• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Studxyz

Well-Known Member
2,925
16,209
158
हर सफर का अंत होता ही है भाई

भाई फौजी जी जाने की व् बिछड़ने की ज़िद न करो अभी सफर चालू रखो निशा व् कबीर के संघर्ष भरी प्रेम कहानी का मज़ा ही कुछ और है
 
Last edited:

SKYESH

Well-Known Member
3,126
7,560
158
फिर कहानी खत्म हो जाएगी मेरे दोस्त हमारा अंतिम सफर है ये जीने दो मुझे थोड़ा यहां और
कभी अलविदा ना कहना......

कभी अलविदा ना कहना.......:rockf::thrasher:
 

Sanju@

Well-Known Member
4,206
17,215
143
#55

दिमाग सुन्न हो गया था . मेरे भाई ने एक पराये के लिए मुझे धक्का दिया था . मुझसे जायदा मेरे दुश्मन की फ़िक्र थी उसे. सोच कर मैं पागल ही हो गया.

“मैं थोड़ी देर कुवे पर ही रुकुंगा तू घर जा ” मैंने चंपा से कहा

चंपा- मैं भी तेरे साथ ही रहूंगी

मैं-तू तो सुन ले मेरी. जा अकेला छोड़ दे थोड़ी देर.

मैं कुवे की मुंडेर पर बैठ गया और सोचने लगा. इस हालत में मुझे निशा की बड़ी कमी महसूस हो रही थी उसके बिना ऐसे लगता था की जैसे आत्मा का एक टुकड़ा निकाल ले गया हो कोई. मैं खुद को कोस रहा था की काश मैंने उस से मोहब्बत का इजहार नहीं किया होता तो वो नहीं जाती. पर वो नहीं थी , मैं था और ये तन्हाई थी .

तीन दिन ऐसे ही गुजर गए भैया का कोई अतापता नहीं था . मैं दिन भर राय साहब को देखता . रात में चोकिदारी करता सोचता की कब ये कुछ करेगा. पर चंपा और रायसाहब का व्यवहार सामान्य ही था . ऐसे ही समय गुजर रहा था और पूनम की शाम को भैया घर आये. काफी थके से लग रहे थे . मैं चबूतरे पर ही बैठा था . मुझे देख कर भैया गाड़ी से उतर कर मेरे पास आये.

भैया- कैसा है छोटे

मैं- जैसा छोड़ कर गए थे वैसा ही हूँ

भैया- नाराज है अभी तक

मैं- क्या फर्क पड़ता है

भैया - समझता हूँ तेरी नाराजगी

मैं- रोकना नहीं चाहिए था मुझे

भाई-- रोकना जरुरी था

मैं- सूरजभान को तो मैं मौका लगते ही मार दूंगा.

भैया- ऐसा नहीं होने दूंगा मैं

मैं- पर क्यों, ऐसा क्या है जो मेरे भाई और मेरे बिच वो नीच आ गया है

भैया- तेरे मेरे बीच कोई नहीं आ सकता छोटे

मैं- तो फिर उस गलीच की इतनी फ़िक्र क्यों आपको

भैया- उसकी चिंता नहीं है . तेरी फ़िक्र है मैं नहीं चाहता तू इस दलदल में फंस जाये

मैं- किस दलदल में

भैया -छोटे, ये खून खराबा हमारे लिए नहीं है

मैं- और उसने जो किया क्या वो ठीक था

भैया- नियति बड़ी निराली होती है छोटे . तेरा दिमाग अभी गर्म है तू समझेगा नहीं पर मैं जानता हु तेरी क्या अहमियत है मेरे लिए . तू मेरी इतनी तो बात मान. इतना तो तुझ पर हक़ है न मेरा

मैं- ठीक है पर आपको भी मुझसे एक वादा करना होगा दुश्मनी मेरी और उसकी है हम दोनों के बेची ही रहे. किसी मजलूम को उसने सताया मुझसे दुश्मनी के चलते तो मैं नहीं सुनूंगा आपकी

भैया- ठीक है .

मैं- दूसरी बात . ऐसा क्या है उस में जो उसके लिए अपने छोटे भाई के सामने खड़े हो गए आप.

भैया -थोड़ी थकान है मैं नहा कर आता हूँ .

भैया ने टाल दी थी बात को पर मेरे मन में जो शंका का बीज था वो जल्दी ही पेड़ बनने वाला था . खैर, रात को मेरी नींद खुली तो मैंने देखा की पूरा बिस्तर गीला हुआ पड़ा था . क्या नींद में ही मूत दिया मिअने अपने आप से सवाल किया. सूंघ कर देखा मूत तो नहीं था . कपडे चिपचिपे हो रहे थे इतना पसीना तो पहले कभी नहीं आया था . दिसम्बर की ठण्ड में पसीना आना क्या ही कहे अब.

बिस्तर से उठ कर मैं गली में गया मूत रहा था की मेरी नजर ऊपर आसमान में चाँद पर पड़ी. अचानक से पैर लडखडा गए मेरे. गला सूखने लगा. मुझे निशा की बात याद आई की पूर्णिमा को काली मंदिर में ही रहना . बदन में अजीब सी खुजली दौड़ने लगी थी मैं अपने जिस्म को खरोंचने लगा.

बिन कुछ सोचे समझे मैं गाँव से बाहर की तरफ दौड़ पड़ा. तन जलने लगा था . जैसे किसी ने आग में झोंक दिया हो मुझे. आव देखा न ताव मैं उसी तालाब में कूद गया. सर्दी के मौसम में जमे हुए पानी ने मुझे अपने आगोश में पनाह दी पर चैन नहीं मिला. पानी भी जैसे मेरा गला घोंट रहा हो. साँस लेने में मुश्किल हो रही थी . जब बिलकुल जोर नहीं चला तो मैं मंदिर में घुस गया और उन काली दीवारों से लग कर खुद को सँभालने की कोशिश करने लगा. आँखे धुंधली होने लगी थी . दिल कर रहा था की जोर जोर से चीखू.

जैसे जैसे रात बढती गयी मेरी तकलीफ बढती गयी . अपने आप से जूझता रहा मैं और जब सुबह का पहर सुरु हुआ तो खांसते हुए मैं वही धरती पर गिर गया. जब आँख खुली तो सब कुछ शांत था मालूम नहीं कितना समय रहा होगा पर दिन था. धुधं ने चारो दिशाओ कोकाबू किया हुआ था . मैं उठा खुद को देखा बदन ठण्ड से कांप रहा था मेरे कपडे सीले थे .

कुवे पर आने के बाद मैंने दुसरे कपडे पहने और रजाई में घुस गया. सोचता रहा की रात को क्या हुआ था .

“कबीर कबीर है क्या यहाँ तू ” बाहर से चाची की आवाज आई

मैं- अन्दर हु चाची

चाची अन्दर आई और मुझे बिस्तर में घुसे हुए देख कर बोली- सुबह से गायब है . मुझे फ़िक्र हो रही थी और तू है की यहाँ आराम से पड़ा है . ले खाना खाले .

मैंने जैसे तैसे खाना खाया पर बदन कांप रहा था . चाची ने मेरे माथे पर हाथ रखा और बोली- तुझे तो बुखार है .

मैं-ठीक हो जायेगा.

चाची बर्तन लेकर बाहर जा रही थी तो मेरी निगाह चाची की मदमस्त गांड पर पड़ी . मन बेईमान हो गया.

मैं- किवाड़ लगा लो और आओ मेरे पास

चाची- दिन में नहीं कोई आ निकलेगा.

मैं- आओ तो सही , ये ठण्ड ऐसे ही उतरेगी.

वो कहते है न की आदमी किसी भी हालत में हो उसे इस चीज का चस्का हमेशा ही रहता है . मैंने भी चाची को बिस्तर में घसीट लिया और अपनी मनमानी कर ली सच कहू तो राहत भी मिली मुझे. आराम मिला तो बातो सा सिलसिला शुरू हुआ .

मैं- चाची, माँ के जाने के बाद पिताजी चाहते तो दूसरी शादी कर लेते

चाची- पर उन्होंने नहीं की

मैं- कैसे जिए होंगे वो अकेले. मैं तेरे बिना थोड़ी देर न रह पा रहा पिताजी की भी तो इच्छा होती होगी .

चाची- देख कबीर इच्छा तो सबकी होती ही है. राय साहब की जो हसियत है वो किसी भी औरत को जरा भी इशारा कर दे तो कोई भी अपनी खुशकिस्मती ही समझेगी. अब ज्यादातर तो वो बाहर ही रहते है बाहर कुछ कर लिया हो तो मैं कह नहीं सकती .

मैं- वैसे तुम कोशिश करती तो वो देखते जरुर तुम्हारी तरफ इतना मस्त जुगाड़ घर में है तो

चाची- जिस परिवार से हम आते है न वहां औरतो का सम्मान है

मैं- इतना ही सम्मान है तो अपनी बेटी की उम्र की चंपा को क्यों चोद दिया पिताजी ने ,



मेरी बात सुन कर चाची के चेहरे का रंग उड़ गया .


“क्या कहा तूने , ” चाची की आवाज लडखडा गयी ...........
निशा की याद तो हमे भी आ रही है कबीर के साथ में कबीर निशा के साथ सुकून भरी बाते करता था उसके साथ वक्त का पता ही नही चलता था
भैया ने फिर बात को घुमा दिया है ऐसी क्या वजह रही है कि वे उस राज को छुपा रहा है और वे इतने दिन कहा गायब रहे थे कबीर को इसका पता लगाना चाहिए निशा ने कहा था कि पूनम के चाँद को तू यहाँ आ जाना पूरी रात यही रहना रात मुश्किल होगी पर बीत जायेगी. जब जोर न चले तो इस तालाब का आसरा लेना . पर इस हद में ही रहना इसका मतलब निशा को पता था ऐशा होगा लेकिन हमे समझ ने नही आया कि कबीर के साथ ऐशा क्यो हुआ
चाची कि बातो से पता चलता है कि उन्हें भी नही पता है या वो भोली बनने की कोशिश कर रही है कबीर के बताने पर उसके भाव चौकाने वाले थे लेकिन इस चौकाने का क्या मतलब है ये तो अगले अपडेट में पता चलेगा इंतजार है अगले अपडेट का
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,049
83,770
259
#56



“वही जो तूने सुना चाची ” मैंने कहा

चाची- तू जानता भी है कितना बड़ा आरोप लगा रहा है तू

मैं- जानता हूँ इसलिए तो तुझसे कह रहा हूँ,देख चाची तुझे मैं बहुत चाहता हूँ.चंपा ने मेरा दिल तोडा है मैं नहीं चाहता की तू भी मेरा दिल तोड़े. तू राय साहब से चुदी न चुदी तू जाने . तेरा राय साहब से कोई ऐसा-वैसा रिश्ता है नहीं है मुझे नहीं जानना पर तू एक फैसला लेगी की तू किसे चुनेगी मुझे या फिर राय साहब को . क्योंकि बहुत जल्दी मैं उनसे सवाल करूँगा की क्यों पेल दिया उन्होंने चंपा को .

चाची- हम दोनों को ही जेठ जी को चुनना पड़ेगा कबीर. यदि उन्होंने ऐसा कुछ भी किया है चंपा के साथ तो चंपा ने विरोध क्यों नहीं किया . इसका एक ही कारण हो सकता है की उसकी भी सहमती रही होगी.

मैं- मान लिया पर गलत हमेशा गलत ही होता है .स सहमती तो लाली की भी उसके प्रेमी संग थी फिर उसी इंसाफ के पुजारी मेरे बाप ने क्यों लटका दिया उनको . जबकि पीठ पीछे वही गलीच हरकत वो खुद कर रहा है .

चाची- तो क्या चंपा के लिए तू अब अपने पिता के सामने खड़ा होगा.

मैं- बात चंपा की नहीं है , बात है गलत और सही की. ये कैसा नियम है जो गरीब के लिए अलग और रईस के लिए अलग.

चाची- ये दुनिया ऐसी ही है जिस दिन तू ये फर्क सीख जायेगा जीना सीख जायेगा.

मैं- जल्दी ही ऐसा दिन आएगा की इस घर के दो दुकड़े हो जायेगे तू किसकी तरफ रहेगी.

चाची- मैं अपने बेटे के साथ रहूंगी.

मैं- तो फिर ठीक है तुम चंपा से ये बात निकलवाओ की कैसे चुदी वो राय साहब से.

चाची- जेठ जी को अगर भनक भी हुई की हम पीठ पीछे कुछ कर रहे है तो ठीक नहीं रहेगा.

मैं- किसकी इतनी मजाल नहीं की मेरे होते तुझे देख भी सके. भरोसा रख मुझ पर

चाची- भरोसा है तभी तो सब कुछ सौंप दिया तुझे.

मैं- तू पक्का नहीं चुदी न पिताजी से

चाची- जल उठा कर कह सकती हूँ

मैंने चाची का माथा चूमा और फिर से उसे बिस्तर पर ले लिया

चाची- अब यहाँ नहीं , घर पर पूरी रात तेरी ही हूँ न

मैं- ठीक है

कुछ देर और रुकने के बाद हम लोग गाँव में आ गए. मैं सीधा भाभी के पास गया जो रसोई में चाय बना रही थी .

मैं- कुछ जरुरी बात करनी है

भाभी- कहो

मैं- कैसे यकीन कर लू मैं की पिताजी और चंपा के अवैध सम्बन्ध है मुझे सबूत चाहिए

भाभी- ओ हो जासूस महोदय. सबूत चाहिए . चाची और तुम जो रासलीला रचा रहे हो उसका सबूत भी साथ दे दो तो कैसा रहेगा.

मैं- जल्दी ही वो समय आने वाला है जब राय साहब से इस बारे में सवाल करूँगा मैं. और बिना सबूत इतना बड़ा इल्जाम लगाना उचित नहीं रहेगा.

भाभी- तो फिर करो चोकिदारी , खुशनसीब हुए तो अपनी आँखों से रासलीला देख पाओगे

मैं- वो तो मालूम कर ही लूँगा मैं

भाभी- तो फिर करो किसने रोका है तुम्हे

मैं- एक बात और ये जो आदमखोर के हमले हुए है इसके बारे में क्या कहना है

भाभी- कहना नहीं करना है

मैं समझ गया की भाभी को अभी भी लगता था की मैं ही हूँ वो आदमखोर .

खैर, मैं बहुत कोशिश कर रहा था की राय साहब और चंपा को पकड पाऊ पर हताशा ही मिल रही थी .ऐसे ही एक रात मैं कुवे पर पहुंचा तो देखा की अलाव जल रहा था और एक कोने में वो बैठी हुई थी . मेरा दिल उसे देख कर इतना जोर से धडकने लगा की कोई ताज्जुब नहीं होता यदि ह्रदयघात हो जाये.

“बड़ी देर की सरकार आते आते , आँखे तरस गयी थी मेरी इस दीदार को ” मैंने कहा

निशा- आना ही पड़ा बहुत रोका, बहुत समझाया हजारो बंदिशे लगाये. रस्मे-कसमे सब खाई पर मन नहीं माना देख तेरे पर फिर ले आया मुझे

मैं- मेरा अब मुझमे कुछ नहीं रहा जो था तेरा हुआ .

मैंने आगे बढ़ कर उसे अपनी बाहों में भर लिया. दिल को जो करार आया बस मैं ही जानता था .

निशा- छोड़ भी दे अब

मैं- छोड़ने के लिए नहीं पकड़ा तुझे

निशा- ऐसी बाते करेगा तो फिर नहीं आउंगी मैं

मैं- आना पड़ेगा तुझे, तू आएगी. मुझसे जुदा होकर चैन कहाँ पाएगी.

निशा- चैन ही तो खो गया मेरा . तुझसे मिली फिर मैं खुद से खो गयी

मैं - जानती है तेरे बिना कैसे कटे इतने दिन मेरे

निशा- इसलिए ही तो नहीं आना चाहती थी मैं

मैं- ठण्ड बहुत है

मैंने अलाव अन्दर रखा और निशा को भी अन्दर बुला लिया. दरवाजा बंद किया तो ठण्ड से थोड़ी राहत मिली.

निशा- ऐसे क्या देख रहा है

मैं- तेरे चेहरे से नजर नहीं हटती

निशा- इस काबिल नहीं हूँ मैं

मैं- मेरे दिल से पूछ जरा

निशा- ऐसी बाते मत कर मुझसे मैं वापिस चली जाउंगी

मैं- तो तू ही बता मैं क्या करू

निशा- वादा कर मुझसे

मैं -कैसा वादा

निशा- की तू मोहब्बत नहीं करेगा मुझसे .

मैं- मोहब्बत हो चुकी है सरकार

निशा- कबीर, जो होना मुमकिन नहीं है वो सपने मत देख. एक डायन और तेरे बिच मोहब्बत नहीं हो सकती जितना जल्दी इस सत्य को समझेगा उतनी तकलीफ कम होगी तुझे. तूने दोस्ती की इच्छा की थी मैंने तेरा मान रखा तू मेरी लिहाज रख

मैं- तुझसे ज्यादा क्या प्यारा है मुझे तेरी यही इच्छा है तो यही सही पर तू भी वादा कर तू ऐसे दूर नहीं जाएगी मुझसे.

निशा- मैं दूर कहा हु तुझसे.

मैं-दूर नहीं तो इन अंधेरो में नहीं मैं उजालो में मिलना चाहूँगा तुझसे

निशा- क्या अँधेरे क्या उजाले मेरे दोस्त

मैं- एक सपना देखा है तेरे साथ जीने का

निशा- मैं हर रोज मरती हूँ

मैंने फिर निशा को उस रात की पूरी बात बताई जिसे सुनकर वो कुछ सोचने लगी.

मैं- क्या सोचने लगी तू

निशा- यही की तेरी किस्मत अच्छी है . उस आदमखोर के काटने के बाद भी तू ठीक है

मैं- मुझे क्या होना है पर एक बार वो हरामखोर पकड़ में आजाये उसका तो वो हाल करूँगा

निशा- ये सोचते सोचते एक अरसा गुजर गया

मैं- तुझे भी तलाश है उसकी

निशा- ये जंगल घर है मेरा , मेरे घर में घुसने की गुस्ताखी की है उसने सजा तो मिलनी चाहिए न

मैं- ऐसी गुस्ताखी तो मैंने भी की

निशा- सजा तुझे भी मिलेगी बस समय की दरकार है . वैसे मलिकपुर में जो भौकाल मचाया है आग लगा रखी है

मैं- नियति ने न जाने क्या लिखा है

निशा चुपके से रजाई में घुस गयी और बोली- दो घडी जीने दे मुझे , थोड़ी देर तेरे आगोश में पनाह दे जरा

मैंने निशा को अपनी बाँहों में भर लिया और उसने मेरे सीने पर अपना सर रख दिया. दिल चाहा की ये रात इतनी लम्बी हो जाये की ख़त्म ही न हो.

 

Studxyz

Well-Known Member
2,925
16,209
158
वाह भाई फोजी जी आज तो दिल खुश कर दिया निशा की एंट्री तो पूरी रोमांटिक रही निशा चाहे तो क़ातिल को जल्द पकड़ ले और आगे चल कर कबीर को अपने संग्राम में निशा की बहुत ज़रूरत पड़ेगी वैसे वो सियार कहाँ गायब हो गया उसका क्या रोल था ?

भाभी क्या बाप बेटे को लड़ाना चाहती है जब राय साहिब की पत्नी मर चुकी है तो चम्पा को चोद लिया तो क्या पाप हो गया बलात्कार तो नहीं किया ना और फिर ठाकुरों में ये आम बात है

चाची तो कबीर की पत्नी बनी बैठी है और दिन रात चुदती है निशा से मिलाप व् अंतत चुदायी पता नही होगी की नहीं
 
Top