1.) कविता ही वो महिला थी जिसकी चूड़ियां कबीर को अपने बाप के सिरहाने मिली थीं और विशम्बर दयाल ही वो दूसरा शख्स था जिसके संग कविता सोती थी।
यहां गौर करने वाली बात ये है की विशम्बर दयाल को जंगल में देख चुका है कबीर, तो लगभग साफ हो गया है की कविता उस दिन उसी से मिलने जंगल में गई थी जब उस आदमखोर ने उसे चीर डाला। दूसरा, आदमखोर और विशम्बर दयाल का कोई संबंध अवश्य है, और इसकी पुष्टि निशा की बात भी करती है की उसने उन दोनों को जंगल में साथ देखा था। यानी कविता की मौत के पीछे कहीं न कहीं विशम्बर दयाल का ही हाथ है। क्या ज़्यादा पैसे मांग रही थी वो या फिर उस आदमी का राज़ खोलने की धमकी दे रही थी..?
2.) चम्पा के गर्भ में शायद विशम्बर दयाल का नहीं बल्कि अभिमानु का बच्चा था।
उस रात चम्पा अभिमानु से मिलने भी इसीलिए गई थी, दोनों में बात भी हुई होगी और लौटते समय चम्पा पर आदमखोर ने हमला कर दिया। संभव है की अभिमानु के ही कहने पर उसने चम्पा पर हमला किया हो। दूसरे दिन, जब कबीर ने चम्पा का बच्चा गिराने के लिए अभिमानु से पैसे मांगे तो उसने बिना सवाल किए दे दिए, अस्पताल में चम्पा और कबीर को साथ पाकर भाभी हैरान हुई पर अभिमानु को कोई खास फर्क नहीं पड़ा... लगता यही है की जिस पाप को विशम्बर दयाल के माथे मढ़ रही थी भाभी असल में वो उसके खुद के पति का है।
3.) भाभी और अभिमानु के संबंधों में भी दरार अवश्य है।
भाभी के शब्द की क्या कबीर जानता है अपने भाई के बारे में? संभव है की उसका इशारा चम्पा की ओर हो, दूसरी संभावना है की शायद अभिमानु ही आदमखोर है (दो में से एक)। परंतु प्रश्न ये है की भाभी ने विशम्बर दयाल पर झूठा आरोप लगाया तो क्यों? भले ही कविता के साथ संबंधों को बात लगभग साबित हो गई है परंतु फिर भी चम्पा और विशम्बर के बारे में भाभी का लगाया आरोप, मिथ्या ही लगता है। इसके अलावा कबीर का भाभी को नग्न देखना, भाग्य था या भाभी द्वारा जान – बूझकर मोदी गई भाग्य की रेखाएं..?
4.) परकाश का एक महत्वपूर्ण योगदान है इस सब चक्र – कुचक्र में।
सूरजभान और अभिमानु कहीं न कहीं एक – दूसरे से संबंधित है, ये लगभग निश्चित ही है। वसीयत के चौथे हिस्से में रूड़ा का नाम था या फिर सूरजभान का, असली सवाल तो ये है.. या फिर रूड़ा की लड़की का, जिसका ज़िक्र रमा ने किया..? अभिमानु का रोज़ या एक – दो दिन के अंतराल में मलिकपुर जाना, फिर पांच वर्ष तक बिलकुल ही मलिकपुर से मुंह मोड़ लेना, और अब जब सूरजभान को बचाने की बात आई, तो उसे अपने सगे भाई (सच में सगे भाई?) से भी ऊपर तरजीह देना... परकाश का रूड़ा से मिलना, और वो वसीयत का चौथा हिस्सा... दो बातें संभव हैं की या तो परकाश विशम्बर दयाल को ठग रहा है, रूड़ा के कहने पर, और दूसरा, विशम्बर दयाल अपनी मर्ज़ी से रूड़ा – सूरजभान पर सब लुटाना चाहता है।
इसके अतिरिक्त एक बात और लगभग पक्की हो गई है की शायद मंगू सत्य में कविता से जुड़ गया था। अर्थात, अपने आप को सत्य की देवी और पूजारन बताने वाली चम्पा ने एक और असत्य कहा था कबीर से। दूसरा, कबीर का शक मिथ्या नहीं है। भाभी, चाची, अभिमानु सभी ने एक ही बात कही की उन्हें जायदाद से कोई वास्ता नहीं... तो क्या लालसा है तीनों की? क्या चाहिए तीनों को। कहीं न कहीं ये भी लग रहा है की परदे के आगे अपने आपको एक – दूसरे के विरोध में दिखाने वाले ये सभी.. परदे के पीछे एक ही थाली के चट्टे – बट्टे हैं।
निशा के आगमन से कहानी में वो जान वापिस आ गई है, जिसकी कहानी को लालसा रहती है। निशा ने सही मार्गदर्शन किया है कबीर का, भले ही निशा सब कुछ जानती हो इस कुचक्र के बारे में, परंतु ये कबीर का ही कर्तव्य है की वो खुद के बल पर इस चक्रव्यूह को भेदे और उस नीच को सारे समाज के सामने लाए, जिसने सच्चे प्रेम को फांसी चढ़वा दिया और खुद हवस का खेल खेलने में लीन है। बहरहाल, कबीर भी अब तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और लगता है की कोई न कोई कड़ी तो जल्द ही उसके हाथ लगने वाली है।
दोनों ही भाग बहुत ही बढ़िया थे भाई। निश्चित तौर पर ये प्रेम कहानी, लंबे समय तक याद रखी जाएगी, उत्सुक हूं जानने के लिए की जब दो ऐसे जीव प्रेम करते हैं, जिनका कोई सरोकार नहीं, तब नियति उनके साथ क्या खेल खेलती है।
प्रतीक्षा अगली कड़ी की...