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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Arre prabhu jo link mere comment mein hai uspar click karo.
सेम टू सेम रिस्पॉन्स आ रहा है
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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आपका साथ मिलता गया ये गरीब लिखता गया
सबका साथ

सबका विश्वास

फौजी भाई की लेखनी पर।
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Divine
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इस कहानी के बाद यदि मैंने फिर कभी कुछ लिखा तो मेरा वादा है जरूर बताऊँगा
Is forum ke bahar bhi ek zindagi hai jo yaha se jaada jaruri hai fir bhi hum kahege ho sake to thoda time nikal ke aa jaana..
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#70

रात को मेरी आँख खुली तो देखा की निशा का सियार मुझसे लिपटा हुआ था

“तू कब आया ” मैंने उसे थपथपाते हुए कहा . उसने अपने पंजे मेरे सीने पर रखे और मेरी गर्दन चाटने लगा.

मैं- निशा है क्या वहां

उसने फिर से अपनी जीभ से गर्दन को चाटा.

मैं- चले क्या फिर.

वो चारपाई से कूदा और आगे चलने लगा.

मैं- दो मिनट रुक . मैं कमरे में गया और कम्बल ओढ़ लिया कमरा बंद करने के बाद मैं उसके साथ साथ खंडहर की तरफ चल पड़ा. ठिठोली करते हुए हम खंडहर पर पहुँच गए. मैंने देखा सब कुछ अँधेरे में डूबा हुआ था .

“बड़ी देर की सरकार आने में ” ये निशा की आवाज थी .

मैं- कहाँ है तू जाना

निशा- तेरे पास ही तो हूँ

अचानक से वो मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी.

मैं- इतना अँधेरा क्यों आज

निशा- अँधेरा ही भाग है मेरा .

उसने मेरा हाथ पकड़ा और हम अन्दर एक दिवार के पास जाकर बैठ गए.

निशा- बड़ी याद आ रही थी तेरी.

मैं- तो आ जाती

निशा- तुझे बुला तो लिया

मैं- अगर तू कहे तो मैं यही रह जाऊ तेरे पास मेरी जान. मैं एक बार फिर कहता हूँ इस ठिकाने को हम अपना छोटा सा आशियाना बना लेंगे.

निशा-मुमकिन होता तेरा होना तो फिर ये खंडहर ही क्या मैं तेरे घर न रह जाती.

मैं- तू जहाँ है वो ही मेरा घर है. वैसे मेरी छोटी सी इच्छा है कभी किसी रात तेरे हाथ की रोटी खानी है .

निशा- माँगा भी तो क्या माँगा रे सनम तूने

मैं- रहने दे तू, इतना ही देने वाली है तो फिर अपना दिल क्यों नहीं दे देती मुझे.

निशा ने मेरा हाथ अपने सीने पर रखा और बोली- पूछ इन धडकनों से ये देंगी जवाब तुझे.

मैं- फिर तेरे होंठो क्यों लरजते है ये कबूल करने में

निशा- क्योंकि मैं तेरी नहीं हो सकती

मैं- झूठी है तू , तू भी जानती है तू मेरी हो चुकी. बस चंपा का ब्याह हो जाये फिर तेरी एक नहीं सुनने वाला. जब तक भी रहे ये डाकन मेरी ही रहेगी.

निशा- क्या बताया चंपा ने तुझे

मैं- बोली उसकी मर्जी आयेगी वो करेगी

निशा- सही तो कहती है वो. तू ध्यान मत दे उसपे

मैं- भाभी ने बताया की उसका और भैया का प्यार भी इसी जंगल में जवान हुआ था .

निशा- कितनी ही कहानिया छिपी है यहाँ

मैं- पर भाभी कहती है की तुझसे ब्याह नहीं होने देगी मेरा

निशा- सही तो कहती है वो.

मैं- क्या सही कहती है

निशा- वो जानती है उस हद को जो तेरे मेरे बिच की दिवार है

मैं- ऐसी कोई दिवार नहीं जिस को मोहब्बत तोड़ न सके.

निशा- छोड़ इन बातो को . तुझे कुछ ऐसा दिखाती हूँ जो अनोखा है

मैं-इस अँधेरी रात में तुझसे अनोखा भला क्या है

निशा- आ तो सही .

निशा के पीछे पीछे मैं पानी के तालाब तक आ गया .

निशा- झेल लेगा न बर्फीले पानी की ठण्ड को

मैं- तू साथ है तो झेल ही लेंगे.

निशा- आजा फिर.

आहिस्ता से निशा पानी में उतर गयी और तालाब के बीचो बीच पहुँच गयी . मैंने पानी में पैर डाला और अन्दर तक जम गया मैं .

निशा- खुद को इसके हवाले कर दे बस

मैंने निशा का कहा माना पर दिसम्बर की ठिठुरती रात में जमे हुए पानी में जाना कोई ज्यादा बढ़िया हरकत नहीं थी . पर मुझे विश्वास था उस पर. निशा ने गोता लगाया निचे की तरफ मैंने उसका अनुसरण किया. जैसे जैसे निचे जाते गए मेरे फेफड़ो पर दबाव बढ़ता गया . धड़कने जमने लगी . और जब लगा की अब बस की बात नहीं रही , निशा ने मेरा हाथ थाम लिया और मुझे कुछ देखने को कहा. अँधेरी रात की गहराई में मैंने कुछ चमकता सा देखा और जब निशा मुझे उसके और पास ले गयी तो जैसे मेरा सब कुछ जम गया. इस तालाब की तलहटी में वो चीज पड़ी थी जिसका किसी को भी भान हो जाता तो गजब हो जाता.



तालाब की तलहटी में सोना पड़ा था . इतना सोना की कोई सोच भी नहीं सकता. निशा ने कुछ मेरे हाथ में थमा दिया और मुझे ऊपर खेंचने लगी. फेफड़ो को ताजा हवा मिली तो करार आया. बदन को ठण्ड का अहसास जैसे मर ही गया था तालाब के बीचो बीच मैं अपने हाथ में लिए उस ईंट को देख रहा था जो खालिस सोने की बनी थी . निशा तालाब की मुंडेर पर बैठ गयी मैं तैरते हुए उसके पास गया . बदन बुरी तरह से कांप रहा था समझ नहीं आया की वो ठण्ड से कांप रहा था या फिर सोने के ढेर की वजह से.

वापिस आते ही मैंने कम्बल ओढ़ लिया और बैठ गया.

निशा- मेरी तरफ से तोहफा है तेरे लिए.

मैने उसे अपने कम्बल में लिया और बोला- नियति ने तुझसे मिलवाया तुझे मेरी जिन्दगी में भेजा सबसे बड़ा तोहफा तू है मेरे लिए. तेरे बाद मुझे कोई चाह नहीं . मेरी आजमाइश मत कर मेरी जाना, मेरी आजमाइश उस दिन होगी जब तेरा हाथ थामुंगा तुझे दुल्हन बनाने के लिए. ये जो भी है उसे वहीँ रहने दे . मेरा कोई हक़ नहीं इस पर.

निशा- ये मैं दे रही हूँ तुझे

मैंने उसे अपने आगोश में लिया और उसके गालो को चूमते हुए बोला- कहा न तुझसे इस मोह की जरुरत नहीं मुझे

मैंने उसे अपनी बाँहों में जकड लिया और आँखे बंद कर ली.

निशा- डरती हूँ कहीं टूट कर बिखर न जाऊ मैं

मैं- तुझे थामने के लिए हु मैं

निशा- इसलिए तो बिखरना नहीं चाहती मैं

मैं- मेरा हक़ है तुझ पर

निशा- मानती हूँ

मैं- तू एक बार फिर भाभी से मिल ले . क्या पता वो समझ जाए

निशा- उसकी जरुरत नहीं कबीर. तेरी जिद अगर यूँ ही रही तो किसी दिन वो जरुर आएगी.

मैं- पर मेरे प्यार को क्यों नहीं समझती वो

निशा- समझती है इसलिए ही नहीं मानती वो .

ये भीगी हुई रात हमारे जलते जज्बातों की गवाह थी रात के तीसरे पहर में उसे वहीँ छोड़ कर मैं वापिस कुवे पर आ गया . सुबह आँख खुली तो दिन चढ़ आया था सबसे पहले मेरी नजर सरला पर पड़ी जो खेतो पर थी .

मैं- मंगू नहीं आया क्या भाभी

सरला- अभिमानु जी के साथ कहीं गया है वो .

मैं- भैया आये थे क्या यहाँ

सरला- जी

मैं- मुझे क्यों नहीं जगाया

सरला- उन्होंने कहा की सोने दो कुवर को .

मैं- भाभी, थोड़ी चाय बना दो जरा

मैं जंगल की तरफ चला गया . कुछ देर बाद आया तो चाय की महक से सब महक रहा था .

मैंने उसे भी पीने को कहा और उस से बाते शुरू की .

मैं- भाभी मुझे रमा के बारे में जानना है सब कुछ जानना है .

सरला- रमा शुरू से ही गाँव के बाहर की तरफ रहती थी कुंवर . उसका कम ही आना जाना था गाँव में . काम भी होता तो बस बनिए की दूकान तक पर उसकी एक सहेली थी जिसके साथ वो बहुत समय बिताती थी .

मैं- कौन भाभी

सरला - कविता .

कविता रमा की सहेली थी ये सुनते ही मेरा दिमाग घूम गया .

सरला- रोहताश और रमा का पति दोनों हम उम्र थे साथ ही खेती करते थे खूब आना जाना था दोनों का फिर एक रात अचानक से रमा का आदमी मर गया उसके बाद रोहताश का आना जाना कम हो गया . रमा कुछ महीनो बाद मलिकपुर में बस गयी. बस इतना ही जानती हूँ .

मैं- रमा का पुराना घर कहा है भाभी

सरला- जोहड़ के पीछे जो पेड़ है उनको पार करते ही जो बंजर पड़ी है न वो उसकी ही जमीन थी . वहीँ पर उसका घर था .

मैं- कुछ तो जरुर था वर्ना अपनी जमीन छोड़ कर कोई कैसे जायेगा दूसरी जगह .

सरला- मैं नहीं जानती .

मैं- जो भी बाते हमारे बीच हुई है भाभी, किसी को भी मालूम न हो .

सरला ने हाँ में सर हिलाया . वो चाय का कप उठाने को झुकी तो उसका आंचल सरक गया . मेरी नजर उसकी भारी छातियो पर पड़ी.

“ठाकुरों को विरासत में मिली है अयाशी ” एक बार फिर ये शब्द मेरे कानो में गूंजने लगे. मैंने रमा के पुराने घर जाने का सोचा.

 

Riky007

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मैं- तू एक बार फिर भाभी से मिल ले . क्या पता वो समझ जाए

निशा- उसकी जरुरत नहीं कबीर. तेरी जिद अगर यूँ ही रही तो किसी दिन वो जरुर आएगी.

मैं- पर मेरे प्यार को क्यों नहीं समझती वो

निशा- समझती है इसलिए ही नहीं मानती वो



धीरे धीरे प्यार को बढ़ाना है..
हद से गुजर जाना है।
 

Studxyz

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वाह भाई निशा के आते ही कहानी में एक नयी ऊर्जा पैदा हो जाती है निशा संग बिताया समय कबीर को मानसिक तौर पर भी मज़बूत बना रहा है और सरला से उसने काफी जानकारी भी निकाल ली रमा का घर जोहर के पीछे है और वो कविता की दोस्त भी थी कुछ तो गहरा लफड़ा ज़रूर है

रमा की लड़की, और वो भैया के कमरे में तस्वीर व् रमा की कविता से दोस्ती कहानी को बहुत ही गहरी साज़िश की और ले जा रहे हैं
 
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