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#५९
मेरा भाई सूरजभान को इतनी अहमियत क्यों देता था ये सोच सोच कर मैं पागल हुए जा रहा था . दूसरा राय साहब क्या चीज थे. मेरा वजूद मेरे घर की दीवारों से आजाद हो जाना चाहता था . रात को जब मैं घर पहुंचा तो पिताजी घर पर नहीं थे. मैंने देखा भाभी अपना काम कर रही थी मौका देख कर मैं पिताजी के कमरे में घुस गया. मेरा दिल में अजीब सी घबराहट थी ऐसा पहली बार तो नहीं था की मैं इस कमरे में आया था पर ऐसे चोरी छिपे घुसने में डर सा लग रहा था .
कमरे में रोशनी थी हर सामान बड़े सलीके से रखा था . बिस्तर के सिराहने एक अलमारी थी थोड़ी दूर एक मेज थी जिस पर कुछ सामान रखा हुआ था . मैंने अलमारी खोली पिताजी के कपडे थे. पर मुझे किसी और चीज की तलाश थी दराज में देखा पर वसीयत के कागज वहां भी नहीं थे . क्या पिताजी के कमरे में कोई ख़ुफ़िया दराज थी या ऐसी जगह जहाँ पर कुछ छुपाया जा सके. मैंने लगभग कमरा छान लिया पर कागज नहीं मिले मुझे.
हताशा में मैंने इधर उधर हाथ पैर मारे बिस्तर के एक कोने में मुझे कुछ ऐसा मिला जिसने एक बार फिर मुझे हैरान कर दिया. बिस्तर के कोने में चूडियो के कुछ टूटे टुकड़े पड़े थे. मेरे बाप के बिस्तर पर टूटी चूडियो के टुकड़े सोचने वाली बात थी . न जाने क्यों मैंने वो टुकड़े अपनी जेब में रख लिए और कमरे से बाहर आया.
इस घर में दो औरते थे भाभी हमेशा सोने के कंगन पहनती थी चाची के हाथो को मैंने खाली देखा था तो क्या कोई तीसरी औरत थी जो मेरी जानकारी के बिना घर में आती थी पर कैसे , किसलिए. टूटी चूडियो ने मेरे दिमाग को उलझा कर रख दिया था ऐसा क्या था इस घर की दीवारों के पीछे छिपा हुआ जो बाहर आने को बेकरार था .
“किस सोच में इतना गहरे डूबे हो ” निशा ने अलाव जलाते हुए कहा
मैं- क्या मालूम
निशा- दोस्तों को बताने से दिल हल्का हो जाता है
मैंने सोचा की निशा से ये बात करना ठीक रहेगा या नहीं क्योंकि राय शहाब के बारे में ऐसी बात करना सामाजिक तौर पर ठीक नहीं था फिर भी मैंने निशा को सारी बात बताई
निशा कुछ देर सोचती रही और फिर बोली- तुम्हारी भाभी का कहना बिलकुल सही है इस दुनिया में एक ही रिश्ता है औरत और मर्द का रिश्ता और जिस्मो की प्यास कबीर कब न जाने क्या कर जाये कोई नहीं जानता . परदे के पीछे जो चीजे होती है उनका सामने आना कभी कभी सब कुछ बर्बाद कर बैठता है . हर चीज के दो मायने होते है इसके भी है समझो , तुम्हारे पिता काफी सालो से अकेले रहे है , एक इन्सान की कुछ खास जरूरते होती है जिनमे से एक सम्भोग भी है यदि चंपा और पिताजी के बीच इस रिश्ते में दोनों की रजामंदी है तो उनके नजरिये से ठीक है ये अब दूसरा नजरिया समझो यदि वो चंपा का शोषण कर रहे है तो पाप के भागीदार है वो . सही और गलत के मध्य एक बहुत महीन रेखा होती है कबीर.
निशा ने एक गहरी साँस ली और बोली- ये समाज रिश्तो की एक ऐसी भूलभुलैया है जिसमे अपने हिसाब से रिश्तो की व्याख्या की जाती है , भाभी को देखो वो नहीं चाहती की उसका देवर एक डाकन संग रहे पर तू और मैं जानते है इस रिश्ते की सच्चाई को. बेशक हम दोनों के कर्म अलग है पर नियति ने दोस्ती की डोर बाँधी. यदि चंपा को ऐतराज नहीं है तो तू भी इस पर मिटटी डाल .
मैं- और वसीयत का चौथा टुकड़ा उसका क्या
निशा- तुझे किसका मोह है . वो राय साहब की कमाई दौलत है उनकी जमीने है वो चाहे जिसे भी दे तू अपना कर्म कर तू किसान है . तेरे हाथो की मेहनत बंजर धरती पर भी सोना उगा देती है . तू अपनी तक़दीर अपने हाथो से लिखता है
मैं- मेरे हाथो की तक़दीर में कोई रेखा तेरे साथ की भी है क्या
निशा- नियति जाने .
मैं- नियति ही तुझे मेरी जिन्दगी में लाइ है नियति ही तुझे मेरी बनाएगी.
निशा- मेरा मोह भी छोड़ दे , दुनिया में हजारो-लाखो होंगी मुझसे हसीं मुझसे जुदा
मैं- पर तू तो एक ही हैं न मेरी सरकार.
निशा- मैं अँधेरा हूँ तेरे सामने सुनहरा उजाला है
मैं- तेरे साथ इन अँधेरे प्यारे है मुझे
मैंने निशा की गोद में अपना सर रखा और लेट गया . अलाव की आंच चट चट चटकती रही हम बाते करते रहे.
मैं- भाभी कहती है की इस धागे को उतार कर फेक दे ये डाकन का है
निशा- सच ही तो कहती है ठकुराइन
मैं- पर वो इस डाकन को जानती नहीं
निशा- वो जान गयी होगी
मैं- बताया नहीं फिर मुझे
निशा- तू जाने वो जाने
मैं- कोई तो रास्ता होगा तेरे मेरे मिलने का . तेरी दुनिया के नियम भी तो टूटते होंगे.
निशा- मैं वो सपने नहीं देखती जिनके टूटने पर दुःख हो.
वो मेरे पास लेट गयी उसका हाथ मेरे सीने पर आया.
“दिल करता है इस दिल को निकाल लू ” उसने कहा
मैं- तेरा दिल है ले जा बेशक
निशा- दुनिया कहेगी डायन एक और को खा गयी.
मैं- ये तू जाने दुनिया जाने.
इसके आगे मैं कुछ और नहीं कह पाया अगले ही पल निशा ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए और फिर मैं सब कुछ भूल गया. आँख खुली तो मैंने खुद को अलाव की राख में लिपटे हुए पाया. मुस्कुराते हुए मैंने कपडे झाडे और वापिस घर की तरफ चल पड़ा. घर पहुँच कर देखा की पिताजी , भैया और पुजारी जी आँगन में बैठे कुछ बाते कर रहे थे . पुजारी का सुबह सुबह हमारे घर आना मुझे अजीब ही लगा. उन पर नजर डाल कर मैं मुड़ा ही था की भैया की नजर मुझ पर पड़ी और मुझे अपने पास बुलाया
भैया- छोटे, चंपा के ब्याह का मुहूर्त निकलवाया है पुजारी जी कहते है की होली के बाद की पूनम को बड़ा ही शुभ मुहूर्त है .
पूनम की रात का जिक्र होते ही मेरे तन में झुरझुरी दौड़ गयी .
मैं- पुजारी जी कहते है तो ठीक ही होगा.
मैंने अनमने भाव से कहा.
“पुजारी जी हमारे देवर के बारे में भी कुछ कहिये , चंपा के ब्याह के बाद इनका ही नम्बर होगा आप कोई योग देखिये ताकि हम रिश्तो की बात शुरू कर पाए. ” भाभी ने चाय के कप रखते हुए कहा
मैंने अपनी आस्तीन थोड़ी चढ़ाई पुजारी की नजर मेरी कलाई पर बंधे निशा के धागे पर पड़ी और वो बोला- मैं देख कर बता दूंगा
पिताजी- तो लगभग दो सवा दो महीने बीच में है . अभिमानु तयारी शुरू कर दो
भैया ने हाँ में सर हिलाया
भाभी- मैं बता दू चंपा को
मैं- नहीं ये काम मुझे करने दो
तभी पिताजी बोल पड़े- उसे ये खबर हम देंगे . भाई शुभ समाचार है बिना किसी तोहफे के कैसे बताएँगे उसे.
मैं सोचने लगा कही उसे चोद कर तो नहीं बताएगा मेरा बाप.
मेरा भाई सूरजभान को इतनी अहमियत क्यों देता था ये सोच सोच कर मैं पागल हुए जा रहा था . दूसरा राय साहब क्या चीज थे. मेरा वजूद मेरे घर की दीवारों से आजाद हो जाना चाहता था . रात को जब मैं घर पहुंचा तो पिताजी घर पर नहीं थे. मैंने देखा भाभी अपना काम कर रही थी मौका देख कर मैं पिताजी के कमरे में घुस गया. मेरा दिल में अजीब सी घबराहट थी ऐसा पहली बार तो नहीं था की मैं इस कमरे में आया था पर ऐसे चोरी छिपे घुसने में डर सा लग रहा था .
कमरे में रोशनी थी हर सामान बड़े सलीके से रखा था . बिस्तर के सिराहने एक अलमारी थी थोड़ी दूर एक मेज थी जिस पर कुछ सामान रखा हुआ था . मैंने अलमारी खोली पिताजी के कपडे थे. पर मुझे किसी और चीज की तलाश थी दराज में देखा पर वसीयत के कागज वहां भी नहीं थे . क्या पिताजी के कमरे में कोई ख़ुफ़िया दराज थी या ऐसी जगह जहाँ पर कुछ छुपाया जा सके. मैंने लगभग कमरा छान लिया पर कागज नहीं मिले मुझे.
हताशा में मैंने इधर उधर हाथ पैर मारे बिस्तर के एक कोने में मुझे कुछ ऐसा मिला जिसने एक बार फिर मुझे हैरान कर दिया. बिस्तर के कोने में चूडियो के कुछ टूटे टुकड़े पड़े थे. मेरे बाप के बिस्तर पर टूटी चूडियो के टुकड़े सोचने वाली बात थी . न जाने क्यों मैंने वो टुकड़े अपनी जेब में रख लिए और कमरे से बाहर आया.
इस घर में दो औरते थे भाभी हमेशा सोने के कंगन पहनती थी चाची के हाथो को मैंने खाली देखा था तो क्या कोई तीसरी औरत थी जो मेरी जानकारी के बिना घर में आती थी पर कैसे , किसलिए. टूटी चूडियो ने मेरे दिमाग को उलझा कर रख दिया था ऐसा क्या था इस घर की दीवारों के पीछे छिपा हुआ जो बाहर आने को बेकरार था .
“किस सोच में इतना गहरे डूबे हो ” निशा ने अलाव जलाते हुए कहा
मैं- क्या मालूम
निशा- दोस्तों को बताने से दिल हल्का हो जाता है
मैंने सोचा की निशा से ये बात करना ठीक रहेगा या नहीं क्योंकि राय शहाब के बारे में ऐसी बात करना सामाजिक तौर पर ठीक नहीं था फिर भी मैंने निशा को सारी बात बताई
निशा कुछ देर सोचती रही और फिर बोली- तुम्हारी भाभी का कहना बिलकुल सही है इस दुनिया में एक ही रिश्ता है औरत और मर्द का रिश्ता और जिस्मो की प्यास कबीर कब न जाने क्या कर जाये कोई नहीं जानता . परदे के पीछे जो चीजे होती है उनका सामने आना कभी कभी सब कुछ बर्बाद कर बैठता है . हर चीज के दो मायने होते है इसके भी है समझो , तुम्हारे पिता काफी सालो से अकेले रहे है , एक इन्सान की कुछ खास जरूरते होती है जिनमे से एक सम्भोग भी है यदि चंपा और पिताजी के बीच इस रिश्ते में दोनों की रजामंदी है तो उनके नजरिये से ठीक है ये अब दूसरा नजरिया समझो यदि वो चंपा का शोषण कर रहे है तो पाप के भागीदार है वो . सही और गलत के मध्य एक बहुत महीन रेखा होती है कबीर.
निशा ने एक गहरी साँस ली और बोली- ये समाज रिश्तो की एक ऐसी भूलभुलैया है जिसमे अपने हिसाब से रिश्तो की व्याख्या की जाती है , भाभी को देखो वो नहीं चाहती की उसका देवर एक डाकन संग रहे पर तू और मैं जानते है इस रिश्ते की सच्चाई को. बेशक हम दोनों के कर्म अलग है पर नियति ने दोस्ती की डोर बाँधी. यदि चंपा को ऐतराज नहीं है तो तू भी इस पर मिटटी डाल .
मैं- और वसीयत का चौथा टुकड़ा उसका क्या
निशा- तुझे किसका मोह है . वो राय साहब की कमाई दौलत है उनकी जमीने है वो चाहे जिसे भी दे तू अपना कर्म कर तू किसान है . तेरे हाथो की मेहनत बंजर धरती पर भी सोना उगा देती है . तू अपनी तक़दीर अपने हाथो से लिखता है
मैं- मेरे हाथो की तक़दीर में कोई रेखा तेरे साथ की भी है क्या
निशा- नियति जाने .
मैं- नियति ही तुझे मेरी जिन्दगी में लाइ है नियति ही तुझे मेरी बनाएगी.
निशा- मेरा मोह भी छोड़ दे , दुनिया में हजारो-लाखो होंगी मुझसे हसीं मुझसे जुदा
मैं- पर तू तो एक ही हैं न मेरी सरकार.
निशा- मैं अँधेरा हूँ तेरे सामने सुनहरा उजाला है
मैं- तेरे साथ इन अँधेरे प्यारे है मुझे
मैंने निशा की गोद में अपना सर रखा और लेट गया . अलाव की आंच चट चट चटकती रही हम बाते करते रहे.
मैं- भाभी कहती है की इस धागे को उतार कर फेक दे ये डाकन का है
निशा- सच ही तो कहती है ठकुराइन
मैं- पर वो इस डाकन को जानती नहीं
निशा- वो जान गयी होगी
मैं- बताया नहीं फिर मुझे
निशा- तू जाने वो जाने
मैं- कोई तो रास्ता होगा तेरे मेरे मिलने का . तेरी दुनिया के नियम भी तो टूटते होंगे.
निशा- मैं वो सपने नहीं देखती जिनके टूटने पर दुःख हो.
वो मेरे पास लेट गयी उसका हाथ मेरे सीने पर आया.
“दिल करता है इस दिल को निकाल लू ” उसने कहा
मैं- तेरा दिल है ले जा बेशक
निशा- दुनिया कहेगी डायन एक और को खा गयी.
मैं- ये तू जाने दुनिया जाने.
इसके आगे मैं कुछ और नहीं कह पाया अगले ही पल निशा ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए और फिर मैं सब कुछ भूल गया. आँख खुली तो मैंने खुद को अलाव की राख में लिपटे हुए पाया. मुस्कुराते हुए मैंने कपडे झाडे और वापिस घर की तरफ चल पड़ा. घर पहुँच कर देखा की पिताजी , भैया और पुजारी जी आँगन में बैठे कुछ बाते कर रहे थे . पुजारी का सुबह सुबह हमारे घर आना मुझे अजीब ही लगा. उन पर नजर डाल कर मैं मुड़ा ही था की भैया की नजर मुझ पर पड़ी और मुझे अपने पास बुलाया
भैया- छोटे, चंपा के ब्याह का मुहूर्त निकलवाया है पुजारी जी कहते है की होली के बाद की पूनम को बड़ा ही शुभ मुहूर्त है .
पूनम की रात का जिक्र होते ही मेरे तन में झुरझुरी दौड़ गयी .
मैं- पुजारी जी कहते है तो ठीक ही होगा.
मैंने अनमने भाव से कहा.
“पुजारी जी हमारे देवर के बारे में भी कुछ कहिये , चंपा के ब्याह के बाद इनका ही नम्बर होगा आप कोई योग देखिये ताकि हम रिश्तो की बात शुरू कर पाए. ” भाभी ने चाय के कप रखते हुए कहा
मैंने अपनी आस्तीन थोड़ी चढ़ाई पुजारी की नजर मेरी कलाई पर बंधे निशा के धागे पर पड़ी और वो बोला- मैं देख कर बता दूंगा
पिताजी- तो लगभग दो सवा दो महीने बीच में है . अभिमानु तयारी शुरू कर दो
भैया ने हाँ में सर हिलाया
भाभी- मैं बता दू चंपा को
मैं- नहीं ये काम मुझे करने दो
तभी पिताजी बोल पड़े- उसे ये खबर हम देंगे . भाई शुभ समाचार है बिना किसी तोहफे के कैसे बताएँगे उसे.
मैं सोचने लगा कही उसे चोद कर तो नहीं बताएगा मेरा बाप.