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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#५९



मेरा भाई सूरजभान को इतनी अहमियत क्यों देता था ये सोच सोच कर मैं पागल हुए जा रहा था . दूसरा राय साहब क्या चीज थे. मेरा वजूद मेरे घर की दीवारों से आजाद हो जाना चाहता था . रात को जब मैं घर पहुंचा तो पिताजी घर पर नहीं थे. मैंने देखा भाभी अपना काम कर रही थी मौका देख कर मैं पिताजी के कमरे में घुस गया. मेरा दिल में अजीब सी घबराहट थी ऐसा पहली बार तो नहीं था की मैं इस कमरे में आया था पर ऐसे चोरी छिपे घुसने में डर सा लग रहा था .



कमरे में रोशनी थी हर सामान बड़े सलीके से रखा था . बिस्तर के सिराहने एक अलमारी थी थोड़ी दूर एक मेज थी जिस पर कुछ सामान रखा हुआ था . मैंने अलमारी खोली पिताजी के कपडे थे. पर मुझे किसी और चीज की तलाश थी दराज में देखा पर वसीयत के कागज वहां भी नहीं थे . क्या पिताजी के कमरे में कोई ख़ुफ़िया दराज थी या ऐसी जगह जहाँ पर कुछ छुपाया जा सके. मैंने लगभग कमरा छान लिया पर कागज नहीं मिले मुझे.

हताशा में मैंने इधर उधर हाथ पैर मारे बिस्तर के एक कोने में मुझे कुछ ऐसा मिला जिसने एक बार फिर मुझे हैरान कर दिया. बिस्तर के कोने में चूडियो के कुछ टूटे टुकड़े पड़े थे. मेरे बाप के बिस्तर पर टूटी चूडियो के टुकड़े सोचने वाली बात थी . न जाने क्यों मैंने वो टुकड़े अपनी जेब में रख लिए और कमरे से बाहर आया.

इस घर में दो औरते थे भाभी हमेशा सोने के कंगन पहनती थी चाची के हाथो को मैंने खाली देखा था तो क्या कोई तीसरी औरत थी जो मेरी जानकारी के बिना घर में आती थी पर कैसे , किसलिए. टूटी चूडियो ने मेरे दिमाग को उलझा कर रख दिया था ऐसा क्या था इस घर की दीवारों के पीछे छिपा हुआ जो बाहर आने को बेकरार था .



“किस सोच में इतना गहरे डूबे हो ” निशा ने अलाव जलाते हुए कहा

मैं- क्या मालूम

निशा- दोस्तों को बताने से दिल हल्का हो जाता है

मैंने सोचा की निशा से ये बात करना ठीक रहेगा या नहीं क्योंकि राय शहाब के बारे में ऐसी बात करना सामाजिक तौर पर ठीक नहीं था फिर भी मैंने निशा को सारी बात बताई

निशा कुछ देर सोचती रही और फिर बोली- तुम्हारी भाभी का कहना बिलकुल सही है इस दुनिया में एक ही रिश्ता है औरत और मर्द का रिश्ता और जिस्मो की प्यास कबीर कब न जाने क्या कर जाये कोई नहीं जानता . परदे के पीछे जो चीजे होती है उनका सामने आना कभी कभी सब कुछ बर्बाद कर बैठता है . हर चीज के दो मायने होते है इसके भी है समझो , तुम्हारे पिता काफी सालो से अकेले रहे है , एक इन्सान की कुछ खास जरूरते होती है जिनमे से एक सम्भोग भी है यदि चंपा और पिताजी के बीच इस रिश्ते में दोनों की रजामंदी है तो उनके नजरिये से ठीक है ये अब दूसरा नजरिया समझो यदि वो चंपा का शोषण कर रहे है तो पाप के भागीदार है वो . सही और गलत के मध्य एक बहुत महीन रेखा होती है कबीर.

निशा ने एक गहरी साँस ली और बोली- ये समाज रिश्तो की एक ऐसी भूलभुलैया है जिसमे अपने हिसाब से रिश्तो की व्याख्या की जाती है , भाभी को देखो वो नहीं चाहती की उसका देवर एक डाकन संग रहे पर तू और मैं जानते है इस रिश्ते की सच्चाई को. बेशक हम दोनों के कर्म अलग है पर नियति ने दोस्ती की डोर बाँधी. यदि चंपा को ऐतराज नहीं है तो तू भी इस पर मिटटी डाल .

मैं- और वसीयत का चौथा टुकड़ा उसका क्या

निशा- तुझे किसका मोह है . वो राय साहब की कमाई दौलत है उनकी जमीने है वो चाहे जिसे भी दे तू अपना कर्म कर तू किसान है . तेरे हाथो की मेहनत बंजर धरती पर भी सोना उगा देती है . तू अपनी तक़दीर अपने हाथो से लिखता है

मैं- मेरे हाथो की तक़दीर में कोई रेखा तेरे साथ की भी है क्या

निशा- नियति जाने .

मैं- नियति ही तुझे मेरी जिन्दगी में लाइ है नियति ही तुझे मेरी बनाएगी.

निशा- मेरा मोह भी छोड़ दे , दुनिया में हजारो-लाखो होंगी मुझसे हसीं मुझसे जुदा

मैं- पर तू तो एक ही हैं न मेरी सरकार.

निशा- मैं अँधेरा हूँ तेरे सामने सुनहरा उजाला है

मैं- तेरे साथ इन अँधेरे प्यारे है मुझे

मैंने निशा की गोद में अपना सर रखा और लेट गया . अलाव की आंच चट चट चटकती रही हम बाते करते रहे.

मैं- भाभी कहती है की इस धागे को उतार कर फेक दे ये डाकन का है

निशा- सच ही तो कहती है ठकुराइन

मैं- पर वो इस डाकन को जानती नहीं

निशा- वो जान गयी होगी

मैं- बताया नहीं फिर मुझे

निशा- तू जाने वो जाने

मैं- कोई तो रास्ता होगा तेरे मेरे मिलने का . तेरी दुनिया के नियम भी तो टूटते होंगे.

निशा- मैं वो सपने नहीं देखती जिनके टूटने पर दुःख हो.

वो मेरे पास लेट गयी उसका हाथ मेरे सीने पर आया.

“दिल करता है इस दिल को निकाल लू ” उसने कहा

मैं- तेरा दिल है ले जा बेशक

निशा- दुनिया कहेगी डायन एक और को खा गयी.

मैं- ये तू जाने दुनिया जाने.

इसके आगे मैं कुछ और नहीं कह पाया अगले ही पल निशा ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए और फिर मैं सब कुछ भूल गया. आँख खुली तो मैंने खुद को अलाव की राख में लिपटे हुए पाया. मुस्कुराते हुए मैंने कपडे झाडे और वापिस घर की तरफ चल पड़ा. घर पहुँच कर देखा की पिताजी , भैया और पुजारी जी आँगन में बैठे कुछ बाते कर रहे थे . पुजारी का सुबह सुबह हमारे घर आना मुझे अजीब ही लगा. उन पर नजर डाल कर मैं मुड़ा ही था की भैया की नजर मुझ पर पड़ी और मुझे अपने पास बुलाया

भैया- छोटे, चंपा के ब्याह का मुहूर्त निकलवाया है पुजारी जी कहते है की होली के बाद की पूनम को बड़ा ही शुभ मुहूर्त है .

पूनम की रात का जिक्र होते ही मेरे तन में झुरझुरी दौड़ गयी .

मैं- पुजारी जी कहते है तो ठीक ही होगा.

मैंने अनमने भाव से कहा.

“पुजारी जी हमारे देवर के बारे में भी कुछ कहिये , चंपा के ब्याह के बाद इनका ही नम्बर होगा आप कोई योग देखिये ताकि हम रिश्तो की बात शुरू कर पाए. ” भाभी ने चाय के कप रखते हुए कहा

मैंने अपनी आस्तीन थोड़ी चढ़ाई पुजारी की नजर मेरी कलाई पर बंधे निशा के धागे पर पड़ी और वो बोला- मैं देख कर बता दूंगा

पिताजी- तो लगभग दो सवा दो महीने बीच में है . अभिमानु तयारी शुरू कर दो

भैया ने हाँ में सर हिलाया

भाभी- मैं बता दू चंपा को

मैं- नहीं ये काम मुझे करने दो

तभी पिताजी बोल पड़े- उसे ये खबर हम देंगे . भाई शुभ समाचार है बिना किसी तोहफे के कैसे बताएँगे उसे.

मैं सोचने लगा कही उसे चोद कर तो नहीं बताएगा मेरा बाप.
 

Naik

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#57

“नजरे झुका के हमसे छिपा के तुम जा रही हो जाना ” मैंने निशा के हाथ को पकड़ते हुए कहा.

निसा- जाग रहे हो तुम.

मैं- तुम ऐसे नहीं जा सकती बिना बताये

निशा- फिर भी जाना तो पड़ेगा ही. जाउंगी नहीं तो दुबारा कैसे आउंगी.

मैं- जाने से पहले इस चाँद से माथे को जी भर के देखने तो दो मुझे .

निशा-तुम्हारी ये दिलकश बाते भटका नहीं सकती मुझे . रात का तीसरा पहर ख़त्म होने को है इन अंधेरो में खो जाने दो मुझे.

मैं- कुछ दूर चलता हु तुम्हारे साथ

निशा- जरुरत नहीं

मैं- फिर भी

मैंने थोडा पानी पिया और फिर उसका हाथ थाम कर चल दिया. जल्दी ही हम दोनों वनदेव के पत्थर के पास थे.

निशा- अब जाने भी दो

मैं- दिल नहीं कर रहा सरकार तुम्हारी जुदाई मंजूर नहीं मुझे

निशा- मैं नहीं थी तब भी तो जी रहे थे न

मैं- जिन्दगी क्या है तुमने ही तो बताया मुझे

वो आगे बढ़ी की मैंने फिर से उसका हाथ थाम लिया.

निशा- फिर भी जाना होगा मुझे .

मैंने उसका हाथ छोड़ दिया और वो धुंध की चादर में खो सी गयी. मैंने वनदेव के पत्थर को देखा और कहा-बाबा, एक दिन तेरा आशीर्वाद लेंगे हम यही पर. खैर, सुबह मेरी नींद खुली तो देखा की बाहर चूल्हे पर मंगू चाय बना रहा था .

मैं- तू कब आया.

मंगू- थोड़ी देर पहले ही . घर से यहाँ आते आते जम गया सोचा पहले चाय बना लू फिर जगा दूंगा तुमको

मैं- आता हु जरा.

मैं कुछ बाद फ्रेश होकर आया . मंगू ने मुझे चाय का गिलास पकड़ा दिया. आज हद ही जायदा ठण्ड थी .

मैं- मंगू तू कविता से कितना प्रेम करता था .

मंगू जो चाय की चुसकिया ले रहा था उसने घूर कर देखा मुझे

मैं- बता न भोसड़ी के

मंगू-दुनिया कुछ चीजो को कभी नहीं समझ सकती कबीर.

मैं- जानता हूँ पर तेरा भाई सब समझता है

मंगू- वो बहुत अच्छी थी . उम्र में बड़ी होने के बाद भी मैं दिल से चाहने लगा था उसे. अक्सर हम मिलते बाते करते धीरे धीरे हम करीब आ गए.

मैं- क्या उसके पति या ससुर को मालूम था तुम लोगो का

मंगू- नहीं भाई. यदि ऐसा होता तो मैं जिन्दा थोड़ी न रहता दूसरा उसका पति तो शहर में रहता है साल ६ ,महीने में आता था एक दो बार और वैध जी तो कभी इस गाँव में कभी उस गाँव में.

मैं- पर मैं नहीं मानता की तू कविता से सच्चा प्यार करता था .

मंगू- मैंने पहले ही कहा था दुनिया प्यार को नहीं समझती

मैं- अबे चोमू, तू अगर कविता से प्यार करता तो तू उसके कातिल को तलाश जरुर करता . पर तुझे बस उसकी चूत से मतलब था .

मंगू ने चाय का गिलास निचे रख दिया और बोला- मेरे भाई, तू कह सकता है क्योंकि तूने किसी से प्यार नहीं किया तू नहीं जानता की प्रेम क्या होता है . मैंने जब उसकी लाश देखि तो मैं ही जानता हूँ की क्या बीती थी मेरे दिल पर . मैं अभागा तो उसकी लाश को छू भी नहीं पाया.

मंगू का गला बैठ गया. उसकी रुलाई छूट पड़ी.

मंगू- मैं जानता हूँ उसे डाकन ने मारा है . इतनी बेरहमी केवल वो ही कर सकती है

मंगू ने जब डाकन का जिक्र किया तो मेरा दिल धडक उठा . पूरी रात मेरी बाँहों में थी एक डाकन .

मैं- तुझे कैसे मालूम की डाकन ने मारा उसे

मंगू- पूरा गाँव ये ही कहता है . तुझे क्या लगता है मैं इतना बेचैन क्यों हूँ , मुझे तलाश है उसकी जिस दिन वो मेरे सामने आई या तो मैं मर जाऊंगा या फिर उसे मार दूंगा.

मैं- गाँव वालो की बातो कर यकीन मत कर डाकन जैसा कुछ नहीं होता. पर तू चाहे तो कविता के कातिल को तलाश कर सकता है . तूने कभी सोचा की आखिर ऐसी क्या वजह थी की कविता इतनी रात को जंगल में गयी .

मंगू- यही बात तो मुझे उलझन में डाले हुई है भाई की उसे क्या जरूरत थी जंगल में आने की उसके तो खेत भी नहीं है .

मैं- पर मुझे विश्वास है तू इस राज को तलाश कर ही लेगा.

मैंने मंगू से तो कह दिया था पर मैं खुद इस सवाल में उलझा हुआ था अभी तक.

मंगू- मैं तुझे बताना तो भूल ही गया था की राय साहब ने कहा था की कबीर से कहना की दोपहर को घर पहुँच जाये कुछ बेहद जरुरी काम है

मैं- ऐसा क्या जरुरी काम हो गया

मंगू- मुझे क्या मालूम जो कहा तुझे बता दिया. मैं सड़ी सब्जियों को बाहर फेक रहा हु मदद कर दे

मैं- चल फिर.

नंगे पैर कीचड़ से भरे खेत में इस सर्द सुबह में जाना किसी खतरे का सामना करने से कम नहीं था . जैसे जैसे दिन चढ़ता गया और मजदुर भी आते गए. दोपहर को मैं गाँव की तरफ चल दिया. जब घर पहुंचा तो एक गाड़ी हमारे दरवाजे के सामने खड़ी थी जिसे मैंने आज से पहले कभी नहीं देखा था . मैं राय साहब के कमरे में गया तो भैया और चाची पहले से ही मोजूद थे . मैंने देखा की वहां पर एक आदमी और था जिसे मैं नहीं जाता था .

“हम तुम्हारी ही राह देख रहे थे ” राय साहब ने सोने के चश्मे से मुझे घूरते हुए कहा

वो आदमी खड़ा हुआ और बोला- आप सब सोच रहे होंगे की आप ऐसे अचानक यहाँ एक साथ क्यों बुलाये गए. दरअसल राय साहब ने अपनी वसीयत बनवाई है और उनका वकील होने के नाते मेरा फर्ज है की मैं वो आप लोगो को पढ़ कर बताऊ.

मैंने अपने बाप को देखा और सोचा आजकल इसको अजीब अजीब शौक हो रहे है कभी चंपा को रगड़ रहा है कभी वसीयत बना रहा है . पर किसलिए

“वसीयत पर किसलिए पिताजी ” मैं और भैया लगभग एक साथ ही बोल पड़े.

पिताजी- हमें लगता है की कुछ जिम्मेदारिया वक्त से निभा देनी चाहिए.

वकील - राय साहब ने अपनी तमाम संपति का आधा हिस्सा अपने भाई की पत्नी को दिया है . वो ये हिस्सा जैसे चाहे जहाँ चाहे जिस भी मकान, जमीन और जो भी राय साहब की मिलकियत है उसमे से अपनी पसंद अनुसार ले सकती है .

वकील ने गला खंखारा और आगे बोला- बाकि हिस्से में से कुवर अभिमानु और कुंवर कबीर का हिस्सा होगा.

भैया- पिताजी मेरा छोटा भाई मेरे लिए सब कुछ है जो है इसका ही है जो मेरा है इसका है . मेरी सबसे बड़ी सम्पति मेरा भाई है .

चाची- जेठ जी , मेरे लिए सबसे बड़ी सम्पति ये परिवार है मेरे दो बेटे अभिमानु और कबीर. आप ये वसीयत बदलवा दीजिये और सच कहूँ तो हमें भला क्या जरूरत है वसीयत की .

ये कहने के बाद भाभी और भैया दोनों कमरे से बाहर चले गए. रह गए हम तीनो. अचानक से राय साहब को वसीयत बनाने की क्या जरूरत आन पड़ी. मैं इसी सोच में उलझा था .

मैं- वकील साहब , मैं ये वसीयत पढना चाहता हूँ .

वकील- आपको पढने की भला क्या जरूरत कुंवर साहब, राय साहब ने जो किया है सोच समझ कर ही किया है आप बस दस्तखत करे और अपना हिस्सा ले ले.

न जाने क्यों मुझे मन किया की वकील के मुह पर एक मुक्का जड दू.

मैं- फिर भी मैं वसीयत पढना चाहूँगा.

वकील ने पिताजी की तरफ देखा पिताजी ने इशारा किया तो वकील ने मुझे तीन कागज के टुकड़े दिए पर एक कागज का टुकड़ा उसके हाथ में ही रह गया. मैंने तीनो कागज के टुकड़े देखे. जो बंटवारा पिताजी ने किया था वो ही लिखा था . पर मेरी दिलचस्पी उस चौथे टुकड़े में थी जो वकील के हाथ में था .

मैं- मुझे वो कागज भी देखना है

वकील- ये आपकी वसीयत का हिस्सा नहीं है ये मेरे काम का है वो बस साथ में आ गया.

मैं- पिताजी मैं सोचता हूँ की आजतक हमने जो भी शुभ कार्य किया है पुजारी जी से पूछ कर किया है मैं उनसे बात करूँगा यदि वो हाँ कहेंगे तो मैं दस्तखत कर दूंगा.

ये बात मैंनेहवा में फेंकी थी मेरी दिलचस्पी उस चौथे कागज में थी .

पिताजी- तुम जब चाहे दस्तखत करके अपना हिस्सा ले सकते हो . वकील साहब आप जाइये हम कागज वापिस भिजवा देंगे आपको

बाहर चबूतरे पर बैठे मैं सोच रहा था की वकील ने वो चौथा कागज क्यों नहीं दिखाया क्या था उस कागज में ऐसा . ...............
Rai sahab ko wasiyat banwane ji itni jaldi kyon pad gayi or chautha kagaj dikha kyon nahi wakeel n kia tha usme aisa jo chhupaya jaa raha h
Baherhal dekhte h aage kia hota h
Shaandaar update bhai
 

Naik

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#58



मेरे सवालो में दो सवाल और जुड़ गए थे पहला की वसीयत की इतनी जल्दी क्यों दूजा चौथा कागज किसका था. मेरे ख्याल जब टूटे जब चाची ने मुझे खाना खाने के लिए अंदर बुलाया. चाची ने खाना परोसा और हम दोनों खाना खाने बैठ गए.

मैं- पिताजी ने इतनी जल्दी वसीयत क्यों बनवा ली

चाची- ये तो जेठ जी ही जाने पर मैंने कह दिया है मुझे कुछ नहीं चाहिए . मेरी पूंजी तो तू और अभी मानु हो.

मै- तुम्हारी भावनाओ की कद्र है चाची. विचार करो जरा पिताजी ने क्या पूरी ईमानदारी से वसीयत बनवाई है.

चाची- जायदाद के तीन टुकड़े किये एक मुझे और दो तुम दोनों भाइयो के. मुझे आधा हिस्सा इसलिए दिया क्योंकि तेरे चाचा होते तो आधा उनका मिलता.

मैं- उसकी बात नहीं कर रहा हूँ .

चाची-तो फिर क्या कहना चाहता है तू

मैं चाची से कुछ कहता उस से पहले ही भाभी अन्दर आ गयी मेरी बात अधूरी रह गयी.

भाभी- आजकल तो आपने हमें पराया ही कर दिया है चाची जी.

चाची- अपने बच्चो को कोई माँ कभी पराया नहीं कर सकती बैठ अभी परोसती हूँ तुझे भी .

हम तीनो हलकी-फुलकी बाते करते हुए खाना खाने लगे. फिर चाची बर्तन समेट कर बाहर चली गयी रह गए हम देवर-भाभी.

भाभी- तो बात कुछ आगे बढ़ी तुम्हारी.

मैं- कैसी बात भाभी

भाभी- इतने भी भोले नहीं तुम

तब मुझे समझ आया की निशा की बात कर रही है भाभी

मैं- बात पक्की तब समझूंगा जब वो दुल्हन बन कर इस चोखट पर आएगी

भाभी- उफ्फ्फ्फ़ ये दिल्लगी.

मैं- आशिकी भाभी

भाभी- पिताजी ने वसीयत बनवा ली है

मैं- जानता हूँ

भाभी- तुम्हारे तो वारे-न्यारे है सबसे ज्यादा हिस्सा तुम्हारा ही होने वाला है

मैं- मुझे ये परिवार चाहिए और कुछ नहीं . इस धन-दौलत का मोह नहीं मुझे

भाभी- मोह कैसे होगा दिल एक डाकन से जो लगा बैठे हो

मैं- बार बार एक ही बात करने से क्या हासिल होगा आपको

भाभी- मुझे लगता है की इस वसीयत में कमी है जल्दबाजी में बनवाई गयी है ये.

मैं- मेरा भी यही मानना है

भाभी- तो क्या कमी पकड़ी तुमने

मैं- अभी पकड़ी नहीं है पर जल्दी ही पिताजी से आमने सामने बात करूँगा

भाभी- मुझे लगता है की तुम्हे वसीयत को दुबारा पढना चाहिए

मैं- क्या आपको लगता है की पिताजी ने हमसे दूर कुछ ऐसा किया हुआ है जिसका हमें मालूम नहीं . मेरा मतलब कोई दूसरी औरत या परिवार

भाभी- तू जब अगली बार घर से बाहर जाओ तो जो भी तुम्हे पहला सक्श मिले और फिर अंतिम सख्श तक तुम सबसे ये सवाल करना तुम्हे जवाब मालूम हो जायेगा और ये भी की राय साहब का कद कितना बड़ा है .

मैं- पर उसी राय साहब ने अपनी बेटी समान चंपा को गर्भवती कर दिया

भाभी- ये दुनिया उतनी खूबसूरत कहाँ है जितनी हम सोचते है . ये जीवन उतना सरल कहाँ जितना हम सुनते है . मेरी एक बात गाँठ बाँध लो इस जग में केवल दो सच्चे रिश्ते है एक पुरुष और एक औरत का बाकी सब मिथ्या है . झूठ है .

भाभी ने बहुत बड़ी बात कही थी पर वो सोलह आने सच थी .

भाभी- पुरुष हर औरत को बस एक ही नजर से देखता है और उस नजर के बारे में तुम्हे बताने की जरूरत है नहीं. औरत के लिए उसकी सुन्दरता उसका सबसे बड़ा अभिशाप है . चंपा तो मात्र एक उदाहरण है . तुम खुद को देखो कितनी आसानी से चाहे जो भी बहाना रहा हो तुमने चाची संग सम्बन्ध बना लिए. चाची की गलती रही हो या तुम्हारी उमंगें पर रिश्ता सिर्फ औरत और मर्द का. अगर मैं भी तुम्हारे सामने टांगे खोल दू तो यकीन मानो देवर भाभी के रिश्ते की मर्यादा टूटते देर नहीं लगेगी.

मैं- आपकी हिम्मत कैसे हुई ये नीच बात जुबान पर लाते हुए. आप जानती हो मैंने हमेशा माँ का दर्जा दिया है आपको

भाभी- माँ तो चाची भी है न जब तुम उसके साथ सो सकते हो तो मेरे साथ क्यों नहीं, मेरे ख्याल से ये बेचैनी क्यों हुई.

भाभी की बात खरी थी .

मैं- वो परिस्तिथिया अलग थी आप समझ नहीं पाएंगी मैं समझा नहीं पाऊंगा.

भाभी- परिस्तिथिया कितना आसान बहाना है न .मैं मान लेती हु तुम्हारी बात कुछ पलो के लिए अब विचार करो वो क्या अलग परिस्तिथिया रही होंगी जब राय साहब और चंपा के बीच जिस्मो का खेल हो गया.

मैं- आपने ही मुझे बताया उसके बारे में और अब आप ही उनका पक्ष ले रही है

भाभी- मेरे प्यारे देवर जी, मैं तुम्हे समझा रही हूँ की परिस्तिथि कितना कमजोर बहाना है. असली सच है रजामंदी , मन की चाह . चाची या तुम्हारे मन में चाहत तो जरुर रही होगी एक दुसरे को पाने की.

मैं- क्या पिताजी अपनी जायदाद में से चंपा को कुछ हिस्सा दे सकते है

भाभी- वो चाहे तो पूरी जायदाद उसे दे दे

मैं- क्या आपको कभी ऐसा लगा की पिताजी की नजरे आप पर भी गलत है

भाभी- कभी भी नहीं

मैं - तो ऐसा क्या हुआ की एक इतनी साख वाला इन्सान चंपा संग ये कर बैठा.

भाभी- तुम जानो ये

न जाने मुझे क्यों लगने लगा था की भाभी मुझसे कुछ तो छिपा रही है.

खैर, चाची के आने से हमारी बात बंद हो गयी. मैं उठ कर बाहर चला गया. थोड़ी देर गाँव में घूमा . एक बात का सकूं था की फिलहाल गाँव में उस आदमखोर के हमले कम हो गए थे जो राहत थी . घूमते घूमते मैं जोहड़ के पीछे की तरफ चला गया मिटटी के टीले पर चढ़ कर मैं पेड़ो की तरफ गया ही था की मुझे भैया की गाडी खड़ी दिखी.

“भैया यहाँ ” मैंने खुद से सवाल किया . पर गाड़ी में भैया नहीं थे . ऐसे गाड़ी छोड़ कर वो कहाँ जा सकते थे . अजीब बात थी ये. की तभी मुझे दूर से एक और गाडी आती दिखी मैं पेड़ो की ओट में हो गया दौड़ कर और देखने लगा. वो गाड़ी भैया की गाड़ी के पास आकार रुकी मैंने देखा की उसमे भैया और सूरजभान थे. सूरजभान के सर पर पट्टी बंधी थी . पर भैया इस नीच के साथ क्या कर रहे थे और कहाँ से आये थे . सोच कर मेरा सरदर्द करने लगा.

थोड़ी देर कुछ बाते करने के बाद भैया की गाड़ी गाँव की तरफ बढ़ गयी और सूरजभान जिस रस्ते से आया था उसी पर वापिस मुड गया.



“कोई तो बात है जो मुहसे छिपाई जा रही है ” मैंने कहा
Sablog apne ander kuch na kuch chupa bethe huwe h
Idher bhayya or suraj bhan m alag hi khichdi pak rahi h
Bahot shaandaar update bhai
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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मेरे सवालो में दो सवाल और जुड़ गए थे पहला की वसीयत की इतनी जल्दी क्यों दूजा चौथा कागज किसका था. मेरे ख्याल जब टूटे जब चाची ने मुझे खाना खाने के लिए अंदर बुलाया. चाची ने खाना परोसा और हम दोनों खाना खाने बैठ गए.

मैं- पिताजी ने इतनी जल्दी वसीयत क्यों बनवा ली

चाची- ये तो जेठ जी ही जाने पर मैंने कह दिया है मुझे कुछ नहीं चाहिए . मेरी पूंजी तो तू और अभी मानु हो.

मै- तुम्हारी भावनाओ की कद्र है चाची. विचार करो जरा पिताजी ने क्या पूरी ईमानदारी से वसीयत बनवाई है.

चाची- जायदाद के तीन टुकड़े किये एक मुझे और दो तुम दोनों भाइयो के. मुझे आधा हिस्सा इसलिए दिया क्योंकि तेरे चाचा होते तो आधा उनका मिलता.

मैं- उसकी बात नहीं कर रहा हूँ .

चाची-तो फिर क्या कहना चाहता है तू

मैं चाची से कुछ कहता उस से पहले ही भाभी अन्दर आ गयी मेरी बात अधूरी रह गयी.

भाभी- आजकल तो आपने हमें पराया ही कर दिया है चाची जी.

चाची- अपने बच्चो को कोई माँ कभी पराया नहीं कर सकती बैठ अभी परोसती हूँ तुझे भी .

हम तीनो हलकी-फुलकी बाते करते हुए खाना खाने लगे. फिर चाची बर्तन समेट कर बाहर चली गयी रह गए हम देवर-भाभी.

भाभी- तो बात कुछ आगे बढ़ी तुम्हारी.

मैं- कैसी बात भाभी

भाभी- इतने भी भोले नहीं तुम

तब मुझे समझ आया की निशा की बात कर रही है भाभी

मैं- बात पक्की तब समझूंगा जब वो दुल्हन बन कर इस चोखट पर आएगी

भाभी- उफ्फ्फ्फ़ ये दिल्लगी.

मैं- आशिकी भाभी

भाभी- पिताजी ने वसीयत बनवा ली है

मैं- जानता हूँ

भाभी- तुम्हारे तो वारे-न्यारे है सबसे ज्यादा हिस्सा तुम्हारा ही होने वाला है

मैं- मुझे ये परिवार चाहिए और कुछ नहीं . इस धन-दौलत का मोह नहीं मुझे

भाभी- मोह कैसे होगा दिल एक डाकन से जो लगा बैठे हो

मैं- बार बार एक ही बात करने से क्या हासिल होगा आपको

भाभी- मुझे लगता है की इस वसीयत में कमी है जल्दबाजी में बनवाई गयी है ये.

मैं- मेरा भी यही मानना है

भाभी- तो क्या कमी पकड़ी तुमने

मैं- अभी पकड़ी नहीं है पर जल्दी ही पिताजी से आमने सामने बात करूँगा

भाभी- मुझे लगता है की तुम्हे वसीयत को दुबारा पढना चाहिए

मैं- क्या आपको लगता है की पिताजी ने हमसे दूर कुछ ऐसा किया हुआ है जिसका हमें मालूम नहीं . मेरा मतलब कोई दूसरी औरत या परिवार

भाभी- तू जब अगली बार घर से बाहर जाओ तो जो भी तुम्हे पहला सक्श मिले और फिर अंतिम सख्श तक तुम सबसे ये सवाल करना तुम्हे जवाब मालूम हो जायेगा और ये भी की राय साहब का कद कितना बड़ा है .

मैं- पर उसी राय साहब ने अपनी बेटी समान चंपा को गर्भवती कर दिया

भाभी- ये दुनिया उतनी खूबसूरत कहाँ है जितनी हम सोचते है . ये जीवन उतना सरल कहाँ जितना हम सुनते है . मेरी एक बात गाँठ बाँध लो इस जग में केवल दो सच्चे रिश्ते है एक पुरुष और एक औरत का बाकी सब मिथ्या है . झूठ है .

भाभी ने बहुत बड़ी बात कही थी पर वो सोलह आने सच थी .

भाभी- पुरुष हर औरत को बस एक ही नजर से देखता है और उस नजर के बारे में तुम्हे बताने की जरूरत है नहीं. औरत के लिए उसकी सुन्दरता उसका सबसे बड़ा अभिशाप है . चंपा तो मात्र एक उदाहरण है . तुम खुद को देखो कितनी आसानी से चाहे जो भी बहाना रहा हो तुमने चाची संग सम्बन्ध बना लिए. चाची की गलती रही हो या तुम्हारी उमंगें पर रिश्ता सिर्फ औरत और मर्द का. अगर मैं भी तुम्हारे सामने टांगे खोल दू तो यकीन मानो देवर भाभी के रिश्ते की मर्यादा टूटते देर नहीं लगेगी.

मैं- आपकी हिम्मत कैसे हुई ये नीच बात जुबान पर लाते हुए. आप जानती हो मैंने हमेशा माँ का दर्जा दिया है आपको

भाभी- माँ तो चाची भी है न जब तुम उसके साथ सो सकते हो तो मेरे साथ क्यों नहीं, मेरे ख्याल से ये बेचैनी क्यों हुई.

भाभी की बात खरी थी .

मैं- वो परिस्तिथिया अलग थी आप समझ नहीं पाएंगी मैं समझा नहीं पाऊंगा.

भाभी- परिस्तिथिया कितना आसान बहाना है न .मैं मान लेती हु तुम्हारी बात कुछ पलो के लिए अब विचार करो वो क्या अलग परिस्तिथिया रही होंगी जब राय साहब और चंपा के बीच जिस्मो का खेल हो गया.

मैं- आपने ही मुझे बताया उसके बारे में और अब आप ही उनका पक्ष ले रही है

भाभी- मेरे प्यारे देवर जी, मैं तुम्हे समझा रही हूँ की परिस्तिथि कितना कमजोर बहाना है. असली सच है रजामंदी , मन की चाह . चाची या तुम्हारे मन में चाहत तो जरुर रही होगी एक दुसरे को पाने की.

मैं- क्या पिताजी अपनी जायदाद में से चंपा को कुछ हिस्सा दे सकते है

भाभी- वो चाहे तो पूरी जायदाद उसे दे दे

मैं- क्या आपको कभी ऐसा लगा की पिताजी की नजरे आप पर भी गलत है

भाभी- कभी भी नहीं

मैं - तो ऐसा क्या हुआ की एक इतनी साख वाला इन्सान चंपा संग ये कर बैठा.

भाभी- तुम जानो ये

न जाने मुझे क्यों लगने लगा था की भाभी मुझसे कुछ तो छिपा रही है.

खैर, चाची के आने से हमारी बात बंद हो गयी. मैं उठ कर बाहर चला गया. थोड़ी देर गाँव में घूमा . एक बात का सकूं था की फिलहाल गाँव में उस आदमखोर के हमले कम हो गए थे जो राहत थी . घूमते घूमते मैं जोहड़ के पीछे की तरफ चला गया मिटटी के टीले पर चढ़ कर मैं पेड़ो की तरफ गया ही था की मुझे भैया की गाडी खड़ी दिखी.

“भैया यहाँ ” मैंने खुद से सवाल किया . पर गाड़ी में भैया नहीं थे . ऐसे गाड़ी छोड़ कर वो कहाँ जा सकते थे . अजीब बात थी ये. की तभी मुझे दूर से एक और गाडी आती दिखी मैं पेड़ो की ओट में हो गया दौड़ कर और देखने लगा. वो गाड़ी भैया की गाड़ी के पास आकार रुकी मैंने देखा की उसमे भैया और सूरजभान थे. सूरजभान के सर पर पट्टी बंधी थी . पर भैया इस नीच के साथ क्या कर रहे थे और कहाँ से आये थे . सोच कर मेरा सरदर्द करने लगा.

थोड़ी देर कुछ बाते करने के बाद भैया की गाड़ी गाँव की तरफ बढ़ गयी और सूरजभान जिस रस्ते से आया था उसी पर वापिस मुड गया.



“कोई तो बात है जो मुहसे छिपाई जा रही है ” मैंने कहा
भाभी तो तत्व ज्ञान दे रही है कबीर को, लेकिन वो अभी भी मिथ्या में उलझा है।

अभिमन्यु तो मुझे लगता है की सूरजभान का प्रेमी है।

राय साहब का लगता है चंपा के अलावा और कोई संबंध नहीं है, चंपा का किरदार कहीं गीता ताई की तरह तो नही होने वाला??
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Ek tarah se dekha jaaye to kabir or nisha ka mel nahi ho sakta hai kyuki filhaal dono alag yoniyo me hai shayad nisha bhi yahi samjha rahi thi kabir ko lekin humne aapki hi kahaniyo se sikha hai dekha hai kuch bhi namumkin nahi fir to yeh pyaar hai or pyaar ki taakat to sabhi ko pata hai kitni hoti hai.

Raay sahab chupe rustam hai unke dimaag me kya chal raha hai ye jaana jaruri hai, wasiyat ka wo chutha kagaz kiske naam ho sakta hai aakhir kon hai wo ye jaanna bahot dilchasp honga. Mangu khaas dost ho kar bhi paraya jaisa kyu lagta hai ya fir hume hi aisa lagta hai kavita ki maut ka rahasya bhi barkaraar hai waise wo siyaar kaha ghum ho gaya dikh nahi raha aajkal..

Bhabhi ne jo kaha usse aisa lagta hai ki bhabhi or raay sahab ke bich bhi kuch rishta hai waise kuch jagah wah sahi hai lekin baato ko ghumana bahot acchi tarah se aata hai unhe hamesha ki tarah kabir ko fir se uljha diya bhabhi ne. Dusri taraf bhaiya bhi surajbhan ke saath hai kuch to rishta jarur hai lekin kya...


Dono hi updates bahot acche the dekhte hai aage kya honga, raay sahab, mangu, bhabhi, chachi, champa, bhaiya shak ki sui har kisi par hai lekin sabut ek bhi nahi hai.. hats off...
आकाश भाई ये मुसाफिर की लेखनी है, जब प्रेतनी शरीर प्राप्त कर सकती है तो डायन क्यों नही, वैसे निशा पूरी तरह से डायन है भी ये संदेह है मुझे
 

Studxyz

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निशा एक बहुत सुलझी हुई समझदार डायन जी है उसने कुछ अकल की बाते कबीर के परेशान भेजे में डाल ही दी और म्स्त चुम्मा चाटी भी की वो भी अब कबीर के प्यार में समाती जा रही है

राय साब का किरदार उम्मीद से ज़्यादा ठरकी व् रहस्मयी है

भाभी को कबीर की शादी की पड़ी है वो खुद क्यों नहीं कबीर से रिश्ता बना के माँ बन जाती क्यूँ की अभिमानु के बस का तो कुछ लगता नहीं है :winknudge:
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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#५९



मेरा भाई सूरजभान को इतनी अहमियत क्यों देता था ये सोच सोच कर मैं पागल हुए जा रहा था . दूसरा राय साहब क्या चीज थे. मेरा वजूद मेरे घर की दीवारों से आजाद हो जाना चाहता था . रात को जब मैं घर पहुंचा तो पिताजी घर पर नहीं थे. मैंने देखा भाभी अपना काम कर रही थी मौका देख कर मैं पिताजी के कमरे में घुस गया. मेरा दिल में अजीब सी घबराहट थी ऐसा पहली बार तो नहीं था की मैं इस कमरे में आया था पर ऐसे चोरी छिपे घुसने में डर सा लग रहा था .



कमरे में रोशनी थी हर सामान बड़े सलीके से रखा था . बिस्तर के सिराहने एक अलमारी थी थोड़ी दूर एक मेज थी जिस पर कुछ सामान रखा हुआ था . मैंने अलमारी खोली पिताजी के कपडे थे. पर मुझे किसी और चीज की तलाश थी दराज में देखा पर वसीयत के कागज वहां भी नहीं थे . क्या पिताजी के कमरे में कोई ख़ुफ़िया दराज थी या ऐसी जगह जहाँ पर कुछ छुपाया जा सके. मैंने लगभग कमरा छान लिया पर कागज नहीं मिले मुझे.

हताशा में मैंने इधर उधर हाथ पैर मारे बिस्तर के एक कोने में मुझे कुछ ऐसा मिला जिसने एक बार फिर मुझे हैरान कर दिया. बिस्तर के कोने में चूडियो के कुछ टूटे टुकड़े पड़े थे. मेरे बाप के बिस्तर पर टूटी चूडियो के टुकड़े सोचने वाली बात थी . न जाने क्यों मैंने वो टुकड़े अपनी जेब में रख लिए और कमरे से बाहर आया.

इस घर में दो औरते थे भाभी हमेशा सोने के कंगन पहनती थी चाची के हाथो को मैंने खाली देखा था तो क्या कोई तीसरी औरत थी जो मेरी जानकारी के बिना घर में आती थी पर कैसे , किसलिए. टूटी चूडियो ने मेरे दिमाग को उलझा कर रख दिया था ऐसा क्या था इस घर की दीवारों के पीछे छिपा हुआ जो बाहर आने को बेकरार था .



“किस सोच में इतना गहरे डूबे हो ” निशा ने अलाव जलाते हुए कहा

मैं- क्या मालूम

निशा- दोस्तों को बताने से दिल हल्का हो जाता है

मैंने सोचा की निशा से ये बात करना ठीक रहेगा या नहीं क्योंकि राय शहाब के बारे में ऐसी बात करना सामाजिक तौर पर ठीक नहीं था फिर भी मैंने निशा को सारी बात बताई

निशा कुछ देर सोचती रही और फिर बोली- तुम्हारी भाभी का कहना बिलकुल सही है इस दुनिया में एक ही रिश्ता है औरत और मर्द का रिश्ता और जिस्मो की प्यास कबीर कब न जाने क्या कर जाये कोई नहीं जानता . परदे के पीछे जो चीजे होती है उनका सामने आना कभी कभी सब कुछ बर्बाद कर बैठता है . हर चीज के दो मायने होते है इसके भी है समझो , तुम्हारे पिता काफी सालो से अकेले रहे है , एक इन्सान की कुछ खास जरूरते होती है जिनमे से एक सम्भोग भी है यदि चंपा और पिताजी के बीच इस रिश्ते में दोनों की रजामंदी है तो उनके नजरिये से ठीक है ये अब दूसरा नजरिया समझो यदि वो चंपा का शोषण कर रहे है तो पाप के भागीदार है वो . सही और गलत के मध्य एक बहुत महीन रेखा होती है कबीर.

निशा ने एक गहरी साँस ली और बोली- ये समाज रिश्तो की एक ऐसी भूलभुलैया है जिसमे अपने हिसाब से रिश्तो की व्याख्या की जाती है , भाभी को देखो वो नहीं चाहती की उसका देवर एक डाकन संग रहे पर तू और मैं जानते है इस रिश्ते की सच्चाई को. बेशक हम दोनों के कर्म अलग है पर नियति ने दोस्ती की डोर बाँधी. यदि चंपा को ऐतराज नहीं है तो तू भी इस पर मिटटी डाल .

मैं- और वसीयत का चौथा टुकड़ा उसका क्या

निशा- तुझे किसका मोह है . वो राय साहब की कमाई दौलत है उनकी जमीने है वो चाहे जिसे भी दे तू अपना कर्म कर तू किसान है . तेरे हाथो की मेहनत बंजर धरती पर भी सोना उगा देती है . तू अपनी तक़दीर अपने हाथो से लिखता है

मैं- मेरे हाथो की तक़दीर में कोई रेखा तेरे साथ की भी है क्या

निशा- नियति जाने .

मैं- नियति ही तुझे मेरी जिन्दगी में लाइ है नियति ही तुझे मेरी बनाएगी.

निशा- मेरा मोह भी छोड़ दे , दुनिया में हजारो-लाखो होंगी मुझसे हसीं मुझसे जुदा

मैं- पर तू तो एक ही हैं न मेरी सरकार.

निशा- मैं अँधेरा हूँ तेरे सामने सुनहरा उजाला है

मैं- तेरे साथ इन अँधेरे प्यारे है मुझे

मैंने निशा की गोद में अपना सर रखा और लेट गया . अलाव की आंच चट चट चटकती रही हम बाते करते रहे.

मैं- भाभी कहती है की इस धागे को उतार कर फेक दे ये डाकन का है

निशा- सच ही तो कहती है ठकुराइन

मैं- पर वो इस डाकन को जानती नहीं

निशा- वो जान गयी होगी

मैं- बताया नहीं फिर मुझे

निशा- तू जाने वो जाने

मैं- कोई तो रास्ता होगा तेरे मेरे मिलने का . तेरी दुनिया के नियम भी तो टूटते होंगे.

निशा- मैं वो सपने नहीं देखती जिनके टूटने पर दुःख हो.

वो मेरे पास लेट गयी उसका हाथ मेरे सीने पर आया.

“दिल करता है इस दिल को निकाल लू ” उसने कहा

मैं- तेरा दिल है ले जा बेशक

निशा- दुनिया कहेगी डायन एक और को खा गयी.

मैं- ये तू जाने दुनिया जाने.

इसके आगे मैं कुछ और नहीं कह पाया अगले ही पल निशा ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए और फिर मैं सब कुछ भूल गया. आँख खुली तो मैंने खुद को अलाव की राख में लिपटे हुए पाया. मुस्कुराते हुए मैंने कपडे झाडे और वापिस घर की तरफ चल पड़ा. घर पहुँच कर देखा की पिताजी , भैया और पुजारी जी आँगन में बैठे कुछ बाते कर रहे थे . पुजारी का सुबह सुबह हमारे घर आना मुझे अजीब ही लगा. उन पर नजर डाल कर मैं मुड़ा ही था की भैया की नजर मुझ पर पड़ी और मुझे अपने पास बुलाया

भैया- छोटे, चंपा के ब्याह का मुहूर्त निकलवाया है पुजारी जी कहते है की होली के बाद की पूनम को बड़ा ही शुभ मुहूर्त है .

पूनम की रात का जिक्र होते ही मेरे तन में झुरझुरी दौड़ गयी .

मैं- पुजारी जी कहते है तो ठीक ही होगा.

मैंने अनमने भाव से कहा.

“पुजारी जी हमारे देवर के बारे में भी कुछ कहिये , चंपा के ब्याह के बाद इनका ही नम्बर होगा आप कोई योग देखिये ताकि हम रिश्तो की बात शुरू कर पाए. ” भाभी ने चाय के कप रखते हुए कहा

मैंने अपनी आस्तीन थोड़ी चढ़ाई पुजारी की नजर मेरी कलाई पर बंधे निशा के धागे पर पड़ी और वो बोला- मैं देख कर बता दूंगा

पिताजी- तो लगभग दो सवा दो महीने बीच में है . अभिमानु तयारी शुरू कर दो

भैया ने हाँ में सर हिलाया

भाभी- मैं बता दू चंपा को

मैं- नहीं ये काम मुझे करने दो

तभी पिताजी बोल पड़े- उसे ये खबर हम देंगे . भाई शुभ समाचार है बिना किसी तोहफे के कैसे बताएँगे उसे.


मैं सोचने लगा कही उसे चोद कर तो नहीं बताएगा मेरा बाप.
“दिल करता है इस दिल को निकाल लू ” उसने कहा

मैं- तेरा दिल है ले जा बेशक

निशा- दुनिया कहेगी डायन एक और को खा गयी.

मैं- ये तू जाने दुनिया जाने.


आग बराबर की लगी है दोनो तरफ...

खैर, अब कबीर के पास मौका है चंपा और राय साहब के रिश्ते को देखने का, वैसे सब रजामंदी से है तो कबीर को कोई हक नही उसमें पड़ने का।
 

Naik

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मेरा भाई सूरजभान को इतनी अहमियत क्यों देता था ये सोच सोच कर मैं पागल हुए जा रहा था . दूसरा राय साहब क्या चीज थे. मेरा वजूद मेरे घर की दीवारों से आजाद हो जाना चाहता था . रात को जब मैं घर पहुंचा तो पिताजी घर पर नहीं थे. मैंने देखा भाभी अपना काम कर रही थी मौका देख कर मैं पिताजी के कमरे में घुस गया. मेरा दिल में अजीब सी घबराहट थी ऐसा पहली बार तो नहीं था की मैं इस कमरे में आया था पर ऐसे चोरी छिपे घुसने में डर सा लग रहा था .



कमरे में रोशनी थी हर सामान बड़े सलीके से रखा था . बिस्तर के सिराहने एक अलमारी थी थोड़ी दूर एक मेज थी जिस पर कुछ सामान रखा हुआ था . मैंने अलमारी खोली पिताजी के कपडे थे. पर मुझे किसी और चीज की तलाश थी दराज में देखा पर वसीयत के कागज वहां भी नहीं थे . क्या पिताजी के कमरे में कोई ख़ुफ़िया दराज थी या ऐसी जगह जहाँ पर कुछ छुपाया जा सके. मैंने लगभग कमरा छान लिया पर कागज नहीं मिले मुझे.

हताशा में मैंने इधर उधर हाथ पैर मारे बिस्तर के एक कोने में मुझे कुछ ऐसा मिला जिसने एक बार फिर मुझे हैरान कर दिया. बिस्तर के कोने में चूडियो के कुछ टूटे टुकड़े पड़े थे. मेरे बाप के बिस्तर पर टूटी चूडियो के टुकड़े सोचने वाली बात थी . न जाने क्यों मैंने वो टुकड़े अपनी जेब में रख लिए और कमरे से बाहर आया.

इस घर में दो औरते थे भाभी हमेशा सोने के कंगन पहनती थी चाची के हाथो को मैंने खाली देखा था तो क्या कोई तीसरी औरत थी जो मेरी जानकारी के बिना घर में आती थी पर कैसे , किसलिए. टूटी चूडियो ने मेरे दिमाग को उलझा कर रख दिया था ऐसा क्या था इस घर की दीवारों के पीछे छिपा हुआ जो बाहर आने को बेकरार था .



“किस सोच में इतना गहरे डूबे हो ” निशा ने अलाव जलाते हुए कहा

मैं- क्या मालूम

निशा- दोस्तों को बताने से दिल हल्का हो जाता है

मैंने सोचा की निशा से ये बात करना ठीक रहेगा या नहीं क्योंकि राय शहाब के बारे में ऐसी बात करना सामाजिक तौर पर ठीक नहीं था फिर भी मैंने निशा को सारी बात बताई

निशा कुछ देर सोचती रही और फिर बोली- तुम्हारी भाभी का कहना बिलकुल सही है इस दुनिया में एक ही रिश्ता है औरत और मर्द का रिश्ता और जिस्मो की प्यास कबीर कब न जाने क्या कर जाये कोई नहीं जानता . परदे के पीछे जो चीजे होती है उनका सामने आना कभी कभी सब कुछ बर्बाद कर बैठता है . हर चीज के दो मायने होते है इसके भी है समझो , तुम्हारे पिता काफी सालो से अकेले रहे है , एक इन्सान की कुछ खास जरूरते होती है जिनमे से एक सम्भोग भी है यदि चंपा और पिताजी के बीच इस रिश्ते में दोनों की रजामंदी है तो उनके नजरिये से ठीक है ये अब दूसरा नजरिया समझो यदि वो चंपा का शोषण कर रहे है तो पाप के भागीदार है वो . सही और गलत के मध्य एक बहुत महीन रेखा होती है कबीर.

निशा ने एक गहरी साँस ली और बोली- ये समाज रिश्तो की एक ऐसी भूलभुलैया है जिसमे अपने हिसाब से रिश्तो की व्याख्या की जाती है , भाभी को देखो वो नहीं चाहती की उसका देवर एक डाकन संग रहे पर तू और मैं जानते है इस रिश्ते की सच्चाई को. बेशक हम दोनों के कर्म अलग है पर नियति ने दोस्ती की डोर बाँधी. यदि चंपा को ऐतराज नहीं है तो तू भी इस पर मिटटी डाल .

मैं- और वसीयत का चौथा टुकड़ा उसका क्या

निशा- तुझे किसका मोह है . वो राय साहब की कमाई दौलत है उनकी जमीने है वो चाहे जिसे भी दे तू अपना कर्म कर तू किसान है . तेरे हाथो की मेहनत बंजर धरती पर भी सोना उगा देती है . तू अपनी तक़दीर अपने हाथो से लिखता है

मैं- मेरे हाथो की तक़दीर में कोई रेखा तेरे साथ की भी है क्या

निशा- नियति जाने .

मैं- नियति ही तुझे मेरी जिन्दगी में लाइ है नियति ही तुझे मेरी बनाएगी.

निशा- मेरा मोह भी छोड़ दे , दुनिया में हजारो-लाखो होंगी मुझसे हसीं मुझसे जुदा

मैं- पर तू तो एक ही हैं न मेरी सरकार.

निशा- मैं अँधेरा हूँ तेरे सामने सुनहरा उजाला है

मैं- तेरे साथ इन अँधेरे प्यारे है मुझे

मैंने निशा की गोद में अपना सर रखा और लेट गया . अलाव की आंच चट चट चटकती रही हम बाते करते रहे.

मैं- भाभी कहती है की इस धागे को उतार कर फेक दे ये डाकन का है

निशा- सच ही तो कहती है ठकुराइन

मैं- पर वो इस डाकन को जानती नहीं

निशा- वो जान गयी होगी

मैं- बताया नहीं फिर मुझे

निशा- तू जाने वो जाने

मैं- कोई तो रास्ता होगा तेरे मेरे मिलने का . तेरी दुनिया के नियम भी तो टूटते होंगे.

निशा- मैं वो सपने नहीं देखती जिनके टूटने पर दुःख हो.

वो मेरे पास लेट गयी उसका हाथ मेरे सीने पर आया.

“दिल करता है इस दिल को निकाल लू ” उसने कहा

मैं- तेरा दिल है ले जा बेशक

निशा- दुनिया कहेगी डायन एक और को खा गयी.

मैं- ये तू जाने दुनिया जाने.

इसके आगे मैं कुछ और नहीं कह पाया अगले ही पल निशा ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए और फिर मैं सब कुछ भूल गया. आँख खुली तो मैंने खुद को अलाव की राख में लिपटे हुए पाया. मुस्कुराते हुए मैंने कपडे झाडे और वापिस घर की तरफ चल पड़ा. घर पहुँच कर देखा की पिताजी , भैया और पुजारी जी आँगन में बैठे कुछ बाते कर रहे थे . पुजारी का सुबह सुबह हमारे घर आना मुझे अजीब ही लगा. उन पर नजर डाल कर मैं मुड़ा ही था की भैया की नजर मुझ पर पड़ी और मुझे अपने पास बुलाया

भैया- छोटे, चंपा के ब्याह का मुहूर्त निकलवाया है पुजारी जी कहते है की होली के बाद की पूनम को बड़ा ही शुभ मुहूर्त है .

पूनम की रात का जिक्र होते ही मेरे तन में झुरझुरी दौड़ गयी .

मैं- पुजारी जी कहते है तो ठीक ही होगा.

मैंने अनमने भाव से कहा.

“पुजारी जी हमारे देवर के बारे में भी कुछ कहिये , चंपा के ब्याह के बाद इनका ही नम्बर होगा आप कोई योग देखिये ताकि हम रिश्तो की बात शुरू कर पाए. ” भाभी ने चाय के कप रखते हुए कहा

मैंने अपनी आस्तीन थोड़ी चढ़ाई पुजारी की नजर मेरी कलाई पर बंधे निशा के धागे पर पड़ी और वो बोला- मैं देख कर बता दूंगा

पिताजी- तो लगभग दो सवा दो महीने बीच में है . अभिमानु तयारी शुरू कर दो

भैया ने हाँ में सर हिलाया

भाभी- मैं बता दू चंपा को

मैं- नहीं ये काम मुझे करने दो

तभी पिताजी बोल पड़े- उसे ये खबर हम देंगे . भाई शुभ समाचार है बिना किसी तोहफे के कैसे बताएँगे उसे.


मैं सोचने लगा कही उसे चोद कर तो नहीं बताएगा मेरा बाप.
Nisha n sahi baat kahi jo bhabi n kahi ab samajhna or na samajhna kabir per h
Baherhal champa k vivah ka muhurat nikal. Aaya h or yeh khaber pita ji khud champa ko denge kuch uphaar k saath ab woh uphaar kia hota h woh tow
Rai sahab hi jaane
Shaandaar update bhai
 
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