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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#55

दिमाग सुन्न हो गया था . मेरे भाई ने एक पराये के लिए मुझे धक्का दिया था . मुझसे जायदा मेरे दुश्मन की फ़िक्र थी उसे. सोच कर मैं पागल ही हो गया.

“मैं थोड़ी देर कुवे पर ही रुकुंगा तू घर जा ” मैंने चंपा से कहा

चंपा- मैं भी तेरे साथ ही रहूंगी

मैं-तू तो सुन ले मेरी. जा अकेला छोड़ दे थोड़ी देर.

मैं कुवे की मुंडेर पर बैठ गया और सोचने लगा. इस हालत में मुझे निशा की बड़ी कमी महसूस हो रही थी उसके बिना ऐसे लगता था की जैसे आत्मा का एक टुकड़ा निकाल ले गया हो कोई. मैं खुद को कोस रहा था की काश मैंने उस से मोहब्बत का इजहार नहीं किया होता तो वो नहीं जाती. पर वो नहीं थी , मैं था और ये तन्हाई थी .

तीन दिन ऐसे ही गुजर गए भैया का कोई अतापता नहीं था . मैं दिन भर राय साहब को देखता . रात में चोकिदारी करता सोचता की कब ये कुछ करेगा. पर चंपा और रायसाहब का व्यवहार सामान्य ही था . ऐसे ही समय गुजर रहा था और पूनम की शाम को भैया घर आये. काफी थके से लग रहे थे . मैं चबूतरे पर ही बैठा था . मुझे देख कर भैया गाड़ी से उतर कर मेरे पास आये.

भैया- कैसा है छोटे

मैं- जैसा छोड़ कर गए थे वैसा ही हूँ

भैया- नाराज है अभी तक

मैं- क्या फर्क पड़ता है

भैया - समझता हूँ तेरी नाराजगी

मैं- रोकना नहीं चाहिए था मुझे

भाई-- रोकना जरुरी था

मैं- सूरजभान को तो मैं मौका लगते ही मार दूंगा.

भैया- ऐसा नहीं होने दूंगा मैं

मैं- पर क्यों, ऐसा क्या है जो मेरे भाई और मेरे बिच वो नीच आ गया है

भैया- तेरे मेरे बीच कोई नहीं आ सकता छोटे

मैं- तो फिर उस गलीच की इतनी फ़िक्र क्यों आपको

भैया- उसकी चिंता नहीं है . तेरी फ़िक्र है मैं नहीं चाहता तू इस दलदल में फंस जाये

मैं- किस दलदल में

भैया -छोटे, ये खून खराबा हमारे लिए नहीं है

मैं- और उसने जो किया क्या वो ठीक था

भैया- नियति बड़ी निराली होती है छोटे . तेरा दिमाग अभी गर्म है तू समझेगा नहीं पर मैं जानता हु तेरी क्या अहमियत है मेरे लिए . तू मेरी इतनी तो बात मान. इतना तो तुझ पर हक़ है न मेरा

मैं- ठीक है पर आपको भी मुझसे एक वादा करना होगा दुश्मनी मेरी और उसकी है हम दोनों के बेची ही रहे. किसी मजलूम को उसने सताया मुझसे दुश्मनी के चलते तो मैं नहीं सुनूंगा आपकी

भैया- ठीक है .

मैं- दूसरी बात . ऐसा क्या है उस में जो उसके लिए अपने छोटे भाई के सामने खड़े हो गए आप.

भैया -थोड़ी थकान है मैं नहा कर आता हूँ .

भैया ने टाल दी थी बात को पर मेरे मन में जो शंका का बीज था वो जल्दी ही पेड़ बनने वाला था . खैर, रात को मेरी नींद खुली तो मैंने देखा की पूरा बिस्तर गीला हुआ पड़ा था . क्या नींद में ही मूत दिया मिअने अपने आप से सवाल किया. सूंघ कर देखा मूत तो नहीं था . कपडे चिपचिपे हो रहे थे इतना पसीना तो पहले कभी नहीं आया था . दिसम्बर की ठण्ड में पसीना आना क्या ही कहे अब.

बिस्तर से उठ कर मैं गली में गया मूत रहा था की मेरी नजर ऊपर आसमान में चाँद पर पड़ी. अचानक से पैर लडखडा गए मेरे. गला सूखने लगा. मुझे निशा की बात याद आई की पूर्णिमा को काली मंदिर में ही रहना . बदन में अजीब सी खुजली दौड़ने लगी थी मैं अपने जिस्म को खरोंचने लगा.

बिन कुछ सोचे समझे मैं गाँव से बाहर की तरफ दौड़ पड़ा. तन जलने लगा था . जैसे किसी ने आग में झोंक दिया हो मुझे. आव देखा न ताव मैं उसी तालाब में कूद गया. सर्दी के मौसम में जमे हुए पानी ने मुझे अपने आगोश में पनाह दी पर चैन नहीं मिला. पानी भी जैसे मेरा गला घोंट रहा हो. साँस लेने में मुश्किल हो रही थी . जब बिलकुल जोर नहीं चला तो मैं मंदिर में घुस गया और उन काली दीवारों से लग कर खुद को सँभालने की कोशिश करने लगा. आँखे धुंधली होने लगी थी . दिल कर रहा था की जोर जोर से चीखू.

जैसे जैसे रात बढती गयी मेरी तकलीफ बढती गयी . अपने आप से जूझता रहा मैं और जब सुबह का पहर सुरु हुआ तो खांसते हुए मैं वही धरती पर गिर गया. जब आँख खुली तो सब कुछ शांत था मालूम नहीं कितना समय रहा होगा पर दिन था. धुधं ने चारो दिशाओ कोकाबू किया हुआ था . मैं उठा खुद को देखा बदन ठण्ड से कांप रहा था मेरे कपडे सीले थे .

कुवे पर आने के बाद मैंने दुसरे कपडे पहने और रजाई में घुस गया. सोचता रहा की रात को क्या हुआ था .

“कबीर कबीर है क्या यहाँ तू ” बाहर से चाची की आवाज आई

मैं- अन्दर हु चाची

चाची अन्दर आई और मुझे बिस्तर में घुसे हुए देख कर बोली- सुबह से गायब है . मुझे फ़िक्र हो रही थी और तू है की यहाँ आराम से पड़ा है . ले खाना खाले .

मैंने जैसे तैसे खाना खाया पर बदन कांप रहा था . चाची ने मेरे माथे पर हाथ रखा और बोली- तुझे तो बुखार है .

मैं-ठीक हो जायेगा.

चाची बर्तन लेकर बाहर जा रही थी तो मेरी निगाह चाची की मदमस्त गांड पर पड़ी . मन बेईमान हो गया.

मैं- किवाड़ लगा लो और आओ मेरे पास

चाची- दिन में नहीं कोई आ निकलेगा.

मैं- आओ तो सही , ये ठण्ड ऐसे ही उतरेगी.

वो कहते है न की आदमी किसी भी हालत में हो उसे इस चीज का चस्का हमेशा ही रहता है . मैंने भी चाची को बिस्तर में घसीट लिया और अपनी मनमानी कर ली सच कहू तो राहत भी मिली मुझे. आराम मिला तो बातो सा सिलसिला शुरू हुआ .

मैं- चाची, माँ के जाने के बाद पिताजी चाहते तो दूसरी शादी कर लेते

चाची- पर उन्होंने नहीं की

मैं- कैसे जिए होंगे वो अकेले. मैं तेरे बिना थोड़ी देर न रह पा रहा पिताजी की भी तो इच्छा होती होगी .

चाची- देख कबीर इच्छा तो सबकी होती ही है. राय साहब की जो हसियत है वो किसी भी औरत को जरा भी इशारा कर दे तो कोई भी अपनी खुशकिस्मती ही समझेगी. अब ज्यादातर तो वो बाहर ही रहते है बाहर कुछ कर लिया हो तो मैं कह नहीं सकती .

मैं- वैसे तुम कोशिश करती तो वो देखते जरुर तुम्हारी तरफ इतना मस्त जुगाड़ घर में है तो

चाची- जिस परिवार से हम आते है न वहां औरतो का सम्मान है

मैं- इतना ही सम्मान है तो अपनी बेटी की उम्र की चंपा को क्यों चोद दिया पिताजी ने ,



मेरी बात सुन कर चाची के चेहरे का रंग उड़ गया .

“क्या कहा तूने , ” चाची की आवाज लडखडा गयी ...........
 

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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#55

दिमाग सुन्न हो गया था . मेरे भाई ने एक पराये के लिए मुझे धक्का दिया था . मुझसे जायदा मेरे दुश्मन की फ़िक्र थी उसे. सोच कर मैं पागल ही हो गया.

“मैं थोड़ी देर कुवे पर ही रुकुंगा तू घर जा ” मैंने चंपा से कहा

चंपा- मैं भी तेरे साथ ही रहूंगी

मैं-तू तो सुन ले मेरी. जा अकेला छोड़ दे थोड़ी देर.

मैं कुवे की मुंडेर पर बैठ गया और सोचने लगा. इस हालत में मुझे निशा की बड़ी कमी महसूस हो रही थी उसके बिना ऐसे लगता था की जैसे आत्मा का एक टुकड़ा निकाल ले गया हो कोई. मैं खुद को कोस रहा था की काश मैंने उस से मोहब्बत का इजहार नहीं किया होता तो वो नहीं जाती. पर वो नहीं थी , मैं था और ये तन्हाई थी .

तीन दिन ऐसे ही गुजर गए भैया का कोई अतापता नहीं था . मैं दिन भर राय साहब को देखता . रात में चोकिदारी करता सोचता की कब ये कुछ करेगा. पर चंपा और रायसाहब का व्यवहार सामान्य ही था . ऐसे ही समय गुजर रहा था और पूनम की शाम को भैया घर आये. काफी थके से लग रहे थे . मैं चबूतरे पर ही बैठा था . मुझे देख कर भैया गाड़ी से उतर कर मेरे पास आये.

भैया- कैसा है छोटे

मैं- जैसा छोड़ कर गए थे वैसा ही हूँ

भैया- नाराज है अभी तक

मैं- क्या फर्क पड़ता है

भैया - समझता हूँ तेरी नाराजगी

मैं- रोकना नहीं चाहिए था मुझे

भाई-- रोकना जरुरी था

मैं- सूरजभान को तो मैं मौका लगते ही मार दूंगा.

भैया- ऐसा नहीं होने दूंगा मैं

मैं- पर क्यों, ऐसा क्या है जो मेरे भाई और मेरे बिच वो नीच आ गया है

भैया- तेरे मेरे बीच कोई नहीं आ सकता छोटे

मैं- तो फिर उस गलीच की इतनी फ़िक्र क्यों आपको

भैया- उसकी चिंता नहीं है . तेरी फ़िक्र है मैं नहीं चाहता तू इस दलदल में फंस जाये

मैं- किस दलदल में

भैया -छोटे, ये खून खराबा हमारे लिए नहीं है

मैं- और उसने जो किया क्या वो ठीक था

भैया- नियति बड़ी निराली होती है छोटे . तेरा दिमाग अभी गर्म है तू समझेगा नहीं पर मैं जानता हु तेरी क्या अहमियत है मेरे लिए . तू मेरी इतनी तो बात मान. इतना तो तुझ पर हक़ है न मेरा

मैं- ठीक है पर आपको भी मुझसे एक वादा करना होगा दुश्मनी मेरी और उसकी है हम दोनों के बेची ही रहे. किसी मजलूम को उसने सताया मुझसे दुश्मनी के चलते तो मैं नहीं सुनूंगा आपकी

भैया- ठीक है .

मैं- दूसरी बात . ऐसा क्या है उस में जो उसके लिए अपने छोटे भाई के सामने खड़े हो गए आप.

भैया -थोड़ी थकान है मैं नहा कर आता हूँ .

भैया ने टाल दी थी बात को पर मेरे मन में जो शंका का बीज था वो जल्दी ही पेड़ बनने वाला था . खैर, रात को मेरी नींद खुली तो मैंने देखा की पूरा बिस्तर गीला हुआ पड़ा था . क्या नींद में ही मूत दिया मिअने अपने आप से सवाल किया. सूंघ कर देखा मूत तो नहीं था . कपडे चिपचिपे हो रहे थे इतना पसीना तो पहले कभी नहीं आया था . दिसम्बर की ठण्ड में पसीना आना क्या ही कहे अब.

बिस्तर से उठ कर मैं गली में गया मूत रहा था की मेरी नजर ऊपर आसमान में चाँद पर पड़ी. अचानक से पैर लडखडा गए मेरे. गला सूखने लगा. मुझे निशा की बात याद आई की पूर्णिमा को काली मंदिर में ही रहना . बदन में अजीब सी खुजली दौड़ने लगी थी मैं अपने जिस्म को खरोंचने लगा.

बिन कुछ सोचे समझे मैं गाँव से बाहर की तरफ दौड़ पड़ा. तन जलने लगा था . जैसे किसी ने आग में झोंक दिया हो मुझे. आव देखा न ताव मैं उसी तालाब में कूद गया. सर्दी के मौसम में जमे हुए पानी ने मुझे अपने आगोश में पनाह दी पर चैन नहीं मिला. पानी भी जैसे मेरा गला घोंट रहा हो. साँस लेने में मुश्किल हो रही थी . जब बिलकुल जोर नहीं चला तो मैं मंदिर में घुस गया और उन काली दीवारों से लग कर खुद को सँभालने की कोशिश करने लगा. आँखे धुंधली होने लगी थी . दिल कर रहा था की जोर जोर से चीखू.

जैसे जैसे रात बढती गयी मेरी तकलीफ बढती गयी . अपने आप से जूझता रहा मैं और जब सुबह का पहर सुरु हुआ तो खांसते हुए मैं वही धरती पर गिर गया. जब आँख खुली तो सब कुछ शांत था मालूम नहीं कितना समय रहा होगा पर दिन था. धुधं ने चारो दिशाओ कोकाबू किया हुआ था . मैं उठा खुद को देखा बदन ठण्ड से कांप रहा था मेरे कपडे सीले थे .

कुवे पर आने के बाद मैंने दुसरे कपडे पहने और रजाई में घुस गया. सोचता रहा की रात को क्या हुआ था .

“कबीर कबीर है क्या यहाँ तू ” बाहर से चाची की आवाज आई

मैं- अन्दर हु चाची

चाची अन्दर आई और मुझे बिस्तर में घुसे हुए देख कर बोली- सुबह से गायब है . मुझे फ़िक्र हो रही थी और तू है की यहाँ आराम से पड़ा है . ले खाना खाले .

मैंने जैसे तैसे खाना खाया पर बदन कांप रहा था . चाची ने मेरे माथे पर हाथ रखा और बोली- तुझे तो बुखार है .

मैं-ठीक हो जायेगा.

चाची बर्तन लेकर बाहर जा रही थी तो मेरी निगाह चाची की मदमस्त गांड पर पड़ी . मन बेईमान हो गया.

मैं- किवाड़ लगा लो और आओ मेरे पास

चाची- दिन में नहीं कोई आ निकलेगा.

मैं- आओ तो सही , ये ठण्ड ऐसे ही उतरेगी.

वो कहते है न की आदमी किसी भी हालत में हो उसे इस चीज का चस्का हमेशा ही रहता है . मैंने भी चाची को बिस्तर में घसीट लिया और अपनी मनमानी कर ली सच कहू तो राहत भी मिली मुझे. आराम मिला तो बातो सा सिलसिला शुरू हुआ .

मैं- चाची, माँ के जाने के बाद पिताजी चाहते तो दूसरी शादी कर लेते

चाची- पर उन्होंने नहीं की

मैं- कैसे जिए होंगे वो अकेले. मैं तेरे बिना थोड़ी देर न रह पा रहा पिताजी की भी तो इच्छा होती होगी .

चाची- देख कबीर इच्छा तो सबकी होती ही है. राय साहब की जो हसियत है वो किसी भी औरत को जरा भी इशारा कर दे तो कोई भी अपनी खुशकिस्मती ही समझेगी. अब ज्यादातर तो वो बाहर ही रहते है बाहर कुछ कर लिया हो तो मैं कह नहीं सकती .

मैं- वैसे तुम कोशिश करती तो वो देखते जरुर तुम्हारी तरफ इतना मस्त जुगाड़ घर में है तो

चाची- जिस परिवार से हम आते है न वहां औरतो का सम्मान है

मैं- इतना ही सम्मान है तो अपनी बेटी की उम्र की चंपा को क्यों चोद दिया पिताजी ने ,



मेरी बात सुन कर चाची के चेहरे का रंग उड़ गया .

“क्या कहा तूने , ” चाची की आवाज लडखडा गयी ...........
Kabhi kabhi mai sochata hu hame kya hi jarurat h dusro ke bare me sochane ki ...

Are jab kisi ko chulla machi hi h apni gand marwane ki to hero ko kya jarurat h jake land karne ki ...

Chhod deta jise jisse marwani ho marwaye...

Par apna hero bhi sabke land katne ke chakkar me pada rahta h ....
 

Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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कितना चोमू type behave कर है ना कबीर, मतलब मैं समझता हूं की उसे भोला दिखाना चाहते है पर कबीर chutiya ज्यादा दिख रहा

जैसे की:—
1. आदमखोर के लगभग हर हमले के समय कबीर मौजूद था, पर उसने एक बार भी नहीं सोचा की हर बार उसे जिंदा क्यों छोड़ देता है,

2. एक अपडेट में कबीर सो कर उठता है तो उसके शर्ट और दरवाजा पर खून लगा होता है जबकि लगातार गांव में मौत हो रही थी, पर कबीर पता नहीं लगाने का कोशिश ही किया खून कैसे लगा है

3. कविता उसी दिन क्यों मरी जिस दिन वो कबीर से मिली थी और वो इतनी रात को जंगल में क्या कर रही थीं कबीर इसके बारे में भी नही पता लगाया

4. जब हलवाई पर हमला हुआ तो उस रात को कबीर के साथ क्या हुआ किसी को नही पता, कबीर को भी नहीं पता की चोट कैसे आई तो क्या आदमखोर जादू टोना भी जानता की याददाश्त गायब कर दिया या बस सस्पेंस क्रिएट करने के चक्कर में लिख दिया है

5. 53rd अपडेट में चाची बोलती है की चंपा को नहीं पता चलना चाहिए की मैं तुझसे bhiiiii ¢hudd रही हूं मतलब हो सकता है अभिमानु, मंगू या राय साहब में से किसी के साथ सो रही हो, पर कबीर घंटा ध्यान नहीं दिया

मैं बस ये उम्मीद कर रहा हूं की ये कहानी वैसी ना जैसे गुजारिश 2, अंत में unexpected तरीके से #मंदा की कहानी निकली थी वैसे ही ये कहानी भी किसी और की ना निकल जाए
 

Studxyz

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निशा डायन जी ने कहा था की रात मंदिर में गुजारना ज़रूरी लगे तो तालाब का सहारा लेना लेकिन कोई आराम नहीं तो निशा ने हवा में ही बात छोड़ दी ?

भाई का भी राज़ गहराता जा रहा है और कबीर बेबस व् कमज़ोर ये सब कुछ ही नियति का खेल नहीं है सिवाए इसके कि डायन से प्यार हो गया

चाची क्या वाकई में भोली है या बन रही है ? आज का अपडेट छोटा रहा फौजी भाई
 

Rekha rani

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Awesome update,
Kabir khulke kisi se kuchh bhi nhi puchh pa rha hai jo kuchh bhi jwab mile sunkr chup, thik hai bhai ki ijjat krta hai lekin koi kisi ko mar de aur wo uska hi paksh le chhote bhai ko andekha kr ke phir bhi apne payar ka dava krke ,
Champa phir akele me thi sath lekin usse bhi nhi puchh paya ki wo kaise bhaiya ko bina kuchh btaye thik jagah le aayi.
Ray sahab pr nigah rkhna thik hai lekin wo itni aasani se kuchh nhi pata chalne denge
Ab ye achanak rat ko nya kya kand ho gya kabir ke sath
Abki bar chachi ki chudayi krke thik jagah var kiya kbir ne
Bas ab aar par ke swal jwab kre bina jawab ke santusht na ho jaye
 

Tiger 786

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दिमाग सुन्न हो गया था . मेरे भाई ने एक पराये के लिए मुझे धक्का दिया था . मुझसे जायदा मेरे दुश्मन की फ़िक्र थी उसे. सोच कर मैं पागल ही हो गया.

“मैं थोड़ी देर कुवे पर ही रुकुंगा तू घर जा ” मैंने चंपा से कहा

चंपा- मैं भी तेरे साथ ही रहूंगी

मैं-तू तो सुन ले मेरी. जा अकेला छोड़ दे थोड़ी देर.

मैं कुवे की मुंडेर पर बैठ गया और सोचने लगा. इस हालत में मुझे निशा की बड़ी कमी महसूस हो रही थी उसके बिना ऐसे लगता था की जैसे आत्मा का एक टुकड़ा निकाल ले गया हो कोई. मैं खुद को कोस रहा था की काश मैंने उस से मोहब्बत का इजहार नहीं किया होता तो वो नहीं जाती. पर वो नहीं थी , मैं था और ये तन्हाई थी .

तीन दिन ऐसे ही गुजर गए भैया का कोई अतापता नहीं था . मैं दिन भर राय साहब को देखता . रात में चोकिदारी करता सोचता की कब ये कुछ करेगा. पर चंपा और रायसाहब का व्यवहार सामान्य ही था . ऐसे ही समय गुजर रहा था और पूनम की शाम को भैया घर आये. काफी थके से लग रहे थे . मैं चबूतरे पर ही बैठा था . मुझे देख कर भैया गाड़ी से उतर कर मेरे पास आये.

भैया- कैसा है छोटे

मैं- जैसा छोड़ कर गए थे वैसा ही हूँ

भैया- नाराज है अभी तक

मैं- क्या फर्क पड़ता है

भैया - समझता हूँ तेरी नाराजगी

मैं- रोकना नहीं चाहिए था मुझे

भाई-- रोकना जरुरी था

मैं- सूरजभान को तो मैं मौका लगते ही मार दूंगा.

भैया- ऐसा नहीं होने दूंगा मैं

मैं- पर क्यों, ऐसा क्या है जो मेरे भाई और मेरे बिच वो नीच आ गया है

भैया- तेरे मेरे बीच कोई नहीं आ सकता छोटे

मैं- तो फिर उस गलीच की इतनी फ़िक्र क्यों आपको

भैया- उसकी चिंता नहीं है . तेरी फ़िक्र है मैं नहीं चाहता तू इस दलदल में फंस जाये

मैं- किस दलदल में

भैया -छोटे, ये खून खराबा हमारे लिए नहीं है

मैं- और उसने जो किया क्या वो ठीक था

भैया- नियति बड़ी निराली होती है छोटे . तेरा दिमाग अभी गर्म है तू समझेगा नहीं पर मैं जानता हु तेरी क्या अहमियत है मेरे लिए . तू मेरी इतनी तो बात मान. इतना तो तुझ पर हक़ है न मेरा

मैं- ठीक है पर आपको भी मुझसे एक वादा करना होगा दुश्मनी मेरी और उसकी है हम दोनों के बेची ही रहे. किसी मजलूम को उसने सताया मुझसे दुश्मनी के चलते तो मैं नहीं सुनूंगा आपकी

भैया- ठीक है .

मैं- दूसरी बात . ऐसा क्या है उस में जो उसके लिए अपने छोटे भाई के सामने खड़े हो गए आप.

भैया -थोड़ी थकान है मैं नहा कर आता हूँ .

भैया ने टाल दी थी बात को पर मेरे मन में जो शंका का बीज था वो जल्दी ही पेड़ बनने वाला था . खैर, रात को मेरी नींद खुली तो मैंने देखा की पूरा बिस्तर गीला हुआ पड़ा था . क्या नींद में ही मूत दिया मिअने अपने आप से सवाल किया. सूंघ कर देखा मूत तो नहीं था . कपडे चिपचिपे हो रहे थे इतना पसीना तो पहले कभी नहीं आया था . दिसम्बर की ठण्ड में पसीना आना क्या ही कहे अब.

बिस्तर से उठ कर मैं गली में गया मूत रहा था की मेरी नजर ऊपर आसमान में चाँद पर पड़ी. अचानक से पैर लडखडा गए मेरे. गला सूखने लगा. मुझे निशा की बात याद आई की पूर्णिमा को काली मंदिर में ही रहना . बदन में अजीब सी खुजली दौड़ने लगी थी मैं अपने जिस्म को खरोंचने लगा.

बिन कुछ सोचे समझे मैं गाँव से बाहर की तरफ दौड़ पड़ा. तन जलने लगा था . जैसे किसी ने आग में झोंक दिया हो मुझे. आव देखा न ताव मैं उसी तालाब में कूद गया. सर्दी के मौसम में जमे हुए पानी ने मुझे अपने आगोश में पनाह दी पर चैन नहीं मिला. पानी भी जैसे मेरा गला घोंट रहा हो. साँस लेने में मुश्किल हो रही थी . जब बिलकुल जोर नहीं चला तो मैं मंदिर में घुस गया और उन काली दीवारों से लग कर खुद को सँभालने की कोशिश करने लगा. आँखे धुंधली होने लगी थी . दिल कर रहा था की जोर जोर से चीखू.

जैसे जैसे रात बढती गयी मेरी तकलीफ बढती गयी . अपने आप से जूझता रहा मैं और जब सुबह का पहर सुरु हुआ तो खांसते हुए मैं वही धरती पर गिर गया. जब आँख खुली तो सब कुछ शांत था मालूम नहीं कितना समय रहा होगा पर दिन था. धुधं ने चारो दिशाओ कोकाबू किया हुआ था . मैं उठा खुद को देखा बदन ठण्ड से कांप रहा था मेरे कपडे सीले थे .

कुवे पर आने के बाद मैंने दुसरे कपडे पहने और रजाई में घुस गया. सोचता रहा की रात को क्या हुआ था .

“कबीर कबीर है क्या यहाँ तू ” बाहर से चाची की आवाज आई

मैं- अन्दर हु चाची

चाची अन्दर आई और मुझे बिस्तर में घुसे हुए देख कर बोली- सुबह से गायब है . मुझे फ़िक्र हो रही थी और तू है की यहाँ आराम से पड़ा है . ले खाना खाले .

मैंने जैसे तैसे खाना खाया पर बदन कांप रहा था . चाची ने मेरे माथे पर हाथ रखा और बोली- तुझे तो बुखार है .

मैं-ठीक हो जायेगा.

चाची बर्तन लेकर बाहर जा रही थी तो मेरी निगाह चाची की मदमस्त गांड पर पड़ी . मन बेईमान हो गया.

मैं- किवाड़ लगा लो और आओ मेरे पास

चाची- दिन में नहीं कोई आ निकलेगा.

मैं- आओ तो सही , ये ठण्ड ऐसे ही उतरेगी.

वो कहते है न की आदमी किसी भी हालत में हो उसे इस चीज का चस्का हमेशा ही रहता है . मैंने भी चाची को बिस्तर में घसीट लिया और अपनी मनमानी कर ली सच कहू तो राहत भी मिली मुझे. आराम मिला तो बातो सा सिलसिला शुरू हुआ .

मैं- चाची, माँ के जाने के बाद पिताजी चाहते तो दूसरी शादी कर लेते

चाची- पर उन्होंने नहीं की

मैं- कैसे जिए होंगे वो अकेले. मैं तेरे बिना थोड़ी देर न रह पा रहा पिताजी की भी तो इच्छा होती होगी .

चाची- देख कबीर इच्छा तो सबकी होती ही है. राय साहब की जो हसियत है वो किसी भी औरत को जरा भी इशारा कर दे तो कोई भी अपनी खुशकिस्मती ही समझेगी. अब ज्यादातर तो वो बाहर ही रहते है बाहर कुछ कर लिया हो तो मैं कह नहीं सकती .

मैं- वैसे तुम कोशिश करती तो वो देखते जरुर तुम्हारी तरफ इतना मस्त जुगाड़ घर में है तो

चाची- जिस परिवार से हम आते है न वहां औरतो का सम्मान है

मैं- इतना ही सम्मान है तो अपनी बेटी की उम्र की चंपा को क्यों चोद दिया पिताजी ने ,



मेरी बात सुन कर चाची के चेहरे का रंग उड़ गया .


“क्या कहा तूने , ” चाची की आवाज लडखडा गयी ...........
Nisha ne Kabir ko Chandni raat ko Kali Mandir mai rukne ka kayo bola suspens dal diya apne or Kabir ne jo bomb foda hai Chachi pe gazaab fauji Bhai
Awesome update
 
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