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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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1.) कविता ही वो महिला थी जिसकी चूड़ियां कबीर को अपने बाप के सिरहाने मिली थीं और विशम्बर दयाल ही वो दूसरा शख्स था जिसके संग कविता सोती थी।

यहां गौर करने वाली बात ये है की विशम्बर दयाल को जंगल में देख चुका है कबीर, तो लगभग साफ हो गया है की कविता उस दिन उसी से मिलने जंगल में गई थी जब उस आदमखोर ने उसे चीर डाला। दूसरा, आदमखोर और विशम्बर दयाल का कोई संबंध अवश्य है, और इसकी पुष्टि निशा की बात भी करती है की उसने उन दोनों को जंगल में साथ देखा था। यानी कविता की मौत के पीछे कहीं न कहीं विशम्बर दयाल का ही हाथ है। क्या ज़्यादा पैसे मांग रही थी वो या फिर उस आदमी का राज़ खोलने की धमकी दे रही थी..?

2.) चम्पा के गर्भ में शायद विशम्बर दयाल का नहीं बल्कि अभिमानु का बच्चा था।

उस रात चम्पा अभिमानु से मिलने भी इसीलिए गई थी, दोनों में बात भी हुई होगी और लौटते समय चम्पा पर आदमखोर ने हमला कर दिया। संभव है की अभिमानु के ही कहने पर उसने चम्पा पर हमला किया हो। दूसरे दिन, जब कबीर ने चम्पा का बच्चा गिराने के लिए अभिमानु से पैसे मांगे तो उसने बिना सवाल किए दे दिए, अस्पताल में चम्पा और कबीर को साथ पाकर भाभी हैरान हुई पर अभिमानु को कोई खास फर्क नहीं पड़ा... लगता यही है की जिस पाप को विशम्बर दयाल के माथे मढ़ रही थी भाभी असल में वो उसके खुद के पति का है।

3.) भाभी और अभिमानु के संबंधों में भी दरार अवश्य है।

भाभी के शब्द की क्या कबीर जानता है अपने भाई के बारे में? संभव है की उसका इशारा चम्पा की ओर हो, दूसरी संभावना है की शायद अभिमानु ही आदमखोर है (दो में से एक)। परंतु प्रश्न ये है की भाभी ने विशम्बर दयाल पर झूठा आरोप लगाया तो क्यों? भले ही कविता के साथ संबंधों को बात लगभग साबित हो गई है परंतु फिर भी चम्पा और विशम्बर के बारे में भाभी का लगाया आरोप, मिथ्या ही लगता है। इसके अलावा कबीर का भाभी को नग्न देखना, भाग्य था या भाभी द्वारा जान – बूझकर मोदी गई भाग्य की रेखाएं..?

4.) परकाश का एक महत्वपूर्ण योगदान है इस सब चक्र – कुचक्र में।

सूरजभान और अभिमानु कहीं न कहीं एक – दूसरे से संबंधित है, ये लगभग निश्चित ही है। वसीयत के चौथे हिस्से में रूड़ा का नाम था या फिर सूरजभान का, असली सवाल तो ये है.. या फिर रूड़ा की लड़की का, जिसका ज़िक्र रमा ने किया..? अभिमानु का रोज़ या एक – दो दिन के अंतराल में मलिकपुर जाना, फिर पांच वर्ष तक बिलकुल ही मलिकपुर से मुंह मोड़ लेना, और अब जब सूरजभान को बचाने की बात आई, तो उसे अपने सगे भाई (सच में सगे भाई?) से भी ऊपर तरजीह देना... परकाश का रूड़ा से मिलना, और वो वसीयत का चौथा हिस्सा... दो बातें संभव हैं की या तो परकाश विशम्बर दयाल को ठग रहा है, रूड़ा के कहने पर, और दूसरा, विशम्बर दयाल अपनी मर्ज़ी से रूड़ा – सूरजभान पर सब लुटाना चाहता है।

इसके अतिरिक्त एक बात और लगभग पक्की हो गई है की शायद मंगू सत्य में कविता से जुड़ गया था। अर्थात, अपने आप को सत्य की देवी और पूजारन बताने वाली चम्पा ने एक और असत्य कहा था कबीर से। दूसरा, कबीर का शक मिथ्या नहीं है। भाभी, चाची, अभिमानु सभी ने एक ही बात कही की उन्हें जायदाद से कोई वास्ता नहीं... तो क्या लालसा है तीनों की? क्या चाहिए तीनों को। कहीं न कहीं ये भी लग रहा है की परदे के आगे अपने आपको एक – दूसरे के विरोध में दिखाने वाले ये सभी.. परदे के पीछे एक ही थाली के चट्टे – बट्टे हैं।

निशा के आगमन से कहानी में वो जान वापिस आ गई है, जिसकी कहानी को लालसा रहती है। निशा ने सही मार्गदर्शन किया है कबीर का, भले ही निशा सब कुछ जानती हो इस कुचक्र के बारे में, परंतु ये कबीर का ही कर्तव्य है की वो खुद के बल पर इस चक्रव्यूह को भेदे और उस नीच को सारे समाज के सामने लाए, जिसने सच्चे प्रेम को फांसी चढ़वा दिया और खुद हवस का खेल खेलने में लीन है। बहरहाल, कबीर भी अब तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और लगता है की कोई न कोई कड़ी तो जल्द ही उसके हाथ लगने वाली है।

दोनों ही भाग बहुत ही बढ़िया थे भाई। निश्चित तौर पर ये प्रेम कहानी, लंबे समय तक याद रखी जाएगी, उत्सुक हूं जानने के लिए की जब दो ऐसे जीव प्रेम करते हैं, जिनका कोई सरोकार नहीं, तब नियति उनके साथ क्या खेल खेलती है।

प्रतीक्षा अगली कड़ी की...
चम्पा और अभिमन्यु का अवैध सम्बंध होगा ऐसा लगता नहीं मुझे. आप एक महत्तवपूर्ण बात को भूल गए चम्पा पर हमला कारीगर ने किया था. बाकी राय सहाब के कारनामे खुल रहे है देखना है कि लिस्ट कितनी लंबी होगी
 

Ajju Landwalia

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#65

सुबह जब मैं जागा तो निशा जा चुकी थी . बाहर आकर देखा की भाभी, चंपा और मंगू तीनो ही खेतो पर थे. मैंने एक नजर उन पर डाली और जंगल में चला गया. वापिस आते ही चंपा ने मुझे चाय का गिलास पकडाया . मेरी नजर भाभी पर पड़ी जो हमें ही देख रही थी . मैं उनके पास गया .

मैं- इतनी सुबह आप खेतो पर

भाभी- कभी कभी मुझे भी घर से बाहर निकलना चाहिए न .

मैं- सही किया जो आप आ गयी मैं आ ही रहा था आपसे मिलने

भाभी- मुझसे क्या काम

मैं- वसीयत के चौथे टुकड़े के बारे में बात करनी थी

भाभी - मैं नहीं जानती उसके बारे में

मैं- पर मुझे जानना है . चाची, भैया और मैं हमसे अजीज और कौन है पिताजी के लिए . क्या चंपा का नाम है उस चौथे हिस्से में

भाभी- वो इतनी भी महत्वपूर्ण नहीं है .

मैं- तो बता भी दो मुझे

भाभी- मुझे जरा भी दिलचस्पी नहीं है जायदाद में कबीर .

मैं- इतना भी प्रेम नहीं बरस रहा इस परिवार में की ना आप हिस्सा चाहती है न भैया और न चाची. आप सब को इस जमीन में दिलचस्पी नहीं है तो क्या चाहते है आप लोग क्या ख्वाहिश है आप सब की

भाभी- परकाश नाम है उसके पुरखे मुनिमाई करते थे राय साहब के यहाँ उसने वकालत का पेशा चुना . राय साहब और तुम्हारे भैया के सारे क़ानूनी मामले वही संभालता है. वो ही बता सकता है क्या था उस हिस्से में .

मैं- क्या भैया को मालूम है उस चौथे हिस्से के बारे में

भाभी- क्या तुम जानते हो तुम्हारे भैया को

भाभी- परकाश से मिलो . खैर , क्या अब भी उस डाकन से मिलते हो तुम

मैं- मिलना क्या है पूरी रात साथ ही सो रहे थे हम

मैंने भाभी से कहा और वापिस मुड गया. मैंने देखा नहीं भाभी के चेहरे पर क्या भाव थे .मैंने मंगू को देखा जो खाली खेतो को देख रहा था .

मैं- कहाँ गया था तू भैया के साथ

मंगू- टेक्टर लेने , भैया का कहना है की जमाना बदल रहा है हल की जगह खेती में टेक्टर का उपयोग करना चाहिए . पैसे भर आये है जल्दी ही आ जायेगा.

मैं- भैया वो जो नई जमीन के बारे में कह रहे थे वो जमीन देखने कब जायेंगे

मंगू- मुझे नहीं पता

मैं- मंगू बुरा मत मानियो पर मुझे लगता है की कविता का तेरे आलावा किसी और से भी चक्कर चल रहा था .

मंगू ने अजीब नजरो से देखा मुझे

मंगू- वो चालू औरत नहीं थी

मैं- क्या कभी उसने तुझे कुछ बताया

मंगू- हम ज्यादा बाते नहीं करते थे बस मिलते चुदाई करते और अलग हो जाते.

मुझे लगा की चंपा सच कहती थी की कविता बस इस्तेमाल कर रही थी मंगू का . कविता के बारे में कुछ तलाशना था तो उसके घर से ही शुरुआत करनी थी . मैंने पता लगाया की वैध किसी दुसरे में गाँव में गया हुआ है मैं चुपके से उसके घर में घुस गया. एक तरफ दुनिया भर की शीशिया थी जिनमे दवाइया और उन्हें बनाने का सामान था . मैंने कविता के कमरे में तलाशी शुरू की . दीवारों में बने खाने औरत के कपड़ो से भरे थे .

कमरा वैसे तो कुछ खास नहीं था एक पलंग था . पास में एक मेज थी जिस पर औरतो का कुछ सामान लाली-पोडर पड़ा था. मेज की दराज खोली तो उसमे तरह तरह की कच्छी पड़ी थी . रेशमी, जालीदार और भी कई तरह की . मैंने उनको हाथ में लेकर अच्छे से देखा. गाँव में मनिहारिन तो ऐसी नहीं बेच सकती थी मैं दावे से कह सकता था . मुझे कुछ जेवर मिले . गाँव की एक आम औरत जिसकी आर्थिक स्तिथि इतनी अच्छी भी नहीं थी की वो इतने जेवर बनवा ले इस बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया.



मैंने कमरे को और अच्छे से खंगाला. मुझे एक छोटा बक्सा मिला जिसमे सौ-सौ के नोटों की गद्दिया थी. मेरा तो दिमाग ही घूम गया . एक वैध की बहु के पास इतना पैसा कहाँ से आया. किसने दिया. इतनी रात में जब आदमखोर का आतंक मचा हुआ है कविता जंगल में जाती है , जाहिर है उसे कुछ तो ऐसी प्रचंड लालसा रही होगी या फिर कोई गहरी मज़बूरी सिर्फ इन्ही दो सूरतो में वो जा सकती थी . कुछ तो कुकर्म कर रही थी वो .मंगू के आलावा कौन पेल रहा था उसे. कविता के जेवरो को वापिस रख ही रहा था की मेरी नजर आईने के पास पड़ी डिबिया पर पड़ी.

उत्सुकता वश मैंने उसे खोला . उसमे कांच की चुडिया थी . ऐसा लगा की मैंने इनको पहले देखा हो पर याद नहीं आ रहा था मैंने थोडा जोर दिया और जब याद आया तो ऐसा याद आया की सर्द मौसम में भी मैं अपने माथे पर आये पसीने को नहीं रोक सका. मैंने अपनी जेब से टूटी चूड़ियां निकाली और मिलान किया . मामला शीशे की तरह साफ़ था . ये चुडिया, ये पैसे और ये महंगे जेवर चीख चीख कर कह रहे थे की ये सब राय साहब की ही मेहरबानी थी . राय साहब ही वो दुसरे शक्श थे जो कविता को चोदते थे.



गरीबो का मसीहा, सबके लिए पूजनीय राय साहब का ऐसा चेहरा भी हो सकता था कोई विश्वास नहीं करे अगर मैं किसी से कहूँ तो पर सच शायद ये ही था. पर यहाँ एक सवाल और मेरे सामने आ खड़ा हुआ था की वसीयत का चौथा हिस्सा कविता का नहीं हो सकता क्योंकि कविता तो मर चुकी थी . वो शायद बस दिल बहलाने के लिए ही हो . निशा ने कहा था हवस , अयाशी खून में दौड़ती है . अब मुझे ये सच लग रहा था कितनी आसानी से मैंने चाची को चोद दिया था . कितनी ही मचल रही थी चंपा मुझसे चुदने के लिए.

वैध के घर से आने के बाद मैं चौपाल के चबूतरे पर बैठे सोच रहा था की राय साहब को रंगे हाथ चुदाई करते हुए पकड़ने के लिए मुझे एक ठोस योजना बनानी पड़ेगी जिसके लिए मुझे दो लोग तलाशने थे एक जो राय साहब का बिलकुल खास हो और जो उनके खिलाफ हो. खैर सुबह मुझे प्रकाश से मिलना ही था . कुछ सोच कर मैं रमा के ठेके की तरफ चल दिया. वहां पहुन्चा तो पाया की काफी लोग दारू पी रहे थे पर सूरजभान या उसका कोई साथी नहीं था.

मैंने रमा को देखा उसने मुझे इशारा किया और हम ठेके के पीछे बने कमरे में आ गए.

रमा- कैसे है कुंवर जी

मैंने रमा की भरपूर खिली हुई चुचियो पर नजर डाली और बोला - बढ़िया तुम बताओ

रमा- वो मुनीम का छोरा प्रकाश बहुत चक्कर लगा रहा है मलिकपुर के रुडा से खूब मिल रहा है

मैं- वकील है न जाने कितने लोगो का काम देखता होगा.

रमा-बड़ा धूर्त है वो .

मैं- क्या प्रयोजन हो सकता है उसका

रमा-रुडा की लड़की सहर से पढ़ कर आई है . मुझे लगता है की उसी के चक्कर में जाता होगा .

मैं- जान प्यारी नहीं क्या उसे . परकाश को क्या नहीं मालूम की ठाकुरों की बहन-बेटियों पर बुरी नजर डालने का क्या अंजाम होगा.

रमा- बहन-बेटी तो सबकी समान होवे है कुंवर जी, कोई माने या ना माने वैसे भी हर औरत निचे से एक जैसी ही होती है .

बातो बातो में रमा ने मुझे बताया की पहले वो मेरे गाँव में ही रहती थी फिर उसके पति की मौत हो गयी तो वो मलिकपुर आ गयी यहाँ भी तक़दीर ने उसे दुःख ही दिए.

हम बात कर ही रहे थे की बाहर से कुछ चीखने चिल्लाने की आवाजे आने लगी तो हम ठेके की तरफ गए और वहां जो मैंने देखा ...................


Shandar update Fauzi Bhai,

Ray Sahab ke karname to ek ke baad ek khulte hi ja rahe he, na jane kitni lambi list he............

Kabir ab kuch kuch sahi disha me ja raha he, isme Rama uski kaafi madad bhi kar rahi he.....

Lekin pareshaniya uska saath shayad hi chhode, ab theke ke bahar ye naya scene ho gaya he.......

Keep posting Bhai
 

brego4

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Rai sahab ke raaz khul rahe hain aur list mein kavita bhi shamil ho gay may be bhabhi aur champa bhi isi list mein ho

parkash ek new intriguing character aa gya aur 4th will isis ko maloom hai ki kis ki hai

Rma bhi interesting role min hai ye kabir ki bahut help kar sakti hai
 
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HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#66

मैंने देखा वकील परकाश एक गाँव वाले के साथ उलझा हुआ था. उसका गिरेबान पकड़ा हुआ था .

रमा- रोज का तमाशा है ये इधर कोई न कोई किसी न किसी से उलझा रहता है

पर मेरे दिमाग में कुछ और चल रहा था .

मैं- रसूखदार लोगो को शोभा नहीं देता ऐसे राह चलते हुए ये ओछी हरकते करते हुए .

प्रकाश ने मुझे देखा और बोला- कुंवर साहब आप यहाँ

मैं- हमें तो आना ही था , यहाँ के नशे की बड़ी तारीफ सुनी थी .

प्रकाश ने एक नजर रमा पर डाली और बोला- नशा तो मशहूर है यहाँ का

मैंने रमा से हमारे लिए दारू लाने को कहा और हम थोडा दूर बैठ गए.

मैं- और वकील साहब वसीयत का काम कहाँ तक पहुंचा

वकील - बड़ी जल्दी है आपको हिस्सा लेने की

मैं- हमारे दो ही शौक है जमीने और जिस्म . जितने मिले उतने थोड़े

वकील-ये बात तो है , वैसे पसंद उम्दा है आपकी

वकील ने रमा को देखते हुए कहा



मैं- हमें आपकी हसरतो का भान भी है वकील साहब , आपकी ये इच्छा हम पूरी कर सकते है पर वो कहते हैं न हर चीज की एक कीमत होती है

वकील- और वो कीमत क्या है

मैं- बहुत छोटी कीमत. बस आपको बताना होगा की वसीयत के चौथे कागज में क्या लिखा है .

मेरी बात सुनकर वकील का नशा एक पल में ही उड़ गया वो आँखे फाड़े मुझे देखने लगा.

मैं- मेरे लिए काम करो मुह्मांगे पैसे और नए जिस्म जब तुम चाहो

वकील- कुंवर साहब, वसीयत के सिर्फ तीन हिस्से है आप जितना जल्दी इस बात को समझ ले बेहतर होगा.

मैं- देखो परकाश, जीवन जो हैं न बड़ा अनिश्चित है न जाने कब क्या हो जाये आज हम यहाँ बैठे है कल हम हो न हो. तो क्या ही फायदा इन सब चीजो का तुम हमारे पारिवारिक वकील हो तुम्हारा फर्ज है हमें हर वो जानकारी देना जिसकी हमें जरूरत है .

वकील- आप मुझे धमका रहे है

मैं- तुम्हे ऐसा लगता है तो ये ही सही पर जो जानकारी हमें चाहिए वो हम लेकर रहेंगे चाहे उसके लिए हमें तुम्हारी खाल ही क्यों न उधेद्नी पड़े.

मैंने अपना गिलास होंठो से लगाया.

वकील- ये बात राय साहब को मालूम होगी तो आप मुशकिल में आ जायेंगे

मैं- ये बात राय साहब को मालूम हुई तो तुम मुश्किल में आ जाओगे. आखिर ऐसी क्या वजह थी जो वसीयत के कागज लेकर तुम जंगल में गए थे राय साहब से मिलने.

प्रकाश के माथे पर पसीना उभर आया. उसने एक ही साँस में अपना गिलास खाली कर दिया और बोला- मेरा यकीन कीजिये

मैं- यकीन है बस तुम बता दो की उस चौथे टुकड़े में क्या लिखा था .

वकील- ऐसा कोई कागज नहीं था .

प्रकाश उठ खड़ा हुआ और जाने लगा.

“सुना है की रुडा की बेटी पर नजर है तुम्हारी ” मैंने थोडा जोर से कहा .

प्रकाश के कदम रुक गए वो एक पल पीछे मुड़ा और फिर तेज कदमो से वहां से नो दो ग्यारह हो गया. जितना मैंने समझा था उस से ज्यादा घाघ था ये . अगले दिन मैं जब मैं घर पहुंचा तो देखा की चंपा रसोई में थी . मैंने उसे छत पर आने को कहा . थोड़ी देर में वो मेरे सामने थी .

मैं- कहाँ ले गए थे तुझे राय साहब

चंपा- कहीं नहीं

मैं- बता भी दे वैसे भी अब छिपाने को कुछ नहीं है

चंपा- क्या सुनना चाहता है तू

मैं- जो तू छिपा रही है .

चंपा- मैंने तुझसे कुछ नहीं छिपाया

मैं- झूठी है तूने झूठ बोला की मंगू ने पेला तुझे जबकि तू किसी और के साथ सो रही है .

चंपा-मैंने पहले भी कहा था तुझे अब भी कहती हूँ मंगू करता है मेरे साथ

मैं- क्या वो बच्चा मंगू का था

चंपा- क्या फर्क पड़ता है अब

मैं- फर्क पड़ता है क्योंकि मेरी दोस्त मेरे बाप का बिस्तर गर्म कर रही है . मुझे दुःख होता है इस बात का

चंपा - देख कबीर तुझे जो सोचना है सोच, जो मानना है मान पर मैं नहीं चाहती की मेरी वजह से बाप-बेटो में तकरार हो .

मैं- सिर्फ इतना जानना है की कौन सी मज़बूरी में तू ये सब कर रही है

चंपा- कोई मज़बूरी नहीं है

मैं- कल तुझे चोदने ले गया था न मेरा बाप

चंपा- कल की क्या बात अब कल तो बीत गया आने वाला कल देख अब

मैं- दिल तो करता है तेरी ऐसी हालत कर दू की तो सौ बार सोचे. अरे तुझे क्या समझा था मैंने और तू इतना गिर गयी

चंपा- मैं अकेली नहीं हूँ जो गिरी हुई है ये दुनिया ही मादरचोद है कबीर.

मैं- ऐसी कैसी आग लगी थी तुझे जो दो दो लोग भी ठंडी नहीं कर पाए तुझे .

चंपा- तुझे जो कहना है कह ले.

मैं- तुझसे तो मैं क्या ही कहूँ , पर एक दिन आएगा जब राय साहब को उसी चौपाल पर नंगा करूँगा जहा न्याय की कसमे खाई जाती है .

निचे से भाभी ने चंपा को आवाज दी तो वो चली गयी . छत से गाँव के नज़ारे को देखते हुए मैं सोचने लगा कोई तो मजबूत सिरा मिले मुझे. दिल किया की राय साहब के कमरे की फिर से तलाशी ली जाये पर मेरा बाप ये मौका फिर नहीं देगा मुझे मैं जानता था .

मैंने भैया की गाड़ी आते देखा तो मैं निचे चला गया .

“कैसा है छोटे ” उतरते ही भैया ने पूछा मुझसे

मैं- नाराज हूँ

ये सुनकर भैया के कदम ठिठक गए .

भैया- फिर कभी ऐसा मत कहना मेरे भाई, तू नाराज होगा तो मेरा क्या होगा.

मैं- मेरे बारे में सोचते ही नहीं आप

भैया- तेरे बारे में नहीं सोचता मैं जानता है तू क्या कह रहा है

मैं- मेरे बारे में सोचते तो मेरे दुश्मन को सहारा नहीं दे रहे होते आप जिस दिन आपसे दूर चला जाऊंगा न उस दिन याद बहुत आएगी मेरी.



मेरी बात सुनकर भैया ने मुझे अपने सीने से लगा लिया. उनकी आँखों में आंसू भर आये- दुबारा तेरी जुबान पर ये शब्द नहीं आने चाहिए . तूने सोच भी कैसे लिया की तू मुझसे दूर चला जायेगा. तू मेरी दुनिया है छोटे

मैं- तो फिर मेरा भाई क्यों मेरे दुश्मन के साथ है

भैया- तू मेरा जिगर है छोटे और वो मेरा फर्ज........................






 

brego4

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super dramatic updates

naya suspense ye hai ki champa ki kya compulsion hai ya fir wo sach mein giri hui ladki hai aur usne kisi ki aur ishara kiya ki duniya hi aisi hai ?

baap ko nanga kane wali convicing nahi hai agar beta kitna bhi ethical ho baap to baap hi hota hai and kabir must know he belongs to thakur family n not al members of his family are expected to be noble like him
 

Naik

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#63

क्या पिताजी निशा से मिलने आये थे या फिर वो किसी तरह से जानते है निशा को मैंने खुद से सवाल किया और फिर खुद ही नकार दिया क्योंकि चारो दिशाओ में से कोई न कोई कहीं न कहीं तो जायेगी ही . अंजुली भर कर मैंने तालाब के पानी से अपने गले को तर किया और सीढिया चढ़ते हुए खंडहर में घुस गया. कुछ भी ऐसा नहीं था जो बताये की किसी और की आमद हुई हो वहां पर . फिर भी मैंने इस खंडहर को तलाशने का सोचा .

ऐसा कुछ भी नहीं था जो इस जगह को खास बनाये सिवाय निशा की मोजुदगी के. इक तरफ से ऊपर आती सीढिया जो घूम पर पीछे उस पगडण्डी पर जाती थी. मंदिर की गुम्बद नुमा छत और दो पायो के बीच तीन कमरे जैसे बरामदे. एक तरफ बड़ी दीवारे थी दूजी तरफ कुछ नहीं .राय साहब जैसा सक्श बिना किसी बात के जंगल में क्यों जायेगा इतनी रात को . ये बात पच नहीं रही थी मुझे.

निशा जब साथ होती थी तो ये जगह किसी जन्नत से कम नहीं लगती थी पर अभी यहाँ पर घोर सन्नाटा पसरा हुआ था . खैर, भूख भी लगी थी तो मैं वापिस कुवे पर चला गया . देखा चंपा घास खोद रही थी मैंने उसे अपने पास बुलाया

मैं- कुछ है क्या खाने को

चंपा- नहीं मालूम होता की तू यहाँ है तो ले आती खाना

मैं- कोई बात नहीं

मैंने चारपाई बाहर निकाली और लेट गया .चंपा थोड़ी दूर बैठ गयी मूढे पर

मैं- आज मजदुर नहीं आये क्या .

चंपा- पता नहीं क्यों नहीं आये

मैं- मंगू भी नहीं दिख रहा

चंपा- वो शहर गया है अभिमानु के साथ

मैं-किसलिए

चंपा- ये तो नहीं मालूम

मैंने एक नजर चंपा की फूली हुई चुचियो पर डाली और बोला- तू बता कैसा चल रहा है तेरा

चंपा- बस ठीक ही हूँ

मैं-तू आजकल घर नहीं आती

चंपा- तूने ही तो कहा था थोड़े दिन न आऊ

मैं- मेरा मतलब था की बच्चा गिराने की वजह से कमजोरी लगेगी तो आराम करना पर इतना भी आराम नहीं करना तुझे. वैसे मुझे मालूम है की मंगू ने नहीं चोदा तुझे. तू झूठ बोली मेरे से

चंपा- मैं तुझसे कभी झूठ नहीं बोलती

मैं- मंगू ने खुद कहा मुझसे

चंपा- कल को तू मुझे चोद रहा होता तो क्या तू ये बात कबूल कर लेता

मैं- मैं नहीं मानता तेरी बात क्योंकि मंगू किसी और से प्यार करता था .

चंपा- चूत मरवाई को प्यार नहीं कहते कबीर. उस रांड कविता के लिए मंगू एक खिलौना था बस जिस से वो खेल रही थी .

मैं- मंगू हद से जायदा मोहब्बत करता था उस से

चंपा- मुफ्त की चूत बड़ी प्यारी लगती है कबीर. मंगू को चूत चाहिए था कविता को लंड खुमारी प्यार लगेगी ही .

मैं- तू बहुत बड़ा आरोप लगा रही है

चंपा- मैं बस सच कह रही हूँ

मैं चंपा को देखता रहा .

चंपा- अब तू मुझे बता चुदाई के लिए आदमी किसी सुरक्षित स्थान की तलाश करेगा की नहीं

मैं- बिलकुल

चंपा- कविता ज्यादातर अकेली रहती थी वैध कभी होता कभी नहीं . तो जब घर पर गांड मरवा सकती थी वो तो जंगल में क्या माँ चुदाने गयी थी .

मैंने चंपा के हसीं चेहरे को देखा. लडकिया गाली बकते समय और भी प्यारी लगती थी. अफ़सोस इस बात का था की मेरे पास कोई जवाब नहीं था .

चंपा- मुझे पूर्ण विश्वास है की उसका कोई और यार था जिससे चुदने वो जंगल में गयी थी और तभी उस पर हमला हुआ

मैं- क्या ऐसा नहीं हो सकता की किसी ने उस पर हमला किया जान बूझ कर जंगल में बुलाया ताकि शक उस आदमखोर पर जाये

चंपा- हो सकता है

मेरे मन में था की सीधे चंपा से पुछू की राय साहब ने कैसे चोदा उसे पर मैं पूछने से कतरा रहा था .

मैं- तुझे क्या लगता है की वो दूसरा कौन होगा जिस से कविता चुदती होगी . वैध जी की गैर मोजुदगी में कोई तो आता होगा उसके घर .

चंपा- ये अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है क्योंकि कोई भी बीमारी का बहाना करके जा सकता था उनके घर

कविता चालू औरत थी चंपा की इस बात को पुख्ता कविता की वो हरकत कर रही थी जब उसने मेरा लंड चूसने की हरकत की थी.

मैं- मुझे भी लेनी है तेरी

चंपा ने मेरी बात बहुत गौर से सुनी और बोली- जानता है मैं हमेशा से चाहती थी तेरे साथ ये सब करना पर मैं तुझे तुझसे ज्यादा जानती हूँ तू ये कह रहा है क्योंकि तू मेरे मन की थाह लेना चाहता है .ऐसे कितने लम्हे आये गए जब हम एक हो सकते थे पर तू न जाने किस मिटटी का बना है और मुझे अभिमान है इस बात का की नियति ने मुझे तुझ जैसा दोस्त दिया है जो ये जानते हुए भी की मैं गलत हु मेरे साथ है .

मैं- फिर भी मुझे लेनी है

चंपा उठी और सलवार का नाडा खोल दिया मेरे सामने सलवार उसके पैरो में गिर गयी.

“ले फिर कर ले तेरी मनचाही ” उसने कहा

मैं- अभी नहीं जब मेरा मन करेगा तब

चंपा- ये खेल मत खेल मेरे साथ तू जो जानना चाहता है कह तो सही मुझे

मैं- मुझे लगता है की चाची और राय साहब के बीच चुदाई होती है

मेरी बात सुनकर चंपा की आँखे बाहर ही आ गयी.

चंपा- असंभव है ये . चाची कदापि ऐसा नहीं करेगी

मैं- चाची नहीं करेगी राय साहब तो कर सकते है न और दोनों के पास वजह भी तो है दोनों अकेलेपन से जूझ रहे है और फिर घर में ही जब सुख मिल सकता है तो क्या रोकेगा उनको.

चंपा - चाची बहुत नेक औरत है

मैं-नेक तो तू भी है पर अपने ही भाई का बिस्तर गर्म करती है जब तू कर सकती है तो राय साहब अपने भाई की बीवी को क्यों नहीं चोद सकते.

मैंने अपना पासा द्रढ़ता से फेंका.

चंपा-मानती हूँ चाची प्यासी है कितनी ही बार मैंने उसकी चूत का पानी निकाला है पर फिर भी मैं कहूँगी की तेरी कही बात कोई कल्पना है

मैं- मैं सच कह रहा हूँ , मैंने राय साहब के कमरे में किसी को देखा था .

मेरी बात सुनकर चंपा के माथे पर बल पड़ गये.

मैं- राय साहब अकेले है उनको भी तो इस चीज की जरुरत है और जब घर में ही चूत मिले तो उसके मजे ही मजे तू तो समझती ही हैं न

चंपा इस से पहले की मेरी बात का जवाब देती . पगडण्डी से आते मैंने राय साहब को देखा .

पिताजी ने एक नजर हम दोनों पर डाली और फिर चंपा से बोले- हमने तुमसे कहा था की तुम्हे कही चलना है हमारे साथ . हम गाड़ी में इंतजार कर रहे है तुम्हारा इतना कह कर पिताजी वापिस मुड गए. मैंने चंपा के चेहरे पर एक अजीब कशमकश देखि.
Bahot ghuma fira ke kuch bate nikalna chahi lekin champa se kuch nikal nahi paye kabir sahab
Ab dekhte rai sahab kaha leker jaa rehe h or kia kabhi peecha karega champa ka
Badhiya shaandaar update bhai
 
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