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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

andyking302

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#49

चंपा- कौन था ये और तुझे कैसे जानता है

मैं- लम्बी कहानी है तू सुन नहीं पायेगी मैं बता नहीं पाउँगा

चंपा- तेरे सामने उसने मुझे पकड़ा तेरा खून नहीं खौला इतना निर्मोही हो गया तू

मैं- खून तो मेरा उस दिन से खौल रहा है . खून तो मेरा तब से उबल रहा है जब से मुझे मालूम हुआ की तेरे पेट में बच्चा है . ये तेरी खुशकिस्मती है जो मैं शांत हूँ, रही बात उस सूरजभान की तो मैं जानता हु मैं क्या कर सकता हूँ इसलिए खुद को रोका है .एक बार बेकाबू हुआ था आज तक पछतावा है मुझे. मेरे मन में बहुत सवाल है चंपा इतने की मैं पूछता रहूँगा तू जवाब देते देते थक जाएगी. फ़िलहाल मेरी इच्छा है की किसी तरह तेरा ब्याह हो जाये और तू यहाँ से राजी ख़ुशी निकल जाये मैं नहीं चाहता की एक और लाली की लाश पेड़ पर टंगी मिले.



चंपा फिर कुछ नहीं बोली. तनहा दिल लिए हम दोनों वापिस घर आये. मैंने उस से चाय बनाने को कहा और हाथ मुह धोनेचला गया . चबूतरे पर बैठ कर मैं चुसकिया ले रहा था की भैया आ गए.

मैं- आपसे मिलने की ही सोच रहा था मैं .

भैया- हाँ छोटे बता क्या कहना था .

मैं- मुझे कुछ पैसे चाहिए थे .

भैया ने दस दस के नोटों की गद्दी निकाली और मुझे दे दी .

मैं- पचास वाली की जरूरत है भाई

भैया ने एक बार मेरी तरफ देखा और बोले- हाँ क्यों नहीं

भैया ने बड़े नोटों की गद्दी मुझे दी.

मैं- एक बात पूछनी थी

भैया- पहेलियाँ क्यों बुझा रहा है जो मन में है सीधा कह न

मैं- सूरजभान से माफ़ी मांगने की क्या जरुरत आन पड़ी थी आपको . आप जानते है की मेरा भाई मेरा गुरुर है और मेरी वजह से मेरे भाई को झुकना पड़े ये बर्दाश्त नहीं होगा मुझे

भैया- तू भी न छोटी छोटी बातो को दिल से लगा लेता है . हम व्यापारी आदमी है . हमें अपना रसूख देखना है हम लोग समय आने पर लोगो को झुकाते है . एक बार बात आई गयी करने के हमें भविष्य में फायदे मिलेंगे.

भैया झूठ बोल रहे थे मैं एक पल में जान गया था . मेरा भाई , मेरा बाप जिनके आगे दुनिया झुकती थी वो किसी के आगे हाथ जोड़ दे. मामला कुछ और ही था . पर मैं भैया के आगे कुछ नहीं बोला.

मैं- भैया , वो चंपा की तबियत कुछ ठीक नहीं है आप की आज्ञा हो तो मैं उसे शहर के डॉक्टर को दिखा लाऊ

भैया- ये कोई पूछने की बात है . जायेगा तो तेरा कन्धा भी दिखा आना

मैंने हाँ में सर हिलाया . तभी भाभी ने भैया को आवाज दी तो वो चले गए .

मेरा दिल कर रहा था की मैं मंगू से पुछु पर चाह कर भी हिम्मत नहीं कर पाया. अँधेरा घिरने लगा था मैंने शाल ओढा और अलाव जला कर बैठ गया . सामने बहुत सी समस्या थी सूरजभान ने मेरी फासले डुबाने को नहर तोड़ दी. मेरे साथ और भी गाँव वालो का नुकसान हुआ था . मैंने सोचा की इस मामले को पांच गाँवो की महापंचायत में उठाऊ पर सूरजभान धूर्त था वो साला साफ़ मुकर जाता और मेरे पास सबूत नहीं था .

जमीनों की रखवाली के लिए मजदुर लगा नहीं सकता था क्योंकि उस हमलावर के खौफ से कोई तैयार नहीं था जान सबको प्यारी थी. आज से चांदनी राते शुरू हो रही थी जितने भी हमले हुए थे इन चांदनी रातो में हुए थे . क्या ये सिलसिला फिर से शुरू होगा ये सोच कर मेरी झुरझुरी छूट गयी .



“खाने में क्या बनाऊ कबीर ” चंपा ने मुझसे पूछा तो मेरी तन्द्रा टूटी.

मैं- भूख नहीं है

चंपा मेरे पास बैठी और बोली- जानती हु तू मेरी वजह से परेशां है .

मैं- तेरी वजह से क्यों परेशां होने लगा मैं. मुझे और भी बहुत समस्या है .

चंपा- तेरा हक़ बनता है मुझसे नाराज होने का .

मैं- मेरे हक़ की बात करती है तू . मेरा हक़ था तेरी दोस्ती का मैं अपनी दोस्ती निभा रहा हूँ. मरते दम तक निभाऊंगा .



सर में दर्द हो रहा था तो मैं बिस्तर में घुस गया . न जाने कितनी देर बाद मेरी आँख खुली . कमरे में घुप्प अँधेरा था . प्यास के मारे गला सूख रहा था . मैं पानी के लिए मटके के पास गया . पानी पी ही रहा था की मुझे लगा खिड़की पर कोई है . इतनी रात में हमारी खिड़की पर कौन हो सकता है . मैंने चुपचाप दबे पाँव दरवाजा खोला और खिड़की के पास गया . वहां कोई नहीं था सिवाय सन सनाती सर्द हवा के.

मैं अच्छी तरह से जानता था की मेरा वहम तो कतई नहीं था . चूँकि आज बिजली नही थी तो मुझे दिक्कत हो रही थी अँधेरे में देखने के लिए. तभी भैंसों की चिंघाड़ से मेरे कान सतर्क हो गए. मैं तुरंत उस तरफ भागा ये हमारे पड़ोसियों का तबेला था . मैंने देखा की तबेले का दरवाजा खुला हुआ था और अन्दर एक भैंस दर्द से बिलख रही थी उस पर कोई झुका हुआ था .

“बस बहुत हुआ . बहुत खून पी लिया तूने अब और नहीं ” मैंने कहा

वो जो भी था उसने पलट कर मुझे देखा और उसकी लाल आँखे मुझे ऊपर से निचे तक देखने लगी.

“तू जो भी है जैसा भी है . मैं उम्मीद करता हूँ की तू मेरी बात समझ रहा होगा. आज मैं तुझे जाने नहीं दूंगा. आज की रात तू मुझसे मुकाबला कर या तो तू नहीं या मैं नहीं ” मैंने जोर देकर कहा.

वो शक्श दो पल मेरे करीब आकर मुझे देखता रहा और फिर उसने दूसरी तरफ छलांग लगा ही दी थी की मैंने उसका हाथ पकड़ लिया

मैं- नहीं . बिलकुल नहीं .

मै पहले ही गुस्से से भरा था ऊपर से इसकी ही तो तलाश थी मुझे . इसे अगर आज जाने देता तो फिर ये किसी न किसी को मारता . मैंने खीच कर मुक्का उसकी नाक पर मारा . वो कुछ कदम पीछे सरका और अगले ही पल उसने मेरी गर्दन पकड़ ली. उसकी मजबूत पकड़ मेरी सांसो को रोकने लगी. मैं छुटने की भरपूर कोशिश कर रहा था पर नाकामी ही मिली मैंने उसके पेट पर लात मारी उसने मुझे हवा में फेंक दिया.



पर आज मैं कोई मौका उसे नहीं देना चाहता था . मैंने उसका पैर पकड़ा और उसे पीछे की तरफ खींचा . इसी बीच उसके नाखून मेरी शर्ट को फाड़ गए. वो भागता इस से पहले ही मैंने उसे पटक दिया. तबेले का दरवाजा जोर की आवाज करते हुए टूट कर बिखर गया. हम दोनों गली में आ गए. वो उठ खड़ा हुआ उसने अपने कंधे चटकाए और दो तीन मुक्के मारे मेरे सीने पर. मुझे महसूस हुई उसकी ताकत .



पर आज कबीर ने ठान लिया था की इस किस्से को यही ख़त्म करना है .

मैं- चाहे जितनी कोशिश कर ले आज या तो तू नहीं या मैं नहीं.

इस बार मैंने उसे उठा कर फेंका तो वो बैलगाड़ी के पहिये में लगे लोहे के टुकड़े से जा टकराया. जोर से चीखा वो .

मैं- जिनको तूने मारा वो भी ऐसे ही चीखे होंगे न.

मैं उसके पास गया और उसके पाँव को मरोड़ने लगा. पर तभी साला गजब ही हो गया.
शानदार जबरदस्त भाई
 

andyking302

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की तभी गजब हो गया. बिजली की रौशनी से मेरी आँखे चुंधिया गयी. और उसी एक पल में उस हमलावर ने मुझे धक्का दिया और ऐसे गायब हो गया जैसे की वो था ही नहीं. एक बार फिर मैं खाली हाथ रह गया. गुस्से से मैंने धरती पर लात मारी . पर ये अपनी खीज मिटाना ही था . इस बार मैंने लगभग पकड़ ही लिया था उसको.

“कब तक बचेगा तू ” मैंने खुद को दिलासा दिया. और एक महत्वपूर्ण बात और मेरे मन में आई की आज वो कुछ कमजोर सा लगा मुझे. खैर, सुबह मुझ शहर जाना था चंपा के साथ. मैं तैयार हो रहा था की मंगू आ गया. मैंने देखा वो कुछ लंगडाकर चल रहा था .

मैं- क्या हुआ बे

मंगू- भाई कल छप्पर की छत बाँध रहा था तभी गिर गया तो चोट लग आगयी

मैंने गौर किया जब मैंने उस हमलावर को बैलगाड़ी के पहिये पर फेंका था तो उसे भी ऐसी ही चोट लगी थी. तो क्या मंगू हो सकता था वो . मेरे दिमाग में शक सा होने लगा था .

मैं- तो रात को किसने कहा था छत बाँधने के लिए

मंगू- रात को कहा मैं तो दोपहर में कर रहा था ये काम

हो सकता था की वो झूठ बोल रहा हो . हम बात कर ही रहे थे की मैंने देखा भैया-भाभी कही जा रहे थे .

मैं- सुन मंगू . मुझे मालूम हो गया है की नहर की पुलिया कैसे टूटी थी . आगे से हमें इंतजाम करना होगा की यदि ऐसी कोई भी घटना हो तो पानी खेतो तक न आ सके.

मंगू- हम क्या कर सकते है . इतने पानी को कैसे रोका जाए

मैं कुछ न कुछ तो उपाय होगा ही .

मंगू- भाई. मैं देख रहा हूँ की पिछले कुछ दिनों से तू कुछ उखड़ा उखड़ा सा रहता है . मुझसे भी ठीक से बात नहीं करता . क्या कोई भूल हुई मुझसे

मैं- मंगू तूने मुझे बताया नहीं कविता के बारे में .

मेरी बात सुन कर मंगू के चेहरे का रंग उड़ गया .उसने एक गहरी साँस ली और बोला- भाई . मैं क्या बताता तुझे. कैसे बताता . लाली का हाल हम सबने देखा ही था न. किसी को भी अगर मालूम हो जाता तो मुझे और कविता को भी ऐसे ही लटका दिया जाता.

मैं- क्या तूने अपने भाई को इस लायक भी नहीं समझा

मंगू- अपनी जान से ज्यादा तुझे मानता हु इसलिए तुझसे छिपाई क्योंकि जानता हु जो लाली जो हमारी कुछ नहीं लगती थी उसके लिए गाँव के सामने अड़ गया मेरे लिए न जाने तू क्या कर जाता. इसी डर से मैं तुझे नहीं बताया भाई .

मुझे समझ नही आ रहा था की मैं मंगू की बात को सही समझू या फिर चंपा की बात को . आख़िरकार मैंने भांडा फोड़ने का निर्णय कर ही लिया .

मैं- कुछ और ऐसा है जो तुझे लगता है की मुझे बताना चाइये

मंगू कुछ नहीं बोला उसने अपना सर झुका लिया. मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला- तू मेरा भाई है . मेरा दोस्त मेरा सब कुछ है तू . एक बात हमेशा याद रखना तेरे साथ हमेशा मैं खड़ा हूँ . खड़ा रहूँगा.

मंगू मेरे गले लग गया और बोला- मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी कबीर

मैं- जानता हु ,और यही समय है भूल को सुधारने का जो हुआ उसे वापिस नहीं किया जा सकता पर आगे से वैसा न हो तो ही हम सब के लिए बेहतर होगा. फिलहाल खेतो के लिए मजदूरो का इंतजाम कर जितने मिले उतने बेहतर . दिन में ही काम के लिए तैयार करना उनको. मुझे खेत तैयार चाहिए जल्दी से जल्दी .

मंगू ने हाँ में सर हिलाया. उसके बाद हम दोनों ने खाना खाया और फिर मैं चंपा के साथ शहर के लिए निकल गया. वहां हम उसी डॉक्टर के पास गए . चूँकि वो जानता था मुझे इसलिए पैसो के जोर से मैंने उसे चंपा के गर्भपात के लिए मना लिया. उसने अपना काम कर दिया और चंपा को कुछ बेहद जरुरी हिदायते भी दी. जब हम वहां से निकल रहे थे की अचानक से भाभी वहां आ टपकी. उसके पीछे पीछे भैया भी थे.

भाभी भी हम लोगो को वहां देख कर चौंक गयी.

भाभी- तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो .

चंपा भाभी को देख कर बुरी तरह से घबरा गयी . चूँकि उसने अभी अभी गर्भपात करवाया था कमजोरी थी और फिर एक औरत दूसरी को भांप ही लेती है .

मैं- शहर आये थे . मैंने सोचा की डॉक्टर साहब से अपना कन्धा भी दिखा देता हूँ.

भैया- ये अच्छा किया तुमने. वैसे यहाँ आने का इरादा था तो हमारे साथ ही आ जाते.

भाभी की नजरे चंपा पर ही जमी थी .पर भैया की वजह से वो कुछ कह नहीं पा रही थी .

भैया- तुम लोग बाहर बैठो हम डॉक्टर से मिलके आते है फिर साथ ही चलेंगे

मेरे लिए एक नयी मुसीबत हो गयी थी . खैर हम बाहर आये.

मैं- चंपा सुन. भाभी को शक हो गया है चाहे कुछ भी हो जाये तू ये मत कबूल करना की हम यहाँ किसलिए आये थे . वर्ना ऐसा तूफान आएगा जो सब कुछ बर्बाद कर देगा.

चंपा- किस्मत ही फूटी है कबीर.

मैं- माँ चुदाय किस्मत . मैं बोल रहा हूँ वो समझ घर जाते ही वो तेरा रिमांड लेगी. वो तुझको तंग करेगी क्योंकि अभी तू कमजोरी महसूस कर रही है वो तुझसे भारी काम करवाएगी. जितना मैं उसे समझता हूँ तुझे देखते ही वो जान गयी है की हम यहाँ किसलिए आई है . और अगर तू टूट भी जाए तो तू अपने बचाव के लिए भाभी के आगे सारा दोष मुझ पर डाल देना. जब कोई रास्ता न बचे तो तू कहना की मैंने जबरदस्ती की थी तेरे साथ .

चंपा- इतनी बेगैरत नहीं हूँ मैं की तेरा यूँ इस्तेमाल करू मैं

मैं- समझ जा . क्या मालूम ये घडी टल जाए वर्ना तेरा हाल भी लाली जैसा ही होगा.



मैं जानता था की भाभी पक्का यही सोचेंगे की मैंने चंपा को पेल दिया . क्योंकि वो शक में इतनी अंधी हो चुकी थी . खैर उन दोनों के आने के बाद हम लोग भैया की गाड़ी में बैठे और घर आ गए. पर भाभी ने वैसा कुछ भी नहीं किया जो मैं सोच रहा था . शाम तक सब ठीक ही था . शाम को चाची ने मुझसे कहा की बहुरानी तुझे बुला रही है , अपने कमरे में .

मैं- मुझसे क्या काम है

चाची- वो ही जाने

मैं उठ कर भाभी के कमरे में गया .

भाभी- चोट कैसी है तुम्हारी

मैं- जी ठीक है

भाभी- मेरे प्यारे देवर जी , चंपा को ऐसा कौन सा रोग हो गया था की तुम उसे सीधा बड़े डॉक्टर के पास लेकर गए .

मैं- ये सवाल जवाब किस लिए भाभी , हम दोनों जानते है इस बात को

भाभी- उफ्फ्फ ये बेशर्मी तुम्हारी जानते हो मैंने अगर तुम्हारे भैया को बता दिया तो क्या होगा

मैं- हम को किसी का डर नहीं

भाभी- तुम डर की बात करते हो मैं चाहूंगी न तो तू थर थर कांप जाओगे.

मैं- चाहे भैया को बता दो. पिताजी को बता दो चाहे सारे गाँव में ढोल बजा दो

अगले ही पल भाभी की उंगलिया मेरे गाल पर छप गयी.

भाभी- उसको तो मैं क्या दोष दू जब हमारा ही खून गन्दा है . मेरी नजरो में गिर गए हो तुम लोग . अरे तुमको अपनी औलाद जैसे पाला मैंने और तुम मेरे ही घर में कचरा फैला रहे हो. जवानी इतनी ही मचल रही थी तो एक बार मुझसे कह तो दिया होता ब्याह करवा देती तुम्हारा . पर ये मत समझना की इस बात को मैं दबा दूंगी. तुम दोनों की खाल उतारूंगी मैं.

“मैं हाजिर हूँ मोहब्बत की सजा पाने को ” मैंने कहा और अगले ही पल भाभी ने भैया की बेल्ट उठाई और मारने लगी मुझे......................
जबरदस्त भाई लाजवाब update bhai jann
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#65

सुबह जब मैं जागा तो निशा जा चुकी थी . बाहर आकर देखा की भाभी, चंपा और मंगू तीनो ही खेतो पर थे. मैंने एक नजर उन पर डाली और जंगल में चला गया. वापिस आते ही चंपा ने मुझे चाय का गिलास पकडाया . मेरी नजर भाभी पर पड़ी जो हमें ही देख रही थी . मैं उनके पास गया .

मैं- इतनी सुबह आप खेतो पर

भाभी- कभी कभी मुझे भी घर से बाहर निकलना चाहिए न .

मैं- सही किया जो आप आ गयी मैं आ ही रहा था आपसे मिलने

भाभी- मुझसे क्या काम

मैं- वसीयत के चौथे टुकड़े के बारे में बात करनी थी

भाभी - मैं नहीं जानती उसके बारे में

मैं- पर मुझे जानना है . चाची, भैया और मैं हमसे अजीज और कौन है पिताजी के लिए . क्या चंपा का नाम है उस चौथे हिस्से में

भाभी- वो इतनी भी महत्वपूर्ण नहीं है .

मैं- तो बता भी दो मुझे

भाभी- मुझे जरा भी दिलचस्पी नहीं है जायदाद में कबीर .

मैं- इतना भी प्रेम नहीं बरस रहा इस परिवार में की ना आप हिस्सा चाहती है न भैया और न चाची. आप सब को इस जमीन में दिलचस्पी नहीं है तो क्या चाहते है आप लोग क्या ख्वाहिश है आप सब की

भाभी- परकाश नाम है उसके पुरखे मुनिमाई करते थे राय साहब के यहाँ उसने वकालत का पेशा चुना . राय साहब और तुम्हारे भैया के सारे क़ानूनी मामले वही संभालता है. वो ही बता सकता है क्या था उस हिस्से में .

मैं- क्या भैया को मालूम है उस चौथे हिस्से के बारे में

भाभी- क्या तुम जानते हो तुम्हारे भैया को

भाभी- परकाश से मिलो . खैर , क्या अब भी उस डाकन से मिलते हो तुम

मैं- मिलना क्या है पूरी रात साथ ही सो रहे थे हम

मैंने भाभी से कहा और वापिस मुड गया. मैंने देखा नहीं भाभी के चेहरे पर क्या भाव थे .मैंने मंगू को देखा जो खाली खेतो को देख रहा था .

मैं- कहाँ गया था तू भैया के साथ

मंगू- टेक्टर लेने , भैया का कहना है की जमाना बदल रहा है हल की जगह खेती में टेक्टर का उपयोग करना चाहिए . पैसे भर आये है जल्दी ही आ जायेगा.

मैं- भैया वो जो नई जमीन के बारे में कह रहे थे वो जमीन देखने कब जायेंगे

मंगू- मुझे नहीं पता

मैं- मंगू बुरा मत मानियो पर मुझे लगता है की कविता का तेरे आलावा किसी और से भी चक्कर चल रहा था .

मंगू ने अजीब नजरो से देखा मुझे

मंगू- वो चालू औरत नहीं थी

मैं- क्या कभी उसने तुझे कुछ बताया

मंगू- हम ज्यादा बाते नहीं करते थे बस मिलते चुदाई करते और अलग हो जाते.

मुझे लगा की चंपा सच कहती थी की कविता बस इस्तेमाल कर रही थी मंगू का . कविता के बारे में कुछ तलाशना था तो उसके घर से ही शुरुआत करनी थी . मैंने पता लगाया की वैध किसी दुसरे में गाँव में गया हुआ है मैं चुपके से उसके घर में घुस गया. एक तरफ दुनिया भर की शीशिया थी जिनमे दवाइया और उन्हें बनाने का सामान था . मैंने कविता के कमरे में तलाशी शुरू की . दीवारों में बने खाने औरत के कपड़ो से भरे थे .

कमरा वैसे तो कुछ खास नहीं था एक पलंग था . पास में एक मेज थी जिस पर औरतो का कुछ सामान लाली-पोडर पड़ा था. मेज की दराज खोली तो उसमे तरह तरह की कच्छी पड़ी थी . रेशमी, जालीदार और भी कई तरह की . मैंने उनको हाथ में लेकर अच्छे से देखा. गाँव में मनिहारिन तो ऐसी नहीं बेच सकती थी मैं दावे से कह सकता था . मुझे कुछ जेवर मिले . गाँव की एक आम औरत जिसकी आर्थिक स्तिथि इतनी अच्छी भी नहीं थी की वो इतने जेवर बनवा ले इस बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया.



मैंने कमरे को और अच्छे से खंगाला. मुझे एक छोटा बक्सा मिला जिसमे सौ-सौ के नोटों की गद्दिया थी. मेरा तो दिमाग ही घूम गया . एक वैध की बहु के पास इतना पैसा कहाँ से आया. किसने दिया. इतनी रात में जब आदमखोर का आतंक मचा हुआ है कविता जंगल में जाती है , जाहिर है उसे कुछ तो ऐसी प्रचंड लालसा रही होगी या फिर कोई गहरी मज़बूरी सिर्फ इन्ही दो सूरतो में वो जा सकती थी . कुछ तो कुकर्म कर रही थी वो .मंगू के आलावा कौन पेल रहा था उसे. कविता के जेवरो को वापिस रख ही रहा था की मेरी नजर आईने के पास पड़ी डिबिया पर पड़ी.

उत्सुकता वश मैंने उसे खोला . उसमे कांच की चुडिया थी . ऐसा लगा की मैंने इनको पहले देखा हो पर याद नहीं आ रहा था मैंने थोडा जोर दिया और जब याद आया तो ऐसा याद आया की सर्द मौसम में भी मैं अपने माथे पर आये पसीने को नहीं रोक सका. मैंने अपनी जेब से टूटी चूड़ियां निकाली और मिलान किया . मामला शीशे की तरह साफ़ था . ये चुडिया, ये पैसे और ये महंगे जेवर चीख चीख कर कह रहे थे की ये सब राय साहब की ही मेहरबानी थी . राय साहब ही वो दुसरे शक्श थे जो कविता को चोदते थे.



गरीबो का मसीहा, सबके लिए पूजनीय राय साहब का ऐसा चेहरा भी हो सकता था कोई विश्वास नहीं करे अगर मैं किसी से कहूँ तो पर सच शायद ये ही था. पर यहाँ एक सवाल और मेरे सामने आ खड़ा हुआ था की वसीयत का चौथा हिस्सा कविता का नहीं हो सकता क्योंकि कविता तो मर चुकी थी . वो शायद बस दिल बहलाने के लिए ही हो . निशा ने कहा था हवस , अयाशी खून में दौड़ती है . अब मुझे ये सच लग रहा था कितनी आसानी से मैंने चाची को चोद दिया था . कितनी ही मचल रही थी चंपा मुझसे चुदने के लिए.

वैध के घर से आने के बाद मैं चौपाल के चबूतरे पर बैठे सोच रहा था की राय साहब को रंगे हाथ चुदाई करते हुए पकड़ने के लिए मुझे एक ठोस योजना बनानी पड़ेगी जिसके लिए मुझे दो लोग तलाशने थे एक जो राय साहब का बिलकुल खास हो और जो उनके खिलाफ हो. खैर सुबह मुझे प्रकाश से मिलना ही था . कुछ सोच कर मैं रमा के ठेके की तरफ चल दिया. वहां पहुन्चा तो पाया की काफी लोग दारू पी रहे थे पर सूरजभान या उसका कोई साथी नहीं था.

मैंने रमा को देखा उसने मुझे इशारा किया और हम ठेके के पीछे बने कमरे में आ गए.

रमा- कैसे है कुंवर जी

मैंने रमा की भरपूर खिली हुई चुचियो पर नजर डाली और बोला - बढ़िया तुम बताओ

रमा- वो मुनीम का छोरा प्रकाश बहुत चक्कर लगा रहा है मलिकपुर के रुडा से खूब मिल रहा है

मैं- वकील है न जाने कितने लोगो का काम देखता होगा.

रमा-बड़ा धूर्त है वो .

मैं- क्या प्रयोजन हो सकता है उसका

रमा-रुडा की लड़की सहर से पढ़ कर आई है . मुझे लगता है की उसी के चक्कर में जाता होगा .

मैं- जान प्यारी नहीं क्या उसे . परकाश को क्या नहीं मालूम की ठाकुरों की बहन-बेटियों पर बुरी नजर डालने का क्या अंजाम होगा.

रमा- बहन-बेटी तो सबकी समान होवे है कुंवर जी, कोई माने या ना माने वैसे भी हर औरत निचे से एक जैसी ही होती है .

बातो बातो में रमा ने मुझे बताया की पहले वो मेरे गाँव में ही रहती थी फिर उसके पति की मौत हो गयी तो वो मलिकपुर आ गयी यहाँ भी तक़दीर ने उसे दुःख ही दिए.

हम बात कर ही रहे थे की बाहर से कुछ चीखने चिल्लाने की आवाजे आने लगी तो हम ठेके की तरफ गए और वहां जो मैंने देखा ...................

 

Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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अभी तक जितना समझ आया ये कहानी उस हिसाब से
चंपा के पेट में जो बच्चा है वो शायद अभिमानु का रहा होगा और ये बात भाभी को पता होगा, शायद ये कारण होगा की वो चाहती हो की कबीर सतर्क रहे अपने घर में, भाभी को देख कर लगता नहीं की वो कबीर का use कर रही है, भाभी शायद कबीर के आलावा और किसी पर भरोसा भी नहीं करती

चंपा उस आदमखोर के हमलेवाली रात शायद अभिमानु से मिलने आ रही हो तभी अभिमानु दोनो को बचाने इतना जल्दी आ गया और चंपा के abortion के लिए बिना कुछ पूछे नोटों को गड्डी दे दी थी, कबीर अपने भाई की इतनी इज्जत करता है चंपा भी अपने बच्चे के बाप का नाम बताने से डर रही है

निशा का पक्का मलिकपुर और रूढ़ा से कोई संबंध जरूर होगा , क्योंकि कहानी घुमफिर कर जंगल और मलिकपुर में फस रही है

ये बस ऐसे ही thought आया की शायद मंगू ही वो लड़का है जिससे चाची का कबीर के आलावा संबंध है
शायद ऐसा ना भी हो, बस इसलिए लगा क्योंकि मंगू अपनी दूसरी गलती के बारे में कुछ बताया नहीं

उम्मीद करता हूं एक दो prediction सही हो

फिलहाल तो नहीं दिख रहा की कबीर राय साहब को पकड़ लेगा पर सूरजभान वाली पहेली जरूर ढूंढ लेगा

पता नही क्यों ऐसा लग रहा की कविता का संबंध शायद अभिमानु से होगा तभी अभिमानु वैध के साथ बहुत रहता था वो फैंसी ब्रा पैंटी और जेवर,
रमा भी तो बोली अय्यासी खून में दौड़ता है

प्रकाश क्या बताता है अभिमानु के बारे में ये भी बहुत दिलचस्प होगा, हो सकता कुछ ऐसा की कबीर अपने घर में सबको शक की नजर से देखे, अभिमानु रूढ़ा के सामने क्यों झुका दिलचस्पी इस बात की है
 
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Studxyz

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कबीर अब पूरे आत्म विश्वास व दृढ़ता के साथ सब से पूछ ताछ कर रहा है और राय सब के कारनामे धीरे धीरे ही सही सामने आ रहे है ठरकी चोदू इंसान है

भाभी ने अच्छी जानकारी दी परकाश पर वो साला सूरजभान के भी वकील है कुछ तो तगड़ा लोचा है इस कड़ी में राय साब अभिमानु भी होंगे
 
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