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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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राय साहब तो बिल्कुल नहीं लग रहे लेकिन जो भी है या तो घर का है या बहुत ही करीबी है, तभी इतनी हत्या के बाद भी राय साहब ने कोई खास रोकने के इंतजाम नहीं किए,
कबीर को मारने का मौका होने पर भी छोड़ देना से लगता है की जो भी है कबीर से बेहद प्यार करता है वरना इतना मार कौन खायेगा,
शायद राय साहब की बहुत इज्जत भी करता होगा तभी राय साहब रात को इतने आराम से जंगल में गए थे वरना अभी तक इस कहानी में जो जो रात को गया है कबीर को छोड़ कर वो कभी जिंदा नहीं बचा
राय साहब जैसा बड़ा आदमी कबीर की इतनी ऊंची आवाज में बात करने के बाद भी इतनी शांति से पेश आना से लग रहा है की कुछ होगा जिसके लिए या तो वो डर रहे या फिर कोई गुनाह हो होगा जिसके लिए खुद को दोषी मानते होंगे

कहानी ने रफ्तार पकड़ी है उम्मीद करता हूं कहानी आगे जाकर और भी intresting होगी
 
Last edited:

Naik

Well-Known Member
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#61



उस दोपहर मैं कुछ कपडे लेने अपने चोबारे में गया . कुछ पुराणी चीजे थी जरुरत की मैंने सोचा की इनको चाची के घर ही ले चलता हूँ. फिर देखा की चोबारे की सफाई काफी दिनों से हुई नहीं सोचा की चंपा को बोल दू पर फिर विचार किया छोटे से काम के लिए उसे क्या परेशां करना . इसी काम में थोडा धुल-मिटटी में सन गया मैं . मैंने अपने कपडे उतारे और बाथरूम की तरफ बढ़ गया.

दरवाजा आधा खुला था , मैंने पल्ले को और खोल दिया पर जो देखा मैंने कसम से एक पल नजरे ऐसी ठहरी की फिर उठ नहीं पाई. बाथरूम में मेरी आंखो के सामने भाभी पूरी नंगी पानी की बूंदों में लिपटी हुई खड़ी थी . साबुन के झाग में लिपटी भाभी की उन्नत चुचिया . गुलाबी जांघे और उतनी ही गुलाबी भाभी की छोटी सी चूत मेरे होश-हवास छीन ले गयी उस एक छोटे से पल में .

अचानक से ऐसा मामला हो गया जो न उसने सोचा था न मैंने. वो भोचक्की रह गयी मैं हैरान . भाभी के हुस्न का ऐसा दीदार शुक्र था मैं पिघल कर बह नहीं गया. जब भाभी को भान हुआ तो उसने तुरंत दरवाजा बंद कर लिया .अपनी तेज धडकनों को सँभालते हुए मैं तुरंत निचे आ गया.

निचे आते समय मेरी नजर राय साहब के कमरे पर पड़ी . मैंने सोचा की ये जाते कहाँ है . मैं पूरी ताक में था की कब वो चंपा को बुलाएगा चोदने के लिए . मैंने साइकिल उठाई और चौपाल पर जाकर बैठ गया. मेरे दिल में इस जगह को देख कर हमेशा ख्याल आता था की मेरी मोहब्बत की कहानी यही पर पूरी होगी. हाथ जोड़ कर मैंने लाली से माफ़ी मांगी और अपनी आगे की योजना पर विचार करने लगा.



समाज की चाशनी में लिपटे इस गाँव में अवैध संबंधो का तंदूर दहक रहा था . जिसका उधाहरण, लालि, चंपा राय साहब , मंगू-कविता, चाची और मैं खुद दे. मैंने सोचा ऐसे ही सम्बन्ध न जाने और भी गाँव वालो के रहे होंगे पर साले सब ने मुखोटे ओढ़े हुए थे शराफत के.



समझ नहीं आ रहा था की बाप चंपा को कहा किस जगह पेल रहा था . अभिमानु भाई और सूरजभान के बीच क्या था . मेरा दिल कहता था की मंगू को अपना राजदार बना लू पर चाह कर भी मैं उस पर विश्वास बना नहीं पा रहा था . मेरे पास दो सवाल थे एक का जवाब मेरे घर में था उअर दुसरे का जबाब तलाशने के लिए मुझे मलिकपुर जाना था . क्योंकि सूरजभान के बारे में मुझे जो भी जानकारी मिले वो वही से मिलती.

पसरते अँधेरे में घूमते घूमते मैं मलिकपुर में पहुँच गया . दो चार दुकानों का बाजार बंद हो रहा था . मैंने देखा की शराब की दूकान खुली थी . मैं उस तरफ बढ़ गया. मैंने देखा की एक भी आदमी नहीं था वहां पर सिर्फ एक औरत बैठी थी तीखे नैन-नक्श कपडे कम बदन की नुमाइश ज्यादा मैं समझ गया तेज औरत है ये .



“आज शराब नहीं मिलेगी आगे से माल आया नहीं ” उसने मुझे देख कर कहा.

मैं- शराब की तलब नहीं मुझे मेरी जरुरत कुछ और है .

उसने ऊपर से निचे तक देखा मुझे और बोली- तू तो वही है न जिसने सूरजभान का सर फोड़ा था .

मैं-किसी को न बताये तो वही हु मैं

वो- क्या चाहिए तुझे

मैं- कुछ सवाल है मेरे मन में जवाबो की तलाश है

वो- मेरा क्या फायदा तेरी मदद करने में

मैंने जेब से पाच पांच के नोटों की गड्डी निकाली और उसके हाथ में रख दी .

मैं- बहुत मामूली सवाल है मेरे तेरे अड्डे पर सब लोग आते है तू सबको जानती है हम एक दुसरे के काम आ सकते है .

उसने इधर उधर देखा और बोली- अन्दर आजा

मैं दुकान के अन्दर गया उसने दरवाजा बंद कर लिया . मैं उसके उन्नत उभारो को देखता रहा .

वो- क्या चाहता है तू

मैं-सूरजभान के बारे में क्या बता सकती है तू

वो- उसके बारे में क्या बताना सारा गाँव जानता है कितना नीच आदमी है वो .उसके दो ही काम है लोगो को तंग करना और पराई बहन बेटियों पर बुरी नजर डालना

मैं- कोई विरोध नहीं करता उसका .

वो- रुडा चौधरी बाप है उसका , ये गाँव उसकी जागीर है यहाँ पत्ता तक नहीं हिलता उसकी मर्जी के बिना . और फिर गाँव वाले क्या विरोध करेंगे. ये गाँव नहीं मुर्दा लोगो की बस्ती है जो सर झुका सकते है , गुलामी इनकी नसों में इतना अन्दर तक फ़ैल गयी है की आँखों में आँखे तक नहीं मिला सकते ये लोग.

मैं- तू तो दबंग लगती है . तू नहीं डरती उन लोगो से

वो- नहीं डरती मेरे पास है ही क्या खोने को जो मुझसे छीन लेंगे.

मैं- नाम क्या है तेरा

वो- रमा

मैं- रमा, तू इतना तो समझ ही गयी होगी की मुझे सूरजभान से कितनी नफरत है

रमा- जानती हूँ

मैं- उसके आतंक के अंत के लिए क्या तू मेरी सहायता करेगी मैं तुझे मुह मांगे पैसे दूंगा

रमा- पैसे नहीं चाहिए , क्या तू वादा कर सकता है की तू उसे मार देगा

मैं- इच्छा तो मेरी भी यही है . पर तू क्यों चाहती है ऐसा

रमा- उसकी वजह से मेरी बेटी को मरना पड़ा था .

मैंने रमा के कंधे पर हाथ रखा और बोला- मैं तुझसे वादा करता हु उसकी खाल जरुर उतारूंगा . एक बात बता तू अभिमानु ठाकुर को जानती है .

रमा- जानती हूँ

मैं- अभी मानु और सूरजभान की दोस्ती कैसी है . मेरा मतलब अभिमानु आते जाते रहता होगा यहाँ

रमा ने अजीब नजरो से देखा मुझे और बोली- सूरजभान से अभीमानु ठाकुर की दोस्ती. तुझे तो बिन पिए ही नशा हो रहा है .

मैं- कुछ समझा नहीं

रमा- अभिमानु शीतल जल है और सूरजभान तेल . दोनों अलग है उनमे दोस्ती मुमकिन नहीं

मैं- पर उस दिन जब मैंने सूरजभान को मारा तूने भी देखा होगा मेरा भाई कैसे उसे अपने सीने से लगाया था .

रमा- यही बात मुझे बहुत दिन से खटक रही है . अभिमानु ठाकुर ने पुरे पांच साल बाद इस गाँव में कदम रखा था .

रमा की बात से मैं और हिल गया.

मैं- पांच साल बाद, पर क्यों . और क्या पहले भैया रोज आते थे यहाँ

रमा- रोज तो नहीं पर तीसरे-चौथे दिन जरुर आते थे. फिर अचानक से उनका आना बंद हो गया.

पांच साल से भैया ने मुह मोड़ा हुआ था मलिकपुर से और फिर अचानक ही वो उस दिन आते है जब मैंने सूरजभान को लगभग मार ही दिया था और रमा बताती है की उन दोनों में कोई दोस्ती नहीं है . खैर मैंने रमा से वादा किया की मैं उस से मिलता रहूँगा और जो भी कुछ मेरे मतलब का उसे मालूम हो वो मुझे बतादे. वापसी में मेरा मन था की कुवे पर ही सो जाऊ . रस्ते में मैंने देखा की एक जगह राय साहब की गाड़ी खड़ी थी . जंगल के घने हिस्से में राय साहब की गाड़ी का होना अटपटा सा लगा मुझे. मैंने गाड़ी को देखा कोई नहीं था अन्दर.

“बाप, क्या करने आया होगा इधर ” मैंने अपनी साइकिल एक तरफ लगाई और झाड़ियो में छुप गया आज मुझे मालूम करना ही था की बाप के मन में क्या चल रहा था ..........................
Bhabi k jalwe dekh ker kabir apne hosho hawas kho diya tha lekin jald hi sambhal gaya
Yeh kia mamla samne aa gaya suraj bhan or abhimanyu k beech koyi dosti nahi thi 5 saal se malikpur nahi gaya tow usi kyon gaya jab Kabir lag bhag suraj baah ko maar hi chuka aisa kia tha or leker jaane wali bhi champa thi chal kia raha h yeh
Lagta h aaj kuch.lagne wala h kabir k Rai sahab ki kertooto ka ya fir koyi aisa jhatka jise kabir samne m bhi nahi socha ya dekha ho
Dekhte h kia hota h
Bahot khoob shaandaar update bhai
 

Pankaj Tripathi_PT

Love is a sweet poison
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#62

कुछ देर बीती , फिर और देर हुई और होती ही गयी . राय साहब का कहें कोई पता नहीं था. इंतज़ार करते हुए मैं थकने लगा था.इतने बड़े जंगल में मैं तलाश करू तो कहाँ करू न जाने किस दिशा में गए होंगे वो. मेरी आँखे नींद के मारे झूलने लगी थी की तभी जंगल एक चिंघाड़ से गूंज उठा . आवाज इतने करीब से आई थी की मैं बुरी तरह से हिल गया.

आज जंगल शांत नहीं था और मुझे तुरंत समझ आ गया की शिकारी निकल पड़ा है शिकार में पर वो ये नहीं जानता था की मैं भी हूँ यहाँ .मैं आवाज की दिशा में दौड़ा. झुरमुट पार करके मैं खुली जगह में पहुंचा तो देखा की एक बड़े से पत्थर पर वो ही आदमखोर बैठा है . उसकी पीठ मेरी तरफ थी पर न जाने कैसे उसे मेरी उपस्तिथि का भान हो गया था .

गर्दन पीछे घुमा कर उसने अपनी सुलगती आँखों से मुझे देखा . मैं भी खुल कर उसके सामने आ गया. अँधेरी रात में भी हम दोनों एक दुसरे को घूर रहे थे . समय को बस इतंजार था की पहला वार कौन करे .क्योंकि आज मौका भी था दस्तूर भी था और ये मैदान भी . आज या तो उसकी कहानी खत्म होती या फिर मेरी. एक छलांग में ही वो तुरंत पत्थर से मेरे सामने आकर खड़ा हो गया.

मैंने अपना घुटना उसके पेट में मारा और उछलते हुए उसके सर पर वार किया. ऐसा लगा की जैसे पत्थर पर हाथ दे मारा हो मैंने. उसने प्रतिकार किया और मुझे धक्का दिया मैं थोड़ी दूर एक सूखे लट्ठे पर जाकर गिरा. इस से पहले की मैं उठ पाता उसने अपने पैर के पंजे से मेरे पेट पर मारा.

दुसरे वार को मैंने हाथो से रोका और उसे हवा में उछाल दिया. न जाने क्यों मुझे वो कमजोर सा लग रहा था . तबेले वाली मुठभेड़ में भी मैंने ऐसा ही महसूस किया था .मेरे हाथ में एक पत्थर आ गया जो मैंने उसके सर पर दे मारा . वो चिंघाड़ उठा और अगले ही पल उसने मुझे कंधो से पकड़ कर उठा लिया मैं हवा में हाथ पैर मारने लगा. कंधो से होते हुए उसकी लम्बी उंगलिया मेरी गर्दन पर कसने लगी . मेरी साँसे फूलने लगी पर तभी उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी और मुझे फेंक दिया .

मै हैरान हो गया ये दूसरी बार था जब वो चाहता तो मुझे मार सकता था पर उसने ऐसा नहीं किया . अपने आप को संभाल ही रहा था मैं की तभी मुझे गाड़ी चालू होने की आवाज सुनाई दी .मैं तुरंत उस दिशा में दौड़ा पर मुझे थोड़ी देर हो गयी गाड़ी जा चुकी थी . मैंने अपनी साइकिल उठाई और तुरंत गाँव की तरफ मोड़ दी. जितना तेज मैं उसे चला सकता था उतनी तेज मैंने कोशिश की . घर पहुंचा , सांस फूली हुई थी . मैं तुरंत पिताजी के कमरे के पास पहुंचा और दरवाजे को धक्का दिया. दरवाजा अन्दर से बंद था .

“पिताजी दरवाजा खोलिए ” मैंने किवाड़ पिटा

“हम व्यस्त है अभी ” अन्दर से आवाज आई

मैं- पिताजी दरवाजा खोलिए अभी के अभी

कुछ देर ख़ामोशी छाई रही इस से पहले की मैं आज दरवाजे को तोड़ देता अन्दर से दरवाजा खुला . मैं कमरे में घुस गया .पिताजी के हाथ में जाम था . टेबल पर एक किताब खुली थी .

मैं- जंगल में क्या कर रहे थे आप

पिताजी ने किताब बंद करके रखी और बोली- जंगल में जाना कोई गुनाह तो नहीं . हमें लगता है की इतनी आजादी तो है हमें की अपनी मर्जी से कही भी आ सके जा सके.

मैं- ये मेरे सवाल का जवाब नहीं है पिताजी

पिताजी- हम जरुरी नहीं समझते तुम्हारे सवालो का जवाब देना . रात बहुत हुई है सो जाओ जाकर

मैं- आपको जवाब देना होगा. आप अभी जवाब देंगे मुझे .

पिताजी ने अजीब नजरो से देखा मुझे और बोले- अभी तुम इतने बड़े नहीं हुए हो की हमसे नजरे मिला कर बात कर सको

मैं-नजरे छिपा कर तो आप भागे थे जंगल से . मैंने आपको पहचान लिया है आपके अन्दर छुपे उस शैतान को पहचान लिया है मैं जान चूका हूँ की वो हमलावर आदमखोर कोई और नहीं मेरा बाप है .

जिन्दगी में ये दूसरा अवसर था जब मैंने राय साहब के सामने ऊँची आवाज की थी .

राय साहब ने अपनी ऐनक उतारी उसे साफ़ किया और दुबारा पहनते हुए बोले- माना की हौंसला बहुत है तुममे बरखुरदार पर ये इल्जाम लगाते हुए तुम्हे सोचना चाहिए था क्योंकि हम चाहे तो इसी समय तुम्हारी जीभ खींच ली जाएगी.

मैं- ये ढकोसले, ये शान ओ शोकत ये झूठी नवाबी का चोला उतार कर फेंक दीजिये राय साहब .मैं जानता हूँ वो हमलावर आप ही है .

पिताजी ने जाम दुबारा उठा लिया और बोले- इस यकीन की वजह जानने में दिलचश्पी है हमें

मैं-क्योंकि मैं भी उसी जगह मोजूद था मेरी मुठभेड़ हुई उसी हमलावर से और जब मैं उसके पीछे था ठीक उसी समय आप की गाडी वहां से निकली . क्या ये महज इतेफाक है .

पिताजी ने शराब का एक घूँट गले के निचे उतारा और बोले-इत्तेफाक तू जनता ही क्या है इत्तेफाक के बारे में . समस्या ये नहीं है की हमारी गाड़ी वहां क्या कर रही थी समस्या ये है की जमीनों के साथ साथ जंगल को भी तुमने अपनी मिलकियत समझ लिया है किसी और का जंगल में जाना गवारा नहीं तुम्हे

मैं- कितना कमजोर बहाना है ये . चलो मान लिया की मुझ पर हमला होना और हमलावर का उसी समय भागना और आपका भी वही से एक साथ निकलना संयोग ही था पर इतनी रातको ऐसा क्या काम हुआ जो राय साहब को जंगल में जाना पड़ा.

पिताजी- हमने कहा न तुम्हे ये जानने की जरुरत नहीं

मैं- जरुरत है मुझे. गाँव के लोग मारे जा रहे है . गाँव की सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी है

पिताजी- बेशक तुम्हारी जिम्मेदारी है पर तुम्हे यहाँ मेरी रात ख़राब करने की जगह कातिल को तलाशना चाहिए

मैं- उसे तो मैं तलाश लूँगा और जिस दिन ऐसा होगा मैं हर लिहाज भूल जाऊंगा.

गुस्से से दनदनाते हुए मैं कमरे से बाहर निकला . पहले चंपा के साथ सम्बन्ध और फिर ये घटना मैंने सोच लिया राय सहाब के चेहरे पर चढ़े मुखोटे को उसी पंचायत में उतारूंगा जहाँ लाली को फांसी दी गयी थी .




सुबह होते ही मैं उसी जगह पर पहुँच गया और वहां की भोगोलिक स्तिथि को समझने की कोशिश करने लगा. चारो दिशाओ में मैंने खूब छानबीन की तीन दिशाओ में मुझे कुछ नहीं मिला पर चौथी दिशा में काफी चलने के बाद मैं संकरी झाड़ियो से होते हुए उस जगह पर पहुँच गया जो मुझे हैरान कर गयी . मैं काले खंडहर के सामने खड़ा था .
Har bar ki trh iss bar bhi suspense pr update khtm hua. Ek bar fir Adamkhor se muthbhed hui. har bar ki trh kabir ko bina koi nuksan pahunchaye adamkhor bhagne me safal rha. OR thik usi wqt Ray sahab ka gadi ka start hona or wahan se jana jiske baad kabir ka unpe shq krna jbki Ray sahab to relax hokr jaam ka lutf utha rhe the baap bete ki bich tikhi behas ne ek alag hi romanch paida kr diya ab dekhna ye hai ki baap bete ke takrar ka Kya parinam niklta hai. Itna zrur hai ke Ray sahab adamkhor ko shayad jante hai. Kya Ray sahab ke kmre me koi khufiya kamra hai? Agle din kabir uss jagah ki chhanbin krta hai jahan kalakhandhar ke pas pahunch jata hai. Ab ye Kya rahsya Naya ujagar hua. Bhai ji ek sawal hai ray sahab khud gadi drive krte hai ya driver hai unka.?
आपकी शंका का भान है मुझे मित्र, और यकीन मानिये जो आप सोच रहे है वैसा बिल्कुल नहीं है
Dhanyawad Bhai ji mujhe acha lgega khud ko glat sabit hote hue. Aise hi romanch bnaye rakhiye. Humen bhi alg alg kalpnaye krne me maza arha hai 🙂🙂
 

Naik

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कुछ देर बीती , फिर और देर हुई और होती ही गयी . राय साहब का कहें कोई पता नहीं था. इंतज़ार करते हुए मैं थकने लगा था.इतने बड़े जंगल में मैं तलाश करू तो कहाँ करू न जाने किस दिशा में गए होंगे वो. मेरी आँखे नींद के मारे झूलने लगी थी की तभी जंगल एक चिंघाड़ से गूंज उठा . आवाज इतने करीब से आई थी की मैं बुरी तरह से हिल गया.

आज जंगल शांत नहीं था और मुझे तुरंत समझ आ गया की शिकारी निकल पड़ा है शिकार में पर वो ये नहीं जानता था की मैं भी हूँ यहाँ .मैं आवाज की दिशा में दौड़ा. झुरमुट पार करके मैं खुली जगह में पहुंचा तो देखा की एक बड़े से पत्थर पर वो ही आदमखोर बैठा है . उसकी पीठ मेरी तरफ थी पर न जाने कैसे उसे मेरी उपस्तिथि का भान हो गया था .

गर्दन पीछे घुमा कर उसने अपनी सुलगती आँखों से मुझे देखा . मैं भी खुल कर उसके सामने आ गया. अँधेरी रात में भी हम दोनों एक दुसरे को घूर रहे थे . समय को बस इतंजार था की पहला वार कौन करे .क्योंकि आज मौका भी था दस्तूर भी था और ये मैदान भी . आज या तो उसकी कहानी खत्म होती या फिर मेरी. एक छलांग में ही वो तुरंत पत्थर से मेरे सामने आकर खड़ा हो गया.

मैंने अपना घुटना उसके पेट में मारा और उछलते हुए उसके सर पर वार किया. ऐसा लगा की जैसे पत्थर पर हाथ दे मारा हो मैंने. उसने प्रतिकार किया और मुझे धक्का दिया मैं थोड़ी दूर एक सूखे लट्ठे पर जाकर गिरा. इस से पहले की मैं उठ पाता उसने अपने पैर के पंजे से मेरे पेट पर मारा.

दुसरे वार को मैंने हाथो से रोका और उसे हवा में उछाल दिया. न जाने क्यों मुझे वो कमजोर सा लग रहा था . तबेले वाली मुठभेड़ में भी मैंने ऐसा ही महसूस किया था .मेरे हाथ में एक पत्थर आ गया जो मैंने उसके सर पर दे मारा . वो चिंघाड़ उठा और अगले ही पल उसने मुझे कंधो से पकड़ कर उठा लिया मैं हवा में हाथ पैर मारने लगा. कंधो से होते हुए उसकी लम्बी उंगलिया मेरी गर्दन पर कसने लगी . मेरी साँसे फूलने लगी पर तभी उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी और मुझे फेंक दिया .

मै हैरान हो गया ये दूसरी बार था जब वो चाहता तो मुझे मार सकता था पर उसने ऐसा नहीं किया . अपने आप को संभाल ही रहा था मैं की तभी मुझे गाड़ी चालू होने की आवाज सुनाई दी .मैं तुरंत उस दिशा में दौड़ा पर मुझे थोड़ी देर हो गयी गाड़ी जा चुकी थी . मैंने अपनी साइकिल उठाई और तुरंत गाँव की तरफ मोड़ दी. जितना तेज मैं उसे चला सकता था उतनी तेज मैंने कोशिश की . घर पहुंचा , सांस फूली हुई थी . मैं तुरंत पिताजी के कमरे के पास पहुंचा और दरवाजे को धक्का दिया. दरवाजा अन्दर से बंद था .

“पिताजी दरवाजा खोलिए ” मैंने किवाड़ पिटा

“हम व्यस्त है अभी ” अन्दर से आवाज आई

मैं- पिताजी दरवाजा खोलिए अभी के अभी

कुछ देर ख़ामोशी छाई रही इस से पहले की मैं आज दरवाजे को तोड़ देता अन्दर से दरवाजा खुला . मैं कमरे में घुस गया .पिताजी के हाथ में जाम था . टेबल पर एक किताब खुली थी .

मैं- जंगल में क्या कर रहे थे आप

पिताजी ने किताब बंद करके रखी और बोली- जंगल में जाना कोई गुनाह तो नहीं . हमें लगता है की इतनी आजादी तो है हमें की अपनी मर्जी से कही भी आ सके जा सके.

मैं- ये मेरे सवाल का जवाब नहीं है पिताजी

पिताजी- हम जरुरी नहीं समझते तुम्हारे सवालो का जवाब देना . रात बहुत हुई है सो जाओ जाकर

मैं- आपको जवाब देना होगा. आप अभी जवाब देंगे मुझे .

पिताजी ने अजीब नजरो से देखा मुझे और बोले- अभी तुम इतने बड़े नहीं हुए हो की हमसे नजरे मिला कर बात कर सको

मैं-नजरे छिपा कर तो आप भागे थे जंगल से . मैंने आपको पहचान लिया है आपके अन्दर छुपे उस शैतान को पहचान लिया है मैं जान चूका हूँ की वो हमलावर आदमखोर कोई और नहीं मेरा बाप है .

जिन्दगी में ये दूसरा अवसर था जब मैंने राय साहब के सामने ऊँची आवाज की थी .

राय साहब ने अपनी ऐनक उतारी उसे साफ़ किया और दुबारा पहनते हुए बोले- माना की हौंसला बहुत है तुममे बरखुरदार पर ये इल्जाम लगाते हुए तुम्हे सोचना चाहिए था क्योंकि हम चाहे तो इसी समय तुम्हारी जीभ खींच ली जाएगी.

मैं- ये ढकोसले, ये शान ओ शोकत ये झूठी नवाबी का चोला उतार कर फेंक दीजिये राय साहब .मैं जानता हूँ वो हमलावर आप ही है .

पिताजी ने जाम दुबारा उठा लिया और बोले- इस यकीन की वजह जानने में दिलचश्पी है हमें

मैं-क्योंकि मैं भी उसी जगह मोजूद था मेरी मुठभेड़ हुई उसी हमलावर से और जब मैं उसके पीछे था ठीक उसी समय आप की गाडी वहां से निकली . क्या ये महज इतेफाक है .

पिताजी ने शराब का एक घूँट गले के निचे उतारा और बोले-इत्तेफाक तू जनता ही क्या है इत्तेफाक के बारे में . समस्या ये नहीं है की हमारी गाड़ी वहां क्या कर रही थी समस्या ये है की जमीनों के साथ साथ जंगल को भी तुमने अपनी मिलकियत समझ लिया है किसी और का जंगल में जाना गवारा नहीं तुम्हे

मैं- कितना कमजोर बहाना है ये . चलो मान लिया की मुझ पर हमला होना और हमलावर का उसी समय भागना और आपका भी वही से एक साथ निकलना संयोग ही था पर इतनी रातको ऐसा क्या काम हुआ जो राय साहब को जंगल में जाना पड़ा.

पिताजी- हमने कहा न तुम्हे ये जानने की जरुरत नहीं

मैं- जरुरत है मुझे. गाँव के लोग मारे जा रहे है . गाँव की सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी है

पिताजी- बेशक तुम्हारी जिम्मेदारी है पर तुम्हे यहाँ मेरी रात ख़राब करने की जगह कातिल को तलाशना चाहिए

मैं- उसे तो मैं तलाश लूँगा और जिस दिन ऐसा होगा मैं हर लिहाज भूल जाऊंगा.

गुस्से से दनदनाते हुए मैं कमरे से बाहर निकला . पहले चंपा के साथ सम्बन्ध और फिर ये घटना मैंने सोच लिया राय सहाब के चेहरे पर चढ़े मुखोटे को उसी पंचायत में उतारूंगा जहाँ लाली को फांसी दी गयी थी .




सुबह होते ही मैं उसी जगह पर पहुँच गया और वहां की भोगोलिक स्तिथि को समझने की कोशिश करने लगा. चारो दिशाओ में मैंने खूब छानबीन की तीन दिशाओ में मुझे कुछ नहीं मिला पर चौथी दिशा में काफी चलने के बाद मैं संकरी झाड़ियो से होते हुए उस जगह पर पहुँच गया जो मुझे हैरान कर गयी . मैं काले खंडहर के सामने खड़ा था .
Itne intizar k baad fir hamlawar se bhidhant or fir ek baar kabir
Wa jinda chhod de yeh baat nahi samajh aayi ki aaj uske paas paryapt samay tha
kabir ko marne ka lekin chhod dia aisa kyon kia chal raha h uske dimag m or h kon woh?
huwa jo hona kuch haath nahinlaga sirf Rai sahab ki gaadi or gaadi huwi chalu or jaati huwi gaadi ki awaz
Rai sahab se Kabir n itni tez awaz m baat ki lekin unhone kuch kaha nahi bbahot shanti se jawab dia kia baat h
Kabir har taraf se koshish ker raha h lekin haath nahi lag raha
Baherhal dekhte h aage kia hota h
Behad shaandaar lajawab update bhai
 

Mastmalang

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#62

कुछ देर बीती , फिर और देर हुई और होती ही गयी . राय साहब का कहें कोई पता नहीं था. इंतज़ार करते हुए मैं थकने लगा था.इतने बड़े जंगल में मैं तलाश करू तो कहाँ करू न जाने किस दिशा में गए होंगे वो. मेरी आँखे नींद के मारे झूलने लगी थी की तभी जंगल एक चिंघाड़ से गूंज उठा . आवाज इतने करीब से आई थी की मैं बुरी तरह से हिल गया.

आज जंगल शांत नहीं था और मुझे तुरंत समझ आ गया की शिकारी निकल पड़ा है शिकार में पर वो ये नहीं जानता था की मैं भी हूँ यहाँ .मैं आवाज की दिशा में दौड़ा. झुरमुट पार करके मैं खुली जगह में पहुंचा तो देखा की एक बड़े से पत्थर पर वो ही आदमखोर बैठा है . उसकी पीठ मेरी तरफ थी पर न जाने कैसे उसे मेरी उपस्तिथि का भान हो गया था .

गर्दन पीछे घुमा कर उसने अपनी सुलगती आँखों से मुझे देखा . मैं भी खुल कर उसके सामने आ गया. अँधेरी रात में भी हम दोनों एक दुसरे को घूर रहे थे . समय को बस इतंजार था की पहला वार कौन करे .क्योंकि आज मौका भी था दस्तूर भी था और ये मैदान भी . आज या तो उसकी कहानी खत्म होती या फिर मेरी. एक छलांग में ही वो तुरंत पत्थर से मेरे सामने आकर खड़ा हो गया.

मैंने अपना घुटना उसके पेट में मारा और उछलते हुए उसके सर पर वार किया. ऐसा लगा की जैसे पत्थर पर हाथ दे मारा हो मैंने. उसने प्रतिकार किया और मुझे धक्का दिया मैं थोड़ी दूर एक सूखे लट्ठे पर जाकर गिरा. इस से पहले की मैं उठ पाता उसने अपने पैर के पंजे से मेरे पेट पर मारा.

दुसरे वार को मैंने हाथो से रोका और उसे हवा में उछाल दिया. न जाने क्यों मुझे वो कमजोर सा लग रहा था . तबेले वाली मुठभेड़ में भी मैंने ऐसा ही महसूस किया था .मेरे हाथ में एक पत्थर आ गया जो मैंने उसके सर पर दे मारा . वो चिंघाड़ उठा और अगले ही पल उसने मुझे कंधो से पकड़ कर उठा लिया मैं हवा में हाथ पैर मारने लगा. कंधो से होते हुए उसकी लम्बी उंगलिया मेरी गर्दन पर कसने लगी . मेरी साँसे फूलने लगी पर तभी उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी और मुझे फेंक दिया .

मै हैरान हो गया ये दूसरी बार था जब वो चाहता तो मुझे मार सकता था पर उसने ऐसा नहीं किया . अपने आप को संभाल ही रहा था मैं की तभी मुझे गाड़ी चालू होने की आवाज सुनाई दी .मैं तुरंत उस दिशा में दौड़ा पर मुझे थोड़ी देर हो गयी गाड़ी जा चुकी थी . मैंने अपनी साइकिल उठाई और तुरंत गाँव की तरफ मोड़ दी. जितना तेज मैं उसे चला सकता था उतनी तेज मैंने कोशिश की . घर पहुंचा , सांस फूली हुई थी . मैं तुरंत पिताजी के कमरे के पास पहुंचा और दरवाजे को धक्का दिया. दरवाजा अन्दर से बंद था .

“पिताजी दरवाजा खोलिए ” मैंने किवाड़ पिटा

“हम व्यस्त है अभी ” अन्दर से आवाज आई

मैं- पिताजी दरवाजा खोलिए अभी के अभी

कुछ देर ख़ामोशी छाई रही इस से पहले की मैं आज दरवाजे को तोड़ देता अन्दर से दरवाजा खुला . मैं कमरे में घुस गया .पिताजी के हाथ में जाम था . टेबल पर एक किताब खुली थी .

मैं- जंगल में क्या कर रहे थे आप

पिताजी ने किताब बंद करके रखी और बोली- जंगल में जाना कोई गुनाह तो नहीं . हमें लगता है की इतनी आजादी तो है हमें की अपनी मर्जी से कही भी आ सके जा सके.

मैं- ये मेरे सवाल का जवाब नहीं है पिताजी

पिताजी- हम जरुरी नहीं समझते तुम्हारे सवालो का जवाब देना . रात बहुत हुई है सो जाओ जाकर

मैं- आपको जवाब देना होगा. आप अभी जवाब देंगे मुझे .

पिताजी ने अजीब नजरो से देखा मुझे और बोले- अभी तुम इतने बड़े नहीं हुए हो की हमसे नजरे मिला कर बात कर सको

मैं-नजरे छिपा कर तो आप भागे थे जंगल से . मैंने आपको पहचान लिया है आपके अन्दर छुपे उस शैतान को पहचान लिया है मैं जान चूका हूँ की वो हमलावर आदमखोर कोई और नहीं मेरा बाप है .

जिन्दगी में ये दूसरा अवसर था जब मैंने राय साहब के सामने ऊँची आवाज की थी .

राय साहब ने अपनी ऐनक उतारी उसे साफ़ किया और दुबारा पहनते हुए बोले- माना की हौंसला बहुत है तुममे बरखुरदार पर ये इल्जाम लगाते हुए तुम्हे सोचना चाहिए था क्योंकि हम चाहे तो इसी समय तुम्हारी जीभ खींच ली जाएगी.

मैं- ये ढकोसले, ये शान ओ शोकत ये झूठी नवाबी का चोला उतार कर फेंक दीजिये राय साहब .मैं जानता हूँ वो हमलावर आप ही है .

पिताजी ने जाम दुबारा उठा लिया और बोले- इस यकीन की वजह जानने में दिलचश्पी है हमें

मैं-क्योंकि मैं भी उसी जगह मोजूद था मेरी मुठभेड़ हुई उसी हमलावर से और जब मैं उसके पीछे था ठीक उसी समय आप की गाडी वहां से निकली . क्या ये महज इतेफाक है .

पिताजी ने शराब का एक घूँट गले के निचे उतारा और बोले-इत्तेफाक तू जनता ही क्या है इत्तेफाक के बारे में . समस्या ये नहीं है की हमारी गाड़ी वहां क्या कर रही थी समस्या ये है की जमीनों के साथ साथ जंगल को भी तुमने अपनी मिलकियत समझ लिया है किसी और का जंगल में जाना गवारा नहीं तुम्हे

मैं- कितना कमजोर बहाना है ये . चलो मान लिया की मुझ पर हमला होना और हमलावर का उसी समय भागना और आपका भी वही से एक साथ निकलना संयोग ही था पर इतनी रातको ऐसा क्या काम हुआ जो राय साहब को जंगल में जाना पड़ा.

पिताजी- हमने कहा न तुम्हे ये जानने की जरुरत नहीं

मैं- जरुरत है मुझे. गाँव के लोग मारे जा रहे है . गाँव की सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी है

पिताजी- बेशक तुम्हारी जिम्मेदारी है पर तुम्हे यहाँ मेरी रात ख़राब करने की जगह कातिल को तलाशना चाहिए

मैं- उसे तो मैं तलाश लूँगा और जिस दिन ऐसा होगा मैं हर लिहाज भूल जाऊंगा.

गुस्से से दनदनाते हुए मैं कमरे से बाहर निकला . पहले चंपा के साथ सम्बन्ध और फिर ये घटना मैंने सोच लिया राय सहाब के चेहरे पर चढ़े मुखोटे को उसी पंचायत में उतारूंगा जहाँ लाली को फांसी दी गयी थी .




सुबह होते ही मैं उसी जगह पर पहुँच गया और वहां की भोगोलिक स्तिथि को समझने की कोशिश करने लगा. चारो दिशाओ में मैंने खूब छानबीन की तीन दिशाओ में मुझे कुछ नहीं मिला पर चौथी दिशा में काफी चलने के बाद मैं संकरी झाड़ियो से होते हुए उस जगह पर पहुँच गया जो मुझे हैरान कर गयी . मैं काले खंडहर के सामने खड़ा था .
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HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#63

क्या पिताजी निशा से मिलने आये थे या फिर वो किसी तरह से जानते है निशा को मैंने खुद से सवाल किया और फिर खुद ही नकार दिया क्योंकि चारो दिशाओ में से कोई न कोई कहीं न कहीं तो जायेगी ही . अंजुली भर कर मैंने तालाब के पानी से अपने गले को तर किया और सीढिया चढ़ते हुए खंडहर में घुस गया. कुछ भी ऐसा नहीं था जो बताये की किसी और की आमद हुई हो वहां पर . फिर भी मैंने इस खंडहर को तलाशने का सोचा .

ऐसा कुछ भी नहीं था जो इस जगह को खास बनाये सिवाय निशा की मोजुदगी के. इक तरफ से ऊपर आती सीढिया जो घूम पर पीछे उस पगडण्डी पर जाती थी. मंदिर की गुम्बद नुमा छत और दो पायो के बीच तीन कमरे जैसे बरामदे. एक तरफ बड़ी दीवारे थी दूजी तरफ कुछ नहीं .राय साहब जैसा सक्श बिना किसी बात के जंगल में क्यों जायेगा इतनी रात को . ये बात पच नहीं रही थी मुझे.

निशा जब साथ होती थी तो ये जगह किसी जन्नत से कम नहीं लगती थी पर अभी यहाँ पर घोर सन्नाटा पसरा हुआ था . खैर, भूख भी लगी थी तो मैं वापिस कुवे पर चला गया . देखा चंपा घास खोद रही थी मैंने उसे अपने पास बुलाया

मैं- कुछ है क्या खाने को

चंपा- नहीं मालूम होता की तू यहाँ है तो ले आती खाना

मैं- कोई बात नहीं

मैंने चारपाई बाहर निकाली और लेट गया .चंपा थोड़ी दूर बैठ गयी मूढे पर

मैं- आज मजदुर नहीं आये क्या .

चंपा- पता नहीं क्यों नहीं आये

मैं- मंगू भी नहीं दिख रहा

चंपा- वो शहर गया है अभिमानु के साथ

मैं-किसलिए

चंपा- ये तो नहीं मालूम

मैंने एक नजर चंपा की फूली हुई चुचियो पर डाली और बोला- तू बता कैसा चल रहा है तेरा

चंपा- बस ठीक ही हूँ

मैं-तू आजकल घर नहीं आती

चंपा- तूने ही तो कहा था थोड़े दिन न आऊ

मैं- मेरा मतलब था की बच्चा गिराने की वजह से कमजोरी लगेगी तो आराम करना पर इतना भी आराम नहीं करना तुझे. वैसे मुझे मालूम है की मंगू ने नहीं चोदा तुझे. तू झूठ बोली मेरे से

चंपा- मैं तुझसे कभी झूठ नहीं बोलती

मैं- मंगू ने खुद कहा मुझसे

चंपा- कल को तू मुझे चोद रहा होता तो क्या तू ये बात कबूल कर लेता

मैं- मैं नहीं मानता तेरी बात क्योंकि मंगू किसी और से प्यार करता था .

चंपा- चूत मरवाई को प्यार नहीं कहते कबीर. उस रांड कविता के लिए मंगू एक खिलौना था बस जिस से वो खेल रही थी .

मैं- मंगू हद से जायदा मोहब्बत करता था उस से

चंपा- मुफ्त की चूत बड़ी प्यारी लगती है कबीर. मंगू को चूत चाहिए था कविता को लंड खुमारी प्यार लगेगी ही .

मैं- तू बहुत बड़ा आरोप लगा रही है

चंपा- मैं बस सच कह रही हूँ

मैं चंपा को देखता रहा .

चंपा- अब तू मुझे बता चुदाई के लिए आदमी किसी सुरक्षित स्थान की तलाश करेगा की नहीं

मैं- बिलकुल

चंपा- कविता ज्यादातर अकेली रहती थी वैध कभी होता कभी नहीं . तो जब घर पर गांड मरवा सकती थी वो तो जंगल में क्या माँ चुदाने गयी थी .

मैंने चंपा के हसीं चेहरे को देखा. लडकिया गाली बकते समय और भी प्यारी लगती थी. अफ़सोस इस बात का था की मेरे पास कोई जवाब नहीं था .

चंपा- मुझे पूर्ण विश्वास है की उसका कोई और यार था जिससे चुदने वो जंगल में गयी थी और तभी उस पर हमला हुआ

मैं- क्या ऐसा नहीं हो सकता की किसी ने उस पर हमला किया जान बूझ कर जंगल में बुलाया ताकि शक उस आदमखोर पर जाये

चंपा- हो सकता है

मेरे मन में था की सीधे चंपा से पुछू की राय साहब ने कैसे चोदा उसे पर मैं पूछने से कतरा रहा था .

मैं- तुझे क्या लगता है की वो दूसरा कौन होगा जिस से कविता चुदती होगी . वैध जी की गैर मोजुदगी में कोई तो आता होगा उसके घर .

चंपा- ये अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है क्योंकि कोई भी बीमारी का बहाना करके जा सकता था उनके घर

कविता चालू औरत थी चंपा की इस बात को पुख्ता कविता की वो हरकत कर रही थी जब उसने मेरा लंड चूसने की हरकत की थी.

मैं- मुझे भी लेनी है तेरी

चंपा ने मेरी बात बहुत गौर से सुनी और बोली- जानता है मैं हमेशा से चाहती थी तेरे साथ ये सब करना पर मैं तुझे तुझसे ज्यादा जानती हूँ तू ये कह रहा है क्योंकि तू मेरे मन की थाह लेना चाहता है .ऐसे कितने लम्हे आये गए जब हम एक हो सकते थे पर तू न जाने किस मिटटी का बना है और मुझे अभिमान है इस बात का की नियति ने मुझे तुझ जैसा दोस्त दिया है जो ये जानते हुए भी की मैं गलत हु मेरे साथ है .

मैं- फिर भी मुझे लेनी है

चंपा उठी और सलवार का नाडा खोल दिया मेरे सामने सलवार उसके पैरो में गिर गयी.

“ले फिर कर ले तेरी मनचाही ” उसने कहा

मैं- अभी नहीं जब मेरा मन करेगा तब

चंपा- ये खेल मत खेल मेरे साथ तू जो जानना चाहता है कह तो सही मुझे

मैं- मुझे लगता है की चाची और राय साहब के बीच चुदाई होती है

मेरी बात सुनकर चंपा की आँखे बाहर ही आ गयी.

चंपा- असंभव है ये . चाची कदापि ऐसा नहीं करेगी

मैं- चाची नहीं करेगी राय साहब तो कर सकते है न और दोनों के पास वजह भी तो है दोनों अकेलेपन से जूझ रहे है और फिर घर में ही जब सुख मिल सकता है तो क्या रोकेगा उनको.

चंपा - चाची बहुत नेक औरत है

मैं-नेक तो तू भी है पर अपने ही भाई का बिस्तर गर्म करती है जब तू कर सकती है तो राय साहब अपने भाई की बीवी को क्यों नहीं चोद सकते.

मैंने अपना पासा द्रढ़ता से फेंका.

चंपा-मानती हूँ चाची प्यासी है कितनी ही बार मैंने उसकी चूत का पानी निकाला है पर फिर भी मैं कहूँगी की तेरी कही बात कोई कल्पना है

मैं- मैं सच कह रहा हूँ , मैंने राय साहब के कमरे में किसी को देखा था .

मेरी बात सुनकर चंपा के माथे पर बल पड़ गये.

मैं- राय साहब अकेले है उनको भी तो इस चीज की जरुरत है और जब घर में ही चूत मिले तो उसके मजे ही मजे तू तो समझती ही हैं न

चंपा इस से पहले की मेरी बात का जवाब देती . पगडण्डी से आते मैंने राय साहब को देखा .

पिताजी ने एक नजर हम दोनों पर डाली और फिर चंपा से बोले- हमने तुमसे कहा था की तुम्हे कही चलना है हमारे साथ . हम गाड़ी में इंतजार कर रहे है तुम्हारा इतना कह कर पिताजी वापिस मुड गए. मैंने चंपा के चेहरे पर एक अजीब कशमकश देखि.




 

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एक और धमाका राय साब अब खुल कर गेम खेल रहे हैं शरेआम चम्पा को चोदने को ले गया

च्म्पा कबीर के लिए वफादार लगती है लेकिन वैसे कई राज समेटे है जिसमें कबीर का भी नुकसान हो सकता है
 
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