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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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.#76

उनके जाने के बाद मैं भी निशा के ठिकाने पर चला गया.उस गहरी ख़ामोशी में बैठे बैठे मैं सोच रहा था तमाम बातो के बारे में . तस्वीर में तीन लड़के थे भैया के सिवा मैं बाकी दोनों को बिलकुल नहीं जानता था . पर रुडा की बेटी के अनुसार मुझे त्रिदेव की कहानी मालूम करनी थी और ये त्रिदेव कोई और नहीं वो तस्वीर में मोजूद शक्श ही थे. आसमान और काला हो गया था. थोड़ी थोड़ी बूंदा बांदी शुरू हो गयी थी. तालाब के पानी में टप टप गिरती बूंदों को देखते हुए मैं ख्यालो में जैसे खो सा गया था.



बहन जी ने जो चांदी का लाकेट मुझे दिया था मैंने उसे गले में पहन लिया .बस तलाश थी मुझे किसी ऐसे की जो भैया का अतीत खोल कर रख दे मेरे सामने.

“जब कुछ न जोर चले तो इस पानी में उतरना ये पनाह देगा तुझे ” निशा की कही ये बात अचानक ही मेरे जेहन में आई.

मैंने कपडे उतारे और पानी में कूद गया. बरसात ने पानी को और ठंडा कर दिया था . मैंने फेफड़ो में हवा भरी और गोता लगाया. ठन्डे पानी ने एक बार फिर मेरी परीक्षा लेना चाही पर इरादा मजबूत था. .निशा ने जो भी मुझे दिखाया था वो भ्रम नहीं था सच था . पर कौन मालिक था इसका , ऐसा कौन था जिसे जरा भी परवाह नहीं रही इस की . कौन था वो निर्मोही जिसे खजाने का मोल नहीं समझ आया था .



बेशक मेरे फेफड़े फटने को थे पर फिर भी मैं वही रुका रहा . उस ढेर को देखता रहा . पानी के निचे दबी उस ख़ामोशी को शिद्दत से महसूस किया जो बाहर आकर चीखने को बेक़रार थी .किसकी कहानी थी ये जो धरती के निचे दफन थी . खजाना था तो इस खंडहर में भी कोई बात जरुर होगी . मेरे दिल ने कहा मैंने तुरंत ऊपर की और दिशा की और पानी से बाहर आ गया. बरसात बदस्तूर जारी थी . कपडे पहने पर ठण्ड से राहत मिली नहीं . शरीर कांप रहा था . पर एक जूनून था मुझ पर ,

“तुम भी मामूली नहीं हो सकते कोई तो कहानी तुम्हारी भी जरुर है ” मैंने उस बेजान ईमारत से कहा और गौर से देखने लगा. हर दिवार को देखा पुराने बने चिन्हों को समझा . खंडहर पुराना होने की वजह से दीवारे काली हुई पड़ी थी निशा ने कहा था की वक्त और लोगो ने भुला दिया इसे पर ये कैसा मंदिर था जिसमे कोई प्रतिमा नहीं . कुछ तो छूट रहा था मुझसे कोई तो ऐसी बात थी जो सामने होते हुए भी छिपी थी . मैंने उस बड़े पत्थर को भी सरका कर देखा जिस पर कभी प्रतिमा होगी जो मैं सोचता था पर नहीं . मैं प्रांगन में आया एक बार फिर से उस ईमारत को देखा. पानी , पानी , पानी .......

मैं समझ गया ये कभी कोई मंदिर था ही नहीं. ये एक पनाहगाह थी मुसाफिरों के लिए. पानी का प्रयोजन यहाँ था की पथिक बैठ कर सुस्ता सके, पानी पीकर तरोताजा हो सके. किसी जगह में इधर से लोग गुजरते होंगे. पर ऐसा कौन दिलेर था जिसने खुली जगह में सोना छुपाया. मन ही मन मैंने उसकी सोच की दाद दी उसके साहस का कायल हो गया मैं.

उसने छिपाने से सबसे सुरक्षित जगह चुनी थी क्योंकि इस जगह पर सोना होगा कोई सोच भी नहीं सकता था . दूसरा ये जगह इतनी छिपी हुई थी की पहली नजर में इसे देखना लगभग नामुमकिन था तो उस सक्श ने अपना ठिकाना इसे तब बनाया जब दुनिया ने इस जगह को ठुकरा दिया.



सोना छिपा था तो ऐसी जगह भी छिपी होनी चाहिए थी जिसका इस्तेमाल किया जा सके. कोई ख़ुफ़िया कमरा या तहखाना . मुझे बस उसकी ही तलाश करनी थी . एक बार फिर से मेहनत शूरू हुई आसमान इस कद्र काला हुआ था की दोपहर और रात का फर्क खत्म हो गया था . तभी अंदरूनी दिवार पर एक निशान ने मेरा ध्यान खींचा . दो जुड़े हुए सांप का निशान ऐसा लगता था की मैंने कहीं तो देखा है . पर कहाँ .ये ध्यान नहीं आ रहा था . बहुत देर हुई सोचते सोचते . मैंने अपने गले पर हल्का सा खुजाया और मेरी उंगलिया चांदी के लाकेट से टकराई . मैंने देखा फिर देखता ही रह गया. ये निशान मेरे गले में तो था. ये निशान मैंने तब देखा था जब रुडा की बेटी ने ये चेन मुझे दी थी .



गले से चेन उतार कर मैंने मिलान किया शक की गुंजाईश ही नहीं थी . खूब जांच की पर साला कोई जुगाड़ मिला नहीं इस निशान की क्या पहेली थी सोचते सोचते मेरा सर दुखने लगा. पर पहेली थी तो फिर उत्तर भी यही रहा होगा. सांप का जोड़ा , जोड़ा , जोड़ा . रहना ये जगह उसने अपने छिपने के लिए चुनी थी . सांप का छिपना एक छलावा . निशान बस एक धोखा था . वाह क्या खूब दिमाग था इस बन्दे का. मैं तुरंत मुड़ा और सीढियों की तरफ गया . थोड़ी मेहनत के बाद मुझे तालाब और सीढियों वाली दिवार पर एक लोहे का कुंडा मिल गया जिसे खींचने पर एक तरफ का पत्थर सरक गया निचे जाने को सीढिया थी मैं उतर गया और पत्थर को वापिस लगा लिया. थोडा निचे जाने पर मैं एक अँधेरे कमरे में था जो सीला हुआ था श्याद पानी की वजह से . कुछ देर बाद आँखे जब देखने लायक हुई तो मैंने पाया की पुराना सा कमरा था जिसमे एक तरफ छोटी मेज थी, दिवार पर एक आला था जिसमे की चिमनी थी. पास रखी दियासलाई जो की सीली हुई थी मैंने कोशिश की दो चार तीलिया बर्बाद हुई पर चिमनी जल गयी. हलकी से लौ ने सच कहूँ बड़ी राहत दी.



कोने में बिस्तर पड़ा था जो अब अवसेश ही रह गया था . काई लगी दीवारों पर लम्बे लम्बे निशान थे जैसे की उनको कुरचा गया हो . बरसों से यहाँ कोई नहीं आया था तो आमद का क्या ही सबूत देखता मैं . क्या निशा इस कमरे के बारे में जानती होगी . क्या मैं जिक्र करू पहली बार मुझे लगा था की निशा भी मुझसे कुछ छिपाए हुए है . एक डाकन की मोजुदगी में कोई और यहाँ रह जाए ये तो असंभव था . निशा शायद इस सक्श को जानती होगी पर जानती थी तो मुझसे क्यों छिपाया. क्या उस आदमखोर और डाकन का कोई सम्बन्ध था .
 
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Sanju@

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#73

दो घडी मैं भैया को जाते हुए देखता रहा और फिर उनको आवाज दी उन्होंने मुड कर देखा मैं दौड़ कर उनके पास गया.

मैं- रमा की बेटी की लाश जब देने गए तो नोटों की गड्डी क्यों फेंकी

भैया-उसकी हालात बहुत कमजोर थे , मैंने उसकी मदद करनी चाही पर उसने पैसे नहीं लिए तो मैं पैसे वही छोड़ कर आ गया.

मैं- आप रमा और चाचा के संबंधो को जानते थे न भैया

भैया- अब उन बातो का कोई औचित्य नहीं है . सबकी अपनी निजी जिन्दगी होती है उसमे दखल देना एक तरह से अपमान ही होता है . जब तक कुछ चीजे किसी को परेशां नहीं कर रही उन पर ध्यान नहीं देना चाहिए.

मैं- मतलब आप जानते थे .

भैया- मुझे कुछ जरुरी काम है बाद में मिलते है .

मैं इतना तो जान गया था की भैया को बराबर मालूम था चाचा श्री की करतूतों का. मैं थकने लगा था चारपाई पर लेटा और रजाई ओढ़ ली. सर्दी के मौसम में गर्म रजाई ने ऐसा सुख दिया की फिर कब गहरी नींद आई कौन जाने.

“कुंवर उठो , उठो ” अधखुली आँखों से मैंने देखा की सरला मुझ पर झुकी हुई है. मेरी नजर उसकी ब्लाउज से झांकती चुचियो पर पड़ी.

“उठो कुंवर ” उसने फिर से मुझे जगाते हुए कहा.

मैं क्या हुआ भाभी .

सरला- काम खत्म हो गया है कहो तो मैं जाऊ घर

मैं- जाना है तो जाओ किसने रोका है तुमको

मैंने होश किया तो देखा की बाहर अँधेरा घिरने लगा था .

मैं- तुम्हे तो पहले ही चले जाना चाहिए था .

सरला- वो मंगू कह कर गया था की कुंवर उठे तो कमरा बंद करके फिर जाना

मैं- कमरे में क्या पड़ा है . खैर कोई बात नहीं मैं जरा हाथ मुह धो लेता हूँ फिर साथ ही चलते है गाँव.

थोड़ी देर बाद हम पैदल ही गाँव की तरफ जा रहे थे .बार बार मेरी नजर सरला की उन्नत चुचियो पर जा रही थी ये तो शुक्र था की अँधेरा होने की वजह से मैं शर्मिंदा नहीं हो रहा था. मैंने उसे उसके घर की दहलीज पर छोड़ा और वापिस मुड़ा ही था की उसने टोक दिया- कुंवर चाय पीकर जाओ

मैं- नहीं भाभी, आप सारा दिन खेतो पर थी थकी होंगी और फिर परिवार के लिए खाना- पीना भी करना होगा फिर कभी

सरला- आ जाओ. वैसे भी मैं अकेली ही हूँ आज एक से भले दो.

मैं- कहाँ गए सब लोग

सरला- बच्चे दादा-दादी के साथ उसकी बुआ के घर गए कुछ दिन बाद आयेंगे.

चाय की चुसकिया लेटे हुए मैं गहरी सोच में खो गया था.

सरला- क्या सोच रहे हो कुंवर.

मैं- रमा की बेटी को किसने मारा होगा.

सरला- इसका आजतक पता नहीं लग पाया.

मैं- मुझे लगता है जिसने रमा की बेटी को मारा उसने ही बाकि लोगो को भी मारा होगा.

सरला- कातिल मारा जाये तो मेरा जख्म भरे.

मैं उसकी भावनाओ को समझ सकता था .

मैं- तू ठाकुर जरनैल के बारे में क्या जानती है .

सरला- वही जो बाकि गाँव जानता है

मैं- क्या जानता है गाँव

सरला- तुम्हे बुरा लगेगा कुंवर.

मैं- तू नहीं बतायेगी तो मुझे बुरा लगेगा भाभी

सरला- एक नम्बर के घटिया, गलीच व्यक्ति थे वो .

मैं- जानता हु कुछ और बताओ

सरला-जिस भी औरत पर नजर पड़ जाती थी उसकी उसे पाकर ही मानते थे वो चाहे जो भी करना पड़े.

मैं- क्या रमा को पाने के लिए चाचा उसके पति को मरवा सकता है

सरला मेरा मुह ताकने लगी.

मैं-हम दोनों एक दुसरे पर भरोसा करते है न भाभी

सरला ने कुछ पल सोचा और फिर हाँ में सर हिला दिया.

मैं- रमा के आदमी को चाचा मार सकता है क्या .

सरला- रमा को छोटे ठाकुर ने बहुत पहले पा लिया था . मुझे नहीं लगता की ठाकुर ने उसके आदमी को मारा या मरवाया होगा. देखो छोटे ठाकुर घटिया थे पर जिसके साथ भी सम्बन्ध बनाते उसका ख्याल पूरा रखते थे . उस दौर में रमा जितना बन संवर कर रहती थी धुल की भी क्या मजाल जो उसे छू भर जाये.

सरला की बात ने मुझे और उलझा दिया था .

मैं- चलो मान लिया पर हर औरत थोड़ी न धन के लिए चाचा के साथ सोना मंजूर कर लेती होगी . किसी का जमीर तो जिन्दा रहा होगा. क्या किसी ने भी उसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई .

सरला- किसकी मजाल थी इतनी.

मैं- एक बात और मुझे मालूम हुआ की गाँव की एक औरत ऐसी भी थी जिस से अभिमानु भैया का चक्कर था .

मैंने झूठ का जाल फेंका

सरला- असंभव , ऐसा नहीं हो सकता. अभिमानु ठाकुर के बारे में ऐसा कहना सूरज को आइना दिखाना है . उसने गाँव के जितना किया है कोई नहीं कर सकता .

मैं -रमा तो भैया को ही उसकी बेटी का कातिल मानती है

सरला- रमा का क्या है . लाश को अभीमानु लाया था . बस ये बात थी . अभिमानु ने रमा को सहारा देने के लिए सब कुछ किया था पर वो अपनी जिद में गाँव छोड़ गयी.

मैं-जाने से पहले एक बात और पूछना चाहता हूँ भाभी.

सरला- हाँ

मैं- जाने दे फिर कभी .

मैंने अपने होंठो पर आई बात को रोक लिया . मैं सरला से साफ पूछना चाहता था की क्या वो मुझे चूत देगी . पर तभी मेरे मन में उसकी कही बात आई की कौन मना कर सकता था . मैंने अपना इरादा बदल दिया और उसके घर से निकल गया. घर गया तो देखा की चंपा आँगन में बैठी थी राय साहब अपने कमरे में दारू पी रहे थे . मैंने चंपा को अनदेखा किया और रसोई में चला गया . मेरे पीछे पीछे वो भी आ गयी.

चंपा- मैं परोस दू खाना

मैं- भूख नहीं है .

चंपा- तो फिर रसोई में क्यों आया.

मैं- तू मेरे बाप का ख्याल रख मैं अपना ध्यान खुद रख लूँगा.

चंपा- नाराज है मुझसे

मैं- जानती है तो पूछती क्यों है

चंपा- काश तू समझ पाता

मैं- मेरी दोस्त मेरे बाप का बिस्तर गर्म कर रही है और मैं समझ पाता

चंपा ने कुछ नहीं कहा और रसोई से बाहर निकल गयी . रात को एक बार फिर मैं उस तस्वीर को देख रहा था .

“दुसरो की चीजो को छुप कर देखना भी एक तरह की चोरी होती है ” कानो में ये आवाज पड़ते ही मैंने पीछे मुड कर देखा..........................
भैया चाचा और रमा के संबंध के बारे में जानता है कबीर अपने परिवार के लोगो द्वारा जो बताया जा रहा है वही सच मानकर हर बार नई उलझन में उलझते जा रहा है हर एक चहरे के पीछे एक और चेहरा छुपा हुआ है लेकिन कबीर अभी तक किसी भी चेहरे को बेनकाब नही कर पाया है
चंपा को देखकर कबीर का मूड खराब हो गया है पहले कबीर चंपा के साथ मजाक मस्तियां करता था लेकिन अब उसे देखकर उसका दिल दुखता है पीछे शायद भाभी हो सकती हैं ............
 

Sanju@

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#74

सामने भैया खड़े थे .

मैं- आप यहाँ कैसे

भैया- हमारे ही कमरे में हमसे ही ये सवाल. अजीब बदतमीजी है छोटे

मैं- मेरा वो मतलब नहीं था भैया . मैं बस ........

भैया- कोई बात नहीं , वैसे भी यहाँ कुछ खास नहीं पुराना कबाड़ ही पड़ा है . रात बहुत हुई चाहो तो दिन में आराम से देख सकते हो इसे.

मैंने हां में सर हिलाया और बाहर आ गया. चाची के पास गया तो देखा की चंपा सोयी पड़ी थी वहां . मैंने कम्बल ओढा और कुवे पर जाने का सोचा. बाहर गली में आते ही देखा की भाभी छजे पर खड़ी थी बल्ब की रौशनी में उनकी नजर मुझ पर पड़ी. दोनों ने एक दुसरे को देखा और मैं अपने रस्ते बढ़ गया ये सोचते हुए की इतनी रात को भी जागती रहती है ये. कोचवान के घर के सामने से गुजरते हुए मैंने देखा की सरला का दरवाजा खुला है . इतनी रात को दरवाजा क्यों खुला है मैंने सोचा और मेरे कदम उसके घर की तरफ हो लिए.

मैंने अन्दर जाकर देखा सरला जागी हुई थी .

मैं- इधर से गुजर रहा था देखा दरवाजा खुला है तो चिंता हुई

सरला- तुम्हारे लिए ही खुला छोड़ा था कुंवर.

मैं- मेरे लिए पर क्यों

सरला- जानती थी तुम जरुर आओगे.

मैं- कैसे जानती थी .

सरला- औरत हूँ . औरत की नजरे सब पहचान लेती है . वो अधूरी बात जो होंठो तक आकर रुक गयी थी पढ़ ली थी मैंने.

मैं- तुम गलत सोच रही हो भाभी दरवाजा खुला देख कर चिंता हुई तो आ गया.

सरला- इतनी रात को एक अकेली औरत की चिंता करना बड़ा साहसिक काम है कुंवर.

मैं क्या ही कहता उसे .

मैं- तुम कुछ भी कह सकती हो भाभी . पर मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था

सरला मेरे पास आई और बोली- इरादा नहीं था तो फिर इन पर नजरे क्यों टिकी है तुम्हारी

उसने अपनी छातियो पर हाथ रखते हुए कहा.

मैं- अन्दर से कुण्डी लगा लो . मैं चलता हूँ

तभी सरला ने मेरा हाथ पकड़ लिया.

मैं- जाने दे मुझे , बहक गया तो फिर रोक नहीं पाऊंगा खुद को . ये रात का अँधेरा तो बीत जायेगा उजालो में तेरा गुनेहगार होना अच्छा नहीं लगेगा मुझे. तूने कहा था न की ठाकुरों को कौन मना करे. तू मना कर मुझे.

सरला- तो फिर रुक जाओ यही ये भी तो तुम्हारा ही घर है

मैं- घर तो है पर ..............

सरला- पर क्या....

इस से पहले की वो और कुछ कहती मैंने आगे बढ़ कर अपने होंठ उसके होंठो पर रख दिए और उसने चूमने लगा. उसने खुद को मेरे हवाले कर दिया और हम दोनों एक दुसरे के होंठ खाने लगे. मेरे हाथ उसके ठोस नितम्बो पर कस गए. मैंने महसूस किया की सरला की गांड चाची से बड़ी थी . सरला के होंठ थोडा सा खुले और हमारी जीभ एक दुसरे से रगड़ खाने लगी. उत्तेजना का ऐसा अहसास की तन जल उठा मेरा.

धक्का देकर मैंने उसे बिस्तर पर गिराया और दरवाजे की कुण्डी लगा दी. कमरे में हम दोनों थे और मचलते अरमान हमारे.

मैंने उसके लहंगे को ऊपर उठाया और पेट तक कर दिया. गोरी जांघो के बीच काले बालो से ढकी हुई सरला की चूत जिसकी फांके एक दुसरे से चिपकी हुई थी . मेरा जी ललचा गया उसकी चूत देख कर . मैंने उसकी टांगो को विपरीत दिशाओ में फैलाया और अपने होंठ उसकी चूत पर लगा दिए.

मैंने अपने होंठो को इस कद्र जलता महसूस किया की किसी ने दहकते हुए अंगारे रख दिए हो.

“सीईई ” चूत को चुमते ही सरला मचल उठी. मैंने देखा उसने अपनी चोली उतार कर फेंक दी और अपने हाथो से मेरे सर को थाम लिया. मैं उसकी चूत को चूसने लगा. बस दो मिनट में ही सरला के चुतड खुद ऊपर उठ गये . उसके होंठ आहों को रोकने में नाकाम होने लगे थे.



चाची के बाद जीवन में ये दूसरी औरत थी जो इतनी हद गदराई हुई थी .

“आह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ” चंपा ने अपनी छातियो को भींचते हुए आह भरी. मैंने अपने कपडे उतारे और अपने लंड को उसकी थूक से सनी चूत पर लगाते हुए धक्का मारा. सरला की आँखे गुलाबी डोरों के बोझ से बंद होने लगी. दो धक्के और मारे मैंने और पूरा लंड अन्दर सरका दिया. सरला ने अपने पैर उठा कर मेरी कमर पर लपेट दिए और चुदाई का मजा लेने लगी.

सरला को पेलने में मजा बहुत आ रहा था , सरला को चुदाई का ज्ञान बहुत था मैं महसूस कर रहा था . जिस तरीके से वो सम्भोग का लुत्फ़ उठा रही थी मैं कायल हो गया था उसकी कला का.

“आह छोटे ठाकुर , aaahhhhhhhhh ”सरला के होंठो से जब ये आह फूटी तो मेरा ध्यान चुदाई से हट गया क्या मैंने ठीक ठीक सुना था . विचारो में बस एक पल ही खोया था की सरला ने अपने होंठ मेरे होंठो से जोड़ दिए और झड़ने लगी. उसने मुझे ऐसे कस लिया की मैं भी खुदको रोक नहीं पाया और उसके कामरस में मेरा वीर्य मिलने लगा.

चुदाई के बाद वो उठी और बाहर चली गयी मैं लेटे लेटे सोचने लगा उस आह के बारे में .

बाहर से आते ही वो एक बार फिर मुझसे लिपट गयी और मैंने रजाई हम दोनों के ऊपर डाल ली. सरला का हाथ मेरे लंड पर पहुँच गया . उस से खेलने लगी वो . मैंने उसे टेढ़ा किया और उसके मजबूत नितम्बो को सहलाने लगा.

मैं- बहुत जबरदस्त गांड है तेरी

सरला- तुम भी कम नहीं हो

मैं- ये ठीक नहीं हुआ

सरला- ये मेरी इच्छा थी कुंवर. जब से तुम को मूतते देखा मैंने मैं तभी से इसे अपने अन्दर लेना चाहती थी

मैं- पर इस रिश्ते का अंजाम क्या होगा

सरला- ये तो निभाने वाले की नियत पर निर्भर करता है .दोनों तरफ से वफा रहेगी तो चलता रहेगा वर्ना डोर टूट जाएगी.

“सो तो है ” मैंने सरला की गांड के छेद को सहलाते हुए कहा

मैं उस से पूछना चाहता था पर मेरे तने हुए लंड ने गुस्ताखी कर दी और एक बार फिर मैं सरला के साथ चुदाई के सागर में गोते लगाने लगा.

सुबह जब मैं उसके घर से निकला तो मुझे पक्का यकीन था की रमा-कविता की चुदाई में तीसरी हिस्सेदार सरला थी ...... रमा के पति का मरना फिर सरला के पति का मरना कोई तो गहरी बात जरुर थी ......................
भाभी को तो अभी तक समझ नही पाए हैं आज भी भाभी रात को कबीर को ही देख रही है आज जो कबीर और सरला के बीच हुआ उसमे जो पहल हुई उसको देखते हुए लगता है सरला बहुत ही चालाक है और वह कबीर को बहुत बड़ी मुसीबत में भी डाल सकती है लगता है उसका इन सब के पीछे कुछ तो प्रोयोजन हैं
 

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#75

फिर मेरी आँख खुली तो मैंने देखा की आसमान बादलो से भरा था . हवाए जोरो से चल रही थी. एक रात में मौसम का अचानक बदलना ठीक नहीं था फिर ख्याल आया की मेरी तो फसल वैसे ही बर्बाद हो गयी थी इस बारी. बाहर आकर मैंने नज़ारे का आनंद लिया. काली घटाओ से आसमान गुलजार था . लगता था की बस अब बारिश पड़ी. दिन को जैसे रात ने घेर लिया था .

“क्या देख रहे हो ” भाभी ने मेरी तरफ चाय का प्याला बढाते हुए कहा.

मैं- ऐसा लगता है की जैसे वो मुझसे मिलने आ रही हो. ये हवाए कह रही है की आज मुलाकात होगी .

मैंने भाभी को छेड़ा

भाभी- तुम्हे बर्बाद होना है तुम होकर रहोगे.

मैं- वो मेरी नियति देख लेगी. फ़िलहाल तो मुझे इस नजारे को देखना है

भाभी- कल रात कहा गए थे तुम

मैं- उसी के पास . मेरी हर रात अब उसके साथ ही गुजरेगी

भाभी- तुम तो नादान हो कम से कम उसे तो समझना चाहिए

मैं- नादाँ तो कभी आप भी रही होंगे . आपने अपनी मोहब्बत के लिए सब कुछ सहा और फिर मैं तो आपकी परवरिश हूँ मैं न जाने क्या कर जाऊंगा वैसे भी दीवानों को कहाँ ये बाते समझ आती है आप तो जानती है न

भाभी- जानती हूँ इसलिए तो कह रही हूँ. बारूद के ढेर पर बैठ कर चिनगारियो को हवा नहीं देते.

मैं- जानती होती तो कहती देवर उसे ले आ इस घर की छोटी बहु बना कर

भाभी- जो हो नहीं पायेगा उसका ख्याल भी क्या करना.

मैं -जाने दो फिर. मुझे जीने दो मेरे ख्यालो में जब तक उसका साथ है इस खूबसूरत दौर को जी भर कर जीना चाहता हूँ मैं .

भाभी- पर मैं तुझे मरते हुए नहीं देख पाउंगी

मैं- नियति का लिखा कौन बदल सकता है

भाभी ने गुस्से से देखा और पैर पटकते हुए चल पड़ी. नासाज मौसम की वजह से मैंने नहाने का विचार किया ही नहीं और खाना खाने के बाद फिर से उसी कमरे में पहुँच गया . पर निराशा ही हाथ लगी भैया ने वो तस्वीर हटा दी थी वहां से. कुछ तो जरुर था उस तस्वीर में . वो तस्वीर भैया के अतीत को जानने की चाबी लगी मुझे.



साइकिल उठाई और मैं निकल गया खेतो की तरफ. ऐसे गदराये मौसम में घुमने का अपना ही सुख था. घूमते घूमते मैं मोड़ पर पहुंचा जहा से एक रास्ता कुवे पर दूजा जंगल की तरफ जाता था . मन किया की रमा से मिल लिया जाये आधी दुरी तय की थी की मैंने कच्ची सडक के बीचो बिच एक गाड़ी खड़ी देखि , जिसके दरवाजे खुले हुए थे. ऐसे कौन खुली गाड़ी छोड़ कर जायेगा. मैंने साइकिल खड़ी की और गाड़ी को देखने लगा.



“कुछ नहीं मिलेगा तुम्हे चुराने को ” आवाज की तरफ मैंने पलट कर देखा . थोड़ी दुरी पर एक औरत थी जो हाथो में किताब लिए हुए थी. चेहरे पर झूलती लटे. आँखों पर चश्मा बहुत ही खूबसूरत थी वो .

मैं- चोर समझा है क्या .

औरत- दुसरो के सामान की बिना परमिशन कौन जांच करता है फिर.

उसकी भाषा से मैं समझ गया की ये शहरी मेंम है . क्या यही रुडा की बेटी है मैंने खुद से सवाल किया .

वो- ऐसे क्या देख रहे हो .

मैं- आप रुडा की बेटी है न

मैंने पक्का करने के लिए सवाल किया .

उसने किताब निचे रखी और बोली- बदकिस्मती से.

मैं- बड़ी शिद्दत से मैं आपसे मिलना चाहता था .

उसने मुझे ऊपर से निचे तक देखा और बोली- मुझसे पर क्यों मैं तो तुमको जानती भी नहीं.

मैं- अभिमानु ठाकुर को तो जानती हो उनका छोटा भाई हूँ मैं

उसने फिर से देखा मुझे और बोली- क्यों मिलना चाहते थे मुझसे

मैं- बस ये पूछना था की भैया और आप एक दुसरे से प्यार करते थे क्या .

उसने अपना चस्मा उतारा और बोली- पहले मुझे बताओ की तुम प्यार को कैसे समझते हो .

मैं- नहीं जानता

वो- तो फिर प्रश्न मत पूछो

मैं- मेरी दुविधा ही ऐसी है . मैं अतीत को तलाश रहा हूँ क्योंकि मेरा वर्तमान उलझ रहा है उसकी वजह से .

वो- मैं अभिमानु से कभी प्यार नहीं करती थी . पर जब तुम इस सवाल तक पहुँच गए हो तो यकीनन बहुत कुछ मालूम कर ही लिया होगा.

मैं- आप से मदद की बड़ी उम्मीद है मुझे.

वो- मैं बरसों पहले घर छोड़ चुकी हूँ , कभी कभी जब मन नहीं मानता तो यहाँ आ जाती हूँ . यही इसी जंगल में सकूं की तलाश में

मैं- इस जंगल में सकून उसी को मिलता है जिसकी कोई कहानी रही हो यहाँ से .

वो- तो तुम्हे क्या लगता है मैं अनजानी हूँ यहाँ से . अरे बचपन बीता है हमारा यहाँ.

मैं- तो फिर बताओ इस जंगल में क्या छिपा है

वो- जिन्दगी छिपी है यहाँ , दोस्ती छिपी है दुश्मनी छिपी है . जिद छुपी है .अरमान छुपे है , हताशा छुपी है दिल मिले है दर्द मिला है .

मैं- सूरजभान को क्या तलाश है इस जंगल में

वो- सच की तलाश उस सच की जो यही कहीं छुपा है

मैं- कैसा सच

वो- वही सच जिसके लिए तुम भटक रहे हो . वो ही सच की कौन है वो आदमखोर .

वो उठ कर मेरे पास आई और अपने गले से एक चांदी की चेन उतार कर मेरे हाथ दे देते हुए बोली- मेरी तरफ से एक छोटा सा तोहफा. जाने का समय हो गया हम फिर कभी नहीं मिलेंगे.

वो दो चार कदम आगे बढ़ी थी की मैंने उसे आवाज दी- आप प्यार करती है न भैया से .

वो मुड कर मेरे पास आई और बोली- अभिमानु भाई है मेरा , राखी बांधती हूँ मैं उसे. मैंने तुमसे पहले ही कहा था की ये तुम पर निर्भर है की तुम प्यार को कैसे समझते हो.

मैं- आपने घर क्यों छोड़ा

वो- मेरे बाप को मेरी गुस्ताखी पसंद नहीं आई. मैं आसमान देखना चाहती थी वो मेरे पांव बांधना चाहता था . अभिमानु न होता तो मैं अपनी जिन्दगी जी नहीं पाती.

मैं- बस एक सवाल और , भैया ने एक तस्वीर छुपाई हुई है जिसमे तीन लोग है

वो- त्रिदेव, तीन दोस्तों की कहानी ढूंढो . फिर किसी से कोई सवाल नहीं करना पड़ेगा.

जाते जाते उसने मुझे गले लगाया और बोली- मेरे भाई पर कभी शक मत करना
आज मौसम सुहाना है और कबीर को निशा की याद आ रही है इसलिए वो भाभी से निशा का जिक्र करता है भैया ने उस तस्वीर को हटाकर ये सोचने पर मजबूर कर दिया है की तस्वीर में बहुत बड़ा राज छिपा हुआ है जो एक ऐसी कड़ी जोड़ सकती है जो कबीर को बहुत कुछ जानने में मदद कर सके कबीर रूड़ा की बेटी से मुलाकात करना चाहता है और आज मुलाकात हो जाती हैं लेकिन रूड़ा की बेटी एक पहेली खड़ी कर जाती है की अभिमानु उसका भाई है साथ ही त्रिदेव के बारे में बता कर एक नई उलझन में डाल दिया है त्रिदेव यानी कि तीन दोस्त जिसमे से एक तो अभिमानु हैं और दो का हमे भी नही पता शायद सुरजभान हो और तीसरा मर गया है जिसको मारने वाले की सूरजभान और भैया को जंगल में तलाश है ये पता नही है रूड़ा की बेटी रूड़ा और सुरजभान से अलग है ऐसी अतीत में क्या वजह रही है की रूड़ा और सुरजभान का ऐशा व्यवहार हो गया है और वे दुश्मन बन गए जंगल में खजाने की सब बात कर रहे हैं लगता है खजाने की वारिश निशा हो इसलिए उसने खजाने के दर्शन कबीर को करवाए हैं पूरी कहानी जंगल में सुरु और जंगल में ही खत्म होगी और कबीर के कई प्रश्नो के उतर भी जंगल में ही मिलेंगे
 
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brego4

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ruda ki beti ke through viewers ko new information mili hai jab ki kabir was already aware after seeing photo in abhimanu room that there were three people in that frame

new chrachters bahut tezi se aaye jab ki old kahin kho gaye, nisha is main heroine she has side role par jab hath thamegi kabir ko to bawaal hoga lekin us bawal ko justify karne ke liye inki love story side by side regular honi chahiye aur new sudden characters me nisha kahin kho si gayi

Ab tak nisha se zyadaa role to chachi, champa aur bhabi ka raha hai
 
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Suraj13796

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पर निशा ने तो कहा था की वो भी आदमखोर को ढूंढ रही है क्योंकि ये जंगल घर है उसका
फिर वो आदमखोर को कैसे जानती होगी

क्या निशा भी झूठ बोल रही थी,
इस पूरी कहानी में बस एक निशा ही है जिसके ऊपर कबीर आंख मूंद कर भरोसा कर सकता है,


निशा कबीर से शायद झूठ ना बोली हो पर इतना भी पक्का है की उसने पूरा सच अभी तक कबीर को नही बताया है

रूढ़ा की बेटी ने कबीर वो लॉकेट किस लिया दिया, कबीर को सच जानने में मदद मिलेगी इसलिए या कबीर ही उस खजाने का वारिस है इसलिए

और रूढ़ा की बेटी के पास ये है मतलब उसे कुछ तो पता ही होगा इस मंदिर और खजाने के बारे में, अगर उसे पता है तो त्रिदेव अभिमानु को भी पता होगा
 
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Suraj13796

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अब इस कहानी को सुलझाने की शुरवात परकाश से होगी,
इतना तो समझ आ ही गया की वो राज जरूर बता देगा पैसे के लोभ से ना सही मरने के डर से जरूर बताएगा

लेकिन मुझे लगता नहीं कि रहस्यों का ये वाला धागा त्रिदेव पर जाकर खुलेगा,
ये धागा में राय साहब, चंपा और चाचा की गुत्थी तक लेकर जायेगा


त्रिदेव वाले रहस्य को भाभी या निशा के through सुलझाना होगा क्योंकि अभिमानु के side से तो कोई support नहीं मिलेगा

और ये दोनो राज खजाने पर जाकर मिलेंगे
आदमखोर और खजाना एक दूसरे से किसी न किसी तरह जरूर connect होंगे

अगले अपडेट का इंतजार रहेगा की उस रूम से कुछ मिला की नहीं, कुछ तो ऐसा जरूर मिलेगा जो त्रिदेव की जानकारी देगा तभी रूढ़ा की बेटी ने त्रिदेव की कहानी ढूंढने को कहा था


जल्दी से अपडेट दे दो please
 
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Studxyz

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उस पिक्चर में तीन लोग और उस लॉकेट वाले निशान का रूद्र की बेटी के पास मिलना और वही निशान निशा के अड्डे पर इसका मतलब निशा भी राज़दार तो है लेकिन किस हद तक ये कहना मुश्किल है

कबीर का दिमाग टूब लाइट की तरह धीरे धीरे से चलता है खजाने का भी गहरा लिंक है निशा से भी और उस तस्वीर से भी
 

Studxyz

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ruda ki beti ke through viewers ko new information mili hai jab ki kabir was already aware after seeing photo in abhimanu room that there were three people in that frame

new chrachters bahut tezi se aaye jab ki old kahin kho gaye, nisha is main heroine she has side role par jab hath thamegi kabir ko to bawaal hoga lekin us bawal ko justify karne ke liye inki love story side by side regular honi chahiye aur new sudden characters me nisha kahin kho si gayi

Ab tak nisha se zyadaa role to chachi, champa aur bhabi ka raha hai

कहानी का शीर्षक तेरे प्यार में है लेकिन कुछ अपडेट से सस्पैंस प्यार पर हावी है
 
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