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भाभी- मैं अभिमानु के साथ नहीं रहूंगी तो फिर कौन रहेगा भला
मैं- कुछ समझा नहीं मैं
भाभी- क्योंकि मैं ही थी वो लड़की जिससे अभिमानु ने प्यार किया है .
भाभी की बात सुन कर मेरा मुह खुला का खुला ही रह गया. खेतो की पगडण्डी पर बैठ गयी भाभी और मुझे भी अपने साथ बिठा लिया .
भाभी- इस जंगल में तुम अकेले नहीं हो जो प्रेम कर रहे है तुमसे पहले भी कोई और है जो यहाँ प्यार कर चुके है . ये हवाए ये फिजाये ये घटाए . ये सर्द मौसम, वो गर्मियों की लू, वो बारिशो की रिमझिम हमने भी यही कहीं देखि थी प्यारे.
मैं- मैं नहीं मानता ये कैसे मुमकिन है .
भाभी- अच्छा जी. मुमकिन तो एक डाकन का दामन थामना भी नहीं है पर फिर भी तुम्हे उसकी लगन लगी है न.
मैं- कैसे. मेरा मतलब आप और भैया कैसे मिले .
भाभी- कहने को तो लम्बी कहानी है .
मैं- फिर भी मैं सुनना चाहता हूँ
एक पल को भाभी अतीत में खो सी गयी और अतीत यक़ीनन गजब रहा होगा क्योंकि भाभी के गाल थोड़े और गुलाबी हो गए थे.
भाभी- मुझे लगा था की तुम्हे मालूम हो जायेगा. खैर, ये उन दिनों की बात है जब हमारे दिल धडकने को बेताब थे और आशिकी के लिए आसमान था . तुम जानना चाहते हो न की वो क्या कारण था जिसके लिए मलिकपुर बार बार जाते थे अभिमानु, कुवर , वो कारण मैं थी . अभिमानु कभी नहीं चाहते की उनका अतीत कुरेदा जाये पर तुम्हारी रगों में भी वो ही जोश दौड़ रहा है .
मैं- आपका क्या रिश्ता है मलिकपुर से .
भाभी- चौधरी रुडा मेरा फूफा है .
मैंने अपना माथा पीट लिया . दिल किया की सर को दे मारू किसी दिवार पर .
मैं- मैं कैसे नहीं जानता इस बात को
भाभी- आ रही हूँ मुद्दे पर . तो कहानी शुरू होती है मलिकपुर के सरकारी स्कूल से. मैं अपनी बुआ के घर पर रहकर पढ़ती थी . अभिमानु भी पढने के लिए मलिकपुर आते थे .कभी बाजार में तो कभी रहो में हमारी मुलाकाते होने लगी. चढ़ती जवानी और जज्बातों का दौर था वो . न जाने किस घडी हम एक दुसरे को दिल बैठे. दिल मिले तो मुलाकातों के सिलसिले शुरू हुए. इसी जंगल में हम मिलने लगे. कभी मुलाकाते होती कभी खत लिखते.
पर इश्क ऐसा मर्ज था जो छुपाने से छुप नहीं पाता. फूफा और राय साहब में न जाने कब से बैर चला आ रहा था. अभिमानु समझते थे इस बात को हम घंटो सपने संजोते अपने सुनहरे भविष्य के . चर्चे होने लगे थे हमारे प्यार के और होते क्यों नहीं हम महक रहे थे प्यार हद से ज्यादा परवान चढ़ चूका था . अभिमानु मुझे मांजी से मिलवाना चाहते थे पर उनका ये अरमान दिल में ही रह गया. अचानक से हुए ह्रदयघात से मांजी चल बसी. अभिमानु टूट ही तो गए थे. घंटो वो बैठे रहते मेरे काँधे पर सर रख कर पर कहते कुछ नहीं.
मैं बस तड़प कर रह जाती थी .दूसरी तरफ फूफा को मालूम हो गया था तो मेरे लिए अलग ही मुसीबत शुरू हो गयी. ठाकुरों की लडकियों को आजादी नहीं होती दहलीज पार करने की और मैं तो आसमान में उड़ रही थी . बुआ बहुत नाराज थी वो भरोसे पर लायी थी मुझे जो मैंने तोड़ दिया था . पर इस से पहले की बात बिगडती , राय साहब मेरे घर पहुँच गए रिश्ता लेकर. कौन भला राय साहब का रिश्तेदार नहीं बनना चाहेगा मेरे पिता ने एक मिनट भी नहीं लगाई हाँ कहने में . जब फूफा को ये बात मालूम हुई तो उन्होंने मेरे माँ-बापू से रिश्ता तोड़ लिया .इस तरह मैं अभिमानु की दुल्हन बन कर इस घर में आ गयी .
मैं- जो औरत खुद के प्रेम के लिए दुनिया से लड़ गयी वो मेरी मोहब्बत का समर्थन नहीं कर रही अजीब है न
भाभी- तुम इस दुनिया में किसी भी लड़की पर हाथ रखो मैं उसे दुल्हन बना कर ले आउंगी . पर जिस आग से तुम खेल रहे हो उसमे तुम्हे झुलसना नहीं जलना है .
मैं- इश्क किया है कोई चोरी नहीं की. और फिर तुम्हारी ही परवरिश हूँ मैं . जब तुमने अपने इश्क को पा लिया तो सोचो मैं किस हद से गुजर जाऊंगा.
भाभी ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली- ये ही तो नहीं चाहती मैं. वो कभी नहीं हो पायेगी तुम्हारी. डाकन और तुम्हारा कोई मेल नहीं कबीर. हो सकता है की किसी घडी में तुम करीब आ गए. पर शायद वो भी जानती होगी की एक दिवार है तुम्हारे बीच जो हमेशा रहेगी.
मैं- मुझे बस उसकी हाँ का इंतज़ार है भाभी. जिस दिन वो कहेगी की वो मोहब्बत करती है मुझसे मैं ब्याह लाऊंगा उसे.
भाभी कुछ नहीं बोली उसने बस मेरे सर पर हाथ रख कर सहलाया और बोली- देर हो गयी चलना चाहिए अब.
मेरे मन में अजब उथल-पुथल मचा दी भाभी ने, जो औरत अपने प्यार के लिए ज़माने के आगे खड़ी हो गयी वो मेरी मोहब्बत को समझ नहीं पा रही थी ये बात गले से नहीं उतर रही थी. आज भाभी ने जो बताया उस से ये भी साबित होता था की मेरा बाप अपनी औलाद के लिए कुछ भी कर सकता था . जब उसे मालूम हुआ तो उसने बिना देर किये भैया के लिए भाभी का हाथ मांग लिया था.
तो अब ऐसा क्या हुआ था की वो चंपा को ही चोदने लगा था . बाप का चरित्र समझ नहीं आ रहा था और उलझ गए थे ख्यालात मेरे.
सबके जाने के बाद मैंने चारपाई बाहर बिछाई और लेट गया. ठण्ड बढ़ने लगी थी पर मैं अपने ख्यालो में खोया था .रमा के अनुसार भैया ने अचानक ही मलिकपुर जाना छोड़ दिया था उसका कारण यही रहा होगा की जिसके लिए जाते थे वो अब उनके पास थी .पर सूरजभान का सिस्टम समझ से बाहर था . हो सकता था की सूरजभान भाभी और भैया को मिलने में मदद करता हो जिसके लिए भैया उसे मानते थे. अब इसी सवाल की तलाश थी मुझे.