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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Lutgaya

Well-Known Member
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राय साहब क्यो आया जंगल में
अभिमानु पांच साल क्यों दूर रहा मलिकपुर से
भाभी को देखकर कबीर उसे कब पेलने की सोचेगा
क्या अपना नंगा बदन जानबूझ कर दिखाया उसने?
पूछता है भारत
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#62

कुछ देर बीती , फिर और देर हुई और होती ही गयी . राय साहब का कहें कोई पता नहीं था. इंतज़ार करते हुए मैं थकने लगा था.इतने बड़े जंगल में मैं तलाश करू तो कहाँ करू न जाने किस दिशा में गए होंगे वो. मेरी आँखे नींद के मारे झूलने लगी थी की तभी जंगल एक चिंघाड़ से गूंज उठा . आवाज इतने करीब से आई थी की मैं बुरी तरह से हिल गया.

आज जंगल शांत नहीं था और मुझे तुरंत समझ आ गया की शिकारी निकल पड़ा है शिकार में पर वो ये नहीं जानता था की मैं भी हूँ यहाँ .मैं आवाज की दिशा में दौड़ा. झुरमुट पार करके मैं खुली जगह में पहुंचा तो देखा की एक बड़े से पत्थर पर वो ही आदमखोर बैठा है . उसकी पीठ मेरी तरफ थी पर न जाने कैसे उसे मेरी उपस्तिथि का भान हो गया था .

गर्दन पीछे घुमा कर उसने अपनी सुलगती आँखों से मुझे देखा . मैं भी खुल कर उसके सामने आ गया. अँधेरी रात में भी हम दोनों एक दुसरे को घूर रहे थे . समय को बस इतंजार था की पहला वार कौन करे .क्योंकि आज मौका भी था दस्तूर भी था और ये मैदान भी . आज या तो उसकी कहानी खत्म होती या फिर मेरी. एक छलांग में ही वो तुरंत पत्थर से मेरे सामने आकर खड़ा हो गया.

मैंने अपना घुटना उसके पेट में मारा और उछलते हुए उसके सर पर वार किया. ऐसा लगा की जैसे पत्थर पर हाथ दे मारा हो मैंने. उसने प्रतिकार किया और मुझे धक्का दिया मैं थोड़ी दूर एक सूखे लट्ठे पर जाकर गिरा. इस से पहले की मैं उठ पाता उसने अपने पैर के पंजे से मेरे पेट पर मारा.

दुसरे वार को मैंने हाथो से रोका और उसे हवा में उछाल दिया. न जाने क्यों मुझे वो कमजोर सा लग रहा था . तबेले वाली मुठभेड़ में भी मैंने ऐसा ही महसूस किया था .मेरे हाथ में एक पत्थर आ गया जो मैंने उसके सर पर दे मारा . वो चिंघाड़ उठा और अगले ही पल उसने मुझे कंधो से पकड़ कर उठा लिया मैं हवा में हाथ पैर मारने लगा. कंधो से होते हुए उसकी लम्बी उंगलिया मेरी गर्दन पर कसने लगी . मेरी साँसे फूलने लगी पर तभी उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी और मुझे फेंक दिया .

मै हैरान हो गया ये दूसरी बार था जब वो चाहता तो मुझे मार सकता था पर उसने ऐसा नहीं किया . अपने आप को संभाल ही रहा था मैं की तभी मुझे गाड़ी चालू होने की आवाज सुनाई दी .मैं तुरंत उस दिशा में दौड़ा पर मुझे थोड़ी देर हो गयी गाड़ी जा चुकी थी . मैंने अपनी साइकिल उठाई और तुरंत गाँव की तरफ मोड़ दी. जितना तेज मैं उसे चला सकता था उतनी तेज मैंने कोशिश की . घर पहुंचा , सांस फूली हुई थी . मैं तुरंत पिताजी के कमरे के पास पहुंचा और दरवाजे को धक्का दिया. दरवाजा अन्दर से बंद था .

“पिताजी दरवाजा खोलिए ” मैंने किवाड़ पिटा

“हम व्यस्त है अभी ” अन्दर से आवाज आई

मैं- पिताजी दरवाजा खोलिए अभी के अभी

कुछ देर ख़ामोशी छाई रही इस से पहले की मैं आज दरवाजे को तोड़ देता अन्दर से दरवाजा खुला . मैं कमरे में घुस गया .पिताजी के हाथ में जाम था . टेबल पर एक किताब खुली थी .

मैं- जंगल में क्या कर रहे थे आप

पिताजी ने किताब बंद करके रखी और बोली- जंगल में जाना कोई गुनाह तो नहीं . हमें लगता है की इतनी आजादी तो है हमें की अपनी मर्जी से कही भी आ सके जा सके.

मैं- ये मेरे सवाल का जवाब नहीं है पिताजी

पिताजी- हम जरुरी नहीं समझते तुम्हारे सवालो का जवाब देना . रात बहुत हुई है सो जाओ जाकर

मैं- आपको जवाब देना होगा. आप अभी जवाब देंगे मुझे .

पिताजी ने अजीब नजरो से देखा मुझे और बोले- अभी तुम इतने बड़े नहीं हुए हो की हमसे नजरे मिला कर बात कर सको

मैं-नजरे छिपा कर तो आप भागे थे जंगल से . मैंने आपको पहचान लिया है आपके अन्दर छुपे उस शैतान को पहचान लिया है मैं जान चूका हूँ की वो हमलावर आदमखोर कोई और नहीं मेरा बाप है .

जिन्दगी में ये दूसरा अवसर था जब मैंने राय साहब के सामने ऊँची आवाज की थी .

राय साहब ने अपनी ऐनक उतारी उसे साफ़ किया और दुबारा पहनते हुए बोले- माना की हौंसला बहुत है तुममे बरखुरदार पर ये इल्जाम लगाते हुए तुम्हे सोचना चाहिए था क्योंकि हम चाहे तो इसी समय तुम्हारी जीभ खींच ली जाएगी.

मैं- ये ढकोसले, ये शान ओ शोकत ये झूठी नवाबी का चोला उतार कर फेंक दीजिये राय साहब .मैं जानता हूँ वो हमलावर आप ही है .

पिताजी ने जाम दुबारा उठा लिया और बोले- इस यकीन की वजह जानने में दिलचश्पी है हमें

मैं-क्योंकि मैं भी उसी जगह मोजूद था मेरी मुठभेड़ हुई उसी हमलावर से और जब मैं उसके पीछे था ठीक उसी समय आप की गाडी वहां से निकली . क्या ये महज इतेफाक है .

पिताजी ने शराब का एक घूँट गले के निचे उतारा और बोले-इत्तेफाक तू जनता ही क्या है इत्तेफाक के बारे में . समस्या ये नहीं है की हमारी गाड़ी वहां क्या कर रही थी समस्या ये है की जमीनों के साथ साथ जंगल को भी तुमने अपनी मिलकियत समझ लिया है किसी और का जंगल में जाना गवारा नहीं तुम्हे

मैं- कितना कमजोर बहाना है ये . चलो मान लिया की मुझ पर हमला होना और हमलावर का उसी समय भागना और आपका भी वही से एक साथ निकलना संयोग ही था पर इतनी रातको ऐसा क्या काम हुआ जो राय साहब को जंगल में जाना पड़ा.

पिताजी- हमने कहा न तुम्हे ये जानने की जरुरत नहीं

मैं- जरुरत है मुझे. गाँव के लोग मारे जा रहे है . गाँव की सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी है

पिताजी- बेशक तुम्हारी जिम्मेदारी है पर तुम्हे यहाँ मेरी रात ख़राब करने की जगह कातिल को तलाशना चाहिए

मैं- उसे तो मैं तलाश लूँगा और जिस दिन ऐसा होगा मैं हर लिहाज भूल जाऊंगा.

गुस्से से दनदनाते हुए मैं कमरे से बाहर निकला . पहले चंपा के साथ सम्बन्ध और फिर ये घटना मैंने सोच लिया राय सहाब के चेहरे पर चढ़े मुखोटे को उसी पंचायत में उतारूंगा जहाँ लाली को फांसी दी गयी थी .



सुबह होते ही मैं उसी जगह पर पहुँच गया और वहां की भोगोलिक स्तिथि को समझने की कोशिश करने लगा. चारो दिशाओ में मैंने खूब छानबीन की तीन दिशाओ में मुझे कुछ नहीं मिला पर चौथी दिशा में काफी चलने के बाद मैं संकरी झाड़ियो से होते हुए उस जगह पर पहुँच गया जो मुझे हैरान कर गयी . मैं काले खंडहर के सामने खड़ा था .
 

Studxyz

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ज़बरदस्त घमासान हो गया बाप बेटे के बीच लेकिन ये खण्डार जहा कबीर पहुंचा वही है जहाँ निशा रहती है

लाख अंदाज़े लगा लो लेकिन इस कहानी के सस्पेंस की कोई झाँट भी नहीं उखाड़ सकता :vhappy1:
 

Ajju Landwalia

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#62

कुछ देर बीती , फिर और देर हुई और होती ही गयी . राय साहब का कहें कोई पता नहीं था. इंतज़ार करते हुए मैं थकने लगा था.इतने बड़े जंगल में मैं तलाश करू तो कहाँ करू न जाने किस दिशा में गए होंगे वो. मेरी आँखे नींद के मारे झूलने लगी थी की तभी जंगल एक चिंघाड़ से गूंज उठा . आवाज इतने करीब से आई थी की मैं बुरी तरह से हिल गया.

आज जंगल शांत नहीं था और मुझे तुरंत समझ आ गया की शिकारी निकल पड़ा है शिकार में पर वो ये नहीं जानता था की मैं भी हूँ यहाँ .मैं आवाज की दिशा में दौड़ा. झुरमुट पार करके मैं खुली जगह में पहुंचा तो देखा की एक बड़े से पत्थर पर वो ही आदमखोर बैठा है . उसकी पीठ मेरी तरफ थी पर न जाने कैसे उसे मेरी उपस्तिथि का भान हो गया था .

गर्दन पीछे घुमा कर उसने अपनी सुलगती आँखों से मुझे देखा . मैं भी खुल कर उसके सामने आ गया. अँधेरी रात में भी हम दोनों एक दुसरे को घूर रहे थे . समय को बस इतंजार था की पहला वार कौन करे .क्योंकि आज मौका भी था दस्तूर भी था और ये मैदान भी . आज या तो उसकी कहानी खत्म होती या फिर मेरी. एक छलांग में ही वो तुरंत पत्थर से मेरे सामने आकर खड़ा हो गया.

मैंने अपना घुटना उसके पेट में मारा और उछलते हुए उसके सर पर वार किया. ऐसा लगा की जैसे पत्थर पर हाथ दे मारा हो मैंने. उसने प्रतिकार किया और मुझे धक्का दिया मैं थोड़ी दूर एक सूखे लट्ठे पर जाकर गिरा. इस से पहले की मैं उठ पाता उसने अपने पैर के पंजे से मेरे पेट पर मारा.

दुसरे वार को मैंने हाथो से रोका और उसे हवा में उछाल दिया. न जाने क्यों मुझे वो कमजोर सा लग रहा था . तबेले वाली मुठभेड़ में भी मैंने ऐसा ही महसूस किया था .मेरे हाथ में एक पत्थर आ गया जो मैंने उसके सर पर दे मारा . वो चिंघाड़ उठा और अगले ही पल उसने मुझे कंधो से पकड़ कर उठा लिया मैं हवा में हाथ पैर मारने लगा. कंधो से होते हुए उसकी लम्बी उंगलिया मेरी गर्दन पर कसने लगी . मेरी साँसे फूलने लगी पर तभी उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी और मुझे फेंक दिया .

मै हैरान हो गया ये दूसरी बार था जब वो चाहता तो मुझे मार सकता था पर उसने ऐसा नहीं किया . अपने आप को संभाल ही रहा था मैं की तभी मुझे गाड़ी चालू होने की आवाज सुनाई दी .मैं तुरंत उस दिशा में दौड़ा पर मुझे थोड़ी देर हो गयी गाड़ी जा चुकी थी . मैंने अपनी साइकिल उठाई और तुरंत गाँव की तरफ मोड़ दी. जितना तेज मैं उसे चला सकता था उतनी तेज मैंने कोशिश की . घर पहुंचा , सांस फूली हुई थी . मैं तुरंत पिताजी के कमरे के पास पहुंचा और दरवाजे को धक्का दिया. दरवाजा अन्दर से बंद था .

“पिताजी दरवाजा खोलिए ” मैंने किवाड़ पिटा

“हम व्यस्त है अभी ” अन्दर से आवाज आई

मैं- पिताजी दरवाजा खोलिए अभी के अभी

कुछ देर ख़ामोशी छाई रही इस से पहले की मैं आज दरवाजे को तोड़ देता अन्दर से दरवाजा खुला . मैं कमरे में घुस गया .पिताजी के हाथ में जाम था . टेबल पर एक किताब खुली थी .

मैं- जंगल में क्या कर रहे थे आप

पिताजी ने किताब बंद करके रखी और बोली- जंगल में जाना कोई गुनाह तो नहीं . हमें लगता है की इतनी आजादी तो है हमें की अपनी मर्जी से कही भी आ सके जा सके.

मैं- ये मेरे सवाल का जवाब नहीं है पिताजी

पिताजी- हम जरुरी नहीं समझते तुम्हारे सवालो का जवाब देना . रात बहुत हुई है सो जाओ जाकर

मैं- आपको जवाब देना होगा. आप अभी जवाब देंगे मुझे .

पिताजी ने अजीब नजरो से देखा मुझे और बोले- अभी तुम इतने बड़े नहीं हुए हो की हमसे नजरे मिला कर बात कर सको

मैं-नजरे छिपा कर तो आप भागे थे जंगल से . मैंने आपको पहचान लिया है आपके अन्दर छुपे उस शैतान को पहचान लिया है मैं जान चूका हूँ की वो हमलावर आदमखोर कोई और नहीं मेरा बाप है .

जिन्दगी में ये दूसरा अवसर था जब मैंने राय साहब के सामने ऊँची आवाज की थी .

राय साहब ने अपनी ऐनक उतारी उसे साफ़ किया और दुबारा पहनते हुए बोले- माना की हौंसला बहुत है तुममे बरखुरदार पर ये इल्जाम लगाते हुए तुम्हे सोचना चाहिए था क्योंकि हम चाहे तो इसी समय तुम्हारी जीभ खींच ली जाएगी.

मैं- ये ढकोसले, ये शान ओ शोकत ये झूठी नवाबी का चोला उतार कर फेंक दीजिये राय साहब .मैं जानता हूँ वो हमलावर आप ही है .

पिताजी ने जाम दुबारा उठा लिया और बोले- इस यकीन की वजह जानने में दिलचश्पी है हमें

मैं-क्योंकि मैं भी उसी जगह मोजूद था मेरी मुठभेड़ हुई उसी हमलावर से और जब मैं उसके पीछे था ठीक उसी समय आप की गाडी वहां से निकली . क्या ये महज इतेफाक है .

पिताजी ने शराब का एक घूँट गले के निचे उतारा और बोले-इत्तेफाक तू जनता ही क्या है इत्तेफाक के बारे में . समस्या ये नहीं है की हमारी गाड़ी वहां क्या कर रही थी समस्या ये है की जमीनों के साथ साथ जंगल को भी तुमने अपनी मिलकियत समझ लिया है किसी और का जंगल में जाना गवारा नहीं तुम्हे

मैं- कितना कमजोर बहाना है ये . चलो मान लिया की मुझ पर हमला होना और हमलावर का उसी समय भागना और आपका भी वही से एक साथ निकलना संयोग ही था पर इतनी रातको ऐसा क्या काम हुआ जो राय साहब को जंगल में जाना पड़ा.

पिताजी- हमने कहा न तुम्हे ये जानने की जरुरत नहीं

मैं- जरुरत है मुझे. गाँव के लोग मारे जा रहे है . गाँव की सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी है

पिताजी- बेशक तुम्हारी जिम्मेदारी है पर तुम्हे यहाँ मेरी रात ख़राब करने की जगह कातिल को तलाशना चाहिए

मैं- उसे तो मैं तलाश लूँगा और जिस दिन ऐसा होगा मैं हर लिहाज भूल जाऊंगा.

गुस्से से दनदनाते हुए मैं कमरे से बाहर निकला . पहले चंपा के साथ सम्बन्ध और फिर ये घटना मैंने सोच लिया राय सहाब के चेहरे पर चढ़े मुखोटे को उसी पंचायत में उतारूंगा जहाँ लाली को फांसी दी गयी थी .




सुबह होते ही मैं उसी जगह पर पहुँच गया और वहां की भोगोलिक स्तिथि को समझने की कोशिश करने लगा. चारो दिशाओ में मैंने खूब छानबीन की तीन दिशाओ में मुझे कुछ नहीं मिला पर चौथी दिशा में काफी चलने के बाद मैं संकरी झाड़ियो से होते हुए उस जगह पर पहुँच गया जो मुझे हैरान कर गयी . मैं काले खंडहर के सामने खड़ा था .


Gazab ki update Fauzi Bhai,

Lekin mera manana he ki ye Ray Sahab nahi koi aur hi he, Ray Sahab bhi Kabir ki tarah usi aadamkhor ko dhundh rahe he........ya fir Nisha ko


Keep posting Bhai
 

Tiger 786

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#62

कुछ देर बीती , फिर और देर हुई और होती ही गयी . राय साहब का कहें कोई पता नहीं था. इंतज़ार करते हुए मैं थकने लगा था.इतने बड़े जंगल में मैं तलाश करू तो कहाँ करू न जाने किस दिशा में गए होंगे वो. मेरी आँखे नींद के मारे झूलने लगी थी की तभी जंगल एक चिंघाड़ से गूंज उठा . आवाज इतने करीब से आई थी की मैं बुरी तरह से हिल गया.

आज जंगल शांत नहीं था और मुझे तुरंत समझ आ गया की शिकारी निकल पड़ा है शिकार में पर वो ये नहीं जानता था की मैं भी हूँ यहाँ .मैं आवाज की दिशा में दौड़ा. झुरमुट पार करके मैं खुली जगह में पहुंचा तो देखा की एक बड़े से पत्थर पर वो ही आदमखोर बैठा है . उसकी पीठ मेरी तरफ थी पर न जाने कैसे उसे मेरी उपस्तिथि का भान हो गया था .

गर्दन पीछे घुमा कर उसने अपनी सुलगती आँखों से मुझे देखा . मैं भी खुल कर उसके सामने आ गया. अँधेरी रात में भी हम दोनों एक दुसरे को घूर रहे थे . समय को बस इतंजार था की पहला वार कौन करे .क्योंकि आज मौका भी था दस्तूर भी था और ये मैदान भी . आज या तो उसकी कहानी खत्म होती या फिर मेरी. एक छलांग में ही वो तुरंत पत्थर से मेरे सामने आकर खड़ा हो गया.

मैंने अपना घुटना उसके पेट में मारा और उछलते हुए उसके सर पर वार किया. ऐसा लगा की जैसे पत्थर पर हाथ दे मारा हो मैंने. उसने प्रतिकार किया और मुझे धक्का दिया मैं थोड़ी दूर एक सूखे लट्ठे पर जाकर गिरा. इस से पहले की मैं उठ पाता उसने अपने पैर के पंजे से मेरे पेट पर मारा.

दुसरे वार को मैंने हाथो से रोका और उसे हवा में उछाल दिया. न जाने क्यों मुझे वो कमजोर सा लग रहा था . तबेले वाली मुठभेड़ में भी मैंने ऐसा ही महसूस किया था .मेरे हाथ में एक पत्थर आ गया जो मैंने उसके सर पर दे मारा . वो चिंघाड़ उठा और अगले ही पल उसने मुझे कंधो से पकड़ कर उठा लिया मैं हवा में हाथ पैर मारने लगा. कंधो से होते हुए उसकी लम्बी उंगलिया मेरी गर्दन पर कसने लगी . मेरी साँसे फूलने लगी पर तभी उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी और मुझे फेंक दिया .

मै हैरान हो गया ये दूसरी बार था जब वो चाहता तो मुझे मार सकता था पर उसने ऐसा नहीं किया . अपने आप को संभाल ही रहा था मैं की तभी मुझे गाड़ी चालू होने की आवाज सुनाई दी .मैं तुरंत उस दिशा में दौड़ा पर मुझे थोड़ी देर हो गयी गाड़ी जा चुकी थी . मैंने अपनी साइकिल उठाई और तुरंत गाँव की तरफ मोड़ दी. जितना तेज मैं उसे चला सकता था उतनी तेज मैंने कोशिश की . घर पहुंचा , सांस फूली हुई थी . मैं तुरंत पिताजी के कमरे के पास पहुंचा और दरवाजे को धक्का दिया. दरवाजा अन्दर से बंद था .

“पिताजी दरवाजा खोलिए ” मैंने किवाड़ पिटा

“हम व्यस्त है अभी ” अन्दर से आवाज आई

मैं- पिताजी दरवाजा खोलिए अभी के अभी

कुछ देर ख़ामोशी छाई रही इस से पहले की मैं आज दरवाजे को तोड़ देता अन्दर से दरवाजा खुला . मैं कमरे में घुस गया .पिताजी के हाथ में जाम था . टेबल पर एक किताब खुली थी .

मैं- जंगल में क्या कर रहे थे आप

पिताजी ने किताब बंद करके रखी और बोली- जंगल में जाना कोई गुनाह तो नहीं . हमें लगता है की इतनी आजादी तो है हमें की अपनी मर्जी से कही भी आ सके जा सके.

मैं- ये मेरे सवाल का जवाब नहीं है पिताजी

पिताजी- हम जरुरी नहीं समझते तुम्हारे सवालो का जवाब देना . रात बहुत हुई है सो जाओ जाकर

मैं- आपको जवाब देना होगा. आप अभी जवाब देंगे मुझे .

पिताजी ने अजीब नजरो से देखा मुझे और बोले- अभी तुम इतने बड़े नहीं हुए हो की हमसे नजरे मिला कर बात कर सको

मैं-नजरे छिपा कर तो आप भागे थे जंगल से . मैंने आपको पहचान लिया है आपके अन्दर छुपे उस शैतान को पहचान लिया है मैं जान चूका हूँ की वो हमलावर आदमखोर कोई और नहीं मेरा बाप है .

जिन्दगी में ये दूसरा अवसर था जब मैंने राय साहब के सामने ऊँची आवाज की थी .

राय साहब ने अपनी ऐनक उतारी उसे साफ़ किया और दुबारा पहनते हुए बोले- माना की हौंसला बहुत है तुममे बरखुरदार पर ये इल्जाम लगाते हुए तुम्हे सोचना चाहिए था क्योंकि हम चाहे तो इसी समय तुम्हारी जीभ खींच ली जाएगी.

मैं- ये ढकोसले, ये शान ओ शोकत ये झूठी नवाबी का चोला उतार कर फेंक दीजिये राय साहब .मैं जानता हूँ वो हमलावर आप ही है .

पिताजी ने जाम दुबारा उठा लिया और बोले- इस यकीन की वजह जानने में दिलचश्पी है हमें

मैं-क्योंकि मैं भी उसी जगह मोजूद था मेरी मुठभेड़ हुई उसी हमलावर से और जब मैं उसके पीछे था ठीक उसी समय आप की गाडी वहां से निकली . क्या ये महज इतेफाक है .

पिताजी ने शराब का एक घूँट गले के निचे उतारा और बोले-इत्तेफाक तू जनता ही क्या है इत्तेफाक के बारे में . समस्या ये नहीं है की हमारी गाड़ी वहां क्या कर रही थी समस्या ये है की जमीनों के साथ साथ जंगल को भी तुमने अपनी मिलकियत समझ लिया है किसी और का जंगल में जाना गवारा नहीं तुम्हे

मैं- कितना कमजोर बहाना है ये . चलो मान लिया की मुझ पर हमला होना और हमलावर का उसी समय भागना और आपका भी वही से एक साथ निकलना संयोग ही था पर इतनी रातको ऐसा क्या काम हुआ जो राय साहब को जंगल में जाना पड़ा.

पिताजी- हमने कहा न तुम्हे ये जानने की जरुरत नहीं

मैं- जरुरत है मुझे. गाँव के लोग मारे जा रहे है . गाँव की सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी है

पिताजी- बेशक तुम्हारी जिम्मेदारी है पर तुम्हे यहाँ मेरी रात ख़राब करने की जगह कातिल को तलाशना चाहिए

मैं- उसे तो मैं तलाश लूँगा और जिस दिन ऐसा होगा मैं हर लिहाज भूल जाऊंगा.

गुस्से से दनदनाते हुए मैं कमरे से बाहर निकला . पहले चंपा के साथ सम्बन्ध और फिर ये घटना मैंने सोच लिया राय सहाब के चेहरे पर चढ़े मुखोटे को उसी पंचायत में उतारूंगा जहाँ लाली को फांसी दी गयी थी .




सुबह होते ही मैं उसी जगह पर पहुँच गया और वहां की भोगोलिक स्तिथि को समझने की कोशिश करने लगा. चारो दिशाओ में मैंने खूब छानबीन की तीन दिशाओ में मुझे कुछ नहीं मिला पर चौथी दिशा में काफी चलने के बाद मैं संकरी झाड़ियो से होते हुए उस जगह पर पहुँच गया जो मुझे हैरान कर गयी . मैं काले खंडहर के सामने खड़ा था .
Behtreen update
 

Naik

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कम्बल ओढ़े मैं कुर्सी पर बैठा सोच रहा था तमाम संभावनाओ के बारे में की चाची भी मेरे पास आकर बैठ गयी चाची ने कुछ मूंगफलिया दी मुझे और बोली- देख रही हूँ पिछले कुछ दिनों से चिंता सी है तेरे चेहरे पर क्या बात है

मैं- कुछ खास नहीं बस ऐसे ही

चाची- फिर भी तू बता सकता है मुझे.

मैं-पिताजी के कमरे की सफाई कौन करता है

चाची- कोई नहीं . क्या तुझे नहीं मालूम जेठ जी की इजाजत के बिना कोई नहीं आता जाता वहां पर.

मैं- आज बड़ी प्यारी लग रही हूँ

चाची- समझ रही हूँ तेरी इन बातो को पर तेरा काम अब कुछ दिन हो नहीं पायेगा, मासिक आया है मुझे.

मैं मुस्कुरा दिया और उठ गया वहां से

चाची- कहाँ चला

मैं- थोड़ी देर सोना चाहता हूँ मैं.

मैंने रजाई ओढ़ी और आँखे बंद कर ली. शाम को मैं चंपा के घर गया . वो सिलबट्टे पर मसाले पीस रही थी . मैंने भरपूर नजर डाली उस पर बाप से चुदाई करवा के गदरा तो गयी थी वो.

चंपा- तू बैठ मैं बस अभी आती हु

मैं- कोई नहीं .

मैंने छप्पर के बाहर चारपाई लगाई और बैठ गया.

मैं- घरवाले कहाँ गए.

चंपा- बापू खेत पर और माँ पड़ोस में आती ही होगी .

मैं- तुझसे कुछ कहना था

चंपा- हाँ

मैं- तू कैसी चुडिया पहनती है

चंपा- मै क्यों चूड़ी पहनने लगी. अभी मेरा ब्याह कहाँ हुआ

मेरे ध्यान में ये बात क्यों नहीं आई थी . मतलब वो जो भी थी शादीशुदा ही रही होगी.

चंपा- क्यों पूछ रहा है तू चूडियो के बारे में

मैं- छोड़ ये बता राय साहब मिले क्या तुझसे आज

चंपा- नहीं पर क्या बात है

मैं- कुछ नहीं वो कह रहे थे की तुझसे मिलना है उनको

चंपा ने मेरी तरफ देखा और बोली- माँ आ जाती है फिर चलती हूँ मैं

तभी चंपा के पिता घर आ गए. मैंने देखा उनके चेहरे पर थोड़ी हताशा थी . चंपा ने पानी पकडाया अपने पिता को वो मेरे पास बैठ गए.

मैं- क्या बात है काका कुछ परेशां हो .

काका- नहीं कुंवर कोई परेशानी नहीं

मैंने काका का हाथ पकड़ा और बोला- अपने बेटे से छिपाने लगे हो काका कोई तो गंभीर बात जरुर है .

काका- बेटा आज चंपा के ब्याह की तिथि पक्की हो गयी है . और इस बार की ही फसल खराब हो गयी है . वैसे इतना जुगाड़ तो है मेरे पास की बारात की रोटी-पानी हो जायेगा पर शेखर बाबु का परिवार संपन है . दान-दहेज़ की फ़िक्र है उनकी हसियत जैसा ब्याह नहीं किया तो समाज में बेइज्जती होगी.

मैं- काका इस बात की क्या चिंता आपको . बहन-बेटिया कभी माँ बाप पर बोझ नहीं होती चंपा के भाग्य में जो है वो लेकर जाएगी ये. आप जरा भी फ़िक्र मत करो मैं हूँ न.

काका- बेटा राय साहब के बड़े अहसान रहे है हम पर . चंपा के लिए इतना योग्य वर तलाशा उन्होंने हम तो अपनी चमड़ी की जुतिया भी राय साहब के लिए बना दे तो भी उनका अहसान इस जन्म में नहीं उतार पाएंगे.

मैं- कैसी बाते कर रहे है आप काका. मेरा बचपन इस घर में गुजरा है आपके दो बेटे है मैं और मंगू चंपा के ब्याह की आपको कोई चिंता नहीं करनी है . मैं और मंगू जितनी भी कमाई करते है उसका एक हिस्सा हम बचपन से इसी दिन के लिए ही जमा करते आये है . आप निश्चिन्त रहो .

काका ने मुझे अपने सीने से लगा लिया और मेरे सर को पुचकारने लगे. उस दिन मैंने जाना था की बाप होना दुनिया का सबसे मुश्किल काम होता है . मेरी नजर चंपा पर पड़ी जो दहलीज पर खड़ी भीगी आँखों से हमें ही देख रही थी . कुछ देर बाद मैं चंपा के घर से निकला और गली में आ गया.

“कबीर रुक जरा ”चंपा ने पीछे से आवाज दी तो मैं रुक गया . वो दौड़ते हुए आई और मेरे आगोश में समां गयी.

मैं- अरे क्या कर रही है , कोई देखेगा तो क्या सोचेगा

चंपा- परवाह नहीं मुझे . लगने दे मुझे सीने से तेरे

मैं- पागल मत बन

चंपा ने मेरे माथे को हौले से चूमा और वापिस चली गयी. मैं सोचने लगा इसके मन में क्या आया. मैं वापिस हुआ ही था की मेरी नजर वैध जी के घर के खुले दरवाजे पर पड़ी. मैं उधर हो लिया . देखा की वैध जी अन्दर बैठे दवाइया कूट रहे थे.

मैं- कैसे है वैध जी.

वैध- ठीक हूँ कुंवर . कैसे आना हुआ

मैं- इधर से गुजर रहा था सोचा मिलता चलू

मैंने गौर किया कविता की मौत के बाद घर पर इतना ध्यान दिया नहीं गया था और देता भी कौन .

मैं- वैध जी भाभी के जाने के बाद आप अकेले रह गए . आपको किसी प्रकार की समस्या हो तो मुझे बताना .

वैध- नहीं कुंवर सब ठीक है . मुझे बूढ़े की भला क्या जरूरते हो सकती है दो रोटियों के सिवाय उसकी भी अब चिंता नहीं मंगू रोज सुबह शाम खाना दे जाता है .

जिन्दगी में पहली बार मुझे मंगू पर गर्व हुआ .

मैं- आप शहर क्यों नहीं चले जाते या फिर रोहतास को यहाँ बुला लो ऐसी भी क्या कमाई करनी जिसमे परिवार संग ही न रह पाए.

वैध- रोहतास की तो बहुत इच्छा है वो हमें ले जाना चाहता था पर मुझे शहर की आबो हवा रास नहीं मेरी वजह से ही कविता बहु को यहाँ रहना पड़ा पर आज सोचता हूँ तो की काश हम शहर चले गए होते तो वो जिन्दा होती.

मैं- जाने वाले चले जातेहै पीछे यादे रह जाती है पर इतनी रात को भाभी जंगल में करने क्या गयी थी

वैध- इसी यक्ष प्रश्न ने मेरा जीना हराम किया हुआ है. मैं हैरान हु सोच सोच कर बेटा

मैं- वैध जी आप को जरा भी परेशां नहीं होना. आप अकेले नहीं है रोहतास शहर में है पर यहाँ भी आपका परिवार है हम लोग है आपके साथ .

वैध की बूढी आँखों में पानी आ गया. थोड़ी देर बाद मैं वहां से उठ कर कुवे की तरफ चल दिया. सवाल अब भी मेरे मन में था की जंगल में कविता क्या कर रही थी उस रात. ? कविता की मौत अगर जंगल में हुई तो उसकी मौत की वजह भी जंगल में ही होगी मैंने इस बात पर गौर किया और संभावनाओ पर विचार करते हुए मैं कुवे पर पहुँच गया. इस जंगल में कुछ तो ऐसा था जो छिपा हुआ था या जिसे छुपाया गया था .



मंगू से मिलने आई होगी कविता ये विचार ही निरर्थक था क्योंकि मंगू से मिलने के लिए उसके घर से जायदा सुरक्षित कुछ नहीं था . जब घर में चुदाई हो सकती थी तो बाहर खुले में रिस्क क्यों लेगी वो . दूसरा महत्वपूर्ण सवाल ये था की क्या कविता के मंगू के अलावा किसी और से भी सम्बन्ध हो सकते थे . इस शक का ठोस कारण था मेरे पास क्योंकि उस रात पहली हरकत में ही कविता ने लगभग मेरा लंड चूस ही लिया था .
Kabir apni taraf se poori koshish ker raha h rai sahab ki jasusi m lekin haath kich nahi lag raha
Idher kavita k mamle m thoda dimag lagaya h ki kabita ka mangu alawa kisi or k saath bhi chakker chala raha tabhi tow jungle gayi thi ya fir aisa jungle m kich aisa h jo kavita jaan gayi thi islilye gayi
Baherhal jo bhi. sawal bahot saare jawab bhawish ki goad m chupa h jo time aane per hi pata chalega
Baherhal dekhte aage kia hota h
Shaandaar update bhai
 
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