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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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की तभी गजब हो गया. बिजली की रौशनी से मेरी आँखे चुंधिया गयी. और उसी एक पल में उस हमलावर ने मुझे धक्का दिया और ऐसे गायब हो गया जैसे की वो था ही नहीं. एक बार फिर मैं खाली हाथ रह गया. गुस्से से मैंने धरती पर लात मारी . पर ये अपनी खीज मिटाना ही था . इस बार मैंने लगभग पकड़ ही लिया था उसको.

“कब तक बचेगा तू ” मैंने खुद को दिलासा दिया. और एक महत्वपूर्ण बात और मेरे मन में आई की आज वो कुछ कमजोर सा लगा मुझे. खैर, सुबह मुझ शहर जाना था चंपा के साथ. मैं तैयार हो रहा था की मंगू आ गया. मैंने देखा वो कुछ लंगडाकर चल रहा था .

मैं- क्या हुआ बे

मंगू- भाई कल छप्पर की छत बाँध रहा था तभी गिर गया तो चोट लग आगयी

मैंने गौर किया जब मैंने उस हमलावर को बैलगाड़ी के पहिये पर फेंका था तो उसे भी ऐसी ही चोट लगी थी. तो क्या मंगू हो सकता था वो . मेरे दिमाग में शक सा होने लगा था .

मैं- तो रात को किसने कहा था छत बाँधने के लिए

मंगू- रात को कहा मैं तो दोपहर में कर रहा था ये काम

हो सकता था की वो झूठ बोल रहा हो . हम बात कर ही रहे थे की मैंने देखा भैया-भाभी कही जा रहे थे .

मैं- सुन मंगू . मुझे मालूम हो गया है की नहर की पुलिया कैसे टूटी थी . आगे से हमें इंतजाम करना होगा की यदि ऐसी कोई भी घटना हो तो पानी खेतो तक न आ सके.

मंगू- हम क्या कर सकते है . इतने पानी को कैसे रोका जाए

मैं कुछ न कुछ तो उपाय होगा ही .

मंगू- भाई. मैं देख रहा हूँ की पिछले कुछ दिनों से तू कुछ उखड़ा उखड़ा सा रहता है . मुझसे भी ठीक से बात नहीं करता . क्या कोई भूल हुई मुझसे

मैं- मंगू तूने मुझे बताया नहीं कविता के बारे में .

मेरी बात सुन कर मंगू के चेहरे का रंग उड़ गया .उसने एक गहरी साँस ली और बोला- भाई . मैं क्या बताता तुझे. कैसे बताता . लाली का हाल हम सबने देखा ही था न. किसी को भी अगर मालूम हो जाता तो मुझे और कविता को भी ऐसे ही लटका दिया जाता.

मैं- क्या तूने अपने भाई को इस लायक भी नहीं समझा

मंगू- अपनी जान से ज्यादा तुझे मानता हु इसलिए तुझसे छिपाई क्योंकि जानता हु जो लाली जो हमारी कुछ नहीं लगती थी उसके लिए गाँव के सामने अड़ गया मेरे लिए न जाने तू क्या कर जाता. इसी डर से मैं तुझे नहीं बताया भाई .

मुझे समझ नही आ रहा था की मैं मंगू की बात को सही समझू या फिर चंपा की बात को . आख़िरकार मैंने भांडा फोड़ने का निर्णय कर ही लिया .

मैं- कुछ और ऐसा है जो तुझे लगता है की मुझे बताना चाइये

मंगू कुछ नहीं बोला उसने अपना सर झुका लिया. मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला- तू मेरा भाई है . मेरा दोस्त मेरा सब कुछ है तू . एक बात हमेशा याद रखना तेरे साथ हमेशा मैं खड़ा हूँ . खड़ा रहूँगा.

मंगू मेरे गले लग गया और बोला- मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी कबीर

मैं- जानता हु ,और यही समय है भूल को सुधारने का जो हुआ उसे वापिस नहीं किया जा सकता पर आगे से वैसा न हो तो ही हम सब के लिए बेहतर होगा. फिलहाल खेतो के लिए मजदूरो का इंतजाम कर जितने मिले उतने बेहतर . दिन में ही काम के लिए तैयार करना उनको. मुझे खेत तैयार चाहिए जल्दी से जल्दी .

मंगू ने हाँ में सर हिलाया. उसके बाद हम दोनों ने खाना खाया और फिर मैं चंपा के साथ शहर के लिए निकल गया. वहां हम उसी डॉक्टर के पास गए . चूँकि वो जानता था मुझे इसलिए पैसो के जोर से मैंने उसे चंपा के गर्भपात के लिए मना लिया. उसने अपना काम कर दिया और चंपा को कुछ बेहद जरुरी हिदायते भी दी. जब हम वहां से निकल रहे थे की अचानक से भाभी वहां आ टपकी. उसके पीछे पीछे भैया भी थे.

भाभी भी हम लोगो को वहां देख कर चौंक गयी.

भाभी- तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो .

चंपा भाभी को देख कर बुरी तरह से घबरा गयी . चूँकि उसने अभी अभी गर्भपात करवाया था कमजोरी थी और फिर एक औरत दूसरी को भांप ही लेती है .

मैं- शहर आये थे . मैंने सोचा की डॉक्टर साहब से अपना कन्धा भी दिखा देता हूँ.

भैया- ये अच्छा किया तुमने. वैसे यहाँ आने का इरादा था तो हमारे साथ ही आ जाते.

भाभी की नजरे चंपा पर ही जमी थी .पर भैया की वजह से वो कुछ कह नहीं पा रही थी .

भैया- तुम लोग बाहर बैठो हम डॉक्टर से मिलके आते है फिर साथ ही चलेंगे

मेरे लिए एक नयी मुसीबत हो गयी थी . खैर हम बाहर आये.

मैं- चंपा सुन. भाभी को शक हो गया है चाहे कुछ भी हो जाये तू ये मत कबूल करना की हम यहाँ किसलिए आये थे . वर्ना ऐसा तूफान आएगा जो सब कुछ बर्बाद कर देगा.

चंपा- किस्मत ही फूटी है कबीर.

मैं- माँ चुदाय किस्मत . मैं बोल रहा हूँ वो समझ घर जाते ही वो तेरा रिमांड लेगी. वो तुझको तंग करेगी क्योंकि अभी तू कमजोरी महसूस कर रही है वो तुझसे भारी काम करवाएगी. जितना मैं उसे समझता हूँ तुझे देखते ही वो जान गयी है की हम यहाँ किसलिए आई है . और अगर तू टूट भी जाए तो तू अपने बचाव के लिए भाभी के आगे सारा दोष मुझ पर डाल देना. जब कोई रास्ता न बचे तो तू कहना की मैंने जबरदस्ती की थी तेरे साथ .

चंपा- इतनी बेगैरत नहीं हूँ मैं की तेरा यूँ इस्तेमाल करू मैं

मैं- समझ जा . क्या मालूम ये घडी टल जाए वर्ना तेरा हाल भी लाली जैसा ही होगा.



मैं जानता था की भाभी पक्का यही सोचेंगे की मैंने चंपा को पेल दिया . क्योंकि वो शक में इतनी अंधी हो चुकी थी . खैर उन दोनों के आने के बाद हम लोग भैया की गाड़ी में बैठे और घर आ गए. पर भाभी ने वैसा कुछ भी नहीं किया जो मैं सोच रहा था . शाम तक सब ठीक ही था . शाम को चाची ने मुझसे कहा की बहुरानी तुझे बुला रही है , अपने कमरे में .

मैं- मुझसे क्या काम है

चाची- वो ही जाने

मैं उठ कर भाभी के कमरे में गया .

भाभी- चोट कैसी है तुम्हारी

मैं- जी ठीक है

भाभी- मेरे प्यारे देवर जी , चंपा को ऐसा कौन सा रोग हो गया था की तुम उसे सीधा बड़े डॉक्टर के पास लेकर गए .

मैं- ये सवाल जवाब किस लिए भाभी , हम दोनों जानते है इस बात को

भाभी- उफ्फ्फ ये बेशर्मी तुम्हारी जानते हो मैंने अगर तुम्हारे भैया को बता दिया तो क्या होगा

मैं- हम को किसी का डर नहीं

भाभी- तुम डर की बात करते हो मैं चाहूंगी न तो तू थर थर कांप जाओगे.

मैं- चाहे भैया को बता दो. पिताजी को बता दो चाहे सारे गाँव में ढोल बजा दो

अगले ही पल भाभी की उंगलिया मेरे गाल पर छप गयी.

भाभी- उसको तो मैं क्या दोष दू जब हमारा ही खून गन्दा है . मेरी नजरो में गिर गए हो तुम लोग . अरे तुमको अपनी औलाद जैसे पाला मैंने और तुम मेरे ही घर में कचरा फैला रहे हो. जवानी इतनी ही मचल रही थी तो एक बार मुझसे कह तो दिया होता ब्याह करवा देती तुम्हारा . पर ये मत समझना की इस बात को मैं दबा दूंगी. तुम दोनों की खाल उतारूंगी मैं.

“मैं हाजिर हूँ मोहब्बत की सजा पाने को ” मैंने कहा और अगले ही पल भाभी ने भैया की बेल्ट उठाई और मारने लगी मुझे......................


 

Studxyz

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कहानी में हीरो फिर से कमज़ोर बेबस है अगर सजा बेक़सूर को मिलनी है तो क़सूरवार को क्यों नहीं ?

सुखी चुत वाली भाभी का रोल बहुत नकरात्मक है उसे अपने रिश्ते पर कोई विश्वास नहीं आँखों देखा हमेशा सच नहीं होता
 
Last edited:

Death Kiñg

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चम्पा का किरदार अब कुछ लंबे समय के लिए संदेह के घेरे में रहने वाला है। यदि कोई इंसान एक दफा असत्य का दामन थाम ले तो बाद में उसके द्वारा कहा गया सत्य भी स्वीकार्य नहीं होता। चम्पा ने जो इल्ज़ाम मंगू पर लगाया, वो भी सत्य था या नहीं, कोई नहीं जानता। सर्वप्रथम, चम्पा एक लंबे समय तक कबीर से छुपाती रही की उसके अपने ही सगे भाई से अनैतिक संबंध हैं (यदि सचमें हैं तो), फिर अचानक ही बिना किसी बात के उसने कबीर से ये कह भी दिया। कोई छोटी – मोटी बात तो थी नहीं ये, हां यदि कबीर उसे रंगे हाथों पकड़ लेता तो बात अलग होती, परंतु यहां ऐसा कुछ भी नहीं था।

खैर, फिर जब चम्पा पर हमला हुआ, तब भी उसने कबीर से असत्य कहा की वो मंगू के पीछे गई थी। अंत में उसका गर्भवती होने का खुलासा, यदि ये बात खुली तो सीज तौर पर इस अजन्मे बच्चे का बाप, कबीर को घोषित कर दिया जाएगा, भाभी की कृपा से। मुझे इसपर भी संदेह है की ये बच्चा मंगू का है भी या नहीं, चम्पा का क्या पता और किस – किस से नाता हो, और जाने कितने ही रहस्य वो छुपाए हुए हो? परंतु एक बात तो पक्की है की चम्पा भी भरोसे के काबिल नहीं है, और निशा की वो बात “तू सबका, तेरा कोई नहीं", वो बिलकुल ही सत्य है, ऐसा प्रतीत हो रहा है।

कबीर ने अभिमानु से नोटों की गड्डी ली है, भाभी को जब इस बारे में पता चलेगा, निश्चित ही उसका शक भी कबीर पर और बढ़ जाएगा। खैर, अब चम्पा की बेवकूफी अथवा मंगू के वहशीपन का नतीजा उस निर्दोष को भोगना होगा जो अभी तक संसार में आया भी नहीं है। बहरहाल, क्या ये सब जो हो रहा है, वो शेखर के साथ अन्याय नहीं? वैसे तो मुझे नहीं लगता की चम्पा का ब्याह हो पाएगा शेखर के साथ, परंतु यदि होता है तो भविष्य में हम शेखर को भी एक खलनायक के रूप में खड़ा देखेंगे।

भाभी का किरदार मेरी समझ से परे है। कबीर की परवरिश की है, उसे मां की तरह पाला है, उसपर अपना हक भी समझती है, परंतु कबीर पर विश्वास नहीं है। गांव में हो रही हत्याओं से बेशक कबीर जुड़ा ही रहा है, कभी उसका किसी की लाश के पास होना, तो कभी उसके सामने ही हत्या होना, परंतु यदि भाभी को अपनी ही परवरिश और संस्कारों पर एतबार नहीं है, तो मुझे नहीं लगता की उन बातों का कोई भी तात्पर्य है, को उसने निशा से कही। अवश्य ही भाभी से जुड़ा कोई रहस्य भी भविष्य में हमारे सामने आ सकता है।

अभिमानु का सूरजभान से माफी मांगना भी हैरान कर गया, देखना होगा की कबीर इस बात का सत्य कैसे ढूंढेगा। सूरजभान को अब समझ आ गया होगा की दारा की हत्या कबीर ने ही की था, परंतु लगता नहीं की वो अपने झूठे अहंकार से निकल पाएगा। अवश्य ही वो पुनः कबीर से पंगा लेने का प्रयास करेगा, और तब क्या होता है, ये देखना रोचक रहेगा। वैसे तो कबीर की फसल बर्बाद कर वो अपनी कब्र खोद ही चुका है।

निशा का जाना हैरान कर गया, परंतु इस बार को लेकर मैं आश्वस्त हूं की वो भाभी के कटु वचनों की वजह से नहीं गई है। पूर्णमासी की रात निकट है, और शायद तब निशा का आगमन दोबारा होगा कहानी में, देखते हैं की उसके अचानक से चले जाने का क्या प्रयोजन है। रही बात उस आदमखोर की तो अब इंसानों को छोड़ वो मवेशियों के पीछे पड़ चुका है, कबीर के हत्थे तो चढ़ गया है वो परंतु लगता है की एक बार फिर कबीर के हाथ कुछ नहीं लगने वाला।

निशा का जाना, भाभी की बातें, राय साहब की फटकार, चम्पा के खुलासे, फसल का बर्बाद होना और अब सूरजभान... कबीर पर चारों तरफ से परेशानियों का पहाड़ टूट पड़ा है, देखना रोचक रहेगा की वो कैसे खुद को इस भंवर से बाहर निकालेगा, और क्या वो इस रहस्य से पर्दा उठा भी पाएगा या नहीं।

सभी भाग बहुत ही खूबसूरत थे भाई। कहानी निरंतरता के साथ आगे बढ़ रही है, कहीं भी लय खोटी हुई तो नहीं दिखाई दी है अभी तक। कहानी के नायक के सामने अनेकों विपरीत परिस्थितियां खड़ी हो गईं हैं, और निसंदेह, ऐसे ही समय में मनुष्य का असली बल पता चलता है।

अगली कड़ी की प्रतीक्षा में...
 

Death Kiñg

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की तभी गजब हो गया. बिजली की रौशनी से मेरी आँखे चुंधिया गयी. और उसी एक पल में उस हमलावर ने मुझे धक्का दिया और ऐसे गायब हो गया जैसे की वो था ही नहीं. एक बार फिर मैं खाली हाथ रह गया. गुस्से से मैंने धरती पर लात मारी . पर ये अपनी खीज मिटाना ही था . इस बार मैंने लगभग पकड़ ही लिया था उसको.

“कब तक बचेगा तू ” मैंने खुद को दिलासा दिया. और एक महत्वपूर्ण बात और मेरे मन में आई की आज वो कुछ कमजोर सा लगा मुझे. खैर, सुबह मुझ शहर जाना था चंपा के साथ. मैं तैयार हो रहा था की मंगू आ गया. मैंने देखा वो कुछ लंगडाकर चल रहा था .

मैं- क्या हुआ बे

मंगू- भाई कल छप्पर की छत बाँध रहा था तभी गिर गया तो चोट लग आगयी

मैंने गौर किया जब मैंने उस हमलावर को बैलगाड़ी के पहिये पर फेंका था तो उसे भी ऐसी ही चोट लगी थी. तो क्या मंगू हो सकता था वो . मेरे दिमाग में शक सा होने लगा था .

मैं- तो रात को किसने कहा था छत बाँधने के लिए

मंगू- रात को कहा मैं तो दोपहर में कर रहा था ये काम

हो सकता था की वो झूठ बोल रहा हो . हम बात कर ही रहे थे की मैंने देखा भैया-भाभी कही जा रहे थे .

मैं- सुन मंगू . मुझे मालूम हो गया है की नहर की पुलिया कैसे टूटी थी . आगे से हमें इंतजाम करना होगा की यदि ऐसी कोई भी घटना हो तो पानी खेतो तक न आ सके.

मंगू- हम क्या कर सकते है . इतने पानी को कैसे रोका जाए

मैं कुछ न कुछ तो उपाय होगा ही .

मंगू- भाई. मैं देख रहा हूँ की पिछले कुछ दिनों से तू कुछ उखड़ा उखड़ा सा रहता है . मुझसे भी ठीक से बात नहीं करता . क्या कोई भूल हुई मुझसे

मैं- मंगू तूने मुझे बताया नहीं कविता के बारे में .

मेरी बात सुन कर मंगू के चेहरे का रंग उड़ गया .उसने एक गहरी साँस ली और बोला- भाई . मैं क्या बताता तुझे. कैसे बताता . लाली का हाल हम सबने देखा ही था न. किसी को भी अगर मालूम हो जाता तो मुझे और कविता को भी ऐसे ही लटका दिया जाता.

मैं- क्या तूने अपने भाई को इस लायक भी नहीं समझा

मंगू- अपनी जान से ज्यादा तुझे मानता हु इसलिए तुझसे छिपाई क्योंकि जानता हु जो लाली जो हमारी कुछ नहीं लगती थी उसके लिए गाँव के सामने अड़ गया मेरे लिए न जाने तू क्या कर जाता. इसी डर से मैं तुझे नहीं बताया भाई .

मुझे समझ नही आ रहा था की मैं मंगू की बात को सही समझू या फिर चंपा की बात को . आख़िरकार मैंने भांडा फोड़ने का निर्णय कर ही लिया .

मैं- कुछ और ऐसा है जो तुझे लगता है की मुझे बताना चाइये

मंगू कुछ नहीं बोला उसने अपना सर झुका लिया. मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला- तू मेरा भाई है . मेरा दोस्त मेरा सब कुछ है तू . एक बात हमेशा याद रखना तेरे साथ हमेशा मैं खड़ा हूँ . खड़ा रहूँगा.

मंगू मेरे गले लग गया और बोला- मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी कबीर

मैं- जानता हु ,और यही समय है भूल को सुधारने का जो हुआ उसे वापिस नहीं किया जा सकता पर आगे से वैसा न हो तो ही हम सब के लिए बेहतर होगा. फिलहाल खेतो के लिए मजदूरो का इंतजाम कर जितने मिले उतने बेहतर . दिन में ही काम के लिए तैयार करना उनको. मुझे खेत तैयार चाहिए जल्दी से जल्दी .

मंगू ने हाँ में सर हिलाया. उसके बाद हम दोनों ने खाना खाया और फिर मैं चंपा के साथ शहर के लिए निकल गया. वहां हम उसी डॉक्टर के पास गए . चूँकि वो जानता था मुझे इसलिए पैसो के जोर से मैंने उसे चंपा के गर्भपात के लिए मना लिया. उसने अपना काम कर दिया और चंपा को कुछ बेहद जरुरी हिदायते भी दी. जब हम वहां से निकल रहे थे की अचानक से भाभी वहां आ टपकी. उसके पीछे पीछे भैया भी थे.

भाभी भी हम लोगो को वहां देख कर चौंक गयी.

भाभी- तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो .

चंपा भाभी को देख कर बुरी तरह से घबरा गयी . चूँकि उसने अभी अभी गर्भपात करवाया था कमजोरी थी और फिर एक औरत दूसरी को भांप ही लेती है .

मैं- शहर आये थे . मैंने सोचा की डॉक्टर साहब से अपना कन्धा भी दिखा देता हूँ.

भैया- ये अच्छा किया तुमने. वैसे यहाँ आने का इरादा था तो हमारे साथ ही आ जाते.

भाभी की नजरे चंपा पर ही जमी थी .पर भैया की वजह से वो कुछ कह नहीं पा रही थी .

भैया- तुम लोग बाहर बैठो हम डॉक्टर से मिलके आते है फिर साथ ही चलेंगे

मेरे लिए एक नयी मुसीबत हो गयी थी . खैर हम बाहर आये.

मैं- चंपा सुन. भाभी को शक हो गया है चाहे कुछ भी हो जाये तू ये मत कबूल करना की हम यहाँ किसलिए आये थे . वर्ना ऐसा तूफान आएगा जो सब कुछ बर्बाद कर देगा.

चंपा- किस्मत ही फूटी है कबीर.

मैं- माँ चुदाय किस्मत . मैं बोल रहा हूँ वो समझ घर जाते ही वो तेरा रिमांड लेगी. वो तुझको तंग करेगी क्योंकि अभी तू कमजोरी महसूस कर रही है वो तुझसे भारी काम करवाएगी. जितना मैं उसे समझता हूँ तुझे देखते ही वो जान गयी है की हम यहाँ किसलिए आई है . और अगर तू टूट भी जाए तो तू अपने बचाव के लिए भाभी के आगे सारा दोष मुझ पर डाल देना. जब कोई रास्ता न बचे तो तू कहना की मैंने जबरदस्ती की थी तेरे साथ .

चंपा- इतनी बेगैरत नहीं हूँ मैं की तेरा यूँ इस्तेमाल करू मैं

मैं- समझ जा . क्या मालूम ये घडी टल जाए वर्ना तेरा हाल भी लाली जैसा ही होगा.



मैं जानता था की भाभी पक्का यही सोचेंगे की मैंने चंपा को पेल दिया . क्योंकि वो शक में इतनी अंधी हो चुकी थी . खैर उन दोनों के आने के बाद हम लोग भैया की गाड़ी में बैठे और घर आ गए. पर भाभी ने वैसा कुछ भी नहीं किया जो मैं सोच रहा था . शाम तक सब ठीक ही था . शाम को चाची ने मुझसे कहा की बहुरानी तुझे बुला रही है , अपने कमरे में .

मैं- मुझसे क्या काम है

चाची- वो ही जाने

मैं उठ कर भाभी के कमरे में गया .

भाभी- चोट कैसी है तुम्हारी

मैं- जी ठीक है

भाभी- मेरे प्यारे देवर जी , चंपा को ऐसा कौन सा रोग हो गया था की तुम उसे सीधा बड़े डॉक्टर के पास लेकर गए .

मैं- ये सवाल जवाब किस लिए भाभी , हम दोनों जानते है इस बात को

भाभी- उफ्फ्फ ये बेशर्मी तुम्हारी जानते हो मैंने अगर तुम्हारे भैया को बता दिया तो क्या होगा

मैं- हम को किसी का डर नहीं

भाभी- तुम डर की बात करते हो मैं चाहूंगी न तो तू थर थर कांप जाओगे.

मैं- चाहे भैया को बता दो. पिताजी को बता दो चाहे सारे गाँव में ढोल बजा दो

अगले ही पल भाभी की उंगलिया मेरे गाल पर छप गयी.

भाभी- उसको तो मैं क्या दोष दू जब हमारा ही खून गन्दा है . मेरी नजरो में गिर गए हो तुम लोग . अरे तुमको अपनी औलाद जैसे पाला मैंने और तुम मेरे ही घर में कचरा फैला रहे हो. जवानी इतनी ही मचल रही थी तो एक बार मुझसे कह तो दिया होता ब्याह करवा देती तुम्हारा . पर ये मत समझना की इस बात को मैं दबा दूंगी. तुम दोनों की खाल उतारूंगी मैं.

“मैं हाजिर हूँ मोहब्बत की सजा पाने को ” मैंने कहा और अगले ही पल भाभी ने भैया की बेल्ट उठाई और मारने लगी मुझे......................
भाभी की समझ के आगे नतमस्तक हूं... :bow:

अभिमानु ठीक ही था, जब इससे अलग रहने लगा था। आशा है की जल्दी ही कबीर की सच्चाई सामने आएगी, और साथ ही ये भी उम्मीद है की कबीर इन सभी इल्ज़ामों को यूंही नहीं भूल जाएगा। जो व्यक्ति एक बार विश्वास ना करे, वो ज़िंदगी में फिर कभी भी पूरा विश्वास नहीं करता। भाभी को भले ही कबीर का सच पता चल जाए, पर भविष्य में यदि कुछ और नकारात्मक हुआ, तब भी वो कबीर पर ही दोष लगाएगी।

चम्पा और मंगू का रिश्ता था, इस बात की तो अब मंगू ने पुष्टि कर ही दी है, कविता से भी अपने संबंधों को स्वीकार लिया है उसने, पर क्या वो जानता है को चम्पा गर्भवती हो गई थी? शायद नहीं। आगे और भी बातचीत होने की संभावना है कबीर और मंगू के मध्य इस मामले के बारे में।

बहरहाल, एक बार फिर वो हमलावर छूट कर भाग गया। एक तरफ मंगू को वैसी ही चोट लगी है तो दूसरी तरफ कबीर को वो हमलावर कमजोर सा लगा। अभिमानु भी किसी कारणवश अस्पताल गया था... देखते हैं कब तक वो अंधेरों में छिपा रह पाएगा, कभी न कभी तो सत्य उजागर होना ही है।

बेहतरीन अपडेट, एक बार फ़िर!
 

Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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कहानी एकदम चुटियापे की ओर मुड़ गई है,

जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ रही है नायक और ज्यादा मूर्ख और कमजोर प्रतीत हो रहा है या हो सकता है की शुरू से कबीर इतना स्ट्रॉन्ग कैरेक्टर का ना हो हम लोगो ने ही गलत आंकलन किया हो

अभी तक देख के कबीर इतना बुद्धिमान तो नहीं लग रहा की अकेले दम पर कोई सवाल का जवाब ढूंढ पाएगा
देखते है आगे क्या होगा
 

Tiger 786

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#49

चंपा- कौन था ये और तुझे कैसे जानता है

मैं- लम्बी कहानी है तू सुन नहीं पायेगी मैं बता नहीं पाउँगा

चंपा- तेरे सामने उसने मुझे पकड़ा तेरा खून नहीं खौला इतना निर्मोही हो गया तू

मैं- खून तो मेरा उस दिन से खौल रहा है . खून तो मेरा तब से उबल रहा है जब से मुझे मालूम हुआ की तेरे पेट में बच्चा है . ये तेरी खुशकिस्मती है जो मैं शांत हूँ, रही बात उस सूरजभान की तो मैं जानता हु मैं क्या कर सकता हूँ इसलिए खुद को रोका है .एक बार बेकाबू हुआ था आज तक पछतावा है मुझे. मेरे मन में बहुत सवाल है चंपा इतने की मैं पूछता रहूँगा तू जवाब देते देते थक जाएगी. फ़िलहाल मेरी इच्छा है की किसी तरह तेरा ब्याह हो जाये और तू यहाँ से राजी ख़ुशी निकल जाये मैं नहीं चाहता की एक और लाली की लाश पेड़ पर टंगी मिले.



चंपा फिर कुछ नहीं बोली. तनहा दिल लिए हम दोनों वापिस घर आये. मैंने उस से चाय बनाने को कहा और हाथ मुह धोनेचला गया . चबूतरे पर बैठ कर मैं चुसकिया ले रहा था की भैया आ गए.

मैं- आपसे मिलने की ही सोच रहा था मैं .

भैया- हाँ छोटे बता क्या कहना था .

मैं- मुझे कुछ पैसे चाहिए थे .

भैया ने दस दस के नोटों की गद्दी निकाली और मुझे दे दी .

मैं- पचास वाली की जरूरत है भाई

भैया ने एक बार मेरी तरफ देखा और बोले- हाँ क्यों नहीं

भैया ने बड़े नोटों की गद्दी मुझे दी.

मैं- एक बात पूछनी थी

भैया- पहेलियाँ क्यों बुझा रहा है जो मन में है सीधा कह न

मैं- सूरजभान से माफ़ी मांगने की क्या जरुरत आन पड़ी थी आपको . आप जानते है की मेरा भाई मेरा गुरुर है और मेरी वजह से मेरे भाई को झुकना पड़े ये बर्दाश्त नहीं होगा मुझे

भैया- तू भी न छोटी छोटी बातो को दिल से लगा लेता है . हम व्यापारी आदमी है . हमें अपना रसूख देखना है हम लोग समय आने पर लोगो को झुकाते है . एक बार बात आई गयी करने के हमें भविष्य में फायदे मिलेंगे.

भैया झूठ बोल रहे थे मैं एक पल में जान गया था . मेरा भाई , मेरा बाप जिनके आगे दुनिया झुकती थी वो किसी के आगे हाथ जोड़ दे. मामला कुछ और ही था . पर मैं भैया के आगे कुछ नहीं बोला.

मैं- भैया , वो चंपा की तबियत कुछ ठीक नहीं है आप की आज्ञा हो तो मैं उसे शहर के डॉक्टर को दिखा लाऊ

भैया- ये कोई पूछने की बात है . जायेगा तो तेरा कन्धा भी दिखा आना

मैंने हाँ में सर हिलाया . तभी भाभी ने भैया को आवाज दी तो वो चले गए .

मेरा दिल कर रहा था की मैं मंगू से पुछु पर चाह कर भी हिम्मत नहीं कर पाया. अँधेरा घिरने लगा था मैंने शाल ओढा और अलाव जला कर बैठ गया . सामने बहुत सी समस्या थी सूरजभान ने मेरी फासले डुबाने को नहर तोड़ दी. मेरे साथ और भी गाँव वालो का नुकसान हुआ था . मैंने सोचा की इस मामले को पांच गाँवो की महापंचायत में उठाऊ पर सूरजभान धूर्त था वो साला साफ़ मुकर जाता और मेरे पास सबूत नहीं था .

जमीनों की रखवाली के लिए मजदुर लगा नहीं सकता था क्योंकि उस हमलावर के खौफ से कोई तैयार नहीं था जान सबको प्यारी थी. आज से चांदनी राते शुरू हो रही थी जितने भी हमले हुए थे इन चांदनी रातो में हुए थे . क्या ये सिलसिला फिर से शुरू होगा ये सोच कर मेरी झुरझुरी छूट गयी .



“खाने में क्या बनाऊ कबीर ” चंपा ने मुझसे पूछा तो मेरी तन्द्रा टूटी.

मैं- भूख नहीं है

चंपा मेरे पास बैठी और बोली- जानती हु तू मेरी वजह से परेशां है .

मैं- तेरी वजह से क्यों परेशां होने लगा मैं. मुझे और भी बहुत समस्या है .

चंपा- तेरा हक़ बनता है मुझसे नाराज होने का .

मैं- मेरे हक़ की बात करती है तू . मेरा हक़ था तेरी दोस्ती का मैं अपनी दोस्ती निभा रहा हूँ. मरते दम तक निभाऊंगा .



सर में दर्द हो रहा था तो मैं बिस्तर में घुस गया . न जाने कितनी देर बाद मेरी आँख खुली . कमरे में घुप्प अँधेरा था . प्यास के मारे गला सूख रहा था . मैं पानी के लिए मटके के पास गया . पानी पी ही रहा था की मुझे लगा खिड़की पर कोई है . इतनी रात में हमारी खिड़की पर कौन हो सकता है . मैंने चुपचाप दबे पाँव दरवाजा खोला और खिड़की के पास गया . वहां कोई नहीं था सिवाय सन सनाती सर्द हवा के.

मैं अच्छी तरह से जानता था की मेरा वहम तो कतई नहीं था . चूँकि आज बिजली नही थी तो मुझे दिक्कत हो रही थी अँधेरे में देखने के लिए. तभी भैंसों की चिंघाड़ से मेरे कान सतर्क हो गए. मैं तुरंत उस तरफ भागा ये हमारे पड़ोसियों का तबेला था . मैंने देखा की तबेले का दरवाजा खुला हुआ था और अन्दर एक भैंस दर्द से बिलख रही थी उस पर कोई झुका हुआ था .

“बस बहुत हुआ . बहुत खून पी लिया तूने अब और नहीं ” मैंने कहा

वो जो भी था उसने पलट कर मुझे देखा और उसकी लाल आँखे मुझे ऊपर से निचे तक देखने लगी.

“तू जो भी है जैसा भी है . मैं उम्मीद करता हूँ की तू मेरी बात समझ रहा होगा. आज मैं तुझे जाने नहीं दूंगा. आज की रात तू मुझसे मुकाबला कर या तो तू नहीं या मैं नहीं ” मैंने जोर देकर कहा.

वो शक्श दो पल मेरे करीब आकर मुझे देखता रहा और फिर उसने दूसरी तरफ छलांग लगा ही दी थी की मैंने उसका हाथ पकड़ लिया

मैं- नहीं . बिलकुल नहीं .

मै पहले ही गुस्से से भरा था ऊपर से इसकी ही तो तलाश थी मुझे . इसे अगर आज जाने देता तो फिर ये किसी न किसी को मारता . मैंने खीच कर मुक्का उसकी नाक पर मारा . वो कुछ कदम पीछे सरका और अगले ही पल उसने मेरी गर्दन पकड़ ली. उसकी मजबूत पकड़ मेरी सांसो को रोकने लगी. मैं छुटने की भरपूर कोशिश कर रहा था पर नाकामी ही मिली मैंने उसके पेट पर लात मारी उसने मुझे हवा में फेंक दिया.



पर आज मैं कोई मौका उसे नहीं देना चाहता था . मैंने उसका पैर पकड़ा और उसे पीछे की तरफ खींचा . इसी बीच उसके नाखून मेरी शर्ट को फाड़ गए. वो भागता इस से पहले ही मैंने उसे पटक दिया. तबेले का दरवाजा जोर की आवाज करते हुए टूट कर बिखर गया. हम दोनों गली में आ गए. वो उठ खड़ा हुआ उसने अपने कंधे चटकाए और दो तीन मुक्के मारे मेरे सीने पर. मुझे महसूस हुई उसकी ताकत .



पर आज कबीर ने ठान लिया था की इस किस्से को यही ख़त्म करना है .

मैं- चाहे जितनी कोशिश कर ले आज या तो तू नहीं या मैं नहीं.

इस बार मैंने उसे उठा कर फेंका तो वो बैलगाड़ी के पहिये में लगे लोहे के टुकड़े से जा टकराया. जोर से चीखा वो .

मैं- जिनको तूने मारा वो भी ऐसे ही चीखे होंगे न.

मैं उसके पास गया और उसके पाँव को मरोड़ने लगा. पर तभी साला गजब ही हो गया.
Awesome update
की तभी गजब हो गया. बिजली की रौशनी से मेरी आँखे चुंधिया गयी. और उसी एक पल में उस हमलावर ने मुझे धक्का दिया और ऐसे गायब हो गया जैसे की वो था ही नहीं. एक बार फिर मैं खाली हाथ रह गया. गुस्से से मैंने धरती पर लात मारी . पर ये अपनी खीज मिटाना ही था . इस बार मैंने लगभग पकड़ ही लिया था उसको.

“कब तक बचेगा तू ” मैंने खुद को दिलासा दिया. और एक महत्वपूर्ण बात और मेरे मन में आई की आज वो कुछ कमजोर सा लगा मुझे. खैर, सुबह मुझ शहर जाना था चंपा के साथ. मैं तैयार हो रहा था की मंगू आ गया. मैंने देखा वो कुछ लंगडाकर चल रहा था .

मैं- क्या हुआ बे

मंगू- भाई कल छप्पर की छत बाँध रहा था तभी गिर गया तो चोट लग आगयी

मैंने गौर किया जब मैंने उस हमलावर को बैलगाड़ी के पहिये पर फेंका था तो उसे भी ऐसी ही चोट लगी थी. तो क्या मंगू हो सकता था वो . मेरे दिमाग में शक सा होने लगा था .

मैं- तो रात को किसने कहा था छत बाँधने के लिए

मंगू- रात को कहा मैं तो दोपहर में कर रहा था ये काम

हो सकता था की वो झूठ बोल रहा हो . हम बात कर ही रहे थे की मैंने देखा भैया-भाभी कही जा रहे थे .

मैं- सुन मंगू . मुझे मालूम हो गया है की नहर की पुलिया कैसे टूटी थी . आगे से हमें इंतजाम करना होगा की यदि ऐसी कोई भी घटना हो तो पानी खेतो तक न आ सके.

मंगू- हम क्या कर सकते है . इतने पानी को कैसे रोका जाए

मैं कुछ न कुछ तो उपाय होगा ही .

मंगू- भाई. मैं देख रहा हूँ की पिछले कुछ दिनों से तू कुछ उखड़ा उखड़ा सा रहता है . मुझसे भी ठीक से बात नहीं करता . क्या कोई भूल हुई मुझसे

मैं- मंगू तूने मुझे बताया नहीं कविता के बारे में .

मेरी बात सुन कर मंगू के चेहरे का रंग उड़ गया .उसने एक गहरी साँस ली और बोला- भाई . मैं क्या बताता तुझे. कैसे बताता . लाली का हाल हम सबने देखा ही था न. किसी को भी अगर मालूम हो जाता तो मुझे और कविता को भी ऐसे ही लटका दिया जाता.

मैं- क्या तूने अपने भाई को इस लायक भी नहीं समझा

मंगू- अपनी जान से ज्यादा तुझे मानता हु इसलिए तुझसे छिपाई क्योंकि जानता हु जो लाली जो हमारी कुछ नहीं लगती थी उसके लिए गाँव के सामने अड़ गया मेरे लिए न जाने तू क्या कर जाता. इसी डर से मैं तुझे नहीं बताया भाई .

मुझे समझ नही आ रहा था की मैं मंगू की बात को सही समझू या फिर चंपा की बात को . आख़िरकार मैंने भांडा फोड़ने का निर्णय कर ही लिया .

मैं- कुछ और ऐसा है जो तुझे लगता है की मुझे बताना चाइये

मंगू कुछ नहीं बोला उसने अपना सर झुका लिया. मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला- तू मेरा भाई है . मेरा दोस्त मेरा सब कुछ है तू . एक बात हमेशा याद रखना तेरे साथ हमेशा मैं खड़ा हूँ . खड़ा रहूँगा.

मंगू मेरे गले लग गया और बोला- मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी कबीर

मैं- जानता हु ,और यही समय है भूल को सुधारने का जो हुआ उसे वापिस नहीं किया जा सकता पर आगे से वैसा न हो तो ही हम सब के लिए बेहतर होगा. फिलहाल खेतो के लिए मजदूरो का इंतजाम कर जितने मिले उतने बेहतर . दिन में ही काम के लिए तैयार करना उनको. मुझे खेत तैयार चाहिए जल्दी से जल्दी .

मंगू ने हाँ में सर हिलाया. उसके बाद हम दोनों ने खाना खाया और फिर मैं चंपा के साथ शहर के लिए निकल गया. वहां हम उसी डॉक्टर के पास गए . चूँकि वो जानता था मुझे इसलिए पैसो के जोर से मैंने उसे चंपा के गर्भपात के लिए मना लिया. उसने अपना काम कर दिया और चंपा को कुछ बेहद जरुरी हिदायते भी दी. जब हम वहां से निकल रहे थे की अचानक से भाभी वहां आ टपकी. उसके पीछे पीछे भैया भी थे.

भाभी भी हम लोगो को वहां देख कर चौंक गयी.

भाभी- तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो .

चंपा भाभी को देख कर बुरी तरह से घबरा गयी . चूँकि उसने अभी अभी गर्भपात करवाया था कमजोरी थी और फिर एक औरत दूसरी को भांप ही लेती है .

मैं- शहर आये थे . मैंने सोचा की डॉक्टर साहब से अपना कन्धा भी दिखा देता हूँ.

भैया- ये अच्छा किया तुमने. वैसे यहाँ आने का इरादा था तो हमारे साथ ही आ जाते.

भाभी की नजरे चंपा पर ही जमी थी .पर भैया की वजह से वो कुछ कह नहीं पा रही थी .

भैया- तुम लोग बाहर बैठो हम डॉक्टर से मिलके आते है फिर साथ ही चलेंगे

मेरे लिए एक नयी मुसीबत हो गयी थी . खैर हम बाहर आये.

मैं- चंपा सुन. भाभी को शक हो गया है चाहे कुछ भी हो जाये तू ये मत कबूल करना की हम यहाँ किसलिए आये थे . वर्ना ऐसा तूफान आएगा जो सब कुछ बर्बाद कर देगा.

चंपा- किस्मत ही फूटी है कबीर.

मैं- माँ चुदाय किस्मत . मैं बोल रहा हूँ वो समझ घर जाते ही वो तेरा रिमांड लेगी. वो तुझको तंग करेगी क्योंकि अभी तू कमजोरी महसूस कर रही है वो तुझसे भारी काम करवाएगी. जितना मैं उसे समझता हूँ तुझे देखते ही वो जान गयी है की हम यहाँ किसलिए आई है . और अगर तू टूट भी जाए तो तू अपने बचाव के लिए भाभी के आगे सारा दोष मुझ पर डाल देना. जब कोई रास्ता न बचे तो तू कहना की मैंने जबरदस्ती की थी तेरे साथ .

चंपा- इतनी बेगैरत नहीं हूँ मैं की तेरा यूँ इस्तेमाल करू मैं

मैं- समझ जा . क्या मालूम ये घडी टल जाए वर्ना तेरा हाल भी लाली जैसा ही होगा.



मैं जानता था की भाभी पक्का यही सोचेंगे की मैंने चंपा को पेल दिया . क्योंकि वो शक में इतनी अंधी हो चुकी थी . खैर उन दोनों के आने के बाद हम लोग भैया की गाड़ी में बैठे और घर आ गए. पर भाभी ने वैसा कुछ भी नहीं किया जो मैं सोच रहा था . शाम तक सब ठीक ही था . शाम को चाची ने मुझसे कहा की बहुरानी तुझे बुला रही है , अपने कमरे में .

मैं- मुझसे क्या काम है

चाची- वो ही जाने

मैं उठ कर भाभी के कमरे में गया .

भाभी- चोट कैसी है तुम्हारी

मैं- जी ठीक है

भाभी- मेरे प्यारे देवर जी , चंपा को ऐसा कौन सा रोग हो गया था की तुम उसे सीधा बड़े डॉक्टर के पास लेकर गए .

मैं- ये सवाल जवाब किस लिए भाभी , हम दोनों जानते है इस बात को

भाभी- उफ्फ्फ ये बेशर्मी तुम्हारी जानते हो मैंने अगर तुम्हारे भैया को बता दिया तो क्या होगा

मैं- हम को किसी का डर नहीं

भाभी- तुम डर की बात करते हो मैं चाहूंगी न तो तू थर थर कांप जाओगे.

मैं- चाहे भैया को बता दो. पिताजी को बता दो चाहे सारे गाँव में ढोल बजा दो

अगले ही पल भाभी की उंगलिया मेरे गाल पर छप गयी.

भाभी- उसको तो मैं क्या दोष दू जब हमारा ही खून गन्दा है . मेरी नजरो में गिर गए हो तुम लोग . अरे तुमको अपनी औलाद जैसे पाला मैंने और तुम मेरे ही घर में कचरा फैला रहे हो. जवानी इतनी ही मचल रही थी तो एक बार मुझसे कह तो दिया होता ब्याह करवा देती तुम्हारा . पर ये मत समझना की इस बात को मैं दबा दूंगी. तुम दोनों की खाल उतारूंगी मैं.

“मैं हाजिर हूँ मोहब्बत की सजा पाने को ” मैंने कहा और अगले ही पल भाभी ने भैया की बेल्ट उठाई और मारने लगी मुझे......................
Mind-blowing update fauji bhai
 

Paraoh11

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हम ये क्यू सोच रहे हैं के कातिल एक ही है!
चम्पा और मंगू दोनो भी तो हो सकते हैं???

और ये वहशीपन, संक्रमण की तरह भी तो फैल सकता है जैसे कारीगर में भी उत्पन्न होने लगा था!

ये कुछ ऐसा हो सकता है जैसे पाश्चात्य किंवदन्तीयों में नरपिशाच (vampire ) का वर्णन मिलता है जो अगर किसी को घायल कर दे और अगर शिकार ज़िंदा भी बच जाए तो वो भी नरपिशाच में बदलने लगता है।

सम्भव है पहले मंगू इसकी चपेट में आया हो, और उसी ने कविता को सम्भोग के दौरान मार दिया ।
और फिर चम्पा को भी संक्रमित कर दिया!
अब दोनो भाई बहन लोगों को चुतिया भी बना ये हैं और मारते भी हैं!!

कहने को तो डायन निशा थी पर..
हरकतें तो भाभी कर रही है!!!

इसका प्रायश्चित ये होना चाहिए कि भाभी की भी कोख कबीर ही भरे ....👈🏽
 
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