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वसीयत मे कुछ तो खास हैyah vasiyat hi Ji ka janjaal Banega Rai sahab aur surajbhan ke liye
वसीयत मे कुछ तो खास हैyah vasiyat hi Ji ka janjaal Banega Rai sahab aur surajbhan ke liye
अगला भाग पढ़कर ईन बातों पर विचार करना भाईरूड़ा की बेटी अभिमन्यु की प्रेमिका...
इसीलिए सूरजभान उसका फर्ज।
लेकिन वो बेटी रूड़ा के रहते आती नही, इसका मतलब कहीं काली मंदिर का राज तो नही....
एक बात और संभव हो सकती है कि रूड़ा की बेटी के पीछे कहीं राय साहब ही न पड़ गए हों जिसके कारण वो अलग रह रही हो।
ThanksBahut Khub hai story
सही कहा भाई, कोई ऐसी जगह जहां ये सब कांड हुए हैNice update, 5 saal baad ruda ki ladki wapas gaav aayi hai or thik 5 saal baad hi bhaiya us gaav me gaye hai ye sahaz nahi lagta hai hume or surajbhaan waali baat bhi unhone khul ke nahi bataya khair prakash ke ghar me kuch bhi nahi mila matlab koi or dusri jagah hai jaha wah kaagz chupa ke rakhta hai..
Thanks bhai for liking my workKya hi shandar update hai bhai .
Aapki writing ki koi jawab nahi .
Ab sayad bhaiya ki prem kahani pata chale .
Par mujhe pata nahi kyu Aisa lagta hai ki sayad surajbhan Rai sahab ki hi aulad na ho .
Par dekhte hai aage kya hota hai .
Dheere dheere kuch raaj kholiye Bhai .
Bahut sare secrets ho gaye hai sochte sochte
विचार करने लायक है ये बात ऐसा हुआ तो कहानी मे और मजा आ जाएगाब्याह ही ना लाए वो चम्पा को कहीं...
कबीर परकाश के घर जाता है लेकिन वहा भी उसे कुछ नहीं मिलता है लगता है दूसरी जगह छुपा रखा है लेकिन उसकी कमजोरी मिल जाती है कबीर को और अब वही कमजोरी चौथे कागज का राज उगलवाएगी#67
मैं- कैसा फर्ज भैया
भैया- बस इतना समझ ले छोटे , उसे भी थाम कर रखना है मुझे
मैं- ये मुमकिन नहीं हो पायेगा भैया . मैं हद नफरत करता हु उससे . एक दिन आयेगा जब या तो वो रहेगा या मैं
भैया- जब तक मैं हूँ वो दिन कभी नहीं आएगा.
भैया ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और अन्दर चले गए. मैंने देखा भाभी मुझे ही देख रही थी .तमाम चीजो के बीच सिर्फ यही राहत थी की फिलहाल के लिए उस आदमखोर के हमले रुके हुए थे. गाँव वालो को भी थोडा चैन था . कुछ तो भैया छिपा रहे थे मुझसे पर क्या. राय साहब और भैया दोनों में एक बात एक सी थी की दोनों के कोई दोस्त नहीं थे. और जब आदमी अकेला होता है तो उसके इतिहास को तलाशना और मुस्किल हो जाता है .
एक बार फिर मैं दोपहर को रमा के अड्डे पर था.
रमा- पर तुम प्रकाश से जानकारी कैसे निकल्वाओगे
मैं- तुम्हारी मदद से , तुम्हारे हुस्न पर फ़िदा है वो तुम उसे अगर उलझाये रखो तो मैं उसके घर से कागज तलाश लूँगा.
रमा- मैं उसे जायदा देर तक नहीं उलझा पाउंगी , क्योंकि मैं उसे बस रिझा सकती हूँ उसकी मनचाही नहीं करुँगी. दूसरी बात वो बहुत धूर्त है समझ जायेगा की तुम्हारे कहने पर मैं कर रही हूँ ये
मैं- तो क्या करे.
रमा- रात की जगह तुम ये काम दिन में करो . दिन में वो अदालत में रहता है या फिर तुम्हारे पिता के साथ
.
रमा की बात में दम था . और दस्तूर भी क्योंकि प्रकाश का घर आबादी से दूर मलिकपुर के पिछले हिस्से में था. मैंने रमा को साथ लिया और हम उसके घर में घुस गए. घर ज्यादा बड़ा नहीं था तीन कमरे थे और एक छोटी सी रसोई. एक कमरे में उसके कागज थे कचहरी के . मैंने वसीयत के कागज तलाशे पर कुछ नहीं मिला. पूरा कमरा देख लिया. दुसरे कमरे में बस बिस्तर पड़ा था . पर तीसरे कमरे में कुछ ऐसा था जिसने मेरे मन को और मजबूत किया की प्रकाश धूर्त ही नहीं गलीच भी था. कमरे में औरतो की कछिया पड़ी थी . फटे हुए ब्लाउज पड़े थे. मतलब की यहाँ पर वो औरतो को चोदने के लिए लाया करता था .
मैं- देख रही हो रमा क्या काण्ड हो रहे है ये
रमा- समझ रही हूँ .
मेरी नजर रमा की छातियो पर पड़ी जो जोर से ऊपर निचे हो रही थी . बेशक उसने शाल ओढा हुआ था पर फिर भी मैं उसकी गोलाइयो को महसूस कर पा रहा था . एक पल को लगा की उसने मेरी नजरे पकड़ ली है.
रमा- वो कागज महत्वपूर्ण है उन्हें खुले में तो नहीं रखेगा . किसी तिजोरी जैसी जगह में रखेगा.
मुझे जायज लगी उसकी बात. मैंने एक बार फिर से गहनता से तलाशी शुरू की पर हालात वैसे के वैसे थे.
मैं- घी जब सीधी ऊँगली से नहीं निकलता तो ऊँगली टेढ़ी करनी पड़ती है प्रकाश अब खुद कागज देगा मुझे .
हम लोग वापिस रमा के ठिकाने पर आ गए.
रमा- जबसे तुम इधर आने लगे हो सूरजभान और उसके साथी आते नहीं इधर
मैं- मेरी वजह से तुम्हारा धंधा कम हो गया .
रमा- वो बात नहीं है
मैं- क्या उन्होंने तुमसे कहा नहीं की क्यों बिठाती हो मुझे .
रमा- अभी तक तो नहीं .
मैं- और रुडा
रमा- रुडा ज्यादातर बाहर ही रहता है . उसमे पहले वाली बात नहीं रही . किसी ज़माने में उसका सिक्का चलता था पर अब उम्र भी तो हो गयी है .
मैं- और उसकी बेटी
रमा- वो बाहर पढ़ती थी बड़े शहर में पुरे पांच बरस बाद लौटी है . रुडा और उसकी कम ही बनती है .जब वो आती है तो रुडा घर नहीं रहता रुडा आये तो वो चली जाती है . इतने दिन बाद आई है तो कोई विशेष कारण ही होगा.
मैं- ब्याह नहीं किया रुडा ने उसका
रमा- सुना है की वो करना नहीं चाहती ब्याह.
“भैया ने भी पुरे पांच साल बाद मलिकपुर की धरती पर कदम रखा क्या सूरजभान की बहन ही वो वजह थी . वो भी पांच साल बाद लौटी है क्या अतीत में इनके बीच कुछ था ” मैंने खुद से ये सवाल किया. वापिस गाँव आने के बाद मैं कोचवान हरिया के घर गया .
“कैसी हो भाभी ” मैंने पूछा
भाभी- बस जी रहे है कुंवर
मैं- जीना तो है ही भाभी, अपने लिए न सही इन बच्चो के पालन के लिए हरिया की कमी तो जिन्दगी भर रहेगी उसकी जगह तो कोई भर नहीं सकता पर जीवन में आगे बढ़ना भी जरुरी है
भाभी- बात तो सही है पर मेरे लिए मुश्किल हो रहा है तीन बच्चो और बूढ़े सास-ससुर को संभालना , पहले बालको का बापू कमा कर लाता था तो घर चलता था .
मैं- तुम्हे किसी भी चीज से परेशां होने की जरुरत नहीं है भाभी . ये तो मेरी कमी हुई जो तुम्हारा ध्यान नहीं रख पाया . घर में ये हालात है और तुम एक बार भी मुझसे कह नहीं पाई. ये तो गलत है न भाभी,
भाभी- किस मुह से कहे कुंवर. हाथ फ़ैलाने के लिए भी कलेजा लगता है
मैं- ये कह कर तुमने मुझे बहुत छोटा कर दिया भाभी
मैंने जेब से पैसे निकाले और भाभी के हाथ में रख दिए.
भाभी- मैं कहाँ से चूका पाऊँगी
मैं- कोई जरूरत नहीं है भाभी और तुम्हे काम भी मिल जायेगा तुम हमारे खेतो पर काम करो . अपनी मेहनत से पैसा कमाओ .
भाभी ने मेरे आगे हाथ जोड़ दिए.
मैं- शर्मिंदा मत करो
वापसी में मैंने बनिए से कह दिया की हरिया कोचवान के घर छ महीने का राशन तुरंत पहुंचा दे. घर आकार मैंने खाना खाया और बिस्तर पकड़ लिया पर आँखों में दूर दूर तक नींद नहीं थी . कभी इधर करवट कभी उधर करवट दिल में बस एक ही सवाल था .
“क्या परेशानी है नींद नहीं आ रही जो ” चाची ने कहा
मैं- चाची क्या भैया किसी लड़की से प्रेम करते थे . ................
Chalo Abhimanyu ke bare kuch to new Mila hero ko... Nice update bro..#68
मैं- क्या भैया किसी लड़की से प्रेम करते थे .
चाची- जहाँ तक मैं अभिमानु को जानती हूँ नहीं , छोटी उम्र से ही वो व्यापार संभाल रहा है. उसे किताबो का शौक रहा है . सबसे आदर से बोलना सबका ख्याल रखना परिवार को हमेशा से पहली प्राथमिकता रखना बस यही जिन्दगी है उसकी.
मैं- जहाँ तक मुझे याद है मैंने भैया को कभी पढ़ते नहीं देखा
चाची- तूने उसे देखा ही कहाँ है
बात तो सही थी चाची की मोजुदा हालातो को देखतेहुए मैं समझ सकता था इस बात की गहराई को .
मैं- कितनी बार भैया के कमरे में गया हूँ मैंने वहां भी किताबो का ढेर नहीं देखा.
चाची- क्योंकि तू उस अभिमानु को जानता है जिसे तू आज देखता है . मैं उस अभिमानु की बात कर रही हूँ जिसे मैंने कल देखा था .
मैं- उसी अभिमानु को जानना चाहता हूँ मैं
चाची- उसने किसी से प्यार किया होगा ये मैं नहीं जानती पर अब इन बातो का कोई मतलब नहीं है कबीर, हमेशा ये याद रखना अब उसकी ग्रहस्थी ही उसका सबकुछ हो. मैं जानती हूँ आजकल तू किसी खुराफात में है पर इतना याद रहे तेरी वजह से किसी का घर न उजड़े.
मैं- और जो तेरा घर उजड़ा पड़ा है उसका क्या . चाचा के बिना तू कैसे जी रही है कोई नहीं समझता सिवाय तेरे खुद के. आदमी मर जाये तो औरत समझ जाती है , जीवन से समझौता कर लेती है पर चाचा ऐसे गया की लौटा नहीं . आज तक तू नहीं जानती वो कहाँ है जिन्दा है भी या नहीं . तेरी गृहस्थी का क्या . इसका कोई जवाब क्यों नहीं मिलता.
चाची ने एक गहरी साँस ली और बोली- तू समझता है न मेरा दुःख तो तू ले आ उसकी कोई खबर . राय साहब और अभिमानु ने दिन रात एक कर दिया था तेरे चाचा की तलाश में पर किस्मत में लिखे को नहीं टाल पाए. मेरे नसीब में जुदाई लिखी है तो ये ही सही .
मैं- कोरी बाते है ये .राय साहब की मर्जी के बिना पत्ता तक नहीं हिल सकता इस इलाके में और पिछले कुछ सालो से उनका भाई गायब है . क्या तुझे कभी हैरानी नहीं हुई इस बात की. मान ले कोई दुश्मन ने कुछ उल्टा-सीधा कर दिया चाचा के साथ तो भी क्या मेरे बाप को मालूम नहीं हुआ होगा. सोच कर देख, लाली और उसके प्रेमी को तलाशने में कितना ही वक्त लगा था फिर चाचा को क्यों नहीं तलाश कर पाया वो इन्सान.
चाची- तू मुझे जेठ जी के खिलाफ भड़का रहा है
मैं- मैं तुझे आइना दिखा रहा हूँ. इस घर की खामोश दीवारे चीखना चाहती है तू मेरी मदद कर जरा
चाची-रसोई की बगल में जो पेंटिंग लगी है उसके पीछे दरवाजा है . उस कमरे में देख ले तुझे कुछ मिले तो .
मैं- इस घर में ऐसा भी कोई कमरा है मुझे आज तक नहीं पता .
चाची- अभिमानु का कमरा था वो किसी ज़माने में .
मैंने चाची के होंठो को चूम लिया और लालटेन लेकर उस तरफ चल दिया. हमेशा की तरह दरवाजा खुला पड़ा था . सारा घर सन्नाटे में डूबा था . मैंने उस बड़ी सी पेंटिंग को हटाया . दरवाजा मेरे सामने था . कोई ताला नहीं लगा था सिवाय एक कुण्डी के जो जंग खाई थी . देखने से ही मालूम होता था की बरसों से इसे छुआ नहीं गया. चुर्र्रर्र्र की आवाज करते हुए दरवाजा खुला और मैं अन्दर गया. कमरे की हालत ठीक नहीं थी . चारो तरफ जाले लगे थे . सीलन थी मैंने मुह पर कपडा बाँधा और थोड़े जाले हटाये. सामने एक बड़ी सी मेज थी . कुछ कुर्सिया थी .
लालटेन की लौ थोड़ी और ऊंची की . कमरे में शेल्फ ही शेल्फ थी जिनमे किताबे सलीके से लगाई गयी थी. मैंने धुल साफ़ की . तरह तरह की किताबे थी.टेबल पर कोरे कागज पड़े थे.
“अभिमानु ठाकुर , क्या छिपाया है तुमने अपने अतीत में ” मैंने कहा .
कोने में एक अलमारी थी मैंने उसे खोला , जिसमे कुछ कागज रखे थे. मैंने उन्हें देखा , वो कागज नहीं थे वो खत थे.
“हो सकता है के बहार आये पर सरसों पीली न हो .
हो सकता है की बारिश आये पर धरती गीली न हो
पर ये नहीं हो सकता मेरी जान की तेरी याद आये और ये आँखे गीली न हो ” मन ही मन मैंने शायरी की दाद दी.
कागज पर धुल थी वक्त की मार ने उसे पुराना कर दिया था पर उस पर लिखे शब्द आज भी उतने ही कारगर थे जितना किसी ज़माने में रहे होंगे. कुछ और पन्ने थे जिन पर बस शायरिया ही लिखी थी . किस तरह के खत थे ये जिनमे केवल शायरियो के माध्यम से ही बाते हो रही थी. मेरा भाई गजब था ये मैंने उस रात जाना था.
तमाम बाते ये तो पुख्ता कर रही थी की भैया की जिदंगी में कोई लड़की थी , पर क्या वो रुडा की बेटी थी अब ये मालूम करने की बात थी. लड़की थी तो कोई तस्वीर भी रही होगी उसकी जरुर. मैंने सब कुछ देख मारा हर एक किताब का पन्ना पलटा की कही उनमे तो कुछ नहीं छिपाया गया. पर हाथ कुछ नहीं लगा. सुबह होने में थोड़ी ही देर थी और भाभी जल्दी जाग जाती थी मैंने कमरे से निकलने का सोचा दरवाजे के पास पहुंचा ही था की जालो में कैद मुझे कुछ दिखा इस हिस्से पर . मैंने कपडे से उसे साफ़ किया देखा की ये एक तस्वीर थी . ....
खेतो पर पहुंचा तो पाया की हरिया कोचवान की बीवी सरला पहले ही वहां आ चुकी थी . मैंने मंगू से कहा की अब से ये हमारे साथ ही काम करेगी उसे काम समझा दे और हर शाम उसे बिना किसी देरी के मजदूरी का भुगतान करे. कुवे की मुंडेर पर बैठे बैठे मैं बस उस तस्वीर के बारे में ही सोचता रहा . आखिर क्या खास बात थी उस तस्वीर में जो उसे दिवार पर जगह दी गयी थी .
चूँकि आज घर से खाना आया नहीं तो मैंने मंगू को घर भेज दिया खाना लाने के लिए और सरला को अपने पास बुलाया .
मैं- भाभी , मैं तुमसे दो चार बात पूछ सकता हूँ क्या
सरला- जी कुंवर जी
मैं- तुम गाँव में सबको जानती होगी
उसने हाँ में सर हिलाया
मैं- क्या तुम किसी रमा को जानती हो जो कुछ साल पहले अपने गाँव में रहती थी .
सरला- जानती हूँ
मैं- वो गाँव क्यों छोड़ गयी
सरला- उसके पति की मौत हो गयी थी .कोई सहारा नहीं था एक दिन मालूम हुआ की वो गाँव छोड़ गयी.
मैं- खेती करके वो अपना पेट पाल सकती थी फिर ऐसा क्या हुआ जो उसे गाँव छोड़ना पड़ा.
सरला- मैं नहीं जानती कुवर.
मैं- क्या मैं तुम पर पूर्ण विश्वास कर सकता हूँ
सरला- तुमने ऐसे समय पर मुझे और मेरे परिवार को थामा है जब हम टूट चुके थे. तुम्हारा अहसान है मुझ पर मैं हमेशा वैसा ही करुँगी जो तुम कहोगे.
मैं- बढ़िया .
हम बात कर ही रहे थे की तभी मैंने मंगू और भाभी को आते देखा . मंगू के जल्दी आने का मतलब ये ही था की भाभी उसे रस्ते में मिल गए. भाभी ने एक नजर सरला पर डाली और बोली- ये यहाँ क्या कर रही है
मैंने भाभी को बताया की इसे काम पर रखा है .
भाभी ने हम सबको खाना परोसा . खाने के बाद मैंने भाभी से साथ आने को कहा और हम टहलने चल दिए.
भाभी- क्या बात है
मैं- क्या आपके और भैया के बीच सब ठीक चल रहा है
भाभी चलते चलते रुक गयी और बोली- तुम्हे क्या लगता है
मैं- आप बताओ न
भाभी- सब ठीक है
मैं- क्या वो आपसे प्रेम करते है
भाभी- बेशुमार मोहब्बत , इतनी की कोई सोच न सके.
मैं- क्या आप जानती है की भैया ब्याह से पहले किसी लड़की के प्यार करते थे .
भाभी- जानती हूँ . बिलकुल जानती हूँ
मैं- ये जानते हुए भी आपको कोई शिकायत नहीं
भाभी- मुझे भला क्यों शिकायत होगी. अभिमानु जैसे पति किस्मत वाली को ही मिलते है .
मैं- हो सकता है की वो आज भी उसी को चाहते हो .
भाभी- वो आज भी उसी को चाहते है देवर जी.
भाभी की आंखो की चमक ने मेरे विश्वास को कमजोर कर दिया. क्या औरत है ये अपने पति की बुराई को भी हंस कर स्वीकार कर रही है .
मैं- फिर भी तुम उनके साथ हो क्यों...............