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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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ruda ki beti ke through viewers ko new information mili hai jab ki kabir was already aware after seeing photo in abhimanu room that there were three people in that frame

new chrachters bahut tezi se aaye jab ki old kahin kho gaye, nisha is main heroine she has side role par jab hath thamegi kabir ko to bawaal hoga lekin us bawal ko justify karne ke liye inki love story side by side regular honi chahiye aur new sudden characters me nisha kahin kho si gayi

Ab tak nisha se zyadaa role to chachi, champa aur bhabi ka raha hai
पुराने खोए नहीं है धुँधला गए है कुछ वक़्त के लिए. कुछ मेरा हाल बुरा है. मेरी तन्हाई कहानी पर असर डालने लगी है समझ रहा हूं मैं पर ज्यादा बिगड़े इस से पहले ही खत्म करना चाहता हूं मैं
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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पर निशा ने तो कहा था की वो भी आदमखोर को ढूंढ रही है क्योंकि ये जंगल घर है उसका
फिर वो आदमखोर को कैसे जानती होगी

क्या निशा भी झूठ बोल रही थी,
इस पूरी कहानी में बस एक निशा ही है जिसके ऊपर कबीर आंख मूंद कर भरोसा कर सकता है,


निशा कबीर से शायद झूठ ना बोली हो पर इतना भी पक्का है की उसने पूरा सच अभी तक कबीर को नही बताया है

रूढ़ा की बेटी ने कबीर वो लॉकेट किस लिया दिया, कबीर को सच जानने में मदद मिलेगी इसलिए या कबीर ही उस खजाने का वारिस है इसलिए

और रूढ़ा की बेटी के पास ये है मतलब उसे कुछ तो पता ही होगा इस मंदिर और खजाने के बारे में, अगर उसे पता है तो त्रिदेव अभिमानु को भी पता होगा

अब इस कहानी को सुलझाने की शुरवात परकाश से होगी,
इतना तो समझ आ ही गया की वो राज जरूर बता देगा पैसे के लोभ से ना सही मरने के डर से जरूर बताएगा

लेकिन मुझे लगता नहीं कि रहस्यों का ये वाला धागा त्रिदेव पर जाकर खुलेगा,
ये धागा में राय साहब, चंपा और चाचा की गुत्थी तक लेकर जायेगा


त्रिदेव वाले रहस्य को भाभी या निशा के through सुलझाना होगा क्योंकि अभिमानु के side से तो कोई support नहीं मिलेगा

और ये दोनो राज खजाने पर जाकर मिलेंगे
आदमखोर और खजाना एक दूसरे से किसी न किसी तरह जरूर connect होंगे

अगले अपडेट का इंतजार रहेगा की उस रूम से कुछ मिला की नहीं, कुछ तो ऐसा जरूर मिलेगा जो त्रिदेव की जानकारी देगा तभी रूढ़ा की बेटी ने त्रिदेव की कहानी ढूंढने को कहा था


जल्दी से अपडेट दे दो please
निशा और कबीर की ये कहानी मेरे बाद भी याद की जाएगी भाई इस प्रयास मे बहुत कोशिश कर रहा हूं . त्रिदेव की कहानी से आप सब की बहुत कुछ जानने को मिलेगा ऐसा कुछ जो ना सुना गया ना देखा गया
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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उस पिक्चर में तीन लोग और उस लॉकेट वाले निशान का रूद्र की बेटी के पास मिलना और वही निशान निशा के अड्डे पर इसका मतलब निशा भी राज़दार तो है लेकिन किस हद तक ये कहना मुश्किल है

कबीर का दिमाग टूब लाइट की तरह धीरे धीरे से चलता है खजाने का भी गहरा लिंक है निशा से भी और उस तस्वीर से भी
वो तस्वीर सिर्फ एक तस्वीर नहीं जिंदगी है
 

Pankaj Tripathi_PT

Love is a sweet poison
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.#76

उनके जाने के बाद मैं भी निशा के ठिकाने पर चला गया.उस गहरी ख़ामोशी में बैठे बैठे मैं सोच रहा था तमाम बातो के बारे में . तस्वीर में तीन लड़के थे भैया के सिवा मैं बाकी दोनों को बिलकुल नहीं जानता था . पर रुडा की बेटी के अनुसार मुझे त्रिदेव की कहानी मालूम करनी थी और ये त्रिदेव कोई और नहीं वो तस्वीर में मोजूद शक्श ही थे. आसमान और काला हो गया था. थोड़ी थोड़ी बूंदा बांदी शुरू हो गयी थी. तालाब के पानी में टप टप गिरती बूंदों को देखते हुए मैं ख्यालो में जैसे खो सा गया था.



बहन जी ने जो चांदी का लाकेट मुझे दिया था मैंने उसे गले में पहन लिया .बस तलाश थी मुझे किसी ऐसे की जो भैया का अतीत खोल कर रख दे मेरे सामने.

“जब कुछ न जोर चले तो इस पानी में उतरना ये पनाह देगा तुझे ” निशा की कही ये बात अचानक ही मेरे जेहन में आई.

मैंने कपडे उतारे और पानी में कूद गया. बरसात ने पानी को और ठंडा कर दिया था . मैंने फेफड़ो में हवा भरी और गोता लगाया. ठन्डे पानी ने एक बार फिर मेरी परीक्षा लेना चाही पर इरादा मजबूत था. .निशा ने जो भी मुझे दिखाया था वो भ्रम नहीं था सच था . पर कौन मालिक था इसका , ऐसा कौन था जिसे जरा भी परवाह नहीं रही इस की . कौन था वो निर्मोही जिसे खजाने का मोल नहीं समझ आया था .



बेशक मेरे फेफड़े फटने को थे पर फिर भी मैं वही रुका रहा . उस ढेर को देखता रहा . पानी के निचे दबी उस ख़ामोशी को शिद्दत से महसूस किया जो बाहर आकर चीखने को बेक़रार थी .किसकी कहानी थी ये जो धरती के निचे दफन थी . खजाना था तो इस खंडहर में भी कोई बात जरुर होगी . मेरे दिल ने कहा मैंने तुरंत ऊपर की और दिशा की और पानी से बाहर आ गया. बरसात बदस्तूर जारी थी . कपडे पहने पर ठण्ड से राहत मिली नहीं . शरीर कांप रहा था . पर एक जूनून था मुझ पर ,

“तुम भी मामूली नहीं हो सकते कोई तो कहानी तुम्हारी भी जरुर है ” मैंने उस बेजान ईमारत से कहा और गौर से देखने लगा. हर दिवार को देखा पुराने बने चिन्हों को समझा . खंडहर पुराना होने की वजह से दीवारे काली हुई पड़ी थी निशा ने कहा था की वक्त और लोगो ने भुला दिया इसे पर ये कैसा मंदिर था जिसमे कोई प्रतिमा नहीं . कुछ तो छूट रहा था मुझसे कोई तो ऐसी बात थी जो सामने होते हुए भी छिपी थी . मैंने उस बड़े पत्थर को भी सरका कर देखा जिस पर कभी प्रतिमा होगी जो मैं सोचता था पर नहीं . मैं प्रांगन में आया एक बार फिर से उस ईमारत को देखा. पानी , पानी , पानी .......

मैं समझ गया ये कभी कोई मंदिर था ही नहीं. ये एक पनाहगाह थी मुसाफिरों के लिए. पानी का प्रयोजन यहाँ था की पथिक बैठ कर सुस्ता सके, पानी पीकर तरोताजा हो सके. किसी जगह में इधर से लोग गुजरते होंगे. पर ऐसा कौन दिलेर था जिसने खुली जगह में सोना छुपाया. मन ही मन मैंने उसकी सोच की दाद दी उसके साहस का कायल हो गया मैं.

उसने छिपाने से सबसे सुरक्षित जगह चुनी थी क्योंकि इस जगह पर सोना होगा कोई सोच भी नहीं सकता था . दूसरा ये जगह इतनी छिपी हुई थी की पहली नजर में इसे देखना लगभग नामुमकिन था तो उस सक्श ने अपना ठिकाना इसे तब बनाया जब दुनिया ने इस जगह को ठुकरा दिया.



सोना छिपा था तो ऐसी जगह भी छिपी होनी चाहिए थी जिसका इस्तेमाल किया जा सके. कोई ख़ुफ़िया कमरा या तहखाना . मुझे बस उसकी ही तलाश करनी थी . एक बार फिर से मेहनत शूरू हुई आसमान इस कद्र काला हुआ था की दोपहर और रात का फर्क खत्म हो गया था . तभी अंदरूनी दिवार पर एक निशान ने मेरा ध्यान खींचा . दो जुड़े हुए सांप का निशान ऐसा लगता था की मैंने कहीं तो देखा है . पर कहाँ .ये ध्यान नहीं आ रहा था . बहुत देर हुई सोचते सोचते . मैंने अपने गले पर हल्का सा खुजाया और मेरी उंगलिया चांदी के लाकेट से टकराई . मैंने देखा फिर देखता ही रह गया. ये निशान मेरे गले में तो था. ये निशान मैंने तब देखा था जब रुडा की बेटी ने ये चेन मुझे दी थी .



गले से चेन उतार कर मैंने मिलान किया शक की गुंजाईश ही नहीं थी . खूब जांच की पर साला कोई जुगाड़ मिला नहीं इस निशान की क्या पहेली थी सोचते सोचते मेरा सर दुखने लगा. पर पहेली थी तो फिर उत्तर भी यही रहा होगा. सांप का जोड़ा , जोड़ा , जोड़ा . रहना ये जगह उसने अपने छिपने के लिए चुनी थी . सांप का छिपना एक छलावा . निशान बस एक धोखा था . वाह क्या खूब दिमाग था इस बन्दे का. मैं तुरंत मुड़ा और सीढियों की तरफ गया . थोड़ी मेहनत के बाद मुझे तालाब और सीढियों वाली दिवार पर एक लोहे का कुंडा मिल गया जिसे खींचने पर एक तरफ का पत्थर सरक गया निचे जाने को सीढिया थी मैं उतर गया और पत्थर को वापिस लगा लिया. थोडा निचे जाने पर मैं एक अँधेरे कमरे में था जो सीला हुआ था श्याद पानी की वजह से . कुछ देर बाद आँखे जब देखने लायक हुई तो मैंने पाया की पुराना सा कमरा था जिसमे एक तरफ छोटी मेज थी, दिवार पर एक आला था जिसमे की चिमनी थी. पास रखी दियासलाई जो की सीली हुई थी मैंने कोशिश की दो चार तीलिया बर्बाद हुई पर चिमनी जल गयी. हलकी से लौ ने सच कहूँ बड़ी राहत दी.



कोने में बिस्तर पड़ा था जो अब अवसेश ही रह गया था . काई लगी दीवारों पर लम्बे लम्बे निशान थे जैसे की उनको कुरचा गया हो . बरसों से यहाँ कोई नहीं आया था तो आमद का क्या ही सबूत देखता मैं . क्या निशा इस कमरे के बारे में जानती होगी . क्या मैं जिक्र करू पहली बार मुझे लगा था की निशा भी मुझसे कुछ छिपाए हुए है . एक डाकन की मोजुदगी में कोई और यहाँ रह जाए ये तो असंभव था . निशा शायद इस सक्श को जानती होगी पर जानती थी तो मुझसे क्यों छिपाया. क्या उस आदमखोर और डाकन का कोई सम्बन्ध था .
Nisha ji dayan hai jangle uska ghar hai koi kisi ke ghar me ghuse or usko pta na Ho ye kaise Ho skta hai. Mana ke nisha ji jhuth nahi bol rhi lekin pura sach bhi nahi bta rhi. Rudaa ki beti bhi bhot kuch janti hai usne kabir ko locket di jisme saanp ke jode ka nishaan tha jiska bhed khandahar me bhi hai kabir ki madad koi nahi kr rha bss har koi thoda sa hint dekar chale jate hai rudaa ki beti chahti to woh khud bhi bta skti thi lekin nahi kabir ko khud dhundhne ke kaha. Jese kabir ki koi priksha li ja rhi Ho jisme uska koi madad nhi krega pass hone me bss rashta dikhaya ja rha hai. Sawaal ye uthta hai ke Kya tridev ki gutthi suljhne se baki sare rahasya khul jayenge ya sirf abhimanyu or uske 2 dosto ki. Nisha ji kahin nahi dikhaai Di kahan hai woh aise nazuk mauke par unka hona lazmi tha. Khairrr dekhte hai niche tehkhane me koi saboot milta hai ya yahan bhi khali hath
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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तुम कहते हो प्यार की कमी है. गलियों चौबारे मे हमने प्यार किया पेड़ों की छांव मे खेतों की धूप मे हमने प्यार किया. बारिशों मे इंतजार किया सर्दी की रातों मे कांपते हुए प्यार किया. लहराती रहो मे, महकती फ़िज़ाओं मे हमने प्यार किया. पहाड़ों मे उसे याद किया, लहरों मे उसे देखा

तुम कहते हो प्यार की कमी है. सात साल पहले आज के ही दिन मैंने निशा को खोया था आज के ही दिन मैं निशा को लिख रहा हूँ. ये प्यार नहीं तो और क्या है.
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#77

ये आसमान को आज क्या गम था जो रोये ही जा रहा था . माना की हम उलझे थे अपने ताने-बाने में पर इस बारिश को किसने सताया था . इन तूफानी हवाओ को किसने छेड़ा था आज. शायद कुदरत भी नहीं चाहती की मैं अतीत की चादर को झडका दू.

एक हाथ से साइकिल की थामे पैदल बारिश में भीगते हुए मैं कुवे की तरफ चले जा रहा था . मन में उमंग थी, आस थी , और थोडा दर्द भी था . कुवे पर पहुँच कर देखा की सरला वही मोजूद थी .

मैं- तू यहाँ पर क्या कर रही है भाभी

सरला- सुबह से यही पर हूँ मेह थम ही नहीं रहा सोचा रुकेगा तभी जाउंगी

मैं- मौसम ख़राब था तो आने की जरुरत ही क्या थी तुमको .

सरला- कल थोडा काम अधुरा रह गया था सोचा था की दोपहर तक पूरा कर लुंगी पर मौसम बेईमान

मैं- बहुत बढ़िया हुआ जो रुक गयी तुम कल का अधुरा काम आज पूरा हो जायेगा.

मैंने कपडे उतार कर फेंके और कीचड़ साफ़ करके अन्दर आते ही सरला को अपनी बाहों में भर लिया.

मैं- ये मौसम और गदराई हुई तुम, मैं कैसे रोकू खुद को

सरला ने मेरे गालो पर चुम्बन किया और बोली- मत रोको कुंवर.

सरला ने मेरे तौलिये को हटाया और मेरे लंड को हाथ में लेकर मसलने लगी.

सरला- कुंवर , क्या कर दिया तुमने मुझ पर मैं रोक नहीं पाई खुद को पिघलने से.

मैं- किसलिए रुकना है तुमको

मैंने सरला के होंठो से अपने होंठ जोड़ दिए. बरसती दोपहर में हम दोनों जलने लगे थे. चुमते चुमते मैंने उसके लहंगे की गाँठ खोली और उसने निचे से नंगी कर दिया . उसके चूतडो पर हाथ फेरने का भी अपना ही सुख था . मैंने उसे खुद से अलग किया और थोडा झुका दिया.सरला ने अपने दोनो हाथ घुटनों पर रख लिए. इस तरह झुकने से उसकी भारी गांड और भी उभर कर मेरे सामने आ गयी. मैंने सोचा चाचा क्या ही आदमी था इन रांडो को उसने जी भर कर भोगा होगा.



लंड पर थूक लगा कर मैंने उसे सरला की चूत पर लगाया और जोर से धक्का मारा वो आगे को गिर जाती पर मैंने मजबूती से उसके कुल्हे थाम लिए थे . बरसते मेह में हमारी हवस भी बरसने लगी थी . मेरी उमंग और सरला की आहों ने चुदाई के सुख को दुगुना कर दिया. आज से पहले मैं इतना नहीं झडा था ऐसे नहीं झडा था .

चुदाई के बाद मैंने उसे चाय बनांने को कहा और फिर बातो का सिलसिला शुरू हुआ.

मैं- सरला देख, मैंने तुझ पर भरोसा किया है और तूने भी वादा किया है मुझसे

सरला- मैं अब तुम्हारी हूँ कुंवर. बेशक मैंने खुद पहल करके तुम्हारे साथ सब कुछ किया पर ये मेरी इच्छा थी .

मैं-रमा , कविता की चुदाई के खेल की तीसरी साथी तुम थी न

सरला- ये तुम कल रात ही जान गए थे कुंवर तो अब क्यों पूछते हो.

मैं- क्या हरिया जानता था ये बात

सरला-नहीं

उसने चूल्हे में फूक देते हुए कहा.

मैं- क्या तू चाहती है की हरिया के कातिल का सच में पता चले

सरला- मुझसे ज्यादा कौन जानना चाहेगा. कुंवर बेशक मेरे सम्बन्ध छोटे ठाकुर से भी थे पर मैंने हरिया से भी बहुत प्यार किया

मैं- तो फिर बता चाचा का क्या हुआ

सरला- मैं नहीं जानती , वो बस अचानक से गायब हो गए . जबसे उनका और राय साहब का झगड़ा हुआ था उसके बाद से वो शांत से हो गए थे गाँव में आना जाना कम हो गया था .

मैं- जानता हूँ पिताजी ने चुदाई करते पकड़ा था उनको

सरला- ये बात नहीं थी , राय साहब को परवाह नहीं थी की उनका भाई कहाँ मुह मार रहा है . झगडा किसी और बात को लेकर हुआ था .

मैं- किस बात को लेकर.

सरला- छोटे ठाकुर नहीं चाहते थे की रुडा की बहन की बेटी उनके घर की बहु बने . छोटे ठाकुर और रुडा में छत्तीस का आंकड़ा था

मैं- पर क्यों .

सरला- नहीं जानती

मैंने गहरी सांस ली .

मैं- तुम तीनो में से छोटे ठाकुर अपने मन की बाते किस से करते थे .

सरला- शायद एक से शयद तीनो से या फिर किसी से भी नहीं . हम बस अपने अपने स्वार्थ से जुड़े थे उनको चूत चाहिए थी और हमको सुख . दोनों का लालच था .

मै- कोई और भी तो होगा चाचा का राजदार

सरला- छोटे ठाकुर का कोई दोस्त नहीं था जहाँ तक मैं जानती हूँ

मैं- जंगल में तुम्हारे मिलने की जगह कहाँ थी , ऐसी कोई तो खास जगह होगी न जहाँ पर तुम घंटो चुदाई कर पाते थे.

सरला- जंगल में नहीं रमा के घर में मिलते थे हम . पर जब उसके पति को मालूम हुआ तो फिर हम यहाँ इसी कुवे पर आने लगे. तब यहाँ इतनी चहल पहल नहीं होती थी . और ऐसी ही एक दोपहर राय साहब आ धमके उसके बाद हालात पहले से नहीं रहे.

मैंने चाय का कप रखा और मंद होती बरसात को देख कर कहा - घर चलते है भाभी

थोड़ी देर बाद हम गाँव के लिए निकल पड़े. मैं सीधा चाची के पास गया और बोला- चाचा और राय साहब में झगडा हुआ था किस बात को लेकर अभी बता मुझे

चाची- तेरे चाचा औरतखोर थे. जेठ जी को ये पसंद नहीं था .

मैं- मैं सच जानना चाहता हूँ चाची अभी

चाची- छोटे ठाकुर ने रमा के पति को मार दिया था , जेठ जी को मालूम हुआ तो बहुत कलेश हुआ .

मैं- क्यों मारा रमा को तो वो पा ही चुके थे फिर मारने की क्या जरूरत आन पड़ी.

चाची- मैं नहीं जानती ,जेठ जी ने बात को दबा दिया सिर्फ घर वाले ही जानते है इस बारे में

मैं- तेरे पति ने एक आदमी को मार दिया तू चुप रही

चाची- वो बस नाम का पति था मेरे लिए , मेरे हिस्से का सुख वो बाहर लुटा रहा था . कितना समझाया मैंने पर नहीं घर के सोने को ठुकरा कर वो बाहर पीतल तलाशता रहा . मैं करती भी तो क्या .............



“घर की दहलीज में छुपा है तेरे हिस्से का सच ” निशा की कही बात मेरे जेहन में गूंजने लगी.

मेरे बाप ने न जाने किस किस पर पर्दा डाला हुआ था . कही लाली का श्राप सच तो नहीं हो रहा था मैंने इस घर की दीवारों को कांपते हुए महसूस किया. रात को अचानक दर्द से मेरी आँख खुल गयी मैंने खुद को बिस्तर से निचे पड़ा पाया. बदन तप रहा था . पसीने से भीगा था मैं. गटागट पानी पीने लगा पर चैन नहीं आया. उलटी करने का जी हो रहा था .बाहर आकर मैंने हवा खाने की सोची. गली में बाहर आया ठण्ड बहुत थी पर बारिश थम चुकी थी.

अचानक ही मेरे पैर कांप गए और मैं गली के बिच में गिर गया. .मेरी नजर बादलो के बीच से झांकते चाँद पर पड़ी और मैं जैसे पागल हो गया. मैं बिना कुछ सोचा समझे दौड़ पड़ा..............................

 
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