• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

brego4

Well-Known Member
2,850
11,063
158
wah aaj 2 updates ka dhamaka aur 3rd shayad raat ko ?

Kabir ki ghar ki taraf se problems n confusion badhti ja rahi hai par nisha ke aane se wo ab stable sa lag raha hai

bhabhi bhai ke saath mil kar to koi lafda nahi kar rahi iski wajah property bhi ho sakti hai aur isme ek aur angle bhi hai suraj bhan- abhimanu aur sugar mill may be bhabhi bhi sath mein ho par wo kabir ka bura chahegi ya nahi ? she is certianly as of now a suspect

Champa bholi ya shaitaan dono hi ho sakti hai lekin Rai sahab ke karnaame sab se bade hairaan kar dene wale hain aur kya real mein chachi ya bhabhi is se bach gai hongi ?
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,053
83,847
259
#



कम्बल ओढ़े मैं कुर्सी पर बैठा सोच रहा था तमाम संभावनाओ के बारे में की चाची भी मेरे पास आकर बैठ गयी चाची ने कुछ मूंगफलिया दी मुझे और बोली- देख रही हूँ पिछले कुछ दिनों से चिंता सी है तेरे चेहरे पर क्या बात है

मैं- कुछ खास नहीं बस ऐसे ही

चाची- फिर भी तू बता सकता है मुझे.

मैं-पिताजी के कमरे की सफाई कौन करता है

चाची- कोई नहीं . क्या तुझे नहीं मालूम जेठ जी की इजाजत के बिना कोई नहीं आता जाता वहां पर.

मैं- आज बड़ी प्यारी लग रही हूँ

चाची- समझ रही हूँ तेरी इन बातो को पर तेरा काम अब कुछ दिन हो नहीं पायेगा, मासिक आया है मुझे.

मैं मुस्कुरा दिया और उठ गया वहां से

चाची- कहाँ चला

मैं- थोड़ी देर सोना चाहता हूँ मैं.

मैंने रजाई ओढ़ी और आँखे बंद कर ली. शाम को मैं चंपा के घर गया . वो सिलबट्टे पर मसाले पीस रही थी . मैंने भरपूर नजर डाली उस पर बाप से चुदाई करवा के गदरा तो गयी थी वो.

चंपा- तू बैठ मैं बस अभी आती हु

मैं- कोई नहीं .

मैंने छप्पर के बाहर चारपाई लगाई और बैठ गया.

मैं- घरवाले कहाँ गए.

चंपा- बापू खेत पर और माँ पड़ोस में आती ही होगी .

मैं- तुझसे कुछ कहना था

चंपा- हाँ

मैं- तू कैसी चुडिया पहनती है

चंपा- मै क्यों चूड़ी पहनने लगी. अभी मेरा ब्याह कहाँ हुआ

मेरे ध्यान में ये बात क्यों नहीं आई थी . मतलब वो जो भी थी शादीशुदा ही रही होगी.

चंपा- क्यों पूछ रहा है तू चूडियो के बारे में

मैं- छोड़ ये बता राय साहब मिले क्या तुझसे आज

चंपा- नहीं पर क्या बात है

मैं- कुछ नहीं वो कह रहे थे की तुझसे मिलना है उनको

चंपा ने मेरी तरफ देखा और बोली- माँ आ जाती है फिर चलती हूँ मैं

तभी चंपा के पिता घर आ गए. मैंने देखा उनके चेहरे पर थोड़ी हताशा थी . चंपा ने पानी पकडाया अपने पिता को वो मेरे पास बैठ गए.

मैं- क्या बात है काका कुछ परेशां हो .

काका- नहीं कुंवर कोई परेशानी नहीं

मैंने काका का हाथ पकड़ा और बोला- अपने बेटे से छिपाने लगे हो काका कोई तो गंभीर बात जरुर है .

काका- बेटा आज चंपा के ब्याह की तिथि पक्की हो गयी है . और इस बार की ही फसल खराब हो गयी है . वैसे इतना जुगाड़ तो है मेरे पास की बारात की रोटी-पानी हो जायेगा पर शेखर बाबु का परिवार संपन है . दान-दहेज़ की फ़िक्र है उनकी हसियत जैसा ब्याह नहीं किया तो समाज में बेइज्जती होगी.

मैं- काका इस बात की क्या चिंता आपको . बहन-बेटिया कभी माँ बाप पर बोझ नहीं होती चंपा के भाग्य में जो है वो लेकर जाएगी ये. आप जरा भी फ़िक्र मत करो मैं हूँ न.

काका- बेटा राय साहब के बड़े अहसान रहे है हम पर . चंपा के लिए इतना योग्य वर तलाशा उन्होंने हम तो अपनी चमड़ी की जुतिया भी राय साहब के लिए बना दे तो भी उनका अहसान इस जन्म में नहीं उतार पाएंगे.

मैं- कैसी बाते कर रहे है आप काका. मेरा बचपन इस घर में गुजरा है आपके दो बेटे है मैं और मंगू चंपा के ब्याह की आपको कोई चिंता नहीं करनी है . मैं और मंगू जितनी भी कमाई करते है उसका एक हिस्सा हम बचपन से इसी दिन के लिए ही जमा करते आये है . आप निश्चिन्त रहो .

काका ने मुझे अपने सीने से लगा लिया और मेरे सर को पुचकारने लगे. उस दिन मैंने जाना था की बाप होना दुनिया का सबसे मुश्किल काम होता है . मेरी नजर चंपा पर पड़ी जो दहलीज पर खड़ी भीगी आँखों से हमें ही देख रही थी . कुछ देर बाद मैं चंपा के घर से निकला और गली में आ गया.

“कबीर रुक जरा ”चंपा ने पीछे से आवाज दी तो मैं रुक गया . वो दौड़ते हुए आई और मेरे आगोश में समां गयी.

मैं- अरे क्या कर रही है , कोई देखेगा तो क्या सोचेगा

चंपा- परवाह नहीं मुझे . लगने दे मुझे सीने से तेरे

मैं- पागल मत बन

चंपा ने मेरे माथे को हौले से चूमा और वापिस चली गयी. मैं सोचने लगा इसके मन में क्या आया. मैं वापिस हुआ ही था की मेरी नजर वैध जी के घर के खुले दरवाजे पर पड़ी. मैं उधर हो लिया . देखा की वैध जी अन्दर बैठे दवाइया कूट रहे थे.

मैं- कैसे है वैध जी.

वैध- ठीक हूँ कुंवर . कैसे आना हुआ

मैं- इधर से गुजर रहा था सोचा मिलता चलू

मैंने गौर किया कविता की मौत के बाद घर पर इतना ध्यान दिया नहीं गया था और देता भी कौन .

मैं- वैध जी भाभी के जाने के बाद आप अकेले रह गए . आपको किसी प्रकार की समस्या हो तो मुझे बताना .

वैध- नहीं कुंवर सब ठीक है . मुझे बूढ़े की भला क्या जरूरते हो सकती है दो रोटियों के सिवाय उसकी भी अब चिंता नहीं मंगू रोज सुबह शाम खाना दे जाता है .

जिन्दगी में पहली बार मुझे मंगू पर गर्व हुआ .

मैं- आप शहर क्यों नहीं चले जाते या फिर रोहतास को यहाँ बुला लो ऐसी भी क्या कमाई करनी जिसमे परिवार संग ही न रह पाए.

वैध- रोहतास की तो बहुत इच्छा है वो हमें ले जाना चाहता था पर मुझे शहर की आबो हवा रास नहीं मेरी वजह से ही कविता बहु को यहाँ रहना पड़ा पर आज सोचता हूँ तो की काश हम शहर चले गए होते तो वो जिन्दा होती.

मैं- जाने वाले चले जातेहै पीछे यादे रह जाती है पर इतनी रात को भाभी जंगल में करने क्या गयी थी

वैध- इसी यक्ष प्रश्न ने मेरा जीना हराम किया हुआ है. मैं हैरान हु सोच सोच कर बेटा

मैं- वैध जी आप को जरा भी परेशां नहीं होना. आप अकेले नहीं है रोहतास शहर में है पर यहाँ भी आपका परिवार है हम लोग है आपके साथ .

वैध की बूढी आँखों में पानी आ गया. थोड़ी देर बाद मैं वहां से उठ कर कुवे की तरफ चल दिया. सवाल अब भी मेरे मन में था की जंगल में कविता क्या कर रही थी उस रात. ? कविता की मौत अगर जंगल में हुई तो उसकी मौत की वजह भी जंगल में ही होगी मैंने इस बात पर गौर किया और संभावनाओ पर विचार करते हुए मैं कुवे पर पहुँच गया. इस जंगल में कुछ तो ऐसा था जो छिपा हुआ था या जिसे छुपाया गया था .



मंगू से मिलने आई होगी कविता ये विचार ही निरर्थक था क्योंकि मंगू से मिलने के लिए उसके घर से जायदा सुरक्षित कुछ नहीं था . जब घर में चुदाई हो सकती थी तो बाहर खुले में रिस्क क्यों लेगी वो . दूसरा महत्वपूर्ण सवाल ये था की क्या कविता के मंगू के अलावा किसी और से भी सम्बन्ध हो सकते थे . इस शक का ठोस कारण था मेरे पास क्योंकि उस रात पहली हरकत में ही कविता ने लगभग मेरा लंड चूस ही लिया था .

 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
2,615
5,443
143
Zabardast updates, भाभी के बातों में बहुत गहराई होती है जिसे कबीर समझ नहीं पा रहा जैसे सिक्के के दो पहलू होते हैं वैसे ही राय साहब और चंपा के विषय में कबीर सिर्फ राय साहब को ही दोषी मान रहा है चंपा के तरफ ध्यान ही नहीं दे रहा.
आखिर चंपा क्या चीज है
 

Tiger 786

Well-Known Member
5,675
20,770
173
#



कम्बल ओढ़े मैं कुर्सी पर बैठा सोच रहा था तमाम संभावनाओ के बारे में की चाची भी मेरे पास आकर बैठ गयी चाची ने कुछ मूंगफलिया दी मुझे और बोली- देख रही हूँ पिछले कुछ दिनों से चिंता सी है तेरे चेहरे पर क्या बात है

मैं- कुछ खास नहीं बस ऐसे ही

चाची- फिर भी तू बता सकता है मुझे.

मैं-पिताजी के कमरे की सफाई कौन करता है

चाची- कोई नहीं . क्या तुझे नहीं मालूम जेठ जी की इजाजत के बिना कोई नहीं आता जाता वहां पर.

मैं- आज बड़ी प्यारी लग रही हूँ

चाची- समझ रही हूँ तेरी इन बातो को पर तेरा काम अब कुछ दिन हो नहीं पायेगा, मासिक आया है मुझे.

मैं मुस्कुरा दिया और उठ गया वहां से

चाची- कहाँ चला

मैं- थोड़ी देर सोना चाहता हूँ मैं.

मैंने रजाई ओढ़ी और आँखे बंद कर ली. शाम को मैं चंपा के घर गया . वो सिलबट्टे पर मसाले पीस रही थी . मैंने भरपूर नजर डाली उस पर बाप से चुदाई करवा के गदरा तो गयी थी वो.

चंपा- तू बैठ मैं बस अभी आती हु

मैं- कोई नहीं .

मैंने छप्पर के बाहर चारपाई लगाई और बैठ गया.

मैं- घरवाले कहाँ गए.

चंपा- बापू खेत पर और माँ पड़ोस में आती ही होगी .

मैं- तुझसे कुछ कहना था

चंपा- हाँ

मैं- तू कैसी चुडिया पहनती है

चंपा- मै क्यों चूड़ी पहनने लगी. अभी मेरा ब्याह कहाँ हुआ

मेरे ध्यान में ये बात क्यों नहीं आई थी . मतलब वो जो भी थी शादीशुदा ही रही होगी.

चंपा- क्यों पूछ रहा है तू चूडियो के बारे में

मैं- छोड़ ये बता राय साहब मिले क्या तुझसे आज

चंपा- नहीं पर क्या बात है

मैं- कुछ नहीं वो कह रहे थे की तुझसे मिलना है उनको

चंपा ने मेरी तरफ देखा और बोली- माँ आ जाती है फिर चलती हूँ मैं

तभी चंपा के पिता घर आ गए. मैंने देखा उनके चेहरे पर थोड़ी हताशा थी . चंपा ने पानी पकडाया अपने पिता को वो मेरे पास बैठ गए.

मैं- क्या बात है काका कुछ परेशां हो .

काका- नहीं कुंवर कोई परेशानी नहीं

मैंने काका का हाथ पकड़ा और बोला- अपने बेटे से छिपाने लगे हो काका कोई तो गंभीर बात जरुर है .

काका- बेटा आज चंपा के ब्याह की तिथि पक्की हो गयी है . और इस बार की ही फसल खराब हो गयी है . वैसे इतना जुगाड़ तो है मेरे पास की बारात की रोटी-पानी हो जायेगा पर शेखर बाबु का परिवार संपन है . दान-दहेज़ की फ़िक्र है उनकी हसियत जैसा ब्याह नहीं किया तो समाज में बेइज्जती होगी.

मैं- काका इस बात की क्या चिंता आपको . बहन-बेटिया कभी माँ बाप पर बोझ नहीं होती चंपा के भाग्य में जो है वो लेकर जाएगी ये. आप जरा भी फ़िक्र मत करो मैं हूँ न.

काका- बेटा राय साहब के बड़े अहसान रहे है हम पर . चंपा के लिए इतना योग्य वर तलाशा उन्होंने हम तो अपनी चमड़ी की जुतिया भी राय साहब के लिए बना दे तो भी उनका अहसान इस जन्म में नहीं उतार पाएंगे.

मैं- कैसी बाते कर रहे है आप काका. मेरा बचपन इस घर में गुजरा है आपके दो बेटे है मैं और मंगू चंपा के ब्याह की आपको कोई चिंता नहीं करनी है . मैं और मंगू जितनी भी कमाई करते है उसका एक हिस्सा हम बचपन से इसी दिन के लिए ही जमा करते आये है . आप निश्चिन्त रहो .

काका ने मुझे अपने सीने से लगा लिया और मेरे सर को पुचकारने लगे. उस दिन मैंने जाना था की बाप होना दुनिया का सबसे मुश्किल काम होता है . मेरी नजर चंपा पर पड़ी जो दहलीज पर खड़ी भीगी आँखों से हमें ही देख रही थी . कुछ देर बाद मैं चंपा के घर से निकला और गली में आ गया.

“कबीर रुक जरा ”चंपा ने पीछे से आवाज दी तो मैं रुक गया . वो दौड़ते हुए आई और मेरे आगोश में समां गयी.

मैं- अरे क्या कर रही है , कोई देखेगा तो क्या सोचेगा

चंपा- परवाह नहीं मुझे . लगने दे मुझे सीने से तेरे

मैं- पागल मत बन

चंपा ने मेरे माथे को हौले से चूमा और वापिस चली गयी. मैं सोचने लगा इसके मन में क्या आया. मैं वापिस हुआ ही था की मेरी नजर वैध जी के घर के खुले दरवाजे पर पड़ी. मैं उधर हो लिया . देखा की वैध जी अन्दर बैठे दवाइया कूट रहे थे.

मैं- कैसे है वैध जी.

वैध- ठीक हूँ कुंवर . कैसे आना हुआ

मैं- इधर से गुजर रहा था सोचा मिलता चलू

मैंने गौर किया कविता की मौत के बाद घर पर इतना ध्यान दिया नहीं गया था और देता भी कौन .

मैं- वैध जी भाभी के जाने के बाद आप अकेले रह गए . आपको किसी प्रकार की समस्या हो तो मुझे बताना .

वैध- नहीं कुंवर सब ठीक है . मुझे बूढ़े की भला क्या जरूरते हो सकती है दो रोटियों के सिवाय उसकी भी अब चिंता नहीं मंगू रोज सुबह शाम खाना दे जाता है .

जिन्दगी में पहली बार मुझे मंगू पर गर्व हुआ .

मैं- आप शहर क्यों नहीं चले जाते या फिर रोहतास को यहाँ बुला लो ऐसी भी क्या कमाई करनी जिसमे परिवार संग ही न रह पाए.

वैध- रोहतास की तो बहुत इच्छा है वो हमें ले जाना चाहता था पर मुझे शहर की आबो हवा रास नहीं मेरी वजह से ही कविता बहु को यहाँ रहना पड़ा पर आज सोचता हूँ तो की काश हम शहर चले गए होते तो वो जिन्दा होती.

मैं- जाने वाले चले जातेहै पीछे यादे रह जाती है पर इतनी रात को भाभी जंगल में करने क्या गयी थी

वैध- इसी यक्ष प्रश्न ने मेरा जीना हराम किया हुआ है. मैं हैरान हु सोच सोच कर बेटा

मैं- वैध जी आप को जरा भी परेशां नहीं होना. आप अकेले नहीं है रोहतास शहर में है पर यहाँ भी आपका परिवार है हम लोग है आपके साथ .

वैध की बूढी आँखों में पानी आ गया. थोड़ी देर बाद मैं वहां से उठ कर कुवे की तरफ चल दिया. सवाल अब भी मेरे मन में था की जंगल में कविता क्या कर रही थी उस रात. ? कविता की मौत अगर जंगल में हुई तो उसकी मौत की वजह भी जंगल में ही होगी मैंने इस बात पर गौर किया और संभावनाओ पर विचार करते हुए मैं कुवे पर पहुँच गया. इस जंगल में कुछ तो ऐसा था जो छिपा हुआ था या जिसे छुपाया गया था .



मंगू से मिलने आई होगी कविता ये विचार ही निरर्थक था क्योंकि मंगू से मिलने के लिए उसके घर से जायदा सुरक्षित कुछ नहीं था . जब घर में चुदाई हो सकती थी तो बाहर खुले में रिस्क क्यों लेगी वो . दूसरा महत्वपूर्ण सवाल ये था की क्या कविता के मंगू के अलावा किसी और से भी सम्बन्ध हो सकते थे . इस शक का ठोस कारण था मेरे पास क्योंकि उस रात पहली हरकत में ही कविता ने लगभग मेरा लंड चूस ही लिया था .
Waahhh fauji Bhai aaj to dil khush kar diya apne👏👏👏👏👏👏💯💯💯
 

brego4

Well-Known Member
2,850
11,063
158
Kabir is now in full motion to know the truth about past troubling him specially the character n affairs of Rai Sahab and champa n her compulsion about having intimate affair with a man of his fathers age ?, abhimanu ka behavior bhi ek mystery hi hai

In sab baton ki chabi to rai sahab ke pass hi hogi kabir ko unki CID karna padegi
 

Sanju@

Well-Known Member
4,206
17,274
143
#57

“नजरे झुका के हमसे छिपा के तुम जा रही हो जाना ” मैंने निशा के हाथ को पकड़ते हुए कहा.

निसा- जाग रहे हो तुम.

मैं- तुम ऐसे नहीं जा सकती बिना बताये

निशा- फिर भी जाना तो पड़ेगा ही. जाउंगी नहीं तो दुबारा कैसे आउंगी.

मैं- जाने से पहले इस चाँद से माथे को जी भर के देखने तो दो मुझे .

निशा-तुम्हारी ये दिलकश बाते भटका नहीं सकती मुझे . रात का तीसरा पहर ख़त्म होने को है इन अंधेरो में खो जाने दो मुझे.

मैं- कुछ दूर चलता हु तुम्हारे साथ

निशा- जरुरत नहीं

मैं- फिर भी

मैंने थोडा पानी पिया और फिर उसका हाथ थाम कर चल दिया. जल्दी ही हम दोनों वनदेव के पत्थर के पास थे.

निशा- अब जाने भी दो

मैं- दिल नहीं कर रहा सरकार तुम्हारी जुदाई मंजूर नहीं मुझे

निशा- मैं नहीं थी तब भी तो जी रहे थे न

मैं- जिन्दगी क्या है तुमने ही तो बताया मुझे

वो आगे बढ़ी की मैंने फिर से उसका हाथ थाम लिया.

निशा- फिर भी जाना होगा मुझे .

मैंने उसका हाथ छोड़ दिया और वो धुंध की चादर में खो सी गयी. मैंने वनदेव के पत्थर को देखा और कहा-बाबा, एक दिन तेरा आशीर्वाद लेंगे हम यही पर. खैर, सुबह मेरी नींद खुली तो देखा की बाहर चूल्हे पर मंगू चाय बना रहा था .

मैं- तू कब आया.

मंगू- थोड़ी देर पहले ही . घर से यहाँ आते आते जम गया सोचा पहले चाय बना लू फिर जगा दूंगा तुमको

मैं- आता हु जरा.

मैं कुछ बाद फ्रेश होकर आया . मंगू ने मुझे चाय का गिलास पकड़ा दिया. आज हद ही जायदा ठण्ड थी .

मैं- मंगू तू कविता से कितना प्रेम करता था .

मंगू जो चाय की चुसकिया ले रहा था उसने घूर कर देखा मुझे

मैं- बता न भोसड़ी के

मंगू-दुनिया कुछ चीजो को कभी नहीं समझ सकती कबीर.

मैं- जानता हूँ पर तेरा भाई सब समझता है

मंगू- वो बहुत अच्छी थी . उम्र में बड़ी होने के बाद भी मैं दिल से चाहने लगा था उसे. अक्सर हम मिलते बाते करते धीरे धीरे हम करीब आ गए.

मैं- क्या उसके पति या ससुर को मालूम था तुम लोगो का

मंगू- नहीं भाई. यदि ऐसा होता तो मैं जिन्दा थोड़ी न रहता दूसरा उसका पति तो शहर में रहता है साल ६ ,महीने में आता था एक दो बार और वैध जी तो कभी इस गाँव में कभी उस गाँव में.

मैं- पर मैं नहीं मानता की तू कविता से सच्चा प्यार करता था .

मंगू- मैंने पहले ही कहा था दुनिया प्यार को नहीं समझती

मैं- अबे चोमू, तू अगर कविता से प्यार करता तो तू उसके कातिल को तलाश जरुर करता . पर तुझे बस उसकी चूत से मतलब था .

मंगू ने चाय का गिलास निचे रख दिया और बोला- मेरे भाई, तू कह सकता है क्योंकि तूने किसी से प्यार नहीं किया तू नहीं जानता की प्रेम क्या होता है . मैंने जब उसकी लाश देखि तो मैं ही जानता हूँ की क्या बीती थी मेरे दिल पर . मैं अभागा तो उसकी लाश को छू भी नहीं पाया.

मंगू का गला बैठ गया. उसकी रुलाई छूट पड़ी.

मंगू- मैं जानता हूँ उसे डाकन ने मारा है . इतनी बेरहमी केवल वो ही कर सकती है

मंगू ने जब डाकन का जिक्र किया तो मेरा दिल धडक उठा . पूरी रात मेरी बाँहों में थी एक डाकन .

मैं- तुझे कैसे मालूम की डाकन ने मारा उसे

मंगू- पूरा गाँव ये ही कहता है . तुझे क्या लगता है मैं इतना बेचैन क्यों हूँ , मुझे तलाश है उसकी जिस दिन वो मेरे सामने आई या तो मैं मर जाऊंगा या फिर उसे मार दूंगा.

मैं- गाँव वालो की बातो कर यकीन मत कर डाकन जैसा कुछ नहीं होता. पर तू चाहे तो कविता के कातिल को तलाश कर सकता है . तूने कभी सोचा की आखिर ऐसी क्या वजह थी की कविता इतनी रात को जंगल में गयी .

मंगू- यही बात तो मुझे उलझन में डाले हुई है भाई की उसे क्या जरूरत थी जंगल में आने की उसके तो खेत भी नहीं है .

मैं- पर मुझे विश्वास है तू इस राज को तलाश कर ही लेगा.

मैंने मंगू से तो कह दिया था पर मैं खुद इस सवाल में उलझा हुआ था अभी तक.

मंगू- मैं तुझे बताना तो भूल ही गया था की राय साहब ने कहा था की कबीर से कहना की दोपहर को घर पहुँच जाये कुछ बेहद जरुरी काम है

मैं- ऐसा क्या जरुरी काम हो गया

मंगू- मुझे क्या मालूम जो कहा तुझे बता दिया. मैं सड़ी सब्जियों को बाहर फेक रहा हु मदद कर दे

मैं- चल फिर.

नंगे पैर कीचड़ से भरे खेत में इस सर्द सुबह में जाना किसी खतरे का सामना करने से कम नहीं था . जैसे जैसे दिन चढ़ता गया और मजदुर भी आते गए. दोपहर को मैं गाँव की तरफ चल दिया. जब घर पहुंचा तो एक गाड़ी हमारे दरवाजे के सामने खड़ी थी जिसे मैंने आज से पहले कभी नहीं देखा था . मैं राय साहब के कमरे में गया तो भैया और चाची पहले से ही मोजूद थे . मैंने देखा की वहां पर एक आदमी और था जिसे मैं नहीं जाता था .

“हम तुम्हारी ही राह देख रहे थे ” राय साहब ने सोने के चश्मे से मुझे घूरते हुए कहा

वो आदमी खड़ा हुआ और बोला- आप सब सोच रहे होंगे की आप ऐसे अचानक यहाँ एक साथ क्यों बुलाये गए. दरअसल राय साहब ने अपनी वसीयत बनवाई है और उनका वकील होने के नाते मेरा फर्ज है की मैं वो आप लोगो को पढ़ कर बताऊ.

मैंने अपने बाप को देखा और सोचा आजकल इसको अजीब अजीब शौक हो रहे है कभी चंपा को रगड़ रहा है कभी वसीयत बना रहा है . पर किसलिए

“वसीयत पर किसलिए पिताजी ” मैं और भैया लगभग एक साथ ही बोल पड़े.

पिताजी- हमें लगता है की कुछ जिम्मेदारिया वक्त से निभा देनी चाहिए.

वकील - राय साहब ने अपनी तमाम संपति का आधा हिस्सा अपने भाई की पत्नी को दिया है . वो ये हिस्सा जैसे चाहे जहाँ चाहे जिस भी मकान, जमीन और जो भी राय साहब की मिलकियत है उसमे से अपनी पसंद अनुसार ले सकती है .

वकील ने गला खंखारा और आगे बोला- बाकि हिस्से में से कुवर अभिमानु और कुंवर कबीर का हिस्सा होगा.

भैया- पिताजी मेरा छोटा भाई मेरे लिए सब कुछ है जो है इसका ही है जो मेरा है इसका है . मेरी सबसे बड़ी सम्पति मेरा भाई है .

चाची- जेठ जी , मेरे लिए सबसे बड़ी सम्पति ये परिवार है मेरे दो बेटे अभिमानु और कबीर. आप ये वसीयत बदलवा दीजिये और सच कहूँ तो हमें भला क्या जरूरत है वसीयत की .

ये कहने के बाद भाभी और भैया दोनों कमरे से बाहर चले गए. रह गए हम तीनो. अचानक से राय साहब को वसीयत बनाने की क्या जरूरत आन पड़ी. मैं इसी सोच में उलझा था .

मैं- वकील साहब , मैं ये वसीयत पढना चाहता हूँ .

वकील- आपको पढने की भला क्या जरूरत कुंवर साहब, राय साहब ने जो किया है सोच समझ कर ही किया है आप बस दस्तखत करे और अपना हिस्सा ले ले.

न जाने क्यों मुझे मन किया की वकील के मुह पर एक मुक्का जड दू.

मैं- फिर भी मैं वसीयत पढना चाहूँगा.

वकील ने पिताजी की तरफ देखा पिताजी ने इशारा किया तो वकील ने मुझे तीन कागज के टुकड़े दिए पर एक कागज का टुकड़ा उसके हाथ में ही रह गया. मैंने तीनो कागज के टुकड़े देखे. जो बंटवारा पिताजी ने किया था वो ही लिखा था . पर मेरी दिलचस्पी उस चौथे टुकड़े में थी जो वकील के हाथ में था .

मैं- मुझे वो कागज भी देखना है

वकील- ये आपकी वसीयत का हिस्सा नहीं है ये मेरे काम का है वो बस साथ में आ गया.

मैं- पिताजी मैं सोचता हूँ की आजतक हमने जो भी शुभ कार्य किया है पुजारी जी से पूछ कर किया है मैं उनसे बात करूँगा यदि वो हाँ कहेंगे तो मैं दस्तखत कर दूंगा.

ये बात मैंनेहवा में फेंकी थी मेरी दिलचस्पी उस चौथे कागज में थी .

पिताजी- तुम जब चाहे दस्तखत करके अपना हिस्सा ले सकते हो . वकील साहब आप जाइये हम कागज वापिस भिजवा देंगे आपको

बाहर चबूतरे पर बैठे मैं सोच रहा था की वकील ने वो चौथा कागज क्यों नहीं दिखाया क्या था उस कागज में ऐसा . ...............
निशा और कबीर की प्रेमपूर्ण बाते सीधे दिल में उतर जाती है
राय साहब तो छुपे रुस्तम है उनके मन में क्या चल राह है ये तो अभी पता नही है लेकिन वसीयत का वो चौथा कागज किसके नाम है ये जानना जरूरी है आखिर वो सख्श कोन है क्या चंपा सुरजभान या कोई और है जिसका जिक्र अभी तक नही हुआ है
मंगू ने बताया है कि वह कविता को कितना प्यार करता था लेकिन ये सवाल अब भी बना है कि आखिर जंगल ने कविता क्या करने गई थी और उसे किसने मारा था
 
Last edited:

Studxyz

Well-Known Member
2,925
16,231
158
चम्पा कुंवारी तो है लेकिन अनचुदी नहीं बहरहाल चूड़ियां उसकी नहीं हो सकती तो फिर कौन और चूड़ी वाली राय साब के कमरे में चुदने को आती होगी ? वैसे उम्रदराज़ राय साब है तगड़ा चोदू और चौथी वसीयत भी कर रहा है ना जाने क्या गोलमाल है

कबीर जासूसी में तो लगा है लेकिन हाथ कुछ भी सुराग नहीं लग रहा है क्यों की ये सुराग मिलने की उम्मीद खुद जिन पर शक है वहीँ जाकर कर रहा है इससे तो अच्छा होगा ये निशा डायन जी को बोले की वो अपने शक्तियों से पता लगाए

कहानी सस्पेंस के जाल में गोते लगा रही है और कबीर के हाथ न सुराग लग रहे हैं सिवाए निशा के निश्छल प्रेम के जो इसके अब ताक़त बन रहा है
 
Last edited:

Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
279
2,818
123
आदमखोर कौन हो सकता है??

मंगू :— नही लगता है मुझे क्योंकि जब पहली बार आदमखोर ने एक आदमी को मारा था तब मंगू और कबीर नाच देखने गए थे, और रात को जंगल वाले रास्ते से लौटते समय वो बूढ़ा दोनो को साथ में मिला था फिर मंगू ही उसे वैध के पास लेकर गया था

राय साहब :— एक बार के लिए मुझे लगता है की राय साहब हो सकते है लेकिन जब कविता मरी थी तब राय साहब गांव से बाहर थे तो उनपे भी इतना यकीन से नहीं बोल सकता

अब या तो सूरजभान होगा या फिर अभिमानु
सूरजभान का कैरेक्टर इतना ज्यादा खुला ही नही है तो मालूम नही है वो है या नहीं और वो कबीर को जिंदा भी नही छोड़ता

तो बचा अभिमानु:— सबसे ज्यादा उसी का संभावना दिखता है, जिस रात चंपा और कबीर पर हमला हुआ उस रात बस अभिमानु ही आया था लड़ने, क्या पता उसने झूठ बोला हो की पानी पीने उठा था और कबीर और चंपा की आवाज सुनी और उसकी ताकत भी बढ़ रही है।

राय साहब की जब इस कहानी में एंट्री होती है उसी के आस पास किसी अपडेट में कबीर जब सो कर उठता है तो उसकी कपड़े पर छाती के पास और दरवाजे पर खून लगा होता है तो मुझे तब से लग रहा है की आदमखोर घर में से ही कोई हो


बहरहाल कुछ कह नहीं सकते और हो सकता है आदमखोर कोई और निकले
, फौजी भाई का भरोसा नहीं क्या पता भाभी को ही आदमखोर बना दे
क्योंकि अक्सर मुझे लगता है की फौजी भाई कमेंट पढ़ कर कहानी ने थोड़ा बहुत फेरबदल कर देते है ताकि सस्पेंस बना रहे बाकी तो सारे राज पर लास्ट में निकलेंगे
 
Last edited:

Vicky11

Active Member
700
2,434
123
आदमखोर कौन हो सकता है??

मंगू :— नही लगता है मुझे क्योंकि जब पहली बार आदमखोर ने एक आदमी को मारा था तब मंगू और कबीर नाच देखने गए थे, और रात को जंगल वाले रास्ते से लौटते समय वो बूढ़ा दोनो को साथ में मिला था फिर मंगू ही उसे वैध के पास लेकर गया था

राय साहब :— एक बार के लिए मुझे लगता है की राय साहब हो सकते है लेकिन जब कविता मरी थी तब राय साहब गांव से बाहर थे तो उनपे भी इतना यकीन से नहीं बोल सकता

अब या तो सूरजभान होगा या फिर अभिमानु
सूरजभान का कैरेक्टर इतना ज्यादा खुला ही नही है तो मालूम नही है वो है या नहीं

तो बचा अभिमानु:— सबसे ज्यादा उसी का संभावना दिखता है, जिस रात चंपा और कबीर पर हमला हुआ उस रात बस अभिमानु ही आया था लड़ने, क्या पता उसने झूठ बोला हो की पानी पीने उठा था और कबीर और चंपा की आवाज सुनी और उसकी ताकत भी बढ़ रही है।

राय साहब की जब इस कहानी में एंट्री होती है उसी के आस पास किसी अपडेट में कबीर जब सो कर उठता है तो उसकी कपड़े पर छाती के पास और दरवाजे पर खून लगा होता है तो मुझे तब से लग रहा है की आदमखोर घर में से ही कोई हो


बहरहाल कुछ कह नहीं सकते और हो सकता है आदमखोर कोई और निकले
, फौजी भाई का भरोसा नहीं क्या पता भाभी को ही आदमखोर बना दे
क्योंकि अक्सर मुझे लगता है की फौजी भाई कमेंट पढ़ कर कहानी ने थोड़ा बहुत फेरबदल कर देते है ताकि सस्पेंस बना रहे बाकी तो सारे राज पर लास्ट में निकलेंगे
Bhai sahab agar baat Fauji bhai ki lekhni ki hai to phir aap iss list mei Bhabhi ko v add karlo.
 
Top