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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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पिछले तीन भागों में जहां निशा के आगमन से कहानी में प्रेम के सौंधी खुशबू पुनः लौट आई है तो वहीं कुछ नए रहस्य भी सामने खड़े हो गए हैं। सर्वप्रथम, चाची ने जितने विश्वास और शक्ति के साथ अपने जेठ के साथ संबंध होने की बात को नकारा उससे यही लगता है की वो सत्य कह रही थी। हां, हो सकता है की चाची भी झूठ ही बोल रही हो, परंतु ऐसा होने की संभावना काफी कम दिखाई पड़ती है। ऐसे में भाभी पर संदेह बढ़ जाता है। जब चम्पा की बात भाभी ने कबीर से कही थी, तब एक सीधा सा सवाल पूछा था कबीर ने की क्या चाची के भी उसके बाप से संबंध है? इसका जो उत्तर भाभी ने दिया, उससे स्पष्ट लगा था की चाची भी शायद कबीर से खेल रही है।

परंतु, अब चाची की बातों के बाद भाभी पर ही संदेह की सुई घूम गई है। चम्पा तो वैसे सबसे बड़ी असत्यवादी किरदार है कहानी की, अब तो इस बात का भी विश्वास नहीं की जो इल्ज़ाम उसने मंगू पर लगाया था, वो सत्य था भी या नहीं। मंगू ने बड़ी दृढ़ता से अपने प्रेम का बखान किया है, जोकि कविता के लिए था, ऐसे में उसके संबंध हों चम्पा से, ये बात हज़म नहीं होती। अर्थात, संभव है की चम्पा द्वारा मंगू पर लगाया गया आरोप मिथ्या हो और उसने ये केवल इसलिए किया हो ताकि भविष्य में अपने गर्भवती होने पर उसके और विशंबर दयाल के संबंध उजागर ना हो जाएं। या फिर हो सकता है की चम्पा को विशंबर दयाल ने कहा हो, की वो कबीर से संबंध बनाए और इसीलिए कबीर से असत्य कहा हो चम्पा ने, क्योंकि उससे दूर तो कबीर मंगू की दोस्ती के कारण ही रहता था।

ऐसे में भाभी का एक आरोप, जोकि उन्होंने राय साहब और चम्पा पर लगाया उसके सच होने की संभावना काफी है। क्योंकि जब कबीर ने इससे जुड़ा सवाल किया था चम्पा से तब उसकी प्रतिक्रिया भी बहुत कुछ कह गई थी। इसके अलावा भाभी को अभी भी संदेह है की कबीर ही आदमखोर है, जबकि असलियत में शायद उसका खुद का पति इस सबका कर्ता – धर्ता हो सकता है। बहरहाल, इस सबके बीच जो बात कबीर भूल गया है वो है उस रात घर के दरवाज़े पर रक्त मिलना। क्या वो अब भी नहीं समझ पाया है की वो आदमखोर असल में उसके ही घर का कोई सदस्य है? या फिर समझकर भी नहीं मानना चाहता वो?

इस सबके मध्य विशंबर दयाल ने अपनी जायदाद का बंटवारा करने का निर्णय कर लिया है। यहां एक और संभावना की उत्पत्ति होती है और वो ये की चम्पा विशंबर दयाल को ऐसा करने पर मजबूर कर रही हो। एक बात तो साफ है की चौथे पन्ने में कोई तो ऐसा नाम था जोकि कहानी की दिशा को मोड़ देगा। अभी के लिए चम्पा और सूरजभान, यही दो नाम लगते हैं जिनका उस वसीयत में शायद हिस्सा हो। अब सबसे पहला प्रश्न जिसका उत्तर कबीर को खोजना चाहिए वो है को सुरजभान की हकीकत क्या है? उसका क्या रिश्ता है विशंबर दयाल और अभिमानु से? क्या रूड़ा ही कबीर का वो चाचा है जो कहानी से अभी तक गायब रहा है?

निशा के लौटने से कबीर में एक नई उमंग जरूर उठी होगी और ये खुलासा की निशा को भी उस आदमखोर की तलाश है, उम्मीद बनी है की शायद जल्द ही उसके रहस्य से पर्दा उठ सकता है। आखिर कबीर अकेला ही उस आदमखोर को खोज रहा था, अब निशा है तो अवश्य ही आसानी होगी उसे। दूसरी बात जो साफ हो चुकी है वो ये की निशा भी कबीर से प्रेम करने लगी है, परंतु वो उस सीमा को जानती है जो कबीर और उसे अलग करती है। वो परिचित है इस बात से की शायद उसका और कबीर का मिलन संभव ही नहीं। परंतु, प्रेम रोग से ग्रस्त वो खुद को कबीर से दूर रख ही नहीं पा रही है।

दूसरी ओर कबीर है, हो सब कुछ जानते – समझते हुए भी अनजान बना हुआ है, आखिर प्यार में कहां सही – गलत का बोध रहता है। अब कहानी शायद उस ओर बढ़ रही है जहां कबीर और निशा मिलकर कुछ रहस्यों से पर्दा उठा सकते हैं। कबीर के सामने दो मुसीबतें हैं, पहला घर में चल रही परेशानियां और दूसरा वो आदमखोर, इस बीच सूरजभान की अलग ही समस्या बनी हुई है, और असली परेशानी तो अभी सामने आई ही नहीं, जब कबीर और निशा का प्रेम जग जाहिर हो जाएगा, तब कबीर को उस हालात का सामना करना पड़ेगा, जहां उसकी एक कठिन परीक्षा होगी। वन देवता के पत्थर के सामने जो वचन कहे कबीर ने, क्या उन्हें सच कर पाएगा वो?

सार यही है की अभी के लिए चाची ही इकलौती ऐसी शक्सियत है जोकि कुछ समय के लिए संदेह के घेरे से बाहर हो गई है (बशर्ते की उसका अपना कोई बेटा ना निकल आए, कहा था उसने की वो अपने बेटे की तरफ होगी, अब उसका इशारा कबीर की ओर था या...)। भाभी पर विश्वास करना मूर्खता है, क्योंकि कुछ बातें वो असत्य के रही है और कुछ ऐसे सत्य हैं जिन्हें वो छिपा रही है। रही बात चम्पा की तो, उसकी कोई बात है ही नहीं... देखते हैं वसीयत का रहस्य कब तक खुलेगा।

तीनों ही भाग बेहद ही खूबसूरत थे भाई। निशा और कबीर की प्रेमपूर्ण वार्ता दिल को छू गई। जिन शब्दों का चुनाव करते हैं आप, वो सीधे दिल में उतर जाते हैं, जो भाव कहानी के किरदारों के होते हैं, उन्हें एक पाठक के तौर पर महसूस कर पाता हूं मैं, और मुझे नहीं लगता की इसके बाद आपको लेखनी के बारे में कुछ भी कहने की आवश्यकता है।

प्रतीक्षा अगले भाग की...
निशा कबीर की जिन्दगी का वो पहलु है जिसे हर पल जीना चाहता है वो . जवानी के जोश ने मोहब्बत को आवाज दी है . पर ये मोहब्बत कैसी जिसमे कोई मेल नहीं . इधर राय साहब के मैं में क्या खुराफात चल रही है कौन जाने . भाभी के चेहरे पर कितने मुखोटे है भैया और भैया की सूरजभान को इतनी ज्यादा परेफरेंस देना कबीर को व्याकुल कर रहा है . अब ये वसीयत का पंगा कौन जाने क्या पक रहा है
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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सर्वप्रथम तो आप तृतीय शतक की बहुत-बहुत शुभकामनाएं 🙏🙏

आप अपनी यह पारी ऐसे ही लगातार खेलते रहे और सामने वाले अर्थात हम पाठकों को मनोरंजन करते रहे




आपके तारिफ मे लिखने के लिए तो मेरे पास कभी शब्द ही नहीं बचते कि मैं आपकी कोई तारीफ कर सकूं


इसके लिए मैं एक बार फिर से क्षमा प्रार्थी हूं🙏🙏🙏



जिस प्रकार से यह कहानी अब चल रही है उससे कभी कभी मंगू, बड़े भैया पर भी शक की सुई घूमती रहती है


लेकिन यह राय साहब नाते में ही बाप 🤣🤣नहीं हर मामलों में कबीर मंगू अभिमानू के बाप निकल जाते हैं 🤭🤭🤭

रही बात उस चौथे पेज की वह पक्का उस कच्ची कली को रोदने की फीस होगी 🛌🛌🛌बाकी उसका सही परिणाम तो फौजी भाई ही जाने




अगले अपडेट का बहुत बेसब्री से इंतजार रहेगा
आप बस साथ बने रहे इस कहानी के मेरी खुस्किस्मती है .
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#58



मेरे सवालो में दो सवाल और जुड़ गए थे पहला की वसीयत की इतनी जल्दी क्यों दूजा चौथा कागज किसका था. मेरे ख्याल जब टूटे जब चाची ने मुझे खाना खाने के लिए अंदर बुलाया. चाची ने खाना परोसा और हम दोनों खाना खाने बैठ गए.

मैं- पिताजी ने इतनी जल्दी वसीयत क्यों बनवा ली

चाची- ये तो जेठ जी ही जाने पर मैंने कह दिया है मुझे कुछ नहीं चाहिए . मेरी पूंजी तो तू और अभी मानु हो.

मै- तुम्हारी भावनाओ की कद्र है चाची. विचार करो जरा पिताजी ने क्या पूरी ईमानदारी से वसीयत बनवाई है.

चाची- जायदाद के तीन टुकड़े किये एक मुझे और दो तुम दोनों भाइयो के. मुझे आधा हिस्सा इसलिए दिया क्योंकि तेरे चाचा होते तो आधा उनका मिलता.

मैं- उसकी बात नहीं कर रहा हूँ .

चाची-तो फिर क्या कहना चाहता है तू

मैं चाची से कुछ कहता उस से पहले ही भाभी अन्दर आ गयी मेरी बात अधूरी रह गयी.

भाभी- आजकल तो आपने हमें पराया ही कर दिया है चाची जी.

चाची- अपने बच्चो को कोई माँ कभी पराया नहीं कर सकती बैठ अभी परोसती हूँ तुझे भी .

हम तीनो हलकी-फुलकी बाते करते हुए खाना खाने लगे. फिर चाची बर्तन समेट कर बाहर चली गयी रह गए हम देवर-भाभी.

भाभी- तो बात कुछ आगे बढ़ी तुम्हारी.

मैं- कैसी बात भाभी

भाभी- इतने भी भोले नहीं तुम

तब मुझे समझ आया की निशा की बात कर रही है भाभी

मैं- बात पक्की तब समझूंगा जब वो दुल्हन बन कर इस चोखट पर आएगी

भाभी- उफ्फ्फ्फ़ ये दिल्लगी.

मैं- आशिकी भाभी

भाभी- पिताजी ने वसीयत बनवा ली है

मैं- जानता हूँ

भाभी- तुम्हारे तो वारे-न्यारे है सबसे ज्यादा हिस्सा तुम्हारा ही होने वाला है

मैं- मुझे ये परिवार चाहिए और कुछ नहीं . इस धन-दौलत का मोह नहीं मुझे

भाभी- मोह कैसे होगा दिल एक डाकन से जो लगा बैठे हो

मैं- बार बार एक ही बात करने से क्या हासिल होगा आपको

भाभी- मुझे लगता है की इस वसीयत में कमी है जल्दबाजी में बनवाई गयी है ये.

मैं- मेरा भी यही मानना है

भाभी- तो क्या कमी पकड़ी तुमने

मैं- अभी पकड़ी नहीं है पर जल्दी ही पिताजी से आमने सामने बात करूँगा

भाभी- मुझे लगता है की तुम्हे वसीयत को दुबारा पढना चाहिए

मैं- क्या आपको लगता है की पिताजी ने हमसे दूर कुछ ऐसा किया हुआ है जिसका हमें मालूम नहीं . मेरा मतलब कोई दूसरी औरत या परिवार

भाभी- तू जब अगली बार घर से बाहर जाओ तो जो भी तुम्हे पहला सक्श मिले और फिर अंतिम सख्श तक तुम सबसे ये सवाल करना तुम्हे जवाब मालूम हो जायेगा और ये भी की राय साहब का कद कितना बड़ा है .

मैं- पर उसी राय साहब ने अपनी बेटी समान चंपा को गर्भवती कर दिया

भाभी- ये दुनिया उतनी खूबसूरत कहाँ है जितनी हम सोचते है . ये जीवन उतना सरल कहाँ जितना हम सुनते है . मेरी एक बात गाँठ बाँध लो इस जग में केवल दो सच्चे रिश्ते है एक पुरुष और एक औरत का बाकी सब मिथ्या है . झूठ है .

भाभी ने बहुत बड़ी बात कही थी पर वो सोलह आने सच थी .

भाभी- पुरुष हर औरत को बस एक ही नजर से देखता है और उस नजर के बारे में तुम्हे बताने की जरूरत है नहीं. औरत के लिए उसकी सुन्दरता उसका सबसे बड़ा अभिशाप है . चंपा तो मात्र एक उदाहरण है . तुम खुद को देखो कितनी आसानी से चाहे जो भी बहाना रहा हो तुमने चाची संग सम्बन्ध बना लिए. चाची की गलती रही हो या तुम्हारी उमंगें पर रिश्ता सिर्फ औरत और मर्द का. अगर मैं भी तुम्हारे सामने टांगे खोल दू तो यकीन मानो देवर भाभी के रिश्ते की मर्यादा टूटते देर नहीं लगेगी.

मैं- आपकी हिम्मत कैसे हुई ये नीच बात जुबान पर लाते हुए. आप जानती हो मैंने हमेशा माँ का दर्जा दिया है आपको

भाभी- माँ तो चाची भी है न जब तुम उसके साथ सो सकते हो तो मेरे साथ क्यों नहीं, मेरे ख्याल से ये बेचैनी क्यों हुई.

भाभी की बात खरी थी .

मैं- वो परिस्तिथिया अलग थी आप समझ नहीं पाएंगी मैं समझा नहीं पाऊंगा.

भाभी- परिस्तिथिया कितना आसान बहाना है न .मैं मान लेती हु तुम्हारी बात कुछ पलो के लिए अब विचार करो वो क्या अलग परिस्तिथिया रही होंगी जब राय साहब और चंपा के बीच जिस्मो का खेल हो गया.

मैं- आपने ही मुझे बताया उसके बारे में और अब आप ही उनका पक्ष ले रही है

भाभी- मेरे प्यारे देवर जी, मैं तुम्हे समझा रही हूँ की परिस्तिथि कितना कमजोर बहाना है. असली सच है रजामंदी , मन की चाह . चाची या तुम्हारे मन में चाहत तो जरुर रही होगी एक दुसरे को पाने की.

मैं- क्या पिताजी अपनी जायदाद में से चंपा को कुछ हिस्सा दे सकते है

भाभी- वो चाहे तो पूरी जायदाद उसे दे दे

मैं- क्या आपको कभी ऐसा लगा की पिताजी की नजरे आप पर भी गलत है

भाभी- कभी भी नहीं

मैं - तो ऐसा क्या हुआ की एक इतनी साख वाला इन्सान चंपा संग ये कर बैठा.

भाभी- तुम जानो ये

न जाने मुझे क्यों लगने लगा था की भाभी मुझसे कुछ तो छिपा रही है.

खैर, चाची के आने से हमारी बात बंद हो गयी. मैं उठ कर बाहर चला गया. थोड़ी देर गाँव में घूमा . एक बात का सकूं था की फिलहाल गाँव में उस आदमखोर के हमले कम हो गए थे जो राहत थी . घूमते घूमते मैं जोहड़ के पीछे की तरफ चला गया मिटटी के टीले पर चढ़ कर मैं पेड़ो की तरफ गया ही था की मुझे भैया की गाडी खड़ी दिखी.

“भैया यहाँ ” मैंने खुद से सवाल किया . पर गाड़ी में भैया नहीं थे . ऐसे गाड़ी छोड़ कर वो कहाँ जा सकते थे . अजीब बात थी ये. की तभी मुझे दूर से एक और गाडी आती दिखी मैं पेड़ो की ओट में हो गया दौड़ कर और देखने लगा. वो गाड़ी भैया की गाड़ी के पास आकार रुकी मैंने देखा की उसमे भैया और सूरजभान थे. सूरजभान के सर पर पट्टी बंधी थी . पर भैया इस नीच के साथ क्या कर रहे थे और कहाँ से आये थे . सोच कर मेरा सरदर्द करने लगा.

थोड़ी देर कुछ बाते करने के बाद भैया की गाड़ी गाँव की तरफ बढ़ गयी और सूरजभान जिस रस्ते से आया था उसी पर वापिस मुड गया.



“कोई तो बात है जो मुहसे छिपाई जा रही है ” मैंने कहा


 

Studxyz

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भाभी व् भाई की खिचड़ी कुछ तगडी ही पक रही है जहाँ भाभी कबीर से खेल रही है वही भाई सूरजभान की दवा दारु में लगा है और राय साब तो वसीयत से सब को झटका दे ही चुके हैं अभी और न जाने कबीर के साथ क्या कुछ होना बाकी है

भाभी का कबीर को अपनी टांगे खोलना व् चुदायी का उदाहरण देना भी चौंका गया भाभी भी कई राज समेटे हुए है
 
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Luckyloda

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मेरे सवालो में दो सवाल और जुड़ गए थे पहला की वसीयत की इतनी जल्दी क्यों दूजा चौथा कागज किसका था. मेरे ख्याल जब टूटे जब चाची ने मुझे खाना खाने के लिए अंदर बुलाया. चाची ने खाना परोसा और हम दोनों खाना खाने बैठ गए.

मैं- पिताजी ने इतनी जल्दी वसीयत क्यों बनवा ली

चाची- ये तो जेठ जी ही जाने पर मैंने कह दिया है मुझे कुछ नहीं चाहिए . मेरी पूंजी तो तू और अभी मानु हो.

मै- तुम्हारी भावनाओ की कद्र है चाची. विचार करो जरा पिताजी ने क्या पूरी ईमानदारी से वसीयत बनवाई है.

चाची- जायदाद के तीन टुकड़े किये एक मुझे और दो तुम दोनों भाइयो के. मुझे आधा हिस्सा इसलिए दिया क्योंकि तेरे चाचा होते तो आधा उनका मिलता.

मैं- उसकी बात नहीं कर रहा हूँ .

चाची-तो फिर क्या कहना चाहता है तू

मैं चाची से कुछ कहता उस से पहले ही भाभी अन्दर आ गयी मेरी बात अधूरी रह गयी.

भाभी- आजकल तो आपने हमें पराया ही कर दिया है चाची जी.

चाची- अपने बच्चो को कोई माँ कभी पराया नहीं कर सकती बैठ अभी परोसती हूँ तुझे भी .

हम तीनो हलकी-फुलकी बाते करते हुए खाना खाने लगे. फिर चाची बर्तन समेट कर बाहर चली गयी रह गए हम देवर-भाभी.

भाभी- तो बात कुछ आगे बढ़ी तुम्हारी.

मैं- कैसी बात भाभी

भाभी- इतने भी भोले नहीं तुम

तब मुझे समझ आया की निशा की बात कर रही है भाभी

मैं- बात पक्की तब समझूंगा जब वो दुल्हन बन कर इस चोखट पर आएगी

भाभी- उफ्फ्फ्फ़ ये दिल्लगी.

मैं- आशिकी भाभी

भाभी- पिताजी ने वसीयत बनवा ली है

मैं- जानता हूँ

भाभी- तुम्हारे तो वारे-न्यारे है सबसे ज्यादा हिस्सा तुम्हारा ही होने वाला है

मैं- मुझे ये परिवार चाहिए और कुछ नहीं . इस धन-दौलत का मोह नहीं मुझे

भाभी- मोह कैसे होगा दिल एक डाकन से जो लगा बैठे हो

मैं- बार बार एक ही बात करने से क्या हासिल होगा आपको

भाभी- मुझे लगता है की इस वसीयत में कमी है जल्दबाजी में बनवाई गयी है ये.

मैं- मेरा भी यही मानना है

भाभी- तो क्या कमी पकड़ी तुमने

मैं- अभी पकड़ी नहीं है पर जल्दी ही पिताजी से आमने सामने बात करूँगा

भाभी- मुझे लगता है की तुम्हे वसीयत को दुबारा पढना चाहिए

मैं- क्या आपको लगता है की पिताजी ने हमसे दूर कुछ ऐसा किया हुआ है जिसका हमें मालूम नहीं . मेरा मतलब कोई दूसरी औरत या परिवार

भाभी- तू जब अगली बार घर से बाहर जाओ तो जो भी तुम्हे पहला सक्श मिले और फिर अंतिम सख्श तक तुम सबसे ये सवाल करना तुम्हे जवाब मालूम हो जायेगा और ये भी की राय साहब का कद कितना बड़ा है .

मैं- पर उसी राय साहब ने अपनी बेटी समान चंपा को गर्भवती कर दिया

भाभी- ये दुनिया उतनी खूबसूरत कहाँ है जितनी हम सोचते है . ये जीवन उतना सरल कहाँ जितना हम सुनते है . मेरी एक बात गाँठ बाँध लो इस जग में केवल दो सच्चे रिश्ते है एक पुरुष और एक औरत का बाकी सब मिथ्या है . झूठ है .

भाभी ने बहुत बड़ी बात कही थी पर वो सोलह आने सच थी .

भाभी- पुरुष हर औरत को बस एक ही नजर से देखता है और उस नजर के बारे में तुम्हे बताने की जरूरत है नहीं. औरत के लिए उसकी सुन्दरता उसका सबसे बड़ा अभिशाप है . चंपा तो मात्र एक उदाहरण है . तुम खुद को देखो कितनी आसानी से चाहे जो भी बहाना रहा हो तुमने चाची संग सम्बन्ध बना लिए. चाची की गलती रही हो या तुम्हारी उमंगें पर रिश्ता सिर्फ औरत और मर्द का. अगर मैं भी तुम्हारे सामने टांगे खोल दू तो यकीन मानो देवर भाभी के रिश्ते की मर्यादा टूटते देर नहीं लगेगी.

मैं- आपकी हिम्मत कैसे हुई ये नीच बात जुबान पर लाते हुए. आप जानती हो मैंने हमेशा माँ का दर्जा दिया है आपको

भाभी- माँ तो चाची भी है न जब तुम उसके साथ सो सकते हो तो मेरे साथ क्यों नहीं, मेरे ख्याल से ये बेचैनी क्यों हुई.

भाभी की बात खरी थी .

मैं- वो परिस्तिथिया अलग थी आप समझ नहीं पाएंगी मैं समझा नहीं पाऊंगा.

भाभी- परिस्तिथिया कितना आसान बहाना है न .मैं मान लेती हु तुम्हारी बात कुछ पलो के लिए अब विचार करो वो क्या अलग परिस्तिथिया रही होंगी जब राय साहब और चंपा के बीच जिस्मो का खेल हो गया.

मैं- आपने ही मुझे बताया उसके बारे में और अब आप ही उनका पक्ष ले रही है

भाभी- मेरे प्यारे देवर जी, मैं तुम्हे समझा रही हूँ की परिस्तिथि कितना कमजोर बहाना है. असली सच है रजामंदी , मन की चाह . चाची या तुम्हारे मन में चाहत तो जरुर रही होगी एक दुसरे को पाने की.

मैं- क्या पिताजी अपनी जायदाद में से चंपा को कुछ हिस्सा दे सकते है

भाभी- वो चाहे तो पूरी जायदाद उसे दे दे

मैं- क्या आपको कभी ऐसा लगा की पिताजी की नजरे आप पर भी गलत है

भाभी- कभी भी नहीं

मैं - तो ऐसा क्या हुआ की एक इतनी साख वाला इन्सान चंपा संग ये कर बैठा.

भाभी- तुम जानो ये

न जाने मुझे क्यों लगने लगा था की भाभी मुझसे कुछ तो छिपा रही है.

खैर, चाची के आने से हमारी बात बंद हो गयी. मैं उठ कर बाहर चला गया. थोड़ी देर गाँव में घूमा . एक बात का सकूं था की फिलहाल गाँव में उस आदमखोर के हमले कम हो गए थे जो राहत थी . घूमते घूमते मैं जोहड़ के पीछे की तरफ चला गया मिटटी के टीले पर चढ़ कर मैं पेड़ो की तरफ गया ही था की मुझे भैया की गाडी खड़ी दिखी.

“भैया यहाँ ” मैंने खुद से सवाल किया . पर गाड़ी में भैया नहीं थे . ऐसे गाड़ी छोड़ कर वो कहाँ जा सकते थे . अजीब बात थी ये. की तभी मुझे दूर से एक और गाडी आती दिखी मैं पेड़ो की ओट में हो गया दौड़ कर और देखने लगा. वो गाड़ी भैया की गाड़ी के पास आकार रुकी मैंने देखा की उसमे भैया और सूरजभान थे. सूरजभान के सर पर पट्टी बंधी थी . पर भैया इस नीच के साथ क्या कर रहे थे और कहाँ से आये थे . सोच कर मेरा सरदर्द करने लगा.

थोड़ी देर कुछ बाते करने के बाद भैया की गाड़ी गाँव की तरफ बढ़ गयी और सूरजभान जिस रस्ते से आया था उसी पर वापिस मुड गया.



“कोई तो बात है जो मुहसे छिपाई जा रही है ” मैंने कहा
Bhut hi shandaar update......



Ab kya nayi bhasad macha rakhi h bhabhi ne kabir ko uljha ke ya shyad samjha kr...



Aur ye surajbhan aur bhaiyya aajkal jyada hi sath nhi ghum rahe ???
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Ek tarah se dekha jaaye to kabir or nisha ka mel nahi ho sakta hai kyuki filhaal dono alag yoniyo me hai shayad nisha bhi yahi samjha rahi thi kabir ko lekin humne aapki hi kahaniyo se sikha hai dekha hai kuch bhi namumkin nahi fir to yeh pyaar hai or pyaar ki taakat to sabhi ko pata hai kitni hoti hai.

Raay sahab chupe rustam hai unke dimaag me kya chal raha hai ye jaana jaruri hai, wasiyat ka wo chutha kagaz kiske naam ho sakta hai aakhir kon hai wo ye jaanna bahot dilchasp honga. Mangu khaas dost ho kar bhi paraya jaisa kyu lagta hai ya fir hume hi aisa lagta hai kavita ki maut ka rahasya bhi barkaraar hai waise wo siyaar kaha ghum ho gaya dikh nahi raha aajkal..

Bhabhi ne jo kaha usse aisa lagta hai ki bhabhi or raay sahab ke bich bhi kuch rishta hai waise kuch jagah wah sahi hai lekin baato ko ghumana bahot acchi tarah se aata hai unhe hamesha ki tarah kabir ko fir se uljha diya bhabhi ne. Dusri taraf bhaiya bhi surajbhan ke saath hai kuch to rishta jarur hai lekin kya...

Dono hi updates bahot acche the dekhte hai aage kya honga, raay sahab, mangu, bhabhi, chachi, champa, bhaiya shak ki sui har kisi par hai lekin sabut ek bhi nahi hai.. hats off...
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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भाभी व् भाई की खिचड़ी कुछ तगडी ही पक रही है जहाँ भाभी कबीर से खेल रही है वही भाई सूरजभान की दवा दारु में लगा है और राय साब तो वसीयत से सब को झटका दे ही चुके हैं अभी और न जाने कबीर के साथ क्या कुछ होना बाकी है

भाभी का कबीर को अपनी टांगे खोलना व् चुप दायी का उदाहरण देना भी चौंका गया भाभी भी कई राज समेटे हुए है
कहानी, कहानी के दो नजरिए होते है एक जो लेखक दिखाता है एक जो पाठक समझता है कहने को तो ये एक आम सी कहानी है जिसमें हर बार की तरह गांव की घिसी-पिटी पृष्ठभूमि है पर फिर भी मेरा मानना है कि गाँव देहात अपने अंदर जिज्ञासा का जो ख़ज़ाना समेटे हुए है उसमे नजाने क्या क्या छिपा हुआ है
 
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