड़ा की भतीजी से। बेशक यहां भी किसी न किसी चीज़ पर पर्दा डाल गया था कबीर का बाप, जैसा की वो हर मामले में करता ही आया है। सरला ने जो बताया, चाची ने को कुछ कहा और जो कुछ अभी तक सामने आया है, उससे साफ है की कहानी का सबसे बड़ा राज़ बेशक कबीर के बाप से ही जुड़ा होगा।

सूरजभान भी आदमखोर की तलाश में है, संभावना क्यों ऐसी दिख रही है की आगे सूरजभान का किरदार भी अच्छाई को राह पर चलता हुआ दिखने लगे? खैर, अब कहानी का रुख, उस त्रिदेव की ही तरफ होना चाहिए,शायद कहानी का कायापलट ही हो जाएगा वो रहस्य खुलने से। इसके पश्चात चम्पा का मामला अब कबीर को सुलझा ही लेना चाहिए, व्यर्थ में बहुत समय से घसीट रहा है कबीर इस मसले को। आखिर पता तो चले को चम्पा के संबंध कबीर के बाप से हैं भी या किसी और का ही प्रसाद लेकर घूम रही थी वो। रमा, सरला और कविता... इन तीनों के पति ही कहानी से गायब हैं, बिलकुल संभव है की रोहतास भी टपक चुका हो, ये कोई संयोग नहीं हो सकता।

अतीत की कालिख में सिमटी है ये कहानी। वो कालिख जिससे शायद हरिया के हाथ रंगे थे, जिसे उसे अपने रक्त से मिटाना पड़ा। वो कालिख जिसकी चादर ये पूरा गांव अपने ऊपर ओढ़े हुए है, जाने किस मासूम की बद्दुआ रही होगी की आदमखोर का आतंक मच गया। लाली का श्राप अब सच हो रहा है और शायद वो समय भी करीब है जब गांव का मसीहा, आदर्श व्यक्ति – विशम्बर दयाल भी खड़ा होगा उसी स्थान पर जहां उसने दो प्रेमियों की बलि दी थी।

सभी भाग बहुत ही खूबसूरत थे भाई। झलकती है आपकी कहानी में, वो गांव की मिठास जिसे कलम से उकेरना आसान नहीं। सब कड़ियां अब धीरे – धीरे जुड़ने लगी हैं, कुछ किरदार नए आए हैं, को कहानी की दिशा और दशा को पलट रहे हैं, परंतु आशा रहेगी की अंत में कहानी के हर पन्ने पर केवल एक खूबसूरत प्रेम कहानी लिखी हो, निशा और कबीर की...

प्रतीक्षा अगले भाग की...
ऐसे ऐसे कॉमेंट पढ़कर तो मैं आश्चर्य चकित हो जाता हु की आपलोगो का ज्ञान कितना गुढ़ है
 

Studxyz

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आखिरकार वो घड़ी आ ही गई जिस का कबीर को बेसब्री से इंतज़ार था लेकिन ये चांदनी रात वाला दौरा कुछ समझ नहीं आया और कबीर ने बिना निशा का पिछला सच जाने ही ब्याह तक बात पक्की कर दी और अब घर में मचेगा बवाल क्या पता जो कड़ियाँ कबीर तलाश रहा है वो इस ब्याह के बाद ही जोड़ सके
 
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Aakash.

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Aisa lagta hai jaise wah tin log bahot hi jigri yaar the ek to bhaiya hi hai unme lekin baaki ke do yaar kon ho sakte hai, hum andaza bhi nahi laga sakte hai kyuki abhi tak humne bhaiya ka koi dost nahi dekha hai sirf wah waid ke saath jaate rahte hai kahi.

Kabir khajane ke mol ki baat karta hai yaha to insaan ka mol nahi hai sab mithi hai or jo kuch abhi dikh raha hai usko bhi aage chalkar mitti Me hi milna hai. Ruda ki beti bhi kuch chupa rahi hai.

Us jagah par shankar bhagwaan ka mandir tha na fir kabir ko aisa kyu laga ki wah wishraam ki jagah Hai. Khair wah khufiya jagah waha kon rahta tha ya rahta hai ye jaane Layak hai.

Nisha ke baare me hum jaada nahi jaante hai lekin use sab pata hai aisa humara dil kahta hai or jab wah kabir ke saath hongi to to bheshaq log khilaf honge lekin tik koi nahi paayega. Kabir shak kyu kar raha hai nisha par ya khud par bharosa nahi raha ab.
 

Rishisudhakar

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तुम कहते हो प्यार की कमी है. गलियों चौबारे मे हमने प्यार किया पेड़ों की छांव मे खेतों की धूप मे हमने प्यार किया. बारिशों मे इंतजार किया सर्दी की रातों मे कांपते हुए प्यार किया. लहराती रहो मे, महकती फ़िज़ाओं मे हमने प्यार किया. पहाड़ों मे उसे याद किया, लहरों मे उसे देखा

तुम कहते हो प्यार की कमी है. सात साल पहले आज के ही दिन मैंने निशा को खोया था आज के ही दिन मैं निशा को लिख रहा हूँ. ये प्यार नहीं तो और क्या है.
मैं भी मानता हु जिसमे जुदाई हो दर्द आंसू अकेलापन मजबूरी मार कुटाई हो ऐसी प्रेम कहानी ही इतिहास लिखती है मुझे अफसोस है निशा जी आपको नही मिल पाई लेकिन मैं दावे के साथ कह सकता हु उनके साथ जो पल आपने जिया है उन लम्हों को पूरी जिंदगी देकर भी नही खरीदा जा सकता है
 

Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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ये कहानी लंबे समय तक याद रहेगी

एक कहानी जिसमें हीरो की सब G@and मार रहे थे, सब उसको चूतिया बना रहे थे,
लेकिन तब हीरो बिना किसी के मदद के अपने दम पर सारे सवाल का जवाब ढूंढ कर बाकी सब की लंका लगा दिया


बस उम्मीद करता हूं जब कबीर राज सुलझा ले या किसी की गलती साबित कर देगा तो feel आये की कबीर ने सामने वाले की G@@nd मार ली हैं, सजा भी दे गलती के according,
ये नहीं की बड़ा भाई हैं या पिता है या चाचा है तो गलती करने पर छोड़ दे या ignore कर दे


बाकी सब को गुस्सा आता होगा ना की कबीर कैसे bakchod लड़का है की हर कोई चूतिया बना कर चला जाता है
लेकिन दोस्त ये गुस्सा तुमको तभी तक आएगा जब तक तुम अपने दिमाग से हीरो मतलब वो ironman, batman वाली छवि को निकाल नहीं दोगे
जो 50 लोगो को अकेले मार देता है या sharlock Holmes से ज्यादा intelligent हो

शुरू में तो बहुत गुस्सा आता था की कैसे चोमू लड़का है कबीर,लेकिन फिर कबीर को तुम्हारी मेरी तरह एक आम लड़के की तरह देखने लगा तो फिर उतना awkward नहीं लगा


बाकी दोस्तों से बस इतना कहूंगा कि इतना disappointed और अधीर भी मत हो भाई
ये एक प्रेम कहानी है
प्रेम कहानी की तरह पढ़ो और बस मजे लो


राज खुलने को लेकर मत हड़बड़ाओ आराम आराम से एक एक राज को बारी बारी से निपटने दो

फौजी भाई कहानी एकदम सही जा रही है बस आराम आराम से चलने दो
हर चीज के मजे ले लेने दो
और ऐसा प्रेम प्रसंग बीच बीच में डाल दो हर 2–4 अपडेट के बाद, कहानी रोचक बनी रहेगी
 
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Mr. Unique

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Bhai ab aur bardast nahi hota...Kabir se jyada to mujhe khusi ho rhi hai...kab Nisha aur Kabir ek hoge...kab purani kitabo ke panne khulege aur ek ek karke saare rahsya saamne aayege...kahani kis mod par mudegi aur kahani ka ant kya hoga..

Man to karta hai ki aapse 15-20 update ek saath maang le lekin aapki paristhiti hum samjh sakte hai...phir bhi aap hamare liye kam se kam ek update daily de hi dete hai ye hi bahut badi baat hai...

Thanks Dear.
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Hum bhi prakti ke hisse ke rup me hai jab udaas hote hai to lagta aakash bhi humare saath ro raha hai or khushi me isi barsaat ke saath jhumne ka man karta hai rahi baat sach ki to use koi nahi chupa sakta aaj nahi kal hamare saamne honga kisi bhi rup me.

Barsaat ke mausam me do pighalte badan waah! Waise abhi tak humara ek anumaan sach ho gaya jo humne pahle bhi kaha tha ki chacha or raay sahab ke bich kuch hua honga jiski wajah se wah chale gaye.

Chacha khuni hai ye baat chauka dene waali hai or shayad isiliye hi abhimanu or raay sahab chup rahe. Aapne kaha mere baad is kahani ko yaad rakha jaayega aisa kyu kaha aapne hum aapke saath yaad rakhna chahte hai aapke baad nahi mitra.
 
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